You are on page 1of 12

मानव रचना इांटरनेशनल स्कूल,मेकिल्ड िाडान, सैक्टर-51,िरु

ु ग्राम
सत्र :2023-24
नाम: गिल्लू
कक्षा: X नतगथिः

लेखिका परिचय

लेखिका – महादे वी वमाा


जन्म – 1907

गिल्लू पाठ प्रवेश

इस पाठ में लेखिका ने अपने जीवन के एक अनुभव को हमारे साथ साांझा ककया है । यहााँ लेखिका ने अपने
जीवन के उस पडाव का वर्ान ककया है जहााँ उन्होंने एक गिलहरी के बच्चे को कवों से बचाया था और उसे
अपने घर में रिा था। लेखिका ने उस गिलहरी के बच्चे का नाम गिल्लू रिा था। यह पाठ उसी के इदा -गिदा घूम
रहा है इसीललए इस पाठ का नाम भी ‘गिल्ल’ू ही रिा िया है । लेखिका ने जो भी समय गिल्लू के साथ बबताया
उस का वर्ान लेखिका ने इस पाठ में ककया है ।

गिल्लू पाठ साि

इस पाठ में लेखिका ने अपने जीवन के उस पडाव का वर्ान ककया है जहााँ उन्होंने एक गिलहरी के बच्चे को
कौवे से बचाया था और उसे अपने घर में रिा था। लेखिका ने उस गिलहरी के बच्चे का नाम गिल्लू रिा था।
लेखिका कहती है कक आज जूही के पौधे में कली ननकल आई है जो पपले रां ि की है । उस कली को दे िकर
लेखिका को उस छोटे से जीव की याद आ िई जो उस जूही के पौधे की हररयाली में नछपकर बैठा रहता था।
परन्तु लेखिका कहती है कक अब तो वह छोटा जीव इस जूही के पौधे की जड में लमट्टी बन कर लमल िया
होिा। क्योंकक अब वह मर चक
ु ा है और लेखिका ने उसे जूही के पौधे की जड में दबा ददया था।लेखिका कहती है
कक अचानक एक ददन जब वह सवेरे कमरे से बरामदे में आई तो उसने दे िा कक दो कौवे एक िमले के चारों
ओर चोंचों से चप
ु के से छूकर छुप जाना और किर छूना जैसा कोई िेल िेल रहे हैं। लेखिका कहती है कक यह
कौवा भी बहुत अनोिा पक्षी है -एक साथ ही दो तरह का व्यवहार सहता है , कभी तो इसे बहुत आदर लमलता है
और कभी बहुत ज्यादा अपमान सहन करना पडता है । लेखिका कहती है कक जब वह कौवो के बारे में सोच रही
थी तभी अचानक से उसकी उस सोच में कुछ रुकावट आ िई क्योंकक उसकी नजर िमले और दीवार को जोडने
वाले भाि में नछपे एक छोटे -से जीव पर पडी। जब लेखिका ने ननकट जाकर दे िा तो पाया कक वह छोटा सा
जीव एक गिलहरी का छोटा-सा बच्चा है । उस छोटे से जीव के ललए उन दो कौवों की चोंचों के दो घाव ही बहुत
थे, इसललए वह बबना ककसी हरकत के िमले से ललपटा पडा था। लेखिका ने उसे धीरे से उठाया और अपने कमरे
में ले िई, किर रुई से उसका िन
ू साफ़ ककया और उसके जख्मों पर पें लसललन नामक दवा का मरहम लिाया।
कई घांटे तक इलाज करने के बाद उसके माँह
ु में एक बाँद
ू पानी टपकाया जा सका। तीसरे ददन वह इतना अच्छा
और ननश्चचन्त हो िया कक वह लेखिका की उाँ िली अपने दो नन्हे पांजों से पकडकर और अपनी नीले कााँच के
मोनतयों जैसी आाँिों से इधर-उधर दे िने लिा। सब उसे अब गिल्लू कह कर पुकारते थे। लेखिका कहती है कक
जब वह ललिने बैठती थी तब अपनी ओर लेखिका का ध्यान आकपषात करने की गिल्लू की इतनी तेज इच्छा
होती थी कक उसने एक बहुत ही अच्छा उपाय िोज ननकाला था। वह लेखिका के पैर तक आता था और तेजी से
परदे पर चढ़ जाता था और किर उसी तेजी से उतर जाता था। उसका यह इस तरह परदे पर चढ़ना और उतरने
का क्रम तब तक चलता रहता था जब तक लेखिका उसे पकडने के ललए नहीां उठती थी। लेखिका गिल्लू को
पकडकर एक लांबे ललफ़ाफ़े में इस तरह से रि दे ती थी। जब गिल्लू को उस ललफ़ाफ़े में बांद पडे-पडे भूि लिने
लिती तो वह गचक-गचक की आवाज करके मानो लेखिका को सूचना दे रहा होता कक उसे भि
ू लि िई है और
लेखिका के द्वारा उसे काजू या बबस्कुट लमल जाने पर वह उसी श्स्थनत में ललफ़ाफ़े से बाहर वाले पांजों से काजू
या बबस्कुट पकडकर उसे कुतरता। लेखिका कहती है कक बाहर की गिलहररयााँ उसके घर की खिडकी की जाली के
पास आकर गचक-गचक करके न जाने क्या कहने लिीां? श्जसके कारर् गिल्लू खिडकी से बाहर झााँकने लिा।
गिल्लू को खिडकी से बाहर दे िते हुए दे िकर उसने खिडकी पर लिी जाली की कीलें ननकालकर जाली का एक
कोना िोल ददया और इस रास्ते से गिल्लू जब बाहर िया तो उसे दे िकर ऐसा लिा जैसे बाहर जाने पर
सचमुच ही उसने आजादी की सााँस ली हो। लेखिका को जरुरी कािजो-पत्रों के कारर् बाहर जाना पडता था और
उसके बाहर जाने पर कमरा बांद ही रहता था। लेखिका कहती है कक उसने काॅलेज से लौटने पर जैसे ही कमरा
िोला और अांदर पैर रिा, वैसे ही गिल्लू अपने उस जाली के दरवाजे से अांदर आया और लेखिका के पैर से लसर
और लसर से पैर तक दौड लिाने लिा। उस ददन से यह हमेशा का काम हो िया था। काजू गिल्लू का सबसे
मनपसांद भोजन था और यदद कई ददन तक उसे काजू नहीां ददया जाता था तो वह अन्य िाने की चीजें या तो
लेना बांद कर दे ता था या झूले से नीचे िेंक दे ता था।लेखिका कहती है कक उसी बीच उसे मोटर दघ
ु ाटना में
घायल होकर कुछ ददन अस्पताल में रहना पडा। उन ददनों जब कोई लेखिका के कमरे का दरवाजा िोलता तो
गिल्लू अपने झूले से उतरकर दौडता, उसे लिता कक लेखिका आई है और किर जब वह लेखिका की जिह ककसी
दस
ू रे को दे िता तो वह उसी तेजी के साथ अपने घोंसले में जा बैठता। तो भी लेखिका के घर जाता वे सभी
गिल्लू को काजू दे आते, परां तु अस्पताल से लौटकर जब लेखिका ने उसके झूले की सिाई की तो उसमें काजू भरे
लमले, श्जनसे लेखिका को पता चला कक वह उन ददनों अपना मनपसांद भोजन भी ककतना कम िाता रहा।
लेखिका की अस्वस्थता में वह तककए पर लसरहाने बैठकर अपने नन्हे -नन्हे पांजों से लेखिका के लसर और बालों
को इतने धीरे -धीरे सहलाता रहता कक जब वह लेखिका के लसरहाने से हटता तो लेखिका को ऐसा लिता जैसे
उसकी कोई सेपवका उससे दरू चली िई हो।

लेखिका कहती है कक गिलहररयों के जीवन का समय दो वषा से अगधक नहीां होता, इसी कारर् गिल्लू की जीवन
यात्रा का अांत भी नजदीक आ ही िया। ददन भर उसने न कुछ िाया न बाहर िया। रात में अपने जीवन के
अांनतम क्षर् में भी वह अपने झूले से उतरकर लेखिका के बबस्तर पर आया और अपने ठां डे पांजों से लेखिका की
वही उाँ िली पकडकर हाथ से गचपक िया, श्जसे उसने अपने बचपन में पकडा था जब वह मत्ृ यु के समीप पहुाँच
िया था। सुबह की पहली ककरर् के स्पशा के साथ ही वह ककसी और जीवन में जािने के ललए सो िया। अथाात
उसकी मत्ृ यु हो िई। लेखिका ने गिल्लू की मत्ृ यु के बाद उसका झूला उतारकर रि ददया और खिडकी की जाली
को बांद कर ददया, परां तु गिलहररयों की नयी पीढ़ी जाली के दस
ू री ओर अथाात बाहर गचक-गचक करती ही रहती है
और जूही के पौधे में भी बसांत आता ही रहता है । सोनजुही की लता के नीचे ही लेखिका ने गिल्लू की समागध
बनाई थी अथाात लेखिका ने गिल्लू को उस जूही के पौधे के ननचे दिनाया था क्योंकक गिल्लू को वह लता सबसे
अगधक पिय थी। लेखिका ने ऐसा इसललए भी ककया था क्योकक लेखिका को उस छोटे से जीव का, ककसी बसांत
में जुही के पीले रां ि के छोटे िूल में खिल जाने का पवचवास, लेखिका को एक अलि तरह की खश
ु ी दे ता था।

गिल्लू पाठ की व्याख्या

पाठ – सोनजुही में आज एक पीली कली लिी है । इसे दे िकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरर् हो आया,
जो इस लता की सघन हरीनतमा में नछपकर बैठता था और किर मेरे ननकट पहुाँचते ही कांधे पर कूदकर मुझे
चैंका दे ता था। तब मुझे कली की िोज रहती थी, पर आज उस लघुिार् की िोज है ।
परां तु वह तो अब तक इस सोनजुही की जड में लमट्टी होकर लमल िया होिा। कौन जाने स्वखर्ाम कली के
बहाने वही मुझे चैंकाने ऊपर आ िया हो!

शब्दार्थ
असोनजुही – जूही (पुष्प) का एक िकार जो पीला होता है
अनायास – अचानक
हिीतिमा – हररयाली
लघुप्राण – छोटा जीव

व्याख्या – लेखिका कहती है कक आज जूही के पौधे में कली ननकल आई है जो पपले रां ि की है । उस कली को
दे िकर लेखिका को उस छोटे से जीव की याद आ िई जो उस जूही के पौधे की हररयाली में नछपकर बैठा रहता
था और जब लेखिका उसके नजदीक पहुाँचती तो वह लेखिका का कांधे पर कूदकर लेखिका को चौंका दे ता था।
समय लेखिका को उन पीली कललयों की तलाश रहती थी परन्तु आज छोटे से जीव की तलाश रहती है । परन्तु
लेखिका कहती है कक अब तो वह छोटा जीव इस जह
ू ी के पौधे की जड में लमट्टी बन कर लमल िया होिा।
लेखिका यह भी अांदाजा लिाती है कक क्या पता वह उस पीली कली के रूप में आकर लेखिका को चौंकाने के
ललए ऊपर आ िया हो। यहााँ लेखिका अपनी पालतू गिलहरी के बारे बात कर रही है जो अब मर चक
ु ी है और
लेखिका ने उसे जह
ू ी के पौधे की जड में दबा ददया था।

पाठ – अचानक एक ददन सवेरे कमरे से बरामदे में आकर मैंने दे िा, दो कौवे एक िमले के चारों ओर चोंचों से
छूआ-छुऔवल जैसा िेल िेल रहे हैं। यह काकभुशुांडड भी पवगचत्र पक्षी है -एक साथ समादररत अनादररत, अनत
सम्माननत अनत अवमाननत।
हमारे बेचारे पुरिे न िरुड के रूप में आ सकते हैं, न मयूर के, न हां स के। उन्हें पपतरपक्ष में हमसे कुछ पाने
के ललए काक बनकर ही अवतीर्ा होना पडता है । इतना ही नहीां हमारे दरू स्थ पियजनों को भी अपने आने का
मधु सांदेश इनके ककाश स्वर में ही दे ना पडता है । दस
ू री ओर हम कौवा और कााँव-कााँव करने को अवमानना के
अथा में ही ियुक्त करते हैं।

शब्दार्थ
छूआ-छुऔवल – चप
ु के से छूकर छुप जाना और किर छूना
काकभुशुुंडि – (रामायर्) एक राम भक्त जो लोमश ऋपष के शाप से कौआ हो िए थे
समादरिि – पवशेष आदर
अनादरिि – आदर का अभाव, नतरस्कार
अविीणथ – िकट
ककथश – कटु, कानों को न भाने वाली

व्याख्या – लेखिका कहती है कक अचानक एक ददन जब वह सवेरे कमरे से बरामदे में आई तो उसने दे िा कक
दो कौवे एक िमले के चारों ओर चोंचों से चप
ु के से छूकर छुप जाना और किर छूना जैसा कोई िेल िेल रहे
हैं। लेखिका कहती है कक यह कौवा भी बहुत अनोिा पक्षी है -एक साथ ही दो तरह का व्यवहार सहता है , कभी
तो इसे बहुत आदर लमलता है और कभी बहुत ज्यादा अपमान सहन करना पडता है । जैसे हमारे बेचारे पुरिे न
िरुड के रूप में आ सकते हैं, न मयूर के, न हां स के। उन्हें पपतरपक्ष में हमसे कुछ पाने के ललए कौवा बनकर
ही िकट होना पडता है । इतना ही नहीां हमारे दरू रहने वाले ररचतेदारों को भी अपने आने का सुिद सांदेश इनके
कानों को न भाने वाली आवाज में ही दे ना पडता है । वही जहााँ एक ओर कौवे को इतना आदर लमलता है वहीां
दस
ू री ओर हम कौवा और कााँव-कााँव करने को अपशिुन के अथा में भी ियोि करते हैं। और कौवे को अपने
आाँिन से भिा कर उसका अपमान भी करते हैं।

पाठ – मेरे काकपुरार् के` पववेचन में अचानक बाधा आ पडी, क्योंकक िमले और दीवार की सांगध में नछपे एक
छोटे -से जीव पर मेरी दृश्ष्ट रुक िई। ननकट जाकर दे िा, गिलहरी का छोटा-सा बच्चा है जो सांभवतिः घोंसले से
गिर पडा है और अब कौवे श्जसमें सुलभ आहार िोज रहे हैं।
काकद्वय की चोंचों के दो घाव उस लघुिार् के ललए बहुत थे, अतिः वह ननचचेष्ट-सा िमले से गचपटा पडा था।

शब्दार्थ
सुंभविः – अवचय ही
सल
ु भ – आसान
काकद्वय – दो कौए
तनश्चेष्ट – बबना ककसी हरकत के

व्याख्या – लेखिका कहती है कक जब वह कौवो के बारे में सोच रही थी तभी अचानक से उसकी उस सोच में
कुछ रुकावट आ िई क्योंकक उसकी नजर िमले और दीवार को जोडने वाले भाि में नछपे एक छोटे -से जीव पर
पडी। जब लेखिका ने ननकट जाकर दे िा तो पाया कक वह छोटा सा जीव एक गिलहरी का छोटा-सा बच्चा है जो
अवचय ही अपने घोंसले से ननचे गिर पडा है और अब कौवे उसमें अपना आसान भोजन िोजते हुए उसे चोट
पहुाँचा रहे हैं। उस छोटे से जीव के ललए उन दो कौवों की चोंचों के दो घाव ही बहुत थे, इसललए वह बबना
ककसी हरकत के िमले से ललपटा पडा था।

पाठ – सबने कहा, कौवे की चोंच का घाव लिने के बाद यह बच नहीां सकता, अतिः इसे ऐसे ही रहने ददया
जाए।
परां तु मन नहीां माना-उसे हौले से उठाकर अपने कमरे में लाई, किर रुई से रक्त पोंछकर घावों पर पेंलसललन का
मरहम लिाया।
रुई की पतली बत्ती दध
ू से लभिोकर जैसे-जैसे उसके नन्हे से माँह
ु में लिाई पर माँह
ु िल
ु न सका और दध
ू ् की
बाँद
ू ें दोनों ओर ढुलक िईं।
कई घांटे के उपचार के उपराांत उसके माँह
ु में एक बाँद
ू पानी टपकाया जा सका।
तीसरे ददन वह इतना अच्छा और आचवस्त हो िया कक मेरी उाँ िली अपने दो नन्हे पांजों से पकडकर, नीले कााँच
के मोनतयों जैसी आाँिों से इधर-उधर दे िने लिा।
तीन-चार मास में उसके श्स्नग्ध ् रोएाँ, झब्बेदार पाँछ
ू और चांचल चमकीली आाँिें सबको पवश्स्मत करने लिीां।

शब्दार्थ
हौले – धीरे
आश्वस्ि – ननश्चचन्त
स्स्नग्ध ् – गचकना
ववस्स्मि – आचचयाचककत

व्याख्या – लेखिका कहती है कक उस गिलहरी के बच्चे की इतनी िराब हालत दे ि कर सबने कहा, कौवे की
चोंच का घाव लिने के बाद यह नहीां बच सकता, इसललए इसे ऐसे ही रहने ददया जाए। परां तु लेखिका का मन
नहीां माना लेखिका ने उसे धीरे से उठाया और अपने कमरे में ले िई, किर रुई से उसका िन
ू साफ़ ककया और
उसके जख्मों पर पें लसललन नामक दवा का मरहम लिाया। किर लेखिका ने रुई की पतली बत्ती बनाई और उसे
दध
ू से लभिोकर जैसे-जैसे उसके छोटे से माँह
ु में दध
ू पपलाने के ललए लिाई तो लेखिका ने दे िा कक वह माँह

नहीां िल
ु पा रहा था और दध
ू की बाँूदें माँह
ु के दोनों ओर ढुलक कर गिर िईं। कई घांटे तक इलाज करने के बाद
उसके माँुह में एक बाँद
ू पानी टपकाया जा सका। तीसरे ददन वह इतना अच्छा और ननश्चचन्त हो िया कक वह
लेखिका की उाँ िली अपने दो नन्हे पांजों से पकडकर और अपनी नीले कााँच के मोनतयों जैसी आाँिों से इधर-उधर
दे िने लिा। लेखिका ने उसका अच्छे से ध्यान रिा श्जसके पररर्ाम स्वरूप तीन-चार महीनों में उसके गचकने
रोएाँ, झब्बेदार पाँछ
ू और चांचल चमकीली आाँिें सबको है रान करने लिी थी। अथाात वह बहुत आकषाक बन िया
था।

पाठ – हमने उसकी जानतवाचक सांज्ञा को व्यश्क्तवाचक का रूप दे ददया और इस िकार हम उसे गिल्लू कहकर
बल
ु ाने लिे। मैंने िूल रिने की एक हलकी डललया में रुई बबछाकर उसे तार से खिडकी पर लटका ददया।
वही दो वषा गिल्लू का घर रहा। वह स्वयां दहलाकर अपने घर में झल
ू ता और अपनी कााँच के मानकों-सी आाँिों
से कमरे के भीतर और खिडकी से बाहर न जाने क्या दे िता-समझता रहता था। परां तु उसकी समझदारी और
कायाकलाप पर सबको आचचया होता था।

शब्दार्थ
कायथकलाप – ददन भर के काम
आश्चयथ – है रान

व्याख्या – लेखिका कहती है कक उसने उस गिलहरी को केवल अब एक जानत न रि कर व्यश्क्तवाचक कर


ददया था अथाात उसने अब उसका नाम रि ददया था। सब उसे अब गिल्लू कह कर पुकारते थे। लेखिका ने एक
िूल रिने की हलकी सी डाली में रुई बबछाई और एक तार की मदद से उसे खिडकी पर टााँि ददया। दो साल
तक यही िूल रिने की हलकी डाली ही गिल्लू का घर थी। लेखिका कहती है कक वह िद
ु से ही अपने इस घर
को झुलाता और झूलने के मजे लेता और कााँच के िोलों के समान अपनी सुांदर आाँिों से न जाने खिडकी से
बाहर क्या दे िता था और न जाने क्या समझता था। परन्तु उसकी समझदारी और ददन भर के उसके सभी
कामों को दे ि कर सभी है रान हो जाते थे।

पाठ – जब मैं ललिने बैठती तब अपनी ओर मेरा ध्यान आकपषात करने की उसे इतनी तीव्र इच्छा होती थी कक
उसने एक अच्छा उपाय िोज ननकाला। वह मेरे पैर तक आकर सरा से परदे पर चढ़ जाता और किर उसी तेजी
से उतरता। उसका यह दौडने का क्रम तब तक चलता जब तक मैं उसे पकडने के ललए न उठती।
कभी मैं गिल्लू को पकडकर एक लांबे ललफ़ाफ़े में इस िकार रि दे ती कक उसके अिले दो पांजों और लसर के
अनतररक्त सारा लघुिात ललफ़ाफ़े के भीतर बांद रहता। इस अद्भुत श्स्थनत में कभी-कभी घांटों मेज पर दीवार के
सहारे िडा रहकर वह अपनी चमकीली आाँिों से मेरा कायाकलाप दे िा करता।

शब्दार्थ
सिथ से – तेजी से
लघुिाि – छोटा शरीर
अद्भुि – अनोिी

व्याख्या – लेखिका कहती है कक जब वह ललिने बैठती थी तब अपनी ओर लेखिका का ध्यान आकपषात करने
की गिल्लू की इतनी तेज इच्छा होती थी कक उसने एक बहुत ही अच्छा उपाय िोज ननकाला था। वह लेखिका
के पैर तक आता था और तेजी से परदे पर चढ़ जाता था और किर उसी तेजी से उतर जाता था। उसका यह
इस तरह परदे पर चढ़ना और उतरने का क्रम तब तक चलता रहता था जब तक लेखिका उसे पकडने के ललए
नहीां उठती थी। लेखिका गिल्लू को पकडकर एक लांबे ललफ़ाफ़े में इस तरह से रि दे ती थी कक उसके अिले दो
पांजों और लसर के अलावा उसका छोटा सा परू ा शरीर ललफ़ाफ़े के अांदर बांद रहता था। इस तरह बांद रहने के
कारर् वह किर से उछाल-कूद करके लेखिका को परे शान नहीां कर पाता था। इस अनोिी श्स्थनत में भी कभी-
कभी घांटों मेज पर दीवार के सहारे िडा रहकर गिल्लू अपनी चमकीली आाँिों से लेखिका को दे िता रहता था
कक लेखिका क्या-क्या काम कर रही है ।

पाठ – भूि लिने पर गचक-गचक करके मानो वह मुझे सूचना दे ता और काजू या बबस्कुट लमल जाने पर उसी
श्स्थनत में ललफ़ाफ़े से बाहर वाले पांजों से पकडकर उसे कुतरता।
किर गिल्लू के जीवन का िथम बसांत आया। नीम-चमेली की िांध मेरे कमरे में हौले-हौले आने लिी। बाहर की
गिलहररयााँ खिडकी की जाली के पास आकर गचक-गचक करके न जाने क्या कहने लिीां?
गिल्लू को जाली के पास बैठकर अपनेपन से बाहर झााँकते दे िकर मुझे लिा कक इसे मुक्त करना आवचयक है ।

शब्दार्थ
िुंध – िश
ु बू
हौले-हौले – धीरे -धीरे
मुक्ि – आजाद

व्याख्या – लेखिका कहती है कक जब गिल्लू को उस ललफ़ाफ़े में बांद पडे-पडे भूि लिने लिती तो वह गचक-
गचक की आवाज करके मानो लेखिका को सूचना दे रहा होता कक उसे भूि लि िई है और लेखिका के द्वारा
उसे काजू या बबस्कुट लमल जाने पर वह उसी श्स्थनत में ललफ़ाफ़े से बाहर वाले पांजों से काजू या बबस्कुट
पकडकर उसे कुतरता। लेखिका के घर में रहते हुए किर गिल्लू के जीवन का िथम बसांत आया। नीम-चमेली
की िश
ु बू लेखिका के कमरे में धीरे -धीरे िैलने लिी। लेखिका कहती है कक बाहर की गिलहररयााँ उसके घर की
खिडकी की जाली के पास आकर गचक-गचक करके न जाने क्या कहने लिीां? श्जसके कारर् गिल्लू खिडकी से
बाहर झााँकने लिा। गिल्लू को जाली के पास बैठकर अपनेपन से इस तरह बाहर झााँकते दे िकर लेखिका को
लिा कक इसे आजाद करना अब जरुरी है ।

पाठ – मैंने कीलें ननकालकर जाली का एक कोना िोल ददया और इस मािा से गिल्लू ने बाहर जाने पर सचमच

ही मश्ु क्त की सााँस ली। इतने छोटे जीव को घर में पले कुत्ते, बबश्ल्लयों से बचाना भी एक समस्या ही थी।
आवचयक कािज-पत्रों के कारर् मेरे बाहर जाने पर कमरा बांद ही रहता है । मेरे काॅलेज से लौटने पर जैसे ही
कमरा िोला िया और मैंने भीतर पैर रिा, वैसे ही गिल्लू अपने जाली के द्वार से भीतर आकर मेरे पैर से
लसर और लसर से पैर तक दौड लिाने लिा। तब से यह ननत्य का क्रम हो िया।

शब्दार्थ
समस्या – परे शानी
आवश्यक – जरुरी
तनत्य – हमेशा

व्याख्या – लेखिका कहती है कक गिल्लू को खिडकी से बाहर दे िते हुए दे िकर उसने खिडकी पर लिी जाली की
कीलें ननकालकर जाली का एक कोना िोल ददया और इस रास्ते से गिल्लू जब बाहर िया तो उसे दे िकर ऐसा
लिा जैसे बाहर जाने पर सचमुच ही उसने आजादी की सााँस ली हो। इतने छोटे जीव को घर में पले कुत्ते,
बबश्ल्लयों से बचाना भी एक बहुत बडी परे शानी ही थी। क्योंकक वह आजतक केवल घर के अांदर ही रहता था
इसललए बाहर जाने पर उसे बाहर के ितरों से बचने में कािी परे शानी हुई। लेखिका को जरुरी कािजो-पत्रों के
कारर् बाहर जाना पडता था और उसके बाहर जाने पर कमरा बांद ही रहता था। लेखिका कहती है कक उसने
काॅलेज से लौटने पर जैसे ही कमरा िोला और अांदर पैर रिा, वैसे ही गिल्लू अपने उस जाली के दरवाजे से
अांदर आया और लेखिका के पैर से लसर और लसर से पैर तक दौड लिाने लिा। उस ददन से यह हमेशा का
काम हो िया था।

पाठ – मेरे कमरे से बाहर जाने पर गिल्लू भी खिडकी की िल


ु ी जाली की राह बाहर चला जाता और ददन भर
गिलहररयों के झुांड का नेता बना हर डाल पर उछलता-कूदता रहता और ठीक चार बजे वह खिडकी से भीतर
आकर अपने झूले में झूलने लिता।
मुझे चैंकाने की इच्छा उसमें न जाने कब और कैसे उत्पन्न हो िई थी। कभी िूलदान के िूलों में नछप जाता,
कभी परदे की चन्
ु नट में और कभी सोनजुही की पपत्तयों में ।
मेरे पास बहुत से पशु-पक्षी हैं और उनका मुझसे लिाव भी कम नहीां है , परां तु उनमें से ककसी को मेरे साथ मेरी
थाली में िाने की दहम्मत हुई है , ऐसा मुझे स्मरर् नहीां आता।

शब्दार्थ
िाह – रास्ता
उत्पन्न – पैदा
स्मिण – याद

व्याख्या – लेखिका कहती है कक जैसे ही वह कॉलेज जाने के ललए कमरे से बाहर जाती थी गिल्लू भी खिडकी
की िल
ु ी जाली रास्ते से बाहर चला जाता था और ददन भर गिलहररयों के झांड
ु का नेता बना हर एक डाल से
दस
ू री डाल पर उछलता-कूदता रहता और ठीक चार बजे वह खिडकी से भीतर आकर अपने झल
ू े में झल
ू ने
लिता। लेखिका कहती है कक गिल्लू को उसे चैंकाने की इच्छा न जाने कब और कैसे पैदा हो िई थी। वह कभी
िूलदान के िूलों में नछप जाता, कभी परदे की चन्
ु नट में और कभी सोनजह
ु ी की पपत्तयों में नछप कर लेखिका
को चौंका दे ता था। लेखिका के पास बहुत से पशु-पक्षी थे जो लेखिका के पालतू भी थे और उनका लेखिका से
लिाव भी कम नहीां था, परां तु उनमें से ककसी भी लेखिका के साथ उसकी थाली में िाने की दहम्मत हुई हो,
ऐसा लेखिका को याद नहीां आता। इसका अथा यह है की गिल्लू लेखिका की थाली में से ही भोजन िा ललया
करता था।

पाठ – गिल्लू इनमें अपवाद था। मैं जैसे ही िाने के कमरे में पहुाँचती, वह खिडकी से ननकलकर आाँिन की
दीवार, बरामदा पार करके मेज पर पहुाँच जाता और मेरी थाली में बैठ जाना चाहता। बडी कदठनाई से मैंने उसे
थाली के पास बैठना लसिाया जहााँ बैठकर वह मेरी थाली में से एक-एक चावल उठाकर बडी सफ़ाई से िाता
रहता। काजू उसका पिय िाद्य था और कई ददन काजू न लमलने पर वह अन्य िाने की चीजें या तो लेना बांद
कर दे ता या झल
ू े से नीचे क दे ता था।

शब्दार्थ
अपवाद – सामान्य ननयम को बाश्ध्त या मयााददत करने वाला
िाद्य – भोजन

व्याख्या – लेखिका कहती है कक गिल्लू उसके पाले हुए सभी पशु-पक्षक्षयों में सबसे अलि था क्योंकक वह लेखिका
के द्वारा बनाए िए सामान्य ननयमों का पालन नहीां करता था। लखिका जैसे ही िाने के कमरे में पहुाँचती, वह
भी खिडकी से ननकलकर आाँिन की दीवार और बरामदा पार करके मेज पर पहुाँच जाता था और लेखिका की
थाली में बैठ जाना चाहता था। बडी कदठनाई से लेखिका ने उसे थाली के पास बैठना लसिाया जहााँ बैठकर वह
लेखिका की थाली में से एक-एक चावल उठाकर बडी सफ़ाई से िाता रहता था। काजू गिल्लू का सबसे मनपसांद
भोजन था और यदद कई ददन तक उसे काजू नहीां ददया जाता था तो वह अन्य िाने की चीजें या तो लेना बांद
कर दे ता था या झूले से नीचे िेंक दे ता था।
पाठ – उसी बीच मुझे मोटर दघ
ु ट
ा ना में आहत होकर कुछ ददन अस्पताल में रहना पडा। उन ददनों जब मेरे
कमरे का दरवाजा िोला जाता गिल्लू अपने झूले से उतरकर दौडता और किर ककसी दस
ू रे को दे िकर उसी तेजी
से अपने घोंसले में जा बैठता। सब उसे काजू दे आते, परां तु अस्पताल से लौटकर जब मैंने उसके झूले की
सिाई की तो उसमें काजू भरे लमले, श्जनसे ज्ञात होता था कक वह उन ददनों अपना पिय िाद्य ककतना कम
िाता रहा।
मेरी अस्वस्थता में वह तककए पर लसरहाने बैठकर अपने नन्हे -नन्हे पांजों से मेरे लसर और बालों को इतने हौले-
हौले सहलाता रहता कक उसका हटना एक पररचाररका के हटने के समान लिता।

शब्दार्थ
आहि – जख्मी, घायल
घोंसले – नीड, रहने की जिह
परिचारिका – सेपवका

व्याख्या – लेखिका कहती है कक उसी बीच उसे मोटर दघ


ु ट
ा ना में घायल होकर कुछ ददन अस्पताल में रहना
पडा। उन ददनों जब कोई लेखिका के कमरे का दरवाजा िोलता तो गिल्लू अपने झल
ू े से उतरकर दौडता, उसे
लिता कक लेखिका आई है और किर जब वह लेखिका की जिह ककसी दस
ू रे को दे िता तो वह उसी तेजी के
साथ अपने घोंसले में जा बैठता। तो भी लेखिका के घर जाता वे सभी गिल्लू को काजू दे आते, परां तु अस्पताल
से लौटकर जब लेखिका ने उसके झूले की सिाई की तो उसमें काजू भरे लमले, श्जनसे लेखिका को पता चला
कक वह उन ददनों अपना मनपसांद भोजन भी ककतना कम िाता रहा। लेखिका की अस्वस्थता में वह तककए पर
लसरहाने बैठकर अपने नन्हे -नन्हे पांजों से लेखिका के लसर और बालों को इतने धीरे -धीरे सहलाता रहता कक जब
वह लेखिका के लसरहाने से हटता तो लेखिका को ऐसा लिता जैसे उसकी कोई सेपवका उससे दरू चली िई हो।

पाठ – िलमायों में जब मैं दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर जाता न अपने झल
ू े में बैठता। उसने
मेरे ननकट रहने के साथ िमी से बचने का एक सवाथा नया उपाय िोज ननकाला था। वह मेरे पास रिी सरु ाही
पर लेट जाता और इस िकार समीप भी रहता और ठां डक में भी रहता।
गिलहररयों के जीवन की अवगध दो वषा से अगधक नहीां होती, अतिः गिल्लू की जीवन यात्रा का अांत आ ही
िया। ददन भर उसने न कुछ िाया न बाहर िया। रात में अांत की यात्रा में भी वह अपने झल
ू े से उतरकर मेरे
बबस्तर पर आया और ठां डे पांजों से मेरी वही उाँ िली पकडकर हाथ से गचपक िया, श्जसे उसने अपने बचपन की
मरर्ासन्न में पकडा था।

शब्दार्थ
सवथर्ा – सब िकार से
समीप – नजदीक
अवगध – समय
यािना – दिःु ि
मिणासन्न – मत्ृ यु के समीप पहुाँच जाने वाला
व्याख्या – लेखिका कहती है कक िलमायों में जब वह दोपहर में अपना काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर
जाता था और न ही अपने झूले में बैठता था। गिल्लू ने लेखिका के नजदीक रहने के साथ-साथ िमी से बचने
का एक सबसे नया उपाय िोज ननकाला था। वह लेखिका पास रिी हुई सुराही पर लेट जाता था, श्जससे वह
लेखिका के नजदीक भी बना रहता और ठां डक में भी रहता। इस तरह उसने दो काम एक साथ करना सीि
ललया था। लेखिका कहती है कक गिलहररयों के जीवन का समय दो वषा से अगधक नहीां होता, इसी कारर् गिल्लू
की जीवन यात्रा का अांत भी नजदीक आ ही िया। ददन भर उसने न कुछ िाया न बाहर िया। रात में अपने
जीवन के अांनतम क्षर् में भी वह अपने झल
ू े से उतरकर लेखिका के बबस्तर पर आया और अपने ठां डे पांजों से
लेखिका की वही उाँ िली पकडकर हाथ से गचपक िया, श्जसे उसने अपने बचपन में पकडा था जब वह मत्ृ यु के
समीप पहुाँच िया था।
पांजे इतने ठां डे हो रहे थे कक मैंने जािकर हीटर जलाया और उसे उष्र्ता दे ने का ियत्न ककया। परां तु िभात की
िथम ककरर् के स्पशा के साथ ही वह ककसी और जीवन में जािने के ललए सो िया।

पाठ –उसका झूला उतारकर रि ददया िया है और खिडकी की जाली बांद कर दी िई है , परां तु गिलहररयों की
नयी पीढ़ी जाली के उस पार गचक-गचक करती ही रहती है और सोनजुही पर बसांत आता ही रहता है ।
सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू को समागध दी िई है -इसललए भी कक उसे वह लता सबसे अगधक पिय थी-
इसललए भी कक उस लघुिात का, ककसी वासांती ददन, जुही के पीताभ छोटे िूल में खिल जाने का पवचवास, मुझे
सांतोष दे ता है ।

शब्दार्थ
उष्णिा – िरमी
प्रभाि – सब
ु ह
पीिाभ – पीले रां ि का

व्याख्या – लेखिका कहती है कक गिल्लू के पांजे इतने ठां डे हो रहे थे कक लेखिका ने जािकर हीटर जलाया और
उसके पांजों को िमी दे ने का ियास ककया। परां तु सुबह की पहली ककरर् के स्पशा के साथ ही वह ककसी और
जीवन में जािने के ललए सो िया। अथाात उसकी मत्ृ यु हो िई। लेखिका ने गिल्लू की मत्ृ यु के बाद उसका
झूला उतारकर रि ददया और खिडकी की जाली को बांद कर ददया, परां तु गिलहररयों की नयी पीढ़ी जाली के
दस
ू री ओर अथाात बाहर गचक-गचक करती ही रहती है और जूही के पौधे में भी बसांत आता ही रहता है ।
सोनजुही की लता के नीचे ही लेखिका ने गिल्लू की समागध बनाई थी अथाात लेखिका ने गिल्लू को उस जूही के
पौधे के ननचे दिनाया था क्योंकक गिल्लू को वह लता सबसे अगधक पिय थी। लेखिका ने ऐसा इसललए भी
ककया था क्योकक लेखिका को उस छोटे से जीव का, ककसी बसांत में जुही के पीले रां ि के छोटे िूल में खिल
जाने का पवचवास, लेखिका को एक अलि तरह का सांतोष दे ता था।

गिल्लू प्रश्न अभ्यास


तनम्नललखिि प्रश्नों के उत्ति दीस्जए –
प्रश्न 1 – सोनजूही में लिी पीली कली को दे ि लेखिका के मन में कौन से ववचाि उमड़ने लिे?

>उत्तर – सोनजूही में लिी पीली कली को दे ि लेखिका को गिल्लू की याद आ िई। गिल्लू एक गिलहरी थी
श्जसकी जान लेखिका ने बचाई थी। उसके बाद से गिल्लू का पूरा जीवन लेखिका के साथ ही बीता था। लेखिका
ने गिल्लू की मौत के बाद गिल्लू के शरीर को उसी सोनजूही के पौधे के नीचे दिनाया था इसीललए जब भी
लेखिका सोनजूही में लिी पीली कली को दे िती थी उसे लिता था जैसे गिल्लू उन कललयों के रूप में उसे
चौंकाने ऊपर आ िया है ।

प्रश्न 2 – पाठ के आधाि पि कौए को एक सार् समादरिि औि अनादरिि प्राणी क्यों कहा िया है ?

उत्तर – दहांद ू धमा में ऐसी मान्यता है कक पपतरपक्ष के समय हमारे पूवज
ा कौवे के भेष में आते हैं। एक अन्य
मान्यता है कक जब कौवा कााँव-कााँव करता है तो इसका मतलब होता है कक घर में कोई मेहमान आने वाला है ।
इन कारर्ों से कौवे को सम्मान ददया जाता है । लेककन दस
ू री ओर, कौवे के कााँव कााँव करने को अशुभ भी
माना जाता है । इसललए कौवे को एक साथ समादररत और अनादररत िार्ी कहा िया है ।

प्रश्न 3 – गिलहिी के घायल बच्चे का उपचाि ककस प्रकाि ककया िया?

उत्तर – गिलहरी के घायल बच्चे के घाव पर लिे िन


ू को पहले रुई से साि ककया िया। उसके बाद उसके घाव
पर पें लसललन का मलहम लिाया िया। उसके बाद रुई को दध
ू में डुबो कर उसे दध
ू पपलाने की कोलशश की िई
जो असिल रही क्योंकक अगधक घायल होने के कारर् कमजोर हो िया था और दध
ू की बाँद
ू ें उसके माँह
ु से बाहर
गिर रही थी। लिभि ढ़ाई घांटे के उपचार के बाद गिलहरी के बच्चे के माँह
ु में पानी की कुछ बाँद
ू ें जा सकीां।

प्रश्न 4 – लेखिका का ध्यान आकवषथि किने के ललए गिल्लू क्या कििा र्ा?

उत्तर – लेखिका का ध्यान आकपषात करने के ललए गिल्लू उनके पैरों के पास आता और किर सरा से परदे पर
चढ़ जाता था। उसके बाद वह परदे से उतरकर लेखिका के पास आ जाता था। यह लसललसला तब तक चलता
रहता था जब तक लेखिका गिल्लू को पकडने के ललए दौड न लिा दे ती थी।

प्रश्न 5 – गिल्लू को मुक्ि किने की आवश्यकिा क्यों समझी िई औि उसके ललए लेखिका ने क्या उपाय
ककया?

उत्तर – लेखिका के घर में रहते हुए गिल्लू के जीवन का िथम बसांत आया। नीम-चमेली की िश ु बू लेखिका के
कमरे में धीरे -धीरे िैलने लिी। लेखिका कहती है कक बाहर की गिलहररयााँ उसके घर की खिडकी की जाली के
पास आकर गचक-गचक करके न जाने क्या कहने लिीां? श्जसके कारर् गिल्लू खिडकी से बाहर झााँकने लिा।
गिल्लू को जाली के पास बैठकर अपनेपन से इस तरह बाहर झााँकते दे िकर लेखिका को लिा कक इसे आजाद
करना अब जरुरी है । लेखिका ने खिडकी पर लिी जाली की कीलें ननकालकर जाली का एक कोना िोल ददया
और गिल्लू के बाहर जाने का रास्ता बना ददया।
प्रश्न 6 – गिल्लू ककन अर्ों में परिचारिका की भूलमका तनभा िहा र्ा?

उत्तर – जब लेखिका अस्पताल से घर आई तो गिल्लू उनके लसर के पास बैठा रहता था। वह अपने नन्हे पांजों
से लेखिका के लसर और बाल को सहलाता रहता था। इस तरह से वह ककसी पररचाररका की भूलमका ननभा रहा
था।

प्रश्न 7 – गिल्लू कक ककन चेष्टाओुं से यह आभास लमलने लिा र्ा कक अब उसका अुंि समय समीप है ?

उत्तर – गिल्लू ने ददन भर कुछ नहीां िाया था। वह कहीां बाहर भी नहीां िया था। रात में वह बहुत तकलीि में
लि रहा था। उसके बावजूद वह अपने झूले से उतरकर लेखिका के पास आ िया। गिल्लू ने अपने ठां डे पांजों से
लेखिका कक अांिुली पकड ली और उनके हाथ से गचपक िया। इससे लेखिका को लिने लिा कक गिल्लू का अांत
समय समीप ही था।

प्रश्न 8 – ‘प्रभाि की प्रर्म ककिण के स्पशथ के सार् ही वह ककसी औि जीवन में जािने के ललए सो िया’ – का
आशय स्पष्ट कीस्जए।

उत्तर – ‘िभात की िथम ककरर् के स्पशा के साथ ही वह ककसी और जीवन में जािने के ललए सो िया’ – इस
पांश्क्त में लेखिका ने पुनजान्म की मान्यता को स्वीकार ककया है । लेखिका को लिता है कक गिल्लू अपने अिले
जन्म में ककसी अन्य िार्ी के रूप में जन्म लेिा।

प्रश्न 9 – सोनजूही की लिा के नीचे बनी गिल्लू की समागध से लेखिका के मन में ककस ववश्वास का जन्म
होिा है ?

उत्तर – लेखिका ने गिल्लू को उस जूही के पौधे के ननचे दिनाया था क्योंकक गिल्लू को वह लता सबसे अगधक
पिय थी। लेखिका ने ऐसा इसललए भी ककया था क्योंकक लेखिका को उस छोटे से जीव का, ककसी बसांत में जुही
के पीले रां ि के छोटे िूल में खिल जाने का पवचवास, लेखिका को एक अलि तरह का सांतोष दे ता था।

You might also like