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4/21/2018 उषा िकरण खान :: :: :: अरे , यायावर रहे गा याद : अनुभव से अनुभूित तक की या ा :: आलोचना

मुखपृ उप यास कहानी किवता ंय नाटक िनबंध आलोचना िवमश


बाल सािह य सं मरण या ा वृ ांत िसनेमा िविवध कोश सम -संचयन आिडयो/वीिडयो अनुवाद
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आलोचना
उप ास
अगन- हडोला
अरे , यायावर रहे गा याद : अनुभव से अनुभूित तक की या ा कहािनयाँ
उषा िकरण खान अड़ ल क वापसी
लेखक को जािनए आलोचना
अरे, यायावर रहेगा याद :
हमारा दल बाि म क नगर के ऐन जंगल म ठहरा था िजसके मुिखया और नायक थे अ ेय जी। एक गाड़ी म पीछे से म और कानन
अनुभव से अनुभूित तक
बाला सह (शंकरदयाल जी क धमप ी) जा रह थे। आधी रात को गाड़ी का डीजल कसी गाँव के िनकट ख म हो गया। गाड़ी बैठ
क या ा
गई। गाँव से कै से डीजल ा आ कै से हम प च ँ े यह रोचक सं मरण कभी और सुनाने बैठँू गी यहाँ कहना यह है क लगभग 3:30
बजे भोर म जब हम प च ँ े तो अ ेय ही हाथ मलते लंबे-लंबे डग भरते डॉरमे ी के अहाते म टहलते बेचैन नजर आए। हम देखते ही
ि थर खड़े हो गए, मु कु राते रह। उनक वह आ तकारक मु कान हमारी थकान को दूर ले गया। सुबह चाय के बाद अ ेय जी
िसफ हम देखकर मु कु राते रह अ य लोग उनक बेचैनी का वणन करते रह।

मुझे मालूम है उस िचर यायावर के िलए यह सोचना क ठन नह था क िबहार का वह काल-खंड दो मिहला क राि -
या ा के िलए असुरि त था तथािप हमारे साहसी चेहर को देख वे स थे। यह जानक जीवन या ा का वणन है। जब म कू ल म
पढ़ती रही होउं गी जब 'अरे यायावर रहेगा याद' पु तक आई थी। अ ेय क कहािनय तथा उप यास से अिधक रोचक तथा
बोधग य थी वह पुि तका। अ ेय जी का घुम ड़ी से ज म का नाता था। उनका ज म ही कु शी नगर के तंबू म आ था। िपता
कु शीनगर के उ खनन म लगे थे। माता ने तंबू म बालक सि दानंद को ज म दया। कु छ दन बाद जब उ खनन का काय संप आ
तब तंबू उखड़ गए। पंिडत हीरानंद वा यायन नालंदा उ खनन से जुड़ गए। अ ेय जी ने नालंदा स यता क परते अपनी बाल-बुि
से देख - पहचानी। स दय पुरानी गिलयार म थानीय जन के ब के साथ डेगा-पानी खेला। कोहनी पर चोटे खा । अपने
रोिमल हाथ क कोहनी हम दखाकर कहा यह िनशान बाक है। अ ेय के िव तृत आयाम लेखन के मेरी समझ से यूँ ही नह िमल।
यायावरी के जीवनानुभव उनके वृ ांत को िचरं तन बना गए।

या ा िववरण के अित र उनक किवताएँ जो या ा के रस से िनःसृत ई म साथ लेकर चलती ।ँ कु शीनगर और


नालंदा, बोधगया, राजगीर इ या द बारं बार लौटते रहे ह। उनक किवता सा ा ी का 'नैवे दान' के पीछे यह सब साफ दीखता है।
जापान जाना या फू जी-गु जी से िमलना यूँ ही नह होता। कृ ित और वन-उपवन के रािनया अ ेय जी क महारानी अ ेय ही ह।
या ा ने उ ह दुखद घाव दए। उनके साँप जो भारत - िवभाजन क ासद या ा से सुगबुगाते ए फन फाड़कर दंश देते ह वे
कसी सं मरण या पु तक म नह किवता म ह।

अ ेय क ारं िभक कहािनयाँ यु से संबंिधत ह या या ाएँ उ ह हदी का अनुभूत वण लेखक बना ग । आजादी का जजबा
जो भारतीय जनमानस म था िजसे वे नह कर पाते थे सब कथा प म कया। कहािनय से बात नह बनी, किवताएँ
संतु न कर पा तो सीधे यायावरी का वृ ांत िलखा। उ ह ने मा े फल नह लाँघा बि क अपने खोजी वभाव, भाव- वण
मन और सं कृ ितचेता ि व होने के नाते भूगोल, इितहास, सं कृ ित क झलक दी। अ ेय मा िववरण नह देते। 'अरे यायावर
रहेगा याद' के एक अंश क झलक यूँ है। एक ि ने उनसे कहा -

'म तो देखने और सीखने आया ।ँ य भी म जहाँ जाता ँ वहाँ के जीवन और सािह य को समझने का य करता ।ँ और उसे
समझने के िलए लेखक को कभी-कभी क पना से भी काम करना पड़ता है। वह के वल यथा-त य िच ण करके ही संतोष नह कर
लेता वरन इितहास और अनुमान के आधार पर भी साम ी संकलन करता आ चलता है। वा तव म वे िजतनी या ाएँ थूल पैर
से करते ए चलते ह उससे यादा क पना के चरण से करते ह। और सदा 'चरै वेित' के िस ांत को अपनी जीवन या ा का मूल मं
मानकर चलते रहते ह। उ ह ने अपने पैर तले घास नह जमने दी है। उनक दृि म एक जगह बैठकर तप या करते-करते अपने
शरीर पर 'ब मीक उगाकर' मुि पाने से कह अ छा है गितमान रहना।

यायावर समझा है क देवता भी जहाँ मं दर म के क िशला हो गए और ाण संचार के िलए पहली शत है गित, गित,
गित।

भाव-भाषा, शैली के नवो मेष के उ ायक अ ेय जी ने 'अरे यायावर रहेगा याद ' को िववरणा मक शैली म िलखा है। इस
शैली क मुख िवशेषता है ाकृ ितक दृ य , पवत माला इ या द का िवशद वणन। लेखक इस म अपनी देखी ई व तु और दृ य
क िवशेषता का वणन कए जाता ह। अ ेय ने या ा संबंधी िनबंध म ऐसी ही शैली का योग कया है। लेखक क इस पु तक म
या ा तथा सं मरण का पँचमेल है। इस म अनजाने ि य , थल और दृ य के भावभीने सं मरण और िववरण बड़े मनोहारी
बन पड़े ह। इससे एक ओर नए वातावरण का वणन है तो दूसरी ओर ाचीन इितहास का उदघाटन कया गया है। 'अरे यायावर
रहेगा याद' म कही दशन कह इितहास, कह सं कृ ित का िववरण है। अ ेय ने मानव जीवन तथा थावर-जंगम क संपूणता को
पाियत कया है। अ ेय िजस आधुिनक थान पर जाते ह उसका ाचीन त सम श द खोज िनकालते ह। नाम उस थान का य ,
शीष पर
कब और कै से पड़ा, कब-कब और य प रवतन आ यह भी बताते ह। अ ेय का या ा िववरण सािह य-सं कृ ित, जीवन-शैली,
जाएँ
ि
http://www.hindisamay.com/content/6336/1/%E0%A4%89%E0%A4%B7%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%A3-%E0%A4%96%E0%
4/21/2018 उषा िकरण खान :: :: :: अरे , यायावर रहे गा याद : अनुभव से अनुभूित तक की या ा :: आलोचना
िवचार इ या द भावबोध का एक पूरा पैकेज है।

भारत के िविवध पी मौसम - िव ान क समझ अ ेय को अपनी िव ान क पु तको से नह वरन या ा के अनुभव से


िमली है। एक सं मरण म अ ेय असम के जंगली इलाके म मण पर िनकले थे। अ ेय जीप पर थे। असम का मौसम! अचानक
बादल उमड़ने-घुमड़ने लगते ह। इतनी भीषण वषा होती ह क चारो ओर पानी ही पानी भर जाता है। जीप सड़क कनारे क है।
लेखक अपनी अंतः ेरणा से जीप टाट करता है तभी एक अजीब दृ य दखाई पड़ता है। सामने से एक बैल-गाड़ी आती दीखती है
अनुमान के सहारे पानी के भीतर अनदेखे ख म बैलगाड़ी िगरकर डू ब गई। अ ेय ने जीप रोक दी। कई घंटे बाद जल िनकल गया,
सड़क लगी दीखने तो वे अपने डाक बंगले पर वापस आए। मृ यु का सीधा सा कार लेखक को एक दृि देता है। ऐसे अनुभव अ ेय
को कई बार ए ह। इसी म से उ ह जीवन के नए अथ िमले ह।

दूसरी बार बा मी कनगर के सात दवसीय िशिवर म अ ेय सुबह होने के पहले जंगल क ओर िनकल जाते कै मरा टाँग कर
नारायणी नदी के तट पर िजधर शािल ामनुमा तर खंड का अंबार लगा होता। नारायणी का ाचीन नाम शािल ामी भी है
और चलताऊ नाम गंडक। अ ेय जी ग े कनारे सूय दय क ती ा म बैठे होते। तर खंड पर सूय दय के अनेक िच ख चे। वे
सारे िच संकिलत ह। अ ेय क चेतना कृ ित क िवराट संचेतना के सा ा कार से इस कदर जुड़ी थी क वे पाँच त व से सतत
साि य क कामना करते रहते।

भारत-यूरोप-अमरीका के बड़े-बड़े जंगल म घूमे फरे अ ेय। बमा के मोच पर हिथयार सँभाले अ ेय जब िबहार के चंपारण
या हजारीबाग के जंगल म जाते उसक ह रयाली को ाण देती पथरीली उ छल न दय को देखते तो उनम नवो मेष जाग जाता।
ऐसे समय म ही वे बाल-सुलभ िज ासा और िखलंदड़ेपन के आवेश म आकर किवता पाठ करने लगते। वे सारी ि थितयाँ उन
ि थितय क मृित हम आज भी रोमांिचत करती ह।

अपने आिखरी िशिवर म नए-पुराने लेखक-किव- चतक सािथय को लेकर चलते ए उनसे मुखर तथा मौन संवाद करते ए
अ ेय ने अपने अ ितम भारतीय सं कृ ित के मूत प का द दशन कराया। नारदेवी के मं दर के बाहर खड़े अ ेय घंट घटावेप
जंगल को िनहारते रहते। मेरे अपनी इितहास हिजर करती है उनक आँख म ऋिष बाि म क के आ म का दृ य लहरा रहा होगा,
एक अपहरण द यु से बि म क बन जाने का दृ य उभरता होगा और पुनज म सा पाकर का मू त जनकनं दनी क सा ात ेरणा
से आ द महाका रचने का सा ात कारण दीख रहा होगा। भ , आतंकारी डरावने घने वन, मनोहारी वनवासी, पशु-प ी, क ट-
सरीसृप, उनके बीच िनवास करते मानव सभी अपने-अपने थान पर फर बैठे दीख रहे ह गे। मुझे मान होता किव क आँख म
पूरा का पूरा िवराट कालखंड अपनी आकृ ित सिहत अतर आया है। ऐसा यायावर िजतना कु छ अनुभूितय म सहेज सका उतना
िलखने के िलए एकािधक ज म और लेना होगा।

कृ ित अपने थान पर जैसी है जो भी है सुंदर है भ है यह जाना उस यायावर ने। उसक गित को ीण करना उनुिचत है।
कामना है क वह अपने आपको पूरी वरा से िवकिसत करे िवराट क ओर बढ़े। सा ा ी कहती है महाबु से क म कृ ित के सारे
फू ल जहाँ ह जैसे है तु ह सम पत करती ।ँ वे िखनने, झड़जाने और बीज हवा के साथ दग- दगंत तक फै ला देने के बाद भी
महाबु को सम पत ह। कृ ित क िनखरता म िखलने वाले वे सारे फू ल बीज हर बीज सम पत ह। सा ा ी यहाँ पर शा त भाव
िलए खड़ी है महामाया के प म। आकार लेती है जगदंबा के प म। यहाँ अ ेय का भारतीय मनीषी बन जाने वाला मन यायावरी
का एक और पाता सा दीखता है।

म यह कह डालने का लोभ संवरण नह कर पाती क अ ेय आधुिनक ऋिष थे िजसने अपनी या ा से कृ ित का बीज मं


पाया। यह सब कु छ तो अपने अनुभव को समृ करते हदी के संसार को भाव-भाषा सािह य, ान तथा जीवन जीने क कला
िसखाने आए थे अ ेय। उनका काम पूरा नह आ सो फर आयगे अपनी यायावरी के नाते; धुन के प े जो ह।

नोट : - अब मुझे मान होता है क 'जानक जीवन या ा' के साथ चलने क ेरणा देने वाले नागाजुन ने मुझसे य कहा था -
'उस यायावर क कृ ितयाँ तुमने पढ़ है अब कु छ समय साथ रहकर चलकर अनुभव करो।'

मा साथ चलने, रहने और अनुभूितय के फु लग से अपने आपको समृ करने का लाभ अि तीय है। जो या ी नागाजुन
और यायावर अ ेय को मरण करती ही लेखनी उठाती ।ँ उठ जाती है क मृित क धते ही लेखनी बसबस।

     

मुखपृ उप यास कहानी किवता ंय नाटक िनबंध आलोचना िवमश


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संपक िव िव ालय

शीष पर
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