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2/28/2016 सा ह य­दे

वता / माखनलाल चतव
ुद  ­ Gadya Kosh ­  ह द  कहा नयाँ ख , लघक
, ले ुथाएँ
,  नब ध, नाटक, कहानी, ग뼀य, आलोचना, उप यास, बाल कथाएँ
,  े
र क कथाएँ
, ग뼀…

सा ह य­दे
वता / माखनलाल चतव
ुद
Gadya Kosh से
मख
ुप ृ
ठ»रचनाकार  क  सच
ूी»माखनलाल चतव
ुद »

म तुहार  एक तसवीर खीं
चना चाहता हू

त ु
“परं भल
ू मत जाना  क मे
र  तसवीर खीं
चते
­खीं
चते
 तुहार  भी एक तसवीर ミखं
चती चल  आ रह  है
।”

अरे, म तो  वयं
 ह  अपने  भावी जीवन क  एक त वीर अपने  अटेचीकेस म रखे हु
ए हू
। तुहार  त वीर बना चक
ँ ुने  के
बाद म उसे   दश䃿
नी म रखने  वाला हूँ ं
।  कत,ु रे
 मे मा टर, म यह पहले दे
ख लेना चाहता हू
  क मे
ँ रे
 भावी­जीवन को  कस
तरह  च だत कर तमु ने
  अपनी जे ब  म रख छोड़ा है।

“ दश䃿
नी म रखो तम ई, और म अपनी बनाई हु
ु अपनी बनाई हु ई रख दँ के
,ू वल तुहार  त वीर।”

ना से
नानी, म  कसी भी आईने पर  बकने
 नह ं
 आया। म कै
सा हू
, यह प तत होते
ँ  समय खब ख ले
ू दे ता हू
। चढ़ते
ँ  समय
तो तुह ं
, के
वल तुह ं,द ख पड़ते
 हो।

खना है
“या दे ?”

तुह; और तम
ु कै
से
 हो यह कलम के  के
 घाट उतराने  समय, यह हर गज नह ं
 भल   क तम
ू जाना है ु  कसके
 हो।

“आज  चだ खीं
चने
 क  बे
चन
ैी य  ह?”

कल तक म तुहारा मोल­तोल कू
ता करता था। आज अपनी इस वे
दना को ��लखने
 के द का भार मझ
 आनं ुसे
 नह ं
सँ
भलता।

“सचमच
ु प थर क  क मत बहु
त थोड़ी होती है
; वह बोझीला ह  अ धक होता है
।”

त ु
“परं या?”

मे
रे 翿` यमत, तम
ु वह मूय नह ं
 हो िजसक , अभागे
 गाहक क  अड़चन  को दे
खकर, अ धक से
 अ धक माँ
ग क  जाती
है

हाँ
, तो तुहारा  चだ खीं
चना चाहता हू। मे
ँ र  क पना क  जीभ को ��लखने  दो; कलम को जीभ को बोल ले दो।  कं
ने त,ु
दय और म��सपाだ दोन  तो काले  ह। तब मेरा  य न, चातय
ु 䃿
का अथ䃿­翿`वराम, अ हड़ता का अ��भराम के
वल धवलता
का गव䃿   गराने
 वाला 䃿याम माだ होगा। परं
त ुयह काल  बँ

ू अमतृ­ बं
दओु ं से भी अ धक मीठ , अ धक आकष䃿 क और
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का गव䃿   गराने
 वाला 䃿याम माだ होगा। परं
2/28/2016 सा ह य­दे
वता / माखनलाल चतव त ु
यह काल  बँ

ू अमत ृ­ बं
दओ
ु ंसे भी अ धक मीठ , अ धक आकष䃿
ुद  ­ Gadya Kosh ­  ह द  कहा नयाँ ख , लघक
, ले ुथाएँ क और
,  नब ध, नाटक, कहानी, ग뼀य, आलोचना, उप यास, बाल कथाएँ
,  े
र क कथाएँ
, ग뼀…

मे
रे ��लए अ धक मूयवान ह। म उनसे
्  अपने
 आरा य का  चだ जो बना रहा हू

* *

कौन­सा आकार दँ  मानव­ दय के


?ू  मुध संकार जो हो!  चだ खींचने क  सध
ु कहाँ  से  लाऊँ? तम
ु अनंत जा त
आ माओं  के
 ऊँ
चे
 और गहरे  ­ पर  व न जो हो! मे
र  काल  कलम का बल समे टे नह ं ��समटता। तम ु पनाओं
 क  के
मंदर म  बजल  क  ကयापक चकाच ध जो हो! मानव­सख ु के फूल  और लड़ाके  ��सपाह  के  रत  बं
दओु ंके
 संह,
तुहार  त वीर खीं
चँ
 ूम? तम
ु तो वाणी के सरोवर म अंतरा मा के  नवासी क  जगमगाहट हो। लहर  से  परे
, पर लहर
म खेलते हु
ए रजत के बोझ और तपन से  खाल , पर पँछय , व ृ­रािजय  और लताओं  तक को  पहले पन म नहलाए
हु
ए।

वे
दनाओं  के  翿`वकास के  संहालय, तुह  कस नाम से  पक
ुा ँ ? मानव जीवन क  अब तक पनपी हु ई मह ता के  मं दर,
व न क  सी ढ़य  से  उतरता हुआ  ये य का माखन­चोर या तुहार  ह  गोद के  कोने  म 'राधे' कहकर नह ं  दौड़ा आ रहा
है
? अहा? तब तो तम ु जमीन को आसमान से  ��मलाने वाले जीने हो; गोपाल के चरण­ च न  को साध­साधकर चढ़ने  के
साधन!  व न क  सी ढ़याँ  िजस  ण लचक रह  ह  और क पना क  सक ुोमल रे शम­डोर िजस समय गो翿`वं द के
पदार翿`वं
द के  पास पहु च कर झू
ँ लने क  मनह ुार कर रह  हो, उस समय य द वह झू ल पड़ता हो? ­ आह, तम ु  कतने  महान
हो? इसी��लए लाँ गफे लो बे
चारा, तुहारे चरण­ च न  के  माग䃿 क  कंुजी, तुहारे ह  뼀वार पर लटका गया है , मेरे मा टर।
च ड़य  क  चहक का सं गीत, म और मे र  अमत ृ­ न यं दनी गाय  ज­लता, दोन  स न
ु ते
 ह। “सミख चलो सजन क े स,
 दे
जोगन बन के  धन
ूी डालगे” म और मे रा घोड़ा दोन  जहाँ थे वह ं भ'ू
 'शं  जी ने अपनी यह तान छे ड़ी थी। परं
त ुवह तो तुह ं
थे, िजसने  뼀翿`वपद और चतु पद का 翿`व䃿व को  नगू ढ़ त व ��सखाया। अरे , पर म तो भल ू ह  गया, म तो तुहार  त वीर
खीं चने
 वाला था न?

* *

हाँ
; तो अब म तुहार  तसवीर खीं चना चाहता हू । पशओ
ँ ु  ं
को क चा खानेवाल  जबान और ल鼐जा ढकने  के ��लए लपे ट
जाने वाल  व ृ क  छाल, वे  इ तहास से  भी परे  खड़े  हु
ए ह; और यह दे
खो  े
णी­ब  अनाज के  अंकु
र और शाहजादे
कपास के  व ृ बाकायदा अपने  ऐ䃿वय䃿 को म तक पर रखकर भ­ू पाल बनने के के
 ��लए वाय ु  साथ होड़ बद रहे  ह। इन
दोन  जमान  के  बीच क  जंजीर तुह ं  तो हो! 翿`वचार  के उ थान और पतन तथा सीधे  और टेढ़ेपन को माग䃿 ­दश䃿 क बना
तुह ं  न कपास के तओ
 तंु  ं
से झीने तार खींचकर 翿`वचार ह  क  तरह आचार के  जगत म क याणी पां चाल ­वाणी क
लाज बचा रहे  हो?

कतने  दःुशासन आए और चले  गए। तुहार  बीन से  रात को तड़पा देने


 वाल  सोरठ गाई थी और सबे रे
 翿`व䃿व­सं हारक
से जझ
ू ने
  जाते
  समय उसी बीन से   य ु के
 नकारे  पर डंके
 क  चोट लगाई थी। नगा धराज  के
 म तक पर से   उतरने
वाल   न नगाओं  क  म ती भर  दौड़ पर और उनसे   नकलने  वाल  लहर  क  कुरबानी से
 ह रयाल  होने  वाल  भ��ूम पर,
लजील  प ृवी से  ��लपटे तरल नीलां बर महासागर  पर और उनक  लहर  को चीर कर गर ब  के  रत से क चड़ सान,
सा0ा鼐य  का  नमा䃿 ण करने के
 ��लए दौड़ने  वाले
 जहाज  के ड  पर, तुह ं
 झं  ­ के
वल तुह ं ��लखे  द खते
 हो।

इं लड का  धानमंだी, इटल  का  डटे


टर, अफगा न तान का पद यत ु, चीन का ऊँघ कर जागता हुआ और  स का
��सं
हासन उलटने और  ां त से शांत का पुया वान करने वाला गर ब ­ यह तो तुह ं
 हो। य द तम
ु  वग䃿
 न उतारते
 तो
मं दर  म  कसक  आरती उतरती? वहाँ  चमगादड़ टँगे
 रहते; उलक
ू बोलते ।

मि त क के
 मंदर जहाँ
 भी तम
ुसे
 खाल  ह, यह  तो हो रहा है
। कु
तब
ुमीनार  और 翿`परा��मड  के
 गं

ुज, तुहारे
 ह  आदे

से
 आसमान से बात कर रहे
 ह।

आँ
ख  क  पत
ु��लय  म य द तम च दे
ु कोई तसवीर न खीं त े
तो वे
  बना दाँ
त  के थ डालतीं
 ह  चीं ;  बना जीभ के
 ह  रत
चस तीं
ू ले ।

वै
뼀य कहते
 ह धम नय  के
 रत क  दौड़ का आधार  दय है
 ­ या  दय तुहारे
 ��सवा  कसी और का नाम है
 ?

ကयास का कृण और वा मी क का राम िजसके ख  पर चढ़कर हजार  वष䃿 क  छाती छे


 पं दते
 हु
ए आज भी लोग  के
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2/28/2016 सा ह य­दे
वता / माखनलाल चतव
ुद  ­ Gadya Kosh ­  ह द  कहा नयाँ ख , लघक
, ले ुथाएँ
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र क कथाएँ
, ग뼀…

ကयास का कृण और वा मी क का राम िजसके  पंख  पर चढ़कर हजार  वष䃿 क  छाती छे दते हु


ए आज भी लोग  के
दय  म 翿`वराज रहे
 ह? वे
 चाहे
 कागज के  ह , चाहे
 बने  भोज­पだ  के  पं
, वे ख तो तुहारे
 ह  थे

ठ  नह ं
,  याह  के
  ं

ृार, मे
र  इस  म ृ
त पर तो प थर ह  पड़ गए  क ­ म तुहारा  चだ खीं
च रहा था।

* *

परं
त ु
तम
ु सीधे कहाँ
 बै
ठते
 हो? तुहारा  चだ? बड़ी टे
ढ़  खीर है
! ��सपहसालार तम व व को मानव व क  चन
ु दे ुौती हो।
दय से छन कर, धम नय  म दौड़ने वाले रत क  दौड़ हो और हो उ माद के  अ तरे
क के ण भी।
 रततप䃿

आह, कौन नह ं
 जानता  क तम
ु  कतन  ह  क  वंशी क  धन
ु हो; धन ल से
ु वह, जो गोकु  उठकर 翿`व䃿व पर अपनी मो हनी
का से
त ु
बनाए हु
ए है
। काल क  पीठ पर बना हु
आ वह पलु ��मटाए ��मटता नह ं
, भल
ुाए भलूता नह ं

ऋ翿`षय  का राग, पै गंबर  का पैगाम, अवतार  क  आन यग ु को चीरती  कस लालटे


न के  हमारे
 सहारे  पास तक आ
पहु
ँची? वह तो तम ु हो और आज भी कहाँ  ठहर रहे
 हो? सरू
ज और चाँद को अपने रथ के प हए बना, सझू के घोड़  पर
बै
ठे  ह  तो चले
, बढ़े  जा रहे
 हो  यारे
! उस समय हमारे  संपण
ू 䃿
यग
ु का मूय तो मेल­ ेन म पड़ने  वाले
 छोटे­से
  टे
शन
का­सा भी नह ं  होता।

पर इस समय तो तम रे
ु मे पास बै
ठे
 हो।

तुहार  एक म�ुी म भत ूकाल का दे


व व छटपटा रहा है  सम त समथ䃿
 ­ अपने क  समे
त; दस
ूर  म�
ुी म 翿`व䃿व का
翿`वक��सत पुषाथ䃿 翿`वराजमान है

धल
ू के दन म प रव त䃿
 नं त  व प कं ुज翿`वहार , आज तो क पना क  फु
लवा रयाँ
 भी 翿`व䃿व क   म ृ
तय  म तुहार
तज䃿नी के
 इशार  पर लहलहा रह  ह।

तम
ु नाथ नह ं  हो, इसी��लए  क म अनाथ नह ं  हू।  कं
ँ त ुहे
 अनंतपुष, य द तमु 翿`व䃿व क  का��लमा का बोझ सँभालते मे
रे
घर न आते  तो ऊपर आकाश भी होता और नीचे  जमीन भी; न दयाँ  भी बहतीं
 और सरोवर भी लहरते त ु
; परं म और
च ड़याँ, दोन  और छोटे ­मोटे
 जीव­जं त ुवाभा翿`वक लता­पだ  और अ नकण  से  अपना पेट भरते होते। म भर वै
शाख
म भी व ृ पर शाखा­मग ृ बना होता। चीते
­सा ग र
ु ा䃿
त ा, मोर­सा ककता और कोयल­सा गा भी दे
ू ता।

परं
त ु
मे रा और 翿`व䃿व के ह रयालेपन का उतना ह  सं
बं
ध होता िजतना नम䃿
दा के गार क  व ृ­रािज म लगे
 तट पर हर��सं
हु
ए टे
��ल ाफ के भे
 खं  का नम䃿दा से
 कोई सं
बं
ध हो।

उस  दन भगवान 'समय' न जाने
  कसका, न जाने
 कब, कान उमे
ठकर चलते बनते? मझु े
कौन जानता? 翿`व य क
जामनु और अरावल  क  ミखर नय  के
 उ थान और पतन का इ तहास  कसके ! इसी��लए तो म तम
 पास ��लखा है ुसे
कहता हू

 ­

 ह  बै
“ऐसे ठे  ह  मस
 रहो, ऐसे ुकाहु
।”

य  ?

इस��लए  क अं
तरतर क  तरल­त��ू
लकाएँ
 समे
ट कर, अराजक! म तुहारा  चだ खीं
चना चाहता हू

!

* *

या तमु अराजक नह ं हो?  कतनी ग याँ


 तमुने चकनाचरू  नह ं
 क ं
?  कतने
 ��सं
हासन तम
ुने
 नह ं
 तोड़ डाले
?  कतने
मक
ुुट  को गला कर घोड़  क  सन
ुहाल  खोगीर नह ं
 बना द  ग꿿?

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2/28/2016 सा ह य­दे
वता / माखनलाल चतव
ुद  ­ Gadya Kosh ­  ह द  कहा नयाँ ख , लघक
, ले ुथाएँ
,  नब ध, नाटक, कहानी, ग뼀य, आलोचना, उप यास, बाल कथाएँ
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र क कथाएँ
, ग뼀…

सोते हु
ए अखं ड नरमं

ु के
 जागरण, नाड़ी रोगी के  म चक
 鼐वर क  माप बताने ू सकती है ,  कं
त ु
तमु मुध होकर भी
जमाने  को गミणत के क  जै
 अं सा नाप­तल
ुा और द पक जै सा  प ट  नमा䃿
ण करते  चले
 आ रहे हो। आह, रा鼐य पर होने
वाले
 आ मण को बरदा䃿त  कया जा सकता है ,  कंत ु
मनोरा鼐य क  लट
ू तो दरू, उस पर पड़ने­वाल  ठोकर  कतने   लय
नह ं
 कर डालती।

सोने
 के हासन  पर 翿`वराजमान  क  ह याओं
 ��सं  से
 जमाने
 के मनि वय  के
 हाथ लाल ह और नशे  पर  दए जाने
 वाले
रं
ग क  तरह उस शित क  सीमा  नि䃿चत है । परं
त ु
मनोरा鼐य क  मग
ृछाला पर बै
ठे ए  बना श だ और  बना से
 हु ना के
बह
ृ प त के  अ धकार को चन ुौती कौन दे
 सके ?

मनोरा鼐य पर छूटने
 वाला तीर  लय क   थम चे तावनी ले
कर लौटता है
। मनोरा鼐य के म तक पर फहराता हु आ
翿`वजय­ वज िजस  दन ध��ूल­धसू रत होने  लगे  उस  दन मनुय व दरूबीन से
 भी ढूढ़े
ँ कहाँ
 ��मले
गा? उस  दन,
鼐वालामख
ु ी फट पड़ा होगा। व  टट पड़ा होगा।

यारे
, शूय के अंक, ग त के संकेत और 翿`व䃿व के  पतन­पथ क  तथा 翿`व म ृत क  ग त क  लाल­झं डी तुह ं तो हो।
तुहारा रं
ग उतरने  पर आ मतप䃿 ण ह  है
 जो  फर तम ु पर ला��लमा बरसा सके। िजस मं दर का झ डा ��लपट जाए, वह
डाँ
वाडोल हो उठे
, उसम नर­नारायण नह ं  रहते। उस देश को पराये  चरण अभी धोने  ह, अपने माँ
स से
 पराये चूहे अभी
सौभा यशील बनाए रखने  ह; पराई उतरन अभी पहननी है । म, 翿` यतम, तुहार  ­

ई तसवीर नह ं
“उतरन पहनी हु  खीं
चँ

ूा!”

* *

उतरन ­ बरु तरह  मरण हो आया। बरु

 समय, बरु

  दन। अपना कु
छ न रखने
 वाला ह  उतरन पहने

जो  तज के  अपनी  अग


 परे ँु
ल  पहु
चा पावे
ँ , जो  य  के ई व त ु
 उस ओर रखी हु को छू
 सके
, वह उतरन य  पहने
?

च और जम䃿
नी जै
सी भाषाओं
 का आपस का ले
न­दे
न उतरन नह ं  क  भट है
, वह तो भाई­चारे ।

एक ��भखा रन माँ
 मे
र  भी है
। उसने
 भी र न  सव  कए ह। प थर  से
 बोझीले
, कं
कड़  से
  गनती म अ धक; खाल
अं
तःकरण म मद ृंग से
  अ धक आवाज करने   वाले

मात­ृ
मंदर म उतरन पर एक दस
ूरे
 से
 होड़ ले
 रहा है
। उतरन­संह क  बहादरु का इ तहास उसक  पीठ पर लदा हु
आ है

गत वष䃿 होने
 वाले
 翿`व䃿व­प रवत䃿
न  के , परु
 छपे ाने
 अखबार  पर, आज हम हवाई जहाज के
 नए आ翿`व कार क  तरह बहस
करते ह।

वीणा, बं
सी और जल­तरं
ग का सव䃿
नाश ह  नह ं
 हो चक
ुा; हारमो नयम और 翿`पयानो भी  कस काम आएँ
गे
?

हमारा कोई गीत भी तो हो? कला से
 नहलाया हु
आ,  दय तोड़कर  नकला   हु
आ।

वीणा म तार नह ं
,  दल म गब
ुार नह ं

न जाने हम तुहारा ज मो सव मनाते  ह या मरण­ यौहार? बै लगाड़ी पर बैठे


­बैठे खा करते
 हवाई जहाज दे  ह।  ब ल
के
 रा ते काट जाने
 पर हमारा अपशकु ;  कं
न होता है त ु
बेतार का तार ि व䀀जरलड क  खबर आ े ��लया पहु
चाकर भी

हमार   ुतय  को नह ं
 छूता! तब हमार  सर वती से  तो उसका सं बं
ध ह  कैसे
 हो सकता है िजन के
? एं   प म धधकती
हु
ई 鼐वालामख
ुी का एक ကयापार हमार  छाती पर हो रहा है

यारे
, इस समय अधोग त क  鼐वाल­मालाओं
 म से
 ऊँ
चा उठने
 के ण चा हए। कृ
 ��लए आकष䃿 षक  ने
 इसी लालच से
 तो
तुहारा नाम कृण रखा होगा।

जरा तम
ु यग दे
ु­संशवा हनी अपनी बाँ
सरु ले
कर बै
ठ जाओ। रामायण म जहाँ
 बालकां
ड है  लं
, वहाँ काकां
ड भी तो है

http://gadyakosh.org/gk/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF­%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0… 4/6
जरा तम
ु यगु­संदे
शवा हनी अपनी बाँ
2/28/2016 सा ह य­दे सरु ले
वता / माखनलाल चतव कर बै
ठ जाओ। रामायण म जहाँ
 बालकां
ड है
ुद  ­ Gadya Kosh ­  ह द  कहा नयाँ  लं
, वहाँ काकां
ख , लघक
, ले ड भी तो है
ुथाएँ ।
,  नब ध, नाटक, कहानी, ग뼀य, आलोचना, उप यास, बाल कथाएँ
,  े
र क कथाएँ
, ग뼀…

तुहार  तान म भै
रवी भी हो,क��लं
गड़ा भी हो।

जरा बं
सी ले
कर बै
ठ जाओ। म तुहारा  चだ मरु
ल धर के
  प म चाहता हू

* *

हार करते
'��शव सं  ह' ­ कौन जाने?  कंत ु
मे
रे
 सखा तम ु ज र महल  के हारक हो। झोप ड़य  ह  से
 सं  तुहारा  दကय गान
उठता है।  कं
त ु
यह हमार  पण䃿 ­कुट  दे
खो। जाले चढ़ गए ह, वातायान बं
द हो गए ह। सय
ू 䃿क   न य नवीन  ाण­ ेरक
और  ाण­परू क  करण  क  यहाँ  गुजर कहाँ  तो 뼀वार खटखटाकर लौट जाती है
? वे ।

뼀वार पर चढ़  हु
ई बे
ल पानी क  पक
ुार करती हु ई  बना फलवती हुए ह  अि त व खो रह  ह। 翿`पत­ृतप䃿
ण करने वाले
अ हड़  को ले कर म इस कुट  का कूड़ा साफ करने  म लग जाना चाहता हू।  कतने
ँ  तप हु
ए  क इस कुटया म सयू 䃿
दश䃿न
नह ं होते
। मे
रे
 दे
वता! तुहारे
 मंदर क  जब यह अव था  कए हु ए हू
, तब  बना  काश,  बना ह रयाले
ँ पन,  बना पुप
और  बना 翿`व䃿व क  नवीनता को तुहारे  뼀वार पर खड़ा  कए, तुहारा  चだ ह  कहाँ
 उतार पाऊँ
गा ?

翿`व तत  आसमान का पだक भी, दे
ृ नीले वता! तुहार  तसवीर खींचने  म शायद दैवी­ चतेरे
 इसी��लए असफल हु ए;
उ ह ने  चं क  रज तमा क  दावात म, कलम डु बोकर  चだण क  क पना पर चढ़ने  का  य न  कया और  ती ा क
उ뼀翿`व नता म सारा आसमान धबीला कर चलते  बने। इस बार म पु प लेकर नह ं
, क��लयाँ तोड़कर आने  क  तै
यार
क ँ गा; और ऐ 翿`व䃿व के
  थम­ भात के  मंदर, उषा के तपोमय  काश क  चादर तुह ओढ़ाकर, तुहारे  उस अंतरतर
का  चだ खींचने  आऊँगा, जहाँ
 तम
ु अशेष संकट  पर अपने   दय के कड़े
 टु  ब��ल करते हु
ए, शेष के साथ ミखलवाड़ कर रहे
ह गे ।

आज तो उदास, परािजत और भ翿`व य क  वे दनाओं क  गठर  ��सर पर लादे , मेरे बाग म उन क��लय  के  आने  क  उ मीद
म ठहरता हू  िजनके
,ँ  कोमल अं त तल को छे दकर उस समय जब तम ु  नगा धराज का म क
ुुट पहने   दोन   कं
ध  आने
 से
वाले
 सं दे
श  पर म तक डु ला रहे  होगे गी और जमन
, गं ुी का हार पहने बंग के  पास तरल चन ुौती पहु चा रहे
ँ  होगे, नम䃿दा
और ता ती क  करधनी पहने  翿`वं य को 翿`व䃿व नापने का पै
माना बना रहे  होगे , कृणा और कावे र  क  कोरवाला नीलां बर
पहने 翿`वजयनगर का सं दे
श पुय­ दे श से  गु
जारकर स या  और अरावल  क  से नानी बना मेवाड़ म 鼐वाला जगाते
हु
ए देहल  से  पे
शावर और भटूान चीरकर अपनी  चरक याणमई वाणी से  翿`व䃿व को  यौता पहु चा रहे
ँ  होगे ; और हवा
और पानी क  बे ड़याँ
 तोड़ने
 का  न䃿चय कर,  हं द­महासागर से  अपने चरण धल ुवा रहे
 होगे
, ­

­ ठ क उसी सि नकट भ翿`व य म, हाँ


 सज
ूी से
 क��लय  का अं
तःकरण छे
द, मे
रे
 翿` यतम, म तुहारा  चだ खीं
चने
आऊँ गा।

तब तक  चだ खीं
चने
 यो य अ ミणमा भी तो तै
यार रखनी होगी।

बना म तक  को  गने


 और रत को मापे
 ह  म तुहारा  चだ खीं
चने
 आ गया।

दे
वता, वह  दन आने
 दो;  वर सध जाने
 दो।

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"http://gadyakosh.org/gk/index.php?title=सा ह य­दे
वता_/_माखनलाल_चतव
ुद &oldid=27803" से
 ��लया गया

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ी:  नबं
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2/28/2016 सा ह य­दे
वता / माखनलाल चतव
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ू 2014 को 10:22 बजे आ था।

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