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Shri Satyanarayan Vrat Katha and Aarti in Hindi

ॐ !ी गणेशाय नमः । ॐ !ी गु#$यो नमः । ॐ !ी सर#व%यै नमः ।


मातृिपतृ चरण कमले%यो नमः ।

!ी स"यनारायण !त कथा एवं आरती

                                                             

!थमो अ"याय

एक समय नैिमषार(य तीथ$ म" शौनक आ"द सभी ऋिषय% तथा मुिनय& ने
पुराणशा' क" वे#ा !ीसूतजी महाराज से पूछा - महामुने ! िकस !त अथवा
तप#या से मनोवांिछत फल !ा# होता है, उसे हम सब सुनना चाहते ह" ।

!ी सूतजी बोले - इसी !कार देविष& नारदजी क" !ारा भी पूछे जाने पर
भगवान !ीकमलापितजी ने उनसे जैसा कहा था, उसे कह रहा !ं, आप लोग
सावधान होकर सुन$ । एक समय योगी नारदजी लोग$ क" क"याण क" कामना
से िविवध लोक$ म" !मण करते !ए पृ#वीलोक म" आये और यहां उ"ह$ने
अपने कम#फल क" अनुसार नाना योिनय% म" उ"प$ सभी !ािणय& को अनेक
!कार क" !"श, द":ख, भोगते !ए देखा तथा ‘िकस उपाय से इनक$ द"ख$ का
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सुिन%&चत !प से नाश हो सकता है’, ऐसा मन म" िवचार करक# वे िव#णुलोक
को गये। वहां चार भुजाओं वाले शंख, च", गदा, प" तथा वनमाला से
िवभूिषत शु#वण& भगवान !ी नारायणजी का दश#न कर उन देवािधदेव क" वे
!तुित करने लगे। नारद जी बोले - हे वाणी और मन से परे !व#प वाले,
अन#तशि'स)प+, आ"द-म"य और अ"त से रिहत, िनगु%ण और सकल
क"याणमय गुण" से स"प$, भ"# क" पीड़ा न" करने वाले परमा%मन!
आपको नम#कार है।

!तुित सुनने क" अन#तर भगवान !ीिव%णु जी ने नारद जी से कहा - महाभाग


! आप िकस !योजन से यहां आये ह", आपक$ मन म" !या है ?
नारद जी बोले - भगवन ! पृ#वीलोक म" अपने पापकम% क" !ारा िविभ$
योिनय% म" उ"प$ सभी लोग ब"त !कार क" !"श$ से द":खी हो रहे ह" । हे
नाथ ! िकस लघु उपाय से उनक$ क"# का िनवारण हो सक#गा, य"द आपक$
मेरे ऊपर क"पा हो तो वह सब म" सुनना चाहता !ं । उसे बताय% ।

!ी भगवान ने कहा - हे व"स ! संसार क" ऊपर अनु$ह करने क" इ"छा से
आपने ब"त अ"छी बात पूछी है । िजस !त क" करने से !ाणी मोह से मु#
हो जाता है, उसे आपको बताता !ं, सुन$ । हे व"स ! !वग$ और पृ#वीलोक म"
द"ल$भ भगवान स"यनारायण का एक महान !त है । आपक$ !नेह क" कारण
इस समय म" उसे कह रहा !ं । अ"छी !कार िविध-िवधान से भगवान
स"यनारायणजी का !त करक# मनु$य शी# ही सुख !ा# कर परलोक म" मो#
!ा# कर सकता है ।

भगवान क" ऐसी वाणी सुनकर नारदजी ने कहा - !भो इस !त को करने


का फल !या है ? इसका िवधान !या है ? इस !त को िकसने िकया और
इसे कब करना चािहए ? यह सब िव#तारपूव)क बतलाइये ।

भगवान ने कहा - यह !ी स"यनारायणजी !त द":ख-शोक आ"द का शमन


करने वाला, धन-धा#य क" वृि$ करने वाला, सौभा%य और संतान देने वाला
तथा सव#$ िवजय !दान करने वाला है । िजस-िकसी भी !दन भि# और

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!"ा से सम#$वत होकर मनु$य !ा#ण% और ब"धुबा"धव' क" साथ धम# म"
त"पर होकर *सायंकाल म" भगवान !ीस"यनारायणजी क" पूजा करे । नैवे%
क" !प म" उ"म को#ट क" भोजनीय पदाथ% को सवाया मा#ा म" भि#पूव'क
अिप$त करना चािहए । क"ले क" फल, घी, द"ध, गे#ं का चूण$ अथवा गे#ं क"
चूण$ क" अभाव म" साठी का चूण$, श"र या गुड़ - यह सब यो#य साम$ी
सवाया मा#ा म" एक# कर िनवे%दत करनी चािहए ।

ब"धु-बा#धव& क" साथ !ी स"यनारायण भगवानजी क" कथा सुनकर !ा#ण%


को भोजन कराना चािहए ।

भि#पूव'क !साद !हण करक# नृ#य-गीत आ"द का आयोजन कर# । तदन$तर


भगवान स"यनारायण का !मरण करते !ए अपने घर को जाय$ । ऐसा करने
से मनु$य& क" अिभलाषा अव#य पूण$ होती है । िवशेष !प से किलयुग म",
पृ#वीलोक म" यह सबसे छोटा एवम् सरल उपाय है ।

॥ इित !ी !क#दपुराणे रेवाख&डे स"यनारायण !त कथायाम् !थमो अ"यायः स"पूण&म् ॥

ि"तीय अ"याय

सूतजी ने कहा- “हे ऋिषय% ! िज#ह%ने पहले समय म" इस !त को िकया है


उनका इितहास कहता !ँ आप सब !यान से सुन$ । सुंदर काशीपुरी नगरी म"
एक अ"यंत िनध$न !ा#ण रहता था । वह !ा#ण भूख और !यास से बेचैन
होकर पृ#वी पर घूमता रहता था । !ा#ण% से !ेम करने वाले !ी िव#णु
भगवानजी ने !ा#ण को देखकर एक !दन बूढ़े !ा#ण का !प धारण कर
!ा#ण क" पास जाकर आदर क" साथ पूछा-”हे िव#देव ! तुम िन#य ही द"ःखी
होकर पृ#वी पर !य# घूमते हो ? तब उस !ा#ण ने कहा - म" िभ#ा क" िलए
पृ#वी पर िफरता !ँ । हे भगवन ! य"द आप इससे छ"टकारा पाने का कोई
उपाय जानते ह" तो क"पा कर मुझे बताएँ । वृ# !ा#ण का !प धारण िकए
!ी िव#णुजी ने कहा- “हे !ा#ण ! !ी स"यनारायण भगवान मनवांिछत फल
देने वाले ह" । इसिलए तुम उनका पूजन करो, इससे मनु$य सब द"ःख% से
मु# हो जाता है ।” !ा#ण को !त का सारा िवधान बताकर बूढ़े !ा#ण का
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!प धारण करने वाले !ी भगवानजी अंत$या'न हो गए । िजस !त को वृ#
!ा#ण ने बताया है, म" उसको अव#य क"ँगा, यह िन#चय कर वह !ा#ण घर
चला गया । अगले !दन वह ज"दी उठा और !ी स"यनारायणजी का !त
करने का िन#चय कर िभ#ा माँगने क" िलए चल !दया । उस !दन उसको
िभ#ा म" ब"त धन िमला, िजससे उसने पूजा का सामान खरीदा और घर
आकर अपने बंध- ु बांधव& क" साथ !ी स"यनारायणजी का !त िकया । इसक$
करने से वह !ा#ण सब द"ःख% से छ"टकर अनेक !कार क" सुख स"पि%य'
से यु# !आ । तभी से वह िव# हर मास !त करने लगा । इसी !कार
स"यनारायणजी क" !त को जो शा#िविध क" अनुसार करेगा, वह सब पाप#
से छ"टकर मो# को !ा# होगा । आगे भी जो मनु$य पृ#वी पर !ी
स"यनारायणजी का !त करेगा वह सब द"ःख% से छ"ट जाएगा । इस तरह
नारदजी से स"यनारायण भगवान का कहा !आ !त म"ने आपसे कहा । तब
ऋिषय% ने कहा- “हे मुनी%वर ! संसार म" इस िव# से सुनकर िकस-िकस ने
इस !त को िकया | यह हम सब सुनना चाहते ह" । !ी सूतजी ने कहा - “हे
मुिनय& ! िजस-िजस !ाणी ने इस !त को िकया है उन सबक$ कथा सुनो ।
एक समय वह !ा#ण धन और ऐ"वय% क" अनुसार बंध- ु बांधव& क" साथ !त
पूजन कर रहा था, िक उसी समय एक लकड़हारा आया । उसने लकिड़यां
बाहर रखद" और िव# क" घर म" चला गया । !यास से !याक%ल लकड़हारे ने
िव# को !त करते देखा । वह !यास को भूल गया । उसने उस िव# को
नम#कार िकया और पूछा- “हे िव# ! आप यह िकसका पूजन कर रहे ह" ?
इस !त से !या फल िमलता है ? क"पा करक# मुझे बताएँ ।”

!ा#ण ने कहा - “सब मनोकामनाओं को पूरा करने वाला यह !ी


स"यनारायणजी का !त है । इनक$ ही क"पा से मेरे यहाँ धन-धा#य आ"द क"
वृि$ !ई है ।” िव# से इस !त क" बारे म" जानकर वह लकड़हारा ब"त !स#
!आ । भगवान का चरणामृत ले और भोजन करने क" बाद वह अपने घर को
चला गया ।

अगले !दन लकड़हारे ने अपने मन म" संक$प िकया िक आज !ाम म" लकड़ी
बेचने से जो धन िमलेगा उसी से भगवान स"यनारायणजी का उ"म !त

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क"ँगा । मन म" ऐसा िवचार कर वह लकड़हारा लकिड़यां अपने िसरपर
रखकर िजस नगर म" धनवान लोग रहते थे, वहाँ गया । उस !दन उसे उन
लकिड़य& क" चौगुने दाम िमले । वह बूढ़ा लकड़हारा अित$स& होकर प"#
क"ल,े श"र, शहद, घी, द"ध, दही और गे#ँ का चूण$ इ"या%द !ी स"यनारायण
भगवान क" !त क" सभी साम$ी लेकर अपने घर आ गया । िफर उसने अपने
बंध-
ु बांधव& को बुलाकर िविध-िवधान क" साथ भगवान का पूजा और !त
िकया । उस !त क" !भाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन-पु# आ"द से यु#
!आ और संसार क" सम#त सुख भोगकर वैक$%ठ को चला गया ।”

॥ इित !ी !क#दपुराणे रेवाख&डे स"यनारायण !त कथायाम् ि"तीऽयो अ"यायः स"पूणम


& ्॥

तृतीय अ"याय

!ी सूतजी ने कहा - “हे !े# मुिनय& ! अब एक और कथा कहता !ँ ।


पूव$काल म" उ"कामुख नाम का एक बुि$मान राजा था । वह स"यव%ा और
िजतेि%&य था । !ित$दन देव$थान( पर जाता तथा गरीब% को धन देकर
उनक$ क" द"र करता था । उसक$ प"नी सुंदर और सती सा#वी थी ।
भ"शीला नदी क" तट पर उन दोन$ ने !ी स"यनारायण भगवानजी
का !त िकया । साधु नामक एक वै#य, राजा को !त करते देख उनसे
पूछने लगा - “हे राजन ! भि#यु# िच# से यह आप !या कर रहे ह" ? मेरी
सुनने क" इ"छा है ।” तब महाराज उ"कामुख ने कहा - “हे साधु वै#य ! म"
अपने बंध- ु बांधव& क" साथ स"तान क" !ाि$ क" िलए महाशि&मान
स"यनारायण भगवानजी का !त व पूजन कर रहा !ँ ।” उसने कहा - “हे
राजन ! मुझे भी इसका सब िवधान बताइए । म" भी आपक$ कथानुसार इस
!त को क"ँगा । मुझे कोई संतान नह# है । िव#वास है िक इससे िन#चय ही
मेरे यहाँ भी संतान होगी ।” राजा से सब िवधान सुन, !यापार से िनवृ% हो,
वह वै#य खुशी-खुशी अपने घर आया । वै#य ने अपनी प"नी लीलावती से
संतान देने वाले उस !त का समाचार सुनाया और !ण िकया िक जब हमारे
यहाँ संतान होगी तब म" इस !त को क"ँगा । एक !दन उसक$ प"नी
लीलावती सांसा$रक धम# म" !वृ$ होकर गभ#वती हो गई । उसने एक सुंदर
क"या को ज"म !दया । क"या का नाम कलावती रखा गया । इसक$ बाद
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लीलावती ने अपने पित को !मरण !दलाया िक आपने जो भगवान का !त
करने का संक$प िकया था अब आप उसे पूरा क"िजए । साधु वै#य ने कहा
- “हे ि"ये ! म" क"या क" िववाह पर इस !त को क"ँगा ।” इस !कार अपनी
प"नी को आ"वासन दे वह !यापार करने चला गया । काफ$ !दन$ प"चात वह
लौटा तो उसने नगर म" स"खय% क" साथ अपनी पु#ी को खेलते देखा । वै#य
ने त"काल कलावती क" िलए कोई सुयो%य वर क" तलाश क" । क"चननगर क"
एक सुयो%य विणक पु# से अपने बंध-
ु बांधव& सिहत !स#िच& होकर अपनी
पु#ी का िववाह उसक$ साथ कर !दया । वै#य िववाह क" समय भी
स"यनारायण भगवान का !त करना भूल गया । इस पर !ी स"यनारायण
भगवान क" लीला !ई । अपने काय$ म" क"शल साधु नामक वै#य अपने
जामाता सिहत नाव को लेकर !यापार करने क" िलए समु$ क" समीप !"थत
र"नसारपुर नगर म" गया । दोन$ ससुर-जमाई राजा चं#क%तु क" नगर म"
!यापार करने लगे । एक !दन भगवान स"यनारायणजी क" माया से !े#रत एक
चोर राजा का धन चुराकर भागा जा रहा था । राजा क" द"त$ को अपने पीछे
आते देखकर चोर ने घबराकर राजा क" धन को उनक$ नाव म" रख कर भाग
गया, जहाँ ससुर-जमाई थे । जब राजा क" धन को उनक$ नाव म" रखा देखा
तो पकड़कर राजा क" समीप जाकर बोले - “हम ये दो चोर पकड़कर लाए
ह", आप आ"ा द"” । राजा ने कारागार म" डालने क" आ"ा दे दी । इस
!कार राजा क" आ"ा से उनको क"ठन कारावास म" डाल !दया गया तथा
उनका धन भी ले िलया । स"यनारायण भगवानजी क" लीला क" अनुसार
साधु वै#य क" प"नी लीलावती व पु#ी कलावती भी घर पर ब"त द":खी !ई ।
उनक$ घर म" रखा धन चोर ले गए । एक !दन शारी%रक व मानिसक पीड़ा
तथा भूख-!यास से अित द":!खत हो भोजन क" िचंता म" कलावती एक
!ा#ण क" घर गई । उसने !ीस$यनारायण भगवान का !त होते देखा । उसने
कथा सुनी तथा !साद !हण कर रात को घर आई । माता ने कलावती से
पूछा - “हे पु#ी ! तू अब तक कहाँ रही व तेरे मन म" !या है ?” कलावती
बोली- “हे माता ! म"ने !ी स"यनारायरण भगवान का !त होते देखा है ।”
तब कलावती क" वचन सुनकर लीलावती ने स"यनारायण भगवानजी क" पूजन
क" तैयारी क" । उसने प"रवार और बंधुओं सिहत !ी स"यनारायण
भगवानजी का पूजन व !त िकया और वर माँगा िक मेरे पित और दामाद

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शी# ही घर लौट आएँ । साथ ही !ाथ$ना क" िक हम सबका अपराध !मा
करो । !ी स"यनारायण भगवानजी इस !त से संतु% हो गए । उ"ह$ने राजा
चं#क%तु को !व#न म" दश#न देकर कहा - “हे राजन ! िजन दोन$ वै#य% को
तुमने बंदी बना रखा है, वे िनद$ष ह", उ"ह$ !ातः ही छोड़ देना ।” राजा से
वचन कहकर भगवान अंत$या'न हो गए । !ातःकाल राजा चं#क%तु ने सभा म"
सबको अपना !व#न सुनाया और सैिनक& को आ"ा दी िक दोन$ विणक पु#$
को क"द से मु# कर सभा म" लाया जाए । दोन$ ने आते ही राजा को !णाम
िकया । राजा ने उनसे कहा - “हे महानुभाव( ! तु#ह% भावीवश ऐसा क"ठन
द"ःख !ा# !आ है । अब तु#ह% कोई भय नह# है, तुम मु# हो ।” ऐसा कहकर
राजा ने उनको नए-नए व"ाभूषण दीये तथा उनका िजतना धन िलया था
उससे द"ना लौटाकर आदर से िवदा िकया । दोन$ वै#य अपने घर को चल
!दए ।

॥ इित !ी !क#दपुराणे रेवाख&डे स"यनारायण !त कथायाम् तृतीयो अ"यायः स"पूण&म् ॥

चतुथ% अ"याय

!ी सूतजी ने कहा - “वै#य और उसक$ जमाई ने मंगलाचार करक# या#ा


आरंभ क" और अपने नगर क" ओर चल पड़े । उनक$ थोड़ी द"र आगे बढ़ने
पर दंडी वेषधारी !ी भगवानजी ने उससे पूछा - “हे वै#य ! तेरी नाव म" !या
है ? अिभमानी विणक हँसता !आ बोला - “हे दंडी ! आप !य# पूछते ह" ?
!या धन लेने क" इ"छा है ? मेरी नाव म" तो बेल और प"े भरे ह" ।” वै#य
का कठोर वचन सुनकर दंडी !प मे भगवानजी ने कहा - “तु#हारा वचन
स"य हो !” ऐसा कहकर वे वहाँ से क"छ द"र जाकर समु$ क" िकनारे बैठ गए
। दंडी महाराज क" जाने क" प"चात वै#य ने िन#यि%या से िनवृ% होने क" बाद
नाव को उँची उठी देखकर अचंभा िकया तथा नाव म" बेल-प"े आ"द
देखकर मू#$छ&त हो जमीन पर िगर पड़ा । होश आने पर अ"यंत शोक !कट
करने लगा । तब उसक$ जामाता ने कहा - “आप शोक न कर# । यह दंडी
महाराज का !ाप है, अतः उनक$ शरण म" ही चलना चािहए, तभी हमारी
मनोकामना पूरी होगी ।” जामाता क" वचन सुनकर दंडी महाराज क" पास
प"ँचा और भि#भाव से !णाम करक# बोला - “म"ने जो आपसे अस#य वचन
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कहे थे उसक$ िलए मुझे !मा कर# ।” ऐसा कहकर वै#य रोने लगा । तब दंडी
भगवान बोले - “हे विणक पु# ! मेरी आ"ा से तुझे बार-बार द"ःख !ा# !आ
है, तू मेरी पूजा से िवमुख !आ है ।” तब उस ने कहा - “हे भगवन !
आपक$ माया से !"ा आ"द देवता भी आपक$ !प को नह# जान पाते, तब म"
अ"ानी भला क"से जान सकता !ँ । आप !स# होइए, म" अपनी साम$य& क"
अनुसार आपक$ पूजा क"ँगा । मेरी र"ा क"िजये और पहले क" समान मेरी
नौका को धन से भर दीिजये ।” उसक$ भि#यु# वचन सुनकर भगवानजी
!स# हो गए और उसक$ इ"छानुसार वर देकर अंत$या'न हो गए । तब ससुर
व जामाता दोन$ ने नाव पर आकर देखा िक नाव धन से प"रपूण& है । िफर
वह भगवान स"यनारायणजी का पूजन कर जामाता सिहत अपने नगर को
चला । जब वह अपने नगर क" िनकट प"ँचा तब उसने एक द"त को अपने
घर भेजा । द"त ने वै#य क" घर जाकर उसक$ प"नी को नम#कार िकया और
कहा - “आपक$ पित अपने दामाद सिहत इस नगर क" समीप आ गए ह" ।”
लीलावती और उसक$ क"या कलावती उस समय भगवान का पूजन कर रही
थ" । द"त का वचन सुनकर साधु क" प"नी ने बड़े हष# क" साथ स"यदेव का
पूजन पूण$ िकया और अपनी पु#ी से कहा - “म" अपने पित क" दश#न को
जाती !ँ, तू भी काय$ पूण$ कर शी# आना ।” परंतु कलावती पूजन एवं !साद
छोड़कर अपने पित क" दश#न क" िलए चली गई । पर#तु उसको पित का
दश#न !ा# नह# !आ । नौका को ड"बा !आ तथा क"या को रोती !ई देख
वै#य द"#खत हो बोला- “हे !भु ! मुझसे या मेरे प"रवार से जो भूल !ई है
उसे !मा करो ।” उसक$ दीन वचन सुनकर स"यदेव भगवान !स# हो गए ।
आकाशवाणी !ई - “हे वै#य ! तेरी क"या !साद छोड़कर आई है, इसका
पित अ"#य !आ है । य"द वह घर जाकर !साद खाकर लौटे तो इसका
पित अव#य िमलेगा ।” आकाशवाणी सुनकर कलावती ने घर प"ँचकर
पूजनकर !साद खाया और िफर आकर अपने पित क" दश#न िकए ।
त"प$चात वै#य ने वह# बंध-
ु बांधव& सिहत स"यदेव का िविधपूव&क पूजन
िकया । वह इस लोक का सुख भोगकर अंत म" !वग$लोक को गया ।

॥ इित !ी !क#दपुराणे रेवाख&डे स"यनारायण !त कथायाम् चतुथ% अ"यायः स"पूण&म् ॥

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पंचम अ"याय

!ी सूतजी ने आगे कहा - “हे ऋिषय% ! म" एक और भी कथा कहता !ँ ।


!जापालन म" लीन तुंग%वज नाम का एक राजा था । उसने भगवान स"यदेव
का !साद !याग कर ब"त द"ःख पाया । एक समय राजा वन म" व"य पशुओं
को मारकर बड़ क" वृ# क" नीचे आया । वहाँ उसने !वाल% को भि# भाव से
बंध-
ु बांधव& सिहत !ी स"यनारायणजी का !त पूजन करते देखा, परंतु राजा
देखकर भी अिभमानवश न तो वहाँ गया और न ही स"यदेव भगवान को
नम#कार ही िकया । जब !वाल% ने भगवानजी का !साद उनक$ सामने रखा
तो वह !साद !याग कर अपने नगर को चला गया । नगर म" प"ँचकर उसने
देखा िक उसका सब क"छ न" हो गया है । वह समझ गया िक यह सब
भगवान स"यदेव ने ही िकया है । तब वह उसी !थान पर वापस आया और
!वाल% क" समीप गया और िविधपूव&क पूजन कर !साद खाया तो
स"यनारायणजी क" क"पा से सब-क"छ पहले जैसा ही हो गया और दीघ$काल
तक सुख भोगकर !वग$लोक को चला गया । जो मनु$य इस परम द"ल$भ !त
को करेगा !ी स"यनारायण भगवान क" क"पा से उसे धन-धा#य क" !ाि$
होगी । िनध$न धनी, बंदी बंधन से मु# होकर िनभ$य हो जाता है । संतानहीन
को संतान !ा# होती है तथा सब मनोरथ पूण$ होकर अंत म" वह बैक$%ठ धाम
को जाता है । िज#ह%ने पहले इस !त को िकया अब उनक$ द"सरे ज"म क"
कथा भी सुिनए । शतानंद नामक !ा#ण ने सुदामा क" !प म" ज"म लेकर
!ीक$%ण क" भि# कर मो# !ा# िकया । उ"कामुख नाम क" महाराज, राजा
दशरथ बने और !ी रंगनाथ का पूजन कर बैक$%ठ को !ा# !ए । साधु नाम
क" वै#य ने धमा$%मा व स"य$ित' राजा मोर$वज बनकर अपने पु# को आरे
से चीरकर मो# को !ा# !आ । महाराज तुंग%वज !वयं-भू मनु !ए । उ"ह$ने
ब"त से लोग$ को भगवान क" भि# म" लीन कर मो# !ा# िकया ।
लकड़हारा भील अगले ज"म म" गुह नामक िनषाद राजा !आ, िजसने भगवान
!ीराम क" चरण$ क" सेवा कर मो# !ा# िकया ।

॥ इित !ी !क#दपुराणे रेवाख&डे स"यनारायण !त कथायाम् पंचमो अ"यायः स"पूण&म् ॥

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!ी स"यनारायण जी क" आरती

ऒम् जय ल"मी रमणा, !वामी जय ल"मी रमणा,


स"यनारायण !वामी, जन पातक हरणा ।।
र"न जिडत िसंघासन, अ"#त छिब राजे,
नारद करत िनरांजन, घंटा !विन बाजे ।
ऒम् जय ल"मी रमणा …।।१।।

!कट भये किल कारन, ि"ज को दरस !दयो,


बूढ़ो !ा#ण बनकर, क"चन महल िकयो ।
ऒम् जय ल"मी रमणा …।।२।।

द"ब$ल भील कराल, िजनपर क"पा करी,


चं#चूड़ एक राजा, ितनक% िवपित हरी ।
ऒम् जय ल"मी रमणा …।।३।।

वै#य मनोरथ पायो, !"ा तज दीनी,


सो फल भो#यो !भुजी, िफर !तुित क"#ह% ।
ऒम् जय ल"मी रमणा ।।४।।

भाव भि# क" कारण, िछन-िछन !प धरयो,


!"ा धारण िक#ही, ितनक% काज सरयो ।
ऒम् जय ल"मी रमणा …।।५।।

!वाल बाल संग राजा, बन म" भि# करी,


मन वांिछत फल दी#हो, दीनदयाल हरी ।
ऒम् जय ल"मी रमणा …।।६।।

चढ़त !साद सवायो, कदली फल मेवा,


धूप-दीप-तुलसी से, राजी स"यदेवा ।
ऒम् जय ल"मी रमणा …।। ७ ।।

!ी स"यानरायण जी क" आरती जो कोई नर गावे,


कहत िशवान&द !वामी मनवांिछत फल पावे ।
ऒम् जय ल"मीरमणा ।।८।।
सेवा म"  Sevaa  Mein  :  Pooja,  Ishwar  and  Jay  Sharma   10  

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