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-: मंगलाचरण :-

( : )
काशक : नमोS तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 09 माह : दसंबर 018
Web site: www.vishuddhasagar.com

कहाँ पर या है ?
चौमासे म धान: अ भुत घटना
मु य आवरण: व-संवेद मण से
ा : दे व शा और गु का ान
पं. . नहालचं जी जैन “चं े श” 23
मंगलाचरण
पव लोक पू य मु न दशा
मंगलाशीष 03
संपादक य 04 मणाचाय ी वमशसागरजी मु नराज

आचाय ी वशु सागरजी अ य 06 बा. . अं कत भैया 24

नमो तु शासन सेवा स म त 07 जै नय के भगवान

ान का फल: भ तामर का अ तशय व-संवेद मण से

व-संवेद मण से पं. . नहालचं जी जैन “चं े श” 25

पं. . नहालचं जी जैन “चं े श” 08 तेर शरण म आता य : रच यता मणाचाय

समाधी भि त शतक : रच यता मणाचाय ी 108 वभवसागरजी महा मु नराज

ी 108 वभवसागरजी महा मु नराज 10 ेषक – बा. .अ भन दन भैयाजी 26

पु षाथ स उपाय: आचाय ी अमत ा गुण : न दन जैन, छं दवाडा 28


ृ च
पु षाथ दे शनाकार: आचाय ी वशु सागर ा : ीमती क त जैन 30

जी महाराज “ यव य ट” 13 ा और भि त म अंतर: ीमती बबीता जैन 31

अ हंसा धम : वचन भा ा- व ास-भरोसा-दशन

आचाय ी वशु सागरजी क कृ त से 18 पं. . नहालचं जी जैन “चं े श” 32

सबके दन एक से नह ं होते : वचन भा ा का अथ : ीमती करण जैन 34

आचाय ी वशु सागरजी क कृ त से 19 ा सुमन : ीमती सुषमा जैन 35

ा का दस ब च के लए बाल गीत : मणाचाय


ू रा नाम : व वास, भरोसा
छोगालाल केलावत जैन 20 वभवसागर जी : ेषक बा. . च दद 36

गु श य थम मलन सडनी, ऑ े लया से समाचार 38

व-संवेद मण से बधाईयाँ ब च को 39

पं. . नहालचं जी जैन “चं े श” 22

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मंगलाशीष

,
सव वाणी व व क याणी है . जो क
या वाद, अनेकांत त व से मं डत है . ऐसी वीतराग
वाणी सव व व के क याण का कारण बने, इस
उ दे य को लेकर “नमो तु चंतन” प का प रवार
जो उप म कर रहा है , वह अनुकरणीय है . ी
जो है सो है िजन वा वा दनी, ी िजन शासन, नमो तु शासन
क भावना हे तु मंगलाशीष.
नमो तु शासन जयवंत हो
आचाय ी 108 वशु सागरजी महाराज
जयवंत हो वीतराग मण परभणी, महारा .
11 जल
ु ाई 2018.
सं कृ त

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नह ं दे ती है पर तु ान दखाई दे ता है . इसी
वषय पर एक कथा इसी अंक म द हुई है .

हमारे भगवंतो के ी मख
ु ार वंद से मो
माग का ा प जैसा सन
ु ा वैसा ह गणधर ने गुना
और आचाय भगवंत क कृपा से हम तक भगवंतो
ने बहुत ह सरल कृत करके बताया.

कुछ ारं भक बात ा को समझने के लए


जानना ज र ह. जो व तु दखाई नह ं दे रह है
उसे आप दे ख सक. इसके लए हम सबसे पहले
आचाय भगवंत क शरण म ह जाना होगा.
आपका न अ छा है , आचाय भगवंत कैसे
दखायगे हम, इस अनजानी ा को ? तो
सम कत ान से,
जा नये – आचाय उमा वामी ने त वाथ सू म
हुआ मेरा ान द प; सबसे पहला सू दया – स यग ् दशन- ान-
व दं ु िजनवर के चरण कमल, चा र ाणी मो मागः | मो याने ज म-मरण के
दख
ु से र हत, न वक प, अकमपना और सबसे
तो हो भवातीत |
ऊपर अ याबा धत सुख. शायद ह ऐसा कोई जीव
सव ने जो बतलाया है , होगा जो यह सब नह ं चाहता होगा. इसके बाद
वह ं आगम का व प भी एक और मह वपूण सू दया है – त वाथ
ानं स य दशनं. याने पहले तो सीधे सीधे माग
मो नि चत होगा,
ह बता दया. अब कैसे आगे चले इस माग पर
जो धारण कर न थ व प || यह भी बता रहे ह.

एक बात और िजने दे व ने कहा है - जल


जय िजने .
शीतल है , अि न गम है . तो जल शीतल और
ा ! अहा ! यह तो है िजसके बल पर अि न गम हो गयी ऐसा नह ं है . जल का वभाव
अन त जीव का क याण हो गया है . यह ा ह शीतल है और अि न का गम है . अतः िजनदे व
कैसी होती है ? या आपने कभी ा को दे खा ने वैसा ह बताया. और इसी बात को आचाय उमा
ह ? जी सह समझा आपने. ा कह ं दखाई

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वामी ने भी कहा – व तु वभावो ध मो. यह साधारण पर तु बहुत ह असाधारण घटना घ टत
त व का ान ह. हो गयी. उ ह ने अपने इ टदे व आ दपु ष ी
आ दनाथ भगवान ् क आराधना क . इस समय
यह ा ह है जो आप और हम सभी
उनके मुखार वंद से जो भी भि त भाव से अ र
िजनदे व णत िजनधम, नमो तु शासन और
से श द बनकर नकले वे सब मं बन गए और
िजनवाणी को अपने जीवन से भी अ धक चाहते
इ ह मं को हम भ तामर तो के प म
ह. हमार ा भी दखाई दे ती है और साथ ह
जानते ह. ा से पढ़े गए इस तो क एक
हमारा ान भी दखाई दे ता है .
घटना आप इसी अंक म आगे पढ़े .

ा के उदहारण तो इतने सारे ह क


ऐसे अनेको उदहारण ह, अंजन चोर सफ
थमानुयोग स पूण प से महापु ष के ान
णमोकार मं पर ान के कारण नरं जन बन
के कथानक से भरा हुआ है , िजनसे हम भी हमारे
गया. हमारे ंथ अथात ् माँ िजनवाणी के हम पर
ान को और अ धक मजबूत करने का बल ा त
बहुत उपकार ह जो हम ान से कैसे अ याबा धत
होता है .
सुख, मो को ा त करने का तर का बताते ह.

य द हम महान आचाय ी सम तभ
मम ् गु त पल मरणीय परम पू य
वामी के पा मुल म रहकर दे खे तो बनारस क
आगम उपदे टा चया शरोम ण समयसारोपासक
अ भुत चम कार घटना दखाई दे ती है िजसमे

ु संवधक, वा याय भावक आचाय ी 108
उनके स यक् ान के कारण शव पंडी भी महज
वशु सागरजी महाराज कहते ह क जगत क
सहज प से कये गए नम कार को नह ं झेल
माँ संसार म पटक दे ती है पर तु यह िजनवाणी
सक और वह फट गयी तथा इ टदे व ी च भ
माँ संसार के दख
ु से छुटकारा दलाती है .
भगवान ् क तमाजी कट हो गयी.
त व का ान ह ा है !
एक और घटना को यहाँ बताना बहुत ह
आव यक है इस लए क पि चमी दे श म हमारे
अपने मं के मा यम से रोग का उपचार कया
जा रहा ह. य द हम महान आचाय ी मानतुंग
वामी के पा मल
ु म रहकर दे खे तो जेल क
द वार के अ दर लोहे क जंजीर से बंधे हुए 48
ताले लगे हुए 48 कोठ के दरवाज से वमेव
बाहर आना अपने आप म अ भत
ु चम कार घटना
तीत होती है . यह सब हुआ कैसे ? बहुत ह

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आचाय ी अ य

सार वत ् क व नय च वत मणाचाय
ी 108 वभवसागरजी महाराज

नोट : सभी आचाय ी वभव सागरजी महाराज


को सार वत ् क व नय च वत के प म जानते
ह ह. आपक बहु च चत कृ त “समाधी भि त
शतक” – ‘तेर छ छाया भगवन ् ! मेरे शर पर
हो, मेरा अि तम-मरण-समा ध, तेरे दर पर हो.’
शायद ह कसी जैन ावक ने इस अनप
ु म रचना
को न पढ़ा हो या न सन
ु ा हो. ऐसे मणाचाय ी
वभवसागर जी महाराज वारा आचाय ी वशु
सागर जी महाराज के बहुमान म मनोभाव को
श द म य त करते करते पज ू ा क रचना हो
गयी.

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नमो तु शासन सेवा स म त बरायठा : ीतेश जैन


छंदवाड़ा : ीमती मीनू आशीष जैन,
(पंजीकृत सं था) द ल : ीमती रतु जैन

ट मंडल : दग
ु : सजल जैन, गड
ु गाँव : पं.मक
ु े श शा ी
हैदराबाद : डॉ. द प जैन
अ य ी पी. के. जैन ‘ द प’
इंदौर : दनेशजी गोधा, ीमती रि म गंगवाल
उपा य ा ीमती त ठा जैन जयपरु : डॉ. रं जना जैन
महामं ी बा. .अ यकुमार जैन कोलकाता : सरु े गंगवाल, राजेश काला,
सह मं ी ी अिजत जैन ीमती कुसम
ु छाबड़ा,

कोषा य : ी वीन जैन कोटा : नवीन लह


ु ा डया, ीमती मला जैन
मब
ुं ई : द पक जैन, गौरव जैन, काश संघवी,
सद य ीमती मंजू पी.के. जैन
भरथराज,
सद य ी सुशांत कुमार जैन
मौरे ना : गौरव, िज मी जैन;
-: कायका रणी मंडल :- पण
ु े : ाज ता चौगल
ु े
चार सार मं ी : रायपरु : मतेश बाकल वाल,
ी राहुल जैन, व दशा, ी अनरु ाग पटे ल, व दशा रािजम (छ.ग.) : संजय जैन
दे शा य : रानीपरु : सौरभ जैन ाची जैन;
ी गौरव कुमार जैन, बंगलु , कनाटक. रतलाम : मांगीलाल जैन
ीमती क त पवनजी जैन, द ल . सांगल : राजकुमार चौगुले, राहुल नां े
ी नंदन कुमार जैन, छंदवाडा, म य दे श. सकंदराबाद (उ. .): वपल
ु जैन, ऋषभ जैन
नै तक ान को ठ : सोलापरु : कुमार धा यवहारे
मं ी ी राजेश जैन, झाँसी, उ र दे श ट कमगढ़ : अशोक ाि तकार
वशेष सद य : महेश, है दराबाद; उ जैन : राजकुमार बाकल वाल नवीन जैन
पाठशाला संचा लका: उमर : अभय जैन
ीमती क त जैन, द ल , ऑ े लया, पथ : ीमती भि त हुले यवहारे
सह-संचा लका: एवं अ य सभी कायक ागण.
ीमती करण जैन, हांसी, ह रयाणा. !!जो है सो है !!
हा सएप ु स : कुल 50 ु स के सभी
एड मन/संचालक !!नमो तु शासन जयवंत हो!! !!
आगरा : शभ
ु म जैन, अतल
ु जैन,
बड़ा मलहरा; अ य पाटनी, ीमती रजनी जैन जयवंत हो वीतराग मण सं कृित!!
बैतल
ू : अ वनाश जैन बानपरु : नवीन जैन
भोपाल : पं. राजेश “राज’

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धान का फल

नोट: ा : व-संवेद मण, इस महाका य के


नायक परम पू य आगम उपदे टा चया शरोम ण
समयसारोपासक त
ु संवधक, वा याय भावक
आचाय ी 108 वशु सागरजी महाराज क
बचपन क घटना है . एक बालक कैसे अपनी ा
के बल से अि न को भी शांत कर सकता है. गाँव
के बड़े बुजुग आ द सभी इस ान के कायल हो
गए थे तभी तो आपदा के समय उ ह बल
ु ाया गया.
सभी जानते ह, सभी को पता भी है पर तु स चा
ान हो तो या नह ं हो सकता है . यह बात को
पं. . ी नहाल च जी जैन “चं े श” ल लतपुर
नवासी सभी के सम इस अ तशयकार अ भत

घटना को तुत कर रहे ह - पर तु यहाँ तो जो
भि त का य श द से, भाव से घ टत हो गया
उसे सभी चम कार कहते ह .

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वशु वाणी
चाहे सब कुछ लट
ू जाए तो,
लट
ु जाने दे ना पर तु
यह यान रखना क
ा का द प न बझ
ु ने पाए

}}}}}}
चम कार
न ी मं दरजी म होता है ,
न मत
ू म होता ह.
िजतने वशु भाव से भि त क जाती है
वह चम कार बन जाती ह

. ी नहालचं जी
जैन “चं े श”
महाका य रचनाकार
:
“ व-संवेद मण”
थमानुयोग का

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मुखार वंद से ी िजनदे व क वाणी अथात त

का पाठन / समझने का लाभ भी मल रहा ह. यह
समा ध भि त शतक ऐसी अनूठ रचना है िजसको
भि त से पढ़ने के साथ पाठक भी वयं मानो
स शला पर वरािजत वीतरागी भगवान से,
िज ह ने अपने सभी कम का नाश कर मो को
ा त कर लया है , ऐसे भगवान से सीधे सीधे
सार वत ् क व मणाचाय ी 108 वभवसागर जी
महाराज क अनप
ु म रचना के ारा वतः ह अपनी

समा ध भि त शतक भावनाओं को य त कर रहे है .

गु दे व कहते ह – “जीवन क सफल साधना


का फल ह समाधी ह”. आज हम सव क वाणी,
ी िजनवाणी न थ गु ओं के ी मुखार वंद से
सुन रहे ह यह हमारा सौभा य ह तो है . ी
धवलाजी क नौव भाग म मंगलाचरण म ह लखा
ह “णमो लोए स व साहुण”ं और फर आचाय
भगवन इस बात को समझा भी रहे ह क यह
ग ती से नह ं लखा, बहुत सोच समझकर लखा
ह. णमोकार मं म अं तम तीन पद तो साधू ह
ह, वे उनक उपा धयाँ ह ह. और अरहंत अव था
एवं स व क ा मु न या साधु बने बना हो सार वत ् क व मणाचाय ी
ह न ह सकती ह. आप यह भी जानते ह है क
समाधी के समय संघ के आचाय भी अपने पद को
108 वभव सागरजी महाराज
याग कर मु न बन कर ह स लेखना स हत
समाधी लेते ह. अतः गु का थान जीवन म गु
ओं के हम पर बहुत उपकार ह और
सव प र ह ह. भगवंत क आराधना, गु ओं क भि त करते
करते यह समाधी भि त शतक क भी रचना हो
ीजी के लघुनंदन, धरती के दे वता, तपोधन,
गयी. इसम कोई आ चय नह ं है. जब एक भ त
न थ परम वीतरागी दगंबर मु नवर के
भगवन से सीधे-सीधे बात करता है मनोभाव के

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ारा अ तरं ग से तो ऐसी रचना वयमेव र चत हो मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||35||
जाती है िजससे िजनदे व क आराधना और गु तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |

ओं क भि त से अनमोल अमर पद, शवपद मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

ा त होता है . पछले अंक म आपने तत


ृ ीय
अ धकार के कुल 33 का य का वा याय कया
था, भावना भायी थी, चंतन भी कया था. तत

है – चतथ
ु अ धकार. शेष अगले अंक म आयगे.
अब हम सभी चल आगे स शला पर वरािजत
भु से वयं बात करते हुए चंतन कर चतथ
ु पु याजन क सरल व ध है, अनम
ु ोदन करना |
अ धकार का......... शभ
ु काय का संपादन कर, पु य कोष भरना ||
आराधन क अमर पताका, मेरे कर म हो |
चतुथ अ धकार मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||36||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो | मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
यह र न य परम - संपदा, सबको उपयोगी |
चंतन दे गु दय दया ह, ुत दे कान दए | जो र न य पालन करते, दल
ु भ वह योगी ||
राह दखाकर आँखे द है , संयम ाण दए || भेद ान पौ ष कटाऊँ, शु चदं बर हो |
ऐसे गु -पद चदानंद का, झरना झर - झर हो | मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||37||
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||34|| तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो | मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

जौ ल जरा रोग ना आये, तौ ल तप कर लँ ू |


ओम ् नमः अहम ् सोऽहं का, जप ह जप कर लँ ू ||
महामं क महा शि तय , से मन मं त हो |
म या चाहूँ नाथ आपसे, कहाँ समाधी हो | मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||38||
जहाँ हमारे गु वराज, वहाँ समा ध हो || तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
पा वनाथ का समवशरणथल, ी नैना गर हो |

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मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
तेरे गण
ु क याद दलाती , तेर तमाएँ |
इसी लए हम आकर करते , दशन पज
ू ाएँ ||
वीतराग भाव क जननी, तमा िजनवर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||42||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

उ गम थल से जैसे स रता, पतल सी बहती |


बादल बरस वन ख ड म, त प तयाँ होती | पु योदय
सागर तट ल बहती जाती, बढ़ती ह बढ़ती ||
से राजकोश म, नव न धयाँ होती ||
इसी तरह मेरा आतम-गण
ु , बढ़ते म पर हो |
पु यफला अ रहंत–परम-पद, आप िजने वर दो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||39||
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||43||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

भाव शु शभ
ु समा ध है, भाव शु कर लँ ू |
जैसा म हो वैसा मशः, कम आहार कर लँ ू ||
धम यान म रहे ल नता, तप अ यंतर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||40||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

समतामय हो तपो - भावना, त व - भावना हो |


समतामय एक व - भावना, स व – भावना हो ||
चार बरस ल काय लेश तप, आगे रस तजना | समतामय हो धैय - भावना, त समता धर हो |
चार बरस ल रस तजकर, रसना वश करना || मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||44||
शेष उ तप भात मठा ले, जल पानक पर हो | तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||41|| मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो | मशः –अगले अंक म...
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

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नोट:- महान त व व लेषक आचाय ी अमत ृ च O;ogkjeso d¢oyeoSfr ;LrL; ns'kuk ukfLr AA 6AA
वामी क महान रचना “पु षाथ स यप ु ाय” पर
आधा रत तपल मरणीय, चया शरोम ण, अ या म
योगी, आगम उपदे टा, वा याय भावक, त
ु vUo;kFkZ %
संवधक, आचायर न ी 108 वशु सागरजी
महाराज क दे शना “पु षाथ दे शना” का मश: काशन
equh'ojk% vcq/kL; ¾ xzUFkdrkZ vkpk;Z] vKkuh
का शभ ु ार भ कया गया है . अब तक आपने इस thoksa dksA cks/kukFkZa ¾ Kku mRiUu djus d¢

ं राज क पांच गाथाओं / लोक का पठन कया fy;sA vHkwrkFkZa ns'k;fUr ¾ O;ogkju; dk
है . इस थ ं राज के मंगलाचरण म ान यो त को ह mins'k djrs gSa vkSjA ;% d¢oy a¾ tks tho
नम कार कया गया है . यह जैन दशन क वशेषता d¢oyA O;ogkje~ ,o voSfr ¾ O;ogkju; dks
है . इसम यि त को नह ं गण ु का ह वणन और पू य
वताया गया है . पछल गाथा म-नय यव था को gh lk/; tkurk gSA rL; ns'kuk ukfLr ¾ ml
समझते हुए अपनी ट को कैसे नमल कर, भत ु ाथ feF;kn`f"V tho d¢ fy;s mins'k ugha gSA
और अभत ु ाथ को जानकर अपने मो माग को कैसे
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श त करे यह बताया गया था. अब आगे बढ़ते है
छठवीं गाथा क ओर... मशः......
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ij&la;ksx d¢ ihNs jks jgs gksA vkius bu la;ksxksa rqEgkjs HkkbZ dk csVk Hkh rks Hkrhtk gSA fu'p;]
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ls vrhr gS] og nzO; gSA vusdkUr dgrk gS nzO; ;s esjk isu gSA fu'p;u; dgsxk ;g fdlh dk
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fy;k gS og feF;kn`f"V gh gSA ftlus nzO; dks nzO; gS vkSj tc fpRr izHkkfor gksrk gSs] rks deZ ca/k
ekuk vkSj n`f"V dks n`f"V ekuk] oks gh cuus okyk izkjaHk gks tkrk gSA ,d ;ksxh d¢ lkeus Lo.kZ ekyk
'kq) Hkxoku~ gSaA Hkks Kkuh! n`f"V le>us dk gh p<+h] ij mls f[kUurk ;k izlUurk ugha]s D;ksafd
fo"k; gSaA n`f"V oLrq ugha gSA n`f"V] n`f"V gS vkSj mls HkwrkFkZ fn[k jgk FkkA ftlus HkwrkFkZ dks]
lE;d~iuk fHkUu gSA tks u;n`f"V dks ekurk gS] og vHkwrkFkZ eku fy;k] vlR;kFkZ dks lR;kFkZ eku
lE;d~n`f"V gSA tks u;n`f"V dks ugha ekurk gSa] og fy;k] mls gf"kZr gksuk iM+k vkSj fcy[kuk Hkh iM+kA
nksuksa vk¡[kksa ls ;qDr gksus ij Hkh n`f"Vghu gSaA blfy;s] u rks /keZ rhFkZ d¢ uk'k d¢ fy;s] u yksd&
O;ogkj d¢ uk'k d¢ fy;s] u vkxe O;oLFkk d¢
iqu% le>uk] nzO; ls nzO; gS] i;kZ; ls
fcxkM+us d¢ fy;s] vfirq vius Loprq"V; dks fueZy
i;kZ; gSA xq.k ls xq.k gSA ijarq nzO;] i;kZ;] xq.k
j[kus d¢ fy;s fu'p; HkwrkFkZ gS] vkSj O;ogkj
ls jfgr dksbZ nzO; gh ugha gSA D;ksafd vkxe esa
vHkwrkFkZ gSA loZKnso us U;k; djus d¢ fy;s u;
rhu ckrsa gh gSa& nzO;] xq.k] i;kZ;A nzO; eryc
dk dFku fd;k gSA blfy;s ijkn`f"V gh lE;d~–
oLrqA ;s isu fn[k jgk gS vkidks\ isu er dguk]
f"V gS vkSj ij&–f"V gh feF;kn`f"V gS vgks! vkRe–
iqn~xy dguk A bldh laKk isu gSA Hkks Kkuh!
f"V gh ijk–f"V gSA ijk ;kus mR—"VA /keZ] vFkZ]
iqn~xy&nzO; dh i;kZ; isu gSA Li'kZ] jl] xa/k] o.kZ
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rks eks{k gSA
isu&i;kZ; dks vyx dj nks] isu nzO; dks vyx
dj nks] rks D;k cpsxk\ Hkks Kkuh! tgk¡ nzO; gksxk Hkks Kkuh! nzO; n`f"V gh vkRe n`f"V vkSj
ogk¡ fu;e ls i;kZ; gksxhA tgk¡ i;kZ; gksxh] ogk¡ nzO; n`f"V gh feF;k n`f"VA ijarq nzO; rks nzO; gSA
fu;e ls nzO; gksxkA nksuksa ijLij esa dHkh ns[kks rks] Ng nzO; gSaA Ng nzO;ksa d¢ gh e/; esa

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ij&nzO; dks idM+s] iqn~xy&nzO; dks idM+s]
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psn.kdEek.kknk] lq).k;k lq)Hkkok.ka AA8AA
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n`f"V fueZy gksrh gS] izR;sd vFkZ dks fueZy ns[krk
ls ikSn~xfyd deksZa dk drkZ gSA Hkks Kkuh! ;g
gSA
/keZ'kkyk fdlus cuokbZ \ iq#"k us ;k ijes'oj us
Hkks Kkuh! vFkZ] vFkZ gSA vFkZ dks vFkZ gh \ ns[kks HkVduk ughaA ,slk dg nks &
jgus nsuk] vFkZ dks vuFkZ er dj nsukA u;]u; mipfjr&vln~Hkwr&O;ogkju; ls ;g tho ?kViV]
gSA oLrq] oLrq gSA n`f"V] n`f"V gSA n`f"V oLrq ughaA edku vkfn dk Hkh drkZ gS vkSj v'kq) fu'p;u;
ijarq fookn rc vk tkrk gS] tc Hkk"kk esa rqEgkjs ls jkxkfnd&Hkkoksa dk drkZ gSA fu'p;u; ls
foijhr Hkko fefJr gks tkrs gSaA Hkk"kk esa nks"k ugha] LoHkkoksa dk drkZ gSA ije'kq) fu'p; u; ls u
pkgs fu'p; dh Hkk"kk gks] pkgs O;ogkj dh] ijarq fdlh dk drkZ gS] u fdlh dk HkksDrk gSA eSa ij
Hkkoksa dh xM+cM+h Hkk"kk dks xM+cM+ dj nsrh gSA dk fdafprek= Hkh drkZ ugha gw¡A ;fn drkZ cus jgs
tSls fd fcYyh mlh eq[k ls vius cPps dks rks jksrs jgksxsA tks&tks drkZ gS] og&og jksrk gS
idM+rh] rks dSls ykrh gS vkSj pwgs dks idM+rh gS] vkSj tks vdrkZ g]S og dHkh ugha jksrkA
rks dSls ykrh gS\ eq[k esa nks"k ugha gS] nks"k mld¢
vLirky esa ,d ckyd rM+Q jgk gSA ,d
Hkkoksa esa gSA
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Hkks Kkuh! Hkk"kk esa nks"k ugha gSA csVk mlh ckyd laKk nksuksa dh gSA igys ckyd ds fy;s
eq[k ls firk dks cqykrk gS] mlh eq[k ls ekrk dks MkDVj us dgk&cl] nl@ik¡p fefuV dk thou
cqykrk gS] mlh eq[k ls iRuh dks cqykrk gSA ijarq gSA ij vkidks dksbZ vlj ugha gqvkA og MkDVj
D;k ,d ls Hkko gksrs gSa\ blfy;s L=h jkx& }s"k iqu% ykSVdj vk;k ftl iyax ij vki cPps dks
dk dkj.k ugha gS L=h d¢ izfr jkx&}s"k dh Hkkouk ysdj cSBs Fks vkSj mlh Hkk"kk dk mi;ksx fd;k] rks
gh fodkj dh Hkkouk gksrh gSA ek¡@ifRu og Hkh vk¡[kksa ls Vi&Vi vk¡lw Vidus yxsA vgks! ckyd
L=h FkhA rks nksuksa Fks] ,d esa rqEgkjk viuRo Hkko fNik Fkk]
nljs esa viuRo dk Hkko ugha FkkA tgk¡ drkZ&Hkko
Hkks Kkuh! L=h esa fodkj ugha] L=h esa jkx
Fkk] ogk¡ rqe jksus yxsA tgk¡ drkZ Hkko ugha Fkk]
ugha] L=h esa }s"k ugha] ;g rsjh n`f"V dk nks"k gSA
ogk¡ rqe pqi jgsA
oLrq esa nks"k ughaA vgks! tc jkx Fkk rks O;ogkj
Fkk] tc oSjkX; gS rks fu'p; gS] HkwrkFkZ gSA Hkks Hkks Kkuh! nzO;n`f"V vkSj i;kZ;n`f"V nksuksa
psru! n`f"V] n`f"V gSA n`f"V] oLrq ugha gSA ;g lc dh O;k[;k djrs&djrs iwjk thou fudky nsuk]
fodkjh Hkkoksa dh n`f"V;k¡ gSaA 'kq) Hkkoksa esa u dksbZ ij rqe nzO; dh izkfIr dj gh ugha ldrsA ekywe
n`f"V gS] u dksbZ oLrq gSA ,dek= eSa gh fpn~:i pyk fd og nzO;n`f"V lEiznk; cu x;kA nzO;n`f"V
O;fDr gw¡ ] blfy;s iq#"kkFkZ djuk iM+sxkA [kks xbZ vkSj laiznk; dh j{kk izkjaHk gks xbZA vgks!
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Hkks Kkuh! tks iq#"kkFkZ dks xkS.k dj jgk gS]
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djus dk fopkj dj jgk gS] tks fufeÙk dks mM+kus

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ve`rpanz Lokeh dg jgs gSa fd*rL; ns'kuk ukfLr^] dFku py jgk gS vkSj tks ek= fu%lgh] fu%lgh
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Kkuh! /;ku j[kuk] dFku dkdrkyh;&U;k; ls Hkh
euhf"k;ks! fu'p; o O;ogkj dksbZ gmvk
gksrk gSA tSls iafMrth us dgk] csVk! ?kh j[kk gS]
ugha gSA ;g oLrq dks le>kus dh O;oLFkk gS] Hkk"kk
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gSA Hkk"kk] Hkk"kk gksrh gSA Hkk"kk u dHkh oLrq gqbZ]
cksyk&Bhd firkth] tks vkKkA fcYyh vkbZ] fcxkM+
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dj pyh xbZA iafMrth cksys&D;ksa csVk\ firkth
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vkius cksyk Fkk fd dkSvk ls j{kk djuk] fcYyh ls
Lo:i gSA tks Lo:i gS] oks gh oLrq gSA ftlesa
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Lo:i ugha gS] og oLrq dSlh \ Hkk"kkvksa dks ysdj
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dk;Z ijekRek rHkh gksxk] tc dkj.k ijekRek dk
gSA tc ge ,d bafnz; ouLifr esa ns[k jgs gSa fd
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Hkkoh Hkxoku cSBk gS] fdarq ?kj esa HkkbZ gh HkkbZ ls
gSA lE;d~n'kZu] Kku] pkfj= gh rks
eq¡g ugha cksy jgk gS] D;ksafd gekjs vuqlkj ugha
dkj.k&ijekRek gSA bl v'kq) vkRek dks ;ksxksa esa
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fyIr vkRek dks] dkj.k&ijekRek er cuk nsukA
vgks Hkk"kk d¢ HkxoUrks! rqEgas dHkh lq[k dh vkpk;Z] mik/;k;] lk/kq dh vkRek dkj.k&ijekRek
izkfIr ugha gksxhA Hkk"kk d¢ Hkxoku cukus ls Hkxoku gS vkSj vfjgar] fl) dh vkRek dk;Z&ijekRekA
ugha cuksxsA Hkkoksa d¢ Hkxoku cuus ls Hkxoku
Hkks psru! fu'p; d¢ Lo:i dks O;ogkj
cuksxsA xzaFk ls ugha] fuxzZaFk&n'kk ls gh eks{kekxZ
er eku ysukA O;ogkj dks fu'p; dk Lo:i
gSA Hkks psru! eks{kekxZ D;k gS \ fuxzZaFk gksuk
le>us dk ek/;e ekuukA blfy;s flag] flag gS
eks{kekxZ gSA vgks! fuxzZaFkksa dh mikluk gh lxzaFkksa
vkSj fcYyh] fcYyh gSA ysfdu fcYyh] flag ugha
dk eks{kekxZ gSA Jkodks! ;gh rqEgkjk eks{kekxZ gS]
gSA ftlus flag dks ugha ns[kk gS] og fcYyh d¢
ijarq blls eks{k ugha feysxkA eks{k rHkh feysxk]
gko&Hkko] fcYyh dh izo`fÙk;ksa ls flag d¢ gko&Hkko
tc rqe bl ekxZ dks izkIr dj yksxsA blfy;s
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काशक : नमोS तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 09 माह : दसंबर 018
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प र ह क चड़ के समान है | क चड़ म
फँसा पशु तड़फ-तड़फकर अपने ाण गँवा दे ता है ,
वैसे ह प र ह पी पंक म फँसा य चंता
करते करते मरण को ा होता है | धन को
एक त करना, उसक सरु ा करना क कार ह
है | पाप का पता प र ह है | प र ह के राग म
य अपने य बंधओ
ु ं को भी छोड़ दे ता है |
बहुत प र ह करने वाला जीव मरण करके नरक
म ज म लेता है और बहुत काल तक क भोगता
है ।

िजसका आसन, असन, वचन शु नह ं है


उसके भाव भी शु नह ं हो सकते ह | भोजन पर
भाव न हत है , िजसका भोजन अशु है उसके
भाव और भाषा भी अशु ह ह गे | अशु भोजन
करने वाले को व ा क स संभव नह ं है , जैसा

(आचाय ी वशु सागरजी महाराज क कृ त : खाओगे अ न वैसा होगा मन जैसा पयोगे पानी

वचन भा से उ त
ृ ) जैसी होगी वाणी | भाव और भाषा को प व करना
है तो ासुक भोजन करो | िजसका आसन-असन
शु नह ं होगा उसे यान क स नह ं हो

-: अ हंसा धम :- सकती है | शु ाहार-शाकाहार


ासुक आहार है |
व य आहार

अं तम तीथश भगवान ् व मान महावीर साधना के अभाव म सा य क स नह ं


वामी का शासन ह सव दयी शासन है | ‘िजओ होती है | और साधन के अभाव म साधना नह ं
और जीने दो’ यह जैन दशन का मूल मं है | होती है | साधना साधन के लए नह ं होती, साधना
जैन दशन म य क नह ं गुण क पूजा है | सा य क ा के लए होती है | सा य मो है
पू य क पूजा मा , इस लए क जाती है क मुझे और उसक ा का साधन र य ान-दशन-
भी पू य के समान गुण क ा हो । चा र क स यक् आराधना है | म चा र वान ्

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का चेहरा चमकता है और चा र ह न य ाण (आचाय ी वशु सागरजी महाराज क कृ त :
स हत मुदा है । वचन भा से उ त
ृ )

ा नय ! वचार म अनुभू त नह ं होती है -: सबके दन एकसे नह ं होते :-


और जब अनुभू त होती है तो वचार नह ं होता है
ा नय ! सब के दन एक से नह ं होते
| वचारवान ् से अनुभू त करने वाला े होता है
जब तक पु य प ले म है तब तक जय-जय कार
| स य को छुपाया जा सकता है , परं तु मटाया
है | ा नय ! द ु नया भरे को ह भरती है खाल
नह ं जा सकता है | वण को अि न म डालोगे तो
को कोई नह ं पछ
ू ता है | साधु म समता है , संयम
वह नखर जाएगा | माता सीता को अि न म वेश
है तो पू यपना है | य क पज
ू ा नह ं है , गण

करा दया था, परं तु उनके शील के भाव से अि न
के आचरण क पू यता है | धम का फल यह है
भी शीतल हो गई | म जीवन जीना है , तो वण
क वह उ म सुख दान करता है |
और चंदन क तरह रहना | चंदन अपनी सग
ु ंध
नह ं छोड़ता और वण अपनी चमक नह ं छोड़ता ा नय ! जीवन म ऊँचाईय को पश
है | करना है , तो बड़े लोग को दे खकर ई या नह ं
करना, अ पतु ये ठ के चरण म बैठकर यह
अ हंसा परम रसायन है | जो पर को
नहारना क ये ये ठ कैसे बने ह | जो े बनने
भा वत कर वह रसायन है | वाहन चालक और
का पु षाथ करता है वह वयमेव ये ठ बन जाता
व ा म मा इतना ह अंतर है क वाहन चालक
है |
के पीछे लोग रहते ह और व ा के आगे लोग रहते
ह, य द चालक चक
ू गया तो दस-प चीस का ह ा नय ! ऊँचाईय को ा करना है तो
घात होगा, पर तु य द व ा चक
ू गया तो लाख म ी के घड़े से मल लेना क वह कैसे घट बना
लोग क ा का घात हो जाएगा | है | जो सहन करना सीख जाएगा, वह ऊपर उठ
जाएगा | म ी को बहुत सहन करना पड़ता है और
अि न म तपना पड़ता है तब कह ं वह कलश
बनता है , फर वह कलश शीश पर शोभायमान
होता है | भू म म पड़े बीज को नहार लेना क
कैसे भू म से अंकुर प म फ लत हो कर व ृ का
प धारण करता है | बीज क सुर ा होगी तभी
वृ बनकर फ लत होगा |

ानी ! खच करने से पहले अपनी आय


को नहार लेना | अ धक आय, खच कम करोगे

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तो यव था यवि थत चलेगी | नज को नहारने
ा का दस
ू रा नाम
का पु षाथ करो, दस
ू र क बुराइय को दे खने म
अपने समय को न मत करो | जो ा से झुकता व वास भरोसा
है , वह जीवन म उठता है | अपने जीवन म कसी
के साथ व ासघात नह ं करना | हे साधक ! दा जीवन क धरु है . संत का कहना है
जीवन म इतनी साधना करना क लोग ा क जीवन म सफलता पाना है तो तीन सू
से तु हारे चरण म झक
ु जाए | अपनाने से जीवन सफल होता है :-

आ म क याण करना है , तो पहले 1. कसी काम को करने से पहले तीव इ छा


वासनाओं के नीर को सख
ु ाओ, कषाय को सख
ु ाओ, करो.
अपे ाओं को छोड़ो फर संयम साधना ारं भ कर 2.पण
ू ान करो.
आ म क याण के माग पर आगे बढ़ो | 3. नर तर पु षाथ करो.

ान से काय म सफलता मलती है . ा


मानव जीवन क नींव है . जैसी िजसक ा होती
है वैसा ह उसका यि त व बनता है .

ा व तुतः एक सामािजक भावना है . वह


एक ऐसी ‘आन दपूण कृत ता’ है जो एक
त न ध के प म हम समाज के स मुख कट
करते ह. लेने दे ने क कोई बात नह ं होती धा
म. यह एक सामािजक उ रदा य व है . जन-
सामा य का धम है . कोई भी यि त ा का पा
हो सकता है य द वह सामािजक जीवन के लए
उपयोगी होता है . वाथ यि त ा को अपने
लाभ क पू त या अपनी तु छ मनोव ृ क तिृ त
के लए उपयोग करते दे ख जाते ह. कोई साधओ
ु ं
के व पहनता है और कोई जन-सेवा का नारा
नमो तु शासन जयव त हो लगाते ह तो कोई बड़े भार यागी बनकर समाज

जो है सो है को धोखा दे ते ह. ऐसे लोग ऊंची-ऊंची बात कहते


ह जैसे कोई महान व वान हो या ानी यानी.

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तरह-तरह के बनावट चार ोपेग डा के ारा भोले हमार ा भावना का शोषण कर उसका द ु पयोग
लोग को भा वत कर उनक ा ा त करते है न कर सके. य क ा के ारा हमार सम त
और फर उससे शोषण करते है , समाज का अपने शि तय का भी द ु पयोग कया जा सकता है .
लाभ के लए.
ा समाज को पु ट करने वाल एक
स जनता, शील और इससे े रत स कम अमत
ृ धारा है , क तु समाज का यह भी क य है
िज ह दस
ू रे श द म धम भी कहा जा सकता है क द ु ट, वाथ , लोग इसका द ु पयोग न कर.
संसार के सभी जन-समुदाय म ति ठत है और
जैन छोगालाल केलावत
इनसे समाज के नयम, यव था, ि थत म
घाटकोपर,
सहयोग मलता है . इस लए ये ह हमार ा के
मुंबई.
स चे आधार हो सकते ह. ा ह स य का
जै न छोगालाल
सा ा कार कराती है . ा मनु य का ाण है .
के लावत
ाह न मनु य न ाण, नज व ह समझना
घाटकोपर
चा हए. य क कसी तरह क ा न होने से
मुं ब ई
वह न चे ट ह रहे गा और चे टार हत जीवन
सद य: नमो तु
म ृ युतु य ह होता है.
शासन सेवा स म त
ालु यि त अपनी इि य का संयम पाठशाला
करके त परता से ान ा त करता है . ान ा त
होने पर मिु त मलती है और फर वह परम
शाँ त और सुख क अनभ
ु ू त करता है . कई लोग
ा को अपने मनो वलास का साधन बनाते ह.
ऐसे लोग के लए ा उसी तरह है जैसे क
नशेबाज के लए शराब, भांग, गाँजा, च डू आ द.
ऐसे लोग अपने काम से एक ण के लए भी
अपने नाम का वयोग नह ं सह सकते. ये लोग
ऐसे काम उठाते ह िजनम नाम और काम का
आड बर अ धक हो ले कन मूल म कुछ भी न हो.
ले कन ा इस तरह के द ु पयोग और अप यय
के लए नह ं है . हम इस संबंध म परू सावधानी
बरतनी चा हए. कोई द ू षत मनोव ृ का यि त

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चौमासे म ान और अ त
ु घटना

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िजनशासन को गौरवाि वत करती है अ रहं त और स ध प है . इस लए एक क वंदना
करने से पाँच क वंदना हो जाती है और एक क
लोक पू य प व मु नदशा
अव ा करने से सभी क अव ा हो जाती है . यह
म मु नदशा अंतरं ग के भाव से संचा लत होती
है . र न य धम अंतरग के प व भाव से गट
होता है . 28 मूलगुण प बा य साधना से र न य
नह ं होता है . प व मु नदशा तीन लोक म
िजनशासन का गौरव बढ़ाती है यह संपण
ू साधना
र न य से संचा लत होती है , मा बाहर के 28
मल
ू गण
ु के पालन से नह ं. िजसके अंतरं ग म
र न य धम (स य दशन स य ान और
स य चा र ) गट हुआ है , वो बाहर म 28
मल
ू गण
ु का पालन अव य ह करता है , पर 28
मल
ू गण
ु के पालन से र न य धम गट नह ं
होता. 28 मूलगुण प साधना तो अभ य जीव भी
"जयद ु िजनागम पंथो" िजनागम पंथ जयवंत हो
कर लेता है . पर र न य धम न होने से उसक
िजसने हम पंच परम गु ओं पर धा का माग
वह साधना मा संसार प र मण का ह कारण
दखाया है । पंच परम गु अ रहं त, स ध,
बनती है , वह कभी मुि त को ा त नह ं हो पाता.
आचाय, उपा याय और साधु तीन लोक म
ावक ! यान रखना साधु के बा य मूलगुण को
सव च और सवमा य शि तयां ह पाँच परम गु
मत दे खना य द दे खना ह है तो उनक आ म म
म से ह स ध परमे ठ का कभी आँखो से दशन
गट र न य धम को दे खना.
नह ं होता य क वह नराकार है । चतुथ काल म
चार परम गु ओं का सा ात दशन ा त होता
था. पर पंचमकाल म मा तीन परम गु - संकलनकता :
आचाय, उपा याय और साधु का ह दशन ा त
संघ थ-
होता है . पर पाँच म से एक भी गु वंदना कर ल
जाये तो पाँच गु ओं क वंदना हो जाती है . एक
बा. अं कत भैया
ह गु के दशन म पाँचो का दशन हो जाता है .
य न ेप क अपे ा, िजसे िजनागम का
ान होता है उसे एक म ह पाँच परम गु
नजर आने लगते ह. साधु भगवन क भावी पयाय

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जै नय के भगवान
मु नराज ने यह वा य,
नज कान सुना मन म गुना
िजन मु ा के मह व को,
( आचाय ी वशु सागर जी महाराज के जीवन
मु नराज ने नज म बुना
वत
ृ ांत पर आधा रत महाका य “ व संवेद मण”
थमानुयोग से साभार ........

अमरावती क एक घटना,
हम तु ह बतला रहे
शौच के प चात गु वर,
आगम म तुम मु नराज को,
िजन दश को जा रहे |
भगवान सम कहते अहो
पर एक जैनेतर कहे ,
आ चय तो होता अहो

अजैन बालक एक नज,


ारे पे है बैठा हुआ
जैन के भगवान जाते,
मां से यह कहता हुआ ||

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नोट: यह ा ह तो है जो दखाई नह ं दे ती सच कहता हूं मेरे भगवन !
पर तु त-पल अहसास कराती रहती ह. कतने नह ं ेम से आया हूँ |
सट क उदाहरण के ारा हम आचाय भगव त वपदाओं ने हमको भेजा,
अपने ी मुखार वंद से अ यंत सरल भाषा, लोक यथा सुनाने आया हूँ ||
भाषा म समझाते है और हम सभी के क याणकार गम िजसको नह ं सताती,
मो माग क ेरणा न वाथ प से दे ते है . वृ के नीचे जाता य ?

तेर शरण म आता य ?


शरण म आकर सख
ु न मलता,
तेर शरण म आता य ?
( मणाचाय नय च वत ी 108 वभवसागरजी भवसागर म दख
ु नह ं मलता
महाराज क कृ त “भि त भारती” से उ धत
ृ . ) तेर शरण म आता य ?
शरण म आकर सख
ु न मलता,
तेर शरण म आता य ?

तम
ु तो सख
ु के सागर भगवन !
दो बूंद मल जाएंगी
जाने वाल अं तम वास,
कुछ पल को क जाएंगी
न दय म य द जल न होता,
हं स बैठने आता य ?
शरण म आकर सुख न मलता,
भवसागर म दख
ु ना मलता, तेर शरण म आता य ?
तेर शरण म आता य ? भवसागर म दख
ु ना मलता,
शरण म आकर सुख न मलता, तेर शरण म आता य ?
तेर शरण म आता य ? शरण म आकर सुख न मलता,
तेर शरण म आता य ?

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तेर शरण म आता य ?
जो कुछ तुमको सुना रहा हूँ, भवसागर म दख
ु ना मलता,
वह मेर मजबूर है | तेर शरण म आता य ?
जो कुछ करना चाहो भगवन ! शरण म आकर सुख न मलता,
करना बहुत ज र है | तेर शरण म आता य ?
दध
ू य द माँ नह ं पलाये,
ब चा दन मचाता य ?
शरण म आकर सख
ु न मलता, ेषक : संघ थ
तेर शरण म आता य ? बा. . अ भन दन भैयाजी
भवसागर म दख
ु ना मलता,
तेर शरण म आता य ?
शरण म आकर सख
ु न मलता,
तेर शरण म आता य ?

भीख नह ं म मांग रहा हूँ,


ना ह कोई भखार हूँ |
वामी सेवक को दे ता है ,
म तो भ त पुजार हूँ ||
िजतना नीर लूटाता बादल,
उतने ऊपर जाता य ?
शरण म आकर सुख न मलता,

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धागण
आ मा शु ा मा है वैसी ह तेर भी शु ा मा
ु है .
 भ य जीव चातक द य व न को वण
 आ मा अनंत गुण का अभेद अखंड पंड है करते हुए जैसे ह अपने नज शु ा मा क
एक गुण है ा. ओर एक पलक मा के लए डूबकर अंतरं ग
 ा गुण क पूण शु ध नमल पयाय का म नज शु ा मा का व वास जगाता है
नाम है स य दशन. स य दशन हो जाता है .
 स य दशन का उपादान अंतरं ग कारण है  ऐसे वीतरागी भगवान के पादमल
ू म
एक पल मा न मष मा के लए अपनी असं यात भ य जीव स य दशन को ा त
काल व
ु शु ा मा म डूबकर व वास करके मो जाने का रजवशन करवा लेते
क म बस यह हूँ बाक शर र आ द कुछ ह, ध य है , ध य है , ध य है !
भी नह हूँ.  ा गुण का प रणमन है अहम ् करना
 स य दशन के होने म न म कारण बहुत या न म ये हूँ.
से हो सकते ह.  अना दकाल से हम शर र ह म हूँ ऐसा
 इसमे से सा ात तीथकर परमा मा का मानते ह जो म या दशन है .
पादमल
ू उनका दशन उनक वाणी का
अब य द त व य दे व गु धम आ द
सन
ु ना बल ेरक न म है .
के नणय पूवक अपनी नज शु ा मा क ओर एक
 भ य जीव समवशरण म वेश करके
पल मा के लए न वक प डूब जाएं तो उस
20,000 सी ढयां चढ़कर ीम डप धमसभा
समय ा म ये ठोस बैठ जाता है क म शु
म जब अपने नधा रत कोठे म जाकर
का लक व
ु एक अखंड चैत य व पी भगवान
बैठता है तब.
आ मा हूँ, यह ा गण
ु क पूण शु पयाय
 तीथकर परमा मा जो वीतरागी सव और
स यकदशन है .
हतोपदे शी ह उनक म हमा आती है क
यह शु ध स य व को धारण करना कहा
भगवान आप म हमावंत है , तीन लोक म
जाता है , शु स य व या न जो व तु व प
सबसे े ठ ह, सौधम इं तो ऐसे ऐसे
जैसा है उसे वैसा ह मानना. और इसके लए भेद
1008 नाम से भगवान क तु त भि त
व ान के नर तर अ यास क आव यकता है .
करता है .
लगातार सभी से थक अपनी आ मा को अनुभव
 द य व न को सुनकर नज क न धयां
करके उसमे डूबने का भगीरथ यास करना चा हए.
पता चलती है भगवान कहते है जैसी मेर
आचाय भगवंत ने जो शु ा मा के सख
ु का
वेदन येक अ तमुहूत म करते रहते ह वे क णा

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पूवक चाहते ह क हम सभी भी ऐसे न वक प  ा यक स य दशन केवल त
ु केवल के
सुख का उपभोग कर. पादमल
ू म होता है .
 स य दशन होने पर अनंत गुण का अभेद
इसी लए कहते ह क कसी कार भी जैसे
पंड भगवान आ मा अनभ
ु व म आ जाता
बने, वैसे एक बार त व क कौतह
ु ल बु से ह
है .
नज शु ा मा गण
ु -र न के नधान को दे खो
 ा गण
ु क पयाय तो पण
ू 100 % शु ध
अनभ
ु व करो. य ि ट से हमारा शु ा मा
हो जाती है और शेष िजतने गण
ु क
का लक शु है . अना द काल से पयाय म
अशु ध पयाय चल रह है उसम भी
अशु ता चल रह होने के बाद भी का लक व

आं शक शु आ जाती है .
आ मा शु ह है . 1 तशत भी इसम कोई
 स य दशन से ह धम क शु आत है
अशु ता नह आई है . इस बात से हम बहुत ह
मो महल क थम सीढ़ है . जो चौथे
आनं दत होना चा हए क मेरा वभाव जैसा का
गुण थान म होता है .
वैसा ह है , कमाल है . अपने वभाव क म हमा
 आगे चलकर सातवे गुण थान से आगे
लाने के लए बार बार नज शु ा मा को नम कार
पक े णी सफ ा यक स य दशन
कया गया है ता क म हमा आने पर एक बार तो
वाला ह ा कर सकता है .
हम झाँककर कौतुहल बु ध से ह दे ख ल िजससे
 स य ि ट मनु य को य द पहले ह
काम बन जाए. केवल एक पल मा के लए
ग तबंध हो गया हो तो मनु य और
न वक प होकर नज म टकने क ज रत है वह
तयचग त का होने पर भोगभू म का
तो स यकदशन है .
बनेगा, नक ग त का होने पर पहले नक

मु य ब द ु :- से नीचे नह जाएगा, दे वग त का होने पर


भव त रक म नह जाएगा यानी क पवासी
 स य दशन धा गुण क नमल पयाय 16 वग म जाएगा.
है .
 स य दशन 7 कम कृ तय के उपशम, नंदन जैन

य, योपशम से होता है . ये 7 कृ तयां छं दवाड़ा म. .

ह – अन तानुब धी, ोध-मान-माया-लोभ, म य दे श दे शा य

म या व, स यक् म या व, स यक् नमो तु शासन सेवा

कृ त म या व. इन 7 कृ तय के य स म त (रिज.)

से ा यक स य दशन होता है जो एक वचनकार, जैन-भजन

बार होने पर फर कभी छूटता नह है . गीतकार-गायक


मंच - संचालक

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ा -
स यक् स चे के अथ म है . दशन का अथ
ा है . ा, ान चा र हो तो स चे हो,
सह हो. गलत ा, वपर त ान और
ा म ह संगीत का सरु ,
म याचा र संसार म भटका दे ते है . िजस कार
ा ह अमत
ृ क धार।
अ व थ होने पर सह वै के त स ची ा
ा क पतवार जो थामे,
सह दवा का ान तथा उस दवा को सह वध
वो ह होते भव से पार।।
से सेवन करने से ह रोग दरू होता है , उसी कार
ा अ या म का आधार है . स चे दे व, स य दशन, ान, चा र पर ढ़ ान रखने
शा और गु से भाव के नमल प रणाम पर ह भव-रोग दरू होता है .
स हत जुड़ना और भि त- व वास-आ था का
स ची ा आ मा के त आ था, व-पर
पूण समपण ह ा कहलाता है .
के भेद को ह स य दशन कहा जाता है धा क
संसार ह द:ु ख का कारण है . और इस ज म- यो त जलाकर जो यान लगाया करते है , वे ह
मरण के च कर से मु त होकर ह परम सुखी परमपद को पाकर भवसागर पार हो जाया करते
बना जा सकता है . इसके लए कोई कहता है , है .
धा और भि त के मा यम से ह मुि त मलती
क त जैन
है , कोई कहता है बना ान को ा त कए मुि त
नह ं मल सकती, इससे भ न कोई यह मानता
कठोर तप आचरण करने से ह मो मलता है. ीमती क त जैन
पर तु जब तक हमारे पास ा या भि त के द ल दे शा य ा
समपण भाव नह ह गे तब तक परम पद को नमो तु शासन सेवा
ा त करना संभव नह ं हो सकता यो क ा स म त (रिज.)
से क गयी भि त अथात ान ह भ त को संचा लका
भगवान बना सकता है . सह ा, ान और नमो तु शासन सेवा
आचरण के योग से ह मो माग बनता है . स म त पाठशाला

आचाय उमा वामी जी ने त वाथ सू जी के


थम सू म भी कहा है :-

स य दशन- ान-चा र ा ण मो माग:।।

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ा और भ म अ तर ा से चलते हो, तब मन पूण प से शांत एवं


सुर त महसूस करता है और व ाम म रहता है

ा और भ म बड़ा मामूल अंतर है . पर, तब तुम जाग क नह ं रहते!

कभी-कभी तो यह लगता है क दोन आपस म


ा तीन कार क होती है – ताम सक
दध
ू -पानी क तरह इस कार घुल गए ह क उ ह
ा - आल य से उ प न होती है . राज सक ा
अलग से पहचानना क ठन है . कहते ह ा े ठ
- जब तम
ु इ छा और त ृ णा के ती वेग के कारण
के त होती है और भ आरा य के त. कंतु
ा का सहारा लेते हो, तब इ छापू त क ती
दे खा जाए तो दोन म अ त सू म अंतर होते हुए
पपासा ह तु हार ा को जी वत रखती है .
भी अथ और भाव क ि ट से काफ असमानता
साि वक ा - ऐसा व वास, ऐसी ाजो
है . गु के त कसी क ा भी रहती है और
न कपट हो, भोलापन लए हो और जो हमार
भ भी. ले कन आरा य के त य क मा
चेतना क पूणता से उ प न हुई हो, वह साि वक
भ ह रहती है. ा अनुशासन म बंधी है तो
ा है .
भ ढ़ता और अन यता के साथ योछावर
करती रहती है अपने को. ा म आदर क स रता जहां व वास ( ा) नह ं है वहां भय रहता
बहती है , तो भि त म ेम का समु लहराता है और जब जाग कता क कमी हो तो न तो तुम
रहता है . दोन म यह मूल फक समझ म आता कुछ ठ क से समझ पाओगे और न ह उसे ठ क
है . से य त कर पाओगे. अतः दोन का म ण
ा ि थर होती है और भि त मचलती अ यंत आव यक है .
रहती है . वनय दोन म है , कंतु ा का भाव
अगर तु हारे अ दर ा एवं जाग कता
तक- वतक के ताने-बाने बुनता रहता है . तो भ
एक साथ दोन ह ह तो तुम सह मायन म एक
अपने आरा य के त पूण सम पत होकर उसके
ानी बन जाओगे.
भाव आ द क समी ा न करके, उस पर खद
ु को
सम पत करती रहती है . शा कहते भी ह क
ीमती बबीता
भगवान, भावनाओं के भख
ू े होते ह.
वण जैन
ा और सजगता, दोन एक दस
ू रे के सरसागंज
वरोधाभासी लगते ह. जब तुम पूणतः जाग क (उ. .)
होते हो तो अ सर ा नह ं रहती और तुम सद य : नमो तु

याकुल एवं असुर त महसूस करते हो. जब तुम शासन सेवा स म त

कसी पर पूण व वास कर के चलते हो अथात (रिज.) पाठशाला

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आज हमने मनु य ज म, जैन धम, दे व-


शा गु का सा न य पाया है . उ म दे श
सस
ु ंगती, उ म शर र, े , उ म काल एवं भाव
पाया है . उसका कारण या है ? आपने कभी
सोचा? उसका कारण है हमने पव
ू म अ छे कम
कए उसका फल हम आज मला. सभी कार के

ा- व वास-भरोसा-दशन सय
ु ोग मले. हमने अतीत म अ छा कया था तो
वतमान अ छा मला और अगर हम आज अ छा
ा- व वास-भरोसा-दशन यह सब एकाथवाची
करगे तो हमारा भ व य अ छा होगा. दे खए
है . हमारे आचाय ने कहा है क हम ा के बना
आचाय कहते ह कम सबसे यादा ईमानदार होते
एक कदम भी आगे नह ं बढ़ा सकते. जब तक हम
ह. जैसा आप करते हो तदनुसार आपको वह फल
कसी वषय म पूण ान- ान नह ं है तो हम
दे ते ह. हम ावक ह. ावक श द तीन श द से
उस पर कैसे आचरण कर सकते ह जैसे बीमार
मलकर बना है , व, क यानी ावान-
होने पर हम िजस वै , डॉ टर पर व वास होता
ववेकवान- यावान जो होता है वह ावक
है उसी के पास जाते ह और उसक द हुई दवाई
कहलाता है . ावक श द को लेकर, दे ख एक भजन
पर आँख मींच कर व वास करते ह तो हम शी
के मा यम से या कहा जा रहा है :-
ठ क हो जाते ह. उसी कार आ याि मक े म
भी कहा है - ावक कुल उ म पा जाना,
बन जाने ते दोष गण
ु न को कैसे तिजये ग हये शुभ कम का है वरदान तेरा |
ा ववेक आचरण करो,
और ऐसा जानकर हम गण
ु को हण करते
कत य भी है अ धकार तेरा |
ह और दोष को छोड़ सकते ह.
स यक् ा िजन, िजन आगम,

आचाय उमा वामी ने कहा है - “स य दशन गु ओं के त अ आ म च |

ान चा र ा ण मो माग:” दशन- ा स यक् स यक् दशन बन हो ना कभी,

होनी चा हए, इसी बात को पं डत दौलतराम जी ने इस जग से बेड़ा पार तेरा ||1||

भी कहा है - “मो महल क थम सीढ़ या बन स यक् ववेक परमामत


ृ बन,

ान च र ा.” अथात ् स यक् दशन ह थम सीढ़ नह ं ज म जरा मत


ृ ु रोग नशे |

है मो माग म. इसके बना कतने भी शा स यक् ान बना कैसे हो,

ानी बन जाओ, तप या करो, चा र का पालन व-पर भेद व ान तेरा ||2||

करो, सब बेकार है . स यक् या इं य ाणी,

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ा का अथ
संयम म अगर हो जाए सह |
स यक् चा र बन हो न कभी,
इस आतम का क याण तेरा ||3||
स यक् दशन अ ान चरण, ा का अथ है - िजसे मानने के लए तक
तीन क एकता यग
ु पत ् हो | के पास कोई कारण न हो, िजसे मानना बलकुल
स यक् र य हो न अगर, असंभव मालूम पड़े, जो दखाई न पड़ता हो, िजसका
चं े श न हो नवाण तेरा ||4|| पश न होता हो, िजसक गंध न आती हो, और
िजसको मानने के लए कोई भी आधार न हो उसे
अंत म हम सोचना है क जगत म सार व तु
मान लेने का नाम है ा.
ा बहुमू य सू है .
या है ? िजसे हम हण कर :-
परमा मा को तुम अभी जानते नह ं हो, कोई
पहचान नह ,ं कभी दे खा नह ,ं कभी मलन नह ं
जगत म सार व तु या ?
हुआ. ा का अभी तो इतना ह अथ हो सकता
ज म पाया मनुज का तो |
है क हम एक प रक पना वीकार करते ह, और
सतत चंतन करो बंध,ु
हम खोज म लगते है , शायद जो प रक पना है
ज म पाया मनुज का तो |
वैसा स हो, न हो. ले कन एक बात प क है
त वदश हम होना,
क खोज शु हो जाएगी. और िजसक खोज शु
व-पर का भेद कर-कर के |
हो गई, अंत यादा दरू नह ं है . और एक बात
व-पर क याण रत रहना,
यह भी प क है क अ ा नय ने िजतने ढं ग से
ज म पाया मनुज का तो ||
परमा मा को माना है , अं तम अथ म वे कोई भी
नहालचंद जैन चं े श सह स नह ं होती. वे सभी प रक पनाएं अ स
होती ह. जो गट होता है , वह सभी प रक पनाओं
से यादा अनूठा है . जो कट होता है वह तु हार
सभी मा यताओं से बहुत ऊपर है . जो गट होता
है , तुमने उसे सोचा था द या, ले कन जो गट
होता है वह महासूय है . कसी क प रक पना
परमा मा के संबंध म कभी सह स नह ं होती,
हो भी नह ं सकती।
नोट: आदरणीय पं. . ी नहालचं जी जैन ‘चं े श’
छोटा सा मन है , छोटा सा उसका आंगन है .
महाका य आचाय ी वशु सागर जी क जीवनी “ व
कतना बड़ा आकाश, उस आंगन म समाएगा?
संवेद मण” के रचनाकार और नमो तु चंतन के
सलाहकार भी ह. छोटे छोटे हाथ है . इन छोटे -छोटे हाथ से उस

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वराट को छूने क को शश ? कतना वराट तुम जाएगा और इतना ह नह ं सैकड़ लोग उसके नीचे
छू पाओगे ? बूंद जैसी मता है , सागर को बैठकर छाया पा सकगे.
खोजने नकले हो कतना सागर तुम अपने म ले इस लए ाथ मक प से जब ा म कोई
पाओगे ? उतरता है तो बड़ी सावधानी क ज रत है, य क
ले कन ा के बना या ा शु नह ं होती. चार तरफ म या व मत लोग क भीड़ है . वह
ा का कुल इतना ह अथ है क साहस क हम तम
ु से कहे गी - या मान रहे हो ? या कर रहे
तैयार करते ह, हम ात से न बंधे रहगे, अ ात हो ? पागल हो गए या ? दमाग तो ठ क है ना
म, उतरने के लए हमार ह मत है . हम डरे -डरे ? वह म याि व मत लोग क भीड़ ब च क
अपने घर म कैद न रहगे, हम खल
ु े आकाश के तरह ह है . वह तु हारे पौधे को उखाड़ सकती है .
महा अ भयान पर नकलते ह. एक बात प क है अतः सावधान हो जाओ. ा को संभालकर रख .
क तम
ु जो भी मानकर नकलोगे, वह तुम कभी
न पाओगे. य क तुम अभी जानते नह ं तो तुम ीमती करण
ठ क मान कैसे सकोगे ? जैन
स यक ा तो ान से घ टत होगी. हांसी
ले कन स यक ा के पहले एक प रकि पत ा
(ह रयाणा)
है , मनोवै ा नक है . वै ा नक भी उसके बना
सद य:
काम नह ं कर सकता, तो धा मक तो कैसे कर
सकेगा ? नमो तु शासन
तो, ा दो कार क है . एक ा है सेवा स म त
साहस का नाम जो अ ान से बाहर लाती है, ार पाठशाला
के बाद दय म आरो पत होती है . उस दस
ू र ा
को फर डगाने का कोई उपाय नह ं है । पहल भी
कोई उखाड़ सकता है . नए पौधे क बड़ी सुर ा
करनी पड़ती है . चार तरफ से बागुड़ ( गाड)
लगानी पड़ती है , दे खभाल करनी-रखनी पड़ती है .
एक बार व ृ क अपनी जड़ जमीन को पकड़ लेती
ह तो पौधा जो व ृ बन गया है , जमीन के साथ
एक हो जाता है , फर बागुड़ क कोई ज रत नह ं.
फर ब चे उसे न उखाड़ पाएंगे. फर कोई उसे
नुकसान न पहुंचा पाएगा. फर तो व ृ बड़ा हो

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ा - सम
ु न
पूव भवम आ द वामी के पोते,मा रची नाम आय
363 पंथ थे चलाए, नाम तु हारे ंथ म पाए
इस तरह भगवान म, आई तु हारे ार पर
कस तरह भगवान म, ा के सुमन चढ़ाने भावना भ क लेकर, आई तु हारे ार पर
भ के भाव लेकर आऊं तु हारे ार पर
भावना दल क सजा लाऊं तु हारे ार पर जंगल वन खेल रहे थे हार कभी न थी मानी
कस तरह भगवान म आऊं तु हारे ार पर संगम दे व को परा त करने तब मन म ठानी
भ वश
कट हुए दे व नाम रखा महावीर वामी
आ मा क हर लहर म नाथ तुम आकर अगर धम-कम से ह नह ं हर मम से महावीर वामी
ेम को साकार कर, दे दो दशन अगर
कस तरह भगवान म ा के पु प चढ़ाने इसी तरह भगवान म ा के फूल लेकर आई
भ के राग लेकर आऊं तु हारे ार पर भावना दल क संजो आई तु हारे ार पर

न कभी भूलूं म तु हे , नाम लँ ू आज म भर सष


ु मा जैन
छोडूं न कभी चरण तेरे, जो म आऊं ार पर डूग
ं रपरु
कस तरह भगवान म, ा के फूल चढ़ाने
भ के सुर लेकर आऊं, तु हारे ार पर

ा सम
ु न आज म, उ ह चढ़ाने आई हूं
इ तहास के झरोख से नकाल,प ले कुछ लाई हूं
व णम अ र के लेख,िजसके जीवन क कहानी
उपसग के आगे िजसने हार कभी न मानी

जानते ह हम, कंु डलपरु का एक लाल था,


स म त, व मान और वीर नाम था ीमती सुषमा जैन

इस तरह भगवान म, आई तु हारे ार पर डूग


ं रपुर

ा के सुमन लेकर आई, तु हारे ार पर (राज थान)


सद य:
नमो तु शासन सेवा
स म त पाठशाला

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बाल गीत
सन
ु ो यान से मेरे भगवन ्
( मणाचाय नय च वत ी 108 वभव सागर
जी महाराज क कृ त “भि त भारती” से उ धत
ृ )

मने जो जो पाप कये ह , वह सब माफ करो |


व ा बु वनय समपण, मुझ म आप भरो ||
र य का दान मझ
ु े दो, काटो भव फेर |
मझ
ु बालक पर दे व-शा गु , क ना हो तेर ||
सुनो यान से ...........||

सुनो यान से मेरे भगवन ्! वनती यह मेर |


मझ
ु बालक पर दे व-शा गु , क ना हो तेर ||

राग- े ष-मद-मोह-लोभ को, हष वषाद को |


अ रहं तो को वंदन करके, स ध को भजता | हुए कसाय वश जो मुझसे, सभी ववाद को ||
िजनवाणी पर धा धरके, पाप को तजता || हाथ-जोड़ कर उनको यागँू, आकर िजन दे र |
मु नराज क जैसी म त है , वैसी हो मेर | मझ
ु बालक पर दे व-शा गु , क ना हो तेर ||
मझ
ु बालक पर दे व-शा गु , क ना हो तेर || सुनो यान से ...........||
सुनो यान से ...........||

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नोट: बाल मन बहुत ह सुलभ एवं न छल


प व ता से ओत- ोत होता है . सं कार का
बीजारोपड़ भी बा याव था म ह कया जाता है .
और वह समय के साथ वट व ृ क तरह
वशालकाय प धारण कर लेता है . इसी भावना
के साथ म आपके सम मणाचाय नय च वत
ी 108 वभव सागर जी महाराज क कृ त “भि त
भारती” से उ धत
ृ बाल गीत को े षत कर रह
मा क ँ म सब जीव को, सभी मा करना |
हूँ. सभी इसे अपने अपने ब च को सन
ु ाएँ / पढ़ाय
नह ं कसी से बैर हमारा, नह ं बैर धरना ||
और इसका अथ भी समझाकर सव शासन, िजन
सब जीव से म भावना, रहे भो मेर |
शासन, नमो तु शासन को जयवंत कर और एक
मझ
ु बालक पर दे व-शा गु , क ना हो तेर ||
नयी पीढ़ क मजबूत धा मक आधार शला रख.
सुनो यान से ...........||
कहा भी गया ह – न धमः धा मके वना .
इ त शुभं भूयात ्
बा. मचा रणी च दद.
संघ थ
मणाचाय नय च वत ी 108 वभव सागर
जी महाराज
स य दशन ान शरण ह, चा रत शरण कह | मुंबई चातुमास २०१८.
महावीर भगवान ् आपक , अं तम शरण गह ||
समवसरण म मुझे बुलाना, बजा बजा भेर |
मझ
ु बालक पर दे व-शा गु , क ना हो तेर ||
सुनो यान से ...........||

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सडनी ऑ े लया ि थत जैन मं दर: Contact


President: Shri Pankaj Jain,

Contact no. 0061 401 142 175


jainpankaj@hotmail.com

Secretary: Shri Mukesh Jain,

Contact no. 0061 425 247 575


Mukesh_Jain007@hotmail.com

Web site: http://sydneyjainmandal.org

Address
Unit 7, 15-17 Tucks Road,
Seven Hills, NSW 2147

सडनी जैन मंडल


We are a non-profit socio-religious group
that represents Jain community in Sydney
 It is a social platform to people who
believe in principle of Jain religion
 It is a forum to learn, discuss and
practice values of Jain preaching
 A platform to keep Jain religion alive
for future generations
Sydney Jain Education Centre
नोट : बहुत ह सु दर यव था और ी मं दरजी
 We run the education centre for adults
का संचालन. सबसे बड़ी बात – दे श से दरू पर तु
and children to uplift the religious
knowledge about Jainism. सं कार के त सजग, पाठशाला के साथ साथ
 Celebrate birthdays and marriage नय मत धा मक वचन और कायशाला का भी
anniversaries. आयोजन होता रहता ह.
 We arrange yearly religious camp.
 We also have community events like
picnic, cruise आप सभी सादर आमं त ह.

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बधाईयाँ ब च को और
ब चे का और माता- पता का
. शहर नाम

आप माता- पता को भी 1 औरं गाबाद अ ेय अनु अजय जैन


2 औरं गाबाद मयंक अनु अजय जैन
3 औरं गाबाद यश मीना वैभव कंद
4 औरं गाबाद इशान मीना वैभव कंद
अं कत न मता अमोलकचं
5 वा लयर पाटनी
अ पता न मता अमोलकचं
6 वा लयर पाटनी
अं कता न मता अमोलकचं
7 वा लयर पाटनी
अ पता न मता अमोलकचं
8 वा लयर पाटनी
9 बीड (महा) सूरज मंजू मोद पोरवाल
सभी ब च को बहुत बहुत बधाईयाँ. आपने भोपाल आ मी रि म स चन शा ी जैन
10
मणाचाय नय च वत ी 108 वभव सागर जी 11 भोपाल अ रा रि म स चन शा ी जैन
महाराज के वा स य भर बात को और अपने 12 मंब
ु ई दपेश मक
ु े श केलावत जैन

अपने माता और पता ी क बात को मानकर 13 मुंबई नीरज मुकेश केलावत जैन
मुंबई पलक दनेश केलावत जैन
पटाखे न छोड़ने का नणय लया वह बहुत ह 14
15 मुंबई सुभम दनेश केलावत जैन
सराहनीय है . आगे चलकर भ व य म आपका यह रोहतक मु कान शालू संजय जैन
16
अ हंसा मक याग आपको अपने जीवन म बहुत 17 रोहतक सपन शालू संजय जैन
ह उं चाईय पर ले जायेगा. लाख करोड जीव को 18 रोहतक अ तशय शालू संजय जैन

आपने जीवन दान दया, यह कोई छोट बात नह ं 19 लंदन आरोह वेता योगे जैन
20 हांसी तनु ी करण अनुज जैन
ह. आपको वशेष प से मणाचाय ी 108
21 हांसी यु नक करण अनुज जैन
वभव सागर जी महाराज का आशीवाद भी ा त क याण हतांश तिृ त पयष
22 ू बंडी जैन
हो गया ह. आपने अपने माता- पता क बात को 23 क याण मह व तिृ त पयूष बंडी जैन
ह नह ं माना बि क उनका मान भी बढाया है . 24 क याण मीत सुलोचना मनोज जैन

सभी जानते भी है क माँ ह पहल पाठशाला ह. 25 क याण मनन सुलोचना मनोज जैन
26 क याण िजया सपना आनंद गंगवाल
बहुत से ब च के नाम आये ह पर इस अंक म
27 क याण मीत सपना आनंद गंगवाल
सफ 100 नाम ह का शत कर रहे ह. शेष नाम क याण द या संगीता संजय म ल जैन
28
अगले अंक म का शत करगे. 29 क याण नेहा संगीता संजय म ल जैन

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30 क याण द मनी हमांशु कासल वाल 66 गड
ु गाँव सतीश नेहा राकेश गग जैन
31 क याण आ शका आशीष कासल वाल 67 बानपुर वमल बंद ु दे वराज जैन
32 क याण ीशा सु शल अजमेर जैन 68 बानपुर भारती बंद ु दे वराज जैन
33 द ल आकष नेहा न खल जैन 69 बांसवाडा रोशन वीणा शां तलाल जैन
34 द ल आ ष नेहा न खल जैन 70 बंगलोर रंक यंका वशाल जैन
35 क याण इ शका ीती मनोज जैन 71 बंगलोर वनायक यंका वशाल जैन
36 क याण एका ीती मनोज जैन 72 बंगलोर जयंती यंका वशाल जैन
37 क याण आरना न ध ववेक संघई जैन स दे श क वता संजय खंडल
े वाल
38 क याण मा या न ध ववेक संघई जैन 73 जयपुर जैन
39 क याण ेरणा शरस जैने वै य जैन 74 जयपुर चं ा क वता संजय खंडल
े वाल जैन
40 क याण जेयसी शरस जैने वै य जैन आशीष न ध वजय खंडल
े वाल
41 क याण ऋषभ वंदना र व जैन 75 जयपुर जैन
42 क याण कं जल वंदना र व जैन हमांशु न ध वजय खंडल
े वाल
43 क याण ऋषभ वंदना र व जैन 76 जयपुर जैन
44 रािजम कृ त नीलू संजय राजू जैन 77 भंड चराग मला नतेश जैन
45 रािजम ु त नीलू संजय राजू जैन 78 भंड द पका मला नतेश जैन
46 रािजम अ द त नीलू संजय राजू जैन 79 भीलवाडा द पक नैना संजीव सोगानी
47 प ना सुयश सीमा राजेश जैन 80 भीलवाडा श पी नैना संजीव सोगानी
48 प ना सुभम सीमा राजेश जैन 81 हुबल धीरे साधना अिजत जैन
49 ट कमगढ़ पू णमा पूनम रतेश जैन 82 हुबल दनेश साधना अिजत जैन
50 ट कमगढ़ राजेश पन
ू म रतेश जैन 83 दाहोद द येश क पना ब पन शाह जैन
51 सागर सोनम रा गनी महे श जैन 84 दाहोद र सका क पना ब पन शाह जैन
52 सागर सोहम रा गनी महे श जैन 85 रतलाम आि वन द या र वकुमार जैन
53 बैतूल आरोह अ का पारस जैन 86 रतलाम आ शका द या र वकुमार जैन
54 बैतूल अजय अ का पारस जैन 87 उदयपुर स धेश ल मी कृ णकांत सेठ
55 ना शक व ण पा ल शेखर ओसवाल जैन 88 उदयपरु ल लत ल मी कृ णकांत सेठ
56 ना शक अ ण पा ल शेखर ओसवाल जैन गंज
57 इंदौर सुवणा आरती क पल जैन 89 बासोदा वमलेश राजुल गौरव जैन
58 इंदौर दल प आरती क पल जैन गंज
59 सहारनपुर अ नल दशना वैभव अ वाल जैन 90 बासोदा व लव राजुल गौरव जैन
60 सहारनपरु अ मता दशना वैभव अ वाल जैन 91 आ टा गंज
ु न क पना गौरव गोदरे जैन
61 जोधपुर संक प प लवी राजीव मुथा जैन 92 आ टा गो व द क पना गौरव गोदरे जैन
62 जोधपुर क प प लवी राजीव मुथा जैन 93 रामटे क गाय ी सुनीता मोद नागपुरे जैन
63 अहमदाबाद कशोर रे खा मनोज जैन 94 रामटे क गीता सुनीता मोद नागपुरे जैन
64 अहमदाबाद कं जल रे खा मनोज जैन 95 कोलकाता हष हमानी आलोक जैन
65 गड
ु गाँव अ य नेहा राकेश गग जैन 96 कोलकाता गीतांज ल हमानी आलोक जैन

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काशक : नमोS तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 09 माह : दसंबर 018
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-: हमसे जुड़ने के लए तथा इस


97 कोलकाता हतेश हमानी आलोक जैन
98 लखनऊ इं दरा शची इं कुमार जैन

प का को अपने फोन पर
99 लखनऊ न मता शची इं कुमार जैन
### लखनऊ नलेश शची इं कुमार जैन

मशः......अगले अंक म...


नशु क ा त करने के लए
वा याय भी परम तप है. संपक करे :-
य द आप भी घर बैठे फोन से
नय मत वा याय करना चाहते पी. के. जैन ‘ द प’
ह तो नमो तु शासन सेवा
स म त पाठशाला से जु ड़ये और बा. . अ यकुमार जैन
क िजये अपना आ म क याण.
संपक कर :-

आचाय ी वशु धसागरजी


महाराज क व भ न ंथराज पर
हुई दे शना के गुजराती, क नड़,
अं ेजी (इंि लश) और हंद भाषा
म थ ा त करने के लए
नमो तु शासन सेवा स म त के
नंबर पर संपक कर :

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(रिज टड सं था)

602/1, लाड शवा पेरेडाईज, बरला कॉलेज रोड,


क याण (पि चम)
मुंबई –

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: pkjainwater@gmail.com
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आप सभी का आभार
नमो तु शासन सेवा
स म त प रवार
“जय िजने ”
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धा मक प का नःशु क वतरण के लए

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