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तुलसीदास PDF
तुलसीदास PDF
जम रामबोला
1511 ई० (स वत्- 1568
िव०)[1]
ं
सोर शूकर े , कासगज
, उ र देश, भारत
गु /िश क नरहिरदास
दशन वै णव
ि ीि ि
अिभनववा मीिक, इ यािद
कथन सीयराममय सब जग
जानी।
करउँ नाम जोिर जुग
पानी ॥
(रामचिरतमानस १.८.२)
धम िह द ू
दशन वै णव
गो वामी ी तुलसी दास जी
जम
अिधक श िव ान तुलसीदास का ज म थान
राजापुर को मानने के प म ह। य िप कुछ इसे
सोर शूकर े भी मानते ह। राजापुर उ र
ं गत
देश के िच कूट िजला के अत थत एक
ु े नाम के एक
ग व है । वह आ माराम दब
ित ठत सरयूपारीण ा ण रहते थे। उनकी
धमप नी का नाम लसी था। संवत् १५११ के
ावण मास के शु लप की स तमी ितिथ के
िदन अभु मूल न म इ ह द पित के यह
तुलसीदास का ज म आ। चिलत जन ुित
के अनुसार िशशु बारह महीने तक म के गभ म
रहने के कारण अ यिधक ट पु ट था और
उसके मुख म द त िदखायी दे रहे थे। ज म लेने
के साथ ही उसने राम नाम का उ चारण िकया
िजससे उसका नाम रामबोला पड़ गया। उनके
ज म के दस
ू रे ही िदन म का िनधन हो गया।
िपता ने िकसी और अिन ट से बचने के िलये
बालक को चुिनय नाम की एक दासी को स प
िदया और वयं िवर हो गये। जब रामबोला
साढे प च वष का आ तो चुिनय भी नह रही।
वह गली-गली भटकता आ अनाथ की तरह
जीवन जीने को िववश हो गया।
बचपन
भगवान शंकरजी की र
े णा से रामशैल पर
रहनेवाले ी अन तान द जी के ि य िश य
ीनरहय न द जी (नरहिर बाबा) ने इस
रामबोला के नाम से ब चिचत हो चुके इस
बालक को ढूँ ढ िनकाला और िविधवत उसका
नाम तुलसीराम रखा। तदप
ु रा त वे उसे
अयो या (उ र देश) ले गये और वह संवत्
ं मी (शु वार) को उसका
१५६१ माघ शु ला पच
य ोपवीत-सं कार स प न कराया। सं कार के
समय भी िबना िसखाये ही बालक रामबोला ने
गाय ी-म का प ठ उ चारण िकया, िजसे
देखकर सब लोग चिकत हो गये। इसके बाद
नरहिर बाबा ने वै णव के प च सं कार करके
बालक को राम-म की दी ा दी और अयो या
म ही रहकर उसे िव ा ययन कराया। बालक
रामबोला की बुि बड़ी खर थी। वह एक ही
बार म गु -मुख से जो सुन लेता, उसे वह
कंठ थ हो जाता। वह से कुछ काल के बाद
गु -िश य दोन शूकर े (सोर ) प ँच।े वह
नरहिर बाबा ने बालक को राम-कथा सुनायी
िक तु वह उसे भली-भ ित समझ न आयी।
भगवान ी राम जी से भट
कुछ काल राजापुर रहने के बाद वे पुन: काशी
चले गये और वह की जनता को राम-कथा
सुनाने लगे। कथा के दौरान उ ह एक िदन
मनु य के वेष म एक त
े िमला, िजसने उ ह
हनुमान जी का पता बतलाया। हनुमान जी से
िमलकर तुलसीदास ने उनसे ीरघुनाथजी का
दशन कराने की ाथना की। हनुमान्जी ने
कहा- "तु ह िच कूट म रघुनाथजी दशन ह ग।"
इस पर तुलसीदास जी िच कूट की ओर चल
पड़े ।
सं कृत म प -रचना
संवत् १६२८ म वह हनुमान जी की आ ा लेकर
अयो या की ओर चल पड़े । उन िदन याग म
माघ मेला लगा आ था। वे वह कुछ िदन के
िलये ठहर गये। पव के छः िदन बाद एक वटवृ
के नीचे उ ह भार ाज और या व य मुिन के
दशन ए। वह उस समय वही कथा हो रही
थी, जो उ होने सूकर े म अपने गु से सुनी
थी। माघ मेला समा त होते ही तुलसीदास जी
याग से पुन: वापस काशी आ गये और वह के
लादघाट पर एक ा ण के घर िनवास
िकया। वह रहते ए उनके अ दर किव व-
शि का फुरण आ और वे सं कृत म प -
रचना करने लगे। पर तु िदन म वे िजतने प
रचते, राि म वे सब लु त हो जाते। यह घटना
रोज घटती। आठव िदन तुलसीदास जी को
व न आ। भगवान शंकर ने उ ह आदेश िदया
िक तुम अपनी भाषा म का य रचना करो।
तुलसीदास जी की न द उचट गयी। वे उठकर
बैठ गये। उसी समय भगवान िशव और पावती
उनके सामने कट ए। तुलसीदास जी ने उ ह
सा ट ग णाम िकया। इस पर स न होकर
िशव जी ने कहा- "तुम अयो या म जाकर रहो
और िह दी म का य-रचना करो। मेरे आशीव द
से तु हारी किवता सामवेद के समान फलवती
होगी।" इतना कहकर गौरीशंकर अ तध न हो
गये। तुलसीदास जी उनकी आ ा िशरोधाय
कर काशी से सीधे अयो या चले गये।
रामचिरतमानस की रचना
संवत् १६३१ का ार भ आ। दैवयोग से उस
वष रामनवमी के िदन वैसा ही योग आया जैसा
े ायुग म राम-ज म के िदन था। उस िदन
त
ातःकाल तुलसीदास जी ने ीरामचिरतमानस
की रचना ार भ की। दो वष, सात महीने और
बीस िदन म यह अ भुत थ स प न आ।
संवत् १६३३ के मागशीष शु लप म राम-
िववाह के िदन सात का ड पूण हो गये।
आन दकानने ं ग
ा मज ं म तुलसीत ः।
ं री भाित राम मरभूिषता॥
किवतामज
मृ यु
तुलसीदास जी जब काशी के िव यात् घाट
असीघाट पर रहने लगे तो एक रात किलयुग
मूत प धारण कर उनके पास आया और उ ह
पीड़ा प ँचाने लगा। तुलसीदास जी ने उसी
समय हनुमान जी का यान िकया। हनुमान जी
ने सा ात् कट होकर उ ह ाथना के पद
रचने को कहा, इसके प चात् उ ह ने अपनी
अ तम कृित िवनय-पि का िलखी और उसे
भगवान के चरण म समिपत कर िदया। ीराम
जी ने उस पर वयं अपने ह ता र कर िदये
और तुलसीदास जी को िनभय कर िदया।
तुलसी- तवन
तुलसीदास जी की ह तिलिप अ यिधक सु दर
थी लगता है जैसे उस युग म उ ह ने कैलो ाफी
की कला आती थी। उनके ज म- थान राजापुर
के एक म दर म ीरामचिरतमानस के
अयो याका ड की एक ित सुरि त रखी ई
है । उसी ित के साथ रखे ए एक किव
मदनलाल वम ' ा त' की ह तिलिप म तुलसी
के यि व व कृित व को रेख िकत करते ए
िन निलिखत दो छ द भी उ लेखनीय ह िज ह
िह दी अकादमी िद ली की पि का इ थ
भारती ने सव थम कािशत िकया था। इनम
पहला छ द िसंहावलोकन है िजसकी िवशेषता
यह है िक येक चरण िजस श द से समा त
होता है उससे आगे का उसी से ार भ होता है ।
थम व अ तम श द भी एक ही रहता है ।
का यशा म इसे अ भुत छ द कहा गया है ।
यही छ द एक अ य पि का सािह यपिर मा के
तुलसी जय ती िवशेष क म भी कािशत ए थे
वह से उ त
ृ िकये गये ह
तुलसीदास की रचनाएँ
अपने १२६ वष के दीघ जीवन-काल म
तुलसीदास ने काल मानुसार िन निलिखत
कालजयी थ की रचनाएँ क -
रामललानहछू , वैरा यसंदीपनी, रामा ा न,
ं ल, रामचिरतमानस, सतसई,
जानकी-मग
ं ल, गीतावली, िवनय-पि का,
पावती-मग
कृ ण-गीतावली, बरवै रामायण, दोहावली
और किवतावली।
ं
'एनसाइ लोपीिडया ऑफ िरलीजन एड
एिथ स' म ि यसन ने भी उपरो थम बारह
थ का उ लेख िकया है ।
रामललानहछू
यह सं कार गीत है । इस गीत म कितपय
उ लेख राम-िववाह की कथा से िभ न ह।
ं ल
पावती-मग
म
े पाट पटडोिर गौिर-हर-गुन मिन।
ं ल हार रचेउ किव मित मृगलोचिन।।
मग
ं ल
जानकी-मग
ं िमले भृगन
पथ ु ाथ हाथ फरसा िलए।
ड टिह आँिख देखाइ कोप दा न िकए।।
राम की ह पिरतोष रोस िरस पिरहिर।
चले स िप सारंग सुफल लोचन किर।।
रघुबर भुजबल देख उछाह बराित ह।
मुिदत राउ लिख स मुख िविध सब
भ ित ह।।
रामा ा न
यह योितष शा ीय प ित का ंथ है । दोह ,
स तक और सग म िवभ यह ंथ रामकथा
ं ल एवं अमग
के िविवध मग ं लमय संग की
िमि त रचना है । का य की द ृ ट से इस ंथ का
मह व नग य है । सभी इसे तुलसीकृत मानते
ं ला का अभाव है और
ह। इसम कथा- ृख
वा मीकीय रामायण के संग का अनुवाद
अनेक दोह म है ।
दोहावली
किवतावली
गीतावली
हनुमानबा क
इ ह भी देख
भि काल
भ किवय की सूची
िहंदी सािह य
माता साद गु त
स दभ
1. अिवनाशराय भ ट ारा रिचत "तुलसी
काश"
2. "Top 100 famous epics of the World"
[िव के १०० सव े ठ िस का य] (अं ज़
े ी
म). अिभगमन ितिथ 15 िदस बर 2013.
बाहरी किड़य
वग रोहण - संपण
ू रामचिरतमानस, मुख
पा के संदभ, MP3 ओिडयो तथा PDF
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रामचिरतमानस (िह दी अथ के साथ)
तुलसीदास की रचनाएं
किवतावली का मूल पाठ (िवकी ोत पर)
दोहावली का मूल पाठ (िवकी ोत पर)
िवनयपि का (िवकी ोत पर)
संकटमोचन हनुमाना टक (िवकी ोत पर)
हनुमान बा क :िह दी भावाथ सिहत
हनुमान चालीसा (िवकी ोत पर)
तुलसी सुभािषत - िह दी के िविक_सूि
(िविकको ) पर
मानस सुभािषत - िह दी के िविक_सूि
(िविकको ) पर
तुलसी का य म सािह यक अिभ ाय (गूगल
पु तक ; लेखक - जनादन उपा याय)
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