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जन्म कंु डल� के बारह भाव और कारकत्व

By Astrospeak Team — Oct 18, 2017

ज्योितष शा� में बारह रािशयों के आधार पर जन्मकंु डली के बारह भावों क� रचना क� गई है िजन्हें द्वाद्वश भाव कहते
हैं। आकाश मण्डल में बारह रािशयों क� तरह कंु डली में बारह भाव (द्वादश भाव) होते हैं। जन्म कंु डली या जन्मांग जन्म
समय क� िस्थित बताती है। प्रत्येक भाव हमारे जीवन क� िविवध अव्यवस्थाओ,ं िविवध घटनाओ ं को दशार्ता है। जन्म
पित्रका ग्रहों क� िस्थित और लग्न बताती है। जन्म कंु डली में बारह भाव होते हैं और हर भाव में एक रािश होती है।
कँु डली के सभी भाव जीवन के िकसी ना िकसी �ेत्र से संबंिधत होते हैं। भाव क� रािश के स्वामी को भावेश कहा जाता
है। िभन्न रािश वाले हर भाव का कारक िनि�त होता है। सभी बारह भाव िभन्न काम करते है और कुछ भाव अच्छे तो
कुछ भाव बरु े होते हैं।

पृथ्वी क� दैिनक गित के कारण बारह रािशयों का चक्र चौबीस घटं ों में हमारे ि�ितज का एक चक्कर लगा आता है।
इनमें जो रािश ि�ितज में लगी होती है उसे लग्न कहते हैं। उदाहरण के तौर पर यिद उस भाव में 1 नंबर है तो मेष लग्न
होगा, उसी प्रकार 2 नंबर को वृषभ, 3 नंबर को िमथनु , 4 को ककर् , 5 को िसंह, 6 को कन्या, 7 को तल ु ा, 8 को वृि�क,
9 को धन,ु 10 को मकर, 11 को कंु भ व 12 नंबर को मीन लग्न कहेंगे। जन्मपत्री के मल ू उपकरण लग्न और रािशयाँ
तथा नवग्रह - सयू र्, चंद्र, मगं ल, बधु , बृहस्पित, शक्र
ु , शिन, राह�, के तु आिद हैं। इनमें लग्न शरीर स्थानीय हैं और शेष भाव
शरीर से संबंिधत वस्तओ ु ं के �प में गृहीत हैं।

शा�ों में 12 भावों के स्व�प हैं और भावों के नाम के अनुसार ही इनका काम होता है। पहला भाव तन, दसू रा धन,
तीसरा सहोदर, चतथु र् मातृ, पंचम पत्रु , छठा अ�र, स�म �रप,ु आठवाँ आय,ु नवम धमर्, दशम कमर्, एकादश आय और
द्वादश व्यय भाव कहलाता है़।

बारह भावों के िविभन्न नाम एवं उनसे संबंिधत िवषयों का िववरण


प्रथम भाव : इसे लग्न कहते हैं। अन्य कुछ नाम ये भी हैं : हीरा, तन,ु के न्द्र, कंटक, चत�ु य, प्रथम। इस भाव से मख्ु यत:
जातक का शरीर, मख ु , मस्तक, के श, आय,ु योग्यता, तेज, आरोग्य आिद िवषयों का पता चलता है।

िद्वतीय भाव : यह धन भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं, पणफर, िद्वतीय। इससे कुटुंब-प�रवार, दायीं आख ं , वाणी, िवद्या,
बह�मल्ू य सामग्री का सग्रं ह, सोना-चादं ी, चल-सम्पि�, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आिद िवषयों का पता चलता है।

तृतीय भाव : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं आपोिक्लम, अपचय,
तृतीय। इस भाव से भाई-बहन, दायां कान, लघु यात्राए,ं साहस, सामथ्यर् अथार्त् पराक्रम, नौकर-चाकर, भाई बहनों से
सबं धं , पडौसी, लेखन-प्रकाशन आिद िवषयों का पता चलता है।
चतुथर् भाव : यह सख ु भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- के न्द्र, कंटक, चत�ु य। इस भाव से माता, जन्म समय क�
प�रिस्थित, द�क पत्रु , �दय, छाती, पित-पत्नी क� िविध यानी काननू ी मामले, चल सम्पित, गृह-िनमार्ण, वाहन सख

आिद िवषयों का पता चलता है।

ं म भाव : यह सतु अथवा संतान भाव भी कहलाता है। अन्य नाम है-ित्रकोण, पणफर, पंचम। इस भाव से संतान
पच
अथार्त् पत्रु । पिु त्रयां, मानिसकता, मत्रं -�ान, िववेक, स्मरण शि�, िवद्या, प्रित�ा आिद िवषयों का पता चलता है।

ष� भाव : इसे �रपभु ाव कहते हैं। अन्य नाम हैं रोग भाव, आपोिक्लम, उपचय, ित्रक, ष�। इस भाव से मख्ु यत: शत्र,ु
रोग, मामा, जय-पराजय, भतू , बंधन, िवष प्रयोग, क्रूर कमर् आिद िवषयों का पता चलता है।

स�म भाव : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं-के न्द्र, कंटक, चत�ु य, स�म। इस भाव से
पित अथवा पत्नी, िववाह संबंध, िवषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यिभचार, आतं ों, साझेदारी के व्यापार आिद िवषयों
का पता चलता है।

अ�म भाव : इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं-लय स्थान, पणफर, ित्रक, अ�म। आठवें भाव से आय,ु मृत्यु का
कारण, द:ु ख-संकट, मानिसक पीड़ा, आिथर्क �ित, भाग्य हािन, ग�ु ांग के रोगों, आकिस्मक धन लाभ आिद िवषयों का
पता चलता है।

नवम भाव : इसे भाग्य भाव कहलाता हैं। अन्य नाम हैं ित्रकोण और नवम। भाग्य, धमर् पर आस्था, ग�
ु , िपता, पवू र् जन्म
के पण्ु य-पाप, शद्ध
ु ाचरण, यश, ऐ�यर्, वैराग्य आिद िवषयों का पता चलता है।

दशम भाव : यह कमर् भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- के न्द्र, कंटक, चतषु यृ -उपचय, राज्य, दशम। दशम भाव से कमर्,
नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीिवका, यश, सम्मान, राज-सम्मान, राजनीितक िवषय, पदािधकार, िपतृ धन, दीघर्
यात्राए,ं सख
ु आिद िवषयों का पता चलता है।

एकादश भाव : यह भाव आय भाव भी कहलाता है। अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लिब्ध, एकादश। इस भाव से
प्रत्येक प्रकार के लाभ, िमत्र, पत्रु वध,ू पवू र् सपं न्न कम� से भाग्योदय, िसिद्ध, आशा, माता क� मृत्यु आिद िवषयों का पता
चलता है।

द्वादश भाव : यह व्यय भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- अिं तम, आपोिक्लम, एवं द्वादश। इस भाव से धन व्यय, बायीं
आख ं , शैया सख
ु , मानिसक क्लेश, दैवी आपि�यां, दघु टर् ना, मृत्यु के उपरान्त क� िस्थित, पत्नी के रोग, माता का भाग्य,
राजक�य संकट, राजक�य दडं , आत्म-हत्या, एवं मो� आिद िवषयों का पता चलता है।
आइए इनके बारे में िवस्तार से जानें:
प्रथम भाव : इस भाव से व्यि� क� शरीर यि�, वात-िप�-कफ प्रकृ ित, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पवू जर् , सख ु -द ख
ु ,
आत्मिव�ास, अहक ं ार, मानिसकता आिद को जाना जाता है। इससे हमें शारी�रक आकृ ित, स्वभाव, वणर् िचन्ह, व्यि�त्व,
च�रत्र, मख
ु , गणु व अवगणु , प्रारंिभक जीवन िवचार, यश, सख ु -द ख
ु , नेतत्ृ व शि�, व्यि�त्व, मख ु का ऊपरी भाग, जीवन
के संबंध में जानकारी िमलती है। िवस्तृत �प में इस भाव से जनस्वास्थ्य, मिं त्रमडं ल क� प�रिस्थितयों पर भी िवचार जाना
जा सकता है।

िद्वतीय भाव : इसे भाव से व्यि� क� आिथर्क िस्थित, प�रवार का सख ु , घर क� िस्थित, दाई आँ ं ख, वाणी, जीभ, खाना-
पीना, प्रारंिभक िश�ा, सपं ि� आिद के बारे मजं जाना जाता है। इससे हमें कुटुंब के लोगों के बारे में, वाणी, िवचार, धन
क� बचत, सौभाग्य, लाभ-हािन, आभषू ण, �ि�, दािहनी आँख, स्मरण शि�, नाक, ठुड्डी, दाँत, �ी क� मृत्य,ु कला,
सख ु , गला, कान, मृत्यु का कारण जाना जाता है। इस भाव से िवस्तृत �प में कै द यानी राजदडं भी देखा जाता है। राष्ट्रीय
िवचार से राजस्व, जनसाधारण क� आिथर्क दशा, आयात एवं वािणज्य-व्यवसाय आिद के बारे में भी इसी भाव से जाना
जा सकता है

तृतीय भाव : इस भाव से जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैयर्, कंठ-फे फड़े, श्रवण स्थान, कंधे-
हाथ आिद का िवचार िकया जाता है। इससे हमें भाई, पराक्रम, साहस, िमत्रों से संबंध, साझेदारी, संचार-माध्यम, स्वर,
संगीत, लेखन कायर्, व�स्थल, फे फड़े, भजु ाएँ, बंध-ु बांधव आिद का �ान िमलता है। राष्ट्रीय ज्योितष के िलए इस भाव
से रे ल, वाययु ान, पत्र-पित्रकाएँ, पत्र व्यवहार, िनकटतम देशों क� हलचल आिद के बारे में जाना जाता है।

चतुथर् स्थान : इस भाव से मातृसख ु , गृह सौिख्य, वाहन सौख्यर, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, िमत्र छाती पेट के रोग,
मानिसक िस्थित आिद का िवचार िकया जाता है। इससे हमें माता, स्वयं का मकान, पा�रवा�रक िस्थित, भिू म, वाहन
सखु , पैतक
ृ संपि�, मातृभिू म, जनता से संबंिधत कायर्, कुस�, कुआँ, दधू , तालाब, ग�ु कोष, उदर, छाती आिद का पता
िकया जाता है। राष्ट्रीय ज्योितष हेतु िश�ण संस्थाए,ं कॉलेज, स्कूल, कृ िष, जमीन, सवर्साधारण क� प्रसन्नता एवं जनता
से संबंिधत कायर् एवं स्थानीय राजनीित, जनता के बीच पहचान आिद देखा जाता है।

ं म भाव : इस भाव से संतित, बच्चों से िमलने वाला सख


पच ु , िवद्या बिु द्ध, उच्च िश�ा, िवनय-देशभि�, पाचन शि�,
कला, रहस्य शा�ों क� �िच, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यशनौकरी प�रवतर्न आिद का िवचार िकया जाता है।
इससे हमें िवद्या, िववेक, लेखन, मनोरंजन, संतान, मत्रं -तंत्र, प्रेम, सट्टा, लॉटरी, अकस्मात धन लाभ, पवू जर् न्म, गभार्शय,
मत्रू ाशय, पीठ, प्रशासक�य �मता, आय जानी जाती है।
छठा भाव : इस भाव से जातक के शत्रक ु , रोग, भय, तनाव, कलह, मक ु दमे, मामा-मौसी का सखु , नौकर-चाकर,
जननांगों के रोग आिद का िवचार िकया जाता है। इससे हमें शत्र,ु रोग, ऋण, िवघ्न-बाधा, भोजन, चाचा-चाची, अपयश,
चोट, घाव, िव�ासघात, असफलता, पालतू जानवर, नौकर, वाद-िववाद, कोटर् से संबंिधत कायर्, आँत, पेट, सीमा िववाद,
आक्रमण, जल-थल सैन्य के के बारे में पता चलता है।

सातवाँ भाव : इस भाव से िववाह सौख्य, शैय्या सख ु , जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार, पाटर्नरिशप, दरू के प्रवास योग,
कोटर् कचहरी प्रकरण में यश-अपयश आिद का �ान होता है। इससे हमें �ी से संबंिधत, िववाह, सेक्स, पित-पत्नी,
वािणज्य, क्रय-िवक्रय, व्यवहार, साझेदारी, मत्रू ाशय, सावर्जिनक, ग�ु रोग तथा राष्ट्रीय �ि�कोण से नैितकता, िवदेशों से
संबंध, यद्ध
ु का पता चलता हैं।

आठवाँ भाव : इस भाव से आयु िनधार्रण, द:ु ख, आिथर्क िस्थित, मानिसक क्लेश, जननांगों के िवकार, अचानक आने
वाले संकटों का पता चलता है। इससे हमे मृत्य,ु आय,ु मृत्यु का कारण, �ी धन, ग�ु धन, उ�रािधकारी, स्वयं द्वारा अिजर्त
मकान, जातक क� िस्थित, िवयोग, दघु टर् ना, सजा, लाछ ं न आिद का पता चलता है।

नवम भाव : इसे भाव से आध्याित्मक प्रगित, भाग्योदय, बुिद्धम�ा, ग�ु , परदेश गमन, ग्रंथपस्ु तक लेखन, तीथर् यात्रा,
भाई क� पत्नी, दसू रा िववाह आिद के बारे में बताया जाता है। इससे हमें धमर्, भाग्य, तीथर्यात्रा, संतान का भाग्य, साला-
साली, आध्याित्मक िस्थित, वैराग्य, आयात-िनयार्त, यश, ख्याित, सावर्जिनक जीवन, भाग्योदय, पनु जर्न्म, मिं दर-
धमर्शाला आिद का िनमार्ण कराना, योजना िवकास कायर्, न्यायालय से संबंिधत कायर् पता चलते है।

दसवाँ भाव : इस भाव से पद-प्रित�ा, बॉस, सामािजक सम्मान, कायर् �मता, िपतृ सख ु , नौकरी व्यवसाय, शासन से
लाभ, घटु नों का ददर्, सासू माँ आिद के बारे में पता चलता है। इससे हमें िपता, राज्य, व्यापार, नौकरी, प्रशासिनक स्तर,
मान-सम्मान, सफलता, सावर्जिनक जीवन, घटु ने, संसद, िवदेश व्यापार, आयात-िनयार्त, िवद्रोह आिद के बारे में पता
चलता है।

एकादश भाव : इसे भाव से िमत्र, बह�-जँवाई, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके , िपंडली के बारे में जाना जाता है। इससे
हमें िमत्र, समाज, आका� ं ाएँ, इच्छापिू तर्, आय, व्यवसाय में उन्नित, ज्ये� भाई, रोग से मिु �, टखना, िद्वतीय पत्नी, कान,
वािणज्य-व्यापार, परराष्ट्रों से लाभ, अतं रराष्ट्रीय संबंध आिद पता चलता है।

द्वादश भाव : इस भाव से से कजर्, नक ु सान, परदेश गमन, संन्यास, अनैितक आचरण, व्यसन, ग�ु शत्र,ु शैय्या सख ु ,
आत्महत्या, जेल यात्रा, मक
ु दमेबाजी का िवचार िकया जाता है। इससे हमें व्यय, हािन, दडं , ग�ु शत्र,ु िवदेश यात्रा, त्याग,
असफलता, नेत्र पीड़ा, षड्यंत्र, कुटुंब में तनाव, दभु ार्ग्य, जेल, अस्पताल में भत� होना, बदनामी, भोग-िवलास, बायाँ
कान, बाई ंआँख, ऋण आिद के बारे में जाना जाता है।
जन्म कुंडली के कारकत्व अथार्त 12 भावों से �ात िकये जा सकने वाले िवषयों क� जानकारी :

1. प्रथम: लग्न, उदय, आद्य, तन,ु जन्म, िवलग्न, होय शरीर का वणर्, आकृ ित, ल�ण, यश, गण ु , स्थान, सख ु दख
ु ,
प्रवास, तेज बल ।
2. िद्वतीय: स्व कुटुंब, वाणी, अथर्, मिु �, नयन धन, नेत्र, मख ु , िवद्या, वचन, कुटुंब, भोजन, पैतकॄ धन,
3. ततॄ ीय: पराक्रम, सहोदर, सहज, वीयर्, धैयर्, भ्राता, पराक्रम, साहस, कंठ, स्वर, श्रवण, आभरण, व�, धैयर्, बल,
मल ु , फ़ल ।
4. चतुथर्: सख ु , पाताल, मातृ, िवद्या, यान, यान, बधं ,ु िमत्र, अबं ु िवद्या, माता, सख ु , गौ, बधं ,ु मनोगणु , राज्य, यान,
वाहन, भिू म, गहॄ , हदॄ य ।
5. पच ं म: बिु द्ध, िपत,ॄ नदं न, पत्रु , देवराज, पच ं क देवता, राजा, पत्रु , िपता, बिु द्ध, पण्ु य, यातरा, पत्रु प्राि�, िपतृ िवचार
(सयू र् से) ।
6. ष�: रोग, अगं , श�, भय, �रप,ु �त, रोग, श्त्र,ु व्यसन, व्रण, घाव (मगं ल से भी िवचारणीय) ।
7. स�म: जािमत्र, द्यनू , काम, गमन, कलत्र, सपं त, अस्त। सपं ण ू र् यात्रा, �ी सख ु , पत्रु िववाह (शक्र ु से भी
िवचारणीय)
8. अ�म: आय,ु रंध्र, रण, मत्ॄ य,ु िवनाश, आयु (शिन से भी िवचारणीय)
9. नवम: धमर्, ग� ु , शभु , तप, नव, भाग्य, अक ं । भाग्य, प्रभाव, धमर्, ग� ु , तप, शभु (ग� ु से भी िवचारणीय)
10. दशम: व्यापार, मध्य, मान, �ान, राज, आस्पद, कमर्, आ�ा, मान, व्यापार, भषू ण, िनद्रा, कॄिष, प्रवज्या, आगम,
कमर्, जीवन, िजिवका, वृित, यश, िव�ान, िवद्या ।
11. एकादश: भव, आय, लाभ संपण ू र् धन प्राि�, लोभ, लाभ, लालच, दासता ।
12. द्वादश: व्यय, लबं ा सफ़र, दगु िर् त, कु�ा, मछली, मो�, भोग, स्वप्न, िनद्रा, (शिन राह� से भी िवचारणीय) ।

वतर्मान समय में व्यि� के व्यवसाय का प्र� बह�त ही महत्वपण ू र् बन चक


ु ा है। जन्म कुंडली के
आधार पर व्यवसाय के बारे में बताया जाता है। ये सब भावों क� दशा जानकर बताया जा सकता
है। आइये जानें 12 भाव और व्यवसाय िवषय सम्बन्धी जानकारी:

1. पहले भाव में हो तो व्यि� सरकारी सेवा करता है या उसका िनज का स्वतत्रं व्यवसाय होता है।
2. दसू रे भाव में हो तो बैंिकंग, अध्यापन, वकालत, पा�रवा�रक काम, होटल व रे स्तरा,ं आभषू ण एवम नेत्रों का
िचिकत्सक या ऐनकों से सम्बंिधत व्यवसाय होगा।
3. तीसरे भाव में हो तो रे लवे, प�रवहन, डाक एवम तार, लेखन, पत्रका�रता, मद्रु ण, साहिसक कायर्, नौकरी,
गायन-वादन से सम्बंिधत व्यवसाय होगा।
4. चौथे भाव में हो तो खेती -बाड़ी, नेवी, खनन, जमीन-जायदाद, वाहन उद्योग, जनसेवा, राजनीित, लोक
िनमार्ण िवभाग, जल प�रयोजना, आवास िनमार्ण, आिकर् टेक्ट, सहकारी उद्यम इत्यािद से सम्बंिधत व्यवसाय
हो सकता है।
5. पाच ं वें भाव में हो तो िश�ण, शेयर माक� ट, आढत-दलाली, लाटरी, प्रबधं न, कला-कौशल, मत्रं ी पद, लेखन,
िफल्म िनमार्ण इत्यािद से सम्बंिधत व्यवसाय हो सकता है।
6. छठे भाव में हो तो जन स्वास्थ्य, निस�ग होम, अ� -श�, सेना, जेल, िचिकत्सा, चोरी, आपरािधक कायर्,
मक ु द्दमेबाजी तथा पशओ ु ं इत्यािद से सम्बंिधत व्यवसाय हो सकता है।
7. सातवें भाव में हो तो िवदेश सेवा, आयात-िनयार्त, सहकारी उद्यम, व्यापार, यात्राए,ं �रश्ते कराने का काम
इत्यािद से सम्बिं धत व्यवसाय हो सकता है।
8. आठवें भाव में हो तो बीमा, जन्म -मृत्यु िवभाग, वसीयत, मृतक का अिं तम सस्ं कार कराने का काम,
आपरािधक कायर्, फाईनैंस इत्यािद से सम्बिं धत व्यवसाय हो सकता है।
9. नवें भाव में हो तो परु ोिहताई, अध्यापन, धािमर्क सस्ं थाए,ं न्यायालय, धािमर्क सािहत्य, प्रकाशन शोध कायर्
इत्यािद से सम्बंिधत व्यवसाय हो सकता है।
10. दसवें भाव में हो तो राजक�य एवम प्रशासक�य सेवा, उड्डयन �ेत्र, राजनीित, मौसम िवभाग, अन्त�र�,
पैतक ृ कायर् इत्यािद से सम्बिं धत व्यवसाय हो सकता है।
11. ग्यारहवें भाव में हो तो लोक या राज्य सभा पद, आयकर, िबक्र� कर, सभी प्रकार के राजस्व, वाहन, बड़े
उद्योग इत्यािद से सम्बंिधत व्यवसाय हो सकता है।
12. बारहवें भाव में हो तो कारागार, िवदेश प्रवास, राजदडं इत्यािद से सम्बंिधत व्यवसाय हो सकता है।
कंु डल� के �व�भन्न भाव –
प्रथम भाव – इसे तनु भाव या लग्न कहते हैं | लग्नश
े शभु हो या अशभु सदैव शभु फल देता है | सयू र्
इस भाव का कारक ग्रह है | प्रथम भाव से िवचारणीय िवषय हैं – जन्म, सर, शरीर, अगं , आय,ु �प,
कद-काठी आिद |
िद्वतीय भाव – इसे धन भाव या पणकर भाव भी कहते हैं | यह मारक भाव है | ग�ु इस भाव का
कारक ग्रह है | िद्वतीय भाव के िवचारणीय िवषय हैं – �पया, पैसा, धन, नेत्र, मख ु , वाणी, आिथर्क
िस्थित, कुटुंब, भोजन, िज�ा, दातं , मृत्य,ु नाक आिद | चन्द्रमा, बधु , ग�ु शक्र
ु ये शभु प्रद रहते हैं |
ततृ ीय भाव – इसे सहज भाव या ित्रषड़ाय भी कहते हैं | यह एक शभु भाव है, िकन्तु सदैव दोषी होता
है | मंगल इस भाव का कारक ग्रह है | तृतीय भाव के िवचारणीय िवषय हैं – छोटे भाई बहन, धैय,र्
नौकर-चाकर, लघु यात्राएँ, साहस, डर, कान, मानिसक संतल ु न, धमर्, खांसी, �ास रोग आिद | सयू र्,
ु , बधु , चंद्रमा, राह�- ये शभु ग्रह हैं |
शिन, मंगल, शक्र
चतथ ु र् भाव – यह सख ु भाव कहलाता है यह कें द्र भाव है | पापग्रह इसमें अच्छा फल देते हैं | चन्द्र
और बधु इस भाव के कारक ग्रह हैं | िवचारणीय िवषय – मातृ सख ु , जमीन, मकान, वाहन सख ु , पशु
धन, ग�ु धन, मातृ धन, यश, दया, शािन्त, जनसंपकर् , नौकर-चाकर, खेतीबाड़ी, �सरु , उदर रोग,
कैं सर, िवद्या, ह्रदय आिद िवचारणीय हैं | बधु , शक्र
ु – लाभदायक एवं अन्य भयदायक |
पंचम भाव (सुत भाव) – इसे ित्रकोण भाव भी कहते हैं | यह एक शभु भाव है | ग�ु इस भाव का
कारक ग्रह है | आकिस्मक धन (लाटरी), िवद्या, संतान, संतान सख ु , बिु द्ध, कुशाग्रता, प्रशंसा योग्य
कायर्, दान, मनोरंजन, जआ ु , पस्ु तक िलखना, ि�यों के यकृ त, गभार्शय सम्बन्धी रोग इस भाव से
िवचारणीय हैं | ग�ु , शक्र
ु , बधु , चद्रं मा – अभी� लाभ
ष�म भाव (�रपु भाव) – इस भाव को ित्रषड़ाय और द�ु भाव भी कहते हैं | शभु या अशभु ष�ेश,
अ�म और द्वादश भाव को छोड़कर सभी भावों क� हािन करता है | मंगल और शिन इस भाव के कारक
ग्रह हैं | शत्र,ु िचतं ा, रोग, शारी�रक वक्रता, चोट, मक
ु दमेबाजी, अवसाद, बदनामी, घर बाहर के झगडे,
चोरी-डकै ती, भाइयों से मत-भेद, घाव, फोड़े-फंु सी िवचारणीय िवषय है | सयू र्, चद्रं मा, शिन, मंगल,
बधु – शभु तथा ग�ु – अशभु
स�म भाव (जाया भाव) – इसे कें द्र भाव भी कहते हैं | यह एक मारक भाव है | प�ु षों के िलए शक्र ु
और ि�यों के िलए ग�ु इस भाव के कारक ग्रह हैं | िववाह, पत्नी, यौन सख ु , यात्रा, पाटर्नर | इसमें
सभी ग्रह अशभु माने जाते हैं | गदु ा, मत्रू , नािभ, दाम्पत्य जीवन, रोजगार, व्यापार, बवासीर आिद
ु है | बधु , ग�ु , शक्र
प्रमख ु – शभु तथा सयू ,र् शिन, मंगल, राह� – हािनकारक |
अ�म भाव (मृत्यु भाव) – इसे द�ु भाव भी कहते हैं | अ�मेश सभी भावों क� हािन करता है | शिन
इस भाव का कारक ग्रह है | आय,ु जीवन, मृत्य,ु प्रेम, बदनामी, पतन, सजा, दघु र्टना, समद्रु ी यात्रा,
वसीयत, द�रद्रता, आलस्य, जीवनसाथी का भाग्य, ग�ु जनेिन्द्रय रोग, दभु ार्ग्य, पापकमर्, कजर्, अकाल
मृत्य,ु किठनाइयाँ | बधु , शक्र
ु – शभु तथा शेष अशभु |
नवम भाव (धमर् भाव) – इसे भाग्य या ित्रकोण भाव् भी कहते हैं | सयू र् और ग�ु इस भाव के कारक
ग्रह हैं | िपता, भाग्य, ग�ु , प्रशसं ा, योग्य कायर्, धमर्, दानशीलता, पवू र्जनम के सिं चत पण्ु य, धमर्, क�ितर्,
व्यािभचार, सदाचार, तीथर् यात्रा, िवदेश यात्रा आिद िवचारणीय िवषय है | बधु , शक्र ु – शभु तथा शेष
अशभु |
दशम भाव (कमर् भाव) – यह कें द्र भाव भी है | सयू र्, ग�ु , बधु , शिन इस भाव के कारक ग्रह हैं |
ृ व्यवसाय, उदरपालन, व्यापार, प्रित�ा, श्रेणी, पद, प्रिसिद्ध, प्रभत्ु व, िपतृप्रेम, नौकरी, नेतत्ृ व
पैतक
शि�, घटु ने, पीठ के रोग िवचारणीय है |
एकादश भाव (आय भाव) – इसे ित्रषड़ाय भी कहते हैं | एकादश भाव को अशभु माना जाता है
िकन्तु भाव िस्थत सभी ग्रह सदैव शभु फल देते हैं | ग�ु इस भाव का कारक ग्रह है | आय, लाभ, गडा
धन, लाटरी, िपतृधन, माता क� मृत्य,ु व्यापार से लाभ-हािन, चोट, िद्वतीय जीवनसाथी, बड़ा भाई, पैर
व् एड़ी का ददर् मख्ु य िवचारणीय िवषय हैं |
द्वादश भाव (व्यय भाव) – इसे द�ु भाव भी कहते हैं | शिन इस भाव का कारक ग्रह है | द्वादेश
सदैव ही मानहािन, धनहािन और अन्य दसु रे अिन� करता है | अपव्यय, धनहािन, कचहरी, राजदडं ,
सजा, शयन सख ु में कमी, ऋण, हत्या, आत्महत्या, अपमान, बायीं आँख, चोरी से हािन आिद
िवचारणीय िवषय हैं | बधु , शक्र
ु – शभु तथा शेष अशभु |

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