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मानव तन ववज्ञान

भाग-1

मित्रों सु क्ष्म वे द का आकार नही और लखान भी नही है . सु क्ष्म वे द कर आकार यरगीओ दे ते है और सु क्ष्म वे द
का पढन भी यरगीओ करते है . सु क्ष्म वे द िे तीन प्रकार का मवज्ञान मदया है .
(1):- िानव तन मवज्ञान
(2):- प्रकृमत का मवज्ञान और
(3):- ब्राह्माजी, मवष्ुोंजी, और िहे शजी का मवज्ञान ईमसिेसे हि यहाों िानव तन के मवज्ञान की बात करें गे . वे द-
वे दाों न्त जर है वर स्थूळ जगत के िानव के मलए एक अभ्यास कहा है जर अभ्यास के िारफत से आप अनुोंसरण
करके अनुभव कर शकते है लेमकन आज वतत िान िे सिस्या ये है मक उनका अनुसरण करनेवाला अभ्यासुों
प्रेक्टीकली नहीवत हरने से वतत िान के िानव कर वे द-वे दाों न्त के अभ्यास कर अनुसरण करने िे बहुत िुशकील
बात बन गयी है और वर अभ्यास िे सब उलझ गये हैं
यहाों िैं आपकर एक ऐसा िानव तन मवज्ञान की बात करोंगा की वर िानव सीमि सादी सरल भाषा िे िानव कर
सिज आ जावे ऐसी तरीके से िैं िानव कर सिजाने की करमशश करता हुों . अगर ये िेरी बात मकमसकर सिजिे
आ गयी तर उनकी सारी झों झट िीट जाये गी ये िे दावे के साथ कहता हुों लेमकन िानव कर िेरी बात पढकर
सिजने की करमशश करके अिल करना पडे गा िेरी बात जर भी िानव पढकर बराबर सिजने की करमशश
करे गा तर वर िानव का आत्मा कल्याण जरर हर जाये गा उनका शरीर मनररगी बन जाये गा और वर िानव सु क्ष्म
जगत का द्वार खटखटाने लगे गा ईमसिे करईभी प्रकार की शोंका ित रखना िेरी बात जर भी िानव कर सिजने
िे आ गयी वर िानव कर वे द-वे दाों न्त के ज्ञान की भी जरररयात नही रहे गी आपरआप उनका सारा सों चय स्टे प
बाई स्टे प िीटता जाये गा लेमकन िेरी बात के शब्रों पर मवश्वास रखकर आगे बढना हरगा ईसके मबना कुछ भी
नही ों हर शकता ये सभी मचजर का िैने जात अनुभव करके दे ख मलया है तभी तर िैं आपकर िेरे अनुभव के
आिार से सीिा-सादा और सरल राह बता रहाों हुों ये राह पर करई िानव मवश्वास रखकर चलेगाों तर उनका
आत्मा कल्याण जरर हरगा ये िेरा आत्ममवश्वास से िे कहता हुों . ये िेरी बात सािान्य िानव नही सिज पाये गा
लेमकन जर िानव वे द-वे दाों न्त का या तर अन्य पुराणर का जीसने अभ्यास मकया है वर िानव कर बात िानव तन
मवज्ञान की बात जल्दी सिजिे आ जाये गी दु सरा िानव ये बात सिज नही पाये गा और मकमसभी िानव कर िेरी
बात गलत लगे तर िेरी परस्ट डीलेट कर दे ना.
िानव तन मवज्ञान िे कुल आठ प्रकार का मवज्ञान िे आपकर बतातुों .
(1):-प्रेकटीश
(2):-प्राण-अपान का मवज्ञान
(3):-ध्यान मवज्ञान
(4):- श्वास मिया का मवज्ञान
(5):- कुोंडमलनी का मवज्ञान
(6):- शब् मवज्ञान
(7):-उजात मवज्ञान और
(8):- सात प्रकार के शरीर का मवज्ञान
ये सात प्रकार के िानव तन मवज्ञान है जर िैने अनुभव करके वर अनुभव कर िानव कर मबना तकलीफ, मबना
सों चय, मबना अवररि से िानव कर कैसे सिजिे आये गा उनका मवचार करके िे िानव कर मसमि सादी और सरल
भाषा िे िानव कर प्रिाण के साथ िेरी बात सिजिे आ जावे ऐसा उदाहरण दे कर िे िानव के सािने बात
रखता हुों अब िानव तन मवज्ञान के दु सरे भाग िे प्रेक्टीश का मवज्ञान उदाहरण के साथ बात करोंगा और वर
उदाहरण ऐसा दुों गा की सभी िानव ने ये बात का अनुभव मकया है िानव तन मवज्ञान की सभी परस्ट जर िानव
ध्यान से सिजकर पढे गाों वर ही िानव कर आध्यात्मत्मक मवज्ञान सिज िे आये गा और जर सािान्य िानव हरगा वर
िानव ये बात पर नकारात्मक मटप्पणी मलखेगा.
सु क्ष्म वे द के तीन प्रकार का मवज्ञान है ईमसिे जर िानव तन मवज्ञान जीसकर सिजिे आ गया उनकर बाद िे
प्रकृमत मवज्ञान सिज िे आये गा और ये दरनर मवज्ञान जर भी िानव कर सिजिे आये गा उनकर ब्रह्माजी, मवष्ुोंजी
और िहे शजी का मवज्ञान सिज िे आ जाये गा लेमकन िेरे शब्रों का अिलीकरण करना पडे गा..... (ििश:)
भाग-2

प्रेक्टीश

जर भी िानव जन्म लेते है तब उनके पास करईभी प्रकार का ज्ञान नही हरता, िानव शरीर का मवज्ञान िे प्रेक्टीश
एक ऐसी चीज है मक वर प्रे क्टीश स्थूळ जगत के मलएभी हरती है और सु क्ष्म जगत के मलएभी प्रेक्टीश हरती है
दरनर जगत िे करईभी प्रकार की आपकर मसत्मधि चामहए हाों सल करनी है तर कुदरत ने वर मसत्मधि हाों सल करने के
मलए ये िानव शरीर िे प्रेक्टीश का िाध्यि रख मदया है सब प्रथि हि स्थूळ जगत की मसत्मधिओ की प्रेक्टीश .
बाप- की बात करें गे बालक जन्म लेकर थरडा बडा हरता है तर बालक के िा, बालक कर चालने की प्रेक्टीश
करवाते है बालक का दरनर हाथ जालकर उनकर चलवाते है तर बालक िीरे िीरे उनके शरीर का बे लेन्स कैसे -
िीरे प्रेक्टीश के िाध्यि से चलना शीख जाते है -रखना हैं वर उनकर सिजने िे आ जाता है और बालक िीरे
बाद िे वर बालक कर बरलने की प्रेक्टीश करवाते है , बे टा िम्मी बरल, बे टा िम्मी बरल ऐसा आप बालक कर
बरलने की प्रेक्टीश करवाने से बालक िम्मी िम्मी बरलने लगता है बादिे बालक कर खरराक ग्रहन करने की
प्रेक्टीश करवाने से बालक बाद िे खुद खाने लग जाता है , उसके बाद आप बालक कर स्कूल िे अक्षर पढाने के
मलए भे जते है तर वहाों बालक कर स्कूल िे प्रथि स्लेट िे झीरर का मचत् दरर दे ते हैं और टीचर बालक कर पुरे
मदन हाथिे पेन लेकर झीरर के मचत् के उपर प्रेक्टीश करवाते है तर बालक िीरे िीरे झीरर मलखना शीख जाये गा -
ईसी तरीके से वर बालक कर बाराखडी शीखने के मलए भी प्रेक्टीश करवाये गे तर वर बालक बाराखडी शीख जाते
है ऐसे वर बालक िे स्टे प बााई स्टे प सभी मचजे शीख ने के मलए टीचर प्रेक्टीश हरमदन करवाते है ईमसमलये वर
बालक मलखना, पढना, गमणत, ये सभी मचजे शीख जाते है लेमकन ये सभी मचजे शीखने के मलए वर बालक के पास
िाबाप ने और टीचर ने हरमदन प्रेक्टीश करवाते तभी वर बालक सभी प्रकार की चीजर शीख गया वर बा-लक
कर प्रेक्टीश के िाध्यि से अक्षर ज्ञान मिल गया वर बालक के मलए अक्षर ज्ञान की मलत्मधि मिल गयी आपकर
साईकल शीखनी है तर भी प्रेक्टीश कररगे तर ही साईकल शीख पावरगे आपकर िरटर साईकल अगर तर
फररव्हील शीखनी है तर भी आप उनकी चलाने की प्रेक्टीश कररगे तर ही शीख पावरगे आपकर करई िोंत् मसधि
करना है तर आप वर िोंत् कोंठस्थ करने की प्रेक्टीश कररगे तर ही िोंत् कोंठस्थ हर पाये गा आपकर जर भी स्थूळ
जगत की मसत्मधि हाों सल करनी है वर मसत्मधि के मलए आप प्रेक्टीश कररगे तर ही आपकर मसत्मधि मिल शकेगी नही
तर करईभी प्रकार की मसत्मधि नही मिलेगी आपकर खेती करना है तर खेती करने की प्रेक्टीश आप बचपन से ले
रहे हैं आपकर नरकरी करनी है तर भी आपकर वर नरकरी के मलए अभ्यास की प्रेक्टीश करनी पडे गी टुों किे
आपकर प्रेक्टीश के मबना आप करईभी प्रकार की मसत्मधि मिल नही शकती ये सभी मसत्मधि स्थूळ जगत है स्थूळ .
जगत िे आप जर भी हाों सल करते है वर सब मसत्मधि ही है मित्र प्रेक्टीश क्ाों चीज है ईमसके बारे िे थरडी .
बात करनी पडे गी कुदरत ने ये िानव शरीर ऐसा बनाया है की आपकर स्थूळ जगत की मसत्मधि हाों सल करने के
मलए और सु क्ष्म जगत की मसत्मधिओ हाों सल करने के मलए ये शरीर िे कुदरत ने प्रेक्टीश का िाध्यि रखमदया है
वर प्रेक्टीश का िाध्यि कीस तरीके से काि करता है वर जरा हि बात करें गे स्थूळ जगत की यातर सु क्ष्म .
जगत की मसत्मधिओ हाों सल करने के मलए कुदरत ने ये िानव शरीर िे ऐसा मवज्ञान रखा है की प्रेक्टीश का
प्रे क्टीश करने से शरीर .सहारा लेना ही पडता है िे करनसी मिया हरती है वर िे बताता हुों कुदरत ने िानव
शरीर िे िन कर दर मवभाग िे बाट मदया है आप करईभी प्रकार की मसत्मधि के मलए प्रेक्टीश कररगे तर वर
प्रेक्टीश आों तररक िन िे फीट हर जाती है आोंतररक िन कुदरत ने ऐसा बनाया है की आों तररक िन िे जर भी .
प्रेक्टीश के िािायि से डालरगें वह चीज आों तररक िन िे उनकी िेिरी फीट हर जाती है एक बार करईभी .
मसत्मधि आों तररक िन िे फीट हर गई तर वर मनकलती नही और वर आों तररक िन की िेिरी िे डाली गई करईभी
आपरआप वर िेिरी आों तररक िनकी .चीज बाद िे वर मसत्मधि की चीज ये शरीर आपरआप मकया करती रहती है
कािकरती रहती है आपकर कुछ भी करने की जररत नही रहती आप नरकरी से घर आने का रास्ता पर
कायि आने जाने की प्रेक्टीश हरती रहती है तर बाद िे आप नरकरी से छु टकर आपके घर जाने का रास्ता पर
जहाों भी वळाों क आते है तर आपकर उनका ध्यान नही ऱखना पडताआपरआप आपका आों तररक िन वर रस्त .ाे
पर गाडी आपके शरीर के पास से चलवाये गा आपकर मसफत एत्मिडन्ट नही हरवे उसका ही ध्यान रखना पडे गा
जब आप शुरोंशुों र िे नरकरी पर जाते है तर आपकर सभी वळाों क पर ध्यान दे ना पडे गा की यहाों से यहाों पर -
शुोंर िे आपने प्रेक्टीश मकया ईमसमलये वर-जाने का रास्ता है वर शुोंर प्रेक्टीश की िेिरी आपके आों तररक िन िे
फीट हर गई बादिे आपकर करईभी वळाों क आये गा तर ये आों तररक िन शरीर कर आदे श दे कर वर ही वळाों क िे
ये शरीर गाडी ले जाये गा ये चीज की िेिरी आपके िन िे फीट हर गई ईमसमलये ये आने जानेकी मसत्मधि आपकर
मिल गई बादिें आप गाडी चलाते चवाते आपका बाह्यिन कहीभी घुिता है तर भी आपकाों आों तररक िन प्रेक्टीश
के महसाब से ही गाों डी चलवाये गा ये बात पकडी है िन दर प्रकार का हरता है .
(1):- बाह्यिन, (2):- आों तररक िनबाह्यिन जर हरता है वर आत्मा के साथ जुडा हुवा है लेमकन स्थू ळ जगत के .
मलए बाह्यिन काि करता है और आाों तररक िन जर है वर स्थूळ जगत की मसत्मधिओ के मलए और सु क्ष्म जगत
की मसत्मधिओ के मलए आत्मा के साथ जुडा हुवा हैं िन जर है वर एक आत्मा का ही अोंश याने तर भाग कहाों
जावे या तर आत्मा का ही अोंग कहा जावे तर भी गलत नही ों है ईमसमलये स्थूळ जगत की करईभी प्रकार की
मसत्मधिओ के मलए हाों सल करने के मलए ओपकर प्रेक्टीश का ही सहारा लेना पडे गा प्रेक्टीश जर है वर आों तररक
िन की िेिरी िे फीट हर जाती है आपके सािने करई व्यत्मि बरल रहाों है तर आपकर उनकी बरलनेकी शब्र
कर मलखना है तर आप आसानी से मलख शकते है जैसे जै से सािने वाला बरलता जाये गा वै से वै से आप तु रोंत ही
मलख दे ते है आपकर करईभी प्रकार के शब्र कर बाराखडी कर याद नही करना पडता आपका हाथ तु रोंत ही .
मलख दे ते है उसका कारण यही है मक पहले आपने स्कूल िे बचपन िे वर मलखने की प्रेक्टीश कर मदया है तर
वर प्रेक्टीश आपके आों तररक िन की िेिरी पहले से ही फीट है ईमसमलये आप सािने वाला िानव की बरली के
शब्रों कर मबना याद मकये मलख शकते है क्रोंमक ये िेिरी आपके आों तररक िन िे फीट है ईमसमलये आों तररक .
िन शरीर कर आदे श करता है तर वर हाथ मलखता जाता है ये सभी प्रकार की मसत्मधिओ स्थूळ जगत की है
और ये सब मसत्मधिओ आप लरगरने मकस तरीके से हाों सल मकया वर भी आप अच्छी तरह जानते है आपने ये .
सभी प्रकार की मसत्मधियाों जर भी आपके पास है वर सब के मलए आपने खुद प्रेक्टीश मकया है ये बात का
आपका भी अनुभव है ये हुई स्थूळ जगत की मसत्मधियाों की बात अब हि तीसरा भाग िे सु क्ष्म जगत की
मसत्मधिओ कैसे हाों सल मकयाा जाता है उनके बारे िे बात करे गे स्थूळ जगत की मसत्मधिओ िानव जीवन जीने के .
मलए फरमजयात है ईमसमलये सभी प्रेक्टीश करते हैं और प्रेक्टीश के िाध्यि से स्थूळ जगत की सभी प्रकार की
मसत्मधिओ स्टे प बाई स्टे प हाों मसल हर जाती है लेमकन सु क्ष्म जगत की मसत्मधिओ िरमजयात है ईसमामलये ये प्रेक्टीश
का िाध्यि मकमसकर नजर पे आता नही(
ों ििशः) ......

भाग-3

( प्रेक्टीश)

जैसे हिने दु सरे भाग िे स्थू ळ जगत की मसत्मधिओ के बारे िे बात मकया ये है प्रेक्टीश की मथयरी सु क्ष्म जगत
के मलए स्थायी है . स्थूळ जगत की सारी मसत्मधियाों ये कौनसे तरीके से हाों सल हरती है ये बात का दु सरे भाग िे
चचात मकया है तर अब ये मतसरे भाग िे सु क्ष्म जगत की मसत्मधियाों और अनुभव कैसे हाों सल हरता है ये बात हि
करें गे .
जैसे स्थूळ जगत की मसत्मधियाों हाों सल हरती हैं वर ही तरीके से सु क्ष्म जगत की मसत्मधियाों हाों सल हरती है दरनर
जगत िे तरीका एक ही है लेमकन सु क्ष्म जगत के मलए प्रे क्टीश का सिय थरडा लोंबा है और स्थूळ जगत की
मसत्मधियाों के मलए प्रेक्टीश का सिय मपररयड टुों का है ईतना तफावत है . आध्यात्मत्मक क्षे त् के मलए परिात्मा तक
पहुों चने के मलए परिात्मा का अनुभव करने के मलए यरगमिया करनी पडती है . यरगमिया िे तीन चीज कर
प्रेक्टीश के द्वारा आों तररक िन की िेिरी िे िेिरी फीट करनी पडती है .
(1):- आसन मसत्मधि, (2):-मदघत प्राणायाि, (3):- आों तररक नजर त्मस्थर करके ध्यान करना ये तीन चीजे जर भी िानव
ने आों तररक िन की िेिरीिे डाल मदया वर िानव आध्यात्मत्मक क्षे त् िे स्टे प बाई स्टे प आगे बढने लगे गा ईमसिे
करईभी प्रकार का शक ित रखना सबसे पहले आप तीनर आसन िे से आपके शरीर कर जर अनुकूल आसन ये
बै ठकर मबलकुल किर से ले कर िस्तक तक टट्टार बै ठ जाईये और अपनी आों तररक नजर मत्भे टी के स्थान पर
त्मस्थर रखने की प्रेक्टीश मकमजये बाद िे मदघत श्वसन मिया वाला श्वास प्राणायाि मकमजये हरमदन पहले मदन पाों च
मिमनट बै ठकर उठ जाईये बादिे हरमदन थरडा-थरडा सिय बढाते जाये ऐसे करकर जब आपका आसन अिा घोंटे
का मसत्मधि हर जाएगा तब तक आपका मदघत श्वसन मिया वाला प्राणायाि 10 से कन्ड तक का भी मसधि हर जाये गा
जब 10 से कन्ड का प्राणायाि मसधि हरगा तबतक आपकी आों तररक नजर मत्भे टी के स्थान पर त्मस्थर हरने लगे गी ये
तीनर चीजर की आप आिा घोंटे तक प्रेक्टीश करने लगे गा तर ये तीनर चीजर की प्रेक्टीश की िेिरी आपके
आों तररक िनिे फीट हर जाये गी जब करई भी चीज की िेिरी आों तररक िन िे फीट हर जाती है तर बादिे
आपकर कुछभी नही. ों करना पडता बादिे सभी प्रकार की मियाए ये शरीर सों भाल लेता है . आपरआप मिया
हरने लगती है और आपरआप ये तीनर चीजर िे सिय मपररयड ये शरीर हरमदन बढाता ही जाता है . मिया
आपरआप हरने लगती है और सिय भी बढता जाता है बादिे तर आपकर मसफत एकही ध्यान रखना पडता है की
सिय पर आसन पर बै ठना है . आों तररक िनिे ये तीनर चीजर की िेिरी फीट हर जानेके बाद जब आप आसन
पर बै ठरगे तर सारी मियाए ये शरीर करने लगता है . आपकर कुछभी नही करना पडता आपकर मसफत आसन पर
बै ठने का ही ध्यान रखना पडता है ये िानव शरीर का मवज्ञान ऐसा है मक उनकर करई िानव सिज नही पाया
है . जर भी िानव सिज गया उनकी सारी खटपट मिटजाती है ऐसा ये िानव शरीर का मवज्ञान है मदघत श्वसन
मिया िे आपकर एक बात का ख्याल रखना हैं की श्वास लेने की मिया लोंबी करनी है और श्वास छरडने की
मिया लोंबी करनी है . श्वास ररकने की जर मिया है वर आपकर नही करनी बादिे जब शरीर कर जररत पडती
है तब शरीर ही आपरआप श्वास ररकने की मिया कर लेती है वर श्वास ररकने की मिया शरीर आपरआप कर
लेती है ईमसमलये शरआत िे आपकर (कुोंभक) श्वास ररकना नही, लेमकन ये यरगमिया करने से पहले आपकर
गे स, कबमजयात, की तकलीफ शरीर िे नही हरनी चामहए ये बातकर आपकर कायि के मलए ध्यान रखना पडे गा
अगर आपकर गे स, कबमजयात की तकलीफ है तर आयु वेमदक करईभी कबमजयात का चूरण हरमदन लेते रहर तर
आपकर गे स कबमजयात की तकलीफ दू र हर जाये गी जर भी िानव ये प्रेक्टीश की िेरे अनुभव के शब्रों ये
मवश्वास रखकर आगे बढे गा उनकर करईभी प्रकार का पुस्तकरों पढने की जररत नही ों रहे गी और मकमसकी सलाह
की भी जररत नही रहे गी जैसे जैसे करई भी िानव आगे बढता जाये गा ऐसे ऐसे उनकर अनुभव हरता जाये गा
और स्टे प बाई स्टे प उनका सारा सों चय िीटता जाये गा और वर िानव आपने आत्मा के कल्याण करने के िागत िे
सफलता का मशखर हाों सल कर पाये गा करईभी िानव जब दर घोंटे का आसन मसधि कर लेता है तर वर िानव दर
िों टे के बाद उनकर सिामि का अनुभव हरने लगे गा दर घों टे के पहले मकमसकर सिामि का अनुभव नही ों हरता.
(ििशः)

भाग-4

िानव शरीर िे पाों च प्रकार के वायुों उत्पन्न हरता रहता है वर पाों च वायुों ओ कर पाों च प्राण भी कहा जाता है . ये
पाचरों प्रकार का वायुों का वणतन िैंने महों गळा-मपोंगळा-सू क्ष्मणा की परस्ट िे मवस्तार से मलखा हैं वर आप दे ख ले ना
यहाों ये चौथे भाग िे हि प्राण-अपान की ही वायुों की बात करें गे .
अपान वायुों ईसकर कहते है जर गु दा द्वार से बहार मनकलते है . ईमसकर अपान वायुों कहते है . अपान वायुों से ही
िल-िुत्-पसीना मनकलता है . ये ही अपान वायुों शरीर िे हरमदन हर सिय शरीर िे ऊजात उत्पन्न करता रहता
है . हरकरई सािान्य िानव िे भी जर शरीर की उजात वपराश हरती हैं वर उजात का उत्पादन अपान वायुों से सभी
िानव कर हरता है और चालुों ही रहता है लेमकन सािान्य िानव कर उनके शरीर िे जरररयात के महसाब से ही
उजात (चेतना) उत्पन्न हरती है . सािान्य िानव िे ज्यादा उजात नही उत्पन्न हरती जीतनी जरररयात है उतनी ही
उजात उत्पन्न हरगी ये उजात कैसे उत्पन्न हरती है अब हि ये बात करें गे हरकरई िानव अपने शरीर कर टीकाने के
मलए श्वसन मिया हरती रहती है . वर श्वसन मिया िे प्राणतत्व (ओत्मिजन) बाहर से वायुों िे मिक्ष हरकर शरीर
िे छाती के भाग िे दाखल हरती रहती है और अपान वायुों अोंतर िे से शरीर के जरररयात के अनुसार हरजरी
िेसे दाखल हरकर छाती िे अपान वायुों आते रहते हैं . जररत से ज्यादा अपान वायुों हरता है वर गु दा द्वार से
बहार आपरआप मनकल जाते है जबहि शरीर िे श्वास लेते है तर श्वास के साथ प्राणतत्व भी शरीर िे दाखील
हरता है वर प्राणतत्व छाती िे फैल जाते है और आों तरिे से भी अपान वायुों आते है वर भी छातीिे फैल जाते है
जब दरनर वायुों छाती िे फैलने से मिक्ष हर जाते है . जब दरनर वायुों छाती िे मिक्ष हरते है तर एक चेतना का
उजात का मवस्फरट जैसा हरता है वर मवस्फरट ही नयी उजात के रपिे शरीर िे जहाों भी उजात की जरररयात कि
है वहाों ये उजात ओटरिेमटक शरीर िे जरररयात पुरी हरती रहती है इस तरह हरकरई सािान्य िानव कर भी ये
उजात का उत्पादन हरमदन हर सिय पे हर श्वास से हरता ही रहता है लेमकन ये शरीर की जरररयात के िुजब
ही उजात का उत्पादन हरता रहे गा ज्यादा मवपुल प्रिाण िे ऊजात नही मिल शकती प्राण-अपान की उजात की बात
ये सािान्य िानव की बात हुई हैं अब हि वर ही प्राण-अपान की उजात का उत्पादन कीस तरीके से बढाये तर
वर उजात मसत्मधिओ के स्वरप िे पररवतत न हर शके ईसकी बात करें गे . उजात का उत्पादन बढाने के मलए कुदरत
ने मदघत श्वसनमिया वाला प्राणायाि का सािन अनुभवी, मसधिरने िानव कर मदया है ये ही अपान वायुों से शरीर
ररमगष्ट बनता है . और ये ही अपान वायुों शरीर मनररगी बनकर शरीर स्थायी हरता है और ये ही अपान वायुों से
आत्मा कर परिात्मा का अनुभव कराता है सभी मियाए अपान वायुों से ही हरती है . श्वासरश्वास की मिया जीतनी
लोंबी हरगी ईतना ही आपका जीवन लोंबा हरगा श्वास की मिया जीतनी टुों की हरगी ईतना ही आपका जीवन टुों का
हर शकता है . मदघत श्वसन मिया िे प्राणायाि करके शरीर िे ज्यादा से ज्यादा अणुों -परिाणु वाले प्राणतत्व
(ओत्मिजन) दाखल हरते है वर प्राणतत्व और अपान वायुों एक हरने से शरीर िे उजात का उत्पादन बढ जाता
है . शरीर िे ऊजात का उत्पादन बढाने से वर प्राणायाि की िदद से उपर िस्तक की तरफ वर चेतना चढने
लगे गी जब प्राण-अपान की उजात और दशेय ईन्द्रीयर की उजात िस्तक िे एक रपिे बहकर एकठी हरगी तब वर
उजात शरीर िे ठों डी लहे रर के रप िे नीचे उतरे गी जब वर उजात ठों डी लहे रर के रप िे नीचे उतरकर फीर
वामपस िस्तक की और उपर चढने लगे गी जब किर तक आये गी तर वर प्राण-अपान उजात किर के भाग िे
रक जाये गी और कुोंडलीनी शत्मि कर साथ िे लेकर िूलािार चि का वे िन करके िीरे -िीरे एक-एक चि कर
सिायाों न्तर से वे िन करते करते उपर चडती जाये गी और िस्तकिे एकमत्त हर जाये गी तब मसत्मधियाों मिलती है
ईसके पहले मकमसकर मसत्मधियाों नही मिल शकती मसफत शरीर मनररगी बन शकता है मसत्मधियाों नही प्राण-अपान की
उजात ही कुोंडलीनी शत्मि कर उठाने के मलए िदद करती है ईमसके पहले मकमसकी कुोंडलीनी शत्मि जागृ त नही
हर शकती ईमसके पहले मकमसकर उजात मदखती है वर उजात मसफत प्राण-अपान की उजात और दशेय ईन्द्रीयर की
उजात ही मदखती है . कुोंडलीनी की नही बहुत सारे िानव ये ही भ्रि िे फस गये हैं . मसत्मधिओ के मलए मदघत
श्वसन मिया की लोंबाई आप जीतनी बढावर गे ईतना ही आपकर सफलता मिलती है प्राणायाि बहुत प्रकार का
मदया है लेमकन वर सभी प्रकार के प्राणायाि मसफत शरीर स्वास्थ्य के मलए है . मसत्मधिओ के मलए मसफत मदघतवाला
प्राणायाि से ही मसत्मधियाों मिलेगी और करई प्राणायाि से नही मिलेगी और दु सरा प्राणायाि से मसफत प्राण-अपान
की उजात आपकर मदखाई दे गी. कुोंडलीनी की उजात नही दे ख शकते बहुत िानव ये दु सरे प्राणायाि की मथयरी िे
फस गये हैं ईमसमलये तर वर िानव भटकता रहता है उनका सों चय मिटता नही, वर ही कारण से उनका सों चय
िीटता नही सवाल के उपर सवाल करता रहता है . मदघत प्राणायाि िे आपका शरीर के भीतर भी बहुत प्रकार
का फेरफार हर जाता है वर सब हरता ही है . आपकर करई भी प्रकार का टे न्शन नही रखना शरीर िे जर हरता
है वर मसफत साक्षीभाव से हरमदन दे खते जाओ िीरे -िीरे आप जैसे-जैसे आगे बढते जाओगे ऐसे ही एसे आपकर
सु क्ष्म जगत का अनुभव हरता जाये गा और आपका सारा सों चय ही मिटता जाये गा और आपके आत्मा का कल्याण
हर जाये गा.
प्राण-अपान की उजात शरीर के बाहर कैसे उत्पन्न मकया जाता है ईमसका द्रष्टाों त िैं ने प्रिाण के साथ िेरी परस्ट
िानव शरीर का मवज्ञान िे मदया है अगर ये बात मकमसभी सायन्टीमफक की नजर िे िेरा शब्रों आ जाये गा तर
वर सायों न्स के द्वारा प्रयरग करे गे तर िानव सिुदाय के मलए एक बहुत बडी उपलत्मि हर जाये गी जैसे आज
ओत्मिजन का बरटल मिलता है वै से ही चेतना (उजात ) का बरटल मिलने लगे गा तर िानव सिुदाय तिाि ररगर
िेसे उगर शकता है िानव सिुदाय का शरीर चेतना का एकही बरटल चडाने से मनररगी बन जाये गा ये बात िैं
ने प्रिाण के साथ पहली परस्ट िे मलखा है . मदघत श्वसन मिया का मवज्ञान भी िैं ने ये ही परस्ट िे सामिल मकया
है .

चक्रो-1 िूलािार चि
यरगमिया की िाध्यिता से शरीर िे उजात का स्त्ररत बढने लगता है . जब शरीर िे उजात का स्त्ररत बढने लगे गा
ईमसके बाद ही चिर एक बाय एक घीरे -िीरे गमतिान हरने लगता है . साते सात चिर गमतिान करने िे पाों च
साल जाये गा वर भी बरमदन यरगमिया की प्रेक्टीश जारी रहे तर पाों च लगे गा नही तर ज्यादा सिय जाये गा.
लेकीन चिर जाग्रु त तब हरता है मक िानव आों तररक नजर ललाट पर त्मस्थर कर दे वे तब ये आों तररक नजर
ललाट पर त्मस्थर करने के मलए एक तों त् सािना है वर तों त् सािना पाों च-छ िास की हरती है . वर तों त् साििा से
ही आों तररक नजर त्मस्थर हरती है . इमनके अलावा आों तररक नजर कभी त्मस्थर भी नही ों हरगी ओर आों तररक नजर
कभी त्मस्थर भी नही हरगी और आों तररक नजर त्मस्थर मकये मबना कभी मकमसकर ध्यान भी नही ों लगता ये िे दावा
के साथ कह शकता हुों क्ुों की ये िेरा खुदका अनुभव है .......
जब आों तररक नजर त्मस्थर हरने लगे गी तब ये तों त् सािना के िारफत तीन से चार िास िे आपका पहे ला चि
जर जनेन्द्रीय ओर गु दा द्वार के मबच िे जर जग्या है वहा पहला चि स्थामपत है . चि एक स्नायुों का गुों चळा की
तरफ हरता है स्नायुों मबलकुल सू क्ष्म हरती है . वर पहे ला चि पर बहुत गरि दबाव आने लगे गा वर गरि दबाव
10 से 20 मदन तक रहे गा ईनके बाद वर चि के स्थान पर िबकारा जरर से चालुों हरने लगे गा ये जर िबकारा
चालुों हरता है वरही चि की जाग्रु मत का मनशान है . पहले चि की िूख नीचे की तरफ खु ला हरता है वर पहे ला
चि मवयत की करथळी के साथ जुडा है ईमसमलए जर ईन्द्रीय नीचे की तरफ हरती है वर ही उनका िुख नीचे की
तरफ कहा जाता है लेमकन जब पहले चि िे िबकारा चालुों हरता है तब उनके नीचे की िुखकी तरफ से
त्मखचाों ण का दबाव चालुों हरती हर जाये गा लेमकन जनेन्द्रीय की उमडयन बों ि हरता है तर वहासे पवन खीचाये गा
नही. ईमसमलए मवयत जर गरि हरकर उनका बाष्पीभवन हरकर वराळ एकठी हरती है वर वराळ खीचाने लगती है .
वर त्मखचाों ण शरीर की उपर की भाग तरफ हरगा ईमसमलए वर वराळ पहले चि की स्नायुों िे एकठी हरगी ओर
वहा बहुत दबाव आये गा वर दबाव से पहले चि का उपर की तरफ का िुख खुल जाये गा उपर वराळ चडने
लगे गी वर वराळ कररडरज्जू िे बहुत दबाण से चडे गी ओर दू सरे चि के पास आकर अटक जाये गी ईमस
तरीकेसे पहे ला चि खु ल जाता है . लेमकन आों तररक नजर की तों त् सािना की प्रेक्टीश जारी रखना पडे गा.
जब पहे ला चि खु लता है तर शरीर िे एकदि अचानक स्फुमतत पुर जाती है . शरीर एकदि हलका सा फूल
जैसा बन जाता है और ललाट पर मवजळी का चिकार लगने लगता है . वर मवजळी के चिकार का कलर लाल
शेड का हरता है , स्वभाव मबलकुल आनोंदिय बन जाता है , चहे रा प्रसन्नता हरवे ऐसा अनु भव लगता है . पुरा शरीर
एकदि शत्मििय बन जाता है .ऐसा सब अनुभव पहे ला चि की जाग्रु मत हरने लगता है उनका िन िीरे -िीरे
त्मस्थर हरने का शरआत हर जाती है . पहे ला चि का नेत्ुत्व पृथ्वी तत्व करती है . ईनके बाद जब आों तररक नजर
त्मस्थर करने की तों त् सािना जारी रखने के बाद दु सरा चि भी खुलने िे तीन से चार िास का सिय जाये गा जर
अगवा 11वा भाग िे दु सरा चि की बात करे गे .
पहे ला चि खरलने से पहले प्राणायाि की प्रेक्टीश जारी रखना पडता है ईनके मबना शरीर िे शून्यवकाश नही
हरगा. जब शरीर िे शून्यवकाश हरगा तब मवयत का ओजस िे त्मखचाण लगकर वर ओजस उपर की तरफ चडने
का दबाव लगे गा ये सब सभी प्रकार का शरीर िे अनुभव हरने लगता है .

चक्रो-2 स्वाविष्ठान चक्र


पहे ला चि खुल जाने बाद प्राणायाि की प्रेक्टीश और आों तररक नजर त्मस्थर करने की तों त् सािना की प्रेक्टीश
जारी रखने के बाद पाों च से छ िास जाये गा दू सरा चि खुलने िे हरमदन प्रेक्टीश जारी रखते हैं तर मवयत के
ओजस दु सरा चि पे आके अटक जाता है ऐसा पाों च-छ िास तक हरगा और ईनके बाद दु सरा चि जर है वर
कररडरज्जू के पहले िण के साथ जूडा हुवा है वर पाों च छ िास की प्रेक्टीश के बाद एकमदन ऐसा जरर से
दबाण आये गा की वहा की स्नायु औ सभी तु ट जाये गी ऐसा बहुत जरर से दबाण आये गा ओर वर दबाण से मवयत
का ओजस दु सरे चि िे घूिने लगे गा वर वराळ गरळ गरळ घूिती है ऐसा अनुभव शरीर िे हरता है और वर
वराळ तीसरा चिके पास जाकर अटक जाये गी यहाों आपका तीसरा चि खुल जाता है .
जब तीसरा चि खुलता है तर शरीर िें बहुत प्रकाश का फेरफार हरने लगता है शरीर की सभी िाों स-पेशी
तू टती जा रही है ऐसा कुछ अनुभव हरता है . पुरा शरीर िे थरडा थरडा खेंचाण का अनुभव हरता है ललाट पे
प्रकाश िे भी बहुत फेरफार जर जाता है जर मबजली का चिकारा मदखता था वर िीरे -िीरे त्मस्थर हरने लगता है
और प्रकाश के मबच िे काली छाया अोंिेरा जैसा एक भौोंयरा जैसा मदखने लगता है तिाि ईच्छा ए िीरे -िीरे
लुप्त हरती जाती है काि भी लुप्त हरता जाये गा ओर अपने स्वभाव िे गु ण िे पररवतत न आ जाये गा तिर गु णी
स्वभाव वाले िानव रजरगु णी स्वभाव की तरफ जाये गा उनके िनिे सिानता मदखेगी सभी प्रकार के भे दभाव िीट
जाये गा वर प्रकाश का कलर पीळे कलर जैसा मदखता है. यहाों से आपकर दर कलर का लाल-पीळा कलर का
प्रकाश मदखना शरों हर जाये गा ये दु सरे चि का नेत्ुत्व जळ तत्व का हरता है .
करइभी चि की जब जागृ मत हरगी तब िस्तक की स्नायु औ ललाट की तरफ दबाव खेचाण हरगा और पुरे शरीर
की नशर वर खुलने वाला चि के स्थान की तरफ दबाण खैंचाण बहुत ही हरगा ऐसा लगे गा की नशर बहार
नीकल जाये गी लेमकन डरना ित एक दश शरीर िे आों चका की साथ कोंपन -ध्रु जारी बहुत उपडे गी ओर वर
ध्रु जारी के साथ वर चि खु ल जाये गा सभी चिर खुलती वखत ऐसा अनुभव हरता है ओर शरीर िे चिर खुलती
वखत एकदि स्फूमतत िय शत्मि बहने लगे गी लेकीन आपकर ये सभी मिया जर शरीर शरीर ने अनुभवर हरता है वर
मसफत साक्षी भाव से दे खने का है . आसन से खडे ित हरना बै ठे बैं ठे साक्षी भाव से आप दे खा करर नही तर
शरीर मबगड जाये गा अब बारहवा भाग िे तीसरे चि की बात करे गे ........
चक्रो-3 मविपूर चक्र
दु सरा चि खुल ने के बाद यरगमिया की प्रेक्टीश हरमदन जारी रहे गी तर आपका तीसरा चि 15 से कन्ड की
प्राणायाि की िरी पे खुलेगा जब तीसरा चि शरीर िे स्नायु औका खेचाण ध्रु जारी के साथ खुलेगा लेकीन ईस
वखत आपके शरीर िे ऐसी उजात का आप अनुभव कररगे की आप खडे हरकर ठे कडा िारने की आपकी ईच्छा
हर जाये गी लेमकन ऐसा कभी ित करना बै ठे बैं ठे साक्षी भाव से सभी अनुभवरों कर दे खने का है .
तीसरा िमणपूर चि खुलेगा तर आपकी जठरामि मबलकुल प्रमदप्त हर जरये गी आपकी रस िात्वामि ओर िास -पेशी
िात्वामि भी प्रमदप्त हर जाये गी आपकी जीभे सरस्वतीजी का वास हर जाये गे आप सहाों से आत्मज्ञानी बनते जाओगे
आपकी वाणी पमवत् मनितल बन जाये गी आपकी सरच सही हर जाये गी नेगेमटव मवचार िारा आपकी मनकल िे
लगे गी नष्ट हर जाये गी शरीर मबलकुल मनररगी बन जाता है . आपकी बरली शब्रों उच्चारण की टे कमनक िे बहुत
फरक आ जासे गी आपकी वाणी प्रभावशाली बन जाये गी आपकर अोंदर से मिकलेगी वर ऐसा सों शरिन हरगा की
उनका कही जरश नही मिलेगा ये तीसरा िमणपूर चि खुलने से िानव कर ईतनी मसत्मधिया मिल जाती है है .
तीसरा चि का नेत्ुत्व अमि तत्व करता है .आपकर प्रकाश िे हरे रों ग का ररड मदखने लगे गा अब यहाों से
आपकर तीन कलर का प्रकाश मदखने लगे गा अब चरठा चि अनाहत चि कर जर ते रवाह भाग िे बात करे गे .

चक्रो नंबर -4 अनाहत चक्र


तीसरा चि खुल ने के बाद यरगमिया की प्रेक्टीश जारी रखने से चरथा चि जर अनाहत चि के नाि से जाना
जाता है वर खुल जाये गा शरीर िे बहुत दबाव के साथ खेचाण हरगी ओर एकदि ध्रु जारी -कोंपन के साथ चरथा
चि खु ल जाये गा जब चरथा चि खु लेगे तर आपके प्रकाश जर सफेद कलर का ररड मदखने लगे गा यहाों से
आपकर चार कलर का प्रकाश मदखाई दे गे. ये चरथा चि का नेतृत्व वायुों तत्व करता है . वर जब चरथा चि
खुलता है तर आपकर करई भी मदव्य पुरूष की काली कलर की छाया सिामि मदखेगी जब ऐसा हरवे तर उनकी
िानमसक पूजा तु रत ज करले ना आपका ध्यान घीरे िीरे गाढ ध्यान की तरफ जाने लगे गा शरीर के अोंदर िस्तक
के ठों डी लहे र जर आहवादक हरती है ऐसी लहे रे छूटने लगे गी आत्मा उजागर हरने के मलए थनगनाट कर रहा
हरगा यहा आपका आत्मा जागृ त हर जाता है और आप पूरेपूरा आत्माज्ञानी बन जाते है . आपके हर शब् प्रभाव
पाडते है ऐसी प्रमवत् वाणी हर जाती है ए चि खु ल ने िे आठ से नव िमहिा जाये गा आपिे अोंदर से मबलकुल
सिानता द्रमष्ट बन जाये गी चारौ तरफ आपकर कुदरत का ही खेल आपकर मदखाई दे गा. आप कुदरत िय बनने
की तरफ आगे बढने लगे गा. यहाों प्राणायाि की िारे 30 से कन्ड की आसपास हरगी. ये सभी मियाए अनुभव
चरथा चि खुल ने के बाद हरने लगता है . अब पाों चवा चि की बात चौदहवे भाग िे करे गे ....

5 ववशुध्िचक्र
चरथा चि खु ल ने के बाद यरगमिया की प्रेक्टीश जारी रखने से पाों चवा चि जर मवशुधिचि से जाना जाता है वर
बहुत खेचाण के साथ ध्रु जारी -कोंपन के साथ खुल जाये गा जब ये चि खुलेगा तर आपके पुरे शरीर िे थरडी दे र
कोंपन रहे गा वर कोंपन ऐसा हरगा की आपकर उनका अनुभव बहुत अच्छा लगे गा ओर आपकर ललाट पर ए
बरगदा जैसा आकार खडा हर जाये गा मबच िे काळाश पडता कलर ररड का प्रकाश हरगा ओर चारर तरफ चार
कलर के प्रकाश मदखाई दे ता है . मजसकर कोंई लरग आकाशगों गा के नाि से जानते है वर ही भों वर गु फा ओर
वरही सु क्ष्म जगत िे जाने के मलए राज िागत है . ये चि का नेतृत्व आकाश तत्व का है वर ही बरगदे िेसे अपनी
आों तररक नजर कर पास करती है . आपका िन मबलकुल त्मस्थर ओर यरगवाही बन जाये गा आपका हरमदन का
सािना िे बैं ठ ने के टाईि पे अोंदर से आवाज आये गी की उठ तु ि आसन पे बै ठ जा. ऐसी आवाजे आये गी
िन शाों त हरकर दू रदशी बन जाता है . सािने वाला िानव का चहे रा आप पढ शकते हर. अपनी सभी ईन्द्रीयर
का ज्ञान आपकर हर जाता है . प्रकृमत का भी ज्ञान आपकर हर जाता है और साते य तत्वर का ज्ञान भी आपकर
हरने लगे गा आपका सों चयर मबलकुल मिट जाते हैं . अपने दु श्मनरों का आपर आप नाश हरता है . िस्तक के पूरे
ललाट पर आपका प्रकाश त्मस्थर हरकर प्रकाश कर आप आकार के रप िे मदखाई दे ता है . अलग अलग मचत्र
के रप िे आपकर प्रकाश मदखने लगता है ओर हरमदन प्रकाश की ररशनी पुरे िस्तक िे बढने लगे गी ऐसा
पाों चवा चि खुलने से आपकर अनुभव हरगा यहाों आपकी प्राणायाि की श्वास की लोंबाई 35 से कन्ड से 40 से कन्ड
की हर जाये गी तब ये पाों चवा चि खुलता है . अब छठा चि का िुजे अनुभव हुआ नही है वर अभीतक खुला
नही है ऐसे तर खु ल गया है लेमकन कायत वामहत नही हुआ.. छठा चि पे आके िे री प्रेक्टीश अभी जारी है .
उनका अनुभव हरगे तब आज्ञाचि की ओर दस िे द्वार सहस्त्रासार की बात करोंगा अभी उनका अनुभव करना
बाकी है दे खते है कब िोंमझल हामसल हरगी. ये छठा चि खुलने िे बहुत सिय लगता है मक कुदरत ओर ये
प्रकृमत वर िानव की सभी तरीके से एरण पर टीपते है क्ुों की ये छठा चि खुलना बहुत ही िहत्व की बात
है . आध्यात्मत्मक क्षे त् िे जर है वर छठा चि ही अगत्य का है . आप सभी मित्रों दु आ करर तर सायद खुलने िे
वर दु आ सहारा हर शकती है जब छठा चि करई िानव का खुलता है तब वर मसधिपु रष कहा जाता है . ईनके
पहले वर मसधिपुरष नमह कहा जाये गा एक सािक कहा जाये गा यरगी कहा जरये गा.
पहले चि खु लकर छठा चि तक पहरचने िे आपकर पाों च साल जाये गा वर भी हरमदन यरगमिया की प्रेक्टीश
जारी रखते हैं तर नही ों तर आपके प्रेक्टीश पर आिाररत रहता है . छठा चि तक पहुच ते है तर यहाों प्राणायाि
की श्वास की लोंबाई 40 से 45 लेकन्ड हर जाती हैं . तब आज्ञाचि खु लता है और श्वास की गमत हि श्वास लेते है
के श्वास छरड ते है ये भी नक्की करना िुत्मिल हर जाता है . ऐसा श्वास की गमत हर जाती है . पुरा शरीर
जडत्व अवस्था िे आ जाते हैं ...

मन क्ां है

भाग-1

िन जर है वर सात तत्वर से बना हुआ िन है िन िे सभी तत्वर की सािेल गीरी है ईमसमलए बाह्य िनकर त्मस्थर
करना बहुत कठीन बात हरती है क्ुों की तत्वर की फेरबदली वारों वार हरती है और वर ही तत्वर के आमिन िन
भी अपनी मवचारिारा िे फेरबदलाव करते रहते है ये फेरबदलाव का मनयि ये प्रकृमत का मनयि हरता है
ईमसमलए िन कर एक जगा पर त्मस्थर करना िुत्मिल हरता है वतत िान िे कौनसा तत्व चल रहा है ये जानने के
मलए अपनी मवचारिारा कर पहचानने की करमशश करे गा तर तु रोंत ही िानव कर िालुि हर जाता है मक अभी कौोंन
सा तत्व चल रहा है लेमकन ये जानने के मलए जर िानव ने यरगमिया के िाध्यि से अपने ललाट पर मजसने
उजात कर त्मस्थर कर मदया है वर ही िानव जान शकते है ईसके मलए ज्ञान की बहुत गहराई चामहए बहुत लोंबा
सिय की प्रेक्टीश चामहए.
िन दर प्रकार का हरता है --
(1)--- बाह्यिन जर स्थुळ जगत से जुडा हुवा रहता है और पोंच तत्व का जर शरीर बना है उसीके साथ बाह्यिन
रहता है शरीर का िन कहा जाता है .
(2)-- आों तररक िन जर हरता है वर सु क्ष्म जगत से जु डा हुवा रहता है आों तररक िन दर तत्वर का बना हुआ है
और आों तररक िन कर आत्मा का िन भी कहा जाता है जर हों िेशा आत्मा के साथ ही रहता है आों तररक िन
पर कुदरत ने ओटरिेमटक लरक लगा मदया है जर लरक का नाि है बाह्यिन बाह्यिन आप त्मस्थर कररगे तर
ओटरिेमटक आों तररक िनका लरक खुल जाता है और आों तररक िन चैतन हर जाता है लेमकन बाह्यिन कर त्मस्थर
करने के मलए यरगमिया का सहारा लेना पडता है अपना जीवन भत्मििय बनाना पडता है तब बाह्यिन त्मस्थर
हरगा और आों तररक िन खुल जाये गा जब आों तररक िन चैतन हरता है तर िानव कर सु क्ष्म जगत का अहे सास
हरने लगता है और आध्यात्मत्मक क्षे त् िे उनकी प्रगमत हरती है अपने आत्मा कर शत्मिशाली कर शकते है अपना
िनाबल द्रढिजबू त कर शकते है अपना सों कल्प भी द्रढ - िजबू त कर शकते है अपना आत्ममवश्वास भी द्रढ-
िजबू त कर सकते हैं ईनके मबना करईभी िानव कभी भी सु क्ष्म जगत का अहे सास नही कर शकेगा(:ििश) .

भाग -2

िन ईमसकर कहते है मक िानव शरीर िे रहे ल एक शत्मिशाली तत्व है मजसके िाध्यि से ये सृ मष्ट का सों चालन
भी हरता है , िन का करई आकार नही है , िन का करई स्वरप नही है , िन का करई गु ण त्मस्थर नही है लेमकन ये
िानव शरीर िे सजतनात्मक मिया एक मवचार खडा करते है और वर ही मवचार का खात्मा कर दे ते है , ये ही िन
का काि हरता है ये सृ मष्ट का सजतन भी िन की मवचार घारा से हुवा है और जर सृ मष्ट चलायिान है वर एक
वै श्वीक मवचार िारा से ही चलायिान है और ये सृ मष्ट िे जर भी आिु मनक सु मविाएों उपलि है जर मवज्ञान है वर
एक िन की ही मवचार िारा से ये सृ मष्ट का डे वलरप हुवा है , िन जर है वर बु त्मि कर आदे श करता है वर बु त्मि
आज्ञा का पालन कर कर मवचारर कर अक्षरर िे अोंमकत करता है िन का काि एक मवचार करके तु रोंत वर
मवचार कर छरड दे ता है और दु सरा मवचार िन करने लगता है ईमसमलए िन कर िरकोंट की उपिा मदया है ये .
िन िा हरत तर ये सृ मष्ट का कायत भी अटक जाता और सृमष्ट डे वलरप ना हरती लेमकन िानव शरीर के अोंदर जर
एक शत्मिशाली शत्मि है वर िन ही है िन का मसिा जरडाण आत्मा के साथ ही रहता है और िन और आत्मा
का जरडाण बु त्मि के सााथ हरता है िन जर है वर एक आत्मा का ही स्फूरणा है आत्मा का ही अोंश है िन कर
जर िीरे िीरे यरग अभ्यास के द्वारा आत्मा िे तल्लीन कर दे वे तर आत्मा चैतन्य हर जाता है , आत्मा कर जागृ त
अवस्था िे ला दे ते है , िन उनकी वै चाररक शत्मि कर आत्मा के साथ मिलाकर एक नयी रचना का सजतन कप
दे ता है जर अद्दभु त हरता है , बु त्मि के बल से मचत के पडदे पर वर मवचार िारा कर मवस्तृ त कर दे ते है िन और
आत्मा का सों बोंि सदीयर से सृ मष्ट सजतन से ही है , आमद अनामद से है लेमकन िन और आत्मा का सों बोंि की
उनकर याद मदलाने पडता है वर सों बोंि ताजा करना पडता है िन का मनमझ अत्मस्तत्व कर मवमलन करने के बाद
ही आत्मा सत्य अत्मस्तत्व की पहचान कर शकता है िन ना पणा कर तरडना पडता है ईनके मबना आत्मा "हुों "
कभी करई परि पद कर जान नही शकता िन कर आप सािना के िारफत से साि शकते है िन कर त्मस्थर
कर सकते हर लेमकन ये ही सबसे बडी सािना है मजस िानव ने सािना के िारफत अपने िन कर काबु पामलया
त्मस्थर कर मलया वर ही िानव जीवन सफलता िे पररवतत न हर जाता है नर ही िानव मवष्ु जी का अवतार भी
कहा जाता है ईतनी िन की शत्मि सािेल है लेमकन वर सभी प्रकार की शत्मियरों कर िन के द्वारा ही सािा
जाता है .
(ििश(:

भाग -3

िन जर है उनकर िरकट भी कहते हैं क्ुों मक िन करई एक द्रमष्ट करण पे त्मस्थर नही हर शकता और आत्मा कर
अहों कार िे फसाते रहता है ये कित का कीरण ही िन ही है िन के मबना कभी करई भी कित बनाताही नही है ,
आत्मा कर िन फसाता है तर वर ही िन आत्मा कर तारते भी है लेमकन ईनके मलए िनकर षडरमप से त्मस्थर
करना पडता है िन कर िक्कि करना पडता है िन कर चेतन करना पडता है और िन कर अहों कार िे से
बहार मनकल ना पडता है और िनकर तिाि मवकारर से अलग करना पडता है िन जर है वर यरग सिुोंदर कर
पार करने के मलए एक से तुपुल है वर सें तुपुल उपर से आत्मा की सफर कराकर भवपार उतर शकते है िानव
अपने िनकर ही जान लेवे अनुभव कर लेवे और उजागर कर लेवे तर और कुछ जररत ही नही है तर वर आत्मा
िनकी पक्कड िेसे छु ट जाता है और आत्मामक गमत चैंतन्य तरफ ब्रह्म कर पहचान ने िे लग जाती है लेमकन
आत्मा और िन की जर दु श्मनी है वर दु श्मनी कर मिटाकर आत्मा ओर िन की दरस्ती करवानी है दरनर की
दरस्ती हर जाये गी तर ये मवश्वकी करईभी शत्मि ईनके सािने किजरर हर जाये गी ईमसमलए अपने िन पर लगाि
लगाकर िनकर िक्कि कर कर िनकर त्मस्थर बनाकर उनकी सही रास्ते पर लगाकर आत्मा की सफर पार
करवालर एक बार आप िनकर िनाके दे खलर आपका जीवन िन्य बन जाये गा िनकर िना के दे खलर आपका
जीवन उजागर हर जाये गा िन कर िना के दे खलर आपका जीवन एक द्रष्टाों त बन जाये गा
" एक सािे सब सािे "
का सु त् िन कर ही लागु पडता

भाग-4

िन के मवचार कर जानने के मलए वर मवचार का िनन करना चामहए वर मवचार का िोंथन करना चामहए.
परमझटीव मवचार िारा से िोंथन करने से वर मवचार के गहराई तक आप पहरोंच जाओगे मवज्ञान भी िोंथन(िनन)
पर आिाररत डे वलरप हुए हैं िनन एक बु त्मधि पुणत हरता है . तकत पुणत हरता है सािान्य मवचारणा िे िन पागल
की तरह भागता है .सािान्य िन मदशाहीन हरता है और िनन(िों थन) करने से सािान्य िन एक केन्द्र पे
स्थमगत हर जाता है मजसकर एकाग्रता कहा जाता है . भटकता हुआ सािान्य िनकर मवचार िारासे जब आप िोंथोंन
कररगे तर वर िन एकाग्रता की और त्मस्थर हर जाता है . िोंथन ईसीकर कहते है जर अपने िनिे सािान्य मवचार
आता है वर मवचार मकसके मलए है और ये ही मवचार मिझे अभी क्ुों आया ये मवचार िुझे करनसा सों केत दे ता है
ये मवचार से िुझे मलए फायदा कारक है की नुकशान कतात ऐसी सभी प्रकार की आप सरच लगावरगे ईसीकर
िोंथि(िनन) कहा जाता है ऐसे िोंथन करने से िानव अपने िनके उपर काबुों पा शकता है और अपनी
मवचारिारा कर त्मस्थर कर शकता है और वर िानव एकाग्रता की और नजद्दीक पहरोंच जाता है ईमसमलये हों िेशा
िनन (िोंथन) करते रहना चामहए मवचारिारा ये िस्तक की जड है . श्वासरश्वास उनकी शाखा है शब् ही गु र
है . ध्यान ही मशष्य है खुदकर जानना वर ज्ञान है िन के सहारे सािक अपना लक्ष्य तक पहरच शकता है यरग
वह मिया है और शरीर वर िशीन है .
वास्तव िे अपिे िनकर त्मस्थर करना ये ही सािना का उद्दे श्य हरता है िनकर शरीर िे कही भी जगा पर त्मस्थर
मकया जाता है सािान्य रीते सभी िानवर ने िनकर ित्मस्तक िे त्मस्थर कर रखा है . िनकर शरीर िे जहाों भी आप
त्मस्थर कररगे ईसी महसाब से आपकी गु णवत्ता िे फेरफार हरता रहता है आप नर-नारी दरनर जब आपसी िे से ि
का आनोंद ले रहे हर तब आपका िन िस्तीक िेसे उतरकर जनेन्द्रीय पर त्मस्थर रहे गा आपकी मवचारिारा से ि
से आिाररत ही रहे गी दू सरी करई मवचारिारा स्फूरणा नही हरगी एसा क्ुों हरता है की आपका िन जनेन्द्रीय के
उपर ही त्मस्थर हर गया है ईमसमलये आपकी गु णवत्ता िे फेरफार हर गया ईसीतरह आप शरीर िे कहीभी जगा
पर िनकर त्मस्थर कररगे तर जहाों त्मस्थर हुवा हैं ऐसी ही गु णवत्ता आपकी अोंदर फेरफार हरगी.
स्थूळ जगत के मलए िनकर शरीर िे करईभी स्थान पर त्मस्थर कर सकते हैं और सु क्ष्म जगत की मलए िन कर
मत्भे टी के स्थान पर उजात पर ही िन कर त्मस्थर करने से मसत्मधिया मिलती है . शरीर िे िन की करई चरक्कस
स्थान नमह है लेमकन सब िानव सिझते है की िन का स्थान िस्तक िे है िन ये प्रकृमत के साथ मसिा सों बोंि
रखते हैं और िन का और परिात्मा का मसिाों डायरे क्ट सों बोंि है . िनके द्वारा ही परिात्मा के साथ सों बोंि का
मवकास मकया जाता है लेमकन िन और परिात्मा की राह का जर से तुपुल हैं वर पुल की खराबी हरनेसे िन वर
से तुपुल पर चल शकता नही वर से तुपुल कर िजबु त रीपेरीोंग करना है अगर ये से तुपुल रीपेर हर गया तर िनकर
परिात्मा का अनुभव करने से करई नही ररक पाये गा िन के द्वारा ही आत्मा जागृ मत शक् बनती है ईमसमलये
आत्मा कर जानने से पहले अपने िनकर सों पूणत रीती से जानना पडता है . बादिे आत्मा कर जान शकते है और
ईमसके बाद ये प्रकृमत कर जान शकते है और ईमसके बाद परिात्मा का अनुभव हरता है . हरे क िानव मक िन
की मवचारिारा अपने अपने गु णर के आमिन रहती है और िानव का स्वभाव भी अपने अपने गु णर के आमिन
रहता है तीनर गु ण िेसे करईभी एक गु ण वाले िानव अपने किो के आमिन गु ण हरता है . जीवन का आिार ही
िन है ,िन है तर ईच्छा है , ईच्छा है तर गमत है , लक्ष्य है , कायत कलाप है , िन जर िानव कर भामसत हरता है
अनुभूमत हरता है वह सु धि िन नही है ये भटका हुवा बाह्य िन है . सु धि िन तर आों तररक िन हरता है

मृ त्ुुः के बाद सत् क्ां है


भाग-4
मित्र बहुत हजारर वषो से िानवयरमन शास्त्रर और अपनी अपनी मवचारिारा िे िानव उलझा रहता है लेमकन
वै ज्ञामनक तथ्रों के आिाररत इसका हल करई मनकाला नही ों है और िानवयरमन शास्त्रर के आमिन अोंिश्रधिा के
प्रवाह िे डु बती जा रही है . अगर सत्य करई कहता है तर वर बात िानव िानने के मलए तै यार नही ों हरता और
मबचिे शास्त्रर की दमलल लाकर पेश कर दे ते है . ईस तरीके से ये िानव सिुदाय अोंिश्रधिा के प्रवाह िे डु ब
जाती है . शास्त्रर जर िानव अनुभव करके मलख गये वर जुठा नही है लेमकन वर अनुभवरों के शब्रों कर लेखकर
ने जब भाषा रपाों तर करके शास्त्रर कर टाइमपोंग करवाने गये ईस सिय वर लेखक कुछ बाते उनकर सिज नही
आयी तर लेखक िे अपनी खु द की िनघडीत मवचारिारा से खुदकी मवचारिारा मलख मदया है ये ही कारण से
वतत िान िे वै ज्ञामनक युों ग िे शास्त्रर जुठा सामबत हरता जाता है . मवज्ञान तथ् मबगर की बात कर िानते नही
ईमसमलये ये ही कारण से प्रेक्टीकली यरगीओ शास्त्रर की बात िानते नही है . शास्त्रर कैसे जुठा सामबत हरता है
उिका जर एक द्रष्टाों त आपकर दे ता हुों . गों गा सती, पानबाई, की एक वाणी िे मलखा है मक "" मबजली के
चिकारे िरमतडा पररवे रे पानबाई अचानक अोंिारा थाय रे "" ये वाणी सतीगों गा ने मलखा है ईमसका भावाथत ये
हरता है की जब करई िानव यरग की शरआत िे गु रजी से आत्मसाक्षात्कार करवाते है तब उनकर जासे बाररस
िे मबजवी का चिकारा हरता है वै सा ही चिकार उनकर मत्भे टी के स्थान पर आत्मसाक्षात्कार के सिय पे हरता
है वर मबजली के चिकारे िे िन कर त्मस्थर करने की बात कही है . " िरमतडा" िन कर उपिा मदया ये
चिकारा हरता है तर मत्भे टी के स्थान पर उजाला हरता है और चिकारा बों ि हरने से अोंिारा हरता है उसकर
अचानक अोंिारा कहा है लेमकन ये बात लेखकर ने ईमस तरीके से बताया है मक सों सारी जीवन िे सु ख-दु :ख
आते है उनकर मबजली का चिकारा कहा है . सु ख कर मबजली का चिकारा कहा और दु ःख कर अोंिारा कहा.
अब मित्र आप ही सरचलर की जर गों गासती ने मलखा उसके शब्र के भावाथत िे मकतना फेरफार हर गया वाक्
का पुरा भावाथत बदव गया है. ये ही तरीका से सभी शास्त्रर िे हुवा हैं िैं ने ये सभी बातर का अनुभव कर
मलया है ईमसमलये िे बरल शकता हुों . ये ही बात "ब्रह्म" शब् के साथ हुई है और ये ही बात सृ मष्ट की सजतन
की मथयरी िे हुई हैं . सृ मष्ट सजतन की मथयरी और " ब्रह्मा-मवष्ुों-िहे श" की गमत उत्पमत सभी शास्त्रर िे अलग
अलग बतायी हैं ईसका ितलब साफ है ये ही सबसे बडा सबु त मिलता हैं िानव कर की सभी शास्त्रर कमवओ ने
अपनी अपनी िनघडीत मवचारिारा से मलख मदया है तभी तर सभी िे अलग-अलग मथयरी मिलती है ईमसिे गरड
पुराण िे तर बहुत ही मिली भगतकी छे डछाड हुई है . स्वगत लरग -िृत्युः लरक कही अलग नही है यहाों ही अपने
नजरर के सािने है लेमकन शास्त्रर वाली बातसे िानव कर िनकी मचोंत के उपर आवरण आ जाता है ईमसमलये
िानव की पहचान सरच आध्यात्मत्मक क्षे त् िे गहराई िे जाने की सरच चलती नही है . िानव की आत्मा शरीर
छरडकर जाने के बाद गरड पुराण िे कहा है मक ते ल िे लळते है . गरि पानी िे डालते है . जोंतुवाले मकचड
िे डालते है अमि िे डालते है , वै तरणी नदी िे डालते है . ये सभी चीजें गरड पुराण िे बताते है लेमकन िानव
जब शरीर छरडता है तर वर आत्मा दश द्वार से बाहर मदनिे किो की गमत के आमिन दु सरी यरमन का शरीर िे
गभत प्रवे श कर जाते हैं यहाों किो का मसधिाों त आते है . स्वगत लरग मक और िृत्युः लरक की िेने अलग-अलग
परस्ट मलखा है और किो का खेल की भी िैं ने परस्ट मलत्मख है वर परस्ट आप िेरी प्ररफाईल खरलके पढ लेना
आपकर सभी बाते सिज िे आ जाये गी िेने बहुत मडटें ल िे मलखा है ये सभी बातर कर पढ ले ना.
करईभी िानव मसधिपुरष या तर सािान्य िानव जब आत्मा शरीर छरडता है तर करई भी िानव कर पहले प्रेतयरमन
ही फरमजयात आती है . मसधिपुरष हरवे तर भी इनकर प्रेतयरमन िे पहले जाना ही पडता है . प्रेतयरमन िे ईमसमलये
जाना पडता है मक िानव का सात प्रकार का शरीर हरता हैं ईमसिेसे एक कारण शरीर हरता है जर चौथा शरीर
से यरगीओ जानते है वर ही कारण शरीर के पास अपनी अपनी किो की फाईल कारण शरीर के पास हरती है
और वर कारण शरीर ईतना तटस्थ हरता है की स्थूळ शरीर िे जर कित मकया है वर कित के आमिन ही कारण
शरीर मनणत य लेगा की अब किो के आमिन करनसी यरमन िे जाना है जैसा कित हरगा वै सा ही यरमन और
गभत स्थान, कारण शरीर ही मनणत य लेता है . एक बालभार ज्यादा भी नही और एक बालभार कि भी नही ों नही
ऐसा मनणत य कारण शरीर लेते है . उपर करई यि का दरबार नही है . यि का दरबार कारण शरीर कर ही कहाों
है . करई यिदू त मकमसकर लेने नही आते है . िानव यरमन वर कित की यरमन हैं और दु सरी सभी प्रकार की
यरमनया भरगावट की यरमनया है . लेमकन कारण शरीर कर किो की गमत के आमिन मनणत य लेने िे दस से बारह
मदन जाते है वर ही कारण से करईभी आत्मा कर पहले प्रेतयरमन िें जानाही पडता है ये फरमजयात है . करईभी
प्रकार के सों स्कार या तर किो या तर भागावट वर स्थूळ शरीर कर ही हरता है . दू सरे छ प्रकार के शरीरर िे ये
तीन बात नही हरती ईमसमलये िृत्युः के बाद जर दशिाों बारिाों करते है वर एक अोंिश्रधिा रमप प्रवाह है और
कुछभी नही. आत्मा शरीर छरडने के बाद सभी प्रकार के मनणत य कारण शरीर ही लेता है कारण शरीर एक
अोंगुठा मजतना हरता है और मदपक की ज्यरत के सिान हरता है . मदपक की ज्यरत पीले रों ग की हरती है और
कारण शरीर की ज्यरत सफेद रों ग की चिकीली ज्यरत हरती है ये अवकाश िे कारण शरीरर झुोंड के रप िे
टरळे के रप िे घुिते है लेमकन ईनकर करई दे ख नही शकता ये कारण शरीर कर दे खने के मलए त्ाटक मसधि
करना पडता है तब कारण शरीर मदखता है ये प्रकृमत का रहस्य बहुत गहरा है . ये प्रकृमत का रहस्य कर मसफत
प्रेक्टीकली यरगीओ ही जान शके है . शास्त्ररवाली ज्ञानी करई जान नही शका ये प्रकृमत का रहस्यर जानने के मलए
यरगमिया के साथ त्ाटक भी मसधि करना पडता है तब वर िानव प्रकृमत के रहस्यर जान शकते है और करई
नही जान शकेगा प्रेतयरमन जर है वर लखचौरासी के चक्कर िे आराि करने का स्थान कहा जाता है बाकी
करईभी यरमन का शरीर छु टे गा तर तु रोंत ही कारण शरीर मनणत य ले लेता और गभत स्थान ढुों ढकर वहाों गभत स्थान
प्रवे श हर जाते है एक शरीर छु टे तर तु रोंत ही दु सरा शरीर िारण हर जाता है िानव शरीर छरडनेके बाद कारण
शरीर कर मनणत य लेने िे दश से बार मदन जाते हैं तर आत्मा कर प्रेतयरमन िे ईतने मदन के मलए तु रोंत ही जाना
पडता है .
िानव कर करईभी ग्रह का नडतर कभी नही हरता ग्रहर की असर शरीर के स्वास्थ्य पर हरता है लेमकन मकस्मत
पर कभी ग्रहर की असर नही ों हरती करईभी प्रकार का मपतृ ओ की भी नडतर कभी करई भी िानव कर नही
हरती अगर मपतृ ओ की असर िानव कर नडती तर वतत िान िे एत्मिडन्ट िे बहुत िानल िर जाते है , खू न -खराबा
िे भी िानव िर जाते हैं जर मपतृ मकमसकर नडते तर वर खून करनेवाले कर नडने जावे . अगर तर एत्मिडन्ट
करने वाले कर नडने जावे खु दके कुोंटुों म्बीओ कर भी क्ुों नडे गा ये मबलकुल गलत बात है . करईभी िानव कर
मपतृ नडतर नही हरता. भू तप्रेत की नडतर भी नही ों मकमसकर नही हरती, आत्मा शरीर छरडनेके बाद दस से बारह
मदन िे दु सरी यरमन िे प्रवे श कर जाती है तर वर स्थूळ शरीर करईभी यरमन का किो की गमत के आमिन िारण
कर लेते हैं तर वर कब भु त बनकर मकमसकर नडने जाये गा. शुभ-अशुभ भी मकसकर नडते नही है , शुकन
अपशुकन भी मकमसकर नडता नही मसफत िानव कर नडतर उनके सों मचत किो ही हरते है और दु सरी करई चीज
िानव कर नडती है . सभी िानव करईभी नया कायत करे गा तर उनका िुहुतत दे खकर करते है . िुहुतत दे खकर
मकया कायत सफल हरना चामहए तर सीत्तेर टका िानव मनष्फल जाते है ऐला क्ुों हरता है . शादी भी नही ों िुहुतत
दे खकर करते है तर छु टाछे डा क्ुों हरता है . मबझनेस भी नही ों िुहुतत दे खकर करते है तर मबझनेसिे घाटा क्ुों
पडता है . टुों किे करईभी चीज िानव कर नडती नही है नडतर मसफत िानव कर िानव की ही और सों मचत किो
की है ये सभी मचजे एक अोंिश्रधिा का ही प्रवाह है और कुछ नही. ों

िृत्युः से छूटकारा
सभी िानव िृत्युः से छूटकारा पाने चाहते है लेमकन ये िृ त्युः से छूटकारा पाने की बात सिज सिजदारी की नही ों
है िानव ने जन्म मलया है तर उसका शरीर का मवसजतन फरमजयात रहता है , करईभी यरमन के शरीर जन्म िारण
करते है तर वर शरीर का मवसजतन कुदरत ने फरमजयात मकया है ईमसमलये करईभी जीव जन्म लेता है तर उसकर
शरीर भी छरडना पडता है . ईमसिे करई शक नही है ईमसमलये िृत्युः से छूटकारा की जर बात है वर सिज सरच
मबगर के जन्म से छूटकारा पाने की बात करनी चामहए ये जन्म से छूटकारा पाओगे तब आपकर िृत्युः से
छूटकारा मिल शकता है . जन्म से छूटकारा नही पाओगे तबतक िृत्युः से छूटकारा नही ों मिलेगा ये शरीर से
करईभी अजर अिर नही ों है मसफत उनके गु णर से , नाि से अजर अिर हरता है . िरण आपके हाथ िे नही ों है .
जन्म आपके हाथ िे हरता है , जन्म हे ता है तर िरण है ही जन्म आपके हाथ िे ईमसमलये है की कित से जन्म से
छूटकारा मिल शकता है ईमसमलये जन्म आपके हाथ िे हरता है . आपकी ईच्छा वासना छूट जाये गी तर आपकर
जन्म से छूटकारा मिव जाता है . जन्म ये चूनाव है और िरण उसका पररणाि हरता है . सु ख है वर चूनाव है
दु ःख उसीका पररणाि हरता है . मित् बनाया ये चूनाव है दु श्मनी उसका पररणाि हरता है ईमसमलये हरकरई िानव
कर मसफत जन्म से कैसे छूटकारा मिले ऐसा ईच्छा वासना कर मनितल करकर जीवन जीना चामहए. ईच्छा जर है वर
चूनाव है और वासना जर है वर पररणाि हरता है . ईच्छा हरगी तर ही वासना जागृ त हर शकती है और वासना
जागृ त रहने से मफरसे जन्म की मिया िे सामिल हरता है ईमसमलये ये हरकरई िानव कर जन्म से छूटकारा पाने
के मलए ईच्छा वासना कर मनितल करने का कित करना चामहए तब िृत्युः से छूटकारा मिल शकता है ईनके मबना
िृत्युः से छूटकारा नही मिलेगा. ईच्छा जर है वर चूनाव है वासना जर है वर उमसका पररणाि है . जन्म जर है वर
चूनाव है , िरण जर है वर उमसका पररणाि है . सवाल जर है वर चूनाव है जवाब जर है वर उमसका पररणाि है
मक ईमसमलये हरकरई िानव कर िृत्युः के बारे िे नही सरचना चामहए. जन्म मलया तर िृत्युः नक्की हैं . सभी िानव
कर मसफत जन्म के बारे िे ही सरचना चामहए की ये जन्म मफरसे नही हरवे उसके मलए क्ा मकया जाय ईसीके
मलए एक ही रास्ता है ईच्छा और वासनाओ का िूळ नही रहना चामहए अगर ईच्छा वासनाओ का िूळ(जड)
रहे तर उमसिेसे अोंकुर फूटने वाले नक्की है . जन्म है तर िरण भी िक्की है ये प्रकृमत का मनयि है हरकरई
चूनाव (पसों दगी) के बारे िे सरचेंगे तर उसका कित करे गे तर पररणाि झीरर झीपर ही हरता है .

तत्वो का रहस्य क्ां है ?

तत्वर की बात आध्यात्मत्मक क्षे त् िे बहुत ही िहत्व की बात और िुख्य बात है ये सृ मष्टका सजतन भी सात तत्वर से
हुवा है ।प्रकृमत का सजतन भी सात तत्वर से हुवा है और शरीर भी सात तत्वर से हुवा है ।वे दर िे भी ये ही
कहा है की जर तत्वर से जानते है वर ही ग्यानी हरता है । ये बात मबलकुल सही है आजमदन तक सभीने पाों च
तत्वर की बात मकया है लेमकन सभी मसधिरने सभी दे वीदे वताओने दर तत्वर गु प्त रखा है ईमसमलए दर तत्वर गु प्त -
रखा है की जर भी मसमिओ मिलती है वर ये दर तत्वर के आमिन ही मसत्मधिओ मिलती है ।ईमसमलए सभीने जानते
हुवे भी दर तत्वर सभी ने गुप्त रखा गया है ।ये सृ मष्टका ये प्रकृमत का सबसे बडा ये ही रहस्य है ईमसमलए ग्यानी
लरग कहते है की मझलने वाला पात् मिलेगा तर ही सभी चीजे उनकर मझलाये जाती है ये बात मबलकुल सही है ।
जर िानव कर साते य तत्वर का ग्तान हरता है वर िानव एक नयी सृ मष्ट का भी सजतन कर शिा है और मबना
नरनारी के मबना भी ये पोंच तत्वका शरीर का मनिात णभी कर शिा है ।और मवसजतन भी कर शकता है । दे वर -
के सिय िे शमनदे व ने नयी सृ मष्ट का मनिात ण करने का एलान कर मदया था और मवश्वामित्जी ने भी एक नयी
सृ मष्ट का मनिात ण करने का एलान कर मदया था ये ही सबसे बडा सबु त है की सात तत्वर का मजसकर ग्यान हरता
है वर सबकुछ कर शकता है ।
तत्वर की रहस्य के बारे िे करईभी तत्व हर तर वर तत्व की उत्पमत कीस तरीके से हरती है उस तत्वकी त्मस्थरता
मकस तरीके से हरती है ईस तत्वका मवसजतन मकस तरीके से हरती है ओर इस तत्वर के आों मशक तत्वर और कौन
सा कौनसा है वे सभीका सजतनत्मस्थरता ये सब तरीका कौनसा हरता है ये सभी बाबतर का ग्यान हरना - मवसजतन-
चामहए मजसकर ये ग्यान हरता है वर ही िानव तत्व के उपर काबुों पा शकते है । तत्व सभी अलग अलग है फीर
भी एक दु सरे से जुडा हुवा है ईनिे पाों च तत्वर से शराीर बनाया है और दर तत्वर सदा के मलए आत्मा के पास
ही रहता है ईसी तरीके से सात तत्वर से ये शरीर मिमश्रत है । साते य तत्वर का कलर भी अलग अलग है और
साते य तत्वर का सात सु र भी अलग अलग है ।
तत्वर कर जानने के मलए बहुत लोंबा सिय की यरगिय प्रेत्मक्टस हरनी चामहए और मजसका तीसरा चि खुल जाते
है लरही आत्मग्यानी िानव बनता है वर ही िानव तत्वर के बारे िे बात कर शकता है ।और करई नही कर
शकेगा ये प्रकमत िे जर भी शत्मिया काि कर रही है वर यै साते य तत्वर की ही शत्मिया अलग अलग रप िे
काि कर रही है जर िानव कर तत्वर का ग्यान हरता है वर ही िानव ब्रह्मग्यानी हरता है । िैं एकाद दर तत्वर की
बात करगा लेमकन मबलकुल साों केमतक रप से िे अवश्य बताउगाों अगला मदनर िे जर तत्वर के आों मशक तत्वर के
साथ कहुगाों लेमकन साों केमतक रूप से साों केमतक भाषा से कहुगाों क्ुों मक ये सृ मष्ट का सबसे बडा गु प्त रहस्य ये
तत्वर ही है ईनकी गु प्तता मकमसने भी खरली नही है ।मझलनेवाला पात् मिलते है तर अवश्य उनकर मझलाते है
लेमकन सािान्य िानव के सािने ये रहस्य की बात कभी नही करे गे हर करई मसधि चाहता है मक ये मवध्या
जीवों त रहनी चामहए लेमकन वर भी क्ा करे उनकर मझलने वाले पात् नही मिलते ईस तरीके से सभी मवध्याओ
िीरे िीरे लुप्त हर जा रही है ।-
करईभी नयी शत्मि के मनिात ण िे साते य तत्वर मिलकर काि करते है तभी एक नयी शत्मि का मनिात ण हरता है
ये नयी शत्मिओसे ऐसी पेदा हर जाती है ईनका कही जरटा नही मिल शकता नयी शकती के मनिात णिे साते य
तत्वर की शत्मि साते य तत्वर का कलर साते य तत्वर की साते य सु रर ये सभी मिलकर नयी शत्मि का मनिात ण -
हरता है ईसीिे जर आपकर एक थरडी सी सू ररके बारे िे कहता हुों की सात सू रर जब एक साथ िे बहकर एक
सू र बनता है तर ये नये सू र की शत्मि िानव िन कर डरला दे ती है । पशुों पोंखीओ चर भी डरला दे ते है जड
जीव कर वनस्पमतयर कर भी डरला दे ते है ।ऐसा क्ुों हरता है ऐसा ईसमलए हरता है की ये सात सूरर सात तत्वर की
अलग अलग सू रर सभी सू रर मिलकर एक रप िे बहने लगता है ।ते सािने वाले सभी चीजे ये सात तत्वर से ही
बनी हुई है ईमसमलए वर डरल उठती है और िन जर बना है वओ भी सात तत्वर से ही बना है ईमसमलए तत्वर िे
वर लीन हर जाते है ।ये िेने आपकर सू रर करनसे तरके से तत्वर करनसे तरीके से काि करता है ईसीकी मसफत
एक झलक मलखा है ।
सभी तत्वर अद्रश्य रों प से मनराकार के रूप िे शत्मिया काि करते है ।लेमकन जर िानव वर तत्वर की अद्रश्य
मनराकार शत्मि कर द्रश्य रपिे साकार रप ने लेखने लगे उसीकर ही ब्रह्मलीन अगर तर ब्रह्ममषिॅ कहा जाता है
मनमझया िित िे ये ही सात तत्वर की मथयरी कर प्रेत्मक्टकली कर के कैसे हामसल मकया जाता है ये ही मनमझया
िित की पहे लुों है बाद िे शीवजी ने सनातन िित मक स्थापना मकया है मजसिे गु रपरों परा िे ये थीयरी कर स्थामपत
मकया है ।
जर िानव कर तत्व का ग्यान हरगा वरही िानव ये तत्वर की बात सिज पाये गा दु सरा करई सिझ नही पाये गा द

तत्त्वर कैसे काि करते है

ये सृ मष्ट का सजतन कुदरत ने सात तत्त्वर से मकया है और साते य तत्त्वर आपरआप स्वयों सों चामलत है ये सृ मष्ट िे
जहाों भी जर भी तत्त्व की जरररयात हरती है वहाों तु रोंत ही आपरआप वर तत्त्व उनका काि कर दे ते हैं ऐसे सभी
तत्त्वर स्वयों सों चामलत मकया है और साते य तत्त्वर से सृ मष्ट स्वयों सों चामलत है . िु ख्य सात तत्त्वर है वर साते य तत्त्वर
के अनेक आों मशक तत्त्वर भी है लेमकन िु ख्य रप से ये सात तत्त्वर है .
वनस्पमत का करईभी बीज िानव जिीन िे ररप ते है तर जिीन ये पृथ्वी तत्त्व है . पृथ्वी तत्त्व िे बीज डालकर
उपर पानी भी डालते है पानी ये जल तत्त्व है . पृथ्वी तत्त्व और जल तत्त्व ये दरनर तत्त्वर साथ िे मिलनेसे वहाों
आपरआप तु रोंत ही अमि तत्त्व की हाजरी हर जाती है . पृथ्वी तत्त्व और जल तत्त्व साथ िे मिलनेसे वहाों जिीन
िेसे बफारा हरने लगता है जर बफारा हरता है वर ही अमि तत्त्व है , अमि तत्त्व मबज कर मिलने से मबज भी परचा
हर जाता है , करईभी वनस्पमत के मबज के गभत िे कूपल हरती है जहाों कूपल हरती है वहाों मबज के अोंदर थरडी
सी जग्या खुली हरती है . कुछ छरटा मबज िे वर खुली जग्या नरी आों ख से मदखती नमह लेमकन करईभी प्रकार का
मबज िे जग्या हरती ही है वर मबज की अोंदर जगा हरती है वर जगा िे शू न्यावकाश हरता है . शू न्यावकाश के
महसाब से वर शून्यावकाश िे गु रत्वाकषतण तत्त्व हरता है जब करईभी मबज कर पृथ्वी तत्त्व और जल तत्त्व दरनर
मिलनेसे वहाों अमि तत्त्व की हाजरी से मबज परचा हरता है मबज परचा हरनेसे मबज फूलता है तर तु रोंत ही मबज के
अोंदर जर गु रत्वाकषतण तत्त्व हरता है वर गु रत्वाकषतण तत्त्व तु रोंत ही अपनी शत्मि से जड चैतन्य कर आकमषतत
करता है और वर मबज की कूपल िे चैततन्य का वास हरने के बाद तु रोंत ही वहाों आकाश तत्त्व वर कूपल कर
फूलने फालने के मलए जगा दे दे ते है और वर कूपल कर वायु तत्त्व आकाश तत्त्व आपरआप मिल जाता है और
वर कूपल ने जड चैतन्य की पुरती हरकर बहा पेड बनने की तै यारी िे लग जाता है . ये सृ मष्ट िे करईभी प्रकार
की मबज िे ये ही तरीके से साों तेय तत्त्वर काि करते है. जर जिीन िे मबज डालते है वर पृथ्वी तत्त्व है . जल
डालते है वर जल तत्त्व है , बफारा हरता है वर अमि तत्त्व है , मबज के अोंदर गु रत्वाकषतण तत्त्व है वर ही
गु रत्वाकषतण तत्त्व अपनी शत्मि के िाध्यि से जड जीव जर है वर प्राणतत्त्व है , जड जीव कर आकमषतत करके
अोंदर कूपल िे पुरते है और वर कूपल कर आकाश तत्त्व मिलने से वर बडा पेड फूलते फालते है और वायुों तत्त्व
भी उनकर आपरआप जिीन से बहार कूपल जब मनकलती है तर वायुों तत्त्व भी मिल जाते है इमस तरीके से जड
चैतन्य िे साते य तत्त्वर आकमषतत हरकर वास्तमनकता खडी करते है . ये ही मथयरी लखचौरासी के सभी यरमनयर िे
कुदरत ने सामिल मकया है नारी वगत पृथ्वी तत्त्व कहा जाता है , नर वगत िे से पृथ्वी तत्त्व नारी के गभत िे मबज
तत्त्व और जल तत्त्व दरनर साथ िे ही मिल जाता है नारी के गभात शय िे शून्यावकाश हरने से वहाों गभात शय िे
गु रत्वाकषतण तत्त्व साों मिल हरता है और नारी के शरीर िे से अमि तत्त्व भी मिल जाता है और गभत का मवकास
हरने लगता है जब गभत सात िास का हरता है तब नारी के गभत िे जर गु रत्वाकषतण तत्त्व हरता है वर
गु रत्वाकषतण तत्त्व तु रोंत ही सातिे िास से जैसा कमितत गभत है वै सा ही कमितत जीव कर आकमषतत करके नामभ
द्वार से जीवकर खीच लेगा और वायुों तत्त्व दरनर मिलनेसे वर गभत वातावरण िे बहार आ जाते है .
लखचौराशी के कूछ यरमन ऐसी है जर वातावरण के आमिन जीवर की उत्पमत्त हर जाती है . जर जीव की उत्पमत्त
िे नर-िादा की सहायता की जरररयात नही रहती लेमकन ऐसे यरमनयर की आयुष्य लोंम्बा नही हरता. एक
कलाक से लेकर चार कलाक तक ऐसे यरमनयर की आयुष्य हरती है ऐसे जीवर की उत्पमत्त के बारे िे जब करई
िानव अभ्यास करे गा तर वर िानव तत्त्वर के बारे िे तत्त्वर कैसे काि करते है उसका ज्ञान हरगा बहुत रहस्यिय
तत्त्वर की बात आज िैंने मकया है .
तत्त्वर के बारे िे िैंने बहुत मसमि-सामद और सरल भाषा िे िानव कर सिजाने की करमशश मकया है ये ही
मथयरी से ये प्रकृमत के सों चालन िे ये ही मथयरी तत्त्वर ही काि कर रही है . सभी शत्मियरों स्वयों सों चामलत है वर
ये ही मथयरी से सभी शत्मियाों स्वयों सों चामलत हरती है ये ही कारण से भग और मलोंग दरनर शत्मियरों कर एकरप
िे एकमत्त करके मशवमलोंग के नाि से प्रमतक दे कर उनकी पूजा हरती है . मशवमलोंग की जर प्रमतक दे कर पूजा
हरती है ईमसिे िुख्य रहस्य सात तत्त्वर का ही है ये ही सृ मष्ट िे ये ही सबकर बडा रहस्य छु पा हुवा है ये
मशवमलोंग के बारे िे कुछ िानव उलटा अथत बताकर िानव िगज कर भ्रों ाोंमित कर रहे है . (ििश:
.......)

ये सृ मष्ट िे साते य तत्त्वर मिलकर िृत्युः लरक का स्थूळ शरीर िारण करते है ईमसकर स्थूळ शरीर कहा जाता है .
ईमसमलए उनकर स्थूळ शरीर कहा जाता है .स्थूळ शरीर िे पृथ्वी तत्त्व और जल तत्त्व प्रिाण िे ज्यादा रहते हैं
स्थूळ शरीर के मबना करईभी जीवात्माों कुछ भी कर नही ों पाते .ये स्थूळ शरीर का बहुत िहत्व का हरता है , कुछ
भी हाों सल करने के मलए जू नी स्मृमत कर ताजी यादगार बना के स्मृमत पटल पे जागृ त करने के मलए िानव
यरमनका स्थूळ शरीर िारण करे मबना कुछभी नही कर शकते स्थूळ शरीर िारण करके यरग मिया से सभी .
शत्मियाों जागृ त कर कर आत्मा शरीर थरड दे ते है वर आत्मा मसधि हर जाता है बाद िे स्थूळ शरीर छरडकर
पाराण शरीर और सु क्ष्म शरीर साथ िे लेकर आत्मा कारण शरीर िारण करता है कारण शरीर िारण कर कर .
और बाकी का .वर जर उनका िन चाहे वर कर शकता है ये स्थूळ शरीर स्थूळ जगत का हरता है 6 शरीर
सु क्ष्म जगत का हरता है सभी शरीर का मवकास करना पडता है वर मवकास स्थूळ शरीर के िाध्यि से ही हरता
है ये सभी मथयरी िे सात तत्त्वर ही काि करते है ये सृमष्ट िे िहत्व का िुख्य खेल सात तत्त्वर का ही है ये .
.सृ मष्ट िे सभी प्रकार की शत्मियर स्वयों सों चामलत जर है वर ये सात तत्त्वर के आमिन ही स्वयों सों चामलत है

प्राितत्व

भाग-1

स्थूळ जगत के मलये और आध्यात्मत्मक सािना के मलए प्राणतत्व बहुत िहत्व का काि करते है , प्राणतत्व की जर
भी मिया पुरे ब्रह्माों ड िे हरती है वर ही मिया प्रमतमिया के रप िे शरीर िे हरती है. आत्मासाक्षात्कार के मलए
अगर तर आत्मा की जागृ मत के मलए प्राणतत्व के द्वारा ही हर शकता है . प्राण ये श्वास नही है श्वास ले ने की
मिया िे प्राणतत्व सािेल हरता है प्राण की मविु तशत्मि के साथ सरखािणी हर शकती है . मविु तशत्मि भौमतक
प्राण है और प्राणतत्व जीवों त पदाथत िे रहती मविु त कहा जाती है पुरे ब्रह्माों ड िे प्राणतत्व व्यापक है प्राणतत्व
प्रकृमत का एक मनयि है . दरचीज िेसे जर भी चीज िे प्राणतत्व कि है तर दु सरी चीज िे प्राणतत्व ज्यादा है तर
किवाली चीज िे प्राणतत्व तीन फुट की दे री से भी ज्यादा प्राणतत्व वाली चीज िे से आपरआप आकार सिानता
हरती है , आपरआप ये मिया बर जाती है जर िानव आध्यात्मत्मक हरता है उनकर सािना के िारफत से प्राणतत्व
शरीरिे बढता जाता है और जर िानव अििी,गों दा मवचारिारा वाले और ररमगष्ट िानव का शरीर िे से प्राणतत्व
मदन प्रमतमदन कि हरने लगता है प्राणतत्व का िुख्य स्त्ररत सू यत िेसे और वनस्पमत से उत्पन्न हरता रहता है ये
प्रमकया सतत चालुों रहती है प्राणतत्व कर प्रत्यक्ष यरगी पुरषरों ही दे ख शकते है लेमकन िे आपकर प्राणतत्व प्रत्यक्ष
रीती से मदखाता हुों आप दे ख के अखतरा कर लेना अपनी नजर आकाश की तरफ उची करके दे खर और आों ख
का पलकारा िारा मबगर अकीटचे अवकाश िाों एक स्थाने त्मस्थर करदर आपकर आिी मिमनट िे अपनर से 20 से
30फुट की दु री पर अवकाशिे ते जस्वी कणर-अणु ओ घुिता मदखेगा वर भी बहुत सिुह िे टाळे के रपिे ते जस्वी
सफेद कलर का चिकता कणर -अणु ओ आपकर मदखेगा वर ही प्राणतत्व के अणु ओ है जर प्राणतत्व कर नरी
आों ख से नही दे ख शकते लेमकन त्मस्थर नजर से दे ख शकते है आप मदनिे अवकाश की तरफ नजर एक स्थान
पर त्मस्थर करके खुद ही अनुभव करलर तर आपकर िालुि हर जाये गा ऐसा ही कारण शरीर हरता है लेमकन
कारण शरीर अोंगुठे जैसा बडा मदखता है और मजसने नजर सािना मकया है वर ही िानव कर कारण शरीर
मदखने मिलेगा और करई नही दे ख शकता शरीर िे प्राणतत्व री किी हरने से शरीर ररमगष्ट बनता है और शरीर
िे प्राणतत्व बढ जाने से शरीर मनररगी बनता है और सु क्ष्म जगत की और ले जाता है करईभी प्रकार की सािना
करने का िुल्य हे तुों शरीर िे प्राणतत्व की बढरत ही करना ये ही सािना का हे तुों हरता है आध्यात्मत्मक क्षे त् िे
अनेक प्रकार से भत्मि करते हैं . ज्ञान यरग, कित यरग, राज यरग, हठयरग, िोंत् यरग, सों गीत यरग करईभी यरग से आु
चलर तर सभी िे प्राणतत्व का ही पाले िहत्व मदया है और सभी यरग िे प्राणतत्व की ही बढौतरी करने का
िहत्व मदया है वर ही प्राणतत्व से मवऩास हरता है और वर ही प्राणतत्व से अिर हरता है और वर ही प्राणतत्व से
जीवकर शीव िे पलटते है ये सृ मष्ट के सजतन िे सबसे पहले प्राणतत्व की ही उत्पमत्त हुई है बाद िे गु रत्वाकषतण
तत्व की उत्पमत्त हुों ई है ये दर तत्वर से सृ मष्ट के मलए बहुत िहत्व की चीज है .
(ििश:)
भाग-2

गताों क भाग से चालुों


प्राणतत्व और गु रत्वाकषतण तत्व दरनर तत्वर अलग-अलग हरते हुवे भी साथ िे ही रहकर दरनर शत्मि काि करती
है िानव िगज का मवकास करने िे िुख्स प्राणतत्व से ही िानव का िगज डे वलरप हुवा है िानव िगज डे वलरप
हरने से उसी िेसे मवज्ञान का जन्म हुवा है , शरीर िे प्राणतत्व का वपपाश चालुों ही रहता है और उत्पमत्त भी चालुों
ही रहती है ये प्रमकया सतत चालुों ही रहती है . दररया काों ठे प्राणतत्व दस से बार अणु ओ से ज्यादा मिलता है
वड के पैंड िे और पीपल के पैंड िे भी ये ही अणुवाला प्राणतत्व मिलता है जर शरीर के मलये बहुत ही
फायदा िोंद है . नदी मकनारे भी ये ही अणु ओ िे प्राणतत्व मिलता है , बाकी सब जगा पर प्राणतत्व का अणु ओ
तीन से लेकर पाों च तर अणुवाला प्राणतत्व हरता है , 10 से 12 अणु ओ वाला प्राणतत्व से आध्यात्मत्मक मसत्मि जलदी
प्रगट हरती है करई मसि पुरष मकमसकर आत्मसाक्षात्कार कराते है तर ईमसिे 10 से 12 अणु वाला प्राणतत्व से ही
आत्मासाक्षात्कार हरता है , ईमसके मबना साक्षात्कार नही हरगा ये प्राणतत्व कर सिजकर जान मलया वर ही मसत्मियाों
भरपुर बाते है और सभी मसत्मिओ प्राणतत्व से ही मिलती है ईमनके मबना करईभी मसत्मि नही मिल शकती ये
प्रकृमत का मनयि है .
प्राणतत्व िे स्पोंदन का तरों गर उत्पन्न हरने से आकाश तत्व की उत्पमत्त हुों ई है और प्राणतत्व और गु रत्वाकषतण
दरनर तत्वर से अमि तत्व उत्पन्न हुवा है ईमसकी सबसे बडी सामबती आपके सािने ही है आप बीडी जलाने के
मलए जर गों िकवाली मदवासळी का दपतण करते हर तर वर घषतण िे प्राणतत्व नही मिलेगा तर अमि कभी प्रगट नही
हर शकती प्राणतत्व घषतण िे मिलनेसे अमि तत्व उत्पन्न हरता है अमि की उत्पमत्त स्थान प्राण तत्व ही है और
गु रत्वाकषतण तत्व से वायुों तत्व और दल तत्व की उत्पमत्त हुों ई है और ये बाद िे पृ थ्वी तत्व उत्पन्न हुवा है जर भी
िानव ने ये दर तत्वर (1)-: प्राणतत्व और (2):-गु रत्वाकषतण ये दरनर तत्वर की जानकारी और सिजदारी मजसकर
बर गई उनके चरणर िे सभी प्रकार की मसत्मियाों दासी बनकर आती है , ये दर तत्वर की जानकारी मबना करईभी
िानव आध्यात्मत्मक िे आगे नही बढ शकता सभी तत्वर की उत्पमत्त सभी तत्वर की मवसजतन सभी तत्वर कर त्मस्थर
कैसे मकया जावे ये सभी बात की जानकारी तत्वर के बारे िे जानने वाला पुरष ही परिात्मा कहा जाता है .
गु रत्वाकषतण तत्व से वायुों तत्व की उत्पमत्त कान सबसे बडा सबु त ये है की जहाों भी शून्यवकाश हरता है वहाों
गु रत्वाकषतण तु रोंत ही आ जाता है गु रत्वाकषतण आ जाने से चारौ तरफ से खैंचाण हरता है वर खैंचाण से वायुों
तत्व की उत्पमत्त हरती है गु रत्वाकषतण का मनयि ये है की जहाों गु रत्वाकषतण की शत्मि बढती है वहाों बहुत भारी
दबाव िे खैंचाण उत्पन्न हरता है ये प्रकृमत का गु रत्वाकषतण का मनयि है जर मनयि आजका मवज्ञान ने भी िान्य
रखा है ये सृ मष्ट िे अवारनवार चारौ तरफ शून्यवकाश हरता ही रहता है सिुोंदर िे ज्यादा शत्मिशाली शून्यवकाश
हरता है ईमसमलए ही वावाझरडा उत्पन्न हरता है अिेररका िे ये वों टाळ मवनाशक पेदा हरता है ये तत्वर के बारे िे
िैंने उपरसली िामहती मदया है मवस्तृ त से जानकारी िे आपकर नही दे शकता ईमसिे प्रकृमत की ियात दा है सभी
तत्वर का सजतन, सों चालन ,मवसजतन करने का ररिरट कोंन्टर रल िानव शरीर िे मदया है ईमसका भी सबुत ये है की
आगे के तीनर युों गरिे यु ि हरता था तर ईमसिे तत्वर से भी यु ि लडा जाता था करई दे व िुह िे से अमि की
ज्वाला मनकाल ते थे करई दे व िुोंह िे से पवन और पानी मनकाल ते थे ऐसा सबु तर शास्त्रर िे मिलता है और
गु रत्वाकषतण तत्व की िदद से आकाश िे भी गिन करते है ये सभी सबु तर शास्त्रर िे है और जल तत्व की
िददसे जलके स्तर पर भी चला शकते है तत्वर के रीिरट कोंन्टर रल िानव शरीर िे भी है .

अवि तत्व का रहस्य क्ां है


गरम अवि

अमि तत्व कर कुदरत ने दर मवभाग िे बाट मदया है . (1):- गरि अमि और (2):- दु सरी शीत-ठों डी अमि. ईमस
िेसे गरि अमि जर है मदल वर भस्म करने, वाली जलाने वाली ,दझाड ने वाली है ऐसी गरि अमि हरती है . गरि
अमि प्रागट्य प्राण तत्व से (ओत्मिजन) से ही हरता है और करईभी दर चीज का घषतण हरने से गरि अमि का
प्रागट्य रखा है . िषतण करने से घषतण िे ओत्मिजन नही मिलेगा तर अमि कभी प्रगट नही हर शकती, प्रगट हुई
अमि कर ओत्मिजन मिलना बों ि हर जाये गा तर अमि तुरोंत ही बु झ जाये गी ईमसमलए गरि अमि प्रगट करने के
मलए प्राणतत्व की जरररयात हरती है प्राणतत्व िे से ही अमि तत्व का उत्पन्न हरने का प्रिाण है .स्थूळ जगत का
मवकास करने िे ये गरि अमि िुख्य स्त्ररत है गरि अमि से ही स्थूळ जगत का मवकास हुवा है और स्थूळ
जगत का जर भी काररबार चलता है वर अमि तत्व से ही सभी चीजर िे फेरफार हरकर मवकमसत हुवा और
मवकास के रप िे वास्तमवकता बनती है , ईमसकर मवज्ञान के रप से जाना जाता है मवज्ञान का मवकास हरने के
मलए अमि तत्व का िुख्य स्त्ररत है , गरि अमि सूयत के मकरणर से ही िानव उत्पन्न हरती है ईमसिे भी ओत्मिजन
नही मिलेगा तर अमि कभी प्रगट नही हरगी. गरि अमि सजतनात्मक और मवनाशक ये दर रप प्रगट करती है . ये
दरनर रप आज के मवज्ञान ने अपनाया है अमि तत्व का सहारा से ही आज का मवज्ञान पराकाष्ठा पर है और
दु सरर ग्रहर पर िानव सथूळ शरीर से आवन-जावन कर रहे हैं . गरन अमि का सों चालन करना या ने के सजतन-
मवसजतन करने का रीिरट कोंन्टर रल िानव शरीर िे िौजुद है ईमसका प्रिाण शास्त्रर-वे दर िे मिलता है . अनुभव से
िानव कर ये बात काि ज्ञान और प्रिाण भी मिलेगा गरि अमि कैसे प्रगट हरती है और प्रगट हुई अमि कर
कैसे तरीके से शाों त मकया जाय ये ज्ञान िानवी कर जब अनुभव करता है तब हरता है और अमि तत्व का
उद्दभव स्थान और मवसत जन दरनर का जब ज्ञान हर जाता है तब वर िानव अमि तत्व का सों चालन करने िे सफल
हर जाता है ये सृ मष्ट का सजत न सात तत्वर से हुवा है ये साते य तत्वर का उद्दभव स्थान और मवसत जन स्थान का
जर िानव ज्ञानी-अनुभवी बनता है वर ही
खुदरत के नाि से जाना जाता है अनुभव करना और शास्त्रर का मथये री का ज्ञान ये दरनर अलग पड जाता है
अनुभव वाला िान कुछ हाों सल करता है और शास्त्रर की मथयरी वाला ज्ञानी िानव ईमसिे ही भ्रिण करता है
आगे नही बढ शकता और उसका अोंत नही हर शकता पररपूणत नही हर शकता अनु भवी नही हर शकता उनके
मलखाण के शब्र से ही िालुि हर जाता है की अनुभव का ज्ञान है की शास्त्रर का ज्ञान है ये उनके मलखाण से
वाणी से वतत न से तु रोंत ही िालुि पड जाता है .
गरि अमि का खरराक स्थू ळ जगत की सभी चीजर है और गरि अमि का सों चालन टीकायिान -मसफत प्राणतत्व
(ओत्मिजन) ही है , प्राणतत्व के मबना गरि अमि कभी टीक नही शकती और टीकायिान भी नही हर शकती
गरि अमि और शीत अमि दरनर अमि का उद्दभव स्थान प्राणतत्व िे से ही प्राणतत्व के मबना दरनर अमि का
उद्दभव स्थान नही हर शकता करईभी चीज का िूळभु त िेसे पररवतत न करने के मलए अमि तत्व का ही सहारा
मलया जाता है है तभी वर चीज के गु णिित िे पररवतत न हर शकता है गरि अमि िे से ही काबत न डायरिाईड
वायुों उत्पन्न हरता है जर रतुों पररवतत न िे िहत्व का सु त् है और काबत न वायुों ,प्राण वायुों , नाईटर रजन, तीनर वायुों जब
प्रिाण िे अवकाश िे एकत्ीत हरता है तब बारीश पडना शुर हर जाती है तीन िे से एकभी वायुों कि हरगा तर
बारीश नही पडे गी ईमसमलए ये सृ मष्ट चलाने िे भी गरि अमि िहत्व की है .

शीत-अवि
भाग -1 िे गरि अमि की बात मकया है और ये भाग िे ठों डी-शीत अमि की बात करे गे .ठों डी-शीत अमि जर
हरती है वर बहुत आहलादक और सु खिय और मनररगी हरती है . शीत अमि की उत्पमत्त प्राणतत्व से ही हरती है
मजसकर चेतना (उजात ) से िानव जानते है . पोंचतत्व के शरीर िे जर प्राणवायुों और अपान वायुों दरनर वायुों एक
साथ टकराने से मवस्फरटके रप िे शरीर िे चेतना पेदा हरती है वर चेतना आरािदायक, सु खदायक, मसत्मि दायक
और शरीर कर मनररगी अवस्था िे रखते हैं वर ही चेतना (उजात ) कर शीत-ठों डी अमि कहा जाती है शरीर िे हर
वखत ये चेतना पेदा हरती रहती है वर चेतना पेदा करने के मलए जर श्वासर-श्वास की मिया करते है तर पवन के
साथ प्राणतत्व मिक्ष हरकर शरीर िे दाखल हरते हैं . श्वास की मिया से बहार से प्राणतत्व शरीर त्मखचते है और
शरीर के अोंदर से अपान वायुों का खेंचाण उपर की तरफ छाती िे दरनर वायुों मिक्ष बरकर टकराव हरने से
मवस्फरटक के रप िे पुरे शरीर िे फैल जाती है हर श्वास िे ये मिया हरती रहती है ईमसमलए शरीर िे उजात
मिलती रहती है ये ही उजात का स्त्ररत कि हरने से शरीर ररमगष्ट बनता है और ये ही उजात का बढावा करने से
शरीर मनररगी बनता है . हलका फूल जैसा बन जाता है और मसत्मि दायक आत्मा के कल्याण कारी हरता है .
शरीर िे बहुत प्रकार की शीत-अमि हरती है जर ये ही चेतना उजात िे से उनका मवस्तरी करण हरता रहता है
(1) :- जठरामि, (2) :- िरिामि, (3):- नजरामि, (4):- त्वजागरिी, (5):- शब्ामि, (6):- ध्यानामि, (7):- परिानोंदामि, (7) :-
बफारामि, (8):- ज्वरामि, (10):- कािामि, (11):- िादामि.
उपररि सभी प्रकार की अमि शीत अमि कहा जाती है जर भी िानव ये शरीर िे उत्पन्न हरने वाली शीत अमि
सभी प्रकार की ये सभी प्रकार की अमि का उत्पमत स्थान और मवसजतन करने की मिया कर अच्छी तरह जान
लेवे और उनकी अनुभूमत कर लेवे वर िानव अमि तत्व पर काबुों ले शकते अमि तत्व कर ईनकी ईच्छा िुजब
चला शकते है . गरि अमि और शीत अमि दरनर अमि का उद्दभव स्थान और मवसत जन स्थान मिया की जानकारी
मजसकर हर जाती है वर ही िानव अमि तत्व कर काबुों िे ले शकता है ये तत्वर के बारे िे िेने बहुत सों मक्षप्त िे
और साों केमतक रपसे िेने आपकर कहा है . डीटे ल िे तत्वर की गहराई िे जर आपकर जानकारी नही दे शकता
ईमसिे गहराई िे दे ने के मलए प्रकृमत का मनयि लागुों पड जाता है . ईमसमलए नही दे शकता भत्मि की या ने तर
यरग मिया की मसिा पराकाष्ठा पर जर िानव पहरच जाता है ईनके बाद वर िानव कर तत्वर का ज्ञान हरता है .
जर िानव तत्वर का ज्ञान बनता है वर ही िानव परिपद पर बे ठता है और परिपद पर बे ठने के बाद जर िानव
यरग मिया िे आगे बढता है वर ही िानव परिात्मा कहा जाता है .
शीत गरिी की उत्पमत्त भी घषतण से हरती है लेमकन वर घषतण दर वायुों के घषतण से उत्पन्न हरती है लेमकन वर
दरनर वायुों के गु णवत्ता का ज्ञान हरने चामहए तब उनकर सफलता मिलती है नहीतर वर ररमगष्ट बन जाये गे. शीत
अमि कर प्रगट करने के मलए शरीर का शुत्मिकरण करना वर प्राथमिक जरररयात है . शरीर िे मजतनी प्रकार की
शीत अमि है वर सभी शीत अमि का प्रागट्य और मवसजतन का ज्ञान मजसकर हरता है वर सभी प्रकार की अमि
पर कोंन्टर रल कर शकता है और उनकर मसत्मि के रप िे रपाों तररत भी कर शकता है . गरि अमि और शीत
अमि दरनर का सों चालन कपने का एक रीिरट कोंन्टर रल शरीर िे भी सामिल है और दु सरा रीिरट कोंन्टर रल स्वोंय
सों चामलत है जर प्रकृमत के पास है . शीत अमि पुरे शरीर िे फैल जाने के बाद िीरे -िीरे उपर चढने लगती है .
िस्तक िे पुरी जिाों हर जाने के बाद मफर शरीर िे वामपस उतरती है वर उतर जाने के बाद मफर उपर की
तरफ िस्तक की तरफ चढने लगती है दर बार जब उपर चढने लगे गी तब चैतन्य कर मजसकर कुोंडलीनी नाि से
जानते है उनकर साथ िे लेकर उपर चढे गी और एक के बाद एक चि का वे िन करके उपर िस्तक की तरफ
चडे गी और चैतन्य और चेतना दरनर िस्तक िे जाकर एक रप हर जाते है और दशिे द्वार पे दरनर एक रप
हरकर बहुत भारी दबाव करे गे और वर दबाव से दशिाों द्वार खुल जाता है जब िानव का दशिाों द्वार खुल
जाये गा तब वर िानव तत्वर पर काबुों ले शकते है तत्वर का रीिरट कोंन्टर रल उनके हाथ िे आ जाता है .

गुरुत्वाकर्ष ि तत्व का रहस्य क्ां है


गु रत्वाकषतण तत्व दर मवभाग िे रखा है . नेगेमटव और परझीटीव. या ने के उनकर दु सरे नाि से जानने के मलए
आकषतण और अपाकषतण भी कहा जाता है . गु रत्वाकषतण तत्व पुरा ब्रह्माों ड िे दरनर रप िे भरपुर है और हर
करई चेतन जीव के अचेतन जीव के शरीर िे भी गु रत्वाकषतण तत्व दरनर रप से काि करते है . पदाथत िे भी
गु रत्वाकषतण तत्व दरनर रपसे काि करते है . पुरे ब्रह्माों ड िे दरनर रपसे गु रत्वाकषतण की शत्मि से ही पुरी
ग्रहिाळा-तारा िोंडल- अवकाशगों गा मनहारीकाओ ये सबिे आकषतण -अपाकषतण दरनर शत्मि से ही ग्रहिाळा
टीकायिान और चलायिान है . गु रत्वाकषतण की दरनर शत्मि आकषतण और अपाकषतण सिान रपिे ही काि
करती है जर स्वोंय सों चामलत रीिरट कोंन्टर रल प्रकृमत के पास है और िानव शरीर िे भी रीिरट कोंन्टर रल सामिल है
लेमकन िानव शरीर िे वर रीिरट कोंन्टर रल चालुों कायत वामहत करना पडता है . एक बात हों िेशा याद रखना की
प्रकृमत की करईभी शत्मि का मसिाों त जर प्रकृमत कर लागुों पडता है वर ही मसिाों त िानव शरीर कर भी लागुों
पडता है ये सृ मष्ट सों चालन िे िहत्व की तीन शत्मियाों काि कर रही है
(1):- गु रत्वाकषतण शत्मि, (2):- तरों ग या ने िरझा शत्मि, (3):- चेतना और चैतन्य शत्मि ये तीनर शत्मि पुरे ब्रह्माों ड
िे सरासर व्याप्त है . पृथ्वी ग्रह का उत्तर ध्रु व का छे डा -अपाकषतण शत्मि से भरपुर है और पृथ्वी का दमक्षण
ध्रु व छे डा आकषतण शत्मि से भरपूर है . चुोंबक का एक मसिाों त है मक आकषतण और अपाकषतण दरनर सिान िे
हरता है सिान शत्मि काि करती है और आकषतण और अपाकषतण दरनर मवरि िे हरता है तर अपाकषतण काि
करता है और दरनर एक दु सरे की तरफ आकमषतत हों िेशा रहता है वर आकमषतत रहने के कारण ही पुरी
ग्रहिाळा उनकी िरी पर हों िेशा घुिती रहती है . िानव शरीर िे भी आकषतण -अपाकषतण दरनर शत्मि सामिल
है किर से नीचेका भाग पैर तक वर अपाकषतण शत्मि काि करती है और किर से उपर का िस्तक तक का
भाग आकषतण शत्मि काि करती है लेमकन लरहतत्व भरपुर है वर ही लरहतत्व से ही शरीर िे गु रत्वाकषतण शत्मि
काि करती है अगर लरही िे लरहतत्व नही हरता तर शरीर का सों चालन जर स्वोंय सों चामलत है वर कभी नही हरता
शरीर का सभी अवयवर की स्वोंय सों चामलत जर काि करते है लरह पररभ्रिण हरता है वर सभी गु रत्वाकषतण शत्मि
से ही स्वोंय सों चामलत हरता रहता है मवज्ञान सों ित है ये बात से . वर ही कारण से अपने पूवत जर ने उत्तर की
तरफ िस्तक रखकर सरने की िनाई कहा है . आप ये बात का अखतरा कर लेना एक रात उत्तर की तरफ
िस्तक रखकर सरये गे तर सु बह िे आपका िस्तक भारी भारी लगे गा शरीर मबलकुल मनस्ते ज हरगा. स्फूमतत रहे गी
नही एसा क्ुों हरता है क्ु मक आकषतण और अपाकषतण शत्मि ईसिे काि करती है . शरीर िे िस्तक की तरफ
आकषतण शत्मि है और उत्तर ध्रु व िे भी अपाकषतण शत्मि है दरनर शत्मि आिने सािने सिान हरने से शत्मि
बढती है लेमकन दरनर मवरि िे रहने से शत्मि हाों स हरता है ईमसमलए एसा हरता है ईसका अखतरा करना है तर
आप दर लरह चुोंबक बडा ले कर आकषतण -अपाकषतण साि ने नजीक रखर तर तु रोंत आपकर पुरी बात सिजिे
आ जाये गी िानव शरीर िस्तक का भाग उत्तर ध्रु व कहा जाता और पैर का भाग दमक्षण ध्रु व कहा जाता है .
चुोंबक िे भी दरनर िे जुदी-जुगी रीते असर कतात और गु णिित है . उत्तर ध्रु व ठों डी तासीर वाला है और दमक्षण
ध्रु व गरि तासीर वाला है . ईमसमलए यरगीयरका पेट का भाग नरि हरता है िस्तक का भाग गरि हरता है और
पैर का भाग ठों डा हरता है . पुरे िानव शरीर िे साते य तत्वर का सों चालन स्टे पबाय स्टे प साते य चिर िे सामिल
है . सभी चिर िे अलग-अलग तत्व का सों चालन हरता है ये ही कारण से िे कहता हुों के साते य तत्वर का
सों चालन का रीिरट कोंन्टर रल प्रकृमत के पास भी है जर स्वोंय सों चामलत है और िानव शरीर िे भी साते य तत्वर का
सों चालन करने का रीिरट कोंन्टर रल भी है जर सु षुप्त अवस्था िे है . गु रत्वाकषतण तत्व की बहुत टुों किे सों मक्षप्त िे
और साों केमतक रीतीसे िेने बात मकया है . गु रत्वाकषतण तत्व शरीर िे मकस तरीके से काि करता है वर िेने
िानव शरीर के मवज्ञान िे चिर के मवभाग िे मदया है आप दे ख लेना िेिेट थेरापी शरीर िे ररगर हटाने के मलए
काि करती है वर ये ही तत्व के आमिन है . शरीर िे गु रत्वाकषतण शत्मि बढाने के मलए 500 गौझ का चुोंबक
का टु कडा लेकर एक काच की बरटल िे एक मलटर पानी भरकर वर बरटल 12 कलाक चुबोंक के आकषतण के
भाग के उपर रखकर ले लेना और बीजी एक काच की बरटल िे एक मलटर पानी भरकर वर बरटल चुोंबक के
अपाकषतण के भाग के उपर 12 कलाक रखकर ले ले ना बाद िे दरनर पाणी एक िीट्टी की िटकी िे एकत्ीत
कर कर हरमदन एक ग्लास पानी उसीिे से पीना आपका शरीर स्फूमतत िय बन जाये गा.
गु रत्वाकषतण की शत्मि करईभी प्रकार के तरों गर मनकालने िे और मझलने िे गु रत्वाकषतण मबना शक् नही बनता
शब्र के उच्चारण के तरों गर कर दु सरी स्थान पर पहरचाड ने के मलए गु रत्वाकषतण ही िुख्य भू मिका है ये बात
का सबसे बडा सबु त िाईकर िे, स्पीकरर िे, रे मडयर िे, टी. वी िे, आप दे खना लरहचुोंबक का टु कडा हरता ही है
ये सबसे बडा सबु त है . िानव शरीर िे आध्यात्मत्मक क्षे त् की मसत्मियर के मलए शरीर िे गु रत्वाकषतण की शत्मि
कर भी बढावा दै ने पडता है . उनका मवकास करना पडता है तब मसत्मिया मिलती है . सु क्ष्म शरीर कर भी
मवकास करके अलग करने के मलए गु रत्वाकषतण तत्व मबना नही हर शकता. गु रत्वाकषतण की शत्मि से ही सु क्ष्म
शरीर अलग हरता है ईनके मबना हवा िे हवामतया िारने जैसी पररत्मस्थमत हरती है सुनी सु नाई बाते िानव बु त्मि
कर भ्रि करने वाली हरती है .

प्रािायाम की तीन अवस्था है .

आध्यात्मत्मक क्षे त् िे यरगमिया करने के मलए प्राणायाि का सहारा मलया जाता है ईसिे प्राणायाि िे तीन अवस्थाए
िुख्यत्वे है
(1)::- कमठन
(2)::- िध्यि
(3)::- उत्ति
((1)):-- कमठन अवस्था :-
कमठन अवस्था ये प्राणायाि का पहे ला स्टे ज है जर बहुत कमठन हरती है . शरीर कर थरडी कष्ट दायक हरती है .
शरीर िे अलग अलग कष्ट ये अवस्था िे हरता है लेमकन ये कष्ट जर िानव ने सहमलया वर िानव का जीवन
सफल हर जाता है . ये ही अवस्था िेसे बहुत सारे िानव पीछे हठ करते है और ना काियाब हरता है एसे दे खा
जावे तर सभी क्षे त्रिे पहे ली अवस्था कमठन ही हरती है ये कमठन अवस्था पार करनी बहुत िुत्मिल भरी हरती
है . तीन साल की कमठन अवस्था हरती है . पहे ली अवस्था 10 से कन्ड तक की हरती है.
((2))::- िध्यि अवस्था :-
प्राणायाि िे जर िानव ने पहे ली अवस्था पार कर मलया वर िानव दु सरी अवस्था िे पहरच जाते हैं और अपना
जीवन सफलता की ओर आगे बढाते है दु सरी अवस्था िे करईभी प्रकार का कष्ट नही हरता और शरीर िे स्फूमतत
आने लगती है . पुरा शरीर चेतना से भरपूर हर जाता है. दु सरी अवस्था 10 से कन्ड से लेकर 30 से कन्ड तक की
हरती है और दू सरी अवस्था िे उनका िू लािारचि जागृ त हर जाता है दु सरी अवस्था एक साल की हरती है .
((3))::- उत्ति अवस्था :-
दु सरी अवस्था पार करने के बाद िानव तीसरी अवस्था िे जब पहरच जाता है तब उनका दु सरा ओर तीसरा
चि जागृ त हर जाता है यहाों से उनकी परिानोंद अवस्था िीरे -िीरे जागृ त हर जाती है और िानव शरीर की पुरी
चेतना िस्तक िे एकठी हरकर ठों डी लहे रर के रपिे पुरे शरीर िे उतर ने लगती है शरीर िे ररिे ररि चेतना
प्रगट हरती है . िानव का स्वभाव आनोंदिय बन जाता है और तीसरी अवस्था िे उनका चरथा और पाों चवा चि
जागृ त हर जाता है तीसरी अवस्था एक साल की हरती है और िानव का आज्ञाचि िीरे -िीरे जागृ त चेतन हरने
की तै यारी हर जाती है . ललाट पर प्रकाश त्मस्थर हर जाता है और पुरा शरीर िे आनोंद की लहे रर छु टने लगती
है और िानव का आसन भी दर घोंटे का मसधि हर जाता है तीसरी अवस्था िे िानव प्राणायाि की श्वास लेनेकी
और छरडनेकी लोंबाई 30 से कन्ड से लेकर 45 से कन्ड की हर जाती है और तीसरी अवस्था दर साल की हरती है.
दर साल के बाद तीसरी अवस्था जर िानव पार कर लेते है वर िानव बाद िे दशिा द्वार खरलने की करमशश िे
लग जाता है और गहराईिे उतरनेकी तालावे ली िे िानव लग जाता है उनकर लगनी लग जाती है .

अहं म ब्रह्ां स्मि का मतलब क्ां है

ये सृ मष्ट िे ब्रह्म की शत्मि अद्रश्य है जर द्रश्यिान नही है मफर भी ये .? शत्मि अद्रश्य रहकर पूरी सृ मष्ट िे काि
करती है ब्रह्म कर मसफत यरगी पुरषर ही दे ख शकते है अपने प्रेक्टीकली अनुभव के िारफत से द .ाे खते हैं .
ईसका ितलब है करई िानव िे ब्रह्म की शत्मि .हरकरई िानव यरग मिया की प्रेक्टीश करके दे ख शकते है
छूपी हुई है लेमकन िानव सिुदाय ब्रह्म कर बहार दे खने की करमशश करते हैं ये शत्मि कभी भी बहार
मदखाई नही दे ती ब्रह्म की शत्मि कर दे खने के मलए िानव शरीर के .अोंदर ही प्रेक्टीश के िाध्यि से ब्रह्म कर
जानकारी मिल शकती है ईमसका ितलब साफ हरता है मक ब्रह्म की शत्मि जैसे बहार काि करती है ऐसे ही
हरकरई िानव शरीर के भीतर भी ब्रह्म की शत्मि छूपी हुई है ये ही कारण से कहा गया " अहों ि ब्रह्माों त्मस्म"
अहों ि ब्रह्माों त्मस्म का ि .है तलब सभी िानव शरीर िे ब्रह्म की शत्मि छूपी हुई है लेमकन िानव अज्ञानवश ईसकर
जानते नही है और बहार ढू ों ढ ने मनकल पडते है बहार ये शत्मि ढू ों ढ ने से मिलिेवाली नही है अज्ञानी िानव .
कर ऐसा कहे गे की तु म्हारी भीतर ब्रह्म है तर ईसीकर ज्ञान नही ों है तर वर ये बात की हाों सी उडाकर चला जाये गा
क्रोंमक उसकर ज्ञान नही है ईमसमलये वर हाों सी उडाये गा मजसकर ज्ञान है वर जानकारी लेने के मलए िहत्वाकाों क्षी
उत्सूख बन जाये गा और शरीर के भीतर से ब्रह्म कर कीस तरीके से दे खा जाये दे खने के मलए वर िहत्वाकाों क्षी
बनेगा ब्रह्माों ड की सारी शत्मियाों जर है वर ही ब्रह्म है वर ही आत्मा है , आत्मा ब्रह्माों ड की शत्मि का ही अोंश है
ये िानव जीवन का एक गु ढ रहस्य है .

वहं गळासूक्ष्मिा-वपंगळा-
भाग:-1

आआआआआआआआआआ आआआआआआआ आआ आआआआआआआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआआ आआ आआ


आआआआआआआ आआ आआआआआ आआआआ आआ आआआ आआआआआ आआआआ आआ आआआ आआआआ आआआआ आआआआआ
आआ आआ.
(1):- आआआआआआ-आआआआ-आआआआआ-आआआआआ-आआआआ आआआ आआआ आआ आआआआ आआआआ आआ.
(2):- आआआआआआ-आआआआ -आआआआआ-आआआआआ-आआआ आआआ आआआआ आआ आआआआ आआआआ आआ.
(3):-आआआआआआआआआ -आआआआआ-आआआआआआ आआ आआआआ आआ आआआआ आआआआ आआ. आआआ आआ आआआ
आआआआ आआआआआआ-आआआआआआ-आआआआआआआआआ आआ आआआआआआआआआ आआ आआआआ आआ आआआआआ आआ
आआ आआआ आआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआ आआआआआआ आआआआआआ आआ आआआआ आआ आआ आआ आआआ
आआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआआ आआ आआ आआआआआआआ आआ आआआआआ आआआआ आआआआ आआ आआ
आआ आआआआ आआ आआआआआ आआआआ आआ आआ आआआ आआआआआआ आआआआ आआआआआ आआ आआ. आआआआआ
आआ आआ आआआ आआआआआआ आआआआआ आआआआ आआ आआआ आआ आआ आआआ आआआआआआ आआआआआआआ
आआआआ आआ आआआआ आआ आआआआआ आआआआआ आआ आआआआआआआ आआआआ आआ आआआआ आआ आआआआआ
आआआआआ आआ आआआआ आआआ आआ आआ आआआआआ आआआआआ आआ आआआ आआआआआआ आआ आआआआआआ आआआ
आआआआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआआ आआआआ आआ आआ आआआआ आआआआ आआ. आआआआआ आआआआ आआ
आआआआ आआ आआआ आआआआ आआ आआआआआआ आआआ आआआआ. आआआआ आआआआ आआ आआआआआ आआआआ आआ
आआआआआआ-आआआआआआ- आआ आआआआ आआआआ आआ. आआआआआआआआआ आआआआ आआआआआआआ आआआआ आआ
आआआ आआआआ आआ. आआआआआआआआआ आआआआ आआ आआआआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआआ आआआआ आआ
आआआ आआआआआआ-आआआआआआ आआ आआआआ आआआआ आआआआ आआ आआ आआआआआआआआआ आआआआ आआआआआ
आआआआ आआ आआआआ आआआ-आआआ आआ आआआआआआआ आआआ-आआआ आआआआ आआ आआआआ आआ आआआ आआ
आआ आआआ आआआआ आआ आआआआआआ-आआआआआआ आआआआआआ आआआ आआआ-आआआ आआआआआआ आआआआ आआ.
आआआआआआआ आआआआ आआआ आआआ आआ आआ आआ आआआआ आआ आआ आआआआआआ-आआआआआआ आआआआ
आआआआ आआ आआआ आआआ आआआआ आआ आआ आआआ आआआआ आआ आआआआआआआ आआआ आआ आआ
आआआआआआआ आआ आआआआ आआआआआ आआआआ आआ आआआ-आआआ आआआआ आआ आआआआ आआ. आआआआ आआ
आआआआआआआ आआ आआआआ आआ आआआआआआ-आआआआआआ आआआआ आआ आआ आआआआआ आआआआ आआ
आआआआआआआ आआ आआआआआआ आआ आआआआ आआ. आआआआ आआआआआआआ आआ आआआ आआआआआआआ. आआआआ
आआआआ आआआआ आआआ आआआआ आआ आआ आआआआ आआआआ आआआ आआआ आआआआ आआ.आआआआआ आआआआ
आआ आआ आआआआ आआआआ आआ आआ आआआआ आआ आआआआआआ आआआआ आआ आआआआ आआआआ आआ
आआआआआआआ आआआआ आआआ आआआआ आआ आआ आआआआआ आआआआ आआ आआ आआ आआआआ आआ आआआआ
आआआआ आआआआआआ आआआआ आआ आआआआ आआआआआआआ आआआ आआआ आआआआ आआ. आआआआ आआआआआआआ
आआआआ आआआआ आआ आआ-आआआआआ, आआआआ, आआआआआआआ, आआआआआआ, आआआ आआ आआआ आआआआआआ आआ
आआआ आआआआ आआआआआआआआआआआ आआआआ आआ आआआआ आआ आआआ आआआआआआआ आआ आआआआ आआआआ
आआ आआ. आआ., आआआ आआआ, आआआआआ आआ आआआ, आआआआआआ आआ आआआ आआआ आआआ
आआआआआआआआआआआ आआआआ आआ आआआआ आआ आआ आआआआआ आआआआआआआआआ आआआआ आआआआआआ
आआआआ आआ आआआआ आआआआ आआआआआआ आआआआआआ आआआआ आआ आआ आआ आआआआआआआआआआ आआआ
आआआआ आआ. आआआआआआआआआ आआआआ आआ आआ आआ आआआआ आआआ आआआआ आआआआआआ आआ आआ
आआआआ आआ आआआआआआआआआआ आआआ आआ आआआआ आआ. आआआआआआ आआ आआआ आआआआआ आआआआ आआ
आआ आआआआ आआआआ आआआआआआआआआ आआआआ आआआ आआआआआ आआआ आआ आआआआ आआआआआआ आआ
आआआ आआ आआआआआआ. आआआआआआआआआ आआआआ आआ आआआआआ आआआआ आआ आआआ आआआआआआ आआ
आआआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआ आआ आआ आआआआआआ-आआआआआआ आआआआ आआ आआआ आआ आआ
आआआ आआआआआआ आआ आआआआआआ आआ आआआआ आआ आआआआ आआ. आआआआआ आआ आआआआआआआआआआआआ
आआ आआआ आआआआ आआआआ आआ आआआआआ आआ आआआआआआ-आआआआआआ आआआआ आआ आआआआ आआआआ
आआआआआ आआआआ आआआआ आआ. आआआआआ आआआआ आआआआआआआ आआ आआआआ आआ आआ आआआआआ आआ
आआआ आआआआ आआआ आआ आआआआ आआ आआआआआआ आआआआ आआआआ आआआ आआ आआआआआआ आआआआ
आआआआआआ आआआ आआआआ आआआ आआ आआ आआआआ आआ आआआआआआ आआआआ आआआआआआ आआआ
आआआआआआ आआ आआ आआआआ आआआआआ आआआआ आआ आआ आआआआ आआ आआआ आआ आआआआआआ आआ
आआआआआ आआ आआआ आआआआ आआ. आआआआ आआ आआआआआ आआआआआ आआआआ आआ आआआआ आआआआ
आआआआआआ आआ आआआ आआआआ आआआआआआआआ आआआआ आआआआ आआ आआआआ आआ आआआआआ आआआआ
आआआ आआआआ आआ आआआआआ आआआआ आआआआआ. ( आआआआआ:......... )

भभभ:-2

हरे क िानव िे नाडी दरढ-दरढ कलाक पे बदल जाती है लेमकन सभी िानव िे नाडी बदल ने का सिय अलग-
अलग हरता है . बदलाव का सिय सिान नही हरता. डाबी नाडी जब चलती है तब गाढ ध्यान लग जाता है .
प्राणायाि ध्यान के मलए डाबी नाडी बहुत िहत्व की हरती है . वतत िान िे कौनसा तत्त्व चलता है वर भी नाडी से
जाना जाता है जैसे श्वास की गमत िीिी और लाों बी चलती है उनकी उों िर लोंबी हरती है और जैसे श्वास की गमत
झडपी और टुों की चलती है उनकी उों िर कि हरती है . ये सृ मष्ट िे पाों च तत्त्वर की गमत शरीर िे सप्रिाण रीती से
फरती है सािान्य िानवर कर पाों च तत्त्वर की गमत सिप्रािाण िे हरती है और यरगीओ की सात तत्त्वर की गमत
सिप्रािाण िे फरती है दर तत्त्वर का यरगओ कर मवकास करना पडता है . करईभी एक तत्त्व दरढ घोंटे तक प्रिान
रहता है बाद िे तत्त्व बदल जाता है ऐसा हरने से शरीर का सों तुलन सितल तालबिता जळवाई रहती है . नाडी
केनसा नसकररा की िुख्य हरती है वर जाननेके मलए अपिे हाथ की एक अोंगुली बन्ने नसकररा के स्पशत करके
रखनी जर भी नसकररा िे श्वास झडप से ज्यादा मनकलते है वर ही नाडी चलती है . अोंगुली रखने से डाबा
नसकररा िे श्वास ज्यादा चलता है तर सिज लेना महों गळा नाडी चलती है . महों गळा नाडी िे पृथ्वी तत्त्व और जल
तत्त्व हरता है और जिणा िसकररा िेसे श्वास ज्यादा मनकलता है तर सिजलेना मपोंगळा नाडी चलती है . मपोंगळा
नाडी िे अमि तत्त्व, आकाश तत्त्व और वायुों तत्त्व ये तीनर तत्त्व हरता है ये दरनर नाडी िेसे शरीर िे वतत िान िे
िुख्य कौनसा तत्त्व चलता है ये जाननेके मलए शरीर की आराि की त्मस्थमत हरवे तर डाबी नाडी महों गळा चलती है
और शरीर िहे नत की त्मस्थमत िे हरवे तर जिणी मपोंगळा नाडी चलती है . और कौनसा तत्त्व िुख्य प्रिान रीती से
चलता है ये जानने के मलए अपने िु ख के सािने चार ईोंच दू री पे काचका अरीसा सािने रखर और जैसे अपने
बगासा खाते है वै से ही अरीसा िे िुख िेसे हवा जररसे फेकर फुक िारने से अरीसा िे झों खप जैसा आपकर
मदखेगा ये झों खप का आकार दे खने का प्रयत्न आप करर जर ये झों खप राउन्ड आकारिे मदखेतर जळतत्त्व िुख्य
चलता है और ये झों खप का आकार चररस आकार िे मदखे तर पृथ्वी तत्त्व चलता है और ये डाबा नसकररा की
बात हुई और जिणा िसकररा िे झों खप का आकार अित चोंद्राकार जैसा मदखे तर वायुों तत्त्व िुख्य प्रिान चलता है
और झों खप का आकार ध्वजाकार मदखे तर अमि तत्त्व चलता है और करई मनयमित आकार ना मदखे और
दाणादार टपकाों आपकर मदखे तर सिजलेना आकाश तत्त्व िुख्य चलता है ये बात का आपकर थरडे मदन अभ्यास
करना पडता है . अमि चि पर भी करन सा तत्त्व चलता है वर भी प्रकाश के कलर ले िालुि हर जाता है .
सफेद प्रकाश मदखेतर जल तत्त्व चलता है , पीळा कलर का प्रकाश मदखे तर पृथ्वी तत्त्व चलता है , लाल प्रकाश
मदखेतर अमि तत्त्व चलता है और हरा कलर का प्रकाश मदखेतर वायुों तत्त्व चलता है और आसिानी कलर का
प्रकाश मदखे तर आकाश तत्त्व चलता है ये तत्त्वर का जर भी िानव अभ्यास करता है वर िानव तत्त्वर के उपर
काबुों पा शकता है ये सािान्य िानव िे पाों च तत्त्वर चलता है और यरगीओ के शरीर िे सात तत्त्वर चलता है दर
तत्त्वर का जर ज्ञानी हरता है वर ही मसधिपुरष हरता है . जीभ का स्वाद से भी कौनसा तत्त्व चलता है उसकी
जानकारी मिल जाती है . जीभ ििळापता मिठा स्वाद लगे तर पृथ्वी तत्त्व चलता है , तु रा स्वाद लगे तर जल तत्त्व
चलता है , तीखा स्वाद लगे अमि तत्त्व चलता है और जर कडवा स्वाद लगे तर आकाश तत्त्व चलता है ऐसे तीन
या चार रीत से तत्त्वर की जानकारी मिल जाती है .
करईभी तत्त्व बदलनेके मलए सबसे पहले िानव कर नाडी बदलाव का ज्ञान हरना चामहए इमसके मबगर तत्त्व की
फेरबदल नही हर शकती. करईभी तत्त्व दरढ कलाक से ज्यादा चले तर शरीर िे मबिारी आने की तै यारी शुर हर
जाती है ये शरीर िे पृथ्वी तत्त्व की खािी से शरीर िे जडता आती है . िन उदास रहता है और शरीर भारे -
भारे लगने लगता है . हाों डका सों बोंिी ररग हरता है बाल भी सफेद यु वानी िे हरता है और जल तत्त्व की खािी से
कफ प्रकृमत के ररग हरते है . अमतिुत् के अल्पिुत् हरता है . अमि तत्त्व की खािी से गरिी प्रकृमत के ररग हरते
है . चािडी के ररग, रि सों बोंिी मबिारी, अमतसार, सों ग्रहणी जैसे ररगर हरता है . वायुों तत्त्व की खािी से वायुों प्रकृमत
के ररग हरता है . शरीर िे वात ररग, मनरत्साही, सािाों ओ िे ददत हरता है और आकाश तत्त्व की खािी से शरीर िे
मत्दरष हरता है . वात-मपत्त-कफ ये तीनर दरष के ररग हरता है जर ररग जीवलेण हरता है . केन्सर जैसी मबिारीया
आती है जर असाध्य हरती है . केन्सर के ररगीओ जर सु क्ष्मणा नाडी सतत चालुों रखे तर मबना दवा से उनका
केन्सर ररग एकही िास िे िीट जाता है . ( ििश:....)

भभभ:-3

महों गळा-मपोंगळ-सू क्ष्मणा ये तीन नाडीओ जैसे सू क्ष्म जगत के मलए िहत्व की है , वै से ही ये तीनर नाडीओ स्थूळ
जगत के मलए भी िहत्व की है और शरीर मनररगी के मलए भी बहुत िहत्व की है . शमनवार, रमववार, और
िोंगलवार के मदन सु बह िे आप उठने के साथ जर सू यत नाडी मपोंगळा चलती हरवे तर बहुत िहत्व की हरती है
अगर मपोंगळा सू यत नाडी चलती नही है तर सू यत नाडी कर चालुों करने के बाद ही जिीन पर प्रथि पैर जिणा
रखकर खडे हरनेका, ये तीन मदनिे सू यत मपोंगळा नाडी चलती है तर िानव का उस मदन सभी प्रकार का काि िे
सफलता मिलती है , ईमसरीती से , सरिवार, बु िवार, गु रवार, शुिवार ये चारर मदन डाबी चलती हरनी चामहए अगर
डाबी नाडी नमह चलती तर डाबी नाडी चालुों करने के बाद पथारी िेसे प्रथि डाबा पैर नीचे रखकर चमलये ये
चार मदन िे डाबी नाडी चालुों हरने से उसी मदन आपका सभी प्रकार का काि िे सफलता मिलती है .
सों तान प्रात्मप्त करने के मलए भी तीनर नाडीया बहुत िहत्व की है . महों गळा-मपोंगळ नाडी का मजसकर ज्ञान हरता है
वर िानव के वहाों ऐसा बालक जन्म लेगा की मवश्व िे नाि ररशन करनेवाला आत्मा का प्रवे श उनके गभत िे हरता
है लेमकन ईमसके मलए दरनर नर-नारी पात् भी ऐसा हरना चामहए और नाडी का पुरेपुरा ज्ञान उनकर हरना चामहए
ये नर की जिणी नाडी और नारी की डाबी नाडी चलती है तर उस सिय िे जर गभत स्थापना हरती है तर वर
पुत् का जन्म हरता है और नारी की जिणी और नर की डाबी नाडी चवती है तब जर गभत स्थापना हरती है तर
पुत्ी का जन्म हरता है और दरनर की सू क्ष्मणा नाडी चलती है ईसी सिय िे जर गभत स्थापना हरती है वर बालक
िाता-मपता का नाि ररशन करनेवाला जन्म लेता है .
आपके पास करई उघराणी वाला आता है तर आप की डाबी साईड उनकर मबठाओ और आपकी डाबी नाडी
चालुों हरनी चामहए तर आपके साथ वर मबलकुल शाों मत से बात करके मनकलेगे और आपकर राहत दे कर मनकलेगे
जर आप उनकर जिणी साईड मबठाओगे तर वर आपके साथ गरि मिजाजसे बात करे गे या तर झगडा करे गे
आपकर मकमसभी िानव के पास से करईभी प्रकार का राि नमनकालना है तर आपकी डाबी साईड मबठाकर उनसे
बातचीत करर वर िानव आपका काि अवश्य करे गे , ओमफसर िे भी ऐसी बे ठक हरनी चामहए की आनेवाले सभी
िानव अपनी डाबी साईड िे ही बै ठ शके ऐसी बै ठक व्यवस्था ओमफसर िे हरनी चामहए तर ये िानव कर
मबझनेसिे भी अवश्य सफलता मिलती है . डाबी नाडी ठों डी है ईमसमलये आनेवाले िानव अपनी डाबी साईड बै ठने
से उनकी उपर नाडी का प्रभाव भी अवश्य पडता है उनका मदिाग मबलकुल ठों डा रहता है और वर आपकी बात
िानेगा गरि मदिाग आपरी बात िानेगा नही.
----गगनगीरीजी िहारा
भाग -:4

महों गळासू क्ष्मणा नाडी शरीर के सिय सों जरग के और िन और बु त्मि की तीव्रता के आमिन श्वास गमत िे -मपोंगळा-
नाभी केन .चलते है द्र कर जागृ त करने िे श्वास की गमत िुख्य काि करती है जब आप िरमित हरते हर तर .
आपकी श्वास की गमत मबलकुल ते ज और ध्रु जारी वाली बहने लगे गी श्वास की गमत टुों की हर जाये गी जब आप
शाों त शरीर से मबलकुल शाों त मचत्त से बै ठे हरगे तर आपकी श्वास थरडी सी लों बाईवाली और शरीर कर
ओत्मिजन दे नेवाली िीिी गमत की लोंबाईवाली चलती है जब आप सिवासना की तरफ जाते हर तर आपकी श्वास
और तरफ से चलती है मबिार िानव और मनररगी िानव की श्वास भी .और आपका िन भामवत हर जाता है .
टुों किे शरीर िे जर श्वासर श्वास की मिया है वर श्वास के स्पों .और तरह से चलती है दनर से आपके मचत्त से
स्पशत कर श्वास की गमत के आमिन िन पररवतत न हरते रहते हैं श्वास का बदलाव से िन पररवतत न हरता है और .
श्वास आप लोंबाईवाली गहरी लरोंगे उतनाही आपके शरीर िे िन .िनपररवतत न से श्वास िे भी बदलाव आता है
शाों त हरता जाता है और शरीर िे खरणे खरणे िे ओत्मिजन और चेतना मिलनेसे शरीर का भी स्वास्थ्य मबलकुल
स्वस्थ रहता है आपकी िन की सौच परमझटीव हर जाती है और लोंबी श्वास की गमत लेनेकी और श्वास छरडनेकी
गमत गहरी और सिान तरीकेसे लेनेसे नाभी केन्द्र भी जागृ त हर जाता है नाभी केन्द्र जागृ त करने के मलए श्वास .
की गमतलोंबाईवाली और गहरी हरनी चामहए तब नाभी केन्द्र जागृ त हरता है स्थूळ जगत के मलए ओर सू क्ष्म .
दरनर .जगत के मलए और शरीर के मनररगी रखने के मलए श्वास की िाध्यिता बहुत िहत्व की काि करती है
श्वास लोंबाईवाली चलने से सू क्ष्मणा नाडी भी चालुों हर जाती है और सभी चिर कर जागृ त करने के मलए और
अपने शरीर की चेतना कर िस्तक िे एकठी करने के मलए और दशिाों द्वार खरलने के मलए श्वास की मिया ही
िहत्व की है ईनके मबना कुछभ नही हरता(...:ििश) .

भाग-:5

श्वास की गमत के आमिन ये िानव शरीर िे पाों च प्रकार का वायुों उत्पन्न हरता रहता है . पाों चेय वायुों िेसे एकभी
वायुों का चडाव उतार से शरीर ररमगष्ट बनता है .
(1):- प्राण
(2):-अपान
(3):-सिान
(4):-उदान और
(5):-व्यान
(1):- प्राण वायुों :-
शरीर िे प्राणवायु (ओत्मिजन) ये शरीर की श्वसन मिया से शरीर की अोंदर मिलता रहता है , प्राणवायु कर आत्मा
का खरराक भी कहते है . शरीर िे प्राणवायु नही मिलेगा तर आत्मा तु रोंत ही शरीर से बहार नीकल जाती हैं
ईमसमलये प्राणवायु कर आत्मा का खरराक कहते है और वर ही प्राणवायु से शरीर मनररगी बनता है और वर ही
प्राणवायु िस्तक िे एकठा हरने से आपकर आध्यात्मत्मक मसत्मिओ प्रदान हरती है ईमसमलये शरीर िे प्राणवायु बहुत
िहत्व का है . प्राणवायु ना मिलने से आत्मा तु रोंत बाहर मनकल जाते है . आत्मा उनके खरराक मबना एक मिमनट
भी टीकती नही ों है .
(2):- अपान वायुों :-
अपान वायुों की िदद से िल-िुत् और पसीना बहार मिकलता है , आों तर की और हरजरी की गमत सफाई अपान
वायुों से हरती है और दु गतन्धयु ि अपान वायुों शरीर कर ररमगष्ट बनाते है और दु गतन्ध मबगर का अनुसरण अपान-
प्राण एक हरने से शरीर िे नयी चेतना पेदा हरती रहती है और वर ही चेतना की िदद से कुोंडली नी शत्मि कर
जागृ त मकया जाता है . आध्यात्मत्मक क्षे त् के मलए दु गतन्ध मबगर का अपान वायुों और प्राणवायु दरनर एक हरने से
चेतना पेदा मवपुल प्रिाण िे करती है तर शरीर मबलकुल मनररगी रहता है . प्राण-अपान दरनर वायुों आध्यात्मत्मक के
मलए बहुत िहत्व पूरवार हरता है .
(3):- सिान वायुों :-
सिान वायुों की िदद से पाों चन मिया की शत्मि आपरआप पाचन हरती रहती है . शरीर िे उपर से लेकर नीचे
पैर तक ऊजात कर पहरचाने िे सिान वायुों की िदद से पूरे शरीर िे ऊजात फेलती रहती है और शरीर िे
रमिरामभसरण तों त् जर चलता है वर सिान वायुों ही पूरे शरीर िे लरही कर भ्रिण कक्षा िे रखता है .
(4):- उदान वायुों :-
उदान वायुों की िदद से ही िावन की अवाज और शब् मनकलती रहती है वाणी के उपर प्रभाव डालने िे
उदान वायुों िहत्व का काि करते है . आों ख-कान-नाक उसका सों चालन िे भी उदान वायुों िहत्व का काि करते
है .
(5):- व्यान वायुों :-
व्यान वायुों जर शरीर िे नमह हरता तर ये शरीर िृत अवस्था िे हरता है . शरीर िे से आत्मा जब मनकलती है तर
पहले शरीर िे से व्यान वायुों बहार नीकल जाती है बाद िे आत्मा मनकल शकती है व्यान वायुों ने ही आत्मा कर
शरीर िे पकड रखी है यरगीओ दशिे द्वार से जब बहार मनकलकर सू क्ष्म शरीर िारण करते है तब यरगीओ
व्यान वायुों की िदद से चेतना कर बहार मनकलती है लेमकन व्यान वायुों कर शरीर िे ही रहने दे ते हैं . ईमसमलये
यरगीओ की श्वसन मिया बों ि हर जाने के बाद भी मफरसे श्वसन मिया चालुों हर जाती है व्यान वायुों यरगीओ के
मलए बहुत िहत्व का वायुों कहते है . परिात्मा कर जान ने के मलए व्यान वायुों िहत्व का है .

प्रािायाम -ध्यान -समावि क वलए चेतावनी


आध्यात्मत्मक क्षे त् िे भत्मि करने के मलए जब यरगमिया िे प्राणायाि-ध्यान-सिामि करने के मलए शरीर िे करईभी
प्रकार की तकलीफ ना हरवे ईमसके मलए प्राणायाि-ध्यान-सिामि करने के बाद शरीर िे ठों डी लगती है अगर तर
गरिी लगती है ईमसके मलए प्राणायाि-ध्यान-सिामि करने के बाद उठने के बाद शरीर िे गरिी लगे तर एक
ग्लास ठों डा दू ि िे दर चिची शहद डालकर तु रोंत पी जानेका ईमसमलए शरीर िे गरिी नही लगे गी और
प्राणायाि-ध्यान-सिामि करके उठने के बाद शरीर िे ठों डी लगे तर एक कप चाय या तर गरि दू ि िे गरि
िसाले सूों ठ, काळािरी, दावचीनी ये तीनर सप्रिाण िे एक कप चाय िे एक ग्राि मजतना िसाला डालकर पी
जानेका ईमसमलए शरीर िे ठों डी नही लगे गी ये दरनर चीजे प्राणायाि के बाद लेना फरमजयात हरता है नही ों तर
शरीर का बे लेन्स मबगड जाता है और प्राणायाि-ध्यान-सिामि करके के बाद 15 से 20 मिमनट तक पानी कभी
पीना ित कीतनी भी प्यास लगे तर भी पानी कभी ित पीना 15 से 20 मिमनट के बाद पानी आप पी शकते हर
ईमसके पहले कभी पानी ित पीना नमहतर तु रोंत ही दर मिमनट िे आपकर शरदी-झुकीि हर जाये गा ये बात का
हों िेशा के मलए आपकर ख्याल रखना पडे गा.
प्राणायाि-ध्यान-सिामि करने के मलए आपका अपान वायुों दु गतन्ध रमहत हरना चामहए अगर आपका अपान वायुों
दु गतन्ध वाला हरगा तर आपका शरीर ररमगष्ट बन जाये गा ये बात का भी आपकर ख्याल कखना पडे गा अपान वायुों
िेसे दु गतन्ध हटाने के मलए आपकर कबमजयात नही रहना चामहए अगर आपका अपान वायुों दु गतन्ध वाला है आपकर
कबजीयात,,गे स की तकलीफ है तर आपकर
(1):- 250ग्राि हरडे का चूरण
(2):- 100ग्राि अजवाइन चूरण
(3):- 50ग्राि सों चण (सों चरडर-काला निक)
ये तीनर चीजर परचारीकी दु कान से लाकर तीनर चूरण मिक्ष करके एक बरटल िे भरलर. हरमदन साों ज कर खाना
खाने के बाद एक चिची चू रण पानी के साथ हरमदन पी जानेका ये चूरण से कबजीयात, गे स मपत्त की सिस्या
नही रहती और आपका अपान वायुों भी गों िसे रमहत हर जाये गा. साों ि कर खाना खाने के बाद एक कलाक के
बाद ये चूरण हों िेशा के मलए आपकर ले ना है . ये चूरण से आपके शरीर िे वात-मपत्त-कफ तीनर दरष मिट
जाये गा तीनर दरष कोंन्टर रल िे रहे गा ईमसमलए आपका शरीर भी मनररगी बन जाये गा ये चूरण तर करईभी िानव ले
सकते है .और प्राणायाि-ध्यान-सिामि करके के मलए खाना खाने के बाद तीन कलाक के बाद हों िेशा करना
टुों क िे भू खा पे ट प्राणायाि-ध्यान-सिामि करना फरमजयात है . और सिामि िे जाने के मलए अगले मदन से
आपकर खरराक बों ि करना पडता है . हरजरी िे या तर आों तर िे जूना िल नही हरना चामहए खरराक भी नही ों
हरना चामहए हरजरी और आों तर दरनर खाली करके सिामि िे आप बै ठ शकते हर. हरजरी और आों तर दरनर िे
खरराक का या तर िल का कण भी रहे गा तर आप सिामि िे से वीमपस नही उतर शकते क्ु मकों जल सिामि
लगती है तब जर हरजरी िे यर तर आों तर िे जूना िल हरगा तर अपान वायुों कोंठ की तिाि नशे ब्लरक कर दे ती
है . वर डरज की नशे बों ि हर जाने से आप सिामि िेसे नीचे नही उतर शकते और कायि के मलए आपकी
सिामि लग जाये गी ईमसमलए ये बात का आपकर बहुत ख्याल रखना पडे गा ईमसके पहले कभी सिामि िे ित
जाना नहीतर आपका शरीर छूट जाये गा.

भभभभभभभ

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