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क्लाइमेट

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क्लाइमेट
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क्लाइमेट संबंधित शब्दों के बारे में जानें
यूएनडीपी के अन्तर्गत क्लाइमेट प्रॉमिस, जो की 120 देशों एवं क्षेत्रों को कवर करता है जिनमे 40 सबसे कम विकसित
देशों, 28 छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों और 14 उच्च उत्सर्जक देशों समेत वैश्विक स्तर पर सभी विकासशील देशों के
80 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हुए वैश्विक पेरिस समझौते के तहत आने वाले देशों और क्षेत्रों के नेशनली
डीटरमाइनेड कं ट्रीब्यूशन (ऐन॰डी॰सी॰) को समर्थन प्रदान करने वाला सबसे बड़ा वैश्विक प्रस्ताव है। यह क्लाइमेट संकल्पों
को बढ़ाने के लिए विभिन्न साझीदारों के सहयोग से दिया गया विश्व का सबसे बड़ा समर्थन प्रस्ताव है। और अधिक
जानकारी के लिए climatepromise.undp.org पर जायें और @UNDPClimate को फॉलो करें।

गरीबी, असमानता और जलवायु परिवर्तन के अन्याय को समाप्त करने के लिए तत्पर यूएनडीपी, संयुक्त राष्ट्र का अग्रणी
संगठन है। 170 देशों में विशेषज्ञों एवं साझीदारों के व्यापक नेटवर्क के साथ काम करते हुए, पृथ्वी एवं यहाँ के लोगों के
लिए एकीकृ त, स्थायी समाधान बनाने के लिए राष्ट्रों की मदद कर रहा है।

और अधिक जानकारी के लिए undp.org पर जायें या @UNDP को फॉलो करें।

अस्वीकरण : इस प्रकाशन में व्यक्त किये गये विचार लेखकों के हैं और यह आवश्यक नहीं है कि ये यूएन विकास कार्यक्रम
या यूएन सदस्य देशों समेत संयुक्त राष्ट्र के विचारों को प्रदर्शित करते हों।

कॉपीराइट: ©यूएनडीपी 2023. सर्वाधिकार सुरक्षित। वन युनाइटेड नेशन प्लाजा, न्यू यॉर्क , एनवाई10017, यूएसए

चित्रांकन : उमर कावुक


विषय सूची

एडेप्टेशन 6

बी
ब्लू इकॉनमी 8

सी
कार्बन रिमूवल बनाम कार्बन कै प्चर 10
कार्बन फु टप्रिंट 12
कॉर्बन मार्के ट्स 14
कार्बन सिंक 16
सर्कु लर इकॉनमी 18
जलवायु संकट 20
क्लाइमेट फाइनेंस 22
क्लाइमेट जस्टिस 24
क्लाइमेट ओवरशूट 26
क्लाइमेट सिक्योरिटी 28
सीओपी 30

डी
डीकार्बनाइजेशन 32

एफ
फीडबैक लूप 34

1
जी
ग्लोबल वार्मिंग बनाम क्लाइमेट चेंज 36
ग्रीन जॉब्स 38
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 40
ग्रीनवाशिंग 42

आई
पारंपरिक ज्ञान 44
आईपीसीसी 46

जे
जस्ट ट्रांजिशन 48

एल
लौंग-टर्म स्ट्रेटेजीज 50
हानि एवं क्षति 52

एम
मिटिगेशन 54

एन
नेशनली डिटरमाइंड कॉन्ट्रीब्यूशन 56
नेशनल एडेप्टेशन प्लान्स 58
प्रकृ ति आधरित समाधान 60
नेट जीरो 62

2
पी
पेरिस समझौता 64
आर
पुनर्वनीकरण बनाम वनरोपण 66
आरईडीडी+ 68
पुनरोत्पादक कृ षि 70
रिन्यूएबल ऊर्जा 72
रेसीलिएंस 74
रिवाइल्डिंग 76

टी
टिपिंग प्वाइंट 78
पारदर्शिता 80

यू
यूएनएफसीसीसी 82
डब्लू
मौसम बनाम जलवायु 84

3
प्रस्तावना
जलवायु संकट हमारे समय का मुख्य मुद्दा है। यह दुनिया के हर देश और समुदाय को
प्रभावित कर रहा है।

साथ ही, जलवायु परिवर्तन पर कई शब्दावलियां और अवधारणाएं एक बड़े वर्ग के


लिए जटिल और अगम्य हो सकती हैं।

जलवायु परिवर्तन के बारे में सटीक, आसानी से समझ में आने योग्य जानकारी की
आवश्यकता पहले कभी इतनी नहीं रही।

यूएनडीपी में, दुनिया के सबसे बड़े जलवायु पोर्टफोलिओ में से एक हमारे पास है,
और हमने अक्सर उपयोग होने वाले 40 जलवायु शब्दावलियों को आसान तरीके से
परिभाषित करने के लिए अपने विशेषज्ञों के साथ काम किया है। इसका परिणाम है
क्लाइमेट शब्दकोश, जो आपके हाथों में है।

हमें उम्मीद है कि आप इसे पढ़ेंगे, साझा करेंगे और इसका उपयोग करेंगे। जलवायु
संकट की बेहतर समझ के जरिए, हम वैश्विक जलवायु कार्रवाई के लिए मजबूत
प्रयास कर सकते हैं।

कै सी फ्लिन
जलवायु परिवर्तन के
वैश्विक निदेशक, यूएनडीपी

5
एडेप्टेशन
/Adaptation/ संज्ञा
क्लाइमेट चेंज एडेप्टेशन उन कार्यों को संदर्भित करता है जो मौसम संबंधी चरम स्थितियों
एवं खतरों, समुद्र स्तर में वृद्धि, बायोडायवर्सिटी की हानि और खाद्य एवं जल असुरक्षा
जैसे जलवायु परिवर्तन के वर्तमान या अपेक्षित प्रभावों के नुकसान की आशंका को घटाने
में मदद करते हैं।

स्थानीय स्तर पर कई एडेप्टेशन उपाय किये जाने की आवश्यकता है, इसलिए इसमें
ग्रामीण समुदायों एवं शहरों की बड़ी भूमिका है। इन उपायों में फसलों की ऐसी किस्मों को
बोना, जो ज्यादा सूखा पड़ने से रोकने में मदद करें और पुनरुत्पादक कृ षि प्रथाएं लागू
करना, जल भंडारण एवं उपयोग में सुधार लाना, जंगल में आग लगने के जोखिम को
घटाने के लिए भूमि का प्रबंधन करना, बाढ़ एवं लू जैसे चरम मौसमी स्थितियों से
मुकाबला करने के ठोस तैयारी करना शामिल है।

हालांकि एडेप्टेशन को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की आवश्यकता है।


एडेप्टेशन के दिशानिर्देश के लिए आवश्यक नीतियां विकसित करने के अलावा समुद्र स्तर
में वृद्धि से प्रभावित तटीय इलाकों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने या स्थानांतरित
करने, कठोर मौसम जैसी स्थितियों का सामना करने के योग्य बुनियादी ढांचे के निर्माण,
प्रारंभित चेतावनी प्रणाली को उन्नत करने एवं आपदा सूचना तक पहुंच, जलवायु संबंधी
खतरों को दृष्टि में रखते हुए बीमा प्रणाली का विकास करना और वन्यजीवन एवं
प्राकृ तिक इकोसिस्टम के लिए नये बचाव सृजित करने जैसे बड़े स्तर के उपायों की ओर
देखने की जरूरत है।

7
ब्लू इकॉनमी
/Blue Economy/ संज्ञा
दुनिया के महासागर – उनका तापमान, उनका रासायनिक संयोजन, धाराएँ और जीवन
– जो पृथ्वी की वैश्विक प्रणाली को चलाती हैं और मानव जाति के रहने योग्य बनाती हैं।
हमारा बारिश का पानी, पेयजल, मौसम, जलवायु, समुद्र तट, हमारा अधिकांश भोजन,
दवाएं और यहां तक कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं, उसमें मौजूद ऑक्सीजन भी
समुद्रों से उपलब्ध और नियमित होता है। हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण, हमारे
महासागरों का स्वास्थ्य अब भारी खतरे में है।

‘ब्लू इकॉनमी’ की संकल्पना आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, सामाजिक समावेशन, और


आजीविका का संरक्षण या सुधार और साथ ही साथ महासागरों एवं तटीय इलाकों की
पर्यावरणीय निरंतरता को सुनिश्चित करना चाहती है।

ब्लू इकॉनमी में न सिर्फ फिशरीज (मत्स्य पालन), पर्यटन और समुद्री परिहन जैसे
स्थापित पारंपरिक समुद्री उद्योग हैं बल्कि ऑफशोर रिन्यूएबल ऊर्जा, जलीय कृ षि
(एक्वाकल्चर), समुद्रतल से निष्कर्षण गतिविधियां और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी जैसी नयी
और उभरती हुई गतिविधियों समेत विभिन्न घटक हैं।

9
कार्बन रिमूवल
बनाम कार्बन कै प्चर
/Carbon removal/ संज्ञा/ Carbon Capture/ संज्ञा
कार्बन रिमूवल, पुनर्वनीकरण एवं मृदा प्रबंधन जैसे प्राकृ तिक समाधानों या डायरेक्ट एयर
कै प्चर एवं वृद्धित खनिजीकरण जैसे तकनीकी समाधानों के जरिए वायुमंडल से
ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को हटाने की प्रक्रिया है। कार्बन रिमूवल, ग्रीनहाउस गैस
उत्सर्जन को खत्म करने का विकल्प नहीं है लेकिन यह जलवायु परिवर्तन को धीमा कर
सकता है और यह उस अवधि को छोटा करने के लिए आवश्यक है जिसमें हम हमारे
जलवायु लक्ष्यों से अस्थाई रूप से आगे निकल जाते हैं।

कार्बन कै प्चर एवं भंडारण, फॉसिल फ्यूल बिजली संयंत्रों या अन्य औद्योगिकी प्रक्रियाओं
द्वारा उत्पन्न हुए कार्बन उत्सर्जन को उनके वायुमंडल में प्रवेश करने से पहले ही उसे
गहराई में जमीन के नीचे भंडारित करके रखने की प्रक्रिया है। कार्बन कै प्चर और भंडारण
को ग्रीन एनर्जी ट्रांजिशन के विकल्प के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे उन
सेक्टरों, विशेष रूप से सीमेंट, स्टील एवं रसायन जैसे भारी उद्योगों के उत्सर्जन का
निस्तारण करने के तरीके के रूप में प्रस्तावित किया है जिन्हें डीकार्बनाइज करना
मुश्किल है।

हालांकि, ये प्रौद्योगिकियां, विकास के महज शुरुआती चरण में हैं और इसके लिए
सतर्क तापूर्वक डिजाइन की गयी नीतियों की जरूरत होगी। जलवायु संकट से निपटने के
लिए ग्रीनहाउस उत्सर्जन में प्रभावशाली रूप से कटौती करना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी
चाहिए।

11
कार्बन फु टप्रिंट
/Carbon Footprint/ संज्ञा
कार्बन फु टप्रिंट किसी व्यक्ति विशेष, संगठन, उत्पाद या गतिविधि के जरिए वायुमंडल में
जारी होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का माप है। ज्यादा कार्बन फु टप्रिंट का अर्थ
कार्बन डायऑक्साइड एवं मिथेन का ज्यादा उत्सर्जन, जिसका जलवायु संकट में ज्यादा
योगदान है।

किसी व्यक्ति या संगठन के कार्बन फु टप्रिंट को मापने में ऊर्जा उत्पादन, ऊष्मा (हीटिंग)
और भूमि एवं हवाई यात्रा के लिए फॉसिल फ्यूल जलने के परिणामस्वरूप होने वाला
प्रत्यक्ष उत्सर्जन और सभी प्रकार के खाद्य, निर्मित वस्तुओं और उनके द्वारा उपभोग की
जाने वाली सेवाओं के उत्पादन एवं निस्तारण के परिणामस्वरूप होने वाला अप्रत्यक्ष
उत्सर्जन, दोनों को देखना शामिल है।

वायु एवं सौर जैसे कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों की ओर शिफ्ट करके , ऊर्जा दक्षता में सुधार
करके , उद्योग की नीतियों एवं नियमन को मजबूत करके , खरीद एवं यात्रा से जुड़ी आदतों
को बदलकर, और मांस खपत एवं खाद्य अपशिष्ट को कम करके कार्बन फु टफ्रिंट को
घटाया जा सकता है।

13
कार्बन मार्के ट्स
/Carbon Markets/ संज्ञा
कार्बन मार्के ट्स व्यापारिक योजनाएं हैं जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को घटाने या समाप्त
करने वाली गतिविधियों के लिए वित्तीय प्रोत्साहन देती हैं। इन योजनाओं में उत्सर्जन को
कार्बन क्रे डिट में मात्राबद्ध किया जाता है जिसे खरीदा और बेचा जा सकता है। एक
व्यापार योग्य कार्बन क्रे डिट एक टन कार्बन डायऑक्साइड के बराबर या घटाये गये,
अलग किये गये या बचाये गये एक अलग ग्रीनहाउस गैस की समतुल्य मात्रा के बराबर
होता है।

कार्बन क्रे डिट को एनडीसी रणनीति के हिस्से के रूप में किसी देश द्वारा, सततता लक्ष्यों
के साथ संस्था द्वारा और इच्छु क निजी लोगों द्वारा अपने कार्बन फु टप्रिंट की भरपाई करने
के लिए खरीदा जा सकता है।

कार्बन क्रे डिट्स की आपूर्ति निजी संस्थाओं या सरकारों द्वारा की जाती है जो उत्सर्जन
घटाने या खत्म करने के लिए कार्यक्रम विकसित करती हैं। ये कार्यक्रम थर्ड पार्टी द्वारा
प्रमाणित और कार्बन मार्के ट मानक के तहत पंजीकृ त होती हैं।

कार्बन मार्के ट्स को सफल बनाने के लिए, देशों को कार्बन एकाउंटिंग में मजबूती हासिल
करने, कार्बन मार्के ट सौदों के लिए पारदर्शिता सुनिश्चित करने, मानवाधिकार हनन एवं
अन्य प्रतिकू ल सामाजिक प्रभावों के खिलाफ सुरक्षा उपायों को लागू करने, और
ग्रीनवाशिंग एवं कार्बन तटस्थ उत्पादों एवं सेवाओं की गलत व्याख्या से निपटने के लिए
मिलकर काम करना चाहिए।

15
कार्बन सिंक
/Carbon Sink/ संज्ञा
वह कोई भी प्रक्रिया, गतिविधि या तंत्र कार्बन सिंक है जो वायुमंडल से कार्बन
डायऑक्साइड निकालने के मुकाबले अपशोषित ज्यादा करती है। वन, महासागर और
धरा, दुनिया के सबसे बड़े प्राकृ तिक कार्बन सिंक हैं।

महासागर, समुद्री इकोसिस्टम और उसके पास के वनस्पति एवं प्राणी जीवन के जरिए
वायुमंडल से कार्बन डायऑक्साइड अवशोषित करते हैं। समुद्री इकोसिस्टम में कार्बन को
अलग करने को आमतौर पर ब्लू कार्बन के रूप में संदर्भित किया जाता है। वन और धरा,
पृथ्वी के अन्य मुख्य प्राकृ तिक कार्बन सिंक हैं जो पेड़ों एवं वनस्पतियों, वेटलैंड्स एवं पीट
बॉग्स और वानस्पतिक कचरा में कार्बन का भंडारण करते हैं।

आज, पृथ्वी के प्राकृ तिक कार्बन सिंक द्वारा अवशोषित किये जा सकने से ज्यादा कार्बन,
फॉसिल फ्यूल को जलाने और वनों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियों के कारण,
वायुमंडल में छोड़ा जाता है जिसके परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु
परिवर्तन होता है। मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन भी इन प्राकृ तिक कार्बन
सिंक के क्षरण का कारण बन रहे हैं, जिससे उनके द्वारा संग्रहीत कार्बन को वापस
वायुमंडल में छोड़े जाने का खतरा है। इसलिए, कार्बन सिंक का बचाव करना और कार्बन
अवशोषित करने की इसकी क्षमता बढ़ाना और उसे लंबे समय तक भंडारित रखना,
जलवायु परिवर्तन से निपटने और जलवायु को स्थिर करने के लिए एक महत्वपूर्ण
रणनीति है।

17
सर्कु लर इकोनमी
/Circular Economy/ संज्ञा
सर्कु लर इकोनमी उत्पादन और उपभोग के मॉडल को संदर्भित करती है जो अपशिष्ट को
न्यूनतम करती है और प्रदूषण घटाती है, प्राकृ तिक संसाधनों के सतत उपयोग को बढ़ावा
देती है और प्रकृ ति के पुनर्जीवन में मदद करती है।

सर्कु लर इकॉनमी का दृष्टिकोण हमारे चारों ओर है। उन्हें कपड़ा से लेकर भवन निर्माण
तक के विभिन्न सेक्टरों में - डिजाइन, विनिर्माण, वितरण एवं निस्तारण समेत उत्पाद चक्र
के विभिन्न चरणों में देखा जा सकता है।

प्रदूषण की समस्या से निपटने में मदद करने के अलावा, सर्कु लर इकोऩॉमी का दृष्टिकोण
जलवायु परिवर्तन और बायोडायवर्सिटी हानि जैसी अन्य जटिल चुनौतियों के समाधान में
महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता हैं। ये देशों को ज्यादा रेलिजिएंट (लचीली) और निम्न
कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर उनके ट्रांजिशन को तेज करने में मदद कर सकता हैं, साथ
ही नयी हरित नौकरियां भी सृजित कर सकता हैं।

वर्तमान में, उपयोग की गयी सामग्रियों का के वल 7.2 प्रतिशत हिस्सा ही उपयोग के बाद
हमारी अर्थव्यवस्थाओं में वापस भेजा जाता है। यह पर्यावरण पर एक भारी बोझ है और
यह जलवायु, बायोडायवर्सिटी और प्रदूषण संकट में लगातार योगदान कर रहा है।
परिणामस्वरूप, हमें वर्तमान में दुनिया के सभी संसाधनों को पूरा करने के लिए लगभग
1.7 गुणा पृथ्वी की जरूरत है।

19
जलवायु संकट
/Climate Crisis/ संज्ञा
जलवायु संकट उन गंभीर समस्याओं को संदर्भित करता है जो मौसम के चरम एवं खतरों,
समुद्रों के अम्लीकरण एवं समुद्र स्तर में वृद्धि, बायोडायवर्सिटी की हानि, खाद्य एवं जल
असुरक्षा, स्वास्थ्य जोखिमों, आर्थिक बाधाओं, विस्थापन और यहां तक कि हिंसक संघर्षों
समेत पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तनों के कारण हो रहे हैं या होने की संभावना है।

1800 के दशक से, मानव गतिविधियों के कारण पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 1.2
डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है – इसमें भी इस तापमान का दो तिहाई से अधिक हिस्सा
1975 के बाद से बढ़ रहा है। यह पहले से ही दुनिया के कई हिस्सों में मानव समाजों और
प्राकृ तिक इकोसिस्टम को महत्वपूर्ण क्षति पहुंचा रहा है। 3 बिलियन से अधिक लोग उन
स्थानों पर रहते हैं जो जलवायु संकट के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं जिसमें निम्न आय
वाले देश असमान रूप से प्रभावित हो रहे हैं।

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि से खतरनाक उतार-


चढ़ावों की श्रृंखला शुरू हो जाएगी जो कई बदलावों को अपरिवर्तनीय बना देगी और
मानव सभ्यता के लिए अत्यंत गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा। इसी वजह से सरकारों को
अब ग्रीनहाउस गैसों को प्रमुख रूप से घटाने और आगामी दशकों में नेट जीरो तक
पहुंचने के लिए एक कार्यक्रम तैयार करने, जलवायु परिवर्तन के अपरिहार्य प्रभावों के
एडेप्टेशन में निवेश करने, प्राकृ तिक इकोसिस्टम एवं जैवक्षेत्रों, जिस पर पृथ्वी आधारित
है, की रक्षा एवं पुनर्स्थापना के लिए अवश्य कार्य करना चाहिए।

21
क्लाइमेट फाइनेंस
/Climate Finance/ संज्ञा
क्लाइमेट फाइनेंस का तात्पर्य उन वित्तीय संसाधनों और साधनों से है जिनका उपयोग
जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई करने के लिए किया जाता है। निम्न कार्बन वैश्विक
अर्थव्यवस्था की ओर ट्रांजिशन करने और समाज को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के
प्रति रेसिलिएंट और एडेप्टेबल बनाने में मदद करने के लिए और बड़े पैमाने पर निवेश की
जरूरत के कारण जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के लिए क्लाइमेट फाइनेंस
महत्वपूर्ण है।

क्लाइमेट फाइनेंस सार्वजनिक या निजी, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय, द्विपक्षीय या बहुपक्षीय,


विभिन्न स्रोतों से आ सकता है। इसमें अनुदान एवं दान, ग्रीन बॉन्ड, ऋण स्वैप, गारंटी और
रियायती ऋण जैसे विभिन्न साधन शामिल हो सकते हैं। और, इसका उपयोग मिटिगेशन,
एडेप्टेशन और रेजिलिएंस निर्माण समेत विभिन्न गतिविधियों में हो सकता है।

ग्रीन क्लाइमेट फं ड (जीसीएफ) द ग्लोबल एन्वायर्नमेंट फै सिलिटी (जीईएफ) और


एडेप्टेशन फं ड (एएफ) समेत कु छ बहुपक्षीय फं डों के लिए देश संपर्क कर सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक योगदान देने वाले उच्च आय वाले देश कम
आय वाले देशों में जलवायु कार्रवाइयों के वित्तपोषण के लिए हर वर्ष 100 बिलियन
डॉलर जुटाने के लिए संकल्पित हैं। हालांकि, यह लक्ष्य अब तक पूरा नहीं हुआ है और
मिटिगेशन एवं एडेप्टेशन, दोनों तरह के हस्तक्षेपों के लिए और फं डिंग की जरूरत है।

23
क्लाइमेट जस्टिस
/Climate Justice/ संज्ञा
क्लाइमेट जस्टिस का अर्थ जलवायु परिवर्तन पर निर्णय लेने और कार्रवाई करने के मूल
में मानवाधिकारों और समानता को बनाए रखना है।

क्लाइमेट जस्टिस का एक पहलू जलवायु संकट के संबंध में देशों द्वारा वहन की जाने
वाली असमान ऐतिहासिक जिम्मेदारी से जुड़ा है। यह अवधारणा बताती है कि सबसे
ज्यादा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करने वाली गतिविधियों से समृद्ध हुए देशों, उद्योगों एवं
व्यवसायों की जिम्मेदारी है कि वे उन प्रभावित लोगों, विशेष रूप से सर्वाधिक कमजोर
देशों एवं समुदायों के लोगों, जिनका अक्सर संकट में न्यूततम योगदान होता है, पर
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद करें।

यहां तक कि एक ही देश के भीतर, नस्ल, जाति, लिंग और सामाजिक-आर्थिक दर्जे पर


आधारित संरचनात्मक असमानताओं के कारण जलवायु परिवर्तन से निपटने की
जिम्मेदारियों को निष्पक्ष रूप से बांटने की जरूरत है जिसमें सबसे ज्यादा जिम्मेदारी उन
लोगों पर है जिन्होंने संकट में पैदा करने में सबसे ज्यादा योगदान किया है और सबसे
ज्यादा लाभान्वित हुए हैं।

क्लाइमेट जस्टिस का एक अन्य पहलू पीढ़ीगत-अंतर है। आज के बच्चों और युवाओं ने


जलवायु संकट में महत्वपूर्ण तरीके से योगदान नहीं किया है, परंतु जैसे-जैसे वे जीवन में
आगे बढ़ेंगे, उन्हें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करना होगा। चूंकि उनके
मानवाधिकार को पिछली पीढ़ियों के निर्णयों से खतरा उत्पन्न हुआ है, इसलिए जलवायु
संबंधी सभी निर्णय लेने और कार्रवाई करने में उनकी कें द्रीय भूमिका होनी चाहिए।

25
क्लाइमेट
ओवरशूट
/Climate Overshoot/ संज्ञा
पेरिस समझौते के तहत, देशों से अपेक्षा की जाती है कि वे ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री
सेल्सियस से नीचे सीमित करके और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के
प्रयासों को आगे बढ़ाकर हानिकारक जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए आवश्यक उपाय
करें। लेकिन सबसे बेहतर परिदृश्य भी अब इन लक्ष्यों के ओवरशूट होने, भले ही अस्थायी
रूप से, की एक महत्वपूर्ण संभावना का संके त देती है। क्लाइमेट ओवरशूट उस अवधि
को संदर्भित करता है जिसके दौरान वार्मिंग वापस नीचे गिरने से पहले 1.5 डिग्री
सेल्सियस से अधिक बढ़ गयी होगी। यह काल संभवतः इस सदी के मध्य के आसपास
घटित होगा लेकिन ऐसे परेशान करने वाले संके त उभर रहे हैं कि यह इससे भी पहले
घटित हो सकता है।

क्लाइमेट ओवरशूट जितने लंबे समय तक रहेगा, दुनिया उतनी ही अधिक संकट में रहेगी।
लंबी अवधि तक उच्च वैश्विक तापमान का प्राकृ तिक इकोसिस्टम, बायोडायवर्सिटी और
मानव समुदायों पर, विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों, तटीय क्षेत्रों और अन्य कमजोर स्थानों पर
विनाशकारी और अपरिवर्तनीय प्रभाव पड़ेगा। क्लाइमेट ओवरशूट की अवधि और
प्रभावों को सीमित करने के लिए इस दशक के दौरान उत्सर्जन में भारी कटौती करना
अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

27
क्लाइमेट
सिक्योरिटी
/Climate Security/ संज्ञा
जलवायु परिवर्तन, भोजन, पानी और आजीविका की असुरक्षा को बढ़ा सकता है,
जिसके द्वारा विस्थापन एवं प्रवासन और प्राकृ तिक संसाधनों के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा
जैसे व्यापक प्रभाव हो सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप देशों या क्षेत्रों में तनाव में वृद्धि
और अस्थिरता बढ़ सकती है।

इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव मौजूदा हिंसक संघर्षों को बढ़ा सकते हैं या
लंबा खींच सकते हैं और जलवायु कार्रवाई करने और शांति स्थापित करने और उसे
बनाये रखने को ज्यादा कठिन बना सकते हैं।

क्लाइमेट सिक्योरिटी का तात्पर्य जलवायु संकट के कारण शांति एवं स्थिरता के लिए
उत्पन्न जोखिमों का मूल्यांकन करना, उनका प्रबंधन करना और उन्हें घटाना है। इसका
अर्थ यह सुनिश्चित करना है कि जलवायु मिटिगेशन और एडेप्टेशन को कोई हानि न
पहुंचाए और शांति एवं स्थिरता में सकारात्मक योगदान दे। इसका अर्थ यह भी है कि
संघर्ष की रोकथाम में और शांति निर्माण की पहलों में जलवायु प्रभावों को ध्यान में रखा
जाए। जलवायु कार्य और एडेप्टेशन के तकनीकी समाधान खासतौर पर संघर्ष प्रभावित
और संवेदनशील सामाज में शांति स्थापित करने और सुधारने के अवसर के रूप में काम
करें।

जलवायु कार्रवाई, संघर्ष और संवेदनशीलता के मुख्य कारणों को कम करने में मदद कर


सकती है। उदाहरण के लिए, रिन्यूएबल ऊर्जा एक ऐसी जीवनरेखा हो सकती है जो
स्वच्छ पानी, प्रकाश, गर्मी और जीविका के साथ-साथ बुनियादी और आपातकालीन
सेवाओं का बढ़ावा दे सकती है। यह स्थानीय आर्थिक विकास को भी सशक्त बनाती है,
जबकि देशों को पुनर्बहाली के लिए एक सतत विकास की राह पर स्थापित करना हो।

29
सीओपी
/COP/ संक्षिप्तीकरण
जलवायु परिवर्तन के लिए समर्पित वार्षिक संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, जिसे "कान्फ्रें सेज ऑफ़
पार्टीज़" या "सीओपी" कहा जाता है, 1995 से जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रे मवर्क
कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के तहत आयोजित किया जाता रहा है।
वर्ष 2015 में हुए 21वें सीओपी, या सीओपी21 में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किये गये।

सम्मेलन अब पेरिस समझौते के पक्षकार, सभी देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के


लिए अपने अगले कदमों पर चर्चा करने और जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए
नियमानुकू ल बाध्य समझौते स्थापित करने के लिए एक साथ लाता है।

31
डीकार्बनाइजेशन
/Decarbonization/ संज्ञा
डीकार्बनाइजेशन का अर्थ, एक समाज द्वारा उत्पादित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की मात्रा
को कम करना, साथ ही खपत की जाने वाली मात्रा को बढ़ाना है। इसमें अर्थव्यवस्था के
सभी नहीं तो, कई पहलुओं को बदलना शामिल है, जैसे कि ऊर्जा उत्पादन कै से होता है,
वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन और वितरण कै से किया जाता है, इमारतें कै से बनाई
जाती हैं और भूमि का प्रबंधन कै से किया जाता है।

पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने और 1.5 डिग्री लक्ष्य को बनाये रखने के लिए,
सरकारों और व्यवसायों को 2030 तक तेजी से डीकार्बनाइजेशन करना होगा। सार्थक
डीकार्बनाइजेशन करने के लिए निम्न कार्बन वाले बुनियादी ढांचे और परिवहन,
रिन्यूएबल ऊर्जा स्रोतों, सर्कु लर इकॉनमी और संसाधन कु शलता, और भूमि एवं मिट्टी के
जीर्णोद्धार में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता है। इसके लिए वर्तमान आर्थिक मॉडलों पर
पुनर्विचार की भी आवश्यकता है जो हर कीमत पर विकास पर कें द्रित हों।

33
फीडबैक लूप
/Feedback Loop/ संज्ञा
क्लाइमेट फीडबैक लूप्स तब घटित होतें है जब जलवायु में एक परिवर्तन, श्रृंखलाबद्ध
तरीके से आगे के परिवर्तनों को उत्पन्न करता है जो समय बीतने के साथ खुद ही और
मजबूत हो जाता है। आख़िर में, फीडबैक लूप्स, टिपिंग पॉइंट्स बनाते हैं, जो हमारे ग्रह
की जलवायु प्रणालियों में परिवर्तन गंभीर और अपरिवर्तनीय हो जाते हैं।

वर्तमान में, वैज्ञानिक कु छ गंभीर फीडबैक लूप के बारे में जानते हैं जो ग्लोबल वार्मिंग को
बढ़ा रहे हैं। उदाहरण के लिए, आर्क टिक में समुद्री बर्फ पिघलने के कारण गहरे समुद्र के
पानी द्वारा अधिक गर्मी अवशोषित की जा रही है, जिससे वार्मिंग प्रक्रिया तेज हो रही है
और अधिक बर्फ पिघल रही है। इसी तरह, जब जंगल की आग जंगलों को जलाती है, तो
वे ग्रीनहाउस गैसें छोड़ती हैं जिससे अधिक गर्मी होती है और जंगल में और आग लगती
है। अन्य फीडबैक लूप में पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना, फॉरेस्ट डाईबैक (बिना कारण जंगल के
पेड़ों का मरना) और कीट का प्रकोप शामिल है।

35
ग्लोबल वार्मिंग
बनाम
क्लाइमेट चेंज
/Global Warming/ संज्ञा
वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता (कन्सेंट्रेशन) बढ़ जाने से पृथ्वी की औसत सतह
तापमान बढ़ जाना, ग्लोबल वार्मिंग है। ये गैसें अधिक सौर विकिरण को अवशोषित करती
हैं और अधिक गर्मी संचित करती हैं, जिससे पृथ्वी ज़्यादा गर्म हो जाती है। फॉसिल फ्यूल
जलाना, जंगलों को काटना और पाशपालन करना कु छ वे मानवीय गतिविधियां हैं जो
ग्रीनहाउस गैसों को छोड़ती हैं और ग्लोबल वार्मिंग में योगदान करती हैं।

क्लाइमेट चेंज से तात्पर्य, पृथ्वी की जलवायु में दीर्घकालिक परिवर्तनों से है जो


वायुमंडल, महासागर और भूमि को गर्म कर रहे हैं। क्लाइमेट चेंज जीवन और
बायोडायवर्सिटी का साथ देने वाले इकोसिस्टम के संतुलन को प्रभावित कर रहा है और
स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है। यह मौसम की गंभीर घटनाओं का भी कारण बनता है,
जैसे कि अधिक तीव्र और/या बार-बार आने वाले तूफान, बाढ़, लू और सूखा, और समुद्र
के गर्म होने, ग्लेशियरों के पिघलने और बर्फ की चादरों के नुकसान के परिणामस्वरूप
समुद्र के स्तर में वृद्धि और तटीय कटाव होता है।

37
ग्रीन जॉब्स
/Green Jobs/ संज्ञा
ग्रीन जॉब्स (हरित नौकरियां) वह शिष्ट नौकरियां हैं जो पर्यावरण का बचाव करने और
उसे बहाल करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में योगदान देती हैं। ग्रीन जॉब्स हरित
उत्पादों और सेवाओं के उत्पादन, जैसे रिन्यूएबल ऊर्जा में और रीसाइक्लिंग जैसी
पर्यावरण अनुकू ल प्रक्रियाओं में की जा सकती हैं। ग्रीन जॉब्स ऊर्जा और कच्चे माल की
दक्षता में सुधार करने, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करने, अपशिष्ट और प्रदूषण
को कम करने, इकोसिस्टम की रक्षा और बहाली करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों
के एडेप्टेशन का समर्थन करने में मदद करती हैं।

जैसे-जैसे ग्रीन जॉब्स का मार्के ट बढ़ रहा है, देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि
कार्य करने के लिए लोग उन्हें पूरा करने के लिए आवश्यक विशिष्ट कौशल और शिक्षा से
परिपक्व हो। इसे ग्रीन जॉब्स के लिए भावी युवाओं को प्रशिक्षण देने और कार्बन-इंटेसिंव
उद्योगों के श्रमिकों के पुनर्प्रशिक्षण के जरिए प्राप्त किया जा सकता है। पुनर्प्रशिक्षण यह
सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि देश न्यायपूर्ण परिवर्तन (जस्ट ट्रांजिशन) कर रहे
हैं और किसी को भी पीछे नहीं छोड़ रहे हैं।

39
ग्रीनहाउस गैस
उत्सर्जन
/Greenhouse Gas Emission/ संज्ञा
ग्रीनहाउस गैसें वे गैसें हैं जो सूर्य की उष्मा को हमारे ग्रह के वायुमंडल में संचित कर हमारे
ग्रह को गर्म रखती हैं। जब से औद्योगिक युग शुरू हुआ, मानवीय गतिविधियों के कारण
खतरनाक स्तर की ग्रीनहाउस गैसें निकलीं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु
परिवर्तन हुआ।

मानव गतिविधियों से निकलने वाली कार्बन डायऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड


और फ्लोराइड युक्त गैसें मुख्य ग्रीनहाउस गैसें हैं जिनका उपयोग कू लिंग और रेफ़्रीजरेशन
के लिए किया जाता है। कार्बन डायऑक्साइड प्राथमिक ग्रीनहाउस गैस है जो मानवीय
गतिविधियों, विशेष रूप से फॉसिल फ्यूल जलाने, वनों की कटाई और भूमि के उपयोग
के तरीके में बदलाव से उत्पन्न होती है। फॉसिल फ्यूल पर हमारी निर्भरता के कारण
पिछले 200 वर्षों में वायुमंडल में कार्बन डायऑक्साइड की सांद्रता (कन्सेंट्रेशन) में 50
प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मीथेन एक अन्य महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस है जो ग्लोबल वार्मिंग
के 25 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। मीथेन कोयला, गैस और तेल को निकालने और
परिवहन के दौरान और अपशिष्ट लैंडफिल और कृ षि कार्यों द्वारा उत्सर्जित होता है।

विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए, दुनिया की सरकारों को अभी और


आने वाले दशकों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को महत्वपूर्ण रूप से कम करने और
ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस की खतरनाक सीमा से नीचे रखने के लिए
मिलकर काम करना चाहिए।

41
ग्रीनवाशिंग
/Greenwashing/ संज्ञा
जलवायु संकट से निपटने के लिए सार्वजनिक दबाव बढ़ने के साथ ही निजी क्षेत्र की
कं पनियां भी लो कार्बन वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने के अभियान में शामिल हो रही हैं।
हालांकि, उनके प्रयास कभी-कभी वास्तविक, सार्थक कार्रवाई होने की बजाय मार्के टिंग
अभियान में ज्यादा बदल जाते हैं।

ग्रीनवाशिंग उन स्थितियों को संदर्भित करता है जहां एक कं पनी अपने सकारात्मक


पर्यावरणीय प्रभाव या अपने उत्पादों और सेवाओं की स्थिरता के बारे में गुमराह करने
वाले दावे करती है ताकि उपभोक्ताओं को यह लगे कि वे जलवायु परिवर्तन पर कार्य कर
रहे हैं। कु छ मामलों में, पर्यावरणीय मुद्दों पर ज्ञान की कमी के कारण, अनजाने में
ग्रीनवॉशिंग हो सकती है। हालांकि, इसे व्यावसायिक लाभ लेने की दृष्टि से पर्यावरण
नीतियों के प्रति जनता के समर्थन का फायदा उठाने के लिए जानबूझकर मार्के टिंग और
जनसंपर्क अभ्यासों के रूप में भी किया जा सकता है।

ग्रीनवॉशिंग स्थिरता के प्रति जनता के भरोसे को कम कर सकती है और नकारात्मक


पर्यावरणीय प्रभावों को बेरोकटोक जारी रख सकती है।

43
पारंपरिक ज्ञान
/Indigenous Knowledge/ संज्ञा
पारंपरिक लोगों के जीवन जीने के तरीके स्वाभाविक रूप से निम्न कार्बन वाले हैं और
मनुष्यों और प्राकृ तिक दुनिया के बीच संतुलन बनाये रखने पर जोर देते हैं। उनकी
पारंपरिक प्रथाओं का पर्यावरण पर कम प्रभाव पड़ता है और वे इसके प्रति उत्तरदायी हैं
एवं आत्मनिर्भर इकोसिस्टम को बढ़ावा देते हैं।

पारंपरिक लोग जलवायु परिवर्तन को पहचानने वाले पहले लोगों में से थे। उनका ज्ञान
और प्रथाएं इसके प्रभावों का मार्गदर्शन करने और एडेप्ट करने में मदद करती हैं। अंतर-
पीढ़ीगत और समुदाय-आधारित पारंपरिक ज्ञान सार्थक जलवायु समाधानों का एक बड़ा
स्रोत है जो मिटिगेशन और एडेप्टेशन को बढ़ा सकता है और रेसिलिएंट बना सकता है।
यह सटीक परिदृश्य जानकारी के साथ वैज्ञानिक डेटा का भी पूरक बन सकता है जो
जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों के मूल्यांकन के लिए महत्वपूर्ण है।

पारंपरिक लोग दुनिया की शेष बायोडायवर्सिटी के अनुमानित 80 प्रतिशत की रक्षा करते


हैं, फिर भी जलवायु परिवर्तन पर लगभग सभी वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से उन्हें
बड़े पैमाने पर बाहर रखा गया है। उनके सामूहिक ज्ञान, मूल्यवान अंतर्दृष्टि, और उनकी
पैतृक भूमि, क्षेत्रों और संसाधनों पर अधिकार, और उनके जीवन जीने के तरीकों को
जलवायु नीतियों और कार्यों में मान्यता दी जानी चाहिए और शामिल किया जाना
चाहिए।

45
आईपीसीसी
/IPCC/ संक्षिप्ताक्षर
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी), वर्ल्ड मेटियोरोलॉजिकल
ऑर्गेनाइज़ेशन (डब्ल्यूएमओ) और यूनाइटेड नेशंस एनवायरनमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) के
तत्वावधान में स्थापित एक स्वतंत्र निकाय है।

आईपीसीसी की मुख्य भूमिका जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक साहित्य और निर्णयों का


आकलन करना और नीति निर्माताओं एवं जनता को महत्वपूर्ण वैज्ञानिक जानकारी और
साक्ष्य-आधारित सिफारिशें उपलब्ध कराना है। इसे व्यापक रूप से जलवायु परिवर्तन के
विज्ञान और इसके प्रभावों, जोखिमों के जटिल विश्लेषण और एडेप्टेशन एवं मिटिगेशन
विकल्पों से संबंधित जानकारी के सबसे विश्वसनीय स्रोत के रूप में मान्यता दी जाती है।

47
जस्ट ट्रांजिशन
/Just Transition/ संज्ञा
जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में, लो-कार्बन या नेट-जीरो अर्थव्यवस्था में ट्रांजिशन (धीरे-
धीरे क्रमश: परिवर्तन) के लिए हमारी आर्थिक प्रणालियों में बड़े पैमाने पर ट्रांजिशन की
आवश्यकता है। इस तरह के जस्ट ट्रांजिशन (न्यायसंगत परिवर्तन) से सामाजिक
असमानता, बहिष्कार, नागरिक अशांति और कम प्रतिस्पर्धी व्यवसायों, क्षेत्रों और
बाजारों के और बढ़ने का जोखिम है।

देश जब अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए काम करते हैं, तो यह महत्वपूर्ण है
कि वे सुनिश्चित करें कि संपूर्ण समाज - सभी समुदायों, सभी श्रमिकों, सभी सामाजिक
समूहों - को साथ लाया जाए और उन्हें होने वाले संरचनात्मक परिवर्तन का हिस्सा बनाया
जाए।

जस्ट ट्रांजिशन (न्यायसंगत परिवर्तन) सुनिश्चित करने का मतलब है कि देश अपनी


अर्थव्यवस्था को ट्रांजिशन रास्तों और दृष्टिकोणों के जरिए हरित बनाने का चयन करते हैं
जो समानता और समावेशिता को सुदृढ़ करते हैं। इसका मतलब पूरी अर्थव्यवस्था में
श्रमिकों के विभिन्न समूहों पर ट्रांजिशन के प्रभावों को देखना और शिष्ट कार्य का समर्थन
करने वाले प्रशिक्षण और पुन: कौशल के अवसर प्रदान करना और लक्ष्य रखना की सब
एकसाथ आगे बढ़ें और कोई पीछे ना छू टे है।

49
लौंग-टर्म
स्ट्रेटेजीज
/Long-Term Strategies/ संज्ञा
पेरिस समझौते के तहत, देशों को उत्सर्जन में कटौती के लिए लौंग-टर्म स्ट्रैटेजीज -
दीर्घकालिक रणनीतियों (एलटीएस) के बारे में बताने के लिए आमंत्रित किया जाता है,
जो कई दशकों में, आमतौर पर 2050 तक संपूर्ण समाज में कायाकल्प की कल्पना
करता है। एलटीएस दस्तावेज़ ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के दीर्घकालिक उद्देश्यों
और 2050 तक नेट-जीरो तक पहुंचने के अनुरूप हैं।

दीर्घकालिक रणनीतियां एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण प्रदान करती हैं जो एनडीसी जैसे


अल्पकालिक राष्ट्रीय जलवायु वादों को सामंजस्यता और दिशा प्रदान करती हैं। वे ग्रीन
ट्रांजिशन के सामाजिक-आर्थिक लाभों को प्रदर्शित करते हुए देशों को लो-कार्बन विकास
को आगे बढ़ाने और फॉसिल फ्यूल पर आधारित निवेश को रोकने के लिए मार्गदर्शन
करते हैं। वे नवाचार को बढ़ावा देते हैं और लो-कार्बन समाधानों और सतततापूर्ण
बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। और, वे यह सुनिश्चित करते हुए कि
जलवायु समाधान निष्पक्ष और समावेशी हैं, सर्वाधिक प्रभावित लोगों के लिए न्यायसंगत
और समानतापूर्ण ट्रांजिशन को सुविधाजनक बनाने और बढ़ावा देने में मदद करते हैं।

जब देश आधिकारिक तौर पर अपने एलटीएस को यूएनएफसीसीसी को सूचित करते हैं


तो इसे लौंग-टर्म लो एमिशन डेवलपमेंट स्ट्रेटेजी (एलटी-एलईडीएस) कहा जाता है।

51
हानि एवं क्षति
/Loss and Damage/ संज्ञा
अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ता में "हानि और क्षति" (लॉस एंड डैमेज) की कोई सर्वसम्मत
परिभाषा नहीं है। हालांकि, यह शब्द जलवायु परिवर्तन के उन अपरिहार्य प्रभावों को
संदर्भित कर सकता है जो मिटिगेशन और एडेप्टेशन के बावजूद या उसके अभाव में होते
हैं। इस महत्वपूर्ण बात को है कि एडेप्टेशन जो हासिल कर सकता है, उसकी सीमाएं हैं;
जब टिपिंग पॉइंट की सीमाएं पार हो जाती हैं, तो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अवश्य हो
सकते हैं।

हानि और क्षति का तात्पर्य आर्थिक और गैर-आर्थिक, दोनों प्रकार के नुकसान से हो


सकता है। आर्थिक हानि और क्षति में बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण की लागत जैसी चीजें
शामिल हो सकती हैं जो चक्रवातों या बाढ़ के कारण बार-बार क्षतिग्रस्त हुई हैं, या समुद्र
स्तर में वृद्धि और तटीय कटाव के कारण तटीय भूमि (और घरों एवं व्यवसायों) की हानि
हो सकती है।

गैर-आर्थिक हानि और क्षति में नकारात्मक प्रभाव शामिल हैं जिनका आसानी से मौद्रिक
मूल्य तय नहीं किया जा सकता है। इसमें जलवायु-संबंधी खतरों के अनुभव से आघात,
जीवन की हानि, समुदायों का विस्थापन, इतिहास और संस्कृ ति की हानि या
बायोडायवर्सिटी की हानि जैसी चीजें शामिल हो सकती हैं।

53
मिटिगेशन
/Mitigation/ संज्ञा
जलवायु परिवर्तन मिटिगेशन से तात्पर्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने या रोकने
या वायुमंडल से इन गैसों को हटाने वाले कार्बन सिंक को बढ़ाने के लिए सरकारों,
व्यवसायों या लोगों द्वारा की गयी किसी भी कार्रवाई से है।

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को पवन और सौर जैसे रिन्यूएबल ऊर्जा स्रोतों को अपनाकर,
ऊर्जा का अधिक कु शलता से उपयोग करके , लो-कार्बन या कार्बन मुक्त परिवहन के तौर-
तरीकों को अपनाकर, सतत कृ षि और भूमि उपयोग को बढ़ावा देकर और उत्पादन एवं
खपत मॉडल और आहार आदतों को बदलकर कम किया या रोका जा सकता है। कार्बन
सिंक को जंगलों, आर्द्रभूमियों और दलदली भूमि को बहाल करके , मिट्टी के स्वास्थ्य को
बनाए रख कर और स्थलीय एवं समुद्री इकोसिस्टम की रक्षा करके बढ़ाया जा सकता है।

मिटिगेशन कार्रवाइयों के सफल होने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि देश कानून, नीतियों


और निवेश के जरिए सहायक वातावरण विकसित करें।

पेरिस समझौते के महत्वपूर्ण लक्ष्य के रूप में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक
सीमित करने के लिए दुनिया को, 2030 से पहले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 45 प्रतिशत
तक कम करने और सदी के मध्य तक नेट-जीरो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तक पहुंचने के
लिए जलवायु परिवर्तन मिटिगेशन कार्यों को लागू करना होगा।

55
नेशनली
डिटरमाइंड
कॉन्ट्रीब्यूशन
/Nationally Determined Contributions/ संज्ञा
नेशनली डिटरमाइंड कॉन्ट्रिब्यूशन (एनडीसी) जलवायु के प्रति ली गई वे प्रतिज्ञाएं और
कार्य योजनाएं हैं जिन्हें प्रत्येक देश को ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक
सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य के अनुरूप विकसित करना आवश्यक है।
एनडीसी लघु से मध्यम अवधि की योजनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें हर पांच
साल में जलवायु पर उच्च महत्वाकांक्षा के साथ अपडेट किया जाता है।

एनडीसी उन मिटिगेशन और एडेप्टेशन प्राथमिकताओं की रूपरेखा तैयार करता है


जिनका पालन देश, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, रेसिलिएंट बनाने और
जलवायु परिवर्तन के लिए एडेप्ट करने के साथ-साथ वित्तपोषण रणनीतियों और
निगरानी एवं सत्यापन दृष्टिकोणों के लिए करेगा। 2023 में, वैश्विक "स्टॉक टेक" श्रृंखला
की पहली बैठक होगी जो एनडीसी और पेरिस समझौते के लक्ष्यों के कार्यान्वयन पर
प्रगति का आकलन करेगा।

57
नेशनल एडेप्टेशन
प्लान्स
/National Adaptation Plans/ संज्ञा
नेशनल एडेप्टेशन प्लान्स (एनएपी) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति कमजोरियों को
कम करने और एडेप्टिव क्षमता और रेज़िलिएंस को मजबूत करने के लिए कार्यों की
योजना बनाने और उन्हें लागू करने में देशों की मदद करते हैं। एनएपी, नेशनली
डिटरमाइंड कॉन्ट्रिब्यूशन (एनडीसी) और अन्य राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय नीतियों और कार्यक्रमों
से जुड़ा होता है।

एनएपी को सफल बनाने के लिए उन्हें सहभागी, समावेशी, जेंडर-उत्तरदायी और पारदर्शी


होने की आवश्यकता है। इसका मतलब यह है कि डिजाइन चरण में ही, एनएपी को देश
में विभिन्न समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं और कमजोरियों का मूल्यांकन करने,
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए सबसे कमजोर लोगों पर विशेष ध्यान देने और उन्हें
रणनीतियों और कार्यक्रमों को विकसित करने और लागू करने में शामिल करने की
जरूरत है।

59
प्रकृ ति-आधरित
समाधान
/Nature-Based Solutions/ संज्ञा
प्रकृ ति-आधारित समाधान (नेचर-बेस्ड सोल्यूशन), परिवर्तन एडेप्टेशन और मिटिगेशन
प्रयासों का समर्थन करने, बायोडाइवर्सिटी को संरक्षित करने और सतत आजीविका को
सक्षम करने के लिए इकोसिस्टम की रक्षा, संरक्षण, बहाल करने और सतत उपयोग और
प्रबंधन करने की कार्रवाई हैं। वे ऐसी कार्रवाइयां हैं जो इकोसिस्टम और बायोडाइवर्सिटी
के महत्व को प्राथमिकता देते हैं और प्रकृ ति की रक्षा पर पीढ़ीगत ज्ञान रखने वाले
स्थानीय समुदायों और पारंपरिक लोगों की पूर्ण भागीदारी और सहमति के साथ डिजाइन
और कार्यान्वित किये जाते हैं।

प्रकृ ति-आधारित समाधानों का उपयोग स्थलीय, मीठे पानी, तटीय और समुद्री


इकोसिस्टम में कई तरीकों से किया जाता है। वेटलैंड को बहाल करने से समुदायों को
बाढ़ से बचाया जाता है, जबकि मैंग्रोव वनों का संरक्षण खाद्य स्रोतों का समर्थन करता है
और तूफानों के प्रभाव को कम करता है। वन कार्बन डायऑक्साइड को अवशोषित करते
हैं, बायोडायवर्सिटी को पनपने देते हैं, जल सुरक्षा बढ़ाते हैं और भूस्खलन से लड़ते हैं,
जबकि शहरी पार्क और उद्यान शहरों को ठं डा करने और लू के प्रभाव को सीमित करने में
मदद करते हैं। पुनरोत्पादक खेती की प्रथाएं मिट्टी द्वारा ग्रहण की गयी कार्बन की मात्रा
को बढ़ाती हैं और इसके स्वास्थ्य और उत्पादकता को बहाल करती हैं।

प्रकृ ति-आधारित समाधानों को लोगों और प्रकृ ति के लिए लाभकारी माना जाता है, जो
एक साथ कई समस्याओं का समाधान करते हैं। वे पृथ्वी की रक्षा करते हुए और जलवायु
परिवर्तन से निपटते हुए नई नौकरियां पैदा कर सकते हैं, नये और अधिक रेसिलिएंट
आजीविका अवसर प्रदान कर सकते हैं, और आय बढ़ा सकते हैं।

61
नेट जीरो
/Net Zero/ संज्ञा
नेट जीरो तक पहुंचने के लिए हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी कि मानव
गतिविधि से उत्पन्न कार्बन डायऑक्साइड उत्सर्जन को हटाने के मानवीय प्रयासों द्वारा
संतुलित किया जाए (उदाहरण के लिए, कार्बन डायऑक्साइड को अवशोषित करने के
लिए कार्बन सिंक बनाकर) - जिससे वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में और
वृद्धि को रोका जा सके ।

नेट जीरो की ओर ट्रांजिशन के लिए हमारी ऊर्जा, परिवहन और उत्पादन एवं उपभोग
प्रणालियों में समग्र कायाकल्प की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन के आनेवाले सबसे
बुरे परिणामों को रोकने के लिए यह आवश्यक है।

ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए, दुनिया की सरकारों को
यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि 2025 तक सभी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन
अधिकतम सीमा पर पहुंच जाए, और इस सदी के उत्तरार्ध में नेट जीरो तक पहुंच जाए।
आईपीसीसी ने 2030 से पहले (2010 के स्तर की तुलना में) वैश्विक स्तर पर कार्बन
डायऑक्साइड उत्सर्जन को 45% तक कम करने और सदी के मध्य तक नेट जीरो तक
पहुंचने की सिफारिश की है।

63
पेरिस समझौता
/Paris Agreement/ संज्ञा
पेरिस समझौता कानूनी रूप से बाध्यकारी एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसका लक्ष्य ग्लोबल
वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे, प्राथमिकता के
साथ 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है। इसे 2015 में पेरिस में सीओपी21 में
196 पार्टियों द्वारा अंगीकार किया गया और 2016 में लागू हुआ।

पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग में एक ऐतिहासिक उपलब्धि


है क्योंकि यह सभी पक्षों के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों को बढ़ाने और
इसके प्रभावों को एडेप्ट करने के लिए एक बाध्यकारी समझौता है। यह विकसित देशों
को, विकासशील देशों की उनके जलवायु मिटिगेशन और अनुकू लन प्रयासों में सहायता
करने और पारदर्शी निगरानी और परिणामों की रिपोर्टिंग के लिए फ्रे मवर्क तैयार करने के
लिए, साधन भी प्रदान करता है।

65
पुनर्वनीकरण बनाम
वनरोपण
/Reforestation/ संज्ञा /Afforestation/ संज्ञा
वन वायुमंडल से कार्बन डायऑक्साइड और प्रदूषकों को हटाकर, मिट्टी के कटाव को
रोककर, पानी को फ़िल्टर करके और दुनिया की भूमि पर मौजूद जानवरों, पौधों और
कीड़ों की आधी प्रजातियों को आवास देकर अत्यधिक लाभ प्रदान करते हैं। जलवायु
परिवर्तन से लड़ने और इसके प्रभावों को सीमित करने में पुनर्वनीकरण (रिफ़ोरेस्टेशन)
और वनरोपण (एफ़ोरेस्टेशन) दो सबसे प्रभावी प्रकृ ति-आधारित समाधान हैं।

पुनर्वनीकरण उन क्षेत्रों में दोबारा पेड़ लगाने की प्रक्रिया है जहां हाल ही में पेड़ लगे थे
लेकिन जहां जंगल की आग, सूखा, बीमारी या कृ षि के लिए कटाई जैसी मानवीय
गतिविधियों के कारण जंगल नष्ट हो गये थे। वनरोपण उन क्षेत्रों में पेड़ लगाने की प्रक्रिया
है जिन्हें हाल के इतिहास में वनाच्छादित नहीं किया गया है। वनीकरण, परित्यक्त और
ख़राब कृ षि भूमि को बहाल करने, मरुस्थलीकरण को रोकने, कार्बन सिंक बनाने और
स्थानीय समुदायों के लिए नये आर्थिक अवसर पैदा करने में मदद करता है।

67
आरईडीडी+
/REDD+/ संक्षिप्ताक्षर
वन संरक्षण और पुनर्बहाली जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए
आवश्यक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में एक चौथाई से अधिक की कमी प्रदान कर सकता
है। आरईडीडी+ अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ता में देशों द्वारा सहमत एक फ्रे मवर्क है जिसका
लक्ष्य वनों की कटाई और वन क्षरण को कम करके और विकासशील देशों में वनों का
स्थायी प्रबंधन एवं संरक्षण करके जलवायु परिवर्तन पर अंकु श लगाना है।

REDD का अर्थ है रिड्यूसिंग एमिशन्स फ्रॉम डिफ़ॉरेस्टेशन एंड फारेस्ट डीग्रेडेशन (वनों
की कटाई और वनक्षरण से उत्सर्जन को कम करना)। यहां "+" वनों के संरक्षण, सतत
प्रबंधन और वन कार्बन स्टॉक में वृद्धि की भूमिका को दर्शाता है।

69
पुनरोत्पादक कृ षि
/Regenerative agriculture/ संज्ञा
पुनरोत्पादक कृ षि, खेती का एक तरीका है जो मिट्टी की गुणवत्ता का पोषण और
पुनर्स्थापन करती है, और इसलिए पानी के उपयोग को कम करती है, भूमि क्षरण को
रोकती है और बायोडायवर्सिटी को बढ़ावा देती है। भूमि की जुताई को कम करके , फसल
चक्र बदलने का अभ्यास करके , और पशु खाद एवं कम्पोस्ट का उपयोग करके
पुनरोत्पादक कृ षि यह सुनिश्चित करती है कि मिट्टी अधिक कार्बन संग्रहीत करे, अधिक
नमी का संरक्षण करे, और पनपते फं गस के कारण स्वस्थ रहे।

वैश्विक ग्रीनहाउस गैस के एक तिहाई उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार गहन कृ षि हमारे द्वारा
उपभोग किये जाने वाले स्वच्छ पानी का 70 प्रतिशत उपयोग करती है, और इसमें भारी
मशीनों, रासायनिक खादों और कीटनाशकों के उपयोग से मिट्टी का क्षरण होता है।
बायोडायवर्सिटी की हानि में भी इसका सबसे बड़ा योगदान है। इसके विपरीत,
पुनरोत्पादक कृ षि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, पानी का संरक्षण करने और
भूमि को बहाल करने में मदद करती है।

इसके अलावा, स्वस्थ मिट्टी अधिक भोजन और बेहतर पोषण पैदा करती है और
इकोसिस्टम और बायोडायवर्सिटी पर अन्य सकारात्मक प्रभाव डालती है।

71
रिन्यूएबल ऊर्जा
/Renewable Energy/ संज्ञा
रिन्यूएबल ऊर्जा, हवा, सूरज की रोशनी, बहते पानी के प्रवाह और ज्योथरमल ताप जैसे
प्राकृ तिक स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा है जिनकी लगातार पूर्ति होती रहती है। कोयला, तेल और
गैस जैसे फॉसिल फ्यूल से प्राप्त ऊर्जा के विपरीत, जो जलवायु परिवर्तन का कारण बनने
वाले हानिकारक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 75 प्रतिशत हिस्सा है रिन्यूएबल स्रोतों से
प्राप्त ऊर्जा सस्ती, स्वच्छ, सतत है और अधिक नौकरियां पैदा करती है।

सभी क्षेत्रों - बिजली, हीटिंग और कू लिंग, परिवहन और उद्योग - में फॉसिल फ्यूल से
रिन्यूएबल ऊर्जा में ट्रांजिशन जलवायु संकट से निपटने की कुं जी है। ग्लोबल वार्मिंग के
1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रहने के लिए, दुनिया को फॉसिल फ्यूल का उपयोग तुरंत बंद
करने और तेजी से विद्युतीकरण एवं रिन्यूएबल स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त करने के जरिए ऊर्जा
प्रणाली में गहन ट्रांजिशन करने की आवश्यकता है।

2022 में, रिन्यूएबल स्रोतों ने वैश्विक बिजली का 29 प्रतिशत प्रदान किया। सही निवेश के
साथ, रिन्यूएबल स्रोतों से बिजली 2030 तक दुनिया की कु ल बिजली आपूर्ति का 65
प्रतिशत प्रदान कर सकती है।

73
रेसीलिएंस
/Resilience/ संज्ञा
क्लाइमेट रेजिलिएंस (लचीलापन) किसी समुदाय या पर्यावरण की जलवायु प्रभावों का
अनुमान लगाने और उन्हें प्रबंधित करने, उनकी क्षति को कम करने और प्रारंभिक झटके
के बाद आवश्यकतानुसार उबरने और बदलने की क्षमता है।

सामाजिक भलाई, आर्थिक गतिविधि और पर्यावरण की सर्वोत्तम सुरक्षा के लिए, लोगों,


समुदायों और सरकारों को जलवायु परिवर्तन के अपरिहार्य प्रभावों से निपटने के लिए
तैयार होने की आवश्यकता है। यह लोगों को नये कौशल प्राप्त करने और उनकी घरेलू
आय के स्रोतों में विविधता लाने, अधिक मजबूत आपदा प्रतिक्रिया और उबरने की
क्षमताओं का निर्माण करने, जलवायु सूचना और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को बढ़ाने
और दीर्घकालिक योजना पर काम करने के लिए प्रशिक्षित करके किया जा सकता है।

आखिरकार, एक वास्तविक क्लाइमेट रेजिलिएंस समाज लो कार्बन वाला समाज है,


क्योंकि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भारी कमी करना भविष्य में जलवायु प्रभावों सीमित
करने का सबसे अच्छा तरीका है। यह समाज समानता और जलवायु न्याय पर आधारित
एक समाज भी है जो जलवायु प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित या उनसे निपटने में
सबसे कम सक्षम लोगों और समुदायों के लिए समर्थन को प्राथमिकता देता है।

75
रिवाइल्डिंग
/Rewilding/ संज्ञा
रीवाइल्डिंग, मानव गतिविधि से क्षतिग्रस्त हुए इकोसिस्टम की बड़े पैमाने पर बहाली है।
संरक्षण से ज्यादा, जो समर्पित मानव हस्तक्षेप के जरिए विशिष्ट प्रजातियों को बचाने पर
कें द्रित है, रीवाइल्डिंग का तात्पर्य प्राकृ तिक दुनिया को अपनी शर्तों पर पुनर्जीवित करने
के लिए बड़े क्षेत्रों को अलग करना है। इसके लिए कभी-कभी उन प्रमुख प्रजातियों को
नये सिरे से लाने की आवश्यकता होती है जो किसी विशेष क्षेत्र में विलुप्त हो गयी हैं, जैसे
कि ऊदबिलाव, भेड़िये, या बड़े शाकाहारी प्राणी, जो पूरे इकोसिस्टम को आकार देने में
मदद करते हैं।

रीवाइल्डिंग प्राकृ तिक वनप्रदेश पुनर्जनन जैसी स्वस्थ प्राकृ तिक प्रक्रियाओं के जरिए
वातावरण से अधिक कार्बन डायऑक्साइड को हटाकर जलवायु परिवर्तन से निपटने में
मदद कर सकती है। यह प्राकृ तिक निवासों का निर्माण करके प्रजातियों के विलुप्त होने
को रोकने में भी मदद करती है जो वन्यजीवों को जलवायु परिवर्तन के अनुकू ल होने और
गर्मी बढ़ने पर पलायन करने के लिए मजबूर करता है।

77
टिपिंग प्वाइंट
/Tipping Point/ संज्ञा
टिपिंग पॉइंट वह सीमा है जिसके बाद ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से होने वाले
कु छ परिवर्तन औसत वैश्विक तापमान को कम करने के लिए भविष्य में किये जाने वाले
हस्तक्षेपों के सफल होने के बाद भी अपरिवर्तनीय रह जाते हैं। ये परिवर्तन अचानक और
खतरनाक प्रभावों का कारण बन सकते हैं जिनका मानवता और हमारी पृथ्वी के भविष्य
पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

जैसे-जैसे दुनिया गर्म होती जा रही है, कई टिपिंग प्वाइंट आने की अत्यधिक संभावना
बन रही है। उनमें से एक ग्रीनलैंड और पश्चिम अंटार्क टिक की बर्फ की चादरों का ढहना है,
जिससे समुद्र स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि होगी और तटीय समुदायों और पारिस्थितिक तंत्र
को खतरा होगा। दूसरा है टुंड्रा क्षेत्रों में पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना, जिससे भारी मात्रा में
फं सी ग्रीनहाउस गैसें निकलेंगी, जिससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में और
तेजी आएगी। मास कोरल ब्लीचिंग (बड़े पैमाने पर मूंगा विरंजन) की घटनाएं और
वर्षावनों का विनाश, बायोडायवर्सिटी और मानव समाज, दोनों के लिए व्यापक प्रभाव
वाले दो अन्य प्रमुख टिपिंग प्वाइंट हैं।

79
पारदर्शिता
/Transparency/ संज्ञा
पेरिस समझौते के तहत, देशों को अपने नेशनली डिटरमाइंड कॉन्ट्रिब्यूशन के कार्यान्वयन
पर नियमित रूप से रिपोर्ट करनी होगी। यह महत्वपूर्ण है कि यह रिपोर्टिंग पारदर्शिता के
साथ की जाए ताकि वैश्विक समुदाय द्वारा सामूहिक प्रगति का सटीक आकलन किया जा
सके और विश्वास हो सके कि हर कोई अपनी भूमिका निभा रहा है।

पारदर्शी रिपोर्टिंग सरकारों और अंतरराष्ट्रीय निकायों को विश्वसनीय डेटा तक पहुंच बनाने


और साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने की अनुमति देती है। यह जलवायु परिवर्तन के बारे में
हमारी वैज्ञानिक समझ को और इसे कम करने तथा इसके प्रभावों के अनुरूप एडॉप्ट
करने के आवश्यक कदमों और नीतियों को भी बढ़ाता है।

आखिरकार पारदर्शिता, विश्वास, सहयोग और ज्ञान हस्तांतरण को बढ़ावा देकर और


जलवायु लक्ष्यों पर आगे की महत्वाकांक्षा को प्रोत्साहित करके , पेरिस समझौते की पूरी
क्षमता का इस्तेमाल करने का समाधान है।

81
यूएनएफसीसीसी
/UNFCC/ संक्षिप्ताक्षर
यूनाइटेड नेशंस फ्रे मवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) - जलवायु
परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रे मवर्क कन्वेंशन जलवायु प्रणाली में मानव द्वारा किए गए
हानिकारक हस्तक्षेप से निपटने के लिए 1992 में अपनायी गयी एक अंतरराष्ट्रीय
पर्यावरण संधि है। यह 1994 में लागू हुआ और 198 पार्टियों द्वारा हस्ताक्षरित होने के
कारण इसे लगभग यूनिवर्सल सदस्यता प्राप्त है। यह पेरिस समझौते और क्योटो
प्रोटोकॉल दोनों की मूल संधि है।

यूएनएफसीसीसी सचिवालय संयुक्त राष्ट्र इकाई है जिसे जलवायु परिवर्तन के खतरे के


प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया का सहयोग करने का काम सौंपा गया है। सचिवालय प्रत्येक वर्ष
दो से चार वार्ता सत्र आयोजित करके अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन वार्ता की सुविधा
देता है, जिनमें से सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण कॉन्फ्रें स ऑफ द पार्टीज (सीओपी)
है। यह तकनीकी विशेषज्ञता भी प्रदान करता है और जलवायु परिवर्तन की जानकारी के
विश्लेषण और समीक्षा में सहायता करता है और नेशनली डिटरमाइंड कॉन्ट्रिब्यूशन
(एनडीसी) की रजिस्ट्री का रखरखाव करता है।

83
मौसम बनाम
जलवायु
/Weather/ संज्ञा /Climate/ संज्ञा
मौसम का तात्पर्य किसी विशिष्ट स्थान पर, किसी विशिष्ट समय पर वायुमंडलीय स्थितियों
से है, जिसमें तापमान, आर्द्रता, वर्षा, बादल, हवा और दृश्यता शामिल है। मौसम की
स्थितियां अलग-अलग नहीं होती हैं, उनका एक तरंगमय प्रभाव होता है। एक क्षेत्र का
मौसम आखिरकार सैकड़ों या हजारों किलोमीटर दूर के मौसम को प्रभावित करेगा।

जलवायु किसी विशिष्ट क्षेत्र में लंबी अवधि, आमतौर पर 30 या अधिक वर्षों में मौसम के
पैटर्न का औसत है, जो जलवायु प्रणाली की समग्र स्थिति का प्रतिनिधित्व करता है।

औद्योगिक युग में और विशेष रूप से पिछली शताब्दी के दौरान मानव गतिविधि,
हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के जरिए हमारी पृथ्वी के जलवायु में महत्वपूर्ण
बदलाव आया है।

85
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1 संयुक्त राष्ट्र प्लाजा, न्यूयॉर्क , एनवाई 10017

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