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समास

समास का तात्पर्य होता है – संक्षिप्तीकरण। इसका शाब्दिक अर्थ होता है – छोटा रूप। अर्ातथ
जब िो या िो से अधिक शदिों से मिलकर जो नया और छोटा शदि बनता है उस शदि को
सिास कहते हैं।

समास की परिभाषा
िो या िो से अधिक शदिों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शदि (ब्जसका कोई
अर्थ हो) को सिास कहते हैं।
जैसे –
1. ‘िसोई के लिए घि’इसे हम ‘िसोईघि’ कह सकते हैं।
2. रािा-कृष्ण = रािा और कृष्ण

सामालसक शब्द
सिास के ननयिों से ननमिथत शदि सािामसक शदि कहलाता है। इसे सिस्तपि भी कहा जाता
है। सिास होने के बाि ववभब्ततयों के धिन्ह गायब हो जाते हैं।
जैसे –
1. रसोई के मलए घर = रसोईघर
2. हार् के मलए कडी = हर्कडी
3. नील और किल = नीलकिल
4. राजा का पुत्र = राजपुत्र

पूर्प
य द औि उत्तिपद –
सिास रिना िें िो पि होते हैं, पहले पि को ‘पूवथपि’कहा जाता है और िस
ू रे पि को
‘उत्तरपि’कहा जाता है। इन िोनों से जो नया शदि बनता है वो सिस्त पि कहलाता है।
जैसे-
पूजाघि (समस्तपद) – पूजा (पूवथपि) + घर (उत्तरपि))
िाजपत्र
ु (समस्तपद) – राजा (पूवथपि) + पत्र
ु (उत्तरपि

समास वर्ग्रह
सािामसक शदिों के बीि के सम्बन्ि को स्पष्ट करने को सिास-ववग्रह कहते हैं। ववग्रह के
बाि सािामसक शदि गायब हो जाते हैं अर्ातथ जब सिस्त पि के सभी पि अलग-अलग
ककय जाते हैं, उसे सिास-ववग्रह कहते हैं।
जैसे –
िाता-वपता = िाता और वपता।
राजपत्र
ु = राजा का पत्र
ु ।
समास के भेद
सिास के छः भेि िाने जाते हैं –
1. अव्ययीभाव सिास
2. तत्पुरुष सिास
3. किथिारय सिास
4. द्ववगु सिास
5. द्वंद्व सिास
6. बहुब्रीहह सिास

7.
सिि भाषा में पहचानने का तिीका
• पर्
ू य प्रधान – अव्ययीभाव सिास
• उत्ति पद प्रधान – तत्परु
ु ष , किथिारय व द्ववगु
• दोनों पद प्रधान – द्वंि सिास
• दोनों पद प्रधान नहीीं– बहुव्रीहह इसिें कोई तीसरा अर्थ प्रिान होता है

अव्र्र्ीभार् समास
ब्जस सिास का पूवथ पि प्रिान हो, और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव सिास कहते हैं।
इसिें अव्यय पि का प्रारूप मलंग, विन, कारक, िें नह ं बिलता है, वो हिेशा एक जैसा रहता
है।

इसिें पहला पि उपसगथ होता है जैसे अ, आ, अनु, प्रनत, हर, भर, नन, ननर, यर्ा, यावत आहि
उपसगथ शदि का बोि होता है।
जैसे –
यर्ाशब्तत = शब्तत के अनुसार
प्रनतहिन = प्रत्येक हिन
आजन्ि = जन्ि से लेकर
घर-घर = प्रत्येक घर
रातों रात = रात ह रात िें
आिरण = ित्ृ यु तक

तत्पुरुष समास
ब्जस सिास का उत्तरपि प्रिान हो और पूवथपि गौण हो उसे तत्पुरुष सिास कहते हैं। यह
कारक से जुडा सिास होता है।
इस सिास िें सािारणतः प्रर्ि पि ववशेषण और द्ववतीय पि ववशेष्य होता है।
जैसे –
ििथ का ग्रन्र् = ििथग्रन्र्
राजा का कुिार = राजकुिार
तल
ु सीिासकृत = तल
ु सीिास द्वारा कृत

इसिें कताथ और संबोिन कारक को छोडकर शेष छ: कारक धिन्हों का प्रयोग होता है। जैसे –
कमय तत्पुरुष – इसिें िो पिों के बीि िें किथकारक नछपा हुआ होता है। किथकारक का धिन्ह
‘को’ होता है। ‘को’को किथकारक की ववभब्तत भी कहा जाता है। उसे किथ तत्पुरुष सिास
कहते हैं। ‘को’के लोप से यह सिास बनता है।

जैसे – ग्रंर्कार = ग्रन्र् को मलखने वाला

किण तत्पुरुष – जहााँ पर पहले पि िें करण कारक का बोि होता है। इसिें िो पिों के बीि
करण कारक नछपा होता है। करण कारक का धिन्ह या ववभब्तत ‘के द्वारा’और ‘से’होता है।
उसे करण तत्पुरुष कहते हैं। ‘से’और ‘के द्वारा’के लोप से यह सिास बनता है।
जैसे – वाब्मिककरधित = वामिीकक के द्वारा रधित

सम्प्प्रदान तत्पुरुष – इसिें िो पिों के बीि सम्प्रिान कारक नछपा होता है। सम्प्रिान कारक
का धिन्ह या ववभब्तत ‘के मलए’होती है।
जैसे – सत्याग्रह = सत्य के मलए आग्रह

अपादान तत्पुरुष – इसिें िो पिों के बीि िें अपािान कारक नछपा होता है। अपािान कारक
का धिन्ह या ववभब्तत ‘से अलग’ होता है।
जैसे – पर्भ्रष्ट = पर् से भ्रष्ट

सम्प्बन्ध तत्पुरुष – इसिें िो पिों के बीि िें सम्बन्ि कारक नछपा होता है। सम्बन्ि कारक
के धिन्ह या ववभब्तत ‘का, ‘के, ‘की’होती हैं।

जैसे – राजसभा = राजा की सभा


अधधकिण तत्परु
ु ष – इसिें िो पिों के बीि अधिकरण कारक नछपा होता है। अधिकरण कारक
का धिन्ह या ववभब्तत ‘िें, ‘पर’होता है।
जैसे – जलसिाधि = जल िें सिाधि

कमयधािर् समास
ब्जस सिास का उत्तरपि प्रिान होता है , ब्जसके मलंग, विन भी सािान होते हैं। जो सिास िें
ववशेषण-ववशेष्य और उपिेय-उपिान से मिलकर बनते हैं, उसे किथिारय सिास कहते हैं।
किथिारय सिास िें व्यब्तत, वस्तु आहि की ववशेषता का बोि होता है। किथिारय सिास के
ववग्रह िें ‘है जो, ‘के सिान है जो’ तर्ा ‘रूपी’शदिों का प्रयोग होता है।
जैसे –
िन्रिख
ु – िन्रिा के सािान िख
ु वाला – (ववशेषता)
िह वडा – िह िें डूबा बडा – (ववशेषता)
गरु
ु िे व – गरु
ु रूपी िे व – (ववशेषता)
िरण किल – किल के सिान िरण – (ववशेषता)
नील गगन – नीला है जो असिान – (ववशेषता)

द्वर्गु समास
द्ववगु सिास िें पव
ू थपि संख्यावािक होता है इससे सिह
ू और सिाहार का बोि होता है। उसे
द्ववगु सिास कहते हैं।
जैसे –
नवग्रह = नौ ग्रहों का सिूह
िोपहर = िो पहरों का सिाहार
त्रत्रवेणी = तीन वेणणयों का सिूह
पंितन्त्र = पांि तंत्रों का सिूह
त्रत्रलोक = तीन लोकों का सिाहार
शतादि = सौ अदिों का सिूह
सप्तऋवष = सात ऋवषयों का सिूह
त्रत्रकोण = तीन कोणों का सिाहार
सप्ताह = सात हिनों का सिूह
नतरं गा = तीन रं गों का सिूह
ितुवेि = िार वेिों का सिाहार


तीन लोकों का सिाहार = त्रत्रलोक
पााँिों वटों का सिाहार = पंिवट
तीन भुवनों का सिाहार = त्रत्रभुवन

द्र्ींद्र् समास
इस सिास िें िोनों पि ह प्रिान होते हैं इसिें ककसी भी पि का गौण नह ं होता है। ये
िोनों पि एक-िस
ू रे पि के ववलोि होते हैं लेककन ये हिेशा नह ं होता है। इसका ववग्रह करने
पर और, अर्वा, या, एवं का प्रयोग होता है उसे द्वंद्व सिास कहते हैं। द्वंद्व सिास िें
योजक धिन्ह (-) और ‘या’ का बोि होता है।
जैसे –
जलवायु = जल और वायु
अपना-पराया = अपना या पराया
पाप-पण्
ु य = पाप और पण्
ु य
रािा-कृष्ण = रािा और कृष्ण
अन्न-जल = अन्न और जल
नर-नार = नर और नार
गण
ु -िोष = गण
ु और िोष
िे श-वविे श = िे श और वविे श

बहुब्रीहह समास

इस सिास िें कोई भी पि प्रिान नह ं होता। जब िो पि मिलकर तीसरा पि बनाते हैं तब


वह तीसरा पि प्रिान होता है। इसका ववग्रह करने पर “वाला, है, जो, ब्जसका, ब्जसकी, ब्जसके,
वह”आहि आते हैं, वह बहुब्रीहह सिास कहलाता है।
िस
ू रे शदिों िें– ब्जस सिास िें पव
ू थपि तर्ा उत्तरपि- िोनों िें से कोई भी पि प्रिान न होकर
कोई अन्य पि ह प्रिान हो, वह बहुव्रीहह सिास कहलाता है।
जैसे –
गजानन = गज का आनन है ब्जसका (गणेश)
त्रत्रनेत्र = तीन नेत्र हैं ब्जसके (मशव)
नीलकंठ = नीला है कंठ ब्जसका (मशव)
लम्बोिर = लम्बा है उिर ब्जसका (गणेश)
िशानन = िश हैं आनन ब्जसके (रावण)
ितुभुथज = िार भुजाओं वाला (ववष्णु)
पीताम्बर = पीले हैं वस्त्र ब्जसके (कृष्ण)
िक्रिर= िक्र को िारण करने वाला (ववष्णु)

कमयधािर् औि बहुव्रीहह समास में अींति


इन िोनों सिासों िें अंतर सिझने के मलए इनके ववग्रह पर ध्यान िे ना िाहहए। किथिारय
सिास िें एक पि ववशेषण या उपिान होता है और िस
ू रा पि ववशेष्य या उपिेय होता है।
जैसे – ‘नीलगगन’ िें ‘नील’ ववशेषण है तर्ा ‘गगन’ ववशेष्य है। इसी तरह ‘िरणकिल’ िें
‘िरण’ उपिेय है और ‘किल’ उपिान है। अतः ये िोनों उिाहरण किथिारय सिास के है।
बहुव्रीहह सिास िें सिस्त पि ह ककसी संज्ञा के ववशेषण का कायथ करता है।
जैसे – ‘िक्रिर’ िक्र को िारण करता है जो अर्ाथत ‘श्रीकृष्ण’।
नीलकंठ – नीला है जो कंठ – (किथिारय)
नीलकंठ – नीला है कंठ ब्जसका अर्ाथत मशव – (बहुव्रीहह)
लंबोिर – िोटे पेट वाला – (किथिारय)
लंबोिर – लंबा है उिर ब्जसका अर्ाथत गणेश – (बहुव्रीहह)
िहात्िा – िहान है जो आत्िा – (किथिारय)
िहात्िा – िहान आत्िा है ब्जसकी अर्ाथत ववशेष व्यब्तत – (बहुव्रीहह)

द्वर्गु औि बहुव्रीहह समास में अींति


त्रत्रिोचन – तीन लोिनों का सिह
ू – द्ववगु सिास।
त्रत्रिोचन – तीन लोिन हैं ब्जसके अर्ाथत मशव – बहुव्रीहह सिास।
दशानन – िस आननों का सिह ू – द्ववगु सिास।
दशानन – िस आनन हैं ब्जसके अर्ाथत रावण – बहुव्रीहह सिास।

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