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NCERT Solutions For Class 9 Hindi Chater 2 - Mere Sang Ki Auratein - .
NCERT Solutions For Class 9 Hindi Chater 2 - Mere Sang Ki Auratein - .
Hindi Kritika
प्रश्न 1: लेखिका ने अपनी नानी को कभी देिा भी नहीं खिर भी उनके व्यखित्व से वे क्यों प्रभाखवत थीं?
उत्तर : लेखिका ने अपनी नानी को कभी देिा भी नहीं खिर भी उनके व्यखित्व से वे इसखलए प्रभाखवत थीं क्योंखक उनकी नानी,
पारंपररक, अनपढ़, परदानशीं औरत थीं, खिनके पखत शादी के तुरंत बाद उन्हें छोड़कर बैररस्ट्री पढ़ने खवलायत चले गए थे। कैं खिि
खवश्वखवद्यालय से खिग्री लेकर िब वे लौटे और खवलायती रीखत-ररवाि के संग खिन्दगी बसर करने लगे तो नानी ने अपने रहन-सहन
पर उसका कोई असर नहीं पड़़़ने खदया, न उन्होंने अपनी खकसी इच्छा-आकांक्षा या पसदं -नापसं द का इिहार पखत पर कभी खकया
पर िब कम-उम्र में नानी ने िदु को मौत के करीब पाया तो, पंद्रह वर्षीय इकलौती बेटी ‘लेखिका की मााँ’ की शादी की ख़िक्र में
वे माँहु िोर एवं बेपरदा होकर अपने पखत के दोस्ट्त से खमलीं। इतना ही नहीं िो बात उन्होंने अपने पखत के दोस्ट्त से कही, वह साखबत
करती है खक वे अपनी खनिी खिन्दगी में खकतनी स्ट्वतंत्र और आिाद ख्यालों वाली मखहला थी िो अपने देश से बेइतं हा प्रेम करती
थीं और देश के खसपाखहयों के प्रखत गिब का आदर भाव रिती थीं और शायद अपनी खिदं गी भी अपनी ही शतों पर िीती थीं।
प्रश्न 2: लेखिका की नानी की आजादी के आदं ोलन में खकस प्रकार की भागीदारी रही?
उत्तर : लेखिका की नानी की आिादी के आदं ोलन में वैसे तो प्रत्यक्ष रूप से कोई भखू मका नहीं थी परंतु अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने
बेहद ख़ास भखू मका आिादी के आंदोलन में खनभाई। उनके पखत ने 'कैं खिि खवश्वखवद्यालय' से खवलायती खिग्री हाखसल की थी परंतु
खिर भी उन्होंने कभी भी अंग्रेिी शासन को नहीं अपनाया। उनके पखत अंग्रेिी साहब थे शायद इसखलए उन्होंने कभी अपने पखत से
अपनी इच्छाएाँ िाखहर नहीं की क्योंखक उनके मन में देश के खलए अटूट प्रेम और श्रद्धा थी, वह स्ट्वयं में एक देश-भि थी। अपने
िीवन के अंखतम खदनों में उन्होंने माँहु िोर और बेपदाा होकर अपने दोस्ट्त के पखत से अपनी बेटी की शादी देश के खकसी खसपाही से
करने की इच्छा व्यि की िोखक यह दशााता है खक वे अंग्रेिों की खकतनी खिलाि थी और उनका झक ु ाव अपने देश के प्रखत
खकतना अखिक था। उनके इस कदम ने उनके साहसी व्यखित्व को भी उिागर खकया।
प्रश्न 3: लेखिका की मााँ परंपरा का खनवााह न करते हुए भी सबके खदलों पर राज करती थी इस कथन के आलोक में-
क) लेखिका की मााँ के व्यखित्व की खवशेषताएाँ खलखिए।
उत्तर : लेखिका की मााँ के व्यखित्व की खवशेर्षताएाँ खनम्नखलखित हैं:
१) उनमें िबू सरू ती, निाकत, गैर-दखु नयादारी के साथ ईमानदारी और खनष्पक्षता कुछ इस तरह घल
ु ी-खमली थी खक वे परीिात से
कम िादईु नहीं मालमू पड़ती थीं।
२) वे कभी झठू नहीं बोलती थीं।
प्रश्न 4: आप अपनी कल्पना से खलखिए खक परदादी ने पतोहू के खलए पहले बच्िे के रूप में लड़की पैदा होने की
मन्नत क्यों मााँगी?
उत्तर : परदादी ने पतोहू के खलए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत इसखलए मााँगी क्योंखक वे एक स्ट्वतंत्र ख्यालों
की बहादरु मखहला थी। वे लड़खकयों को लड़कों के समान ही मानती थी िो खक उनकी मन्नत से साखबत हो गया। उस समय उन्होंने
समाि में लड़खकयों के प्रखत सम्मान की भावना िगाने हेतु व समान हक खदलवाने हेतु ही स्ट्वयं के घर से शरुु आत की।
प्रश्न 5: डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से खकसी को भी सही राह पर लाया जा सकता
है-पाठ के आधार पर तका सखहत उत्तर दीखजए |
उत्तर : िराने-िमकाने, उपदेश देने या दबाव िालने की िगह सहिता से खकसी को भी सही राह पर लाया िा सकता है। यह
कथन इस पाठ ने खबलकुल सत्य कर खदिाया है। पाठ में मााँ िी को िब पता चला खक उनके कमरे में चोर है तो भी उन्होंने उसके
साथ बहुत सामान्य व अच्छा व्यवहार खकया। उन्होंने चोर के हाथ से पानी खपया व उसे भी खपलाया िो खक खकसी व्यखि के बरु े से
अच्छे में बदलने के खलए का़िी है। चोर ने कभी भी अपने िीवन में इतना सम्मान नहीं पाया होगा िो खक उसे मााँ िी ने खदया। मााँ
िी ने उसे इतना ही कहा था खक "तुम चोरी करो या िेती, यह तुम्हारी मिी" बस इतना कहने से ही चोर का हृदय पररवतान हो
गया। उसने हमेशा के खलए चोरी छोड़ दी और िेती अपना ली।
प्रश्न 8: ‘सि, अके लेपन का मजा ही कुछ और है’-इस कथन के आधार पर लेखिका की बहन एवं लेखिका के
व्यखित्व के बारे में अपने खविार व्यि कीखजए |
उत्तर : लेखिका और उनकी बहन दोनों ही दृढ़- खनियी व्यखि थी। वे स्ट्वयं में ही सम्पर्ू ा थीं। वे दोनों ही खिद्दी थी पर यहााँ यह
'खिद्दी' खवशेर्षर् उनके खलए सकारात्मक रूप में प्रयोग हुआ है। यह खिद्दी शब्द उनकी दृढ़ संकल्प को दशााता है, िो यह बताता है
खक यह दोनों ही िब कुछ ठान लेती हैं तो उसे परू ा करके ही दम लेतीं हैं। ये दोनों ही हमेशा अपनी राह िदु तलाशती हैं और उस
पर मंखिल तक पहुचाँ ने तक चलती हैं। वे दोनों ही स्ट्वयं की साथी, हमददा िदु ही होती हैं। पाठ में अनेक घटनाओ ं द्वारा उनके
अके ले चलने की व्याख्या बहुत िबू सरू ती से की गई है। चाहे वह लेखिका की िालखमया नगर की घटना हो या बागलकोट की।
उसी प्रकार लेखिका की बहन के खवद्यालय पहुचाँ ने की घटना ने तो अलग ही मक ु ाम पर पहुचाँ ा खदया है इस पाठ को।