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बौद्ध धम्म ग्रन्थ धम्मपद गाथा 414

कुं डाकोलीया नगर के पास कुं डाधाना वन में रहने के दौरान तथागत ने यह गाथा कही -

कुं डाकोलीया की राजकमारी सप्पावसा सात साल तक गर्भ वती थी और सात ददनोुं गर्ाभ वस्था की पीड़ा में थी
उन्ोुंने बद्ध, धम्म और सुं घ के अनू ठे गणोुं पर दवचार दकया और अुंत में उन्ोुंने अपने पदत को बद्ध को अपनी
तरफ से नमस्कार करने और अपनी व्यथा बताने र्े जा ,राजकमारी की हालत के बारे में सू दचत होने पर, बद्ध
ने कहा," मै प्राथना करता हूँ राजकमारी सप्पावसा सर्ी खतरे से और दुःख से मक्त हो , वह सरदित एक स्वस्थ
महान पत्र को जन्म दे , जैसे ही तथागत ने यह शब्द बोले तो राजकमारी सप्पावसा ने अपने घर में एक
स्वस्थ बालक को जन्म ददया ,उसी ददन, बच्चे के जन्म के तरुं त बाद, बद्ध और कछ दर्िओ को राजकमारी
सप्पावसा के घर में आमुंदत्रत दकया गया था। जहा उन्ने दान में खाना ददया गया और नए जन्मे बालक के द्वारा
बद्ध और दर्िओ को जल दान दकया गया ,बच्चे के जन्म का जश्न मनाने के दलए, माता-दपता ने बद्ध और
दर्िओ को अपने घर में सात ददनोुं तक र्ोजन दान दे ने के दलए आमुंदत्रत दकया था ।

जब बच्चा बड़ा हुआ तो वह बौद्ध दर्ि सुं घ में शादमल दकया गया बौद्ध दर्ि के रूप में उसे दशवली के
नाम से जाना जाता था। जल्द ही वह अररहुं त हुए और उनका सर मुंडा ददया गया।बाद में, वह बौद्ध दर्ि के
रूप में प्रदसद्ध हो गए, दजन्ोुंने सबसे ज्यादा दान प्रपात होता था दजतना दकसी र्ी और दर्ि को नही ुं दमलता
था।

एक मौके पर, दर्िओ ने बद्ध से पूछा दक दशवली, जो अररहुं त होने वाले थे वह सात साल तक अपनी माुं
के गर्भ में ही क्ोुं रहे । उन्ें बद्ध ने जवाब ददया, " दर्िओ ! दपछले अस्तित्व में, दशवली एक राजा का पत्र
था। दजसने अपना राज्य दकसी अन्य राजा के हाथो खो ददया था। अपने राज्य को वापस पाने की कोदशश में
उन्ोुंने अपनी माुं की सलाह पर नगर को चारो और से घेर दलया नतीजतन, नगर के लोग सात ददनोुं दबना
र्ोजन और पानी के रहे । इसी बरे कमभ के कारण दशवली अपने माता के गर्भ में सात वर्भ तक रहे । लेदकन
अब, दशवली सर्ी दखो के परे है ; उन्ोुंने दनवाभ ण प्रपात कर दलया है । "

तब बद्ध ने यह गाथा कही -


मैं उसे ही ब्राह्मण कहता हुं , दजसने अनराग (लालसा) के इस खतरनाक दलदल को पार कर दलया है
,दजसने इस कदठन सड़क (नै दतक अशद्धताओुं) ,दजसने जीवन के महासागर (सुं सार या सम्सरा) ,और अज्ञानता
के अुंधेरे (मोह) की चार बाढ़ को पार कर दलया है , जो दनवाभ ण के दकनारे पर पहुुं च गया है ,जो शाुं दत और
अुंतर्दभ दि ध्यान का अभ्यास करता है , जो लालसा से और सुंदेह से मक्त है , जो दकसी फालतू बात में नही ुं पड़ता
और पूणभ शाुं दत में रहता है ।

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