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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

.IN
ॐ ॐ

ॐ ॐ
DF ॐ

AP

ॐ ॐ
ST

ॐ ॐ
IN

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपाववतस्थले
ॐ ॐ
गलेऽवलम्ब्य लम्बिताां भुजांगतुां गमाललकाम।

.IN
डमड्डमड्डमड्डमवििादवड्डमववयां
ॐ ॐ
चकार चां डताांडवां तिोतु िः लिवः लिवम ॥1॥
ॐ ॐ
DF
जटा कटा हसां भ्रम भ्रमविललांपविर्वरी ।


AP
ववलोलवी लचवल्लरी ववराजमािमूर्वव ि ।

ॐ र्गद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके ॐ


ST

वकिोरचां द्रिेखरे रवतः प्रवतक्षणां ममां ॥2॥


ॐ ॐ
IN

र्रा र्रेंद्र िां वदिी ववलास बां र्ुवांर्ुर-


ॐ ॐ
स्फुरदृगां त सां तवत प्रमोद मािमािसे ।
ॐ कृ पाकटा क्षर्ारणी विरुद्धदुर्रव ापवद ॐ

कवलचविगिरे मिो वविोदमेतु वस्तुवि ॥3॥


ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ


जटा भुजां गवपांगल स्फुरत्फणामलणप्रभा- ॐ

कदांबकुां कु म द्रवप्रललप्त वदग्वर्ूमख


ु े।
ॐ ॐ
मदाांर् लसांर्ु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदरु े

.IN
ॐ मिो वविोदद्भतु ां वबांभतुव भूतभतवरर ॥4॥ ॐ

ॐ सहस्र लोचि प्रभृत्य िेषलेखिेखर- ॐ


DF
प्रसूि र्ूललर्ोरणी ववर्ूसराांविपीठभूः ।


AP
भुजांगराज मालया विबद्धजाटजूटकः
ॐ लिये लचराय जायताां चकोर बां र्ुिख
े रः ॥5॥ ॐ
ST

ॐ ललाट चत्वरज्वलद्धिां जयस्फुररगभा- ॐ


IN

विपीतपां चसायकां विमविललांपिायम । ॐ



सुर्ा मयुख लेखया ववराजमाििेखरां
ॐ ॐ
महा कपालल सां पदे लिरोजयालमस्तू िः ॥6॥

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ


कराल भाल पवट्टकार्गद्धगद्धगज्ज्वल- ॐ

द्धिां जया र्रीकृ तप्रचां डपां चसायके ।


ॐ ॐ
र्रार्रेंद्र िां वदिी कु चाग्रलचत्रपत्रक-

.IN
ॐ प्रकल्पिैकलिम्बल्पवि वत्रलोचिे मवतमवम ॥7॥ ॐ

ॐ िवीि मेघ मां डली विरुद्धदुर्रव स्फुर- ॐ


DF
त्कु हु वििीलििीतमः प्रबां र्बां र्ुकांर्रः ।


AP
विललम्पविर्वरर र्रस्तिोतु कृ वत्त लसांर्रु ः
ॐ कलाविर्ािबां र्ुरः लियां जगां द्धरु ांर्रः ॥8॥ ॐ
ST

ॐ प्रफुल्ल िील पां कज प्रपां चकाललमच्छटा- ॐ


IN

ववडांवब कां ठकां र् रारुलच प्रबां र्कां र्रम ॐ



स्मरम्बच्छदां पुरम्बच्छांद भवम्बच्छदां मखम्बच्छदां
ॐ ॐ
गजम्बच्छदाांर्कम्बच्छदां तमां तकम्बच्छदां भजे ॥9॥

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ


अगववसववमांगला कलाकदिमां जरी- ॐ

रसप्रवाह मार्ुरी ववजृां भणा मर्ुव्रतम ।


ॐ ॐ
स्मराांतकां पुरातकां भावां तकां मखाांतकां

.IN
ॐ गजाांतकाांर्काांतकां तमां तकाांतकां भजे ॥10॥ ॐ

ॐ जयत्वदभ्रववभ्रम भ्रमद्भज
ु ां गमस्फुर- ॐ
DF
द्धगद्धगवि विगवमत्कराल भाल हव्यवाट-


AP
लर्वमवद्धवमवद्धवम िन्मृदांगतुां गमां गल-
ॐ ध्वविक्रमप्रववतवत प्रचण्ड ताण्डवः लिवः ॥11॥ ॐ
ST

ॐ दृषविलचत्रतल्पयोभुज
व ां ग मौविकमस्रजो- ॐ
IN

गवररष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृविपक्षपक्षयोः । ॐ

तृणारववांदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
ॐ ॐ
समां प्रवतवयन्मिः कदा सदालिवां भजे ॥12॥

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ


कदा विललांपविर्वरी विकु जकोटरे वसि ॐ

ववमुिदुमवव तः सदा लिरः स्थमां जललां वहि।


ॐ ॐ
ववमुिलोललोचिो ललामभाललग्नकः

.IN
ॐ लिवेवत मां त्रमुच्चरिकदा सुखी भवाम्यहम॥13॥ ॐ

ॐ विललम्प िाििागरी कदि मौलमम्बल्लका- ॐ


DF
विगुम्फविभवक्षरन्म र्ूम्बिकामिोहरः ।


AP
तिोतु िो मिोमुदां वविोवदिीांमहवििां
ॐ पररिय परां पदां तदांगजलत्वषाां चयः ॥14॥ ॐ
ST

ॐ प्रचण्ड वाडवािल प्रभािुभप्रचारणी ॐ


IN

महाष्टलसवद्धकावमिी जिावहूत जल्पिा । ॐ



ववमुि वाम लोचिो वववाहकाललकध्वविः
ॐ ॐ
लिवेवत मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम ॥15॥

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ


इमां वह वित्यमेव मुिमुिमोत्तम स्तवां ॐ

पठन्स्मरि ब्रुविरो वविुद्धमेवत सां ततम।


ॐ ॐ
हरे गुरौ सुभविमािु यावत िाांयिा गवतां

.IN
ॐ ववमोहिां वह दे हिा तु िां करस्य लचांतिम ॥16॥ ॐ

ॐ पूजाऽवसािसमये दिवक्रत्रगीतां ॐ

यः िम्भूपज
DF
ू िवमदां पठवत प्रदोषे ।


AP
तस्य म्बस्थराां रिगजेंद्रतुरांगयुिाां
ॐ लक्ष्मी सदैव सुमुखीां प्रददावत िम्भुः ॥17॥ ॐ
ST

ॐ ॐ
॥ इवत लिव ताांडव स्तोत्रां सां पूणम
व ॥
IN

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ


वहन्दी अिव ॐ

.IN
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपाववतस्थले ॐ

गलेऽवलम्ब्य लम्बिताां भुजङ्गतुङ्गमाललकाम।
ॐ ॐ
DF
डमड्डमड्डमड्डमवििादवड्डमववयां
चकार चण्डताण्डवां तिोतु िः लिवः लिवम॥१॥ ॐ

AP

ॐ ॐ
उिके बालोां से बहिे वाले जल से उिका कां ठ पववत्र है, और
ST

ॐ उिके गले में साांप है जो हार की तरह लटका है और डमरू से ॐ


IN

डमट डमट डमट की ध्ववि विकल रही है, भगवाि लिव िुभ
ॐ ॐ
ताांडव िृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको सां पिता प्रदाि करें ।
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमविललम्पविर्वरी

.IN
ॐ ववलोलवीलचवल्लरीववराजमािमूर्वव ि। ॐ

र्गद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके ॐ

DF
वकिोरचन्द्रिेखरे रवतः प्रवतक्षणां मम॥२॥


AP
मेरी लिव में गहरी रुलच है, लजिका लसर अलौवकक गां गा िदी ॐ

ST

की बहती लहरोां की र्ाराओां से सुिोलभत है, जो उिकी बालोां


ॐ ॐ
की उलर्ी जटाओां की गहराई में उमड़ रही हैं ? लजिके
IN


मस्तक की सतह पर चमकदार अवग्न प्रज्वललत है, और जो ॐ

अपिे लसर पर अर्व-चां द्र का आभूषण पहिे हैं ।


ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
र्रार्रेन्द्रिां वदिीववलासबन्धुबन्धुर

.IN
ॐ स्फुरविगन्तसन्तवतप्रमोदमािमािसे। ॐ

कृ पाकटाक्षर्ोरणीविरुद्धदुर्रव ापवद ॐ

DF
क्वलचविगिरे(क्वलचम्बच्चदिरे) मिो वविोदमेतु वस्तुवि॥३॥


AP
मेरा मि भगवाि लिव में अपिी खुिी खोजे, अद्भतु ब्रह्माण्ड ॐ

ST

के सारे प्राणी लजिके मि में मौजूद हैं, लजिकी अर्ाांवगिी


ॐ ॐ
पववतराज की पुत्री पाववती हैं, जो अपिी करुणा दृवष्ट से
IN


असार्ारण आपदा को वियां वत्रत करते हैं, जो सववत्र व्याप्त है, ॐ

और जो वदव्य लोकोां को अपिी पोिाक की तरह र्ारण करते


ॐ ॐ
हैं ।

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
जटाभुजङ्गवपङ्गलस्फुरत्फणामलणप्रभा

.IN
ॐ कदिकु ङ्कुमद्रवप्रललप्तवदग्वर्ूमख
ु ।े ॐ

मदान्धलसन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदरु े ॐ

DF
मिो वविोदमद्भतु ां वबभतुव भूतभतवरर॥४॥


AP
मुर्े भगवाि लिव में अिोखा सुख वमले, जो सारे जीवि के ॐ

ST

रक्षक हैं, उिके रेंगते हुए साांप का फि लाल-भूरा है और मलण


ॐ ॐ
चमक रही है, ये वदिाओां की दे ववयोां के सुां दर चेहरोां पर ववलभि
IN


रां ग वबखेर रहा है, जो वविाल मदमस्त हािी की खाल से बिे ॐ

जगमगाते दुिाले से ढां का है ।


ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
सहस्रलोचिप्रभृत्यिेषलेखिेखर

.IN
ॐ प्रसूिर्ूललर्ोरणी ववर्ूसराविपीठभूः । ॐ

भुजङ्गराजमालया विबद्धजाटजूटक ॐ

DF
लियै लचराय जायताां चकोरबन्धुिख
े रः ॥५॥


AP
भगवाि लिव हमें सां पिता दें , लजिका मुकुट चां द्रमा है, लजिके ॐ

ST

बाल लाल िाग के हार से बां र्े हैं, लजिका पायदाि फूलोां की
ॐ ॐ
र्ूल के बहिे से गहरे रां ग का हो गया है, जो इां द्र, वविु और
IN


अन्य दे वताओां के लसर से वगरती है । ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
ललाटचत्वरज्वलद्धिञ्जयस्फुललङ्गभा

.IN
ॐ विपीतपञ्चसायकां िमविललम्पिायकम। ॐ

सुर्ामयूखलेखया ववराजमाििेखरां ॐ

DF
महाकपाललसम्पदेलिरोजटालमस्तु िः ॥६॥


AP
लिव के बालोां की उलर्ी जटाओां से हम लसवद्ध की दौलत प्राप्त ॐ

ST

करें, लजन्ोांिे कामदे व को अपिे मस्तक पर जलिे वाली अवग्न


ॐ ॐ
की लचिगारी से िष्ट वकया िा, जो सारे दे वलोकोां के स्वावमयोां
IN


िारा आदरणीय हैं, जो अर्व-चां द्र से सुिोलभत हैं । ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
करालभालपवट्टकार्गद्धगद्धगज्ज्वल

.IN
ॐ द्धिञ्जयाहुतीकृ तप्रचण्डपञ्चसायके । ॐ

र्रार्रेन्द्रिलन्दिीकु चाग्रलचत्रपत्रक ॐ

DF
प्रकल्पिैकलिम्बल्पवि वत्रलोचिे रवतमवम॥७॥


AP
मेरी रुलच भगवाि लिव में है, लजिके तीि िेत्र हैं, लजन्ोांिे ॐ

ST

िवििाली कामदे व को अवग्न को अवपवत कर वदया, उिके


ॐ ॐ
भीषण मस्तक की सतह डगद डगद की घ्ववि से जलती है, वे
IN


ही एकमात्र कलाकार है जो पववतराज की पुत्री पाववती के स्ति ॐ

की िोक पर, सजावटी रेखाएां खीांचिे में विपुण हैं ।


ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
िवीिमेघमण्डली विरुद्धदुर्रव स्फुरत

.IN
ॐ कु हूवििीलििीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः । ॐ

विललम्पविर्वरीर्रस्तिोतु कृ वत्तलसन्धुरः ॐ

DF
कलाविर्ािबन्धुरः लियां जगद्धरु ांर्रः ॥८॥


AP
भगवाि लिव हमें सां पिता दें , वे ही पूरे सां सार का भार उठाते ॐ

ST

हैं, लजिकी िोभा चां द्रमा है, लजिके पास अलौवकक गां गा िदी
ॐ ॐ
है, लजिकी गदव ि गला बादलोां की पतों से ढां की अमावस्या की
IN


अर्वरावत्र की तरह काली है । ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

प्रफुल्लिीलपङ्कजप्रपञ्चकाललमप्रभा
ॐ ॐ
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुलचप्रबद्धकन्धरम।
ॐ ॐ
स्मरम्बच्छदां पुरम्बच्छदां भवम्बच्छदां मखम्बच्छदां

.IN
गजम्बच्छदाांर्कम्बच्छदां तमन्तकम्बच्छदां भजे॥९॥ ॐ

ॐ ॐ
DF
मैं भगवाि लिव की प्रािविा करता हूां, लजिका कां ठ मां वदरोां की
चमक से बां र्ा है, पूरे लखले िीले कमल के फूलोां की गररमा से ॐ

AP
लटकता हुआ, जो ब्रह्माण्ड की काललमा सा वदखता है ।
ॐ ॐ
ST


जो कामदे व को मारिे वाले हैं, लजन्ोांिे वत्रपुर का अांत वकया, ॐ
IN

लजन्ोांिे साांसाररक जीवि के बां र्िोां को िष्ट वकया, लजन्ोांिे


ॐ ॐ
बलल का अांत वकया, लजन्ोांिे अांर्क दै त्य का वविाि वकया,

ॐ जो हालियोां को मारिे वाले हैं, और लजन्ोांिे मृत्यु के दे वता यम ॐ

को परालजत वकया ।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ
अगवव सववमङ्गलाकलाकदिमञ्जरी
ॐ रसप्रवाहमार्ुरी ववजृम्भणामर्ुव्रतम। ॐ

स्मरान्तकां पुरान्तकां भवान्तकां मखान्तकां

.IN
ॐ ॐ
गजान्तकान्धकान्तकां तमन्तकान्तकां भजे॥१०॥
ॐ ॐ
DF
मैं भगवाि लिव की प्रािविा करता हूां, लजिके चारोां ओर


AP
मर्ुमम्बियाां उड़ती रहती हैं । िुभ कदां ब के फूलोां के सुां दर
ॐ गुच्छे से आिे वाली िहद की मर्ुर सुगांर् के कारण, जो ॐ
ST

कामदे व को मारिे वाले हैं, लजन्ोांिे वत्रपुर का अांत वकया,


ॐ ॐ
लजन्ोांिे साांसाररक जीवि के बां र्िोां को िष्ट वकया, लजन्ोांिे
IN

ॐ ॐ
बलल का अांत वकया, लजन्ोांिे अांर्क दै त्य का वविाि वकया,
जो हालियोां को मारिे वाले हैं, और लजन्ोांिे मृत्यु के दे वता यम
ॐ ॐ
को परालजत वकया ।
ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
जयत्वदभ्रववभ्रमभ्रमद्भज
ु ङ्गमश्वस

.IN
ॐ विविगवमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट। ॐ

लर्वमवद्धवमवद्धवमध्विन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ॐ

DF
ध्वविक्रमप्रववतवत प्रचण्डताण्डवः लिवः ॥११॥


AP


लिव, लजिका ताांडव िृत्य िगाड़े की वढवमड वढवमड तेज ॐ
ST

आवाज िां खला के साि लय में है, लजिके महाि मस्तक पर


ॐ ॐ
अवग्न है, वो अवग्न फैल रही है िाग की साांस के कारण,
IN

ॐ गररमामय आकाि में गोल-गोल घूमती हुई । ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
दृषविलचत्रतल्पयोभुज
व ङ्गमौविकस्रजोर

.IN
ॐ गररष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृविपक्षपक्षयोः । ॐ

तृणारववन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः ॐ

DF
समां प्रवव्रवतक: कदा सदालिवां भजाम्यहम॥१२॥


AP


मैं भगवाि सदालिव की पूजा कब कर सकूां गा, िाश्वत िुभ ॐ
ST

दे वता, जो रखते हैं सम्राटोां और लोगोां के प्रवत समभाव दृवष्ट,


ॐ ॐ
घास के वतिके और कमल के प्रवत, वमत्रोां और ित्रुओ ां के
IN

ॐ प्रवत,सवावलर्क मूल्यवाि रत्न और र्ूल के ढेर के प्रवत, साांप ॐ

और हार के प्रवत और ववश्व में ववलभि रूपोां के प्रवत ?


ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
कदा विललम्पविर्वरीविकु ञ्जकोटरे वसि

.IN
ॐ ववमुिदुमवव तः सदा लिरः स्थमञ्जललां वहि। ॐ

ववमुिलोललोचिो ललामभाललग्नकः ॐ

DF
लिवेवत मां त्रमुच्चरि कदा सुखी भवाम्यहम॥१३॥


AP


मैं कब प्रसि हो सकता हूां, अलौवकक िदी गां गा के विकट ॐ
ST

गुफा में रहते हुए, अपिे हािोां को हर समय बाांर्कर अपिे


ॐ ॐ
लसर पर रखे हुए, अपिे दूवषत ववचारोां को र्ोकर दूर करके ,
IN

ॐ लिव मां त्र को बोलते हुए, महाि मस्तक और जीवां त िेत्रोां वाले ॐ

भगवाि को समवपवत ?
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
विललम्प िाििागरी कदि मौलमम्बल्लका-

.IN
ॐ विगुम्फविभवक्षरन्म र्ूम्बिकामिोहरः । ॐ

तिोतु िो मिोमुदां वविोवदिीांमहवििां ॐ



DF
पररिय परां पदां तदङ्गजलत्वषाां चयः ॥१४॥


AP


इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुिाता है, ॐ
ST

वह सदै व के ललए पववत्र हो जाता है और महाि गुरु लिव की


ॐ ॐ
भवि पाता है । इस भवि के ललए कोई दूसरा मागव या उपाय
IN

ॐ िहीां है । बस लिव का ववचार ही भ्रम को दूर कर दे ता है । ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
प्रचण्ड वाडवािल प्रभािुभप्रचारणी

.IN
ॐ महाष्टलसवद्धकावमिी जिावहूत जल्पिा। ॐ

ववमुि वाम लोचिो वववाहकाललकध्वविः ॐ



DF
लिवेवत मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम॥१५॥


AP


सायां काल में पूजा समाप्त होिे पर जो रावण के गाये हुए इस ॐ
ST

लिव ताांडव स्तोत्र का पाठ करता है, भगवाि िां कर उस मिुष्य


ॐ ॐ
को रि, हािी, घोड़ोां से युि सदा म्बस्थर रहिे वाली सां पवत्त
IN

ॐ प्रदाि करते हैं । ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
इमां वह वित्यमेवमुिमुत्तमोत्तमां स्तवां

.IN
ॐ पठन्स्मरन्ब्रुविरो वविुवद्धमेवतसां ततम। ॐ

हरे गुरौ सुभविमािु यावत िान्यिा गवतां ॐ



DF
ववमोहिां वह दे वहिाां सुिङ्करस्य लचांतिम॥१६॥


AP


इस उत्तमोत्तम लिव ताण्डव स्तोत्र को वित्य पढ़िे या िवण ॐ
ST

करिे मात्र से प्राणी पववत्र हो, परमगुरु लिव में स्थावपत हो


ॐ ॐ
जाता है तिा सभी प्रकार के भ्रमोां से मुि हो जाता है।
IN

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ
पूजावसािसमये दिवक्त्रगीतां

.IN
ॐ यः िम्भुपज
ू िपरां पठवत प्रदोषे। ॐ

तस्य म्बस्थराां रिगजेन्द्रतुरङ्गयुिाां ॐ



DF
लक्ष्मीां सदैव सुमुलखां प्रददावत िम्भुः ॥१७॥


AP


प्रात: लिवपूजि के अांत में इस रावणकृ त लिवताण्डवस्तोत्र के ॐ
ST

गाि से लक्ष्मी म्बस्थर रहती हैं तिा भि रि, गज, घोड़े आवद
ॐ ॐ
सम्पदा से सववदा युि रहता है।
IN

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

.IN

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DF
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ST

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ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

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