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प्रद्युम्न िसंह (िदल्ली पिब्लक स्कू ल, फ़रीदाबाद) समास २८ जलाई २०२० 1 / 21

समास

प्रद्यम्ु न िसंह

िदल्ली पिब्लक स्कूल, फ़रीदाबाद

२८ जलाई २०२०

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समास क प रभाषा

समास का तात्पयर् होता है - संिक्ष ीकरण। इसका शािब्दक अथर् होता है - छोटा
रूप। अथार्त जब दो या दो से अिधक शब्दों से िमलकर जो नया और छोटा शब्द
बनता है उस शब्द को समास कहते हैं। दसू रे शब्दों में - दो या दो से अिधक
शब्दों से िमलकर बने हए एक नवीन एवं साथर्क शब्द (िजसका कोई अथर् हो)
को समास कहते हैं। जैसे – ‘रसोई के िलए घर’इसे हम ‘रसोईघर’भी कह सकते
हैं। संस्कृत, जमर्न तथा बहत सी भारतीय भाषाओँ में समास का बहत प्रयोग
िकया जाता है।

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समास और सिं ध में अंतर
सिं ध का शािब्दक अथर् होता है - मेल।
संिध में उच्चारण के िनयमों का िवशेष महत्व होता है। इसमें दो वणर् होते हैं, इसमें कहीं पर एक तो कहीं पर दोनों
वण में प रवतर्न हो जाता है और कहीं पर तीसरा वणर् भी आ जाता है। संिध िकये हए शब्दों को तोड़ने क िक्रया
िवच्छे द कहलाती है। संिध में िजन शब्दों का योग होता है, उनका मल ू अथर् नहीं बदलता।
जैसे -
पस्ु तक+आलय = पस्ु तकालय।
समास का शािब्दक अथर् होता है - संक्षेप।
समास में वण के स्थान पर पद का महत्व होता है। इसमें दो या दो से अिधक पद िमलकर एक समस्त पद बनाते हैं
और इनके बीच से िवभि यों का लोप हो जाता है। समस्त पदों को तोडने क प्रिक्रया को िवग्रह कहा जाता है।
समास में बने हए शब्दों के मल
ू अथर् को प रवितर्त िकया भी जा सकता है और प रवितर्त नहीं भी िकया जा सकता है।
जैसे -
िवषधर = िवष को धारण करने वाला अथार्त िशव।

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सामािसक शब्द

समास के िनयमों से िनिमर्त शब्द सामािसक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी
कहा जाता है। समास होने के बाद िवभि यों के िचन्ह गायब हो जाते हैं।
जैसे -
रसोई के िलए घर = रसोईघर
हाथ के िलए कड़ी = हथकड़ी
नीला है जो कमल = नीलकमल
राजा का पत्रु = राजपत्रु ।

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पूवर्पद और उ रपद

समास रचना में दो पद होते हैं, पहले पद को ‘पवू र्पद’कहा जाता है और दसू रे पद
को ‘उ रपद’कहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद
कहलाता है।
पजू ाघर (समस्तपद) – पजू ा (पवू र्पद) + घर (उ रपद) -
पजू ा के िलए घर (समास-िवग्रह)
राजपत्रु (समस्तपद) – राजा (पवू र्पद) + पत्रु (उ रपद) -
राजा का पत्रु (समास-िवग्रह)
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समास िवग्रह

सामािसक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्प करने को समास-िवग्रह कहते हैं।


िवग्रह के बाद सामािसक शब्द गायब हो जाते हैं अथार्त जब समस्त पद के सभी
पद अलग-अलग िकए जाते हैं, उसे समास-िवग्रह कहते हैं।
जैसे -
माता-िपता = माता और िपता।
राजपत्रु = राजा का पत्रु ।

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समास के भेद

समास के मख्ु यतः छः भेद माने जाते हैं –


i. अव्ययीभाव समास
ii. तत्परुु ष समास
iii. कमर्धारय समास
iv. िद्वगु समास
v. द्वद्वं समास
vi. बहव्रीिह समास
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अव्ययीभाव समास
िजस समास का पवू र् पद प्रधान हो, और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। इसमें अव्यय पद का प्रारूप
िलंग, वचन, कारक, में नहीं बदलता है, वो हमेशा एक जैसा रहता है। दसू रे शब्दों में - यिद एक शब्द क पनु रावृि
हो और दोनों शब्द िमलकर अव्यय क तरह प्रयोग हों, वहाँ पर अव्ययीभाव समास होता है। संस्कृ त में उपसगर् यु
पद भी अव्ययीभाव समास ही माने जाते हैं। इसमें पहला पद उपसगर् होता है जैसे अ, आ, अन,ु प्रित, हर, भर, िन,
िनर, यथा, यावत आिद उपसगर् शब्द का बोध होता है।
जैसे -

यथाशि = शि के अनसु ार
प्रितिदन = प्रत्येक िदन
आजन्म = जन्म से लेकर
घर-घर = प्रत्येक घर
रातों रात = रात ही रात में
आमरण = मृत्यु तक
अभतू पवू र् = जो पहले नहीं हआ
िनभर्य = िबना भय के
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तत्पुरुष समास
िजस समास का उ रपद प्रधान हो और पवू र्पद गौण हो उसे तत्परुु ष समास कहते हैं। यह कारक से जड़ु ा समास होता है। इसमें
ज्ञातव्य-िवग्रह में जो कारक प्रकट होता है उसी कारक वाला वो समास होता है। इसे बनाने में दो पदों के बीच कारक िचन्हों का
लोप हो जाता है, उसे तत्परुु ष समास कहते हैं। इस समास में साधारणतः प्रथम पद िवशेषण और िद्वतीय पद िवशेष्य होता है।
िद्वतीय पद, अथार्त बाद वाले पद के िवशेष्य होनेके कारण इस समास में उसक प्रधानता रहती है।।

जैसे -
धमर् का ग्रन्थ = धमर्ग्रन्थ
राजा का कुमार = राजकुमार
तल
ु सीदासकृ त = तल
ु सीदास द्वारा कृ त
इसमें कतार् और संबोधन कारक को छोड़कर शेष छ: कारक िचन्हों का प्रयोग होता है। जैसे - कमर् कारक, करण कारक,
सम्प्रदान कारक, अपादान कारक, सम्बन्ध कारक, अिधकरण कारक इस समास में दसू रा पद प्रधान होता है।

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कमर्धारय समास
िजस समास का उ रपद प्रधान होता है, िजसके िलंग, वचन भी सामान होते हैं। जो समास िवशेषण-िवशेष्य और
उपमेय-उपमान से िमलकर बनते हैं, उसे कमर्धारय समास कहते हैं। कमर्धारय समास में व्यि , वस्तु आिद क
िवशेषता का बोध होता है। कमर्धारय समास के िवग्रह में ‘है जो, ‘के समान है जो’ तथा ‘रूपी’शब्दों का प्रयोग होता
है। :

चन्द्रमखु - चन्द्रमा के सामान मख


ु वाला
गरुु देव - गरुु रूपी देव
चरण कमल - कमल के समान चरण
नील गगन - नीला है जो असमान
पीताम्बर = पीले हैं जो व

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िद्वगु समास
िद्वगु समास में पूवर्पद सख्
ं यावाचक होता है और कभी-कभी उ रपद भी सख् ं यावाचक होता हआ देखा
जा सकता है। इस समास में प्रयु सख् ं या िकसी समू ह को दशार् त ी है , िकसी अथर् को नहीं। इससे समूह
और समाहार का बोध होता है। उसे िद्वगु समास कहते हैं।
जैसे -

नवग्रह = नौ ग्रहों का समहू


दोपहर = दो पहरों का समाहार।
ित्रवेणी = तीन वेिणयों का समहू
पंचतन्त्र = पांच तंत्रों का समहू
ित्रलोक = तीन लोकों का समाहार
शताब्दी = सौ अब्दों का समहू
स ऋिष = सात ऋिषयों का समहू
ित्रकोण = तीन कोणों का समाहार
स ाह = सात िदनों का समहू
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द्वंद्व समास
इस समास में दोनों पद ही प्रधान होते हैं इसमें कोई भी पद गौण नहीं होता है। इसका िवग्रह करने पर और,
अथवा, या, एवं का प्रयोग होता है उसे द्वंद्व समास कहते हैं। द्वंद्व समास में योजक िचन्ह (-) और 'या' का
बोध होता है। जैसे -

जलवायु जल और वायु
अपना-पराया = अपना या पराया
देश-िवदेश = देश और िवदेश
पाप-पण्ु य = पाप और पण्ु य
राधा-कृ ष्ण = राधा और कृ ष्ण
नर-नारी = नर और नारी।
गणु -दोष = गणु और दोष

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बहव्रीिह समास
इस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। जब दो पद िमलकर तीसरा पद बनाते हैं तब वह तीसरा पद प्रधान होता
है। इसका िवग्रह करने पर “वाला, है, जो, िजसका, िजसक , िजसके , वह” आिद आते हैं, वह बहव्रीिह समास
कहलाता है। दसू रे शब्दों में- िजस समास में पवू र्पद तथा उ रपद- दोनों में से कोई भी पद प्रधान न होकर कोई अन्य
पद ही प्रधान हो, वह बहव्रीिह समास कहलाता है। िजस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद िमल कर
िकसी तीसरे पद क ओर सक ं े त करते है, उसमें बहव्रीिह समास होता है।
'नीलकंठ', नीला है कंठ िजसका अथार्त िशव। यहाँ पर दोनों पदों ने िमल कर एक तीसरे पद 'िशव' का संकेत िकया,
इसिलए यह बहव्रीिह समास है। इस समास के समासगत पदों में कोई भी प्रधान नहीं होता, बिल्क परू ा समस्तपद ही
िकसी अन्य पद का िवशेषण होता है।

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जैसे -
गजानन = गज का आनन है िजसका (गणेश)
ित्रनेत्र = तीन नेत्र हैं िजसके (िशव)
नीलकंठ = नीला है कंठ िजसका (िशव)
लम्बोदर = लम्बा है उदर िजसका (गणेश)
दशानन = दश हैं आनन िजसके (रावण)
चतभु जर्ु = चार भजु ाओ ं वाला (िवष्ण)ु
पीताम्बर = पीले हैं व िजसके (कृ ष्ण)
चक्रधर= चक्र को धारण करने वाला (िवष्ण)ु

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कमर्धारय और बहव्रीिह समास में अंतर
इन दोनों समासों में अतं र समझने के िलए इनके िवग्रह पर ध्यान देना चािहए। कमर्धारय समास में एक पद िवशेषण
या उपमान होता है और दसू रा पद िवशेष्य या उपमेय होता है। जैसे - 'नीलगगन' में 'नील' िवशेषण है तथा 'गगन'
िवशेष्य है। इसी तरह 'चरणकमल' में 'चरण' उपमेय है और 'कमल' उपमान है। अतः ये दोनों उदाहरण कमर्धारय
समास के है। बहव्रीिह समास में समस्त पद ही िकसी संज्ञा के िवशेषण का कायर् करता है।

कमलनयन - कमल के समान नयन - (कमर्धारय)


कमलनयन - कमल के समान नयन हैं िजसके अथार्त िवष्णु - (बहव्रीिह)
पीतांबर - पीले हैं जो अबं र (व ) - (कमर्धारय)
पीतांबर - पीले अबं र हैं िजसके अथार्त कृ ष्ण - (बहव्रीिह)
घनश्याम - श्याम है जो घन (कमर्धारय)
घनश्याम - घन के समान श्याम है जो , अथार्त कृ ष्ण (बहव्रीिह)

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िद्वगु और बहव्रीिह समास में अंतर
िद्वगु समास का पहला पद सख्
ं यावाचक िवशेषण होता है और दूसरा पद िवशेष्य होता है जबिक बहव्रीिह
समास में समस्त पद ही िवशेषण का कायर् करता है। जैसे-

चतभु जर्ु - चार भजु ाओ ं का समहू - िद्वगु समास।


चतभु जर्ु - चार है भजु ाएँ िजसक अथार्त िवष्णु - बहव्रीिह समास।
पंचवटी - पाँच वटों का समाहार - िद्वगु समास।
पंचवटी - पाँच वटों से िघरा एक िनि त स्थल अथार्त दडं कारण्य में िस्थत वह स्थान जहाँ वनवासी राम ने
सीता और ल मण के साथ िनवास िकया - बहव्रीिह समास।

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अभ्यास
िनम्निलिखत समस्त पदों का िवग्रह क िजए और समास का नाम भी िलिखए –

1. कमर्भिू म
कमर् क भिू म - तत्परुु ष
नीलगाय
नीली है जो गाय - कमर् धायर्
कनकलता
कनक रूपी लता कमर् धायर्
चौराहा
चार राहों का समहू - िद्वगु
गजानन
गज के समान आनन है िजसका , अथार्त गणेश - बहव्रीिह समास।

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अभ्यास

ऋणमु
ऋण से मु - तत्परुु ष
घर - घर
हर घर में - अव्ययी भाव
माता -िपता
माता और िपता - द्वन्द्व
आमरण
मृत्यु तक - अव्ययी भाव
यथाशि
शि के अनसु ार - अव्ययी भाव

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िनम्निलिखत समस्त पदों का िवग्रह क िजए और समास का नाम भी िलिखए

घनश्याम
एकदतं
ित्रवेणी
चरणकमल
यश-अपयश
आसमद्रु
घर-आँगन
घड़ु सवार
कमर्योगी
महावीर
बातोंबात
दशानन
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समा
धन्यवाद
(सामग्री सौजन्य - success CD)

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