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छत्तीसगढ़ साtहत्य

आtदत्य
पंत
साtहत्य

छत्तीसगढ़ी पूवर्वीtहदी की तीन tवभाषाओं में से एक है। यह रायगढ़, सरगुजा, tबलासपुर, रायपुर, दगु ,र्य
जगदलपुर तथा बस्तर आtद में बोली जाती है। संभलपुर में तथा उसके आसपास छत्तीसगढ़ी लtरया कहलाती
है। छत्तीसगढ़ी भाषा मराठी तथा उtड़या भाषाओं से प्रभाtवत हुई है।

छत्तीसगढ़ी साtहत्य में भारतीय संस्कृ tत के तत्त्व वतमान हैं। इस साtहत्य में अनेक लोककथाएँ हैं िजनके
मूल भाव भारत की अन्य भाषाओं में भी सामान्य रू प से पाए जाते हैं।
पद्य साtहत्य

छत्तीसगढ़ी के उत्कषर्य को नया आया म tदया – पं. सुन्दरलाल शमार्य, लोचन प्रसाद पांडेय, मुकु टधर पांडेय, नरtसहं दास
वैष्णव, बंशीधर पांडेय, शुकलाल पांडेय ने। कंु जtबहारी चौबे, tगtरवरदास वैष्णव ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में अपनी
कtवतीओं की अि#न को साtबत कर tदखाया। इस क्रम में पुरुषोत्तम दास एवं कtपलनाथ tमश्र का उल्लेख भी
आवश्यक होगा। 70 के दशक में पं॰ द्वाtरका प्रसाद tतवारी, बाबू प्यारेलाल गुप्त, कोदराम दtलत, हtर ठाकु र,
श्यामलाल चतुवर्वेदी, कtपलनाथ कश्यप, बद्रीtवशाल परमानंद, नरेन्द्र देव वमार्य, हमनाथे यद,ु भगवती
सेन, नारायणलाल परमार, डॉ॰ tवमल कु मार पाठक, लाला जगदलपुरी, के यूर भूषण, डॉ. सुरेश tतवारी, बजलाल शुक्ल
आtद ने छत्तीसगढ़ी साtहत्य की tवषय tवtवधता को tसद्ध कर tदखाया। छत्तसीगढ़ी भाषा और रचनाओं को
लोकtप्रय बनाने में दानेश्वर शमार्य, पवन दीवान, लक्ष्मण मस्तुtरहा, रामेश्वर वैष्णव और tवमल पाठक ने न के वल कtव
सम्मेलनों के मंचों में अपना लोहा मनवाया अtपतु उन्होंने साथकर्य एवं अकादtमक
लेखन भी tकया है, जो इस प्रदेश के जन-जन के मन में रमे ह।ैं इधर डॉ॰ सुरेन्द्र दबु े ने देश-tवदेश के मंचों में
कtवता पढ़कर छत्तीसगढ़ी का मा न बढ़ाया ह।ै छत्तीसगढ़ी के tवकास में tवद्या भूषण tमश्र, मुकु न्द कौशल, हमनाथे
वमार्य tवकल, मन्नीलाल कटकवार, tबसंभर यादव, माखनलाल तंबोली, रघुवर अग्रवाल पtथक, डॉ. सुरेश tतवारी, लtलत
मोहन श्रीवास्तव, डॉ॰ पालेश्वर शमार्य, श्रीराम कु मार वमार्यबाबूलाल सीtरया, नंदtकशोर tतवारी, मुरली चंद्राकर, प्रभंजन शास्त्री,
रामकै लाश tतवारी, एमन दास माtनकपुरी का tवशेष योगदान रहा ह।ै डॉ॰ हीरालाल शुक्ल, डॉ॰ बलदेव, डॉ॰
मन्नूलाल यद,ु डॉ॰ tबहारीलाल साहू, डॉ॰ tचतरंजन कर, डॉ॰ सुधीर शमार्य, डॉ॰ व्यासनारायण दबु े, डॉ॰ के शरीलाल
वमार्य, डॉ॰ tनरुपमा शमार्य,उtमला शुक्ल इनका छत्तीसगढ़ कtवता के क्षे त्र में एक अलग स्थान ह।ै मणाtलका
ओझा , डॉ॰ tवनय पाठक ने भाषा एवं शोध के क्षे त्र में जो काय tकया है वह मील का पत्थर है ।
गद्य साtहत्य

छत्तीसगढ़ी के उत्कषर्य को नया आया म tदया – पं. सुन्दरलाल शमार्य, लोचन प्रसाद पांडये , मुकु टधर पांडये , नरtसहं दास वैष्णव,
बंशीधर पांडये , शुकलाल पांडये ने। कंु जtबहारी चौबे, tगtरवरदास वैष्णव ने राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में अपनी कtवतीओं की
अि#न को साtबत कर tदखाया। इस क्रम में पुरुषोत्तम दास एवं कtपलनाथ tमश्र का उल्लेख भी आवश्यक होगा। 70 के दशक में
पं॰ द्वाtरका प्रसाद tतवारी, बाबू प्यारेलाल गुप्त, कोदराम दtलत, हtर ठाकु र, श्यामलाल चतुवर्वेदी, कtपलनाथ कश्यप, बद्रीtवशाल
परमानंद, नरेन्द्र देव वमार्य, हेमनाथ यद,ु भगवती सेन, नारायणलाल परमार, डॉ॰ tवमल कु मार पाठक, लाला जगदलपुरी, के यूर
भूषण, डॉ. सुरेश tतवारी, बजलाल शुक्ल आtद ने छत्तीसगढ़ी साtहत्य की tवषय tवtवधता को tसद्ध कर tदखाया। छत्तसीगढ़ी भाषा
और रचनाओं को लोकtप्रय बनाने में दानेश्वर शमार्य, पवन दीवान, लक्ष्मण मस्तुtरहा, रामेश्वर वैष्णव और tवमल पाठक ने न के वल
कtव सम्मेलनों के मंचों में अपना लोहा मनवाया अtपतु उन्होंने साथकर्यएवं अकादtमक लेखन भी tकया है, जो इस प्रदेश के जन-
जन के मन में रमे हैं। इधर डॉ॰ सुरेन्द्र दबु े ने देश-tवदेश के मंचों में कtवता पढ़कर छत्तीसगढ़ी का मा न बढ़ाया है। छत्तीसगढ़ी
के tवकास में tवद्या भूषण tमश्र, मुकु न्द कौशल, हेमनाथ वमार्य tवकल, मन्नीलाल कटकवार, tबसंभर यादव, माखनलाल तंबोली,
रघुवर अग्रवाल पtथक, डॉ. सुरेश tतवारी, लtलत मोहन श्रीवास्तव, डॉ॰ पालेश्वर शमार्य, श्री राम कु मार वमार्य बाबूलाल सीtरया,
नंदtकशोर tतवारी, मुरली चंद्राकर, प्रभंजन शास्त्री, रामकै लाश tतवारी, एमन दास माtनकपुरी का tवशेष योगदान रहा है। डॉ॰
हीरालाल शुक्ल, डॉ॰ बलदेव, डॉ॰ मन्नूलाल यद,ु डॉ॰ tबहारीलाल साहू, डॉ॰ tचतरंजन कर, डॉ॰ सुधीर शमार्य, डॉ॰ व्यासनारायण दबु े,
डॉ॰
के शरीलाल वमार्य, डॉ॰ tनरुपमा शमार्य,उtमला शुक्ल इनका छत्तीसगढ़ कtवता के क्षे त्र में एक अलग स्थान है। मणाtलका ओझा , डॉ॰
tवनय
पाठक ने भाषा एवं शोध के क्षे
त्र में जो कायर्य tकया है वह मील का पत्थर है।

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