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महागद

चरकानुसार :-
वात व्याधिरपस्मारी, कु ष्ठी शोफी तथोदरी ।
गुल्मी च मधुमेही च राजयक्षमी च यो नरः ॥
अचिकितस्याः भवन्त्येते बलमांसक्षये सति ॥ ( च. ई. ९/८-९)
वात व्याधि अपस्मार कु ष्ठ शोफ, उदररोग, गुल्म मधुमेह राजयक्ष्मा रोग से पीडित रोगी बल और मांस के क्षय होने पर चिकित्सक
को उस रोग से पीडित व्यक्ति को छोड देना चाहिये अर्थात उसकी चिकित्सा नहीं करनी चाहिये ॥
सुश्रुतानुसार :-
वातव्याधिः प्रमेहश्च कु ष्ठमर्शो भगन्दरम् ।
अशमरी मूढगर्भश्च तथैवोद्र्मष्टमम् ॥
अष्टावेते प्रकृ त्यैव दुश्चिकित्स्या महागदाः । ( सु. सू. ३३/४)
स्वभाव से ही दुश्चिकित्स्य आठ महाच्याधियाँ इस प्रकार हैं :- वातव्याधि, प्रमेह, कु ष्ठ, अर्श भगन्दर, अशमरी, मूढगर्भ और
उदररोग । यो स्वभाव से ही दुश्चिकित्स्य होने के कारण महागद कहलाते हैं ।
अष्टांड्गहृदयाकारानुसार :-
वात व्याधि अशमरीकु ष्ठ मेहोदरभगन्दराः ।
अर्शांशि ग्रहणीत्यष्टौ महारोगाः सुदुस्तरा । ( अ. ह्रृ. नि. ८/ ३० )

वातव्याधि, अश्मरी, कु ष्ठ, प्रमेह, उदर, भगन्दर, अर्श और ग्रहणी ये आठ दुर्जय़, कष्टसाध्य महारोग हैं । ( इसमे अतिशय यत्न
करना चाहिये )
चरकानुसार सुश्रुतानुसार अष्टांड्गहृदयाकारानुसार
1. वात व्याधि 1. वातव्याधि 1. वातव्याधि
2. अपस्मार 2. प्रमेह 2. अश्मरी
3. कु ष्ठ 3. कु ष्ठ 3. कु ष्ठ
4. शोफ 4. अर्श 4. प्रमेह
5. उदररोग 5. भगन्दर 5. उदर
6. गुल्म 6. अशमरी 6. भगन्दर
7. मधुमेह 7. मूढगर्भ 7. अर्श
8. राजयक्ष्मा 8. उदररोग 8. ग्रहणी

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