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व ाथ जीवन म

गीता का मह व
बड़े-बुजुग को कहते सुना होगा क गीता म जीवन का सार है. ी
कृ ण ने महाभारत यु म अजुन को कु छ उपदे श दए थे, जससे
उस यु को जीतना पाथ के लए आसान हो गया. यहां दए गए
गीता के कु छ उपदे श को अपने जदगी म शा मल करके आप भी
अपने ल य को पाने म स म ह गे जैसे... 
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1. योग : कु कमा ण
संग य वा धनंजय।
स य- स यो: समो
भू वा सम वं योग उ यते।।
अथ-– मोह त अजुन को भगवान ने धम का अथ कत के प म
समझाया। अथात कत ही धम है। आज के युग म हम धम को अपने अपने
ढं ग से प रभा षत करने लगे है।
हम अपने कत को पूरा करने म कभी यश-अपयश और हा न-लाभ का
वचार नह करना चा हए। बु को सफ अपने कत यानी धम पर
टकाकर काम करना चा हए । इससे प रणाम बेहतर मलगे और मन म
शां त का वास होगा। कत हमारी अपने प रवार ,अपने समाज ,और वयं
के त ज मेदारी है ,
हम अपने कम ( अपनी जॉब , अपना बजनेस , अपने दा य व ) को धम क
तरह मानना चा हए। और एका चत होकर अपने कम का पालन करना
चा हए ।
2. नात बु रयु य न
चायु य भावना।
न चाभावयत: शां तरशांत य
कु त: सुखम्।।
अथ- हम सब मनु य सुख क इ ा रखते है , और इसी सुख क
ा त के लए हम जीवन भर यासरत रहते है। पर तु सुख का मूल तो
हमारे अपने मन म त होता है। जस मनु य का मन इं य यानी धन,
वासना, आल य आ द म ल त है, उसके मन म भावना ( आ म ान)
नह होती।हम अपने ल य (सुख ) को पाने के लए मन पर नयं ण
रखना चा हए नह तो हम कभी सुखी नह रह सकगे। इंसान क
इ ाए कभी समा त नह होती और ग त करने के लए इ ाओ का
होना ज री भी है। पर इ ाए इतनी बल न हो क वो ल य ा त म
बाधा बन जाये अतः मन इ य पर नयं ण ही सफलता क कुं जी है।
3.वहाय कामान् य:
कवा पुमां र त न ृह:।I
नममो नरहंकार स
शां तम धग त।।
अथ-आज के जीवन के स दभ म इस शलोक का अथ इस कार है
क जीवन म जो भी ल य है उनक ा त के लए हम अपनी इ ाओ ,
कामनाओ और अहंकार का याग करना चा हए। यो क कम करते
व त सफ कम को यान म रखना चा हए और पूरी मता से कम
करना चा हए। इससे हम अकम क भावना नह होती। अपनी पसंद के
प रणाम क इ ा हम कमजोर कर दे ती है। वो ना हो तो का
मन और यादा अशांत हो जाता है। मन से ममता अथवा अहंकार
आ द भाव को मटाकर हम त मयता से अपने कत का पालन
करना होगा। तभी मनु य को शां त ा त होगी।
4. न हक णम प
जातु त यकमकृ त्।
कायते श: कम सव
कृ तजैगुणै:।।
अथ- इस ोक म बताया गया है कम हमारे जीवन का मूल है। कृ त हमसे
हर त म कम करवा रही होती है। उदाहरण के लए मान लो एकग का
दाना अगर म म गर जाये और उसे पानी हवा धुप मले तो वो पौधा बन
जाता है , पर य द वह ऐसे ही रखा रहे तो भी वह कम को ा त होकर सड़
जाता है , अथात कृ त अपना काम करती रहती है। बुरे प रणाम के डर से
अगर ये सोच ल क हम कु छ नह करगे, तो ये हमारी मूखता है। खाली बैठे
रहना भी एक तरह का कम ही है, जसका प रणाम हमारी आ थक हा न,
अपयश और समय क हा न के प म मलता है। इस लए कभी भी कम के
त उदासीन नह होना चा हए, अपनी मता और ववेक के आधार पर हम
नरंतर कम करते रहना चा हए।
5. नयतं कु कम वं कम
यायो कमण:।
शरीरया ा प च ते न
स येदकमण:।।
अथ- हर मनु य को अपने अपने धम के अनुसार ही कमा
करते रहना चा हए , जैसे एक व ाथ का धम है श ा ा त
करना , डॉ टर का धम है .अपने मरीज क सेवा करना और
उनका इलाज करना , इसी कार हम सब अपने अपने काम
(धम ) से जुड़े है। कम कये बना अपना वयं का पालन
पोषण भी संभव नह । जस का जो कत तय है, उसे
वो पूरा करना ही चा हए ।

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