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काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”.

अंक : 25 माह : मई - 2020


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-: मंगलाचरण :-
िवशु चेतन िवशु िचंतन, िवशु चया का |
िवशु कता िवशु कारण, िवशु िक रया का ||
िवशु मिहमा िवशु ग रमा, िवशु मितमा का |
यह गधं ोदक क ँ समिपत, िवशु ितमा का ||
( : )

जयवंत रह अ रहतं , िस , आचाय सदा जयवंत रह |


जयवंत रह, पाठक व साध,ु िजन धम सदा जयवंत रहे ||
जयवंत रह ! जयवंत रह ! जयवतं रहे नमोऽ तु शासन |
जयवंत रहे कब तक ? जब तक, नभ म रिव शिश अ तारागण ||
=: नमोऽ तु शासन :=
देवागम तो और आचाय ी सम तभ वामी
: ी नरेश जैन 40
ॐ कार ही ॐ कार
ी ि यदशन जैन 41
लाचार इस ं ान
: ीमती आरती जैन 42
कहाँ पर या है ? आचाय ी सम तभ वामी
: ी सारांश जैन 42
मु य आवरण: आचाय ी सम तभ वामी
“ आचाय सम तभ वामी ” : ी नीरज जैन 43
मंगलाचरण 01 आचाय ी सम तभ वामी एवं ावकाचार ( ावक
मंगलाशीष 03 देशना) : ी सज ं य राजू जैन 44
मई माह के पव 04 अ या म क िश ा ही सव प र ह
सपं ादक य – आओ बने भगवान् आचाय ी १०८ िवशु सागरजी महाराज
:पी. के . जैन,’ दीप’ 05 : ी सौरभ जैन 45
आचाय ी १०८ िवशु सागरजी महाराज पूजन 07 आई शुभ घड़ी : ी नदं न जैन 43
: मणाचाय डॉ. ी िवभव सागर जी महाराज : ी पी. क. जैन ‘ दीप’ 47
नमो तु शासन सेवा सिमित 10 आचाय पद िदवस :
िन थ का व प : त व देशना से ी उदयभान जैन, बडजा या, रा ीय महामं ी,
:आचाय ी १०८ िवशु सागर जी महाराज वचन 12 अिखल भारतवष य जैन प कार महासघं ,जयपुर 48
श द अ या म पंथी का ....... गु सािन य य ? : ीमती मंजू जैन 50
:आचाय ी १०८ िवशु सागर जी महाराज 15 गु मिहमा : सारांश जैन 53
समाधी भि शतक : तेरी छ छाया गु -पाती से साभार :
: मणाचाय डॉ. ी िवभव सागर जी महाराज 16 : मणाचाय डॉ. ी िवभव सागर जी महाराज 53
पु षाथ िसि उपाय: आचाय ी अमृतच वामी ब च के िलए िवशे ष / Specially For Children
पु षाथ देशनाकार: आचाय ी िवशु सागर A Letter to Kids From Editor 46
जी महाराज “ उपगूहन अंग ” 19 Drawing by Kids 48
सव दय तीथ के कता – आचाय भगवन् सम तभ वामी: Vivid activities of kids 48
:डॉ िनमल जैन शा ी 24 जीव दया / क णा :
आचाय ी सम तभ वामी का यि व (१) कु. िनहा रका जैन 50
:डॉ अ पना जैन 26 Das Lakshan Parv –Uttam Mardav 51
आचाय ी सम तभ वामी का कृित व (२) भगवान् महावीर : कु. इिशता ठोले जैन 52
:डॉ अ पना जैन 29 पूजा िकसे कहते ह : िकसक पूजा करनी चािहए
मानस िचंतन – वा म सख ु ाय हेतु : ीमती मंजू पी. के . जैन 53
:डॉ िनमल जैन शा ी 33 एक कहानी ........ 55
गु गुण मिहमा आपके िवचार 55
:डॉ िनमल जैन शा ी 34 आगामी िवशेषांक म नया या ????? जाने ..... 57
आचाय सम तभ वामीजी : तु पच
ं मी / shrut Panchami
: ीमती वाित जैन 35 What will be in next issue to learn 57
याय शा के कांड िव ान् आचाय ी सम तभ वामी
ी उदयभान जैन, बडजा या, रा ीय महामं ी,
अिखल भारतवष य जैन प कार महासघं ,जयपुर 36
आचाय सम तभ वामी जी
: ीमती क ित जैन 37
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मंगलाशीष

धम सभा म आने वाले,


समवशरण जाते |
धम देशना सुनने वाले,
िद य विन पाते ||
महापु ष के च र हम तो, सव वाणी िव क याणी है. जो िक
सदा नसीहत देते ह | या ाद, अनेकांत त व से मंिडत है. ऐसी वीतराग
वाणी सव िव के क याण का कारण बने, इस
उनके जीवन दपण म, उ े य को लेकर “नमो तु िचंतन” पि का प रवार
जीवन सधु ार हम लेते ह || जो उप म कर रहा है, वह अनुकरणीय है. ी
जो है सो है िजन वा वािदनी, ी िजन शासन, नमो तु शासन
क भावना हेतु मंगलाशीष.
नमो तु शासन जयवंत हो
आचाय ी 108 िवशु सागरजी महाराज
जयवतं हो वीतराग मण परभणी, महारा .
सं कृित 11 जल
ु ाई 2018.
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मई माह के पव नोट : यहाँ पर िदए गए भगवान् के क याणक और


अ य ितिथयाँ मुंबई के पंचांग के अनुसार ही बताई
(मबुं ई पच
ं ांग के अनस
ु ार) गयी ह.
िदनांक ितथी मई माह के िववरण आपको यह तो पता ही होगा िक ितथी क
०१ वैशाख सु. ी १००८ धमनाथ जो भी गणना क जाती ह वह सयू दय के समय
अ मी भगवान् – गभ और सूया त के समय को यान म रखकर ही क
०२ वैशाख सु. ी १००८ सुमितनाथ जाती ह.
नवमी भगवान् – तप और येक शहर का सूय दय एवं सूया त
०३ वैशाख सु. ी १००८ महावीर का समय अलग अलग होता ह अतः हो सकता है
दसमी भगवान् – के वल ान िक आपके शहर म ितथी का फे र-बदल हो अतः
आपके यहाँ थानीय ी मंिदरजी म बताये गए
०६ वैशाख सु.
अनुसार ही माने अ यथा कह से भी कािशत
चतुदशी
पर तु मािणत जैन दशन के अनस ु ार ही हो, ऐसे
०७ वैशाख
पंचांग का भी अनुसरण कर सकते ह.
पूिणमा
भगवान् के प च-क याणक क ितिथय
१२ ये वदी ी १००८ ेयांशनाथ
म िवशेष प से उ सािहत होकर भगवान् के
ष ी भगवान् – गभ
क याणक महो सव को अिभषेक, पूजन आिद के
१५ अ मी
साथ सब िमलकर मनाये.
१७ ये वदी ी १००८ िवमलनाथ
अ मी और चतुदशी को िवशेष प से
दसमी भगवान् – गभ
िदखाने का यास िकया गया ह. इस िदन हमारे
१९ ये वदी ी १००८ अनतं नाथ शरीर म जल क ाकृितक प से होने वाली वृि
ादशी भगवान् – ज म, तप के फल- व प ही हरी-पि य , सि जय एवं
२१ ये वदी ी १००८ शांितनाथ सिच फल का याग बताया गया ह.
चतुदशी भगवान् – ज म, तप, यही तो जैन दशन क िवशेषता है िक धम
मो को कृित के साथ सामज ं य बनाते हए पालन
२२ ये वदी ी १००८ अिजतनाथ करते ह इसिलए ही परम पू य अ या म योगी
अमाव या भगवान् – गभ आचाय ी िवशु सागरजी महाराज कहते ह -
२६ ये सुदी ी १००८ धमनाथ “हम धम को नह पाल रह ह बि क धम ही हम
चतुथ भगवान् – मो पाल रहा ह. धम तो िकया नह जाता ह वह तो
२७ ये सदु ी तु पचं मी हमारे यवहार से, आचरण से वयमेव ही हो जाता
पंचमी ह”. इित शुभम् ........ मश:.
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परम पू य अ या म योगी आचाय ी िवशु सागर जी महाराज समझाते ह िक जब
स पादक य जब आपके भाव क िनमलता होगी, िवशु ी होगी तब ऐसा ही घिटत होता ह
िजसे सव साधारण चम कार कहते ह. आचाय सम तभ वामी के पादमल ू म
बैठकर हमने गु देव परम पू य अ या म योगी आचाय ी िवशु सागर जी से यही
पी. के . जैन ‘ दीप’ जाना िक िजसके पास जो होता ह वह वही देता ह. िकतनी अटूट ा आचाय
सम तभ वामी के पास थी और आज हमारे पास ऐसे योगी के होते हए भी लोग-
बाग़ अ य चबूतर पर सर पटकने के िलए जाते ह. अ य मायािवय के पास, रािगय
मेलबोन, ऑ ेिलया के पास, जाने पर या िमलेगा – मायावी और राग ी. जो मानव को िसफ िद िमत
कर सकती ह और कुछ दे नह सकती.
आओ बने भगवान् ! आचाय सम तभ वामी ने अ य दशन के िव ान् यि य को चनु ौती देते
हए कहा िक म मं वादी हँ, तं वादी हँ और नाि तक भी हँ. तो िव ान् कहने लगे
जाने कै से होते भगवान् बता रहे सम तभ वामी, क यह या कह रहे हो आप ? तब वामीजी ने कहा िक - हाँ म सही कह रहा हँ.
वयं बनूँ भगवान् भाव क िनमलता ही प रणामी || म नाि तक हँ य िक म भगवान् क पजू ा नह करता हँ. म भी तो भगवान् हँ. म तो
मेरे आरा य के गुण का वंदन करता हँ, उनका उपकार मानता हँ और उनके बताये
जय िजने . रा ते पर चलकर वयं भगवान् बन सकता हँ. यही मेरा तं ह. मेरे पास णमोकार
महामं ह. यिद िकसी म शि हो तो मेरे से शा ाथ करे . इतने से श द म िज ह ने
नमो तु िचतं न के िपछले अकं ो म एक बात ही चचा म सामने आ रही है िक आओ
िव ान को घटु ने टेकने को मजबूर कर िदया, उनक ा के बारे म हम या िलख
भगवान् बने. जैन दशन क यही तो िवशेषता ह. स य दशन, ान और च र के
सकते ह ? अथात् कुछ नह िफर भी गुण-वंदन म उ लास और िव हलता से
साथ मो माग पर बढ़ते हए देव शा और गु क शरण से, या ाद और
भावावेश म िलखने का यास कर रहे ह.
अनेकांतवाद, माण और नय, तक िवधा के िविभ न त य से भगवान् कै से बने यह
पनु ः भगवान् के , आ के गुण क या या करते हए कहते ह –भगवान्
तो जान िलया. अब जगत म िम या व अथात् देव मढ़ू ता भी बहतायत से देखने म
कुछ देते नह , कुछ लेते नह तो या लाभ ह ? (भगवान् याचक नह होते, कता भी
िमल जाती ह. तो हम अपने माग से यतु करने वाले भी िमल जायगे. स चे ान
नह होते) अरे ! मा िजने के गुण का िनरंतर मरण और उनक आराधना, दय
से यह सब तो संभव नह है िक कोई मो माग से भटका दे. आप आचाय सम तभ
म पिव ता क अनभु िू त कराती ह. िजससे पु याजन होता ह. और यही पु य के फल
के पादमलू म बैठकर, गु काश से, स चे देव क प रभाषा से जग को बता सकते
से पु याजक वयमेव ससं ार म सब कुछ पा जाता ह तो याचना करने क या ज रत
हो िक हमारे आचाय भगवंत ने अपनी उ कृ ा से अनेक धमावलि बय को
ह. इतने ढ़ ान से आपने भ मक रोग का शमन िकया था. यह जैन दशन के कम
परा त करके जैन दशन को, िजनागम को िनिववाद और िवसंवादी बनाया. सव थम
िस ातं पर आधा रत ह िजसक िव तृत चचा हम भिव य म करगे.
आचाय ी सम तभ वामी ने स चे देव अथात् भगवान् क पहचान करने के िलए
आचाय सम तभ वामी ारा रिचत “देवागम तो ” ह िजसका अपर नाम
मा तीन श द ही िदए ह. (१) सव , (२) वीतरागी और (३) िहतोपदेशी. इन तीन
“आ मीमासं ा” थ ह. इस थ क रचना, पर आचाय भ अकलक ं देव वामी
श द को भी हम यान से देखे तो पता चलता है िक इनम भी व मान व मौजूद ह.
ारा िलखा गया टीका थ “अ शती” ह. नाम से ही ात होता है िक इसम 800
पहले श द म तीन , दसु रे म चार और िफर तीसरे म पाचं . यह उनके किव व भाव
माण गाथाओ ं म िलखा गया थ ह. और पनु ः िचंतन देख ! आचाय ी िव ानंद
और ान को भी दशाता है. वैसे तो यह सभी जानते ह क प म तुित का सव थम
जी ने इसक , अ शती क टीका म अ शह ी क रचना कर दी गई. आचाय ी
आर भ आचाय सम तभ वामी ने ही िकया ह. इसीिलए उनको आ किव भी
िव ानंद जी ने ही इसे अपनी रचना म क शह ी भी कहा ह. यह थ 8000 माण
कहते ह. आचाय सम तभ वामी ने मा तीन श द म ही परू ी या या कर दी.
ोक से प रपूण ह. या गजब का िचंतन होगा ? जब सोचकर ही ऐसा लग रहा ह
आचाय सम तभ वामी के तीन श द का आलबं न जगत के सभी ािणय के
तो िलखने वाल क ा का या कहना ? जैसा िचंतन आचाय सम तभ वामी
िलए वरदान ह. सभी जीव िनरंतर व मान के शासन म अपने जीवन को वा तव म
का है अब तक िकसी का नह हो सका ह ? उनके िचतं न के बार म या कहना ?
वधमान कर सकते ह और िस बन सकते ह अथात पंचम गित को ा कर सकते
सीधी सीधी बात करते हए भगवान् से ही पछू लेते ह – हे भगवन् ! म आपको अपना
ह.
भगवान् य मानँू ? पर तु भगवान् कै से होते ह ? या व प होता है ? जैन दशन के
भगवान् और अ य दशन के भगवान् म या फरक है ? सही या ह और य ? इस
आचाय सम तभ वामी क ा तो ावान यि य को भी च कर म
बात को कौनसी कसौटी पर परखा जा सकता ह और कै से ? आपने ान कर
डालकर घमु ा सकती ह. इतने गूढ़ िवषय का कथन मा तीन श द म ! यह सब
िलया और आप आगे भी आ गए और अब कोई आपसे चचा करे और अ य मत
उनके अ ू त िचतं न का, ढ़ ान का ही प रणाम है जो हम इतने हजारो वष बीतने
को े बताये तो आपको उनको संतु करने के िलए और सही माग पर भी लाने
के प ात् भी िदखाई दे रहा ह. सभी के सामने काशी (बनारस) क घटना ह. िव -
के िलए इतनी सब जानकारी भी होना चािहए और इसके िलए आपको आचाय
िव यात फटा महादेव का मिं दर िजसमे अि तीय च भ वामी क ितमा कट
सम तभ वामी से िमलना आव यक ह. इस रोचक चचा को जानने के िलए
हो गयी. यह सब या ह ? चम कार ?? नह नह . आचाय सम तभ वामी ने
देवागम तो को पढना चािहए. इससे न िसफ ान क वृि होगी बि क िचंतन
सव , वीतरागी, िहतोपदेशी देव का आ य लेकर िचंतन करना ारंभ िकया तो
भी शु होगा. आज इस पंचमकाल म जहाँ पर अ रहतं भगव तो के दशन नह होते
अ म तीथकर चं भ वामी का जैसे ही वणन आया, िप डी फट गयी और भगवान्
ह पर तु आज हमारे सम व मान के वतमान लघनु ंदन वीतरागी और िहतोपदेशी
क मिू त कट हो गइ. यह िचंतन, रचना ही वयंभू तो के नाम से िस ह. गु देव
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िन थ गु तो ह िजनको देखकर हम अनुमान से व मान को भी वतमान म महससू सबसे मह वपणू बात यह है िक वे अवािध ानी तो नह थे पर तु अपने ढ़
कर सकते ह. और यह सब आचाय सम तभ वामी क कृ पा ह. ान के कारण भिव य का आभास कर सकते थे इसीिलए उ ह ने सव दय को
आगे बढाया. जैन दशन के पंच अणु त के अितचार का वणन और मनोवै ािनक
आप तुितगान म अपनी अि तीय ितभा का सक ं े त िविभ न उपमाओ,ं तरीके से िववेचन िकया उसे आज हमारे देश के सिं वधान ारा मा य IPC के अनुसार
श द का संकलन/संयोजन, िविवध अलंकार, रस छंद के ारा मन क अिभ यि तक संगत ह. हमारे वतं भारत के रा पित डॉ टर ी राज साद भगवान्
को चरम सीमा पर ले गए ह. आप जैन दशन के महामे ह. आपको अ य कई महावीर क अिहंसा से बहत ही अिधक भािवत थे. इसिलए संिवधान क मल ू ित
िव ान ने, आचाय ने आपको कई उपािधय से अलक ं ृ त िकया ह जैसे, गुणगणोपेत, पर ह ता र करने से पवू भगवान् महावीर का िच , संि प रचय और उनके
सवालंकारभिू षत, घनकिठनघाितकम धनदहन, तािकक चणू ामिण, यित, मिु न, देव, उपदेश को समािव करवाया. यह तो ात होगा क जब तक रा पित के ह ता र
वामी, आचाय, ान-िदवाकर इ यािद ह. नह होते उसे काननू मा यता नह देता ह. अतः सम तभ वामी ारा विणत
अितचार को भी यान म रखा गया हो तो कोई आ य नह ह. और सम तभ
आचाय सम तभ वामी क दरू दिशता ने जैन दशन के सव दय िस ातं म वामी ने भगवान् महावीर का ही उ लेख िकया ह य िक हम उनके शासन म ही
ऐसे सू को समािहत िकया िजससे जनमानस को लाभ हो. महा मा गाँधी, आचाय रहते ह. यह कोई अितशयोि नह समय का ि कोण ह, अनेकांत कथन ह.
िवनोबा भावे, लोक नायक जय काश आिद ने उनके सव दय िस ातं ो को अपना
उपनाम देकर समाज के उ ार और सम व के िलए अपना जीवन समिपत कर िदया. आचाय सम तभ वामी के ारा रिचत ंथो का अ ययन पाठक के अंतस
िजसे भारतीय समाज म सदैव याद िकया जायेगा. म एक िविश अनभु िू त करता ह और गागर म सागर तीत होता ह र न तो सागर म
ही होते ह और र नकरंड ावकाचार से उपयु अ य कोई नाम हो ही नह सकता.
आज जगत म सभी जगह हाहाकार मचा हआ ह. और वजह ह एकि य आचाय सम तभ वामी के नाम से ही ात होता है िक समतारस से प रपूण
जीव. इस एकि य जीव, करोना वायरस, क स ा ने सभी के चैन को िसत कर िजसका मन भी और मित-मत भी भ हो ऐसे यि को सम तभ कहते ह. और
िलया ह. येक मानव घबराया हआ ह. ाण शेष बचगे या नह ? जैन दशन के म यही कामना करता हँ िक आचाय भगवन सम तभ वामी मझु अभ को भी
सभी िस ांत पर चलकर पणू प से शांित या हो सकती ह. आज िव को सं ान भ बना देवे.
हो रहा है िक कम िस ांत के साथ साथ अिहंसा को न अपनाने से िकतनी बड़ी
क मत चक ु ाई जा रही ह. यह सब आचाय सम तभ वामी ने र नकरंड ावकाचार सव देव का शासन और आचाय ी का आशीवाद सभी काय को
म िव तृत प से बताया गया ह. इसीिलए अ या म योगी आचाय ी िवशु सागर पणू करने क मता रखता ह. हम तो सा ात् िवशु गु का िवशु सािन य ा
जी सदैव याद िदलाते रहते है िक - हम धम को नह पाल रहे ह बि क धम हम पाल हो तो या कुछ नह हो सकता ? अथात् सब कुछ हो सकता ह. अ यथा ‘ दीप”
रहा ह. यह अहसास हम िकतना बहमान कराता है िक हमारे िजने देव िणत धम- म कहाँ साम य है िक वह आचाय सम तभ वामी के बारे म िलखना तो दरू कह
माग को अ य भी अपना रहे ह. यही स ची धम- भावना भी ह. ऐसे अनपु म योगी पाने के िलए भी श द हो. आचाय ी के वा स य भरे वचन सदैव कान म गंजू ते
िज ह ने हम, हमारे उ ार के िलए, हमारे क याण के िलए, अ याबािधत सखु को ह. एक बात का ही यान रखो ‘ दीप’ िक ान और िवचार सदैव स यक् होने
ा कराने वाला का या मक र नकरंड ावकाचार हम िदया ह. हम उनके उपकार चािहए.
को कभी िव मृत नह कर सकते ह. नाम ही म भि ह
नाम म ही शि ह
जैन आ याि मक सािह य क अिविछ न परंपरा म आचाय सम तभ जो है सो है
वामी ने का य- तो िजसे तवन, तुित आिद भी कहा जाता ह, इसम िस
भगव तो को, तीथकर भगवंत को अ य धम के देवताओ ं के िवशेषताओ ं और गुण
से िचि हत नाम को आ मसात करके आ का व प थािपत िकया, जैसे ा,
िव ण,ु महेश, वृह पित इ यािद. वयंभू तो इसका माण ह. अब आचाय
सम तभ वामी के एका र शा दी डा का ान और चम कार जानते ह.

ततोितता तु तेतीत तोतृतोतोिततोतृत |


ततोताितततोतोते ततता ते ततोततः || ( तुित िव ा/१३)

अथ : हे भगवन,् आपने ानावरणािद कम को न कर के वल ानािद िवशेष गुण


को ा िकया ह तथा आप प र ह रिहत वतं ह. अतः आप पू य और मा य ह.
आपने ानावरणािद कम के िव तृत अनािदकािलक स ब ध को न कर िदया है. गु देव के चरण म ि काल अनतं बार नमो तु
अतः आपक िवशालता भतु ा प ह. आप तीन लोक के वामी ह.
- पी. के. जैन ‘ दीप’
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सुना हो. ऐसे मणाचाय ी िवभवसागर जी


महाराज ारा आचाय ी िवशु सागर जी
महाराज के बहमान म मनोभाव को श द म य
करते करते पज
ू ा क रचना हो गयी.

आचाय ी पज
ू न

सार वत् किव नय च वत मणाचाय


ी 108 डॉ. िवभव सागरजी महाराज

नोट : सभी आचाय ी िवभव सागरजी महाराज


को सार वत् किव के प म जानते ही ह. आपक
बह चिचत कृित “समाधी भि शतक” – ‘तेरी
छ छाया भगवन् ! मेरे िशर पर हो, मेरा अि तम-
मरण-समािध, तेरे दर पर हो.’ शायद ही िकसी जैन
ावक ने इस अनपु म रचना को न पढ़ा हो या न
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नमो तु शासन सेवा सिमित (रिज.) िवशेष सद य :


महेश जैन, हैदराबाद;
ट मंडल : देश सिचव :
राि य/अंतरा ीय अ य : ी वीण च जैन, मुड़िब ी, कनाटक.
ी पी. के . जैन ‘ दीप’ ी त ण जैन, िशवनी, म य देश.
ी सजल जैन, दुग, छ ीसगढ़
उपा य ा :
पाठशाला संचािलका:
ीमती ित ा जैन ीमती क त जैन, िद ली,
महामं ी : पाठशाला सह-सच
ं ािलका:
बा. .अ यकुमार जैन ीमती िकरण जैन, हांसी, ह रयाणा.
सह मं ी : हाट्सएप ु स :
कुल 50 ु स के सभी एडिमन/सच
ं ालक
ी अिजत जैन आगरा : शुभम जैन,
कोषा य : अतुल जैन,
ी वीन जैन अलदगं डी : िम सेन जैन
अशोक नगर : अतुल जैन,
सद य : ीमती अनीता जैन
ीमती मंजू पी.के . जैन बड़ामलहरा; अ यपाटनी,
ी सुशांत कुमार जै न ीमती रजनी जैन
बजगुली : वधमान जैन
बैतूल : अिवनाश जैन
-: कायका रणी मंडल :- बानपरु : नवीन जैन
देशा य : बंगलू : ी गौरव जैन
ीमती क त पवनजी जैन, िद ली. स देश जैन,
ी नंदन कुमार जै न, िछंदवाडा, म य देश. िनमल कुमार जैन
ी संजय राजु जैन, रािजम, छ ीसगढ़ बेलगाँव : धरण कुमार एस. जे.
िवदुषी तेजि वनी डी, मैसूर, कनाटक भोपाल : प.ं राजेश “राज’
बरायठा : ीतेश जैन
चार सार मं ी : चामराज नगर: ीमती विनता सतीश
ी राहल जैन, िविदशा, िछंदवाड़ा : ीमती मीनू आशीष जै न,
ी अनुराग पटे ल, िविदशा ीमती ल मी जैन
नैितक ान को मं ी: िचकमगलूर : बी. िजनराजया, कलस
ी राजेश जैन, झाँसी, उ र देश दावनगेरे : भरथ पंिडत
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िद ली : ीमती रतु जैन ाची जैन;


धम थल : डॉ. जयक ित जैन रतलाम : मांगीलाल जैन
दुग : सजल जैन, सांगली : राजकुमार चौगुले,
गुडगाँव : पं.मुकेश शा ी राहल नां े
हासन : वीन एच. आर. िसकंदराबाद (उ. .): ऋषभ जैन
हैदराबाद : डॉ. दीप जैन सोलापरु : कुमारी ा यवहारे
होसदुगा : सुमित कुमार जैन िशवमोगा : दीप बी. कूट
हबली : ीमती नंदारानी पािटल िशवनी : ी च दन जैन,
इदं ौर : ी िदनेशजी गोधा, ी पवन िदवाकर जैन
ीमती रि म गंगवाल िसरसी : ी महावीर जैन
ी नवीन जैन. टीकमगढ़ : अशोक ाि तकारी
जबलपरु : िचराग जैन टुमकुर : प ा काश
जयपुर : डॉ. रंजना जैन िवजापुर : िवजयकुमार दुगा नानवर
कलबगु : िकशोर कुमार उ जैन : राजकुमार बाकलीवाल
कारकल : भारती िव का थ, नवीन जैन
सिमथ जैन, उमरी : अभय जैन
कोलकाता : सुरे गंगवाल, ऑ ेिलया, पथ : ीमती भि हले यवहारे
राजेश काला, एवं अ य सभी कायक ागण.
कुसमु छाबड़ा,
कोटा : नवीन लुहािडया,
ीमती िमला जैन
!!जो है सो है !!
मगलौर :
मुड़िब ी :
संतोष पी. जैन
सुहास जैन,
!!नमो तु शासन जयवंत हो!!
कृ णराज हेगड़े !!जयवंत हो वीतराग मण
मुंबई : दीपक जैन,
गौरव जैन, सं कृित!!
काश िसघं वी,
मदुरै : जी. भरथराज जैन
मौरेना : गौरव जैन,
िज मी जैन
मैसूर : जयल मी,
सिवता साद
पुणे : ाज ा चौगुले
रायपुर : िमतेश बाकलीवाल,
रानीपुर : सौरभ जैन
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-: वचन :-
मनीिषय !

व मान िजने के शासन हम सभी िवराजे ह, भगवद् िजनदेव


क िद यवाणी का कणाजल ु ी से पान कर रहे ह तथा अपनी नर
पयाय को ध य कर रहे ह. आचाय देव सेन वामी नवीन-नवीन
व-र नमिं डत िनमल कंठहार दान कर रहे ह िक िनिवक प
वत व क ाि ही त वसार ह. आचाय महाराज ने पवू ाचाय
क एवं िजनदेव क आ ा को यान म रखते हए त व का कथन
िकया है. यह हमारे आचाय क मिहमा रही है िक वयं कुछ
भी वतं कथन नह िकया. जैसा कथन िमला वह िलिपब
िकया ह. यिद सगं के दो माण ा हए तो उ ह ने उभय
आचायर न ी १०८ िवशु सागरजी माण का कथन िकया है. यिद िकसी ने भी िकया, भगवन्
! माण तो एक ही होगा ? तो आचाय वीरसेन वामी
महाराज के मुखारिवंद से जाने.. धवालाजी म इसका उ र देते हए कहते ह - स य है, माण तो
एक ही होगा. परंतु अमकु िवषय के दो आगम ा ह इसिलए
दोन वीकार करना चािहए. जब तक सा ात् य ानी
अथात् के वली भगवान् के चरण म नह पहचं ते, तब तक
वीतरागी पापभी िदगा बराचाय क बात वीकार करो, यिद
जं अिवय पं त चं तं सारं मो खकारणं तं च | अपने स य व क र ा करनी हो तो.
तं णाऊण िवसु ं झायह होऊण िण गंथा ||९ || अहो ! आ य है. महापंिडत किलकालसव आचाय
वीरसेन वामी ाचीन आचाय चाय एवं आग़म क बात
अथ : जो िनिवक प त व है, वही सार है, योजन भूत है अ यथा कहने म अपनी असमथता कट कर रहे ह - "एलाचाय
और वही मो का कारण है. उस िवशु त व को क िज हा आचायवाणी पर िहलने वाली नह ह. यादा शंका
जानकर, िन थ होकर यान करो. हो तो गौतम वामी से पृ छना करो." ध य हो तु भि ,
आचायभि आचाय वीरसेन वामी क . आज
बिहर भ तरगंथा मु का जेणेह ितिवहजोएण | अ पबिु धारक, िज ह दो श द का भी िनमल ान नह है -
सो िण गंथो भिणओ िजणिलंग समािसओ समणो||१०|| ऐसे यागी साधक, िव ान् आचाय और आगम को अस य
कहने को तैयार ह. वे व-पर स य व गणु का घात कर रहे ह.
अथ : इस लोक म िजसने मन, वचन, काय इन तीन कार पथं म समाज को बाटं रहे ह. ऐसे छ भेषी जीवो का न वयं
के योग से बाहरी और भीतरी प र ह को याग िदया है, क याण होगा न ही वे पर के क याण के हेतु ह. अतः िबना
वह िजने देव के िलंग का आ य करने वाला मण िकसी िवक प के मेरा यही िवचार है िक वतमान म सामािजक
िन थ कहा गया है. एकता थािपत कराने क आव यकता है. िजस िवषय म क
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सभी क धारणा एक हो, उस िवषय पर तो एक होकर रह. िबना िनिवक प यान नह होता. आचाय कंु दकंु द वामी ने
अिहसं ा के नाम पर तो सभी जैन एक ह ही, मा ि याकाडं , वचनसार म कहा है –
पजू ा-पाठ, िन य- यवहार के पीछे व तु व प को (जो आ म सुिविददपय थसु ो संजमतवसंजुदो िवगदरागो |
पदाथ का धम है, उसे) भल ू रहे ह. कषाय म उलझकर वे समणो सम-सुह-दु खो भिणदो सु ोवओगो ि ||14||
मो सख ु को ा नह कर सकते, चाहे वे साधक हो अथवा
ावक. बेचारे पु य का उपयोग स यक् प से नह कर पा रहे. अथ : िज ह ने अ छी तरह से पदाथ-सू को जान िलया है,
अतः वे पथं /सं दाय से ऊपर उठकर ािणमा के क याण सयं म व तप से यु ह, िजनका राग बीत गया है, जो सुख दखु
क भावना से क याण का उपदेश कर. म सा य भाव रखते ह, ऐसे वण को शु ोपयोगी कहा है.
भो ानी ! इधर तो एकि य जीव क र ा क बात भो ानी ! आचाय ी जयसेन वामी ने भी
करते ह और उधर पचं ेि य मनु य के ित मै ी भाव नह है. ' वचनसार' जी क टीका म प िकया है िक थम गणु थान
मन का काय नह हआ तो कुछ भी कराने का उपदेश दे िदया. से लेकर तृतीय गणु थान पयत तारत यता से अशभु ोपयोग
देखो, वीररस का उपयोग यु भिू म म होता है, धम सभा म तो होता है. चतथु गणु थान से लेकर छठव गणु थान तक
वैरा यत व का ही उपदेश होना चािहए. ध य है वे आचाय तारत यता से शभु ोपयोग होता है तथा सातव गणु थान से
परमे ी भगवान् जो भव म गोते लगाते हए अनतं भ य को बारहव गणु थान तक तारत यता से शु ोपयोग होता है. तेरहव
िजनदी ा मो माग पर लगा रहे ह. वे उपा याय व साधु परमे ी एवं चौदहव गणु थान म शु ोपयोग का फल होता है.
भी ध य है जो सद् माग का उपदेश देकर व-पर क याण म आचाय शभु चं वामी ने ' ानाणव' जी म िलखा है
लगे हए ह तथा आ म साधना म लीन है. उ म ावक पद पर िक जैसे आकाश का फूल और गधे के स ग िकसी भी े एवं
आसीन जीव भी शभु ाशीष के पा ह जो संसार के भोग से िकसी भी काल म नह होते ह उसी कार िनिवक प यान क
उदास होकर आ मसाधना म लीन है तथा िम या व म डूब रहे िसि गृह थ-आ म म िकसी भी े व काल म नह होती.
भ य को स य माग िदखा रहे ह. उ ह मु य प से मा िनिवक प यान क िसि अ म -गणु थान म िन थ िदगबं र
वक याण क ही भावना है. वीतराग योगी के ही होती है. अतः यह प है िक िज ह
भो चेतन ! ंथकता आचाय महाराज इस गाथा म यही आ म ान क िसि करना है उ ह िन थ मिु न दी ा धारण
देशना कर रहे ह िक - ि को िवशाल बनाओ संकुिचत धारणा करना चािहए.
को िवराम देकर. परम सारभतू िनिवक प आ मत व जो िक दसव गाथा म िन थ व प का कथन िकया गया
िन य से सा ात मो का कारण है, उस िवशु त व को है. िजस जीव ने इस लोक म ि योग से अंतरंग व बिहरंग
जानकर िन थ होकर यान करो. आचाय भगवान् कह रहे ह प र ह का याग कर िदया है तथा जो िवषय-कषाय,
िक िनिवक प यान कब कर ? वतमान म जो मुमु ु भाई आरंभ-प र ह से रिहत है, ान- यान-तप म लवलीन
अ तअव था म ही िन य आ मानभु ूित व शु ोपयोग रहते ह, वे िन थ लोकाचार को नह लोको र आचार
(िनिवक प यान) मान रहे ह, उ ह इस गाथा को अ छी तरह को े मानते ह. यिद कदािचत् लौिकक चचा हो भी
से समझना चािहए. वा तव म शु ा मत व का िनिवक प जाए तो शी ही भूल जाते ह, उस बात को अिधक समय
यान िकस अव था म होता है ? या िबना संयम धारण िकए तक अपने अंदर नह रखते. परम समरसी भाव म िनम न
आ मानुभिू त संभव है ? वचन मा ना सनु ,े आगम भी पढ़े. यित र के राग क आग क िचंगारी भी नह रहती, वे संयम
मल ू आष (आगम) म प कथन है िक िबना िन थ-मु ा के शीतल नीर म अपने आपको आ करके रखते ह. वे िन थ
धारण िकए अ म दशा नह बन सकती और अ म दशा दस कार के बा एवं चौदह कार के अतं रंग प र ह से
िन पृह होते ह.
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बिहरंग प र ह - िहर य, वण, दासी, दास, कु य,


धन, धा य, े , वा त,ु भाडं .
अंतरंग प र ह - िम या व, ोध, मान, माया, लोभ,
हा य, रित, अरित, शोक, भय, जगु ु सा, ीवेद, पु षवेद,
आचाय ी देवसेन (गिण)
नपंसु क वेद. िवरिचत
भो चेतन ! इन उभय प र ह से जो शु य होते ह, वे
ही स चे िन थ होते ह. उभय प र ह के अभाव का म
गणु थान म से समझना चािहए. िजस गणु थान म िजस
कषाय का अभाव होता है, उसी म से प र ह का अभाव
होता है, और प र ह अ प होता है. इसिलए िस ातं - अपे ा
पणू िन थदशा उ गणु थान म ही घिटत होती है. सामा य
थराज पर
वीतरागी-मु ा (िजनिलगं ) ही िन थ मण है, वही धारण-
पालन करने यो य है. आचाय भगवन् ी 108 िवशु
सागर जी महाराज क
“आ म वभावमं परभाव िभ नम”्
आ मा का वभाव परभाव से अ यंत िभ न है.

||भगवान् महावीर वामी क जय||


से साभार.
थ को आप िनशु क घर बैठे,
अपने मोबाइल पर ा करना
चाहते ह तो हम सपं क कर.
9324358035.
(पी. के . जैन ‘ दीप’)

नमो तु शासन सेवा सिमित


(पंजीकृत सं था)
मुंबई.
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श द अ या म पंथी का ...
स याथ पथ
एकाक -पथ तो
उभय-नय वाला ही
बि क वह तो
उभय-नय से
पार ले जाने वाला ही ;

रख-
शरण िकसक ??? र न य पथ के रथ
बड़ी अजब है दुिनया पर ही इसीिलए तो
शरण खोकर अह त /आचाय क परंपरा
अशरण म ने कहा-
शरण खोजती; र न य पथ ही
जैसे स या थ पथ ....
मगृ स या थ पथ ....
खोजता स या थ पथ ....|
मरीिचका म
नीर
जो वयं क शरण नह
वह या देगा
अ य को शरण ?
और इसीिलए कहा गया –
के वली- णीत धम ही स चा शरण
के विलपण ं ध मं सरणं पव जािम
के विलपण ं ध मं सरणं पव जािम
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िति त हए ह. मेरा उ ह तथा उनके इस पिव काय के िलए
शुभाशीष :
ॐ नमः
िबलगािछया उपवन
कोलकाता.

“समािध भि शतक” नाम इसिलए िक इसके शतािधक


गाथाओ ं क अब तक रचना हो गयी है. अथात् अब तक क दो
सौ बयालीस गाथाएँ आप सभी के सामने ततु होने वाली है.
अब तक इसके एक सौ चौरासी गाथाओ ं क रचना आपने पढ़
ली है. इसके आगे क गाथाओ ं का िचंतन और मनन के िलए
आपके सम ततु िकया जा रहा ह.

नोट: एक सफल साधक क साधना को उसके भाव से जाना जा


सकता ह. और येक सफल साधक क भावना तो नर से
नारायण बनने क होती है जो समतापूवक समािध मरण, अथात्
समािध भावना कहलाती ह.
परम पू य रा ीय संत गणाचाय ी
िवरागसागरजी महाराज का शुभाशीष ...
‘तेरी छ छाया’ समाधी भावना है जो जन-जन तक
पहँची है. ायः सभी साध-ु सि वय , ावक- ािवकाओ,ं
यागी-वृि , अवृि ालओु ं ारा भी मख
ु रत हई है. गायक हो
या गीतकार सभी ने गाया और पसदं िकया. अनेक समािध
साधक ने बड़ी ची से सनु ा तथा अपने भाव को िनमल कर भव सार वत् किव नय च वत मणाचाय
को सधु ारा. मणाचाय ी िवभव सागर जी शिं सत और
ी 108 डॉ. िवभवसागर जी महाराज
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तेरी छ छाया भगवन् !, मेरे िसर पर हो |


मे रा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||

जहाँ पच
ं क याणक होवे, वहाँ चला आऊँ |
तीथकर के ज मो सव पर न न करा आऊँ ||
िजसने जैसा ल य बनाया, वैसा फल पाया |
दी ा लख दी ा को धा ँ , यम- संयमधर हो |
क पवृ तो फल दाता है, य ना दे छाया ||
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||
शांित िसंधू सा मरण समािध कुंथल िग र पर हो |
तेरी छ छाया.....
मे रा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||
तेरी छ छाया.....

मेरे पु योदय से गु वर आप यहां आए | ानी अपने ान भाव से, ान भाव रचता |


पु य े म पु य पु ष के शुभ दशन पाए || अ ानी अ ान भाव से, अ भाव रचता||
अ य े म िकया पाप सब यहां िवन र हो | भाव रिचयता तू ह ानी ! रचना सख ु कर हो |
मे रा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो || मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||
तेरी छ छाया..... तेरी छ छाया.....
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अ य ा अ य िव ा, अ य संयम दो |
िबना िखलाये कै से खाऊँ , खाया ना जाये |
दो अ य वैरा य िजने र दो, अ य शम-दम दो ||
दाता ावक कर ती ा, कब सपु ा आये ||
दय कमल पर सदा िवराज , गु पद पु कर दो |
पा दान कर हष मनाऊँ , य नविनिध कर हो |
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||
मे रा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||
तेरी छ छाया.....
तेरी छ छाया.....

ना जाने िकस भाव म मने कै सा पु य िकया |


उसी पु य के फल भगवन् ! दशन यहाँ हआ ||
मने चरण छुए दो तेरे, तुमने दय छुआ |
इस दशन का फल भी िजनवर, शा त सुंदर हो |
मेरे आ म देश पर तब, अ ु त असर हआ ||
मेरा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||
तेरे गुण मुझम कटे य , सर इ दीवर हो |
तेरी छ छाया.....
मे रा अंितम मरण समािध, तेरे दर पर हो ||
तेरी छ छाया.....
मशः –अगले अंक म...
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पु षाथ िसि उपाय धारण करके , िन थ अव था िजनका साथ बध ं से छूटने


म सहायक होता ह आते बढ़ रहे ह. सव क वाणी के
(आचाय अमृतच वामी िवरिचत) अनुसार बताये गए आ म व प के ान से स य दशन
के आँठ भेद (अंग ) म पहले चार अंग का िचंतन करते
हए जाना क सहजता से भव सागर को पार करने के िलए
थोडा सा जाग क रहना ही आव यक ह. अब आगे परम
पू य आगम उपदे ा, चया िशरोमिण अ या म योगी, तु
संवधक, वा याय भावक आचायर न १०८ ी
िवशु सागर जी महाराज के आगम च ओ ु ं से, त व का
ान करते हए िजनवाणी जगत क याणी और महावीर
वामी क पावन िपयूष देशना का रसपान करते हए आगे
(पु षाथ देशना) बढ़ते हए जानने का यास करगे िक आचाय भगवन
(आचाय ी िवशु सागर जी के वचनांश) अमृत च वामी बता रहे ह. िकस कार से वह जीव
िस िशला पर आरोहण कर सकता ह. इस थ ं राज का
मंगलाचरण तो आपको कंठ थ हो ही गया होगा. इस
ंथराज के मंगलाचरण िजसमे आचाय भगवन ी अमृत
च वामी ने ान योित को ही नम कार िकया गया
ह. इसम यि को नह , गुण का ही वणन ह और पू य
बताया गया ह.
नोट : अब तक आपने छ बीस गाथाएं पढ़ ली है और
उनको समझ भी िलया ह िक मो माग पर कै से बढ़ते
चले. आपको पुनः याद िदला द क यह माग हम सभी
के िलए बता रहे ह परम पू य ितपल मरणीय, चया
िशरोमणी, अ या म योगी, आगम उपदे ा, वा याय
भावक, ुत संवधक, आचाय र न ी 108 िवशु
सागरजी महाराज क देशना “पु षाथ देशना” जो िक
महान त व िव े षक आचाय ी अमृत च वामी क
महान रचना “पु षाथ िसद् युपाय” पर आधा रत ह.
+ +
सभी इसे भािलभात समझकर मो माग पर िनरंतर त यित परं योित: समं सम तैरन त पयायै: |
अबाध गित से अ सर हो रहे ह. दपणतल इव सकला ितफलित पदाथमािलका य
आपने अब तक िपछली छ बीस गाथाओ ं म नय ||१||
यव था, स य ि जीव के िवचार और प रणाम से परमागम य जीवं िनिष जा य धिस धुरिवधानम् |
जीवन म अमूल-चुल प रवतन से वकम के प रणमन सकलनयिवलिसतानां िवरोधमथनं नामा यनेका तम्
और स यक पु षाथ से अपने िवशु व प क ा ी ||२||
का ल य करते हए िन थ आलौिकक वृि से र न य
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मशःगतांक से आगे ....... है. अत:ु दी ा-गु के ित उपकार-भाव तो आएगा, लेिकन


“उपगूहन अंग” तीन कम नौ कोटी मिु नराज के ित अनादर भाव भी नह आना
चािहए. यिद आता है तो वह तेरी अ ानता है.
धम ऽिभव नीयः सदा मनो मादवािदभावनया | भो ानी ! लोग त व ानी तो बनते ह, पर त व क
परदोषिनगूहनमिप िवधेयमुपबृंहणगुणाथम् ||27|| गहराई म नह उतरते. त व क गहराईयाँ आ जाने पर तेरी
अ वयाथ :- ी म स य व झलकता है. हमारी मणसं कृ ित म
उपबृंहण गुणाथम् = उपबृंहण नामक गुण के अथ. गणु सपं न बालक भी पजू ा जाता है और गणु हीन वृ के ित
मादवािदभावनया = मादव, मा, स तोषािद भावनाओ ं मा य थ भाव रहता है. उसके ित षे भी नह है, परंतु राग
के ारा. सदा = िनरंतर. आ मनो धमः = अपने आ मा भी नह है. िजसके संयम म िशिथलाचार है, यिद ऐसे जीव को
के धम अथात् शु वाभाव को. अिभव नीयः तुम बहमान देते रहोगे तो उससे िशिथलाचार ही पोषण होगा;
=वृि गत करना चािहए और. पर दोषिनगूहनमिप =दूसर लेिकन यिद उसके ित ेष करोगे, तो तु ह कम का बंध होगा.
के दोष को गु रखना भी. िवधेयम् =क य-कम ह. इसिलए हमारे आगम म गभं ीर सू दान िकये है िक ाणीमा
मनीिषय ! भगवान महावीर वामी क िद या देशना के ित मै ीभाव, दीन के ित क णा भाव, गिु णय के ित
हम सभी सनु रहे ह. आचाय अमृतच वामी ने बहत ही मोद-भाव और िवपरीतवृि वाले के ित मा य थ-भाव
सहज सू िदया है िक ि ही मढ़ू है, ि ही अमढ़ू है. य न रखो. यही समता का भाव है.
तो मढ़ू है न अमढ़ू है. य तो य है, य के ित ीित भाव भो ानी ! अमढ़ु ी भाव को िन य व यवहार दोन
का नाम मढ़ू ता है. यथात य, जैसा है वैसा ही भाव होना, ि से समझो. हमारे आगम म वदं ना के भी अतं र िदए ह. कोई
अमढ़ू ता का भाव है. पू य को पू य, आदरणीय को आदरणीय चारी अपने आपको नमो तु कहलवाने लग जाये, यह
और परमपू य को परमपू य मानना, यह िनमल ि है. परंतु आगम के िव है. ऐलक व ु लक जी के िलए आगम म
स माननीय को पू यनीय, पू यनीय को परम पू यनीय मानना 'इ छािम' कहा है. आियका माताजी को 'वदं ािम' कहा जाता
जहाँ तुमने ारंभ िकया, वह मढ़ू ता का उ व हो जाता है. है. पंच परमे ी ही 'नमो त'ु कहलाने के अिधकारी ह. यिद इसके
मनीिषय ! पंच परमे ी मा परम पू य है, शेष आपके िवपरीत बहमान रखते हो तो िजनवाणी कहेगी िक यह तु हारा
स माननीय हो सकते ह, आदरणीय हो सकते ह, पू यनीय हो बहमान नह , अ ान-भाव है. अहो ! अिभवादन, बहमान
सकते ह, लेिकन देवािधदेव क ेणी म यिद आपने अ य देव िवनय कर, आशीवाद भी ा कर, य िक आशीवाद क भी
को रख िलया, यही मढ़ू ता है. के ेणी है. यिद कोई चाडं ाल नम कार करने आता है, िहसं क
भो ानी ! भवनवासी, यंतर, योित क और जीव नम कार करने आता है तो मिु नराज कहते ह 'पाप यो त'ु
वैमािनक – इन चतिु नकाय के देव को नह मानना भी मढ़ू ता - तेरे पाप का य हो. आगम कह रहा है िक सभी को समान
है. और इन देव को देवािधदेव मानना भी मढ़ू ता है. देव, देव आशीवाद नह िदया जाता. पर तु ी असमान नह है;
ह; देवािधदेव देविधदेव ह; िव ागु िव ागु ह; िश ागु क याण क भावना सबके ित है. यिद कोई स यक ी
िश ागु ह. िज ह ने िम या व व असंयम का प र याग िकया धमा मा 'नमो त'ु कहता है तो योगी के ी मख ु से िनकलता है
है, वे धम के गु ह. िजनके अन तानबु धी, अ याखान, - ' सद् धम वृि र त'ु - तेरे धम क और वृि हो. जब कोई
याखान, क सवघाती कृ ितय का उदयाभावी य है व समक -साधक नम कार कर, जो र न यधारी है, तो
देशघाती सं वलन- कृ ित का उदय है, ऐसे सम त मिु नराज 'समािधर त'ु आप क समािध हो. िम या ि धमा मा है तो
हमारे िलए परम पू य है. यान रखना, कोई तु हारा उपकारी उसे 'दशन-िवशिु भाव, तेरे दशन क िवशिु हो यािन तझु े
िवशेष भी हो सकता है, और उसके ित िवशेष बहमान होता
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स य व क ाि हो, ऐसा आशीवाद दगे. आगम क मयादा बंदी बनाकर ले जाएगा. पाप के िवपाक का उदय आया तो
है. 'धमराज'-जैसे जीव क भी बिु िवपरीत हो गई थी. तु डा
भो ानी ! शि क बात को अिभ यि ारा कहना म सब कुछ हार गए, यहाँ तक िक नारी को भी दांव पर लगा
भी िम या व है. अ रहतं , िस , आचाय, उपा याय, साधु मेरी िदया. यह कम क िविच ता है. कहाँ गए थे देवी-देवता जब
आ मा म िवराजते ह, इसिलए मेरी आ मा ही मेरा शरण है. एक शीलवंती के चीर को ख चा जा रहा था ? देखो, अमढ़ू -
िन य ि है और यवहार ि से येक परमे ी के ल ण ी अगं का पालक कहता है िक म आराधना तो पंच परमे ी
िभ न है; येक परमे ी का य िभ न है, येक परमे ी के क क ं गा, परमे ी के साद से कोई मेरी सेवा करने आ जाए
गणु िभ न ह और मल ू गणु भी िभ न है. यह परमे ी का तो मझु े कोई एतराज भी नह . सीता ने देव का आ ान नह
या यान है, परमे ी को परमे ी ही समझना. आपके आगम म िकया, पंच-परम-गु का आ ान िकया था. अहो ! देखो संसार
चार देव ह - देव, अदेव, कुदेव और देवािधदेव. यह शीश इनम क दशा जब पु य बल होता है तो िनिम भी ऐसे सामने होते
देवािधदेव मा को ही झक ु ता है, शेष तीन को नह . 'अदेव' उसे ह. के वली भगवान क आराधना करने जा रहे थे देव आकाश-
कहते ह िजसम देव व क लोक मा यता है जैसे कोई ितयच क माग से. सौ-धम देव एक देव को आ ा देता है िक आप जाओ
आराधना कर रहा है, कोई वृ क आराधना कर रहा है और शीलवंती सीता के शील क र ा करो. यिद आज यह उपसग
कोई प थर क आराधना कर इसम धम मान रहा है, यह 'अदेव' दरू नह िकया लोग क शील-धम से आ था उठ जाएगी. देख
क आराधना है. जो वीतराग माग से िवपरीत है, िम या व म रहे थे राम ल मण ! राम ल मण को तो ठीक है, उन लव-कुश
संल न है और कुिलंग धारण िकये ह, वे 'कुदेव' क ेणी म है. क लाल आख ं को देख लो. िजनक मां अि नकंु ड म कूद रही
जो चार, िनकाय के देव है वे सामा यत: 'देव' ह और जो सौ इं हो, उन लाल के दय से पूछना - बेटे तुम कै से देख रहे थे ?
से पू यनीय वदं नीय है, अठारह दोष से रिहत है, वह सव भु पर ध य हो उस मां को िजसने अपने बेट का राग नह िकया
'देवािधदेव' ह. हम देवािधदेव क ही वंदना करते ह, शेष सबका परंतु अपने पित को स य का प रचय िदया. यिद सीता इस
यथा यो य स मान रखते ह, पर अनादर िकसी का नह है. मां उपसग से मख ु मोड़ लेती तो लोक का कलक ं जाने वाला नह
िजनवाणी कह रही है - 'बेटे यान रखो, आपका आंगन बहत था. अहो ! एक नारी वह है जो दोन कुल को उ जवल करने
है, वही तुम खेलो, दसू रे के आगं न म मत जाओ. जब मेरी मां वाली होती है एक नारी वह है जो दोन कुल को मिलन करने
का आगं न संकुिचत हो जाएगा तभी सोचँगू ा. लेिकन दिु नया वाली होती है. यिद नारी क भावना िनमल है तो दोन कुल म
िम या व क आराधना कर रही है िक कुछ हो न जाये. एक शोभा है और नारी क भावना िगर गई वह दोन कुल डूब गए.
स जन आए बोले - महाराज आपको जगह-जगह सभी कार भो ानी जब अि न का नीर हआ तो जनक भी खश ु
के ऐसे थान पर िवहार करना होता है अतः आपको कुछ थे, कनक भी खश ु थे, राम का प भी स न था, अयो या म
िसि रखना चािहए. भो ानी ! िजसने पंच परमे ी के पद को भी जय जयकार हो रही थी. परंतु ध य हो, हे सीते ! आपने
ही ा कर िलया हो, वही डरने लगे तो परमे ी िकस बात का स य व को जयवतं िकया, इसके साथ-साथ िजन-शासन को
? य ? णमो लोए स व साहण'ं क आराधना करके म देव भी जयवतं िकया और नारी जाित को आपने िनमल िकया.
को बल ु ाऊं ? नह , म तो देवािधदेव क आराधना क ं गा, देव नारी जाित का आपने बहमान रखा. एक वह सपू नखा और
तो अपने आप आएगं े. मथं रा भी नारी थी िजसने परू ी नारी-जाित को ही बदनाम कर
भो ानी जब तक िनमल स य व तु हारे अदं र म िदया. ऐसी एक धन ी भी थी, िजसने काम क पीड़ा म आकर
नह गजँू गे ा अथात् र न य नह ह तो अपू य हो और र न य अपने पु के ही दो टुकड़े कर िदए थे. उनका कोई नाम नह
है तो पू य हो. सखु -दखु र न य के हेतु नह है, यह पु य-पाप लेता परंतु जब भी शीलवि त के नाम मख ु पर आएगं े तो सती
के हेतु है. पाप का िवपाक है तो हजार सैिनक के बीच, श ु 'सीता' 'मनोरमा' का नाम ही आएगा.
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भो ानी यवहार ि म चचा चल रही है. चू हा, यिद कदािचत् कुछ करना भी पड़े तो कह कर भल ू जाता है,
च क , मसू ल, उखरी ये कोई देव नह है. इस बात से भी मत य िक कहना पयाय का धम था, सनु ना पयाय का धम था परंतु
घबराना िक यह हमारे कुलदेवता ह. आचाय िजनसेन वामी ने िनज म ठहरना मेरा धम है. अरे ! जो अपने को छोड़कर दसू रे
महापरु ाण म िम या व छोड़ने क िविध का कथन करते हए, के घर बैठ जाये, उसको यािभचारी कहते ह. िनज यान को
इन देवताओ ं को संबोिधत करते हए िलखा है िक - बहत छोड़कर अथवा िनज य को छोड़कर जो पर के पीछे पड़ा है,
अ छा होगा यिद आप भी मेरे साथ िमलकर अ रहतं देव क उसको 'समयसार' यािभचारी कहता है. इसिलए संबंध को
आराधना करो. अब म अ रहतं क उपासना क ं गा आज से वभाव मत बना लेना, अ यथा रोना ही रोना पड़ेगा, य िक
आपको मानना बंद करता हँ. जब ऐसे ढ़ आ था तु हारे अदं र संबंध िव छे द होते ह और वभाव िविछ न होता नह है; यह
होगी तो वे भी आकर तु हारे चरण पकड़ लगे. य िक स यक कृ ित का शा त िनयम ह. भो ानी ! जो पयाय उपजती है,
ी जीव क देव भी पूजा िकया करते ह. यहां िन य ि कुछ वह िवनशती है, वह दसू री पयाय को भी ा होती है. इस स य
और कहेगी िक हे जीव ! नाना पयाय तेरा धम नह है; नाना को समझने वाला कभी नह रोता. परंतु जो रोता है वह अस य
य म िल होना तेरा धम नह है. पर- य को सभं ालना ही म जीने को स य मानकर रो रहा है. इसिलए, भैया ! िजसे तू
सबसे बड़ी मढ़ू ता है. आत: जो पर य को पर य ही मानता िवयोग कह रहा है, वह भी स य है और िजसे संयोग कह रहा
है, व- य को सोव- य मानता है, वही स चा अमढ़ू ी है वह भी स य है; परंतु िजसका िवयोग व संयोग नह , वह परम
ह य िक बिहरा म-भाव ही मढ़ू ता है और अतं र- आ म- स य ह. यिद परम स य को ा करना चाहते हो तो आज से
भावना ही अमढ़ू ता है. हँसना व रोना बंद कर देना, य िक दोन कषाय है. इसिलए
भो चैत य ! यिद आ मा पर क णा है तो आप ऐसे आपसे मण-सं कृ ित कह रही है िक हँसो मत, रोओ मत,
काम मत करो जो कुल परंपरा के िव हो और सं कृ ित- म य थ रहो.
िव ह . यिद तमु िम भी हो तो अपने साथी का सहयोग भी मनीिषय ! यान रखना िक पंच-परम गु व वीतराग
कर देना िक भो िम !आपको ऐसे गलत काय को करते कै से शासन के ित यिद कोई िवपरीत कथन करे गा, मेरी साम य
देख सकते ह ? इसका नाम िम ता है. जब िपता क अ सी वष होगी तो म उससे कहगं ा िक ऐसा मत कहो. यिद साम य नह
क उ म पु सेवा करता है तब िपता व पु क पहचान होती है, तो म उसको सनु ँगू ा नह , उठ कर चला जाऊंगा. धम व
है. धमा मा क आलोचना सुनकर अपने जीवन म गंदगी नह
भो ािनय ! यान रखना, ािनय संत क पहचान भरना चाहता, य िक यिद खोटे सं कार मेरी पयाय म भर िदए
तब होती है जब उपसग /प रषह / आलोचनाएँ हो रही ह , िफर गए और वहाँ मेरी समािध चल रही होगी, तो वे श द मेरे अदं र
भी अपनी समता म म जी रहा हो. इसिलए, हे मनीिषय ! गँजू ने लगगे, तो मेरी समािध भंग हो जाएगी. िजनवाणी कह रही
अपनी-अपनी पहचान कर लेना, अपने को मत भल ू जाना. यह है: उ म पु ष वह होते ह जो वयं के क याण क िचंता करते
सब पयाय के सबं धं झलक रहे ह, झलकगे, य िक ससं ार ह. ह; म यम पु ष वह होते ह जो शरीर क िचतं ा म डूबे ह; जो
इसिलए जो अमढ़ू ी व को भी समझ लेता है, दसू र के दोष भोग क िचंता म िल है वे अधम है.
और स मान के िलए ही अपना ही दोष, अपना ही स मान भो ानी आ माओ ं ! भगवान महावीर दिु नयाँ को नह
समझता है सधु ार पाये तथा भगवान आिदनाथ अपने नाती को नह समझा
वह चेतन आ मा ! परम पु ष वह होता है, जो बोलते पाये, तो हम कौन से खेत क मल ू ी है. सब जानते ह िफर भी
हए मौन रहता है. अपने आप को त व म ि थर करने वाला नह मान रहे. उनक होनहार वह जाने, हम सं लेष-भाव नह
मण गमन करने पर भी गमन नह कर रहा, देखने पर भी देख करना. भगवन् अमृतच वामी कह रहे ह उपगहू न का दसू रा
नह रहा; िफर भी सब कुछ कर रहा है, यही व प लीनता है. नाम उपबृंहण भी है. वयं के गणु को एवं दसू रे के अवगणु
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को ढँकना तथा दसू रे के गणु को अपने अवगणु को कट


करना, इसका नाम उपबृहं ण-अगं है. आप यह िव ास रखना अिहंसा ही मंगलभूत शरण है
िक िकसी क िनंदा करने से िनंदा होती नह है और िकसी क अरे ओ मुमु ु !
शसं ा करने से शसं ा होती नह . यिद आपने समता से सहन अिहस ं ा ही धम
कर िलया तो असं यात गणु ी कम िनजरा हो रही है. यान रखो, अिहसं ा ही धम
यश भी यश:क ित नाम कम से तथा अपयश भी अपयश:क ित और अिहसं ा ही
नाम कम से िमलता है परंतु िन दा करने वाले बेचारे यथ म मगलो म शरणभूत,
कम का बंध कर लेते ह, उनक हालत खराब ही है. किवय ने साधक भी
तो िलख िदया है
"िनदं क िनयरे रािखये, आँगन कुटी छबाय" िजसका वरण करते
अपने आंगन म कुटी बनवाकर समता से िनंदक को और िजस पर िन य चलते
भी आप स मान दे दो. और करते अपनी हर ि या अिहसं ामय
“भगवान् महावीर वामी क जय” इसिलए नमन है
ऐसे उ कृ अिहसं ा धम को
य िक

अिहस
ं ा करती न-के वल
पर क र ा
वह तो करती अपनी भी र ा
अिहस
ं ा अपनाओ
र क बनो
र ा करो अपनी भी
पर क भी.....|

आचाय ी अमृतच वामी ारा रिचत पु षाथ रचनाकार : आचाय ी िवशु सागर जी महाराज.
िसद् युपाय पर आधा रत आचाय ी 108 िवशु
सागर जी महाराज क यह पु षाथ देशना थ
को आप िनशु क घर बैठे, अपने मोबाइल पर ा
करना चाहते ह तो हम सपं क कर. इसके साथ अ य
ंथ के िलए भी संपक करे :-
सपं ादक : पी. के . जै न ‘ दीप’ - 9324358035.
नमो तु शासन सेवा सिमित (रिज.), ठाणे, मुंबई.
……….. मशः “श द अ या म पंथी का” से साभार
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दय वािद व, गमक व आिद अनेक ितभा से िस ा त संर ण


का काय िकया. िज ह ने िसंहनाद करके ितवािदय से वाद -
िववाद करके स यक् धम, क थापना क . आप किवय के
जनक अथात् ा माने जाते ह. आपक ितभा के सामने कोई
िटक नह पाता था. आपने या ाद और अनेकातं से व तु
यव था को समझाने का यास िकया. यि य म एकांत क
अवधारणा को खिं डत भी िकया. हम कह सकते ह िक -
सम तभ क भ ता, िद य ान स कार |
"सव दय तीथ के कता स यक् धम बताय कर, िकया जगत उपकार ||
आचाय भगवन् सम तभ वामी" किवय मे ा हए, िम यातम को नाश|
वादी बन शा ाथ िकए, कर सत् धम काश ||
तीथकता तीथकर ारा िद य विन के मा यम से िदया ितप ी िस ांत से, जमा ना पाये पाँव|
गया उपदेश ही िजनागम है. िजसके मा यम से अनंतानंत जीव िसंह गजना आपक , करती खंिडत दांव ||
का क याण होता है. िजनके िचतं न, मनन से यि अपने
आचरण को िवशु करता है. िवचार क पिव ता बनाता है. आचाय सम तभ वामी जब भ म रोग से पीिड़त हये
िव के ािणय का सरं ण, उनके ित सहानभु िू त, उनम सौहाद तब िववेक पणू तरीके से रोग का शमन िकया. आपके दय म
थािपत करने क भावना, िवचार म अपन व, सम वय और िजनवाणी, िजन िस ा त, देव, शा , गु और िजन शासन पर
सवं ेदना क िवशु बनती है. ऐसी पिव िजनवाणी को अिं तम अटूट ा थी. अथात् आप िवशु स यक् दशन से संयु थे.
तीथकर महावीर वामी के िनवाण प ात आचाय भगवन् धरसेन यही कारण था िक िपं डी को िसर झक
ु ाने, राजा क िजद पर साफ
वामी ने आचाय भगवन् भतू बली एवं पु पदतं वामी के मा यम इक
ं ार कर अपनी िनडरता का प रचय िदया. िफर भी स यक् दशन
से िलपी ब करवाया. तब से यह परंपरा अ ु ण और िनरंतर क मिहमा व प आपने 24 तीथकर क तुित क , िजसम
चली आ रही है. आचाय परंपरा क िवशेष िज मेदारी और उनके चं भ भगवान क तिु त म िवशु से, िपडं ी म चं भ भगवान
कत य का िवशेष अंग िजनवाणी का संर ण संवधन और कट हए. जो िक स य व का माण और उनके अितशय
प रवधन करना रहा है. व प मा यता को सभी ने नमन िकया.
अ ध नह सद् भ बने, तक िवशारद प |
याय िसि क रीित म, दे स यक् व प |
भ म रोग होने के बाद आचाय ी ने पनु ः मिु न दी ा
हण क ऐसा िशलालेख सं ह म प उ लेख िमलता है –
व ो-भ मक-भ म-सा कृित-पटु: प ावती देवता,
द ोदा - पद व- म - वचन- याहत- च भ: |
उसी म म अिं तम तीथकर के बाद तु धराचाय, आचाय स सम तभ गणभृ ेनेह काले कलौ,
सार वताचाय, बु ाचाय, परंपराचाय, किव, तुितकार और जैन व म सम तभ मभव सम ता मुह: ||
लेखक प म भेद से आचाय ने अपने कत य का पालन करते अथात् जो अपने भ मक रोग को भ मात् करने म चतुर
हए, िजनवाणी को पोषण िदया है. आचाय सम तभ वामी ह. प ावती नामक देवी क िद य शि के ारा िज ह उदा पद
ऐसे ही आचाय है, िज ह ने अपनी तािककता, दाशिनकता, किव क ाि हई. िज ह ने अपने मं वचन से च भ को कट
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िकया और िजनके ारा यह क याण कारी जैन माग, इस भावना का अवसर िमला. तीथकर महावीर के बुिनयादी और
किलकाल म सब और भ प हआ, वे गणनायक आचाय सव दयी िचंतन क अनु ेरणा के साथ समता, समानता,
सम तभ बार बार बंदना िकए जाने यो य है. सावभौिमकता, सम वय, संयम, और शु ता के ित भावना को
आचाय ी दशन, सािह य, आगम एवं षडदशन के मजबूत करने का उप म आपके सव दयी वचन व या या से
पारगामी ाता थे. आपने स पणू दशन का अ ययन करके उनम उस समय के भ य जीव ने ा िकया. साथ ही जैन दशन को
विणत एकांत िम या धारणा को अनेकांत स यक् प िदया. एवं भिव य क पीढ़ी के आचाय को सव दयी िचंतन के िलए,
शा ाथ कर याय, माण, नय, िन ेप, आगम, तक, हेतु आधार आपके थं से िमला.
या ाद, वा य- वाचक, अभाव व तु धम िन पण एवं भावांतर ऐसे ही महान आचाय िजनके यि व के संबंध म ये
कथन, त व का अनेकातं प ितपादन, माण के म भावी व पिं यां िनि त प से उनक महानता को दिशत करती ह -
अ मभावी भेद क प रक पना, माण के सा ात् और परंपरा किवय गमकाना च वािदनां वि मनामिप,
फल क िववेचना, माण का व -पराभास ल ण क िववेचना, यश: साम तभ ीयं मूि न चूडामणीयते |
अनमु ान से सव क िसि , आ का तािकक परी ा धान नम: सम तभ ाय महते किववेधसे,
िन पण, व तु, य, मेय का व प और ई र के कता, कम य चोव पातेन िनिभ ना: कुमता य: ||
,फल दाता आिद का िवखंडन करते हए वयं आ मा ई र व प अतएव पू य आचाय वर भगवन् सम तभ वामी के
है, इसक िसि आिद अनेक प से िजन धम, शासन क ी चरण म अपनी िवनत ाथना िनवेिदत करता हँ िक आपके
पताका फहराने वाले सव दयी शासन को सव क याण िहत अंश हमारे अंदर वेश कर जाये तािक हम भी िजन शासन क
स पािदत िकया. िजनक अलौिकक िद यता को देखकर व महती भावना म स यक सहभागी बन सके .
तािकक या यान को सनु कर, स पणू जन मानस त ध रह जाता आचाय े अवधारणा, फैले जगत भाव |
था. स य के व प का यह मािमक और स य क ओर ले जाने
वाला सवं ाद िजन शासन क सव ाही सोच, सदाचरण क न व
चरण कमल िनमल नमे, हो सव दयी भाव ||
से मानव जीवन क उ नित और सवधम ाणी समभाव क डॉ िनमल शा ी
यव था लोग को े तम लगी, िजसे राजा , महाराजाओ,ं
जाजन ने सहष वीकार िकया. अतः हम कह सकते ह िक - जैन दशन के िव ान
षट् दशन पारंगत बन, िकया धम उपदेश | दाशिनक लेखक
असत् मा यताएं हरी, सत् का िदया संदेश||
टीकमगढ़
त व अनेकातं प है, अनेकांत से जोड़ |
व तु यव था िस कर, स यक िसि म मोड़ || नोट: जैन सं कृ ित के जाने-माने खर िव ान,् किव और मख ु र व ा के
या ाद क युि याँ , मको कर चकचूर | प म सभी डॉ. िनमल शा ी से प रिचत ह. वे ही नह उनका पणू
वाद िववाद मट कर, धम अनेकांत पूर || प रवार भी िजन-शासन क सेवा म लगा हआ ह. प रवार के सभी सद य
अपने अपने ान से माँ िजनवाणी क सेवा म लगे हए ह. आपक
आपने अपनी का य कुशलता, तुित ा, अलंकार छटा,
धमप नी डॉ. रे खा जैन एवं सपु ु ी कु. िनहा रका जैन भी अ छे लेख और
छ दकला, यायिव ा, दाशिनक मा यता, आ याि मक व पता
किवताये ँ िलखते ह. हम, नमो तु शासन सेवा सिमित प रवार उनका
और तीथकर के उपदेश क िनद ष या या ने चु बक य भाव
वागत, अिभन दन करता ह और आशा करता है िक वे आगे भिव य
सृिजत िकया. िजससे किवय को का य रचना का माग, म भी इसी तरह माँ िजनवाणी क सेवा करते रहगे.हम सभी उनके
दशनकार को समीचीन दशन क या या व तु यव था, त व उ जवल भिव य क कामना करते ह. – संपादक एवं नमो तु शासन
क उपल धता, ईश व शि के ित जाग कता, ि को िनमल सेवा सिमित प रवार.
करने का साधन और सभी जीव म समानता क , सव दयी
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ØkUr] egku rkfrZd] milxZ fotsrk] vk| ije iwT; vkpk;Z
dk O;fäRo Jh leUrHknz Lokeh th dk izeq[k LFkku gSA nf{k.k Hkkjr ds
(भाग १) Qf.ke.MykUrxrZ mjxiqj ds pksy jktoa’kh; {kf=; egkjktk
ds vki lqiq= FksA vkidk tUe fo- la- 125 ekuk tkrk gS]
vkSj cpiu dk uke ’kkafroekZ FkkA1 ftu Lrqfr ’krd esa Hkh
ue% leUrHknzk; egrs dfo os/k lsA
vkidk ’kkafroekZ uke dk mYys[k feyrk gSA2 vki tgkWa
;}pksotzikrsu fufHk=k% dqerknz;% AA {kf=;ksfpr rst ls iznhi Fks] ogkWa vkRefgr lk/kuk vkSj
tSu /keZ n’kZu dh le`) ijEijk esa ohrjkxh loZK yksdfgr dh Hkkouk ls Hkh vksriksr FksA vkids iwoZ ds izkjEHk
fgrksins’kh rhFkZadj izHkq dh vksadkj /ofu :i L;k}kne;h fnO; thou dk vU; o`rkUr miyC/k ugha gksrk gSA ysfdu nf{k.kkiFk
ns’kuk dks fo"k; fofo/krkuqlkj izFkekuq;ksx] d#.kkuq;ksx] ds izkphu bfrgkl ls bruk vo’; Kkr gksrk gS fd &
pj.kkuq;ksx vkSj nzO;kuq;ksx bu pkj vuq;ksxksa esa foHkkftr ’kkafroeZu ¼450&75 bZ-½ dne oa’kh; ddqRLFkoeZu dk iq= FkkA
fd;k x;k gSA bu vuq;ksxksa ds vk/kkj ij vusd izHkkod ftldk jkT; dkaph esa FkkA ftlus ogkWa iYyoksa vkSj xaxksa ls
iwokZpk;ksZa us fo’kn~ vkxe xzUFkksa dh jpuk izk.khek= ds ekuo ;q) fd;kA ’kkafroeZu ds iq= e`xs’oj oeZu us vius firk dh
eu vkt Hkze fotfM+r gSA og la’k; ls Hkj x;k gSA bl Le`fr esa iykf’kdk ¼gfYl½ esa ,d tSu efUnj dk Hkh fuekZ.k
la’k; ds dkj.k og ’kjhj ls ttZj] eu ls fod`r ,oa vkRenhfIr djok;k FkkA bl vk/kkj ij ;g dgk tk ldrk gS fd vkids
ls ’kwU; gks jgk gSA euq"; lc izdkj ls vLoLFk gS] vkRek firk dk uke dkdqRLFk oekZ Fkk] vkSj vkius x`gLFkkJe dks
iaxq gks xbZ gS vkSj vUrj fo"k;klä ,oa fo"kkä gks jgk gSA /kkj.k fd;k Fkk o iq= dk uke e`xs’oj FkkA dne oa’k dk
bl voLFkk ls fudyus ds fy, iwokZpk;kZa }kjk fyf[kr vkxe mjxiqj ds dkWaph rd jkT; Hkh jgk gSA dkŒP;ka ukXukVdks∙ga
xzUFk ekuo thou ds fy, fl) jlk;u gSaA Lo&ij vkids bl okD; ls Hkh ;g /ofur gksrk gSA jktk oyhdFks
dY;k.ksPNqd ijeksidkjh vkpk;ksZa] euhf"k;ksa] xq#tuksa us ds mYys[kkuqlkj vki dkWaph vusd ckj i/kkjs FksA
LokRekuqHko jRukdj esa fueXu gksdj ftu xq.kjRuksa dks izkIr vkius lkalkfjd oSHko dks fuLlkj le>dj vius
fd;k muds dqN va’kksa dk Loys[kuh ls foiqy lkfgR; l`tu iq= e`xs’oj oeZu dks jkT; iznku dj tSu Je.k nh{kk vaxhdkj
djds tSu okM~e; dh Jh o`f) esa vf}rh; ;ksxnku fn;k gS] dhA vkidh d`fr;ksa dk v/;;u djus ls Li"V izrhr gksrk gS
lkFk gh nhiLrEHk dh rjg ekuo iFk dks Hkh izdkf’kr fd;k fd vkidk eqfu nh{kk LFkku ^dkWaph* Fkk] tks vkt dkathoje~
gSA ds uke ls fo[;kr gSA blls ;g fl) gks tkrk gS fd
tSukpk;ksZa esa egku~ O;fäRo vkSj d`frRo ds /kuh ;qx x`gLFkkoLFkk dk ’kkafroeZu gh eqfu voLFkk esa leUrHknz ds
iz/kku vkpk;Z Jh leUrHknz Lokeh egkoknh fotsrk] L;k}kn uke ls izfl) gq;sA dk’kh ujs’k ds fy;s Lo;a vkids }kjk
,oa vusdkUr fo|k ds izk.k izfr"Bkid jgs gSaA vkpk;Z leUrHknz iznÙk ifjp; rFkk djgkVd esa iznÙk vkRe ifjp; ds vk/kkj
tSu n’kZu ds xEHkhj fpUrd] vkpkj ’kkL=osÙkk vkSj ’kkL=kFkhZ ij fyf[kr Jo.kcsyxksyk ds f’kykys[k la[;k 54 rFkk vkpk;Z
fo}ku ds :i esa loZ= iz[;kr gSaA tSu txr ds fy, iwT; Jh ftulsu d`r vkfniqjk.k iz’kfLr esa vkids lqUnj O;fäÙo
vkpk;Z Jh th dk cgqvk;keh vonku ,oa egku midkj gSA dk foospu izkIr gksrk gSA

thou ifjp; vkSj Je.k nh{kk HkLed O;kf/k jksx vkSj mi’keu
tSu txr dh foey foHkwfr vkpk;Z Jh leUrHknz vkpk;Z leUrHknz Lokeh th dk eqfu thou egku~
Lokeh th dk O;fäRo cgqvk;keh gSA laLd`r tSu okM~e; ds riLoh dk thou FkkA vkius vkpkjkax esa izfrikfnr p;kZ ds
vuqlkj eqfu /keZ dk funksZ"k ikyu] nqLlg ri rirs gq;s
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vkSj xzUFk&jpuk esa lnSo layXu jgsA Lrqfr djrs gq, pUnzizHkq Hkxoku dh oUnuk dh rc f’ko th
vlkrk osnuh; deZ dk rhoz mn; fdlh dks ugha dh fi.Mh fonh.kZ gks xbZ vkSj mlesa ls pUnzizHkq Hkxoku dh
NksM+rk] ;g ,d uhfr gSA ;g uhfr vkpk;Z leUrHknz th ds ewfrZ izdV gqbZA bl ?kVuk ls jktk vkSj iztk esa tSu /keZ dk
Je.k lk/kuk dky esa ?kfVr gqbZA vki tc nf{k.k Hkkjr ds izHkko vafdr gqvkA vkpk;Z leUrHknz us o/kZeku i;ZUr
e.kqodgYyh uked LFkku esa fogkj dj jgs Fks] mlh le; prqfoZa’kfr rhFkZadj dh Lrqfr iw.kZ gksus ij jktk dks vk’khokZn
vlkrk osnuh; deZ ds rhoz mn; ls vkidks ^HkLed O;kf/k* fn;kA tSu f’kykys[k laxzg Hkkx 1 vfHkys[k la- 54 i`- 102
uked Hk;kud jksx gks x;kA rhoz {kq/kk osnuk mUgsa lrkus esa eqfnzr i| }kjk Hkh HkLed jksx mi’keu fo"k;d ?kVuk dh
yxhA eqfup;kZ ds vuqdy w vYi vkSj uhjl Hkkstu ls lqjlk iqf"V gksrh gSA3 Lo;aHkw Lrks= esa funZ;& HkLe&lkr~&fØ;ke~A in
ds eq[k dh rjg o`f) dks izkIr] mudh {kq/kk dh iwfrZ ugha gks ls Lokeh leUrHknz dh HkLed O;kf/k dk vuqeku rFkk
ldrh FkhA vr% vkidk ’kjhj fnuksafnu nqcZy gksrk x;k] fQj lEHkoukFk th dh Lrqfr esa vklh&fjgk&dfLed ,o oS|ks] oS|ks
Hkh vki fujfrpkj iwoZd eqfup;kZ dk ikyu djrs jgsA HkLed ;Fkk∙ukFk&#tka iz’kkUR;SAA bl Lrqfr esa oS| dk :id fn;k
O;kf/k jksx dk ’keu izpjq ek=k esa ikSf"Vd ,oa fLuX/k Hkkstu tkuk vkpk;Z leUrHknz dh thou ?kVukvksa dh vksj ladsr
feyus ij gh lEHko gSA fnxEcj eqfu ds :i esa fopj.k djrs ekuk tk ldrk gSA HkLed O;kf/k dk mi’keu gksus ds i’pkr~
gq, ,slk lk/ku ugha fey ldrk Fkk] vr% vkidks fnxEcj vkius izk;f’pr ysdj iqu% fnxEcjh nh{kk xzg.k dh vkSj
eqfuin dk fuokZg vlEHko izrhr gksus yxkA eqfu eqnzk esa ohj’kklu dk m|ksr djus gsrq fofo/k ns’kksa esa fogkj fd;kA
O;kf/k dk izrhdkj u le>dj vkius vius nh{kk xq# ls
lYys[kuk lekf/k ej.k nsus dk fuosnu fd;kA vkids nh{kk L;k}kn fl)kUr ds izfr"Bkid
xq# nh/kZn’khZ] /khj&ohj] lkglh vkSj fo}ku FksA os oqf)eku
fufeÙkKkuh Hkh Fks] mUgksaus vius fufeÙkKku ls ;g tkuk fd tSu okM~e; esa ;qxiz/kku vkpk;Z leUrHknz Lokeh
leUrHknz ls ftu’kkluks)kj gksus okyk gSA vr% mUgksaus izFke laLd`r dfo vkSj izFke Lrqfrdkj] iw.kZ rstLoh fo}ku]
lYys[kuk lekf/k dh vkKk u nsdj eqfu nh{kk NksM+dj jksx izHkko’kkyh nk’kZfud egkokfn fotsrk vkSj dfo os/kk ds :i
’keu dk mik; djus dh vkKk nh vkSj dgk fd jksx ’keu esa Lej.k fd;s x;s gSaA vkius HkLed O;kf/k jksx dh voLFkk
ds mijkUr iqu% eqfu nh{kk xzg.k dj ysaA O;kf/k dh izcyrk esa Hkh viuh izfrHkk dk fo’ks"k mi;ksx dj fofHké /keZ&n’kZuksa
leUrHknz th dh foo’krk FkhA ,oa mudh ijEijkvksa o ewyxzUFkksa dks fudVrk ls tkuk vkSj
le>kA vkids le; esa v’o?kks"k] ek=psV] ukxktqZu] xkSre]
vr% vkius xq# vkKkuqlkj jksxksipkj gsrq ukXU; tSfeuh vkfn vusd Økafrdkjh nk’kZfud fo}kuksa dk vkfoHkkZo
in dks NksM+dj] laU;klh cu x;sA bl in dk ifjR;kx djus gqvk gSA ftUgksaus [k.Mu vkSj e.Mu dj ’kkL=kFkZ fd;kA
ij mUgsa tks d"V vkSj [ksn gqvk] og opu vxkspj gSaA fdUrq vl}kn] ’kk’orokn] mPNsnokn] v}Srokn] }Srokn]
vUrjax esa jRu=; ds izfr vxk/k v[k.M J)k vkLFkk FkhA voäO;okn vkSj oäRookn bu ijLij fojks/kh oknksa dks ysdj
eqfu thou ls mUgsa cgqr vuqjkx Fkk] nq%[k gksuk LoHkkfod rÙo dh ppkZ gksrh Fkh vkSj mudk fofHk= dksfV;ksa ls fopkj
gSA fQj Hkh xq# vkKk dk ikyu djrs gq,] laU;klh cu vusd fd;k tkrk FkkA vkpk;Z leUrHknz us lkjLor vkpkj
txgksa ij fopj.k fd;kA fopj.k djrs gq;s vki okjk.klh O;oLFkkid ds :i esa tSu /keZ vkSj laLd`fr dks lqO;ofLFkr
uxj igqWapsA tgkWa jktk f’kodksfV ds Hkhefyax uked f’koky; rks fd;k gh gS lkFk gh viuh vkLFkk vkSj izfrHkk ds cy ij
esa tkdj jktk dks vk’khokZn fn;kA bl f’koky; esa tks Hkksx bldh mÙkqax /otk irkdk dks Hkh Qgjk;k gSA vius oSnq"; ls
yxrk Fkk] mlls vkidh HkLed O;kf/k jksx dk ’keu gks nk’kZfud xzUFkksa dk iz.k;u dj oknh cudj fofHk= oknksa dh
x;kA jktk us f’kofiaMh dks iz.kke djus dk vkxzg fd;k] rks leh{kk djrs gq, vusdkUrokn&L;k}kn fl)kUr dh izfr"Bk dh
vkius milxZ le>dj prqfoZa’kfr rhFkZadjksa dh Lrqfr vFkkZr~
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gSA vki ,sls izoh.k okXeh ,oa ’kkL=kFkhZ egkjFkh Fks ftudk FksA vkpk;Z ujsUnzlsu us vius xzUFk fl)kUrlkj laxzg esa
vusd LFkkuksa ij fofHk= /kekZuq;kf;;ksa ls okn gqvkA fy[kk gS fd & leUrHknz dk funksZ"k izopu izkf.k;ksa ds fy,
fgLVªh vkWQ duMht fyVjspj ds vuqlkj & foØe dh ,slk gh nqyZHk gS] tSlk fd euq";Ro dk ikukA vkpk;Z leUrHknz
izkjfEHkd lfn;ksa esa pqukSrh nsus vkSj Lohdkj djus dk izpyu us viuh d`fr;ksa esa rqyukRed :i ls fofo/k i{kksa dk cM+h
fjokt½ izpfyr FkkA phuh ;k=h Qkfg;ku ¼bZ-400½ us fy[kk gh izcyrk ds lkFk foospu fd;k gSA vkius viuh vykSfdd
Hkh gS & ml le; ;g nLrwj Fkk fd uxj esa fdlh lkoZtfud izfrHkk }kjk rkRdkfyd Kku vkSj foKku ds izk;% leLr
LFkku ij ,d uxkMk j[kk tkrk Fkk vkSj tks dksbZ fo}ku fo"k;ksa dks vkRelkr dj fy;k FkkA vki ,sls ;qx laLFkkid
vius er dk izpkj djuk pkgrk Fkk] ’kkL=kFkZ ds ek/;e ls gSa fd ftUgksaus tSu fo|k ds {ks= esa ,d u;k vkyksd fodh.kZ
viuh ;ksX;rk dk ifjp; nsus dh bPNk j[krk Fkk] rks og fd;k gSA
ml uxkMs ij pksV ekjdj lcdks ;g lwpuk nsrk FkkA vkpk;Z
leUrHknz us Hkh yksd fgr dh Hkkouk ls lEiw.kZ Hkkjro"kZ esa xq.kxkSjo fo’ks"k.kksa ls vyad`r
ifjHkze.k djrs gq, vusd LFkkuksa dks Hksjh&rkMu lwpuk }kjk
okn dk fo"k; cuk;kA vkpk;Z leUrHknz /keZ] U;k;] O;kdj.k] lkfgR;
Jo.kcsyxksyk ds f’kykys[k esa Li"V vafdr gS fd & T;ksfr"k] vk;qosZn] ea= rdZNUn] vyadkj dkO; dks"kkfn lHkh
vkpk;Z leUrHknz us djgkVd igqWapus ds iwoZ ikVyhiq=] ekyok] fo|kvksa esa fu".kkr gksus ds lkFk&lkFk gh okn&dyk esa vR;Ur
flU/kq] BDd ¼iatkc½ ns’k] dkaphiqj] oSfn’k esa iz/kku :i ls iVq FksA cM+s&cM+s fo}kuksa dks ’kkL=kFkZ esa vkius ijkLr fd;k
fopj.k dj okn dh Hksjh ctkbZ Fkh vkSj fdlh us Hkh budk FkkA ,sls vR;Ur izfrHkk’kkyh Lo≤ vkSj ij≤ ds Kkrk
fojks/k ugha fd;k FkkA4 vkids opu L;k}kn U;k; dh rqyuk gksus ds dkj.k gh lHkh mÙkjorhZ tSukpk;ksZa us vkids izfr
esa uis&rqys gq, rF; iw.kZ gksrs Fks] ftUgsa lqudj yksx eqX/k gks viuh vikj J)k O;ä dh gS vkSj fou; okD; iq"i vfiZr
tkrs FksA Jh vftrlsu vkpk;Z us vyadkj fparkef.k uked fd;s gSaA vkpk;Z leUrHknz esa vusd mÙkeksÙke xq.k fo|eku
xzUFk esa vkids okn dkS’ky ds lEcU/k esa fy[kk gS fd & FksA vkids vlk/kkj.k O;fäRo dh xq.kxkSjo iz’kalk ijorhZ
dqoknhtu izk;% viuh fL=;ksa ds lkeus rks viuh cgknqjh vkpk;ksZa loZ Jh fo|kuan Lokeh] vdyadnso] ftulsu]
dh Mhxsa gkWadk djrs Fks] fdUrq tc vkpk;Z leUrHknz ls mudk vftrlsu] okfnjkt lwfj] oknhHkflag lwfj] olquanh vkfn us
vkeuk&lkeuk gksrk Fkk] rks os vR;Ur fouez vkSj e`nqHkk"kh eqä daB ls dh gS rFkk vkidks HkO;Sdyksd u;u]
cu tkrs Fks] uhpk eq[k dj vaxwBs ls i`Foh dqnsjk djrs Fks rFkk lqrdZ’kkL=ke`r] lkjlkxj] ojxq.kky;] egkdoh’oj] lE;XKku
fdadrZO;ew<+ gksdj muls j{kk djus dh xqgkj djus yxrs FksA ewfrZ vkfn fo’ks"k.kksa ls vyadr` fd;k gSA HkxofTtulsukpk;Z
,l- ,l- jkeLokeh vk;axj us LVsMht bu lkmFk bfUM;u us vkfniqjk.k esa bUgsa dfo czãk dgdj ueLdkj djrs gq;s
tSfuTe uked iqLrd esa fy[kk gS fd & ;g Li"V gS fd fy[kk gS & dfo;ksa ds czãLo:i leUrHknz dks ueLdkj gks]
leUrHknz ,d cgqr cM+s /keZ izpkjd Fks ftUgksaus tSu fl)kUrksa ftudh ok.kh :ih otzikr }kjk dqer :ih ioZr fufHké
vkSj tSu vkpkjksa dks nwj&nwj rd foLrkj ds lkFk QSykus dk [k.M&[k.M½ gks tkrs gSaA leUrHknz dk ;’k dfo;ksa] xedksa]
m|ksx fd;k gS vkSj tgkWa dgha os x;s mUgsa nwljs lEiznk;ksa dh okfn;ksa rFkk okfXe;ksa ds eLrd ij pwM+kef.k ds ln`’k ’kksHkk
vksj ls fdlh Hkh fojks/k dk lkeuk ugha djuk iM+kA vr,o dks izkIr gksrk gSA6 vr,o vkpk;Z ftulsu us leUrHknz dks
Lokeh leUrHknz ,sls lk/kd vkpk;Z Fks ftUgksaus dsoy viuk dfoRo] xedRo] okfnRo vkSj okfXeRo vkfn xq.kksa dk /kuh
m)kj gh ugha fd;k oju~ ,dkUrokfn;ksa dh ladh.kZ ekufldrk crk;k vFkkZr~ ;s pkj xq.k muesa ije izd"kZ dks izkIr FksA
dh mxzrk dks f’kfFky dj leUo; ,oa loksZn; dk lUns’k fn;k vkpk;Z vdyadnso us vkidks HkO; thoksa ds fy, vf}rh; us=
vkSj fo’o ca/kqRo dh ’kqHkdkeuk dhA blhfy, vkpk;Z fo|kuan ,oa L;k}kn ekxZ dk fo’ks"k.k fn;kA
th us vkidks ^ifjos{k.k* ijh{kk us= ls lcdks ns[kus okyk
fy[kk gSA5 vki vU;ksa dks ijh{kk iz/kkuh cuus dk mins’k nsrs
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dfo oknhHkflag lwfj us vius xzUFk ^x| fpUrkef.k* laLd`r ds vk| tSu lw=dkj gksus dk xkSjo tSls rÙokFkZlw= ds
esa vkpk;Z leUrHknz Lokeh dh rkfdZd izfrHkk ,oa ’kkL=kFkZ jpf;rk vkpk;Z izoj mekLokeh th dks izkIr gS] ,sls gh L;k}kn
djus dh {kerk dh lqUnj O;atuk djrs gq,] mUgsa ljLorh dh fo|k ds lathod vkSj izk.k izfr"Bkid ijh{kk iz/kkuh] rkfdZd
LoPNUn fogkj Hkwfe cryk;k gSA mUgksaus fy[kk gS fd & muds pwM+kef.k Jher~ leUrHknzkpk;Z dks vk| tSu Lrqfrdkj gksus
opu :ih otzfuikr ls izfri{kh fl)kUr:i ioZrksa dh pksfV;kWa dk xkSjo izkIr gSA vkius ckSf)d fpUru vkSj ekuo thou
[k.M&[k.M gks xbZ FkhaA vFkkZr~ leUrHknz ds le{k cM+s&cM+s dh izksTToy dYiuk dks Lrqfr dkO; ds :i esa gh ewfrZeÙkk
izfri{kh fl)kUrksa dk egÙo lekIr gks tkrk Fkk vkSj izfroknh iznku dh gSA
ekSu gksdj muds le{k LrC/k jg tkrs FksA7 Kkuk.kZo ds
jpf;rk Jh ’kqHkpUnzkpk;Z us lxZ ,d ds ’yksd pkSng esa vkids }kjk l`ftr lkfgR; esa voxkgu djus ij
leUrHnz dks ^dohUnz HkkLoku* fo’ks"k.k ds lkFk Lej.k djrs izrhr gksrk gS fd ;g ekuork dh eqMsaj ij nsnhIeku psruk
gq, mUgsa Js"B doh’oj dgk gSA ik.Mo iqjk.k ds jpf;rk us dk fpjkx gSa] yksdeaxy dh iznhIr ykS gaS] Hkfä dk lq/kk
^Hkkjr Hkw"k.k* fo’ks"k.k ls lEcksf/kr fd;k gSA vyadkj dy’k gaS] laLd`fr vkSj lE;rk dk vkbZuk gSa] lekt lq/kkj
fpUrkef.k esa dfo dqatj] eqfuoa| vkSj tukuUnkfn fo’ks"k.kksa dk iFk n’kZu gSa] thou fodkl dk vfHkys[k gaS] ifj"d`r
}kjk vfHkfgr fd;k gSA bruk gh ugha nf{k.k Hkkjr esa miyC/k fopkj/kkjkvksa dh lEink gSa vkSj O;fäRo fuekZ.k gsrq thou ds
vusd f’kykys[kksa esa budh ;’kksxkFkk dk mYys[k feyrk gSA fy;s ikFks; gSaA vkids }kjk l`ftr 11 d`fr;ksa dk mYys[k
Jo.kcsyxksyk ds vfHkys[kksa esa rks bUgsa ftu’kklu ds iz.ksrk feyrk gSA ftuesa ls & 1& c`gn~ Lo;aHkw Lrks= vijuke
vkSj HknzewfrZ dgk x;k gSA bl izdkj vusd f’kykys[kksa vkSj prqfoZa’kfr Lrou 2& Lrqfr fo|k ftu’krd 3& nsokxe
lkfgR;dkjksa us vius xzUFkksa esa vkpk;Z leUrHknz Lokeh th ds Lrks= vijuke vkIr ehekalk 4& ;qDR;uq’kklu vijuke
fofHk= xq.kksa vkSj fo’ks"krkvksa dk mYys[k fd;k gSA ijekRe Lrks= 5& jRudj.M JkodkpkjA ;s ikWap d`fr;kWa miyC/k
vusd mYys[kksa esa vkidks Jqrdsoyh _f)/kkjh rFkk gSaA buds vfrfjä vuqiyC/k jpukvksa esa 6& thoflf)
Hkkoh rhFkZadj rd cryk;k x;k gSA8 vki rhFkZadj Hkxoku 7& rÙokuq’kklu 8& izkd`r O;kdj.k 9& izek.k inkFkZ 10& deZ
egkohj ds loksZn; rhFkZ ds Hkh izeq[k izoäk FksA Lrks= dkO; izkHk`r Vhdk vkSj 11& xU/kgfLr egkHkk"; dk mYys[k feyrk
dk lw=ikr vkils gh ekuk tkrk gSA tSu ijEijk esa rdZ ;qx gSA vkpk;Z ftulsu us gfjoa’kiqjk.k esa thoflf) jpuk dk
;k U;k; dh fopkj.kk dh uhao Mkyus okys vkpk;Z leUrHknz rFkk ukVddkj gfLrey us foØkUr dkSjoe~ uked xzUFk esa
leFkZ vkpk;Z gq, ftudh mfä;ksa dks fodflr dj vkpk;Z xU/k gfLr egkHkk"; dk mYys[k fd;k gSA
vdyadnso vkSj vkpk;Z fo|kuUn tSls vius ;qx ds mn~HkV
vkpk;ksZa us tSu U;k; dh ijEijk dk iks"k.k vkSj lEc/kZu
fd;k] lkFk gh vkidh Lrqfr ijd nk’kZfud d`fr;ksa ij okfrZd
vkpk;Z Jh leUrHknz Lokeh
vkSj fuo`fÙk tSlh Vhdk;sa fyfic) dj ekSfyd xzUFkksa ds iz.ksrk
gksus dk ;’k izkIr fd;kA ijorhZ vusd izfrHkk iqat vkpk;ksZa
dk d`frÙo
us xkxj esa lkxj dh rjg miyC/k vU; leLr d`fr;ksa ij
Hkh O;k[;k;sa fy[kdj muds fpUru dks lqjf{kr gh ugha j[kk
(भाग २)
vfirq vius dks d`rkFkZ le>kA ohrjkxh rhFkZadjksa dh Lrqfr;ksa esa nk’kZfud ekU;rkvksa
dk lekos’k vkidh vlk/kkj.k izfrHkk dk |ksrd gSA MkWa-
egku lkfgR; ltZd usehpUnz ’kkL=h T;ksfr"kkpk;Z fy[krs gSa fd & leUrHknz ,sls
lkjLorkpk;Z gSa ftUgksaus dqUndqUnkfn vkpk;ksZa ds opuksa dks
vkpk;Z leUrHknz th us tgkWa ,d vksj tu lkekU;
xzg.k dj loZK dh ok.kh dks ,d u;s :i esa izLrqr fd;k
dks /keZ dk ekxZ cryk;k ogha nwljh vksj vkids }kjk l`ftr
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bfrgkldkj izks- ,l- ,l- vkj- vk;axj us LVsMht bu lkmFk 10 vkxlkat;s bR;kfn Lrqfr fo|k i| n`"VO;A
bfUM;u tSfuTe esa fy[kk gS fd & nf{k.k Hkkjr esa vkpk;Z 11 vU;FkkuqiiéÙoa fu;efu’p;y{k.kkr~lk/kukRlk/;kFkZ
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cfYd laLd`r lkfgR; ,oa laLd`fr ds bfrgkl esa Hkh ,d fo’ks"k 12 th;kr~ leUrHknzL; Lrks=a ;qDR;uq’kklue~ A ¼1½
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dh nwljh&rhljh ’krkCnh esa ri&R;kx dh fnO;izHkk ysdj tSu डॉ ीमती अ पना
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tSu lekt dks izdkf’kr fd;kA dbZ ’krkfCn;kWa O;rhr gks tkus वािलयर
ij Hkh tSu lekt vkt Hkh izdkf’kr gSA vkius vius le; *
ds tu&thou dks uwru fopkj] uohu ok.kh] u;k deZ rFkk संपािदका एवं लेिखका
Kku dk izdk’k iqat nsdj v/;kRe ekxZ dh vksj izo`Ùk fd;kA
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djrh gWawA
JheRleUrHknzkfn dfo dqatj lap;e~ नोट: जैन सं कृ ित के उभरते प रिचत िव ान क ेणी म डॉ ीमती
Eqfuoa|a tukuana uekfe opu fJ;SAA अ पना अशोक जैन वािलयर, का नाम िवशेष प से िलया जाता ह .
bR;ye~ आपने जैन धम के मल ु भतू िस ातं - कम-िस ातं एवं गीता के कम
िस ातं पर तलु ना मक िववेचन िवषय पर शोध पणू िकया ह. आपक
अिभ िच अ ययन और लेखन म ह. आपने अनेक पु तक , पि काओ ं
lUnHkZ का संपादन भी बहत कुशलता से पणू िकया ह. िवशेष प से दादा
1 bfr Qf.ke.Mykyadkj L;ksjxiqjkf/kplwuuq k गु देव “ ाशील महामनीषी गणाचाय ी िवराग सागर जी महाराज’
’kkfUroeZukek JhlearHknzs.kA v"VlgL=h rkM+i= dh d`fr क अनूठी कृ ि -रचना “अनभु िू तयाँ” एवं “िवरागादश” का सपं ादन
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काय एवं “ व मोपलाि ध” िजसके उ लाि धकार आचाय ी ान
2 "kMja uooy;a pØekfy[; lIre oy;s ’kkfUr oeZ d`ra
HkofrA सागर जी महाराज ह, तथा अ य कई मण के लेखन का कुशल सपं ादन
prqFkZ oy;s ftuLrqfr’kra bfr p Hkofr vr% dfouke भी आपने िकया ह. िल ट बहत बढ़ी ह. हम, नमो तु शासन सेवा
xHkZapØ d`ra HkofrAA116okWa i|AA सिमित प रवार उनका वागत, अिभन दन करता ह और आशा करता
3 oU|ksHkLed--------------------------------------leUrkUeqgq%AA है िक वे आगे भिव य म भी इसी तरह माँ िजनवाणी क सेवा सदैव करते
4 iwoZa ikVfyiq=-------------------------------ujifr ’kknwZy रहगे.हम सभी उनके उ जवल भिव य क कामना करते ह. – संपादक
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एवं नमो तु शासन सेवा सिमित प रवार.
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मानस िचंतन - वा म सुखाय हेतु आचाय ी िवशु सागर जी महाराज कहते ह


िक जो अ छा है वह वयं अपनाओ और जो बुरा है उसे
दूर करते जाओ तािक हमम पिव ता ही पिव ता बनी रहे.

धम व तु के व प का भान कराता ह. चा र “साव लेशो बहपू य रािश” को यान म रखते


क ओर अंगीकार कराता है. दया क भावना बढ़ाता है. हए ावक य जीवन म पू य अजन म ि होनी चािहए.
ा उ प न कराता है. सभी म मै ी जगाता है. जीव पाप से पथ
ृ क रहने म िसि है.
मा म कृत ता क भावना पैदा करता है. हम अशभ ु से बचना चािहए. शभ ु म लगना
कषाय / अहं / वहम / रोष / शोक / आकुलता / चािहए िजससे शु क ओर हमारी पहच ं बन सके .
िवभाव /अदया / िहस ं ा / अिववेक और अनाचार से दूर यह मानस िचंतन है. आप माने या न माने यह
करता है. वा म सुखाय के िलए है.
धािमक ि याएं उलझाने का काय कराती है. इन डॉ िनमल शा ी
ि याय म समय, प रि थित, थान क अपे ा भेद होता
है इसिलए धािमक ि याओ ं पर बहस ‘ढाक के तीन पात’ डॉ िनमल शा ी
जैसी ि थित है. डॉ
तेरापंथ, बीसपंथ, ेता बर, िदगंबर और जाित जैन दशन के िव ान
के उपबधं न म सब बध ं न है. पथ
ं है, जो उलझाने का काय दाशिनक लेखक
ही करते ह. इनम उलझने से बचना चािहए.
टीकमगढ़
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“गु गुण मिहमा” तेरह छ द क छटा , देती शभु संदेश |


तेरा सो मम एक है, मेरा यही िवशेष ||12||
तुित िव ा िजनशतक, रचना बनी िवशेष |
िच का य क कुशलता, धम नीित उपदेश ||13||
चौबीस भगवान के , िच बंध गणु गान |
यह अनपु म उपकार है, िजन क मिहमा ठान ||14||
सौ प म रचा, िजनवर िच ेष |
भि रचना देखकर, कुछ ना बचा अशेष ||15||
अधं नह सत् भ थे, तक िवशारद आप |
याय िसि क रीित म, दरू िकया सतं ाप ||16||
आचाय सम तभ वामी षट् दशन पारंगत बन, िकया धम उपदेश |
असत् मा ताएँ हरी, सत् का िदया सदं ेश ||17||
दि ण भारत ज म ले, नगर उरग परु जान | माण िवषय ल ण सुफल, और नय का ान |
ीय वश ं राजा रहे, ी शांित वमा नाम ||1|| हेतु या ाद वा य का, वाचक िस समान ||18||
कंु द-कंु द आ नाय के , तु गामी आचाय | त व अनेकातं प है, या या सत् बेजोड़ |
वधमान िस ांत को, सह गिु णत फै लाय || 2|| व तु यव था िस कर , स यक् िसि म मोड़ ||19||
समय मा यता िभ न है , मत ना एक समान | सव िसि कर आ क , मीमांसा क िवशु |
सािह य सृजन के काल से, ि तीय शता दी जान || 3|| ितवादी सब हार गए ,जो बन बैठे थे बु ||20||
जीव, त व, ाकृ त, माण, कम, गंध को जान | या ाद क युि याँ , म को कर दे दरू |
तिु त िव ा, आ , वयभं ू , र न, क ड को मान ||4|| वाद िववाद मट कर ,सम दशन भरपरू ||21||
देवागम तो रच , रचना पणू सचेत | िसंहनाद सनु कर यथा, िनमद गज सब होय |
सव िसि को िकया, तक माण समेत ||5|| तकशा िस ांत सनु , ितवादी भय खाय || 22||
सम तभ क भ ता , िद य ान क राह | आचाय े अवधारणा, फै ले जगत भाव |
स यक् धम बताए कर, िकया जगत उपकार ||6|| चरण कमल िनमल नमे , हो सव दयी भाव ||23||
किवय म ा हए, िम या तम को नाश | सम तभ तु धार कर, वयं िकया क याण |
वादी बन शा ाथ कर, दे सत् धम काश ||7|| आप भिव य म होयगे , कम नाश भगवान ||24||
ितप ी िस ा त से , जमा ना पाये पाँव | गणु गौरव मिहमा िवशद, िनमल मन शुभ टेक |
िसंह गजना आपक , करती खंिडत दांव ||8|| भगवत समवशरण म , बने रहे सगं एक ||25||
ईश परी ा कर िलखा , आ ागम तो |
तक शा अ याय से , स यक् दशन ोत ||9|| डॉ िनमल शा ी
तुित कर चौबीस िजन, रचा वयंभू तो |
त य माण इितवृ से , दे तीथ वतक ोत ||10|| जैन दशन के िव ान
दाशिनक लेखक
छ द,अलंकार क िवधा, और किव व क धार | टीकमगढ़
देख वयं िव ान गण, करते अपना उ ार ||11||
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आचाय सम तभ वामीजी यु यानश


आचाय ी सम तभ ने अपनी का य रचना
ु ासन के 64 ोको म भगवान महावीर के सव दय
हम एक लोकतािं क देश म रहते ह जहां का हर तीथ का मह व ितपािदत करने के िलये तीथकर महावीर
आदमी चाहे गरीब हो या अमीर, छोटा हो या बड़ा, चाहे िकसी वामी क तुित क है. यह बहत ही मह वपणू ंथ है िजसके
भी धम या जाित का हो सब बराबर ह. जहाँ सव जन िहताय, 62 व ोक म आचाय सम तभ िलखते ह ।-
सव जन सख ु ाय क भावना से सबके क याण और सबके 'सवा तव द गुणमु य क प,ं सव य शू य च िमथोपे म ।
उ थान के िलये काय िकया जाता है. यही सव दय क भावना सव पदाथ य न करं िनरंतर, सव दयं तीथिमदं तवैव ।।'
है. सव दय अथात धम, सं दाय, जाित, योिन, वण आिद अथात यह सव दय तीथ सबका क याण करने वाला
िकसी भी प पात से रिहत ािणमा के उ ार के िलये काय है. जहां चार गितय के जीव का, चौरासी लाख योिनय के
करना है. ऐसा समाज जहां याय का शासन हो, हर तरफ सख ु , लोग का, स, थावर सभी का िहत िनिहत था. एक ऐसा
शािं त हो, कह भी िहसं ा ना हो. सारे काय जनता का, जनता तीथ जहां अधं िव ास व पाख ड से रिहत अिहसं ा, स य को
के िलये, जनता के ारा िकये जाते ह . मानने वाले शू को भी देव माना जाता हो. इसके अनसु ार
आज के समय म लोग मानते ह िक सव दय क शु आत अगर कु ा भी अ छे कम करता है तो वह भी देव बन सकता
महा मा गांधी ने क लेिकन सही मायने म हजार वष पहले ही है और देव पाप करता है तो वह भी कु ा बन सकता है. इसे
भगवान महावीर ने इसक प रक पना क थी. भगवान महावीर ही या ाद दशन कहा जाता है, इसके अनसु ार संसार म कण-
के बाद आचाय सम तभ थे िज ह ने समचू े जगत के क याण कण वतं है िजसको अपनी वतं ता का बोध नह , वह कै से
के िलये आम जन क भलाई के िलये सव दय को ज री समझा. तर पायेगा. हर आदमी म भगवान बनने क मता है और कोई
यह सम तभ वामीजी ही थे िज ह ने बौ ािदक के भी अपने अ छे कम व पु षाथ से भगवान बन सकता है. कोई
बल आतंक के समय, दि ण भारत म अनेकांत व यादवाद भगवान या कोई शि आपको भगवान बनने से नह रोक
का डंका बजाया. इ ह िजनशासन का णेता तक कहा जाता सकती और ना ही आप िकसी और क कृ पा से मो पा सकते
है. आचाय िजनसेन ने इ ह किवय का िवधाता कहा है, वह ह.
इ ह सं कृ त का थम किव व थम तुितकार भी माना गया 'अपने उपािजत कम फल को जीव पाते ह सभी ।
है. उसके िसवाय कोई िकसी को कुछ नह देता कभी।।'
भिव य के तीथकर आचाय सम तभ वामीजी का
ज म समय आचाय उमा वामी के प ात व पू यपाद वामी के आचाय ी के चरण म मेरा शत -शत नमन ।
पवू का माना जाता है.
आचाय ी ने 11 बहत ही सु दर रचनाय िलखी ह ीमती वाती जैन
िजनम आ मीमांसा (देवागम तो ), यु यानश ु ासन, (िमयापुर ), हैदराबाद.
र नकरंड ावकाचार, वयभं ू तो , िजनशतक( तिु त िव ा), तेलंगाना.
मु य ंथ ह वह कुछ और भी ंथ ह जो आज के समय म
उपल ध नह हो पाये ह जैसे जीविस , त वानुशासन, ाकृ त गृिहणी और
याकरण, माण पदाथ, कम ाभृत टीका व ग धहि त सामािजक कायकता
महाभा य ह.
इ ह ने सव दय का इतना सदंु र वणन िकया है िक एक
परू े के परू े थ म इसक ही या या क है.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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याय शा के कांड िव ान उनक ितभा से प रिचत थे. उ ह ने आ ा नह दी अिपतु


िदगबं र वेश छोड़कर सामा य साधवु शे म रहकर रोग शमन का
आचाय ी समंतभ वामी सझु ाव िदया. यािध क बलता, उनक िववशता थी अतः
वैसा ही िकया. आचाय ी के अदं र र न य के ित अखंड
और अगाध ा थी. अतः इस बाधा को उ ह ने दरू िकया
और पनु ः मिु न दी ा धारण क .
यह स य है िक याय शा के काडं िव ान आचाय
सम तभ थे. याय े म आपका िवशेष योगदान रहा है.
आचाय ी ने र नकरण ावकाचार क रचना करके जैन
सं कृ ित म तहलका मचा िदया. उ ह ने जैन धम-दशन को
जानने वाला है, उसके िलए ावकाचार म लाइफ टाइल का
सदंु र वणन िकया है.
हम संि म उनके कृ ित व पर काश डालना चाहते
ह िक वामी सम तभ को आ तुितकार होने का गौरव ा
है. तो का य का सू पात आपके ारा ही हआ. आपक
उपलि धय म र नकरंड ावकाचार के अित र
पंचम काल के महान आचाय लगभग 2000 वष पवू आ मीमांसा, यु यनश ु ासन, वयंभू तो और तुित िव ा
िव म स वत दसू री-तीसरी शता दी के ीय कदम वश ं म नामक चार अ ु त कृ ितयां तुित परक ही है.
ज मे ी सम तभ हए ह. इनका कोई भी प जीवन प रचय आचाय सम तभ वामी यादवाद िव ा के
नह िमलता है. इनका ारंिभक बाल काल का नाम ी शािं त सजं ीवक और ाण ित ापक परी ा धानी महान तािकक
वमा था, ऐसा आगम म िमलता है. दि ण भारत म आचाय थे. इनके पवू त व ान आगम के आधार पर ही
फ़िणमंडलाचाय, उरगपरु के राजघराने म ज म लेने वाले राजपु िति त था िक तु आपने उ ह त व को दाशिनक शैली म
थे. यह भी है िक सु िस इितहास वग य पिं डत जगु ल या ाद तथा माण और नय के आधार पर िति त करके जैन
िकशोर जी मु तार ने अपने िव तृत लेख म अनेक माण याय क आधारिशला रखी और अनेकांतवाद को यापक
देखकर यह प िकया है िक वामीभ त वाथ सू के बनाया.
रिचयता आचाय ी उमा वामी के प ात एवं पू यपाद वामी आचाय सम वय वामी ने स चे देव क पजू ा पर ही
के पूव हए ह. आचाय ी समतं भ वामी का मिु नदी ा हण िवशेष जोर िदया. उ ह ने कहा िक िजनवाणी िमली है, हम पणू
करने के पवू के जीवन का वृतातं उपल ध नह होता है आ था होनी चािहए, स चे देव क शरण िमली है तो कुदेव
बड़े ही उ साह के साथ मिु नधम का पालन करते हए को य पूजा जाए ? आचाय ी ने र नकरंड ावकाचार म
मवु णकह ली ाम म धम यान सिहत मिु न जीवन यतीत कर “राग षे मलीमसा” श द िदया है उसम राग षे के साथ
रहे थे और अनेक दु र तप रण ारा आ मा उ नित के पथ पर उपल ण से काम, ोध, माया तथा मोह भयािद सारे दोष
बढ़ रहे थे उस समय असातावेदनीय कम के बल उदय से शािमल है. इन दोन म दिू षत मिलना मा व तुतः देवता नह
आपको भ मक नाम का महा रोग हो गया था. इसके बाद भी होते ह. इस कार अदेव, देव व कुदेव क आराधना देव मढ़ू ता
मिु नवेश म िकंिचत भी िशिथलता आपको स नह थी. अतः है.
अपने गु से समािध मरण का अनरु ोध िकया. िक तु गु देव आचाय सम तभ वामी ारा रिचत ंथ िन न है :-
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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१. जीव िस ी
२. त वानशु ासन
आचाय सम तभ वामी जी
३. ाकृ त याकरण
४. माण पदाथ
५. कम ाभृत टीका और
६. गंधह ती महाका य.
आचाय सम तभ वामी ने त वाथ सू के
मगं लाचरण और दो सू पर आ मीमांसा िलखी है जो देवागम
तो के नाम से भी िस है. उस पर अनेको टीकाएँ अ य
आचाय ने िलखी है
आचाय ी ारा रिचत वयंभू पाठ को आज
आचायगण- ावक गण भि से पढ़ते ह और अपना आ म आचाय सम तभ ाचाय का जीवन-प रचय भी
क याण कर रहे ह. वा तव म अ ान जैसा ही है. इस किलकाल म जैन और
परम पू य मिु नगण से हमने सुना है िक आचाय गण जैने र के म य सव भगवान क सव ता का िवशद िववेचन
और उनक परंपरा के साधगु ण सबु ह, दोपहर और सांयकाल करने के कारण किलकाल-सव नाम से सिु व यात तथा जैन
तीन सामाियक काल म वयंभू पाठ को िनयिमत प से भि दशन के सभी प को अपनी लेखनी से समृ करने वाले परम
से पढ़ते ह. पू य सम तभ वामीजी ने अपने िवषय म कही भी कुछ नही
इस कार अनेक ंथ चिलत हए जो हम आज िलखा है,वह वा तव म नग य- ाय ही है.
िजनवाणी के प म ा ह आचाय ी सम तभ वामी आप कद ब वश ं के ि य राजकुमार थे. आपके
कंु दकंु द वामी के बाद महान आचाय म थे िज ह ने याकरण, बचपन का नाम शांित वमा था. आपका ज म कावेरी नदी के
सािह य, याय दशन के प म अपने आप को तपाया और हम िकनारे ि थत दि ण भारत के उरगपुर नामक नगर म िव म
सभी को िजनवाणी के प म फल दे गए िजसका उपयोग हम संवत ि तीय शता दी के पवू ाध म हआ था. आपने अ पवय
ा हो रहा है और हम साधगु ण, ावक आ मसात कर अपने म ही जैन िदग बर मिु न दी ा धारण क थी. िदगबं र जैन साधु
जीवन को ध य बना रहे ह. होकर अपने घोर तप रण िकया तथा अगाध ान भी ा
ऐसे महान आचाय सम तभ वामी को मेरा कोिट- िकया. आप जैनिस ांत के तल पश िव ान होने के साथ ही
कोिट नमन, नमो त.ु तक, याय, याकरण, छंद, अलक ं ार, का य इ यादी िवषय के
भी अि तीय िव ान थे. आपने अपनी असामा य वादशि के
ी उदय भान जैन कारण अनेक थान पर िवहार कर अ ानीजन का मद न
“बडजा या” िकया था. एक थान पर आ मिव ास के साथ आप वयं
रा ीय महामं ी िलखते ह- "वादाथ िवचरा यहं नरपतेशादल-िव ू िडतम"- हे
अिखल भारतवष य राजन! वाद के िलए म शादल/ ू शेर के समान िवहार करता ह.ं
जैन प कार महासंघ इसी कार अ य भी आप िलखते ह-" राजन! य यित शि :,
जयपरु . स वदतु परु तो जैन िन थवादी-हे राजन! मझु े जैन िन थवादी
के सामने िजसक शि हो, वह बोले!!"
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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इस कार आपने अनेक थान पर वाद िववाद के मा यम से 64 प म रिचत इसमे दाशिनक शैली म 'वीर िजन'
सव ता क पनु ित ा कर किल कालसव क उपािध को क तिु त क है.
साथक िकया. आप जैन याय ित ापक आचाय/ यायाचाय
ह. "आप सं कृ त सािह य के सव थम तुितकार ह." आपने वय भू- तो
तुित सािह य को ौढ़ता दान करने के साथ ही उसे अ यंत
गंभीर याय से भरा है. 143 प म रिचत इसम दाशिनक शैली ारा चौबीस
आपके ारा िलिखत सािह य म से आ मीमासं ा, तीथकर का गणु तवन है. चौबीस तीथकर का तवन शु
यु यनश ु ासन, वय भ-ू ोत, िजन तुित-शतक, र नकर ड- िकया, जब व आठव तीथकर च भु का तवन कर रहे थे
ावकाचार, ाकृ त याकरण, माण- पदाथ, कम ाभृत टीका तब च भ भगवान क मिू त कट हो गइ. तवन पणू हआ.
उपल ध है. इसके अित र अनपु ल ध थ म गधं -हि त यह तवन ‘ वयंभू तो ’ के नाम से िस है.
महाभा य चिलत है. इसम से ारंिभक पाँच थ का संि राजिवष जुगलिन सखु िकयो,राज याग भिव िशवपदिलयो|
प रचय इस कार है:- वयंबोध वयंभू भगवान,् वदं ू ं आिदनाथ गण
ु खान |।1।|
देवागम ोत (आ मीमांसा)
िजन तुित-शतक
114 का रकाओ ं म रिचत यह भगवान क तुित
करने के बहाने अनेकानेक िवपरीत मा यताओ ं का िनराकरण 116 प म िनब यह अलंका रक अपवू का य
कर अनतं धमा मा का व तु यव था का ितपादक दाशिनक रचना है. इसम भी चौबीस तीथकर क तिु त क गई है.
ंथ है. सव थम इस पहली का रका ारा ा िवभिू त के इसका एक नाम " तुित िव ा" भी है.
कारण िजन भगवान मिहमावान नही ह; यह बताते ह.
"देवागम - नभोयान चामरािद- िवभूतय:। र नकर ड- ावकाचार
मायािव विप य ते,नात वमिस नो महान।।1।। 150 प ारा इसम ावक धम क मु यता से
देव-आगम=देव का आना,नभोयान=आकाश म िवहार, स यकदशन, ान, चा र प स यग र न य का चरणानयु ोग
चामर-आिद िवभतू य:=चँवर आिद िवभिू तआँ,मायिवष=ु क शैली से िववेचन है.
मायािवओ ं म,अिप= भी, य ते=िदखाई देती ह,न= नही, स य दशन के चार अनुयोग का व प और मिहमा
अतः=इसिलए, वम=तुम/भगवानआप, अिस=हो, नः=हमारे
थमानयु ोग और चरणानयु ोग क अपे ा-
िलए,महान=बड़े.
अथात् हे भगवन!(आपके दशनािद के िलए) देवगण आते इन तीन के अवलबं न से जीव कम बधं से मु होकर
ह,(आपका)आकाश म िवहार होता है,(आप) चँवर आिद संसार पी कारावास क बेिड़य को भगं कर मो ा कर
िवभिू तओ/ं अ ाितहाय से सिहत ह;इस कारण आप मेरे सकता है।
करणानुयोग क अपे ा -
िलए महान नही ह; य िक ये सब िवशेषताएँ तो मायािवओ ं म
भी िदखाई देती ह. िम या व, स यि म या व, स य व कृ ित और
अनतं ानबु धं ी चतु क ( ोध, मान, माया, लोभ), इन सात
यु यनुशासन कृ ितय के उपशम, योपशम अथवा य से होने वाली ा
गणु क वाभािवक प रणीित को स य दशन कहते है.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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करणानयु ोग के स य दशन होने से शेष अनयु ोग म ितपािदत बड़े ही उ साह के साथ मिु नधम का पालन करते हए
स य दशन हो जाता है. वे जब ‘मणवु कह ली’ ाम म धम यान सिहत मिु न जीवन
यानुयोग क अपे ा - यतीत कर रहे थे, उस समय असाता वेदनीय कम के बल
सात त व , जीव, अजीव, आ व, बंध, संवर, िनजरा उदय से आपको ‘भ मक’ नाम का रोग हो गया था. मिु नचया
और मो एवं पाप पु य सिहत नव पदाथ के यथावत ांन म इस रोग का शमन होना असंभव जानकर आप अपने गु के
को स य दशन कहते है तथा इसी अनयु ोग के अतं गत अ या म पास पहँचे और उनसे रोग का हाल कहा तथा स लेखना का
थं म पर य से िभ न अपने आ म य क तीित को समय नह आया है और आप ारा वीरशासन काय के उ ार
स य दशन कहा है. क आशा है. अतः जहाँ पर िजस वेष म रहकर रोगशमन के
आचाय ी सम तभ वामी जी ितभाशाली यो य तृि भोजन ा हो वहाँ जाकर उसी वेष को धारण कर
आचाय , समथ िव ान एवं पू य महा माओ ं म आपका थान लो. रोग उपशा त होने पर िफर से जैनदी ा धारण करके सब
बहत ऊँचा है. आप सम तातभ थे - बाहर भीतर सब ओर से काय को स भाल लेना. गु क आ ा लेकर आपने िदग बर
भ प थे आप बहत बड़े योगी, यागी, तप वी एवं त व ानी वेष का याग िकया. कांची म मिलन वेषधारी िदग बर रहे,
थे. आप जैन धम एवं िस ांत के मम होने के साथ हे साथ ला बुस नगर म भ म रमाकर शरीर को ेत िकया, पु डो म
तक, याकरण, छ द, अलंकार और का यकोषािद थ म परू ी जाकर बौ िभ ु बने, दशपरु नगर म िम भोजन करने वाला
तरह िन णात थे. आपको ‘ वामी’ पद से िवशेष तौर पर स यासी बना, उधर राजा ने िशवमिू त को नम कार करने का
िवभिू षत िकया गया है. आ ह िकया. सम तभ किव थे. उ ह ने चौबीस तीथकर का
िपतृकुल क तरह सम तभ वामी के गु कुल का भी तवन शु िकया. जब वे आठव तीथकर च भु का तवन
कोई प लेख नह िमलता है, और न ही आपके दी ा गु के कर रहे थे, तब च भु भगवान क मिू त कट हो गई. तवन
नाम का ही पता चल पाया है. आप मल ू संघ के धान आचाय पणू हआ. यह तवन वयंभू तो के नाम से िस है.
थे. वणबेलगोल के कुछ िशलालेख से इतना पता चलता उस समय दि ण भारत म आपने उदय होकर जो अनेका त
है िक आप ी भ बाह तु के वली, उनके िश य च गु मिु न एवं यादवाद
् का डंका बजाया वह बहत ही मह व का है एवं
के वशं ज प नि द अपर नाम को डकु द मिु नराज उनके वशं ज िचर मरणीय है. आपको िजनशासन का णेता तक िलखा
उमा वाित क वश ं पर परा म हए थे. आपके प ात हए गया है. इस कार आपके पिव , बहमख ु ी ितभा-स प न
आचाय ने आपका मरण अ यंत स मानसचू क श दो मे जीवन का तथा सािह य-सृजन का जैन धम के चार- सार म
िकया है. वािदराजसरू ी यशोधर च र म आपको महान योगदान रहा है।
"का यमिणक का आरोहण" तथा वािदभिसंहसरू ी
ग िच तामणी म आपको "सर वती क व छंद िवहारभिू म ीमती क ित जैन
कहते ह. अनेक आचाय ने अनेक उपािधओ ं से स बोिधत
िद ली देशा य ा
िकया. आप अपने समय के एक महान धम चारक रहे ह नमो तु शासन सेवा सिमित
आपने जैन िस ातं और जैनाचरण का दरू -दरू तक िव तार के (रिज.), मुंबई
साथ फै लाने का यास िकया है आपका अ य सं दायवाल ने
भी कभी िवरोध नह िकया. आपके अिवरोध वतन का धान सच
ं ािलका
कारण आपके अतं ःकरण क शु ता चा र क िनमलता और नमो तु शासन सेवा सिमित
वाकपटुता है प पात से रिहत साधवु ाद से संयु होना आपक (रिज.) पाठशाला
वाणी क मु य िवशेषता है.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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देवागम तो और िकतना िव तार होगा, िकतना वणन होगा इसका हम के वल


आकलन या अनमु ान लगा सकते ह िक वो टीका उपल ध न
होते हए भी उस िटका का मगं लाचरण उपल ध है. या हम
आचाय ी समंतभ वामी कह सकते है िक त वाथ सू के उस मगं लाचरण पर आचाय
ी समतं भ वामी जी ने जो या या िलखी थी. वो या या
आचाय ी समतं भ वामी जी का नाम जैन जगत म आज उपल ध है. उस या या का नाम आ मीमांस है. वह
िकसी प रचय का मोहताज नह रहा है. इसका कारण उनके या या आ मीमांसा नामक ँथ बन गया. मगं लाचरण पर
ारा रिचत एक सबसे यात रचना ने दिु नया म तहलका मचा िलखी या या परू ा ँथ बन गया. सोिचये यिद अगर
िदया. उसका नाम है 'र नकर ड ावकाचार'. थोड़ा बहत भी त वाथसू पर िलखी वो िटका गंधहि त महाका य आज
जो जैन धम से प रिचत यि हो और वह आचाय ारा रिचत उपल ध होता तो वह िकतना िवशाल होता. आचाय ी
र नकर ड ावकाचार नामक ँथ को नही जानता हो ऐसा हो समतं भ वामी जी ारा रिचत आ मीमांस का दसू रा नाम
ही नही सकता है. ावक के र न का कर ड है, ावकाचार. देवागम तो भी है.
जैिनय का जीवन कै सा होना चािहये. ावक का जीवन कै सा समय के चलते असाता वेदनीय कम के बल उदय
होना चािहये, इसका बहत ही संदु र वणन ावकाचार म िमलता से आपको ‘भ मक’ नाम का रोग हो गया था. मिु नचया म इस
है. आचाय समतं भ जी याय शा के बहत बड़े कांड िव ान रोग का शमन होना असभं व जानकर आप अपने गु के पास
थे. आचाय समतं भ जी वो यि व है, िजनका नाम आगामी पहँचे और उनसे रोग का हाल कहा तथा स लेखना का समय
चौबीसी के तेइसव तीथकर 'िद यवाद' के प म मरण िकया नह आया है और आप ारा वीरशासन काय के उ ार क
जाता है. आशा है. अतः जहाँ पर िजस वेष म रहकर रोगशमन के यो य
आचाय सम तभ वामी जी दसू री सदी या दो हज़ार तृि भोजन ा हो वहाँ जाकर उसी वेष को धारण कर लो.
वष पवू के एक मख ु िदग बर आचाय थे. लोके षणा से हमेशा रोग उपशा त होने पर िफर से जैनदी ा धारण करके सब काय
दरू रहनेवाले इनके माता-िपता या महान से महान काय करने को स भाल लेना. गु क आ ा से आपने िदग बर वेष का
पर भी इनका कह कोई िवशेष उ लेख नह िमलता है. हम याग िकया. आप वहाँ से चलकर काँची पहँचे और वहाँ के
और आप तो यह एक छोटा सा लेख भी अपनी फ़ोटो के साथ राजा के पास जाकर िशवकोटी क िवशाल अ न रािश को
छापने के लोभ म िलख रह है. लेिकन िक ही दसू रे आचाय िशविप ड को िखला सकने क बात कही. पाषाण िनिमत
ारा उनके िलये ये उ लेख िमलता है िक वे कदम वंश के िशवजी क िप डी सा ात् भोग हण करे इससे बढ़कर राजा
ि य राजकुमार थे. आपके बा यकाल का नाम शािं त वमा को और या चािहए था. वहाँ के मि दर के यव थापक ने
था. आपका ज म दि ण भारत के कावेरी नदी के िकनारे ि थत आपको मि दर जी म रहने क वीकृ ित दे दी. मि दर के िकवाड़
उरगपुर नगर म हआ था. आप कोई साधारण यि नह थे. ब द करके वे वयं िवशाल अ नरािश को खाने लगे और लोग
आप जैन दशन के मख ु िस ातं , अनेकातं वाद के महान को बता देते थे िक िशवजी ने भोग को हण कर िलया है.
चारक थे. महान आचाय ी कंु दकंु द वामी जी के मख ु िशव-भोग से उनक यािध धीरे -धीरे ठीक होने लगी और
िश य आचाय ी उमा वामी जी के ारा रिचत ,त वाथ सू भोजन बचने लगा. अ त म गु चर से पता लगा िक वे
पर कई िटकाये िलखी गयी. अनेक अनिगनत टीकाएँ आज िशवभ नह है. इससे राजा बहत ोिधत हआ और उसने
भी 'त वाथसू ' पर उपल ध है. उस महान ँथ पर एक िटका इ ह यथाथता बताने को कहा। उस समय आचाय ने अपना
आचाय ी समतं भ वमी जी ने िलखी थी. वो िटका प रचय िदया - राजन् आपके सामने िदग बर जैनवादी खड़ा है,
"गंधहि त महाभा य" के नाम से जानी जाती है. उस टीका म िजसक शि हो मझु से शा ाथ कर ले. राजा ने िशवमिू त को
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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नम कार करने का आ ह िकया. आचाय सम तभ वामी जी


किव भी थे. उ ह ने चौबीस तीथकर का तवन शु िकया. ॐ कार ही ॐ कार
जब वे आठव तीथकर च भु का तवन कर रहे थे, तब िशव बहती रही है क याण क गगं ा
िपंडी फट गय और उसम से च भु भगवान क मिू त कट अनािद-काल से इस काल तक,
हो गई. बनारस म आज भी फ़टे महादेवजी के नाम से वह मंिदर ऋषभदेव से लेकर महावीर तक
िस है. तवन पणू हआ. यह तवन वयंभू तो के नाम औ महावीर से लेकर आज तक ।।1।।
से िस है. इस कार आचाय ने आ मीमासं , र नकर ड चैत य-कलरव करते वह बहती
ओकं ार-नाद वह अनवरत करती,
ावकाचार, यु यनशु ासन, वयंभू तो आिद अनेक रचनाय धवल दश-धम को धारण करती
क है। िव को शाि त का माग बताती ।।2।।
बहती वह इक उ वल िदशा मे
नरेश जैन
उसमे आ ता है आ मीयता क ,
वडाला, मुंबई. गंध शील का महकता है उसमे
सद य : पिव ता उसमे है बंध-ु भाव क ।।3।।
नमो तु शासन सेवा व छता उसक झलकाती ितनो-लोक को
सिमित (रिज.) िनमलता इतनी क पाते सब अपने बोधको
पाठशाला तरलता इतनी क बहती अनवरत पसे
िन छलता इतनी क िमलन कराती यानसे ।।4।।
समता का शीतल जल दान कर
िवषमता के क मष को वह धोती,
आगम क गाथाओ से सृजन कर
आन द- ि ितज के पार पहँचाती ।।5।।
वहाँ गँजू ित ित विन इक अनहत क
िफर अनायस टूटती जजं ीरे अहम क ,
अतं : वर को िदशाएँ ना बा ध सकती
इस नादको ना छूती सीमाएं श द क ।।6।।
अ तर म िफर योित से िमल योित
सीमाएँ सब तोड़ वह िवराट हो जाती ,
लीन रह कर चैत य- प म िनिवकार,
गंजू ाती वह सतत ,ॐ कार ही ॐ कार ।।7।।

ी ि यदशन जैन
नागपुर
*
गु भ
नमो तु शासन सेवा सिमित
(रिज.), मुंबई.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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लाचार इस
ं ान आचाय सम तभ सरू ी
ावक को देता है जो
धम का आधार
वह महान थं है
कभी सोचा भी नह था िक
र न करणडक ावकाचार
ऐसा भी समय आयेगा
बताया है िजसम
जब भगवान् तो मिं दर से आने को ह गे तैयार
धम का िव तार
पर तु इसं ान ही लाचार हो जायेगा.
र न य ही है े
यही है कलयगु शायद और है सब िम याचार
जब भगवान् के होते हए भी िजसक का रका म है
इसं ान िजन दशन से भी तु का पिव भडं ार
विं चत हो जायेगा. स यक दशन ही है महान
होता िजससे ावक का उ ार
एक बात तो समझ आ गयी
बताये गये है िजसम
िक वो पार जाएगा
र न य के कार
जो अपने भाव म और अपने मन-मिं दर म
दशन, ान,च र ही है
भगवान् को िवराजमान कर जायेगा.
सयं म जीवन का सार
कभी छोड़ना मत मौका बताया है िजसम
आगे िमले तो भु भि का, िजन धम का चार
पता नह कौनसा कम और कहा करो सभी
आगे उदय म आएगा भावना अगं को वीकार
ऐसे स चे देव,शा , गु का
चलो इस बार तो भगवान् ने
बताता है जो आचार
करोना ारा परी ा ले ली ह,
पढो सभी महान ंथ को
देखते ह महावीर जयंती
और करो सभी उ ार
भाव से कौन कौन मनायेगा.
धम से समाधी के व प को
बताने वाले
आचाय समतं भ सु र को
बंगलु हे नुर मंिदर जी क
कोिट नम कार
पाठशाला एवं ब च का ी सारांश जै न
अिधकृत सपं क सू :- इदं ौर
ीमती आरती अिभषेक जैन, गु भ
बंगलु . नमो तु शासन सेवा सिमित
(रिज.), मुंबई.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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आचाय सम तभ वामी सकता है. आचाय कु दकु द ने भी िपछले ज म म एक शा


जी बचाया था, उसी के मा यम से इतने बड़े वो आचाय हए,
हम और आप भी कृ पया योगदान दे इस थ को ढूंढने कर
िजनवाणी मां जो ानदायनी है िजससे सारे जग का क याण हो
सके गा.
सम तभ वामी, जो महान् तािकक एवं
परी ा धानी िस जैन आचाय थे और जो आज से लगभग
1800 वष पवू हो चुके ह, भगवान महावीर और उनके शासन
क सयिु क परी ा एवं जाँच क है - 'यिु म चन' अथवा
हमारा एक थ है - "गंध ह ती महाभा य", आचाय ‘यिु शा ािवरोिधवचन' और 'िनद षता' क कसौटी पर उ ह
सम तभ वामी जी ारा करीब दसू री या तीसरी शता दी म और उनके शासन को खबू कसा है। जब उनक परी ा म
करीब ८०००० ोक माण यह थ िलखा गया है, कहा भगवान् महावीर और उनका शासन सौ टंक वण क तरह
जाता है िक इस थ म बहत सी िव ाएँ दी हई ह :- िचिक सा, ठीक सािबत हये तभी उ ह अपनाया है। इतना ही नह , िक तु
िव ान, योग, यान, यहाँ तक िक पशु - पि य क भाषा भी भगवान् महावीर और उनके शासन क परी ा करने के िलये
समझने का ान भी इसी म िदया गया है. ऐसा कहा जाता है अ य परी क तथा िवचारक को भी आमि त िकया है -
क िहरोिशमा, नागासाक पर परमाणु िव फोट के कारण कई िन प िवचार के िलये खल ु ा िनमं ण िदया है। सम तभ
साल तक हािनकारक िविकरण ारा इन शहर म िकसी भी त वामी के ऐसे कुछ परी ा-वा य थोड़े-से ऊहापोह के साथ
कारण जब जीवन संभव नह हो पा रहा था तो वै ािनको के नीचे िदये जाते ह, (आ मीमांसा 1)
देवागमनभोयान चामरािदिवभूतयः।
हाथो म तब ये थ आया और इसको पढ़कर िफर से ये शहर
मायािव विप य ते नात वमिस नो महान् ॥
बसाया गया, आज सबसे समृ शहर माना जाता है आप सभी
को भी ात होगा. दुभा यवश इतने सारे ान के कारण ये 'हे वीर? देव का आना, आकाश म चलना, चमर, छ ,
थ,अ य कई ंथो के कारण भारत से ले जाया गया और कुछ िसंहासन आिद िवभिू तय का होना तो मायािवय -
लोग कहते ह िक कुछ लोगो ने ये थ आज से कुछ समय इ जािलय म भी देखा जाता है, इस वजह से आप हमारे महान्
पहले जमनी और ासं क सीमा पर ासबग(गगू ल मैप पर ये - पू य नह हो सकते और न इन बात से आपक कोई मह ा
शहर - आप आराम से ढू ढ सकते ह) - जगह है वहां के िसटी या बड़ाई है. सम तभ वामी ने ऐसे अनेक परी ा-वा य ारा
ंथालय म देखा गया था, उस ंथालय म काफ रह यमयी कवत और उनके शासन क परी ा क है, िजनका कथन
जगह पर ये थ रखा गया था, वहां के ताड़प सचू नाप पर सू प से आ -मीमांसा म िदया हआ है.
यह थ अिं कत भी है, लेिकन कुछ र यमयी लोगो ारा े षक :
१९९९ के करीब शायद वहां से गायब हो गया, या िफर उसी नीरज जैन
िनवाई, राज थान.
ंथालय म वो इधर - उधर हो गया. अगर आपके िमलने वाले
म से कोई जमनी रहता हो या इस थ को उस ंथालय म सद य
खोजने म मदद कर सकता हो तो कृ पया सिू चत ज र करे . हम नमो तु शासन सेवा
सभी को यह काय करने से िजनवाणी माँ क बड़ी सेवा होगी. सिमित (रिज.), मुंबई.
साथ कुछ लोग भी कहते ह िक दि ण भारत म भी ये थ हो
.
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आचाय ी सम तभ वामी एवं छह अनायतन एवं तीनमढू ता का कथन िकया िजससे


स यक व के ित वा यायी जन क ा म वृि हई.
ावकाचार ( ावक देशना) पांच अणु त एवं स शील त एवं षट आव यक
आचाय सम तभ वामी तीसरी शता दी के जैन- क या या करते हए च र धारण करने हेतु े रत िकया.
याय के ित ापक आचाय हए ह. जैन सािह य म इनका सामियक के मह व एवं िविध को बतलाते हए उसमे लीन होने
बहमू य योगदान है. इ ह ने जैनधम के दाशिनक िचंतन को का िनदश िदया.
तक पणू शैली से माण शा ीय प ित पर अिधि त िकया ावक क यारह ितमाओ ं का िव तृत या यान
और जैनधम क अलख परू े िव मे जगाई. कर उ ह धारण करने हेतु उ सािहत कर र न य धम एवं उसके
जैन दशन के आरंिभक िवकास म आचाय भगवन का फल को िन िपत िकया. अतं म स लेखना समािध मरण हेतु
मखु थान है. इनक िवशेषता रही िक इ ह ने अपने नाम के े रत िकया.
अलावा कुछ भी नही िलखा िजसके कारण इनके जीवन का इस कार आचाय ी सम तभ जी क यह अनमोल
िव तृत वणन अ ा य है. कृ ित सभी ावक के िलए र न के िपटारे के समान है. आचाय
जैने री दी ा लेने के प ात जब इ ह भ मक यािध भगवन ने इसम वह सब समायोिजत िकया है िजसके वा याय
रोग हो गया तो इ ह ने अपने गु से स लेखना समािध मरण से हम सभी अपनी चया एवं धम के ित हमारे कत य को
का अनरु ोध िकया. गु ओ ं म ददू िश व नाम का गणु होता है. जानकर और तदनु प उसका पालन कर इस पयाय के मा यम
इनके आचाय महाराज ने इनक ितभा एवं मता का अनुमान से वग आिद के अ यदु य एवं परंपरा से मो के िनः ेयस
लगा िलया था , इसिलए िदग बर भेष छोड़कर सामा य भेष म सख ु को भी ा कर सकते है.
रहकर रोग शमन करने का िनदश िदया. परमपू य चया िशरोमिण 108 गु वर आचाय ी
इनके भीतर जैनधम एवं र न य के ित अगाध ा िवशु सागर जी महाराज ारा ऐसी ंथ पर बहत सरल भाषा
थी. इ ह ने काशी जाकर महादेव मिं दर म पजु ारी बन गए और म िव तृत टीका ावक धम देशना के नाम से क गई है. यह
साद के प म आने वाले िम ा न से अपनी धु ा शांत करते टीका ंथ सचमचु ही अलौिकक कृ ित है. इसका वा याय
रहे. वहां पर भी इ ह ने ने राजा के सम अपनी अगाध भि िजतनी बार िकया जाए यह ंथ हर बार नया तीत होता है.
का अनपु म उदाहरण ततु करते हए िपडं ी म से भगवान सभी से अनरु ोध इसका वा याय अव य कर अपने जीवन मे
चंद भु वामी को कट कर जैन धम क भावना क . आये हए प रवतन क अनभु िू त अव य लेव.
आचाय भगवन ने बहत से थं ो क रचना क परंतु
उनके ारा सृिजत र नकरंड ावकाचार ावक के िलए संजय राजू जैन
अमू य िनिध है. यह ंथ ावक के िलए बहपयोगी एवं देशा य
चा र को दान कराने वाला है. इस थं म आचाय भगवन नवापारा रािजम (छ.ग.)
*
ने देव, शा , गु को प रभािषत करते हए उनके स चे व प
नमो तु शासन सेवा
को बतलाया है िजससे ावक बंधु िम या देव शा गु क सिमित (रिज.), मंबु ई
उपासना से बचने लगे.
स यक दशन एवं उनके अगं क मिहमा उसमे िस
हए लोगो के मा यम से बतलायी तथा आठ दोष, आठ मद,
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परम पू य अ या म योगी, आगम उपदे ा, चया राजनीित, कूटनीित, यापार, नीित, असी-मसी-कृ िष, िवधा-
िशरोमिण अ या म योगी, ुत संवधक, वा याय वािण य, कलािद जो भी िश ाएं है वे परमाथ से पणू पृथक है.
भावक आचायर न १०८ ी िवशु सागर जी एकमा अ या म ही परमाथ िवधा है. जीवन का अतं अ या म
महाराज के आगम च ओ िवधा से होना चािहए. लोक क कोई भी व तु पर लोक म साथ
ु ं से, त व का ान
नह जाएगी, यह वु स य है. हाय-हाय कर यि पर व तु को
करते हए िजनवाणी जगत क याणी का रसपान
सं िहत कर सकता है पर थािय व नह दे सकता है. वह मा
करते हए चंडी ाम (िबहार) के वचन से जाने वु ायक भाव, व- , िनज व तु को ही व के साथ रख
हमारा साथ कौन देगा ? सकता है. अ य के अजन म जो पप व कर कमबंध िकया है
उसे ही पर भव म साथ ले जायेगा. एक व भाव ही मा हमारा
“अ या म क िश ा है. दसू रा अ य कोई पर-भाव हमारानह ह. इस वु स य को
भल ू जाना यही तो अ ान भाव ह अनादी का. इस अ ान भाव
को यागकर, वा म िसि हेतु दया-दम- याग, समािध का
ही सव प र है” आ य ा करो. एक मा आ म धम ही साथ देगा. प ,
पंथ , स दाय का राग, अ य स दाय के ित षे -बुि तो
उ प न करा सकता ह, पर तु आ म-त व के स य के पास नह
ले जा पाएगा. इसिलए अ या म -िवधा अमृत का पान कर
एवं यथ के षे -बिु के पकं से बचो.
- ेषक : ी सौरभ जैन.

ी सौरभ जैन
िविदशा (म. .)

चार- सार मं ी
नमो तु शासन सेवा सिमित
(रिज.), मुंबई

संपणू िश ाओ ं म अ या म िश ा सव प र ह. िज ह
अ या म िश ा ा नह हई है वे इह-लोक अथात् उभय लोक
म दखु को ा करने वाले ह. अशािं त, लेश, इ या, डाह,
असयू ा, मा सय से अपने को वह कभी र नह कर पाएगा.
जगती पर अ या म से िभ न जो भी िश ाएं ह, वे मा भौितक
इिं य सुख क ही पोषक है, उनका मा एक ही उ े य है िक
िकसी भी कार से हमारे इिं य सुख क पूित होना चािहए.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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Dear Friends,
A Letter to Friends Jai Jinendra.
I cannot express my joy as we have received
the live photographs of Paathshaalaa, from Hannur
Temple, Banglore. Also, drawings from all over the
world, and vocal delivery of Aarti,Samadhi Maran
Paath, Moral Story of Mardav Dharm, and over all
composed and lyrics by Mast. Nishit Jain of
Badlapur, India. The list doesnot end here, there are
so many entries if all are published it will be more
than 100 pages of My little champs’ activities.
Dear friends you all are aware that due to
the activities of “EKENDRIY JEEV” CORONA VIRUS,
the entire world is suffering. The reason behind it is
LIVE PHOTOS OF PAATHSHAALAA claimed as use of NON-VEGETARIAN FOOD”. The
cost of this unusual human activities are being paid
HENNUR TEMPLE-BANGLURU. by not only humans but “TIRYANCH”/animals
ALSO. This itself proves that even after more than
2500 years of so called developed life style of
humans, the statement of our Tirthankar Bhagwaan
Shri Mahavir Swami is up-to-date. The teaching
and preachings are utmost priorities now-a-days.
To fight such a situation, there is ample activities as
per our JAINISM. For example, meditation/DHYAAN
is also ISOLATION not only from people but from
world Too!, what is being stated by Science.
KARUNA/DAYA is MERCY only hence entries of LIVE
AND LET LIVE are specifically published. Whatever
is the need of time is already explained and
established by our TIRTHANKARS followed by our
various AACHARYAS and Muni Maharaj from time
to time. Your teachers in the Paathshaalaa had
already explained you all about it. It is a very ideal
time to learn JAINISM, RECITE VARIOUS BHAJANS,
STROTRA, BHAVANA, STUTI AND THE BEST PART IS
YOU CAN ASK YOUR PARENTS TO SIT ALOGSIDE
WITH YOU AND NARRATE AND EXPLAIN THE
VIVID GRANTHS AND SHASTRAS. Such opportunity
will never come again so take the full advantage of
it. Again we all request you to remain inside the
Now on-line Baal-Paathshala from 24-04-2020 home and obey the parents and save yourselves
with help of Namostu Shasan Seva Samiti ®, along with all near and dear ones in the world. So
Mumbai and Jin Shasan Seva Samiti, B’lore. take care. WE MUST FEEL PROUDE TO BE JAIN.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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One good news is also received. Our small Muniraaj namely soon we are going to start a new
Champions from the Hitech city of Bangluru had series in which you will learn a lot about Jainism.
already started on-line Pathshala in the present As was mentioned earlier too! Again I am
scene of all Lock down with the help of P.K. Jain repeating here, your vocal delivery on any STUTI,
‘Pradeep’ President of Namostu Shasan Seva SHLOKA, GATHA, and STOTRA etc. will make you to
Samiti®, Mumbai and Jin Shasan Seva Samiti, win Award. Also your theme drawings and articles
Bangluru, Jointly with co-ordinator as Shravika Arti on any of the subject of your choice within JAINISM
ji and Ruby ji. The Online Aadinath Vidhan was also will be OK. So still lot of time is there with you. Start
done on the Akshay Trutiya auspicious day. now and send your entries on or before 15th May 2020.
Due to Corona Virus, Hyderabad Cyber city You learn by heart then your name will also be
is yet to start its primary functions. They are in race published in the next issue of this Magzine i.e.
too!. Swati Didi is running free School for the small “NAMOSTU CHINTAN.”
children of labours and she will start Pathshala very You can write even your opinions about the
shortly. We are commited to provide the necessary published articles which you had read in the various
materials to start Pathshala. So I hope, as your issues of this magazine. It will be published along
counts is increasing every where, there may be a with your name and photograph too!
special magazine for kids like you. And I wish you You enthuasism and attitude to follow up
kids will be able to prepare articals and details as series, in this magazine under the heading “INFLUX
per your choice. In future some of you may be little of Sin IS ON” had created big impact on the parents
champ reporters. So you should start thinking in that too! From next issue, we will have some different
line be in touch with your friends to become subject to learn. The situation in the world is very
reporter. Explain and gather more informations critical and we have lot of time to learn so many
from your friends and from neighbourhoods. Hence, things at home. So be cautious and not panic. Obey
you should have the practise of writing and what your parents say and do more chanting of
managing the magazine. NAMOKAAR MANTRA etc. Ask your parents to
As was informed, in the last issue, how to narrate the Stories/tales of Jainism as per available
draw The Swastik and what the motives behind each time. So you know most of the the rituals according
and every action are. In this issue we will try to learn to Jainism, by virtue of your parents which they are
what is Pooja? And who are Pujya? Once we know following. We also know that you must be enjoying
about the Pooja, we will learn How Pooja is your PAATHSHAALAA too! Keep on writing, who
performed and with what and the science/reasons knows, you will be next winner and your name will
behind it. So, in the next issue we will let you know be published in the Magazine.
about the preparation of Asht Dravya and Puja thali So Good luck to you all and best wishes.
too. This will enable you to perform Puja in the Yours Friend
temple at your own. P. K. JAIN ‘PRADEEP’
We all know that you are very capable, EDITOR-NAMOSTU
eager and excited to understand the fundamentals CHINTAN
of Jainism. It’s a very good sign. Keep it up. WHATSAPP NO.
It’s a very good habit of expressing yourself +91 9324358035
thro’ mails or by Phone calls. Daily new members E-MAIL:
are increasing. We are trying to deliver the Best as pkjainwater@gmail.com
per your wishes. From this issue, you will be able to namostushasangh@gmail.com
know about our religions by very small lessions Website :
specially designed for you children by Yamal www.vishuddhasagar.com
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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DRAWINGS BY LITTLE CHAMPS:- Live and Let Live
Mast. Avyan Chaturvedi,
Age : 6 years,
s/o. Nikita Sumit
Chaturvedi
Sydney,
Australia.

Drawing of bhagwan mahaveer by


Kum. Kavya, Age- 12 d/o. Nishi Pratik Badkul Jain. B’lore.

Bhaktamar Stotra- Slok no. 4 by Kum. Sanchita Thole-Jain,


12 yrs. d/o. Nidhi Yogesh Thole, Jain. Badlapur.

Soham Jain, 14yrs. s/o. Sonal Preetam Shah Jain. Badlapur.

Himanshu Jain, 12yrs. s/o. Kirti Bhupendra Jain. Badlapur.

Siddhant Jain,11yrs. s/o. Sonal Preetam Shah Jain, Badlapur

Dev-Darshan Stuti -
“Prabhu Patit Paavan”
by
Kum. Yukti and Dishi Jain,
11yrs, 7yrs.
d/o. Bharati Bhupendra Jain.
Kum. Yashvi Jain,8 yrs, d/o. Ruchi shaleen Jain, B’lore.

महकते सतारे और गु जी
च. सोऽहं पाट ल जैन
s/o.बबीता बबन पाट ल
दोणगाँव,सोलापरु
महारा .
Shri Bhagwan Mahaveer-ka-pahada by Kum.Avani Jain,
7 yrs., d/o Lavika Manish Jain. B’lore.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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“24 tirthankars’ name
and “Bhaktamar Stotra- 5 Shlok”
sign (Chinh)” by
by Mast. Aarav Jain
Kum. Sihi Jain Age: 9 years
d/o Pooja Vijay kumar s/o. Nidhi Kapil jain
(Bharadwaja) Jain B’lore.

“Bhaktamar Stotra”
(10 shaloka) “Bhaktamar Stotra- 2 Shlok”
by by
Kum. Saanvi Malgave Kum. Sragvi Jain
Age: 9 Years Age: 4 yrs.
d/o. Sarita Sachin Malgave d/o. Archana Satyendra Jain
B’lore
“Ashta-Dravya”
‘Recognising by name’
“Samadhi bhawna”
by
(Din Raat Mere Swami)
Kum. Samridhi Jain
By
Age:3.5 Years
Mast. Manas jain
d/o Arti Abhishek Jain
Age: 7 years
s/o. Khushboo Mohit jain
“Namokaar Mantra”
B’lore.
(Chanting)
by
Kum. Stuti Jain “Namokaar Mantra”
Age: 2 Years (Chanting n Short Poem)
d/o. Neha Harsh Jain by
Kum. Kruti Shah- Jain
“Poem on Jainism”
Age: 3.8 Years
‘composed and lyrics
d/o. Priyanka Prateek
by
Shah- Jain
Nishit Jain, 14 yrs.
B’lore.
s/o. Kirti Bhupendra Jain.
Badlapur.

Dance on Namokaar Mantra


“Samadhi Maran Bhaavana”
by
‘Din Raat Mere Swami’
Baby Boy Hitarth Jain
by
Age - 11 Months
Kum. Prakruti Jain
s/o Kamini (Komal) Saurabh
Age:8 Years
Gangwal Jain.
d/o Dipti Suyash Jain
B’lore.
Youngest participant

“Meri Bhavana”
(Din Raat Mere Swami)
By
Kum. Sayuksha Jain,
Age: 5 years,
d/o. Mona Anchal Jain,
B’lore
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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नोट : हमारे एक न ह सी पािठका ने वतमान क ि थित हमारी जग म है पहचान जीव दया क णा दान |
पर क ना से ओत ोत होकर धम क सबल और हमारी उपलि ध है जी मानवता से मानवता का भान ||
क णामयी िश ा के ारा “कोरोना” पर अपनी
अिभ यि िलख कर भेजी ह. यह अपने आप म एक
बहत बड़ी बात ह. बढ़े बढे भी जो नह कर सके उसको
एक न ह सी ब ची ने कर िदया. और इस सबके िलए
उनके माता िपता को भी ेय जाता ह. ब चे अपने माता
िपता म अपने आदश यि को ढूंढते ह और उनके जैसा
ही यवहार भी करते ह िबलकुल दपण क तरह. अतः
सभी को बधाईयाँ और इसी तरह से धम माग पर बढ़ते
रहे और अपनी रचनाय भेजते रहे. ..
-शुभकामनाओ ं सिहत; नमो तु िचंतन प रवार. हम यह देखे महामारी का फैला जग म िवकृत गान |
आओ िमलकर सोच बनाये क णा का करके अवदान||
"जीव दया/ क णा"
जीव र ा से बनता कृित का सतं ल
ु न महान |
मांसाहार यि और सं कृित का करता हान ||

कु. िनहा रका जैन


उ : १३ वष
सपु ु ी – ीमती डॉ रे खा जैन एवं
ी डॉ िनमल शा ी जैन.
महापु ष क रही िश ा बल और ान | टीकमगढ़
म य देश
सबको अपना माने तािक आपस म हो ेम िवतान ||
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confused and puzzled and dropped his sword on


the ground waiting for a reasonable explanation.
The muniraj continued - "Alexander If you kill me
then also I am not dead because you can only
punish my body not my soul, our soul is the only
thing that will remain with us forever"
Alexander was shocked, he apologized to
the saint and returned back to his country. There
he earned a lot of money and was also very proud
of it. Then, after few years he fell very, very sick.
Jai Jinendra And the doctors told him that his last days were
This is a story on Uttam Mardav dharam. very near, also that he is going to die sooner than
Uttam Mardhav dharam is one of the ten dharams expected. He asked the doctors to save him for a
of Jainism which all jains follow during parushan few more days so that he could see his mother for
parv. one last time before his death. He offered the
Once upon a time there was a very, very doctors all his wealth, all his kingdom for just few
strong and brave king named Alexander the Great. more days of life. But the doctors told him that
He wanted to conquer the entire world. He won nothing could save him now. No money , no jewels
wars over many countries such as Syria, Egypt nothing.That's when a thought struck Alexander
etc.Then he came to our country India. Back then "In all these years of hardwork all this money I have
India was a very rich country .When he reached earned can't even give me few more days of life ?"
India, he heard that on the banks of some rivers in . He called all his soldiers and instructed them, that
India sincere saints lived. So, he went to visit a saint. when he died his hands should be out of his coffin.
When he reached the banks of the river, he saw a And this representated that the great Alexander
seldom muniraj sitting under the shade of a tree was going from the world with empty hands.
peacefully, meditating. He was surprised to see the This teaches us that when we die we will
calm expression of the saint. What surprised him take nothing but our soul with us, no money, no
even more was that the saint had given up wealth.Uttam Mardhav dharam teaches us not to
everything including his clothes. He wanted the have pride on any materialist’s things. Alexander
Muniraj (saint) to come and meditate in his was proud of his money. But his money could not
country. He offered every thing he had, precocious even grant him few days of life.When we die we are
Jewells, his entire kingdom. He even told the left with nothing but our soul. So collecting all
muniraj that if he would come with me (Alexander) worldly pleasures are of no use. Thus, we should
then every body would worship him. But still the not waste our time insted use our time to make our
saint refused. He told - "Alexander I have given up soul pure by taking few niyams everyday and
all the worldly pleasures and come to find the true follow them determinedly and sincerely.
meaning of life, to meditate. Therefore I cannot
come with you". This made Alexander very angry, “UTTAM MARDAV DHARM”
he thought - " This saint is refusing my request, I, by
Kum. Ilisha Manoria-Jain.
Alexander, such a great warrior! How can he refuse
Age : 8 years
me? "And so Alexander drew out his sword to kill d/o. Anibha / Neeraj
the muniraj. The muniraj however smiled and said Manoria, - Jain,
to Alexander: “if you draw your sword on me then B’lore.
you are not killing me anyways!" Alexander was
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Few More Entries were also Good


which need little more efforts
1. Kum. Aarohi Jain, 6 yrs, d/o Astha Raj Jain.
(Namokar mantra) from B’lore.
2. Mast. Aadish Jain, 5 years, s/o Trapti Alok
Jain (Namokar mantra) from B’lore.
3. Kum. Aaradhya Jain, 7 yrs d/o Trapti Alok
Jain – (Bhajan) from B’lore.
भगवान् महावीर 4. Kum. Abhishta Patil, 5 yrs, D/o Ashwini
भगवान् महावीर जै न धम के २४व तीथकर ह. उनका Harshavardan patil. (Dance) from B’lore.
ज म ईसवी सन पवू ५९९ म कु डलपरु म हआ था. उनक माता 5. Kum Samanvi Jain, 8 yrs, d/o Archana
का नाम ि शला देवी था और िपता का नाम राजा िस ाथ था. Satyendra Jain (Stuti) from B’lore.
उनके बचपन का नाम वधमान था. भगवान् महावीर ने बचपन म 6. Kum Aarna Jain, 4 years d/o Sonal Ajay
एक हाथी को वश म िकया था इसिलए उ ह महावीर कहा जाता Agrawal Jain (Namokar) from B’lore.
है. 7. Mast. Shivansh Jain, age 4 yrs, S/o Lavika
उ ह ने ३० वष क आयु म राजकुमार होने के बावजूद Manish Jain. (Ashta Pratiharya) from B’lore.
सव सख ु का याग कर िदया और बारह वष तक कठोर तप िकया 8. Kum. Aaradhya Jain , age 4 years, d/o
उसके बाद ४२ वष क आयु म उ ह के वल ान ा हआ. उ ह ने Ashwini Prashanth Yaranale Jain
पुरे भारत म ३० वष तक उपदेश िदया और उनको ७२ वष क (Namokar) from B’lore.
आयु म मो ा हआ. 9. Kum. Chitranshi Jain, 2.5 years, d/o
भगवान् महावीर ने अिहंसा को सबसे उ चतम नैितक Meenakshi Manish Gangawat Jain (Dancing
गुण बताया. उ ह ने दुिनया म जैन धम के पंचशील के िस ांत on bhajan) from B’lore.
बताये जो ह – अिहंसा, स य अचौय, अप र ह और चय जैसे 10. Kum. Akshara Jain, 10 years, d/o, Ashwini
िस ांत िदए और कहा िक सभी को जीने का अिधकार ह इसिलए Prashanth Yaranale Jain. from B’lore.
िजओ और जीने दो का नारा भी िदया.

“भगवान् महावीर” Certificates will be issued to all


कु. इिशता ठोले-जैन
Age : 8 years participating Children.
सपु ु ी – ीमती िनिध योगेश
ठोले-जैन, सभी भाग लेने वाले ब च को माण
बदलापरु .
प िदए जायगे.
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पजू ा का सबसे सरल अथ है िक वतमान के २४


पज
ू ा िकसे कहते ह ? तीथकर के गणु का गणु गान करना और उनके जैसा ही बनना
अथात् उनके गणु को अपने म कट करना.
सु ोऽह,ं िस ोऽह,ं िस ् व पोहम.् जगत क
िकसक पूजा करनी चािहए ? इ छाएं और भौितक व तुय हम इस संसार म ज म और मरण
और पनु ः ज म मरण के च से संसार मण कराती रहती ह,
पंच परमे ी ने िदए सू महान, सब िमल पाँच होते है पाप जब िक तीथकर का माग अपनाने से ससं ार के द:ु ख से
िजनको कहते िहंसा, झूठ, चोरी कुशील और प र ह आप छुटकारा पाकर मो को पाया जा सकता ह. इसिलए ावक
छोड़ो छोड़ो इन सबको, तो बनेगा जीवन सरल अपने आप के षट् कत य म देव पूजा को सबसे पहले रखा गया ह. अतः
आओ ! आओ ! मिु माग पर, िमलकर चल हम और आप हम ितिदन कम से कम एक पूजा तो करनी ही चािहए. वैसे तो
बहत सी पजू ाएँ ह येक तीथकर क अलग अलग भी और
तु हारी दीदी सि मिलत भी. इनके अित र देव, शा और गु पजू ा भी ह
ीमती मजं ू जैन िजसे सबसे पहले करना चािहए य िक हम सबसे पहले गु
वासी मेलबन, ऑ े िलया. ही बताते है िक हमारे भगवान् का व प कै सा ह ? और हम
िनवासी ठाणे, मबुं ई.
ीमती मज
इस माग पर आगे कै से बढ़े और भगवान् बने. गु का सािन य
ं ू पी.के.जै न
सद य ट मडं ल न होने पर हमको शा ही राह िदखाते है और वे ही भगवान्
नमो तु शासन क वाणी होने के कारण, िजनवाणी कहलाती ह. िजन क वाणी
सेवा सिमित (रिज.) ही िजनवाणी ह. इन तीन पर स चा ान ही स यक् दशन
ठाणे, कहलाता ह. और यही स यक् दशन हम आगे चलकर मो म
मबुं ई. सहायक होता ह. इसिलए पजू ा म देव, शा और गु पजू ा
आव यक बतायी गयी ह.
आओ ! अब जाने पूजा िकसे कहते ह ? हमारे जैन धम म मु य प से नौ देवता या नवदेवता
जाने जाते ह पजू ा के यो य. उदहारण – प च परमे ी-अथात्
१.अ रहतं , २.िस , ३.आचाय, ४.उपा याय और ५.साधू,
६.िजनधम, ७.िजनागम, ८.िजनिब ब और ९.िजनचै य
(मिं दरजी). कुछ पजू ाएँ िवशेष अवसर /पव पर क जाती ह.
िपछले अक ं म हमने जाना था क मगं ल का सूचक जैसे अ ांिहक पजू ा, दशल ण धम पजू ा, दीपावली पजू ा,
वि तक य और कै से बनाया जाता ह और इसके या अथ र ाबधं न पजू ा और भगवान् के क याणक िदवस पर पजू ा का
ह. जीवन का मगं ल तो मो से ही होगा. हमारे अिभषेक, पजू ा करना. कुछ पजू ाएँ तो िविश ान के िलए क जाती ह जैसे
अचना आिद का एक मा ल य मो को पाना ही है और यह र न य पजू ा,सोलह कारण पजू ा. इनके अलावा भी कुछ और
मानव जीवन क सफल साधना का फल ह. अब हम आगे पजू ाएँ ह जो े क िवशेषता के कारण क जाती ह जैस,े प च
जानने का यास करगे पजू ा िकसे कहते ह ? िकसक पजू ा मे पजू ा, ी स मेद िशखरजी पूजा इ यािद. इन सब पजू ाओ ं
करनी चािहए ? के ारा हम अपने ान को गाढ़ करते रहते ह और िन य
यह भावना भाते है िक हम भी भगवान् बनगे.
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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येक पजू ा के समापन म जयमाला पढ़ते ह. यह इस Teerthankars (dev), Jain Scriptures (shastra), and Jain
saints and monks (guru). Complete faith in these three
बात को बताता है िक जो भी इस पथ पर चलते ह, िजनदेव के leads to Samyak Darshan (Perfect Faith) and, ultimately,
बताये मो माग पर, वे सदा अजेय रहते है और उनके गणु to Moksha. Thus, this pooja includes all the worshipable
क माला का पाठन करते ह. िजससे हम भी ऐसे ही गणु वान objects.
The Nav Devta Pooja is dedicated to the nine
बन. icons of Jain religion; e.g., the five Par-mesthis -
Arihantas, Siddhas, Aachryas, Upadhyayas, and Sadhus,
Jin Dharm (the Jain Dharma), Jin Aagam (Jain Scriptures),
आगामी अंक म आपको पज ू ा क थाल और अ य Jin Chaitya (idols of Teerthankars) and, Jin Chaitya-lay
साम ी कै से बनाये यह बताने का यास करगे.. (Jain Temple). Certain poojas are associated with special
........ पी. के . जैन ‘ दीप’ सपं ादक. occasions, commemorable days or religious festivals.
These include: Ashtahnik pooja, Das Lakshan Dharm-
Pooja, Kalyanak pooja, Diwali Pooja, Raksha Bandhan
Pooja, etc. Some poojas are specifically performed to
revise the knowledge of specific sets of principles,
WHAT IS CALLED POOJA teachings, beliefs or basic tenets of Jainism, such as the
Ratn-traya Pooja and Solah Karan Pooja); while some
OR WHAT IT IS ! poojas intend worships or honor of holy sites of
pilgrimage in Jianism (such as the Panch Meru Pooja).
Each of these poojas is done at specific times
In the last issue, we had learnt about the Holy throughout the year and they all help to maintain and
sign “SWASTIKA”. We know why and how it is made and re-strengthen our faith in our Dharma.
what the meaning of every thing we draw. The human Each pooja is concluded by reciting an
life can attain holy position by reaching the Moksh or Adoration (the Jayamala). In Jayamala, we recall the
Salvation. Our performance of Abhishek, Pooja, Worship virtues of worshipped object (Teerthankars, Religious
etc. leads to the ultimate goal of human life which is events, festivals, spiritual leaders, Jain beliefs, holy lands,
nothing but Salvation or moksh. Now, we will try to etc.). By reciting these virtues, we remind ourselves of
understand, what is called Pooja and we should perform the greatness of Jain Dharma, and, that our soul, just as
Pooja of whom ? all others, possesses the capacity of attaining Moksha, a
goal towards wich we should strive daily.
POOJA: What it is!

Performing pooja is a way to recite the virtues


of the Teerthankars (the 24 teachers of Jain Dharma in
….how to prepare the Puja Thali and
this era) and remind ourselves that we also possess Asht Dravy. …….. Editor : P . K. Jain.
these virtues.
(Suddho-ham, Siddho-ham, Siddha Swaroopo-
ham). Worldly desires and attachments keep us trapped आचायर न िवशु सागर जी महाराज
in continuous cycle of birth and dealth in this world, but
by following the path of the Teerthankars we can also
be freed from the miseries of this world and attain
Moksha. Therefore, Dev-Pooja is first among all six
essential activities of a Shravak. Atleast one pooja is
considered ESSENTIAL every day without fail. While
there are many poojas dedicated to individual
Teerthankars, these are not the only kind of poojas. The
foremost of the poojas is Dev-Shastra-Guru Pooja,
dedicated to the three most revered religious teachers:
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“िदल को छु लेगी यह छोटी सी कहानी”


आपके िवचार
एक ब चा रोज अपने दादाजी को पूजा करते
देखता था. ब चा भी उनक इस पूजा को देखकर
अ दर से वयं इस अनु ान को पूण करने क इ छा
रखता था. पर तु दादाजी क उपि थित उसे अवसर
नह देती थी. एक िदन दादाजी को आने म िवल ब
हो रहा था, इस अवसर का लाभ लेते हए ब चे ने
पूजा ारंभ कर दी. जब दादाजी आये, तो िदवार
के पीछे से ब चे क पूजा देख रहे थे. ब चा बहत
सारी य का पज ू न म यथा प योग करता ह.
िफर अपनी ाथना म कहता ह –“भगवान् जी
णाम. आप मेरे दादाजी को व थ रखना और
दादी के घुटन के दद को ठीक कर देना य िक
दादा-दादी को कुछ हो गया, तो मुझे चॉकलेट कौन
देगा ? िफर आगे कहता ह, भगवान् जी मे रे सभी
दो त को अ छा रखना, वना मे रे साथ कौन
खे लेगा ? िफर मेरे पापा और म मी को ठीक िवनत भावना
रखना, घर के कु े को भी ठीक रखना, य िक उसे सािह य के नवीन आयाम को जनमानस तक पहचं ाने
कुछ हो गया तो घर को चोर से कौन बचाएगा ? का काय “नमो तु िचंतन” के मा यम से हो रहा है. वतमान क
लेिकन भगवान् यिद आप बुरा न मानो तो एक बात िवशु आगम परंपरा, जो स य के आसमान को छू रही है,
कहँ, सबका यान रखना, लेिकन उससे पहले आप इसम भ यजन के िलए उपल ध ान क पिव गंगा का
अपना यान रखना, य िक आपको कुछ हो गया वाहमान देखने/पढने और मनन करने के िलए िमल रहा है.
तो हम सबका या होगा ? इस सहज ाथना को सम वय और सौहाद को उ प न करने वाली माँ िजनवाणी
सुनकर दादाजी क आँख म भी आस लेख के प म समसामियक िचंतन से यु ा हो रही है.
ं ू आ गए,
य िक ऐसी ाथना उ ह ने न कभी क थी और न मणाचाय िवशु सागर जी महाराज क
सनु ी थी. आ याि मक, याय, आगम, तक और िस ांत से यु वचन
लेखक का नाम नह आया ह पर तु िजसने भी िलखी ह बहत ही
क शृखं ला उनके ारा सृिजत सािह य क समी ा, िनि त प
सु दर रचना है. बधाईयाँ से समाज को िवशु तीथकर क िद य देशना का सुफल िमल
रहा है.
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आदरणीय ी दीप जी का स यक् संयोजन/संपादन परम पू य ातः मरणीय गु देव आचाय ी िवशु
स य व क ओर ले जाने वाला िस हो रहा है. सागर जी महाराज के चरण म मेरा एवं मेरे प रवार एवं जैन
प कार संघ के सभी पदािधकारी सद य क ओर से शत शत
योजक श द को िनि त, अथ-भाव म देता ढाल; नमन ि काल नमो तु नमो तु नमो तु बोले.
वैसे ही स यक् योजक, सबको देता उ म भाल| म नमो तु िचंतन पि का के माह माच अक
ं परम पू य
उ म भाल से िमलता है, उ म िचंतन आधार; गु देव िवशु सागर महाराज के 31 माच को आचाय
िचतं न उ म दीप जी का, िनमलता का देता उपहार|| पदारोहण िदवस के पावन पनु ीत अवसर पर आचाय ी िवशु
सागर महाराज पर िवशेषांक िनकालकर आदरणीय ी दीप
“नमो तु िचतं न” के बढ़ते कदम, सम वय प िचतं न,
जी ने स ची िवनयांजिल तुत क है वा तव म जैन समाज म
क याण के माग को दशाता दपण प काय अनोखी पहल है
अनेक धािमक पि काएं िनकलती है उनम से “नमो तु िचतं न
जो अ यिधक मसा य है. अ छा प, अ छा िचंतन, अ छी
पि का” अपने आप म अहम् भिू मका रखती है. िजसका
ि या से यु अक ं सराहनीय, पठनीय और मननीय है. ये िवशेष कारण उ पि का म अनेक आचाय, मिु नय ,
हमारे ऊपर आपका उपकार है. म वयं आपका कृ त हँ.
आियकाओ,ं िव ान एवं ावक के लेख एवं िवचार होते ह
योजक स यक् बने आप तो, करते ह हम सब आभार | जो अपने आप म वा याय का प है.
इसी तरह जोड़े रखना, रहे समाज म उ नत यवहार || जैन धम पर शोध करने वाले छा -छा ाओ ं के िलए
डॉ. िनमल शा ी, “नमो तु िचंतन पि का” अपने आप म बहत ही उपयोगी
टीकमगढ़. पि का है.
इ ह शभु मंगल भावनाओ ं के साथ, जय वीर
भवदीय
उदय भान जैन, “बडजा या”,
रा ीय महामं ी,
अिखल भारतवष य जैन प कार महासंघ, जयपरु .

“नमो तु िचतं न” पि का तो हमारे गाँव म बहत ही


चचा का िवषय बन गयी है. ब चे ही नह उनके माता िपता भी
देखते ह और िफर मझु से भी पछू ते ह. मझु े भी बहत सी बाते
नह पता होती है तो आप बता देते हो तो िफर हम सभी को भी
बता देते ह. सब बहत खुश होते ह. सोऽहं तो सबका पढु ारी बन
गया ह. सोऽहं और उसके दो त ने िमलकर बनाई हए ह तकला
आदरणीय पी.के . जैन साहब ‘ दीप’ का फोटो भेज रहा हँ तो इसे छपा देना और कृ पा करना.
नमो तु िचतं न पि का ज र ज र भेजना. हमारे परु े गाँव को ही
नमो तु शासन सेवा सिमित पि का वाचन करना होता ह.
मबंु ई. आपका बहत बहत आभार
सादर जय िजन . बबन पािटल,
दोणगांव, सोलापरु , महारा .
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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सभी ब च के िलए
आप जैन धम के अनस ु ार िकसी भी िवषय पर
अपने लेख, किवता, िच कला आिद भेज सकते
आगामी िवशेषांक
ह. और अपना फोटो भेजना न भूले.

जमा करने क आिखरी तारीख :10.05.2020


ुत पच
ं मी
आपका िम
पी. के. जैन ‘ दीप’

२५ मई २०२० का िवशेषांक ुत पंचमी पर


आधा रत होगा. आप िकसी भी थ पर
एकल या सयं ु प से लेख / आलेख भेज
For all children सकते ह. अतः आपके लेख/आलेख/कला/
You can write article/poem/drawing किवता आिद सभी १0 मई २०२० तक भेज
on any subject on Jainism. Don’t देव.
Forget to send your photograph.
आपके लेख क ती ा म
Last Dt. of submission :10.05.2020
आपका अपना
Your Friend पी. के. जैन ‘ दीप’,
P. K. Jain ‘Pradeep’ संपादक –“नमोऽ तु िचंतन”
काशक : नमो तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 25 माह : मई - 2020
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वा याय भी परम तप ह.
यिद आप भी घर बैठ फोन से िनयिमत वा याय करना
चाहते ह तो नमो तु शासन सेवा सिमित पाठशाला से
जुिड़ये और क िजये अपना आ म क याण. संपक करे

-: हमसे जुड़ने के लए तथा इस प का को अपने 602/1, लाड िशवा पेरेडाईज, िबरला कॉलेज रोड,
फोन पर नशु क ा त करने के लए संपक करे क याण (पि म), मुंबई – 421 301.
:- E-mail : namostushasangh@gmail.com
: pkjainwater@gmail.com
पी. के. जैन ‘ द प’ WWW.VISHUDDHASAGAR.COM
बा. . अ यकुमार जैन
आप सभी का आभार
नमो तु शासन सेवा सिमित प रवार

“जय िजने ”
Q QQ
िडिजटल धािमक पि का
िनःशु क िवतरण के िलए
(सव अिधकार सपं ादक और काशक के अधीन)
परम पू य ितपल मरणीय, चया िशरोमणी, अ या म योगी, ( कािशत लेख, रचनाओ ं के िलए संपादक एवं काशक िज मे दार नह ह.
आगम उपदे ा, वा याय भावक, तु सवं धक, आचाय र न लेख/रचना आिद लेखक/ ेषक के वयं के िवचार ह)
ी 108 िवशु सागरजी महाराज क देशना को आप िनशु क
घर बैठे, अपने मोबाइल पर ा करना चाहते ह तो हम सपं क Q QQ
कर. इसके साथ अ य ंथ के िलए भी सपं क करे :-
सपं ादक : पी. के. जैन ‘ दीप’ - 9324358035.
आ मं वभावं पर भाव िभ न,ं
काशक : नमो तु शासन सेवा सिमित (रिज.), ठाणे, मुंबई. आ मं वभावं पर भाव िभ नं,
( काशन थल : मेलबन, ऑ े िलया)

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