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गिल्लू पाठ की व्याख्या

सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है । इसे दे खकर अनायास ही उस छोटे जीव
का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर
मेरे निकट पहुँचते ही कंधे पर कूदकर मुझे चैंका दे ता था। तब मुझे कली की खोज
रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज है । परं तु वह तो अब तक इस सोनजुही की
जड़ में मिट्टी होकर मिल गया होगा। कौन जाने स्वर्णिम कली के बहाने वही मुझे
चैंकाने ऊपर आ गया हो!

शब्दार्थ -
ु ी - जह
असोनजह ू ी (पष्ु प) का एक प्रकार जो पीला होता है
अनायास - अचानक
हरीतिमा - हरियाली
ु ाण - छोटा जीव
लघप्र

व्याख्या - लेखिका कहती है कि आज जह


ू ी के पौधे में कली निकल आई है जो पिले
रं ग की है । उस कली को दे खकर लेखिका को उस छोटे से जीव की याद आ गई जो
उस जह
ू ी के पौधे की हरियाली में छिपकर बैठा रहता था और जब लेखिका उसके
नजदीक पहुँचती तो वह लेखिका का कंधे पर कूदकर लेखिका को चौंका दे ता था।
समय लेखिका को उन पीली कलियों की तलाश रहती थी परन्तु आज छोटे से जीव
की तलाश रहती है । परन्तु लेखिका कहती है कि अब तो वह छोटा जीव इस जूही के
पौधे की जड़ में मिट्टी बन कर मिल गया होगा। लेखिका यह भी अंदाजा लगाती है
कि क्या पता वह उस पीली कली के रूप में आकर लेखिका को चौंकाने के लिए ऊपर
आ गया हो। यहाँ लेखिका अपनी पालतू गिलहरी के बारे बात कर रही है जो अब मर
चक
ु ी है और लेखिका ने उसे जूही के पौधे की जड़ में दबा दिया था।

अचानक एक दिन सवेरे कमरे से बरामदे में आकर मैंने दे खा, दो कौवे एक गमले के
चारों ओर चोंचों से छूआ-छुऔवल जैसा खेल खेल रहे हैं। यह काकभश
ु ंडि
ु भी विचित्र
पक्षी है -एक साथ समादरित अनादरित, अति सम्मानित अति अवमानित।
हमारे बेचारे परु खे न गरुड़ के रूप में आ सकते हैं, न मयरू के, न हं स के। उन्हें
पितरपक्ष में हमसे कुछ पाने के लिए काक बनकर ही अवतीर्ण होना पड़ता है । इतना
ही नहीं हमारे दरू स्थ प्रियजनों को भी अपने आने का मधु संदेश इनके कर्क श स्वर में
ही दे ना पड़ता है । दस
ू री ओर हम कौवा और काँव-काँव करने को अवमानना के अर्थ में
ही प्रयुक्त करते हैं।
शब्दार्थ -
छूआ-छुऔवल - चुपके से छूकर छुप जाना और फिर छूना
काकभुशुंडि - (रामायण) एक राम भक्त जो लोमश ऋषि के शाप से कौआ हो गए थे
समादरित - विशेष आदर
अनादरित - आदर का अभाव, तिरस्कार
अवतीर्ण - प्रकट
कर्क श - कटु, कानों को न भाने वाली

व्याख्या - लेखिका कहती है कि अचानक एक दिन जब वह सवेरे कमरे से बरामदे में


आई तो उसने दे खा कि दो कौवे एक गमले के चारों ओर चोंचों से चप
ु के से छूकर छुप
जाना और फिर छूना जैसा कोई खेल खेल रहे हैं। लेखिका कहती है कि यह कौवा भी
बहुत अनोखा पक्षी है -एक साथ ही दो तरह का व्यवहार सहता है , कभी तो इसे बहुत
आदर मिलता है और कभी बहुत ज्यादा अपमान सहन करना पड़ता है । जैसे हमारे
बेचारे पुरखे न गरुड़ के रूप में आ सकते हैं, न मयूर के, न हं स के। उन्हें पितरपक्ष में
हमसे कुछ पाने के लिए कौवा बनकर ही प्रकट होना पड़ता है । इतना ही नहीं हमारे
दरू रहने वाले रिश्तेदारों को भी अपने आने का सुखद संदेश इनके कानों को न भाने
वाली आवाज में ही दे ना पड़ता है । वही जहाँ एक ओर कौवे को इतना आदर मिलता है
वहीं दस
ू री ओर हम कौवा और काँव-काँव करने को अपशगुन के अर्थ में भी प्रयोग
करते हैं। और कौवे को अपने आँगन से भगा कर उसका अपमान भी करते हैं।
मेरे काकपुराण के` विवेचन में अचानक बाधा आ पड़ी, क्योंकि गमले और दीवार की
संधि में छिपे एक छोटे -से जीव पर मेरी दृष्टि रुक गई। निकट जाकर दे खा, गिलहरी
का छोटा-सा बच्चा है जो संभवतः घोंसले से गिर पड़ा है और अब कौवे जिसमें सुलभ
आहार खोज रहे हैं।
काकद्वय की चोंचों के दो घाव उस लघुप्राण के लिए बहुत थे, अतः वह निश्चेष्ट-सा
गमले से चिपटा पड़ा था।

शब्दार्थ -
संभवतः - अवश्य ही
सल
ु भ - आसान
काकद्वय - दो कौए
निश्चेष्ट - बिना किसी हरकत के

व्याख्या - लेखिका कहती है कि जब वह कौवो के बारे में सोच रही थी तभी अचानक
से उसकी उस सोच में कुछ रुकावट आ गई क्योंकि उसकी नजर गमले और दीवार
को जोड़ने वाले भाग में छिपे एक छोटे -से जीव पर पड़ी। जब लेखिका ने निकट
जाकर दे खा तो पाया कि वह छोटा सा जीव एक गिलहरी का छोटा-सा बच्चा है जो
अवश्य ही अपने घोंसले से निचे गिर पड़ा है और अब कौवे उसमें अपना आसान
भोजन खोजते हुए उसे चोट पहुँचा रहे हैं। उस छोटे से जीव के लिए उन दो कौवों की
चोंचों के दो घाव ही बहुत थे, इसलिए वह बिना किसी हरकत के गमले से लिपटा पड़ा
था।
सबने कहा, कौवे की चोंच का घाव लगने के बाद यह बच नहीं सकता, अतः इसे ऐसे
ही रहने दिया जाए।
परं तु मन नहीं माना-उसे हौले से उठाकर अपने कमरे में लाई, फिर रुई से रक्त
पोंछकर घावों पर पें सिलिन का मरहम लगाया।
रुई की पतली बत्ती दध
ू से भिगोकर जैसे-जैसे उसके नन्हे से मँह
ु में लगाई पर मँह

खुल न सका और दध
ू ् की बँद
ू ें दोनों ओर ढुलक गईं।
कई घंटे के उपचार के उपरांत उसके  मँह
ु में एक बँद
ू पानी टपकाया जा सका।
तीसरे दिन वह इतना अच्छा और आश्वस्त हो गया कि मेरी उँ गली अपने दो नन्हे
पंजों से पकड़कर, नीले काँच के मोतियों जैसी आँखों से इधर-उधर दे खने लगा।
तीन-चार मास में उसके स्निग्ध ् रोएँ, झब्बेदार पँछ
ू और चंचल चमकीली आँखें सबको
विस्मित करने लगीं।

शब्दार्थ -
हौले - धीरे
आश्वस्त - निश्चिन्त
स्निग्ध ् - चिकना
विस्मित - आश्चर्यचकित

व्याख्या - लेखिका कहती है कि उस गिलहरी के बच्चे की इतनी खराब हालत दे ख कर


सबने कहा, कौवे की चोंच का घाव लगने के बाद यह नहीं बच सकता, इसलिए इसे
ऐसे ही रहने दिया जाए। परं तु लेखिका का मन नहीं माना लेखिका ने उसे धीरे से
उठाया और अपने कमरे में ले गई, फिर रुई से उसका खून साफ़ किया और उसके
जख्मों पर पें सिलिन नामक दवा का मरहम लगाया। फिर लेखिका ने रुई की पतली
बत्ती बनाई और उसे दध
ू से भिगोकर जैसे-जैसे उसके छोटे से मँह
ु में दध
ू पिलाने के
लिए लगाई तो लेखिका ने दे खा कि वह मँह
ु नहीं खल
ु पा रहा था और दध
ू की बँद
ू ें
मँह
ु के दोनों ओर ढुलक कर गिर गईं। कई घंटे तक इलाज करने के बाद उसके  मँह

में एक बँद
ू पानी टपकाया जा सका। तीसरे दिन वह इतना अच्छा और निश्चिन्त हो
गया कि वह लेखिका की उँ गली अपने दो नन्हे पंजों से पकड़कर और अपनी नीले
काँच के मोतियों जैसी आँखों से इधर-उधर दे खने लगा। लेखिका ने उसका अच्छे से
ध्यान रखा जिसके परिणाम स्वरूप तीन-चार महीनों में उसके चिकने रोएँ, झब्बेदार
पँछ
ू और चंचल चमकीली आँखें सबको है रान करने लगी थी। अर्थात वह बहुत
आकर्षक बन गया था।
हमने उसकी जातिवाचक संज्ञा को व्यक्तिवाचक का रूप दे दिया और इस प्रकार हम
उसे गिल्लू कहकर बल
ु ाने लगे। मैंने फूल रखने की एक हलकी डलिया में रुई बिछाकर
उसे तार से खिड़की पर लटका दिया।
वही दो वर्ष गिल्लू का घर रहा। वह स्वयं हिलाकर अपने घर में झल
ू ता और अपनी
काँच के मानकों-सी आँखों से कमरे के भीतर और खिड़की से बाहर न जाने
क्या दे खता-समझता रहता था। परं तु उसकी समझदारी और कार्यकलाप पर सबको
आश्चर्य होता था।

शब्दार्थ -
कार्यकलाप - दिन भर के काम
आश्चर्य - है रान

व्याख्या - लेखिका कहती है कि उसने उस गिलहरी को केवल अब एक जाति न रख


कर व्यक्तिवाचक कर दिया था अर्थात उसने अब उसका नाम रख दिया था। सब उसे
अब गिल्लू कह कर पुकारते थे। लेखिका ने एक फूल रखने की हलकी सी डाली में रुई
बिछाई और एक तार की मदद से उसे खिड़की पर टाँग दिया। दो साल तक यही फूल
रखने की हलकी डाली ही गिल्लू का घर थी। लेखिका कहती है कि वह खुद से ही
अपने इस घर को झुलाता और झूलने के मज़े लेता और काँच के गोलों के समान
अपनी सुंदर आँखों से न जाने खिड़की से बाहर क्या दे खता था और न जाने क्या
समझता था। परन्तु उसकी समझदारी और दिन भर के उसके सभी कामों को दे ख कर
सभी है रान हो जाते थे।
जब मैं लिखने बैठती तब अपनी ओर मेरा ध्यान आकर्षित करने की उसे इतनी तीव्र
इच्छा होती थी कि उसने एक अच्छा उपाय खोज निकाला। वह मेरे पैर तक आकर
सर्र से परदे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेज़ी से उतरता। उसका यह दौड़ने का क्रम
तब तक चलता जब तक मैं उसे पकड़ने के लिए न उठती।
कभी मैं गिल्लू को पकड़कर एक लंबे लिफ़ाफ़े में इस प्रकार रख दे ती कि उसके अगले
दो पंजों और सिर के अतिरिक्त सारा लघुगात लिफ़ाफ़े के भीतर बंद रहता। इस अद्भत

स्थिति में कभी-कभी घंटों मेज पर दीवार के सहारे खड़ा रहकर वह अपनी चमकीली
आँखों से मेरा कार्यकलाप दे खा करता।

शब्दार्थ -
सर्र से - तेज़ी से
लघुगात - छोटा शरीर
ु - अनोखी
अद्भत

व्याख्या - लेखिका कहती है कि जब वह लिखने बैठती थी तब अपनी ओर लेखिका का


ध्यान आकर्षित करने की गिल्लू की इतनी तेज इच्छा होती थी कि उसने एक बहुत
ही अच्छा उपाय खोज निकाला था। वह लेखिका के पैर तक आता था और तेज़ी से
परदे पर चढ़ जाता था और फिर उसी तेज़ी से उतर जाता था। उसका यह इस तरह
परदे पर चढ़ना और उतरने का क्रम तब तक चलता रहता था जब तक लेखिका उसे
पकड़ने के लिए नहीं उठती थी। लेखिका गिल्लू को पकड़कर एक लंबे लिफ़ाफ़े में इस
तरह से रख दे ती थी कि उसके अगले दो पंजों और सिर के अलावा उसका छोटा सा
पूरा शरीर लिफ़ाफ़े के अंदर बंद रहता था। इस तरह बंद रहने के कारण वह फिर से
उछाल-कूद करके लेखिका को परे शान नहीं कर पाता था। इस अनोखी स्थिति में भी
कभी-कभी घंटों मेज पर दीवार के सहारे खड़ा रहकर गिल्लू अपनी चमकीली आँखों से
लेखिका को दे खता रहता था कि लेखिका क्या-क्या काम कर रही है ।
भूख लगने पर चिक-चिक करके मानो वह मुझे सूचना दे ता और काजू या बिस्कुट
मिल जाने पर उसी स्थिति में लिफ़ाफ़े से बाहर वाले पंजों से पकड़कर उसे कुतरता।
फिर गिल्लू के जीवन का प्रथम बसंत आया। नीम-चमेली की गंध मेरे कमरे में हौले-
हौले आने लगी। बाहर की गिलहरियाँ खिड़की की जाली के पास आकर चिक-चिक
करके न जाने क्या कहने लगीं?
गिल्लू को जाली के पास बैठकर अपनेपन से बाहर झाँकते दे खकर मुझे लगा कि इसे
मुक्त करना आवश्यक है ।

शब्दार्थ -
गंध - खश
ु बू
हौले-हौले - धीरे -धीरे
मुक्त - आजाद

व्याख्या - लेखिका कहती है कि जब गिल्लू को उस लिफ़ाफ़े में बंद पड़े-पड़े भूख लगने
लगती तो वह चिक-चिक की आवाज करके मानो लेखिका को सच
ू ना दे रहा होता कि
उसे भूख लग गई है और लेखिका के द्वारा उसे काजू या बिस्कुट मिल जाने पर वह
उसी स्थिति में लिफ़ाफ़े से बाहर वाले पंजों से काजू या बिस्कुट पकड़कर उसे कुतरता।
लेखिका के घर में रहते हुए फिर गिल्लू के जीवन का प्रथम बसंत आया। नीम-चमेली
की खुशबू लेखिका के कमरे में धीरे -धीरे फैलने लगी। लेखिका कहती है कि बाहर की
गिलहरियाँ उसके घर की खिड़की की जाली के पास आकर चिक-चिक करके न जाने
क्या कहने लगीं? जिसके कारण गिल्लू खिड़की से बाहर झाँकने लगा। गिल्लू को
जाली के पास बैठकर अपनेपन से इस तरह बाहर झाँकते दे खकर ले खिका को लगा
कि इसे आजाद करना अब जरुरी है ।
मैंने कीलें निकालकर जाली का एक कोना खोल दिया और इस मार्ग से गिल्लू ने
बाहर जाने पर सचमुच ही मुक्ति की साँस ली। इतने छोटे जीव को घर में पले कुत्ते,
बिल्लियों से बचाना भी एक समस्या ही थी।
आवश्यक कागज़-पत्रों के कारण मेरे बाहर जाने पर कमरा बंद ही रहता है । मेरे काॅलेज
से लौटने पर जैसे ही कमरा खोला गया और मैंने भीतर पैर रखा, वैसे ही गिल्लू अपने
जाली के द्वार से भीतर आकर मेरे पैर से सिर और सिर से पैर तक दौड़ लगाने
लगा। तब से यह नित्य का क्रम हो गया।

शब्दार्थ -
समस्या - परे शानी
आवश्यक - जरुरी
नित्य - हमेशा

व्याख्या - लेखिका कहती है कि गिल्लू को खिड़की से बाहर दे खते हुए दे खकर उसने
खिड़की पर लगी जाली की कीलें निकालकर जाली का एक कोना खोल दिया और इस
रास्ते से गिल्लू जब बाहर गया तो उसे दे खकर ऐसा लगा जैसे बाहर जाने पर सचमुच
ही उसने आजादी की साँस ली हो। इतने छोटे जीव को घर में पले कुत्ते, बिल्लियों से
बचाना भी एक बहुत बड़ी परे शानी ही थी। क्योंकि वह आजतक केवल घर के अंदर ही
रहता था इसलिए बाहर जाने पर उसे बाहर के खतरों से बचने में काफी परे शानी हुई।
लेखिका को जरुरी कागज़ो-पत्रों के कारण बाहर जाना पड़ता था और उसके बाहर जाने
पर कमरा बंद ही रहता था। लेखिका कहती है कि उसने काॅलेज से लौटने पर जैसे ही
कमरा खोला और अंदर पैर रखा, वैसे ही गिल्लू अपने उस जाली के दरवाजे से अंदर
आया और लेखिका के पैर से सिर और सिर से पैर तक दौड़ लगाने लगा। उस दिन
से यह हमेशा का काम हो गया था।
मेरे कमरे से बाहर जाने पर गिल्लू भी खिड़की की खुली जाली की राह बाहर चला
जाता और दिन भर गिलहरियों के झंड
ु का नेता बना हर डाल पर उछलता-कूदता
रहता और ठीक चार बजे वह खिड़की से भीतर आकर अपने झूले में झूलने लगता।
मुझे चैंकाने की इच्छा उसमें न जाने कब और कैसे उत्पन्न हो गई थी। कभी फूलदान
के फूलों में छिप जाता, कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही की पत्तियों में ।
मेरे पास बहुत से पश-ु पक्षी हैं और उनका मझ
ु से लगाव भी कम नहीं है , परं तु उनमें से
किसी को मेरे साथ मेरी थाली में खाने की हिम्मत हुई है , ऐसा मुझे स्मरण नहीं
आता।

शब्दार्थ -
राह - रास्ता
उत्पन्न - पैदा
स्मरण - याद

व्याख्या - लेखिका कहती है कि जैसे ही वह कॉलेज जाने के लिए कमरे से बाहर जाती
थी गिल्लू भी खिड़की की खुली जाली  रास्ते से बाहर चला जाता था और दिन भर
गिलहरियों के झुंड का नेता बना हर एक डाल से दस
ू री डाल पर उछलता-कूदता रहता
और ठीक चार बजे वह खिड़की से भीतर आकर अपने झूले में झूलने लगता। लेखिका
कहती है कि गिल्लू को उसे चैंकाने की इच्छा न जाने कब और कैसे पैदा हो गई थी।
वह कभी फूलदान के फूलों में छिप जाता, कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही
की पत्तियों में छिप कर लेखिका को चौंका दे ता था। लेखिका के पास बहुत से पश-ु
पक्षी थे जो लेखिका के पालतू भी थे और उनका लेखिका से लगाव भी कम नहीं था,
परं तु उनमें से किसी भी लेखिका के साथ उसकी थाली में खाने की हिम्मत हुई हो,
ऐसा लेखिका को याद नहीं आता। इसका अर्थ यह है की गिल्लू लेखिका की थाली में
से ही भोजन खा लिया  करता था।
गिल्लू इनमें अपवाद था। मैं जैसे ही खाने के कमरे में पहुँचती, वह खिड़की से
निकलकर आँगन की दीवार, बरामदा पार करके मेज पर पहुँच जाता और मेरी थाली
में बैठ जाना चाहता। बड़ी कठिनाई से मैंने उसे थाली के पास बैठना सिखाया जहाँ
बैठकर वह मेरी थाली में से एक-एक चावल उठाकर बड़ी सफ़ाई से खाता रहता। काजू
उसका प्रिय खाद्य था और कई दिन काजू न मिलने पर वह अन्य खाने की चीजें या
तो लेना बंद कर दे ता या झूले से नीचे

क दे ता था।
शब्दार्थ -
अपवाद - सामान्य नियम को बाध्ति या मर्यादित करने वाला
खाद्य - भोजन
व्याख्या - लेखिका कहती है कि गिल्लू उसके पाले हुए सभी पशु-पक्षियों में सबसे
अलग था क्योंकि वह लेखिका के द्वारा बनाए गए सामान्य नियमों का पालन नहीं
करता था। लखिका जैसे ही खाने के कमरे में पहुँचती, वह भी खिड़की से निकलकर
आँगन की दीवार और बरामदा पार करके मेज पर पहुँच जाता था और लेखिका की
थाली में बैठ जाना चाहता था। बड़ी कठिनाई से लेखिका ने उसे थाली के पास बैठना
सिखाया जहाँ बैठकर वह लेखिका की थाली में से एक-एक चावल उठाकर बड़ी सफ़ाई
से खाता रहता था। काजू गिल्लू का सबसे मनपसंद भोजन था और यदि कई दिन
तक उसे काजू नहीं दिया जाता था तो वह अन्य खाने की चीजें या तो लेना बंद कर
दे ता था या झल
ू े से नीचे फेंक दे ता था।

उसी बीच मुझे मोटर दर्घ


ु टना में आहत होकर कुछ दिन अस्पताल में रहना पड़ा। उन
दिनों जब मेरे कमरे का दरवाजा खोला जाता गिल्लू अपने झूले से उतरकर दौड़ता
और फिर किसी दस
ू रे को दे खकर उसी तेजी से अपने घोंसले में जा बैठता। सब उसे
काजू दे आते, परं तु अस्पताल से लौटकर जब मैंने उसके झूले की सफाई की तो उसमें
काजू भरे मिले, जिनसे ज्ञात होता था कि वह उन दिनों अपना प्रिय खाद्य कितना
कम खाता रहा।
मेरी अस्वस्थता में वह तकिए पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हे -नन्हे पंजों से मेरे सिर
और बालों को इतने हौले-हौले सहलाता रहता कि उसका हटना एक परिचारिका के
हटने के समान लगता।

शब्दार्थ -
आहत - ज़ख्मी, घायल
घोंसले - नीड़, रहने की जगह
परिचारिका - सेविका

व्याख्या - लेखिका कहती है कि उसी बीच उसे मोटर दर्घ


ु टना में घायल होकर कुछ
दिन अस्पताल में रहना पड़ा। उन दिनों जब कोई लेखिका के कमरे का दरवाजा
खोलता तो गिल्लू अपने झल
ू े से उतरकर दौड़ता, उसे लगता कि लेखिका आई है और
फिर जब वह लेखिका की जगह किसी दस
ू रे को दे खता तो वह उसी तेजी के साथ
अपने घोंसले में जा बैठता। तो भी लेखिका के घर जाता वे सभी गिल्लू को काजू दे
आते, परं तु अस्पताल से लौटकर जब लेखिका ने उसके झूले की सफाई की तो उसमें
काजू भरे मिले, जिनसे लेखिका को पता चला कि वह उन दिनों अपना मनपसंद
भोजन भी कितना कम खाता रहा। लेखिका की अस्वस्थता में वह तकिए पर सिरहाने
बैठकर अपने नन्हे -नन्हे पंजों से लेखिका के सिर और बालों को इतने धीरे -धीरे
सहलाता रहता कि जब वह लेखिका के सिरहाने से हटता तो लेखिका को ऐसा लगता
जैसे उसकी कोई सेविका उससे दरू चली गई हो।

गर्मियों में जब मैं दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर जाता न अपने झूले
में बैठता। उसने मेरे निकट रहने के साथ गर्मी से बचने का एक सर्वथा नया उपाय
खोज निकाला था। वह मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार समीप भी
रहता और ठं डक में भी रहता।
गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती, अतः गिल्लू की जीवन
यात्रा का अंत आ ही गया। दिन भर उसने न कुछ खाया न बाहर गया। रात में अंत
की यात्रा में भी वह अपने झूले से उतरकर मेरे बिस्तर पर आया और ठं डे पंजों से
मेरी वही उँ गली पकड़कर हाथ से चिपक गया, जिसे उसने अपने बचपन की
मरणासन्न में पकड़ा था।

शब्दार्थ -
सर्वथा - सब प्रकार से
समीप - नजदीक
अवधि - समय
यातना - दःु ख
मरणासन्न - मत्ृ यु के समीप पहुँच जाने वाला

व्याख्या - लेखिका कहती है कि गर्मियों में जब वह दोपहर में अपना काम करती
रहती तो गिल्लू न बाहर जाता था और न ही अपने झल
ू े में बैठता था। गिल्लू ने
लेखिका के नजदीक रहने के साथ-साथ गर्मी से बचने का एक सबसे नया उपाय खोज
निकाला था। वह लेखिका पास रखी हुई सरु ाही पर लेट जाता था, जिससे  वह लेखिका
के नजदीक भी बना रहता और ठं डक में भी रहता। इस तरह उसने दो काम एक साथ
करना सीख लिया था। लेखिका कहती है कि गिलहरियों के जीवन का समय दो वर्ष
से अधिक नहीं होता, इसी कारण गिल्लू की जीवन यात्रा का अंत भी नजदीक आ ही
गया। दिन भर उसने न कुछ खाया न बाहर गया। रात में अपने जीवन के अंतिम
क्षण में भी वह अपने झूले से उतरकर लेखिका के बिस्तर पर आया और अपने ठं डे
पंजों से लेखिका की वही उँ गली पकड़कर हाथ से चिपक गया, जिसे उसने अपने
बचपन में पकड़ा था जब वह मत्ृ यु के समीप पहुँच गया था।                
पंजे इतने ठं डे हो रहे थे कि मैंने जागकर हीटर जलाया और उसे उष्णता दे ने का
प्रयत्न किया। परं तु प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और
जीवन में जागने के लिए सो गया।
उसका झूला उतारकर रख दिया गया है और खिड़की की जाली बंद कर दी गई है ,
परं तु गिलहरियों की नयी पीढ़ी जाली के उस पार चिक-चिक करती ही रहती है और
सोनजुही पर बसंत आता ही रहता है ।
सोनजह
ु ी की लता के नीचे गिल्लू को समाधि दी गई है -इसलिए भी कि उसे वह लता
सबसे अधिक प्रिय थी-इसलिए भी कि उस लघुगात का, किसी वासंती दिन, जुही के
पीताभ छोटे फूल में खिल जाने का विश्वास, मझ
ु े संतोष दे ता है ।
शब्दार्थ -
उष्णता - गरमी
प्रभात - सब
ु ह
पीताभ - पीले रं ग का

व्याख्या - लेखिका कहती है कि गिल्लू के पंजे इतने ठं डे हो रहे थे कि लेखिका ने


जागकर हीटर जलाया और उसके पंजों को गर्मी दे ने का प्रयास किया। परं तु सुबह की
पहली किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया।
अर्थात उसकी मत्ृ यु हो गई। लेखिका ने गिल्लू की मत्ृ यु के बाद उसका झूला उतारकर
रख दिया और खिड़की की जाली को बंद कर दिया, परं तु गिलहरियों की नयी पीढ़ी
जाली के दस
ू री ओर अर्थात बाहर चिक-चिक करती ही रहती है और जूही के पौधे में
भी बसंत आता ही रहता है । सोनजह
ु ी की लता के नीचे ही लेखिका ने गिल्लू की 
समाधि बनाई थी अर्थात लेखिका ने गिल्लू को उस जूही के पौधे के निचे दफनाया था
क्योंकि गिल्लू को वह लता सबसे अधिक प्रिय थी। लेखिका ने ऐसा इसलिए भी किया
था क्योकि लेखिका को उस छोटे से जीव का, किसी बसंत में जुही के पीले रं ग के
छोटे फूल में खिल जाने का विश्वास, लेखिका को एक अलग तरह का संतोष दे ता था।

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