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पाठ का सार
नीलकं ठ यह पाठ महादेवी वर्मा द्वारा लिखी गई है। महादेवी जी पशु प्रेमी थी इसलिए
महादेवी जी ने पशु-पक्षियों पर बहुत सारी कहानियाँ लिखी हैं। नीलकं ठ कहानी भी पशु
पक्षी की कहानी में से एक है। यहां नीलकं ठ एक मोर है। महादेवी अपने साथ दो मोरनी के
बच्चे ले आती हैं। एक नर मोर का नाम वह नीलकं ठ रखती हैं और दूसरे मादा मोर का
नाम राधा। नीलकं ठ स्वभाव में स्नेही, निडर, और साहसी है।

अपने स्वभाव के कारण वह लेखिका का प्रिय बन जाता है। परन्तु कु ब्जा मोरनी के आ
जाने से नीलकं ठ को अकाल मृत्यु का सामना करना पड़ता है। इस रचना में मनुष्य और
पक्षियों के आपसी प्रेम का बहुत ही सुंदर रूप देखने को मिलता है।
मूल्य परक बिंदु
► लेखिका ने पक्षियों के प्रति अपने प्रेम का सजीव चित्रण किया है।
► उन्होंने बताया कि पक्षियों में भी कोमल भावनाएं होती हैं |
► इस पाठ में उन्होंने नीलकं ठ नामक एक मोर के स्वभाव व सुंदरता का भी वर्णन किया है ।
► जाली घर में रहने वाले सभी अलग-अलग प्रवृत्ति और स्वभाव के थे फिर भी उनमें मित्रता थी।
► सब एक दूसरे के साथ मिलकर रहते थे ।
► कु ब्जा को जब उनके साथ छोड़ा गया तो उसकी किसी से मित्रता नहीं हुई क्योंकि वह स्वभाव से ईर्ष्यालु और झगड़ालू थी।
► उसे राधा का नीलकं ठ के साथ रहना पसंद नहीं  था। वह स्वयं नीलकं ठ के साथ रहना चाहती थी। नीलकं ठ से राधा की दूरी सहन
नहीं होती थी और वह 1 दिन बिना बीमारी और चोट के मर गया।
► राधा नीलकं ठ की प्रतीक्षा करती रहती है। कु ब्जा भी बच नहीं सकी। लेखिका को इन तीनों पक्षियों ने प्रकृ ति की विभिन्नता का ज्ञान
करवा दिया।
शब्दार्थ
► शब्द - अर्थ
► चिड़ीमार   -    पक्षियों को पकड़ने वाला 
► शावक     -       बच्चा
► अनुसरण - पीछे-पीछे चलना 
► नीलाभ - नीली आभा 
► सघन - बहुत घनी
► भंगिमा  - मुद्रा
► व्यथा - पीड़ा  
► चंचु प्रहार - चोंच से चोट करना
►   आर्तक्रं दन   - दर्द भरी आवाज में  चीखना
► मंथर - धीमी
►   अधर  - बीच में   
►   नवागंतुक - नया-नया आया हुआ
अभ्यास- नीलकं ठ
1.नीलकं ठ नामक पाठ किसके द्वारा लिखा गया है?
क) डॉ रामकु मार वर्मा   ख) महादेवी वर्मा ग) जयशंकर प्रसाद घ)  प्रयाग शुक्ल
2.स्टेशन से लौटती लेखिका ने ड्राइवर को किधर चलने को कहा?
क)सीधे घर चलने को  ख)  पंछी जानवरों की दुकान की ओर ग)  कार्यालय की ओर घ)  पुस्तकालय की ओर
3. मोर के दोनों बच्चों  को चिड़ीमार  कहां से पकड़ कर लाया था?
क)  शंकरगढ़ से  ख)  रामगढ़ से      ग)  बांधवगढ़ से  घ)   शिवगढ़ से
4. नीलकं ठ नामक पाठ किस विधा में लिखा गया है?
  क)  कहानी   ख)  कविता    ग) नाटक  घ)  रेखाचित्र
5.लेखिका ने उन शावकों के प्रति विशेष व्यवहार और तरीका क्यों अपनाया?
क)सुंदर होने के कारण ख)घरवालों द्वारा चलाए जाने के कारण ग)पक्षियों से प्रेम के कारण  घ)दया के भाव के कारण
प्र1 . मोर-मोरनी के नाम किस आधार पर रखे गए?
उ 1. मोर की गर्दन नीली होने के कारण उसका नामकरण नीलकं ठ हुआ । मोरनी का सदैव नीलकं ठ की छाया की तरह उसके साथ रहने के कारण उसका नाम राधा
पड़ा।
प्र 2. जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का किस प्रकार स्वागत हुआ?
उ 2. अपने निवास स्थान में दो नए मेहमानों को देखकर बाड़े के अन्य जानवरों में ऐसा कौतुहल जागा मानों घर में कोई नववधू का आगमन हुआ हो जिससे वह बहुत
प्रसन्न थे। परन्तु अपनी तरफ़ से इस बात को भी देखना चाहते थे कि नए मेहमान कै से हैं। सर्वप्रथम कबूतर नाचना छोड़कर दोनों के आगे पीछे घूमकर गुटरगूँ करने
लगे। मानो उनका निरीक्षण कर अपनी सहमती प्रकट कर रहे हों। उसी तरह सारे खरगोश एक ही क्रम में शान्त भाव से बैठकर सभापदों की भांति निरीक्षण कर रहे थे
तो खरगोश के बच्चों के लिए तो खेलकू द का कार्यक्रम ही चल पड़ा था।  वे इन दोनों के आसपास कू द रहे थे। तोते तो एक आँख बंद कर चुपचाप उनको देखकर अपनी
तरफ़ से निरीक्षण में लगे थे।
प्र 3. वसंत ऋतु में नीलकं ठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय क्यों हो जाता था?
उ 3. वसंत ऋतु के आरम्भ होते ही अपने स्वभाव के कारण नीलकं ठ अस्थिर हो उठता था। वर्षा ऋतु में जब आम के वृक्ष मंजरियों से लद जाते थे। अशोक का
वृक्ष नए गुलाबी पत्तों से भर जाता, तो वह बाड़े में स्वयं को रोक नहीं पाता था । उसे मेघों के उमड़ आने से पूर्व ही इस बात की आहट हो जाती थी कि आज वर्षा
अवश्य होगी। वह उसका स्वागत करने के लिए अपने स्वर में मंद के का करने लगता और उसकी गूँज सारे वातावरण में फै ल जाती थी। उस वर्षा में अपना मनोहारी
नृत्य करने के लिए वह अधीर हो उठता और जालीघर से निकलने के लिए छटपटा जाता था।
प्र 4 . लेखिका को नीलकं ठ की कौन-कौन सी चेष्टाएँ बहुत भाती थीं?
लेखिका को नीलकं ठ की निम्नलिखित चेष्टाएँ बहुत भाती थीं उदाहरण के लिए –
(1) नीलकं ठ वर्षा ऋतु के समय जब अपने इंद्रधनुष के गुच्छे के समान पखों को मंडलाकार बनाकर नाचता और राधा उसका साथ देती। वो मनोहारी दृश्य देखकर लेखिका मंत्रमुग्ध हो
जाती थी। लेखिका कहती है – नीलकं ठ जाने कै से यह भाँप गया था कि उसका नृत्य मुझें बहुत भाता था। बस जब भी लेखिका उसके समक्ष होती तो नृत्य-भंगिमा की मुद्रा में खड़ा हो
जाता। नीलकं ठ की लेखिका को प्रसन्न करने की चेष्टा, लेखिका को बहुत पसन्द था।
(2) लेखिका के अनुसार नीलकं ठ की चोंच के प्रहार ने साँप के दो टुकड़े कर दिए थे परन्तु जब वह लेखिका के हाथ से भुने चने खाता तो लेखिका को तनिक भी हानि नहीं पहुँचाता
था।
(3) नीलकं ठ का दयालु स्वभाव व सबकी रक्षा करने की चेष्टा आदि लेखिका को बहुत प्रिय थी।
प्र 5.: ‘इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कै से बज उठा’-वाक्य किस घटना की ओर संके त कर रहा है?
लेखिका के द्वारा कु ब्जा मोरनी को लाना, इस घटना की ओर संके त करता है। नीलकं ठ, राधा व अन्य सभी पशु-पक्षी साथ मिलकर बड़े ही आनन्द से उस बाड़े में रहते थे। परन्तु
कु ब्जा मोरनी ने उन सब के इस आनन्द को भंग कर दिया था। उसको किसी भी पशु-पक्षी का नीलकं ठ के साथ रहना पसंद न था। जो भी कोई उसके पास आना चाहता, वह उसे
अपनी चोंच से घायल करके भगा देती थी। यहाँ तक कि उसने ईर्ष्या वश राधा के अंडों को तोड़-फोड़ दिया था। उसके इस स्वभाव के कारण नीलकं ठ अके ला व खिन्न रहने लगा। जैसे
बाड़े की तो शोभा ही चली गई। तभी लेखिका कहती है, इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कै से बज उठा।
प्र 6 . जालीघर में रहनेवाले सभी जीव एक-दूसरे के मित्र बन गए थे, पर कु ब्जा के साथ ऐसा संभव क्यों नहीं हो पाया?
उ 6. कु ब्जा स्वभाव से ही ईर्ष्यालु प्रवृत्ति की थी। इसके विपरीत जालीघर के सभी पशु-पक्षी मिलनसार स्वभाव के थे। उनमें आपसी प्रेम था। परन्तु
स्वभाव से ईर्ष्यालु कु ब्जा को ये पंसद ना था। वह सब को हमेशा प्रताड़ित करती थी। उसका मुख्य उद्देश्य सबको नीलकं ठ से दूर रखना था। वह नहीं
चाहती थी कि नीलकं ठ के पास कोई भी आए। इसके लिए उसने सभी पशु-पक्षियों को अपनी चोंच से घायल किया हुआ था। यहाँ तक की उसने राधा
को घायल कर उसके अंडों को नष्ट कर दिया। इसके कारण सब उससे दूर रहते थे यहाँ तक की नीलकं ठ भी उससे डर के मारे भागने लगा था।
प्र 7 नीलकं ठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से किस तरह बचाया? इस घटना के आधार पर नीलकं ठ के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उ 7. एक दिन जब खरगोश के शावक साथ-खेल करते हुए उछलकू द कर रहे थे तो जाली के भीतर कहीं से एक साँप घुस आया। उसको देखकर सब
पशु-पक्षी तो भाग गए पर सिर्फ़ एक खरगोश का शावक न भाग पाया और साँप उसे निगलने का प्रयास करने लगा। खरगोश का शावक उसकी कै द से
छू टने के प्रयास में क्रं दन करने लगा। नीलकं ठ ने जैसे ही उस क्रं दन को सुना वह पेड़ की शाखा से कू दकर साँप के समक्ष आ खड़ा हुआ और अपने पंजों
से साँप के फन को दबाया और चोंच के प्रहार से दो ही पल में उसके दो टुकड़े कर दिए। इस तरह उसने शावक को साँप की पकड़ से बचा लिया।
(1) नीलकं ठ स्वभाव से दयालु प्रवृति का पक्षी था। तभी तो खरगोश के बच्चे को लेकर सारी रात बैठकर उसको ऊष्मा देता रहा।
(2) नीलकं ठ एक सजग व सचेत मुखिया था। जिस तरह घर का एक मुखिया अपने कर्त्तव्यों के प्रति सचेत व सजग रहता है। उसी तरह नीलकं ठ अपने
जालीघर के जीव-जंतुओं के लिए था।
(3) नीलकं ठ एक साहसी मोर था। नीलकं ठ के साहस के कारण ही उसने खरगोश को साँप से बचा लिया था। अगर वह साहस न दिखाता तो
खरगोश ना बच पाता।

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