You are on page 1of 37

तुलसीदास

श्रीरामचिरतमानस एवं िवनय पि का जैसे


महाका य के रचियता

गो वामी तुलसीदास (1511 - 1623) िहंदी


सािह य के महान किव थे। इनका ज म सोर
ं (एटा) उ र
शूकर े , वतमान म कासगज
देश म आ था। कुछ िव ान् आपका ज म
राजापुर िजला ब दा(वतमान म िच कूट) म
आ मानते ह। इ ह आिद का य रामायण के
रचियता महिष वा मीिक का अवतार भी माना
जाता है । ीरामचिरतमानस का कथानक
रामायण से िलया गया है । रामचिरतमानस
लोक थ है और इसे उ र भारत म बड़े
भि भाव से पढ़ा जाता है । इसके बाद िवनय
पि का उनका एक अ य मह वपूण का य है ।
महाका य ीरामचिरतमानस को िव के १००
सव े ठ लोकि य का य म ४६व थान िदया
गया।[2]
तुलसीदास

क च म दर, तुलसी पीठ (िच कूट) म ित ठत


गो वामी तुलसीदास की ितमा

जम रामबोला
1511 ई० (स वत्- 1568
िव०)[1]

सोर शूकर े , कासगज
, उ र देश, भारत

मृ यु 1623 ई० (संवत 1680


िव०)
वाराणसी

गु /िश क नरहिरदास

दशन वै णव

िखताब/स मान गो वामी,

ि ीि ि
अिभनववा मीिक, इ यािद

सािह यक काय रामचिरतमानस,


िवनयपि का, दोहावली,
किवतावली, हनुमान
चालीसा, वैरा य स दीपनी,
ं ल, पावती
जानकी मग
ं ल, इ यािद
मग

कथन सीयराममय सब जग
जानी।
करउँ नाम जोिर जुग
पानी ॥
(रामचिरतमानस १.८.२)

धम िह द ू

दशन वै णव
गो वामी ी तुलसी दास जी

जम
अिधक श िव ान तुलसीदास का ज म थान
राजापुर को मानने के प म ह। य िप कुछ इसे
सोर शूकर े भी मानते ह। राजापुर उ र
ं गत
देश के िच कूट िजला के अत थत एक
ु े नाम के एक
ग व है । वह आ माराम दब
ित ठत सरयूपारीण ा ण रहते थे। उनकी
धमप नी का नाम लसी था। संवत् १५११ के
ावण मास के शु लप की स तमी ितिथ के
िदन अभु मूल न म इ ह द पित के यह
तुलसीदास का ज म आ। चिलत जन ुित
के अनुसार िशशु बारह महीने तक म के गभ म
रहने के कारण अ यिधक ट पु ट था और
उसके मुख म द त िदखायी दे रहे थे। ज म लेने
के साथ ही उसने राम नाम का उ चारण िकया
िजससे उसका नाम रामबोला पड़ गया। उनके
ज म के दस
ू रे ही िदन म का िनधन हो गया।
िपता ने िकसी और अिन ट से बचने के िलये
बालक को चुिनय नाम की एक दासी को स प
िदया और वयं िवर हो गये। जब रामबोला
साढे प च वष का आ तो चुिनय भी नह रही।
वह गली-गली भटकता आ अनाथ की तरह
जीवन जीने को िववश हो गया।

बचपन
भगवान शंकरजी की र
े णा से रामशैल पर
रहनेवाले ी अन तान द जी के ि य िश य
ीनरहय न द जी (नरहिर बाबा) ने इस
रामबोला के नाम से ब चिचत हो चुके इस
बालक को ढूँ ढ िनकाला और िविधवत उसका
नाम तुलसीराम रखा। तदप
ु रा त वे उसे
अयो या (उ र देश) ले गये और वह संवत्
ं मी (शु वार) को उसका
१५६१ माघ शु ला पच
य ोपवीत-सं कार स प न कराया। सं कार के
समय भी िबना िसखाये ही बालक रामबोला ने
गाय ी-म का प ठ उ चारण िकया, िजसे
देखकर सब लोग चिकत हो गये। इसके बाद
नरहिर बाबा ने वै णव के प च सं कार करके
बालक को राम-म की दी ा दी और अयो या
म ही रहकर उसे िव ा ययन कराया। बालक
रामबोला की बुि बड़ी खर थी। वह एक ही
बार म गु -मुख से जो सुन लेता, उसे वह
कंठ थ हो जाता। वह से कुछ काल के बाद
गु -िश य दोन शूकर े (सोर ) प ँच।े वह
नरहिर बाबा ने बालक को राम-कथा सुनायी
िक तु वह उसे भली-भ ित समझ न आयी।

ये ठ शु ल योदशी, गु वार, संवत् १५८३


को २९ वष की आयु म राजापुर से थोडी ही दरू
यमुना के उस पार थत एक ग व की अित
सु दरी भार ाज गो की क या र नावली के
साथ उनका िववाह आ। चूँिक गौना नह आ
था अत: कुछ समय के िलये वे काशी चले गये
और वह शेषसनातन जी के पास रहकर वेद-
वेद ग के अ ययन म जुट गये। वह रहते ए
अचानक एक िदन उ ह अपनी प नी की याद
आयी और वे याकुल होने लगे। जब नह रहा
गया तो गु जी से आ ा लेकर वे अपनी
ज मभूिम राजापुर लौट आये। प नी र नावली
चूँिक मायके म ही थी य िक तब तक उनका
गौना नह आ था अत: तुलसीराम ने भयंकर
े ी रात म उफनती यमुना नदी तै रकर पार
अँधर
की और सीधे अपनी प नी के शयन-क म जा
प ँच।े र नावली इतनी रात गये अपने पित को
अकेले आया देख कर आ चयचिकत हो गयी।
उसने लोक-ल जा के भय से जब उ ह चुपचाप
वापस जाने को कहा तो वे उससे उसी समय घर
चलने का आ ह करने लगे। उनकी इस
अ यािशत िजद से खीझकर र नावली ने
वरिचत एक दोहे के मा यम से जो िश ा उ ह
दी उसने ही तुलसीराम को तुलसीदास बना
िदया। र नावली ने जो दोहा कहा था वह इस
कार है :

अ थ चम मय देह यह, ता स ऐसी ीित !


नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?
यह दोहा सुनते ही उ ह ने उसी समय प नी को
वह उसके िपता के घर छोड़ िदया और वापस
अपने ग व राजापुर लौट गये। राजापुर म अपने
घर जाकर जब उ ह यह पता चला िक उनकी
अनुप थित म उनके िपता भी नह रहे और
पूरा घर न ट हो चुका है तो उ ह और भी
अिधक क ट आ। उ ह ने िविध-िवधान पूवक
अपने िपता जी का ा िकया और ग व म ही
रहकर लोग को भगवान राम की कथा सुनाने
लगे।

भगवान ी राम जी से भट
कुछ काल राजापुर रहने के बाद वे पुन: काशी
चले गये और वह की जनता को राम-कथा
सुनाने लगे। कथा के दौरान उ ह एक िदन
मनु य के वेष म एक त
े िमला, िजसने उ ह
हनुमान जी का पता बतलाया। हनुमान जी से
िमलकर तुलसीदास ने उनसे ीरघुनाथजी का
दशन कराने की ाथना की। हनुमान्जी ने
कहा- "तु ह िच कूट म रघुनाथजी दशन ह ग।"
इस पर तुलसीदास जी िच कूट की ओर चल
पड़े ।

िच कूट प ँच कर उ ह ने रामघाट पर अपना


आसन जमाया। एक िदन वे दि णा करने
िनकले ही थे िक यकायक माग म उ ह ीराम
के दशन ए। उ ह ने देखा िक दो बड़े ही सु दर
राजकुमार घोड़ पर सवार होकर धनुष-बाण
िलये जा रहे ह। तुलसीदास उ ह देखकर
आकिषत तो ए, पर तु उ ह पहचान न सके।
तभी पीछे से हनुमान्जी ने आकर जब उ ह
सारा भेद बताया तो वे प चाताप करने लगे।
इस पर हनुमान्जी ने उ ह सा वना दी और
कहा ातःकाल िफर दशन ह गे।

संवत् १६०७ की मौनी अमाव या को बुधवार


के िदन उनके सामने भगवान ीराम|भगवान
ी राम जी पुनः कट ए। उ ह ने बालक प
म आकर तुलसीदास से कहा-"बाबा! हम च दन
चािहये या आप हम च दन दे सकते ह?"
हनुमान जी ने सोचा, कह वे इस बार भी धोखा
न खा जाय, इसिलये उ ह ने तोते का प धारण
करके यह दोहा कहा:

िच कूट के घाट पर, भइ स तन की भीर।


तुलिसदास च दन िघस, ितलक देत रघुबीर॥

तुलसीदास भगवान ी राम जी की उस


अ भुत छिव को िनहार कर अपने शरीर की
सुध-बुध ही भूल गये। अ ततोग वा भगवान ने
वयं अपने हाथ से च दन लेकर अपने तथा
तुलसीदास जी के म तक पर लगाया और
अ त य न हो गये।

सं कृत म प -रचना
संवत् १६२८ म वह हनुमान जी की आ ा लेकर
अयो या की ओर चल पड़े । उन िदन याग म
माघ मेला लगा आ था। वे वह कुछ िदन के
िलये ठहर गये। पव के छः िदन बाद एक वटवृ
के नीचे उ ह भार ाज और या व य मुिन के
दशन ए। वह उस समय वही कथा हो रही
थी, जो उ होने सूकर े म अपने गु से सुनी
थी। माघ मेला समा त होते ही तुलसीदास जी
याग से पुन: वापस काशी आ गये और वह के
लादघाट पर एक ा ण के घर िनवास
िकया। वह रहते ए उनके अ दर किव व-
शि का फुरण आ और वे सं कृत म प -
रचना करने लगे। पर तु िदन म वे िजतने प
रचते, राि म वे सब लु त हो जाते। यह घटना
रोज घटती। आठव िदन तुलसीदास जी को
व न आ। भगवान शंकर ने उ ह आदेश िदया
िक तुम अपनी भाषा म का य रचना करो।
तुलसीदास जी की न द उचट गयी। वे उठकर
बैठ गये। उसी समय भगवान िशव और पावती
उनके सामने कट ए। तुलसीदास जी ने उ ह
सा ट ग णाम िकया। इस पर स न होकर
िशव जी ने कहा- "तुम अयो या म जाकर रहो
और िह दी म का य-रचना करो। मेरे आशीव द
से तु हारी किवता सामवेद के समान फलवती
होगी।" इतना कहकर गौरीशंकर अ तध न हो
गये। तुलसीदास जी उनकी आ ा िशरोधाय
कर काशी से सीधे अयो या चले गये।
रामचिरतमानस की रचना
संवत् १६३१ का ार भ आ। दैवयोग से उस
वष रामनवमी के िदन वैसा ही योग आया जैसा
े ायुग म राम-ज म के िदन था। उस िदन

ातःकाल तुलसीदास जी ने ीरामचिरतमानस
की रचना ार भ की। दो वष, सात महीने और
बीस िदन म यह अ भुत थ स प न आ।
संवत् १६३३ के मागशीष शु लप म राम-
िववाह के िदन सात का ड पूण हो गये।

तुलसीदास पर भारत सरकार ारा जारी डाक िटकट


इसके बाद भगवान की आ ा से तुलसीदास जी
काशी चले आये। वह उ ह ने भगवान्
िव नाथ और माता अ नपूण को
ीरामचिरतमानस सुनाया। रात को पु तक
िव नाथ-म दर म रख दी गयी। ात:काल जब
म दर के पट खोले गये तो पु तक पर िलखा
आ पाया गया-स यं िशवं सु दरम् िजसके नीचे
भगवान् शंकर की सही (पु ट) थी। उस समय
वह उप थत लोग ने "स यं िशवं सु दरम्" की
आवाज भी कान से सुनी।

इधर काशी के प डत को जब यह बात पता


चली तो उनके मन म ई य उ प न ई। वे दल
बनाकर तुलसीदास जी की िन दा और उस
पु तक को न ट करने का य न करने लगे।
उ ह ने पु तक चुराने के िलये दो चोर भी भेज।े
चोर ने जाकर देखा िक तुलसीदास जी की कुटी
के आसपास दो युवक धनुषबाण िलये पहरा दे
रहे ह। दोन युवक बड़े ही सु दर मश: याम
और गौर वण के थे। उनके दशन करते ही चोर
की बुि शु हो गयी। उ ह ने उसी समय से
चोरी करना छोड़ िदया और भगवान के भजन
म लग गये। तुलसीदास जी ने अपने िलये
भगवान् को क ट आ जान कुटी का सारा
समान लुटा िदया और पु तक अपने िम
टोडरमल (अकबर के नौर न म एक) के यह
रखवा दी। इसके बाद उ ह ने अपनी िवल ण
मरण शि ू री ित िलखी। उसी के
से एक दस
आधार पर दस
ू री ितिलिपय तै यार की गय
और पु तक का चार िदन -िदन बढ़ने लगा।

इधर काशी के प डत ने और कोई उपाय न


देख ू न सर वती नाम के महाप डत
ी मधुसद
को उस पु तक को देखकर अपनी स मित देने
की ाथना की। मधुसद
ू न सर वती जी ने उसे
देखकर बड़ी स नता कट की और उस पर
अपनी ओर से यह िट पणी िलख दी-

आन दकानने ं ग
ा मज ं म तुलसीत ः।
ं री भाित राम मरभूिषता॥
किवतामज

इसका िह दी म अथ इस कार है -"काशी के


आन द-वन म तुलसीदास सा ात् चलता-
ं री
िफरता तुलसी का पौधा है । उसकी का य-मज
बड़ी ही मनोहर है , िजस पर ीराम पी भँवरा
सदा मँडराता रहता है ।"

प डत को उनकी इस िट पणी पर भी संतोष


नह आ। तब पु तक की परी ा का एक अ य
उपाय सोचा गया। काशी के िव नाथ-म दर म
भगवान् िव नाथ के सामने सबसे ऊपर वेद,
उनके नीचे शा , शा के नीचे पुराण और
सबके नीचे रामचिरतमानस रख िदया गया।
ातःकाल जब म दर खोला गया तो लोग ने
देखा िक ीरामचिरतमानस वेद के ऊपर रखा
आ है । अब तो सभी प डत बड़े ल जत
ए। उ ह ने तुलसीदास जी से मा म गी और
भि -भाव से उनका चरणोदक िलया।

मृ यु
तुलसीदास जी जब काशी के िव यात् घाट
असीघाट पर रहने लगे तो एक रात किलयुग
मूत प धारण कर उनके पास आया और उ ह
पीड़ा प ँचाने लगा। तुलसीदास जी ने उसी
समय हनुमान जी का यान िकया। हनुमान जी
ने सा ात् कट होकर उ ह ाथना के पद
रचने को कहा, इसके प चात् उ ह ने अपनी
अ तम कृित िवनय-पि का िलखी और उसे
भगवान के चरण म समिपत कर िदया। ीराम
जी ने उस पर वयं अपने ह ता र कर िदये
और तुलसीदास जी को िनभय कर िदया।

संवत् १६८० म ावण कृ ण तृतीया शिनवार


को तुलसीदास जी ने "राम-राम" कहते ए
अपना शरीर पिर याग िकया।

तुलसी- तवन
तुलसीदास जी की ह तिलिप अ यिधक सु दर
थी लगता है जैसे उस युग म उ ह ने कैलो ाफी
की कला आती थी। उनके ज म- थान राजापुर
के एक म दर म ीरामचिरतमानस के
अयो याका ड की एक ित सुरि त रखी ई
है । उसी ित के साथ रखे ए एक किव
मदनलाल वम ' ा त' की ह तिलिप म तुलसी
के यि व व कृित व को रेख िकत करते ए
िन निलिखत दो छ द भी उ लेखनीय ह िज ह
िह दी अकादमी िद ली की पि का इ थ
भारती ने सव थम कािशत िकया था। इनम
पहला छ द िसंहावलोकन है िजसकी िवशेषता
यह है िक येक चरण िजस श द से समा त
होता है उससे आगे का उसी से ार भ होता है ।
थम व अ तम श द भी एक ही रहता है ।
का यशा म इसे अ भुत छ द कहा गया है ।
यही छ द एक अ य पि का सािह यपिर मा के
तुलसी जय ती िवशेष क म भी कािशत ए थे
वह से उ त
ृ िकये गये ह

तुलसी ने मानस िलखा था जब जाित-प ित-


स दाय-ताप से धरम-धरा झल
ु सी।
ु सी धरा के तृण-संकुल पे मानस की पावसी-
झल
फुहार से हरीितमा-सी लसी।
लसी िहये म हिर-नाम की कथा अन त स त
के समागम से फूली-फली कुल-सी।
कुल-सी लसी जो ीित राम के चिर म तो राम-
रस जग को चखाय गये तुलसी।
आ मा थी राम की िपता म सो ताप-पु ज आप
प गभ म समाय गये तुलसी।
ज मते ही राम-नाम मुख से उचािर िनज नाम
रामबोला रखवाय गये तुलसी।
र नावली-सी अ ािगनी स सीख पाय राम स
गाढ ीित पाय गये तुलसी।
मानस म राम के चिर की कथा सुनाय राम-
रस जग को चखाय गये तुलसी।

तुलसीदास की रचनाएँ
अपने १२६ वष के दीघ जीवन-काल म
तुलसीदास ने काल मानुसार िन निलिखत
कालजयी थ की रचनाएँ क -
रामललानहछू , वैरा यसंदीपनी, रामा ा न,
ं ल, रामचिरतमानस, सतसई,
जानकी-मग
ं ल, गीतावली, िवनय-पि का,
पावती-मग
कृ ण-गीतावली, बरवै रामायण, दोहावली
और किवतावली।

इनम से रामचिरतमानस, िवनय-पि का,


किवतावली, गीतावली जैसी कृितय के िवषय म
िकसी किव की यह आषवाणी सटीक तीत
होती है - प य देव य का यं, न मृणोित न
जीयित। अथ त देवपु ष का का य देिखये जो
न मरता न पुराना होता है ।

लगभग चार सौ वष पूव तुलसीदास जी ने


अपनी कृितय की रचना की थी। आधुिनक
काशन-सुिवधाओ ं से रिहत उस काल म भी
तुलसीदास का का य जन-जन तक प ँच चुका
था। यह उनके किव प म लोकि य होने का
य माण है । मानस जैसे वृह थ को
क ठ थ करके सामा य पढ़े िलखे लोग भी
अपनी शुिचता एवं ान के िलए िस होने
लगे थे।

रामचिरतमानस तुलसीदास जी का सव िधक


लोकि य थ रहा है । उ ह ने अपनी रचनाओ ं
के स ब ध म कह कोई उ लेख नह िकया है ,
इसिलए ामािणक रचनाओ ं के स ब ध म
अ त:सा य का अभाव िदखायी देता है । नागरी
चािरणी सभा काशी ारा कािशत थ इस
कार ह :
रामचिरतमानस
रामललानहछू
वैरा य-संदीपनी
बरवै रामायण
ं ल
पावती-मग
ं ल
जानकी-मग
रामा ा न
दोहावली
किवतावली
गीतावली
ीकृ ण-गीतावली
िवनय-पि का
सतसई
छंदावली रामायण
कुंडिलया रामायण
राम शलाका
संकट मोचन
करखा रामायण
रोला रामायण
झल
ू ना
छ पय रामायण
किव रामायण
किलधम धम िन पण
हनुमान चालीसा


'एनसाइ लोपीिडया ऑफ िरलीजन एड
एिथ स' म ि यसन ने भी उपरो थम बारह
थ का उ लेख िकया है ।

कुछ ंथ का संि त िववरण

रामललानहछू
यह सं कार गीत है । इस गीत म कितपय
उ लेख राम-िववाह की कथा से िभ न ह।

गोद िलह कौश या बैिठ रामिहं वर हो।


ू ह राम सीस, पर आंचर हो।।
सोिभत दल
वैरा य संदीपनी

वैरा य संदीपनी को माता साद गु त ने


अ ामािणक माना है , पर आचाय चं वली प डे
इसे ामािणक और तुलसी की आरंिभक रचना
मानते ह। कुछ और ाचीन ितय के उपल ध
होने से ठोस माण िमल सकते ह। संत मिहमा
वणन का पहला सोरठा पेश है -

को बरनै मुख एक, तुलसी मिहमा संत।


िज हके िवमल िववेक, सेष महेस न किह
सकत।।
बरवै रामायण

िव ान ने इसे तुलसी की रचना घोिषत िकया


है । शैली की द ृ ट से यह तुलसीदास की
ामािणक रचना है । इसकी खिं डत ित ही
ंथावली म संपािदत है ।

ं ल
पावती-मग

यह तुलसी की ामािणक रचना तीत होती है ।


इसकी का या मक ौढ़ता तुलसी िस त के
अनुकूल है । किवता सरल, सुबोध रोचक और
सरस है । ""जगत मातु िपतु संभु भवानी"" की
ं ािरक चे टाओ ं का तिनक भी पुट नह है ।
ृग
लोक रीित इतनी यथा थित से िचि त ई है
िक यह सं कृत के िशव का य से कम भािवत
है और तुलसी की मित की भ या मक भूिमका
पर िवरिचत कथा का य है । यवहार की
सु ठु ता, म
े की अन यता और वैवािहक
काय म की सरसता को बड़ी सावधानी से
किव ने अिं कत िकया है । तुलसीदास अपनी इस
रचना से अ य त संतु ट थे, इसीिलए इस
अनास भ ने केवल एक बार अपनी मित
की सराहना की है -


े पाट पटडोिर गौिर-हर-गुन मिन।
ं ल हार रचेउ किव मित मृगलोचिन।।
मग
ं ल
जानकी-मग

िव ान ने इसे तुलसीदास की ामािणक


रचनाओ ं म थान िदया है । पर इसम भी ेपक
है ।

ं िमले भृगन
पथ ु ाथ हाथ फरसा िलए।
ड टिह आँिख देखाइ कोप दा न िकए।।
राम की ह पिरतोष रोस िरस पिरहिर।
चले स िप सारंग सुफल लोचन किर।।
रघुबर भुजबल देख उछाह बराित ह।
मुिदत राउ लिख स मुख िविध सब
भ ित ह।।

तुलसी के मानस के पूव वा मीकीय रामायण की


कथा ही लोक चिलत थी। काशी के पिं डत से
मानस को लेकर तुलसीदास का मतभेद और
मानस की ित पर िव नाथ का ह ता र
संबंधी जन ुित िस है ।

रामा ा न

यह योितष शा ीय प ित का ंथ है । दोह ,
स तक और सग म िवभ यह ंथ रामकथा
ं ल एवं अमग
के िविवध मग ं लमय संग की
िमि त रचना है । का य की द ृ ट से इस ंथ का
मह व नग य है । सभी इसे तुलसीकृत मानते
ं ला का अभाव है और
ह। इसम कथा- ृख
वा मीकीय रामायण के संग का अनुवाद
अनेक दोह म है ।

दोहावली

दोहावली म अिधक श दोहे मानस के ह। किव


ने चातक के याज से दोह की एक लंबी ं ला
ृख
िलखकर भि और म
े की या या की है ।
दोहावली दोहा संकलन है । मानस के भी कुछ
कथा िनरपे दोह को इसम थान है । संभव है
कुछ दोहे इसम भी ि त ह , पर रचना की
अ ामािणकता असंिद ध है ।

किवतावली

किवतावली तुलसीदास की रचना है , पर सभा


सं करण अथवा अ य सं करण म कािशत
यह रचना पूरी नह तीत होती है । किवतावली
एक बंध रचना है । कथानक म अ ासंिगकता
एवं िशिथलता तुलसी की कला का कलंक कहा
जायेगा।

गीतावली

गीतावली म गीत का आधार िविवध क ड का


रामचिरत ही रहा है । यह ंथ रामचिरतमानस
की तरह यापक जनस पक म कम गया तीत
होता है । इसिलए इन गीत म पिरवतन-
पिरव न द ृ टगत नह होता है । गीतावली म
गीत के कथा - संदभ तुलसी की मित के
अनु प ह। इस द ृ ट से गीतावली का एक गीत
िलया जा सकता है -

कैकेयी जौ ल िजयत रही।


तौ ल बात मातु स मुह भिर भरत न भूिल
कही।।
ँ न
मानी राम अिधक जननी ते जनिन गस
गही।
सीय लखन िरपुदवन राम- ख लिख सबकी
िनबही।।
लोक-बेद-मरजाद दोष गुन गित िचत चखन
चही।
तुलसी भरत समुिझ सुिन राखी राम सनेह
सही।।

इसम भरत और राम के शील का उ कष


तुलसीदास ने य िकया है । गीतावली के
उ रक ड म मानस की कथा से अिधक
िव तार है । इसम सीता का वा मीिक आ म म
भेजा जाना विणत है । इस पिर याग का
औिच य िनदश इन पिं य म िमलता है -
भोग पुिन िपतु-आयु को, सोउ िकए बनै
बनाउ।
पिरहरे िबनु जानकी नह और अनघ
उपाउ।।
पािलबे अिसधार- त ि य म
े -पाल सुभाउ।
होइ िहत केिह भ ित, िनत सुिवचा निहं िचत
चाउ।।
ीकृ ण गीतावली

ीकृ ण गीतावली भी गो वामीजी की रचना है ।


ीकृ ण-कथा के कितपय करण गीत के
िवषय ह।

हनुमानबा क

यह गो वामी जी की हनुमत-भि संबंधी रचना


है । पर यह एक वतं रचना है । इसके सभी

अश ामािणक तीत होते ह।
तुलसीदास को राम यारे थे, राम की कथा
यारी थी, राम का प यारा था और राम का
व प यारा था। उनकी बुि , राग, क पना
और भावुकता पर राम की मय दा और लीला
का आिधप य था। उनक आंख म राम की छिव
बसती थी। सब कुछ राम की पावन लीला म
य आ है जो रामका य की पर परा की
उ चतम उपल ध है । िनिद ट ंथ म इसका
एक रस ितिबंब है ।

इ ह भी देख
भि काल
भ किवय की सूची
िहंदी सािह य
माता साद गु त

स दभ
1. अिवनाशराय भ ट ारा रिचत "तुलसी
काश"
2. "Top 100 famous epics of the World"
[िव के १०० सव े ठ िस का य] (अं ज़
े ी
म). अिभगमन ितिथ 15 िदस बर 2013.

बाहरी किड़य
वग रोहण - संपण
ू रामचिरतमानस, मुख
पा के संदभ, MP3 ओिडयो तथा PDF
डाउनलोड
रामचिरतमानस (िह दी अथ के साथ)
तुलसीदास की रचनाएं
किवतावली का मूल पाठ (िवकी ोत पर)
दोहावली का मूल पाठ (िवकी ोत पर)
िवनयपि का (िवकी ोत पर)
संकटमोचन हनुमाना टक (िवकी ोत पर)
हनुमान बा क :िह दी भावाथ सिहत
हनुमान चालीसा (िवकी ोत पर)
तुलसी सुभािषत - िह दी के िविक_सूि
(िविकको ) पर
मानस सुभािषत - िह दी के िविक_सूि
(िविकको ) पर
तुलसी का य म सािह यक अिभ ाय (गूगल
पु तक ; लेखक - जनादन उपा याय)

"https://hi.wikipedia.org/w/index.php?
title=तुलसीदास&oldid=4008273" से िलया गया

Last edited 11 days ago by SM7Bot

साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से


उ लेख ना िकया गया हो।

You might also like