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Namostu Chintan 9 Dec18
Namostu Chintan 9 Dec18
( : )
काशक : नमोS तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 09 माह : दसंबर 018
Web site: www.vishuddhasagar.com
कहाँ पर या है ?
चौमासे म धान: अ भुत घटना
मु य आवरण: व-संवेद मण से
ा : दे व शा और गु का ान
पं. . नहालचं जी जैन “चं े श” 23
मंगलाचरण
पव लोक पू य मु न दशा
मंगलाशीष 03
संपादक य 04 मणाचाय ी वमशसागरजी मु नराज
व-संवेद मण से बधाईयाँ ब च को 39
मंगलाशीष
,
सव वाणी व व क याणी है . जो क
या वाद, अनेकांत त व से मं डत है . ऐसी वीतराग
वाणी सव व व के क याण का कारण बने, इस
उ दे य को लेकर “नमो तु चंतन” प का प रवार
जो उप म कर रहा है , वह अनुकरणीय है . ी
जो है सो है िजन वा वा दनी, ी िजन शासन, नमो तु शासन
क भावना हे तु मंगलाशीष.
नमो तु शासन जयवंत हो
आचाय ी 108 वशु सागरजी महाराज
जयवंत हो वीतराग मण परभणी, महारा .
11 जल
ु ाई 2018.
सं कृ त
हमारे भगवंतो के ी मख
ु ार वंद से मो
माग का ा प जैसा सन
ु ा वैसा ह गणधर ने गुना
और आचाय भगवंत क कृपा से हम तक भगवंतो
ने बहुत ह सरल कृत करके बताया.
य द हम महान आचाय ी सम तभ
मम ् गु त पल मरणीय परम पू य
वामी के पा मुल म रहकर दे खे तो बनारस क
आगम उपदे टा चया शरोम ण समयसारोपासक
अ भुत चम कार घटना दखाई दे ती है िजसमे
त
ु संवधक, वा याय भावक आचाय ी 108
उनके स यक् ान के कारण शव पंडी भी महज
वशु सागरजी महाराज कहते ह क जगत क
सहज प से कये गए नम कार को नह ं झेल
माँ संसार म पटक दे ती है पर तु यह िजनवाणी
सक और वह फट गयी तथा इ टदे व ी च भ
माँ संसार के दख
ु से छुटकारा दलाती है .
भगवान ् क तमाजी कट हो गयी.
त व का ान ह ा है !
एक और घटना को यहाँ बताना बहुत ह
आव यक है इस लए क पि चमी दे श म हमारे
अपने मं के मा यम से रोग का उपचार कया
जा रहा ह. य द हम महान आचाय ी मानतुंग
वामी के पा मल
ु म रहकर दे खे तो जेल क
द वार के अ दर लोहे क जंजीर से बंधे हुए 48
ताले लगे हुए 48 कोठ के दरवाज से वमेव
बाहर आना अपने आप म अ भत
ु चम कार घटना
तीत होती है . यह सब हुआ कैसे ? बहुत ह
आचाय ी अ य
सार वत ् क व नय च वत मणाचाय
ी 108 वभवसागरजी महाराज
ट मंडल : दग
ु : सजल जैन, गड
ु गाँव : पं.मक
ु े श शा ी
हैदराबाद : डॉ. द प जैन
अ य ी पी. के. जैन ‘ द प’
इंदौर : दनेशजी गोधा, ीमती रि म गंगवाल
उपा य ा ीमती त ठा जैन जयपरु : डॉ. रं जना जैन
महामं ी बा. .अ यकुमार जैन कोलकाता : सरु े गंगवाल, राजेश काला,
सह मं ी ी अिजत जैन ीमती कुसम
ु छाबड़ा,
धान का फल
वशु वाणी
चाहे सब कुछ लट
ू जाए तो,
लट
ु जाने दे ना पर तु
यह यान रखना क
ा का द प न बझ
ु ने पाए
}}}}}}
चम कार
न ी मं दरजी म होता है ,
न मत
ू म होता ह.
िजतने वशु भाव से भि त क जाती है
वह चम कार बन जाती ह
. ी नहालचं जी
जैन “चं े श”
महाका य रचनाकार
:
“ व-संवेद मण”
थमानुयोग का
थ
भाव शु शभ
ु समा ध है, भाव शु कर लँ ू |
जैसा म हो वैसा मशः, कम आहार कर लँ ू ||
धम यान म रहे ल नता, तप अ यंतर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||40||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
प र ह क चड़ के समान है | क चड़ म
फँसा पशु तड़फ-तड़फकर अपने ाण गँवा दे ता है ,
वैसे ह प र ह पी पंक म फँसा य चंता
करते करते मरण को ा होता है | धन को
एक त करना, उसक सरु ा करना क कार ह
है | पाप का पता प र ह है | प र ह के राग म
य अपने य बंधओ
ु ं को भी छोड़ दे ता है |
बहुत प र ह करने वाला जीव मरण करके नरक
म ज म लेता है और बहुत काल तक क भोगता
है ।
(आचाय ी वशु सागरजी महाराज क कृ त : खाओगे अ न वैसा होगा मन जैसा पयोगे पानी
वचन भा से उ त
ृ ) जैसी होगी वाणी | भाव और भाषा को प व करना
है तो ासुक भोजन करो | िजसका आसन-असन
शु नह ं होगा उसे यान क स नह ं हो
चौमासे म ान और अ त
ु घटना
जै नय के भगवान
मु नराज ने यह वा य,
नज कान सुना मन म गुना
िजन मु ा के मह व को,
( आचाय ी वशु सागर जी महाराज के जीवन
मु नराज ने नज म बुना
वत
ृ ांत पर आधा रत महाका य “ व संवेद मण”
थमानुयोग से साभार ........
अमरावती क एक घटना,
हम तु ह बतला रहे
शौच के प चात गु वर,
आगम म तुम मु नराज को,
िजन दश को जा रहे |
भगवान सम कहते अहो
पर एक जैनेतर कहे ,
आ चय तो होता अहो
तम
ु तो सख
ु के सागर भगवन !
दो बूंद मल जाएंगी
जाने वाल अं तम वास,
कुछ पल को क जाएंगी
न दय म य द जल न होता,
हं स बैठने आता य ?
शरण म आकर सुख न मलता,
भवसागर म दख
ु ना मलता, तेर शरण म आता य ?
तेर शरण म आता य ? भवसागर म दख
ु ना मलता,
शरण म आकर सुख न मलता, तेर शरण म आता य ?
तेर शरण म आता य ? शरण म आकर सुख न मलता,
तेर शरण म आता य ?
धागण
आ मा शु ा मा है वैसी ह तेर भी शु ा मा
ु है .
भ य जीव चातक द य व न को वण
आ मा अनंत गुण का अभेद अखंड पंड है करते हुए जैसे ह अपने नज शु ा मा क
एक गुण है ा. ओर एक पलक मा के लए डूबकर अंतरं ग
ा गुण क पूण शु ध नमल पयाय का म नज शु ा मा का व वास जगाता है
नाम है स य दशन. स य दशन हो जाता है .
स य दशन का उपादान अंतरं ग कारण है ऐसे वीतरागी भगवान के पादमल
ू म
एक पल मा न मष मा के लए अपनी असं यात भ य जीव स य दशन को ा त
काल व
ु शु ा मा म डूबकर व वास करके मो जाने का रजवशन करवा लेते
क म बस यह हूँ बाक शर र आ द कुछ ह, ध य है , ध य है , ध य है !
भी नह हूँ. ा गुण का प रणमन है अहम ् करना
स य दशन के होने म न म कारण बहुत या न म ये हूँ.
से हो सकते ह. अना दकाल से हम शर र ह म हूँ ऐसा
इसमे से सा ात तीथकर परमा मा का मानते ह जो म या दशन है .
पादमल
ू उनका दशन उनक वाणी का
अब य द त व य दे व गु धम आ द
सन
ु ना बल ेरक न म है .
के नणय पूवक अपनी नज शु ा मा क ओर एक
भ य जीव समवशरण म वेश करके
पल मा के लए न वक प डूब जाएं तो उस
20,000 सी ढयां चढ़कर ीम डप धमसभा
समय ा म ये ठोस बैठ जाता है क म शु
म जब अपने नधा रत कोठे म जाकर
का लक व
ु एक अखंड चैत य व पी भगवान
बैठता है तब.
आ मा हूँ, यह ा गण
ु क पूण शु पयाय
तीथकर परमा मा जो वीतरागी सव और
स यकदशन है .
हतोपदे शी ह उनक म हमा आती है क
यह शु ध स य व को धारण करना कहा
भगवान आप म हमावंत है , तीन लोक म
जाता है , शु स य व या न जो व तु व प
सबसे े ठ ह, सौधम इं तो ऐसे ऐसे
जैसा है उसे वैसा ह मानना. और इसके लए भेद
1008 नाम से भगवान क तु त भि त
व ान के नर तर अ यास क आव यकता है .
करता है .
लगातार सभी से थक अपनी आ मा को अनुभव
द य व न को सुनकर नज क न धयां
करके उसमे डूबने का भगीरथ यास करना चा हए.
पता चलती है भगवान कहते है जैसी मेर
आचाय भगवंत ने जो शु ा मा के सख
ु का
वेदन येक अ तमुहूत म करते रहते ह वे क णा
कृ त म या व. इन 7 कृ तय के य स म त (रिज.)
ा -
स यक् स चे के अथ म है . दशन का अथ
ा है . ा, ान चा र हो तो स चे हो,
सह हो. गलत ा, वपर त ान और
ा म ह संगीत का सरु ,
म याचा र संसार म भटका दे ते है . िजस कार
ा ह अमत
ृ क धार।
अ व थ होने पर सह वै के त स ची ा
ा क पतवार जो थामे,
सह दवा का ान तथा उस दवा को सह वध
वो ह होते भव से पार।।
से सेवन करने से ह रोग दरू होता है , उसी कार
ा अ या म का आधार है . स चे दे व, स य दशन, ान, चा र पर ढ़ ान रखने
शा और गु से भाव के नमल प रणाम पर ह भव-रोग दरू होता है .
स हत जुड़ना और भि त- व वास-आ था का
स ची ा आ मा के त आ था, व-पर
पूण समपण ह ा कहलाता है .
के भेद को ह स य दशन कहा जाता है धा क
संसार ह द:ु ख का कारण है . और इस ज म- यो त जलाकर जो यान लगाया करते है , वे ह
मरण के च कर से मु त होकर ह परम सुखी परमपद को पाकर भवसागर पार हो जाया करते
बना जा सकता है . इसके लए कोई कहता है , है .
धा और भि त के मा यम से ह मुि त मलती
क त जैन
है , कोई कहता है बना ान को ा त कए मुि त
नह ं मल सकती, इससे भ न कोई यह मानता
कठोर तप आचरण करने से ह मो मलता है. ीमती क त जैन
पर तु जब तक हमारे पास ा या भि त के द ल दे शा य ा
समपण भाव नह ह गे तब तक परम पद को नमो तु शासन सेवा
ा त करना संभव नह ं हो सकता यो क ा स म त (रिज.)
से क गयी भि त अथात ान ह भ त को संचा लका
भगवान बना सकता है . सह ा, ान और नमो तु शासन सेवा
आचरण के योग से ह मो माग बनता है . स म त पाठशाला
ा- व वास-भरोसा-दशन सय
ु ोग मले. हमने अतीत म अ छा कया था तो
वतमान अ छा मला और अगर हम आज अ छा
ा- व वास-भरोसा-दशन यह सब एकाथवाची
करगे तो हमारा भ व य अ छा होगा. दे खए
है . हमारे आचाय ने कहा है क हम ा के बना
आचाय कहते ह कम सबसे यादा ईमानदार होते
एक कदम भी आगे नह ं बढ़ा सकते. जब तक हम
ह. जैसा आप करते हो तदनुसार आपको वह फल
कसी वषय म पूण ान- ान नह ं है तो हम
दे ते ह. हम ावक ह. ावक श द तीन श द से
उस पर कैसे आचरण कर सकते ह जैसे बीमार
मलकर बना है , व, क यानी ावान-
होने पर हम िजस वै , डॉ टर पर व वास होता
ववेकवान- यावान जो होता है वह ावक
है उसी के पास जाते ह और उसक द हुई दवाई
कहलाता है . ावक श द को लेकर, दे ख एक भजन
पर आँख मींच कर व वास करते ह तो हम शी
के मा यम से या कहा जा रहा है :-
ठ क हो जाते ह. उसी कार आ याि मक े म
भी कहा है - ावक कुल उ म पा जाना,
बन जाने ते दोष गण
ु न को कैसे तिजये ग हये शुभ कम का है वरदान तेरा |
ा ववेक आचरण करो,
और ऐसा जानकर हम गण
ु को हण करते
कत य भी है अ धकार तेरा |
ह और दोष को छोड़ सकते ह.
स यक् ा िजन, िजन आगम,
ा का अथ
संयम म अगर हो जाए सह |
स यक् चा र बन हो न कभी,
इस आतम का क याण तेरा ||3||
स यक् दशन अ ान चरण, ा का अथ है - िजसे मानने के लए तक
तीन क एकता यग
ु पत ् हो | के पास कोई कारण न हो, िजसे मानना बलकुल
स यक् र य हो न अगर, असंभव मालूम पड़े, जो दखाई न पड़ता हो, िजसका
चं े श न हो नवाण तेरा ||4|| पश न होता हो, िजसक गंध न आती हो, और
िजसको मानने के लए कोई भी आधार न हो उसे
अंत म हम सोचना है क जगत म सार व तु
मान लेने का नाम है ा.
ा बहुमू य सू है .
या है ? िजसे हम हण कर :-
परमा मा को तुम अभी जानते नह ं हो, कोई
पहचान नह ,ं कभी दे खा नह ,ं कभी मलन नह ं
जगत म सार व तु या ?
हुआ. ा का अभी तो इतना ह अथ हो सकता
ज म पाया मनुज का तो |
है क हम एक प रक पना वीकार करते ह, और
सतत चंतन करो बंध,ु
हम खोज म लगते है , शायद जो प रक पना है
ज म पाया मनुज का तो |
वैसा स हो, न हो. ले कन एक बात प क है
त वदश हम होना,
क खोज शु हो जाएगी. और िजसक खोज शु
व-पर का भेद कर-कर के |
हो गई, अंत यादा दरू नह ं है . और एक बात
व-पर क याण रत रहना,
यह भी प क है क अ ा नय ने िजतने ढं ग से
ज म पाया मनुज का तो ||
परमा मा को माना है , अं तम अथ म वे कोई भी
नहालचंद जैन चं े श सह स नह ं होती. वे सभी प रक पनाएं अ स
होती ह. जो गट होता है , वह सभी प रक पनाओं
से यादा अनूठा है . जो कट होता है वह तु हार
सभी मा यताओं से बहुत ऊपर है . जो गट होता
है , तुमने उसे सोचा था द या, ले कन जो गट
होता है वह महासूय है . कसी क प रक पना
परमा मा के संबंध म कभी सह स नह ं होती,
हो भी नह ं सकती।
नोट: आदरणीय पं. . ी नहालचं जी जैन ‘चं े श’
छोटा सा मन है , छोटा सा उसका आंगन है .
महाका य आचाय ी वशु सागर जी क जीवनी “ व
कतना बड़ा आकाश, उस आंगन म समाएगा?
संवेद मण” के रचनाकार और नमो तु चंतन के
सलाहकार भी ह. छोटे छोटे हाथ है . इन छोटे -छोटे हाथ से उस
ा - सम
ु न
पूव भवम आ द वामी के पोते,मा रची नाम आय
363 पंथ थे चलाए, नाम तु हारे ंथ म पाए
इस तरह भगवान म, आई तु हारे ार पर
कस तरह भगवान म, ा के सुमन चढ़ाने भावना भ क लेकर, आई तु हारे ार पर
भ के भाव लेकर आऊं तु हारे ार पर
भावना दल क सजा लाऊं तु हारे ार पर जंगल वन खेल रहे थे हार कभी न थी मानी
कस तरह भगवान म आऊं तु हारे ार पर संगम दे व को परा त करने तब मन म ठानी
भ वश
कट हुए दे व नाम रखा महावीर वामी
आ मा क हर लहर म नाथ तुम आकर अगर धम-कम से ह नह ं हर मम से महावीर वामी
ेम को साकार कर, दे दो दशन अगर
कस तरह भगवान म ा के पु प चढ़ाने इसी तरह भगवान म ा के फूल लेकर आई
भ के राग लेकर आऊं तु हारे ार पर भावना दल क संजो आई तु हारे ार पर
ा सम
ु न आज म, उ ह चढ़ाने आई हूं
इ तहास के झरोख से नकाल,प ले कुछ लाई हूं
व णम अ र के लेख,िजसके जीवन क कहानी
उपसग के आगे िजसने हार कभी न मानी
बाल गीत
सन
ु ो यान से मेरे भगवन ्
( मणाचाय नय च वत ी 108 वभव सागर
जी महाराज क कृ त “भि त भारती” से उ धत
ृ )
Address
Unit 7, 15-17 Tucks Road,
Seven Hills, NSW 2147
बधाईयाँ ब च को और
ब चे का और माता- पता का
. शहर नाम
अपने माता और पता ी क बात को मानकर 13 मुंबई नीरज मुकेश केलावत जैन
मुंबई पलक दनेश केलावत जैन
पटाखे न छोड़ने का नणय लया वह बहुत ह 14
15 मुंबई सुभम दनेश केलावत जैन
सराहनीय है . आगे चलकर भ व य म आपका यह रोहतक मु कान शालू संजय जैन
16
अ हंसा मक याग आपको अपने जीवन म बहुत 17 रोहतक सपन शालू संजय जैन
ह उं चाईय पर ले जायेगा. लाख करोड जीव को 18 रोहतक अ तशय शालू संजय जैन
आपने जीवन दान दया, यह कोई छोट बात नह ं 19 लंदन आरोह वेता योगे जैन
20 हांसी तनु ी करण अनुज जैन
ह. आपको वशेष प से मणाचाय ी 108
21 हांसी यु नक करण अनुज जैन
वभव सागर जी महाराज का आशीवाद भी ा त क याण हतांश तिृ त पयष
22 ू बंडी जैन
हो गया ह. आपने अपने माता- पता क बात को 23 क याण मह व तिृ त पयूष बंडी जैन
ह नह ं माना बि क उनका मान भी बढाया है . 24 क याण मीत सुलोचना मनोज जैन
सभी जानते भी है क माँ ह पहल पाठशाला ह. 25 क याण मनन सुलोचना मनोज जैन
26 क याण िजया सपना आनंद गंगवाल
बहुत से ब च के नाम आये ह पर इस अंक म
27 क याण मीत सपना आनंद गंगवाल
सफ 100 नाम ह का शत कर रहे ह. शेष नाम क याण द या संगीता संजय म ल जैन
28
अगले अंक म का शत करगे. 29 क याण नेहा संगीता संजय म ल जैन
प का को अपने फोन पर
99 लखनऊ न मता शची इं कुमार जैन
### लखनऊ नलेश शची इं कुमार जैन
(रिज टड सं था)
E-mail : namostushasangh@gmail.com
: pkjainwater@gmail.com
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आप सभी का आभार
नमो तु शासन सेवा
स म त प रवार
“जय िजने ”
Q QQ
धा मक प का नःशु क वतरण के लए
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