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25 Namostu Chintan May 2020 PDF
25 Namostu Chintan May 2020 PDF
-: मंगलाचरण :-
िवशु चेतन िवशु िचंतन, िवशु चया का |
िवशु कता िवशु कारण, िवशु िक रया का ||
िवशु मिहमा िवशु ग रमा, िवशु मितमा का |
यह गधं ोदक क ँ समिपत, िवशु ितमा का ||
( : )
मंगलाशीष
आचाय ी पज
ू न
0
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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-: वचन :-
मनीिषय !
सभी क धारणा एक हो, उस िवषय पर तो एक होकर रह. िबना िनिवक प यान नह होता. आचाय कंु दकंु द वामी ने
अिहसं ा के नाम पर तो सभी जैन एक ह ही, मा ि याकाडं , वचनसार म कहा है –
पजू ा-पाठ, िन य- यवहार के पीछे व तु व प को (जो आ म सुिविददपय थसु ो संजमतवसंजुदो िवगदरागो |
पदाथ का धम है, उसे) भल ू रहे ह. कषाय म उलझकर वे समणो सम-सुह-दु खो भिणदो सु ोवओगो ि ||14||
मो सख ु को ा नह कर सकते, चाहे वे साधक हो अथवा
ावक. बेचारे पु य का उपयोग स यक् प से नह कर पा रहे. अथ : िज ह ने अ छी तरह से पदाथ-सू को जान िलया है,
अतः वे पथं /सं दाय से ऊपर उठकर ािणमा के क याण सयं म व तप से यु ह, िजनका राग बीत गया है, जो सुख दखु
क भावना से क याण का उपदेश कर. म सा य भाव रखते ह, ऐसे वण को शु ोपयोगी कहा है.
भो ानी ! इधर तो एकि य जीव क र ा क बात भो ानी ! आचाय ी जयसेन वामी ने भी
करते ह और उधर पचं ेि य मनु य के ित मै ी भाव नह है. ' वचनसार' जी क टीका म प िकया है िक थम गणु थान
मन का काय नह हआ तो कुछ भी कराने का उपदेश दे िदया. से लेकर तृतीय गणु थान पयत तारत यता से अशभु ोपयोग
देखो, वीररस का उपयोग यु भिू म म होता है, धम सभा म तो होता है. चतथु गणु थान से लेकर छठव गणु थान तक
वैरा यत व का ही उपदेश होना चािहए. ध य है वे आचाय तारत यता से शभु ोपयोग होता है तथा सातव गणु थान से
परमे ी भगवान् जो भव म गोते लगाते हए अनतं भ य को बारहव गणु थान तक तारत यता से शु ोपयोग होता है. तेरहव
िजनदी ा मो माग पर लगा रहे ह. वे उपा याय व साधु परमे ी एवं चौदहव गणु थान म शु ोपयोग का फल होता है.
भी ध य है जो सद् माग का उपदेश देकर व-पर क याण म आचाय शभु चं वामी ने ' ानाणव' जी म िलखा है
लगे हए ह तथा आ म साधना म लीन है. उ म ावक पद पर िक जैसे आकाश का फूल और गधे के स ग िकसी भी े एवं
आसीन जीव भी शभु ाशीष के पा ह जो संसार के भोग से िकसी भी काल म नह होते ह उसी कार िनिवक प यान क
उदास होकर आ मसाधना म लीन है तथा िम या व म डूब रहे िसि गृह थ-आ म म िकसी भी े व काल म नह होती.
भ य को स य माग िदखा रहे ह. उ ह मु य प से मा िनिवक प यान क िसि अ म -गणु थान म िन थ िदगबं र
वक याण क ही भावना है. वीतराग योगी के ही होती है. अतः यह प है िक िज ह
भो चेतन ! ंथकता आचाय महाराज इस गाथा म यही आ म ान क िसि करना है उ ह िन थ मिु न दी ा धारण
देशना कर रहे ह िक - ि को िवशाल बनाओ संकुिचत धारणा करना चािहए.
को िवराम देकर. परम सारभतू िनिवक प आ मत व जो िक दसव गाथा म िन थ व प का कथन िकया गया
िन य से सा ात मो का कारण है, उस िवशु त व को है. िजस जीव ने इस लोक म ि योग से अंतरंग व बिहरंग
जानकर िन थ होकर यान करो. आचाय भगवान् कह रहे ह प र ह का याग कर िदया है तथा जो िवषय-कषाय,
िक िनिवक प यान कब कर ? वतमान म जो मुमु ु भाई आरंभ-प र ह से रिहत है, ान- यान-तप म लवलीन
अ तअव था म ही िन य आ मानभु ूित व शु ोपयोग रहते ह, वे िन थ लोकाचार को नह लोको र आचार
(िनिवक प यान) मान रहे ह, उ ह इस गाथा को अ छी तरह को े मानते ह. यिद कदािचत् लौिकक चचा हो भी
से समझना चािहए. वा तव म शु ा मत व का िनिवक प जाए तो शी ही भूल जाते ह, उस बात को अिधक समय
यान िकस अव था म होता है ? या िबना संयम धारण िकए तक अपने अंदर नह रखते. परम समरसी भाव म िनम न
आ मानुभिू त संभव है ? वचन मा ना सनु ,े आगम भी पढ़े. यित र के राग क आग क िचंगारी भी नह रहती, वे संयम
मल ू आष (आगम) म प कथन है िक िबना िन थ-मु ा के शीतल नीर म अपने आपको आ करके रखते ह. वे िन थ
धारण िकए अ म दशा नह बन सकती और अ म दशा दस कार के बा एवं चौदह कार के अतं रंग प र ह से
िन पृह होते ह.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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श द अ या म पंथी का ...
स याथ पथ
एकाक -पथ तो
उभय-नय वाला ही
बि क वह तो
उभय-नय से
पार ले जाने वाला ही ;
ी
रख-
शरण िकसक ??? र न य पथ के रथ
बड़ी अजब है दुिनया पर ही इसीिलए तो
शरण खोकर अह त /आचाय क परंपरा
अशरण म ने कहा-
शरण खोजती; र न य पथ ही
जैसे स या थ पथ ....
मगृ स या थ पथ ....
खोजता स या थ पथ ....|
मरीिचका म
नीर
जो वयं क शरण नह
वह या देगा
अ य को शरण ?
और इसीिलए कहा गया –
के वली- णीत धम ही स चा शरण
के विलपण ं ध मं सरणं पव जािम
के विलपण ं ध मं सरणं पव जािम
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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िति त हए ह. मेरा उ ह तथा उनके इस पिव काय के िलए
शुभाशीष :
ॐ नमः
िबलगािछया उपवन
कोलकाता.
जहाँ पच
ं क याणक होवे, वहाँ चला आऊँ |
तीथकर के ज मो सव पर न न करा आऊँ ||
िजसने जैसा ल य बनाया, वैसा फल पाया |
दी ा लख दी ा को धा ँ , यम- संयमधर हो |
क पवृ तो फल दाता है, य ना दे छाया ||
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||
शांित िसंधू सा मरण समािध कुंथल िग र पर हो |
तेरी छ छाया.....
मे रा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||
तेरी छ छाया.....
अ य ा अ य िव ा, अ य संयम दो |
िबना िखलाये कै से खाऊँ , खाया ना जाये |
दो अ य वैरा य िजने र दो, अ य शम-दम दो ||
दाता ावक कर ती ा, कब सपु ा आये ||
दय कमल पर सदा िवराज , गु पद पु कर दो |
पा दान कर हष मनाऊँ , य नविनिध कर हो |
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||
मे रा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||
तेरी छ छाया.....
तेरी छ छाया.....
स य व क ाि हो, ऐसा आशीवाद दगे. आगम क मयादा बंदी बनाकर ले जाएगा. पाप के िवपाक का उदय आया तो
है. 'धमराज'-जैसे जीव क भी बिु िवपरीत हो गई थी. तु डा
भो ानी ! शि क बात को अिभ यि ारा कहना म सब कुछ हार गए, यहाँ तक िक नारी को भी दांव पर लगा
भी िम या व है. अ रहतं , िस , आचाय, उपा याय, साधु मेरी िदया. यह कम क िविच ता है. कहाँ गए थे देवी-देवता जब
आ मा म िवराजते ह, इसिलए मेरी आ मा ही मेरा शरण है. एक शीलवंती के चीर को ख चा जा रहा था ? देखो, अमढ़ू -
िन य ि है और यवहार ि से येक परमे ी के ल ण ी अगं का पालक कहता है िक म आराधना तो पंच परमे ी
िभ न है; येक परमे ी का य िभ न है, येक परमे ी के क क ं गा, परमे ी के साद से कोई मेरी सेवा करने आ जाए
गणु िभ न ह और मल ू गणु भी िभ न है. यह परमे ी का तो मझु े कोई एतराज भी नह . सीता ने देव का आ ान नह
या यान है, परमे ी को परमे ी ही समझना. आपके आगम म िकया, पंच-परम-गु का आ ान िकया था. अहो ! देखो संसार
चार देव ह - देव, अदेव, कुदेव और देवािधदेव. यह शीश इनम क दशा जब पु य बल होता है तो िनिम भी ऐसे सामने होते
देवािधदेव मा को ही झक ु ता है, शेष तीन को नह . 'अदेव' उसे ह. के वली भगवान क आराधना करने जा रहे थे देव आकाश-
कहते ह िजसम देव व क लोक मा यता है जैसे कोई ितयच क माग से. सौ-धम देव एक देव को आ ा देता है िक आप जाओ
आराधना कर रहा है, कोई वृ क आराधना कर रहा है और शीलवंती सीता के शील क र ा करो. यिद आज यह उपसग
कोई प थर क आराधना कर इसम धम मान रहा है, यह 'अदेव' दरू नह िकया लोग क शील-धम से आ था उठ जाएगी. देख
क आराधना है. जो वीतराग माग से िवपरीत है, िम या व म रहे थे राम ल मण ! राम ल मण को तो ठीक है, उन लव-कुश
संल न है और कुिलंग धारण िकये ह, वे 'कुदेव' क ेणी म है. क लाल आख ं को देख लो. िजनक मां अि नकंु ड म कूद रही
जो चार, िनकाय के देव है वे सामा यत: 'देव' ह और जो सौ इं हो, उन लाल के दय से पूछना - बेटे तुम कै से देख रहे थे ?
से पू यनीय वदं नीय है, अठारह दोष से रिहत है, वह सव भु पर ध य हो उस मां को िजसने अपने बेट का राग नह िकया
'देवािधदेव' ह. हम देवािधदेव क ही वंदना करते ह, शेष सबका परंतु अपने पित को स य का प रचय िदया. यिद सीता इस
यथा यो य स मान रखते ह, पर अनादर िकसी का नह है. मां उपसग से मख ु मोड़ लेती तो लोक का कलक ं जाने वाला नह
िजनवाणी कह रही है - 'बेटे यान रखो, आपका आंगन बहत था. अहो ! एक नारी वह है जो दोन कुल को उ जवल करने
है, वही तुम खेलो, दसू रे के आगं न म मत जाओ. जब मेरी मां वाली होती है एक नारी वह है जो दोन कुल को मिलन करने
का आगं न संकुिचत हो जाएगा तभी सोचँगू ा. लेिकन दिु नया वाली होती है. यिद नारी क भावना िनमल है तो दोन कुल म
िम या व क आराधना कर रही है िक कुछ हो न जाये. एक शोभा है और नारी क भावना िगर गई वह दोन कुल डूब गए.
स जन आए बोले - महाराज आपको जगह-जगह सभी कार भो ानी जब अि न का नीर हआ तो जनक भी खश ु
के ऐसे थान पर िवहार करना होता है अतः आपको कुछ थे, कनक भी खश ु थे, राम का प भी स न था, अयो या म
िसि रखना चािहए. भो ानी ! िजसने पंच परमे ी के पद को भी जय जयकार हो रही थी. परंतु ध य हो, हे सीते ! आपने
ही ा कर िलया हो, वही डरने लगे तो परमे ी िकस बात का स य व को जयवतं िकया, इसके साथ-साथ िजन-शासन को
? य ? णमो लोए स व साहण'ं क आराधना करके म देव भी जयवतं िकया और नारी जाित को आपने िनमल िकया.
को बल ु ाऊं ? नह , म तो देवािधदेव क आराधना क ं गा, देव नारी जाित का आपने बहमान रखा. एक वह सपू नखा और
तो अपने आप आएगं े. मथं रा भी नारी थी िजसने परू ी नारी-जाित को ही बदनाम कर
भो ानी जब तक िनमल स य व तु हारे अदं र म िदया. ऐसी एक धन ी भी थी, िजसने काम क पीड़ा म आकर
नह गजँू गे ा अथात् र न य नह ह तो अपू य हो और र न य अपने पु के ही दो टुकड़े कर िदए थे. उनका कोई नाम नह
है तो पू य हो. सखु -दखु र न य के हेतु नह है, यह पु य-पाप लेता परंतु जब भी शीलवि त के नाम मख ु पर आएगं े तो सती
के हेतु है. पाप का िवपाक है तो हजार सैिनक के बीच, श ु 'सीता' 'मनोरमा' का नाम ही आएगा.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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भो ानी यवहार ि म चचा चल रही है. चू हा, यिद कदािचत् कुछ करना भी पड़े तो कह कर भल ू जाता है,
च क , मसू ल, उखरी ये कोई देव नह है. इस बात से भी मत य िक कहना पयाय का धम था, सनु ना पयाय का धम था परंतु
घबराना िक यह हमारे कुलदेवता ह. आचाय िजनसेन वामी ने िनज म ठहरना मेरा धम है. अरे ! जो अपने को छोड़कर दसू रे
महापरु ाण म िम या व छोड़ने क िविध का कथन करते हए, के घर बैठ जाये, उसको यािभचारी कहते ह. िनज यान को
इन देवताओ ं को संबोिधत करते हए िलखा है िक - बहत छोड़कर अथवा िनज य को छोड़कर जो पर के पीछे पड़ा है,
अ छा होगा यिद आप भी मेरे साथ िमलकर अ रहतं देव क उसको 'समयसार' यािभचारी कहता है. इसिलए संबंध को
आराधना करो. अब म अ रहतं क उपासना क ं गा आज से वभाव मत बना लेना, अ यथा रोना ही रोना पड़ेगा, य िक
आपको मानना बंद करता हँ. जब ऐसे ढ़ आ था तु हारे अदं र संबंध िव छे द होते ह और वभाव िविछ न होता नह है; यह
होगी तो वे भी आकर तु हारे चरण पकड़ लगे. य िक स यक कृ ित का शा त िनयम ह. भो ानी ! जो पयाय उपजती है,
ी जीव क देव भी पूजा िकया करते ह. यहां िन य ि कुछ वह िवनशती है, वह दसू री पयाय को भी ा होती है. इस स य
और कहेगी िक हे जीव ! नाना पयाय तेरा धम नह है; नाना को समझने वाला कभी नह रोता. परंतु जो रोता है वह अस य
य म िल होना तेरा धम नह है. पर- य को सभं ालना ही म जीने को स य मानकर रो रहा है. इसिलए, भैया ! िजसे तू
सबसे बड़ी मढ़ू ता है. आत: जो पर य को पर य ही मानता िवयोग कह रहा है, वह भी स य है और िजसे संयोग कह रहा
है, व- य को सोव- य मानता है, वही स चा अमढ़ू ी है वह भी स य है; परंतु िजसका िवयोग व संयोग नह , वह परम
ह य िक बिहरा म-भाव ही मढ़ू ता है और अतं र- आ म- स य ह. यिद परम स य को ा करना चाहते हो तो आज से
भावना ही अमढ़ू ता है. हँसना व रोना बंद कर देना, य िक दोन कषाय है. इसिलए
भो चैत य ! यिद आ मा पर क णा है तो आप ऐसे आपसे मण-सं कृ ित कह रही है िक हँसो मत, रोओ मत,
काम मत करो जो कुल परंपरा के िव हो और सं कृ ित- म य थ रहो.
िव ह . यिद तमु िम भी हो तो अपने साथी का सहयोग भी मनीिषय ! यान रखना िक पंच-परम गु व वीतराग
कर देना िक भो िम !आपको ऐसे गलत काय को करते कै से शासन के ित यिद कोई िवपरीत कथन करे गा, मेरी साम य
देख सकते ह ? इसका नाम िम ता है. जब िपता क अ सी वष होगी तो म उससे कहगं ा िक ऐसा मत कहो. यिद साम य नह
क उ म पु सेवा करता है तब िपता व पु क पहचान होती है, तो म उसको सनु ँगू ा नह , उठ कर चला जाऊंगा. धम व
है. धमा मा क आलोचना सुनकर अपने जीवन म गंदगी नह
भो ािनय ! यान रखना, ािनय संत क पहचान भरना चाहता, य िक यिद खोटे सं कार मेरी पयाय म भर िदए
तब होती है जब उपसग /प रषह / आलोचनाएँ हो रही ह , िफर गए और वहाँ मेरी समािध चल रही होगी, तो वे श द मेरे अदं र
भी अपनी समता म म जी रहा हो. इसिलए, हे मनीिषय ! गँजू ने लगगे, तो मेरी समािध भंग हो जाएगी. िजनवाणी कह रही
अपनी-अपनी पहचान कर लेना, अपने को मत भल ू जाना. यह है: उ म पु ष वह होते ह जो वयं के क याण क िचंता करते
सब पयाय के सबं धं झलक रहे ह, झलकगे, य िक ससं ार ह. ह; म यम पु ष वह होते ह जो शरीर क िचतं ा म डूबे ह; जो
इसिलए जो अमढ़ू ी व को भी समझ लेता है, दसू र के दोष भोग क िचंता म िल है वे अधम है.
और स मान के िलए ही अपना ही दोष, अपना ही स मान भो ानी आ माओ ं ! भगवान महावीर दिु नयाँ को नह
समझता है सधु ार पाये तथा भगवान आिदनाथ अपने नाती को नह समझा
वह चेतन आ मा ! परम पु ष वह होता है, जो बोलते पाये, तो हम कौन से खेत क मल ू ी है. सब जानते ह िफर भी
हए मौन रहता है. अपने आप को त व म ि थर करने वाला नह मान रहे. उनक होनहार वह जाने, हम सं लेष-भाव नह
मण गमन करने पर भी गमन नह कर रहा, देखने पर भी देख करना. भगवन् अमृतच वामी कह रहे ह उपगहू न का दसू रा
नह रहा; िफर भी सब कुछ कर रहा है, यही व प लीनता है. नाम उपबृंहण भी है. वयं के गणु को एवं दसू रे के अवगणु
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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अिहस
ं ा करती न-के वल
पर क र ा
वह तो करती अपनी भी र ा
अिहस
ं ा अपनाओ
र क बनो
र ा करो अपनी भी
पर क भी.....|
आचाय ी अमृतच वामी ारा रिचत पु षाथ रचनाकार : आचाय ी िवशु सागर जी महाराज.
िसद् युपाय पर आधा रत आचाय ी 108 िवशु
सागर जी महाराज क यह पु षाथ देशना थ
को आप िनशु क घर बैठे, अपने मोबाइल पर ा
करना चाहते ह तो हम सपं क कर. इसके साथ अ य
ंथ के िलए भी संपक करे :-
सपं ादक : पी. के . जै न ‘ दीप’ - 9324358035.
नमो तु शासन सेवा सिमित (रिज.), ठाणे, मुंबई.
……….. मशः “श द अ या म पंथी का” से साभार
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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िकया और िजनके ारा यह क याण कारी जैन माग, इस भावना का अवसर िमला. तीथकर महावीर के बुिनयादी और
किलकाल म सब और भ प हआ, वे गणनायक आचाय सव दयी िचंतन क अनु ेरणा के साथ समता, समानता,
सम तभ बार बार बंदना िकए जाने यो य है. सावभौिमकता, सम वय, संयम, और शु ता के ित भावना को
आचाय ी दशन, सािह य, आगम एवं षडदशन के मजबूत करने का उप म आपके सव दयी वचन व या या से
पारगामी ाता थे. आपने स पणू दशन का अ ययन करके उनम उस समय के भ य जीव ने ा िकया. साथ ही जैन दशन को
विणत एकांत िम या धारणा को अनेकांत स यक् प िदया. एवं भिव य क पीढ़ी के आचाय को सव दयी िचंतन के िलए,
शा ाथ कर याय, माण, नय, िन ेप, आगम, तक, हेतु आधार आपके थं से िमला.
या ाद, वा य- वाचक, अभाव व तु धम िन पण एवं भावांतर ऐसे ही महान आचाय िजनके यि व के संबंध म ये
कथन, त व का अनेकातं प ितपादन, माण के म भावी व पिं यां िनि त प से उनक महानता को दिशत करती ह -
अ मभावी भेद क प रक पना, माण के सा ात् और परंपरा किवय गमकाना च वािदनां वि मनामिप,
फल क िववेचना, माण का व -पराभास ल ण क िववेचना, यश: साम तभ ीयं मूि न चूडामणीयते |
अनमु ान से सव क िसि , आ का तािकक परी ा धान नम: सम तभ ाय महते किववेधसे,
िन पण, व तु, य, मेय का व प और ई र के कता, कम य चोव पातेन िनिभ ना: कुमता य: ||
,फल दाता आिद का िवखंडन करते हए वयं आ मा ई र व प अतएव पू य आचाय वर भगवन् सम तभ वामी के
है, इसक िसि आिद अनेक प से िजन धम, शासन क ी चरण म अपनी िवनत ाथना िनवेिदत करता हँ िक आपके
पताका फहराने वाले सव दयी शासन को सव क याण िहत अंश हमारे अंदर वेश कर जाये तािक हम भी िजन शासन क
स पािदत िकया. िजनक अलौिकक िद यता को देखकर व महती भावना म स यक सहभागी बन सके .
तािकक या यान को सनु कर, स पणू जन मानस त ध रह जाता आचाय े अवधारणा, फैले जगत भाव |
था. स य के व प का यह मािमक और स य क ओर ले जाने
वाला सवं ाद िजन शासन क सव ाही सोच, सदाचरण क न व
चरण कमल िनमल नमे, हो सव दयी भाव ||
से मानव जीवन क उ नित और सवधम ाणी समभाव क डॉ िनमल शा ी
यव था लोग को े तम लगी, िजसे राजा , महाराजाओ,ं
जाजन ने सहष वीकार िकया. अतः हम कह सकते ह िक - जैन दशन के िव ान
षट् दशन पारंगत बन, िकया धम उपदेश | दाशिनक लेखक
असत् मा यताएं हरी, सत् का िदया संदेश||
टीकमगढ़
त व अनेकातं प है, अनेकांत से जोड़ |
व तु यव था िस कर, स यक िसि म मोड़ || नोट: जैन सं कृ ित के जाने-माने खर िव ान,् किव और मख ु र व ा के
या ाद क युि याँ , मको कर चकचूर | प म सभी डॉ. िनमल शा ी से प रिचत ह. वे ही नह उनका पणू
वाद िववाद मट कर, धम अनेकांत पूर || प रवार भी िजन-शासन क सेवा म लगा हआ ह. प रवार के सभी सद य
अपने अपने ान से माँ िजनवाणी क सेवा म लगे हए ह. आपक
आपने अपनी का य कुशलता, तुित ा, अलंकार छटा,
धमप नी डॉ. रे खा जैन एवं सपु ु ी कु. िनहा रका जैन भी अ छे लेख और
छ दकला, यायिव ा, दाशिनक मा यता, आ याि मक व पता
किवताये ँ िलखते ह. हम, नमो तु शासन सेवा सिमित प रवार उनका
और तीथकर के उपदेश क िनद ष या या ने चु बक य भाव
वागत, अिभन दन करता ह और आशा करता है िक वे आगे भिव य
सृिजत िकया. िजससे किवय को का य रचना का माग, म भी इसी तरह माँ िजनवाणी क सेवा करते रहगे.हम सभी उनके
दशनकार को समीचीन दशन क या या व तु यव था, त व उ जवल भिव य क कामना करते ह. – संपादक एवं नमो तु शासन
क उपल धता, ईश व शि के ित जाग कता, ि को िनमल सेवा सिमित प रवार.
करने का साधन और सभी जीव म समानता क , सव दयी
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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thou ifjp; vkSj Je.k nh{kk HkLed O;kf/k jksx vkSj mi’keu
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Lokeh th dk O;fäRo cgqvk;keh gSA laLd`r tSu okM~e; ds riLoh dk thou FkkA vkius vkpkjkax esa izfrikfnr p;kZ ds
vuqlkj eqfu /keZ dk funksZ"k ikyu] nqLlg ri rirs gq;s
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vusd ozrksa dk vuq"Bku fd;k] vki vkRe&fpUru] iBu&ikBu Lo;aHkw Lrks= dh jpuk dhA vkius tc vkWaBosa rhFkZadj dh
vkSj xzUFk&jpuk esa lnSo layXu jgsA Lrqfr djrs gq, pUnzizHkq Hkxoku dh oUnuk dh rc f’ko th
vlkrk osnuh; deZ dk rhoz mn; fdlh dks ugha dh fi.Mh fonh.kZ gks xbZ vkSj mlesa ls pUnzizHkq Hkxoku dh
NksM+rk] ;g ,d uhfr gSA ;g uhfr vkpk;Z leUrHknz th ds ewfrZ izdV gqbZA bl ?kVuk ls jktk vkSj iztk esa tSu /keZ dk
Je.k lk/kuk dky esa ?kfVr gqbZA vki tc nf{k.k Hkkjr ds izHkko vafdr gqvkA vkpk;Z leUrHknz us o/kZeku i;ZUr
e.kqodgYyh uked LFkku esa fogkj dj jgs Fks] mlh le; prqfoZa’kfr rhFkZadj dh Lrqfr iw.kZ gksus ij jktk dks vk’khokZn
vlkrk osnuh; deZ ds rhoz mn; ls vkidks ^HkLed O;kf/k* fn;kA tSu f’kykys[k laxzg Hkkx 1 vfHkys[k la- 54 i`- 102
uked Hk;kud jksx gks x;kA rhoz {kq/kk osnuk mUgsa lrkus esa eqfnzr i| }kjk Hkh HkLed jksx mi’keu fo"k;d ?kVuk dh
yxhA eqfup;kZ ds vuqdy w vYi vkSj uhjl Hkkstu ls lqjlk iqf"V gksrh gSA3 Lo;aHkw Lrks= esa funZ;& HkLe&lkr~&fØ;ke~A in
ds eq[k dh rjg o`f) dks izkIr] mudh {kq/kk dh iwfrZ ugha gks ls Lokeh leUrHknz dh HkLed O;kf/k dk vuqeku rFkk
ldrh FkhA vr% vkidk ’kjhj fnuksafnu nqcZy gksrk x;k] fQj lEHkoukFk th dh Lrqfr esa vklh&fjgk&dfLed ,o oS|ks] oS|ks
Hkh vki fujfrpkj iwoZd eqfup;kZ dk ikyu djrs jgsA HkLed ;Fkk∙ukFk&#tka iz’kkUR;SAA bl Lrqfr esa oS| dk :id fn;k
O;kf/k jksx dk ’keu izpjq ek=k esa ikSf"Vd ,oa fLuX/k Hkkstu tkuk vkpk;Z leUrHknz dh thou ?kVukvksa dh vksj ladsr
feyus ij gh lEHko gSA fnxEcj eqfu ds :i esa fopj.k djrs ekuk tk ldrk gSA HkLed O;kf/k dk mi’keu gksus ds i’pkr~
gq, ,slk lk/ku ugha fey ldrk Fkk] vr% vkidks fnxEcj vkius izk;f’pr ysdj iqu% fnxEcjh nh{kk xzg.k dh vkSj
eqfuin dk fuokZg vlEHko izrhr gksus yxkA eqfu eqnzk esa ohj’kklu dk m|ksr djus gsrq fofo/k ns’kksa esa fogkj fd;kA
O;kf/k dk izrhdkj u le>dj vkius vius nh{kk xq# ls
lYys[kuk lekf/k ej.k nsus dk fuosnu fd;kA vkids nh{kk L;k}kn fl)kUr ds izfr"Bkid
xq# nh/kZn’khZ] /khj&ohj] lkglh vkSj fo}ku FksA os oqf)eku
fufeÙkKkuh Hkh Fks] mUgksaus vius fufeÙkKku ls ;g tkuk fd tSu okM~e; esa ;qxiz/kku vkpk;Z leUrHknz Lokeh
leUrHknz ls ftu’kkluks)kj gksus okyk gSA vr% mUgksaus izFke laLd`r dfo vkSj izFke Lrqfrdkj] iw.kZ rstLoh fo}ku]
lYys[kuk lekf/k dh vkKk u nsdj eqfu nh{kk NksM+dj jksx izHkko’kkyh nk’kZfud egkokfn fotsrk vkSj dfo os/kk ds :i
’keu dk mik; djus dh vkKk nh vkSj dgk fd jksx ’keu esa Lej.k fd;s x;s gSaA vkius HkLed O;kf/k jksx dh voLFkk
ds mijkUr iqu% eqfu nh{kk xzg.k dj ysaA O;kf/k dh izcyrk esa Hkh viuh izfrHkk dk fo’ks"k mi;ksx dj fofHké /keZ&n’kZuksa
leUrHknz th dh foo’krk FkhA ,oa mudh ijEijkvksa o ewyxzUFkksa dks fudVrk ls tkuk vkSj
le>kA vkids le; esa v’o?kks"k] ek=psV] ukxktqZu] xkSre]
vr% vkius xq# vkKkuqlkj jksxksipkj gsrq ukXU; tSfeuh vkfn vusd Økafrdkjh nk’kZfud fo}kuksa dk vkfoHkkZo
in dks NksM+dj] laU;klh cu x;sA bl in dk ifjR;kx djus gqvk gSA ftUgksaus [k.Mu vkSj e.Mu dj ’kkL=kFkZ fd;kA
ij mUgsa tks d"V vkSj [ksn gqvk] og opu vxkspj gSaA fdUrq vl}kn] ’kk’orokn] mPNsnokn] v}Srokn] }Srokn]
vUrjax esa jRu=; ds izfr vxk/k v[k.M J)k vkLFkk FkhA voäO;okn vkSj oäRookn bu ijLij fojks/kh oknksa dks ysdj
eqfu thou ls mUgsa cgqr vuqjkx Fkk] nq%[k gksuk LoHkkfod rÙo dh ppkZ gksrh Fkh vkSj mudk fofHk= dksfV;ksa ls fopkj
gSA fQj Hkh xq# vkKk dk ikyu djrs gq,] laU;klh cu vusd fd;k tkrk FkkA vkpk;Z leUrHknz us lkjLor vkpkj
txgksa ij fopj.k fd;kA fopj.k djrs gq;s vki okjk.klh O;oLFkkid ds :i esa tSu /keZ vkSj laLd`fr dks lqO;ofLFkr
uxj igqWapsA tgkWa jktk f’kodksfV ds Hkhefyax uked f’koky; rks fd;k gh gS lkFk gh viuh vkLFkk vkSj izfrHkk ds cy ij
esa tkdj jktk dks vk’khokZn fn;kA bl f’koky; esa tks Hkksx bldh mÙkqax /otk irkdk dks Hkh Qgjk;k gSA vius oSnq"; ls
yxrk Fkk] mlls vkidh HkLed O;kf/k jksx dk ’keu gks nk’kZfud xzUFkksa dk iz.k;u dj oknh cudj fofHk= oknksa dh
x;kA jktk us f’kofiaMh dks iz.kke djus dk vkxzg fd;k] rks leh{kk djrs gq, vusdkUrokn&L;k}kn fl)kUr dh izfr"Bk dh
vkius milxZ le>dj prqfoZa’kfr rhFkZadjksa dh Lrqfr vFkkZr~
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gSA vki ,sls izoh.k okXeh ,oa ’kkL=kFkhZ egkjFkh Fks ftudk FksA vkpk;Z ujsUnzlsu us vius xzUFk fl)kUrlkj laxzg esa
vusd LFkkuksa ij fofHk= /kekZuq;kf;;ksa ls okn gqvkA fy[kk gS fd & leUrHknz dk funksZ"k izopu izkf.k;ksa ds fy,
fgLVªh vkWQ duMht fyVjspj ds vuqlkj & foØe dh ,slk gh nqyZHk gS] tSlk fd euq";Ro dk ikukA vkpk;Z leUrHknz
izkjfEHkd lfn;ksa esa pqukSrh nsus vkSj Lohdkj djus dk izpyu us viuh d`fr;ksa esa rqyukRed :i ls fofo/k i{kksa dk cM+h
fjokt½ izpfyr FkkA phuh ;k=h Qkfg;ku ¼bZ-400½ us fy[kk gh izcyrk ds lkFk foospu fd;k gSA vkius viuh vykSfdd
Hkh gS & ml le; ;g nLrwj Fkk fd uxj esa fdlh lkoZtfud izfrHkk }kjk rkRdkfyd Kku vkSj foKku ds izk;% leLr
LFkku ij ,d uxkMk j[kk tkrk Fkk vkSj tks dksbZ fo}ku fo"k;ksa dks vkRelkr dj fy;k FkkA vki ,sls ;qx laLFkkid
vius er dk izpkj djuk pkgrk Fkk] ’kkL=kFkZ ds ek/;e ls gSa fd ftUgksaus tSu fo|k ds {ks= esa ,d u;k vkyksd fodh.kZ
viuh ;ksX;rk dk ifjp; nsus dh bPNk j[krk Fkk] rks og fd;k gSA
ml uxkMs ij pksV ekjdj lcdks ;g lwpuk nsrk FkkA vkpk;Z
leUrHknz us Hkh yksd fgr dh Hkkouk ls lEiw.kZ Hkkjro"kZ esa xq.kxkSjo fo’ks"k.kksa ls vyad`r
ifjHkze.k djrs gq, vusd LFkkuksa dks Hksjh&rkMu lwpuk }kjk
okn dk fo"k; cuk;kA vkpk;Z leUrHknz /keZ] U;k;] O;kdj.k] lkfgR;
Jo.kcsyxksyk ds f’kykys[k esa Li"V vafdr gS fd & T;ksfr"k] vk;qosZn] ea= rdZNUn] vyadkj dkO; dks"kkfn lHkh
vkpk;Z leUrHknz us djgkVd igqWapus ds iwoZ ikVyhiq=] ekyok] fo|kvksa esa fu".kkr gksus ds lkFk&lkFk gh okn&dyk esa vR;Ur
flU/kq] BDd ¼iatkc½ ns’k] dkaphiqj] oSfn’k esa iz/kku :i ls iVq FksA cM+s&cM+s fo}kuksa dks ’kkL=kFkZ esa vkius ijkLr fd;k
fopj.k dj okn dh Hksjh ctkbZ Fkh vkSj fdlh us Hkh budk FkkA ,sls vR;Ur izfrHkk’kkyh Lo≤ vkSj ij≤ ds Kkrk
fojks/k ugha fd;k FkkA4 vkids opu L;k}kn U;k; dh rqyuk gksus ds dkj.k gh lHkh mÙkjorhZ tSukpk;ksZa us vkids izfr
esa uis&rqys gq, rF; iw.kZ gksrs Fks] ftUgsa lqudj yksx eqX/k gks viuh vikj J)k O;ä dh gS vkSj fou; okD; iq"i vfiZr
tkrs FksA Jh vftrlsu vkpk;Z us vyadkj fparkef.k uked fd;s gSaA vkpk;Z leUrHknz esa vusd mÙkeksÙke xq.k fo|eku
xzUFk esa vkids okn dkS’ky ds lEcU/k esa fy[kk gS fd & FksA vkids vlk/kkj.k O;fäRo dh xq.kxkSjo iz’kalk ijorhZ
dqoknhtu izk;% viuh fL=;ksa ds lkeus rks viuh cgknqjh vkpk;ksZa loZ Jh fo|kuan Lokeh] vdyadnso] ftulsu]
dh Mhxsa gkWadk djrs Fks] fdUrq tc vkpk;Z leUrHknz ls mudk vftrlsu] okfnjkt lwfj] oknhHkflag lwfj] olquanh vkfn us
vkeuk&lkeuk gksrk Fkk] rks os vR;Ur fouez vkSj e`nqHkk"kh eqä daB ls dh gS rFkk vkidks HkO;Sdyksd u;u]
cu tkrs Fks] uhpk eq[k dj vaxwBs ls i`Foh dqnsjk djrs Fks rFkk lqrdZ’kkL=ke`r] lkjlkxj] ojxq.kky;] egkdoh’oj] lE;XKku
fdadrZO;ew<+ gksdj muls j{kk djus dh xqgkj djus yxrs FksA ewfrZ vkfn fo’ks"k.kksa ls vyadr` fd;k gSA HkxofTtulsukpk;Z
,l- ,l- jkeLokeh vk;axj us LVsMht bu lkmFk bfUM;u us vkfniqjk.k esa bUgsa dfo czãk dgdj ueLdkj djrs gq;s
tSfuTe uked iqLrd esa fy[kk gS fd & ;g Li"V gS fd fy[kk gS & dfo;ksa ds czãLo:i leUrHknz dks ueLdkj gks]
leUrHknz ,d cgqr cM+s /keZ izpkjd Fks ftUgksaus tSu fl)kUrksa ftudh ok.kh :ih otzikr }kjk dqer :ih ioZr fufHké
vkSj tSu vkpkjksa dks nwj&nwj rd foLrkj ds lkFk QSykus dk [k.M&[k.M½ gks tkrs gSaA leUrHknz dk ;’k dfo;ksa] xedksa]
m|ksx fd;k gS vkSj tgkWa dgha os x;s mUgsa nwljs lEiznk;ksa dh okfn;ksa rFkk okfXe;ksa ds eLrd ij pwM+kef.k ds ln`’k ’kksHkk
vksj ls fdlh Hkh fojks/k dk lkeuk ugha djuk iM+kA vr,o dks izkIr gksrk gSA6 vr,o vkpk;Z ftulsu us leUrHknz dks
Lokeh leUrHknz ,sls lk/kd vkpk;Z Fks ftUgksaus dsoy viuk dfoRo] xedRo] okfnRo vkSj okfXeRo vkfn xq.kksa dk /kuh
m)kj gh ugha fd;k oju~ ,dkUrokfn;ksa dh ladh.kZ ekufldrk crk;k vFkkZr~ ;s pkj xq.k muesa ije izd"kZ dks izkIr FksA
dh mxzrk dks f’kfFky dj leUo; ,oa loksZn; dk lUns’k fn;k vkpk;Z vdyadnso us vkidks HkO; thoksa ds fy, vf}rh; us=
vkSj fo’o ca/kqRo dh ’kqHkdkeuk dhA blhfy, vkpk;Z fo|kuan ,oa L;k}kn ekxZ dk fo’ks"k.k fn;kA
th us vkidks ^ifjos{k.k* ijh{kk us= ls lcdks ns[kus okyk
fy[kk gSA5 vki vU;ksa dks ijh{kk iz/kkuh cuus dk mins’k nsrs
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dfo oknhHkflag lwfj us vius xzUFk ^x| fpUrkef.k* laLd`r ds vk| tSu lw=dkj gksus dk xkSjo tSls rÙokFkZlw= ds
esa vkpk;Z leUrHknz Lokeh dh rkfdZd izfrHkk ,oa ’kkL=kFkZ jpf;rk vkpk;Z izoj mekLokeh th dks izkIr gS] ,sls gh L;k}kn
djus dh {kerk dh lqUnj O;atuk djrs gq,] mUgsa ljLorh dh fo|k ds lathod vkSj izk.k izfr"Bkid ijh{kk iz/kkuh] rkfdZd
LoPNUn fogkj Hkwfe cryk;k gSA mUgksaus fy[kk gS fd & muds pwM+kef.k Jher~ leUrHknzkpk;Z dks vk| tSu Lrqfrdkj gksus
opu :ih otzfuikr ls izfri{kh fl)kUr:i ioZrksa dh pksfV;kWa dk xkSjo izkIr gSA vkius ckSf)d fpUru vkSj ekuo thou
[k.M&[k.M gks xbZ FkhaA vFkkZr~ leUrHknz ds le{k cM+s&cM+s dh izksTToy dYiuk dks Lrqfr dkO; ds :i esa gh ewfrZeÙkk
izfri{kh fl)kUrksa dk egÙo lekIr gks tkrk Fkk vkSj izfroknh iznku dh gSA
ekSu gksdj muds le{k LrC/k jg tkrs FksA7 Kkuk.kZo ds
jpf;rk Jh ’kqHkpUnzkpk;Z us lxZ ,d ds ’yksd pkSng esa vkids }kjk l`ftr lkfgR; esa voxkgu djus ij
leUrHnz dks ^dohUnz HkkLoku* fo’ks"k.k ds lkFk Lej.k djrs izrhr gksrk gS fd ;g ekuork dh eqMsaj ij nsnhIeku psruk
gq, mUgsa Js"B doh’oj dgk gSA ik.Mo iqjk.k ds jpf;rk us dk fpjkx gSa] yksdeaxy dh iznhIr ykS gaS] Hkfä dk lq/kk
^Hkkjr Hkw"k.k* fo’ks"k.k ls lEcksf/kr fd;k gSA vyadkj dy’k gaS] laLd`fr vkSj lE;rk dk vkbZuk gSa] lekt lq/kkj
fpUrkef.k esa dfo dqatj] eqfuoa| vkSj tukuUnkfn fo’ks"k.kksa dk iFk n’kZu gSa] thou fodkl dk vfHkys[k gaS] ifj"d`r
}kjk vfHkfgr fd;k gSA bruk gh ugha nf{k.k Hkkjr esa miyC/k fopkj/kkjkvksa dh lEink gSa vkSj O;fäRo fuekZ.k gsrq thou ds
vusd f’kykys[kksa esa budh ;’kksxkFkk dk mYys[k feyrk gSA fy;s ikFks; gSaA vkids }kjk l`ftr 11 d`fr;ksa dk mYys[k
Jo.kcsyxksyk ds vfHkys[kksa esa rks bUgsa ftu’kklu ds iz.ksrk feyrk gSA ftuesa ls & 1& c`gn~ Lo;aHkw Lrks= vijuke
vkSj HknzewfrZ dgk x;k gSA bl izdkj vusd f’kykys[kksa vkSj prqfoZa’kfr Lrou 2& Lrqfr fo|k ftu’krd 3& nsokxe
lkfgR;dkjksa us vius xzUFkksa esa vkpk;Z leUrHknz Lokeh th ds Lrks= vijuke vkIr ehekalk 4& ;qDR;uq’kklu vijuke
fofHk= xq.kksa vkSj fo’ks"krkvksa dk mYys[k fd;k gSA ijekRe Lrks= 5& jRudj.M JkodkpkjA ;s ikWap d`fr;kWa miyC/k
vusd mYys[kksa esa vkidks Jqrdsoyh _f)/kkjh rFkk gSaA buds vfrfjä vuqiyC/k jpukvksa esa 6& thoflf)
Hkkoh rhFkZadj rd cryk;k x;k gSA8 vki rhFkZadj Hkxoku 7& rÙokuq’kklu 8& izkd`r O;kdj.k 9& izek.k inkFkZ 10& deZ
egkohj ds loksZn; rhFkZ ds Hkh izeq[k izoäk FksA Lrks= dkO; izkHk`r Vhdk vkSj 11& xU/kgfLr egkHkk"; dk mYys[k feyrk
dk lw=ikr vkils gh ekuk tkrk gSA tSu ijEijk esa rdZ ;qx gSA vkpk;Z ftulsu us gfjoa’kiqjk.k esa thoflf) jpuk dk
;k U;k; dh fopkj.kk dh uhao Mkyus okys vkpk;Z leUrHknz rFkk ukVddkj gfLrey us foØkUr dkSjoe~ uked xzUFk esa
leFkZ vkpk;Z gq, ftudh mfä;ksa dks fodflr dj vkpk;Z xU/k gfLr egkHkk"; dk mYys[k fd;k gSA
vdyadnso vkSj vkpk;Z fo|kuUn tSls vius ;qx ds mn~HkV
vkpk;ksZa us tSu U;k; dh ijEijk dk iks"k.k vkSj lEc/kZu
fd;k] lkFk gh vkidh Lrqfr ijd nk’kZfud d`fr;ksa ij okfrZd
vkpk;Z Jh leUrHknz Lokeh
vkSj fuo`fÙk tSlh Vhdk;sa fyfic) dj ekSfyd xzUFkksa ds iz.ksrk
gksus dk ;’k izkIr fd;kA ijorhZ vusd izfrHkk iqat vkpk;ksZa
dk d`frÙo
us xkxj esa lkxj dh rjg miyC/k vU; leLr d`fr;ksa ij
Hkh O;k[;k;sa fy[kdj muds fpUru dks lqjf{kr gh ugha j[kk
(भाग २)
vfirq vius dks d`rkFkZ le>kA ohrjkxh rhFkZadjksa dh Lrqfr;ksa esa nk’kZfud ekU;rkvksa
dk lekos’k vkidh vlk/kkj.k izfrHkk dk |ksrd gSA MkWa-
egku lkfgR; ltZd usehpUnz ’kkL=h T;ksfr"kkpk;Z fy[krs gSa fd & leUrHknz ,sls
lkjLorkpk;Z gSa ftUgksaus dqUndqUnkfn vkpk;ksZa ds opuksa dks
vkpk;Z leUrHknz th us tgkWa ,d vksj tu lkekU;
xzg.k dj loZK dh ok.kh dks ,d u;s :i esa izLrqr fd;k
dks /keZ dk ekxZ cryk;k ogha nwljh vksj vkids }kjk l`ftr
gSA9 MkWa- oklqnso’kj.k vxzoky us lehphu /keZ’kkL= jRudj.M
lkfgR; Hkh lekt dks izdk’k iaqt cudj izdkf’kr dj jgk gSA
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Jkodkpkj dh Hkwfedk esa fy[kk gS & ^Lokeh leUrHknz us viuh fof’k"V izfrHkk dk ifjp; fn;k gSA ia- Jh tqxyfd’kksj
viuh fo’o yksdksidkjh ok.kh ls u dsoy tSu ekxZ dks lc eq[rkj us bl Lrks= xzUFk ij fgUnh vuqokn ds lkFk Hkk"; Hkh
vksj ls dY;k.kdkjh cukus dk iz;Ru fd;k gS ¼tSua oR;a fy[kkA
leUrHknze~ Hkon~ Hknza leUrku~ eqgq%½ fdUrq ’kq) ekuoh n`f"V
ls Hkh mUgksaus euq"; dks uSfrd /kjkry ij izfrf"Br djus ds 2 & Lrqfr fo|k ftu’krd
fy, cqf)oknh n`f"Vdks.k viuk;kA muds bl n`f"Vdks.k esa ekuo vkpk;Z leUrHknz dh bl jpuk esa izFke eaxy i|
ek= dh :fp gks ldrh gSA leUrHknz dh n`f"V esa eu dh esa iz;qä gq;s ^Lrqfr fo|ka izlk/k;s* izfrKk okD; vkSj pkSFks
lk/kuk] ân; dk ifjorZu lPph lk/kuk gSA cká vkpkj rks oy; esa ftu Lrqfr ’kre~ ’kCn ls bl xzUFk dk uke Lrqfr
vkMEcjksa ls Hkjs Hkh gks ldrs gSaA mudh xtZuk gS fd eksgh fo|k ftu’krde~ Kkr gksrk gSA vkpk;Z leUrHknz us n’kZu
eqfu ls fueksZgh x`gLFk Js"B gSA fdlh us pkgs pk.Mky ;ksfu xq.kksa ls ;qä Lrks= Hkfä ijd jpuk dj xhof.kok.kh dks ’krd
esa Hkh ’kjhj /kkj.k fd;k gks fdUrq ;fn mlesa lE;d~n’kZu dk ijEijk dh uohu fo|k ls eafMr fd;k gSA bl xzUFk esa vkfn
mn; gks x;k gS rks ,sls O;fä dks nsork Hkh nso leku ekurs ls var rd fp= dkO; vkSj ca/k jpuk dk 116 i|ksa esa viwoZ
gSaA ,slk O;fä HkLe ls <Wads gq, fdUrq vUrj esa ngdrs gq, dkS’ky lekfgr gSA bu i|ksa esa Lrks= iz.kkyh ls rÙo Kku
vaxkjs dh rjg gksrk gSA Li"V gS fd cgqeq[kh izfrHkk ds /kuh Hkjk x;k gS vkSj dfBu ls dfBu rkfÙod foospuksa dks ;ksX;
vkpk;Z leUrHknz us nk’kZfud fl)kUrksa] n’kZuksa] /keksZa vFkok LFkku nsrs gq;s pkSchl rhFkZadjksa dh fp= ca/kksa esa Lrqfr dh xbZz
erksa dk lUrqyu iwoZd ijh{k.k dj ;FkkFkZ oLrq fLFkfr:i lR; gSA bl Lrks= ls ’krd dkO; dk Hkh Jh x.ks’k gksrk gSA izkphu
dks O;ä djus esa iw.kZ lQyrk izkIr dh gSA vkids }kjk l`ftr le; esa 100 i|ksa esa fdlh ,d fo"k; ls lEc) jpuk fy[kuk
miyC/k d`fr;ksa dk fooj.k fuEukafdr gS & xkSjo dh ckr ekuh tkrh FkhA bl xzUFk dk mn~ns’; izFke
i| ls gh lwfpr gks tkrk gSA10
1 & c`gn~ Lo;aHkw Lrks=
;g xzUFk leUrHknz Hkkjrh dk izeq[k vax gSA bl 3 & nsokxe Lrks=
Lrks= dk igyk ’kCn Lo;aHkw gksus ls bldk uke Lo;aHkw Lrks= ;g xzUFk nsokxe ’kCn ls izkjEHk gksus ds dkj.k nsokxe
iM+k gSA rsjg izdkj ds fofo/k NUnksa esa fuc) c`"kHkkfn Lrks= dgykrk gSA ftldk vijuke vkIr ehekalk gSA izLrqr
prqfoZa’kfr rhFkZadjksa dh Øe’k% Lrqfr 143 i|ksa esa dykRed Lrks= esa rdZ vkSj vkxe ijEijk dh dlkSVh ij vkIr loZKnso
vyad`r ,oa ân; otZd ’kSyh esa izLrqr dh xbZ gSA fofo/k dh rkfdZd ehekalk vR;Ur lgtHkko ls dh xbZ gSA ;g Lrks=
vyadkjksa dk iz;ksx djrs gq, vkpk;Z leUrHknz dh dkO; izfrHkk 114 vuq"Vqi Nanksa esa vius izes; dks izLQqfVr djrk gS] ftls
us n’kZu tSls uhjl fo"k; dks Hkh bl uSiq.; ds lkFk izLrqr fo"k; fu:i.kk dh n`f"V ls 10 ifjPNsnksa esa foHkkftr fd;k
fd;k gS fd ;g nk’kZfud dkO; ljlrk vkSj lejlrk dk x;k gSA bl ehekalk esa loZKkHkkooknh ehekald] HkkoSdoknh
lkxj cu x;k gSA bl Lrks= dks leUrHknz Lrks= Hkh dgrs lka[;] ,dkUr i;kZ;oknh ckS) ,oa loZFkk mHk;oknh oS’ksf"kd
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काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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१. जीव िस ी
२. त वानशु ासन
आचाय सम तभ वामी जी
३. ाकृ त याकरण
४. माण पदाथ
५. कम ाभृत टीका और
६. गंधह ती महाका य.
आचाय सम तभ वामी ने त वाथ सू के
मगं लाचरण और दो सू पर आ मीमांसा िलखी है जो देवागम
तो के नाम से भी िस है. उस पर अनेको टीकाएँ अ य
आचाय ने िलखी है
आचाय ी ारा रिचत वयंभू पाठ को आज
आचायगण- ावक गण भि से पढ़ते ह और अपना आ म आचाय सम तभ ाचाय का जीवन-प रचय भी
क याण कर रहे ह. वा तव म अ ान जैसा ही है. इस किलकाल म जैन और
परम पू य मिु नगण से हमने सुना है िक आचाय गण जैने र के म य सव भगवान क सव ता का िवशद िववेचन
और उनक परंपरा के साधगु ण सबु ह, दोपहर और सांयकाल करने के कारण किलकाल-सव नाम से सिु व यात तथा जैन
तीन सामाियक काल म वयंभू पाठ को िनयिमत प से भि दशन के सभी प को अपनी लेखनी से समृ करने वाले परम
से पढ़ते ह. पू य सम तभ वामीजी ने अपने िवषय म कही भी कुछ नही
इस कार अनेक ंथ चिलत हए जो हम आज िलखा है,वह वा तव म नग य- ाय ही है.
िजनवाणी के प म ा ह आचाय ी सम तभ वामी आप कद ब वश ं के ि य राजकुमार थे. आपके
कंु दकंु द वामी के बाद महान आचाय म थे िज ह ने याकरण, बचपन का नाम शांित वमा था. आपका ज म कावेरी नदी के
सािह य, याय दशन के प म अपने आप को तपाया और हम िकनारे ि थत दि ण भारत के उरगपुर नामक नगर म िव म
सभी को िजनवाणी के प म फल दे गए िजसका उपयोग हम संवत ि तीय शता दी के पवू ाध म हआ था. आपने अ पवय
ा हो रहा है और हम साधगु ण, ावक आ मसात कर अपने म ही जैन िदग बर मिु न दी ा धारण क थी. िदगबं र जैन साधु
जीवन को ध य बना रहे ह. होकर अपने घोर तप रण िकया तथा अगाध ान भी ा
ऐसे महान आचाय सम तभ वामी को मेरा कोिट- िकया. आप जैनिस ांत के तल पश िव ान होने के साथ ही
कोिट नमन, नमो त.ु तक, याय, याकरण, छंद, अलक ं ार, का य इ यादी िवषय के
भी अि तीय िव ान थे. आपने अपनी असामा य वादशि के
ी उदय भान जैन कारण अनेक थान पर िवहार कर अ ानीजन का मद न
“बडजा या” िकया था. एक थान पर आ मिव ास के साथ आप वयं
रा ीय महामं ी िलखते ह- "वादाथ िवचरा यहं नरपतेशादल-िव ू िडतम"- हे
अिखल भारतवष य राजन! वाद के िलए म शादल/ ू शेर के समान िवहार करता ह.ं
जैन प कार महासंघ इसी कार अ य भी आप िलखते ह-" राजन! य यित शि :,
जयपरु . स वदतु परु तो जैन िन थवादी-हे राजन! मझु े जैन िन थवादी
के सामने िजसक शि हो, वह बोले!!"
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इस कार आपने अनेक थान पर वाद िववाद के मा यम से 64 प म रिचत इसमे दाशिनक शैली म 'वीर िजन'
सव ता क पनु ित ा कर किल कालसव क उपािध को क तिु त क है.
साथक िकया. आप जैन याय ित ापक आचाय/ यायाचाय
ह. "आप सं कृ त सािह य के सव थम तुितकार ह." आपने वय भू- तो
तुित सािह य को ौढ़ता दान करने के साथ ही उसे अ यंत
गंभीर याय से भरा है. 143 प म रिचत इसम दाशिनक शैली ारा चौबीस
आपके ारा िलिखत सािह य म से आ मीमासं ा, तीथकर का गणु तवन है. चौबीस तीथकर का तवन शु
यु यनश ु ासन, वय भ-ू ोत, िजन तुित-शतक, र नकर ड- िकया, जब व आठव तीथकर च भु का तवन कर रहे थे
ावकाचार, ाकृ त याकरण, माण- पदाथ, कम ाभृत टीका तब च भ भगवान क मिू त कट हो गइ. तवन पणू हआ.
उपल ध है. इसके अित र अनपु ल ध थ म गधं -हि त यह तवन ‘ वयंभू तो ’ के नाम से िस है.
महाभा य चिलत है. इसम से ारंिभक पाँच थ का संि राजिवष जुगलिन सखु िकयो,राज याग भिव िशवपदिलयो|
प रचय इस कार है:- वयंबोध वयंभू भगवान,् वदं ू ं आिदनाथ गण
ु खान |।1।|
देवागम ोत (आ मीमांसा)
िजन तुित-शतक
114 का रकाओ ं म रिचत यह भगवान क तुित
करने के बहाने अनेकानेक िवपरीत मा यताओ ं का िनराकरण 116 प म िनब यह अलंका रक अपवू का य
कर अनतं धमा मा का व तु यव था का ितपादक दाशिनक रचना है. इसम भी चौबीस तीथकर क तिु त क गई है.
ंथ है. सव थम इस पहली का रका ारा ा िवभिू त के इसका एक नाम " तुित िव ा" भी है.
कारण िजन भगवान मिहमावान नही ह; यह बताते ह.
"देवागम - नभोयान चामरािद- िवभूतय:। र नकर ड- ावकाचार
मायािव विप य ते,नात वमिस नो महान।।1।। 150 प ारा इसम ावक धम क मु यता से
देव-आगम=देव का आना,नभोयान=आकाश म िवहार, स यकदशन, ान, चा र प स यग र न य का चरणानयु ोग
चामर-आिद िवभतू य:=चँवर आिद िवभिू तआँ,मायिवष=ु क शैली से िववेचन है.
मायािवओ ं म,अिप= भी, य ते=िदखाई देती ह,न= नही, स य दशन के चार अनुयोग का व प और मिहमा
अतः=इसिलए, वम=तुम/भगवानआप, अिस=हो, नः=हमारे
थमानयु ोग और चरणानयु ोग क अपे ा-
िलए,महान=बड़े.
अथात् हे भगवन!(आपके दशनािद के िलए) देवगण आते इन तीन के अवलबं न से जीव कम बधं से मु होकर
ह,(आपका)आकाश म िवहार होता है,(आप) चँवर आिद संसार पी कारावास क बेिड़य को भगं कर मो ा कर
िवभिू तओ/ं अ ाितहाय से सिहत ह;इस कारण आप मेरे सकता है।
करणानुयोग क अपे ा -
िलए महान नही ह; य िक ये सब िवशेषताएँ तो मायािवओ ं म
भी िदखाई देती ह. िम या व, स यि म या व, स य व कृ ित और
अनतं ानबु धं ी चतु क ( ोध, मान, माया, लोभ), इन सात
यु यनुशासन कृ ितय के उपशम, योपशम अथवा य से होने वाली ा
गणु क वाभािवक प रणीित को स य दशन कहते है.
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करणानयु ोग के स य दशन होने से शेष अनयु ोग म ितपािदत बड़े ही उ साह के साथ मिु नधम का पालन करते हए
स य दशन हो जाता है. वे जब ‘मणवु कह ली’ ाम म धम यान सिहत मिु न जीवन
यानुयोग क अपे ा - यतीत कर रहे थे, उस समय असाता वेदनीय कम के बल
सात त व , जीव, अजीव, आ व, बंध, संवर, िनजरा उदय से आपको ‘भ मक’ नाम का रोग हो गया था. मिु नचया
और मो एवं पाप पु य सिहत नव पदाथ के यथावत ांन म इस रोग का शमन होना असंभव जानकर आप अपने गु के
को स य दशन कहते है तथा इसी अनयु ोग के अतं गत अ या म पास पहँचे और उनसे रोग का हाल कहा तथा स लेखना का
थं म पर य से िभ न अपने आ म य क तीित को समय नह आया है और आप ारा वीरशासन काय के उ ार
स य दशन कहा है. क आशा है. अतः जहाँ पर िजस वेष म रहकर रोगशमन के
आचाय ी सम तभ वामी जी ितभाशाली यो य तृि भोजन ा हो वहाँ जाकर उसी वेष को धारण कर
आचाय , समथ िव ान एवं पू य महा माओ ं म आपका थान लो. रोग उपशा त होने पर िफर से जैनदी ा धारण करके सब
बहत ऊँचा है. आप सम तातभ थे - बाहर भीतर सब ओर से काय को स भाल लेना. गु क आ ा लेकर आपने िदग बर
भ प थे आप बहत बड़े योगी, यागी, तप वी एवं त व ानी वेष का याग िकया. कांची म मिलन वेषधारी िदग बर रहे,
थे. आप जैन धम एवं िस ांत के मम होने के साथ हे साथ ला बुस नगर म भ म रमाकर शरीर को ेत िकया, पु डो म
तक, याकरण, छ द, अलंकार और का यकोषािद थ म परू ी जाकर बौ िभ ु बने, दशपरु नगर म िम भोजन करने वाला
तरह िन णात थे. आपको ‘ वामी’ पद से िवशेष तौर पर स यासी बना, उधर राजा ने िशवमिू त को नम कार करने का
िवभिू षत िकया गया है. आ ह िकया. सम तभ किव थे. उ ह ने चौबीस तीथकर का
िपतृकुल क तरह सम तभ वामी के गु कुल का भी तवन शु िकया. जब वे आठव तीथकर च भु का तवन
कोई प लेख नह िमलता है, और न ही आपके दी ा गु के कर रहे थे, तब च भु भगवान क मिू त कट हो गई. तवन
नाम का ही पता चल पाया है. आप मल ू संघ के धान आचाय पणू हआ. यह तवन वयंभू तो के नाम से िस है.
थे. वणबेलगोल के कुछ िशलालेख से इतना पता चलता उस समय दि ण भारत म आपने उदय होकर जो अनेका त
है िक आप ी भ बाह तु के वली, उनके िश य च गु मिु न एवं यादवाद
् का डंका बजाया वह बहत ही मह व का है एवं
के वशं ज प नि द अपर नाम को डकु द मिु नराज उनके वशं ज िचर मरणीय है. आपको िजनशासन का णेता तक िलखा
उमा वाित क वश ं पर परा म हए थे. आपके प ात हए गया है. इस कार आपके पिव , बहमख ु ी ितभा-स प न
आचाय ने आपका मरण अ यंत स मानसचू क श दो मे जीवन का तथा सािह य-सृजन का जैन धम के चार- सार म
िकया है. वािदराजसरू ी यशोधर च र म आपको महान योगदान रहा है।
"का यमिणक का आरोहण" तथा वािदभिसंहसरू ी
ग िच तामणी म आपको "सर वती क व छंद िवहारभिू म ीमती क ित जैन
कहते ह. अनेक आचाय ने अनेक उपािधओ ं से स बोिधत
िद ली देशा य ा
िकया. आप अपने समय के एक महान धम चारक रहे ह नमो तु शासन सेवा सिमित
आपने जैन िस ातं और जैनाचरण का दरू -दरू तक िव तार के (रिज.), मुंबई
साथ फै लाने का यास िकया है आपका अ य सं दायवाल ने
भी कभी िवरोध नह िकया. आपके अिवरोध वतन का धान सच
ं ािलका
कारण आपके अतं ःकरण क शु ता चा र क िनमलता और नमो तु शासन सेवा सिमित
वाकपटुता है प पात से रिहत साधवु ाद से संयु होना आपक (रिज.) पाठशाला
वाणी क मु य िवशेषता है.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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ी ि यदशन जैन
नागपुर
*
गु भ
नमो तु शासन सेवा सिमित
(रिज.), मुंबई.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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लाचार इस
ं ान आचाय सम तभ सरू ी
ावक को देता है जो
धम का आधार
वह महान थं है
कभी सोचा भी नह था िक
र न करणडक ावकाचार
ऐसा भी समय आयेगा
बताया है िजसम
जब भगवान् तो मिं दर से आने को ह गे तैयार
धम का िव तार
पर तु इसं ान ही लाचार हो जायेगा.
र न य ही है े
यही है कलयगु शायद और है सब िम याचार
जब भगवान् के होते हए भी िजसक का रका म है
इसं ान िजन दशन से भी तु का पिव भडं ार
विं चत हो जायेगा. स यक दशन ही है महान
होता िजससे ावक का उ ार
एक बात तो समझ आ गयी
बताये गये है िजसम
िक वो पार जाएगा
र न य के कार
जो अपने भाव म और अपने मन-मिं दर म
दशन, ान,च र ही है
भगवान् को िवराजमान कर जायेगा.
सयं म जीवन का सार
कभी छोड़ना मत मौका बताया है िजसम
आगे िमले तो भु भि का, िजन धम का चार
पता नह कौनसा कम और कहा करो सभी
आगे उदय म आएगा भावना अगं को वीकार
ऐसे स चे देव,शा , गु का
चलो इस बार तो भगवान् ने
बताता है जो आचार
करोना ारा परी ा ले ली ह,
पढो सभी महान ंथ को
देखते ह महावीर जयंती
और करो सभी उ ार
भाव से कौन कौन मनायेगा.
धम से समाधी के व प को
बताने वाले
आचाय समतं भ सु र को
बंगलु हे नुर मंिदर जी क
कोिट नम कार
पाठशाला एवं ब च का ी सारांश जै न
अिधकृत सपं क सू :- इदं ौर
ीमती आरती अिभषेक जैन, गु भ
बंगलु . नमो तु शासन सेवा सिमित
(रिज.), मुंबई.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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परम पू य अ या म योगी, आगम उपदे ा, चया राजनीित, कूटनीित, यापार, नीित, असी-मसी-कृ िष, िवधा-
िशरोमिण अ या म योगी, ुत संवधक, वा याय वािण य, कलािद जो भी िश ाएं है वे परमाथ से पणू पृथक है.
भावक आचायर न १०८ ी िवशु सागर जी एकमा अ या म ही परमाथ िवधा है. जीवन का अतं अ या म
महाराज के आगम च ओ िवधा से होना चािहए. लोक क कोई भी व तु पर लोक म साथ
ु ं से, त व का ान
नह जाएगी, यह वु स य है. हाय-हाय कर यि पर व तु को
करते हए िजनवाणी जगत क याणी का रसपान
सं िहत कर सकता है पर थािय व नह दे सकता है. वह मा
करते हए चंडी ाम (िबहार) के वचन से जाने वु ायक भाव, व- , िनज व तु को ही व के साथ रख
हमारा साथ कौन देगा ? सकता है. अ य के अजन म जो पप व कर कमबंध िकया है
उसे ही पर भव म साथ ले जायेगा. एक व भाव ही मा हमारा
“अ या म क िश ा है. दसू रा अ य कोई पर-भाव हमारानह ह. इस वु स य को
भल ू जाना यही तो अ ान भाव ह अनादी का. इस अ ान भाव
को यागकर, वा म िसि हेतु दया-दम- याग, समािध का
ही सव प र है” आ य ा करो. एक मा आ म धम ही साथ देगा. प ,
पंथ , स दाय का राग, अ य स दाय के ित षे -बुि तो
उ प न करा सकता ह, पर तु आ म-त व के स य के पास नह
ले जा पाएगा. इसिलए अ या म -िवधा अमृत का पान कर
एवं यथ के षे -बिु के पकं से बचो.
- ेषक : ी सौरभ जैन.
ी सौरभ जैन
िविदशा (म. .)
चार- सार मं ी
नमो तु शासन सेवा सिमित
(रिज.), मुंबई
संपणू िश ाओ ं म अ या म िश ा सव प र ह. िज ह
अ या म िश ा ा नह हई है वे इह-लोक अथात् उभय लोक
म दखु को ा करने वाले ह. अशािं त, लेश, इ या, डाह,
असयू ा, मा सय से अपने को वह कभी र नह कर पाएगा.
जगती पर अ या म से िभ न जो भी िश ाएं ह, वे मा भौितक
इिं य सुख क ही पोषक है, उनका मा एक ही उ े य है िक
िकसी भी कार से हमारे इिं य सुख क पूित होना चािहए.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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Dear Friends,
A Letter to Friends Jai Jinendra.
I cannot express my joy as we have received
the live photographs of Paathshaalaa, from Hannur
Temple, Banglore. Also, drawings from all over the
world, and vocal delivery of Aarti,Samadhi Maran
Paath, Moral Story of Mardav Dharm, and over all
composed and lyrics by Mast. Nishit Jain of
Badlapur, India. The list doesnot end here, there are
so many entries if all are published it will be more
than 100 pages of My little champs’ activities.
Dear friends you all are aware that due to
the activities of “EKENDRIY JEEV” CORONA VIRUS,
the entire world is suffering. The reason behind it is
LIVE PHOTOS OF PAATHSHAALAA claimed as use of NON-VEGETARIAN FOOD”. The
cost of this unusual human activities are being paid
HENNUR TEMPLE-BANGLURU. by not only humans but “TIRYANCH”/animals
ALSO. This itself proves that even after more than
2500 years of so called developed life style of
humans, the statement of our Tirthankar Bhagwaan
Shri Mahavir Swami is up-to-date. The teaching
and preachings are utmost priorities now-a-days.
To fight such a situation, there is ample activities as
per our JAINISM. For example, meditation/DHYAAN
is also ISOLATION not only from people but from
world Too!, what is being stated by Science.
KARUNA/DAYA is MERCY only hence entries of LIVE
AND LET LIVE are specifically published. Whatever
is the need of time is already explained and
established by our TIRTHANKARS followed by our
various AACHARYAS and Muni Maharaj from time
to time. Your teachers in the Paathshaalaa had
already explained you all about it. It is a very ideal
time to learn JAINISM, RECITE VARIOUS BHAJANS,
STROTRA, BHAVANA, STUTI AND THE BEST PART IS
YOU CAN ASK YOUR PARENTS TO SIT ALOGSIDE
WITH YOU AND NARRATE AND EXPLAIN THE
VIVID GRANTHS AND SHASTRAS. Such opportunity
will never come again so take the full advantage of
it. Again we all request you to remain inside the
Now on-line Baal-Paathshala from 24-04-2020 home and obey the parents and save yourselves
with help of Namostu Shasan Seva Samiti ®, along with all near and dear ones in the world. So
Mumbai and Jin Shasan Seva Samiti, B’lore. take care. WE MUST FEEL PROUDE TO BE JAIN.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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One good news is also received. Our small Muniraaj namely soon we are going to start a new
Champions from the Hitech city of Bangluru had series in which you will learn a lot about Jainism.
already started on-line Pathshala in the present As was mentioned earlier too! Again I am
scene of all Lock down with the help of P.K. Jain repeating here, your vocal delivery on any STUTI,
‘Pradeep’ President of Namostu Shasan Seva SHLOKA, GATHA, and STOTRA etc. will make you to
Samiti®, Mumbai and Jin Shasan Seva Samiti, win Award. Also your theme drawings and articles
Bangluru, Jointly with co-ordinator as Shravika Arti on any of the subject of your choice within JAINISM
ji and Ruby ji. The Online Aadinath Vidhan was also will be OK. So still lot of time is there with you. Start
done on the Akshay Trutiya auspicious day. now and send your entries on or before 15th May 2020.
Due to Corona Virus, Hyderabad Cyber city You learn by heart then your name will also be
is yet to start its primary functions. They are in race published in the next issue of this Magzine i.e.
too!. Swati Didi is running free School for the small “NAMOSTU CHINTAN.”
children of labours and she will start Pathshala very You can write even your opinions about the
shortly. We are commited to provide the necessary published articles which you had read in the various
materials to start Pathshala. So I hope, as your issues of this magazine. It will be published along
counts is increasing every where, there may be a with your name and photograph too!
special magazine for kids like you. And I wish you You enthuasism and attitude to follow up
kids will be able to prepare articals and details as series, in this magazine under the heading “INFLUX
per your choice. In future some of you may be little of Sin IS ON” had created big impact on the parents
champ reporters. So you should start thinking in that too! From next issue, we will have some different
line be in touch with your friends to become subject to learn. The situation in the world is very
reporter. Explain and gather more informations critical and we have lot of time to learn so many
from your friends and from neighbourhoods. Hence, things at home. So be cautious and not panic. Obey
you should have the practise of writing and what your parents say and do more chanting of
managing the magazine. NAMOKAAR MANTRA etc. Ask your parents to
As was informed, in the last issue, how to narrate the Stories/tales of Jainism as per available
draw The Swastik and what the motives behind each time. So you know most of the the rituals according
and every action are. In this issue we will try to learn to Jainism, by virtue of your parents which they are
what is Pooja? And who are Pujya? Once we know following. We also know that you must be enjoying
about the Pooja, we will learn How Pooja is your PAATHSHAALAA too! Keep on writing, who
performed and with what and the science/reasons knows, you will be next winner and your name will
behind it. So, in the next issue we will let you know be published in the Magazine.
about the preparation of Asht Dravya and Puja thali So Good luck to you all and best wishes.
too. This will enable you to perform Puja in the Yours Friend
temple at your own. P. K. JAIN ‘PRADEEP’
We all know that you are very capable, EDITOR-NAMOSTU
eager and excited to understand the fundamentals CHINTAN
of Jainism. It’s a very good sign. Keep it up. WHATSAPP NO.
It’s a very good habit of expressing yourself +91 9324358035
thro’ mails or by Phone calls. Daily new members E-MAIL:
are increasing. We are trying to deliver the Best as pkjainwater@gmail.com
per your wishes. From this issue, you will be able to namostushasangh@gmail.com
know about our religions by very small lessions Website :
specially designed for you children by Yamal www.vishuddhasagar.com
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DRAWINGS BY LITTLE CHAMPS:- Live and Let Live
Mast. Avyan Chaturvedi,
Age : 6 years,
s/o. Nikita Sumit
Chaturvedi
Sydney,
Australia.
Dev-Darshan Stuti -
“Prabhu Patit Paavan”
by
Kum. Yukti and Dishi Jain,
11yrs, 7yrs.
d/o. Bharati Bhupendra Jain.
Kum. Yashvi Jain,8 yrs, d/o. Ruchi shaleen Jain, B’lore.
महकते सतारे और गु जी
च. सोऽहं पाट ल जैन
s/o.बबीता बबन पाट ल
दोणगाँव,सोलापरु
महारा .
Shri Bhagwan Mahaveer-ka-pahada by Kum.Avani Jain,
7 yrs., d/o Lavika Manish Jain. B’lore.
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“24 tirthankars’ name
and “Bhaktamar Stotra- 5 Shlok”
sign (Chinh)” by
by Mast. Aarav Jain
Kum. Sihi Jain Age: 9 years
d/o Pooja Vijay kumar s/o. Nidhi Kapil jain
(Bharadwaja) Jain B’lore.
“Bhaktamar Stotra”
(10 shaloka) “Bhaktamar Stotra- 2 Shlok”
by by
Kum. Saanvi Malgave Kum. Sragvi Jain
Age: 9 Years Age: 4 yrs.
d/o. Sarita Sachin Malgave d/o. Archana Satyendra Jain
B’lore
“Ashta-Dravya”
‘Recognising by name’
“Samadhi bhawna”
by
(Din Raat Mere Swami)
Kum. Samridhi Jain
By
Age:3.5 Years
Mast. Manas jain
d/o Arti Abhishek Jain
Age: 7 years
s/o. Khushboo Mohit jain
“Namokaar Mantra”
B’lore.
(Chanting)
by
Kum. Stuti Jain “Namokaar Mantra”
Age: 2 Years (Chanting n Short Poem)
d/o. Neha Harsh Jain by
Kum. Kruti Shah- Jain
“Poem on Jainism”
Age: 3.8 Years
‘composed and lyrics
d/o. Priyanka Prateek
by
Shah- Jain
Nishit Jain, 14 yrs.
B’lore.
s/o. Kirti Bhupendra Jain.
Badlapur.
“Meri Bhavana”
(Din Raat Mere Swami)
By
Kum. Sayuksha Jain,
Age: 5 years,
d/o. Mona Anchal Jain,
B’lore
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नोट : हमारे एक न ह सी पािठका ने वतमान क ि थित हमारी जग म है पहचान जीव दया क णा दान |
पर क ना से ओत ोत होकर धम क सबल और हमारी उपलि ध है जी मानवता से मानवता का भान ||
क णामयी िश ा के ारा “कोरोना” पर अपनी
अिभ यि िलख कर भेजी ह. यह अपने आप म एक
बहत बड़ी बात ह. बढ़े बढे भी जो नह कर सके उसको
एक न ह सी ब ची ने कर िदया. और इस सबके िलए
उनके माता िपता को भी ेय जाता ह. ब चे अपने माता
िपता म अपने आदश यि को ढूंढते ह और उनके जैसा
ही यवहार भी करते ह िबलकुल दपण क तरह. अतः
सभी को बधाईयाँ और इसी तरह से धम माग पर बढ़ते
रहे और अपनी रचनाय भेजते रहे. ..
-शुभकामनाओ ं सिहत; नमो तु िचंतन प रवार. हम यह देखे महामारी का फैला जग म िवकृत गान |
आओ िमलकर सोच बनाये क णा का करके अवदान||
"जीव दया/ क णा"
जीव र ा से बनता कृित का सतं ल
ु न महान |
मांसाहार यि और सं कृित का करता हान ||
येक पजू ा के समापन म जयमाला पढ़ते ह. यह इस Teerthankars (dev), Jain Scriptures (shastra), and Jain
saints and monks (guru). Complete faith in these three
बात को बताता है िक जो भी इस पथ पर चलते ह, िजनदेव के leads to Samyak Darshan (Perfect Faith) and, ultimately,
बताये मो माग पर, वे सदा अजेय रहते है और उनके गणु to Moksha. Thus, this pooja includes all the worshipable
क माला का पाठन करते ह. िजससे हम भी ऐसे ही गणु वान objects.
The Nav Devta Pooja is dedicated to the nine
बन. icons of Jain religion; e.g., the five Par-mesthis -
Arihantas, Siddhas, Aachryas, Upadhyayas, and Sadhus,
Jin Dharm (the Jain Dharma), Jin Aagam (Jain Scriptures),
आगामी अंक म आपको पज ू ा क थाल और अ य Jin Chaitya (idols of Teerthankars) and, Jin Chaitya-lay
साम ी कै से बनाये यह बताने का यास करगे.. (Jain Temple). Certain poojas are associated with special
........ पी. के . जैन ‘ दीप’ सपं ादक. occasions, commemorable days or religious festivals.
These include: Ashtahnik pooja, Das Lakshan Dharm-
Pooja, Kalyanak pooja, Diwali Pooja, Raksha Bandhan
Pooja, etc. Some poojas are specifically performed to
revise the knowledge of specific sets of principles,
WHAT IS CALLED POOJA teachings, beliefs or basic tenets of Jainism, such as the
Ratn-traya Pooja and Solah Karan Pooja); while some
OR WHAT IT IS ! poojas intend worships or honor of holy sites of
pilgrimage in Jianism (such as the Panch Meru Pooja).
Each of these poojas is done at specific times
In the last issue, we had learnt about the Holy throughout the year and they all help to maintain and
sign “SWASTIKA”. We know why and how it is made and re-strengthen our faith in our Dharma.
what the meaning of every thing we draw. The human Each pooja is concluded by reciting an
life can attain holy position by reaching the Moksh or Adoration (the Jayamala). In Jayamala, we recall the
Salvation. Our performance of Abhishek, Pooja, Worship virtues of worshipped object (Teerthankars, Religious
etc. leads to the ultimate goal of human life which is events, festivals, spiritual leaders, Jain beliefs, holy lands,
nothing but Salvation or moksh. Now, we will try to etc.). By reciting these virtues, we remind ourselves of
understand, what is called Pooja and we should perform the greatness of Jain Dharma, and, that our soul, just as
Pooja of whom ? all others, possesses the capacity of attaining Moksha, a
goal towards wich we should strive daily.
POOJA: What it is!
आदरणीय ी दीप जी का स यक् संयोजन/संपादन परम पू य ातः मरणीय गु देव आचाय ी िवशु
स य व क ओर ले जाने वाला िस हो रहा है. सागर जी महाराज के चरण म मेरा एवं मेरे प रवार एवं जैन
प कार संघ के सभी पदािधकारी सद य क ओर से शत शत
योजक श द को िनि त, अथ-भाव म देता ढाल; नमन ि काल नमो तु नमो तु नमो तु बोले.
वैसे ही स यक् योजक, सबको देता उ म भाल| म नमो तु िचंतन पि का के माह माच अक
ं परम पू य
उ म भाल से िमलता है, उ म िचंतन आधार; गु देव िवशु सागर महाराज के 31 माच को आचाय
िचतं न उ म दीप जी का, िनमलता का देता उपहार|| पदारोहण िदवस के पावन पनु ीत अवसर पर आचाय ी िवशु
सागर महाराज पर िवशेषांक िनकालकर आदरणीय ी दीप
“नमो तु िचतं न” के बढ़ते कदम, सम वय प िचतं न,
जी ने स ची िवनयांजिल तुत क है वा तव म जैन समाज म
क याण के माग को दशाता दपण प काय अनोखी पहल है
अनेक धािमक पि काएं िनकलती है उनम से “नमो तु िचतं न
जो अ यिधक मसा य है. अ छा प, अ छा िचंतन, अ छी
पि का” अपने आप म अहम् भिू मका रखती है. िजसका
ि या से यु अक ं सराहनीय, पठनीय और मननीय है. ये िवशेष कारण उ पि का म अनेक आचाय, मिु नय ,
हमारे ऊपर आपका उपकार है. म वयं आपका कृ त हँ.
आियकाओ,ं िव ान एवं ावक के लेख एवं िवचार होते ह
योजक स यक् बने आप तो, करते ह हम सब आभार | जो अपने आप म वा याय का प है.
इसी तरह जोड़े रखना, रहे समाज म उ नत यवहार || जैन धम पर शोध करने वाले छा -छा ाओ ं के िलए
डॉ. िनमल शा ी, “नमो तु िचंतन पि का” अपने आप म बहत ही उपयोगी
टीकमगढ़. पि का है.
इ ह शभु मंगल भावनाओ ं के साथ, जय वीर
भवदीय
उदय भान जैन, “बडजा या”,
रा ीय महामं ी,
अिखल भारतवष य जैन प कार महासंघ, जयपरु .
सभी ब च के िलए
आप जैन धम के अनस ु ार िकसी भी िवषय पर
अपने लेख, किवता, िच कला आिद भेज सकते
आगामी िवशेषांक
ह. और अपना फोटो भेजना न भूले.
वा याय भी परम तप ह.
यिद आप भी घर बैठ फोन से िनयिमत वा याय करना
चाहते ह तो नमो तु शासन सेवा सिमित पाठशाला से
जुिड़ये और क िजये अपना आ म क याण. संपक करे
-: हमसे जुड़ने के लए तथा इस प का को अपने 602/1, लाड िशवा पेरेडाईज, िबरला कॉलेज रोड,
फोन पर नशु क ा त करने के लए संपक करे क याण (पि म), मुंबई – 421 301.
:- E-mail : namostushasangh@gmail.com
: pkjainwater@gmail.com
पी. के. जैन ‘ द प’ WWW.VISHUDDHASAGAR.COM
बा. . अ यकुमार जैन
आप सभी का आभार
नमो तु शासन सेवा सिमित प रवार
“जय िजने ”
Q QQ
िडिजटल धािमक पि का
िनःशु क िवतरण के िलए
(सव अिधकार सपं ादक और काशक के अधीन)
परम पू य ितपल मरणीय, चया िशरोमणी, अ या म योगी, ( कािशत लेख, रचनाओ ं के िलए संपादक एवं काशक िज मे दार नह ह.
आगम उपदे ा, वा याय भावक, तु सवं धक, आचाय र न लेख/रचना आिद लेखक/ ेषक के वयं के िवचार ह)
ी 108 िवशु सागरजी महाराज क देशना को आप िनशु क
घर बैठे, अपने मोबाइल पर ा करना चाहते ह तो हम सपं क Q QQ
कर. इसके साथ अ य ंथ के िलए भी सपं क करे :-
सपं ादक : पी. के. जैन ‘ दीप’ - 9324358035.
आ मं वभावं पर भाव िभ न,ं
काशक : नमो तु शासन सेवा सिमित (रिज.), ठाणे, मुंबई. आ मं वभावं पर भाव िभ नं,
( काशन थल : मेलबन, ऑ े िलया)