Professional Documents
Culture Documents
अनेकार्थी शब्द
अनेकार्थी शब्द
हहन्दी में कततपय ऐसे शब्द प्रयोग में आते हैं, क्जनके अनेक अर्थथ होते हैं, वे
अनेकार्थथक शब्द कहलाते हैंI ऐसे शब्द हहन्दी साहहत्य में प्राय: काव्य में ही
प्रयत
ु त होते हैं| अनेकार्थथक शब्दों की सच
ू ी नीचे प्रदत्त है –
अक्षर – ब्रम्हा, विष्णु अकारादि िणण, शिि, धर्ण, र्ोक्ष, ििन, सत्य, जल, ननत्य|
अमत
ृ – अशर्य, स्ििण, जल, पारा, िध
ू , अन्न, इत्यािी |
अक्ष – आँख, सपण, ज्ञान, र्ण्डल, रथ, िौसर का पासा, धरु ी, हररया, आत्र्बशल |
आम – र्ार्ल
ू ी, सिणसाधरण, आर् का फल |
उमा – पािणती, िि
ु ाण, हल्िी, अलसी, कीनतण, काक्न्त |
उत्तर – उिर-दििा, जिाब, बाि का, िणणत र्ें फल, श्रेष्ठ, राजा विराट के परु का नार् |
कताथ – करने िाला, बनाने िाला, प्रररिार का र्ुणखया, व्याकरण र्ें पहला कारक |
कंु भ – प्रयाि तीथण का बारहिें िषण का र्ेला, हाथी के र्स्तक का िोनों ओर का िाि, घड़ा |
कोश – अण्डा, डडब्बा, तलिार की म्यान, आिरण, थैली, संगित धन, िब्ि कोि, सर्हू |
कल – र्िीन, िैन, आने िाला कल/बीता कल, िाक्न्त, सुन्िर र्धरु ध्िनी, आरार् |
गो – िाय, ककरण, िषृ राशि, इंदद्रय,िाणी, सरस्िती, आँख, दृक्ष्ट, त्रबजली, पथ्ृ िी, नंिी, नर्क,
शिििण, घोड़ा, सूय,ण िन्द्रर्ा, बाण, आकाि, स्ििण, जल |
गण – सर्हू , श्रेणी, सेना का एक िाि, वपंिल िास्र र्ें तीन ििों का सर्हू , शिि के सेिक,
ित
ू , अनि
ु र |
ग्रह – तारे , नौ की संखा लेना, अनुग्रह, कृपा, ग्रहण, राहु |
गुण – वििेषता, धर्ण, प्रकृनत के तीन िाि, ननपुणता, कोई कला अथिा विद्या, प्रिाि, िील,
सद्िनृ त, कौिल |
घन – बािल, घना, ककसी संख्या को उसी संख्या से िो बार िुणा का िुणनफल, िारी हथौड़ा |
घम
ु ाना – र्ोड़ना, ितकर िे ना, लट्टू िलाना, प्रिाररत करना, सैर करना |
चाल – रफ्तार, िनत, िलने का ढं ि, आहट, िालाकी, र्ोहरों का दहलना, ररिाज, धोखा |
चाक – कुम्हार का िाक, ितकी, िोल िास्तु, पानी का िँिर, बिण्डर, सर्ूह, एक प्रकार का
यद्
ु ध व्यह
ू , र्ण्डल |
चरण – पैर, बड़ों का संि, ककसी छन्ि का एक पि, ककसी िीज का एक िौथाई िाि,
अनुष्ठान, िोर, आिार, सूयण आदि की ककरण |
जड़ – र्ल
ू , र्ख
ू ,ण हठी, अिेतन, िेष्टाहीन, िीतल, िंि
ू ा, बहरा, नींि |
जन – लोि, प्रजा, िंिार, अनुिर, सर्ूह, ििन, र्जिरू ी, सात लोकों र्ें से एक |
जया – िि
ु ाण, पािणती, पताका, हरी िब
ू |
टाँकना – सुई से कुछ जोड़ना, रकर् शलख रखना, (िाकू, छूरी) तेज करना |
डूबना – अस्त होना, पानी के नीिे जाना, नष्ट होना, सर्ाप्त होना |
ढालना – हाँस की ओर बढ़ना, ढलान की ओर जाना, साँिे र्ें बनाया जाना, सर्य बीतने को
होना |
तल – नीिे का िाि, पेंिा, जल के नीिे की िूशर्, पैर का तलिा, हथेली, सतह, सप्त पातालों
र्ें से एक |
तारा – नक्षर, आँख की पुतली, िे िी-वििेष, बाशल की पत्नी, बहृ स्पनत की पत्नी |
तत्व – र्ल
ू , यथाथण, सार, पंिित
ू , ब्रम्हा |
तात – वपता, पूज्य, धारा, र्र्ण, बड़ा, िुरु, िाई, शर्र |
ताप – ज्िर, आंि, कष्ट, र्ानशसक कष्ट, तीन प्रकार के ताप आध्याक्त्र्क, अगधिैदिक,
अगधिौनतक, उष्णाता |
ततलक – टीका, राज्याशिषेक, एक िहना, श्रेष्ठ व्यक्तत, घोड़े की एक वििेष जानत, ग्रंथ की
व्याख्या |
दण्ड – डण्डा, सजा, सर्य का वििेि, यर्, अस्र, बांस की वििेष लकड़ी क्जसे िण्डी स्िार्ी
ग्रहण करते हैं |
ध्रव
ु – क्स्थर, ननक्श्ित, पिणत, राजा उिानपाि का पुर |
नेपथ्य – िेििष
ू ा, सजािट, रं िर्ंि का वपछला िाि |
पेशी – र्क
ु िर्े की सन
ु िाई, पेि होने की अिस्था, िरीर का पट्
ु ठा, तलिार की म्यान |
पर – पंख, ऊपर, िस
ू रा, ककन्तु, पराया |
भत
ू – प्रेत, िरीर के पंििूत, बीता काल |
मंडल – िि
ृ , सय
ू -ण िन्द्रर्ा का घेरा, िख
ू ण्ड, ितकर |
मल
ू – जड़, कंि, आरम्ि, पंजी, नींि, र्ुख्य |
मर्द्
ु ा – शसतका, र्ोहर, अँिठ
ू ी, छापा, गिन्ह, आकृनत |
रतत – लाल, खन
ू , केसर, लाल िंिन |
लाल – बेटा, छोटा, वप्रय बालक, श्रीकृष्ण, लाड़-प्यार, िाह, रततिणण, बहुत कुद्ध |
वणथ – अक्षर, रं ि, जानत, िब्ि, सोना, रूप, िातुिण्ण यं (ब्राह्र्ण, क्षत्ररय, िैश्य, िुद्र) |
ववधि – कानन
ू , िानय, ब्रह्र्ा, अक्नन, सर्य, विष्ण,ु यक्ु तत, व्यिस्था, तरीका, विधाता |
वत्त
ृ – िोल घेरा, िि
ृ ांत, िररर, िणणणक छन्ि |
शद्
ु ि – पविर, स्िच्छ, साफ, ठीक, खाशलस |
संस्कार – पररिोध, सफाई, धाशर्णक कृत्य, आिार-व्यिहार, र्न पर पड़ने िाले प्रिाि |
सव
ु णथ - सुनहरा ,अच्छे िणण का सोना I
सत्र
ू - सूत , जनेऊ, पता, संक्षक्षप्त िातय, संकेत I
सरू - अंधा, सय
ू ,ण िीर, सरू िास I
हरर - विष्णु ,इंद्र, सपण, सूय,ण घोड़ा, िाँि, ककरण, हं स, आि, हाथी I