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हिंदी कविताएँ
हिंदी कविताएँ
लँ गड़े को पाँव और
लूले को हाथ दे ,
रात की संभार में
मरने तक साथ दे ,
बोले तो हमेशा सच,
सच से हटे नहीं;
झट
ू के डराए से
हरगिज डरे नहीं|
सचमुच वही सच्चा है |
आवश्यक दस
ू रा नारद को दे खकर विष्णु भगवान ने
तैल-पर्ण
ू पात्र यह "काम तम्
ु हारा ही था
एक बँद
ू भी इससे विष्णु ने कहा, "नारद
आज्ञा पर धत
ृ -लक्ष्य उत्तरदायित्व कई लादे हैं एक साथ
एक बँद
ू तेल उस पात्र से गिरे नहीं। सबको निभाता और
परशुराम
दषि
ू त हुई जब मातभ
ृ मि
ू सत्ता के अत्याचारों से
रोया था गुरुकुल जब पापी
आतंकी व्यवहारों से
तब विष्णु ने जन्म लिया धरती को
मक्
ु त कराने को
‘विद्युदभी फरसे’ का धारक परशुराम
कहलाने को
जमदग्नि-रे णुका पुत्र भग
ृ ुवंश से
जिसका नाता था
विष्णु का “आवेशावतार”शास्त्र-
शस्त्र का ज्ञाता था
जटाजूट ऋषि वीर अनोखा,अद्भत
ु
तेज का धारक था
था अभेद चट्टानों सा जो रिपुओं का संहारक था
शिव से परशु पाकर ‘राम’ से परशुराम कहलाया था
अद्वीतिय योद्धा था जिससे हर दश्ु मन थर्राया था
प्रकृतिप्रेमी,ओजस्वी,मात-पिता का आज्ञाकारी था
एक सिंह होकर भी जो लाखो सेना
पर भारी था
ध्यानमग्न पिता को जब है हय कार्तवीर्य
ने काट दिया
प्रण लेकर दष्ु टों के शव से धरनी 21 बार था पाट दिया
आतताइयों के रक्त से जिसने पंचझील
तैयार किया
कण-कण ने भारतभमि
ू का तब उनका आभार किया
मुक्त कराया कामधेनु को, धरती को
उसका मान दिया
ऋषि कश्यप को सप्तद्वीप भम
ू ण्डल
का दान किया
भीष्म,कर्ण,और द्रोण ने जिनसे शस्त्रों
का ज्ञान लिया
कल्पकाल तक रहने का जिनको विष्णु जी से वरदान मिला
पक्षधर थे स्त्री स्वातंत्र्य के बहुपत्नीवाद पर वार किया
हर मानव को अपनी क्षमता पर जीने तैयार किया
‘नील’ कहे खुद के ‘परशुराम’को हरगिज न सोने दे ना
अपनी क्षमता पर जीना या खद
ु को न जीवित कहना|