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प्रश्न 1

आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई दे ना?
उत्तर:
माँ चाहती थी कि उसकी बेटी स्वाभिमान के साथ जीवन बिताए। उसके मन में लड़की होना किसी प्रकार की
हीन भावना उत्पन्न न करे । प्राय: लड़कियों को लड़कों की तल
ु ना में दर्ब
ु ल और कमतर समझा जाता है । माँ
चाहती थी कि उसकी पत्रु ी कभी अपने को कमजोर न समझे। वह साहस और आत्मविश्वास के साथ जिए।

प्रश्न 2 माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?


उत्तर:
माँ ने बेटी को अपने अनभ ु व से प्रमाणित और व्यावहारिक सीखें दीं। उसने कहा कि
1 वह कभी अपने रूप पर गर्व न करे । ससरु ाल में रूप से नहीं बल्कि बहू के आचरण और संस्कारों से उसे प्यार
और आदर मिलेगा।
2 माँ ने सीख दी कि कैसा भी संकट हो, वह कभी आत्महत्या करने की बात न सोचे। धैर्य और साहस से
परिस्थितियों का सामना करे । माँ ने बेटी को सावधान किया कि मल् ू यवान वस्त्रों और गहनों को पाकर वह
बहुत अधिक खश ु न हो।
3 ये नारी को बंधन में डालने वाली वस्तए ु ँ हैं। माँ ने यह सीख भी दी कि वह लड़की होने को अपनी कमजोरी न
समझे। स्वाभिमान के साथ जीवन बिताए।

प्रश्न 3.‘वस्त्र और आभष ू ण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन हैं स्त्री जीवन के।’ उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति में कवि ने वस्त्रों और आभषू णों को स्त्री के जीवन को बंधन में डालने वाला बताया है । सन्ु दर
वस्त्रों और मल् ू यवान आभष ू णों के मोह-जाल में फंसकर स्त्रियाँ अपने जीवन में अनेक अनचि ु त बन्धनों को
स्वीकार कर लेती हैं। उनका अपना व्यक्तित्व परु ु षों के हाथ गिरवी रख दिया जाता है ।

इसका प्रत्यक्ष उदाहरण ‘पति प्रधानों’ और ‘पतिपार्षदों’ के रूप में दे खा जा सकता है । वस्त्र और आभष
ू ण स्त्री
को भ्रमित करने वाले मोहक शब्द मात्र हैं। इनका स्त्री के जीवन में कोई विशेष महत्व नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 4 आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है ?
उत्तर:
प्राचीन भारतीय संस्कृति में कन्या को ‘पराया धन’ बताया गया है । माता-पिता तो इस पवित्र धरोहर को
सरु क्षित रूप में पति को सौंप दे ने की भमि
ू का निभाते रहे हैं परन्तु आज इस महादान की सारी गरिमा और
पण्ु यभाव समाप्त हो चकु ा है । इस दान को दे ने वाला और लेने वाला दोनों ही इसके मल
ू उद्दे श्य से दरू हो चक
ु े
हैं।

सच तो यह है कि कन्या के साथ ‘दान’ शब्द को जोड़ना, ‘नारी की स्थिति पर बड़ा व्यंग्य है और उसकी गरिमा
को गिराने वाला है । कन्या क्या कोई निर्जीव वस्तु या पश-ु पक्षी है जो उसे किसी को दान में दे दिया जाय?
मनष्ु य के दान की कल्पना भी सभ्य समाज में उचित प्रतीत नहीं होती।आज इस दान के साथ न वह श्रद्धा है
न पण्ु य प्राप्ति की इच्छा।

‘कन्यादान’ विवाह का एक औपचारिक अनष्ु ठान भर रह गया है । दोन वही सफल माना गया है जो सप ु ात्र को
दिया जाय। क्या इस शर्त का पालन हो पा रहा है ? जब स्त्री-स्वावलम्बन और सशक्तिकरण की बातें हो रही हों
तब कन्या का दान किया जाना एक मजाक से अधिक क्या कहा जा सकता है ?अतः अपने मल ू भाव और
सार्थकता को खो चकु े इस शब्द को या तो व्यवहार से बाहर कर दे ना चाहिए या फिर इसे समयानकु ू ल नाम
दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 5 क्या आप कन्यादान में लड़की को दे ते समय माँ के दख


ु को प्रामाणिक मानते हैं? यदि हाँ तो क्यों?
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:मेरे विचार से लड़की का कन्यादान करते समय उसकी माँ का दख ु प्रामाणिक अर्थात ् वास्तविक था। वह
केवल रीति निभाने के लिए दख ु ी होने का दिखावा नहीं कर रही थी।

लड़की बिछुड़ते समय हर माँ का दिल भर आता है । वर्षों का साथ, लाड़-प्यार और जीवन में सन ू ापन आने की
भावना उसे आसू बहाने को बाध्य कर दे ती है । उसे लगता है जैसे उसके पास बेटी के रूप में जीवन की पँज
ू ी शेष
थी। वह उस से दरू होने जा रही है । .

प्रश्न 6
‘लड़की अभी सयानी नहीं थी’ कवि के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: इस कथन का आशय यह है कि लड़की आयु में छोटी है । वह भोली और सरल स्वभाव वाली है । उसमें
सांसारिक समस्याओं की समझ और चतरु ाई का विकास नहीं हो पाया था।

इसी कारण उसे विवाहित जीवन के सख ु का अस्पष्ट-सा आभास था। वह अभी आगामी जीवन की समस्याओं
और कष्टों से अपरिचित थी। कवि ने यह संकेत भी किया। है कि माँ को उसका विवाह छोटी आयु में करना पड़
रहा था।

प्रश्न 7 ‘पाठिका थी धध ंु ले प्रकाश की’ से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए।


उत्तर:
धध ंु ले प्रकाश में किसी पस्
ु तक आदि को स्पष्ट रूप से पढ़ और समझ पाना कठिन होता है । इसी प्रकार वह
भोली लड़की विवाहित जीवन की मधरु कविता का आनन्द क्या होता है , इसे अस्पष्ट रूप में ही समझ पा रही
थी।

उसकी समझ में केवल उतनी ही पंक्तियाँ आ रही थीं, जिनमें तक


ु और लय का समावेश था। भाव यह है कि वह
विवाहित जीवन के सख
ु मय पक्ष का ही थोड़ा-सा ज्ञान रखती थीं, वह आने वाली कठिनाइयों से अपरिचित थी।

प्रश्न 8 ‘पानी में झाँककर अपने चेहरे पर मत रीझना’ इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: अपना चेहरा दे खने के लिए स्त्रियाँ प्रात:काल दर्पण का प्रयोग करती हैं। किशोरियों और यव ु तियों को
चेहरा दे खने का विशेष चाव होता है । यदि मख ु मं
ड ल अधिक स न्
ु दर होता है तो वे बहु धा सौन्दर्य गर्विता हो जाती
हैं। इससे उनके प्रशंसकों के साथ ही इष्र्या करने वाले हो जाते हैं। इससे उनके जीवन में अनेक समस्याएँ पैदा हो
जाती हैं। अत: म ने बेटी को इससे बेचने की सीख दी है ।

प्रश्न 9
आग’ के माध्यम से माँ ने बेटी को क्या शिक्षा दी है ? ‘कन्यादान’ पाठ के आधार पर लिखिए
उत्तर स्त्रियों को रसोईघर में काम करते हुए नित्य घंटों आग के सम्पर्क में रहना पड़ता है । आग पर ही भोजन
पकाया जाता है । यही आग का मल ू उपयोग है परन्तु कभी-कभी ससरु ाल में स्त्रियाँ समस्याओं से घबराकर या
अत्याचार से पीड़ित होने पर आग लगाकर प्राण दे दे ती हैं। माँ ने बेटी को यही समझाने की कोशिश की है कि
वह कभी आत्महत्या का विचार मन में न लाए। साहस और सझ ू -बझू से परिस्थितियों का सामना करे ।

प्रश्न 10 वस्त्र और आभष ू ण किसके समान मन को भ्रमित कर दे ते हैं? स्पष्ट कीजिए।


उत्तर:
वस्त्र और आभष ू ण मन को भ्रमित कर दे ने वाले मोहक शब्दों के समान होते हैं। जैसे चतरु और स्वार्थी लोग
अपनी मधरु वाणी द्वारा लोगों के मन को भ्रमित कर दे ते हैं, उसी प्रकार वस्त्र-आभष ू णों को पाकर स्त्रियाँ भी
भ्रम में पड़कर अनेक बंधनों को स्वीकार कर लिया करती हैं।

इससे उनका व्यक्तित्व और आत्मविश्वास संकट में पड़ जाता है । वस्त्र औरआभष
ू णों के उपहार दे कर परु
ु ष
नारी को अपने अधीन कर लिया करते हैं।
प्रश्न 11 ‘लड़की होना पर लड़की-जैसी दिखाई मत दे ना।’ क्या आज की परिस्थिति में आपको माँ की यह सीख
उचित प्रतीत होती है ? अपना मत लिखिए
उत्तर:
लड़की-जैसी’ शब्द द्वारा कवि ने लड़कियों के प्रति चली आ रही परम्परागत सोच पर व्यंग्य किया है । लड़कियों
की तल ु ना में लड़कों को प्राय: वरीयता प्रदान की जाती रही है । उनको कमजोर, पिछड़ी, सहनशील, संकोची और
स्वयं को लड़कों की तल ु ना में हीनता का अनभ ु व करने वाली माना गया है ।

आज समय बदल रहा है । लड़कियाँ जीवन के हर क्षेत्र में लड़कों को कड़ी चन


ु ौती दे रही हैं। हर पेशे में अपनी
प्रतिभा का प्रमाण दे रही हैं। अत: अपनी बेटी को दी गई। माँ की यह सीख परू ी तरह समयानक ु ू ल है ।

प्रश्न 12
”लड़की अभी सयानी नहीं थी।” कवि इस कथन को ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘सयानी’ शब्द का अर्थ चतरु , समझदार और उम्र में बड़ी होना भी होता है । हमारे यहाँ सही आयु से पहले ही
कन्या का विवाह होता आ रहा है । लड़की का मानसिक और शारीरिक विकास होने से पर्व ू ही, उसे विवाह के
जटिल बंधन में बाँध दिया जाता है । ‘कन्यादान’ कविता की लड़की भी सयानी नहीं थी।
वह अभी इतनी नासमझ और सरल स्वभाव की थी कि उसे वैवाहिक जीवन में प्राप्त होने वाले सख ु का एक
अस्पष्ट-सा आभास तो था लेकिन विवाह के उपरान्त सामने आने वाली समस्याओं और चन ु ौतियों के विषय में
कुछ ज्ञान नहीं था।

उसके लिए वैवाहिक जीवन ऐसा ही अस्पष्ट था जैसे धध ंु ले प्रकाश में पढ़ा जाने वाला कोई पाठ हो। उसके मन
में विवाहित जीवन की कुछ सख
ु द कल्पनाएँ मात्र थीं । उसकी वास्तविकता से वह परिचित नहीं थी। इसी कारण
कवि उसे सयानी नहीं मानता।

प्रश्न 13 माँ ने पति के घर जा रही बेटी को क्या-क्या उपयोगी सझु ाव दिए ? ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर
लिखिए।
उत्तर:
माँ ने बेटी को कई उपयोगी और व्यावहारिक सझ ु ाव दिए, जिससे उसका वैवाहिक जीवन सख ु ी बना रहे । उसने
बेटी से कहा कि वह ससरु ाल में अपनी शारीरिक सन् ु दरता को अधिक महत्व न दे ।

उसकी सन् ु दरता दस ू रों के लिए ईष्र्या का कारण हो सकती थी। इससे द्वेष को वातावरण बन सकता था। माँ ने
बेटी को समझाया कि चाहे जैसी कठिन परिस्थिति क्यों न आए, वह कभी भी आत्महत्या करने की बात न
सोचे। सझ ू -बझ ू े और धैर्यपर्व
ू क समस्या का सामना करे । वह सन् ु दर वस्त्रों तथा बहुमल्
ू य आभण
ृ ों के मोह में न
पड़े। ये स्त्री को भ्रम में डाल दे ते हैं। उसके स्वाभिमान को वंचित कर दे ते हैं। माँ ने वर्तमान परिस्थितियों को
प्रश्न 14.‘कन्यादान’ शब्द नारी की गरिमा के अनक ु ू ल नहीं है । क्या आप इस शब्द के स्थान पर कुछ और शब्द
रखना या इसे हटा दे ना उचित समझते हैं? सोदाहरण अपना मत प्रस्तत ु कीजिए।
उत्तर:
आज समाज में महिला सशक्तीकरण और नारियों के अधिकारों की हिमायत की जा रही है । कन्याएँ अपने
समकक्ष लड़कों से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। ऐसे परिवेश में ‘कन्यादान’ शब्द कन्याओं की हीनता और
दर्ब
ु लता का द्योतक है ।

कन्यादान हिन्द ू विवाह का एक परं परागत अंग रहा है । कन्या कोई निर्जीव वस्तु नहीं कि उसका अन्नदान,
वस्त्रदान, गोदान आदि की भाँति दान कर दिया जाय। दान की गई वस्तु का दान प्राप्तकर्ता स्वामी मान लिया
जाता है ।

अतः ‘कन्यादान’ शब्द में स्त्री के पद को हीन करने की गंध आती है ।मेरा मत है कि इस शब्द को या तो विवाह
पद्धति से निकाल दिया जाय या फिर इसके स्थान पर ‘आशीषदान’, ‘मंगल कामना’ या कोई और उपयक् ु त
शब्द प्रयोग में लाया जाय।
विवाह के लिए पाणिग्रहण’ शब्द भी प्रचलित है । कन्या के माता-पिता अपनी पत्र ु ी का हाथ वर को पकड़ाते हैं
अर्थात ् दाम्पत्य जीवन में दोनों को एक-दस
ू रे का परू क मानते हु ए उनके मं
ग लमय जीवन की कामना व्यक्त
करते हैं। कन्यादान को यही स्वरूप है और इसके अनरू ु प ही नाम भी दिया जाना चाहिए।
प्रश्न 15.
‘कन्यादान’ कविता से क्या संदेश प्राप्त होता है ? अपना मत प्रस्तत ु कीजिए।
उत्तर:
‘कन्यादान’ कविता भारतीय नारी जीवन पर केन्द्रित है । कवि की भारतीय नारी के प्रति संवेदनशीलता इस
कविता में स्पष्ट नजर आती है । कवि परम्पराओं में जकड़ी हुई भारतीय नारियों को जागत ृ करना चाहता है ।

वह चाहता है कि नारियाँ अपने व्यक्तित्व, अपनी क्षमताओं और अपने गण ु ों के प्रति जागरूक बने। कवि का
संदेश है कि नारी को ससरु ाल में मिलने वाले गहनों और वस्त्रों से अधिक मोह नहीं रखना चाहिए।ये उसे परुु ष
की दासता में बाँध दे ने वाले बंधनों के समान हो सकते हैं।

अपने रूप और सन् ु दरता पर मग्ु ध होकर रहना, अपने आपको धोखा दे ने के समान है । स्त्री को अपने स्त्री होने
पर गर्व होना चाहिए हर प्रकार की दीनता-हीनता से मक्ु त रहना चाहिए साथ ही अपने स्त्रियोचित गण ु ों को
बनाए रखना चाहिए। दे खा जाय तो भारतीय नारी के सन्दर्भ में दिये गए ये संदेश सम्पर्ण
ू विश्व की नारी जाति
के लिए हैं। उनके मार्गदर्शक हो सकते हैं।

कवि परिचय

जीवन परिचय-

कवि ऋतरु ाज का जन्म राजस्थान में भरतपरु जनपद में सन ् 1940 में हुआ। उन्होंने राजस्थान
विश्वविद्यालय जयपरु से अँग्रेजी में एम. ए. की उपाधि ग्रहण की। उन्होंने लगभग चालीस वर्षों तक
अँग्रेजी-अध्यापन किया। ऋतरु ाज के अब तक प्रकाशित काव्य संग्रहों में ‘पल ु पर पानी’, ‘एक मरणधर्मा और
अन्य’, ‘सरु त निरत’ तथा ‘लीला मखु ारविन्द’ प्रमख
ु हैं। अपनी रचनाओं के लिए ऋतरु ाज परिमल सम्मान,
मीरा परु स्कार, पहल सम्मान, बिहारी परु स्कार आदि से सम्मानित हो चक ु े हैं।

साहित्यिक परिचय-ऋतरु ाज ने हिन्दी की मख् ु य परम्परा से हटकर उन लोगों को अपनी रचनाओं का विषय
बनाया है । जो प्रायः उपेक्षित रहे हैं। उनके सख ु -द:ु ख, चिन्ताओं और चन
ु ौतियों को चर्चा में स्थान दिलाया है ।
सामाजिक जीवन के व्यावहारिक अनभ ु वों को कवि ने सच्चाई के साथ शब्दों में उतारा है । आम जीवन में
व्याप्त चिन्ताओं, विसंगतियों और सामाजिक जीवन की विडम्बनाओं की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित
किया है ।

लोक प्रचलित भाषा के द्वारा आम जीवन की समस्याओं को विमर्श के केन्द्र में लाकर कवि ने सामाजिक
न्याय की भावना को बल प्रदान किया है ।

पाठ परिचय ‘कन्यादान’ विवाह का एक महत्त्वपर्णू अंग रहा है । कवि ने इस कविता में ‘कन्या के दान’ पर प्रश्न
उठाते हुए, एक माँ द्वारा अपनी पत्र
ु ी को वैवाहिक जीवन से संबधिं त गम्भीर शिक्षाएँ दिलवाई हैं। कविता में माँ
बेटी को परम्पराओं और आदर्शो से हटकर, कुछ उपयोगी सीखें दे रही है ।

समाज ने स्त्रियों के लिए आचरण के जो पैमाने गढ़े हैं, वे बड़े आदर्शवादी हैं। स्त्रियों से यही आशा की जाती रही
है । कि वे अपना जीवन इन्हीं आदर्शों के अनरूु प ढालें। स्त्रियों को कोमल बताया जाना एक प्रकार से उनके
व्यक्तित्व का उपहास है । स्त्री परु
ु ष की तल
ु ना में कमजोर होती है , यही कोमलता का अर्थ है ।

कविता में माँ अपनी भोली-भाली कन्या को शिक्षा दे रही है कि वह अपनी सद


ंु रता पर मग्ु ध होने से बचे क्योंकि
इससे वह ईर्ष्या का शिकार हो सकती है । चाहे जैसी कठिन परिस्थिति आए वह कभी अपना जीवन समाप्त कर
दे ने की बात न सोचे। सन्
ु दर और मल्
ू यवान वस्त्र तथा आभष ू ण पाकर वह भ्रम में न पड़े। ये स्त्री को पराधीन
बनाकर रखने वाले बंधन होते हैं। तू लड़की है यह सच है किन्तु इस कारण तू कमजोर या परावलम्बी है , यह
बात सपने में भी मत सोचना।

इस प्रकार कवि ने बेटी की विदाई पर माँ को भावक


ु होकर आँसू बहाते नहीं दिखाया है बल्कि अपने जीवन के
गम्भीर अनभ ु वों को उसके साथ साझा किया है ।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ

(1)
कितना प्रामाणिक था उसका दख ु
लड़की को दान में दे ते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पँज ू ी हो।
लड़की अभी सयानी नहीं थी।
अभी इतनी भोली सरल थी।
कि उसे सख ु का आभास तो होता था
लेकिन दख ु बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धध ंु ले प्रकाश की।
कुछ तकु ों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की।

शब्दार्थ-प्रामाणिक = सच्चा, वास्तविक। दान = कन्यादान, विवाह की एक रीति। पँजू ी = संपर्ण


ू संचित धन।
सयानी = समझदार, चतरु । आभास = हल्की समझ, अनम ु ान। बाँ चना = पढ़ना, समझ पाना। पाठिका = पढ़ने
वाली। धध ंु ले = अस्पष्ट, कम चमकदार। लयबद्ध = लय में बँधी, स्पष्ट।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तत


ु काव्यांश हमारी पाठ्यपस्
ु तक में संकलित कवि ऋतरु ाज की कविता ‘कन्यादान’ से
लिया गया है । इस अंश में कवि ने एक नवविवाहिता लड़की के सरल स्वभाव का और जीवन की कठोर
वास्तविकता से परिचित। न होने का वर्णन किया है ।

व्याख्या-बेटी का कन्यादान करते समय माँ दख ु ी थी। उसे लग रहा था मानो वह अपने जीवन में संचित अंतिम
पँजू ी से भी बिछुड़ रही हो। माँ का यह दख ु दिखावा या रीति निभाना मात्र नहीं था। उसका दख ु वास्तविक था
जिससे हर कन्या की माता को गज ु रना पड़ता है । माँ कन्या को कुछ बड़ी उपयोगी और व्यावहारिक शिक्षाएँ
दे ना चाहती थी। लड़की अभी भोली और सरल स्वभाव वाली थी। उसे अभी सांसारिक व्यवहार का, जीवन की
कठोर सच्चाइयों का ज्ञान नहीं था। उसके मन में वैवाहिक जीवन के सख ु ों की एक अस्पष्ट-सी तस्वीर तो थी
लेकिन उससे जड़ ु े द:ु खों और समस्याओं से वह अपरिचित थी। कम आयु और भोले स्वभाव के कारण आगामी
जीवन उसके लिए धध ंु ले प्रकाश में पढ़ी जाने वाली कविता के समान था। उसकी तक ु और लय में बँधी सख ु द
पंक्तियों को ही वह पढ़ने और समझने में समर्थ थी। अभी उसे जीवन के कड़वे अनभ ु वों का ज्ञान न था।

विशेष-
(1) भाषा सरल है । भाषा पर कवि की पकड़ कथन को आकर्षक बना रही है ।
(2) ‘अन्तिम पँज ू ी’, ‘सख
ु का आभास’, ‘द:ु ख बाँचना’, ‘पाठिका थी वह धध ंु ले प्रकाश की’ ‘तक
ु ’ और ‘लयबद्ध’
जैसे शब्द प्रसंग की गम्भीरता से परिचित कराते हैं।
(3) लड़की को दान में दे ना’, ‘अन्तिम पँज
ू ी होना’ जैसे प्रयोग हृदय को छू लेने वाले हैं।
(4) आज की माँ को परम्परागत उपदे शों के बजाय ऐसी ही व्यावहारिक और उपयोगी शिक्षाएँ बेटियों को दे नी
चाहिए।

2.
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है ।
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभष ू ण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के।
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की-जैसी दिखाई मत दे ना।

शब्दार्थ-झाँककर = दे खकर। चेहरा = मख


ु । रीझना = मग्ु ध होना, अति प्रसन्न होना। जलने के लिए = आग
लगाकर आत्महत्या करने के लिए। शाब्दिक भ्रम = भ्रम में डाल दे ने वाले शब्द। लड़की जैसी = कमजोर या
दस
ू रों पर निर्भर।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तत


ु काव्यांश हमारी पाठ्यपस्
ु तक में संकलित कवि ऋतरु ाज की कविता ‘कन्यादान’ से
लिया गया है । इस अंश में माँ अपनी विवाहित बेटी को आगामी जीवन के लिए उपयोगी सीख दे रही है ।

व्याख्या-विदा होकर ससरु ाल जाने वाली बेटी को शिक्षा दे ते हुए माँ कह रही है -बेटी ! ससरु ाल में अपनी सन्ु दरता
पर बहुत प्रसन्न होकर न रहना। तम् ु हारी यह सन्
ु दरता किसी को प्रसन्न करे गी तो किसी के लिए ईर्ष्या का
कारण भी हो सकती है । सन् ु दरता पर इतराने से अनेक समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं। ध्यान रखना स्त्री के लिए
आग केवल रोटी सेकने के लिए होती हैं। कभी भी आवेश में आकर या हताश होकर आग लगाकर जल मरने की
बात मत सोचना। सझ ू -बझ ू और साहस से समस्याओं का सामना करते हुए जीना। ससरु ाल में कीमती वस्त्र
और आभष ू ण पाकर बहुत खश ु मत होना। ये गहने-कपड़े केवल भ्रम में डालने वाले शब्दों की तरह हुआ करते
हैं। ये स्त्री को बंधन में डाल दे ने वाली हथकड़ियों और बेड़ियों के समान हैं। इनके मोह में फंसकर अपनी सही
सोच से दरू मत हो जाना। यह सही है कि तम ु एक लड़की हो किन्तु लड़की होना कोई कमजोरी नहीं बल्कि
स्वाभिमान की बात है । कभी अन्याय और अपमान से समझौता मत करना।

विशेष-
(1) माँ द्वारा दी गई सीखें व्यावहारिक और आज के सामाजिक परिवेश में बहुत उपयोगी हैं।
(2) काव्यांश में नारी जीवन के प्रति कवि की सहानभ
ु ति
ू और संवेदना व्यक्त हुई है ।
(3) लक्षणा शब्द शक्ति द्वारा कवि ने रचना को प्रभावशाली बनाया है । लड़की होना पर लड़की जैसा दिखाई
मत दे ना’ ऐसा ही प्रयोग है ।

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