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नित्य नियम
।।अथ मंगलाचरण।।
गरीब नमो नमो सत् पुरूष कुुं, नमस्कार गुरु कीन्ही।
सुरनर मुननजन साधवा, सुंतोुं सववस दीन्ही।1।
सतगुरु सानिब सुंत सब डण्डौतम् प्रणाम।
आगे पीछै मध्य हुए, नतन कुुं जा कुरबान।2।
नराकार ननरनवषुं , काल जाल भय भुंजनुं।
ननलेपुं ननज ननगुवणुं, अकल अनूप बेसुन्न धुनुं।3।
सोिुं सुरनत समापतुं , सकल समाना ननरनत लै।
उजल निरुं बर िरदमुं बे परवाि अथाि िै , वार पार निीुं मध्यतुं।4।
गरीब जो सुनमरत नसद्ध िोई, गण नायक गलताना।
करो अनुग्रि सोई, पारस पद प्रवाना।5।
आनद गणेश मनाऊँ, गण नायक दे वन दे वा।
चरण कवुंल ल्यो लाऊँ, आनद अुंत करहुं सेवा।6।
परम शक्ति सुंगीतुं , ररक्तद्ध नसक्तद्ध दाता सोई।
अनबगत गुणि अतीतुं, सतपु रुष ननमोिी।7।
जगदम्बा जगदीशुं , मुंगल रूप मुरारी।
तन मन अरपुुं शीशुं, भक्ति मुक्ति भण्डारी।8।
सुर नर मुननजन ध्यावैं , ब्रह्मा नवष्णु मिे शा।
शेष सिुं स मुख गावैं , पूजैं आनद गणेशा।9।
इन्द कुबेर सरीखा, वरुण धमवराय ध्यावैं।
सुमरथ जीवन जीका, मन इच्छा फल पावैं।10।
तेतीस कोनि अधारा, ध्यावैं सहंस अठासी।
उतरैं भवजल पारा, कनि हैं यम की फांसी।11।
।। मन्त्र।।
अनािद मन्त्र सुख सलािद मन्त्र, अजोख मन्त्र,
बेसुन मन्त्र ननबाव न मन्त्र थीर िै ।।1।।
आनद मन्त्र यु गानद मन्त्र, अचल अभुंगी मन्त्र,
सदा सत्सुंगी मन्त्र, ल्यौलीन मन्त्र गिर गम्भीर िै ।।2।।
सोऽिुं सुभान मन्त्र, अगम अनुराग मन्त्र, ननभवय अडोल मन्त्र,
ननगुवण ननबवन्ध मन्त्र, ननश्चल मन्त्र नेक िै ।।3।।
गैबी गुलजार मन्त्र, ननभवय ननरधार मन्त्र,
सुमरत सुकृत मन्त्र अगमी अबुंच मन्त्र अदनल मन्त्र अलेख िै ।4।
फजलुं फराक मन्त्र, नबन रसना गुणलाप मन्त्र,
निलनमल जहर मन्त्र, सरबुंग भरपूर मन्त्र, सैलान मन्त्रसार िै ।।5।।
ररुं कार गरक मन्त्र, तेजपुुंज परख मन्त्र, अदली अबन्ध मन्त्र,
अजपा ननसवन्ध-मन्त्र, अनबगत अनािद मन्त्र, नदल में दीदार िै ।।6।।
वाणी नवनोद मन्त्र, आनन्द असोध मन्त्र, खुरसी करार मन्त्र,
अनभय उच्चार मन्त्र, उजल मन्त्र अलेख िै ।।7।।
सानिब सतराम मन्त्र, साुं ई ननिकाम मन्त्र, पारख प्रकास मन्त्र,
निरम्बर हुलास मन्त्र, मौले मलार मन्त्र, पलक बीच खलक िै ।।8।।
।।अथ गुरुदे वे का अंग।।
गरीब, प्रपटन वि प्रलोक िै , जिाुं अदली सतगुरु सार।
2

भक्ति िे त सैं उतरे , पाया िम दीदार।।1।।


गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, अलल पुंख की जात।
काया माया ना विाुं , निीुं पाँ च तत का गात।।2।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, उजल निरम्बर आनद।
भलका ज्ञान कमान का, घालत िैं सर साुं नध।।3।।

गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, सुन्न नवदे शी आप।


रोम - रोम प्रकाश िै , दीन्हा अजपा जाप।।4।।
गरीब,ऐसा सतगुरु िम नमल्या, मगन नकए मुस्ताक।
प्याला प्याया प्रेम का, गगन मण्डल गर गाप।।5।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, नसुंध सुरनत की सैन।
उर अुंतर प्रकानसया, अजब सुनाये बैन।।6।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, सुरनत नसुंधु की सैल।
बज्र पौल पट खोल कर, ले गया िीनी गैल।।7।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, सुरनत नसुंधु के तीर।
सब सुंतन नसर ताज िैं , सतगुरु अदली कबीर।।8।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, सुरनत नसुंधु के माँ नि।
शब्द स्वरूपी अुंग िै , नपुंड प्रान नबन छाँ नि।।9।।
गरीब, ऐसा सतगुरू िम नमल्या, गलताना गुलजार।
वार पार कीमत निीुं, निीुं िल्का निीुं भार।।10।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, सुरनत नसुंधु के मुंि।
अुंड्ोुं आनन्द पोख िै , बैन सुनाये कुुंज।।11।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, सुरनत नसुंधु के नाल।
पीताम्बर ताखी धयो, बानी शब्द ररसाल।।12।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, सुरनत नसुंधु के नाल।
गवन नकया परलोक से, अलल पुंख की चाल।।13।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, सुरनत नसुंधु के नाल।
ज्ञान जोग और भक्ति सब, दीन्ही नजर ननिाल।।14।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, बेप्रवाि अबुंध।
परम िुं स पूणव पुरूष, रोम - रोम रनव चुंद।।15।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, िै नजुंदा जगदीश।
सुन्न नवदे शी नमल गया, छत्र मुकुट िै शीश।।16।।
गरीब, सतगुरु के लक्षण कहुं , मधुरे बैन नवनोद।
चार बेद षट शास्त्र, कि अठारा बोध।।17।।
गरीब, सतगुरु के लक्षण कहुं , अचल नविुं गम चाल।
िम अमरापुर ले गया, ज्ञान शब्द सर घाल।।18।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, तुररया केरे तीर।
भगल नवद्या बानी किैं , छानै नीर अरु खीर।।19।।
गरीब, नजुंदा जोगी जगत गुरु, मानलक मुरशद पीव।
काल कमव लागै निीुं, निीुं शुं का निीुं सीव।।20।।
गरीब, नजुंदा जोगी जगत गुरु, मानलक मुरसद पीर।
दहु दीन िगडा मॅड्ा, पाया निीुं शरीर।।21।।
गरीब, नजुंदा जोगी जगत गुरु, मानलक मुरशद पीर।
मायाव भलका भेद से, लगे ज्ञान के तीर।22।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, तेज पुुंज के अुंग।
3

निल नमल नूर जहर िै , नर रूप सेत रुं ग।।23।।


गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, तेज पुुंज की लोय।
तन मन अरपूुं सीस कुुं, िोनी िोय सु िोय।।24।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, खोले बज्र नकवार।
अगम दीप कूुं ले गया, जिाुं ब्रह्म दरबार।।25।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, खोले बज्र कपाट।
अगम भूनम कूुं गम करी, उतरे औघट घाट।।26।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, मारी ग्यासी गैन।
रोम - रोम में सालती, पलक निीुं िै चैन।।27।।
गरीब, सतगुरु भलका खैंच कर लाया बान जु एक।
स्वाुं स उभारे सालता पड्ा कलेजे छे क।।28।।
गरीब, सतगुरु मायाव बाण कस, खैबर ग्यासी खैंच।
भमव कमव सब जर गये, लई कुबुक्तद्ध सब ऐुंच ।।29।।
गरीब, सतगुरु आये दया करर, ऐसे दीन दयाल।
बुंदी छोड नबरद तास का, जठरानि प्रनतपाल।।30।।
गरीब, जठरानि सैं राक्तखया, प्याया अमृत खीर।
जुगन-जुगन सतसुंग िै , समि कुटन बेपीर।।31।।
गरीब, जूनी सुंकट मेट िैं , औुंधे मुख निीुं आय।
ऐसा सतगुरु सेइये , जम सै लेत छु डाय।।32।।
गरीब, जम जौरा जासै डरैं , धमव राय के दू त।
चैदा कोनट न चुंप िीुं, सुन सतगुरु की कूत।।33।।
गरीब, जम जौरा जासे डरैं , धमव राय धरै धीर।
ऐसा सतगुरु एक िै , अदली असल कबीर।।34।।
गरीब, जम जौरा जासै डरैं , नमटें कमव के अुंक।
कागज कीरै दरगि दई, चैदि कोनट न चुंप।।35।
गरीब, जम जौरा जासे डरैं , नमटें कमव के लेख।
अदली असल कबीर िैं , कुल के सतगुरु एक।।36।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, पहुुं च्या मुंि ननदान।
नौका नाम चढाय कर, पार नकये परमान।।37।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, भौ सागर के मानि।
नौका नाम चढाय कर, ले राखे ननज ठानि।।38।।
गरीब, ऐसा सतगुरु िम नमल्या, भौ सागर के बीच।
खेवट सब कुुं खेवता, क्या उत्तम क्या नीच।।39।।
गरीब, चैरासी की धार में, बिे जात िैं जीव।
ऐसा सतगुरु िम नमल्या, ले प्रसाया पीव।।40।।
गरीब, लख चैरासी धार में, बिे जात िैं िुं स।
ऐसा सतगुरु िम नमल्या, अलख लखाया बुंस।।41।।
गरीब, माया का रस पीय कर, फूट गये दो नैन।
ऐसा सतगुरु िम नमल्या, बास नदया सुख चैन।।42।।
गरीब, माया का रस पीय कर, िो गये डामाडोल।
ऐसा सतगुरु िम नमल्या, ज्ञान जोग नदया खोल।।43।।
गरीब, माया का रस पीय कर, िो गये भूत खईस।
ऐसा सतगुरु िम नमल्या, भक्ति दई बकसीस।।44।।
गरीब, माया का रस पीय कर, फूट गये पट चार।
4

ऐसा सतगुरु िम नमल्या, लोयन सुंख उघार।।45।।


गरीब, माया का रस पीय कर, डूब गये दहँ दीन।
ऐसा सतगुरु िम नमल्या, ज्ञान जोग प्रवीन।।46।।
गरीब, माया का रस पीय कर, गये षट दल गारत गोर।
ऐसा सतगुरु िम नमल्या, प्रगट नलए बिोर।।47।।
गरीब, सतगुरु कुुं क्या दीनजए, दे ने कूुं कुछ नानिुं ।
सुंमन कूुं साटा नकया, सेऊ भेंट चढानि।।48।।
गरीब, नसर साटे की भक्ति िै , और कुछ नानिुं बात।
नसर के साटे पाईये , अवगत अलख अनाथ।।49।।
गरीब, सीस तुम्हारा जायेगा, कर सतगुरु कूुं दान।
मेरा मेरी छाड दे , योिी गोई मैदान।।50।।
गरीब, सीस तुम्हारा जायेगा, कर सतगुरु की भेंट।
नाम ननरुं तर लीनजए, जम की लगैं न फेंट।।51।।
गरीब, सानिब से सतगुरु भये , सतगुरु से भये साध।
ये तीनोुं अुंग एक िैं ,गनत कछु अगम अगाध।।52।।
गरीब, सानिब से सतगुरु भये , सतगुरु से भये सुंत।
धर - धर भेष नवशाल अुंग, खेलें आनद और अुंत।।53।।
गरीब, ऐसा सतगुरु सेइये , बेग उतारे पार।
चैरासी भ्रम मेटिीुं, आवा गवन ननवार।।54।।
गरीब, अन्धे गूुंगे गुरु घने , लुंगडे लोभी लाख।
सानिब सैं परचे निीुं, काव बनावैं साख।।55।।
गरीब, ऐसा सतगुरु सेईये , शब्द समाना िोय।
भौ सागर में डूबतें , पार लुंघावैं सोय।।56।।
गरीब, ऐसा सतगुरु सेईये , सोिुं नसुंधु नमलाप।
तुररया मध्य आसन करैं , मेटैं तीन्ोुं ताप।।57।।
गरीब, तुररया पर पुररया मिल, पार ब्रह्म का दे श।
ऐसा सतगुरु सेईये , शब्द नवग्याना नेस।।58।।
गरीब, तुररया पर पुररया मिल, पार ब्रह्म का धाम।
ऐसा सतगुरु सेईये , िुं स करैं ननिकाम।।59।।
गरीब, तुररया पर पुररया मिल, पार ब्रह्म का लोक।
ऐसा सतगुरु सेईये , िुं स पठावैं मोख।।60।।
गरीब, तुररया पर पुररया मिल, पार ब्रह्म का द्वीप।
ऐसा सतगुरु सेईये , राखे सुंग समीप।।61।।
गरीब, गगन मण्डल गादी जिाुं , पार ब्रह्म अस्थान।
सुन्न नशखर के मिल में, िुं स करैं नवश्राम।।62।।
गरीब, सतगुरु पूणव ब्रह्म िैं , सतगुरु आप अलेख।
सतगुरु रमता राम िैं , यामें मीन न मेख।।63।।
गरीब, सतगुरु आनद अनानद िैं , सतगुरु मध्य िैं मूल।
सतगुरु कुुं नसजदा करू ुं , एक पलक निीुं भूल।।64।।
गरीब, पट्टन घाट लखाईयाुं , अगम भूनम का भेद।
ऐसा सतगुरु िम नमल्या, अष्ट कमल दल छे द।।65।।
गरीब, पट्टन घाट लखाईयाुं , अगम भूनम का भेव।
ऐसा सतगुरु िम नमल्या, अष्ट कमल दल सेव।।66।।
गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, सतगुरु ले गया मोनि।
नसर साटै सौदा हुआ, अगली नपछली खोनि।।67।।
5

गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, सतगुरु ले गया साथ।


जिाुं िीरे माननक नबकैं, पारस लाग्या िाथ।।68।।
गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, िै सतगुरु की िाट।
जिाुं िीरे माननक नबकैं, सौदागर स्ोुं साट।।69।।
गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, सौदा िै ननज सार।
िम कुुं सतगुरु ले गया, औघट घाट उतार।।70।।
गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, प्रेम प्याले खूब।
जिाुं िम सतगुरु ले गया, मतवाला मिबूब।।71।।
गरीब, प्रपट्टन की पीठ में, मतवाले मस्तान।
िम कुुं सतगुरु ले गया, अमरापुर अस्थान।।72।।
गरीब, बुंक नाल के अुं तरै , नत्रवैणी के तीर।
मान सरोवर िुं स िैं , बानी कोनकल कीर।।73।।
गरीब, बुंकनाल के अुं तरे , नत्रवैणी के तीर।
जिाुं िम सतगुरु ले गया, चुवै अमीरस षीर।।74।।
गरीब, बुंक नाल के अुं तरे , नत्रवैणी के तीर।
जिाुं िम सतगुरु ले गया, बन्दी छोड कबीर।।75।।

गरीब, भुंवर गुफा में बैठ कर, अमी मिारस जोख।


ऐसा सतगुरु नमल गया, सौदा रोकम रोक।।76।।
गरीब, भुंवर गुफा में बैठ कर, अमी मिारस तोल।
ऐसा सतगुरु नमल गया, बज्र पौल दई खोल।।77।।
गरीब, भुंवर गुफा में बैठ कर, अमी मिारस जोख।
ऐसा सतगुरु नमल गया, ले गया िम प्रलोक।।78।।
गरीब, नपण्ड ब्रह्मण्ड सैं अगम िैं , न्ारी नसुंधु समाध।
ऐसा सतगुरु नमल गया, दे ख्या अगम अगाध।।79।।
गरीब, नपण्ड ब्रह्मण्ड सैं अगम िैं , न्ारी नसन्धु समाध।
ऐसा सतगुरु नमल गया, नदया अखै प्रसाद।।80।।
गरीब, औघट घाटी ऊतरे , सतगुरु के उपदे श।
पूणव पद प्रकानसया, ज्ञान जोग प्रवेश।।81।।
गरीब, सुन्न सरोवर िुं स मन, न्हाया सतगुरु भेद।
सुरनत ननरनत परचा भया, अष्ट कमल दल छे द।।82।।
गरीब, सुन्न बेसुन्न सैं अगम िै , नपण्ड ब्रह्मण्ड सैं न्ार।
शब्द समाना शब्द में, अवगत वार न पार।।83।।
गरीब, सतगुरु कूुं कुरबान जाुं , अजब लखाया दे स।
पार ब्रह्म प्रवान िै , ननरालम्भ ननज नेस।।84।।
गरीब, सतगुरु सोिुं नाम दे , गुज बीरज नवस्तार।
नबन सोिुं सीिे निीुं, मूल मन्त्र ननज सार।।85।।
गरीब, सोिुं सोिुं धुन लगै, ददव बन्द नदल मानिुं ।
सतगुरु परदा खोल िीुं, परालोक ले जानिुं ।।86।।
गरीब, सोिुं जाप अजाप िै , नबन रसना िोए धुन्न।
चढे मिल सुख सेज पर, जिाुं पाप निीुं पुन्न।।87।।
गरीब, सोिुं जाप अजाप िै , नबन रसना िोए धुन्न।
सतगुरु दीप समीप िै , निीुं बसती निीुं सुन्न।।88।।
गरीब, सुन्न बसती सैं रनित िै , मूल मन्त्र मन मानिुं ।
6

जिाुं िम सतगुरु ले गया, अगम भूनम सत ठानिुं ।।89।।


गरीब, मूल मन्त्र ननज नाम िै , सूरत नसुंधु के तीर।
गैबी बाणी अरस में, सुर नर धरैं न धीर।।90।।
गरीब, अजब नगर में ले गया, िम कुुं सतगुरु आन।
निलके नबम्ब अगाध गनत, सूते चादर तान।।91।।
गरीब, अगम अनािद दीप िै , अगम अनािद लोक।
अगम अनािद गवन िै , अगम अनािद मोख।।92।।
गरीब, सतगुरु पारस रूप िैं , िमरी लोिा जात।
पलक बीच कुंचन करैं , पलटैं नपण्डरु गात।। 93।।
गरीब, िम तो लोिा कनठन िैं , सतगुरु बने लुिार।
जुगन-जुगन के मोरचे , तोड घडे घणसार।।94।।
गरीब, िम पसुवा जन जीव िैं , सतगुरु जात नभरुं ग।
मुरदे सैं नजन्दा करैं , पलट धरत िैं अुंग।।95।।
गरीब, सतगुरु नसकलीगर बने , यौि तन तेगा दे ि।
जुगन-जुगन के मोरचे , खोवैं भमव सुंदेि।।96।।
गरीब, सतगुरु कुंद कपूर िैं , िमरी तुनका दे ि।
स्वानत सीप का मेल िै , चुंद चकोरा नेि।।97।।
गरीब, ऐसा सतगुरु सेईये , बेग उधारै िुं स।
भौ सागर आवै निीुं, जौरा काल नवध्वुंस।।98।।
गरीब, पट्टन नगरी घर करै , गगन मण्डल गैनार।
अलल पुंख ज्ूुं सुंचरै , सतगुरु अधम उधार।।99।।
गरीब, अलल पुंख अनुराग िै , सुन्न मण्डल रिै थीर।
दास गरीब उधाररया, सतगुरु नमले कबीर।।100।।

साहे ब कबीर की वाणी गुरूदे व के अंग से


कबीर, दण्डवत् गोनवन्द गुरु, बनदू ँ अनवजन सोय।
पिले भये प्रणाम नतन, नमो जो आगे िोय।।1।।
कबीर, गुरुको कीजे दण्डवत, कोनट कोनट परनाम।
कीट न जानै भृुंगको, योुं गुरुकरर आप समान।।2।।
कबीर, गुरु गोनवुंद कर जाननये , रनिये शब्द समाय।
नमलै तौ दण्डवत् बन्दगी, ननिुं पलपल ध्यान लगाय।।3।।
कबीर, गुरु गोनवुंद दोनोुं खडे , नकसके लागोुं पाुं य।
बनलिारी गुरु आपने , गोनवुंद नदया नमलाय।।4।।
कबीर, सतगुरु के उपदे शका, सुननया एक नबचार।
जो सतगुरु नमलता निीुं, जाता यमके द्वार।।5।।
कबीर, यम द्वारे में दू त सब, करते खैंचा तानन।
उनते कभू न छूटता, नफरता चारोुं खानन।।6।।
कबीर, चारर खाननमें भरमता, कबहुुं न लगता पार।
सो फेरा सब नमनट गया, सतगुरुके उपकार।।7।।
कबीर, सात समुन्द्र की मनस करू ुं , लेखनन करू
ुं बननराय।
धरती का कागद करू ुं , गुरु गुण नलखा न जाय।।8।।
कबीर, बनलिारी गुरु आपना, घरी घरी सौबार।
मानुषतें दे वता नकया, करत न लागी बार।।9।।
कबीर, गुरुको मानुष जो नगनै, चरणामृत को पान।
7

ते नर नरकै जानिगें, जन्म जन्म िोय स्वान।।10।।


कबीर, गुरु मानुष कररजानते , ते नर कनिये अुंध।
िोुंय दु खी सुंसारमें, आगे यमका फुंद।।11।।
कबीर, ते नर अुंध िैं , गुरुको किते और।
िररके रूठे ठौर िै , गुरु रूठे ननिुं ठौर।।12।।
कबीर, कबीरा िररके रूठते , गुरुके शरने जाय।
किै कबीर गुरु रूठते , िरर ननिुं िोत सिाय।।13।।
कबीर, गुरुसो ज्ञान जो लीनजये , सीस दीनजये दान।
बहुतक भोुंदू बनिगये , राक्तख जीव अनभमान।।14।।
कबीर, गुरु समान दाता निीुं, जाचक नशष्य समान।
तीन लोककी सम्पदा, सो गुरु दीन्हीुं दान।।15।।
कबीर, तन मन नदया तो भला नकया, नशरका जासी भार।
जो कभू किै मैं नदया, बहुत सिे नशर मार।।16।।
कबीर, गुरु बडे िैं गोनवन्द से , मन में दे ख नवचार।
िरर सुमरे सो वारर िैं , गुरु सुमरे िोय पार।।17।।
कबीर, ये तन नवष की बेलडी, गुरु अमृत की खान।
शीश नदए जो गुरु नमले, तो भी सस्ता जान।।18।।
कबीर, सात द्वीप नौ खण्ड में, गुरु से बडा ना कोय।
करता करे ना कर सकै, गुरु करे सो िोय।।19।।
कबीर, राम कृष्ण से को बडा, नतनहुं भी गुरु कीन्ह।
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगै आधीन।।20।।
कबीर, िरर सेवा युग चार िै , गुरु सेवा पल एक।
तासु पटन्तर ना तुलैं, सुंतन नकया नववेक।।21।।
।। सतगुरु मनहमा।।
साहे ब गरीबदास जी की वाणी
सतगुरु दाता िैं कनल मानिुं , प्राण उधारण उत्तरे साुं ई।
सतगुरु दाता दीन दयालुं, जम नकुंकर के तोरैं जालुं।।
सतगुरु दाता दया कराुं िी, अगम दीप सैं सो चल आिीुं।
सतगुरु नबना पुंथ निीुं पावै , सतगुरु नमलैं तो अलख लखावैं।।
सतगुरु सानिब एक शरीरा, सतगुरु नबना न लागै तीरा।
सतगुरु बान नविुं गम मारैं , सतगुरु भव सागर सैं तारैं ।।
सतगुरु नबना न पावै पैण्डा, हुं ठ िाथ गढ लीजै कैण्डा।
सतगुरु ददव बुंद दवेसा, जो मन कर िै दू र अुंदेशा।।
सतगुरु ददव बुंद दरबारी, उतरे सानिब सुन् अधारी।
सतगुरु सानिब अुंग न दू जा, ये सगुवण वै ननगुवन पूजा।।
गरीब, ननगुवण सगुवण एक िै , दू जा भमव नवकार।
ननगुवण सानिब आप िैं सगुवण सुंत नवचार।।
सतगुरु नबना सुरनत निीुं पाटै , खेल मुंड्ा िै नसर के साटै ।
सतगुरु भक्ति मुक्ति केदानी, सतगुरु नबना न छूटै खानी।।
मागव नबना चलन िै तेरा, सतगुरु मेटैं नतमर अुंधेरा।
अपने प्राणदानजो करिीुं, तनमन धनसब अपवण धरिीुं।।
सतगुरु सुंख कला दरसावैं, सतगुरु अशव नवमान नबठावैं।
सतगुरु भौ सागरके कोली, सतगुरु पार ननबािैं डोली।।
सतगुरु मादर नपदर िमारे , भौ सागर के तारन िारे ।
8

सतगुरु सुन्दर रूप अपारा, सतगुरु तीन लोक सैं न्ारा।।


सतगुरु परम पदारथ पूरा, सतगुरु नबना न बाजैं तूरा।
सतगुरु आवादान कर दे वैं, सतगुरु राम रसायन भेवैं।।
सतगुरु पसु मानस करर डारैं , नसक्तद्ध दे य कर ब्रह्म नवचारै ।।
गरीब, ब्रह्म नबनानी िोत िैं सतगुरु शरणालीन।
सूभर सोई जाननये , सब सेती आधीन।।
सतगुरु जो चािे सो करिी, चैदि कोनट दू त जम डरिीुं।
ऊत भूत जम त्रास ननवारे , नचत्र गुप्त के कागज फारै ।

साहेब कबीर जी की वाणी


गुरु ते अनधक न कोई ठिरायी। मोक्षपुंथ ननिुं गुरु नबनु पाई।।
राम कृष्ण बड नतहुँ पुर राजा।नतन गुरु बुंनद कीन्ह ननज काजा।।
गेिी भक्ति सतगुरु की करिीुं। आनद नाम ननज हृदय धरिीुं।।
गुरु चरणन से ध्यान लगावै। अुंत कपट गुरु से ना लावै।।
गुरु सेवा में फल सबवस आवै। गुरु नवमुख नर पार न पावै।।
गुरु वचन ननश्चय कर मानै। पूरे गुरु की सेवा ठानै।।
गुरुकी शरणा लीजै भाई। जाते जीव नरक निीुं जाई।।
गुरु कृपा कटे यम फाुं सी। नवलम्ब ने िोय नमले अनवनाशी।।
गुरु नबनु काहु न पाया ज्ञाना। ज्ोुं थोथा भुस छडे नकसाना।।
तीथव व्रत अरू सब पूजा। गुरु नबन दाता और न दू जा।।
नौ नाथ चैरासी नसद्धा। गुरु के चरण सेवे गोनवन्दा।।
गुरु नबन प्रेत जन्म सब पावै। वषव सिुं स्र गरभ सो रिावै।।
गुरु नबन दान पुण्य जो करई। नमथ्या िोय कबहँ निीुं फलिीुं।।
गुरु नबनु भमव न छूटे भाई।कोनट उपाय करे चतुराई।।
गुरु के नमले कटे दु ुःख पापा। जन्म जन्म के नमटें सुंतापा।।
गुरु के चरण सदा नचत्त दीजै। जीवन जन्म सुफल कर लीजै।।
गुरु भगता मम आतम सोई। वाके हृदय रहँ समोई।।

अडसठ तीथव भ्रम भ्रम आवे। सो फल गुरु के चरनोुं पावे।।


दशवाँ अुंश गुरु को दीजै। जीवन जन्म सफल कर लीजै।।
गुरु नबन िोम यज्ञ ननिुं कीजे । गुरु की आज्ञा मानिुं रिीजे ।।
गुरु सुरतरु सुरधेनु समाना। पावै चरन मुक्ति परवाना।।
तन मन धन अरनप गुरु सेवै। िोय गलतान उपदे शनिुं लेवै।।
सतगुरुकी गनत हृदय धारे । और सकल बकवाद ननवारै ।।
गुरु के सन्मुख वचन न किै । सो नशष्य रिननगिनन सुख लिै ।।
गुरु से नशष्य करै चतुराई। सेवा िीन नकव में जाई।।
रमैनी: नशष्य िोय सरबस निीुं वारै ।
निये कपट मुख प्रीनत उचारे ।।
जो नजव कैसे लोक नसधाई। नबन गुरु नमले मोिे ननिुं पाई।।
गुरु से करै कपट चतुराई। सो िुं सा भव भरमें आई।।
गुरु से कपट नशष्य जो राखै। यम राजा के मुगदर चाखै।।
जो जन गुरु की ननुंदा करई। सूकर श्वान गरभमें परई।।
गुरु की ननुंदा सुने जो काना। ताको ननश्चय नरक ननदाना।।
अपने मुख ननुंदा जो करई। पररवार सनित नकव में पडिी।।
गुरु को तजै भजै जो आना। ता पशुवा को फोकट ज्ञाना।।
9

गुरुसे बैर करै नशष्य जोई। भजन नाश अरु बहुत नबगोई।।
पीनढ सनित नरकमें पररिै । गुरु आज्ञा नशष्य लोप जो कररिै ।।
चेलो अथवा उपासक िोई। गुरु सन्मुख ले िूठ सुंजोई।।
ननश्चय नकव परै नशष्य सोई। वेद पुराण भाषत सब कोई।।
सन्मुख गुरुकी आज्ञा धारै । अरू नपछे तै सकल ननवारै ।।
सो नशष्य घोर नकवमें पररिै । रुनधर राध पीवै ननिुं तरर िै ।।
मुखपर वचन करै परमाना। घर पर जाय करै नवज्ञाना।।
जिाँ जावै तिाँ ननुंदा करई। सो नशष्य क्रोध अनि में जरई।।
ऐसे नशष्यको ठािर नािीुं। गुरु नवमुख लोचत िै मनमािीुं।।
बेद पुराण किै सब साखी। साखी शब्द सबै योुं भाखी।।
मानुष जन्म पाय कर खोवै। सतगुरु नवमुखा जुगजुग रोवै।।
गरीब, गुरु द्रोिी की पैड पर, जे पग आवै बीर।
चैरासी ननश्चय पडै , सतगुरु किैं कबीर।।
कबीर, जान बूि साची तजै, करैं िूठे से नेि।
जानक सुंगत िे प्रभु, स्वपन में भी ना दे ि।।
तातै सतगुरु सरना लीजै। कपट भाव सब दू र करीजै।।
योग यज्ञ जप दान करावै।गुरु नवमुख फल कबहुँ न पावै ।
निष्य की आधीिता
दोउकर जोरर गुरुके आगे।कररबहु नवनती चरनन लागे।।
अनत शीतल बोलै सब बैना। मेटै सकल कपटके भैना।।
िे गुरु तुम िो दीनदयाला। मैं हँ दीन करो प्रनतपाला।।
बुंदीछोड मैं अनतनि अनाथा। भवजल बूडत पकडो िाथा।।
नदजै उपदे श गुप्त मुंत्र सुनाओ। जन्म मरन भवदु ुःख छु डाओ।।
योुं आधीन िोवै नशष्य जबिीुं। नशष्य पर कृपा करै गुरु तबिीुं।।
गुरुसे नशष्य जब दीच्छा माुं गै। मन कमव वचन धरै धन आगै।।
ऐसी प्रीनत दे क्तख गुरु जबिीुं। गुप्त मुंत्र किै गुरु तबिीुं।।
भक्ति मुक्ति को पुंथ बतावै। बुरो िोनको पुंथ छु डावै।।
ऐसे नशष्य उपदे शनिुं पाई। िोय नदव्य दृनष्ट पुरूषपै जाई।।
गुरु सेवा महात्मय
गुंगा यमुना बद्री समेते। जगन्नाथ धाम िैं जेते।।
भ्रमे फल प्राप्त िोय न जेतो। गुरु सेवा में पावै फल ते तो।।
गुरु मिातमको वारनपारा। वरणे नशवसनकानदक और अवतारा।।
गुरुको पूणव ब्रह्मकर जाने। और भाव कबहँ ननिुं आने।।
नजन बातनसे गुरु दु ुःख पावै। नतन बातनको दू र बिावै।।
अष्ट अुंगसे दुं डवत प्रणामा। सुंध्या प्रात करै ननष्कामा।।
गुरु चरणामृत का महात्मय
कोनटक तीथव सब कर आवै। गुरु चरणाफल तुरुंत िी पावै ।।

चरनामृत कदानचत पावै। चैरासी कटै लोक नसधावै।।


कोनटक जप तप करै करावै। वेद पुराण सबै नमनल गावै।।
गुरुपद रज मस्तक पर दे वै। सो फल तत्कालनि लेवै।।
सो गुरु सत जो सार नचनावै। यम बुंधन से जीव मुिावै।।
गुरु पद सेवे नबरला कोई। जापर कृपा सानिब की िोई।।
गुरु मनिमा शु कदे व जु पाई। चनढ नवमान बैकुण्ठे जाई।।
10

गुरु नबनु बेद पढै जो प्राणी। समिे ना सार, रिे अज्ञानी।।


सतगुरु नमले तौ अगम बतावै। जमकी आँ च तानि ननिुं आवै।।
गुरु से िी सदा नित जानो। क्योुं भूले तुम चतुर स्ानो।।
गुरु सीढी चनढ ऊपर जाई। सुखसागर में रिे समाई।।
गौरी शुंकर और गणेशा। सबिी लीन्हा गुरु उपेदशा।।
नशव नबुंरनच गुरु सेवा कीन्हा। नारद दीक्षा ध्रु को दीन्हा।।
गुरु नवमुख सोई दु ुःख पावै। जन्म जन्म सोई डिकावै।।
गुरु सेवै सो चतुर स्ाना। गुरु पटतर कोई और न आना।।
सानहब कबीर के उपदे ि्
कबीर, जो तोको काँ टा बोवै, ताको बो तू फूल।
तोनि फूलके फूल िैं , वाको िैं नत्रशूल।।
कबीर, दु बवल को न सताइये, जाकी मोटी िाय।
नबना जीवकी स्वाँ ससे , लोि भस्म ह्नै जाय।।
कबीर आप ठगाइये , और न ठनगये कोय।
आप ठगाऐुं सुख िोत िै , औरोुं ठगे दु ुःख िोय।।
कबीर, या दु ननयाँ में आइके, छानड दे इ तू ऐनठ। ले
ना िोय सो लेइले, उठी जातु िै पुंैैनठ।।
किै कबीर पु काररके, दोय बात लक्तखलेय।
एक सािबकी बुंदगी, व भूखोुंको कछु दे य।।
कबीर, इष्ट नमलै और मन नमलै, नमलै सकल रस रीनत।
किै कबीर तिाँ जाइये , रि सन्तन की प्रीनत।।
कबीर, ऐसी बानी बोनलये, मनका आपा खोय।
औरन को शीतल करै , आपुनिुं शीतल िोय।।
कबीर, जगमें बैरी कोइ निीुं, जो मन शीतल िोय।
या आपा कोुं डारर दै , दया करै सब कोय।।
कबीर, किते को किी जान दै , गुरु की सीख तु लेय।
साकट और स्वानको, उल्ट जवाब न दे य।।
कबीर, िस्ती चनढये ज्ञानके, सिज दु लीचा डारर।
स्वान रूप सुंसार िै , भूसन दे िकमारर।।
कबीर, कनबरा कािे को डरै , नसरपर नसरजनिार।

िस्ती चनढ डररये निीुं, कूकर भुसे िजार।।


कबीर, आवत गारी एकिै , उलटत िोय अनेक।
किै कबीर ननिुं उलनटये, रिै एक की एक।।
कबीर, गाली िी से ऊपजै , कलि कष्ट और मीच।
िार चलै सो साधु िै , लानग मरे सो नीच।।
कबीर, िररजन तो िारा भला, जीतन दे सुंसार।
िारा तौ िरर सोुं नमलै, जीता यमकी लार।।
कबीर, जेता घट तेता मता, घट घट और स्वभाव।
जा घट िार न जीत िै ,ता घट ब्रह्म समाव।।
कबीर, कथा करो करतारकी, सुनो कथा करतार।
आन कथा सुननये निीुं, किै कबीर नवचार।।
कबीर, बन्दे तू कर बन्दगी, जो चािै दीदार।
औसर मानुष जन्मका, बहुरर न बारम्बार।।
कबीर, बनजारे के बैल ज्ोुं, भरनम नफरयो बहु दे श।
11

खाुं ड लानद भुस खात िै , नबन सतगुरु उपदे श।।


।। सुनमरि का अंग।।
कबीर, सुमरन मारग सिज का, सतगुरु नदया बताय।
स्वाँ स-उस्वाँ स जो सुनमरता, एक नदन नमलसी आय।।
कबीर, माला स्वाँ स-उस्वाँ स की, फेरें गे ननजदास।
चैरासी भरमै निीुं, कटै करमकी फाँ स।।
कबीर सुमरन सार िै , और सकल जुंजाल।
आनद अुंत मनध सोनधया, दू जा दे खा ख्याल।।
कबीर, ननजसुख आतम राम िे , दू जा दु ुःख अपार।
मनसा वाचा कमवना, कनबरा सुनमरन सार।।
कबीर, दु खमें सुनमरन सब करै , सुखमें करै न कोय।
जे सुखमें सुनमरन करै , तो दु ख कािे को िोय।।
कबीर, सुखमें सुनमरन ना नकया, दु खमें नकया यानद।
किै कबीर ता दासकी, कौन सुने नफररयानद।।
कबीर, साँ ई योुं मनत जाननयोुं, प्रीनत घटै मम नचत्त।
मरूुं तो तुम सुनमरत मरू ुं , जीवत सुमरूँ ननत्य।।
कबीर, जप तप सुंयम साधना, सब सुनमरनके माँ नि।
कनबरा जानें रामजन, सुनमरन सम कछु नानिुं ।।
कबीर, नजन िरर जैसा सुमररया, ताको तैसा लाभ।
ओसाँ प्यास न भागई, जबलग धसै न आब।।
कबीर, सुनमरन की सुनध योुं करो, जैसे दाम कुंगाल।
किै कबीर नवसरै निीुं, पल पल लेत सुंभाल।।20।।

कबीर, सुनमरन सोुं मन लाइये , जैसे पानी मीन।


प्रान तजै पल बीसरै , दास कबीर कनि दीन।।
कबीर, सत्यनाम सुनमररले, प्राण जानिुं गे छूट।
घरके प्यारे आदमी, चलते लेइँगे लूट।।
कबीर, लूट सकै तो लूनटले, राम नाम िै लूनट।
पीछै नफरर पनछताहुगे, प्राण जाँ यगे छूनट।।
कबीर, सोया तो ननष्फल गया, जागो सो फल लेय।
सानिब िक्क न राखसी, जब माँ गै तब दे य।।
कबीर, नचुंता तो िरर नामकी, और न नचतवै दास।
जो कछु नचतवे नाम नबनु , सोइ कालकी फाँ स।।
कबीर,जबिी सत्यनाम हृदय धरयो,भयो पापको नास।
मानौुं नचनगी अनिकी, परी पुराने घास।।
कबीर, राम नामको सुनमरताुं , अधम नतरे अपार।
अजामेल गननका सुपच, सदना, नसवरी नार।।
कबीर, स्वप्ननिमें बररायके, जो कोई किे राम।
वाके पग की पाँ वडी, मेरे तन को चाम।।
कबीर, नाम जपत कन्ा भली, साकट भला न पूत।
छे रीके गल गलथना, जामें दू ध न मूत।।
कबीर, सब जग ननधवना, धनवुंता ननिुं कोय।
धनवुंता सोई जाननये , राम नाम धन िोय।।
कबीर किता हुं कनि जात हँ , कहुं बजा कर ढोल।
12

स्वाुं स जो खाली जात िै , तीन लोक का मोल।।


कबीर, ऐसे मिुं गे मोलका, एक स्वाँ स जो जाय।
चैदा लोक ननिुं पटतरे , कािे धूरर नमलाय।।
कबीर, नजवना थोरािी भला, जो सत्य सुनमरन िोय।
लाख बरसका जीवना, लेखे धरै न कोय।।
कबीर, किता हँ कनि जात हुं , सुनता िै सब कोय।
सुनमरन सोुं भला िोयगा, नातर भला न िोय।।
कबीर, कबीरा िररकी भक्ति नबन, नधग जीवन सुंसार।
धूुंआ कासा धौलिरा, जात न लागै बार।।
कबीर, भक्ति भाव भादोुं नदी, सबै चली घिराय।
सररता सोई जाननये , जेष्ठमास ठिराय।।
कबीर, भक्ति बीज नबनसै निीुं, आय परैं सौ िोल।
जो कुंचन नवष्टा परै , घटै न ताको मोल।।
कबीर, कामी क्रोधी लालची, इनपै भक्ति न िोय।
भक्ति करै कोई शूरमाुं , जानत बरण कुल खोय।।
कबीर, जबलग भक्ति सिकामना, तब लनग ननष्फल से व।
किै कबीर वे क्योुं नमलै, ननष्कामी ननज दे व।।
।। अथ सातों वार की रमैणी।।
सातोुं वार समूल बखानोुं, पिर घडी पल ज्ोनतष जानो।1।
ऐतवार अन्तर निीुं कोई, लगी चाुं चरी पद में सोई।2।
सोम सम्भाल करो नदन राती, दू र करो नै नदल की काुं ती।3।
मुंगल मन की माला फेरो, चैदि कोनट जीत जम जेरो।4।
बुद्ध नवनानी नवद्या दीजै, सत सुकृत ननज सुनमरण कीजै।5।
बृिस्पनत भ्यास भये बैरागा, ताुं ते मन राते अनुरागा।6।
शुक्र शाला कमव बताया, जद मन मान सरोवर न्हाया।7।
शननश्चर स्वासा मानिुं समोया,जब िम मकरतार मग जोया।8।
राहु केतु रोकैं निीुं घाटा, सतगुरु खोलें बजर कपाटा।9।
नौ ग्रि नमन करैं ननबाव ना, अनबगत नाम ननरालम्भ जाना।10।
नौ ग्रि नाद समोये नासा, सिुं स कमल दल कीन्हा बासा।11।
नदशासूल दिौुं नदस का खोया, ननरालम्भ ननरभै पद जोया।12।
कनठन नवषम गनत रिन िमारी, कोई न जानत िै नर नारी।13।
चन्द्र समूल नचन्तामनण पाया, गरीबदास पद पदनि समाया।14।
।। अथ सवव लक्षणा ग्रन्न्थ।।
गरीब उत्तम कुल कताव र दे , द्वादस भूषण सुंग।
रूप द्रव्य दे दया कर, ज्ञान भजन सत्सुंग।1।
सील सुंतोष नववेक दे , क्षमा दया इकतार।
भाव भक्ति वैराग दे , नाम ननरालम्भ सार।2।
जोग युक्ति स्वास्थ्य जगदीश दे , सुक्ष्म ध्यान दयाल।
अकल अकीन अजन्म जनत,अठनसक्तद्ध नौनननध ख्याल।3।
स्वगव नरक बाुं चै निीुं, मोक्ष बन्धन सैं दू र।
बडी गरीबी जगत में, सुंत चरण रज धूर।4।
जीवत मुिा सो किो, आशा तृष्णा खण्ड।
मन के जीते जीत िै , क्योुं भरमें ब्रह्मुंड।5।
साला कमव शरीर में, सतगुरु नदया लखाय।
13

गरीबदास गलतान पद, निीुं आवै निीुं जाय।6।


चैरासी की चाल क्या, मो सेती सुन लेि।
चोरी जारी करत िैं , जाकै मुुंिडे खेि।7।
काम क्रोध मद लोभ लट, छु नट रिे नबकराल।
क्रोध कसाई उर बसै , कुशब्द छु रा घर घाल।8।
िषव शोग िै श्वान गनत, सुंशय सपव शरीर।
राग द्वे ष बडे रोग िैं , जम के पडे जुंजीर।9।
आशा तृष्णा नदी में, डूबे तीनोुं लोक।
मनसा माया नबस्तरी, आत्म आत्म दोष।10।
एक शत्रु एक नमत्र िैं , भूल पडीरे प्रान।
जम की नगरी जायेगा, शब्द िमारा मान।11।
ननुंद्या नबुंद्या छोड दे , सुंतन स्ौुं कर प्रीत।
भौसागर नतर जात िै , जीवत मुि अतीत।12।
जे तेरे उपजै निीुं, तो शब्द साखी सुन लेि।
साखी भूत सुंगीत िैं , जासैं लावो नेि।13।
स्वगव सात असमान पर, भटकत िै मन मूढ।
खानलक तो खोया निीुं, इसी मिल में ढूुंढ।14।
कमव भमव भारी लगे, सुंसा सू ल बुंबूल।
डाली पानो डोलते , परसत नािीुं मूल।15।
स्वासा िी में सार पद, पद में स्वासा सार।
दम दे िी का खोज कर, आवागमन ननवार।16।
नबन सतगुरु पावै निीुं खानलक खोज नवचार।
चैरासी जग जात िै , नचन्हत नािीुं सार।17।
मदव गदव में नमल गए, रावण से रणधीर।
कुंस केश चाणूर से, निरनाकुश बलबीर।18।
तेरी क्या बुननयाद िै , जीव जन्म धरलेत।
गरीबदास िरर नाम नबन, खाली परसी खेत।19।
।। अथ ब्रह्र वेदी।।
ज्ञान सागर अनत उजागर, नननववकार ननरुं जनुं।
ब्रह्मज्ञानी मिाध्यानी, सत सुकृत दु ुःख भुंजनुं।1।
मूल चक्र गणे श बासा, रि वणव जिाुं जाननये।
नकनलयुं जाप कुलीन तज सब, शब्द िमारा माननये।2।
स्वाद चक्र ब्रह्मानद बासा, जिाुं सानवत्री ब्रह्मा रिैं ।
ॐ जाप जपुंत िुं सा, ज्ञान जोग सतगुरु किैं ।3।
नानभ कमल में नवष्णु नवशम्भर, जिाुं लक्ष्मी सुंग बास िै ।
िररयुं जाप जपन्त िुं सा, जानत नबरला दास िै ।4।
हृदय कमल मिादे व दे वुं, सती पाववती सुंग िै ।
सोिुं जाप जपुंत िुं सा, ज्ञान जोग भल रुं ग िै ।5।
कुंठ कमल में बसै अनवद्या, ज्ञान ध्यान बुक्तद्ध नासिी।
लील चक्र मध्य काल कमवम्, आवत दम कुुं फाुं सिी।6।
नत्रकुटी कमल परम िुं स पूणव, सतगुरु समरथ आप िै ।
मन पौना सम नसुंध मेलो, सुरनत ननरनत का जाप िै ।7।
सिुं स कमल दल भी आप सानिब, ज्ूुं फूलन मध्य गन्ध िै ।
पूर रह्या जगदीश जोगी, सत् समरथ ननबवन्ध िै ।8।
मीनी खोज िनोज िरदम, उलट पन्थ की बाट िै ।
14

इला नपुंगुला सुषमन खोजो, चल िुं सा औघट घाट िै ।9।


ऐसा जोग नवजोग वरणो, जो शुंकर ने नचत धरया।
कुम्भक रे चक द्वादस पलटे , काल कमव नतस तैं डरया।10।
सुन्न नसुंघासन अमर आसन, अलख पुरुष ननबाव न िै ।
अनत ल्यौलीन बेदीन मानलक, कादर कुुं कुबाव न िै ।11।
िै ननरनसुंघ अबुंध अनबगत, कोनट बैुकण्ठ नखरूप िै ।
अपरुं पार दीदार दशवन, ऐसा अजब अनूप िै ।12।
घुरैं ननसान अखण्ड धुन सुन, सोिुं बेदी गाईये।
बाजैं नाद अगाध अग िै , जिाुं ले मन ठिराइये।13।
सुरनत ननरनत मन पवन पलटे , बुंकनाल सम कीनजए।
सरबै फूल असू ल अक्तस्थर, अमी मिारस पीनजए।14।
सप्त पुरी मेरूदण्ड खोजो, मन मनसा गि राक्तखये।
उडिैं भुंवर आकाश गमनुं , पाुं च पचीसोुं नाक्तखये।15।
गगन मण्डल की सै ल कर ले , बहुरर न ऐसा दाव िै ।
चल िुं सा परलोक पठाऊॅ, भौ सागर निीुं आव िै ।16।
कन्द्रप जीत उदीत जोगी, षट करमी यौि खेल िै ।
अनभै मालनन िार गूदें, सुरनत ननरनत का मेल िै ।17।
सोिुं जाप अजाप थरपो, नत्रकुटी सुंयम धुनन लगै।
मान सरोवर न्हान िुं सा, गुंग् सिुं स मुख नजत बगै।18।
कालइुं द्री कुरबान कादर, अनबगत मूरनत खूब िै ।
छत्र स्वेत नवशाल लोचन, गलताना मिबूब िै ।19।
नदल अन्दर दीदार दशवन, बािर अन्त न जाइये।
काया माया किाुं बपुरी, तन मन शीश चढाइये।20।
अनबगत आनद जुगानद जोगी, सत पुरुष ल्यौलीन िै ।
गगन मुंडल गलतान गैबी, जात अजात बेदीन िै ।21।
सुखसागर रतनागर ननभवय, ननज मुखबानी गाविीुं।
निन आकर अजोख ननमवल, दृनष्ट मुनष्ट निीुं आविीुं।22।
निल नमल नूर जहर जोनत, कोनट पद्म उनजयार िै ।
उल्ट नैन बेसुन् नबस्तर, जिाँ तिाँ दीदार िै ।23।
अष्ट कमल दल सकल रमता, नत्रकुटी कमल मध्य ननरख िीुं।
स्वेत ध्वजा सुन्न गुमट आगै, पचरुं ग िण्डे फरक िीुं।24।
सुन्न मुंडल सतलोक चनलये , नौ दर मुुंद नबसुन्न िै ।
नदव्य नचसम्ोुं एक नबम्ब दे ख्या, ननज श्रवण सुननधुनन िै।25।
चरण कमल में िुं स रिते , बहुरुं गी बररयाम िैं ।
सूक्ष्म मूरनत श्याम सूरनत, अचल अभुंगी राम िैं ।26।
नौ सुर बन्ध ननसुंक खेलो, दसमें दर मुखमूल िै ।
माली न कुप अनूप सजनी, नबन बेली का फूल िै ।27।
स्वाुं स उस्वाुं स पवन कुुं पलटै , नाग फुनी कुुं भूुंच िै ।
सुरनत ननरनत का बाुं ध बेडा, गगन मण्डल कुुं कूुंच िै ।28।
सुन ले जोग नवजोग िुं सा, शब्द मिल कुुं नसद्ध करो।
योि गुरुज्ञान नवज्ञान बानी, जीवत िी जग में मरो।29।
उजल निरम्बर स्वे त भौुंरा, अक्षै वृक्ष सत बाग िै ।
जीतो काल नबसाल सोिुं , तर तीवर बैराग िै ।30।
मनसा नारी कर पननिारी, खाखी मन जिाुं मानलया।
15

कुभुंक काया बाग लगाया, फूले िैं फूल नबसानलया।31।


कच्छ मच्छ कूरम्भ धौलुं, शेष सिुं स फुन गाविीुं।
नारद मुनन से रटैं ननशनदन, ब्रह्मा पार न पाविीुं।32।
शम्भू जोग नबजोग साध्या, अचल अनडग समाध िै ।
अनबगत की गनत नानिुं जानी, लीला अगम अगाध िै ।33।
सनकानदक और नसद्ध चैरासी, ध्यान धरत िैं तास का।
चैबीसौुं अवतार जपत िैं , परम िुं स प्रकास का।34।
सिुं स अठासी और तैतीसोुं, सूरज चन्द नचराग िैं ।
धर अम्बर धरनी धर रटते, अनबगत अचल नबिाग िैं ।35।
सुर नर मुननजन नसद्ध और सानधक, पार ब्रह्म कूुं रटत िैं ।
घर घर मुंगलाचार चैरी, ज्ञान जोग जिाँ बटत िैं ।36।
नचत्र गुप्त धमव राय गावैं, आनद माया ओुंकार िै ।
कोनट सरस्वती लाप करत िैं , ऐसा पारब्रह्म दरबार िै ।37।
कामधेनु कल्पवृक्ष जाकैं, इन्द्र अनन्त सुर भरत िैं ।
पाबवती कर जोर लक्ष्मी, सानवत्री शोभा करत िैं ।38।
गुंधवव ज्ञानी और मुनन ध्यानी, पाुं चोुं तत्व खवास िैं ।
नत्रगुण तीन बहुरुं ग बाजी, कोई जन नबरले दास िैं ।39।
ध्रुव प्रिलाद अगाध अग िै , जनक नबदे िी जोर िै ।
चले नवमान ननदान बीत्या, धमवराज की बन्ध तौर िैं ।40।
गोरख दत्त जुगानद जोगी, नाम जलन्धर लीनजये ।
भरथरी गोपी चन्दा सीिे , ऐसी दीक्षा दीनजए।41।
सुलतानी बाजीद फरीदा, पीपा परचे पाइया।
दे वल फेरया गोप गोसाुं ई, नामा की छान नछवाइया।42।
छान नछवाई गऊ नजवाई, गननका चढी नबमान में।
सदना बकरे कुुं मत मारै , पहुँ चे आन ननदान में।43।
अजामेल से अधम उधारे , पनतत पावन नबरद तास िै ।
केशो आन भया बनजारा, षट दल कीनी िास िै ।44।
धना भि का खेत ननपाया, माधो दई नसकलात िै
पण्डा पाुं व बुिाया सतगुरु, जगन्नाथ की बात िै ।45।
भक्ति िे तु केशो बनजारा, सुंग रै दास कमाल थे।
िे िर िे िर िोती आई, गून छई और पाल थे।46।
गैबी ख्याल नबसाल सतगुरु, अचल नदगम्बर थीर िैं ।
भक्ति िे त आन काया धर आये ,अनबगत सतकबीर िैं ।47।
नानक दादू अगम अगाधू, ते री जिाज खेवट सिी।
सुख सागर के िुं स आये, भक्ति निरम्बर उर धरी।48।
कोनट भानु प्रकाश पूरण, रू ुं म रू
ुं म की लार िै । अचल
अभुंगी िै सतसुंगी, अनबगत का दीदार िै ।49।
धन सतगुरु उपदे श दे वा, चैरासी भ्रम मेटिीुं।
तेज पु´ज आन दे ि धर कर, इस नवनध िम कुुं भेंट िीुं।50।
शब्द ननवास आकाशवाणी, योि सतगुरु का रूप िै ।
चन्द सूरज ना पवन ना पानी, ना जिाुं छाया धूप िै ।51।
रिता रमता, राम सानिब, अवगत अलि अलेख िै ।
भूले पुंथ नबटम्ब वादी, कुल का खानवुंद एक िै ।52।
रूुं म रूुं म में जाप जप ले, अष्ट कमल दल मेल िै ।
16

सुरनत ननरनत कुुं कमल पठवो, जिाुं दीपक नबन तेल िै ।53।
िरदम खोज िनोज िाजर, नत्रवेणी के तीर िैं ।
दास गरीब तबीब सतगुरु, बन्दी छोड कबीर िैं ।54।
_____________________ सत साहेब _______

 प्रपतन: परलोक जाने के मागव में


 पीठ : दु कान

 परलोक बाज़ार : प्रपतन की पीठ पर


 पट्टन घाट : परलोक जाने की घाटी
 लखाइयाँ : नदखाया
 औघट घाट : कठीण घानटयोुं से
 तुरीय : नत्रकुटी
 पूररया : सातलोक का स्थान
 परमेश्वर की गनत : परमेश्वर की लीला/ शक्ति

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