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EXTRA QUSTION ANSWER

प्रश्न 8 – पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – लेखक ने कभी भी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में मस् ु कुराते या हँसते नहीं दे खा था। उनके जितना सख्त
अध्यापक किसी ने पहले नहीं दे खा था। उनका छोटा कद, दब ु ला-पतला परन्तु पष्ु ट शरीर, माता के दानों से भरा चेहरा
यानि चेचक के दागों से भरा चेहरा और बाज़ सी तेज़ आँखें, खाकी वर्दी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले जत ू -ये सभी चीज़े बच्चों
को भयभीत करने वाली होती थी।
उनके जत ू ों की ऊँची एड़ियों के निचे भी खरि
ु याँ लगी रहतीं थी। अगले हिस्से में , पंजों के निचे मोटे सिरों वाले कील ठुके
होते थे। वे अनश ु ासन प्रिय थे यदि कोई विद्यार्थी उनकी बात नहीं मानता तो वे उसकी खाल खींचने के लिए हमेशा तैयार
रहते थे। वे बहुत स्वाभिमानी भी थे क्योंकि जब हे डमास्टर शर्मा ने उन्हें निलंबित कर के निकाला तो वे गिड़गिड़ाए नहीं,
चपु चाप चले गए और पहले की ही तरह आराम से रह रहे थे।

प्रश्न 9 – विद्यार्थियों को अनश


ु ासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई यक्ति
ु यों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं
के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर – विद्यार्थियों को अनशु ासन में रखने के लिए पाठ में जिन यक्ति
ु यों को अपनाया गया है उसमें मारना-पीटना और
कठोर दं ड दे ना शामिल हैं। इन कारणों की वजह से बहुत से बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। परन्तु वर्तमान में इस तरह
मारना-पीटना और कठोर दं ड दे ना बिलकुल मना है । आजकल के अध्यापकों को सिखाया जाता है कि बच्चों की
भावनाओं को समझा जाए,
उसने यदि कोई गलत काम किया है तो यह दे खा जाए कि उसने ऐसा क्यों किया है । उसे उसकी गलतियों के लिए दं ड न
दे कर, गलती का एहसास करवाया जाए। तभी बच्चे स्कूल जाने से डरें गे नहीं बल्कि ख़श ु ी-ख़शु ी स्कूल जाएँगे।

प्रश्न 10 – प्रायः अभिभावक बच्चों को खेल-कूद में ज्यादा रूचि लेने पर रोकते हैं और समय बर्बाद न करने की नसीहत
दे ते हैं। बताइए –
(क) खेल आपके लिए क्यों जरुरी है ?

उत्तर – खेल जितना मनोरं जक होता है उससे कही अधिक सेहत के लिए आवश्यक होता है । कहा भी जाता है कि ‘स्वस्थ
तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है ।’ बच्चों का तन जितना अधिक तंदरु ु स्त होगा, उनका दिमाग उतना ही अधिक
तेज़ होगा। खेल-खेल में बच्चों को नैतिक मल्ू यों का ज्ञान भी होता है जैसे- साथ-साथ खेल कर भाईचारे की भावना का
विकास होता है , समहू में खेलने से सामाजिक भावना बढ़ती है और साथ-ही-साथ प्रतिस्पर्धा की भावना का भी विकास
होता है ।

(ख) आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिनसे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो?
उत्तर – जितना खेल जीवन में जरुरी है , उतने ही जरुरी जीवन में बहुत से कार्य होते हैं जैसे- पढाई आदि। यदि खेल
स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है , तो पढाई भी आपके जीवन में कामयाबी के लिए बहुत आवश्यक है । यदि हम अपने खेल
के साथ-साथ अपने जीवन के अन्य कार्यों को भी उसी लगन के साथ परू ा करते जाएँ जिस लगन के साथ हम अपने खेल
को खेलते हैं तो अभिभावकों को कभी भी खेल से कोई आपत्ति नहीं होगी।

Sapno Ke Se Din Extra Questions – 25 to 30 Words


प्रश्न 1 – ‘बच्चों को खेल सबसे अच्छा लगता है और वे मिलजल
ु कर खेलते हैं।’ “सपनों के-से दिन” पाठ के आधार पर
स्पष्ट कीजिए

उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ से ज्ञात होता है कि लेखक और उसके बचपन के साथी मिल-जल ु कर खेलते थे और सभी
की हालत एक सी होती थी। जब खेल-खेल में लकड़ी के ढे र से निचे उतरते हुए भागते, तो बहुत से बच्चे अपने-आपको
चोट लगा दे ते थे और कई जगह चोट खाए हुए खन ू के ऊपर जमी हुई रे त-मिट्टी से लथपथ पिंडलियाँ ले कर अपने-अपने
घर जाते तो सभी की माँ-बहनें उन पर तरस नहीं खाती बल्कि उल्टा और ज्यादा पीट दे तीं।
कई बच्चों के पिता तो इतने गुस्से वाले होते कि जब बच्चे को पीटना शरू ु करते तो यह भी ध्यान नहीं रखते कि छोटे
बच्चे के नाक-मँहु से लहू बहने लगा है और ये भी नहीं पछ ू ते कि उसे चोट कहाँ लगी है । परन्तु इतनी बरु ी पिटाई होने पर
भी दस ू रे दिन सभी बच्चे फिर से खेलने के लिए चले आते।

प्रश्न 2 – लेखक के गाँव के बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – अपने बचपन के दिनों में लेखक जिन बच्चों के साथ खेलता था, उनमें से ज्यादातर साथी उसी के परिवार की
तरह के थे। उन परिवारों में से बहुत के बच्चे तो स्कूल ही नहीं जाते थे और जो कभी गए भी, पढाई में रूचि न होने के
कारण किसी दिन बस्ता तालाब में फेंक आए और फिर स्कूल गए ही नहीं और उनके माँ-बाप ने भी उनको स्कूल भेजने
के लिए कोई जबरदस्ती नहीं की। उनका सारा ध्यान खेलने में रहता था। इससे स्पष्ट है कि लेखक के गाँव के बच्चे
पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।

प्रश्न 3 – “सपनों के से दिन” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि जो बच्चे बचपन में नहीं पढ़ पाए उसके लिए उनके
माता-पिता किस तरह जिम्मेदार थे?
उत्तर – जो बच्चे पढाई में रूचि न होने के कारण बस्ता तालाब में फेंक आते थे और फिर कभी स्कूल नहीं गए, उनके
माँ-बाप ने भी उनको दोबारा कभी स्कूल भेजने के लिए कोई जबरदस्ती नहीं की। यहाँ तक की राशन की दक ु ान वाला
और जो किसानों की फसलों को खरीदते और बेचते हैं वे भी अपने बच्चों को स्कूल भेजना जरुरी नहीं समझते थे। अगर
कभी कोई स्कूल का अध्यापक उन्हें समझाने की कोशिश करता तो वे अध्यापक को यह कह कर चप ु करवा दे ते कि उन्हें
अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर कोई तहसीलदार तो बनाना नहीं है ।
जब उनका बच्चा थोड़ा बड़ा हो जायगा तो पंडित घनश्याम दास से हिसाब-किताब लिखने की पंजाबी प्राचीन लिपि
पढ़वाकर सीखा दें गे और दक ू ान पर खाता लिखवाने लगा दें गे। स्कूल में अभी तक यह कुछ भी नहीं सीख पाया है । इससे
स्पष्ट है कि बच्चों की पढ़ाई न हो पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे।

प्रश्न 4 – “सपनों के से दिन” पाठ में लेखक ने अपने स्कूल का वर्णन किस प्रकार से किया है ?
उत्तर – लेखक ने अपने स्कूल का वर्णन करते हुए बताया है कि स्कूल के अंदर जाने वाले रास्ते के दोनों ओर गली की
तरह के लम्बे सीधे रास्ते में बड़े ढं ग से कटे -छाँटे झाड़ उगे थे जिन्हें लेखक और उनके साथी डंडियाँ कहा करते थे। उनसे
नीम के पत्तों की तरह महक आती थी, जो आज भी लेखक अपनी आँखों को बंद करके महसस ू कर सकता है । उस समय
स्कूल की छोटी क्यारियों में फूल भी कई तरह के उगाए जाते थे जिनमें गुलाब, गें दा और मोतिया की दध ू -सी सफ़ेद
कलियाँ भी हुआ करतीं थीं। लेखक के स्कूल में केवल छोटे -छोटे नौ कमरे थे, जो अंग्रेजी के अक्षर एच (H) की तरह बने
हुए थे।

प्रश्न 5 – स्कूल की छोटी क्यारियों में उगाए गए कई तरह के फूलों का लेखक और उनके साथी क्या करते थे?
उत्तर – लेखक के स्कूल की छोटी क्यारियों में कई तरह के फूल उगाए जाते थे जिनमें गुलाब, गें दा और मोतिया की
दध ू -सी सफ़ेद कलियाँ भी हुआ करतीं थीं। ये कलियाँ इतनी संदू र और खश ु बद
ू ार होती थीं कि लेखक और उनके साथी
चपरासी से छुप-छुपा कर कभी-कभी कुछ फूल तोड़ लिया करते थे। उनकी बहुत तेज़ सग ु ंध लेखक आज भी महसस ू कर
सकता है । परन्तु लेखक को अब यह याद नहीं कि उन फूलों को तोड़कर, कुछ दे र सँघ ू कर फिर उन फू लों का वे क्या करते
थे। शायद वे उन फूलों को या तो जेब में डाल लेते होंगे और माँ उसे धोने के समय निकालकर बाहर फेंक दे ती होगी या
लेखक और उनके साथी खद ु ही, स्कूल से बाहर आते समय उन्हें बकरी के मेमनों की तरह खा या ‘चर’ जाया करते होगें ।

प्रश्न 6 – लेखक ने छुटियों के पहले और आखरी दिनों के फर्क का अंतर किस तरह स्पष्ट किया है ?
उत्तर – लेखक के समय में स्कूलों में , साल के शरू ु में एक-डेढ़ महीना ही पढ़ाई हुआ करती थी, फिर डेढ़-दो महीने की
छुटियाँ शरू
ु हो जाती थी। ले ख क को छ ु टियों के पहले और आखरी दिनों का फर्क याद है । पहले के दो तीन सप्ताह तो खब

खेल कूद में बीतते थे। हर साल ही छुटियों में लेखक अपनी माँ के साथ अपनी नानी के घर चले जाता था। जैसे-जैसे
उनकी छुट्टियों के दिन ख़त्म होने लगते तो वे लोग दिन गिनने शरू ु कर दे ते थे। एक-एक दिन गिनते-गिनते खेलकूद में
दस दिन और बीत जाते। काम न किया होने के कारण स्कूल में होने वाली पिटाई का डर अब और ज्यादा बढ़ने लगता।
जैसे-जैसे दिन ‘छोटे ’ होने लगते अर्थात छुट्टियाँ ख़त्म होने लगती डर और ज्यादा बढ़ने लगता। छुट्टियों के आखिरी
पंद्रह-बीस दिनों में अध्यापकों द्वारा दिए गए कार्य को परू ा करने का हिसाब लगाते थे और कार्य परू ा करने की योजना
बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलकूद में बिता दे ते थे।

1. तताँरा वामीरो कहाँ की कथा है ?


2. वामीरो अपना गाना क्यों भल ू गई?
3. तताँरा और वामीरो के गाँव की क्या रीति थी?
4. निकोबार के लोग तताँरा को क्यों पसंद करते थे?
5. वामीरो से मिलने के बाद तताँरा के जीवन में क्या परिवर्तन आया?
6. प्राचीन काल में मनोरं जन और शक्ति प्रदर्शन के लिए किस प्रकार के आयोजन किए जाते
थे?
7. तताँरा गुस्से से क्यों भर उठा?
8. तताँरा समद्र
ु -तट पर घम ू ने क्यों आया था?
9. निकोबार द्वीपसमह ू के विभक्त होने के बारे में निकोबारियों का क्या विश्वास है ?
10. कहानी के आधार पर आपके मस्तिष्क में गाँव वालों की कैसी छवि बनती है ?

तताँरा-वामीरो कथा (लीलाधर मंडलोई)

(आदर्श उत्तर)

1. तताँरा वामीरो निकोबार द्वीप की कथा है ।


2. लहरों से भीग जाने के कारण वामीरो के ध्यान में खलल आया और वह अपना गाना भल ू
गई।
3. तताँरा और वामीरो के गाँव की रीति थी कि कोई भी अपने गाँव से बाहर विवाह नहीं कर
सकता था।
4. तताँरा परिचित और अजनबी सबकी एक जैसी मदद करता था। वह ताकतवर होने के
बावजद ू बड़ा ही शांत और सौम्य था इसलिए निकोबार के लोग तताँरा को पसंद करते थे।
5. वामीरो से मिलने के बाद तताँरा की जिंदगी ही बदल गई थी। उसका परू ा दिन उबाऊ हो
गया था। किसी काम में उसका मन नहीं लग रहा था। जीवन में पहली बार वह किसी का
इंतजार कर रहा था। उसे लग रहा था कि दिन कभी खत्म ही नहीं होगा।
6. प्राचीन काल में शक्ति प्रदर्शन और मनोरं जन के लिए पशओ
ु ं की लड़ाई का आयोजन
करवाया जाता था। कहीं-कहीं पर मनष्ु य और पशु की लड़ाई भी होती थी। साथ में नाच
और गाने का भी आयोजन होता था। भोज की भी व्यवस्था होती थी।
7. तताँरा गस् ु से से इसलिये भर उठा क्योंकि वामीरो की माँ उसका अपमान कर रही थी।वह
नहीं चाहता था कि उसके कारण वामीरो को और कोई दःु ख मिले। उसे गाँव की रीति पर
छोभ था,वहीं अपनी असमर्थता पर खीझ थी।
8. दिनभर परिश्रम करने के कारण तताँरा थक गया था ।अपनी थकन मिटने और शांति का
अनभ ु व करने के लिए वह समद्र ु –तट पर आया था।
9. निकोबार द्वीपसमह ू के विभक्त होने के बारे में एक दं तकथा प्रसिद्ध है । जब वो एक ही
द्वीप हुआ करता था, तब तताँरा नाम के एक यव ु क को दसू रे गाँव की वामीरो नाम की
यवु ती से प्रेम हो गया। उन दिनों के नियम के अनस ु ार उनका विवाह होना संभव नहीं था।
दोनों के गाँव वाले इसके खिलाफ थे। अपनी असहाय स्थिति दे खकर तताँरा को एक दिन
इतना गुस्सा आया कि उसने अपनी तलवार से द्वीप को दो टुकड़ों में काट दिया। उसके
बाद लोगों की आँखें खल ु ीं और उन्होंने परु ाने नियमों को तोड़ दिया।
10. गाँव वाले रुढियों और परम्पराओं के गुलाम हैं ।वे अपनी परु ानी परम्पराओं से बंधे हुए हैं
तथा उससे बाहर नहीं निकलना चाहते।जब तताँरा और वामीरो इन रुढियों और
परम्पराओं का विरोध करते हुए अपना बलिदान दे दे ते है तो गाँववालों की आँखें खल ु ती हैं।
वे समझ जाते हैं कि उनके विचारों में परिवर्तन जरुरी है । उन्हें यह भी समझ आ जाता है
कि प्रेम किसी धर्मं,जाति,सम्प्रदाय,ऊँच-नीच आदि को नहीं दे खत
11. “कंपनी बाग़ के मह ु ाने पर/ धार रखी गयी है यह 1857 की तोप” इसका आशय स्पष्ट कीजिये?
12. कविता एवं कवि का नाम लिखिए?
13. “इसकी होती है बड़ी सम्हाल, विरासत में मिले कंपनी बाग़ की तरह, साल में चमकाई जाती है दो
बार” इसका आशय स्पष्ट कीजिये?
14. विरासत में मिली चीजों की संभाल करने के पीछे क्या उद्दे श्य है ?
15. तोप कविता से हमें क्या प्रेरणा मिलती है ?
16. इस कविता से तोप के बारे में क्या जानकारी मिलती है ?
17. वे बताती है की दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप एक दिन तो होना ही है उसका मंह ु बंद?
18. तोप की वर्तमान स्थिति क्या है ?
19. तोप कविता का सारांश लिखिए ।
20. तोप कविता का प्रतिपाद्य लिखिए ।

तोप – वीरे न डंगवाल

(आदर्श उत्तर)

1. कंपनी बाग़ के मख् ु य द्वार पर प्रवेश करते ही एक तोप रखी गयी। यह तोप 1857 के
स्वतंत्रता- संग्राम में काम आयी थी।
2. कविता का नाम है “तोप ” और कवि हैं ‘वीरे न डंगवाल’।
3. इस तोप की बड़ी दे खभाल की जाती है । कंपनी बाग़ की भी दे खभाल की जाती है । इन्हें
अपने परु खों द्वारा मिली हुई धरोहर के रूप में सजाया जाता है । इस तोप को साल में दो
बार चमकाया जाता है ।सब ु ह-शाम कंपनी बाग़ में आते हैं।
4. विरासत में मिली चीज़ें हमें हमारे पर्व ू जन की, पर्वू अनभ ु वों की और परु ानी परम्पराओं की
याद दिलाती है नई पीढ़ी उनके बारे में जाने, उनके अनभ ु व से कुछ सीखे और उनकी बनाई
हुई श्रेष्ठ परम्पराओं का पालन करें इसी उद्दे श्य से विरासत में मिली चीज़ों को संभाल-
संभाल के रखा जाता है ।
5. तोप कविता हमें प्रेरणा दे ती है की कोई भी कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो लेकिन एक
दिन उसे शांत होना पड़ता है । इसके अलावा यह हमें अंग्रेज़ों के शोषण और अत्याचारों की
याद दिलाती है और बतलाती है की सरु क्षा और हितों के प्रति सचेत रहें । यह हमारे उन
तमाम शहीद स्वतंत्रता सेनानियों को याद करने तथा उनके उनके बताए मार्ग पर चलने
की प्रेरणा दे ती है ।
6. कंपनी बाग़ में रखी तोप से यह जानकारी मिलती है की १८५७ के स्वतंत्रता-संग्राम में ये
तोपें चली थीं। तब गोरों ने भारतीय क्रांतिकारियों को दबाने के लिए इनका प्रयोग किया
था। इन तोपों ने न जाने कितने शरू वीरों को मार डाला था परन्तु भारतीय वीर नहीं माने।
कुछ वर्ष उपरांत उन्होंने अहिंसात्मक आंदोलन से अंग्रेज़ों को दे श से बाहर निकला। तब
उनकी तोपों को मौन होना पड़ा।
7. १८५७ के स्वतंत्रता आंदोलन में काम आयी तोप कितनी भी भयंकर रही हो, किन्तु आज
उसका मंह ु बंद हो चक
ू ा है । भारतीय शरू वीरों ने आज़ादी का आंदोलन चलाकर तोप को
झुका दिया। इससे हमें यह सीख मिलती है की जबरदस्ती बल -करना भी कारगर नहीं
होता। अतः हथियारों का प्रयोग बंद होना चाहिए।
8. तोप की वर्तमान स्थिति यह है की वह प्रदर्शन की वस्तु बन गयी है । अब न वह आग
उगलती है , न ही लोग उससे डरते हैं। आजकल चिड़ियाँ तोप पर बैठ कर चहचहाती हैं।
गौरै ये उसके मँह ु के अंदर घस ु जाते हैं और लड़के उस पर बैठकर घड़ ु सवारी का मज़ा लेते
हैं। अब वह सामान्य बाग़ के प्रवेश द्वार पर निष्क्रिय खड़ी है ।
9. वीरे न डंगवाल द्वारा रचित तोप कविता का सारांश अपने शब्दों मैं लिखिए कंपनी बाग़ में
१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में काम आयी एक तोप रखी है । उसे विरासत की तरह सँभाल
कर रखा जाता है । मन सैलानियों को बताती है की कैसे- कैसे वीरों की धज्जियां उड़ाई थीं।
परन्तु आज उस तोप पर छोटे बच्चे सवारी करते हैं या चिड़ियाँ गप शप करती हैं। कभी-
कभी गौरै ये उसके भीतर भी घस ु जाते हैं। वे मानो बताते हैं की तोप कितनी भी बड़ी हो,
उसे एक-न-एक दिन चप ु होना ही पड़ता है ।
10. कंपनी बाग़ मैं रखी तोप हमें यह सन्दे श दे ती है की तोप-गोले बम- बारूद कितने भी
विनाशकारी हों, वे मानव के सामने टिक नहीं सकते। आखिरकार मनष्ु यता की शक्ति ही
विजयी होती है । यह तोप यह भी बताती है की ईस्ट इंडिया कंपनी ने कंपनी बाग़ बनवाये
उन्होंने तोपें भी चलायीं। इसलिए विदे शी ताकतों से सावधान रहें तथा अपने दे श को बचा
जापान में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
11. प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं?
12. ‘टी सेरेमनी’ में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?
13. शद् ु ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है ?
14. “जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियलिस्टों’ के जीवन से आदर्श
धीरे -धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सझ ू -बझ
ू ही आगे आने लगती है ।“-आशय
स्पष्ट कीजिए |
15. शद् ु ध आदर्श की तल ु ना सोने से और व्यावहारिकता की तल ु ना ताँबे से क्यों की गई है ?
16. चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसस ू किया?
17. गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानस ु ार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल
डालने की एक बानगी दे खी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि
‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्व है ?
18. अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब शद् ु ध आदर्श से आपको हानि या लाभ
हुआ हो।
19. लेखक के अनस ु ार सत्य केवल वर्तमान है , उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा?
स्पष्ट कीजिए।

पाठ-16 पतझर में टूटी पत्तियां –रवीन्द्र केलेकर

(आदर्श उत्तर)

1. जापान में चाय पीने की विधि को चा –नो –यू कहते हैं |


2. जो लोग शद् ु ध आदर्श में थोड़ी व्यावहारिकता मिलाकर काम चलाते हैं, उन्हें प्रैक्टिकल
आइडियलिस्ट कहते हैं।
3. ‘टी सेरेमनी’ में शांति का अत्यधिक महत्व होता है इसलिए वहाँ पर एक बार में तीन से
अधिक व्यक्तियों को प्रवेश नहीं दिया जाता है ।
4. शद् ु ध सोने में कोई मिलावट नहीं होती, लेकिन गिन्नी के सोने में ताँबा मिला होता है ।
शद् ु ध सोने की तल ु ना में गिन्नी का सोना अधिक मजबत ू और उपयोगी होता है ।
5. लोगों की आदत होती है कि क्षणिक सफलता के मद में वे प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों की
सराहना करने लगते हैं। इस प्रशंसा के मद में चरू होकर, प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट
धीरे -धीरे आदर्शों से दरू होने लगते हैं। एक समय आता है जब केवल उनकी व्यावहारिक
बद्ु धि ही दिखती है ।
6. शद् ु ध सोना बहुत कीमती होता है । ताँबे के साथ मिलकर यह ताँबे के महत्व को बढ़ा दे ता
है । जबकी दस ू री ओर ताँबा सोने की कीमत को घटा दे ता है । शद् ु ध आदर्श जब
व्यावहारिकता के साथ मिलता है तो इससे व्यावहारिकता की कीमत बढ़ जाती है । लेकिन
व्यावहारिकता का ठीक उलटा प्रभाव पड़ता है । इसलिए शद् ु ध आदर्श की तल
ु ना सोने से
और व्यावहारिकता की तल ु ना ताँबे से की गई है ।
7. चाय पीने के बाद लेखक को अपार शांति महसस ू हुई। उसे लगा कि उसके दिमाग की
रफ्तार बंद हो चक ु ी थी। वह अपना अतीत और वर्त्तमान सबकुछ भल ू चक
ु ा था |उसके मन
में और आस पास सब कुछ शन् ू य सा हो गया था । ऐसा लग रहा था मानो जयजयवंती के
सरु गँज ू रहे हों |
8. जीवन में आदर्शवादिता और व्यावहारिकता दोनों का महत्व है । लेकिन प्रैक्टिकल
आइडियालिस्ट की तरह हमें व्यावहारिकता में आदर्शवादिता मिलाने से बचना चाहिए।
इसकी जगह हमें गांधीजी की तरह व्यावहारिकता में आदर्शवादिता मिलाने की सीख लेनी
चाहिए।
9. (छात्र अपना अनभ ु व लिखेंगे ) एक बार मैंने फुटपाथ पर बैठे एक भख ू े बच्चे को अपना
टिफिन दे दिया था। उस दिन मझ ु े भख ू ा रहना पड़ा लेकिन अंदर से एक असीम सी संतष्टि ु
का अहसास हुआ। मझ ु े लगा कि मझ ु े अपना भोजन दस ू रे को दे कार लाभ ही हुआ।वह न
जाने कितने दिनों का भख ू ा था, मझ ु े यह संतष्टि
ु थी कि मैंने एक भख ू े की भखू मिटाई है
और एक गरीब की दआ ु एँ ली हैं |हम न जाने कितना भोजन प्रतिदिन व्यर्थ फेंक दे ते हैं
|यदि हम एक –एक भख ू े को अन्न दे दें तो हमारे दे श में कोई भख ू ा ही न रहे |
10. लेखक का कहना है की हमारा भत ू काल सत्य नहीं है क्योंकि वह बीत चक ु ा है । भागे हुए
साँप की लकीर पर लाठी पीटने से कोई फायदा नहीं होता है । लेखक का कहना है कि
भविष्य तो अनिश्चित है , इसलिए उसके बारे में तनाव पालने से भी कोई लाभ नहीं होता
है । वर्तमान में जीना सीखने से ही सही सख ु मिलता है । वर्तमान पर हम बहुत हद तक
नियंत्रण कर सकते हैं और वर्तमान के सख ु दख ु की परू ी-परू ी अनभ ु ति
ू भी कर सकते हैं।
11. ड़े-बड़े बिल्डर समद्र ु को पीछे क्यों धकेल रहे थे?
12. कबत ू र परे शानी में इधर-उधर क्यों फड़फड़ा रहे थे?
13. सल ु ेमान ने चींटियों से क्या कहा?
14. अरब में लशकर को नह ू के नाम से क्यों याद करते हैं?
15. लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसस ू किया? पाठ के आधार पर स्पष्ट
कीजिए।
16. डेरा डालने से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
17. शेख अयाज़ के पिता अपने बाजू पर काला च्योंटा रें गता दे ख भोजन छोड़ कर क्यों उठ खड़े हुए?
18. बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
19. दनि
ु या के वज़द ू तथा प्रकृति के विषय में पाठ में क्या बताया गया है ?
20. ग्वालियर के मकान में घटी किस घटना से लेखक की माँ को दःु ख पहुँचा और लेखक की माँ ने
अपनी गलती का किस प्रकार प्रायश्चित किया?

अब कहाँ दस
ू रे के दःु ख से -निदा फ़ाज़ली

(आदर्श उत्तर)

1. आबादी बढ़ने के कारण स्थान का अभाव हो रहा था इसलिए बिल्डर नई-नई इमरातें
बनाने के लिए बड़े-बड़े बिल्डर समद्र ु को पीछे धकेल रहे थे।
2. कबत ू र के घोंसले में दो अंडे थे। एक बिल्ली ने तोड़ दिया था दसू रा बिल्ली से बचाने के
चक्कर में लेखक की माँ से टूट गया। कबत ू र इससे परे शान होकर इधर-उधर फड़फड़ा रहे
थे।
3. सलु ेमान ने चींटियों से कहा कि वे सबके रखवाले हैं। किसी के लिए मस ु ीबत न होकर
सबके लिए मह ु ब्बत हैं।
4. अरब में लशकर को नह ू के नाम से इसलिए याद करते हैं क्योंकि वे हमेशा दस ू रों के दःु ख
में दखु ी रहते थे। नहू को पैगम्बर या ईश्वर का दत ू भी कहा गया है । उनके मन में करूणा
होती थी।
5. लेखक पहले ग्वालियर में रहता था। फिर बम्बई के वर्सोवा में रहने लगा। पहले घर
बड़े-बड़े होते थे, दालान आँगन होते थे अब डिब्बे जैसे घर होते हैं, पहले सब मिलकर रहते
थे अब सब अलग-अलग रहते हैं, इमारतें ही इमारतें हैं पश-ु पक्षियों के रहने के लिए स्थान
नहीं रहे , पहले अगर वे घोंसले बना लेते थे तो ध्यान रखा जाता था पर अब उनके आने के
रास्ते बंद कर दिए जाते हैं।
6. डेरा डालने का अर्थ है कुछ समय के लिए रहना। बड़ी-बड़ी इमारतें बनने के कारण पक्षियों
को घोंसले बनाने की जगह नहीं मिल रही है । वे इमारतों में ही डेरा डालने लगे हैं।जंगल
कट गए हैं अब पक्षी इसी तरह अपना ठिकाना ढूढ़ते हैं |
7. शेख अयाज़ के पिता जब कँु ए से नहाकर लौटे तो काला च्योंटा चढ़ कर आ गया। भोजन
करते वक्त उन्होंने उसे दे खा और भोजन छोड़कर उठ खड़े हुए। वे पहले उसे घर छोड़ना
चाहते थे।
8. बढ़ती हुई आबादी के कारण पर्यावरण असंतलि ु त हो गया है । आवासीय स्थलों को बढ़ाने
के लिए वन, जंगल यहाँ तक कि समद्र ु स्थलों को भी छोटा किया जा रहा है । पशप ु क्षियों के
लिए स्थान नहीं है । इन सब कारणों से प्राकृतिक का सतंल ु न बिगड़ गया है और प्राकृतिक
आपदाएँ बढ़ती जा रही हैं। कहीं भक ू ं प, कहीं बाढ़, कहीं तफ ू ान, कभी गर्मी, कभी तेज़ वर्षा
इन के कारण कई बिमारियाँ हो रही हैं। इस तरह पर्यावरण के असंतल ु न का जन जीवन
पर गहरा प्रभाव पड़ा है ।
9. दनिु या कैसे वजद ू में आई? पहले क्या थी? किस बिंद ु से इसकी यात्रा शरू ु हुई? इन प्रश्नों
के उत्तर विज्ञान अपनी तरह से दे ता है , धर्मिक ग्रंथ अपनी-अपनी तरह से। संसार की
रचना भले ही कैसे हुई हो लेकिन धरती किसी एक की नहीं है । पंछी, मानव, पश,ु नदी,
पर्वत, समंदर आदि की इसमें बराबर की हिस्सेदारी है । यह और बात है कि इस हिस्सेदारी
में मानव जाति ने अपनी बद् ु धि से बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी कर दी हैं। पहले परू ा संसार एक
परिवार के समान था अब टुकड़ों में बँटकर एक-दस ू रे से दरू हो चकु ा है । पहले बड़े-बड़े
दालानों-आँगनों में सब मिल-जल ु कर रहते थे अब छोटे -छोटे डिब्बे जैसे घरों में जीवन
सिमटने लगा है । बढ़ती हुई आबादियों ने समंदर को पीछे सरकाना शरू ु कर दिया है , पेड़ों
को रास्तों से हटाना शरू ु कर दिया है , फैलते हुए प्रदष ू ण ने पंछियों को बस्तियों से भगाना
शरूु कर दिया है । बारूदों की विनाशलीलाओं ने वातावरण को सताना शरू ु कर दिया। अब
गरमी में ज़्यादा गरमी, बेवक्त की बरसातें , ज़लज़ले,सैलाब, तफ़ ू ान और नित नए रोग,
मानव और प्रकृति के इसी असंतल ु न के परिणाम हैं। नेचर की सहनशक्ति की एक सीमा
होती है ।
10. ग्वालियर में लेखक का एक मकान था, उस मकान के दालान में दो रोशनदान थे। उसमें
कबत ू र के एक जोड़े ने घोंसला बना लिया था। एक बार बिल्ली ने उचककर दो में से एक
अंडा तोड़ दिया। लेखक की माँ ने दे खा तो उसे दख ु हुआ। उसने स्टूल पर चढ़कर दस ू रे अंडे
को बचाने की कोशिश की। लेकिन इस कोशिश में दस ू रा अंडा उसी के हाथ से गिरकर टूट
गया। कबत ू र परे शानी में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे। उनकी आँखों में दख ु दे खकर माँ की
आँखों में आँसू आ गए। इस गुनाह को खद ु ा से मआु फ़ कराने के लिए उसने परू े दिन रोज़ा
रखा। दिन-भर कुछ खाया-पिया नहीं। सिर्फ रोती रही और बार-बार नमाज पढ़-पढ़कर
खद
ु ा से इस गलती को मआ
ु फ़ करने की दआु माँगती र
11.
12.
13.
14. एकता में बल –
15. एक था किसान। उसके चार लड़के थे। पर उन लड़कों में मेल नहीं था। वे आपस में बराबर लड़ते-झगड़ते रहते
थे। एक दिन किसान बहुत बीमार पड़ा। जब वह मत्ृ यु के निकट पहुँच गया, तब उसने अपने चारों लड़कों को
बल
ु ाया और मिल-जल ु कर रहने की शिक्षा दी।
16. किन्तु लड़कों पर उसकी बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब किसान ने लकड़ियों का गट्ठर माँगवाया और
लड़कों को तोड़ने को कहा। किसी से वह गट्ठर न टूटा। फिर, लकड़ियाँ गट्ठर से अलग की गयीं।
17. किसान ने अपने सभी लड़कों को बारी-बारी से बलु ाया और लकड़ियों को अलग-अलग तोड़ने को कहा। सबने
आसानी से लकड़ियों को तोड़ दिया। अब लड़कों की आँखें खल ु ीं। तभी उन्होंने समझा कि आपस में
मिल-जल ु कर रहने में कितना बल है ।

सबक
एक समय की बात है । एक आश्रम में रवि नाम का एक शिष्य रहता था। वद बहुत अधिक नटखट था। वह
प्रत्येक रात आश्रम की दीवार फाँदकर बाहर जाता था परन्तु उसके बाहर जाने की बात कोई नहीं जानता था।
सब ु ह होने से पहले लौट आया। वह सोचता था कि उसके आश्रम से घम ू ने की बात कोई नहीं जानता लेकिन
उसके गुरुजी यह बात जानते थे। वे रवि को रं गे हाथ पकड़ना चाहते थे। एक रात हमेशा की तरह रवि सीढ़ी पर
चढ़ा और दीवार फॉदकर बाहर कूद गया।
उसके जाते ही गुरुजी जाग गए। तब उन्हें दीवार पर सीढ़ी लगी दिखाई दी। कुछ घंटे बाद रवि लौट आया और
अंधेरे में दीवार पर चढ़ने की कोशिश करने लगा। उस वक्त उसके गरु ु जी सीढ़ी के पास ही खड़े थे। उन्होंने रवि
की नीचे उतरने में मदद की और बोले, “बेटा, रात में जब तम ु बाहर जाते हो तो तम्
ु हें अपने साथ एक गर्म साल
अवश्य रखनी चाहिए।
गुरुजी के प्रेमपर्ण
ू वचनों का रवि पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने
अपनी गलती के लिए क्षमा माँगी। साथ ही उसने गरु ु को ऐसी गलती दोबारा न करने का वचन भी दिया।
शिक्षा – प्रेमपर्ण
ू वचनों का सबक जिंदगी भर याद रहता है ।

विवाह में शामिल होने के लिए 3 दिन के अवकाश के लिए प्रधानाचार्य को ईमेल लिखिए।
Email lekhan का प्रारूप format class 10 hindi cbse board e mail writing

प्रेषक (From) an…@gmail.com

प्रेषिती (To) abschool@mail.com

विषय-तीन-दिन अवकाश हे त।ु


प्रधानाचार्य महोदय,

सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की कक्षा दसवीं ‘अ’ का छात्र हूँ। मेरी बहन का विवाह
5 मार्च, 2022 को होना निश्चित हुआ है । विवाह में सम्मिलित होने के कारण मैं 3 दिन तक
विद्यालय आने में असमर्थ हूं। इसलिए आपसे अनरु ोध है कि दिनांक 4 मार्च, 2023 से 6 मार्च,
2023 अवकाश प्रदान करने की कृपा करें ।

धन्यवाद!

आज्ञाकारी शिष्य

नाम- अ० ब० स०

कक्षा- 10 अ

दिनांक- 4 मार्च, 2023

ई-मेल लेखन से संबंधित महत्वपर्ण


ू प्रश्न FQ

ई-मेल लेखन में प्रेषक क्या होता है ?


प्रेषक (From) an…@gmail.com यहां पर आप अपना ईमेल एड्रेस लिखेंगे.

ई-मेल लेखन में प्रेषिती (To) का अर्थ क्या होता है ?

प्रेषिती (To) यहाँ पर आप जिससे मेल लिख रहे हैं उसका ईमेल एड्रेस लिखेंगे।

ई-मेल लेखन का विषय कैसा होता है ? what is the email subject

विषय- ई-मेल से संबंधित छोटा विषय लिखेंगे।

इसके बाद अभिवादन महोदय और संबंधित पद लिखकर, संक्षिप्त में आने की करीब 20 से 25
शब्दों में अपनी बात कहें गे।

अपना नाम और संबंधित जानकारी जैसे यहां पर बैंक अकाउं ट या ग्राहक संख्या दिया गया
जिससे कि उचित कार्यवाही हो सके। दे ना आवश्यक होता है ।

यदि कोई रसीद या कोई फाइल अटै च कर रहे हैं तो उसके बारे में संलग्नक-: चेक बक
ु रसीद की
डिजिटल प्रतिलिपि


वन-महोत्सव के अवसर पर आप पौधारोपण करना चाहते हैं। नगर के उद्यान अधिकारी को एक ईमेल
लिखकर पौधों की व्यवस्था करने के लिए आग्रह (अनरु ोध) कीजिए। writing van mahotsav
paudha Roparn vruksharopan
(वक्ष
ृ ारोपण त्रटि
ु वाला शब्द है , क्योंकि पौधे लगाए जाते हैं, वक्ष
ृ नहीं। इसलिए पौधारोपण सही शब्द है ।)
प्रेषक (From) an…@gmail.com

प्रेषिती / प्रेषकर्ता (To) forest@mail.com

विषय- पौधारोपण के लिए पौधों की व्यवस्था हे त।ु

उद्यान अधीक्षक,

सविनय निवेदन है कि मैं ग्रीन हाउस सोसाइटी का सचिव हूं। हमारे क्षेत्र राजनगर के आसपास
पेड़-पौधों और हरियाली की कमी है । आगामी वन-महोत्सव के अवसर पर हमारी सोसाइटी इन
क्षेत्रों के आसपास पौधारोपण करना चाहती है । अतः आपसे अनरु ोध है कि पौधारोपण के लिए पौधे
उपलब्ध कराने की उचित व्यवस्था करें ।

धन्यवाद!

भवदीय

अ० ब० स०
(राजनगर, ग्रीन सोसाइटी, सचिव)

दिनांक- 4 मार्च, 2023

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