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शशशशशश शशशशशश शशशशशशशशश "शशशशश शशशशशशश शशशशशशश. शशशशशशशशशश


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शशशशशशश शशशशश शशशश. शशशशशश शशशशशश शशशशशशशश शशशशशशश, शशशशश
शशशश, शशशशश शशश, शशशशश शशशश, शशशशशश शशशशशशशश,शशशशशशश शशशशश,
शशशशशशशश शशशशशशश शशशश, शशशशशशशश, शशशशश शश शशशश शशशशशशशशश
शशशशश शशशशशश शशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशश शशशश शशशश शशशश.
शशशशशशशश शशशशशशशश शशशशशश शशशशशश शशशशशशश शशशशशशशशशशश
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शशशशशशशश शशशश शशशश शशशशशश. शशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशशशश
शशशशशश शशशशश शशशशश शशशशशशशशशश शशशशश शशशशशशशश शश शशशशश शशशशश
शशशशशशश.

*शशशशश शशशशशशशश शशशश,


* शशशशशशशशश शशशश शशशशशशश शशशशश शशश शशशशशशशशशशश.
* शशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशशशश शशशशशशश शशशशशश शशशश
शशशशशशश शशशशशश शशशश शश शशश शशशशशश शशशशश शश शशशशशशशश
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शशशशशशश शशशशश शशशश, शशशशश शशशशशशशश, शशशशश शशशशशशशशश शशशशशश
शशशशशशश शशशशशश शशशशश शशशशश शशशश श शशशशशशश शशशशशशशशशशशशश
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शशशशशशश शशशशशशश.

*शशशशश - शशशशशशशश*
शशशशश शशशशशश शशशशश शशशशश शशशश शश शशशशशशशशश शशशशश शशशश. शशश
शशशशशशशशश शशशशशशश शशशशश शशश शशश शश शशशश? शशशशश शशश शशशश शश
शशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशशशशशश शशश शशशशशशश, शशशशशशश,
शशशशशशश शशशशश, शशश शशशशश शशशशशशश शशशश शशशशशशश शशशश शशश
शशशशश. शश शशशश शशशशशशश शशशशश शशशशशशश शशश शशशशशशशशश शशशशशश
शशशशशश शशशशशशशश शशशश शशशशश. शशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशशशश
शशशश.

*शशशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशश*


शश शशशशश शशशश शशशशश शशशशश शशशश शशशशशशशशश शशशशशशश, शश, शशशश,
शशशश शशशशशशश शशशशशशश शशशश शश शशशशशशशश शशशशशश शशशश शशशशशशश
शशशशशशश, शशशश शशशशश शशशशशशशश शशशशश शशशशश शशशशशशशशशश शशशशश
शशशशशशशश शशशशशशशश शशशशश शशशश. शश शशशशशशशशशशशश शशशश शशश शशशश
शशशशशशश शशशश शशशश शशश शशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशश श
शशशशशशशशशश शश शशशशशशश शशशश शशशशशशश शशशश. शशशशशशश शशशशश
शशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशश शशशशशशशशश शशशश
शशशशशशशशशश शशशशशशश शशशशशशशशश शशशश शशशशशशश शशशश शशशश.
शशशशशशशशशश शशशशश :
»शशशशशश शशशशशश शशशश 3 शशशशश शश शश शशशशश शशशश शशशश शशशशशश 3
शशश शशशशशशशशशशशशश शश शशशशश शशशश शशश
» शशशश शश शशश शशशशशशशश शशशशशशश -
शशशशशशशशश शशश - श शशशश, श शशश शशश, श शशशशशशशश, श शशशश, श शशशशशश
शशशशशशशशशशश शशश - श शशशश, श शशशशशश, श शशशशशशश, श शशशशशश
शशशशशशश
» शशश शशश शशश शशशशशश शश शशशश शशशशश शश शश शशशशशश शशशश शश शशश
शशश शशशशश शशशशश शश शशश शश शशशशशश |शशशश शशशशशश शशशश शश शशश
शशशशशश शशश शशश शशशश शशशश शश|
» शशशशशशश शश शशशशशश शशशश शश शशश श शशशशश शशशश शशशशशश (शशशश शश)
शशशशशशशशशश शशशश शश| शश शशश शशशशशशश शशशश शश शशश शशशशश शशश
शशशशशशशशश शशश शशशश शशशश शश|
» शशशशश शशशशशश शश शश शशश शशशश शशश शशश शशशशश श शशश शश शशशश
शशशश|
» शशश शशशशशशशश शशशश शशशश शश शशशश शशशश शशशशशशश शश शश, शशशश शशश,
शशशशश, शशशशशशशश/ शशशशशश शशश शशशशशशश शशशशशशशशश शशशश शशशशशश
शशश, शशशश शशशशशशशशशशश शशशशश श शशशश शशश|
» शशशशश शशशशशश शशशशशशश शशश शशश शशशशशश शशशश शशशश शशशशशशश
शशशशश शशशश शशशशशशशशशशश शशशशश, शशश शशशशश शशश शशशश शशशशश शश|
» शशश शश शशशशशश, शशशशशश शशशशशश शशशश शशशशश शशशश शश शशशशशश शश
शशशशश शशशश शशशश शशशश शश|
|| शशशश || शशशशशशश शशशशश शशशश
शशशश-शशशश शशशशशशश शशशशश शशशशश शशशशशशशश ||
शशशशशशश शशशशशशशशश शशशशश शशशशश शशशशशश ||

शशशश शशशशशशश शशशश शशश शशशशशशश शशशशशशशशशशशश शशशश शशशश शशशशशश


शशशशश शशशशशश शशशश शशशशशशश शशश शशशशशशशश शशशश. शशश शशश शशशश
शश शशशशशशशश शशशशशशश शशशश. शशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशश शशश
शशशश शशशशशशश.

शशशशशशशश शशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशश श शशशशशशश शशशशश शशशशश


शशशशश शशशश. शशशशशशशशशशश शशशशशशश शशशश शशशश शशशशशशशशशश शशशशश
श शशशशशशशशश शशशश शशशशशशशश शशशशशश शशशशश. शशशशशशशश शशशशशशश
शशशश शशशश शशश श शशशश शशशशशशशशशश शशशशश शशशशश. शशशशश शशशश
शशशश शशशशशश शशशशशश शशशशश. शशशश शशशश शशशश शशशशश शशशशश. शशश
शशशश शशशश शशश शशश शशशश शश शशशशश.

शशशश शश शशशशशश शशशश शश शशशशश, शशशशश, शशशश, शशश, शशशश, शशशशश शशश
शशश शश शशशश शशश शशश शशश शशशशशशश शशशशश शशशशश. शशशशशशश शशशशश
शशश शशशशशशशश शशशशश शशशश शश शशशशशशशशशशश शशशशशश शशशश शशशशशश
शशशश. शशशशशशशशशशश शशशश शश शशशश शशशशशशश शशशश शशशश
शशशशशशशशशशश शशशशशशश शशशशश शशशश. शश शशशशशश शशशशश शशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशश शशशश शशशशशश. शश शश शशशशशश शशशशशश शशशशशश शशशश
शशश. शशशशशश शशशश शशशशशशशशशश शशशश शशशश, शशशश शशशश शशशशश शशशश,
शशशशशश, शशशशशशशश शशशश शशशश,शशश शशशशशशश शशशश शशशशशश शशशशशश
शशशशशश श शशशश, शशशशशशशशश शशशशशशश शशशश, शशश शशशशशशशशश शशशशशशश
शशशश शशशश, शशशशशशशशशशशश शशशश शश शशशश शशशशशश शशशशशशश शशशशशशशश
शशशशश. शशशशशश शशशश, शशशशशशश श शशशशश, शशशशशशश, शशशशशश शशशश शश
शशशश शशशशशशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशशशश शशशश शशशशश.

शशशशशशशशशश शशशशश :
» शशशशशशश शशशशश शशशश 1 शशशशशश शशशश शशशश.
» शशशश शशशश शशशशशशश शशशशशशश -
शशशशशशशशशशश- श शशशश, श शशशशश, श शशशशशशशश, श शशशश, श शशशशशश
शशशशशशशशशशशशश - श शशशश, श शशशशशश, श शशशशशशश, श शशशशशश
शशशशशशश.
» शश शशशशशशशशशश शशशश शशशशशशश शशश शशशशशशश शशश श शशशश शशशश
शशशशश शशश शशशशश शशशशशशशशश शशशशशश शशशशशश.शशशश शशशशशश
शशशशशशशश शशशशश शशशशशशशश शशशशश.
» शशशशश शशशशशशशश शशशशशशशश श शशशश शशश शशशशशशशशश श शशशश शशशशशश
शशशशशशशशशशशशशश शशशशशश शशशशशश.
» शशशश शशशशशशशशशश शशशश शशशशशशशश शशशश शशशशशश शशशशश
शशशशशशशशशश शशशश. शशशश शशश, शशशशश, शशशशशशशश शशशश शशशशशश शशशश
शशशश शशशशशश शशशशशशशशशश शशशश शशशशशश शशशशश शशशशशशशश शशशश
शशशशशश शशशशश शशशश.
» शशशशश शशशश शशशशशशशशशशश शशशश शशशशशशश शशशशश शशशशश
शशशशशशशशशशश शशशशश,शशश शशशशश शशशशश शशशश शशशशशश शशश.
» शशश शशशश श शशशशशशश शशशश शश शशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशश शशशशशश
शशशशश.
|| शशशश || शशशशशशशशश शशशशशशश
शशशशशशशशश शशशशशशश शश शश शशशशशश शशशशशशश शशश. शशशशशशश शशश
शशशश शश शशशशशश शशशशशशश शशशश शशशश शश शशशशशशश शशशशशशशश शशश शश
शशश शशशशशशशशशश शश शशशशशशश शशशशश.शशशशशशश शशश शशशश शश शशशशशश
शशशशशशश शशशश शशशश शश शशशशशशश शशशशशशशश शशश शश शशश शशशशशशशशशश
शश शशशशशशश शशशशश. शशशशशशशशश शश शशशशशशशश शशशश शशश. शश शशशशश
शशशशशशश शशशशश. शशशशशशशशश शशशशशशश शश शशशशशशशशश, शशशशशशशश,
शशशशशशशश, शशशशश शशशशशश, शशशशशश शश शशशशशशश शशशशश.

शशशशशशश, शशशशशशश श शशशशशशशश शशश शशश शशशशशशशशश शशशशश.


शशशशशशशश शशशशशश शशशशशश शशशशशशश शशशशशशश शशशश. शशशशशशशशशश
शशशशशशशश शशशशशश शशशशशशश शशशशशशश शशशश श शशशशशशशशशश शशशशशशशश
शशशशशश शशशशशशश शशशशशशशश शशशश. शश शशशशशश शशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशशशश शशशशश शशशशशश शशशशश शशशशशशशशश शशशशशशश
शशशशश.

शशशशशशशशश शशशशशशशशश शशशशशशश, शशशशशश शशशश शशशशशशश शशशशशशश,


शशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशश शशशश शशशश शशशश. शशशशशशशश शशशशश
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शशश शशशशशशशश शशशशश शशशशशशश शशशशशश शशशशशशशश शशशशश शशश
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शशशशश शशशशश.

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शशशशशशशश शशशशशशश शशशशशश शशश शशशश. शशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशश शशशशशशशश, शशशश शशशशशशशश शशशशश शश शशशशशशश शशशशश
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शशशशशशशशशश शशशशश :
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शशशशशशशशशशश- श शशशश, श शशशशश, श शशशशशशशश, श शशशश, श शशशशशश
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शशशशश शशश शशशशश शशशशशशशशश शशशशशश शशशशशश.शशशश शशशशशश
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शशशश शशशशशश शशशशशशशशशश शशशश शशशशशश शशशशश शशशशशशशश शशशश
शशशशशश शशशशश शशशश.
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शशशशशशशशशशश शशशशश,शशश शशशशश शशशशश शशशश शशशशशश शशश.
» शशश शशशश श शशशशशशश शशशश शश शशशशशशश शशशशशशशशशश शशशशश शशशशशश
शशशशश.
कालसर्प शाांती करने के कारन और होनेवाले लाभ |

इस संसारमे जब कोई भी प्राणी जजस पल जन्म ले ता है वह पल (समय) उस प्राणी (मनुष्य) के सारे


जीवन के जकए महत्वपुणण है. ज्योजतष शास्त्र के अनुसार उसका जीवन का भजवष्य बताया जा सकता है .
जजसमे जीवन मे आने वाले समय में होनेवाली शुभ अशु भ घटना का समय से पुवण जाना जा सकता है .
जन्म समयपर बनायी गई जन्मकुंडली के आधार से कुंडली मे बारा भाव रहते है . जन्म कुंडली मे अलग
अलग स्थान में ग्रह होने से अलग अलग प्र्कार के शुभ अशु भ योग बनते है. ये योग मनुष्य की जीवन
मे शु भ, अशु भ प्र्कार दालते है . जन्म कुंडली में जब सभी ग्रह अथा शु भ ग्रह राहू केतू के ऐक ही और
हो तो इसे कालसपण योग कहा जाता है .
चराहू और केतू छाया ग्रह है . कालसपण योगसे जप्डीत जातक का भाग्यप्र्वाह राहू केतू अवरुद्ध करते है .
जजससे मनुष्य प्र्गती नही होती है. जववाह नही होता है . हो भी गया तो संतान सुख मे बाधा आती है .
जववाह मे कलहपुणण झगडे होते है . हमेशा कजण मेंडुब जाना. हर मनुष्य की जीवनक्र्म में कूंडली और
ज्योजतष मजबु त सहारा होता है . कोई माने या ना माने कालसपण योग होता ही है . अशु भ फल दे ने वाले
ग्रह मे से सुयण, चं द्र, मंगल, बुध, गु रु, राहू और केतू के बीच मे आ गये तो इनके सथ शुभ ग्रह आ गये तो
उनके उपर भी अशुभ पररणाम होता है. कुंडली में अगर राहु अशु भ स्थान में अशु भ ग्रह के साथ हो तो
वो जवशे ष रुप से जपडा दे ता है. आदी सारी चीजे कालसपण योग के पररणाम दशाणती है. इन पीडासे
जनजशत मुक्ती पाने के जलए शास्त्र से श्री श्रेत्र त्र्यं बकेश्र्वर पे जवजधवत कालसपण योग का पुजन करने से
मनःशांती और फलप्राप्ती जमलती है.

कालसपण योग से होनेवाले संकटों से छु टकारा पाने के जलये वे द शास्त्र कहता है की कालसपण शां ती पूजा
जसफण त्र्यंबकेश्वर में करनी चाजहये | हर जगह को महत्व होता है , वै से ही त्र्यं बकेश्वर को अपना अलग
महत्व है |
शास्त्र के अनुसार अगर आप त्र्यंबकेश्वर में कलसपण शां ती पूजा करते है तो आपको सब संकटों से मुक्ती
जमल सकती है और आप का जीवन सुखी हो सकता है |

त्रित्रर्ांडी श्राद्ध त्रवधी करने के कारन और होनेवाले लाभ |

यजद लगातार तीन साल जपतरोंका श्राध्द न होनेसे जपतरोंको प्रेतत्व आता है , वह दू र करने के जलए यह
श्राध्द करना चजहए । जत्रजपंडी जवधी अमावस्या और पोजणणमा के जदन करनी चाजहये | जत्रजपंडी श्राद्ध काम्य
श्राद्ध है . लगातार तीन बरस जजसका श्राद्ध न जकया गया हो उनको प्रेतत्व प्राप्त होता है. अमवास्या ये
जपतरोंकी जतथी है . इस जदन श्राद्ध करे . तमोगु णी, रजोगु णी, एवं सत्वगु णी ऐसी तीन प्रेतयोजनया है पृथ्वीपर
वास्तव्य करने वाले जपशाच्च तमोगुणी अंतररक्ष में वास्तव्य करने वाले जपशाच्च रजोगु णी एवं वायु मंडल मे
वास्तव्य करने वाले जपशाच्च सत्वगु णी होते है . इन तीनो प्र्कारके प्रेतयोनी के जपडा पररहाथण जत्रजपंडी श्राद्ध
जकया जाता है. जत्रजपंडी श्राद्ध जीवनभर दररद्रता, अनेक प्रकारकी परे शाजनया, श्राद्धकमण और्ध्णवैजदक जक्रया
शास्त्र के जवधी के अनुसार न जकये जानेपर भुत प्रेत जपशा्च्च बाधा जपडाए उत्पन्न होती है . जत्रजपंडी श्राद्ध
जकये जाने पर अनजगनत लोक आजधव्याजधसे मुक्त हुए है .

इन ३ प्रेतयोनी से होनेवाले परे शानीसे छूटकारापाने के जलये जत्रजपंडी श्राद्ध करना जरुरी है | भुत बाधा,
संतान प्रप्ती में बाधा, बू री नजर, गो हत्या इन सब से होनेवाले परे शानी से छूटकारापाने के जलये जत्रपींडी
श्राद्ध जकया जाता है |

नारायन नाग्बली त्रवधी करने के कारन और होनेवाले लाभ |

इस युग में हर मनुष्य सुखकी कामना करता है. जो पुन्य से प्राप्त होती है. पुन्य कमण ना करके पाप
कृत्य ही अजधक अजधक करना है. (त्रे ताद्वार युग) में सद्धमाणचरण, मयाणदापालन, जप, तप, उअनुष्ठान,
ईश्वरउपासना आजद कमाण से मनुष्य सुखी रहता था. उसे दु ख पता ही नही था.
आज कजलयु अगमें सभी और दु खकारी जवस्तार हो रहा है . इस जवधी का उद्दे श है अपनी अत्र्प्प्त जपतरोंको
तृ प्त करके उन्हे सदगती जदलाना. श्राद्ध कमण ना होने से जपतरोंको प्रेतत्व प्राप्त होता है . वह न होने से
दु ख, जवघ्न और व्याधी जनमाणण होती है.
नारायण नागबली प्र्मुख रुप से तब करना जाजहए जब आपत्य न होना, कष्टमय जीवन, संतती दोष शरररके
जवकार, भुत प्रेत जपश्चाच्च बाधा, अपमृत्यु, अपघातोंका जसलजसला इन सभी संकटोंसे जनजशत रुपसे मुक्ती पाने
के जलए शास्त्र से नारायण नागबली जवधा है.

यह जवधी प्रमुख़ कारन से अत्रु प्त अत्माओं को त्रु प्त करने के जलये और उन्हें इस संसार से मुक्ती जदलाने
के जलये जकया जाता है |
संतान प्राप्ती में बाधा, शाररररक जवकार, भूत बाधा, कठीन जीवन इन सब से छु ् ट् कारा पाने के जलये नारायन
नागबली जवधी करनी चाजहये और वो भी जसफण त्र्यं बकेश्वर में | जहंदु शास्त्र के अनुसार यह जवधी जसफण
त्र्यं बकेश्वर में ही करना चाजहये |
त्र्यंबकेश्र्वर
श्री. पं. डॉ. जदलीप जचं तामण जोशी ,
शु भमकरोती जनवास,
संत गाडगे महाराज धमणशाळे जवळ,
त्र्यं बकेश्र्वर, नाजसक - ४२२२१२.
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