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सुभाष च बोस

भारतीय वतं ता सं ाम के अ णी नेता, आज़ाद हद


फौज के सव च सेनानी....

सुभाष च बोस (बां ला: সুভাষ চ বসু उ चारण:


शुभाष चॉ ो बोशु, ज म: 23 जनवरी 1897, मृ यु: 18
अग त 1945) जो नेता जी के नाम से भी जाने जाते ह,
भारत के वत ता सं ाम के अ णी तथा सबसे बड़े
नेता थे। तीय व यु के दौरान, अं ेज़ के खलाफ
लड़ने के लये, उ ह ने जापान के सहयोग से आज़ाद
ह द फौज का गठन कया था[1]। उनके ारा दया गया
जय ह द का नारा भारत का रा ीय नारा बन गया है।
"तुम मुझे खून दो म तु हे आजाद ं गा" का नारा भी
उनका था जो उस समय अ य धक चलन म आया।[2]
सुभाषच बोस

सुभाषच बोस का च उनके ह ता र स हत

जम 23 जनवरी 1897
कटक, बंगाल ेसीडसी का
ओ ड़सा डवीजन, टश
भारत
रा ीयता भारतीय
श ा बी०ए० (आनस)
श ा  ा त क कलक ा व व ालय
पदवी अ य (भारतीय रा ीय
कां ेस)(1938)
सु ीम कमा डर आज़ाद ह द
फ़ौज
स  कारण भारतीय वत ता सं ाम के
अ णी सेनानी तथा सबसे बड़े
नेता
राजनै तक पाट भारतीय रा ीय कां ेस
1921–1940,
फॉरवड लॉक 1939–
1940
धा मक मा यता ह
जीवनसाथी ए मली शकल
(1937 म ववाह क तु
जनता को 1993 म पता
चला)
ब चे अ नता बोस फाफ
संबंधी शरतच बोस भाई
श शर कुमार बोस भतीजा
ह ता र

कुछ इ तहासकार का मानना है क जब नेता जी ने


जापान और जमनी से मदद लेने क को शश क थी तो
टश सरकार ने अपने गु तचर को 1941 म उ ह
ख़ म करने का आदे श दया था।[3]

नेता जी ने 5 जुलाई 1943 को सगापुर के टाउन हाल


के सामने 'सु ीम कमा डर' के प म सेना को
स बो धत करते ए " द ली चलो!" का नारा दया और
जापानी सेना के साथ मलकर टश व कामनवे थ
सेना से बमा स हत इ फाल और को हमा म एक साथ
जमकर मोचा लया।

21 अ टू बर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद ह द


फौज के सव च सेनाप त क है सयत से वत भारत
क अ थायी सरकार बनायी जसे जमनी, जापान,
फलीप स, को रया, चीन, इटली, मा चुको और
आयरलड ने मा यता द । जापान ने अंडमान व नकोबार
प इस अ थायी सरकार को दे दये। सुभाष उन प
म गये और उनका नया नामकरण कया।

1944 को आजाद ह द फौज ने अं ेज पर दोबारा


आ मण कया और कुछ भारतीय दे श को अं ेज से
मु भी करा लया। को हमा का यु 4 अ ैल 1944
से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर यु था।
इस यु म जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और
यही एक मह वपूण मोड़ स आ।

6 जुलाई 1944 को उ ह ने रंगन


ू रे डयो टे शन से
महा मा गांधी के नाम एक सारण जारी कया जसम
उ ह ने इस नणायक यु म वजय के लये उनका
आशीवाद और शुभकामनाय माँग ।[4]

नेताजी क मृ यु को लेकर आज भी ववाद है।[5] जहाँ


जापान म तवष 18 अग त को उनका शहीद दवस
धूमधाम से मनाया जाता है वह भारत म रहने वाले
उनके प रवार के लोग का आज भी यह मानना है क
सुभाष क मौत 1945 म नह ई। वे उसके बाद सम
नज़रब द थे। य द ऐसा नह है तो भारत सरकार ने
उनक मृ यु से स बं धत द तावेज़ अब तक सावज नक
य नह कये?(यथा सभंव नेता जी क मौत नही ई
थी) [6]

16 जनवरी 2014 (गु वार) को कलक ा हाई कोट ने


नेताजी के लापता होने के रह य से जुड़े खु फया
द तावेज को सावज नक करने क माँग वाली जन हत
या चका पर सुनवाई के लये पेशल बच के गठन का
आदे श दया।[7]

आजाद हद सरकार के 75 साल पूण होने पर इ तहास


मे पहली बार साल 2018 मे नर मोद ने कसी
धानमं ी के प म 15 अग त के अलावा लाल कले
पर तरंगा फहराया। 11 दे शो क सरकार ने इस सरकार
को मा यता द थी।

ज म और कौटु बक जीवन

सुभाष के पता जानक नाथ बोस का सन् 1905 का च


व कमी डया कॉमंस से

नेताजी सुभाषच बोस का ज म 23 जनवरी सन्


1897 को ओ ड़शा के कटक शहर म ह प रवार म
आ था[8]। उनके पता का नाम जानक नाथ बोस और
माँ का नाम भावती था। जानक नाथ बोस कटक शहर
के मश र वक ल थे। पहले वे सरकारी वक ल थे मगर
बाद म उ ह ने नजी ै टस शु कर द थी। उ ह ने
कटक क महापा लका म ल बे समय तक काम कया
था और वे बंगाल वधानसभा के सद य भी रहे थे।
अं ेज़ सरकार ने उ ह रायबहा र का खताब दया था।
भावती दे वी के पता का नाम गंगानारायण द था।
द प रवार को कोलकाता का एक कुलीन प रवार माना
जाता था। भावती और जानक नाथ बोस क कुल
मलाकर 14 स तान थी जसम 6 बे टयाँ और 8 बेटे थे।
सुभाष उनक नौव स तान और पाँचव बेटे थे। अपने
सभी भाइय म से सुभाष को सबसे अ धक लगाव शरद
च से था। शरदबाबू भावती और जानक नाथ के
सरे बेटे थे। सुभाष उ ह मेजदा कहते थे। शरदबाबू क
प नी का नाम वभावती था।
१९०५ का सुभाष च बोस के प रवार का एक च जसम वे सबसे
दाएँ खड़े ह।

श ाद ा से लेकर आईसीएस तक का
सफर
सुभाष का उन दन का च जब वे सन् 1920 म इं लै ड आईसीएस
करने गये ए थे

कटक के ोटे टे ट यूरो पयन कूल से ाइमरी श ा


पूण कर 1909 म उ ह ने रेवेनशा कॉले जयेट कूल म
दा खला लया। कॉलेज के सपल बेनीमाधव दास के
व का सुभाष के मन पर अ छा भाव पड़ा। मा
प ह वष क आयु म सुभाष ने ववेकान द सा ह य का
पूण अ ययन कर लया था। 1915 म उ ह ने
इ टरमी डयेट क परी ा बीमार होने के बावजूद तीय
ेणी म उ ीण क । 1916 म जब वे दशनशा
(ऑनस) म बीए के छा थे कसी बात पर ेसीडसी
कॉलेज के अ यापक और छा के बीच झगड़ा हो गया
सुभाष ने छा का नेतृ व स हाला जसके कारण उ ह
ेसीडसी कॉलेज से एक साल के लये नकाल दया
गया और परी ा दे ने पर तब ध भी लगा दया। 49व
बंगाल रेजीमे ट म भत के लये उ ह ने परी ा द क तु
आँख खराब होने के कारण उ ह सेना के लये अयो य
घो षत कर दया गया। कसी कार कॉ टश चच
कॉलेज म उ ह ने वेश तो ले लया क तु मन सेना म ही
जाने को कह रहा था। खाली समय का उपयोग करने के
लये उ ह ने टे रीटो रयल आम क परी ा द और फोट
व लयम सेनालय म रँग ट के प म वेश पा गये।
फर याल आया क कह इ टरमी डयेट क तरह बीए
म भी कम न बर न आ जाय सुभाष ने खूब मन लगाकर
पढ़ाई क और 1919 म बीए (ऑनस) क परी ा थम
ेणी म उ ीण क । कलक ा व व ालय म उनका
सरा थान था।

पता क इ छा थी क सुभाष आईसीएस बन क तु


उनक आयु को दे खते ए केवल एक ही बार म यह
परी ा पास करनी थी। उ ह ने पता से चौबीस घ टे का
समय यह सोचने के लये माँगा ता क वे परी ा दे ने या न
दे ने पर कोई अ तम नणय ले सक। सारी रात इसी
असमंजस म वह जागते रहे क या कया जाये।
आ खर उ ह ने परी ा दे ने का फैसला कया और 15
सत बर 1919 को इं लै ड चले गये। परी ा क तैयारी
के लये ल दन के कसी कूल म दा खला न मलने पर
सुभाष ने कसी तरह कट् स व लयम हाल म मान सक
एवं नै तक व ान क ाइपास (ऑनस) क परी ा का
अ ययन करने हेतु उ ह वेश मल गया। इससे उनके
रहने व खाने क सम या हल हो गयी। हाल म एडमीशन
लेना तो बहाना था असली मकसद तो आईसीएस म
पास होकर दखाना था। सो उ ह ने 1920 म वरीयता
सूची म चौथा थान ा त करते ए पास कर ली।

इसके बाद सुभाष ने अपने बड़े भाई शरतच बोस को


प [9] लखकर उनक राय जाननी चाही क उनके
दलो- दमाग पर तो वामी ववेकान द और मह ष
अर व द घोष के आदश ने क जा कर र खा है ऐसे म
आईसीएस बनकर वह अं ेज क गुलामी कैसे कर
पायगे? 22 अ ैल 1921 को भारत स चव ई०एस०
मा टे यू को आईसीएस से यागप दे ने का प लखा।
एक प दे शव धु च रंजन दास को लखा। क तु
अपनी माँ भावती का यह प मलते ही क " पता,
प रवार के लोग या अ य कोई कुछ भी कहे उ ह अपने
बेटे के इस फैसले पर गव है।" सुभाष जून 1921 म
मान सक एवं नै तक व ान म ाइपास (ऑनस) क
ड ी के साथ वदे श वापस लौट आये।

वत ता सं ाम म वेश और काय
कोलकाता के वत ता सेनानी दे शबंधु च रंजन दास
के काय से े रत होकर सुभाष दासबाबू के साथ काम
करना चाहते थे। इं लड से उ ह ने दासबाबू को खत
लखकर उनके साथ काम करने क इ छा कट क ।
रव नाथ ठाकुर क सलाह के अनुसार भारत वापस
आने पर वे सव थम मु बई गये और महा मा गांधी से
मले। मु बई म गांधी जी म णभवन म नवास करते थे।
वहाँ 20 जुलाई 1921 को गाँधी जी और सुभाष के बीच
पहली मुलाकात ई। गाँधी जी ने उ ह कोलकाता जाकर
दासबाबू के साथ काम करने क सलाह द । इसके बाद
सुभाष कोलकाता आकर दासबाबू से मले।

उन दन गाँधी जी ने अं ेज़ सरकार के खलाफ


असहयोग आंदोलन चला रखा था। दासबाबू इस
आ दोलन का बंगाल म नेतृ व कर रहे थे। उनके साथ
सुभाष इस आ दोलन म सहभागी हो गये। 1922 म
दासबाबू ने कां ेस के अ तगत वराज पाट क थापना
क । वधानसभा के अ दर से अं ेज़ सरकार का वरोध
करने के लये कोलकाता महापा लका का चुनाव वराज
पाट ने लड़कर जीता और दासबाबू कोलकाता के
महापौर बन गये। उ ह ने सुभाष को महापा लका का
मुख कायकारी अ धकारी बनाया। सुभाष ने अपने
कायकाल म कोलकाता महापा लका का पूरा ढाँचा और
काम करने का तरीका ही बदल डाला। कोलकाता म
सभी रा त के अं ेज़ी नाम बदलकर उ ह भारतीय नाम
दये गये। वत ता सं ाम म ाण यौछावर करने वाल
के प रवारजन को महापा लका म नौकरी मलने लगी।

ब त ज द ही सुभाष दे श के एक मह वपूण युवा नेता


बन गये। जवाहरलाल नेह के साथ सुभाष ने कां ेस के
अ तगत युवक क इ डपे डस लीग शु क । 1927
म जब साइमन कमीशन भारत आया तब कां ेस ने उसे
काले झ डे दखाये। कोलकाता म सुभाष ने इस
आ दोलन का नेतृ व कया। साइमन कमीशन को जवाब
दे ने के लये कां ेस ने भारत का भावी सं वधान बनाने
का काम आठ सद यीय आयोग को स पा। मोतीलाल
नेह इस आयोग के अ य और सुभाष उसके एक
सद य थे। इस आयोग ने नेह रपोट पेश क । 1928
म कां ेस का वा षक अ धवेशन मोतीलाल नेह क
अ य ता म कोलकाता म आ। इस अ धवेशन म
सुभाष ने खाक गणवेश धारण करके मोतीलाल नेह
को सै य तरीके से सलामी द । गाँधी जी उन दन पूण
वरा य क माँग से सहमत नह थे। इस अ धवेशन म
उ ह ने अं ेज़ सरकार से डो म नयन टे टस माँगने क
ठान ली थी। ले कन सुभाषबाबू और जवाहरलाल नेह
को पूण वराज क माँग से पीछे हटना मंजूर नह था।
अ त म यह तय कया गया क अं ेज़ सरकार को
डो म नयन टे टस दे ने के लये एक साल का व दया
जाये। अगर एक साल म अं ेज़ सरकार ने यह माँग पूरी
नह क तो कां ेस पूण वराज क माँग करेगी। पर तु
अं ेज़ सरकार ने यह माँग पूरी नह क । इस लये 1930
म जब कां ेस का वा षक अ धवेशन जवाहरलाल नेह
क अ य ता म लाहौर म आ तब ऐसा तय कया गया
क 26 जनवरी का दन वत ता दवस के पम
मनाया जायेगा।

26 जनवरी 1931 को कोलकाता म रा वज


फहराकर सुभाष एक वशाल मोच का नेतृ व कर रहे थे
तभी पु लस ने उन पर लाठ चलायी और उ ह घायल
कर जेल भेज दया। जब सुभाष जेल म थे तब गाँधी जी
ने अं ेज सरकार से समझौता कया और सब कै दय
को रहा करवा दया। ले कन अं ेज सरकार ने भगत
सह जैसे ा तका रय को रहा करने से साफ इ कार
कर दया। भगत सह क फाँसी माफ कराने के लये
गाँधी जी ने सरकार से बात तो क पर तु नरमी के साथ।
सुभाष चाहते थे क इस वषय पर गाँधीजी अं ेज
सरकार के साथ कया गया समझौता तोड़ द। ले कन
गांधीजी अपनी ओर से दया गया वचन तोड़ने को राजी
नह थे। अं ेज सरकार अपने थान पर अड़ी रही और
भगत सह व उनके सा थय को फाँसी दे द गयी। भगत
सह को न बचा पाने पर सुभाष गाँधी और कां ेस के
त रक से ब त नाराज हो गये।

कारावास

1939 म सुभाषच बोस का अ खल भारतीय कां ेस कमीट क


बैठक म आगमन सौज य: टोनी म
अपने सावज नक जीवन म सुभाष को कुल 11 बार
कारावास आ। सबसे पहले उ ह 16 जुलाई 1921 म
छह महीने का कारावास आ।

1925 म गोपीनाथ साहा नामक एक ा तकारी


कोलकाता के पु लस अधी क चालस टे गाट को मारना
चाहता था। उसने गलती से अन ट डे नामक एक
ापारी को मार डाला। इसके लए उसे फाँसी क सजा
द गयी। गोपीनाथ को फाँसी होने के बाद सुभाष फूट
फूट कर रोये। उ ह ने गोपीनाथ का शव माँगकर उसका
अ तम सं कार कया। इससे अं ेज़ सरकार ने यह
न कष नकाला क सुभाष वल त ा तका रय से न
केवल स ब ध ही रखते ह अ पतु वे उ ह उ े रत भी
करते ह। इसी बहाने अं ेज़ सरकार ने सुभाष को
गर तार कया और बना कोई मुकदमा चलाये उ ह
अ न त काल के लये याँमार के मा डले कारागृह म
ब द बनाकर भेज दया।

5 नव बर 1925 को दे शबंधु च रंजन दास कोलकाता


म चल बसे। सुभाष ने उनक मृ यु क खबर मा डले
कारागृह म रे डयो पर सुनी। मा डले कारागृह म रहते
समय सुभाष क त बयत ब त खराब हो गयी। उ ह
तपे दक हो गया। पर तु अं ेज़ सरकार ने फर भी उ ह
रहा करने से इ कार कर दया। सरकार ने उ ह रहा
करने के लए यह शत रखी क वे इलाज के लये यूरोप
चले जाय। ले कन सरकार ने यह प नह कया क
इलाज के बाद वे भारत कब लौट सकते ह। इस लए
सुभाष ने यह शत वीकार नह क । आ खर म
प र थ त इतनी क ठन हो गयी क जेल अ धका रय
को यह लगने लगा क शायद वे कारावास म ही न मर
जाय। अं ेज़ सरकार यह खतरा भी नह उठाना चाहती
थी क सुभाष क कारागृह म मृ यू हो जाये। इस लये
सरकार ने उ ह रहा कर दया। उसके बाद सुभाष इलाज
के लये डलहौजी चले गये।

1930 म सुभाष कारावास म ही थे क चुनाव म उ ह


कोलकाता का महापौर चुना गया। इस लए सरकार उ ह
रहा करने पर मजबूर हो गयी। 1932 म सुभाष को
फर से कारावास आ। इस बार उ ह अ मोड़ा जेल म
रखा गया। अ मोड़ा जेल म उनक त बयत फर से
खराब हो गयी। च क सक क सलाह पर सुभाष इस
बार इलाज के लये यूरोप जाने को राजी हो गये।

यूरोप वास
१९३३ म श य या के बाद आ या के बादगा तीन म वा य-लाभ
करते ए

सन् 1933 से लेकर 1936 तक सुभाष यूरोप म रहे।


यूरोप म सुभाष ने अपनी सेहत का याल रखते ए
अपना काय बद तूर जारी रखा। वहाँ वे इटली के नेता
मुसो लनी से मले, ज ह ने उ ह भारत के वत ता
सं ाम म सहायता करने का वचन दया। आयरलड के
नेता डी वलेरा सुभाष के अ छे दो त बन गये। जन
दन सुभाष यूरोप म थे उ ह दन जवाहरलाल नेह
क प नी कमला नेह का ऑ या म नधन हो गया।
सुभाष ने वहाँ जाकर जवाहरलाल नेह को सा वना
द।
बाद म सुभाष यूरोप म व ल भाई पटे ल से मले। व ल
भाई पटे ल के साथ सुभाष ने म णा क जसे पटे ल-
बोस व ेषण के नाम से स मली। इस व ेषण
म उन दोन ने गा धी के नेतृ व क जमकर न दा क ।
उसके बाद व ल भाई पटे ल जब बीमार हो गये तो
सुभाष ने उनक ब त सेवा क । मगर व ल भाई पटे ल
नह बचे, उनका नधन हो गया।

व ल भाई पटे ल ने अपनी वसीयत म अपनी सारी


सप सुभाष के नाम कर द । मगर उनके नधन के
प ात् उनके भाई सरदार व लभ भाई पटे ल ने इस
वसीयत को वीकार नह कया। सरदार पटे ल ने इस
वसीयत को लेकर अदालत म मुकदमा चलाया। यह
मुकदमा जीतने पर सरदार व लभ भाई पटे ल ने अपने
भाई क सारी स प गा धी के ह रजन सेवा काय को
भट कर द ।
1934 म सुभाष को उनके पता के मृ युश या पर होने
क खबर मली। खबर सुनते ही वे हवाई जहाज से
कराची होते ए कोलकाता लौटे । य प कराची म ही
उ हे पता चल गया था क उनके पता क मृ यु हो चुक
है फर भी वे कोलकाता गये। कोलकाता प ँचते ही
अं ेज सरकार ने उ ह गर तार कर लया और कई दन
जेल म रखकर वापस यूरोप भेज दया।

ऑ या म ेम ववाह

सुभाष का उनक प नी के साथ लभ च


सन् 1934 म जब सुभाष ऑ या म अपना इलाज
कराने हेतु ठहरे ए थे उस समय उ ह अपनी पु तक
लखने हेतु एक अं ेजी जानने वाले टाइ प ट क
आव यकता ई। उनके एक म ने ए मली शकल (अं:
Emilie Schenkl) नाम क एक ऑ यन म हला से
उनक मुलाकात करा द । ए मली के पता एक स
पशु च क सक थे। सुभाष ए मली[10] क ओर
आक षत ए और उन दोन म वाभा वक ेम हो गया।
नाजी जमनी के स त कानून को दे खते ए उन दोन ने
सन् 1942 म बाड गा टन नामक थान पर ह
प त से ववाह रचा लया। वयेना म ए मली ने एक
पु ी को ज म दया। सुभाष ने उसे पहली बार तब दे खा
जब वह मु कल से चार स ताह क थी। उ ह ने उसका
नाम अ नता बोस रखा था। अग त 1945 म ताइवान म
ई तथाक थत वमान घटना म जब सुभाष क मौत
ई, अ नता पौने तीन साल क थी।[11][12] अ नता अभी
जी वत है। उसका नाम अ नता बोस फाफ (अं: Anita
Bose Pfaff) है। अपने पता के प रवार जन से
मलने अ नता फाफ कभी-कभी भारत भी आती है।

हरीपुरा कां ेस का अ य पद

नेताजी सुभाष च बोस, महा मा गा धी के साथ ह रपुरा कां ेस


अ धवेशन म (सन् 1938) उन दोन के बीच राजे साद और
नेताजी के वाय सरदार ब लभ भाई पटे ल भी दख रहे ह।

1938 म कां ेस का वा षक अ धवेशन ह रपुरा म होना


तय आ। इस अ धवेशन से पहले गा धी जी ने कां ेस
अ य पद के लए सुभाष को चुना। यह कां ेस का 51
वाँ अ धवेशन था। इस लए कां ेस अ य सुभाष च
बोस का वागत 51 बैल ारा ख चे ए रथ म कया
गया।

इस अ धवेशन म सुभाष का अ य ीय भाषण ब त ही


भावी आ। कसी भी भारतीय राजनी तक ने
शायद ही इतना भावी भाषण कभी दया हो। अपने
अ य ीय कायकाल म सुभाष ने योजना आयोग क
थापना क । जवाहरलाल नेह इसके पहले अ य
बनाये गये। सुभाष ने बंगलौर म मश र वै ा नक सर
व े र या क अ य ता म एक व ान प रषद क
थापना भी क ।

1937 म जापान ने चीन पर आ मण कर दया। सुभाष


क अ य ता म कां ेस ने चीनी जनता क सहायता के
लये डॉ॰ ारकानाथ कोट नस के नेतृ व म
च क सक य दल भेजने का नणय लया। आगे चलकर
जब सुभाष ने भारत के वत ता सं ाम म जापान से
सहयोग कया तब कई लोग उ हे जापान क कठपुतली
और फा स ट कहने लगे। मगर इस घटना से यह स
होता ह क सुभाष न तो जापान क कठपुतली थे और न
ही वे फा स ट वचारधारा से सहमत थे।

कां ेस के अ य पद से इ तीफा
1938 म गा धीजी ने कां ेस अ य पद के लए सुभाष
को चुना तो था मगर उ ह सुभाष क कायप त पस द
नह आयी। इसी दौरान यूरोप म तीय व यु के
बादल छा गए थे। सुभाष चाहते थे क इं लड क इस
क ठनाई का लाभ उठाकर भारत का वत ता सं ाम
अ धक ती कया जाये। उ ह ने अपने अ य ीय
कायकाल म इस ओर कदम उठाना भी शु कर दया
था पर तु गा धीजी इससे सहमत नह थे।

1939 म जब नया कां ेस अ य चुनने का समय आया


तब सुभाष चाहते थे क कोई ऐसा अ य बनाया
जाये जो इस मामले म कसी दबाव के आगे ब कुल न
झुके। ऐसा कसी सरे के सामने न आने पर
सुभाष ने वयं कां ेस अ य बने रहना चाहा। ले कन
गा धी उ ह अ य पद से हटाना चाहते थे। गा धी ने
अ य पद के लये प ा भ सीतारमैया को चुना।
क ववर रवी नाथ ठाकुर ने गा धी को प लखकर
सुभाष को ही अ य बनाने का नवेदन कया।
फु लच राय और मेघनाद साहा जैसे वै ा नक भी
सुभाष को ही फर से अ य के प म दे खना चाहते
थे। ले कन गा धीजी ने इस मामले म कसी क बात नह
मानी। कोई समझौता न हो पाने पर ब त बरस बाद
कां ेस पाट म अ य पद के लये चुनाव आ।

सब समझते थे क जब महा मा गा धी ने प ा भ
सीतारमै या का साथ दया है तब वे चुनाव आसानी से
जीत जायगे। ले कन वा तव म सुभाष को चुनाव म
1580 मत और सीतारमै या को 1377 मत मले।
गा धीजी के वरोध के बावजूद सुभाषबाबू 203 मत से
चुनाव जीत गये। मगर चुनाव के नतीजे के साथ बात
ख म नह ई। गा धीजी ने प ा भ सीतारमै या क हार
को अपनी हार बताकर अपने सा थय से कह दया क
अगर व सुभाष के तरीक से सहमत नह ह तो व कां ेस
से हट सकत ह। इसके बाद कां ेस कायका रणी के 14
म से 12 सद य ने इ तीफा दे दया। जवाहरलाल नेह
तट थ बने रहे और अकेले शरदबाबू सुभाष के साथ रहे।
1939 का वा षक कां ेस अ धवेशन पुरी म आ।
इस अ धवेशन के समय सुभाषबाबू तेज बुखार से इतने
बीमार हो गये थे क उ ह े चर पर लटाकर अ धवेशन
म लाना पड़ा। गा धीजी वयं भी इस अ धवेशन म
उप थत नह रहे और उनके सा थय ने भी सुभाष को
कोई सहयोग नह दया। अ धवेशन के बाद सुभाष ने
समझौते के लए ब त को शश क ले कन गा धीजी
और उनके सा थय ने उनक एक न मानी। प र थ त
ऐसी बन गयी क सुभाष कुछ काम ही न कर पाये।
आ खर म तंग आकर 29 अ ैल 1939 को सुभाष ने
कां ेस अ य पद से इ तीफा दे दया।

फॉरवड लॉक क थापना


3 मई 1939 को सुभाष ने कां ेस के अ दर ही फॉरवड
लॉक के नाम से अपनी पाट क थापना क । कुछ दन
बाद सुभाष को कां ेस से ही नकाल दया गया। बाद म
फॉरवड लॉक अपने आप एक वत पाट बन गयी।
तीय व यु शु होने से पहले से ही फॉरवड लॉक
ने वत ता सं ाम को और अ धक ती करने के लये
जन जागृ त शु क।

3 सत बर 1939 को म ास म सुभाष को टे न और
जमनी म यु छड़ने क सूचना मली। उ ह ने घोषणा
क क अब भारत के पास सुनहरा मौका है उसे अपनी
मु के लये अ भयान तेज कर दे ना च हये। 8 सत बर
1939 को यु के त पाट का ख तय करने के लये
सुभाष को वशेष आम त के प म काँ ेस काय
स म त म बुलाया गया। उ ह ने अपनी राय के साथ यह
संक प भी दोहराया क अगर काँ ेस यह काम नह कर
सकती है तो फॉरवड लॉक अपने दम पर टश राज
के खलाफ़ यु शु कर दे गा।
अगले ही वष जुलाई म कलक ा थत हालवेट
त भ[13] जो भारत क गुलामी का तीक था सुभाष
क यूथ गेड ने रात रात वह त भ म म मला
दया। सुभाष के वयंसेवक उसक न व क एक-एक ट
उखाड़ ले गये। यह एक तीका मक शु आत थी।
इसके मा यम से सुभाष ने यह स दे श दया था क जैसे
उ ह ने यह त भ धूल म मला दया है उसी तरह वे
टश सा ा य क भी ट से ट बजा दगे।

इसके प रणाम व प अं ेज सरकार ने सुभाष स हत


फॉरवड लॉक के सभी मु य नेता को कैद कर
लया। तीय व यु के दौरान सुभाष जेल म
न य रहना नह चाहते थे। सरकार को उ ह रहा
करने पर मजबूर करने के लये सुभाष ने जेल म
आमरण अनशन शु कर दया। हालत खराब होते ही
सरकार ने उ ह रहा कर दया। मगर अं ेज सरकार यह
भी नह चाहती थी क सुभाष यु के दौरान मु रह।
इस लये सरकार ने उ ह उनके ही घर पर नजरब द
करके बाहर पु लस का कड़ा पहरा बठा दया।[14]

नजरब द से पलायन

कलक ा (वतमान कोलकाता) थत नेताजी भवन जहाँ से सुभाष


च बोस वेश बदल कर फरार ए थे। इस घर म अब नेताजी रसच
यूरो था पत कर दया गया है। भवन के बाहर लगे हो डग पर सै नक
कमा डर वेष म नेताजी का च साफ दख रहा है।
नजरब द से नकलने के लये सुभाष ने एक योजना
बनायी। 16 जनवरी 1941 को वे पु लस को चकमा दे ते
ए एक पठान मोह मद ज़याउ न के वेश म अपने घर
से नकले। शरदबाबू के बड़े बेटे श शर ने उ हे अपनी
गाड़ी से कोलकाता से र गोमोह तक प ँचाया। गोमोह
रेलवे टे शन से टयर मेल पकड़कर वे पेशावर प ँचे।
पेशावर म उ ह फॉरवड लॉक के एक सहकारी, मयाँ
अकबर शाह मले। मयाँ अकबर शाह ने उनक
मुलाकात, कत कसान पाट के भगतराम तलवार से
करा द । भगतराम तलवार के साथ सुभाष पेशावर से
अफगा न तान क राजधानी काबुल क ओर नकल
पड़े। इस सफर म भगतराम तलवार रहमत खान नाम के
पठान और सुभाष उनके गूँगे-बहरे चाचा बने थे।
पहा ड़य म पैदल चलते ए उ ह ने यह सफर पूरा
कया।
काबुल म सुभाष दो महीन तक उ मच द म हो ा
नामक एक भारतीय ापारी के घर म रहे। वहाँ उ होने
पहले सी तावास म वेश पाना चाहा। इसम
नाकामयाब रहने पर उ होने जमन और इटा लयन
तावास म वेश पाने क को शश क । इटा लयन
तावास म उनक को शश सफल रही। जमन और
इटा लयन तावास ने उनक सहायता क । आ खर म
आरलै डो मैजो टा नामक इटा लयन बनकर
सुभाष काबुल से नकलकर स क राजधानी मा को
होते ए जमनी क राजधानी ब लन प ँचे।

कोलकाता थत नेताजी भवन म रखी कार जसम बैठकर सुभाष


च बोस घर से फरार ए
जमनी म वास एवं हटलर से मुलाकात
ब लन म सुभाष सव थम रबेन ोप जैसे जमनी के
अ य नेता से मले। उ ह ने जमनी म भारतीय
वत ता संगठन और आज़ाद ह द रे डयो क थापना
क । इसी दौरान सुभाष नेताजी के नाम से जाने जाने
लगे। जमन सरकार के एक म ी एडॅम फॉन ॉट सुभाष
के अ छे दो त बन गये।

आ खर 29 मई 1942 के दन, सुभाष जमनी के


सव च नेता एडॉ फ हटलर से मले। ले कन हटलर
को भारत के वषय म वशेष च नह थी। उ होने
सुभाष को सहायता का कोई प वचन नह दया।
जमनी के हेन रक हमलर से चचारत सुभाष च बोस (१९४२)

कई साल पहले हटलर ने माईन का फ नामक


आ मच र लखा था। इस कताब म उ होने भारत और
भारतीय लोग क बुराई क थी। इस वषय पर सुभाषने
हटलर से अपनी नाराजगी क । हटलर ने अपने
कये पर माफ माँगी और माईन का फ के अगले
सं करण म वह प र छे द नकालने का वचन दया।

अ त म सुभाष को पता लगा क हटलर और जमनी से


उ ह कुछ और नह मलने वाला है। इस लये 8 माच
1943 को जमनी के क ल ब दरगाह म वे अपने साथी
आ बद हसन सफरानी के साथ एक जमन पनडु बी म
बैठकर पूव ए शया क ओर नकल गये। वह जमन
पनडु बी उ ह ह द महासागर म मैडागा कर के कनारे
तक लेकर गयी। वहाँ वे दोन समु म तैरकर जापानी
पनडु बी तक प ँचे। तीय व यु के समय क ह
भी दो दे श क नौसेना क पनडु बय के ारा
नाग रक क यह एकमा अदला-बदली ई थी। यह
जापानी पनडु बी उ ह इंडोने शया के पादांग ब दरगाह
तक प ँचाकर आयी।

पूव ए शया म अ भयान


आज़ाद ह द फौज़ के सव च सेनाप त सुभाष च बोस अपने पूण
सै नक वेश म (इस च के नमाता ह, ी दे वा द य चटज )

पूव ए शया प ँचकर सुभाष ने सव थम वयोवृ


ा तकारी रास बहारी बोस से भारतीय वत ता
प रषद का नेतृ व सँभाला। सगापुर के एडवड पाक म
रास बहारी ने वे छा से वत ता प रषद का नेतृ व
सुभाष को स पा था।

जापान के धानम ी जनरल हदे क तोजो ने नेताजी


के व से भा वत होकर उ ह सहयोग करने का
आ ासन दया। कई दन प ात् नेताजी ने जापान क
संसद (डायट) के सामने भाषण दया।

टो यो म सुभाष चं बोस, 1943

21 अ टू बर 1943 के दन नेताजी ने सगापुर म


आज - कूमते-आज़ाद- ह द ( वाधीन भारत क
अ त रम सरकार) क थापना क । वे खुद इस सरकार
के रा प त, धानम ी और यु म ी बने। इस सरकार
को कुल नौ दे श ने मा यता द । नेताजी आज़ाद ह द
फौज के धान सेनाप त भी बन गये।
आज़ाद ह द फौज म जापानी सेना ने अं ेज क फौज
से पकड़े ए भारतीय यु ब दय को भत कया था।
आज़ाद ह द फ़ौज म औरत के लये झाँसी क रानी
रे जमट भी बनायी गयी।

पूव ए शया म नेताजी ने अनेक भाषण दे कर वहाँ के


थायी भारतीय लोग से आज़ाद ह द फौज म भत होने
और उसे आ थक मदद दे ने का आवाहन कया। उ ह ने
अपने आवाहन म यह स दे श भी दया - "तुम मुझे खून
दो, म तु ह आज़ाद ँ गा।"

तीय व यु के दौरान आज़ाद ह द फौज ने


जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आ मण कया।
अपनी फौज को े रत करने के लये नेताजी ने " द ली
चलो" का नारा दया। दोन फौज ने अं ेज से अंदमान
और नकोबार प जीत लये। यह प आज - कूमते-
आज़ाद- ह द के अनुशासन म रहे। नेताजी ने इन प
को "शहीद प" और " वराज प" का नया नाम
दया। दोन फौज ने मलकर इंफाल और को हमा पर
आ मण कया। ले कन बाद म अं ेज का पलड़ा भारी
पड़ा और दोन फौज को पीछे हटना पड़ा।

जब आज़ाद ह द फौज पीछे हट रही थी तब जापानी


सेना ने नेताजी के भाग जाने क व था क । पर तु
नेताजी ने झाँसी क रानी रे जमट क लड़ कय के साथ
सैकड़ मील चलते रहना पस द कया। इस कार
नेताजी ने स चे नेतृ व का एक आदश तुत कया।

6 जुलाई 1944 को आज़ाद ह द रे डयो पर अपने


भाषण के मा यम से गा धीजी को स बो धत करते ए
नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपना कारण
और आज - कूमते-आज़ाद- ह द तथा आज़ाद ह द
फौज क थापना के उ े य के बारे म बताया। इस
भाषण के दौरान नेताजी ने गा धीजी को रा पता कहा
तभी गांधीजी ने भी उ हे नेताजी कहा।

घटना और मृ यु क खबर

जापान के टो कयो शहर म रकोजी म दर के बाहर लगी नेताजी


सुभाष च बोस क तमा

तीय व यु म जापान क हार के बाद, नेताजी को


नया रा ता ढूँ ढना ज री था। उ होने स से सहायता
माँगने का न य कया था। 18 अग त 1945 को
नेताजी हवाई जहाज से मंचू रया क तरफ जा रहे थे।
इस सफर के दौरान वे लापता हो गये। इस दन के बाद
वे कभी कसी को दखायी नह दये।

23 अग त 1945 को टो कयो रे डयो ने बताया क


सैगोन म नेताजी एक बड़े बमवषक वमान से आ रहे थे
क 18 अग त को ताइहोकू (जापानी भाषा: 臺北帝
國大學, Taihoku Teikoku Daigaku) हवाई अ े
के पास उनका वमान घटना त हो गया। वमान म
उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदे ई, पाइलेट तथा
कुछ अ य लोग मारे गये। नेताजी ग भीर प से जल
गये थे। उ ह ताइहोकू सै नक अ पताल ले जाया गया
जहाँ उ ह ने दम तोड़ दया। कनल हबीबुरहमान के
अनुसार उनका अ तम सं कार ताइहोकू म ही कर दया
गया। सत बर के म य म उनक अ थयाँ सं चत करके
जापान क राजधानी टो कयो के रकोजी म दर म रख
द गय ।[15] भारतीय रा ीय अ भलेखागार से ा त
द तावेज़ के अनुसार नेताजी क मृ यु 18 अग त 1945
को ताइहोकू के सै नक अ पताल म रा 21.00 बजे
ई थी।[16]

वत ता के प ात् भारत सरकार ने इस घटना क


जाँच करने के लये 1956 और 1977 म दो बार
आयोग नयु कया। दोन बार यह नतीजा नकला क
नेताजी उस वमान घटना म ही मारे गये।

1999 म मनोज कुमार मुखज के नेतृ व म तीसरा


आयोग बनाया गया। 2005 म ताइवान सरकार ने
मुखज आयोग को बता दया क 1945 म ताइवान क
भू म पर कोई हवाई जहाज घटना त आ ही नह
था। 2005 म मुखज आयोग ने भारत सरकार को
अपनी रपोट पेश क जसम उ ह ने कहा क नेताजी
क मृ यु उस वमान घटना म होने का कोई सबूत नह
ह। ले कन भारत सरकार ने मुखज आयोग क रपोट
को अ वीकार कर दया।

18 अग त 1945 के दन नेताजी कहाँ लापता हो गये


और उनका आगे या आ यह भारतीय इ तहास का
सबसे बड़ा अनु रत रह य बन गया ह।

दे श के अलग-अलग ह स म आज भी नेताजी को
दे खने और मलने का दावा करने वाले लोग क कमी
नह है। फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर छ ीसगढ़
रा य म जला रायगढ़ तक म नेताजी के होने को लेकर
कई दावे पेश कये गये ले कन इन सभी क ामा णकता
सं द ध है। छ ीसगढ़ म तो सुभाष च बोस के होने का
मामला रा य सरकार तक गया। पर तु रा य सरकार ने
इसे ह त ेप के यो य न मानते ए मामले क फाइल ही
ब द कर द ।

सुनवाई के लये वशेष पीठ का गठन


कलक ा हाई कोट ने नेताजी के लापता होने के रह य
से जुड़े खु फया द तावेज को सावज नक करने क माँग
पर सुनवाई के लये पेशल बच के गठन का आदे श दे
दया है। यह या चका सरकारी संगठन इं डयाज माइल
ारा दायर क गयी है। इस या चका म भारत संघ,
रा ीय सलाहकार प रषद, रॉ, खु फया वभाग,
धानमं ी के नजी स चव, र ा स चव, गृह वभाग और
प म बंगाल सरकार स हत कई अ य लोग को
तवाद बनाया गया है।[7]

भारत क वत ता पर नेताजी का भाव


कटक म सुभाष च बोस का ज म थान अब सं हालय म प रव तत
कर दया गया है।

हरो शमा और नागासाक के व वंस के बाद सारे संदभ


ही बदल गये। आ मसमपण के उपरा त जापान चार-
पाँच वष तक अमे रका के पाँव तले कराहता रहा। यही
कारण था क नेताजी और आजाद ह द सेना का
रोमहषक इ तहास टो कयो के अ भलेखागार म वष
तक पड़ा धूल खाता रहा।

नव बर 1945 म द ली के लाल कले म आजाद ह द


फौज पर चलाये गये मुकदमे ने नेताजी के यश म
वणनातीत वृ क और वे लोक यता के शखर पर
जा प ँचे। अं ेज के ारा कए गये व धवत चार
तथा त कालीन मुख राजनी तक दल ारा सुभाष के
वरोध के बावजूद सारे दे श को झकझोर दे नेवाले उस
मुकदमे के बाद माताएँ अपने बेट को ‘सुभाष’ का नाम
दे ने म गव का अनुभव करने लग । घर–घर म राणा
ताप और छ प त शवाजी महाराज के जोड़ पर
नेताजी का च भी दखाई दे ने लगा।

आजाद ह द फौज के मा यम से भारत को अं ेज के


चंगल
ु से आजाद करने का नेताजी का यास य
प म सफल नह हो सका क तु उसका रगामी
प रणाम आ। सन् १९४६ के नौसेना व ोह इसका
उदाहरण है। नौसेना व ोह के बाद ही टे न को व ास
हो गया क अब भारतीय सेना के बल पर भारत म
शासन नह कया जा सकता और भारत को वत
करने के अलावा उनके पास कोई सरा वक प नह
बचा।

आजाद ह द फौज को छोड़कर व -इ तहास म ऐसा


कोई भी ांत नह मलता जहाँ तीस-पतीस हजार
यु ब दय ने संग ठत होकर अपने दे श क आजाद के
लए ऐसा बल संघष छे ड़ा हो।

जहाँ वत ता से पूव वदे शी शासक नेताजी क


साम य से घबराते रहे, तो वत ता के उपरा त दे शी
स ाधीश जनमानस पर उनके व और कतृ व के
अ मट भाव से घबराते रहे। वात यवीर सावरकर ने
वत ता के उपरा त दे श के ां तका रय के एक
स मेलन का आयोजन कया था और उसम अ य के
आसन पर नेताजी के तैल च को आसीन कया था।
यह एक ा तवीर ारा सरे ा त वीर को द गयी
अभूतपूव सलामी थी।

लेखन (एवं वा चक) काय तथा काशन


अपने संघषपूण एवं अ य धक त जीवन के बावजूद
नेताजी सुभाष च बोस वाभा वक प से लेखन के
त भी उ सुक रहे ह। अपनी अपूण आ मकथा एक
भारतीय या ी (ऐन इं डयन पल म) के अ त र
उ ह ने दो खंड म एक पूरी पु तक भी लखी भारत का
संघष (द इं डयन गल), जसका लंदन से ही थम
काशन आ था।[17] यह पु तक काफ स ई थी।
उनक आ मकथा य प अपूण ही रही, ले कन उसे पूण
करने क उनक अ भलाषा रही थी, जसका पता मूल
पांडु ल प के थम पृ पर बनायी गयी योजना से प
पेण चलता है।[18]
इसके अ त र नेताजी ने अपने ब आयामी वतं ता
संघष के संदभ म अग णत प लखे, भाषण दये एवं
रे डयो के मा यम से भी उनके ा यान सा रत ए।
प क एक बड़ी मा ा उनके नजी जीवन से भी
सब है।

नेताजी संपूण वा य

नेताजी संपूण वा य

दसंबर 1940 से नेताजी के अं तम समय तक उनके


पूण व ासपा तथा नकट सहयोगी रहे डॉ० श शर
कुमार बोस ने नेताजी रसच यूरो क थापना कर
नेताजी के 'सम सा ह य' के काशन का वशाल काय
मु यतः वनोद सी० चौधरी के साथ मलकर 1961
ई वी म आरंभ कया था[19] और 1980 म 12 खंड म
संक लत रचना के काशन का काम शु आ।
आरं भक योजना 10 खंड म 'सम सा ह य' के
काशन क थी, परंतु बाद म यह योजना 12 खंड क
हो गयी। अ ैल 1980 म सव थम बां ला म इसके
थम खंड का काशन आ था और नवंबर 1980 म
अं ेजी म। हद म इसका थम खंड 1982 म
का शत आ और फर इन तीन भाषा म सम
सा ह य का काशन होते रहा। इसका अं तम (12वाँ)
खंड 2011 ई० म छप कर आ पाया; हालां क इसक
साम ी पहले से ही तैयार थी। इस 'सम वा य' के
संकलन एवं काशन काय से आरंभ से ही सुगत बोस
भी जुड़े ए थे और अं तम दो खंड का काशन डॉ०
श शर कुमार बोस के ःखद नधन के कारण मु यतः
सुगत बोस के ही संपादन म आ।

इस 'सम वा य' के थम खंड म उनक 'आ मकथा'


के साथ कुछ प का काशन आ है और तीय खंड
म उनक सु स पु तक 'भारत का संघष' (द इं डयन
गल) का काशन आ है। फर अ य खंड म उनके
ारा ल खत प , ट प णय एवं भाषण आ द सम
उपल ध सा ह य का मब काशन आ है। इस
कार यथासंभव उपल ध नेताजी का ल खत एवं
वा चक 'सम वा य' अ ययन हेतु सुलभ हो गया है
और यह युगीन आव यकता भी है क महा मा गांधी क
तरह नेताजी के स दभ म भी अनेकानेक संदभ-र हत
कथन एवं अपूण जानका रय के आधार पर राय कायम
करने क बजाय उपयु मु े को उसके उपयु एवं
स यक् संदभ म दे खते ए सट क एवं ामा णक राय
कायम क जाय।

स दभ
1. An Introduction to Military Science .
पृ॰ ४. अ भगमन त थ २३ जनवरी २०१८.
2. : सुभास च बोस नबंध
3. " 'नेताजी क ह या का आदे श दया था' " .
बीबीसी ह द . 15 अग त 2005. अ भगमन
त थ 22 अ टू बर 2013. "एक आय रश
इ तहासकार यूनन ओ है पन का कहना है क
जब नेताजी ने जापान और जमनी से मदद लेने
क को शश क थी तो तानी सरकार ने उ ह
ख म करने का आदे श दया था।"
4. ा त, मदनलाल वमा (2006). वाधीनता सं ाम
के ा तकारी सा ह य का इ तहास . 2 (1
सं करण). नई द ली: वीण काशन. पृ॰ 512.
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7783-120-8. "म
जानता ँ क टश सरकार भारत क
वाधीनता क माँग कभी वीकार नह करेगी। म
इस बात का कायल हो चुका ँ क य द हम
आज़ाद चा हये तो हम खून के द रया से गुजरने
को तैयार रहना चा हये। अगर मुझे उ मीद होती
क आज़ाद पाने का एक और सुनहरा मौका
अपनी ज दगी म हम मलेगा तो म शायद घर
छोड़ता ही नह । मने जो कुछ कया है अपने दे श
के लये कया है। व म भारत क त ा बढ़ाने
और भारत क वाधीनता के ल य के नकट
प ँचने के लये कया है। भारत क वाधीनता क
आ खरी लड़ाई शु हो चुक है। आज़ाद ह द
फौज़ के सै नक भारत क भू म पर
सफलतापूवक लड़ रहे ह। हे रा पता! भारत क
वाधीनता के इस पावन यु म हम आपका
आशीवाद और शुभ कामनाय चाहते ह।"
5. https://hindi.theindianwire.com/नेताजी-
सुभाष-चं -बोस-मौत-18073/ दा इं डयन वायर
6. "Netaji Subhas Chandra Bose's family
observes 'Declassification Day' " . The
Economics Times. 18 अग त 2003.
अ भगमन त थ 18 अग त 2013. "So far, we
have never observed the day as we
don't believe that he died on August
18. There is circumstantial evidence to
prove that he was in Russia after that
date in 1945. But now we have started
observing this day as declassification
day to put pressure on the government
to make public the hidden files on his
life, the family spokesperson Chandra
Kumar Bose told PTI."
7. "नेताजी सुभाष : हाई कोट क पेशल बच करेगी
सुनवाई" . नवभारत टाइ स. 17 जनवरी 2014.
अ भगमन त थ 18 जनवरी 2014. "या चका म
नेताजी से जुड़े सभी द तावेज को सावज नक
करने क मांग क गई है, ता क उनके लापता होने
को लेकर पैदा रह य से पदा उठ सके। पीएम
ऑ फस ने इससे पहले नेताजी के लापता होने से
जुड़े द तावेज और रकॉड सावज नक करने से
इनकार कया था और कहा था क ऐसा करने से
भारत के अ य दे श के साथ संबंध भा वत
ह गे।"
8. "Subhas Chandra Bose - Biography &
Facts" . Encyclopedia Britannica
(अं ेज़ी म). २ नव बर २०१७. अ भगमन त थ
२३ जनवरी २०१८.
9. ा त, मदनलाल वमा (2006). वाधीनता सं ाम
के ा तकारी सा ह य का इ तहास . 2 (1
सं करण). नई द ली: वीण काशन. पृ॰ 501
से 503 तक. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7783-
120-8. "भइया! हम लोग, जो एक ओर वामी
ववेकान द और सरी ओर अर व द घोष के
भाव-छ म बड़े ए ह; भा य या भा य से ऐसी
मान सकताबना चुके ह क ुव जैसे भ
कोण पर लदा कोई समझौता हम वीकार
नह है। उ ह ने इस बात के लये खेद भी कट
कया क उनके और मा उनके कारण भरे पूरे
समं जत प रवार म मतभेद पैदा हो चुके ह।
इसका कारण उ ह ने यह बताया क बचपन से ही
कुछ ऐसे आदश उनके दलो- दमाग पर हावी हो
चुके ह जो प रवार के कसी सरे को मंजूर
नह ह।"
10. ा त, मदनलाल वमा (2006). वाधीनता सं ाम
के ा तकारी सा ह य का इ तहास . 3 (1
सं करण). नई द ली: वीण काशन. पृ॰ 862.
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7783-121-6.
अ भगमन त थ 23 नव बर 2013. "नेताजी का
ए मली के साथ सन् 1936 का एक और लभ
च जसम नेताजी टोपी लगाये ए ह"
11. "Netaji's ashes should be immersed in
River Ganges, wishes daughter"
[नेताजी क अ थयाँ गंगा नद म वस जत क
जायँ - पु ी क इ छा] (अं ेज़ी म). जी यूज़
इ डया डॉट कॉम. 03 फ़रवरी 2013.
अ भगमन त थ 17 अ टू बर 2013. |date=
म त थ ाचल का मान जाँच (मदद)
12. http://www.rediff.co.in/news/2005/ma
y/11inter1.htm . अ भगमन त थ 15
अ टू बर 2013. गायब अथवा खाली
|title= (मदद)
13. नेताजी ( च मय जीवनी), श शर कुमार बोस,
नेताजी रसच यूरो, कोलकाता
14. ा त, मदनलाल वमा (2006). वाधीनता सं ाम
के ा तकारी सा ह य का इ तहास . 2 (1
सं करण). नई द ली: वीण काशन. पृ॰ 510
से 511 तक. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7783-
120-8. अ भगमन त थ 23 नव बर 2013.
"उ ह ने घोषणा क क अब भारत के पास
सुनहरा मौका है उसे अपनी मु के लये
अ भयान तेज कर दे ना च हये। ८ सत बर १९३९
को यु के त पाट का ख तय करने के लये
सुभाष को वशेष आम त के प म काँ ेस
काय स म त म बुलाया गया। उ ह ने अपनी राय
के साथ यह संक प भी दोहराया क अगर काँ ेस
यह काम नह कर सकती है तो फॉरवड लॉक
अपने दम पर टश राज के खलाफ़ यु शु
कर दे गा। जुलाई १९४० मे 'हालवेट त भ' जो
भारत क गुलामी का तीक था, के इद- गद
सुभाष क यूथ गेड के वयंसेवक भारी मा ा म
एक ए और दे खते-दे खते वह त भ म म
मला दया। वयंसेवक उसक न व तक क एक-
एक ट तक उखाड़ ले गये। यह तो एक
तीका मक शु आत थी। इसके मा यम से
सुभाष ने यह स दे श दया क जैसे उ ह ने यह
त भ धूल म मला दया है उसी तरह वे टश
सा ा य क भी ट-से- ट बजा दगे।"
15. ा त, मदनलाल वमा (2006). वाधीनता सं ाम
के ा तकारी सा ह य का इ तहास . 2 (1
सं करण). नई द ली: वीण काशन. पृ॰ 513.
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7783-120-8.
अ भगमन त थ 23 नव बर 2013. "23 अग त
1945 को टो कयो रे डयो ने बताया क सैगोन म
नेताजी एक बड़े बमवषक वमान से आ रहे थे क
18 अग त को ताइहोकू हवाई अ े के पास
उनका वमान घटना त हो गया। वमान म
उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदे ई, पाइलेट
तथा कुछ अ य लोग मारे गये। नेताजी ग भीर
प से जल गये थे। उ ह ताइहोकू सै नक
अ पताल ले जाया गया जहाँ उ ह ने दम तोड़
दया। कनल हबीबुरहमान के अनुसार उनका
अ तम सं कार ताइहोकू म ही कर दया गया।
सत बर के म य म उनक अ थयाँ सं चत करके
टो कयो के रकोजी म दर म रख द गय ।"
16. ा त, मदनलाल वमा (2006). वाधीनता सं ाम
के ा तकारी सा ह य का इ तहास . 3 (1
सं करण). नई द ली: वीण काशन. पृ॰ 846.
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7783-121-6.
अ भगमन त थ 23 नव बर 2013. "Ten
minutes after the accident he was
taken to the Army Hosptal in Taihoku
and received treatment at 15.00. His
death came at 21.00. His aide H.R.
was also burned on neck, right cheak,
both arms and right leg. Lt. Gen.
SHIDEI met an instantaneous death
inside the plane (two others died
likewise)."
17. नेताजी संपूण वा य, खंड-2, काशन वभाग,
भारत सरकार, नयी द ली, तीय
सं करण-1997, पृ -i एवं iv.
18. नेताजी संपूण वा य, खंड-1, काशन वभाग,
भारत सरकार, नयी द ली, तीय
सं करण-2009, पृ -viii.
19. नेताजी संपूण वा य, खंड-12, काशन वभाग,
भारत सरकार, नयी द ली, सं करण-2011, पृ -
i एवं vii.
आज़ाद भारत म आज़ाद हद
'नेताजी क ह या का आदे श दया था'

इ ह भी दे ख
आजाद ह द फौज
को हमा का यु
नौसेना व ोह
रकोजी म दर (जापान)
अ नता बोस फाफ
ए मली शकल
सुभाष च बोस क मृ यु
सुभाष च बोस के राजनै तक वचार
भारतीय वतं ता का ां तकारी आ दोलन

बाहरी क ड़याँ
व कसू पर सुभाषच बोस से स ब धत उ रण
ह।
सुभाषच बोस से संबं धत मी डया व कमी डया
कॉमंस पर उपल ध है।

भारत सरकार ारा वमु कये गये नेताजी से


स ब धत कागज (रा ीय अ भलेखागार)
सुभाष च बोस : प रचय (वेब नया)
नारायणमू त ने क नेह क न दा, कहा- नेताजी
होते तो चीन से नपट लेते
Netaji Bose and the Indian National
Army: Freedom Movement in East Asia
(द ह )
नेताजी को जानने-समझने के लए इ तहास क
म संतुलन आव यक (२३ जनवरी २०१९)
"https://hi.wikipedia.org/w/index.php?
title=सुभाष_च _बोस&oldid=4311689" से लया गया

अं तम बार 13 सतंबर 2019 को 05:44 बजे संपा दत कया गया

साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख


ना कया गया हो।

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