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ब्रज की लोकगीत 

होली लोकगीत

प्रतिभागियों - 
सर्वाशीष दत्ता
अद्वितीय कश्यप 
काव्यांजलि
वानी सक्सैना 
लोकगीत
लोकगीत लोक संगीत का लोकप्रिय रूप है, जो
भारत के सभी राज्यों के लोगों के विचारों और
भावनाओं को व्यक्त करता है। ये लोकगीत प्राचीन
काल से गाए जा रहे हैं। शादियों में कई लोकगीत
गाए जाते हैं।
बर् ज भाषा का इतिहास

 ब्रजभाषा उस बोली को कहा जाता है जो  अपने नाम को सिद्ध करते हुए ब्रज क्षेतर् में
बोली जाती है।

 एक लंबे दौर के लिए साहित्य की आवाज़ बनने

वाली इस भाषा ने समय के साथ विकास किया और बोली से भाषा का स्थान प्राप्त
किया। 
ब्रज भाषा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान और
मध्य प्रदेश में बोली जाती है।
बर् ज बोली का
बर् जभाषा में जब से गोकु ल वल्लभ संप्रदाय का कें द्र बना, कृ ष्ण पर साहित्य
ब्रजभाषा में लिखा गया।
परिवर्तन
इसी प्रभाव से ब्रज की बोली साहित्यिक भाषा बन गई।
कान्हा पिचकारी मत मार
कान्हा पिचकारी मत मार, चूनर रं ग-बिरं गी होय |

चनू र नई हमारी प्यारे  हे मनमोहन बंसी वारे


इतनी सुन ले नन्द-दल ु ारे
पूछेगी वह सास हमारी, कहाँ से लीनी भिगोय || कान्हा पिचकारी -----

सबका ढं ग हुआ मतवाला दख ु दाई त्योहार निराला


हा-हा करतीं हम ब्रजबाला
राह हमारी अब न रोक रे मैं समझाऊँ तोय || कान्हा पिचकारी ------

मार दीनी रं ग की पिचकारी


 हँस-हँस कर रसिया बनवारी
भीग गईं सारी ब्रजनारी
राधा ने हरि का पीतांबर खींचा मद में खोय || कान्हा पिचकारी ------
फागुन के दिन चार रे, होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार।

फागुन के दिन बिन करताल पखावज बाजे, अनहद की टं कार रे


       बिन सुर राग छतीसों गावे, रोम-रोम झंकार रे
चार              होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार ॥

शील-संतोष की केसर घोरी, प्रेम-प्रीत पिचकार रे


       उड़त गुलाल लाल भयो अम्बर, बरसात रंग अपार रे
              होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार ॥ 

घर के सब पट खोल दिए है,ं  लोक लाज सब ड़ार रे


       मीरा के प्रभु गिरधर नागर, चरण-कमल बलिहार रे
             होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार ॥ 
खेले मसाने में होली दिगंबर 
खेलें मसाने में होरी दिगम्बर, खेलें मसाने में होरी, होरी |
भूत-पिसाच बटोरी दिगम्बर, खेलें मसाने में होरी, हो री |

गोप न गोपी न श्याम न राधा


       ना कोई रोक न कोई बाधा
              ना कोई साजन न गोरी दिगम्बर, खेलें मसाने में होरी, होरी |

लख सुन्दर फागुनी छटा के


       मन से रंग गुलाल हटा के
             चिता-भस्म भर झोरी दिगम्बर, खेलें मसाने में होरी, होरी |

नाचत-गावत डमरूधारी
       भाँग पिलावत गौरा प्यारी (छोड़ें सर्प गरुड पिचकारी)
              पीटें प्रेत ढपोरी दिगम्बर, खेलें मसाने में होरी, होरी |

भूतनाथ की मंगल होरी


       देख-देख के रीझें गौरी
धन्य-धन्य नाथ अघोरी दिगम्बर, खेलें मसाने में होरी, होरी |
आज बिरज में होरी रे रसिया
आज बिरज में होरी रे रसिया
 होरी रे रसिया, बरजोरी रे रसिया

 उड़त गुलाल लाल भये बादर 


 केशर रंग में घोरी रे रसिया

आज बिरज में होरी रे रसिया


बाजत ताल मृदंग झांझ ढप

और नगारे की जोड़ी रे रसिया


 कै मन लाल गुलाल मँगाई
 कै मन केशर घोरी रे रसिया
Citations
https://sites.google.com/site/folksongsofbraj/home/tere-mere-geet-braj-ke-lokgeet/--holi 
https://www.amarujala.com/kavya/kavya-charcha/braj-lokgeet-on-holi 
https://linguaholic.com/linguablog/a-huge-thank-you/ 
https://www.powershow.com/view0/803362-OGIyY/Happy_Holi_Everyone_powerpoint_ppt_
presentation
 
https://www.seniority.in/blog/holi-celebrations-in-different-states-of-india/ 
https://www.iwmbuzz.com/television/news/radhakrishn-to-reveal-the-significance-behind-hol
i/2019/03/20
https://sites.google.com/site/folksongsofbraj/home/tere-mere-geet-braj-ke-lokgeet/--holi#TO
C--7
 
https://www.google.com/imgres?imgurl=https%3A%2F%2Fimg.freepik.com%2Ffree-photo%2F
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