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ॐ नमः शवाय

मृ
तस ीवन कवच भगवान् राम केगुव स ऋ ष ारा र चत भगवान्
शव क वाणी है । व स महाराज ने अपनेश य केसम यह जस
कार सु
नाया, यहाँव णत है
। इस भगवान्शव केभ - भ व प से
सम त दशा म वयं क र ा करने का अनुरोध है
। अपनेशरीर के
सम त अं
ग के साथ-साथ पु-प नी क भी र ा करनेक वनती है

यह तो दे वता केलये भी लभ है । मरणास को काल के


गाल सेयह तो बचा सकता है । जो इसका पाठ करता हैया फर इस
कवच को सु नता या सु
नाता है , उसक अकाल मृ युनह होती। इस कवच
क सह आवृ को पु र रण कहा गया है अथात् जो साधक इसका एक
हज़ार बार पाठ कर लेता है, उसकेलये यह कवच स हो जाता है । नय
भगवान्शव केपू जन केबाद ातःकाल इसका पाठ लोक-परलोक दोन
को सु
खदायक बना दे ता है। उसेकसी रोग का भय नह रहता।

इसक फल ु त म कहा गया है,


जो अपने मन को एका करकेन य इसका पाठ करता है , सु
नता है
अथवा सर को सु नाता है
, वह अकाल मृयु को जीतकर पूण आयु का
उपभोग करता है। जो साधक अपने हाथ सेमरणास केशरीर का
पश करतेए इस मृ तसं जीवन कवच का पाठ करता है, उस आस मृ यु
ाणी केभीतर चेतना आ जाती है। यु आर भ होने केपूव जो इस
मृतसंजीवन कवच का २८ बार पाठ करकेरणभू म म उप थत होता है ,
वह उस समय सभी श ु से अ य रहता है। य द दे
वता केभी साथ
यु छड़ जाए तो उसम उसका वनाश ा भी नह कर सकते , वह
वजय ा त करता है।

आप समझ सकते ह क यह कवच कतना श शाली और भावशाली


है
। सु
गम ान संगम केइस पो ट म मूल ोक गीता े
स गोरखपु
र से
का शत शव तो र नाकर पर आधा रत ह।

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❀ मृ
तस ीवन कवच ❀
(❑➧ मू
ल ोक ❍ लघु
श द)

❑➧एवमारा य गौरीशंदे
वंमृ
यु येरम्।
मृ
तस ीवनं नाम कवचंजपे त्
सदा।।१।।
❍ एव मारा य गौरीशं
दे
वंमृ
यु येरम् ।
मृ
त स ीवनं नाम
कवचंजपे त्सदा।।१।।

❑➧सारात् सारतरंपु यंगुाद्


गुतरंशुभम्।
महादेव य कवचं मृतस ीवना भधम् ।।२।।
❍ सारात् सारतरंपु यं
गुाद् गुतरं शु
भम् ।
महा दे
व य कवचं
मृ
त स ीवना भधम् ।।२।।

❑➧समा हतमना भू वा शृ
णुव कवचंशु
भम् ।

वै
तद् द कवचं रह यं
कु सवदा।।३।।
❍ समा हत मना भू वा
शृ
णु व कवचंशु
भम्।

वै
तद् द कवचं
रह यंकु सवदा।।३।।

❑➧जराभयकरो य वा सवदे व नषे


वतः।
मृयु यो महादेवः ा यां
मां
पातु
सवदा।।४।।
❍ जरा भयकरो य वा
सव देव नषेवतः।
मृयु यो महादेवः
ा यांमां
पातु
सवदा।।४।।

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❑➧दधानः श मभयां मु खः षड्भु
जः भुः।
सदा शवोऽ न पी मामा ने यां
पातु
सवदा।।५।।
❍ दधानः श मभयां
मु
खः षड्भुजः भुः।
सदा शवो ऽ न पी
मामा ने
यांपातुसवदा।।५।।

❑➧अ ादशभु जोपेतो द डाभयकरो वभुः।


यम पी महादे
वो द ण यां सदाऽवतु
।।६।।
❍ अ ादश भुजोपेतो
द डा भयकरो वभुः।
यम पी महादे
वो
द ण यांसदाऽ वतु।।६।।

❑➧खड्गाभयकरो धीरो र ोगण नषे


वतः।
र ा पी महे
शो मां
नैऋ यां
सवदाऽवतु
।।७।।
❍ खड्गा भयकरो धीरो
र ोगण नषेवतः।
र ा पी महे
शो मां
नै
ऋ यां
सवदाऽ वतु।।७।।

❑➧पाशाभयभु जः सवर नाकर नषे वतः।


व णा मा महादेवः प मे मां
सदाऽवतु
।।८।।
❍ पाशा भय भु जः सव
र नाकर नषेवतः।
व णा मा महादेवः
प मे मांसदा ऽवतु।।८।।

❑➧गदाभयकरः ाणनायकः सवदाग तः।


वाय ां
मा ता मा मां
शङ्
करः पातु
सवदा।।९।।
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❍ गदा भयकरः ाण
नायकः सवदा ग तः।
वाय ांमा ता मा मां
शङ्करः पातु
सवदा।।९।।

❑➧शङ् खाभयकर थो मां नायकः परमेरः।


सवा मा तर द भागे
पातु मां
शङ्करः भुः।।१०।।
❍ शङ् खा भय कर थो मां
नायकः परमेरः।
सवा मा तर द भागे
पातु
मांशङ् करः भुः।।१०।।

❑➧शू लाभयकरः सव व ानाम धनायकः।


ईशाना मा तथै
शा यां
पातुमां
परमेरः।।११।।
❍ शूला भयकरः सव
1

व ा नाम धनायकः।
ईशाना मा तथै
शा यां
पातुमांपरमेरः।।११।।

❑➧ऊ वभागे पी व ा माऽधः सदाऽवतु ।


शरो मेशङ्
करः पातुललाटं
च शे
खरः।।१२।।
❍ ऊ व भागे पी
व ा माऽधः सदाऽ वतु

शरो मेशङ्
करः पातु
ललाटंच शे खरः।।१२।।

❑➧ ूम यंसवलोकेश नेोऽवतु
लोचने ।
यु
ूमंग रशः पातुकण पातु
महेरः।।१३।।
❍ ूम यंसव लोके शस्
नेोऽ वतुलोचने

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ूु
य मंग रशः पातु
कण पातुमहेरः।।१३।।

❑➧ना सकांमेमहादे
व ओ ौ पातु वृ
ष वजः।
ज ांमे
द णामू तद तान्मेग रशोऽवतु
।।१४।।
❍ ना सकां
मेमहादेव
ओ ौ पातु
वृष वजः।
ज ांमे
द णा मू तर्
द तान्
मेग रशो ऽवतु।।१४।।

❑➧मृयु यो मुखं पातुक ठं


मेनागभूषण।
पनाक म करौ पातु शू ली दयंमम।।१५।।
❍ मृयु यो मुखंपातु
क ठंमेनाग भू
षण।
पनाक म करौ पातु
शूली दयं मम।।१५।।

❑➧प चव ः तनौ पातु उदरंजगद रः।


ना भ पातुव पा ः पा मे पावतीप तः।।१६।।
❍ प च व ः तनौ पातु
उदरंजगद रः।
ना भ पातुव पा ः
पा मे पावती प तः।।१६।।

❑➧क ट यंगरीशो मे पृंमेमथा धपः।


गुंमहेरः पातुममो पातुभै
रवः।।१७।।
❍ क ट यंगरीशो मे
पृंमेमथा धपः।
गुंमहेरः पातु
ममो पातुभैरवः।।१७।।

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❑➧जानु नी मे
जग ता जङ्
घेमे
जगद बका।
पादौ मेसततंपातु
लोकव ः सदा शवः।।१८।।
❍ जानु नी मे
जग ता
जङ्घे मेजगद बका।
पादौ मेसततंपातु
लोकव ः सदा शवः।।१८।।

❑➧ गरीशः पातु
मेभाया भव पातु
सु
तान्मम।
मृ
यु यो ममायु यंच ं मेगणनायकः।।१९।।
❍ गरीशः पातुमेभाया
भव पातुसु
तान्मम।
मृ
यु यो ममा यु यं
च ं मेगण नायकः।।१९।।

❑➧सवा ं मेसदा पातुकालकालः सदा शवः।


एत ेकवचं पुयंदेवतानांच लभम्।।२०।।
❍ सवा ंमेसदा पातु
काल कालः सदा शवः।
एत ेकवचं पुयं
दे
वतानां
च लभम् ।।२०।।

❑➧मृतस ीवनं ना ना महादे


वे
न क ततम् ।
सह ावतनं चा य पुर रणमी रतम्।।२१।।
❍ मृत स ीवनं ना ना
महादे
वे
न क ततम् ।
सह ा वतनंचा य
पु
र रण मी रतम्।।२१।।

❑➧यः पठेछृ
णुया यंावये त्
सु
समा हतः।
सोऽकालमृयु
ंन ज य सदायु
यंसम ु
ते।।२२।।

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❍ यः पठेछृ
णुया यं
ावयेत्
सु
समा हतः।
सोऽकाल मृयु
ंन ज य
सदा युयं
सम ुते
।।२२।।

❑➧ह ते
न वा यदा पृ्
वा मृ
तं
स ीवय यसो।
आधयो ाधय त य न भव त कदाचन।।२३।।
❍ ह ते
न वा यदा पृ्
वा
मृ
तंस ीव य यसो।
आधयो ाध य त य
न भव त कदाचन।।२३।।

❑➧कालमृ यु
म प ा तमसौ जय त सवदा।
अ णमा दगुणैय लभते मानवो मः।।२४।।
❍ काल मृ युमप ात
मसौ जय त सवदा।
अ णमा द गु
णैय
लभते मानवो मः।।२४।।

❑➧युार भे प ठ वेदम ा वश तवारकम्



युम येथतः श ु ः स ः सवन यते ।।२५।।
❍ युा र भेप ठ वेद
म ा वश त वारकम्।
यु म येथतः श ु ः
स ः सवन यते ।।२५।।

❑➧न ाद न चा ा ण यं कु
व त त य वै

वजयंलभते दे
वयुम ये ऽ प सवदा।।२६।।
❍न ाद न चा ा ण
यं
कुव त त य वै।

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वजयंलभते दे

यु म ये
ऽ प सवदा।।२६।।

❑➧ ात थाय सततं यः पठे


त्
कवचंशु
भम्।
अ यं लभतेसौ य मह लोकेपर च।।२७।।
❍ ात थाय सततं
यः पठे
त्कवचंशु
भम्।
अ यं लभतेसौ य
मह लोके पर च।।२७।।

❑➧सव ा ध व नमुः सवरोग वव जतः।


अजरामरणो भू वा सदा षोडश वा षक।।२८।।
❍ सव ा ध व नमुः
सव रोग वव जतः।
अजरामरणो भू वा
सदा षोडश वा षक।।२८।।

❑➧ वचर य खलाँ लोकान्ा य भोगां लभान्



त मा ददंमहागो यं कवचं समु
दा तम्

मृ
तस ीवनं ना ना दै
वतैर प लभम्।।२९।।
❍ वचर य खलाँ ल् लोकान्
ा य भोगां लभान् ।
त मा ददंमहा गो यं
कवचं समु
दा तम् ।
मृ
त स ीवनं ना ना
दै
व तैर प लभम् ।।२९।।

इ त मह षव स वर चतं
मृ
तस ीवन कवचं
स पू
णम्
।।

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