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चोल वंश या चोल साम्राज्य

एक परिचय- कृष्णा तथा तुंगभद्रा नदियों से लेकि कुमािी अन्तिीप तक का दवस्तृत भूभाग प्राचीन काल में तदमल प्रिे श
का ननमााण किता था । इस प्रिेश में तीन प्रमुख िाज्य थे-चोल, चेि तथा पाण्ड्य । अदत-प्राचीन काल में इन तीनों िाज्यों का अस्स्तत्व
िहा है । अशोक के तेिहवें शशलालेख में इन तीनों िाज्यों का स्वतन्र रूप से उल्लेख दकया गया है जो उसके साम्राज्य के सुदूि िशिण
में स्थित थे । कालान्ति में चोलों ने अपने शलये एक दवशाल साम्राज्य िानपत कि शलया । उनके उत्कर्ा का केन्द्र तंजौि था औि यही
चोल साम्राज्य की िाजधानी थी ।
चोलों के इदतहास की जानकािी के साधन/स्रोत
सानहत्य: चोल िाजवंश का इदतहास जानने के शलए अनेक सानहत्त्यक स्रोतों का उपयोग किते हैं । इनमें सवाप्रथम संगम
सानहत्य (100-250 ई॰) का उल्लेख दकया जा सकता है । उसके अध्ययन से प्रािस्थभभक चोल शासक करिकाल की उपलत्धधयों का
ज्ञान प्राप्त किते हैं । पाण्ड्य तथा चेि िाजाओं के साथ उसके सभबन्धों का भी ज्ञान होता है । जयंगोण्ड्डाि के कशलंगत्तूपिाशण से
कुलोतुंग प्रथम की वंश-पिभपिा तथा उसके समय में कशलंग पि दकये जाने वाले आक्रमण का परिचय दमलता है । ओट्टक्कुट्टम् की
दवक्रमचोल, कुलीतुंग दितीय तथा िाजिाज दितीय के सभबन्ध में िची गयी उलायें (श्ुंड्गाि प्रधान जीवन-चरित) उनके दवर्य में
कुछ ऐदतहाशसक बातें बताती हैं ।
शेदक्कलाि िािा िशचत ‘पेरियपुिाणम्’, जो कुलोत्तुंग दितीय के काल में शलखा गया था, के अध्ययन से तत्कालीन धार्ममक
िशा का ज्ञान प्राप्त होता है । बुधदमर के व्याकिण ग्रन्थ ‘वीिशोशलयम्’ से वीििाजेन्द्र के समय की कुछ ऐदतहाशसक घटनाओं का
ज्ञान दमलता है । बौद्धग्रन्थ महावं श से पिान्तक की पाण्ड्य दवजय तथा िाजेन्द्र प्रथम की लंका दवजय का दवविण ज्ञात होता है ।
अशभले ख: चोल इदतहास के सवाादधक प्रामाशणक साधन अशभलेख है जो बड़ी संख्या में प्राप्त हुये हैं । इनमें संस्कृत,
तदमल, तेलगू तथा कन्नड भार्ाओं का प्रयोग हुआ है । दवजयालय (859-871 ई॰) के बाि का चोल इदतहास मुख्यतः अशभलेखों से
ही जाना जाता है । िाजिाज प्रथम ने अशभलेखों िािा अपने पूवाजों के इदतहास को संकशलत किने तथा अपने काल की घटनाओं
औि दवजयों को लेखों में जोड़ने की प्रथा प्रािभभ दकया ।
इसका अनुकिण बाि के िाजाओं ने दकया । उसके समय के लेखों में लेडन िानपर तथा तन्जोि मत्न्िि में उत्कीणा लेख
उल्लेखनीय हैं । तंजोि के लेख उस मत्न्िि की व्यविा पि प्रकाश डालते हैं । िाजेन्द्र प्रथम के समय के प्रमुख लेख दतरुवालंगाडु
तथा किन्डै िानपर है जो उसकी उपलत्धधयों का दवविण िेते हैं ।
ऐदतहाशसक िृदि से सवाादधक महत्वपूणा लेख िाजिाज तृतीय के समय का दतरुवेत्न्िपुिम् अशभलेख है । यह चोल वंश के
उत्कर्ा का तथ्यात्मक दवविण प्रस्तुत किता है । इसमें होयसल िाजाओं के प्रदत कृतज्ञता भी ज्ञानपत की गयी है त्जनकी सहायता
से चोलवंश का पुनरुद्धाि सभभव हो सका था । िाजादधिाज प्रथम के समय के मशणमंगलम् अशभलेख से उसकी लंका दवजय तथा
चालुक्यों के साथ संघर्ा की सूचना दमलती है । यह वीि िाजेन्द्र की उपलत्धधयों पि भी प्रकाश डालता है ।
शसक्के: लेखों के अदतरिक्त धवलेश्विम् से चोलों के स्वणा शसक्कों का एक ढे ि दमला है । इनसे उनकी समृदद्ध का ज्ञान होता है ।
िाजादधिाज प्रथम के कुछ शसक्के लंका से प्राप्त हुये है त्जनसे वहीं उसके अदधकाि की पुदि होती है । िशिणी कनािा से उसके कुछ
िजत शसक्के दमले हैं । सामान्यतः चोल शसक्कों से सभपूणा िशिण भाित के ऊपि उनका आदधपत्य प्रकट होता है ।
दविे शी दवविण: चीनी स्रोतों से चोल तथा चीनी िाजाओं के बीच िाजनदयक सभबन्ध की सूचना दमलती है । चीन की एक
अनुश्ुदत के अनुसाि िाजिाज प्रथम तथा कुलीतुंग प्रथम के काल में एक दूत-मण्ड्डल चीन की यारा पि गया था । चीनी यारी चाऊ-
जू-कूआ (1225 ई॰) के दवविण से चोल िेश तथा वही की शासन व्यविा से सभबत्न्धत कुछ महत्वपूणा बातें ज्ञात हो जाती है ।
पेिीप्लस तथा टालमी के ग्रन्थ में भी चोल िेश का उल्लेख दमलता है। सातवीं शती में आया चीनी ह्वेनसांग िेश का भ्रमण किते हुए
चोल िाज्य में भी गया था. वह शलखता है –“चोल िाज्य 2400 या 2500 ली में फैला हुआ है औि उसकी िाजधानी का घेिा 10 ली

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है. िेश उजाड़ है औि ज्यािाति भाग में िलिल औि वन हैं. जनसंख्या बहुत कम है औि डाकू लूटमाि बहुत किते हैं.” चूूँदक ह्वेनसांग
ने अपने दवविण में दकसी भी चोल िाज्य के नाम का उल्लेख नहीं दकया है इसशलए अदधकांश इदतहास यह ननष्कर्ा ननकालते हैं
दक उस समय चोल िाज्य महत्त्वपूणा नहीं था औि संभवत: वह िाज्य पल्लवों के अधीन था. पल्लवों की शशक्त नि होने पि चोल
िाज्य ने पुनः प्रगदत की.

चोल िाजवंश का िाजनैदतक इदतहास


चोल िाजवंश का प्रािस्थभभक इदतहास अन्धकािपूणा है । संगम युग (लगभग 100-250 ई॰) में चोलवंशी निेश िशिण में
शशक्तशाली थे। इस काल के िाजाओं में करिकाल (लगभग 190 ई॰) का नाम सवाादधक उल्लेखनीय है । संगम सानहत्य में उसकी
उपलत्धधयों का दवविण दमलता है । वह एक वीि योद्धा था त्जसने समकालीन चेि एवं पाण्ड्य िाजाओं को िबाकि िखा । उसके
बाि चोलों की िाजनीदतक शशक्त िीण हो गयी तथा नवीं शताधिी ईस्वी के मध्य तक उनका इदतहास अन्धकािपूणा हो गया । यह
संभवतः तदमल िेश पि पहले कलभ्रों तथा नफि पल्लवों के आक्रमणों के कािण हुआ ।
नौवीं शती के मध्य में (850 ई॰ के लगभग) चोलसत्ता का पुनरुत्थान हुआ । इस समय दवजयालय नामक एक शशक्तशाली
चोल िाजा को पल्लवों के सामन्त के रूप में उिैयूि (नरचनापल्ली) के समीपवती िेर में शासन किता हुआ पाते है । उिैयूि ही चोलों
का प्राचीन ननवास-िान था । इस समय पल्लवों तथा पाण्ड्यों में ननिन्ति संघर्ा चल िहे थे । पाण्ड्यों की ननबाल स्थिदत का लाभ
उठाकि दवजयालय ने तंजोि पि अदधकाि जमा शलया तथा वहाूँ उसने दुगाा िेवी का एक मत्न्िि बनवाया । दवजयालय ने लगभग
871 ईस्वी तक िाज्य दकया ।
i. आदित्य प्रथम:
यह दवजयालय का पुर तथा उत्तिादधकािी था । प्रािभभ में वह पल्लव निेश अपिात्जत का सामन्त था तथा उसने
श्ीपुिंदबयम् के युद्ध में अपने स्वामी को पाण्ड्ियों के दवरुद्ध सहायता प्रिान की थी । इस युद्ध में पाण्ड्यों की शशक्त नि हो गयी पिन्तु
अपिात्जत अपनी दवजयी का उपभोग नहीं कि सका । आदित्य प्रथम ने उसकी हत्या कि िी तथा तोण्ड्डमण्ड्डलम् को जीतकि अपने
िाज्य में दमला शलया । इसके वाि उसने पाण्ड्यों से कोंगू प्रिेश छीन शलया तथा पशिमी गडगों को अपनी अधीनता में िहने के शलए
बाध्य दकया । उसने अपने पुर पिान्तक का दववाह चेि वंश की िाजकुमािी के साथ दकया । आदित्य ने कावेिी निी के िोनों दकनािों
पि शैव मत्न्िि बनवाये थे ।
ii. पिान्तक प्रथम:
यह आदित्य प्रथम का पुर था औि उसकी मृत्यु के बाि शासक बना । उसने अपने नपता की साम्राज्यवािी नीदत को जािी
िखा। उसने मदुिा के पाण्ड्य शासक िाजशसंह दितीय पि आक्रमण दकया । पाण्ड्य निेश ने शसंहल के िाजा की सहायता प्राप्त की
पिन्तु पिान्तक ने िोनों की सस्भमशलत सेनाओं को बेघि के युद्ध में हिा दिया । मदुिा पि पिान्तक का अदधकाि हो गया तथा उसने
‘मदुिैकोण्ड्ड’ की उपादध ग्रहण की । उसने पल्लवों की बची-खुची शशक्त को समाप्त दकया, औि बैदुभबों तथा बाूँणों को जीता । इस
प्रकाि 930 ई॰ तक पिान्तक ने पशिमी घाट के चेि-िाज्य को छोड् कि उत्तिी पेन्नाि से कुमािी अन्तिीप तक के सभपूणा प्रिेश पि
अपना एकछर अदधकाि िानपत कि शलया । पिन्तु पिान्तक को अपने शासन-काल के अन्त में िाष्रकूटों से पिात्जत होना पड़ा ।
िाष्रकूट निेश कृष्ण तृतीय ने गड्गिाज्य को जीतने के बाि चोल िाज्य पि आक्रमण दकया । तक्कोलम् के युद्ध में उसने चोल सेना
को बुिी तिह पिास्त कि तोण्ड्डमण्ड्डलम् पि अदधकाि कि शलया । इससे पिान्तक की प्रदतष्ठा को गहिा आघात पहुूँचा ।
उसका साम्राज्य शछद्र-शभन्न हो गया क्योंदक उत्ति तथा िशिण के सामन्तों ने इस दवपशत्त का लाभ उठाते हुए अपनी-अपनी
स्वाधीनता घोदर्त कि िी । पिान्तक की मृत्यु के बाि लगभग तीस वर्षं (955-985 ई॰) का काल चोल िाज्य के शलए दुबालता एवं
अव्यविा का काल िहा । उसके उत्तिादधकािी मन्ििादित्य की रुशच धार्ममक कायषं में अदधक थी । उसकी मृत्यु के समय (957 ई॰
के लगभग) चोल िाज्य अत्यन्त संकुशचत हो गया । इसके बाि पिान्तक दितीय 957-973 ई॰) िाजा बना । उसने अपने पुर आदित्य
दितीय को युविाज बनाया । उसने वीि पाण्ड्य को पिात्जत दकया तथा उसकी सेना ने शसंहल पि भी आक्रमण दकया । पिान्तक
दितीय के शासन-काल के अन्त तक चोली ने िाष्रकूटों से तोण्ड्डमण्ड्डलम् को जीतकि अपने अदधकाि में कि शलया ।

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iii. िाजिाज प्रथम:
चोल साम्राज्य की महत्ता का वास्तदवक संिापक पिान्तक दितीय (सुन्िि चोल) का पुर अरिमोशलवमान् था जो 985 ई॰
के मध्य ‘िाजिाज’ के नाम से गद्दी पि बैठा । उसका तीस वर्ीय शासन (985-1015 ई॰) चोल िाज्य का सवाादधक गौिवशाली युग
है ।वस्तुतः िाजिाज के समय से चोल िाज्य का इदतहास समस्त तदमल िेश का इदतहास बन जाता है । वह एक साम्राज्यवािी
शासक था त्जसने अपनी अनेकानेक दवजयों के फलस्वरूप लघुकाय चोल िाज्य को एक दवशालकाय साम्राज्य में परिणत कि
दिया ।
िाजिाज की उपलत्धधयां:
िाज्यािोहण के बाि िाजिाज ने कुछ वर्षं तक अपनी आन्तरिक स्थिदत सुिृढ़ दकया । तत्पिात् उसने दिस्ववजय के ननदमत्त
अपना सैननक अशभयान प्रािभभ दकया ।
इनका दवविण इस प्रकाि है:
(a) केिल, पाण्ड्य तथा शसंहल की दवजय:
िाजिाज ने िशिण में केिल, पाण्ड्य तथा शसंहल िाजाओं के दवरुद्ध अशभयान दकया । सबसे पहले उसने केिल के ऊपि
आक्रमण कि वहाूँ के िाजा िदववमाा को नरवेन्द्रम् में पिात्जत दकया तथा इस दवजय के उपलक्ष्य में ‘काण्ड्डलूि शालैकलमरुत्त’ की
उपादध ग्रहण की । इसके बाि उसका पाण्ड्य िाज्य पि आक्रमण हुआ । यही का िाजा अमिभुजंग था । दतरुवालगाडु ताम्रपरों से
सूशचत होता है दक िाजिाज ने अमिभुजंग को पिात्जत कि बन्िी बना शलया, उसकी िाजधानी मदुिा को जीत शलया तथा दवशलन्ि
के दुगा पि अपना अदधकाि कि शलया । िाजिाज के शासन के बीसवें वर्ा का एक लेख दमलता है त्जससे सूशचत होता है दक उसने
मदुिा नगि को ध्वस्त कि दिया, कोल्लम्, कोल्लिेश तथा कोण्ड्डु गोलूि के िाजाओं को पिात्जत दकया औि उसने समुद्र के शासक
से अपनी सेवा किवाई थी ।
केिल तथा पाण्ड्य िाज्यों को जीतने के पिात् िाजिाज ने शसंहल की ओि ध्यान दिया । यहाूँ का शासक मनहन्ि (महेन्द्र)
पंचम था । वह केिल तथा पाण्ड्य शासकों का दमर था तथा उसने िाजिाज के दवरुद्ध केिल निे श भास्किवमाा का साथ दिया था ।
नीलकण्ड्ठ शास्त्री का अनुमान है दक इन तीनों िाज्यों ने चोल निे श के दवरुद्ध एक संघ बना शलया था । अतः केिल तथा पाण्ड्य की
दवजय के पिात् िाजिाज शसंहल की ओि उन्मुख हुआ । उसने एक नौसेना के साथ शसंहल पि चढाई की । शसंहलनिेश मनहन्ि पंचम
पिात्जत हुआ । चोल सेना ने अनुिाधापुि को ध्वस्त कि दिया तथा शसंहल िीप के उत्तिी भाग पि िाजिाज का अदधकाि हो गया ।
दतरुवालंगाडु ताम्रपरों में इस सफलता का काव्यात्मक दवविण इस प्रकाि दमलता है- ‘िाम ने बन्ििों की सहायता से सागि
के आि-पाि एक पुल बनाया तथा घड़ी कनठनाई से लंका के िाजा का बध दकया । दकन्तु यह शासक िाम से भी अदधक प्रतापी
शसद्ध हुआ क्योंदक उसकी शशक्तशाली सेना ने जलपोतों से समुद्र पाि दकया तथा लड़ा के िाजा को जला दिया ।’ शसंहल पि
अदधकाि किने के बाि िाजिाज ने वहाूँ अपना एक प्रान्त िानपत दकया । चोलों ने अनुिाधापुि के िान पि पोलोन्नरुव को अपनी
िाजधानी बनाई तथा इसका नाम ‘जननाथ मंगलम्’ िख दिया । िाजिाज ने शसंहल में भगवान शशव के कुछ मत्न्ििों का ननमााण भी
किवाया था । िाजिाज ने उपिोक्त प्रिेशों को संभवतः 989-993 ई॰ के बीच जीता था ।
(b) पशिमी गंगों की दवजय:
शसंहल को जीतने के बाि िाजिाज ने मैसूि िे र के पशिमी गंगों को जीता । उसके शासन के छठें वर्ा का एक लेख
कनााटक से दमला है त्जसमें उसे ‘चोल नािायण’ कहा गया है । इससे पता चलता है दक उसने नोलभबों तथा गंगों को पिात्जत दकया
था । इस प्रकाि उसका गंगवाडी, तदडगैवादड तथा नोलभबवाडी के ऊपि अदधकाि हो गया ।
(c) कल्याणी के पशिमी चालुक्यों से युद्ध:
चोलनिे श उत्तम चोल के समय से ही चोलों तथा पशिमी चालुक्यों में अनबन थी । चालुक्य निेश तैलप दितीय ने संभवतः
उत्तम चोल को पिात्जत भी कि दिया था । तैलप के वाि सत्याश्य चालुक्य वंश की गद्दी पि बैठा । िाजिाज ने उसके समय में
चालुक्यों पि आक्रमण कि दिया । दतरुवालंगाडु ताम्रपरों से पता चलता है दक सत्याश्य िाजिाज की दवशाल सेना का सामना नहीं
कि सका तथा युद्ध िेर से भाग खड़ा हुआ । किन्िै िानपर से पता चलता है दक चोल हादथयों ने तुंगभद्रा के तट पि भािी उत्पात
मचाया तथा चालुक्य सेनापदत केशव युद्ध में बन्िी बना शलया गया। िाजेन्द्र के कन्याकुमािी लेख से भी पता चलता है दक िाजिाज
ने चालुक्यों को पिात्जत दकया था । सत्याश्य के होट्टि लेख (1007 ई॰) से सूशचत होता है दक िाजिाज के पुर िाजेन्द्र चोल ने नौ

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लाख की दवशाल सेना लेकि िोनूि (बीजापुि त्जला) तक के प्रिेश को िौंि डाला था । उसने पूिे प्रिेश में भािी लूट-पाट की, स्स्त्रयों,
बच्चों तथा ब्राह्मणों का संहाि दकया तथा कई दुगषं को नि कि दिया था । दकन्तु बाि में सत्याश्य ने चोल सेनाओं को खिेड़ दिया
तथा अपने िाज्य पि पुन अदधकाि कि शलया । इस प्रकाि इस अशभयान में चोलों को अतुल सभपशत्त दमली । चोल िाज्य की उत्तिी
सीमा तुंगभद्रा निी तक दवस्तृत हो गयी ।
(d) वेंगी के पूवी चालुक्य िाज्य में हस्तिेप:
िाजिाज के समय में वेंगी िाज्य की आन्तरिक स्थिदत अत्यन्त संकटपूणा थी । 973 ई॰ के लगभग वहाूँ चोडभीम ने िानाणाव
की हत्याकि शसंहासन पि अदधकाि जमा शलया तथा उसके िो पुरों-शशक्तवमाा तथा दवमलादित्य-को वेंगी से ननकाल दिया । इन्होंने
िाजिाज के ििबाि में शिण ली । िाजिाज ने वेंगी के अपिि िाजकुमािों (शशक्तवमान् एवं दवमलादित्य) को भीम के दवरुद्ध संििण
दिया । भीम ने वेंगी में अपनी स्थिदत सुिृढ़ किने के बाि तोण्ड्डमण्ड्डम् पि आक्रमण कि दिया । िाजिाज ने उसे पिात्जत कि बन्िी
बना शलया तथा शशक्तवमान् को वेंगी का िाजा बनाया । अब वेंगी उसका संिशित िाज्य बन गया । िाजिाज की इस सफलता से िुधध
होकि कल्याणी के चालुक्य निेश सत्याश्य ने 1006 ई॰ के लगभग वेंगी पि आक्रमण कि दिया । िाजिाज ने उसके दवरुद्ध िो
सेनायें भेजी । प्रथम सेना का नेतत्ृ व उसके पुर िाजेन्द्र ने दकया तथा उसने पशिमी चालुक्य िाज्य पि आक्रमण दकया ।
इस सेना ने बनवासी पि अदधकाि कि शलया तथा मान्यखेट को ध्वस्त दकया । दूसिी चोल सेना ने वेंगी पि आक्रमण दकया
। वहाूँ उसने हैििाबाि के उत्ति-पशिम में कुल्पक के दुगा पि अदधकाि कि शलया । सत्याश्य को दववश होकि वेंगी छोड़ना पड़ा औि
बड़ी कनठनाई से वह अपने िाज्य को बचा पाया । चोल-सेना उसके िाज्य से अतुल सभपशत्त लेकि वापस लौटी । इस प्रकाि शशक्तवमान्
वेंगी पि शासन किता िहा, लेदकन वह पूणातया चोलों पि ही आशश्त िहा । िाजिाज ने अपनी कन्या कुन्िवां िेवी का दववाह उसके
छोटे भाई दवमलादित्य के साथ कि दिया त्जससे िोनों के सभबन्ध औि अदधक मैरीपूणा हो गये ।
वेंगी को अपना संिशित िाज्य बना लेने के बाि िाजिाज ने कशलंग िाज्य को भी जीत शलया । अपने शासन के अन्त में
िाजिाज ने मालिीव को जीतकि अपने िाज्य में दमला शलया । इस िीप की दवजय उसने अपनी शशक्तशाली नौसेना की सहायता
से की थी । अपनी दवजयों के परिणामस्वरूप िाजिाज ने एक दवशाल साम्राज्य का ननमााण दकया । उसके साम्राज्य में तुंगभद्रा निी
तक का सभपूणा िशिण भाित, शसंहल तथा मालिीव का कुछ भाग शादमल था । इस प्रकाि वह अपने समय के महानतम् दवजताओं
एवं साम्राज्य ननमााताओं में से था । अपनी महानता को सूशचत किने के शलये उसने चोल-मात्ताण्ड्ड, िाजाश्य, िाजमात्ताण्ड्ड, अरिमोशल,
चोलेन्द्रशसंह जैसी उच्च सभमानपिक उपादधयाूँ धािण कीं ।
(e) सांस्कृदतक उपलत्धधयाूँ: महान् दवजेता के साथ-साथ िाजिाज कुशल प्रशासक तथा महान् ननमााता भी था । उसने समस्त भूदम
की नाप किाई तथा उशचत कि ननधाारित दकया । दवशभन्न मण्ड्डलों में योवय अदधकारियों की ननयुशक्त की गयी । उसने एक िायी
सेना तथा दवशाल नौसेना का गठन दकया। लेखों से उसके कई सामन्तों तथा अदधकारियों की सूचना दमलती है । उसने सोने , चाूँिी
तथा ताूँबे के दवशभन्न प्रकाि के शसक्कों का प्रचलन किवाया था । िाजिाज ने अपने पुर िाजेन्द्र को युविाज बनाया तथा उसके ऊपि
शासन की कुछ त्जभमेिािी सौंप िी ।
िाजेन्द्र ने अत्यन्त कुशलतापूवाक सैननक तथा प्रशासननक िादयत्वों का ननवााह दकया । वह शशव का अनन्य भक्त था तथा
उसने अपनी िाजधानी में िाजिाजेश्वि का भव्य मत्न्िि बनवाया था । िशिणी भाित के इदतहास के वैभवशाली युग का यह आज
तक सवषत्तम स्मािक है तथा तदमल िापत्य के चिमोत्कर्ा का सवाश्ेष्ठ उिाहिण है । दकन्तु िाजा के रूप में यह सभी धमषं के प्रदत
सनहष्णु था । उसने श्ीदवजय के शैलेन्द्र शासक श्ीमाि दवजयोतुंगवमान् को नागपट्टम में एक बौद्ध दवहाि बनवाने के शलये उत्सानहत
दकया तथा स्वयं एक दवष्णु-मत्न्िि का भी ननमााण किवाया था । उसने बौद्ध दवहाि को ग्राम िान में दिया तथा जैन धमा को भी
प्रोत्साहन प्रिान दकया ।
इस प्रकाि िाजिाज एक महान् दवजेता, साम्राज्य ननमााता, कुशल प्रशासक, ननमााता तथा धमासनहष्णु सम्राट था ।
िाजनैदतक तथा सांस्कृदतक िोनों ही िृदियों से उसका शासन काल चोल वंश के चमषत्कर्ा को व्यक्त किता है ।
iv. िाजेन्द्र प्रथम:
यह िाजिाज प्रथम का पुर तथा उत्तिादधकािी था औि उसकी मृत्यु के बाि 1014-15 ई॰ में चोल िाज्य की गद्दी पि बैठा ।
वह अपने नपता के समान एक महत्वाकाूँिी एवं साम्राज्यवािी शासक था । उसकी सैननक उपलत्धधयों की सूचना उसके दवशभन्न
लेखों से दमल जाती है ।

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a. शसं हल की दवजय:
िाजिाज प्रथम ने शसंहल पि आक्रमण कि वहाूँ के कुछ प्रिेशों पि अपना अदधकाि कि शलया था । दकन्तु संमूणा शसंहल
पि उसका अदधकाि नहीं हो पाया था । अन्तः उसके पुर िाजेन्द्र ने शसंहल दवजय का काया पूिा दकया । वहाूँ का शासक मनहन्ि पञ्चम
बन्िी बनाकि चोल िाज्य भेज दिया गया जहाूँ बािह वर्षं के बाि उसकी मृत्यु हो गयी । सभपूणा शसंहल पि िाजेन्द्र का अदधकाि हो
गया । किन्िै ताम्रपरों में उसकी इस दवजय का दवस्तृत दवविण प्राप्त होता है त्जसके अनुसाि िाजेन्द्र ने लंका के िाजा के मुकुट,
िानी, पुरी, सभपूणा सभपशत्त, वाहन, इन्द्र का ननमालहाि (जो पाण्ड्य िाजा िािा वहाूँ धिोहि िखा गया था) आदि के ऊपि अपना
अदधकाि कि शलया। महावंश से भी इस दवजय की पुदि होती है त्जसके अनुसाि िाजेन्द्र ने लंका पि पूणा अदधकाि किने के पिात्
वहाूँ के बौद्ध दवहाि को नि कि दिया तथा सभपूणा कोर् अपने साथ उठा ले गया । महावंश से पता चलता है दक मनहन्ि के पुर
कस्सप ने छः माह के कड़े प्रदतिोध के बाि शसंहल के िशिणी भागों को पुनः अपने अदधकाि में कि शलया ।
b. केिल तथा पाण्ड्य िाज्यों की दवजय:
िाजेन्द्र ने पाण्ड्य तथा केिल िाज्यों को जीतकि उन्हें एक अलग िाज्य में परिणत कि दिया । दतरुवालंगाडु के ताम्रपर
केिल तथा पाण्ड्य िाज्यों के दवरुद्ध िाजेन्द्र की सफलताओं का उल्लेख किते हैं । उसके सेनापदत िण्ड्डनाथ ने एक दवशाल सेना के
साथ पाण्ड्य िाज्य पि आक्रमण कि वहाूँ के शासक को बुिी तिह पिात्जत कि दिया । उसने अपने एक पुर को िोनों िानों का
वायसिाय बनाया तथा उसे ‘चोलपाण्ड्य’ की उपादध प्रिान की । इस िाज्य का मुख्यालय मदुिा में था ।
c. पशिमी चालुक्यों से संघर्ा:
1020-21 ई॰ के लगभग िाजेन्द्र ने वेंगी के चालुक्य िाज्य की ओि ध्यान दिया । वहाूँ दवमलादित्य के िो पुरों-दवजयादित्य
सप्तम तथा िाजिाज-में िाजशसंहासन के शलये संघर्ा चल िहा था । दवजयादित्य का समथान कल्याणी के पशिमी चालुक्य शासक
जयशसंह दितीय तथा कशलंग के पूवी गंग शासक कि िहे थे । िाजेन्द्र ने उनके दवरुद्ध िाजिाज के पि का समथान दकया । जयशसंह
दितीय ने िेंगी पि आक्रमण कि दवजयवाड़ा पि अदधकाि कि शलया। इससे िाजिाज की स्थिदत संकटग्रस्त हो गयी। फलस्वरूप
िाजेन्द्र चोल ने जयशसंह पि िोतिफा हमला दकया। पशिम में जयशसंह की सेना मास्की में पिात्जत हुई तथा तुंगभद्रा िोनों के िाज्यों
की सीमा मान ली गयी। वेंगी में भी चोल सेना को सफलता दमली। जयशसंह का उभमीिवाि कई युद्धों में बुिी तिह पिास्त दकया
गया।
d. कशलं ग की दवजय:
चोल सेना वेंगी को जीतने के बाि कशलंग में घुस गयी जहाूँ उसने दवजयादित्य के दमर कशलंग के पूवी गंग शासक
मधुकामानव (1019-38 ई॰) को िस्थण्ड्डत दकया। नीलकंठ शास्त्री के अनुसाि िाजेन्द्र की कशलंग दवजय का उद्दे श्य गंगा-घाटी की
ओि अशभयान किके अपनी दवशाल शशक्त का प्रिशान किना था ।
e. गंगाघाटी में अशभयान:
कशलंग से चोल सौननकों ने गंगा घाटी के
मैिानों में व्यापक अशभयान दकया । िाजेन्द्र चोल
के इस पूवी अशभयान का दवविण भी दतरुवालंगाडु
ताम्रपरों में दमलता है । इससे पता चलता है दक
उसने अपने पुर दवक्रमचोल के नेतत्ृ व में एक
दवशाल सेना उत्तिी-पूवी भाित की दवजय के शलये
भेजी। दवक्रम चोल ने उड़ीसा, बस्ति, इन्द्रिथ तथा
िशिण कोशल िाज्यों को जीता । इसके बाि
उड़ीसा तथा बंगाल के बीच स्थित िण्ड्ड-भुशक्त पि
आक्रमण कि वही के शासक धमापाल को उसने
पिात्जत दकया । यह बंगाल का कोई िानीय
शासक था जो पालनिेश महीपाल का सभबन्धी

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िहा होगा। तत्पिात् दवक्रमचोल ने िशिणी िाठ के िाजा िणशूि तथा पूवीबंगाल के गोदवन्िचन्द्र को भी जीत शलया । ये िोनों भी
सामन्त शासक थे। गोदवन्िचन्द्र को जीतने के बाि उसने बंगाल के पाल शासक महीपाल के ऊपि आक्रमण कि उसे भी पिात्जत
कि दिया । पिात्जत पाल निेश युद्ध िेर से भाग गया। इस अशभयान का उद्दे श्य गंगा निी का पदवर जल लाना था । कहा जाता है
दक बंगाल के पिात्जत शासकों ने अपने शसि पि लाि कि गंगाजल चोल िाज्य में पहुूँचाया । गंगाघाटी के अशभयान की सफलता
पि िाजेन्द्र ने ‘गंगैकोण्ड्ड’ की उपादध धािण की तथा इसके उपलि में उसने गंगैकोण्ड्डचोलपुिम् (नरचनापल्ली त्जले में) नामक एक
नयी िाजधानी की िापना की । उत्तिी-पूवी भाित के इस सफल सैन्य अशभयान िािा िाजेन्द्र ने उत्ति भाित के िाजाओं के बीच
अपनी शशक्त का पिशान कि दिया तथा चोलों की धाक सभपूणा िेश में जम गयी ।
f. िशिण-पूवा एशशया की दवजय:
िाजेन्द्र चोल केवल भाितीय भूभाग में दिस्ववजय किने से ही
संति
ु नहीं हुआ । भाितीय उपमहािीप में अपनी दवजय-वैजन्ती
फहिाने के उपिान्त उसने िशिणी-पूवी एशशया में सैन्य अशभयान
दकया । उसने श्ीदवजय (शैलेन्द्र) िाज्य को जीतने के शलए एक
शशक्तशाली नौसेना भेजी। इस िाज्य के अन्तगात मलय प्रायिीप,
जावा, सुमारा तथा अन्य िीप सस्भमशलत थे । उसका यह
अशभयान भी पूणातया सफल िहा। शैलेन्द्र शासक संग्राम
दवजयोतुंगवमान् पिात्जत हुआ तथा बन्िी बना शलया गया । चोल
सेना ने कडािम् तथा श्ीदवजय को जीत शलया । शैलेन्द्र निेश ने
चोल शासक की अधीनता में िहने का वचन दिया तथा इस
आश्वासन पि उसका िाज्य वापस लौटा दिया गया । इस सैन्य अशभयान का दवविण दतरुवालंगातु ताम्रपर में दमलता है त्जसके
अनुसाि िाजेन्द्र ने शशक्तशाली नौसेना के साथ समुद्र पाि किके कटाह को जीत शलया था (अवत्जत्य किाट्टमुन्नतैर्मन्नज-
िण्ड्डैिशभलंदघताणायः) ।
िाजेन्द्र के शासन काल के आठवें वर्ा में उत्कीणा किन्डै ताम्रपरों में भी इस दवजय की चचाा दमलती है । इससे यह भी
सूशचत होता है दक कभबुज के शासक ने उसके साथ सत्न्ध िानपत किने के शलये प्राथाना की थी । िाजेन्द्र चोल िािा श्ीदवजय िाज्य
पि आक्रमण दकये जाने तथा उसे जीतने का क्या उद्दे श्य था- इस दवर्य में दविान् एकमत नहीं हैं । के॰ आि॰ हाल का अनुमान है
दक चोल िाज्य तथा चीन के बीच व्यापारिक सभबन्ध में यह िाज्य एक कड़ी का काया किता था । अतः िाजेन्द्र ने श्ीदवजय को जीतना
आवश्यक समझा । नीलकण्ड्ठ शास्त्री तथा िमेशचन्द्र मजूमिाि जैसे दविानों का दवचाि है दक उस समय चोलों का िशिणी-पूवी
एशशया के िेशों के- साथ व्यापाि सभबन्ध बढ़ता जा िहा था । इस सभबन्ध में श्ीदवजय का िाज्य बाधा उत्पन्न कि िहा था । अतः
िाजेन्द्र ने इस िाज्य पि आक्रमण कि िशिणी-पूवी िीपों के साथ अपने िाज्य के व्यापारिक सभबन्ध को ननर्मवघ्न बना शलया । श्ीदवजय
के साथ-साथ चोल सेना ने अंडमान-ननकोबाि, अिाकान तथा पेगू (बमाा में स्थित) के िाज्यों को भी जीत शलया था ।
g. दवद्रोहों का िमन:
िाजेन्द्र चोल को अपने शासन के अत्न्तम दिनों में पाण्ड्य तथा केिल िाज्यों के दवद्रोह का सामना किना पड़ा । ऐसा प्रतीत
होता है दक त्जस समय िाजेन्द्र अपने िाज्य से दूि िशिण-पूवा एशशया के िीपों की दवजय में लगा हुआ था उसी समय उसकी
अनुपस्थिदत का लाभ उठाते हुए इन िाज्यों ने दवद्रोह का झण्ड्डा खड़ा कि दिया । उन्हें अनेक सामन्तों-चेि, वेनाड, कूपक आदि-से
भी सहायता दमली । इन दवद्रोनहयों का नेतत्ृ व पाण्ड्य निेश सुन्िि पाण्ड्य ने दकया । दकन्तु िाजेन्द्र दवचशलत होने वाला नहीं था ।
उसने कठोि रुख अपनाते हुए अपने पुर युविाज िाजादधिाज को इन्हें िबाने के शलये भेजा । िाजादधिाज ने कई िाजाओं एवं
सामन्तों की हत्या कि िी तथा दवद्रोह को सफलतापूवाक िबा दिया । 1041 ई॰ में शसंहल निेश दवक्रमाबाहु के नेतत्ृ व में शसंहल ने
स्वतन्र होने की चेिा की । िाजेन्द्र ने िाजादधिाज को एक सेना के साथ शसंहल पि आक्रमण किने को भेजा । ज्ञात होता है दक
िाजादधिाज ने युद्ध में शसंहलनिेश का शसि काट शलया तथा वहीं के दवद्रोह का अत्यन्त बबाितापूवाक िमन कि दिया ।

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h. पशिमी चालुक्यों में पुनः संघर्ा:
िाजेन्द्र को अपने शासन के अन्त में वेंगी के प्रश्न पि पशिमी चालुक्यों से पुनः संघर्ा किना पड़ा । चालुक्य निे श सोमेश्वि
प्रथम ने वेंगी पि आक्रमण कि चोल सत्ता को चुनौती िी । उसने िाजेन्द्र िािा संिशित वेंगी निेश िाजिाज के दवरुद्ध उसके सौते ले
भाई दवजयादित्य को वेंगी की गि्िी पि आसीन किने का प्रयास दकया । िाजेन्द्र इस समय तक काफी वृद्ध हो चुका था । अतः
उसने अपने तीन सेनापदतयों को चालुक्यों के दवरुद्ध भेजा । चोलों तथा चालुक्यों की सेनाओं के बीच काशलदिदि में एक युद्ध हुआ
जो ननणाायक नहीं िहा । इसी बीच िाजेन्द्र की मृत्यु हो गयी । कालान्ति में उसके पुर तथा उत्तिादधकािी िाजादधिाज ने कई युद्धों में
चालुक्य सेनाओं को पिात्जत कि वेंगी में अपनी स्थिदत पुनः सुिृढ़ कि शलया । इस प्रकाि िाजेन्द्र चोल की सेना ने अपनी दवजय-
वैजयन्ती गंगा से शसंहल िीप तक तथा बंगाल की खाड़ी के पाि जावा, सुमारा एवं मलय प्रायिीप पि फहिा दिया । यह उसकी
अद्भुत सैननक सफलता थी जो प्राचीन इदतहास में सवाथा बेजोड़ है । ननःसन्िेह वह प्राचीन भाित के महानतम दवजेताओं में एक था।
उसके समय में चोल साम्राज्य शशक्त तथा दवस्ताि की िृदि से उन्नदत की चोटी पि पहुूँच गया । दवजेता होने के साथ-साथ
वह एक महान् ननमााता भी था । उसने शसंचाई के शलये सोलह मील लभबा एक भव्य तालाब खुिवाया था । वह शशिा एवं सानहत्य
का महान् उन्नायक भी था । उसने वैदिक सानहत्य के अध्ययन के शलये एक दवशाल दवद्यालय की भी िापना किवायी थी । वह युद्ध-
िेर में त्जतना महान् था, शात्न्त-काल में उतना ही कमाठ था । िाजेन्द्र चोल की मृत्यु 1044 ई॰ के लगभग हुई । चोलवंश के इदतहास
में िाजिाज तथा उसके पुर उत्तिादधकािी िाजेन्द्र चोल की उपलत्धधयाूँ सवाादधक महत्वपूणा हैं । इनके शासन काल में चोल साम्राज्य
िाजनैदतक औि सांस्कृदतक िोनों ही िृदियों से उन्नदत की पिाकष्ठा पि पहुूँच गया तथा अन्तिााष्रीय ख्यादत का अदधकािी बना ।
वस्तुतः ये िोनों शासक ही चोल शशक्त के मुख्य ननमााता थे ।
v. िाजादधिाज प्रथम:
िाजेन्द्र चोल का पुर तथा उत्तिादधकािी िाजादधिाज प्रथम हुआ । वह 1018 ई॰ से ही युविाज के रूप में अपने नपता के
सैननक एवं प्रशासननक कायषं में सहायता िे ता िहा था । िाजा होने पि उसे चतुर्मिक् दवद्रोहों का सामना किना पड़ा पिन्तु उसने बड़ी
सफलतापूवाक अपने िाज्य में शात्न्त एवं व्यविा िानपत दकया । िाजादधिाज ने पाण्ड्य, केिल तथा शसंहल के दवद्रोही शासकों
को पिात्जत दकया । उसने अपने नपता की दवस्तािवािी नीदत को जािी िखा । वेंगी में उसने पशिमी चालुक्यों की सेना को सोमेश्वि
के पुर दवक्रमादित्य के नेतत्ृ व में पिास्त दकया । तत्पिात् चोल-सेना ने पशिमी चालुक्य-िाज्य पि आक्रमण दकया । सवाप्रथम उसने
कुल्पक के दुगा पि अदधकाि कि उसमें आग लगा दिया । चालुक्य सामन्तों एवं सेनापदतयों को जीतते हुए चोलसेना कृष्णा निी के
तट पि जा पहुंची । वहाूँ पून्डू ि के युद्ध में िाजादधिाज ने चालुक्य-सेना को बुिी तिह पिास्त दकया । उसने यािगीि पि अदधकाि कि
शलया तथा चालुक्यों की िाजधानी कल्याणी को लूटा ।
वहाूँ उसने अपना ‘वीिाशभर्ेक’ दकया तथा ‘दवजयिाजेन्द्र’ की उपादध धािण की । कल्याणी से वह ननशानी के रूप में
िािपालक की एक सुन्िि प्रदतमा उठा ले गया । पिन्तु 1050 ई॰ तक पशिमी चालुक्य निेश सोमेश्वि ने चोल सेनाओं को अपने िाज्य
से बाहि भगा दिया । उसने वेंगी के चालुक्य शासक िाजिाज को अपनी अधीनता स्वीकाि किने के शलये दववश दकया । कशलंग
को भी उसने अपने प्रभाव िेर में दकया । चोल निेश िाजादधिाज ने अपने छोटे भाई युविाज िाजेन्द्र दितीय की सहायता से सोमेश्वि
के दवरुद्ध दूसिा सैननक अशभयान दकया । कोप्पम के युद्ध में (1052-53 ई॰) िाजादधिाज लड़ता हुआ मािा गया । पिन्तु उसके भाई
िाजेन्द्र दितीय ने सोमेश्वि की सेना को बुिी तिह पिास्त कि दिया । िाजेन्द्र ने युद्ध -िेर में ही अपना अशभर्ेक दकया । वह कोल्हापुि
तक बढ़ा औि वहाूँ अपना दवजयस्तभभ िानपत किने के बाि अपनी िाजधानी वापस लौट आया ।
vi. िाजेन्द्र दितीय:
यह िाजादधिाज का छोटा भाई था औि उसकी मृत्यु के बाि िाजा बना । उसके शासन-काल में भी चोल-चालुक्य संघर्ा
चलता िहा । सोमेश्वि ने वेंगी की गद्दी पि दवजयादित्य सप्तम के पुर शशक्तवमान् दितीय को आसीन दकया तथा उसकी मिि के
शलए चामुण्ड्डिाज के नेतत्ृ व में एक बड़ी सेना भेजी । उसने अपने िो पुरों-दवक्रमादित्य तथा जयशसंह-को गंगवादड में चोल िाज्य पि
आक्रमण किने को भेजा । चोल निेश िाजेन्द्र ने अपने पुर िाजमहेन्द्र तथा भाई वीि िाजेन्द्र के साथ िोनों मोचषं पि सोमेश्वि का
प्रदतिोध दकया। वेंगी में उसकी सेना ने चामुण्ड्डिाज तथा शशक्तवमान् को पिात्जत दकया तथा वे िोनों माि डाले गये । गंगवादड के
चालुक्य आक्रमणकािी कुड्डल संगमम् (तुंग तथा भद्रा के संगम पि स्थि त कूड्डशल) के युद्ध में पिास्त दकये गये तथा उन्हें चोल िाज्य
से भागना पड़ा । इस प्रकाि सोमेश्वि िोनों ही मोचषं पि बुिी तिह असफल िहा ।

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इस असफलता के कुछ दिनों बाि िाजेन्द्र दितीय तथा उसके पुर िाजमहेन्द्र की मृत्यु (लग 1063-64 ई॰) हो गयी । वह
अपने साम्राज्य को सुिशित िख सकने में सफल िहा । यह िाजेन्द्र दितीय के पिात् िाजा हुआ । इसके समय में भी चोल-चालुक्य
संघर्ा चलता िहा । चालुक्य निेश सोमेश्वि ने उसके िाज्य पि पूवा तथा पशिम िोनों ओि से आक्रमण दकया । वीि िाजेन्द्र की सेना
ने िेंगी में चालुक्यों को हिाया । पशिम में तुंगभद्रा के तट पि उसने सोमेश्वि की सेना को 1066 ई॰ के लगभग बुिी तिह पिास्त दकया
। सोमेश्वि ने पुनः अपनी सेना संगनठत की तथा चोल शासक को कुड्डल-संगमम में युद्ध के शलये चुनौती दिया । वीि िाजेन्द्र वहाूँ गया
पिन्तु सोमेश्वि स्वयं युद्ध-िेर में उपस्थित नहीं हुआ । वीि िाजेन्द्र ने पुनः चालुक्य सेना को बुिी तिह हिाया तथा तुंगभद्रा निी के तट
पि दवजय-स्तभभ िानपत दकया ।
तत्पिात वेंगी में उसने दवजयादित्य को पिास्त दकया । उसने कृष्णा निी पाि कि कशलंग पि आक्रमण दकया । वहां भी
पशिमी चालुक्यों एवं उनके सहायकों से उसका भीर्ण युद्ध हुआ । इसी बीच 1068 ई॰ में सोमेश्वि प्रथम ने तुंगभद्रा में डू बकि
आत्महत्या कि ली । उसके उत्तिादधकािी सोमेश्वि दितीय के काल में वीि िाजेन्द्र ने उसके िाज्य पि आक्रमण दकया । सोमेश्वि
दितीय का छोटा भाई दवक्रमादित्य चोलनिेश वीि िाजेन्द्र से जा दमला । उसने अपनी पुरी का दववाह दवक्रमादित्य के साथ कि
दिया औि उसे वेंगी के चालुक्य िाज्य के िशिणी भाग का िाजा बनवा दिया । दवक्रमादित्य ने उसकी अधीनता में शासन किना
स्वीकाि कि दिया ।
वीि िाजेन्द्र ने शसंहल निेश दवजयबाहु प्रथम के दवरुद्ध सैननक अशभयान दकया । दवजयवाहु पिात्जत हुआ तथा उसने
भागकि वातदगरि में शिण ली । उसने श्ीदवजय में कडािम् को जीतने के शलये भी एक नौसेना भेजी । 1070 ई॰ के लगभग उसकी
मृत्यु हो गयी । वीि िाजेन्द्र का पुर अदधिाजेन्ि उसके बाि चोलवंश का शासक हुआ, पिन्तु एक वर्ा के भीति ही वह वेंगी के पूवी
चालूक्य वंशी िाजेन्द्र िािा अपिि कि दिया गया । 1070 ई॰ में िाजेन्द्र, कुलोंतुंग प्रथम के नाम से चोलवंश की गद्दी पि।
vii. कुलोतुंग प्रथम:
यह पूवी चालुक्य निेश िाजिाज का पुर था दकन्तु उसमें चोल िक्त का दमश्ण था । उसकी माता िाजेन्द्र चोल की कन्या
थी । उसका स्वयं का दववाह कोप्पम् युद्ध के दवजेता िाजेन्द्र दितीय की पुरी से हुआ था । कुलीतुंग प्रथम ने अपने दवद्रोनहयों को
िबाकि अपनी स्थिदत सुिृढ़ कि शलया । वह अपने समय का एक शशक्तशाली शासक शसद्ध हुआ । उसने पशिमी चालुक्य निेश
दवक्रमादित्य र्ष्ठ को नंदगशल में पिात्जत कि गंगवादड पि अदधकाि जमा शलया । इसी बीच (1072-73 ई॰) नरपुिी के हैहय शासक
यश कणा ने उसके वेंगी िाज्य पि आक्रमण दकया दकन्तु इसका कोई परिणाम नहीं ननकला । पिन्तु शसंहल के िाजा दवजयवाहु ने
कुलोतुंग के दवरुद्ध अपनी स्वतन्रता घोदर्त कि दिया । 1072-73 ई॰ में उसने अपना अशभर्ेक दकया तथा कुलोतुंग को उसकी
स्वाधीनता स्वीकाि किना पड़ा । कालान्ति में िोनों के बीच सत्न्ध हो गयी तथा कुलोतुंग ने अपनी एक पुरी का दववाह शसंहल
िाजकुमाि के साथ कि दिया ।
कुलोतुंग को पाण्ड्य तथा केिल िाजाओं के भी दवद्रोहों का सामना किना पड़ा । वह एक शशक्तशाली सेना के साथ
िशिणी अशभयान पि गया जहाूँ कई बाि युद्धों में उसने पाण्ड्य औि केिल के िाजकुमािों को पिास्त कि उन्हें अपनी अधीनता में
िहने के शलए बाध्य दकया । पिन्तु इन प्रिेशों का प्रशासन उसने िानीय शासकों के हाथों में छोड़ दिया । 1077 ई॰ में 72 सौिागिों
का एक चोल दूत-मण्ड्डल चीन गया । 1088 ई॰ के सुमारा से प्राप्त एक तदमल लेख से पता चलता है दक श्ीदवजय में तदमल
सौिागिों की एक श्ेणी ननवास किती थी । वेंगी के दवजयादित्य सप्तम की मृत्यु के बाि कुलीतुंग ने अपने पुरों को वहाूँ वायसिाय
के रूप में शासन किने को भेजा । 1110 ई॰ के लगभग कशलंग िाज्य में दवद्रोह हुआ । कुलोतुंग ने अपने सेनापदत करुणाकि
तोण्ड्डैमान के नेतत्ृ व में एक सेना वहाूँ भेजी । कशलंग निेश अनन्तवमान् पिात्जत हुआ तथा उसने भागकि जान बचायी । चोलसेना
अपने साथ लूट का अतुल धन लेकि लौटी ।
1015 ई॰ तक कुलोतुंग प्रथम अपने साम्राज्य को सुिशित बनाये िखने में समथा िहा । केवल शसंहल का िाज्य ही उसके
साम्राज्य के बाहि था । पिन्तु उसके शासनकाल के अन्त में मैसूि एवं वेंगी में दवद्रोह उठ खड़े हुए । 1018 ई॰ के लगभग दवक्रमादित्य
र्ष्ठ ने वेंगी पि अदधकाि कि शलया तथा इसी समय होयसलों ने मैसूि से चोल सेना को बाहि खिेड़ कि वहाूँ अपनी स्वतन्रता घोदर्त
कि िी । इस प्रकाि कुलोतुंग प्रथम का िाज्य केवल तदमल-प्रिेश तथा कुछ तेलगू-िेरों तक ही सीदमत िह गया। कुलोत्तुग प्रथम
चोल वंश का एक महान् शासक था । उसका िीघाकालीन शासन कुल दमलाकि समृदद्ध एवं सफलता का काल िहा । उसने प्रजानहत
को व्यशक्तगत नहतों से ऊपि िखा तथा इसके शलये अनेक सुधाि दकये । चोल लेखों एवं पिभपिाओं में उसे ‘शुंगम् तदवत्ता’ (किों को

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हटाने वाला) कहा गया है त्जससे उसकी लोकोपकारिता सूशचत होती है । अपने शासन के अन्त में उसने शात्न्तपूवाक िाज्य दकया
। उसने शचिभबिम् के मत्न्िि तथा श्ीिंम् की समादध का वद्धा न किवाया । 1120 ई॰ के लगभग उसकी मृत्यु हुयी ।
viii. दवक्रम चोल:
यह कुलोतुंग का पुर तथा उत्तिादधकािी था त्जसने 1120 ई॰ से 1133 ई॰ तक शासन दकया । 1126 ई॰ में दवक्रमादित्य र्ष्ठ
की मृत्यु के बाि उसने वेंगी पि पुनः अपना अदधकाि कि शलया । उसने 1133 ई॰ के लगभग गोिाविी निी तट पि दवक्रमादित्य के
उत्तिादधकािी सोमेश्वि तृतीय की सेना को पिास्त दकया । गंगवादड पि आक्रमण कि उसने कोलि त्जले पि अदधकाि कि शलया ।
ix. कुलोतुंग दितीय:
दवक्रम चोल के बाि उसका पुर कुलोतुंग दितीय 1133 ई॰ में िाजा बना तथा 1150 ई॰ तक शात्न्तपूवाक शासन किता िहा
। उसकी कोई िाजनीदतक उपलत्धध नहीं है । उसने शचिभबिम् के मत्न्िि के नवीनीकिण एवं संवधान का काया जािी िखा । कुलोतुंग
ने इस मत्न्िि के प्रांगण से गोदवन्ििाज की प्रदतमा को हटवाकि समुद्र में नफंकवा दिया ।
x. िाजिाज दितीय:
यह कुलोतुंग दितीय का पुर तथा उत्तिादधकािी था त्जसने लगभग 1150 ई॰ से 1173 ई॰ तक शासन दकया । उसके समय
में चािों ओि शशक्तशाली सामन्तों का उिय हुआ । उसका िाज्य सभपूणा तेलगू प्रिेश , कोंगूनाि के अदधकांश भागों तथा गंगवादड
के पूवी भाग तक फैला हुआ था । उसके कोई पुर नहीं था । अतः 1166 ई॰ में उसने दवक्रमचोल के पौर (पुरी के पुर) िाजादधिाज
दितीय को अपना युविाज ननयुक्त दकया ।

xi. िाजादधिाज दितीय:


यह िाजिाज का उत्तिादधकािी था त्जसने 1173 ई॰ से 1178 ई॰ तक शासन दकया । इस समय पाण्ड्य वंश में कुलशेखि
तथा वीि पाण्ड्य के बीच उत्तिादधकाि के शलये संघर्ा शछड़ा हुआ था । िाजादधिाज ने वीि पाण्ड्य का पि शलया तथा कुलशेखि
का समथान लंका के िाजा पिाक्रमबाहु ने दकया । िाजादधिाज को सफलता दमली तथा उसने वीि को पाण्ड्यों का िाजा बनाया ।
पिन्तु इससे चोलों को कोई लाभ नहीं हुआ ।
xii. कुलोतुंग तृतीय:
यह िाजादधिाज का उत्तिादधकािी था पिन्तु िाजादधिाज के साथ उसका सभबन्ध अज्ञात है । वह चोल वंश का अत्न्तम
महान् शासक था । 1182 ई॰ में उसने वीिपाण्ड्य को पिात्जत दकया तथा उसे अपनी अधीनता में िहने के शलये बाध्य दकया ।
कुलोतुंग ने होयसल तथा चेि िाजाओं को भी जीतकि अपनी अधीनता में दकया । कुछ समय बाि पाण्ड्यों ने जटावमान् कुलशेखि
के नेतत्ृ व में पुन दवद्रोह दकया । 1205 ई॰ में कुलोतुंग ने पापड़ िाज्य पि आक्रमण दकया । उसकी सेना ने मदुिा को लूटा तथा पाण्ड्यों
के अशभर्ेक मण्ड्डल को ध्वस्त कि दिया । पिन्तु कुलशेखि को उसका िाज्य पुन वापस कि दिया गया । कुलोतुंग ने तेलगू-चोडों
को भी िबाकि अपने ननयन्रण में िखा । उसने 1218 ई॰ तक शासन दकया । उसका काल कला एवं िापत्य की उन्नदत के शलये भी
प्रशसद्ध है ।
xiii. िाजिाज तृतीय:
कुलोतुंग का उत्तिादधकािी िाजिाज तृतीय एक ननबाल िाजा था । उसके िाज्य में चतुर्मिक् दवद्रोह एवं अिाजकता फैल
गयी । पाण्ड्य निेश सुन्िि ने उसके िाज्य पि आक्रमण उसे बन्िी बना शलया पिन्तु होयसल निेश निशसंह दितीय की सहायता से उसे
मुशक्त दमली । तेल्लारु के युद्ध में उसे यािव सििाि कोप्पेरुंत्जंग ने पिास्त कि बन्िी बना शलया । 1231 ई॰ में होयसल सेना की
सहायता से वह पुनः अपनी स्वतन्रता एवं िाज्य पाने में सफल हुआ । िाजिाज दकसी प्रकाि 1256 ई॰ तक िाज्य किता िहा, पिन्तु
उसका अदधकाि नाममार का ही िहा ।
xiv. िाजेन्द्र तृतीय:
यह चोल वंश का अत्न्तम शासक था । उसने चोल-शशक्त का पुनरुद्धाि किने का प्रयास दकया । उसने पाण्ड्यों पि आक्रमण
कि सुन्ििपाण्ड्य दितीय को पिात्जत दकया । पिन्तु चालुक्य निेश सोमेश्वि तृतीय ने पाण्ड्यों का साथ दिया त्जससे िाजेन्द्र के
प्रयास सफल न हो सके । उसने एक युद्ध में िाजेन्द्र को पिास्त दकया तथा बाि में उससे सत्न्ध कि ली । 1251 ई॰ में पाण्ड्य वंश का
शासन जटावमान सुन्ििपाण्ड्य नामक एक शशक्तशाली िाजा के हाथ में आया। उसने चालुक्य, होयसल तथा काकतीय िाज्यों को

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जीता ओि चोल शासक िाजेन्द्र तृतीय को अपनी अधीनता में िहने के शलये बाध्य दकया । इसके बाि 1279 ई॰ तक वह पाण्ड्य
निेश के सामन्त की हैशसयत से शासन किता िहा । 1279 ईस्वी में उसे पाण्ड्य शासक कुलशेखि के हाथों पुनः पिात्जत होना पड़ा।
इसके साथ ही चोल-िाज्य तथा शासन का अन्त हुआ । पाण्ड्य निेश कुलशेखि समस्त चोलमण्ड्डल का सावाभौम शासक बन बैठा।
चोल प्रशासन
चोल कालीन प्रशासन एक केंद्रीय प्रशासन था। इसका ननभन रूप में दवभाजन था:-

गाूँव

कोट्टम

नाडु

वलनाडु

मंडलम

िाष्र

केंद्रीय प्रशासन का प्रमुख िाजा का होता था तथा साथ ही साथ शासन का सवषच्च अदधकािी भी। उसका पि
वंशानुगत था औि ज्येष्ठ पुर को ही िाजा का उत्तिादधकािी माना जाता था। िाजा चक्रवर्मतगाल, नरकाल, सम्राट जैसी उच्च
सभमानपिक उपादधयाूँ धािण किते थे। मंदििो में सम्राट की प्रदतमा िानपत की जाती थी तथा मृत्यु के बाि िैव रूप में पूजा की
जाती थी जैसे - तंजौि के मंदिि में सुंििचोल (पिांतक दद्रतीय) तथा िाजेन्द्र चोल की प्रदतमाएूँ िानपत की गयीं थी।
िाजा की सहायता के शलए ििबािी अदधकारियों की सभा थी जो उिनकुटटन कहलाती थी। िायलसम दवभाग आज के आधुननक
डाक दवभाग की तिह काया किते थे। केन्द्रीय अदधकािी िो िेशणयो में दवभाजन थे। पहली िेणी को उच्च स्तिीय अदधकािी पेरूंिेंम
औि दूसिी िेणी को ननभन स्तिीय अदधकािी शशरुद्नम कहलाते थे। अदधकारियों को पारिश्दमक के रूप में भू-अनुिान दिया जाता
था त्जसे जीदवत कहा जाता था दविनपल नामक अदधकािी दवशभन्न िेरों की यारा किके िानीय प्रशासन पि ननगिानी िखते थे।
चोल साम्राज्य मंडलो या प्रांतो में दवभात्जत था। त्जनकी संख्या 8 या 9 थी। मंडलम, वलनाड़ु ओं औि नाड़ु ओं में बूँटे होते
थे। कभी-कभी िाज परिवाि के सिस्य प्रांतीय शासक ननयुक्त दकये जाते है अदधकारियों को वेतन भूदमिान िािा भुगतान दकया
जाता था। वलवाडु प्रशासननक इकाई थी। नाडु लगान-वसूली से संबंदधत थी। नाडु का प्रशासन नाडु - वगाय नामक अदधकािी
िेखते थे।
चोल शासन की प्रमुख दवशेर्ता सुसंगनठत नौकिशाही के साथ उच्च कोनट की कुशलतावली िानीय स्वायत्त संिाओं
का सुंिि औि सफल सामंजस्य है। िानीय जीवन के दवशभन्न अंगों के शलए दवदवध सामूनहक संिाएूँ थीं जो पिस्पि सहयोग से
काया किती थीं। नगिम् उन िानों की सभाएूँ थीं जहाूँ व्यापािी वगा प्रमुख था। ऊि गूँव के उन सभी व्यशक्तयों की सभा थी त्जनके

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पास भूदम थी। 'सभा ब्रह्मिेय' गाूँवों के ब्राह्मणों की सामूनहक संिा का दवशशि नाम था। िाज्य की ओि से साधािण ननयंरण औि
समय पि आयव्यय के ननिीिण के अदतरिक्त इन सभाओं को पूणा स्वतंरता थी। इनके कायषं के संचालन के शलए अत्यंत कुशल
औि संदवधान के ननयमों की िृदि से संगनठत औि दवकशसत सदमदतयों की व्यविा थी त्जन्हें वारियम् कहते थे। उत्तिमेरूि की सभा
ने पिांतक प्रथम के शासनकाल में अल्प समय के अंति पि ही िो बाि अपने संदवधान में परिवता न दकए जो इस बात का प्रमाण है
दक ये सभाएूँ अनुभव के अनुसाि अदधक कुशल व्यविा को अपनाने के शलये तत्पि िहती थीं। इन सभाओं के कताव्यों का िेर
व्यापक औि दवस्तृत था।
चोल निेशों ने शसंचाई की सुदवधा के शलए कुएूँ औि तालाब खुिवाए औि नदियों के प्रवाह को िोककि पत्थि के बाूँध से
दघिे जलाशय (डैम) बनवाए। करिकाल चोल ने कावेिी निी पि बाूँध बनवाया था। िाजेंद्र प्रथम ने गंगैकोंड-चोलपुिम् के समीप
एक झील खुिवाई त्जसका बाूँध 16 मील लंबा था। इसको िो नदियों के जल से भिने की व्यविा की गई औि शसंचाई के शलए
इसका उपयोग किने के शलए पत्थि की प्रणाशलयाूँ औि नहिें बनाई गईं। आवागमन की सुदवधा के शलए प्रशस्त िाजपथ औि नदियों
पि घाट भी ननर्ममत हुए।
सामात्जक जीवन में यद्यनप ब्राह्मणों को अदधक अदधकाि प्राप्त थे औि अन्य वगषं से अपना पाथाक्य दिखलाने के शलए
उन्होंने अपनी अलग बस्स्तयाूँ बसानी शुरू कि िी थीं, नफि भी दवशभन्न वगषं के पिस्पि संबंध कटु नहीं थे। सामात्जक व्यविा
को धमाशास्त्रों के आिेशों औि आिशषं के अनुकूल िखने का प्रयन्त होता था। कुलोत्तुंग प्रथम के शासनकाल में एक गाूँव के भट्टों
ने शास्त्रों का अध्ययन कि िथकाि नाम की अनुलोम जादत के शलए सभमत जीदवकाओं का ननिेश दकया। उद्योग औि व्यवसाय में
लगे सामात्जक वगा िो भागों में दवभक्त थे- वलंगै औि इडंगै। स्स्त्रयाूँ पि सामात्जक जीवन में दकसी भी प्रकाि का प्रदतबंध नहीं था।
वे संपशत्त की स्वादमनी होती थीं। उच्च वगा के पुरुर् बहुदववाह किते थे। सती का प्रचाि था। मंदििों में गुणशीला िेविाशसयाूँ िहा
किती थीं। समाज में िासप्रथा प्रचशलत थी। िासों की कई कोनटयाूँ होती थीं।
आर्मथक जीवन का आधाि कृदर् थी। भूदम का स्वादमत्व समाज में सभमान की बात थी। कृदर् के साथ ही पशुपालन का
व्यवसाय भी समुन्नत था। स्वणाकाि, धातुकाि औि जुलाहों की कला उन्नत िशा में थी। व्यापारियों की अनेक श्ेशणयाूँ थीं त्जनका
संगठन दवस्तृत िेर में काया किता था। नानािेश-दतशैयादयित्तु ऐज्जूरुंवि व्यापारियों की एक दवशाल श्ेणी थी
जो वमाा औि सुमारा तक व्यापाि किती थी।
िाजस्व प्रशासन
चोल िाज्य की आय का प्रमुख साधन भूदमकि था। भूदमकि ग्राम-सभाएं एकर किके सिकािी कोर् में जमा किती थी।
इसके शलए चोल शासकों ने समस्त भूदम की माप किवायी तथा उसकी उत्पािकता के आधाि पि कि का ननधािण दकया। जैसे -
िाजिाज प्रथम औि कुलोतुंग प्रथम के समय में क्रमश: एक औि िो बाि भूदम की माप किायी गयीं थी। कि 1 / 2 से 1 / 4 भाग तक
होता था। इसे कड़माप या कड़ीमै (भू- िाजस्व) कहते थे। चोल काल में भूदम की 12 से भी अदधक दकस्मो का उल्लेख दमलता है ।
प्रत्येक ग्राम तथा नगि में िहने के िान, मंदिि, तालाब, कािीगिों के आवास, शमशान आदि सभी प्रकाि के किों से मुक्त थे। नपंडािी
(ग्राभयिेवी) के शलए, बकिों की बशल का िान, कंु भकाि, स्वणाकाि, लौहकाि, िजक, बढ़ई आदि के ननवास िानों को भी कि
मुक्त िखा गया था।
 िाजस्व दवभाग की पंत्जका को वरित्योतगकणवक कहा जाता था त्जसमें सभी प्रकाि की भूदम के दवविण िजा दकये
जाते थे।
 कृर्कों को यह सुदवधा थी दक वे भूदमकि नगि अथवा अनाज के रूप में चुका सकते थे।
 चोलों के स्वणा शसक्के कलंजु या पोंन कहे जाते थे।
 अकाल आदि िैवीय आपिाओं के समय भूदम माफ कि दिया जाता था।
 िशिण भाित में तालाब ही शसंचाई के प्रमुख साधन थे। त्जनके िखिखाब की त्जभमेिािी ग्राम सभाओं की होती थी,
तालाबों की मिभमत के शलए एरिआिम नामक कि भी वसूल दकया जाता था।
 लोगों के कि न िेने पि िण्ड्ड की व्यविा थी। जैसे - पानी में डु बो िेने औि धूप में खड़ा कि िेने का भी उल्लेख दमला है।
उिाहिण के शलए - तंजौि के कुछ ब्राहाण लगान चुकाने में असमथा होने पि अपनी जमीने छोड़कि गाूँव से भाग गये तथा
उनकी जमीने पड़ोस के मंदििो को बेच िी गयी।

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 बकाये कि पि धयाज भी शलया जाता था।
 केन्द्रीय शशक्त के ननबाल होने पि जनता ने दवद्रोह दकया क्योदक उनसे अन्यायपूणा कि वसूल दकया जा िहा था जै से -
िाजिाज तृतीय औि कुलोतुंग प्रथम के समय ।
 भूदमकि के अदतरिक्त व्यापारिक वस्तुओं, दवशभन्न व्यवसाओं , खानों, वनों, उत्सवों आदि पि भी कि लगते थे।
 िाज्य की आय का व्यय अदधकािी तंर, ननमााण कायष, िान, यज्ञ, महोत्स्व आदि पि होता था।
 िाजस्व दवभाग के प्रमुख अदधकािी को वरितोत्गकक कहते थे। जो अपने-अपने अदधकाि िेर के आय-व्यय का नहसाब
िखते थे।
सैन्य शासन
चोल िाजाओं ने एक दवशाल संगनठत सेना का ननमााण दकया था। चोल शासन कुशल योद्धा थे औि वे व्यशक्तगत रूप से
युद्धों में भाग शलया किते थे। अश्व, गज, िथ एवं पैिल सैननकों के साथ एक अत्यंत शशक्तशाली नौ सेना थी। इसी नौ सेना की
सहायता से उन्होंने श्ीदवजय, शसंहल, मालिीप आदि िीपो की दवजय की थी। कुछ सैन्य िल नागरिक कायष में भाग लेते थे तथा
मंदििो आदि को िान दकया किते थे। सैननकों को वेतन में िाजस्व का एक भाग या भूदम िेने की प्रथा थी। लेखों में बड़पेई (पैिल
सैननक), दबल्ल्लगल (धनुधाािी सैननक), कुडीिेइच्चेवगि (अश्वािोही सैननक), आनैयाटक कुजीिमललि(गजसेना) आदि का उल्लेख
दमला है।
न्याय प्रशासन
 न्याय के शलए ननयदमत न्यायालयों का उल्लेख उनके लेखों में हुआ है जैसे - धमाासन (िाजा का न्यायालय) तथा धमाासन
भटट।
 न्यायालय के पंदडतो (न्यायाधीश) को धमाभटट कहा जाता था। त्जनके पिामशा से दववािों का ननणाय दकया जाता था।
 िीवानी एवं फौजिािी मामलो में अंति स्पि नहीं है।
 निवध तथा हत्या के शलए िंड व्यविा थी दक अपिाधी पड़ोस के मंदिि में अखण्ड्डिीप जलवाने का प्रबंध किे। वस्तुतः
यह एक प्रकाि का प्रायशित था दकन्तु मृत्युिंड दिये जाने के भी उिाहिण प्राप्त हुए है।
 िाजद्रोह भयंकि अपिाध था, त्जसका ननणाय स्वंय िाजा िािा दकया जाता था। इसमें अपिाधी को मृत्युिंड के साथ ही
साथ उसकी संपशत्त भी जधत कि शलया जाता था। 13 वीं सिी के चीनी लेखक चाऊ-जू-कुआ ने चोल िंड व्यविा के बािे
में दवस्तृत जानकािी प्रिान की है।
ग्रामीण या िानीय स्वायत्तता
चोलकालीन प्रशासन की सबसे महत्वपूणा दवशेर्ता ग्रामीण स्ति पि िानीय शासन या स्वायत्तता की व्यविा थी।
चोलकालीन अशभलेखों की प्रचुिता के कािण हमें इस साम्राज्य के ग्राम प्रशासन की अदधक जानकािी प्राप्त है। इसके शलए दवशभन्न
गाूँवो में िानीय प्रशासन का काम प्रदतननदध संिाओ के माध्यम से संचाशलत होता था। अशभलेखों में िो सभाओं का उल्लेख
दमलता है - उि, सभा या महासभा। उि गाूँव की आम सभा थी। दकसी भी गाूँव के वयस्क, पुरुर् कििाताओं के िािा उि या ग्राम या
मेलग्राम का संचालन होता था। सभा या महासभा, अग्रहाि कहे जाने वाले ब्राहाणों व गॉवो के वयस्क सिस्यों की सभा थी। अग्रहाि
गाूँवो में ब्राहाण लोग ननवास किते थे औि वहां की अदधकांश भूदम लगान मुक्त होती थी तथा इन्हें काफी स्वायत्तता दमली हुई थी।
सभा या महासभा के काया संचालन के शलए सदमदतयॉ होती थी। वे सदमदतयाूँ थी - वरियम औि वरियाि। इन सदमदतयों के प्रमुख
काया होते थे-
 किों की वसूली, किों को लगाना एवं माफ किना।
 न्यादयक काया, शशिा एवं स्वास्थ्य की िेखिेख।
 कृदर् का दवकास एवं समुशचत व्यविा किना।
 मंदििों की िेखिेख इत्यादि।
ग्रामीण प्रदतननदध सभाओं के अदतरिक्त नगिम नामक प्रदतननदध सभा की भी चचाा दमली है जो व्यापारियों के नहतों औि
उनकी गदतदवदधयों की िेख- िेख किती थी। ग्रामीण सदमदत के संचालन, सिस्यों का चुनाव एवं ननष्कासन आदि की जानकािी
उत्तिमेरूि के िो अशभलेखों से दमलती है जो क्रमश: 919 ई. एवं 921 ई. के है। इन अशभलेखों से ज्ञात होता है दक इन सभाओं के

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प्रदतननदधयों का चुनाव प्रत्येक वर्ा दकया जाता था एवं इसके अंतगात 1 / 3 सिस्य प्रत्येक वर्ा बिल दिये जाते थे जबदक सिस्यों
का कायाकाल तीन वर्ा के शलए होता था। प्रत्येक गाूँव को 30 वाडष में बाूँटा गया था। चुनाव लड़ने की ननभन योवयता होनी चानहए
थी-
 वह उस गाूँव का ननवासी हो जहाूँ से चुनाव लड़ िहा हो।
 30 से 70 वर्ा तक उम्र तथा शशशित भी हो।
 वह 1 / 4 वेशल भूदम का माशलक हो।
 उसका अपना मकान हो।
 वह वैदिक मंरो को ज्ञाता हो।
 सिस्यों को कायाकाल के िौिान हटाने का प्रावधान भी था-
 यदि दकसी सिस्य ने तीन वर्ा तक खचा का लेखा-जोखा प्रस्तुत नहीं दकया हो।
 दकसी अपिाध में िोर्ी पाये जाने पि।
 दकसी भ्रिाचाि मामलें में संशलप्त पाये जाने पि।
चुनाव दकसी भी लोकतांनरक व्यविा की नींव होती है। इसकी जानकािी चोल अशभलेखों से दमली है। आधुननक चुनाव
प्रदक्रया के समान ही ग्रामीण शासन के शलए चुनाव िेरों का दवभाजन दकया गया था। इतना ही नहीं चुनाव के शलए आवश्यक था,
व्यशक्त उसी गाूँव का ननवासी हो अथाात ऐसे व्यशक्त का चुनाव दकया जाए त्जसे िानीय परिशसथदतयों की जानकािी हो। सिस्यों
को चुनाव लड़ने के शलए भी योवयता का प्रावधान दकया गया था। दकसी भी शासन के कुशलतापूवाक संचालन के शलए यह
आवश्यक है दक योवय एवं अनुभवी लोगों को शासन संचालन की त्जभमेिािी सौंपी जाय। इसके साथ ही यह भी जरुिी है दक
अयोवय लोगों को शासन से बाहि अथाात भ्र्ष्ि एवं अपिाधी लोगों को शासन संचालन से बाहि िखा जाय।
इस प्रकाि ग्राम सभा प्रशासन की एक महत्वपूणा इकाई हुआ किती थी जो िानीय स्ति पि कायापालक, दवधायी एवं
न्यादयक प्रकृदत को सभपन्न किती थी। यदि ये संिाये अपने िादयत्वों का ननवाहन ईमानिािीपूवाक किती थी तो वह ग्राम सभाओं से
पिामशा जरूि ले ता िहा होगा। आिंभ में ये सभाएं बहुत हि तक स्वायत्त थी लेदकन उत्तिकालीन चोलों के समय केन्द्रीय हस्तिेप
बढ़ाता गया। सामान्यतः आपसी कलह , नहंसा एवं महत्वपूणा दववािों की स्थिदत में िाज्य हस्तिेप किता था। कई बाि केन्द्रीय
कमाचारियों की उपस्थिदत में ही ग्रामीण सभाओं के प्रस्ताव पारित दकये जाते थे।
चोलों की बेदमसाल सांस्कृदतक उपलत्धधयाूँ
अपनी प्रािस्थभभक कनठनाइयों पि दवजय प्राप्त किने के बाि क़िीब िो शतात्धियों तक अथाात् बािहवीं ईस्वी के मध्य तक
चोल शासकों ने न केवल एक स्थिि प्रशासन दिया, विन् कला औि सानहत्य को बहुत प्रोत्साहन दिया। कुछ इदतहासकािों का मत
है दक चोल काल िशिण भाित का 'स्वणा युग' था।
िाजा िाजिाजा चोल औि गुरु (शशिक) करूवुिाि
सानहत्य
चोल िाजाओं के समय में तदमल भार्ा एवं सानहत्य का दवकास हुआ। तदमल कदवयों में
प्रशसद्ध 'जयन्गोन्िाि' कुलोत्तुंग प्रथम का िाजकदव था। उसने 'कशलगुशत्तपुिाण' नाम के ग्रंथ की िचना
कीं कुलोत्तुंग तृतीय के ििबाि में िहने वाले कदव कंबन का काल तदमल सानहत्य का स्वणा काल
माना जाता है। इस काल की अन्य िचनायें शेदक्कल्लाि िािा दविशचत 'पेरिय पुिाणम्', पुलगेत्न्ि की
नलबेभबा तथा दतरूक्तिेवि की 'जीवक शचन्तामशण' है। कुलोत्तुंग दितीय (1130-50) के शासनकाल में शेदक्कलाि ने दतरुतोण्ड्डाि
पुिाणम् यो परियपुिाणम् शलखा है। यह तदमल शैव सानहत्य में एक बहुत महत्त्वपूणा ग्रंथ है। दप्रयपूणाम या शेखि की 'दतरूटोण्ड्डपूणाम्'
को पांचवा वेि कहा जाता है। मामूलनाि प्रमुख प्राचीन तदमल कदव थे, त्जन्होंने अपनी िचना में नन्ि वंश एवं मौया वंश का उल्लेख
दकया है। इस काल के अन्य धार्ममक ग्रन्थों में नन्िी का 'दतरुदवलाईयािल पूणाम्' नस्भब, आंडािनस्भब का 'दतरुमुलाई-कांडपूणाम्'
तथा अमुिनाि का 'िामानुज नुििादि' हैं। तदमल काव्य में आगम वगा की कदवताएं भगवान शशव की प्रशंसा में शलखी गयी हैं।
चोल साम्राज्य के दवस्ताि औि उसके वैभव से उसके शासकों के शलए तंजौि, गंगईकोंडचोलपुिम, कांची जैसे बड़े नगिों
का ननमााण सभभव हो सका। शासकों ने अपने शलए बड़े-बड़े महल, जो बागानों से सुसशज्जत थे, बनवाए। चोल शासकों ने पाूँच औि

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सात मंत़्िली इमाितें बनवायीं औि उनके सििािों के पास तीन से पाूँच मंत़्िले महल थे। दुभाावयवश उस काल की एक भी इमाित
ऐसी नहीं बची है। चोलों की िाजधानी गंगईकोंडचोलपुिम अब तंजौि के ननकट एक छोटा सा गाूँव मार है। लेदकन इस युग के
सानहत्य से हमें चोल शासकों औि उनके मंनरयों तथा बड़े व्यापारियों के दवशाल महलों औि उनके वैभव के बािे में पता चलता है।
मत्न्िि िापत्य कला
तंजौि के वृहिेश्वि मंदिि का गोपुिम

चोल सम्राट शशव के उपासक थे लेदकन उनकी नीदत धार्ममक सनहष्णुता


की थी। उन्होंने बौद्धों को भी िान दिया। जैन भी शांदतपूवाक अपने धमा का
पालन औि प्रचाि किते थे। पूवायुग के तदमल धार्ममक पि वेिों जैसे पूत्जत
होने लगे औि उनके िचदयता िेवता स्वरूप माने जाने लगे। नंदब आंडाि नंदब
ने सवाप्रथम िाजिाज प्रथम के िाज्यकाल में शैव धमाग्रंथों को संकशलत
दकया। वैष्णव धमा के शलए यही काया नाथमुनन ने दकया। उन्होंने भशक्त के
मागा का िाशाननक समथान प्रस्तुत दकया। उनके पौर आलवंिाि
अथवा यमुनाचाया का वैष्णव आचायषं में महत्वपूणा िान
है। िामानुज ने दवशशिािै त िशान का प्रदतपािन दकया मंदििों की पूजा
दवदध में सुधाि दकया औि कुछ मंदििों में वर्ा में एक दिन अंत्यजों के प्रवेश
की भी व्यविा की। शैवों में भशक्तमागा के अदतरिक्त बीभत्स आचािोंवाले
कुछ संप्रिाय, पाशुपत, कापाशलक औि कालामुख जैसे थे, त्जनमें से कुछ स्त्रीत्व की आिाधना किते थे , जो प्राय: दवकृत रूप ले
लेती थी। िेवी के उपासकों में अपना शसि काटकि चढ़ाने की भी प्रथा थी। इस युग के धार्ममक जीवन में मंदििों का दवशेर् महत्व
था। छोटे या बड़े मंदिि, चोल िाज्य के प्राय: सभी नगिों औि गाूँवों में इस युग में बने। ये मंदिि, शशिा के केंद्र भी थे। त्योहािों औि
उत्सवों पि इनमें गान, नृत्य, नाट्य औि मनोिंजन के आयोजन भी होते थे। मंदििों के स्वादमत्व में भूदम भी होती थी औि कई कमाचािी
इनकी अधीनता में होते थे। ये बैंक का काया थे। कई उद्योगों औि शशल्पों के व्यशक्तयों को मंदििों के कािण जीदवका दमलती थी।

चोल सम्राटों के युग में िशिण भाित में मत्न्िि िापत्य अपने शशखि पि था। इनके समय मत्न्िि िापत्य में एक नयी शैली
का दवकास हुआ। इस शैली को 'द्रदवड़' कहते हैं। क्योंदक यह अदधकांश िशिण भाित में सीदमत थी। इसकी प्रमुख दवशेर्ता यह
थी दक, गभागृह, अथाात् प्रदतमा कि के ऊपि एक के बाि एक कि पाूँच से सात मंत़्िलों तक का ननमााण होता था। हि मंत़्िल एक
दवशेर् शैली में ननर्ममत होती थी त्जसे 'दवमान' कहते थे। प्रदतमा कि के सामने खभबों वाला औि सपाट छत का एक दवशाल हौल
था, त्जसे 'मंडप' के नाम से जाना जाता था। इसके खभबों पि बािीक खुिाई होती थी। मंडप में दवशेर् अवसिों पि सभाएूँ होती थीं
औि 'िेविाशसयों' का नृत्य होता था। िेविाशसयाूँ ऐसी स्स्त्रयों को कहते थे, त्जन्हें िेवताओं की सेवा के शलए अर्पपत कि दिया जाता
था। कभी-कभी प्रदतमा कि के चािों ओि एक गशलयािा होता था। तादक भक्त लोग प्रदतमा की परिक्रमा कि सकें। इस गशलयािे
में भी कई िेवी-िेवताओं की मूर्मतयाूँ होती थीं। मंडप तथा प्रदतमा कि एक ऊूँची िीवािों वाले बहुत बड़े प्रांगण से दघिा िहता था,
त्जसमें प्रवेश के शलए बड़े-बड़े ििवा़िे थे जो 'गोपुिम्' के नाम से जाने जाते थे। समय के साथ दवमानों को औि ऊूँचा किने का
रिवाज बढ़ता गया, प्रांगणों की संख्या िो या तीन तक बढ़ा िी गई तथा गोपुिम् औि अदधक भव्य होते गए। इस प्रकाि मत्न्ििों ने
छोटे-मोटे महल अथवा शहिों का रूप धािण कि शलया। त्जसमें पुिोनहत तथा मत्न्िि से सभबत्न्धत अन्य लोग िहते थे। मत्न्ििों को
खचे के शलए कि-मुक्त भूदम का अनुिान दिया जाता था। इसके अलावा धनी व्यापािी भी इन्हें िान िे ते थे। कुछ मत्न्ििों के पास तो
इतनी सभपशत्त हो गई दक, वे भी व्यापाि औि ऋण िेने का काम किने लगे।

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शचिभबिम का नटिाज मंदिि
द्रदवड़ शैली के आिभभ के काल के मत्न्िि
िापत्य का उिाहिण हमें कांची में कैलाशनाथाि
मंदिि में दमलता है। इसका उत्कृि उिाहिण
हमें तंजावुि में िाजिाज प्रथम िािा ननर्ममत 'बृहिीश्वि
मत्न्िि' में दमलता है। इसे िाजिाज मत्न्िि कह कि पुकािा
जाता है। क्योंदक चोल सम्राट मत्न्ििों में िेवी-िेवताओं
की प्रदतमाओं के अलावा अपनी तथा िाननयों की मूर्मतयाूँ
भी प्रदतष्ठानपत किते थे। गंगाईकोंडाचोलापुिम् के मत्न्िि
में भी, यद्यनप यह टू टी-फूटी स्थिदत में है, हमें चोल सम्राटों
के काल के मत्न्िि िापत्य शैली का अच्छा उिाहिण िेखने को दमलता है। िशिण भाित के अन्य जगहों में भी बड़ी संख्या में
मत्न्ििों का ननमााण किाया गया। लेदकन चोल सम्राटों ने ऐसे कायषं को पड़ोसी िाज्यों की जनता को लूटकि दकया।
चोलों का िाष्रीय झण्ड्डा
चोलों के पतन के बाि चालुक्यों औि होयसलों ने मत्न्िि
ननमााण का काम जािी िखा। धािवाि त़्िले तथा होयसलों की
िाजधानी 'हेलेदबड' में कई मत्न्िि हैं। इनमें सबसे भव्य 'होयसलेश्वि
मत्न्िि' है। चालुक्य शैली का यह सबसे अच्छा उिाहिण है। मत्न्िि
में िेवी-िेवताओं औि उनके परिचािकों, यि औि यशिणी की
मूर्मतयों के अलावा ऐसे शचरपट्ट हैं त्जन पि जीवन के दवशभन्न पहलुओं,
जैसे नृत्य कला, संगीत, युद्ध औि प्रणय के िृश्य तिाशे हुए हैं। इससे यह
प्रमाशणत होता है दक जीवन औि धमा में बहुत गहिा सभबन्ध था। आम
आिमी के शलए मत्न्िि मार पूजा का िान नहीं, बस्थल्क सामात्जक
औि सांस्कृदतक जीवन का भी केन्द्र था।
वृहिेश्वि मंदिि में िाजिाज की प्रदतमा
इस युग में िशिण भाित में वास्तु कला भी बड़ी दवकशसत थी। इसका एक उिाहिण
हमें श्ावण बेलगोला में 'गोमतेश्वि' की दवशाल प्रदतमा में दमलता है। इस युग में प्रदतमा गढ़ने की
कला भी अपने शशखि पि थी, जैसा दक हम नृत्य की मुद्रा में शशव, नटिाज, की प्रदतमा में िे खते हैं।
इस काल की नटिाज की प्रदतमाएूँ , दवशेर्कि जो कांस्य में गढ़ी गई हैं, इस काल की उत्कृि
उिाहिण हैं। ये मूर्मतयाूँ भाितीय तथा दविेशी संग्रहालयों की शोभा हैं।
लुप्तमोम तकनीक-मूर्मतकला में चोलों की दवश्व को बेजोड़ िेन
चोलों की सांस्कृदतक उपलत्धधयों के कई प्रदतमान हैं। उनकी मंदिि िापत्य कला बेदमसाल थी। लेदकन इसके साथ ही
उनकी अतुलनीय रूप से सुस्पि, चमकीली औि सुंिि मूर्मत कला का कोई सानी नहीं दमलता है। इस मामले में चोलकालीन नटिाज
की प्रदतमा एक िेिीप्यमान उिाहिण है त्जसे लुप्तमोम तकनीक से बनाया गया था।इस के अंतगात सवाप्रथम मोम की एक प्रदतमा
बनाई जाती थी, इसे शचकनी दमट्टी से पूिी तिह शलप्त कि सूखने के शलए छोड़ दिया जाता था जब वह पूिी तिह सूख जाती थी तो
उसे गमा दकया जाता था। औि उसके दमट्टी के आविण में एक छोटा सा छे ि बना कि उस छे ि के िास्ते सािा नपघला हुआ मोम
बाहि ननकाल शलया जाता था। नफि शचकनी दमट्टी के खाली सांचे में उसी छे ि के िास्ते पगली हुई धातु भि िी जाती थी ,जब वह
धातु ठं डी होकि ठोस हो जाती थी शचकनी दमट्टी के आविण को सावधानीपूवाक हटा दिया जाता था, औि उसमें से ननकली प्रदतमा
को साफ किके चमका दिया जाता था इसे ही मूर्मत ननमााण की तकनीक कहते हैं।

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इस प्रकाि कहा जा सकता है दक प्राचीन औि मध्यकालीन भाितीय िाजवंशों की शृंखला में चोल वंश एक शानिाि
शासकीय वंश था त्जसने िाजनीदत, समाज, धमा, अथा, िापत्य, सानहत्य औि जीवन के हि िेर में शानिाि उपलत्धधयां हाशसल
की थी। यह भाित का एकमार ऐसा िाजवंश था त्जसने समुद्रपािीय साम्राज्य के सपने को साकाि दकया था। यह पहला औि अंदतम
िाजवंश था जो घोि िशिण िेर से प्रादुभूात होकि उत्ति भाित पि अपना प्रत्यि ननयंरण किने में कामयाब हुआ। इन्हीं उपलत्धधयों
की वजह से िशिण भाितीय इदतहास में इसे सवषपरि िान प्राप्त है।

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