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दीपावली का इतिहास का PDF
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जाइए’ यह उपक्नर्दों की आज्ञा है। इसे क्सख, बौद्ध िर्ा जैन िमस के
लोर् भी मनािे हैं।
पौराक्िक – कहाक्नयााँ
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* जिस जिन श्री राम अयोध्या लौटे, उस राजि राजकर मास रअ अमा्याया ी
अ ाक आराश में चााँि जिल्रुल नहीं जिखाई िेका ा। ऐसे माहौल में
अयोध्या्ाजसयों ने भग्ान राम रे या्ागक में परू ी अयोध्या रो िीपों रे
प्रराश से िगमग रररे मानो धरकी पर ही जसकारों रो उकार जिया। कभी से
िीपा्ली रा त्यौहार मनाने रअ परम्परा चली आ रही ह।। धाजमर मा्यकां
रे अनसु ार आि भी िीपा्ली रे जिन भग्ान राम, लक्ष्मण और पत्नी सीका
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क्हरण्यकश्यप वि-
एक पौरासणक कथा के अनसु ार क्वष्िु ने नरससहिं रुप धारणकर
सहरण्यकश्यप का वध सकया था।
चला। ि।त्यराि रो ्रिान प्राप्त ा जर उनरअ मत्ृ यु ने जिन में होगी न राक
में, न घर में होगी न िाहर, न अस्त्रा से होगी न शस्त्रा से। इसी ्िह से ्े या्य
रो अमर समझका ा। राजकर अमा्याया रे सायराल रा समय ा। ज्णु
भि प्रहलाि खम्भे से िधा हुआ ा। िि ि।त्यराि ने खड्ग से प्रहार जरया।
को भयरर गिना रे सा खम्भा टूट गया और भग्ान नरजसह रा प्रािभु ा्
हुआ। शीश जसह रे समान और शेष शरीर मान् ि।सा। न परू ा मान्, न परू ा
पश,ु न अस्त्र न शस्त्र। भग्ान नरजसह ने रे ्ल अपने नख से ि।त्यराि रा
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इससलए दीपावली के सदन माता लक्ष्मी की पजू ा की जाती है। ऎसा माना
जाता है सक श्रिा-भसि के साथ पजू न करने से माता लक्ष्मी अपने भिजनों
पर िसन्न होती हैं और उन्हें धन-वैभव से पररपणू ष कर मनवािंसित फल िदान
करती हैं।
उनके शािंत रूप लक्ष्मी की पजू ा की शरुु आत हुई। इसी रात इनके रौद्ररूप
काली की पजू ा का भी सवधान है।
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ससधिं ु घाटी सभ्यता की खदु ाई में पकी हुई समट्टी के दीपक िाप्त हुए हैं और
500 ईसा वर्ष पवू ष की मोहनजोदड़ो सभ्यता की खदु ाई में िाप्त भवनों में
दीपकों को रखने हेतु ताख बनाए गए थे व मख्ु य ्ार को िकासशत करने हेतु
आलों की शख िंृ ला थी। मोहनजोदड़ो सभ्यता के िाप्त अवशेर्ों में समट्टी की
एक मसू तष के अनसु ार उस समय भी दीपावली मनाई जाती थी। उस मसू तष में
मात-ृ देवी के दोनों ओर दीप जलते सदखाई देते हैं।
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बौि धमष के िवतषक गौतम बि ु जब 17 वर्ष बाद अनयु ासययों के साथ अपने
गहृ नगर कसपल वस्तु लौटे तो उनके स्वागत में लाखों दीप जलाकर
दीपावली मनाई थी। साथ ही महात्मा बि ु ने अपने िथम िवचन के दौरान
`अप्पों दीपो भव´ का उपदेश देकर दीपावली को नया आयाम िदान सकया
था।
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ईसा पवू ष चौथी शताब्दी में रसचत कौसटल्य के अथषशा्त्र के अनसु ार आमजन
कासतषक अमावस्या के अवसर पर मसिं दरों और घाटों पर बड़े पैमाने पर दीप
जलाकर दीपदान महोत्सव मनाते थे। साथ ही मशालें लेकर नाचते थे और
पशओु िं खासकर भैंसों और सािंडो की सवारी सनकालते थे।
सम्राट अशोक की दीपावली
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मौयष राजवश
िं के सबसे चक्रवती सम्राट अशोक ने सदसववजय का असभयान
इसी सदन िारम्भ सकया था। इसी खशु ी में दीपदान सकया गया था।
र्ुप्त वंश की दीपावली
मौयष वश
िं के पतन के बाद गप्तु वश
िं की दीपावली- सम्राट चन्द्रगप्तु स्तीय ने
ईसा से 269 वर्ष पवू ष दीपावली के ही सदन तीन लाख शकों व हूणों को यि ु में
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खदेड़ कर परास्त सकया था। सजसकी खश ु ी में उनके राज्य के लोगों ने असख्िं य
दीप जला कर जश्न मनाया था।
सम्राट समद्रु गप्तु , अशोकासदत्य, सियदरशषन ने अपनी सदसववजय की घोर्णा
दीपावली के ही सदन की थी।
सम्राट क्वक्रमाक्दत्य की दीपावली 57 ईपू
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क्सखों की दीपावली
अकबर गोवधषन पजू ा में सशरकत करते थे। इस सदन वह सहन्दू वेशभर्ू ा धारण
करते तथा सदिंु र रिंगों और सवसभन्न आभर्ू णों से सजी गायों का मआ
ु यना कर
ववालों को ईनाम देते थे।
जहााँर्ीर- अकबर के बाद मगु ल सल्तनत की दीवाली परिंपरा उतनी मजबतू
न रही, मगर सफर भी अकबर के वाररस जहािंगीर ने दीवाली को राजदरबार में
मनाना जारी रखा। जहािंगीर दीवाली के सदन को शभु मानकर चौसर अवश्य
खेला करते थे। राजमहल और सनवास को सवसभन्न िकार की रिंग-सबरिंगी
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बिंटवाते थे। उनके बेटे दारा सशकोह ने भी दीवाली परिंपरा को जीसवत रखा।
दारा सशकोह इस त्योहार को परू े हर्ोल्लास के साथ मनाते और अपने
नौकरों को बख्शीश बािंटते थे। उनकी शाही सवारी रासत्र के समय शहर की
रोशनी देखने सनकलती थी। पस्ु तक ‘ तजु क ु े जहािंगीरी ‘ में इस दीपावली पवष
की भव्यता और रौनक का सवस्ततृ वणषन सकया गया है।
बहादुर शाह जफर- मगु ल वश िं के असिं तम सम्राट बहादरु शाह जफर का
दीवाली मनाने का सनराला ही अदिं ाज था। जफर की दीवाली तीन सदन पहले
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इस सदन आयष समाज के सस्िं थापक महसर्ष दयानन्द ने भारतीय सस्िं कृसत के
महान जननायक बनकर दीपावली के सदन अजमेर के सनकट अवसान सलया
था। इसके अलावा मगु ल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के
सामने 40 गज ऊाँचे बााँस पर एक बड़ा दीप जलाकर लटकाया जाता है। वहीं
शाह आलम स्तीय के समय में परू े शाही महल को दीपों से सजाया जाता था
इस मौके पर सहन्दू और मसु लमान दोनों समलकर परू े हर्ष और उल्लास के
साथ त्योहार मनाते थे।
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