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॥ ओ३म ् ॥

अना द त व ( जवा हरे जावेद )


( हदस
ू े हो मा दः का यिु तयु त स माण
उ र जवा हरे जावेद का ह द सं करण )

लेखक - पं० चमप


ू त एम० ए०

ह द पा तरकार - पं० उ मच द ‘ शरर ' एम० ए०

मु क एवं स पादक
“ राम ”

काशक
समपण शोध सं थान
४ / ४२ राजे नगर , सै०५ , सा हबाबाद , गािजयाबाद ( उ० ० )

©सवा धकार काशकाधीन

1
◼ स पादक य ◼

ये पाठक , आपके सामने पं डत चमप ू त क दाश नक पु तक “अना द त व” तत


ु करते हुए
मझ
ु े आपार स नता हो रह है । पं डत जी क ये पु तक कह समय से उपल ध नह थी अतः मझु े
लगा क ये पु तक सभी वा याय ेमी िज ासु आय पाठक तक पहुँचाई जाए । आशा करते है
आप सभी इससे लाभाि वत ह गे ।

“अना द त व ( जवा हरे जावेद )“ का पहला प रचय मझ ु े पं डत जी के अमर ंथ “चौदहवीं का चाँद”


म मला। पं डत जी लखते है “ प न मत व तु का होता है परमाणु का नह । हम इस वषय म
थक् पु तक जवा हरे जावेद लख चक ु े है ।“ (प ृ ठ २४१ - चौदहवीं का चाँद) इसी प ृ ठके नीचे ी
राज िज ासु जी क ट पणी भी लखी थी - “यह ( जवा हरे जावेद ) पं डत चमप ू त जी क
अ यु म व अ वतीय दाश नक पु तक है ।” मेरे काफ़ ढूँढने के बाद भी ये पु तक नह मल ,
कह अलग लोग से इसके बारे म पता कया तो थोड़ी थोड़ी जानकार मलती रह । अंत म िज ासु
जी से फ़ोन पर बात करने पर उ ह ने कुछ मह वपण ू जानकार और आपने कुछ पु तक ने बारे म
रोचक बात साझा क । िजसके बाद इस पु तक को पढ़ने क िज ासा ओर बढ़ गयी । अंत म एक
आय स जन ने मझ ु े इस ंथ क एक त ल प भेजी द , म सदे व आपका ऋणी रहूँगा।

स पादक और मु क के तोर पर ये मेरा थम काय है और इस काय म अनभ ु वह न होने के कारण


स भव है बहुत सी ु ट रह गयी होगी , अतः मझ
ु े उन ु टय लए मा करे ।

॥ ओ३म ् ॥
वैशाख पू णमा, संवत ् २०७५

वनीत
“ राम ”

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2
वषय - सच
ू ी १८ . क़ा दयानी ब ह त पर एक ि ट
१९ . ान क कमी ( अ प ता )
१ . सं थान के व पाठक क सेवा म पाँचव तक का उ र
२ . वषय वेश २० . येक व तु न वर नह ं
३ . आ मा छठे तक का उ र
आ मा के लग , अप रणामी , अम य , अ प , २१ . संयोगवश चम कार कैसे ?
अणु प रमाण सातव तक का उ र
४ . परमा मा २२ . ान और रचना
व ृ क यिु त , रचना क यिु त , धम क यिु त , आठव तक का उ र
पण
ू ता क यिु त , अ त : य क यिु त २३ . कमफल अथवा पा रतो षक
५ . परमा मा का व प नव तक का उ र
ान व प , आन द व प , परमा मा एक है , २४ . वग या कारागार
उपा य है , २५ . या य और यापक
जीव अना द है , कृ त अना द है दसव तक का उ र
६ . तीन कारण २६ आव यकता का न
१ . परमा मा - नयामक होकर । यारहव तक का उ र
२ . जीवा मा - भो ता होकर । २७ . परमा मा क आव यकता
३ . कृ त - उपादान कारण होकर । बारहव तक का उ र
७ . सिृ ट म २८ . अ वभा य त व
महान ् , अहं कारत मा , इि य और भत ू , परमाणु तेरहव तक का उ र
८ , भतू का वकास २९ . पवान ् न वर नह ं
९ . वकासवाद क समी ा चौदहव तक का उ र
१० . भू मका ३० . या अ लाह ज रतम द है ?
समानता के थल , मतभेद , ऋ ष का उपकार , बीसव तक का उ र
इ लाम का मौन , अहमद यत , अना द जा , जीव ३१ . ेम तथा सिृ टरचना
तथा कृ त , अबद वग , यि ट तथा सिृ ट , इ क सव तक का उ र
अना द वा त वक नह ं , एक हा या पद ाथना ३२ . भाव का मलू ोत अभाव
११ . आ मा का व प तेईसव तक का उ र
१२ . पु तक क स यता ३३ . भि त तथा अना द य
१३ . अना द त व चौबीसव तक का उ र
३४ , जीव तथा कृ त क आव यकता
◼ थम अ याय छ बीसव तक का उ र
३५ . गुणी का वनाश नह ं
१४ . सवशि तमान ् का अथ ब ीसव तक का उ र
पहले तक का उ र ३६ , वचार - र हत तक
१५ . नाि तक कौन है ? तेतीसव तक का उ र
दस
ू रे तक का उ र
१६ . ससीम कसने कया ?
तीसरे तक का उ र
१७ . ई वर सबका वामी कैसे ?
चौथे तक का उ र
3
◼ दस
ू रा अ याय
◼ तीसरा अ याय
३७ . मा लक बेमु क प हव तक से इ तीसव तक तक
थम तक - ( १ ) का दयानी उ र ।
( २ ) अहम दय से भ न इ लाम का ◼ चौथा अ याय
उ र। कुरआन क गवाह
( ३ ) गैर - अहमद उ र । उपादान कारण का वणन
कुन फ यकून
दस
ू रा तक - ( १ ) य माण वारा । कुरआन म अभाव का वणन
( २ ) अनम
ु ान माण वारा । आवागमन
कुरआन म कु हार का उदाहरण
चौथा तक - ‘से’ के अथ , ‘कुन’ का स बोधन , दो
मौलानाओं म मतभेद , अभाव तथा भाव का ◼ पांचवां अ याय
सि मलन। वेद का स धा त , तीन अना द पदाथ ,
असीम और सीम
पहले आ ेप से प हव आ ेप तक अनभ ु ू त , अनभ
ु वकता तथा टा
कृ त
अ लाह मयाँ का बाप

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4
◼ सं थान के व पाठक क सेवा म ◼

‘समपण शोध सं थान' के व पाठक को व दत ह है क उसके उ दे य म अ का शत क तु


स त दल ु भ थ का काशन करना भी एक उ दे य है । सं थान ने वनाम ध य व व वय ी पं०
चमप ू तजी के अनप
ु ल ध सा ह य के काशन को ाथ मकता द है । इतना ह नह ं अ पतु उनके दलु भ
उद ू सा ह य का ह द भाषा तर कर जनता - जनादन के हाथ म सम पत करने का ेय भी सं थान को
ह है । इस म म सव थम वै दक वग का काशन कर पाठक के हाथ म पहुँचा दया गया । दस ू रा
अ भनव थ िजसका मल ू नाम जवाहरे जावेद है उसका ह द पा तर अना द स ाय नामकरण करके
सध
ु ी पाठक तक पहुंचाया जा रहा है । यह थ दो वष पहले ह छपकर जनता - जनादन के हाथ पहुंच
जाना चा हए था , पर तु क ह ं कारण से ऐसा स भव न हो पाया ।

यह वष पं० चमपू त ज म - शता द वष है । अब अ धक वल ब अखर रहा था । इस लये कुछ


अपनी ओर से न लखकर ा कथन के प म उ ह ं के वारा ल खत वै दक - दशन नामक थ से तीन
अना द स ाओं पर जो प रमािजत वचार ह , उ ह ह छाप दया है । हम अ त शी वै दक - दशन नामक
थ को पथृ क से छपवाकर सध
ु ी पाठक के सम तत
ु करगे ।

सं थान ी प० उ मच दजी शरर का आभार है क िज ह ने जवाहरे जावेद का ह द पा तरण


करके सं थान को तत ु कया । सं थान आगे भी ी चमप
ू तजी के थ का यथावसर काशन करे गा।

—द
​ ान द सर वती

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5
◼ वषय वेश ◼
◼ आ मा ◼

आ मा के लंग
जी वत शर र म कुछ ऐसी चे टाएँ होती ह जो जड़ शर र नह ं कर सकते , जैसे सख ु - द:ु ख क अनभ
ु ूत,
इ छा , वेष , य न और ान । इ ह ं को याय दशनकार ने आ मा के लंग कहा है ( यायदशन १।१।१० )।
वैशे षककार ने इनके अ त र त ाणापान , नमेषो मेष , ग त , इि या तर ववकार ( वैशे षक ३।२।४ ) अथात ्
एक इि य के अनभ ु व से दस
ू रे इि य म वकार होना , जैसे ख टे पदाथ के दे खने से मंह
ु म पानी आना यह भी
आ मा के लंग कहे ह । जब तक शर र म आ मा है तब तक यह लंग रहते ह , आ मा न हो तो यह भी नह ं होते ।
अत : यह इस शर र से भ न आ मा के च न ह । इ ह ं लग को वेद म अ नः ( ऋ० १।१६४।१ )
सखु - द ु : ख भो ता , अपा ा ◌े त ( ऋ० १।१६४।३८ ) कसी व तु क ओर जाता है ( इ छा ) , कसी से दरू (
वेष ) , स न धो मनसा चरा म ( ऋ० १ ।१६४।२७ ) य नवान ् होकर ानपव ू क वचरता हूँ , ाणत ् अ ाणत ् ाण
लेता है और नह ं लेता , न मषत ् आंख झपकाता है , एज त पत त त ठ त काँपता है , गरता है , ठहरता है ,
व व पं संभय ू भव येकमेव सारे इि य - ज य बोध का एक करण कर एक बोधाधार है (अ० १०।१८।११) इन
श द म कहा गया है । इन लग के समान चे टाएँ भौ तक पदाथ म भी पाई जाती ह । Air - pump क कपाट
फेफड़े क भाँ त वायु को धकेलती रहती है । लोहा चु बक क ओर वैसे ह खचता है , जैसे आ मा अपने य क
ओर , पर तु इन याओं म आ मा जैसी वत ता , वे छा , नह ं क जब चाहा ाण न लया , िजसक ओर
आज खचे , कल उससे दरू भी हट गये । इस कार यह लंग आ मा क अभौ तक स ा को जताते ह ।

अप रणामी
शर र तो येक सात से बारहव वष के अ दर स पण ू बदल जाता है । तो वह ि थर स ा कौन है जो इन
बदलते शर र म अप रणामी रहता है ? वेद ने शर र को कभी वाम सु दर और कभी प लत ( ऋ० १ ६४ १ ) व ृ ध
कहा है , य क यह होता दानादनशील है । परमाणओ ु ं को खींचता तथा नकालता रहता है । इसका ाता
भरणक ा भोगधमा आ मा है ।

अम य
आ मा के गण ु ह सत ् और चत ् अथात ् न यता और ान । वेद शर र और आ मा को श व ता न य
कहता है , पर तु फर वह अम य म यना सयो न: (ऋ० १।१६४।३८) कहकर प ट कर दया है क शर र कृ त
प म न य है पर म य मरणधमा है , पर तु आ मा न य भी है और अम य भी ।

अ प
आ मा का धम ान है , पर तु वह ान शि तमा है । कसी वशेष वषय का ान य न से आता है ।
अ च क वांि च कतष
ु : …….. प छा म ( ऋ० १।१६४।६) ‘म अ ानी ा नय से पछ
ू ता हूँ ।' यह जीव क
अ प ता है ।

अणु प रमाण
जीव का प रमाण अणु है । वेद कहता है — बालादे कमणीय कम ् (अ० १०।८।२५ ) एक बाल से भी सू म है ।

वभु हो तो कस शर र का कौन आ मा है , इसका न चय न होगा । एक शर र से एक ह आ मा का

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स ब ध य हो , इसके लये नयामक कारण नह ं होगा , य क सब वभु सब शर र म ह गे । म यम हो तो
येक शर र के साथ इसका प रमाण बदलेगा और प रमाण बदलने वाला वनाशी होता है । इससे अ न यता का
दोष आएगा । इस लये अणु होना ह यिु तयु त है ।

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◼ परमा मा ◼

संसार को समि ट शर र समझ ल तो उसम एक यापक आ मा क स ा तीत होती है । जीव क शि त


प र मत है । उनम से न कोई अकेला सारे व व का आ मा हो सकता है और न यह सब मलकर । प र मत
मलकर भी प र मत ह रहगे । वेद ने आ मा को कहा है । अव : परे ण (ऋ० १।१६४।१७ - १८) क वह परमा मा से
नकृ ट है । पर का दस
ू रा अथ है सू म । अथात ् परमा मा जीव से भी सू म है । परमा मा क स ध के लये
न न ल खत यिु तयां ता क लोग दे ते ह

१ - वृ क यिु त Cosmological Argument इस यिु त का सार यह है क जगत ् क व ृ कसी


चेतन से हुई है , य क इसके वकास म बु ध - योतक नयम काम करते ह । वेद कहता है - ततो
व व य ामत साशनानशने अ भ (यज० ु ३१।४ ) उस परम पु ष से व व क व ृ हुई , जड़ चेतन दोन क ।

वै दक - धम इस व ृ के साथ ध ृ त और नव ृ भी मला दे ते ह । संसार थमा काहे पर है ? पदाथ के


पार प रक आकषण पर । वह आकषण ि थर य है ? कौन है जो दो पदाथ को आपस म आकषक भी बनाता है
और आकृ य भी ? यह पार प रक अनक ु ू लता धारक का योतन करती है । वेद कहता है — कंभेनेमे व ट भते
यौ च भू म च त ठतः । कंभ इदं सवमा म व य ाणि न मष च यत ् । (अथव० १०।८।२) धारण के पीछे
नव ृ है । वेद कहता है - काले न वशते पनु : । प रगणनकता परमा मा म सबका लय होता है ।
इन तीन भाव , व ृ , ध ृ त , और नव ृ , का नयामक परमा मा है । य द यह केवल याि क याएँ ह तो
नव ृ से व ृ और व ृ से नव ृ न हो सके । कृ त का वभाव या तो नव ृ होगा या व ृ । उसको समय
- समय पर बदल दे ने वाला चेतन भु है ।

२ - रचना क यिु त Teleological Argument इस यिु त का आधार व ान है । व ान संसार के


व वध - व वध अंग म नयम का आ व कार करता है । इसी को रचना या Design कहते ह । अंग यंग फर
आपस म आ त रक नयम से मले ह । यथा वन प त शा वन प त - जगत ् म नयम क स ध करता है
और पशश ु ा Zoology पशु जगत म । फर वन प तशा का पशश ु ा से स ब ध है य क पशु और
वन प त एक अटूट र सी से आपस म बंधे हुए ह । इस कार सब व ान के ऊपर एक यापक व ान है । उसे
म व या कहते ह । वेद म इसी परम संि ल ट highest synthesis को सू य सू म ् कहा है । सू यसू ं
यो व यात ् सो व यात ् ा मण मह ् ।(अथव० १०।८।३८) येक व ान के आधार - भत ू नयम का रच यता भी
भु है , और उस व ान का थम बोध भी भु दे ता है ।

३ - धम क यिु त Moral Argument सदाचार का आधार परमा मा क स ा का व वास है । सदाचार


परमा मा क ेरणा है । उसका फल भौ तक हो अथवा अभौ तक या न कामता हो , उस फल का ेरक स य धममा
स वता (अथव० १०।८।४२ ) । आय वचार भौ तक नयम तथा आचार - स ब धी नयम दोन के सू ीकरण
systematisation को शा नाम दे ता है । इस शा का थम ादभु ाव वेद के प म होता है । आ मा क व न
Conscience परमा मा क थम ेरणा है । धम - मयादा आर भ म उसी भु क था पत क हुई है ।

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४ - पण
ू क संभावना क यिु त Ontological Argument हम अपण
ू ह और पण
ू ता चाहते ह । यह
पणू ता का वचार बना पणू सत के नह ं हो सकता । य द हमार भावना म मा भी हो तो उसका मल ू स य यय
होना चा हए । य क म मा भी स य का अप ंश होता है । िजस आदश क ओर हम दौड़ते ह और िजसके अंश
मा का अपने उ कष म अनभ ु व करते ह , वह आदश सत ् है । वह परमा मा है । दरू े पण
ू न बस त दरू ऊनेन ह यते
। अथात ् मु त जीव परमा मा नह ं होते । अमु त उसक ओर जाते ह नह ं ।

५ - अ तः य क यिु त Intuitional Argument इस यिु त का दस


ू रा नाम है योगी का य ।
अ त र छि त तं जने ( अथव० १०।८।१५) उसे जन के अ दर ढूंढ़ते ह । वेन त प यत ् (ऋ० ८।७२।३) योगी उसे
दे खता है । आज कोई त व वे ा हे नर वगसन भी इसी य को परम माण मानते ह ।

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◼परमा मा का व प ◼
१ . परमा मा ान व प है , ान - लगी नह ं । अत : सव है । सव त ाजा व णो वच टे । ( अथव०
२।१।१ )
२ . परमा मा आन द व प है । पण ू को लेश कैसा ? वय य च केवलम ् ।( अथव० ४।१६।५ ) िजसका
आन द केवल है ।
३ . द ु : ख अकेवल सखु म है अथात ् भोग म । परमा मा अन न न यो अ भचाकशी त (अथव० १०।८।२ ) ।
न भोगता हुआ सा ी है ।
४ . ई वर सि चदान द व प , नराकार , सवशि तमान ् , याय कार , दयालु , अज मा , अन त ,
न वकार , अना द , अनप ु म , सव धार , सव वर , सव यापक सवा तयामी , अजर , अमर , अभय , न य , प व
और सिृ टकता है । आयसमाज का दस ू रा नयम
५ . परमा मा एक है । पण ू अनेक नह ं हो सकते । य प तरे कएव ( ऋ० १०।१६४।२० ) वह प त एक ह है ।
६ . उपा य है - नम यो व वी य: (अथव० २।२।१) । नम कार करने तथा जाओं म शंसा करने यो य
है ।

जीव अना द है
वकासवाद केवल कृ त को सिृ ट का कारण मानते ह । उनके मत म Protoplasm कललरस जीवन का
सरलतम प है । इसी कललरस क व ृ ध और गुणन से संक ण ा णय का वकास होता है । कललरस भौ तक
पदाथ है । उसम चेतनता कैसे आती है ? इस सम या का समाधान जीव को पथ
ृ क् और अना द मानने से ह संभव
है ।

कृ त अना द है
कुछ लोग केवल परमा मा को आ द कारण मानते ह । उनसे इस शंका का उ र नह ं हो सकता क चेतन
परमा मा से अचेतन जगत ् कैसे पैदा होता है ? कृ त को अना द मानने से यह शंका मट जाती है ।
इं लै ड के कृ त - व या वशारद म से सबसे बड़ा व वान ोफैसर ओवन ( owen ) बड़े बलपव ू क कहता
है - “आज तक मनु य उदाहरण हमारे सामने ने जा त ( species ) प रवतन का एक भी नह ं रखा है ।

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जीव
जीव पाप भी करता है । य द एकमा परमा मा सिृ ट म कारण हो तो पाप का बीज भी वह ं ठहरे गा । अत :
जीव को अना द वत क ा मानना चा हए । वत ता पैदा क जाय तो वह वत ता न होगी।

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◼ तीन कारण ◼
सिृ ट के तीन कारण होते ह -
( १ ) परमा मा नयामक होकर ।
( २ ) जीव ( म य : ऋ० ) कमफल का भो ता होकर ।
( ३ ) यह कृ त का पु षाथ है । ( सद
ु ध
ु ा पिृ नः ऋ० ) कृ त उपादान होकर ।
नासदासी नो सदासी तदानीम ् ।

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◼ सिृ ट म ◼

सिृ ट से पव
ू कृ त थी । यासमु न ने योग सू २।१९ का भा य करते हुए कृ त को ‘ न स ा सतत ्
नःसदसत ् (साधन-सू १९)' कहा है । कृ त असत ् न थी क वह परमाथ म थी । सत ् इस लये न थी क उसका
यवहार न था ।

महान ्
तु छये ना व प हतं यदासीतपस त म हना जायतैकम ् । ( ऋ० १०।१२९।३ )
अभाव से जो महान ् ढका हुआ था , वह एक परमा मा के तप से उ प न हुआ ।
तप : का अथ “ वाभा वक ानबल या च” है । उससे नो सदा सीत ् से आमु Pure being सत ् ( महान ् )
उ प न हुआ । मनसो रे त : थमं यदासीत ् ।( ऋ० १०।१२९।३)

अहं कारत मा
इससे ान का थम बीज अहं कार - म हूँ , यह ान और त मा केवल वह , यह जान , पैदा हुआ । यह
शु ध स व का अ धक य त प है ।
इि य और भत

इसके आगे सिृ ट का म ‘ तर चीनोरि मः' दो - मख
ु ा होता है ।
वधा अब तात ् य त : पर तात ् । ( ऋ० १०।१२९।५ )
अपने म आ त रहने वाले भतू एक ओर , य न के साधन मन और , इि य दस ू र ओर ।
आय तक कृ त का वकास पु षाथ ( जीव क आव यकता ) के अनस ु ार मानता है ।
परमाणु
वैशे षक क थत परमाणु त मा ह ह । कणभक
ु ् को इन कण से आगे योजन न था ।

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9
◼ भत
ू का वकास ◼
- भत
ू का वकास य हुआ
यव तररा धावापू थवी अि नरै त ् बहन ् व वदा य : ।
य ा त ठ नेकप नी : पर तात ् वेवासी मात र वातदानीम ् (अ० १०।८।३९ )।
१ . आकाश Etherial state
२ . वायु Gaseous state
३ . अि न Agueous state .
४ . जल Liquid state
५ . प ृ थवी Solid state
यह म यिु त - यु त है ।

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◼ वकासवाद क समी ा ◼

वकासवाद एक जा त के गभ से दस
ू र जा त क उ प मानता है , यथा मछल से मढक , मढक से सांप,
सांप से प ी , प ी से तन धार । इसम वकासवाद क मु य यिु तयाँ यह ह

१ . भग
ू भ व या क सा ी - प ृ थवी क नचल तह म जलचर के पंजर मलते ह । य - य हम ऊपरल
तह पर आते ह , अ धक वक सत ा णय के पंजर मलते ह ।

इसका उ र - भत ू के वकास का जो म ऊपर दया है , उसम सू म भत


ू म रहने वाले ाणी ह पहले पैदा
हो सकते ह । जब तक कृ त आ नेय अव था म थी , पंजर न बन सकते थे । पंजर उस समय बने जव जल य से
पा थव सिृ ट होने लगी । यह कारण है क नचल तह म जल य ा णय के पंजर मलते ह ।

२ . पशग
ु भ व या क सा ी - संक ण पशु सरल पशओ
ु ं क गभाव था के अ त र त अपनी वशेष गभाव था
म से गुजरते ह । तीत होता है क मढक पहले मछल रहा है , इ या द ।

उ र — इससे रचना म म ( सू ) का योतन होता है , वकास का नह ं । वकास क स ची सा ी एक


जा त के कसी ाणी के पेट से दस
ू र जा त के ाणी क उ प ह हो सकती है और इसका कोई माण नह ं । -
चमपू त

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10
◼ भू मका ◼
आय तथा सामी दशन - आजकल दशन के ाय : दो बड़े वभाग माने गए ह — एक आय दशन तथा
दसू रा सामी दशन । वतमान सा दा यक वभाजन भी इसी आधार पर कया जाता है । ह द ु , पारसी बौ ध , जैन
, इन चार को आय स दाय तथा यहूद , ईसाइयत और इ लाम को सामी स दाय के नाम से पक ु ारा जाता है ।
इस वभाजन का आधार मानव - जा त का वह पैतक ृ वभाजन है िजसके वारा मनु य जा त क ारि भक उ प
के कुछ भ न - भ न थान नयत कये गए ह । उ ह ं थान से मनु य के ान , भाषा तथा स दाय क
उ प और वकास का अनम ु ान कया गया है । आज हम इस वषय पर वचार करने नह ं बैठे क या संसार के
सब मनु य का मल ू पैतक
ृ थान कोई एक ह है या भ न - भ न जा तयाँ भ न - भ न थान क उपज ह ।
हमारे पास इस व वास के ठोस आधार तथा तक ह क मानव के ान तथा कला का ारि भक ोत एक ह है ।
पर तु िजस वषय पर हम चचा करने चले ह , उससे इसका कोई स ब ध नह ं । इसम कोई स दे ह नह ं क यो प
तथा भारत क बहुत - सी जा तय का ारि भक दे श एक ह है । उ ह नःसंदेह आय माना जा सकता है । उनम से
एक बड़ा भाग ईसाई बन चक ु ा है , पर तु उनक भाषा , वचार , ान तथा कला पर आर भ म उनके आय व क
छाप है । ईरान तथा अफ़ग़ा न तान य य प मजहब क ि ट से इ लामी दे श ह , तो भी न ल क ि ट से उनक
गनती आय दे श म होगी । का प नक सामी न ल का व ृ बहुत छोटा है और वह अरब , रोम तथा शाम इ या द
कुछ दे श तक सी मत है , तो भी संसार के तीन बड़े मजहब इसी के अ तगत आ जाते ह , अत : उसका मह व
उसके व तार से नह ं , क तु उसके स दाय के व तार से लगाना चा हए ।

समानता के थल — य द मानव - जा त क व भ न न ल तथा उनसे उपजे स दाय म वभाजन


क कोई अ मट रे खा होती तो इनम समानता के थल का पाना अस भव था , पर तु वा त वकता यह है क इनम
समानता है और वह भी इतनी अ धक है क आपसी भेद क बात तु छ तथा नग य - सी लगती ह । यहूद मजहब
पर पारसी स दाय का भाव है और पारसी स दाय आय - धम क एक शाखा है । ईसाइयत तथा यहूद मत पर
बु ध धम का भाव प ट है , तथा इ लाम और ईसाइयत व तत ु : यहूद मत से नकले हुए ह । अत : इन तीन
स दाय को आय - धम से सचमच ु जद ु ा समझना और नया मौ लक स दाय मानना इ तहास और तक से आंख
मंद
ू ना ह है ।
सामी दशन का आर भ यन ू ानी दशन से हुआ और यनू ानी दशन हर थान पर आय - दशन से मेल खाता
चलता है , अत : सामी दशन का मौ लक प से कोई अलग अि त व तथा व प मानना वभाजन के आरि भक
नयम से इ कार करना है । यनू ान तथा भारत का राज नै तक तथा सामािजक स ब ध एक ऐ तहा सक त य है
और दाश नक स ब ध राजनै तक एवं सामािजक स ब ध का वाभा वक प रणाम है ।

मतभेद - फर भी स दाय तथा दशन क इन दो का प नक शाखाओं म कुछ सै धाि तक मतभेद पाये


जाते ह । इन मतभेद का कारण दोन का दो व भ न थल म उ प न होना नह ं है । लगता यह है क पव ू दे श के
आय ने जहाँ धम तथा दशन का अपने आ द - ोत से स ब ध जोड़े र खा , वहाँ ए शया के पि चम म जाकर
दशन ने अपना अलग माग अपना लया , तथा मजहब ने अपना जद ु ा रा ता वीकार कर लया ; अथवा यंू क हये
क दशन को यह े अनक ु ू ल नह ं मला । मजहब ने ऊपर - ऊपर के नै तक नयम एवं र म के बा य ढांचे को
तो पकड़े र खा , पर तु जीवन एवं म ृ यु के ग भीर न को क ठन समझ कर टाल दया । सरलता के लए इन
आव यक सम याओं क ओर से आंख मंद ू ल ं । प रणाम व प ये मतवाद अब तक परमा मा के अि त व को
वीकार तो करते ह , पर तु उसके या गुण ह , या वशेषताएँ ह , दस ू रे जीव से उनका या स ब ध है , इस
कार के ग भीर न पर ता कक अनस ु धान वहाँ नह ं मलता । आ मा क स ा को तो वे सोच भी नह ं सके ।
अरबी कोश म ‘ ह' श द तो व यमान है , पर तु यह कसके वषय म आया है , यह बात अभी ववादा पद है ।
ह से कोई चेतन स ा अभी ट है अथवा कुछ और , इसपर वहाँ एकदम कुछ नह ं कहा जा सकता । यो प म आ मा
के लए कोई एक प रभाषा ह नह ं बन सक । आर भ से ह Soul इ या द श द तो मलते ह िजनका अथ आ मा

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कया जाता है , पर तु प चात ् के अ ानता के यग ु ने इन श द के अथ पर एक धंधु - सी पैदा कर द है , िजसम
नि चत अथ लु त - सा हो गया है । कृ त का अलग अि त व व ान ने तो वीकार कर लया है , क तु मजहब
इस वषय म मौन है ।
सामी ि टकोण से धम का स ब ध केवल परमा मा से है । उसक शंसा कर दे ना , उसे सबसे महान ् बता
दे ना , उसे पू य कहना , बस यह धम का चरम ल य है । आ मा तथा कृ त के स ब ध म सामी धम वचार ह
नह ं करता । परमा मा को कता कहा और आ मा तथा कृ त , इनके गुण , पार प रक स ब ध , संसार म
व यमान प ट वषमता , जीव का सख ु - द ु : ख इ या द सब सम याओं से छु ट पाई ।

ऋ ष दयान द का उपकार : मेला चा दापरु — यह उपकार ऋ ष दयान द का है क सामी स दाय


अपने भलू े हुए दाश नक स धा त पर पन ु : वचार करने लगे ह । ईसाइयत तथा इ लाम का भाव भारत म भी है
और ये दोन ‘ तबल गी ' ( दस ू र को अपने मत म लेनेवाले ) मत ह । ऋ ष दयान द के आगमन से पव ू यह मत
मजे से अपने अनय ु ा यय क सं या बढ़ाते रहे , कसी वरोधी का सामना ह न था । ऋ ष ने पहल बार इन मत
को अपनी दाश नक स प तथा अपने मत का ि टकोण प ट करने को कहा , अथात ् ये मत पहल बार तक क
कसौट पर आये । मेला चा दापरु म शा ाथ हुआ । ऋ ष ने वाद का पहला वषय यह नि चत कया क संसार को
ई वर ने कस व तु से बनाया , कब बनाया तथा कस लए बनाया ? पादर कॉट ने उ र दया — “मेरे वचार म
ऐसे न का उ र दे ना यथ है । पर तु जब सबक स म त है तो म उ र दे ता हूँ ।” मौ० मह
ु मद क़ा सम ने कहा
— “उसने अपने शर र से संसार उ प न कया , हम उससे अलग नह ं य द अलग होते तो उसक खद ु ाई म न होते !”
यह घटना १८८० ई० क है । इन महानभ ु ाव के स मख
ु ऋ ष दयान द का तकपण ू तथा ग भीर भाषण ऐसे
लगता है जैसे श य के स मख ु गु का पाठ पढ़ाना । तीन ओर क दो - चार बार क तक़र र के प चात ् पादर
साहब ने तो कह ह दया क “पि डत साहब ( ऋ ष दयान द ) इन बात का उ र हजार कार से दे सकते ह , और
तम
ु हज़ार मलकर भी उनसे बात करो तो न र हो जाओगे !”

इ लाम का मौन - इस घटना के अ ठाइस वष प चात ् अथात ् १९०८ ई० म ‘मेरठ आय डबे टंग लब'
क ओर से धा मक सभा हुई । इ लाम क ओर से त न ध ी मौ० सजानी थे । आपने एक कुतबा ( खद ु हुई कुछ
पंि तयाँ ) पढ़ा , िजसके बीच म कहा - “मजहब का दशन से दरू का भी लगाव नह ं है , …... प व इ लाम ने इन
उलझन से मनु य को सदा अलग रखने का यास कया और वयं भी अलग रहा । सारा कुरआन , हद स दे ख
डालो , कह ं पर भी कृ त का वणन नह ं मलेगा ।” न आ मा के स ब ध म कया गया था । य द उसका उ र
दया जाता तो यह ं से इ लाम क यथता का आधार प ट हो जाता । इ लाम वशेष प से न तो कृ त क
न वरता का आ ह करता है , न इसके अना द होने पर बल दे ता है , य क कृ त - स ब धी ववाद कुरआन तथा
हद स म कह ं भी नह ं है , इ या द । मौलाना अपने मजहब के व वान ् थे , अत : कोई उ ह यह तो नह ं कह सकता
था क वे कुरआन के स धा त से अन भ थे । व तत ु : कुरआनी , नसरानी तथा यहूद मत इन वषय पर मौन
रहे ह । पर तु या कोई धम सदा के लए दशन से दरू रह सकता है ? दशन इनक ि ट म कतना ह यथ हो ,
पर तु धम को तो दशन क आव यकता है । वग तथा नरक के का प नक च से या कोई ग भीर यि त
आि मक वग क ओर च रख - सकता है ? य द आ मा क स ा ह नह ं मानोगे , तो ब ह त या दोजख ( नरक )
म पहुँचाओगे कसे ? और य द स ा वीकार कर ल तो उसके गुण क या या भी करनी पड़ेगी । ई वर को केवल
' दयालु ' कहने से काम नह ं चलेगा । जब संसार म द:ु ख है , ोध है , वषमता है , परलोक म जीव के फल - ाि त
क वषमता का कारण इहलोक के कम को मानते हो , तो इहलोक म वषमता का कारण या है ? ये ऐसे न ह
िज ह ने सिृ ट - उ प से लेकर मनु य के मि त क को नर तर झंझोड़ा है , और अब भी इन न के समाधान
के बना माग नह ं है ।

अहमद यत ​- मौलाना िजस बात को मजहब के लए यथ मानते ह , वह बात हमारे अहमद स दाय के

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व वान तथा अहमद समाज को अ य इ लामी स दाय से अलग करती है । अहमद महानभ ु ाव के शा ाथ
ाय : इ ह ं वषय पर होते ह , िजनक यथता तथा कुरआन म इनके अभाव क मौलाना को स नता है ।
अहमद महानभ ु ाव उस ' यथ' बात को कुरआन म पहले से पाते ह , अथवा मौ० गुलाम अहमद का दयानी के
अनसु ार कुरआन म उसका वेश हो गया है । इससे पव ू ी इमाम ग़जाल ने कुरआन पर दाश नक रं गत चढ़ाई ,
पर तु वह अधरू तथा ऊपर ह थी ।
ी का दयानी , पं० लेखराम जी तथा वामी दयान द जी के समकाल न थे । ी का दयानी के लेख ाय :
आयसमाज के भाव क छाया म लखे गये । मौ० सजानी के श द ह क इ लाम का फलसफा ( दशन ) से कोई
स ब ध नह ं , पर ी का दयानी ने यह स ब ध बना दया ।

अना द जा — का दयानी महोदय लखते ह - “चंू क खदु ा अना द है , इस लए हम मानते ह तथा ईमान
लाते ह क संसार अपने वाह से सनातन है , पर तु व प से अना द नह ं ( भाषण लाहौर प ृ ठ ३० ) ।” अ भ ाय
यह है क अना द टा क सिृ ट भो अना द चा हए । य द उसक सिृ ट अना द नह ं , तो आरि भक सिृ ट से पव ू
ई वर के ‘ टा ' गुण पर आ ेप होता है । ी का दयानी ने व प से तो केवल खद ु ा को अना द तथा अन त मान
लया , पर तु वाह के प म अ य व तओ ु ं का अि त व भी अना द मान लया , अथात ् जब से खद ु ा है तब से
सिृ टयाँ भी बनती रह ह , पर तु एक ह सिृ ट अथवा सिृ ट म व यमान पदाथ , जो एक समय म ई वर ने
उ प न कये , वे अना द नह ं थे । अ पतु , ई वर म उ प न करने तथा मार दे ने क दो वशेषताएँ ह , दोन एक के
प चात ् दस
ू र म से काय करती ह । कभी केवल अकेला ई वर था , उसका कोई अ य साथी नह ं था ; कभी नाना
कार क सिृ ट उ प न हो जाती है और फर एक वह समय आयेगा जब खद ु ा हर जीव को समा त कर दे गा (
च मा - ए मारफत प ृ ठ १७७ , १७८ ) ।
यहाँ वचारणीय यह है क य द संसार वाह से सनातन है , तो या वाह से अना द भी है ? परमा मा क
वशेषताओं पर से अ योग का कलंक मटाने के लए संसार को वाह से अना द भी मानना होगा । अत : इ ह ं
का दयानी महाशय के श य ी मह ु मद इसहाक अपने रसाला ( Magazine ) हदस ू े ह मा दः ' म प ृ ठ ७ पर
लखते ह “अना द काल से खद ु ा जा को उ प न करता आया है , और अन त काल तक उ प न करता रहे गा ।”

जीव तथा कृ त अना द ह — अना द तथा अन त तो ई वर के अ त र त जीव तथा कृ त भी हो गए


। हाँ , इतना अ तर रहा क खद ु ा तो अपने व प म वयं अना द - काल से अन त - काल तक रहे गा , पर तु कोई
सिृ ट अथवा जीव ऐसा नह ं जो अना द - काल से अन त - काल तक सदा रह जावे । ी का दयानी तो यहाँ तक भी
लख गए ह क “एक समय ऐसा भी होता है जब ई वर के अ त र त कोई शेष नह ं रहता ; ऐसा भ व य म भी होगा
।” अथात ् रोज़े - वहदत के समय म ई वर के अ त र त अ य कसी क स ा न होगी । फर यह महानभ ु ाव यह भी
मानते ह क वतमान जीवन के कम का फल लय के दन दया जायेगा ; पापी नरक म फके जाएँगे , प व ा माएँ
वग का आन द उठाएँगी । वग के आन द अन त काल तक ह गे , जो जीव एक बार वग म वेश पा लगे , वहाँ
से वे नकाले नह ं जाएँगे । ी मह ु मद इसहाक़ साहब अपनी रचना के प ृ ठ ५१ पर लखते ह - “ज नत म जानेवाले
जीव अन त काल का जीवन ा त करगे , पर तु यह उनका अपना गुण नह ं ; ई वर जब चाहे उ ह मार सकता है ,
पर तु मारे गा नह ं ।” पर तु ‘मार सकता है , क तु मारे गा नह 'ं - इसक परख कैसे हो ? फर मौलाना फ़रमाते ह -
“हमने जीव को अबद ( अन त काल तक रहनेवाला ) नह ं माना , अ पतु ई वर को उनको अन त काल तक
जी वत रखनेवाला माना है । हमारे सदा रहने म हमार कोई वशेषता नह ं , अ पतु अ लाह के गण ु का काश हुआ
।” वशेषता कसी क हो , जीव को सदा रहना है , और जो सदा रहे , वह ‘अबद ' है अथात ् जो मनु य एक बार
उ प न हो गया उसका वनाश कभी नह ं होगा ।

अबद ( सदा रहनेवाला ) वग - अब न यह है क केवल ई वर का अि त व लय - काल से पव ू क


चचा है या लय के प चात ् क ? य द यह दौर लय से पव
ू हो गया होता तो पव
ू के जीवं इस वहदत ( अ वैता ) क

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ब ल चढ़ा दये जाएँगे , फर उनके कम का फल कैसे मलेगा ? और य द ई वर का यह शौक़ लय - काल के
प चात ् हो गया और उसने सबको मटा दया तो वग अन त काल तक न रहा ; उधर नरक म डाले जीव नरक ह
से ई वर के अकेले रहने के शौक़ क ब ल चढ़ गये !

यि ट तथा सिृ ट ​- इस स धा त का अ भ ाय यह है क जीव नये उ प न हो सकते ह , पर तु पैदा


हुए जीव को मटाया नह ं जा सकता ( वग तथा नरक म सदा रहगे ) । न होता है क वतमान मनु य म से ,
िजनम से कुछ जी वत ह तथा कुछ क म पड़े ह , या कोई अना द काल के भी ह अथवा नह ं ? ई वर अना द
काल से बनानेवाला है और िजस जीव को उसने एक बार बना दया , उसका अभाव तो कया नह ं , तब अना द काल
म बनी जा कहाँ है ? उ र होगा - क म । अहमद महानभ ु ाव कहते ह क “ यि त कोई अना द नह ं , केवल
उसका कार अना द है , य क हर यि त से पव ू कोई और यि त है ।” खब ू ! अब न होता है क ई वर
यि त को उ प न करता है अथवा उसके कार को ? कार बना यि त के तो हो नह ं सकता , अत : यि त क
अना द मानना होगा !

अना द वा त वक नह ं - इस बात को एक और कार से दे खये । अहमद महानभ


ु ाव का कथन है क
अना द ई वर के मह व का काश अना द काल से हो रहा है । इस मह व के काश म दो कार क अव थाएँ आती
ह — एक कसरत ( बहु व ) , दस ू र वहदत ( एक व ) क । आय भाई अना द काल से सिृ ट तथा लय - काल को
वाह - म से वीकार करते ह , अहमद महानभ ु ाव वहदत ( एक व ) काल म ई वर के अ त र त शेष संसार के
पण
ू अभाव को मानते ह ; उधर आय उस काल म भी जीव तथा कृ त का या मक प म अभाव तो मानते ह पर
वा त वक प म नह ं । या मक प के अभाव से अ भ ाय है क लय - काल म कृ त तथा जीव क स ा तो
रहती है , क तु या का अभाव होता है । अहमद महानभ ु ाव ने य द अपने स धा त क वा त वकता को
समझा हो , तो शायद वे भी ई वर के अकेला रहने के समय म भी शेष का अभाव वा त वक नह ं , अ पतु
या मक अभाव मान ल , य क हर बहु व काल म ( कसरत म ) वे ब ह त तथा ब हि तय के अि त व को
वीकार करते ह । उनका व वास है क वग तथा उसम रहनेवाले अना द ह । य द यह वग तथा वग म
रहनेवाले ई वर के एक व - काल म मटा दये जाय तो वे अना द नह ं रहगे । ी मह ु मद इसहाक़ जी ने इस न
का यह उ र दे ने का यास कया है क “एक व के दौर ( कालाव ध ) के प चात फर वह पहलेवाले जीव लाये
जायगे ।” य द मौलाना ‘वह ' का अथ समझ ल तो यह यथ का ववाद न कर । ‘वह ' उसके लए यु त होता है ,
िजसका अि त व पव ू काल म था ; अभाव से उ प न होनेवाले को ‘वह ' नह ं कहते ; वह नया है । य द वग म
रहनेवाले अपने यि त व से ‘वह ' होते ह , तो उनका बीच म अभाव नह ं मानना चा हये । अभाव मान लया तो
नये बहु व काल के ब ह ती नये ह गे । दस
ू रे श द म , ब हि तय का ‘वहदत के यगु म अभाव' का अ भ ाय सवथा
अभाव नह ं , अ पतु या के अभाव से या मक ( मजाजी ) अभाव है , अथात ् वे कम नह ं करते , पर तु उनका
अि त व रहता है । अब य द यह एक व तथा बहु व का दौर अना द काल से है और एक व - काल म भी अभाव
केवल या मक प म ह होता है , वा त वक नह ं , तो केवल श द का अ तर रहा , नह ं तो यह स धा त
आयसमाज का है । अब य द अ लाह के साथ ह ( जीव ) का भी या मक अभाव , का दयानी महानभ ु ाव के
स मख ु जंच गया तो जैसे परमा मा क सजन - शि त का म नि चत कया है , इसी कार जीव के ज म तथा
म ृ यु का म ( आवागमन ) भी मानना पड़ेगा । आ ख़र अना द जीव का लय - काल तक क म पड़े रहना ,
ई वर क जा को बेकार करना ह तो है । अ तु , यह इस दाश नक ि टकोण के तक नक ु ू ल प रणाम है िजसके
बना कोई मजहब बच नह ं सकता और िजसे मस ु लमान म अपने मजहब क ि थरता के लए वीकार करने लगे
ह । इि तदाए - इ क है ………. ।

एक हा या पद ाथना ​- बना कारण के सिृ ट का होना एक क पना - मा है , िजसपर दशन हँसता है

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। इस क पना का प रणाम ह तो है जो मौ० मह ु मद इसहाक़ पछ ू ते ह - “ या ई वर मझ
ु े शभ
ु कम के बना वग
म नह ं भेज सकता ?” यह ाथना वीर क ाथना नह ं और इससे तीत होता है क ाथ को शभ ु कम क उतनी
च ता नह ं , िजतनी वग क है । चा हए इसके उलट । य द ब ह त म बना शभ ु कम के जा ह सकते ह , तो
मस ु लमान होने का या लाभ तथा शभ ु कम क या आव यकता ? इससे पव ू ी मौलाना ने अ लाह तआला से
स बो धत होकर कहा है - “म रयम को बना प त के पु दे नेवाले !” या आपको ान है क मौ० मह ु मद अल ,
जो आपके अहमद भाई ह और िजनके रसाला ‘ हदस ू े ह मा दः ' क आपने शंसा क है , य य प उनका
स ब ध का दयानी समाज से नह ं , लाहौर ुप से है , उ ह ने अपनी कुरआन क या या म इस घटना क
स यता से इ कार कया है । आ खरकार वह स तानवाले ह , अतः सरू त उमरान क आयत ४६ क या या म
लखते ह - “इन श द से यह कट नह ं होता क इस ( म रयम ) को संसार म च लत नयम के वपर त गभ हुआ
होगा , य क म रयम के और भी पु थे , और कोई यह अनम ु ान नह ं करता क ये सिृ ट - नयम के व ध हुए
।”
मौ० महु मद इसहाक़ के उपयु त स बोधन का एक अ य आव यक प रणाम एक अ य ाथना हो सकती
है जो य द पि नयाँ पढ़े तो प तय से कनारा कर ल , और प त पढ़े तो वयं पि नयाँ बन , नह ं तो स तान वाले न
ह । यह अव था आपक अ य ाथनाओं क है । कृपया एक ाथना यह भी कर द िजये क ई वर इसे वीकार न
करे , य क वीकार हो जाने क अव था म सदाचार का दवाला पट जावेगा और गह ृ थ शोभाह न हो जावेगा ।

आ मा का व प — बात यह है क सव थम हमारे मस
ु लमान म को आ मा के व प का ान
होना चा हए । यह महाशय ( ी मह ु मद इसहाक़ ) अपने मैगजीन के प ृ ठ ८३ पर लखते ह - “उसी मा द : (
कृ त ) के ख़मीर से एक सू म चेतन स ा इस कार कट हुई जैसे चकमक ( प थर ) से अि न तथा रगड़ ( घषण
) से बजल नकलती है , और यह आ मा थी ।”
इन महाशय को इतना भी तो ान नह ं क चकमक से नकलने वाल आग और रगड़ से नकलनेवाल
बजल वै ा नक ष रभाषा म शि तयाँ ह , व तु नह ं । शि तयाँ सदा पदाथ के आ त रहती ह , ये गुण ह , पदाथ
नह ं । य द आ मा भी एक गुण है ( पदाथ नह ं ) तो इसका सदा वग म रहना , तथा द ु : ख - सख ु क अनभु ूत,
दाश नक ि टकोण का उपहास - मा है , मजहब के साथ भी मखौल है । आ मा य द कृ त क शि त है तो
इसका अि त व कृ त के बना अस भव है । तब तो कृ त का भी अपनी स ा म अना द तथा अन त होना
स ध हो गया , कम - से - कम कृ त के उतने भाग का , िजतने के सहारे पर अना द आ माएँ ि थत ह ।
आ मा को केवल गण ु नह ं , अ पतु अलग स ा माना अ या म व या का ार भ है । िजतनी - िजतनी
मसु लमान म क दशन म च बढ़ती जाएगी , उतना ह आ मा का व प उनक समझ म आ जायेगा ।
का दयानी स दाय के आधु नक खल फ़ा ी बशी द न ने अ टूबर १९२४ म ल दन के सवधम -
स मेलन म कहा था - “( आ मा ) बाद म ृ यु के यह शर र बन जावेगा और इसम एक और आ मा बांट जावेगी (
दान क जावेगी ) ।” आ मा के स ब ध म अ ान क इससे बढ़कर मसाल ( उदाहरण ) मलना क ठन है । गु
आ ख़र गु ठहरे ! चेला आ मा को कह ं अलग स ा म , कह ं कृ त क शि त के प म मानता है और गु आ मा
से दसू र आ मा क उ प का अनम ु ान कर रहा है ! य ीमान ् जी , यह भी शि त होगी , या कुछ और ? और
इस गण ु का गणु ी या होगा ?

बहाई स दाय वैत य वीकार करता है — अहमद महानभ


ु ाव क अपे ा बहाई स दाय कुछ
अ धक शि त - स प न होकर अ धक वीरता तथा प टता से काम ले पाया है । वे कुरआन को वीकार ह ! नह ं
करते ; यहाँ तक क अपनी अलग प व पु तक भी लख डाल ह । ी अ दल ु बहा , जो ी बहाउ ला के सप
ु ु तथा
इस स दाय के मु खया ह , कहते ह
“ न चय रखो , यह एक अ य त सू म आ याि मक स य है क इस अन वर संसार का कोई आर भ नह ं
…. न चय मानो क टा का अि त व , सि ट के बना अस भव है । पालनकता क क पना , पाले जानेवाले के

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अि त व के बना नह ं हो सकती । ई वर के सब नाम तथा गण ु संसार के अि त व क माँग करते ह । य द हम
कसी ऐसे समय क क पना कर , जब यह व व नह ं था , तो यह कता क कृ त से इ कार होगा । इसके
अ त र त सवथा अभाव से भाव क स ा नह ं हो सकती । य द व व का कुछ भी अि त व नह ं होता , तो वयं
अि त व का भी अि त व न होता । हाँ , यह स भव है क व व का कोई एक भाग न हो , या न ट हो जाये , पर तु
शेष भाग रह जाए ।”
( च द सवालात का जवाब , प०ृ २०९ )
सं ेप म कह तो यह क सामी स दाय िजतना - िजतना दशन शा क ओर बढ़ते ह , परमा मा क स ा
के अ त र त , जीव तथा कृ त के अना द व को भी वीकार करते जाते ह । यह सामी स दाय के अपने
आरि भक आय - धम के समीप आने का प रणाम है । हम उनका यह मक वकास दे खकर स नता होती है ,
और स य तो यह है क दशन ह कसी मत का आधार होता है , इससे व वास सु ढ़ होता है , इि य के वषय से
ऊंचा उठने क यो यता आती है , और मजहब लट ू मार , नोच - खसोट , ह या - बला कार ( जो सामी स दाय के
इ तहास क मख ु वशेषता है ) के थान पर आि मक शाि त का साधन बनता है । आय - धम क यह वशेषता है
क इसके कारण ह याएँ तथा लट ू - खसटू नह ं हुई , अनशु ा सत प से ह याओं का चलन नह ं हुआ , न यह धम
डाके तथा लट ू - मार का कारण बना है । इसका मल ू कारण आय - धम का दाश नक एवं व थ ि टकोण है ।
सामी स दाय भी िजतना - िजतना अपना आधार दशन को बनाएँगे , उतने ह प व तथा आि मक धन से धनी
ह गे । परमा मा वह दन शी लाये , जब ये श दाड बर के भेद समा त हो जाएँ और मनु य दस ू रे मनु य से मल
सक ; सब लोग उसी धम का आ य ल , जो ई वर ने सब मनु य के लए बराबर तथा एक बार का शत कया है ।
मौ० मह ु मद इसहाक़ क पु तक म यह वशेषता है क उ ह ने जीव तथा कृ त के सा द स ध करने म
जो भी साम ी ी गुलाम अहमद का दयानी , मौ० नरू उलद न , मौ० आजाद सब ु हानी , पादर गुलाम मसीह
इ या द के लेख से ा त हुई , अपनी पु तक म इक ठ कर द है । उनक पु तक पर वचार करने से ऊपर लखे
सभी महानभ ु ाव के लेख पर वचार हो जावेगा ।

पु तक क स यता - य द मौलाना अपनी इस त ा म सफल हो जाते क वे कठोर श द से काम नह ं


लगे , तो हम उ ह बधाई दे ते । एक थान पर कसी का प नक आयसमाजी से ववाद करते हुए लखते ह - “एक
गधा भी जानता है क …….“ ( प ृ ठ २३ ) । याय मौलवी साहब पर रहा , या यह स य भाषा है ? जाननेवाले (
व वान ् ) गध से आय समािजय को तो वा ता पड़ा ह नह ं । एक और थान पर आय को अब भाषा म
‘अन भ ' लखते ह ( प ृ ठ २४ ) । आय को ‘नासमझ' , आय शा ाथ - महार थय को ववाद लखने म तो उ ह
कोई संकोच ह नह ं । प ृ ठ १६८ पर लखा है - ‘ व वासह न' ऋ ष दयान द पर कृपा इस कार क है - “ व च
मंतक ( तक ) बघारते ह !” भाषा व ह इस उि त क भावना जान सकते ह । प ृ ठ ११६ पर लखा - “वह मंतक (
तक ) जो ऋ ष नं० १०८ ने योग क ।” प ृ ठ ११५ पर ऋ ष के स ब ध म लखा - “ताश न खेले , जीव - कृ त के
अना द व पर शा ाथ कर लया !” प ृ ठ ८१ पर लखा है - “आ ख़र वामी साहब भी तो भंग पीते , नाचते , माता -
पता को धोखा दे ते तथा मू त - पज
ू ा करते थे ।” इस कार कह ं पं० लेखराम के ब लदान का उपहास उड़ाया है , तो
कह ं अपने अहं म 'गाजी' क शान दखाई है । और तो और , परमा मा क उपमा डाकू से द है और कहा है - “तु हारे
ई वर तथा उस ह या के अपराधी म अ तर या है ?” प ृ ठ ६३ पर लखते ह - “तु हारा ई वर तो हमारे अ लाह क
जा के समान भी नह ं ।” यह वह शैल है िजस पर पण ू न ता से लखने का व वास दलाया है - “मने यथाशि त
कसी यि त के व ध कसी अस य श द या अस य भाषा का योग नह ं कया ।” ( प ृ ठ ६ )
मौलाना के मस ु लमान भाई नणय द क वह त ा मौलाना क परू हुई क नह ं ? आ ख़र इन बात से
जीव तथा कृ त क उ प तो स ध हो नह ं जाएगी । यथ म आयय को जोश दलाकर अपने दन करते मन
को थोड़ी दे र के कौतक
ु से शा त करते ह । अ तु , जो दय म होगा , वाणी पर भी वह आएगा । हमारा या है ,
अपमा नत तो इ लाम ह होगा !

16
मौलाना क पु तक का म - मौलाना क पु तक के चार अ याय ह । थम अ याय जो २५ प ृ ठ का
है , इसम आय क ओर से जीव तथा कृ त के अना द व - स ब धी चार तक के उ र दे ने का यास कया गया है
। दस ू रा अ याय , जो सबसे बड़ा है और िजसके २०८ प ृ ठ ह , इसम जीव तथा कृ त क न वरता पर ततीस तक
दये गए ह । तीसरा अ याय ४१ प ृ ठ का है , इसम जीव तथा कृ त क न वरता पर कये गए आय के १५ न
का उ र है और चौथा अ याय २ प ृ ठ का है िजसम मजा गुलाम अहमद क पु तक से ५ उ धरण दये गए ह ।
पु तक म पनु ि त - दोष बहुत ह । व तत
ु : थम तथा तत ृ ीय अ याय म वषय के ि टकोण से कोई भेद
नह ं । थम अ याय म भी आय क ओर से कये गए कुछ न का उ र है । उनम से ह कुछे क तो श द के
प रवतन के साथ तीसरे अ याय म भी आ गये ह । दस ू रे अ याय म प ृ ठ ६ से १३६ तक कोई नया तक नह ं दया
गया , अ पतु तीसरे तक म ह मो तथा वग क स ब ध - र हत चचा चला द गई है जो ७० प ृ ठ को ले बैठ है ।
कोई पछ ू े , इस तल
ु ना का जीव तथा कृ त के ववाद से या स व ध ? अपवाद - प म इ ह लाना भी था तो दो -
एक प ृ ठ म समा त कर दे ते । उन तैतीस तक म से जो इस अ याय म दये गए ह , तक - सं या १५ , १६ , १८ ,
१९ , २२ , २५ , २७ , २९ , ३० , ३१ म आष - थ का माण दया गया है िजनसे जीव - कृ त क न वरता स ध
करने का यास कया है । इन तक का इ लामी तक म सि म लत करना , और वह भी मानस ु ार नह ं , अ पतु
अ य तक के साथ बीच - बीच म थान छोड़कर , ी मौलाना क मांक - शि त क नवीनता का योतक है , वैसे
तक म भी थान - थान पर पन ु ि त पाई जाती है ।

हमारा उ र ​— हमने आर भ म जीव तथा कृ त के दाश नक व प पर सं ेप म काश डाला है , ता क


पाठक सव थम इनके व प से प र चत हो । इसके प चात ् थम अ याय म ी मौलाना के दस ू रे अ याय का
उ र दया है । आष थ के माण को अलग कर दया है और इन माण क या या एक अलग अ याय म क
है । दस
ू रे अ याय म मौलाना क पु तक के थम तथा तीसरे अ याय क आलोचना क है । जैसा हम ऊपर लख
आये ह , ये दोन अ याय वषय क ि ट से एक ह । तीसरा अ याय हमने उन माण के अ पत कया है जो
मौलाना ने हमारे प व थ से दये और उनके ठ क अथ न समझ कर कम का यान कये बना जीव तथा
कृ त क न वरता म सि म लत कर दये । चौथे अ याय म कुरआन क उन आयत पर ि टपात कया है , जो
मौलाना ने कह ं - कह ं अपने प क स ध म लखी ह । उन आयत म कुछ अ य आयत भी हमने जोड़ द ह और
स ध कया है क कुरआन का वा त वक स धा त इस वषय म वह है िजसका चार आयसमाज कर रहा है ।
पाँचव अ याय म वेद के कुछ म दये ह , िजनम जीव तथा कृ त क न यता का प ट तथा तक पण ू वणन है
। इस कार हमने मौलाना क पु तक के म को इतना सा प रव तत कया है , जो उ र दये जाने के लए स भव
था । इससे अ धक प रवतन करने पर उ र , उ र न रहता । जीव तथा कृ त के न य व म हमारे तक इन उ र
से नकाले जा सकते ह । इन तक का अलग दे ना प टपेषण ह होता ।
पहले तो हमने सोचा था क पु तक के एक भाग म जीव तथा कृ त के न य व से स बि धत बड़े - बड़े
दाश नक क स म तयाँ तत
ु कर , और अपने स धा त के साथ उनक तल ु ना करके अनकु ू ल अथवा तकल
ता कक प उपि थत कर , पर तु मौलाना क पु तक का उ र ह इतना अ धक ल बा हो गया क संसार के
दाश नक के ि टकोण को तत
ु करना अस भव - सा हो गया । शायद इस उ र के साथ यह सब सि म लत
करना उपयु त भी न होता , य क उसक शैल जद ु ा है और इसका प अलग । अभी तो इतना ह पया त है , फर
कभी अवसर मला तो अपने पहले वचार को भी या मक प दे कर पाठक क सेवा म तत ु कया जावेगा ।
अ त म नवेदन है क इस पु तक का वषय दाश नक है , अत : पु तक का अ ययन कसी मत - वशेष
के प पात क ि ट से नह ं , केवल और केवल दाश नक ि टकोण से करना चा हए । संयोग क बात है , क
वा त वक इ लाम तथा वै दक धम , दोन क श ा यह है । कसी स चे मस ु लमान को कुरआन क श ा क
अपे ा उसक अशु ध या याएँ अ धक य नह ं होनी चा हय ।
मौलाना ने पु तक के अि तम प ृ ठ पर पाँच सौ पये पा रतो षक दे ने क त ा क है — कसको ? —
“य द कोई स जन इस कताब का उ र उसी म से लख तथा छपवा द । छपने के प चात ् कसी ईसाई अथवा

17
ा मसमाजी व वान ् ( िजसे दोन प म य थ वीकार कर ) के स मख ु दोन पु तक रकखा जाएँ , और वह
अ ययन के प चात ् यह नणय दे क आय लेखक क पु तक मेर इस पु तक का पण ू तथा उपयु त उ र है तो म
बना संकोच के पाँच सौ पये आय - लेखक महोदय को भट कर दं ग ू ा । हाँ , ऐसी पु तक १९२६ ई० के अ दर -
अ दर छपे और म भी जी वत होऊँ ।” पय के इनाम का व ापन तो मरजाई पर परा है । मजा गुलाम अहमद
ने भी अपनी कुछ पु तक पर इनाम क बाजी लगाई थी और ऋ ष दयान द जी क म ृ यु के प चात ् घोषणा क थी
क इनाम के व ापन का स बोधन ऋ ष से था , य य प आपने व ापन म मह ष का नाम नह ं दया था । अ तु
, हमारे हाँ तो पय क नह ं , दल क बाजी लगाने क पर परा है , और नणय के लए वाद के प माननेवाले
कसी दस ू रे मतावल बी को म य म नह ं लाते , अ पतु िजससे बात हो रह होती है उसी को नणायक वीकार
करते ह , जो स जन दय से वीकार कर , स य को हण कर और पया स य के चार म लगा द । मौलाना पर
पये का बोझ नह ं पड़ेगा , य क यहाँ तो १९२६ ई० के अ दर - अ दर उ र दे ने क शत भी परू नह ं क गई और
फर म भी हमने बदल दया है ।

परमा मा सबको स य के हण करने क ेरणा तथा स य कहने क शि त दान कर - ‘ असतो मा , स गमय !'

- चमप
ू त

——————————————————————

◼ अना द त व◼
इससे पव
ू क हम जीव तथा कृ त क न वरता अथवा न यता का ववाद आर भ कर , अ याव यक है
क हम इनके व प को समझ ल । आय दशन म जीव ‘ चेतन स ा ' का नाम है । सं कृत म इसे सत ् चत ् कहते ह
। सत ् का अथ है ‘ सदा रहनेवाल स ा ’ तथा चत ् का अथ है ' चेतना - यु त ' । दशन म मल ू पदाथ उसे कहते ह (
जौहर - मल ू स ा ) िजसका अि त व कसी दस ू र स ा पर आधा रत न हो , अ पतु वह अपने व प से अलग स ा
हो । इसके वपर त गुण अथवा वशेषण अपने व प म अि त व नह ं रखते , अ पतु उनका अि त व कसी दस ू र
स ा के आधार पर होता है । सब वशेषण , शि तयाँ , कम , प इ या द गुण ह जो व भ न स ाओं के आधार पर
ि थत होते ह , जैसे जड़ता अथवा चेतनता , दो गुण ह , ये दोन जड़ अथवा चेतन स ाओं के बना नह ं रह सकते ।
इसे अ धक प ट कह तो हम कह सकते ह क दे खना , संघ ू ना , पश करना , सन ु ना , चखना , ये सब गुण ह ।
संसार म इन गुण का अि त व एक दे खनेवाले , संघ ू नेवाले , छूनेवाले , चखनेवाले , सन
ु नेवाले यि त क अपे ा
रखता है । स जनता एक गण ु है , जो स जन यि त के बना अि त व म नह ं आ सकती । संसार म सव चेतना
व यमान है , सब चेतन स ाओं म हम इसे पाते ह । जड़ता भी संसार म है जो सब जड़ व तओ ु ं म दे खी जाती है ।
जड़ता तथा चेतनता , गुण होने के कारण , कसी दस ू र स ा के बना अपने - आप नह ं रह सकते । इ ह कोई
आधार चा हए , हमारे दशन म चेतनता का आधार जीव है तथा जड़ता का आधार कृ त।
वतमान व ान का कृ त ( Matter ) से दन - रात काम होता है , तथा प व ान कृ त म चेतना का
गुण नह ं पा सका । चेतना अपना जद ु ा आधार रखती है । हमारा शर र प ट ह जड़ है , इसका नमाण कृ त के
त व से हुआ है । अपने शर र के कसी भाग को शेष शर र से अलग कर द िजये , जैसे एक अंगुल को काटकर फक
द िजये , वह जड़ होकर रह जाएगी ; पीड़ा क अनभ ु ू त उस अँगल ु को नह ं होगी शेष शर र को होगी , य क शेष
शर र म जीवा मा व यमान है । म ृ यु होने पर आ मा इस शर र को छोड़ जाती है , अत : म ृ यु के प चात ् सारा
शर र जड़ हो जाता है । काट हुई अंगुल तथा मरे हुए शर र से चेतन आ मा और उसके साथ चेतनता का गुण
नकल जाता है । वह चेतना स ा जीव है और जड़ शर र कृ त ।

18
हमने ऊपर मौ० मह ु मद इसहाक़ के लेख को उ धत करके नवेदन कया है क मौलाना आ मा के व प
से प र चत नह ं , आपने आ मा के स ब ध म कहा क “उसी मा दः ( कृ त ) के खमीर से एक सू म चेतना इस
कार कट हुई िजस कार चकमक से अि न और रगड़ने से बजल नकलती है , और यह आ मा थी ।” दस ू रे
श द म आ मा , मा द : का ( कृ त का ) गुण हुई , य क काश तथा बजल , िजनके उदाहरण आपने अभी
दये ह , वह चकमक तथा रगड़ खानेवाल व तओ ु ं का गुण है । इस अव था म कृ त तो अपने व प म सत ्
स ध हो जाएगी और आ मा उसके आधार पर ि थत । फर तो जैसा हमने कहा है , आपक अन त काल क
ज नत क ती क आ मा नह ं , अ पतु कृ त होगी िजसका यह आ मा एक गुण है , य क गुण बना गुणी के
रह नह ं सकता । आप अपने Magazine के प ृ ठ ३७ पर लखते ह - “खद ु ा ( ई वर ) को हम ( सब - कुछ )
सनु नेवाला , दे खनेवाला , ानी तथा अन त मानते ह और मनु य को भी सन ु नेवाला , जाननेवाला और अन त
मानते ह ।” मनु य से आपका अ भ ाय मनु य क आ मा से है अथवा आ मा स हत शर र से ? अि तम ि टकोण
आपको अ धक सु वधाजनक होगा , याI क आ मा तो आपक ि ट म गुण है और शर र ( कृ त ) गुणी ; इस
अव था म शर र अथात ् कृ त अन त हो गई । अब वचारणीय यह है क या आप आ मा तथा कृ त को वतं
स ाएँ वीकार करते ह अथवा दस ू र स ा पर आधा रत ? आप प ृ ठ ३२ पर लखते है - “मनु य के होने से
अ भ ाय यह है वह वयं अपना अि त व नह ं रखता ; उसको अि त व तो ई वर ने दया है ।” ‘अि त व दया है '
क हये , अथवा कुछ और , िजसका अि त व अपना नह ं , वह उधार का है , वह अपने - आपम वत स ा न हुई
, दसू रे के आधार पर आधा रत स ा है ।
जीव तथा कृ त को इस कार दस ू रे पर आधा रत ( खदु ा पर आधा रत ) स ाएँ मानने का एक कार यह है
क आप परमा मा को गुणी तथा जीव एवं कृ त को उसका गुण मान ल , य क वत , अपने आधार पर
ि थत स ा आपक ि ट म केवल ई वर है । जीव एवं कृ त का अि त व उसके कारण से है , और िजसके कारण
से हो , वह उसका गुणी होता है , आधा रत तो गुण ह होता है । इस अव था म न होगा क या मनु य अथात ्
जीव और कृ त परमा मा के गुण ह ? या कम , या शि तयाँ , या प ? गुण होने क अव था म मनु य का
परमे वर से वह स ब ध होगा जो गुण का गुणी से होता है , या शि त का शि तशाल से या कम का कता से , या
प का पवान ् से । अब मनु य पण ू तया सी मत तथा ु टपण ू है तो या यह सी मत ( ु टपण ू ) मनु य पण
ू ,
प व तथा असीम ई वर का गण ु है अथवा शि त , कम या प है ? वचार क िजए !
य द यह दाश नक प रणाम वीकार नह ं है तो हमारे समान चेतना को गण ु तथा चेतन अथात ् जीव को
गुणी मा नये और जड़ता को गुण तथा जड़ कृ त को गुणी । गुणी क वत स ा है , अत : जीव तथा कृ त क
वत स ाएँ ह । जो वत स ाएँ ह , वे अपने व प से अना द भी ह और अन त भी , य क वे अपने
अि त व के लए कसी दस ू र स ा पर आधा रत नह ं , उसके प प रव तत हो सकते ह और इससे पवान ् भी प
से बोलेगा , पर तु अपने अि त व से वह सदा रहे गा ।
——————————————————————

19
◼ थम अ याय ◼
‘ हदस
ू े ह मा दः ' पु तक के दस
ू रे अ याय के तक का उ र

◼ सवशि तमान ् का अथ ◼
पहले तक का उ र जीव -
कृ त क उ प ( न वरता ) का थम तक आपने ई वर क सवशि तम ा के स धा त से जोड़ा है ।
सवशि तमान ् का जो अथ जन साधारण के मन - मि त क म है , उसपर ‘स याथ काश' म आ ेप कये गए ह ,
जैसे — या ई वर दस ू रा ई वर बना सकता है ? अपने - आप मर सकता है ? अ ानी , रोगी अथवा मख ू भी हो
सकता है ? मौलाना ने इन न का वह उ र दया है जो हर आय को वीकार होगा ; कहा है - ‘हम मस ु लमान
ई वर को केवल सवशि तमान ् ह नह ं समझते , अ पतु उसके कसी भी गुण क सीमा नह ं मानते । उसक असीम
स ा के समान उसके गुण भी असीम मानते ह , पर तु एक स धा त तथा नयम के अनस ु ार । वह यह क उसका
कोई गुण उसके कसी दस ू रे गुण को समा त नह ं करता , और कह ं पर भी उसका कोई गुण उसके कसी दस ू रे गुण
को अस य स ध नह ं करता । ( प ृ ठ ३० ) ऋ ष दयान द के ‘स याथ काश' म ये श द ह - “ या ई वर अपने -
आपको मार सकता है ...... और द ु : खी भी हो सकता है ? यह काय ई वर के गण ु , कम तथा वभाव के वपर त है
तो तु हारा कथन क वह सब - कुछ कर सकता है , अशु ध है ।” ( प ृ ठ २३४ )
भला मौलवी साहब के ऊपर लखे श द ‘स याथ काश' के श द का अनव ु ाद नह ं तो या है ? उ र इतना है
क मौलवी साहब ने परमे वर के गुण को सीमायु त भी बताया है , और फर उ ह असीम भी कहते ह । भला िजस
समय ई वर िजस व तु क रचना करता है , या उस समय उसका वनाश भी कर सकता है ? य द नह ं तो रचना
शि त को संहार क शि त ने , और संहार - शि त को रचना - शि त ने , समय तथा काल म सी मत तो कर ह
लया । असीम का अथ तो है , िजस गुण का काश हर समय , हर थान तथा हर अव था म हो सके ; ऐसी
वशेषता ( गुण ) असीम है । िजस व तु का जहाँ वनाश होता है , य द उस ण उसका जीवन स भव नह ं , तो
जीवन दे ने के गण ु का अि त व उस समय न रहा । अ तु , हम श द पर उतना आ ह नह ं , िजतना उनके अथ
पर है । जब तक ऋ ष दयान द से पव ू इ लाम म सवशि तमान ् के उपयु त अथ न दखाए जाएँ , तब तक मानना
पड़ेगा क यह सब ऋ ष दयान द क आलोचना का प रणाम है । ववादा पद वषय तो केवल इतना है क या
ई वर अपनी सवशि तम ा से कारण के बना काय क उ प कर सकता है ? मौलवी साहब पछ ू ते ह क बताओ
तो सह , अभाव से भाव क उ प करना ई वर के कौन - से गुण के व ध है ?
ीमान ् जी , यह रच यता के गुण के व ध है िजसे आप ई वर के अि त व के साथ अना द मानते ह (
प ृ ठ ३१ ) और िजस गुण के य त करने पर आप समय का कोई ब धन वीकार नह ं करते , और मानते ह क
ई वर अना द काल से रचना करता आया है । अना द रच यता क रचना भी अना द काल से हो , चाहे उसक सं या
केवल एक हो । अना द रचना के लए अना द रच यता चा हए । अना द सिृ ट ( रचना ) से अ भ ाय वह सिृ ट है
िजससे पव ू समय का अभाव था । य द सिृ ट को अभाव से भाव म लाना माना जावे तो उसके अभाव का काल उसके
अि त व से पव ू आयेगा और वह अना द नह ं होगा । य द कोई सिृ ट अना द नह ं , तो सजन - शि त भी अना द
नह ं ; अत : ई वर क रचना के गुण व सिृ ट के अि त व से पव ू अभाव मानना पड़ेगा ।
इस कार य द आपने कुछ अथवा एक रचना को भी अना द मान लया और ई वर के अ त र त दस ू र
अना द स ा का स धा त मान लया गया , तो फर यह स ध करना आपका दा य व होगा क य द कृ त का
एक भाग अना द है तो शेष कृ त अना द य नह ं ? अथवा , य द एक जीव अना द है तो शेष य नह ं ? अथवा ,
सु वधानस ु ार कृ त तथा जीव के दो कार मानगे तो उनम से एक अना द तथा दस ू रा सा द होगा ।
स भवत : मौलाना उ र दगे क हम तो जा त को अना द मानते ह , यि त को नह ं । न होता है क
परमा मा अना द काल से जा त क रचना करता आया है या यि त क ? और या बना यि त के जा त पैदा क
जा सकती है ? या यह उपहास नह ं क ई वर मनु य क जा त तो बना द और यि त ( मनु य ) एक भी उ प न

20
न करे ? उ प न तो यि त को करे गा , उनका सामू हक प ह जा त म माना जावेगा । वह अना द काल से रचना
करता है , अत : अना द मनु य का होना अ नवाय है , यह बात आप नो र म समझ ल

आय - परमा मा अना द काल से कसक रचना करता है ?


मौलाना साहब — जा त क ( नौ क ) ।

आय - या उस जा त म यि त भी होते ह ?
मौ० सा० - जा त तो यि तय क सामू हक क पना का नाम है , यि त न ह तो जा त कैसे बने ?

आय - बस यह यान रहे , अना द रचना चाहे जा त क हो , पर तु जा त म यि त ह गे ।


मौ० सा० - हाँ , यि तय क उ प तो होती है , पर तु वे मर जाते ह ।

आय - आपका अ भ ाय यह है न क अना द काल से यि त उ प न कये जा रहे ह , पर तु वे मरते जाते ह ?


मौ० सा० — हाँ !

आय — पर तु आप तो अहमद स दाय को मानते ह और हर यि त को अना द मानते ह ?


मो० सा० - हाँ , यह तो हमारा स धा त है ।

आय - तब अना द यि तय का या पाप है क वे अन त काल तक न रह ? जो उ प न हुआ है वह तो रहे गा ह ।


उ प न होते ह यि त , अत : अना द काल से यि त उ प न होते आये और वे रहे भी , अत : आप अना द
यि तय का अि त व अब तक भी कैसे न मानगे ?

दस
ू रे तक का उ र
सवशि तमान ् के अथ पर जनसाधारण म जो व वास बने हुए ह ‘स याथ काश म‘ उनपर आ ेप कये गए
ह । उनका दस ू रा उ र मौलाना इस कार दे ते ह
“कुदरत ( शि त ) से अ भ ाय उन काय से होता है जो सु दर , बड़े तथा कता के मह व को बढ़ानेवाले ह
।” ( प ृ ठ ३२ )
शि त ( कुदरत ) श द के यह अथ खोजने के लए कसी नये कोश को खोजना पड़ेगा । शि त तो केवल
साम य है िजसका योग भले अथवा बरु े काय म हो सकता है । शि त के बना चोर चोर नह ं कर सकता , डाकू
डाका नह ं मार सकता ; अ याचार भी शि त के कारण होते ह । हाँ , परमे वर क शि त म पाप अथवा ु ट का
लेशमा भी नह ं है । यहाँ न होता है क परमे वर के अ त र त कसी दस ू र स ा के अना द न होने पर या
उसक शि त म कोई कमी आ जाती है ? ीमान ् जी ! हाँ , कमी आ जाती है , और वह यह क य द ई वर के
अ त र त कोई अ य स ा अना द न हो , तो शेष कुल संसार क , िजसे आप ई वर क रचना मानते ह , सिृ ट से
पवू , ई वर के सारे गण ु ( मा लक , ख़ा लक , यायकार ) आ द यथ हो जाएँगे । आपने इस कमी क पू त यह
कहकर क क जा त से सिृ ट अना द है , यि त से नह ं । अना द जा त का आ खर कोई तो यि त होता जो
अपने यि त व से अना द होता ? य क , जा त का अि त व यि त के बना अस भव है , और जो अना द है
वह अभाव से भाव म नह ं आया !

21
◼ नाि तक ( मश
ु रक ) कौन है ? ◼

दस
ू रे तक का उ र
जीव - कृ त क न वरता का दस ू रा तक कुरआन के इस आदे श से नकाला गया है - “ वहुलवा हदल ु क़हार ”
- िजसका अथ कया है क “ ई वर एक है तथा कहर ( ग़जब ) ढानेवाला है । ” हमने तो इन श द का अथ यह पढ़ा
था क परमे वर अकेला ग़जब ढानेवाला है , अथात ् और कोई ग़जबढानेवाला नह ं । य द दस ू रे अथ भी कर ल क
परमा मा एक है , तो हम कोई आ ेप नह ं है । पर तु इससे जीव तथा कृ त के सा द होने का माण कैसे मल
गया ?
मौलाना का तक यह है क जीव तथा कृ त को य द अना द मान ल , तो ई वर के गुण ‘ शि तमान ् ’ म
ई वर से स ब ध मानकर , उसके गुण म स ब ध मानकर , ई वर का एक व कहाँ रहा ? ( प ृ ठ ३४ )
हमने ऊपर नवेदन कया है क दाश नक ि टकोण से जीव एवं कृ त का अना द व आपके म त य म
भी उसी कार कट है जैसे हमारे म त य म । यह और बात है क आप इस त य से अप र चत ह और हम
प र चत । और फर जब आप जीवन क अन तता को मनु य म प ट प से वीकार करते ह ( इ लाम के
म त य म म ृ यु के प चात ् जीव सदा के लए वग अथवा नरक म रहे गा , वह मरता नह ं ) , तो या यह अन ता
ई वर य गुण नह ं ? और या ई वर के इस गुण से जीव को यु त करना कु नह ं ? बात व तत ु : यह है क ई वर
तो एक है , पर तु अि त व और का भी है , क तु दस ू रे परमे वर नह ं ह । न यहाँ अना द व अथवा अन ता का
नह ं , न अ य के अि त व का है । आपने वयं लखा है , “अि त व तो हम ई वर तथा जीव दोन का वीकार
करते ह , पर तु इससे अ भ ाय अलग - अलग है । ई वर के अि त व का अ भ ाय है - व प से , वयं बना
कसी क कृपा के अि त व , जब क जीव का अि त व ई वर क दे न है , वह अपने - आपसे नह ं ।“
अि त व का उलट तो अभाव है । एक ह श द अि त व के दो अथ लेने ह , तो एक का अथ अव य अभाव
रहे गा ; सो िजसका अभाव आपको अभी ट हो , उसका अभाव मान ल िजए । दशन म अि त व का अथ ‘ दया हुआ
अि त व' अथवा ' व प से अि त व' नह ं होता , अ पतु अि त व तो व प से ह होता है । यह अि त व कसी
गुणी का होता है , दया हुआ अि त व कसी गुण का अि त व होता है , आप मनु य का अि त व ‘ दया हुआ
अि त व' मान ल िजये , जो ‘सव खि वदं म' वाल का स धा त है , तब मनु य के पाप , बरु ाइयाँ , दब ु लताएँ ,
ु टयाँ सब परमे वर क ु टयाँ मानी जाएँगी । य द जीव का अि त व अपने व प म मान लया तो आपम और
हमम कोई अ तर ह न रहा । लखने को तो आपने लख दया , “मनु य म िजतने गुण ह , वे उसके अपने नह ं ,
य क य द ये जीव के अपने होते , तो वह इन गुण को सनातन काल से रखता ; पर तु जीव पर तो उ प तथा
गभाव था म वह काल भी बीता है क नाक पर माल रखे बना कोई मनु य इसके पास से नह ं गज ु र सकता ।” (
३९ ) ीमन ् ! य द आप जीवा मा के व प को समझते , तो उसे गभ तथा उ प क अव थाओं से न दे खते । ये
अव थाएँ तो शर र क ह , और शर र ाकृ तक है । वे सब गुण िजनसे आप जीव को मु त मानते ह , जीव के ह ,
कृ त तो उन गुण के कट करने म साधन का काय करती है । आपने ने क दशन - शि त के स ब ध म लखा
है क “यह ई वर क अमानत है ....... वह जब चाहे , वापस ले सकता है ।” ( प ृ ठ ३८ ) य द सचमच ु मनु य के गुण
उससे लौटा लये जाएँ , तो मनु य कहाँ रहे गा ? पर तु आपका म त य है क मनु य अना द ह ( अना द काल से
ई वर वारा बनाया जाता है ) । लगता है क आप अपने म त य क दाश नक दब ु लता से तो प र चत ह , पर तु
उसे ाि त के व म लपेट लेते ह ता क वह दब ु लता प ट प से आपक ा त आ मा को कुछ दन क ट न दे ।
भला यह भी कोई अपनी अमानत का वापस लेना है क वह वापस लेगा नह ं ? आपने शत लगा द क वह जब चाहे
ले सकता है , पर तु या वह कभी चाहे गा भी ? य द यह गण ु को लौटा लेने क इ छा ई वर के गण ु के व ध है ,
तो या आप उसे व व का धारणकता मानते ह अथवा नह ं ? धारणकता का अथ या है ? यह क कसी को ि थर
र खे । य द उसे मनु य को ि थर रखना है , और यह धता का गुण उसका अना द एवं अन त है , तो आ मा के
गुण को वापस लेने का या अथ ? और वापस लेने क इ छा भी कस लए ? आप हम नाि तक और घोर नाि तक
कह ल , पर तु य द हम नाि तक ह , तो । आप भी कम नाि तक नह ं ह । जब आपने एक संसार ( कम - से - कम

22
) अना द मान लया , और उसके मनु य क आ माएँ अना द मानी गयीं , तो फर अना द काल से ई वर के अ त
र त अ य स ा भी अना द हो गई । आपका कथन है - “इस ( संसार बनाने क ) घटना म अना द व नह ं कहा जा
सकता , य क दे नेवाला दे ने से पव ू होता है , और सनातन वह स ा है िजससे पव ू कोई स ा हो ह नह ं सकती ।”
दे नेवाला दे ने से पव
ू होता है , यह स य है , तो या लेनेवाले का भी पवू होना आव यक नह ं ? लेनेवाला न होगा तो
दाता अपनी दे न कसे दे गा ? और दे गा या ?
ीमन ् ! खलु े प म वीकार क िजये क तीन स ाएँ ( दे नेवाला लेनेवाला , द जानेवाल व तु ) अना द ह ,
नह ं तो दशन क इस गु थी को सल ु झाइये क पहल बार दये जाने से पव ू या दे ने का गुण नह ं था ? य द था तो
दया जाना अना द काल से हुआ । दये जाने से पव ू जहाँ दाता का अि त व चा हए , वहाँ लेनेवाले का भी तथा द
जाने वाल व तु का भी अि त व चा हये । अि त व पर दये जाने क क पना भी नह ं क जा सकती । अि त व
उसको दया जाएगा िजसका अि त व पहले न हो , और िजसका अि त व है नह ं तो लेगा कौन ? व तत ु : सत ् का
गुण अना द व का योतक है , और यह गुण केवल ई वर का नह ं , सब अना द स ाओं का है । ये अना द स ाएँ
एक - दस ू र का गुण नह ं बन सकतीं । आ मा कृ त का गुण नह ं है , अ पतु चेतनता के गुण क गुणी स ा है ।
कृ त आ मा का गुण नह ं है , अ पतु जड़ता गुण क गुणी स ा है , और कृ त एवं आ मा ई वर के गुण नह ं ह
य क यह अपनी दब ु लताओं के भी धारणकता ह , और ई वर दब ु लताओं का धारक नह ं हो सकता । य द आ ा द
तो इस वषय को नो र से प ट कर द

आय — आप परमा मा का अि त व मानते ह ?
मौलवी साहब - हाँ ।

आय - जीव तथा कृ त के अि त व पर आपका या वचार है ?


मौलवी — उ ह भी मानते ह ।

आय - ई वर तथा जीव एवं कृ त के अि त व म या अ तर मानते ह ?


मौलवी साहब - ई वर का अि त व अपना है ; जीव एवं कृ त का अि त व अपना नह ं है , अ पतु यह उ ह ई वर
ने दया है ।

आय - ई वर ने या दया है ?
मौलवी — अि त व ।

आय - या इस अि त व के दे ने से पव
ू आ मा तथा कृ त व यमान थे या नह ं ?
मौलवी - य द उनका अि त व होता , तो दे ने क आव यकता या थी ? अि त व दे ने का अथ ह यह है क वे
पहले व यमान न थे ।

आय — य द वे थे ह नह ं , तो ई वर ने अि त व दया कसे था ?
मौलवी - आ मा तथा कृ त को ।

आय — िजसका अि त व ह न हो , उसे भी कुछ दया जा सकता है ? लेनेवाला उपि थत ह नह ं , और दे नेवाला दे


रहा है , यह नया तक है !
मौलवी साहब - ई वर अना द काल से दे ता आया है ।

आय - बहुत अ छा ! या दे ता आया है ?
मौलवी — अि त व ।

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आय - जो व तु अना द काल से द जाती रह है , वह अना द है अथवा नह ं ?
मौलवी - हाँ ! अि त व अना द है , तभी तो . ई वर अना द काल से दे ता आया है ।

आय - आप ई वर के अि त व म तथा जीव और कृ त के अि त व म कोई अ तर मानते ह या दोन का अि त व


एक - सा मानते ह ?
मौलवी - ये दोन अि त व ( जीव - कृ त का तथा ई वर का ) वरोधी अि त व ह ।

आय - अि त व का वरोधी तो अनि त व ( अभाव ) होता है । दो अि त व एक - दस ू रे के वरोधी कैसे ? य द आप


वरोध को ह मानते ह तो परमा मा को सत ् एवं जीव - कृ त को असत ् मान ल िजये , अथवा इसके उलट म त य
बना ल िजये क अि त व .........
मौलवी - नह ं । ई वर का अि त व अपना है , जीव तथा कृ त का अि त व उधार का है ।

आय — यह उधार वाला अि त व कब से उधार मलने लगा ?


मौलवी — अना द काल से ।

आय - उधार लया अि त व भी एक गण ु है , इसका गण


ु ी चा हए , या यह गण
ु ी अना द काल से है या नह ं ?
मौलवी - उधार अि त व के गुणी जीव तथा कृ त ह और ये जा त प से अना द ह ।

आय - और ये जा त प से अन त काल तक रहगे ?
मौलवी — यह मनु य जा त प से भी तथा अपने वैयि तक प म भी अन त काल तक रहगे ।

आय - या अना द उधारवाले अि त व के गुणी कोई मनु य ह गे ?


मौलवी — हाँ ! मनु य जा त प से अन त काल तक उधार लये अि त व का गण
ु ी है । पर तु हर मनु य ऐसा नह ं

आय - वह जा त भी कैसी अना द है िजसका कोई यि त अना द न हुआ हो ? या अ लाह तआला ने जा त बनाई


या यि त ?
मौलवी - जा त ।

आय - या जा त का यि त के बना नमाण स भव है ?
मौलवी - नह ं । पैदा तो यि त कये जाते ह और उनके एक त प क क पना ‘ जा त ' कहलाती है ।

आय - बहुत अ छा ! जब खद ु ा अना द काल से उ प न करता आया है और जा त क उ प यि त के उ प न


कये बना स भव नह ं है , तो यि तय को अना द मा नये , उनका अि त व उधार लया हुआ सह , ह गे तो
अना द ? "
मौलवी - हाँ , यह तो मानना पड़ेगा । सनातन उ प म कुछ मनु य का उधार लया अि त व अना द होगा , नह ं
तो अ लाहतआला क अना द सज ृ न - शि त समा त हो जाएगी ।

आय - जब आप मनु य का अना द व , यि त - प से भी मानते ह , तब तो वे अना द मनु य अन त काल तक


रहगे ?
मौलवी - हाँ , हर मनु य अना द है , अना द मनु य अन त काल तक रहगे । पर तु भाई , इससे कु लगता है ।

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आय - कु ( नाि तकता ) अि त व म नह ं होता य क वह तो इस समय भी है , हम भी मौजदू ह और ई वर भी

मौलवी — मने आपसे कहा था क हमारा अि त व ई वर क दे न है जब क ई वर का अि त व अपना है ।

आय — इसक वा त वकता तो आपने सन ु ल । आपने उसे ई वर क दे न भी कहा , और अना द भी ; भला कोई


अना द व तु दे न भी होती है ? दे नेवाल व तु वह होती है , जो लेनेवाले म पहले न हो , और कुछ काल प चात ् द
जाए ; और अना द अि त व वह होता है जो पहले था । अि त व दे न नह ं होता ; अपने व प से होता है अथवा
दस
ू रे के कारण से । दस
ू रे के कारण से गणु , कम , प , शि तय का अि त व होता है । पर तु आप यह तो न
मानगे क आ मा एवं कृ त ई वर के कम , प अथवा शि तय या गण ु ह?
मौलवी - यह म त य तो ‘सव खि वदं म' वाल का है , हम ु टय तथा दब ु लताओं को ई वर का गुण नह ं मान
सकते ।

आय - पर तु संसार म तो ु ट एवं दब
ु लता मौजद
ू ह?
मौलवी — हां , ह तो सह !

आय - तो ये कसके गण ु हुए !
मौलवी - ई वर से इतर के ।

आय - वस , यह हमारा म त य है क दब ु लता एक गुण है जो वा त वक है । इसका गुणी ई वर नह ं , उसके


अ त र त कोई और है , और वह है आ मा तथा कृ त । आप कु से भयभीत थे क आ मा तथा कृ त अना द न
माने जाएँ । हम इस कु का भय है क आ मा तथा कृ त क अ प ता एवं जड़ता ई वर के गुण न बन । आप
बताएँ कु का पाप आप पर लगता है क हम पर ?

◼ ससीम कसने कया ? ◼


तीसरे तक का उ र
आ मा तथा कृ त को सा द ( उ प न ) मानने के लए तीसरा तक मौलाना दे ते ह - “आ मा तथा कृ त
का ससीम होना , उसके गण ु , शि तय और उ न त क सीमा का होना इस बात का माण है क वे उ प न हुई -
हुई ह । नह ं तो जो स ा अना द है और उसे कसी ने नह ं बनाया तो उसक सीमा कैसी जो उसपर लगी हुई है ?” (
प०ृ ४४ ) आगे फर लखते ह - “ या कारण है क वे ( आ मा , कृ त ) ई वर के समान सनातन और अि त व से
अना द ह , फर भी ु टपण ू तथा सी मत ह ?” ( प ृ ठ ४४ )
मौलवी साहब ! व प से अना द स ा ु टपण ू तथा ससीम नह ं होती । इसके लए कोई तक दया होता !
संसार म ु टयाँ भी ह और ससीमता भी ; ये दोन गुण ह । इनका दशन पापकृ य , नबलता आ द कई प म
हम जगत ् म पाते ह । इन गुण का गुणी कोई तो होना चा हए ? हम पहले कह चक ु े ह क गुण गुणी के बना नह ं
रह सकते । गण ु ी का अपना व प होता है । अब बताना होगा क वह व - पवाल स ा कौन - सी है िजसके
ससीमता आ द गण ु ह ? ई वर म तो आप ससीमता - अ प ता मानते नह ं , तो ये गण ु कसी और स ा के आधार
पर ह गे । हमारे दशन म जो स ा व- प से सत ् है , वह अना द है , अत : आपको या तो हमारे समान ससीमता -
जड़ता आ द गुण का गुणी जीव तथा कृ त को अना द मानना पड़ेगा , अथवा ससीमता - जड़ता आ द के गुण से
इ कार करना पड़ेगा , जो आपको अभी ट नह ं । ससीमता के गुण को वीकार करने के प चात ् आपका आ ेप है
क यह सीमा कसने बाँधी ? आपके म त यानस ु ार सीमा बाँधनेवाला , सीमा बाँधने से पव
ू होना चा हए । हम य द

25
आपके तक को ठ क मान ल , तो न होगा क सीमा कसक बाँधी ? य द सीमा लगानेवाला तो हो , पर तु वह
स ा न हो िजसक सीमा बाँधी जावे , तो फर सीमा लगेगी कसपर ? या वयं परमा मा ने अपने ऊपर यह सीमा
लगाई ?
स य तो यह है क ससीमता भी अना द है और उसका गुणी भी अना द । नह ं तो य द कोई ससीम सरे से
हो ह नह ं , तो कसी को असीम कैसे कह सकगे ? इसक तो क पना भी अस भव है । असीमता एक नकारा मक
प रभाषा है । य द सीमा क क पना न हो तो सीमा के अभाव क क पना कैसे होगी ? सीमा आ मा एवं कृ त म
व यमान थी , उसके उलट असीमता के गुण का गुणी ई वर था । जब ससीमता ई वर का गुण नह ं , तो ई वर इसे
उ प न कैसे कर सकता है ? या ई वर दब ु लताओं का ज मदाता है ? कसी भी प म सोचो , ससीमता के कारण
जीव तथा कृ त क उ प मानना ई वर के त ध ृ टता है एवं ससीमता के गण ु से भी याय नह ं । नो र के
प म दे खये

मौलवी — आ मा तथा कृ त ससीम ह या असीम ?


आय - शि तय से ससीम ।

मौलवी - इनक सीमा कसने बांधी ?


आय - ससीमता अना द है , इसे लगाने का न ह नह ं उठता । आप ह फरमाइये , कसने लगाई ?

मौलवी — अ लाह तआला ने ।


आय - कसपर लगाई ?

मौलवी — जीव तथा कृ त पर ।


आय - या ये पहले असीम थे ?

मौलवी — वे थे ह नह ं ; असीम कैसे होते ?


आय — थे ह नह ं तो सीमा कसक बाँधी ? या कभी अभाव पर भी सीमा लगाई जाती है ? ( हं सकर ) अपने -
आप पर लगाई होगी !

मौलवी - उन ( जीव - कृ त ) का अि त व था ।
आय - अि त व था तो वे अपने गुण के साथ अि त व म थे ; उन गुण म एक गुण है ससीमता ।

(२)
आय - संसार म ससीमता है और वह या गण
ु है ?
मौलवी - हाँ है , और वह गण
ु है ।

आय - कस गुणी का गुण है ?
मौलवी — जीव तथा कृ त का । पर तु जीव और कृ त न वर ह ।

आय - उ ह कसने उ प न कया है ?
मौलवी — ई वर ने ।

आय — ई वर ने उनक ससीमता को भी उ प न कया ?


मौलवी — हाँ ।

26
आय - ससीमता ु ट है , दब
ु लता है ।
मौलवी - हाँ ।

आय — ( तब तो ) ई वर ु ट एवं दब
ु लता को उ प न करनेवाला है ।
मौलवी — यह या न है ?

आय — न तो आगे होगा — पाप को कसने उ प न कया ? और कससे उ प न कया ?


मौलवी - पाप को अभाव से उ प न कया , अभाव से दब
ु लता का ज म होता है ।

आय — और जो स गुण मनु य म ह वे ?
मौलवी — वो ई वर य गुण ह ।

आय — अथात ् मनु य के कुछ गुण अभाव से ज मे और कुछ ई वर से ?


मौलवी — टे ढ़ खीर है ( सम या है ) ।

ऊपर दये तक के आधार पर आपने स य स धा त नि चत कया है और ‘स याथ काश' के माण से


जीव क सी मत शि तय का वणन कया है । फर फ़रमाया है क “ या वह ( आ मा क आकषण शि त ) च मा
को धरती पर उतार सकती है ? या वह शि त आकाश को उलाँघ सकती है ?” ( प ृ ठ ४६ ) कस यो यता से
मह ु मद साहब के च मा को तोड़ने एवं आकाश पर ई वर से मलने के चम कार से मौलवी साहब ने इनकार
कया है ? परमा मा इ ह सम ु तद।
सचमच ु आ मा के सब गुण ससीम ह । आप फ़रमाते ह - “अनम ु ान यह लगता है क इसका काल भी
सी मत हो ।” ( प ृ ठ ४७ ) य ीमान ् जी , या काल भी जीव क वशेषता है ? हमारे स धा त म आ मा का गुण
है अना द व , और आपके तथा हमारे दोन के समान स धा त म है - आ मा का अन वर होना । अनम ु ान लगाइये
क या ये दोन गण ु भी सी मत ह ? जरा आपके दाश नक ान क गहराई तो दे ख ! - अना द व को सी मत करने
से पवू अन वरता पर तब ध लगाना ! अना दता तो वत : होती है ; अन वरता को सी मत करने का अनम ु ान
लगाइये ! या व च ि टकोण है ! या कुरआन के व वान का ग णत - ान इतना ह है ?
ीमन ् ! य द वशेषण ह जानना है तो आ मा का वशेषण काल को न मा नये , काल व को गन ल िजये ।
इसे वत: न मानने पर आपको कभी तो आ मा को काल क सीमा से वत और कभी काल सवशि तमान ् का
अथ से सी मत मानना पड़ेगा , अथात ् कभी जीव अना द हो जाएगा , कभी नह ं ; आप ह इस हसाब को समझे !
भाई ! हमार समझ म नह ं आता क जीव तथा कृ त के अना द होने से उनके गुण असीम कैसे हो जाते ह
? जब क दस ू र ओर , जीव को न य ( अन वर ) तो आप भी मानते ह । या यह अन वरता असीमता म नह ं ?
फ़रमाया - “ ' वग म जीव सदा का जीवन पाएँगे ', पर तु यह उनका अपना गण ु नह ं , खद
ु ा जब चाहे वग म
रहनेवाले जीव का नाश कर सकता है , पर तु करे गा नह ं । अपने न चय से वह वग को न य रखेगा , अत :
हमने जीव को न य नह ं माना ; ई वर को उ ह न य रखनेवाला माना है और हमार न यता म हमारा कोई गुण
नह ं , यह तो ई वर क मह ा है ।” ( प ृ ठ ५१ )
कोई दाश नक इन पंि तय को पढ़े तो इसे वरोधी वचार का सं ह - मा कहे । एक ओर तो आप कहते ह
‘ वग म जीव सदा का जीवन पाएँगे' , फर कहते ह - ‘हमने जीव को न य नह ं माना' पहले फ़रमाया - ‘खद ु ा जब
चाहे , वग के जीव का नाश कर सकता है ' फर आ ा होती है — 'अपने न चय से वह वग को न य र खेगा ।’
जनाब ! आप जीव को न य न मा नये , जब वे न य का जीवन पाएंगे तो आपके न मानने पर भी वे न य हो
जाएँगे । िजस गण ु के नाश क स भावना भी नह ं , वह गण
ु वाभा वक होता है । परमा मा को जब वग अपने
न चय से न य रखना ह है , तो फर ‘जब चाहे नाश कर द' क रट त कैसी ? या ई वर के न चय म प रवतन

27
क स भावना है ? हमारा स धा त तो इसके वपर त है क परमा मा का हर न चय सु ढ़ होता है - उसम
प रवतन को थान ह नह ं । ‘जब चाह , अपने न चय को प रव तत कर द' ऐसा मानना परमे वर को ‘ णे ट:
णे तु ट:' मानना है । वह कभी नाश करना चाहे गा ह नह ं ! परमा मा क म हमा का बखान करने को ह सह ,
आपने माना तो है क वह ि थर रखनेवाला है । वह ( ई वर ) ि थर रखनेवाला न हो । य द हम न य न ह , तो
ल िजए ई वर क इसी म हमा के आधार पर यह भी मान ल िजए क वह भत ू काल म भी ऐसे ह ि थर रखनेवाला
था , जैसे भ व य म होगा । य द था तो कसको ि थर रखता था ? वह अना द काल से ि थर रखनेवाला , हम
अना द काल से ि थर , दोन के गुण कट हो गए ! जनाब मौलाना ! ई वर क म हमा और गुण इसी म है क
उसके ब द म भी गुण ह । ब दे गुण - र हत हुए तो अ लाह मयाँ का गुण अपने लए ह रह जाएगा । आपने
बहुत ठ क लखा क ई वर ि थर रखनेवाला है । न होता है क कब से और कब तक ? अि तम भाग का उ र
आपने दे दया क सदा के लए ( अन त काल तक ) । इसका कार ? आपने जीव को न य तो माना , इसी कार
न के थम भाग का भी उ र द िजये - अना द काल से । इस कार जीव को अना द वीकार क िजए , अथवा
यह मा नये क कसी काल म ई वर म ि थर रखने का गुण नह ं था । गुण उसम आया , य द ऐसा मानो , तो इस
गुण के भगवान ् म आने से पव ू के जीव तो घाटे म रहे । गुण कट होने के प चात ् के जीव को आन द ह आन द
है । स य तो यह है क अन तता का अना द व से सीधा स ब ध है । आप आज वीकार नह ं करते , कल करोगे ,
पर करना तो पड़ेगा ।

मौलवी — जीव तथा कृ त क शि तयाँ सी मत ह , अत : उनका काल भी सी मत होना चा हए ।


आय - या उनक हर शि त सी मत है ?

मौलवी — हाँ !
आय — अन तता ?
मौलवी — वह सी मत नह ं , पर तु यह गुण जीव का नह ं ई वर का है ।
आय — तो जीव का अना द व म असीम होना भी ई वर का गुण होगा ।
मौलवी - वह कैसे ?
आय — ई वर अना द काल से ि थर रखनेवाला है , और अन त काल तक ि थर र खेगा न !
मौलवी — हाँ !
आय — तो िजनको अन त काल तक ि थर र खेगा , य द उ ह अना द काल से ि थर र खे तो या अ तर आ
जाएगा ?
मौलवी — अना द काल से ई वर ि थर तो रखता है , पर जा त को ।
आय — तो अन त काल तक भी जा तय को ि थर रखनेवाला हो जाए , अथात ् यि त सब न वर ठहराए जाएँ ।
मौलवी — नह ं , अन तकाल तक तो यि तय को भी ि थर र खेगा ।
आय - यह या ? अना द काल से ि थर रखनेवाला का अथ , जा त को ि थर रखनेवाला और अन त काल तक
ि थर रखनेवाले का अथ यि त को ि थर रखनेवाला ? आ खर ि थर रखनेवाला तो एक ह है , तब अथ भी एक ह
ल िजये ।

◼ ई वर सबका वामी कैसे ? ◼

चौथे तक का उ र -
आ मा एवं कृ त क उ प का तक न बर ४ पर यह दया है : “य द उसको ( ई वर को ) जीव तथा कृ त
का उ प न करनेवाला न माना जाए , तो वह इनका वामी नह ं हो सकता । जब जीव को उसने उ प न नह ं कया
तो जीव का वामी य ? ई वर ने उसे मोल तो नह ं लया ?” ( प ृ ठ ५२ ) यह तक है तो मौलाना का अपना ह ,

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पर तु य द इसका स ब ध क़रआन से न दखाएँ तो जीव क उ प का स धा त इ लाम से कैसे पु ट हो ?
कुरआन म आया है “आसमान और जमीन का वामी परमा मा है ..... उसने उ ह उ प न कया , वह सब पर
अ धकार रखता है ।”
यहाँ ई वर क तीन वशेषताओं का वणन है - ( १ ) वह वामी है ; ( २ ) वह उ प न करनेवाला है , ( ३ ) वह
अ धकार रखता है , अथात ् वह वामी है , वह उ प नकता है , वह शि तमान ् है । पर तु मौलाना इस कार
फ़रमाते ह क वह वामी है , इस लए क वह उ प न करता है । वह इस लए क वह शि तमान ् है । और वह
उ प न करनेवाला कैसा है क - अपनी शि त से , अभाव से भाव क सिृ ट कर दे ता है । स य तो यह है क समच ू े
कुरआन म अभाव से सिृ ट - उ प का कह ं प ट वणन नह ं आया । ऊपर लखी ई वर - स ब धी तीन
वशेषताओं को हम भी वीकार करते ह , पर तु यहां उ प न करने का अथ अभाव से सिृ ट करना नह ं मानते ह
और यहाँ क़द र ( शि तशाल ) श द इस लए यु त भी नह ं हुआ क उसने अभाव से सिृ ट उ प न कर द , अत :
हम कुरआन को स मानपव ू क एक ओर रखकर मौलाना के तक का उ र दे ते ह ।
मौलाना ने वा म व का आधार मोल लेने को माना है , तो ई वर जीव को मोल कससे लेता है ? और
उसका मू य या है ? अत : लखा है क आ मा ( जीव ) उसक ‘ख़ानाजाद' हो । ख़ानाजाद का अथ है ‘घर म
उ प न हुआ' । य द ‘ जादन ' का अथ शर र हण करना हो तो जीव ई वर के घर म ह तो शर र को हण करता है
, अत : जीव ई वर का ख़ानाजाद हुआ । मौलाना को ‘ख़ानाजाद ' का वचार इस लए भी आया क परु ाने यग ु म दास
- था च लत थी , गल ु ाम पर वा मय का अ धकार होता था । अब तो वह रहा नह ं ! पर तु चलो , परु ानी
पर परा पर ह वचार कर लो ! तब भी आक़ा ( मा लक ) अपने ‘खानाजाद ’ को उ प न तो नह ं करते थे ?
खानाजाद होना और बात है और ‘मखलक ू ' होना और । ‘मख़लक ू ’ तो खानाजाद भी परमा मा के थे , पर तु उनपर
अ धकार उनके वा मय का था । मौलाना बताएं , ऐसा य ? आज दास - था समा त हो चक ु है , तो भी
वा म व तो आज भी रहता है । स तान पर माता - पता का वा म व तब तक तो रहता ह है जब तक स तान
वय क न हो । यह कस अ धकार से ? स तान भी मनु य और माता - पता भी मनु य । गु का श य पर
अ धकार श ाकाल म तो होता ह है । हमार ि ट म वा म व का अथ है उपयु त योग ; यह स ब ध जीव
का ई वर से है । जीव ई वर के स मख ु सदा ब चे ह ह , अत : ब चे होने के कारण ई वर क इ छा के आधीन ह ।
सांसा रक स ब ध म राजा - जा , वामी - सेवक , गु - श य इ या द वामी तथा सेवक का स ब ध रखते ह ,
और इस वा म व के लए कोई कसी को उ प न तो नह ं करता , अ पतु ान क यन ू ा धकता ह कारण होता है
। वा म व उसी का अ धकार है जो वा म व क यो यता रखता है । जैसे आपक ि ट म जीव तथा कृ त दोन
उ प न हुए ह , पर तु मनु य पशओ ु ं का वामी है , य य प आपके ि टकोण म दोन ‘मख़लक ू ' ह । मनु य म
बड़ाई - छोटाई से वामी सेवक का स ब ध बन जाता है । इसका कारण यह नह ं होता क जीव कृ त को , अथवा
मनु य पशु को , या एक मनु य दस ू रे मनु य को अभाव से भाव म लाया । यहाँ वा म व का आधार यह है क जीव
चेतन है , कृ त जड़ है । मनु य पशु से अ धक ान रखता है । एक मनु य वामी बन जाता है जब वह दस ू रे से
बु ध म बढ़कर हो । आ खर आप िजन व तओ ु ं को उ प न हुआ मानते ह , उनम आपस म वामी - सेवक
स ब ध का कोई आधार बताइये !
प ृ ठ १३९ पर आप वामी क प रभाषा इस कार दे ते ह “ वामी ( मा लक ) उसको कहते ह जो कसी व तु
पर परू ा अ धकार रखता हो , उसपर इतना पण ू अ धकार हो क जो वह चाहे , वैसा ह हो जाये , और उसके योग
का उसे परू ा अ धकार भी हो ।” टा त दे ते ह - “म ृ यु - श या पर पड़ी प नी का प त चाहता है क यह जी वत हो
उठे , पर तु ऐसा नह ं हो पाता । पं० लेखराज का ह यारा छुप जाता है , सरकार भागदौड़ करती है , पर तु या
सरकार के वा म व ने कोई प रणाम नकाला ? इकलौते ब चे मर जाते ह , पर तु माता - पता उ ह जी वत नह ं
कर सकते ……. इ या द ।” ध टता मा कर , जरा अ लाह मयाँ से ह इ ह जी वत कर दे ते , और ई वर से मौ०
गुलाम अहमद का दयानी क म ृ यु का कार ह बदलवा दे ते ( मौलाना का दयानी क म ृ यु शौचालय म हुई थी ) ।
आ खर वशू चका ( है जा ) मसीह मौऊद ( गल ु ाम अहमद का दयानी ) क शान के बराबर क मौत तो न थी ? पं०
लेखराम क ह या के वणन से मौलाना को खब ू आन द आया होगा , य क यह मसीह मौऊद क भ व यवाणी का
वणन है । ह यारे का छुप जाना भी खब ू रहा ! आ खर का दयानी वीरता ह तो थी ? हम दे खना है क या इ लाम

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के खद ु ा पर वामी श द क प रभाषा परू उतरती है क नह ं ? या परमा मा नह ं चाहता क उसके ब दे नेक ह ?
या पैग़ बर का एक के प चात ् दस ू रे का आना ई वर क इस इ छा का माण नह ं ? पर तु प रणाम ? या
मनु य नेक बन गये ? या खद ु ा नह ं चाहता क मनु य शैतान के बहकावे म न आये , अथवा शैतान मनु य को न
बहकावे ? पर तु या शैतान अपने काय से पीछे हटा ? वयं कुरआन म थान - थान पर प चा ाप के अ ु
टपकाये गये ह । या यह सब आपके वचार म खदा क ववशता का माण नह ं ? मरते हुए को जी वत उसी समय
न आपने कया न अ लाह मयाँ ने ; नेक बनाना चाहा , पर बना न सका ; चाहा क शैतान स य हो जाये पर यह
काय भी न कर सका । इसी कार मनु य को अन त काल तक ( जीव को ) जी वत रहनेवाला ( अ द ) आपने
माना और कहने को कह दया क “खद ु ा चाहे तो इ ह न ट कर सकता है , पर तु करे गा नह ”ं यह चाहना भी या
हुआ ? इस अव था म तो खद ु ा भी वामी न रहा ? वा म व क उपयु ता का न तो तब उठे जब पहले वा म व
स ध हो । आपके कहे वा म व का तो अि त व ह नह ं , ववाद कस पर ? ीमान जी , वा म व वह है
िजसक प रभाषा हम दे चक ु े ह , अथात ् उ चत उपयोग । परमा मा म इस अ धकार क चरम सीमा है । अनी वर
शि तय म इसका कुछ अंश मलता है , पर तु है अव य । उपमा सदा अंश तक सी मत रहती है , य द वह पण ू हो
तो उपमान तथा उपमेय दोन एक हो जाएँगे , दो नह ं रहगे । सरकार का जा पर भी अ धकार है , य क वह उ ह
द ु कम का फल दे सकती है , उससे कर ले सकती है । हाँ , इसम कभी - कभी वह अश त भी हो जाती है , जैसे
पं डत लेखराम के ह यारे 'खै लमा कर न' के श य को वह न खोज सक । पर तु अ धकार से इ कार का तो
माण तब मलता , जब ह यारा कट होता और सरकार क आ ा न मानता , ब द न बनता या सल ू पर न
चढ़ता । माता - पता का भी ब च पर अ धकार है , य क उनक आ ा का पालन करना ब च का कत य होता है
। जीव पर परमा मा का अ धकार इसम है क ई वर य आदे श के पालन क सब जीव पर पाब द है , जो उ लंघन
करता है ई वर उसे द ड दे सकता है । बात वह है , जो ऋ ष दयान द ने लखी है , पर तु आपने उसे तोड़ मरोड़कर
बी सय प ृ ठ उसके अशु ध अथ करने , और उस अशु ध के या यान म लगा दये । ऋ ष कहते ह - “जब
परमे वर सारे संसार का बनानेवाला तथा जीव को कम का फल दे नेवाला , सबका ठ क ठ क र क और असीम
शि तवाला है , तो सी मत शि तवाला जीव तथा कृ त क व तए ु ँ उसके अ धकार म य न ह ? ” इसम
वा म व क या या क है , वा म व का औ च य बताया है । वामी कौन होना चा हए ? ( १ ) वह , जो कम का
फल दे सके । फल य कर दे गा ? संसार के बनाने से अथात ् कृ त को कारण से कायाव था म लाने से ; ( २ )
सबक ठ क - ठ क र ा करने से क कह ं काय , काय प धारण करते ह कारण म प रव तत न हो जाए , ( ३ )
जीव तथा ाकृ तक पदाथ का भो य - भो ता का स ब ध बना रहे और अपनी असीम शि त से , जो फल दे ने म
यु त होती है । सी मत शि तवाले जीव और ाकृ तक पदाथ , अपनी ससीमता से ववश ह क परमा मा का
दया हुआ कमफल भोग । परमा मा का असीम ान इसी असीम शि त म सि म लत है । सरकार ( अथात ् वह
सरकार जो सरकार के गुण को रखती हो ) जा पर इस लए अ धकार का औ च य रखती है य क वह जा से
अ धक समझदार और जा के अ छे - बरु े से अ धक प र चत होगी । माता - पता का ब च पर अ धकार इसी लए
है क वे ब च के भले - बरु े को न केवल जानते ह , अ पतु यवहार म भी उसे लाने क मता एवं न चय रखते ह
। इसी कार परमा मा भी है , य क वह सव भी है , और र क भी , न चय से भी तथा कम से भी ।”
मौलाना ने वा म व के स ब ध म हमारे दाश नक ि टकोण क आलोचना करते हुए , वेद के परमा मा
को कह ं ' डाकू ' बनाया है , कह ं सवथा ‘ असमथ ’ , इ लामी मखलक से भी गया - बीता । यह मौलाना क
दशनशा से उदासीनता का योतक है । हम कह चक ु े ह क मौलाना का ता वत वा म व तो एक मपण ू
वचार है , जो परमा मा म है ह नह ं , और हमने िजस वा म व का वणन कया है वह एक गुण है , िजसम ई वर
तथा जीव दोन साँझीदार ह , य य प यह सांझादार पण ू पेण नह ं , आं शक है ।
दे खये , लोहा एक धातु है िजससे आप ह थयार बना सकते ह । ह थयार बन सकता है या नह ं ? आप इसे
गलाकर सयाल बनाना चाह , बना लगे ; इसी कार आप उसे जो प दे ना चाह , दे सकगे , आपका अ धकार पण ू है
, आपका वा म व परू ा है , आप उसे जो चाहते ह बना दे ते ह , आप उसके वामी ह । हां , आप उसका अभाव नह ं
कर सकते । जरा अ लाह मयाँ से कहो क अभाव कर दे ! स जी को आप काट सकते ह , उसे भन ू और तल सकते
ह , पर तु पौधे से जद ु ा हुई स जी को फर हरा नह ं कर सकते । जरा अ लाह मयाँ से क हये क कर दे । एक बकरे

30
को पकड़कर क ल कर दे ना और उसे भन ू कर खा जाना आप उ चत मानते ह , आप यह कर भी सकते ह । परमा मा
करे वह समय आ जाये जब यह उ चत न समझा जाये और आप कर भी न सक ; पर तु अभी तो आपका बकरे पर
अ धकार है , पर तु भन ू े हुए बकरे को आप फर जी वत नह ं कर सकते । या कुरआन का खद ु ा यह कर सकता है ?
कभी यह चम कार भी दे ख ! ल िजये , मौलाना को पहले तो ई वर से अ त र त कसी के वा म व से इ कार था ,
अब मान भी गये और उसका कारण भी बताते ह । प ृ ठ १४२ पर लखते ह — “आय ! तम ु पछू ा करते हो क
मस ु लमान ने जब घोड़ - गध को पैदा नह ं कया तो उनपर अ धकार य रखते ह ? और कस कारण से उनपर
वा म व रखते ह ?” ीमन ् , जब अ धकार भी रखते हो , उनका उपयोग भी करते हो , तो पहले ई वर से
अ त र त के वा म व पर इतना तफ़ ू ान य उठाया ? हाँ , अब बताइये , आपने जब उ ह उ प न नह ं कया तो
वामी य ह ? उ र म फरमाते ह - “य य प घोड़े - गधे को हमने उ प न नह ं कया , तो भी उ प न करनेवाले
खद ु ा का ' परवाना ' ( कुरआन क आ ा ) तो हमारे पास है !” ( प ृ ठ १४४ )
स भव है इस उ र के स मख ु आपक इ लाम - स ब धी धा नतम तक हो जाए , पर तु दशन तो
मौन नह ं रहे गा , िजसक ि ट म इस परवाने का कोई मू य नह ं । आपको तो कुरआन क सचाई दाश नक
ि टकोण से ततु करनी है । कुरआन तो ववादा पद है । आप ववादा पद को माण प म उपि थत कर रहे ह
, यह दाश नक ान का ब ढ़या माण है ! एक गीदड़ के हाथ कह ं से काग़ज का एक टुकड़ा लग गया , लगा वह
अपने गीदड़ भाइय को दखाने क वह परवाना है - िजसे परवाना दखाया जाएगा वह सलाम करे गा और भट दे गा ।
एक दन वा ता एक संह से पड़ गया । ी ंग ृ ाल - वलसलाम को भागना ह पड़ा और जब सजातीय ने पछ ू ा क
मयाँ , वह परवाना दखा दो तो उनका स तोष इस रह य को बताकर कया क शेर अनपढ़ है । मौलाना ! दशन भी
अनपढ़ शेर है । उसे फर भी आ ेप करना है । वह पछ ू ता है क आ ख़र अ लाह मयाँ ने कस बु धम ा से यह
परवाना आपको दे दया ? मख़लक ू होने के कारण मनु य , बकरा , घोड़ा , गधा , सोना - चाँद उसके लए सब
समान ह तो फर एक मखलक ू मारकर खानेवाल और दस ू र मार जानेवाल , एक मखलक ू सवार और दस ू र सवार
, एक शो षत और एक शोषक य बना दये गये ?
दस ू रे श द म , एक वामी और दस ू रा दास य बनाया गया ? क हये — या अ लाह मयाँ क इ छा से
? इस कार क वे छाचा रता तो तर गय क होती है - अफ़ म क पीनक म कसी को कुछ और कसी को कुछ
बना द , अ लाह मयाँ तो तर गी नह ं ? और मौलाना , वह परवाना आपको तो सन ु ाया गया , या बकरे को भी
सन ु ाया गया क तम ु पर एक बादशाह भेजा जाता है , जो तु ह खा जाएगा ? और फर इ सान खाने - ह - खानेवाला
है या खाया जानेवाला भी ? कभी नह थे कसी चीते के स मख ु आ जाएँ तो परवाने का मू य लग जाए ।
दशन के इन न का तो एक ह उ र है क ई वर मनु य को जीव म सबसे अ धक बु धमान ् जानता है ,
उसे वामी बना दे ता है और सब व तओ ु ं पर उसे उ चत उपयोग का अ धकार दे ता है । मनु य म भी अपने
सजातीय से — िजसे अ धक व वान ् , अ धक बु धमान जाना , उसे अ पबु धवाल पर अ धकार दे दया ,
य क ई वर का अपना अ धकार पण ू ान अथवा सव ता के आधार पर है । इसके व ध य द वा म व का
अ धकार उ प न करने के आधार पर होता , तो सांसा रक मा लक को भी दास को उ प न करनेवाला बनाया
जाता । सांसा रक वा मय का कम - वा म व अधरू े ान के कारण है और ई वर का पण ू - वा म व पण ू ान के
कारण है ।
चौथे तक क या या म मौलाना एक अ ासां गक ववाद म जा उलझे ह जो ९० प ृ ठ म भी परू ा नह ं हो
पाया । प ृ ठ ३८ पर आपने अपने आ ेप को सं त प म लखा है । या या दाश नक ि टकोण से र हत है ,
अत : उसपर वचार करने क कोई वशेष आव यकता नह ं ; हम केवल सं त न को लेकर ह मौलाना क
तकसंगत बात का उ र दगे । मौलाना लखते ह - ( क ) “ य द ई वर जीव पर अ धकार करके उसे उपयोग म न
लाता , तो या जीव न ट हो जाते ? ” ीमान ् जी , अ धकार कया नह ं गया , अ पतु अना द काल से है । जीव को
अन वर आप भी मानते ह और हम भी । अ तर आपम और हमम इतना है क आप ई वर को जीव का रच यता भी
मानते है । आप ह बताइये , य द आपके म त यानस ु ार ई वर जीव को उ प न करके उस पर अ धकार न करता ,
अ पतु उसे वत ह रहने दे ता , तो या जीव न ट हो जाते ? अथवा ( ख ) “ जीव का कोई गण ु न ट हो जाता ? ”
इसका उ र भी वह है , जो ‘ क ’ भाग म आया है । जीव उ प न कया हो अथवा अनु प न , ई वर के वा म व -

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अ वा म व का उसके शेष गण ु पर कोई भाव नह ं ; और फर अ धकार करने - न - करने का न आप पर तो
आता है , हमपर नह ं । हम तो ई वर , जीव , दोन को अना द मानते ह । उनका आपसी स ब ध , वामी - दास
का भी अना द मानते ह । आप जीव क उ प मानते ह , अ धकार तो उ प न करने के प चात ् होगा । न
आपपर है क य द जीव को उ प न करके ई वर उसपर अ धकार न करता , तो जीव का कौन - सा गुण न ट हो
जाता ? ( ग ) “ या जीव द:ु ख म फंस जाते ? ” यहाँ इस म त य पर भी यान द क सनातन काल से नरवयव (
without combination ) पदाथ अपनी नरवयवता से थककर शर र म ब द होना चाहता है ।

यहाँ आपका संकेत हमारे इस स धा त क ओर है क हम आ मा को नरवयव मानते ह , अथात ् जीव


सावयव नह ं । आप जीव क वा त वकता से अप र चत नह ं , जैसे क भू मका म लखा जा चक ु ा है । पर तु स य
तो स य ह है ! जब आपने आ मा क स ा को वीकार कर लया तो उसके गण ु भी वह मानने ह गे जो जीव तथा
कृ त के ह , और दाश नक व वान ् जैसा कहते ह । आपने वयं प ृ ठ १४५ पर जीव के स ब ध म लखा है क
“जीवा मा अकेल तथा अवयवर हत है , कुछ त व से उसका नमाण नह ं हुआ ।” ल िजये , आपके मजहब म भी
जीव अवयवर हत है ; और शर र से स ब ध होने म उसका नरवयव होना वरोधी है , तो इस आ ेप को पहले
अपने ऊपर कर ल िजये । सनातन काल से न सह , उ प न होने के प चात ् सह , एक नरवयव स ा अपनी
अव था से थककर शर र म ब द होना चाहती है । व तत ु : नरवयव का वपर ताथक तो सावयव है ; शर र से
स ब ध उसका वपर ताथक नह ं है । जीव पहले भी नरवयव था , अब भी अवयवर हत है , आगे भी रहे गा । शर र
से स ब ध होने को सावयव होना तो नह ं कहते ? मिु त क अव था म यह शर र का स ब ध भी टूट जाता है ,
पर तु अब शर र से स ब ध है ; सनातन अव था न यह है और न मो वाल , य क हर मो से पव ू शर र से
स ब ध और हर शर र - स ब ध से पव ू मो क दशा रह है । मो तथा शर र से स ब ध उतना सनातन है
िजतना ई वर का जीव पर अ धकार । हाँ , इस अ धकार म प रवतन नह ं होता ; मिु त तथा शर र से स ब ध क
दशा बदलती रहती है , य क यह आ मा के वकम पर आधा रत है , ई वर तो कमफल - दाता ह है ।
( घ ) “य द जीव पर ई वर अ धकार न करता तो वह अप व ता के समु म व ट हो जाता ।” हम नह ं
जानते क अप व ता के समु से आपका या अ भ ाय है । य द नरक से है तो वह तो न चय ह अ लाह मयाँ
क अन धकार - चे टा का प रणाम है । पहले तो उसने जीव को वयं उ प न कया और वैसा बनाया जैसा वह
चाहता था , अथात ् पापी । य द जीव को वह पापी न बनाता , तो उसका कौन - सा गण ु न ट हो जाता ? शायद ‘
क हार ' ( अ याचार ढानेवाला ) को वयं को क हार मा णत करने के लए जीव म पाप करने क मता द । जब
जीव ने उस मता का उपयोग कया , अथात ् अपने कता के कत व को साथक स ध कया , तो उसे नरक म डाल
दया । थम तो ई वर य द जीव को न बनाता तो या कमी आ जाती ? अपनी रचना - शि त का नशाना कसी
और को बना लेता ! बनाया था , तो पाप करने क मता न दे ता , मता द थी तो द ड का वधान न करता ।
कसी ने सच कहा है - “ ए म , दया है समु के म य म तन ु े मझु े बाँधकर डाल दया है और फर कहता है क
व का कोई भाग भीगने न दे ना , यह कैसे स भव है ?”(१) दस ू रे मसु लमान क अपे ा का दया नय का नरक
न वर सह , पर तु न वर नरक म भी कौन गरना चाहता है ? कसने आवेदन - प दया था क अ ला मयाँ , हम
अभाव से भाव म लाओ हम अि त व दो , और अि त व भी वह िजसम पाप करने क मता हो , और जब म उस
मता का उपयोग क ं , जो आपने वयं द , तो नरक म डाल दो , आ खर यह कहाँ का याय है ? थम तो पाप
का मल ू कारण ई वर ह ठहरता है । य द यह न भी मान , तो पाप करने म उसक सहायता तो है ह , इसका कुछ
द ड तो होना चा हये ! वह का तल , वह मखु बर है , वह मनु सफ़ भी । अकरबा मेरे कर खन ू का दावा कस पर ?
अथवा ( ड ) “ या ई वर के अ धकार म आकर जीव द:ु ख से छूट गया और धरती पर कु े , सअ ु र , ब ले , ब दर
इ या द नह ं रहे ?”(२)
—————— यान द——————
१ . दर मयाने कारे - द रया तखताब दम करदा ई ।
बाज मेगोई क दामन तर मकुन हुशयार बाश !

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२ . ब ले - ब दर का संकेत स भवत : आयत ( हमने कहा हो जाएँ ब दर) क और है । यह आयत या एक ह
समि ट के यगु के लए थी , या हर यग
ु म यह आयत चलेगी ? अि तम अव था म न आप पर हो जाता है ।
—————————————

इसका उ र भी ऊपर दया जा चक ु ा है । आप ह बताइये क नरक क स भावनाएँ अभी ह अथवा समा त


हो गई ? आप तो समि ट और यि ट ( कसरत तथा वहदत ) के यग ु को मश : मानते ह , अथात ् कभी खद ु ा
रच यता के गुण को साथक करने के लए संसार बनाने लग पड़ता है , कभी संहारक के गुण के आधीन सब - कुछ
नाश करने लग जाता है । या आज से पव ू कभी लय हुई है या नह ं ? य द हो चक ु है तो लय से पव ू क पापी
आ माएँ दोजख़ म गई या नह ं ? नह ं गई तो इस अ याय तथा दोज़ख़ का वणन ह यथ है । य द गई ह तो पव ू -
काल का दोजख़ तो मट चक ु ा , भ व य म नया तैयार होगा ; और य द अन त काल तक यह सल सला चलना है ,
तो दोजख़ भी अपने कार से अन त काल तक के ह गे । अप व ता तथा पाप का समु अथाह है , और उसका
रच यता होने के कारण ई वर ( खद ु ा ) पाप का टा है । इस पाप का कारण आप िजसे मान , आ ख़र अना द स ा
तो आप एक ह मानते ह !
( च ) अथवा “जीव ज म - मरण के च म व ट होकर प व हो गया और संसार से झूठ , फरे ब , पाप ,
धोखा सब मट गया ।” मौलाना ! मटने क तो बाद म सोचना , पहले यह तो सो चये क इन बरु ाइय का के (
ोत ) कौन है ? आ खर ये सब पाप गण ु ह तो ह ! इनका गण ु ी कौन है ? यान रहे क गण ु ी वह होगा जो अपनी
स ा म वत और अना द ह , और आपक ि ट म वह अ लाह मयाँ ह ह । य द अ लाह मयाँ ने इन पाप को
रचा हो तो उनका गुणी होने क अपे ा और बरु ा हुआ क उसने झूठ , धोखा , कु इ या द पाप को घड़ - घड़ कर
अपने र चत जीव को भट कर दया , अथवा जीव को यह मता दे द क वे यह पाप कर सक , न कर तो ई वर -
द मता यथ जाए , अथात ् ई वर क द शि त का योग न करके उस शि त को यथ स ध कर ; य द इस
मता का उपयोग कर तो दोजख़ म जाएँ ।
रहा इन बरु ाइय का बाक़ रहना , सो आप ह बताइये क जब खद ु ा ने सदा जीव को उ प न करते रहना है ,
तो या उसने कसी आपके प व थ म यह व वास दलाया है क भ व य म उ प न होनेवाले जीव सारे - के -
सारे धमा मा ह गे ? रचना का ई वर का गण ु आपके म त य म नि चत है , अन त काल तक यह गण ु चलता
रहे गा , तो बतलाइये , भ व य क रचना म ये पाप रहगे या नह ं ? य द नह ं रहगे तो खद ु ा का पाप के सज ृ न का
अब तक का गुण , क वह पाप क सिृ ट करता रहा , और नह ं तो पाप करने क मता ह दे ता रहा , या खद ु ा का
यह गुण भ व य म न ट हो जाएगा ? अथवा ( छ ) “ जीव पर ई वर के अ धकार से कोई स तोष द प रणाम
नकला हो , अथात ् जीव को सदा का मो मल गया हो , और अब उसे प व होने के प चात ् द:ु ख से छूटने के
साथ , द:ु ख का भय भी न रहा हो ।”
इस ल बे ववाद म , जो अपवाद - प म आप ले आए ह , आपने मो के सा त अथवा अन त होने पर
वचार कया है । आप मो को शभ ु कम का फल नह ं मानते , अ पतु परमे वर क कृपा का प रणाम मानते ह ।
खदु ा के करम ( कृपाएँ ) अन त ह , अत : उसका प रणाम ब ह त अथवा नजात ( मिु त ) भी आप अन त मानते
ह । ल िजए , आपका म त य आपके दस ू रे म त य से कटता है । आप खद ु ा म उ प न करने और वन ट करने के
गुण को अना द मानते ह । आपका व वास है क कभी खद ु ा को समि ट का यग ु आन द दे ता है , तो वह अपने
अ त र त अ य जीव को अि त व दान कर दे ता है , और जब उसे यि ट प म च जागती है , तो अपने
अ त र त शेष सबका वनाश कर दे ता है । तो ये चय के दौरे पहले भी तो आ चक ु े ह गे , य क ये अना द ह ?
य द आ चक ु े ह , तो जब यि ट का यग ु था तब सारे ब ह त - दोजख़ समा त कर दए ह गे ? य द ऐसा न करता तो
यि टपन म कावट होती ; य द सबको मटा दया तो फर ब ह त सदा कैसे रहा ? उसक भी वह अव था रह जो
हमारे मो क ; तब ई वर क अन त कृपाओं को या क िजएगा ? य द आपका व वास यह हो क यि ट के दौरे
से पवू वग - नरक बनाए ह नह ं थे , तो इससे पव ू समि ट के यग ु के जीव को कम - फल कैसे मला ? आ खर
यि ट के यग ु म तो वे सब समा त हो गए ह गे , उसके प चात ् उनका ज म अस भव ; जो रचे जाएँगे वे नए ह गे ।
य द उ ह फर जी वत कया जावे िज ह लय के यग ु म मटा दया , तब वनाश पण ू न हुआ ! आप कसी प से

33
सोच , आपक ज नत ( वग ) उतनी ह न वर है िजतना हमारा मो , अ पतु इससे भी अ धक , य क खद ु ा के
समि ट - यि ट क च के दौरे पर कोई तब ध तो नह ं ! वह ठहरा का रदे - मत
ु लक ( सवशि तमान ् ) , य द
अभी यि ट क च जाग उठे , तो वग समा त !

◼ का दयानी ब ह त ( वग ) पर एक ि ट ◼

इ लामी ब ह त ( वग ) का जो प जन - साधारण के स मख ु रहता है , सर सैयद अहमद उसे घ ृ णत


थान से उपमा दे ते ह । वह प जनता म स ध है , अत : उसपर अ धक आलोचना क आव यकता नह ं ।
अहमद म ने वग का वह प बदल डाला । ब ह त क हुर ( अ सराएँ ) , ग़लमान ( सु दर छोकरे ) , शराब ,
शहद ( मधु ) इ या द व तओ ु ं को आि मक आन द के प म तत ु कया । इसी स दभ म वाजा कमालु द न ‘
िज दा मजाहब क का स ' म ल दन म इ लाम क शंसा करते हुए लखते ह - “ या आि मक वग का वचार
इससे सु दर प म उपि थत कया जा सकता है ? न चय ह कुरआन म बाग , व ृ , दध ू , मधु , मेवे इ या द
कई व तओ ु ं का वणन है , पर तु ये श द केवल अलंका रक श द ह । ” पर तु यह मोड़ अहमद जमात के
का दयानी ुप को पस द नह ं । जब एक बार शार रक सख
ु का च का पड़ गया तो उसे छोड़ना क ठन ह तो है ! -

छुटती नह ं है मंह
ु से यह का फ़र लगी हुई !

ी मौ० मह ु मद इसहाक तो आय के मो को अस भव अव था सी बताते हुए लखते ह - “जब संसार म


कोई सख ु शर र के बना ा त नह ं हो सकता , तो दस ू र द ु नया म कैसे ा त होगा ?” हम ऐसा लगता है क
मौलाना ने तो या , मौलाना के बड़ ने भी कभी समा ध क अव था का आन द नह ं उठाया । नह ं तो यहाँ ह
वाणी मक ू हो जाती । खैर , यह तो कुछ दरू क बात है और सतत तप या के प चात यह अव था ा त होती है ।
कभी आप पल - भर के लए ई वर के यान म म न हुए हो ? आ ख़र आप धा मक व ृ के मस ु लमान ह , भि त
का आन द कभी तो मला होगा ? या इस आन द क अनभ ु ू त शर र तथा इि य से होती है ? और या इस
आन द क तल ु ना म शार रक सख ु का कुछ मू य है ? आय का मो केवल आि मक आन द क दशा है ,
िजसका कुछ प ई वर क भि त म एका ता ा त करने पर हम यहाँ भी दे खते ह । समा ध थ योगी को भी कुछ
काल के लए वह आन द क अव था ा त हो जाती है । पर तु मौलाना क ि ट म भि त के ण म भी या
होता होगा ? लखा है — “ब ह त म ख़ा लस शहद क नहर ह गी ….. हर कार के प व प य का मांस भी वहाँ
मलेगा ।” ( प ृ ठ १०९ )
इस मांस के लए या ब ह त म नये प ी उ प न कये जाएँगे , अथवा इस संसार से ब ह त म प य को
transfer कया जाएगा ? अथात ् या ब ह त म मनु य के अ त र त प ी भी जाने के अ धकार ह गे ? या उ ह
क ल भी कया जाएगा ? इस कत य को कौन ई वर भ त मो मन नभाएगा ? खैर , आपका ब ह त सलामत !
वहाँ ह या तो होगी नह ं , पर तु आपको या ? आपको तो खाने के लए मांस चा हए । फर फ़रमाते ह - “मोती के
समान सु दर ब च का मधब ु ाला बनकर प व शराब के याले , फर इन याल पर वग - नवा सय क आपस
म श टाचारपण ू छ ना - झपट , फर नवयव ु ती , सु दर , गोरे रं ग क , काल आंख वाल , समान आयु क कुमार
, लजालु प व पि नयाँ - एक नह ं , दो नह ं , तीन नह ं , अ पतु स र - स र ( ७० ) ह गी , पर तु आपस म ई या
का नाम नह ं होगा । कोमलता इस कार क क प डल का गदा ( मांस ) नजर आएगा ।” ( प ृ ठ ११० )
हम तो आपके इस कथन से ह अनम ु ान लगाते ह क मस ु लमान य फसाद म ायः लोग क पि नय पर
हाथ उठाते ह ? जहाँ नमाज का , कुआन के पाठ का , यहाँ तक क हर धा मक कृ य का ल य प डल का गुदा ,
काल आंख , गोरा प ा त करना हो , वह भी एक नह ं , स र - स र , वहाँ शाि त तथा अ न का च न भी कैसे
मल सकता है ? कसी का या स मान सरु त होगा ? शार रक सख ु का प रणाम तो ग दगी का ढे र ह है ।
मौलाना जो मांस भ ण करगे । तो उसका भी मल बनेगा या नह ं ? इसके लए ब ह त म मेहतर का ब ध भी तो
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चा हए ! या मेहतर भी ब ह त के सख ु को ा त कर सकगे ? ीमा जी , शार रक सख ु के साथ शर र क घ ृ णत
व तए ु ँ भी साथ ह । आप फर लखते ह - “इस संसार म कई सख ु से उकता कर दस ू रे सख
ु क इ छा जागती है ।
यह बात संसार म शार रक अंग क दब ु लता , यहाँ के पदाथ क ु ट के कारण है ।“ ( प ृ ठ ११४ ) फर फ़रमाते ह -
“ब ह त म न रोग ह , न हमारे खान म य त रहने इस संसार म से माल म कमी , न कत य से माद !” ( प ृ ठ
१२४ ) “शराब ाय : कड़वी होती है , पर तु ब ह त क शराब अ य त मधरु । ( प ृ ठ १२७ )“ स र - स र हुर ह गी ,
पर तु इस संसार के समान बरु ा प रणाम न होगा क एक पु ष अ धक ि य को नह ं संभाल सकता , अतः वे दस ू रे
पु ष क ओर च लेने लगती ह । वहाँ पु ष म दब ु लता तथा ु ट नह ं होगी ।” ( प ृ ठ १२९ )
न यह है क हूर ( अ सराओं ) का पु ष करगे या ? बना वह जो यहाँ करते कुछ और ? यह मान लया
क पु ष म दब ु लता नह ं आएगी , य क ब ह त म आपने पु ष म शि त संसार के पु ष से कई गन ु ा अ धक
मान रखी है , तो या इसी हसाब से ि य म भी शि त होगी या कम होगी ? मोमनात को या मला ?
शि तशाल पु ष ? जो एक - एक स र - स र का प त हो ? चलो , इसे छो ड़ए क आप ने ब ह त म शि त क
ीणता को रोकने तथा बाल ब च के पैदा न होने के या उपाय कये ह , य क यहाँ भी स तान क अ धकता को
रोकने के उपाय ह , मगर वग म इनपर या तबंध होगा ? हम तो रह - रहकर यह वचार आता है क वग म
कम या होगा ? इन हूर - ग़लमान म मनु य का या करते समय बीतेगा ? फर आप कहते ह क कत य -
पालन म भी माद न होगा । या वहाँ हूर - गलमान के वासनामय जीवन म नमाज होगी ? अथवा यह सख ु ह
नमाज समझा जावेगा ? इसका उ र आपने पहले इस कार दया है - “हम ब ह त म केवल शार रक सख ु ह नह ं
मानते , अ पतु उससे बढ़कर आि मक आन द पर व वास रखते ह ।” ( प ृ ठ १३४ ) ठ क , तो हूर - शलमान का
सख ु तो आि मक सख ु म सि म लत नह ं ; तो जनाब , इन दो कार के सख ु म स नता क कमी - बेशी तो होगी
ह ; या नह ं ? य द आि मक आन द शार रक सख ु से अ धक सख ु द हो तो या अ छा न होगा य द शार रक सख ु
के थान पर भी आि मक आन द ह मले ? य क जो समय शार रक सख ु म कटे गा , वह और आि मक सख ु
से तो वं चत करनेवाला समय होगा ! एक ाथना भी यहां करनी है क उन आि मक सख ु क ाि त शर र के कस
अंग से होती है ? य द यह सख ु शर र क सहायता के बना सीधा आ मा को ा त हो सके तो या आप अपने
म त य पर दोबारा ि ट पात करगे ?
“आय का मो एक व च अव था का नाम है , िजसका वणन सन ु कर जरा भी मो - ाि त क इ छा
नह ं होती , य क हमने इस संसार म शर र के बना केवल आ मा क अनभ ु ू त का कोई उदाहरण नह ं दे खा ।” (
प ृ ठ १९ ) ीमन ् , उदाहरण तो आपको भि त के े म दखा दया और ब ह त क आि मक आन द क अव था
म भी , य द अब भी मानने से इ कार है तो शर र के उस अंग का नाम बताइये िजससे आि मक आन द ा त होता
है । अंतर इतना रहा क आय के मो म केवल आि मक आन द है , जो सव म है , आपके ब ह त म आि मक
सख ु के अ त र त हूर से शग ु ुल भी है जो आि मक सख ु क तल ु ना म तु छ है । और या आपसे भी हूर से
स ब ध का वह उदाहरण माँगा जा सकता है , िजसम दब ु लता या ीणता न उस शराब का नमन ू ा मांगा जा सकता
है िजससे बु ध का नाश न हो ?
उस भोजन के स ब ध म उदाहरण पछ ू ा जा सकता है , िजसके अ धक खाने - पीने पर भी पेट न भरे , और
न रोग हो ? या यह ब ह त संसार म स ध तथा च लत अव था का योतक है । आय के मो पर आ ेप
कया , और अपने ब ह त को ह खो बैठे ! आ खर आपने ह तो लखा है - “अ स ध व तओ ु ं क ओर मनु य का
यान नह ं जाता ।” ग़र ब मोमनात ( मो मन ि य ) का या बना , यह हम नह ं समझे , उनक शि त बढ़ या
कम हुई और उस शि त का उपयोग ?
मौ० महु मद अल अपनी कुआन क या या म तथा वाजा कमालु द न अपने व त य म लखते ह क
'हूर ' ( अ सराओं ) से अ भ ाय इसी संसार क पि नयां ह , जो अपने प तय के साथ वग म जाएँगी । पर तु वे
वग म स र - स र क सं या म कैसे हो जाएँगी ? और य द प नी अपने काम से वग क अ धका रणी न हुई ,
तब ? या उसके नरक म रहने तक वग म रहनेवाला प त मचार रहे गा ? और य द प तदे व अपने अशभ ु कम
से नरक को ा त हुए तो उनक प व प नी वग म प त क ती ा करे गी ? अथवा दे वी के प व कम का फल
उतने समय के लए टाल दया जाएगा ?

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◼ ान क कमी ( अ प ता ) ◼

पाँचव तक का उ र -
कुछ दे र के लए हम अपने ववादा पद वषय से अलग हो गए थे , इसका कारण मौलाना का एक वषय पर
वचार - व नमय से हटकर दस ू रे अस ब ध वषय पर ववाद करना रहा । हम इस वषय पर अ धक नह ं लख
पाये, केवल मौलाना को उनक ि थ त क दब ु लता दखाना हम अभी ट था ।
मौलाना महोदय का पांचवां तक कुआन क एक आयत पर आधा रत है । इस आायत म जीव के व प के
स ब ध म न कया गया है - “यस लोनक अल ह ?" अथात ् 'लोग तझ ु से पछ
ू ते ह क जीव या व तु है ?'
उपयु त तो यह था क मौलाना सव थम कुआन शर फ के श द म ह आ मा के व प को बता दे ते , पर तु
उनका बहुत झझक के प चात ् कुआन से इस वषय को कहना मा णत करता है क वयं मौलाना को कुआन क
बताई प रभाषा से स तोष नह ं है । सु नये कुआन का इस न पर उ र - कुल अल ह ?

“ऐ मह
ु मद ! कह क जीव परमा मा के आदे श से ह और तम
ु नह ं दये गए हो ( इसका ) ान , पर तु थोड़ा - सा ।”

यह वह अनव ु ाद है जो ाय : मस ु लमान इस आयत का कया करते ह । हजरत इमाम ग़जाल से पव ू इस


आयात क यह या या च लत थी , और अब भी है । मौ० आजाद सब ु हानी , िजनके व त य क भू मका से यह
उ धरण ततु कया गया है , इस आयत क ओर संकेत करते हुए लखते ह - “जीव के स ब ध म न कया
गया था , पर तु य द उ र दया जाता तो यह ं से इ लाम म यथ ववाद ार भ जाता ।” इन श द का अ भ ाय
प ट है क कुआन ने न का उ र नह ं दया , बि क नकता को यह कहकर टाल दया है क तु ह बहुत थोड़ा
ान दया गया है । न पर कुआन का अ लाह वयं रसल ू और उनके सा थय को कुछ काश डालने से इ कार
करता है । इसपर का दयानी मौलाना का वाद - ववाद करना वयं को रसल ू या उसके सा थय से अ धक व वान ्
मा णत करने का यास नह ं तो या है ? स य यह है क कुआन और कुआन का लेखक आ मा तथा उससे
स ब ध न को अपने मजहब से दरू ह रखना चाहता है । स भव है इसका कारण उस यग ु क ( जब कुआन बना
) अ ानता हो , अथवा इस इ कार म कोई और नी त काय करती हो ।
इमाम गजाल कुआन क आयत क इस या या से सहमत नह ं । कुआन म कहे श द “अमरे र बी” म '
अमर ' के अथ वह नरवयव का उ प न करना मानते ह , सावयव का नह ं । यह गजाल महोदय क अपनी
या या है । मौ० सब ु हानी लखते ह - “ याय यह है क आयत म जीव के स ब ध म व तार से नह ं है , और
व तार से न होना ह उपयु त है ।
या याकार का मत है क उपयु त आयत न के उ र म मौन है । अहमद म ने इस वषय म अपना
म त य मौ० गजाल क या या के आधार पर बनाया है । ी मह ु मद इसहाक साहब लखते ह — “जीव केवल
ई वर के आदे श से कट होता है । वह न सावयव है और न सनातन , बि क नरवयव और उ प न हुआ - हुआ है ।
” ( प ृ ठ १४६ ) आयत के दस ू रे भाग का भाव प टतया यह है क तु ह आ मा स ब धी न के स ब ध म
थोड़ा ान दया गया है , इससे अ धक पछ ू ने का यथ यास अथवा द ु साहस न करो । पर तु इन महोदय को इन
श द - म आ मा के सा द होने का माण लगता है ; लखते ह - “ तम ु को थोडा - सा ान है , अथात ् केवल इस
ज म का , इससे पव ू कसी ज म का तम ु को कोई भी ान नह ं । इससे स ध हुआ ! इससे पव ू कोई ज म न था ,
अत : आ मा अना द नह ं ।” ी गजाल तो केवल ' अमर ' ( आदे श ) श द क या या तक पहुंचे थे , पर तु इस
या या को कई सौ वष नकल गए । इस वषय म कुछ तो ग त होती चा हए थी । अत : अब ‘ थोड़ा ान ' क भी
या या क गई क ‘केवल इस ज म का ान' । वे अथ कस कोश के आधार पर कये गए है ? या कुआन के
लेखक के पास श द कम थे क 'इ मे - कल ला' ( थोड़ा ान ) के थान पर ‘इलाअलयात मौजद ू ा ' - 'इस ज म के

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ान ' श द न लख और वयं मस ु लमान म , ववाद का सदा का कारण ततु कर दया ? वा त वकता यह है
क वय का दयानी महानभ ु ाव कुआन के इस कथन से स तु ट नह ं ह । इस कथन म शाि दक हे रा - फेर नह ं कर
सकते तो अथ क हे रा - फेर तो रोज करते रहते ह ।
अब हम मौ० साहब के तक का व लेषण करते ह । इस तक का आधार यथ ह कुआन क आयत को बना
दया गया है । तक गलत है , इस तरह से कुआन को यथ म ग़लत होने का बोझ लेना पडगा । मौ० का तक है क
य क कसी पव ू - ज म का ान हम नह है , अत : इस ज म से पव ू कोई ज म हुआ ह नह ं । या मौलाना ने
इस तय पर कभी यान दया है क इस ज म क भी कई घटनाएं कुछ काल प चात ् म ृ त से खो जाती है ? या
भलू जाने के कारण इन घटनाओं के व तत ु होने पर भी कोई स दे ह होगा ? मौ० आय के इस तक पर फ़रमाते ह
क जहाँ कई ऐसी घटनाएँ ह जो कुछ काल पशचात ् भल ू जाती ह , वहां कई जीवन - तय ऐसे भी ह जो भल ु ाने पर
नह ं भल ू ते जैसे आय को पं० लेखराम का ब लदान - दवस सदा याद रहता है । अ छा होता य द मौलाना इस दख ु द
घटना के थान पर कसी और घटना का वणन कर दे ते , या कम - से - कम लेखनी से न तर का काय न लेते ।
आप लखते ह क “इलाया द ु मने नादानो बेराह , बतरस अज तेगे - बरु ाने मह ु मद ।” ( ऐ नादान ! श ु मह ु मद
को तेज़ तलवार के वार से भय खा । ) के अनस ु ार “महु मद-सल-अला सलेह-वा सलअम क तलवार के तेज वार ने
तु हारे सपह - सालार का खा मा कर दया था।”
उपयु त प य , अथस हत मौ० गुलाम अहमद का दयानी का है इसम हुता मा पं० लेखराम को क ल क
धमक द गई है । पं० जी क क ल करनेवाला एक मस ु लमान था , जो आया तो था शु ध होने , और पं० जी से आय
धम क श ा लेने , पर तु नकला बबर अ याचार । ऐसे कायर को हजरत मह ु मद क तलवार बताना मह ु मद
साहब के मह व को बढ़ाना तो नह ं हो सकता ! न चय ह यह तलवार जनाब का दयानी पैग बर क थी । पं०
लेखराम का ब लदान , और वीरता पण ू ब लदान म भय का थान ह नह ं । इस ब लदान ने तो म , श ु , सबसे
शंसा ा त क है और भ व य म भी सदा इस ब लदान का शि त - गान होता रहे गा । हाँ , जनाब मसीह मौऊद (
गुलाम अहमद का दयानी ) क अपनी म ृ यु जो है जा के रोग से हुई , उससे श ा ा त करनी चा हए ।

( ी मनोहर लाल शह द का यह शेर इस अवसर पर हम भल ु ा नह ं सकते , जो उ ह ने मयां का दयानी क इस बरु


म ृ यु पर लखा था -
तू था इलहामशदा और मरा ट ट म ,
यह सजा दाबाए - बा तल क पाई मज़ा ! )

या जाने , हमारा अपना प रणाम या हो , मौलाना । म ृ यु कसी यि त क तलवार से नह ं , अपने कम


क तलवार से होती है । परमा मा सबको शभ ु काय करने क सम ु त दे ! पं० लेखराम क उदारता तो आय - अनाय
सबके लए अनक ु रणीय है क अपने का तल पर भी दया क और अि तम समय म उसे भी मह ु बत से याद कया !
मौलाना के लखने का अ भ ाय यह है क वतमान ज म क कई घटनाएँ , वशेष प से वे घटनाएँ जो या
तो बार - बार दोहराई जाएँ अथवा िजनका यि त के मन पर गहरा भाव रहा हो , मरण रह जाती ह । न यह है
क या बीते ज म म कोई ऐसी घटना नह ं हुई िजसक याद रह जाती ?
आपने वयं आय क ओर से उ र म कहा है क नवजात शशु का माता के तन क ओर जाना , कभी
हँसना , कभी रो पड़ना , पव ू ज म के अ यास का प रणाम है , नह ं तो इस ज म म तो इन काय क श ा हुई ह
नह ं । पर तु मौ० साहब ने इस उ र से वयं आंख मंद ू ल ह ; बताया नह ं क नवजात शशु के ये काय कस द
हुई श ा के कये उस अ यास का प रणाम है ? य द मौलाना बौ धक ( इ मल ु जरान ) चेतना के ान से प र चत
ह , तो उ ह ात हो क कोई भी इरादे से क गई या अथवा अनभ ु ू त , पवू - ज म अथवा वतमान ज म के
अ यास के बना स भव नह ं ।
पव
ू - ज म क अनभ ु ू तय के मरण का दस
ू रा उदाहरण म ृ यु का भय है जो ब चे से लेकर व ृ ध यि त
पर सदै व छाया रहता है । य य प म ृ यु को इस जीवन म वयं कसी ने नह ं दे खा ( फर भी भय है ) इस न का
भी कोई उ र मौलाना के पास होता तो लख दे त;े मातदृ ु ध के समान न को पी ह तो गए !

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पवू - ल खत दोन कम तथा अनभ ु ू तयां हर यि त के जीवन म आते ह और बार - बार आते है । अि तम
( म ृ यु ) क घटना तो हदय को हला दे ती है , इस लए इन तीन का भाव मन पर सबसे गहरा होता है । वह भाव
अथवा सं कार येक जीव हर ज म म अपने साथ ले जाता है ।
इन सब उदाहरण से आँख मंद ू कर मौलाना का कहना है क बचपन क घटनाएँ और अनभ ु ू तयाँ इस कारण
भल ू जाती है क जीव च तन तो वयं करता है , पर तु च तन के साधन मि त क तथा पु टे बचपन म परू े
सश त नह ं होते , इस लए शैशव - काल क घटनाएँ मरण नह ं रहतीं । यह तक कसी का प नक आय से पव ू -
ज म क घटनाओं के व मरण म भी आपने दला दया है । जनाब , कोई माण ह दे दे ते , तक दे नेवाले का नाम
दे दे ते तो बात भी थी । वयं तक घड़ना , कसी का प नक यि त से उसे जोड़ दे ना और फर उस का उपहास
करना कहाँ क श टता है और कहां का तक । कसी बु धवाद से पछ ू लेते क पांच या छह वष म अथवा उसके
प चात भी मनु य का मि त क कसी व तु के मरण के यो य नह ं होता ? य द सचमच ु ऐसा होता तो आप दो
वष के ब चे को बाबा , चाचा , मामा वगैरह बोलना न सखाते ! यह श ा तो शैशव - काल म द जाती है , पर तु
ाय : ब च को इस आयु क कोई और घटना मरण नह ं रहती । और तो और , कई मस ु लमान ब धु अपने ब चे
का इस आयु म ख़तना ( लग के आगेवाले चमड़े के भाग को काट दे ना ) भी करा दे ते ह , इससे ब चे को क ट भी
होता है , उस क ट का मन पर भी गहरा भाव पड़ता है , ब चे के रोने से यह भाव प ट य त होता है , पर तु
या बड़ी आयु म वह इसे याद कर पाता है क अमक ु अव था म अमक ु थान पर उसका ख़तना हुआ था ? और
य द ऑपरे शन भी हो जाए तो या बड़ी आयु म ब चे को याद रहता है ? एक लड़क के तो शैशव - काल म सात
ऑपरे शन हुए , पर तु बड़ी आयु म उसे एक भी याद न था ।
इसपर आपका न है क य द पव ू - ज म म कसी जीव ने हरन के प म कसी संह से म ृ यु दे खी हो ,
तो उसे दस ू रे ज म म मरण य न रहे ! यह मौलाना का स य से आंख मंद ू ना है । भला सात आपरे शन संह के
आ मण से कम भयानक होते ह ? हम म ृ त को जीव का काय मानते ह , शर र के अंग इसम सहयोग दे सकते ह
, पर तु इन अंग पर म ृ त आधा रत नह ं । योगी समा ध थ होकर पव ू ज म के हालात को जानता है । बु ध के
वकास के ाता यह कहते ह क यह पण ू नयम है क शर र के परु ाने भाग धीरे - धीरे जीण होते जाते ह और नये
कण हर ण उन जीण कण का थान लेते रहते ह , यहाँ तक क सात वष म पण ू शर र ह बदल जाता है । य द
मरण - शि त मि त क अथवा पु ठ क शि त ह हो तो परु ाना मि त क और पु ठ के साथ वह म ृ त भी खो
जाए , पर तु ऐसा नह ं होता । घटनाएँ जीव के स मख ु रहती ह और उन घटनाओं का रकॉड ( Record ) भी जीव
के पास ह होता है , पर तु पण ू एका ता और मान सक काश के अभाव म यह प ट नह ं होता । योगी उस परदे
को अपनी एका ता क शि त से हटाता है , अत : योगी के स मख ु वे सार घटनाएँ अपने परू े ववरण के साथ , जो
जीव के पास व यमान थी , योगी को प ट हो जाती ह । तभी तो ीकृ ण ने गीता म अजन ु से कहा - “मेरे और
तेरे कई ज म बीत चक ु े ह , िज ह म जानता हूँ पर तु तू नह ं जानता” -

बहू न मे यतीता न ज मा न तव चाजनु !


ता यह वेद सवा ण न वं वे थ पर तप । ( गीता )

और मौलाना म फ़रमाते ह -
हमचू स जा बारहा रोईदा अम ।
ह त सद हफ़ता क़ा लब द दा अम ।
( मने स ज़ा के समान सैकड़ शर र दे खे ह , मने कई बार ज म लया है ) ।

मौलाना म तो नि चत पेण आयसमाजी नह ं थे , पर तु समा ध - अव था म पहुँचते ह गे , और उ ह ने


उस स य को प ट होकर अपने नाम से कहा , िजसे आय लोग सनातन काल से कहते आये ह । पर तु ीमन ् !
आपने उस घटना का या कया , िजसे पं० लेखराम के आवागमन के माण से उ धत कया है क ाम क धा म

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म मोहनलाल ठाकुर ब दक ू से मारा गया और उसी वष गर बपरु ाम म एक लड़का उ प न हुआ जो तीन वष क
आयु म ब दक ू क आवाज सन ु कर रोने लगा । पछ ू ने पर उसने अपने भय का कारण बताया क पव ू - ज म म उसे
हरब लभ ने ब दक ू से मार दया था । उसने उसके प चात ् हरब लभ को पहचान भी लया और इस घटना का
सबने अनम ु ोदन कया । या यह घटना पव ू - ज म क स ध का प ट माण नह ं ? और य द मौलाना
समाचारप को पढ़ने के अ य त ह , तो इस कार क घटनाएँ प म ाय : आती रहती ह गी ! टे शन
हल वानी के टे शनमा टर यामसु दर लाल गोकुल गए । वहां उनक पु ी एक घर म व ट हुई और अपने
वा य का योग पंिु लग म कया । उसने अपनी पव ू - ज म क माता को पहचाना , अपनी परु ानी चौक पर जा
बैठ , घाट पर आई तो कहा क यह ं मझ ु े एक मकर ( मगरम छ ) ने मारा था । व ृ धा ने इन घटनाओं का
अनम ु ोदन कया ।
ऐसी घटनाएँ भारत तथा यो प के प म ाय : छपती रहती ह । लेखक क ह द पु तक ‘ वै दक दशन '
म भी ऐसी दो घटनाएँ लखी ह । इस कार क घटनाओं ने पि चम के व वान को न केवल जीव के अि त व को
मनवा लया है , अ पतु वे आवागमन के स धा त को भी वीकार कर रहे ह । पर तु भारत के मौलाना ह क जमी
जु बद , न जु बद गुल मह ु मद ' - सारा संसार प रव तत हो जाए , पर तु यह अपनी ढ़वा दता यागने को
तैयार नह ं ह !
ल िजये , अब तो पव ू - ज म का आंख - दे खा माण मल गया , इसपर या क हयेगा ? आपने ऐसे
ब च का व ृ ा त पढ़ा होगा जो बना कसी पव ू - श ण के कई व याओं म पारं गत पाए गए । उदाहरणाथ ,
प का ‘ थयोसो फ ट' म यय ू ॉक के प ‘ईव नंग पो ट' ( Evening Post ) से एक बालक का व ृ ा त उ धत ृ
कया है , जो आठ वष म ह संगीत व या म नपण ु है । बालक के पता का नाम नकोल न डलर है जो अमे रका के
नेशनल आरकै ा का ब धक है । ट ल के थान पर रहनेवाल लॉरं स लई ु स संगर न तीन वष क बा लका है ।
वह यानो पर कई क ठन - से - क ठन गीत गा सकती है । राबल मारो एक व च बालक है , दो वष क आयु म
उसने श ा आर भ क , और साढ़े तीन वष क आयु म इ तहास , भग ू ोल , बौ धक वकास आ द वषय के
स ब ध म व तत ृ प रचय रखता है , लातीनी भाषा म गनती कर सकता है , गान - व या म नपण ु है । इस
कार के अ य भी कई टा त ह । यह पव ू - ज म के अ यास का ह तो प रणाम है , नह ं तो कोई दाश नक उ र
द िजये जो बु धवाद को स तु ट कर सके । अतः आपका यह तक क ‘पव ू ज म का ान नह ं , अतः पवू -ज म
है ह नह ’ं उपयु त उदाहरण के वारा वयं नर त हो गया । अब कृपया अपनी क पना कुआन पर न थोप क
अ प ान का अ भ ाय है केवल इसी ज म का ान । कुआन तो ठ क कहता है क आपका ान अ प है , यथा -
उन घटनाओं का आपको ान नह ं , िजनका ऊपर हमने वणन कया है । ऐसे य का ान नह ं िजसम
मरणशि त ने जीव का नह ं , मि त क का काय कया हो ; ऐसे कसी नयम का ान नह ं क पाँच या सात वष
क आयु के ब चे के पु ठे घटनाओं को मरण करने म स म नह ं होते , इ या द ; और सबसे बढ़कर इस
स धा त का ान नह ं क जीव आवागमन के च कर म रहता है !

◼ येक प रवतनशील व तु न वर नह ं ◼

छठे तक का उ र -
मौलाना ने अपनी छठ दल ल का आधार कुअ न क इस आयत को बनाया है ।
अथ - “संसार म येक व तु ( ई वर के अ त र त और उसके गण ु तथा मह व के अ त र त ) नाशवान ् और
प रवतनशील तथा न वर है ।”
इनसे कोई पछ ू े क ‘न वर है ' कस श द का अथ कया है ? वहाँ तो खद ु ा के अ त र त हर व तु को
नाशवान ् कहा है , तो आप फ़रमाइये क वग ( ब ह त ) म रहनेवाले नाशवान ् ह या न य ? य द आप कह क
वनाश इहलौ कक ( सांसा रक ) व तु का होता है , पारलौ कक का नह ं , तो भी ज नत म रहनेवाले ह गे तो इसी

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धरती के वासी ? हाँ , इतना अव य है क एक बार वे म ृ यु को दे ख चक ु े ह गे । पर तु य द यह म ृ यु ह आपक
ि ट म वनाश है , तब तो हर व तु नाशवान ् भी हो सकती है और न य भी । इस वनाश से तो हम भी इ कार
नह ं । इस म ृ यु पर , िजसके होने से जीव के न य और हमारे वचार म अना द होने पर कोई भाव नह ं पड़ता ,
हम भी वीकार है और आपको भी । हाँ , ई वर इससे बचा हुआ है , तो फर आपने इससे यह अथ कैसे जाना क
जीव तथा कृ त न वर ह ? कुआन को आप ई वर य ान मानते ह , कृपया अपनी अधरू क पनाएँ कुआन से मत
जो ड़ये ! आपका तक है क जो व तु प रवतनशील होगी , अव थाओं को बदलेगी , वह सनातन नह ं हो सकती ,
अ पतु न वर होगी ( प ृ ठ १७२ ) । य द आप इसम एक श द बढ़ा द , अथात ् ‘ जो व त’ु के थान पर ‘जो काय प
म प रव तत व त'ु लख द तो हम भी आपसे सहमत ह । ‘अव था' एक गुण है जो गुणी पर लागू होती है । गुणी
य द काय है तो न वर है , य द काय न हो तो उसे न वर नह ं कह सकते । हर काय का कारण होता है । वह कारण
य द कसी का ‘काय' हो तो न वर होगा , पर तु य द काय न हो तो सनातन है । हम जीव को काय नह ं मानते ,
अत : जीव न वर नह ं है ।
य द आपका आ ह ह है क प रवतनशील व तु चाहे काय हो या कारण , न वर होती है , तब आइये ,
आपके अपने तक से आपका म त य नर त कर । आपक ि ट म सनातन अथवा अ वनाशी तो केवल परमा मा
ह है , य क वह प रवतनशील नह ं , तो कृपया बताएँ , यह ‘ प रवतन ' कसका गुण है ? संसार म प रवतन का
अि त व तो आप मानते ह ह , और यह भी मानगे क यह एक गुण है अथवा या अव था है अथवा शि त ,
अथवा कसी प म मान , इनम कोई भी वयं स ध स ा तो नह ं हो सकती । गण ु को गण ु ी चा हए, अव था को
अव था का के , शि त को शि तमान , प को पवान ् अथात ् गण ु ी । वह गण ु ी कौन - सा है िजसका गणु -
प रवतन है ? या ई वर ? य द वह नह ं , तो ई वर से अ त र त स ा को अना द मा नए । जो अना द न होगा ,
वह गुणी ( जौहर ) नह ं हो सकता ।
अ छा , एक और ि टकोण से वचार क िजए । प रवतन का गुण सनातन है या न वर ? य द यह गुण
न वर है तो ई वर क रचना का गुणी कैसे य त होता रहा ? आपका म त य है क संसार वाह से सनातन है ,
या यह वाह से सनातन संसार प रवतनशील है या अप रवतनशील ? प रवतनशील है तो ववाद कैसा ? य क
येक प रवतनशील व तु न वर होती है । कम - से - कम आपको यह तो मानना पड़ेगा क हर प रवतनशील
व तु वाह से अना द है । इससे आपका म त य ( क जीव - कृ त को ई वर ने उ प न कया ) वयं नर त हो
जाता है । एक पग और आगे बढ़ाइये - आपने संसार को वाह से अना द माना , ता क अना द ई वर के अना द गण ु
‘स ा’ म कावट न पड़े । आप जरा यह तो फरमाएँ क रचना यि ट क होती है या समि ट क ? या सनातन
टा यि ट को रचे बना समि ट के कार को बना सकता है ? बात गहर है , जरा ग भीर वचार शि त से काम
ल । मनु य के कार क रचना आप सनातन मानते ह , य क इसके टा का सिृ ट करना गुण सनातन है । अब
न यह है क या ई वर अना द काल से मनु य के कार को बनाता आया है या यि त को ? यि त के बनाए
बना कार का समह ू तो उ प न हो नह ं सकता । यि त के समह ू का नाम ह समि ट या उसका ‘ कार' है । जब
अना द काल से यि त उ प न होते आए ह तो यि त को अना द मानने म या दोष रहे गा ? न होता है क
यि त प रवतन शील है या नह ं ? आपका उ र 'हां' म होगा , य क अप रवतनशील तो केवल ई वर क स ा है
, तो फर आपके ि टकोण से प रवतन शील भी सनातन हो गए , अत : जीव प रवतनशील होकर भी सनातन है ।
जीव के प रवतनशील होने के ववाद म मौलाना ने जीव के वाभा वक गुण को मटाने का यास कया है
। स य तो यह है क जीव का व प मौलाना क समझ म ह नह ं आया , अत : लखते है “दशन के अनस ु ार जीव
क प रभाषा है - इ छा , वेष , सख ु , द:ु ख तथा ान ।” ( प ृ ठ १७६ ) ।
यह प रभाषा आपको कसने पढ़ा द ? ीमन ् , यह प रभाषा नह ं , हमारे दशन म इ ह ल ग कहा जाता है
। ल ग के अथ ह गुण । इन सबके रहने या न रहने से जीव के अि त व म कोई अ तर नह ं आता । जीव गुण से
तो प रव तत होता है , अपने व प से नह ं । आवागमन का च , और इस वतमान ज म म जीव के यवधान
अ थायी गण ु म प रवतन तो ला दे ते ह , पर तु उसके व प म , िजसका प जीव व है , प रवतन नह ं आता ।
जीव कसी भी अव था म हो ानयु त होता है । आपने न ा का उदाहरण दया क न ा म ान नह ं रहता , य द
ऐसा होता तो गहर नींद से जागने पर आप यह न कहते क म आज गहर नींद सोया ! गहर न ा का ान आपको

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है । आपके जीव के स मख ु गहर न ा के अ त र त और कुछ नह ं था तभी आप ात : काल उठते ह , अपनी न ा
के आन द को मरण करते हुए मजे से कहते ह - “आज खब ू नींद आई !” फ़रमाइये , यह ान का अभाव है या
अि त व ? एक अ य अव था िजसम आप ान के अभाव क क पना करते ह वह पौध क अव था है । ीमान
जी , पौधे फलते फूलते ह , य द आपने जीव - व ान ( Biology ) पढ़ा होता , तो आपको ान होता क पौध के
फलने - फूलने म , उनक जड़ से जीवन - त व का चढ़ाव है जो वन प त के शर र म वह थान रखता है , जो
पशओ ु ं के शर र म र त का वाह । दोन थान पर जीवन - त व के वाह से अंग का सकुड़ना - फैलना होता है ।
जड़ के इस फैलने - सकुड़ने म सय ू का काश बजल के समान ग त दे ता है । पशओ ु ं के ान म ( िजनम मनु य
भी सि म लत है ) शार रक साधन यह पु ठे ह , जो बाहर के भाव को ा त करते ह । ये पु ठे एक ओर तो जीव
क बौ धक या मे सहायक होते ह , दस ू र ओर शर र के जी वत रखने म सहायक होते ह । य द ान का यह
भौ तक साधन काय न करे , तो न तो पशु जी वत रह सक , न उनक बौ धक शि तय का काश अपनी चमक
दखा सके । इस कार आप दे खगे क वन प त - जगत ् म भी जीव का यह ान - त व रहता है , अथात ् उसक
अ भ यि त वन प त - जगत म नह ं हो पाती , य क अ भ यि त का साधनजो पु ठे ह वे अभी वकास का पण ू
प ा त नह ं कर पाये । व तार से दे खना हो तो जगद शच बोस क व व - व यात रचनाएँ प ढ़ये ! सं ेप म
कह तो यह क जीव गुण से प रवतनशील है , व प से नह ं । ऊपर हम प ट कर चक ु े ह क प रवतनशील काय
तो न वर होता है , पर तु प रव तत का कारण न वर नह ं होता ; जीव गुण से प रव तत , कारण है , काय नह ं ,
अत : न वर भी नह ं ।

◼ संयोगवश चम कार कैसे ? ◼

सातव तक का उ र -
जीव - कृ त के न वर स ध करने के लए मौलाना ने अपने सातव तक का आधार कुआन को नह ं बताया
, बि क वयं फरमाया है - “य द यह माना जावे क जीव तथा कृ त सदा से ह , ई वर ने इ ह नह ं बनाया , अ पतु
ई वर के समान अना द ह , और उनके अि त व अथवा गुण म ई वर का कोई हाथ नह है , जीव तथा कृ त
अपने सभी गुण के साथ अना द काल से ह , तो ऐसा मानने पर यह सारा व च संसार और परू ा जगत ् एक
संयोगवश चम कार ह मानना पड़ेगा ( प ृ ठ १८० ) ।” हमने जहाँ तक सा ह य का अ ययन कया है , संयोगवश (
By chance ) उस घटना को कहते ह , िजसके लए पव ू से तैयार न क जाए , जो अनहोनी हो जाए । हमारे
म त य म जब जीव , ई वर तथा कृ त तीन अना द ह और उनका आपसी स ब ध भी अना द है तो पता नह ं
यह 'By chance' का वचार कैसे आ टपकता है ? मौलाना बात को यथ बढ़ाते हुए लखते ह - “इधर - उधर जो
ि ट डाल तो ई वर ने दे खा , कुछ जीव तथा कृ त भी सनातन काल से चले आ रहे ह । बस , स नता क सीमा
न रह । झट उनपर अ धकार जमा लया ( प ृ ठ ८० ) ।”
मौलवी साहब को तक क सं या बढ़ाने का शौक है , अथवा अना द व का वचार आपक थल ू बु ध म
थान नह ं ले सका , नह ं तो ि ट डालने का न ह कहाँ है ? और अ धकार जमाने के अथ भी या ह ? ीमन ् !
ई वर अना द ह , अपने गुण के साथ अना द ह । उनका अ धकार भी अना द है और ान भी अना द । वह सदा से
जानते ह क जीव तथा कृ त अना द ह और उनपर ई वर का अ धकार है । अत : वह न तो संयोगवश इधर - उधर
ि ट घमु ाते ह , न कसी पर By chance अ धकार करते ह । व तत ु : यह संयोगवशात ् काय का दोष तो जीव तथा
कृ त को अना द न मानने पर आता है क पहले तो कुछ था नह ं , एक दन अ लाह मयाँ के मन म तर ग उठ
क चलो , यथ बेकार बैठने से या लाभ ? कुछ बना ह डालो ! फर जनाब ने कुछ जीव बनाए , कुछ Matter (
मा द: ) बनाया । पर तु य द जीव क प रि थ त म रं गारं गी अ तर न हो , सबम समानता ह दखाई दे तो या
मजा आया ? अ लाह मयाँ ठहरे रं गीन ! तमाशा दे खने के शौक़ न ! अत : कसी को अमीर बना दया तो कसी को
ग़र ब , कसी को रोगी तो कसी को व थ । भला कोई पछ ू े , इस अ तर का कारण या है ? या कोई उ र है ,

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सवाय संयोगवश कहने के ? अथवा , आप कहगे ई वर क इ छा । आ खर इस इ छा का कोई कारण ? ( कसी
क जान गई , आपक अदा ठहर ! — अन० ु ) इस इ छा और संयोग म अथ का कोई अ तर नह ं । दशन के
ि टकोण से बना कारण क इ छा का नाम है चड़ चड़ापन ! सिृ ट - रचना म संयोगवश का दोष आप तभी हटा
सकगे जब आप जीव क व भ न वषमाव था का कोई उपयु त कारण बता सक , और व भ न अव थाओं का
उपयु त कारण बना पव ू - ज म के कम के और हो नह ं सकता । पव ू - ज म के कम के लए , जीव का पव ू -
ज म म अि त व मानना आव यक है । पव ू - ज म म अव थाओं क भ नता के लए फर कोई कारण चा हए ,
इस कार आपको अ ततोग वा जीव को अना द मानना पड़ेगा । आपने खद ु ा को सनातन काल से बेकार से बचाने
के लए यह तो मान लया क वह सनातनकाल से जीव को बनाता आया है और सिृ ट क रचना करता आया है ,
पर तु आप जीव क क म , कार ( नौ ) क रचना मान गए ! इसम इतना दोष रह गया क सिृ ट - रचना के
समय अ लाह मयाँ जीव को उ प न कर बाहु य ( कसरत ) म आन द लेते ह और लय के समय अकेला रहने
म सख ु ी होते ह । यह अकेला रहना भी तो अ लाह मयाँ क बेकार का कारण बनेगा । या अ लाह लय के
प चात ् ा टा रहता है या नह ं ? र क का गुण उसम रहता है या नह ं ? आ ख़र लय के प चात ् वह करता या
है ? या उसके ये गुण तब समा त हो जाते ह ? य द आप लय के प चात ् भी पन ु : सिृ ट रचना को मान ल , तो
ई वर के साथ उसके ये गुण भी सदा रह पाएँगे । वह टा भी रहे गा और र क भी ! य द आप दो बाहु य वाल
रचनाओं के बीच अकेलेपन क अव था को समा त कर द , तो हमारे समान आप अ लाह के हर गुण को थायी
गणु मानगे ।
फर भी सिृ ट क रचना म जीव क बाहु य के प चात ् ई वर को लय के समय अकेलापन य पस द है
? अकेलेपन ( वहदत ) के समय ई वर अहम दय के म त य म जीव तथा कृ त का भी नाश कर दे ता है तथा नई
सिृ ट म फर नये बनाता है । इसका कोई कारण ? या आपके पास सवाय ‘ ई वरे छा ' के कोई उ र है ? और
फर ‘ वहदत ' ( अकेलेपन ) के प चात ् बाहु य का शौक कस लये ? यह भी खद ु ा क मजीं ? हमने नवेदन कया है
क दशन के ि टकोण से ‘ संयोगवशात ् ' उस कृ य को कहगे , िजसका कोई उपयु त कारण न हो , और खद ु ाक
मजीं भी बना कसी कारण के केवल संयोग ( By chance ) ह समझनी चा हए । अत : स ध हुआ क जीव तथा
कृ त को य द अना द न मान तो जहाँ सिृ ट - रचना तथा लय भी केवल संयोगवश माननी पड़ेगी वहाँ रचना के
प चात ् जीव का व भ न अव थाओं म वैष य भी केवल संयोग से मानना पड़ेगा । पर तु य द जीव तथा कृ त
को अना द माना जावे , तो परमा मा का उनपर अ धकार और रचना का गण ु भी सनातन होने से कसी अ य
कारण क सिृ ट - रचना म आव यकता ह नह ं रह जाती । परमा मा सिृ ट का रच यता है , यह उसका सनातन
गुण है । जीव को व भ न अव थाओं म जाना पड़ता है , य क उनके पव ू कृत कम म व भ नता है और उ ह
उन कम का फल भोगना है । ई वर कभी सबको समा त कर बेकार नह ं रहता , य क यह बात उसके तथा जीव
के गुण के वपर त है , अत : सिृ ट - रचना संयोगवशात ् कैसी ? स भव है आप अपनी वहदत के दौर को स ध
करने के लए पछ ू े क ई वर लय के प चात ् या करता है और कह क भगवान ् तब भी तो बेकार रहता होगा ,
पर तु यह ग़लत है । थम तो लय म भी जीव तथा कृ त का अि त व ई वर के अि त व के साथ है , अत :
परमा मा बेकार नह ं , उसके अि त व से जीव - कृ त म ि थरता है । दस ू रा , लय हर लोक म एक ह समय म
नह ं होती , अ पतु जब एक लोक म लय होती है , दस ू रे लोक म सिृ ट चल रह होती है , इस कार परमे वर का
हर गुण सदै व काय म ह रहता है ।

◼ ान और रचना ◼

अाठवे तक का उ र -
आठवीं दल ल म फर कुआन को तत
ु कया है , फ़रमाया है इलायलम मन ख़ क ? अथात ् िजसने
उ प न कया या वह भी नह ं जानता ? अत : इस आयत से एक नयम स ध हुआ क िजस यि त को िजस
व तु का पण
ू ान तथा स य ान हो , वह उसको बना भी सकता है , और िजसको कोई बना भी नह ं सकता , उसे

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उसका पण ू ान भी नह ं होता ( प ृ ठ १८४ ) । ( अ भ ाय यह है क य द जीव को ई वर ने बनाया नह ं , तो उसे
उसका पण
ू ान भी नह ं । अन०ु )

हम कसी अरबी के व वान ् से पछ ू ते ह क ऊपर क आयत म “पण ू ान” के लए कौन - सा श द आया है


? आयत म तो केवल ‘इ म’ - ान ह आया है , तो या मौलाना क ि ट म ान का कारण रचना ह है ?
मौलाना अपने तक के दोष को जानते ह क य द ान का कारण रचना को ह मान तो मनु य परू ा न सह , अधरू ा
ान तो रखता ह है , इसे भी टा मानना पड़ेगा । अत : लखते ह - “ चंू क हम कसी व तु का ठ क - ठ क ान
नह ं रखते ह ……. इस लए हम तो न स दे ह टा नह ं कहला सकते ” ( प ृ ठ १८६ ) । मौलाना ने मनु य के
अ प ान का कोई कारण बता दया होता , जो अ प शि त वाले मनु य के अ प ान का कारण होता , तो वह
अ प कभी पण ू होकर ई वर के पण ू ान का कारण बन जाता । दाश नक ि टकोण से ान का कारण बताना
होगा । य द कारण पण ू होगा तो काय भी पण ू होगा ; कारण म दोष होगा , तो काय भी दोषयु त होगा । न है क
या मनु य अधरू ा टा है , उन व तओु ं का , िजनका वह अधरू ा ान रखता है ? और य द रचना से ह ान
बनता है , तो अधरू ा ान तो मनु य भगवान ् का भी रखता है । या यह इस तक से ई वर का भी अधरू ा रच यता है
? बाक संसार क तो बात ह या कह ! जनाब , मनु य के ान का कारण उसका वाभा वक गुण समझने क
शि त है । यह य क मनु य म अ प है , इस लए मनु य का ान भी अ प है । ई वर म यह शि त पण ू है , अत
: उसका ान भी पण ू है , रचना से इसका स ब ध ह नह ं । ई वर के अ त र त अना द संसार आप भी मानते ह (
यान रहे क क़ा दयानी यह वीकार करते ह क अना द ई वर अना द काल से सिृ ट - रचना करता आया है ,
पर तु हर सिृ ट म जीव तथा कृ त को नया उ प न करता है । - अन० ु ) चाहे उसे कार म मान , चाहे यि त म
, उनका ई वर को पण ू ान था , और है , या नह ं ? और अना द अि त व अभाव से भाव म नह ं आ सकता , िजस
कार ई वर को इसका ान हुआ । ऐसे शेष सिृ ट क भी क पना कर ल िजए ।
आय क ओर से एक और आ ेप मौलाना ने कि पत कया है क या परमा मा को वयं अपना ान भी
है या नह ं ? य द है तो या ( रचना से ान मानने पर ) वह अपना टा भी वयं है ? इसके उ र म कहा क ‘वह
अपना टा नह ं य क वह एक है , अ वतीय है । वयं के टा मानने पर उसके एक होने का गुण समा त
होता है ।' तो ीमान ् जी , जीव तथा कृ त का भी रच यता ( अभाव से भाव म लानेवाला ) इस लए नह ं क ई वर
के अना द गण ु र क तथा मा लक होने के ग़लत हो जाते ह । अना द मा लक को अना द मल कयत चा हए , चाहे
वह कार से हो ; पर तु कार भी यि त के बना स भव नह ं । जब एक भी माना हुआ अि त व ( ई वर के
अ त र त ) अना द हो गया , तो अभाव से भाव म आने क बात तो समा त हई , य क अना द के अथ ह िजसका
अभाव कभी नह ं था । इस आ ेप का एक और उ र भी आपने दया है - “ न स दे ह खद ु ा को अपना पणू ान है
और वह ान यह है क म अ वतीय हूँ ( प ृ ठ १८७ ) ।”
तो हजरत ! जीव तथा कृ त के स ब ध म भी ई वर यह जानता है क ये अना द ह । इ ह कोई अभाव से
भाव म नह ं लाया , अ पतु ये सनातन है और मेर अना द मल कयत तथा आधीन ह ००० इ या द । या वयं को
अ वतीय अनप ु म जानने के लए रच यता होने क आव यकता तो नह ं ? अ पतु रच यता होने से अ वतीय होना
अस य हो जाता है और जीव तथा कृ त पर अपना अना द अ धकार जानने के लए रच यता होना आव यक है ?
यहाँ रच यता होने से अ धकार का अना द व अस य नह ं हो जाता । वा त वकता यह है क ान के लए रच यता
होना आव यक नह ं है । जैसे मनु य का अधरू ा ान उसक अधरू समझ क शि त के कारण है , परमा मा क
सव ता भी उसके पण ू ( इदराक ) ानशि त के कारण से हुई और होती है ।"

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◼ पु यकमफल अथवा पा रतो षक ◼

नवाँ तक और उसका उ र -
नव तक म मौलाना ने कुआन का आधार फर छोड़ दया है ; अपने मि त क क क पना ह लख पाये ह ;
फ़रमाया है - “थोड़ी दे र के लए क पना करो क सब जीव ने वेद क श ा पर आचरण कया तो प रणामत :
सबको मिु तघर म जाना पड़ेगा , और जब सभी जीव मु त हो गए तो संसार का काय - यवहार ठप हो गया ,
ई वर के रच यता आ द सभी गुण भी समा त ! और य द मिु त क अव ध सी मत है तो जब पण ू तया शु ध होकर
जीव मु त हो गए तो उ ह संसार के काय को चलाने के लए ज म - मरण के च कर म डालना घोर अ याय है (
प ृ ठ १८९ ) ।”
मौलाना का अ भ ाय थम तो यह है क मो का समय सी मत न हो । ज म - मरण पाप का द ड होता
है और मु त जीव पापर हत हो चक ु े , फर उ ह ज म - मरण के च कर म य लाया जाए ? और जब मो
अन तकाल के लए हो गया ( िजसके लए बौ धक उड़ान पर मौलाना ने बहुत बल दया है ) तो संसार का काय
समा त हो जाएगा और अ लाह तआला के सभी गुण भी बेकार हो जाएँगे । अ लाह तआला के बेकार होने क
मौलाना को च ता अ धक है । इस च ता ने ह तो जनाब मसीह मौऊद ( गुलाम अहमद का दयानी ) से अना द
काल से सिृ ट क रचना और लय का मंत य घड़वाया है । ( यान रहे क इ लाम इसे इस प म नह ं मानता । -
अन० ु ) यह और बात है क येक सिृ ट के प चात ् लय और नये जीव क सिृ ट क क पना ने बार - बार बीच म
आनेवाल खद ु ा क बेकार का भी सल सला जोड़ दया है । यह और बात है क ब ह त ( वग ) को अन त
मानकर फर उस लय म केवल ई वर को बचाकर वग क अन ता को समा त भी कर दया है ! ीमन ् ! आपका
ब ह त अन तकाल तक कैसे हुआ , जब आप येक सिृ ट के प चात ् लय म केवल ई वर का अि त व वीकार
करते ह और ई वर के अ त र त सबका नाश मानते ह ? या आपका वचार है क एक बार वग के वार खल ु ने
पर अ लाह तआला पर ( लय - काल म ) केवल अकेला रहने का दौरा ( नशा ) समा त हो जाएगा ? अथवा वग
म भी यह लयंकार य भी कभी - कभी उपि थत हो जाया करे गा ? ( का दयानी एक ओर तो मानता है क
वग य जीव अन त काल तक वग म रहगे , दस ू र ओर उसका स धा त है क लय म सब जीव न ट हो जाएँगे
और केवल खद ु ा ह रहे गा । नई सिृ ट म फर नये जीव उ प न कये जाएँगे । ये दोन स धा त इक ठे कैसे माने
जा सकते ह ? ( अन० ु ))
य द येक लय म केवल ई वर के अि त व को मानना अभी ट है तो आप आय के मो के ससीम होने
पर आ ेप न कर , आपका ब ह त भी अि थर तथा ससीम है । हाँ , ब ह त क अि थरता म केवल ई वर के रहने
पर उसक बेकार का दोष रहे गा । आय के साव धमो पर ( जीव के रहने के कारण ) ई वर पर बेकार का दोष
नह ं आ सकता । आप ज म - म ृ यु को पाप - कम का फल मानते ह , इसम कोई माण भी लख दे ते । मो भी
तो फल ह है ! या असीम काल का मो , ससीम कम का फल हो सकता है ? हमारा म त य है क जीव वभाव
से अना द काल से कम करता आया है , कम करने के लए उसका शर र से स ब ध होता है , पाप - कम का फल
द:ु ख के प म तथा पु य - कम का फल उसे सख ु के प म ा त होता है । मो अ य त सख ु का नाम है जो
अ य त पु य - कम के फल व प उसे ा त होता है । चँ ू क जीव के अ य त प व कम भी सी मत ह , अत :
उनका फल भी सी मत मलता है । हम जानते ह क आप ‘ वग - ाि त ' कम के फल व प नह ं मानते , अ पतु
अ लाह तआला क ओर से पा रतो षक व प मानते ह । आपने लखा भी है क – “प व कम तथा नेक जनअत
= मो म व ट होने के लए आव यक है , पर तु जनअत म वेश के प चात ् सदा के लए वहाँ रहना , यह कसी
पु य कम का फल नह ं , अ पतु ई वर का दया पा रतो षक है ” ( प ृ ठ ९९ ) ।
हमारा नवेदन है क जो पापी लोग नरक म भरती कए जाएँगे , उनके भी नरक के वेश के लए पाप -
कम क शत है अथवा नरक म सदा रहने के लए भी ? [ इ लाम के म त य म वग अथवा नरक म वेश
पानेवाले जीव सदा के लए वहाँ रहगे - अन० ु ] या नरक म पापी लोग का सदा के लए वहाँ रहना भी ई वर का

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दया पा रतो षक है ? मौलाना , मा करना । अ य मस ु लमान तो वग तथा नरक को अन त काल तक का
मानते ह , आपने इस वषय म सध ु ार कर लया है क नरक सी मत समय के लए है और वग अन त काल के
लए । अब आपसे न है क नरक के समय क समाि त पर नारक य जीव का वग म वेश होगा या नह ं ? य द
पु य प व कम के बना सदा का वग उनके लए दे दया जाएगा , तो वग म वेश के बना तो वे अन त काल
तक का वग न भोग सकगे ? तो कृपया बताइये , वग के इस वेश के लए पु य - कम कहाँ से आ पाएँगे ?
क पना क िजए , एक यि त के कम - भ डार म एक भी पु य - कम नह ं है ॰॰॰ आ ख़र आप तो बौ धक क पना
क उड़ान को वीकार करते ह , इस लए ऐसा मानने म आपको कोई आ ेप नह ं हो सकता ; अब नरक के समय के
बीत जाने पर पु य - कम है ह नह ं , अथवा मान लो , नरक म रहने के कारण वह कोई पु य - काय करना ह नह ं
चाहता , आ ख़र आपक क पना म तो सब समान है , ऐसे यि त को फर नरक म थान मलेगा या वग म ?
वग म वेश के लए आपने पु य - कम का टकट लगा दया , और वह उसके पास नह ं है ।
और ल िजए , वग के इस वेश के लए कतना पु य - कम चा हए ? कसी यि त के पु य तथा पाप -
कम का हसाब कया गया पु य - कम अ धक नकले ; या केवल अ धक होने के कारण ये पु य कम वग म
वेश का टकट बन जाएँगे ? अथवा इस अ धकता म भी प रमाण अथवा सं या का यान कया जाएगा ? य द
यह यान न कया गया , तो अ धक पु य - कम म तथा थोड़े पु य - कम म कोई अ तर न रहा , फर अ धक
पु य - कम य कए जाएँ ? थोड़े ह पया त ह । इतना यान रह जाए क पाप - कम , पु य के कम से बढ़ न
जाएँ ! य द जनअत क अन ता ई वर का दया पा रतो षक है तो जनअत के वेश पर टकट य लगा दया ?
इतना बड़ा इन ्आम दे ते हुए थोड़ी रयाअत और दान कर दे ते और वग के वेश पर टकट न लगाते इससे
अ लाह तआला क कृपा का मह व बढ़ ह तो पाता , कोई कमी तो न आती थी ! फर अ लाह ने यह कृपणता य
दखाई ?
मौलाना ने तांगेवाले का उदाहरण दे ते हुए लखा है क “वह आपको सवार करके ले आया , ग त य थान
पर पहुँचा दया , आपने उसे आठ आने दे ने थे , पर तु आपने कृपापव ू क उसे एक पया थमा दया , वह दआ ु एँ दे ता
चला गया , इसम आठ आने तो कराया था । और आठ आने इन ्आम के !” मौलाना उदार दय लगते ह । जहाँ आठ
आना दे ने ह , वहाँ एक पया दान कर दे ते ह ; एक पया के थान पर पचास पये दे द िजए , सौ पये दे द िजए
या हजार पये द िजए , अथवा अपनी सार स प दे डा लए , फर दे खए संसार के लोग आपके स ब ध म या
स म त दे ते ह ? ीमान ् जी , एक तांगे वाले को ह य ? बाजार म व तु खर दते हुए पैस के थान पर पये लट ु ा
द िजए , फर दे खए क घरवाले आपको कस नाम से पक ु ारते ह ? और कहाँ भरती करने को ले जाते ह ? आप इस
इन ्आम क शंसा करते ह जो बे हसाब इन ्आम दे नेवाले क गत तो बना ह दे ता है , लेनेवाले का च र भी बगाड़
दे ता है , उसका वभाव चापलस ू और आलसी बना दे ता है । कृपया ताँगेवाले को अ धक न बगा ड़येगा , नह ं तो
सवार मलना क ठन हो जाएगा ! चलो , उदारता जोर पर है तो इसक भी च ता नह ं , सवार होने के प चात ् ह
काहे को इन ्आम दो ? सवार ह न हूिजये , माग म जानेवाले को अपनी स प दान कर द िजए । अपने वंशज
को लोग स प दे ते ह ह , तो या मनु य ई वर का पु नह ं ? उसक रचना ह तो है ! या बगड़ता था जो कम
कए बना ह इसे वह जनअत म वेश दे दे ता ? अ लाह क हार ( ) है तो हो , यह रौ प अपने लए सरु त
रख ले । मनु य ने या पाप कया क उसे रौ ता का ल य बनाए और इसके लए उसे कम े म उतारे ? आ ख़र
मनु य को पाप करने क मता कसने द है ? िजसने यह शि त द है पाप भी उसी के सर पर ! मनु य य जाए
? और जब अ त म उसने कृपा करनी है तो ार भ म ह य न कर दे ? पहले रचना करे , फर रौ प और
दयालु प म दं गल हो , दयालत ु ा वजयी हो , - प परािजत हो , यह सब मश : य हो , रचना से पव ू ह हो
जाएँ ?
लगता है , इ लामी यव था म ग णत का काम ह नह ं ! वग म वेश के लए तो शभ ु कम का टकट
चा हए । वग म अन त काल तक रहना तो बहुत बड़ा सख ु है । वह पहले से भी अ धक शभ ु कम का फल होना
चा हए । और य द वह भी शभ ु कम का फल हो गया , तो वग का काल सी मत तो हो जाएगा , य क शभ ु कम
क सीमा होगी ।

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हम तो ज म - मरण को कम का े मानते ह - इस हाथ दे , उस हाथ ले ! कम अ य त प व हो गये तो
मो मल गया ! उन प व कम का फल भी समा त हो गया , तो पन ु : काय े म उतर आए ! आप कहगे क
मो क अव था म भी तो ई वर का भजन होता रहे गा , फर उसका फल आगे के मो के प म य न हो ?
ीमान ् जी ! वा त वकता यह है क आप कम के रह य को समझते ह नह ं । द ड अथवा सख ु पाने का वह कम
अ धकार माना जाता है िजस कम के करने या न करने , अथवा उलटा करने का कता को अ धकार भी हो , अवसर
भी हो , और वह स भव भी हो , पर तु कता उस अवसर तथा सु वधा को छोड़कर पु य - कम ह करे ; वह
फलदायक होगा । जैसे म कोई प व काय करता हूँ , य द म इस अवसर पर पाप करने क शि त ह नह ं रखता , तो
वह शभ ु कम , फल पाने का अ धकार नह ं । फल , उस कम का मलता है िजसे हम वत तापव ू क करते ह ।
मिु त क अव था म पाप करना स भव ह नह ं । इस लए मो काल म जो ईश भजन होगा , उसका तफल नह ं
मल सकता । य द आप यह बात अब भी न समझे ह , तो एक और कार से मान । परमा मा का टा त ल िजए
, वह वभाव से प व है , प व - काय म य त है तो या उसे इन शभ ु कम का फल मलेगा ? य नह ं मलेगा
? इस लए क ई वर म पाप न स भव है और न उसे पाप का अवसर । पाप उसके वभाव के व ध है , यह
अव था मो म जीव क है !
जीव क यह मता है क या तो कम करे , अथवा कम का फल भोगे । मो म शभ ु कम का फल मलता
है । जब वे कमफल समा त हो गए , तो जीव फर कम े म आ जाता है । इस कार न तो परमा मा बेकार रहता
है और न उसपर अ याचार का आरोप लगता है । हम आ चय है क जब आप मो को पा रतो षक मानते ह तो
या पा रतो षक न दे नेवाला अ याचार होता है ? आपने फरमाया क य द ई वर मु त जीव को मिु त से लौटा दे
तो वह अ याचार है । हमारा वचार है यहाँ आपने मो को शभ ु कम का फल वीकार कया है , य क य द यह
इन ्आम है , वह आठ आने कराये के साथ आठ आने इन ्आम क बात , तो फर इन ्आम दे ना या न दे ना सवार क
इ छा पर है । परमा मा ने मो से लौटा दया , अथात ् आपके दि टकोण म इन ्आम न दया तो अ याचार कैसे ?
ताँगेवाले को सवार ने कराया दे कर आठ आने इन ्आम न दया और अहमद ताँगे वाला झट गाल दे ने लगा क तू
जा लम है ! मयाँ , जा लम तो तब था य द कराया न दे ता ! कराया दे दया , तो जा । अहमद मयाँ , य द ई वर
को जा लम कहना है तो जनअत को शभ ु कम का फल मानो , फल मानोगे , तो सी मत कम का फल सी मत ह
होगा ; फल नह ं मानते इन ्अाम मानते हो , तो न मलने पर जा लम न कहो !
हमने नवेदन कया है क पा रतो षक सीमा म रहे तो मजदरू को मान सक स नता होती है , उसे अ धक
काय करने क ेरणा मलती है । य द पा रतो षक ‘ असीम ' हो तो मजदरू को लालची और नक मा बना दे गा ।
उपयु त पा रतो षक को आयसमाज वीकार करता है , तभी तो सी मत पू य - कम के फल व प क प - भर
मो का व वास रखता है । अन त काल तक का मो कसी नयम क सीमा म नह ं होता , और उसका प रणाम
भी या होता है ? — भ व य म कम करने क वत ता से वं चत होता है । मस ु लमान होने पर अन त काल तक
स र - स र हूर ( अ सराओं ) और उनके अ त र त ग़लमान ( ल ड ) तथा शराब - कबाब म य तता । आ ख़र
मजदरू के बदले म असीम पा रतो षक का यह तो प रणाम होगा ! तांगेवाले का यह प रणाम होगा तो अहमद
मयाँ का इससे अलग तो न होगा ?

◼ वग या कारागार ◼

मौलाना ऋ ष दयान द पर बहुत कु ध होकर फ़रमाते ह - “ द न ( धम ) इनके लए एक खेल है और


मजहब खलवाड़ । ‘ई वर का जाप' समय बताने का साधन , तो ' मो ' द लगी । ताश न खेले , तो जीव कृ त
के अना द व पर शा ाथ कर लया ; शतरं ज म समय न बताया , तो मो पर चचा कर ल ! “

यह है धमगु ओं का वह स मान , िजसपर का दयानी दो त गव कया करते ह ! आ ख़र इस तल मलाहट


का कारण ? केवल एक महापु ष के अपमान क इ छा , अथवा कुछ और ? ऋ ष दयान द का वचन उ धत करते
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ह क “य द वहाँ ( मिु त ) से वापस न आना हो , तो आज म जेल से इस मो म इतना अ तर है क इसम
शार रक म नह ं करना पड़ता !” ी मह ु मद इसहाक़ साहब फ़रमाते ह - “ या इस मो के लए , िजसे वामी
जी कैद , कैदखाना , जेलखाना ( कारागार ) के नाम से पक
ु ारते ह ?”

ात होता है । मह
ु मद इसहाक़ साहब ऋ ष दयान द का संकेत समझ गये ह । िजस जनअत को जनाब ने
अन त माना है , वहाँ आ ख़र है या ? हूर का , ग़लमान का , प डल के गूदे का द दार , शराब कबाब , यह तो है
! कारागार के कैद इ ह ं के लए तरसते ह और जहाँ उनका बस चले , इस कार क वला सता का सामान इक ठा
करते ह । कारण यह है क जीव क उ न त का सबसे बड़ा साधन है कम करने क वत ता । य द यह वत ता
अन त काल के लए जीव से छ न लो , तो उसे सवाय वला सता के , पाप - कम के करने के और या शग़ ु ल
रहे गा ? जेल म प र म करना पड़ता है , पर तु उस प र म म कैद वत नह ं होता , अत : उसका अ छा भाव
कैद के मन पर नह ं पड़ता । अन त काल के वग म इतना प र म भी नह ं है । वहाँ के रहनेवाल क अव था का
अनम ु ान करना क ठन है ।

ऋ ष दयान द के तथा ी का दयानी जी के ि टकोण म सै धाि तक अ तर है । ऋ ष दयान द उस


प रि थ त को पस द नह ं करते , जो सदा के लए कम के करने से वं चत कर दे । ऐसा थान ऋ ष क ि ट म
नै तक प से कारागार है , पर तु का दयानी साहब को केवल हूरो - कसरू ( अ सराओं तथा ल ड ) क तम ना है -
य द यह सदा के लए मल जाए तो उ ह और कोई इ छा ह शेष नह ं रहती । ऋ ष के म त य म कम वह है जो
वत तापव ू क कया जाए , और िजसका आि मक आन द , सतत नै तक तथा आि मक तप का प रणाम हो ।
आयसमाज के मो का व प यह है - वह आन द , जो तप या से ा त हुआ है और िजसम शार रक वासनाओं
का लेश भी नह ं , पर तु का दयानी ब ह त इसके उलट है , जो तप या से नह ं , पा रतो षक - प म ा त हुआ है ,
और िजसम काल व मोट - मोट आंख , गोरे - गोरे गाल और प डल का गूदा है । आयसमाज क मिु त नई
तप या क तैयार के लए है , थके या ी क थकान उतारने का साधन है , का दयानी ब ह त वला सता क गहर
खाई है , िजसके अँधेरे म तप या शभु कम क करन न अतीत म है न भ व य म । कमयोगी दयान द क ि ट म
यह जेल है , बि क जेल से भी बरु , य क इसम केवल वला सता है , जेल का द ड व प प र म भी नह ं ।

◼ या य तथा यापक ◼

दसव तक का उ र
“जीव तथा कृ त दोन यापक ह , तथा आकाश या य । या य अथवा मकान का अि त व यापक स ा
से , अथवा मकान म रहनेवाले से पव
ू होता है “ ( प ृ ठ १९८ ) -

आय क ओर से इस तक का उ र अपनी क पना म इस कार दया गया है - ‘जैसे या य अथात ् आकाश


सनातन है , वैसे ह जीव तथा कृ त भी सनातन काल से ह । हाँ , एक सनातन काल से या य है , दसू रा सनातन
काल से यापक । िजस कार दोन ( या य तथा यापक ) सनातन ह , ऐसे ह दोन का या य और यापक होना
भी सनातन काल से है । ' ( प ृ ठ १९३ ) ।”
हाँ , हमार ि ट म दोन अना द ह , और अना द त व म पहले और पीछे का न नह ं होता । ल िजये ,
अब आपसे हम पछ ू ते ह क परमा मा अना द काल से टा है , वह कसी यि त को न सह , एक कार से सिृ ट
को अना द काल से बनाता आया है ( य य प सिृ ट का समह ू भी यि त के बना स भव नह ं ) । वह अना द सिृ ट
( कार से सह ) या य है , या यापक ? य द यापक है तो आपके नयमानस ु ार या य को उससे पव ू होना
चा हये , तब वह अना द काल से कैसे हुई ? य द आप सिृ ट के कार को ( अना द टा के गुण को रखने के लए )

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अना द मानते ह , तो उसके अना द व के साथ आकाश को भी उसका समकाल न मानना पड़ेगा ; अथवा यह नया
म त य बनाइये क सिृ ट का कार तो न वर है , पर तु आकाश सनातन है । यह आपको वीकार नह ं । आय के
इस उ र पर आप कोई नया तक तो नह ं घड़ते , अ पतु ऋ ष दयान द का यह वचन उ धत करते ह

न - मनु य क उ प पहले हुई अथवा जमीन आ द क ?


उ र - जमीन आ द क । य क जमीन इ या द के बना मनु य कहाँ पर रहते तथा पोषण कैसे होता ?

ऋ ष का अपना श द ‘जमीन’ नह ं , प ृ थवी है , िजसके अथ ख़ाक ( म ट ) के ह । चंू क ख़ाक मनु य के


शर र का उपादानकारण है , इस लए कारण को काय से पव ू मानने म ऋ ष ने या य - यापक का पहले तथा पीछे
होने का ि टकोण नह ं दया । हाँ , कारण को काय से पव ू माना है , और फर मनु य के रहने के साथ पोषण का
श द लगाकर बात को प ट कर दया है क मनु य के शर र के लए रहने - मा के लए नह ं , उसके अि त व
तथा पोषण के लए प ृ थवी क आव यकता है । पव ू होना तथा प चात ् होना , काय - कारण अथवा दो काय म तो
स भव है , दो नरवयव म नह ं । आय लोग जीव तथा कृ त के अना द व म आकाश को भी सनातन मानते ह ।

◼ अाव यकता का न◼

यारहव तक का उ र -
मौलाना ने अपनी इस दल ल का आधार कुआन क न न आयत को चन ु ा है — इ अ लाह अहद अलाह
अलसमद ……. कुफ़रन अहद ।” अथात ् “ई वर एक है , सबको उसक आव यकता है , वह कसी से उ प न नह ं
हुआ और न कोई उससे उ प न होता है , उसके बराबर का कोई नह ं ।”
अनव ु ाद हमने मौलाना के अपने लखे अथ से लया है । आपने ‘अलसमद’ के अथ कये ह वह स ा िजसक
आव यकता सबको है ।”
आपने इससे यह भाव नकाला ह क ई वर के अ त र त सबको अपने अि त व के लए ई वर क
आव यकता है । यान दे ने क बात यह है क आयत म “अपने अि त व के लए” के अथ का कोई श द नह ं । यह
नह ं , बि क आपने वयं जो अनव ु ाद कया है वहाँ ह ‘अलसमद' का अथ ‘आव यकता वाला' कया है , आ दत व
का वणन नह ं । अत : जीव तथा कृ त कई कारण से ई वर क आव यकता रखते ह । यथा कृ त को यवि थत
न कया जाय , तो जीव का कोई काय ह न हो सके । ई वर इस यव था को ि थर न रखे , तो परमाणओ ु ं के
बखर जाने से संसार का ह वनाश हो जाए । परमाणओ ु ं म जहाँ मलने का गण ु है , बखरने का भी है । लय म
परमाणु जद ु ा - जदु ा बखर जाते ह , सिृ ट म उनका मलाप हो जाता है । मलना तथा जद ु ा - जद
ु ा होना , ये दोन
वरोधी गुण परमाणओ ु ं म व यमान ह जो अपने - अपने समय पर काम करते ह । इस कारण ई वर यव थापक
है , यह बात जीव क शि त से बाहर है , अत : उ ह ई वर क आव यकता है । और कुआन का संकेत इसी ओर है ।
पर तु आपने तो दाश नक ि टकोण से दे खना ह नह ं ! अपनी बु ध - व ध क पनाओं को कुआन के म थे मढ़
दे ते ह । भला जो वय भू स ा है , उसको भी अि त व के लए कसी अ य क आव यकता होगी ? आप वय भू
स ा ( अना द ) केवल ई वर को मानते ह ; हम जीव तथा कृ त को भी अना द मानते ह ( वह आधीन य हो ?)।
आपका आ ेप है - “ जो वयं अना द स ा है , और जो अपने अि त व के लए कसी दस ू रे क आव यकता नह ं
रखती , वह कसी अ य स ा के आधीन कैसे हो सकती है ? ” ( प ृ ठ १९४ )
आप वयं याय कर , या यह तक आपके दये चौथे तक क पन ु राव ृ नह ं ? आपने उस तक म कहा क
जो उ प न नह ं करता वह मा लक ( वामी ) नह ं बन सकता । यहाँ कहो - ‘जो अपने अि त व के लए दस ू रे क
आव यकता नह ं रखता' ; बात तो एक ह है , ‘आव यकता रखनेवाला’ तथा ‘उ प न होनेवाला' एक ह तो अथ
रखते ह ! फर भला पन ु राव ृ क या आव यकता थी ? शायद यह क तक क सं या तो बढ़ जाए । ीमान जी !

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आधीन तो मनु य भी मनु य का होता है । कोई आव यकता रखता है , कोई उसक पू त क मता वाला होता है ;
श य को व या क आव यकता है , गु उसक पू त करनेवाला है , द र धन का मोहताज है , धनी उसक पू त
करनेवाला । या फर यह माना जाना चा हए क गु ने श य को ज म दया है ? अथवा धनी ने नधन को जीवन
ब शा है ? ीमान ् जी , आधीन होना और बात है , उ प न करना और बात है ।
ल िजये , अब आप ह बताव क या ई वर के अ त र त शेष संसार , अपने अि त व के लए ई वर क
आव यकता रखता है ? जब आर भ म ई वर के सवाय आपके वचार म कोई अ य न था , तब कसको अि त व
क आव यकता थी ? या तब ई वर आव यकता क पू त करनेवाला था या नह ं ? इसके लए कोई अि त व तो
चा हए िजसको आव यकता हो ! आव यकता रखना भी तो एक गुण है ; इसके लए गुणी चा हए , या वह गुणी
अना द है ? आपके वचार म तो अ लाह के अ त र त और कोई था नह ं , अत : अ लाह ह मोहताज (
आव यकता रखनेवाला ) होगा । य द आव यकता रखना , यह गण ु सनातन नह ं , तो इसक उ प माननी पड़ेगी
; अ लाह ने इसको य उ प न कया ? और कस कार कया ? उसम वयं म तो कोई कमी है नह ं , यह कहाँ से
लाया ? ( उसके अ त र त तो कुछ था नह ं ) य द ऐसा नह ं तो आप अभाव से भाव क उ प मानते ह ! य द
आव यकता ( कमी ) को ई वर उ प न न करता तो या हा न थी ? और जब कमी का अि त व ह न होता , तो
फर अि त व क आव यकता कसे होती ? यह दाश नक न है , गहरे च तन से काम ल । जीव को आव यकता
अथवा कमी का गुण अ लाह ह तो दे ता है ! यह जीव का वाभा वक गुण तो नह ं ? ई वर ने जीव को कमीवाला
य बनाया ? अ लाह ने जीव को दया भी तो या - कमी , आव यकता । द कसे गई ? — जीव को , तो जीव को
आव यकता के गण ु से पवू होना चा हये । फ़रमाइये , जीव पहले हुआ या कमी का गणु ? आप कहगे , दोन साथ -
साथ उ प न हुए , जैसे अ लाह ने जीव को कमी वाला ह बनाया । कैसी कमी ? अि त व क ? अि त व क तो
कमी तब तक रहे गी जब तक अि त व न मला ; अि त व मल गया तो आव यकता समा त हो गई ।
दस
ू रे श द म , जब तक जीव अि त व क कमी रखता है , वह है ह नह ं । अि त व मल गया तो
आव यकता न रह । परमा मा या तो अि त व क आव यकता को उ प न कर सकता है , या अि त व को ।
अि त व और अि त व क आव यकता , दोन एकदम उ प न नह ं हो सकते । आप कहगे , आव यकता पहले
आई और जीव का अि त व उसके प चात ् । हमने नवेदन कया है । आव यकता एक गुण है , इसे गुणी चा हये ,
या वह गणु ी अ लाह है ? य द आव यकता के गण ु का गण ु ी अ लाह है तो वयं वह कमीवाला हो गया ; य द इस
गणु का गणु ी ई वर से अ त र त कोई और है तो वह अना द मानना होगा

वा तव म वयं स ध स ा को स ा क आव यकता नह ं होती । वयं स ध स ा सदै व रहती है , उसका प


बदलता रहता है , जो उसका गुण है , पर तु काय प का कारण वयं स ध अना द है ।

◼ परमा मा क आव यकता ◼

बारहव तक का उ र-
मौलाना का बारहवाँ तक है - “य द हम जीव , कृ त तथा उनके गुण को अना द मान ल तो फर यह संसार
ई वर के मह व का योतक नह ं रहता ।”
आटे तथा पानी के अपने गण ु के साथ , पास - पास पड़े रहने पर भी कसी ब धमान ् मनु य के गँधू ने के
बना वयमेव आटा नह ं गँध ु जाता । आपने लोहे तथा चु बक का उदाहरण तत
ु कया है क दे खो , लोहा
चु बक के स मख ु आते ह वयमेव उसक ओर खंच जाता है । या यह आटे के वयमेव न गँध ु सकने का उ र है
? पानी तथा आटा आपस म मल तो जाते ह — आप पानी को आटे क ओर छोड़ द , मल तो जाएगा , पर तु
गंध
ु ेगा नह ं , गीला हो जाएगा । य द आप चु बक के उदाहरण पर ह अपने म त य का आधार रखते ह तो ल िजये
, मले हुए लोहे तथा चु बक को बना कसी जद ु ा करनेवाले के वयमेव अलग होता दखा द िजये ! गंध
ु ा जाना एक

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यव था का उदाहरण है । आटा तथा पानी गडमड तो हो जाते ह , पर तु गंध ू ने के लए अलग गंध ू नेवाल स ा
चा हए । एक च को ल िजये , वह सवाय काग़ज के टुकड़े तथा कुछ रं ग के अ त र त या है ? काग़ज़ पर रं ग
रख द िजये , पानी डाल द िजये , वे मल तो जाएँगे ह , पर तु च न बन सकेगा ; च बनाने के लए च कार
चा हए । कृ त है , उसम बनने क शि त भी है , पर तु इस शि त को कसी यव था म बाँधकर काय - प म
लाने के लए एक ानवान ् स ा क आव यकता है । पानी भी है , अि न भी है , मला द िजये , अि न बझ ु जाएगी ,
हँ डया बीच म लाइये , भाप बनेगी , उसे ब द कर द िजये , बड़ी शि त शाल या का कारण बनेगी , कुछ दे र तक
के रहने द , हँ डया - स हत उड़ जाएगी । बु ध से काय ल । कतनी कल म काय करती है ! जड़ कृ त म शि त
तो है , पर तु अ धी शि त । उस शि त को कसी यव था म लाकर छोटे - छोटे काय को करने के लए जीव क
आव यकता है और बड़े तर पर काय के लए यापक म क आव यकता है । आप एक छोटे - से काय अथात ्
जोड़ने - तोड़ने के लए कसी अ य शि त क आव यकता न समझे , पर तु उस अ य शि त का माण सिृ ट
का कण - कण दे रहा है । रं ग व यमान है , कागज भी रखा है , पानी भी हो , पर तु च कार के बना च का
बनाना स भव नह ं है । आप इसे साधारण बात समझे , पर तु कलाकार क ि ट म रं ग अथवा कागज का वह
मू य नह ं , जो च कार का है । सबसे बड़ा काय तो यह है । भला ात : काल उषा के स दय को नहार , या इससे
सु दर कोई प बन सकता है ? और या यह सौ दय केवल रं ग के मलाप से ह बन गया ? जरा आप भी रं ग
मला करके तो दे ख !
हम Matter म बनने तथा बगड़ने क दोन शि तयाँ वीकार करते ह । ये दोन शि तयाँ इस मा ड म
काय करती द खती ह । पानी सू म होकर बखरा तो वा प के प म आ गया , और मलने क शि त ने काम कया
, तो पानी बन गया ; अ धक जड़ ु ा तो हम का प ले लया , हम म बखरने क शि त ने काम कया तो पानी बन
गया , और सू म हुआ तो वा प का प धारण कर लया । यह बखराव वा प से आगे भी चलता है , ऐसा
रसायनशा ( Chemistry ) के ाता बताते ह । लयाव था म येक ाकृ तक पदाथ अ य त सू म अव था म
हो जाता है , इसके प चात ् ( समय पर ) कृ त के ये परमाणु मलना आर भ करते ह और सिृ टरचना होती है ।
पर तु बगड़ने के प चात ् बनना वयमेव नह ं हो पाता ; बगाड़ , बनाने क वरोधी या है । इस कार कृ त के
परमाणु - अव था से उसे सिृ ट के प म लाने के लए कोई ानयु त स ा चा हए , और वह परमा मा है ।
चु बक क अव था म आपने दे खा क लोहा चु बक क ओर खच तो गया , पर तु उससे अलग वयमेव नह ं हो
सकता ; उसके लए कोई ानयु त स ा चा हये । साधारण लोहा चु बक का काय नह ं कर सकता , पर तु उसम
चु बक भर द िजये तो लोहे को खींचने लग जाएगा । संसार म इस खींचने तथा अलग करने का काय मनु य करता
है । जब चाहे , मनु य लोहे को मकनातीस ( चु बक ) से खींच ले , जब चाहे उससे जद ु ा कर दे । पर तु सारे व व
का काय मनु य क शि त से परे है , वह यापक ानयु त स ा के हाथ म है , िजसे हम परमा मा कहते ह । इस
कार न केवल आटे तथा पानी का उदाहरण , अ पतु आपक द हुई चु बक क मसाल भी हमारे म त य का
अनम ु ोदन करती है , आपके ि टकोण का नह ं ! आपने यथ ह उ र - यु र दे ने का क ट कया । आपके लेख
म काम क बात कम है , पन ु राव ृ अ धक । एक ह उ र के दो भाग को आप दो उ र समझ लेते ह । आपने पानी
तथा आटे के टा त पर यह या लख दया ? सोचो तो सह ! िजसका अि त व वयं का न हो , िजसक
शि तयाँ वयं क न ह , वह वयमेव मल कैसे सकता है ? अथात ् आपके वचार म न तो आटे का अि त व
अपना है , न शि तयाँ अपनी ह , तो ये कसक ह ? अ लाह क ? बहुत अ छा , तो क हये अ लाह से , मल जाया
करे , गँध ु जाया करे ! ीमान जी , अ लाह क शि त है मलाना , न क मलना । य द कृ त म मलने क
शि त न हो , तो अ लाह मलायेगा कसे ? मलना एक गुण है , इसे गुणी चा हये , य क गुण गुणी के बना नह ं
रहता । यहाँ मलने का गुण कृ त का मा नये या अ लाह का । हमने यह गुण कृ त ( Matter ) का माना है ,
आप अ लाह का मान ल िजये । [ पर तु इससे अ लाह , अ लाह न रहे गा , प रवतनशील कृ त बन जायेगा -
अन० ु ]।

50
◼ अ वभा य त व ◼

तेरहव तक का उ र -
तेरहव तक म मौलाना ने एक शत लगा द है - “य द वा तव म यह स ध हो जाए क संसार उन सू म
परमाणओ ु ं से बना है , जो अ वभा य ह , तो तम ु ( आय ) स चे , और हम कृ त को अना द मान लगे ।” ( प ृ ठ
२०२ )
मौलाना यह स ध करना चाहते ह क अ वभा य त व का अि त व ह नह ं होता , अथात ् कोई ऐसा त व
नह ं िजसका फर आगे भाग न हो सके । आप लखते ह - “दो परमाणओ ु ं को हम इस कार ( ०० ) साथ - साथ
रखते ह फर उनके ऊपर ठ क म य म एक परमाणु ( .*. ) रखकर पछ ू ते ह क ऊपर का परमाणु तथा नीचे के दो
परमाणओ ु ं को पश करता है ? स ध हुआ क ऊपर के परमाणु के दो भाग ह , तभी तो उसका एक भाग दाएँ ओर
र खे परमाणु को छूता है , दस ू रा नीचे के बाई ओर र खे परमाणु को पश करता है ( प ृ ठ २०३ ) ।
ऐसे ह तीन परमाणओ ु ं को साथ - साथ ( ००० ) नि चत करके लखते ह - “ म य का परमाणु द ण तथा
वाम - भाग म र खे परमाणु से मलता है ” ( प ृ ठ २०३ ) ।
मौलाना का तक इस म पर आधा रत है क परमाणु क द ण तथा वाम दशा होती है । य द यह क पना
न कर , तो कभी परमाणु का दायाँ तथा बायाँ ( वाम ) श द यु त न कर सक । मौलाना इसी बात को दस ू रे श द
म पन ु : कहते ह - “ उस परमाणु म ल बाई - चौड़ाई नह ं तो परमाणओ ु ं से मलकर बननेवाल व तओ ु ं म ल बाई -
चौड़ाई कहाँ से आ जायेगी ? ” ( प ृ ठ २०३ )
मौलाना के सारे न के मल ू म उनका या म त से अप रचय काय कर रहा है । या म त एक
पा रभा षक श द है ‘ ब द'ु । ब द ु ( नक़ ु ता ) क प रभाषा यह है क िजसम ल बाई , चौड़ाई तथा ऊंचाई , तीन म
से कोई न हो , वह ब द ु है । या म त म ब द ु क क पना और रसायनशा म परमाणु क क पना एक - सी है
। ब दओ ु ं का समह ू ‘ रे खा ' बनता है , रे खाओं का समह ू ( सतह ) ऊपर का भाग और फर सतह का समह ू व तु के
प म आता है । वचारणीय है क ब द ु म कोई दशा नह ं , पर तु रे खा म एक दशा बन गई - ल बाई । यह
ल बाई कहाँ से आ गई ? ब द ु म तो नह ं थी ? रे खा म केवल ल बाई है , चौड़ाई नह ं , ऊँचाई भी नह ं , पर तु
रे खाओं के समह ू से न मत सतह ( ऊपर का भाग ) म ल बाई भी है और चौड़ाई भी । यह चौड़ाई कहाँ से आ गई ?
सतह म ल बाई - चौड़ाई है , पर तु ऊँचाई नह ं , जब क व तए ु ँ जो सतह से मलकर बनी ह , ल बाई - चौड़ाई और
ऊंचाई तीन रखती ह । फर भी आप न कर क परमाणु म ल बाई - चौड़ाई नह ं तो उससे न मत व तओ ु ंम
कहाँ से आ गई ? तो जनाब , या म त का अ ययन क िजयेगा ! आप फ़रमा सकते ह क ब द ु तो एक का प नक
स ा है , वा त वक नह ं । यान रहे , आप दशन के े क बात कर रहे ह , दशन म अनम ु ान से काम लया जाता
है , इस क पना के वारा दशन का ि टकोण आगे बढ़ता है । जैसे या म त म ब द ु के बना काम नह ं चल
सकता , ऐसे ह दाश नक े म परमाणु के बना काम नह ं चलता । और जरा दे खये , व ान भी दशन तथा
या म त क ह भाषा बोलता है । परमाणु म दशाएँ नह ं होती ह । आपने हरबट पे सर का वा य उ धत ृ कया है
, पर तु यह तब का है जब अभी रे डयम का आ व कार नह ं हुआ था । अब तो रे डयम के वारा कण का वभाजन
भी हो चक ु ा है और िजस अि तम सीमा तक व ान आज तक पहुँचा है , उसका नाम ‘इले ॉन’ है । यह अ य त
सू म त व है जो सू म यु त य से भी पकड़ म नह ं आता । इि याँ उसे नह ं जान सकतीं , और कोई दरू दशक
- य उसे दखा नह ं सकता । इसका केवल अनम ु ान कया जाता है । वह ( इले ॉन ) थान नह ं घेरता , इस लए
उसक कोई दशा नह ं । जब दशाएँ नह ं तो वभाजन कैसा ? य क वभाजन या तो ल बाई का होता है या चौड़ाई
या ऊँचाई का ; ब द ु म तीन का अभाव है , इस लए या म त का ाता इसे काट नह ं सकता । इले ॉन म भी
तीन ( ल बाई , चौड़ाई , ऊँचाई ) का अभाव है , इस लए उसका वभाजन नह ं हो सकता । यह प रभाषा परमाणु
क है जो कृ त का भाग है , िजसम दशाएँ नह ं , अत : अ वभा य है ।
चँ क इले ॉन इि य अथवा भौ तक य से अनभु व नह ं हो सकता , इस लए रसायनशा के ाता
इसे एक शि त मानते ह , पर तु दशन का यह ि टकोण नह ं भल ू ना चा हये क शि त एक गुण है , इसे गुणी

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चा हए । इले ॉन को य द गण ु माना जाए , तो उसके सू म त व का नाम कृ त होगा , िजसका वभाजन नह ं हो
सकता ।
अब मौलाना को अ धकार है क अपनी शत परू कर , और कृ त को अना द वीकार कर , अथवा अपने
वभावानसु ार इसे न वर और उ प न हुआ मान ।

◼ पवान ् न वर नह ं ◼

चौदहव तक का उ र -
कृ त के न वर होने म चौदहवाँ तक यह दया है - “मा द : ( Matter ) कसी - न - कसी प से पवान ्
होता ह है , और िजस प से होता है , वह प न वर होता है ” ( प ृ ठ २०४ )।
वह पयु त हम नवेदन कर चक ु े ह क प गुण है , पर तु पवान ् गुणी । गुण न वर भी होते ह और
सनातन भी , पर तु गण ु ी , य द काय हो तो न वर होगा , पर तु य द वह वत : स ध स ा है तो न वर नह ं हो
सकता । य द गुणी भी वत : न वर हो , तो गुण वशेषण कसका होगा ? मौलाना ने पवान ् व तओ ु ं के न वर
होने का तक तत
ु कया है “य द न वर न होता , तो न ट न होता ।” यह स य है क प तो न ट हो जाते ह ,
पर तु या प के साथ उसका गुणी , मल ू स ा भी न ट हो जाती है ? आप सो चये , हम से जल बन गया ; हम
का प तो मट गया , पर तु या हम का Matter जो गुणी था , वह भी मट गया ? य द वह मट जाता , तो जल
कहाँ से आता ? पानी को आंच पर र खये , वा प बन जाएगा , यहाँ पानी का प भी मट गया , पर तु या पानी
का मलू Matter भी न ट हो गया ? य द वह न ट हो जाए तो भाप न बन सके । प बदलते रहते ह , मल ू स ा
ि थर रहती है ।
व ततु : प का प रवतन , मल ू स ा क ि थरता का माण है । य द Matter न रहे तो प का प रवतन
ह अस भव हो , अ पतु सरे से व तु ह और हो जाये । या बफ़ , पानी का प रव तत प नह ं ? या कोई नई व तु
है ? कौन बु धमान इसे मानेगा ? पर तु मौलाना को तो बु ध से वैर है ; फ़रमाते ह - “जो व तु न वरता के
आधार पर है वह वयं न वर है ( २०५ ) ।” जनाब , न वरता का आधार प है , वह न ट हो जाता है , वह गुण है
एक त व का , जो सनातन है , अथात ् कृ त ।

प हवीं दल ल से उ नीसव तक तक मौलाना ने आय थ के कुछ माण दये ह िजनसे जीव - कृ त के


सा द तथा न वर होने क चचा स ध क है । उन माण क या या तथा दस
ू रे भी कई माण हम एक थान पर
कसी अगले अ याय म दगे ।

◼ या अ लाह ज रतम द है ◼

बीसव तक का उ र -
बीसवाँ तक यह है - “य द जीव तथा कृ त ई वर क सिृ ट नह ं , तो संसार को चलाने के लए ई वर को
इनक आव यकता के लए ‘मोहताज' ( आधीन ) होना पड़ेगा और जो दस ू र का मोहताज हो , वह ई वर कैसा ?”
यारहव तक के उ र म हमने नवेदन कया था क आव यकता एक गुण है , उसे गुणी चा हये । आप जीव तथा
कृ त को अपने अि त व के लए ई वर का मोहताज मानते ह । जीव तथा कृ त को अपने अि त व क
आव यकता उनके उ प न होने से पव ू होती है या प चात ् ? य द उ प से पव
ू होती है तो कसे होती है ? य द
प चात ् होती है तो कस लए ? अि त व तो हो गया , उसक आव यकता कैसी ? य द जीव - कृ त ई वर के
समकाल न ह , तो भी आव यकता नह ं हो सकती । य क जो व तु व यमान है , वह अि त व के लए भखार

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य बने ? और य द जीव तथा कृ त अपने अि त व के लए कसी के भखार नह ं , तो अना द स ध हो गये ।
अब आपने ई वर क आव यकता क चचा क है । जब कसी आय ने कहा क आव यकता उस व तु क होती है जो
ा त न हो , तो आप बगड़ गये , और उसे पागल तक कह दया क या जाज पंचम को सेना ा त नह ं ? पर तु
फर भी उसे सेना क आव यकता है ।
ीमान ् जी , जाज को सेना क आव यकता , तब थी जब वह नह ं थी । अब आव यकता है सेना को थायी
रखने क , तथा समय पर उससे काय लेने क , न क सेवा क ।
आप लखते ह क या लयकाल म ई वर सय ू - च मा ...... का मोहताज होता है ? जनाब , लयकाल
म भी सय ू - च मा के परमाणु व यमान रहते ह , इस लए ई वर के मोहताज होने का न नह ं उठता ; और फर
लयकाल म सय ू - च मा का काय भी नह ं , इस लए आव यकता का न कहाँ ? आपने आव यकता क
प रभाषा द है “ कसी व तु का ऐसा होना क उसके बना काय न चल सके ।” चलो , यह ह ठ क , या ई वर का
काय जीव तथा कृ त के बना चल सकता है ? चल सकता है तो चलाये ! य यथ म प र म करता है , और जीव
- कृ त को बार - बार बनाता है ? या कोई बोझ है िजसे उतारने के लए वह पन ु ः - पन
ु : उ प करता है ? आप
कहगे , उसका अना द काल से टा का गुण , उसे सिृ ट के लए ववश करता है । या यह गुण सिृ ट के घड़े बना
भी रह सकता है ? आपका कहना है क Matter को तो संसार के लोग वयं भी बना सकते ह । हमारा यहाँ बना
सकने अथवा न बना सकने पर ववाद नह ं , ववाद है । काम न चल सकने से । या ई वर का काय जीव - कृ त
के बना चल सकता है ? वयं बना लये तो या , और पहले से अि त व म आये हुओं से काम लया तो या ,
आव यकता तो बराबर है ! जो अपने से अलग है उसक आव यकता है । य द वयं म कोई ऐसा गण ु हो , जो दस
ू रे
क स ा के बना कट न हो सके , तो दस ू रे क स ा क आव यकता है । हाँ , यह हो सकता है क आप ई वर के
अ त र त शेष सबको उसका गुण बना द अथवा अंग बना डाल , शि त या गुण बना डाल , तो सम या का
समाधान स भव है । व तत ु : आव यकता क आपक प रभाषा ठ क नह ं । आव यकता उस व तु क होती है
िजसके बना काम न चले तथा जो ा त न हो । ई वर का काय जीव - कृ त के बना चल नह ं सकता , य क
उसके कई गुण , दस ू रे के अि त व पर आधा रत ह , यथा टा , यायकता , मा लक , ान , याय , दया आ द ।
इनक अ भ यि त के लए दस ू रा अि त व चा हए , य द जीव और कृ त न होते तो ई वर मोहताज रहता ; पर तु
चंू क ा त ह , अतः मोहताजी का दोष ई वर पर नह ं आता । आप पछ ू ते ह क मो व यमान है , फर जीव
उसक आव यकता य रखता है ? आव यकता इस लए रखता है क व यमान होने पर भी मो जीव को ा त
नह ं । परमा मा को जीव तथा कृ त केवल अि त व होने से ा त ह नह ं , वह उनका वामी भी है , नह ं तो
व यमान तो संसार म या - या नह ं ?
हाँ , मझ
ु े ा त उतना है िजसपर मेरा अ धकार है । परमा मा का अ धकार सब पर है । जीव का मो पर
वाभा वक अ धकार नह ं , ई वर के वारा , शभ ु कम के फल व प इसे मो ा त होता है । य द जीव मो का
मा लक होता तो उसे इसक आव यकता न होती ! आप पन ु : लखते ह “जीव तथा कृ त को ई वर ने बनाया तो है
नह ं क जब चाहे वह इ ह बना ले , हाँ , संयोगवश ई वर का इनपर अ धकार हो गया ( प ृ ठ २१८ ) ।” अ धकार
संयोगवश नह ं मला , अना द काल से है , और जीव - कृ त को जब चाहे खद ु ा को इनके बनाने क आव यकता
नह ं , ये अना द काल से उसे ा त ह । हम आ चय म ह क ई वर इनका मोहताज कैसे बन गया ?
आप पछ ू सकते ह क य द जीव तथा कृ त न ह तो ई वर या करे गा ? हमारे म त य म कोई ऐसा काल
नह ं , जब जीव तथा कृ त न ह । इनका न होना अस भव है , अत : खद ु ा का मोहताज होना भी अस भव ! पर तु
आप कुतक पर तल ु े ह तो बताइये , य द खद ु ा को एक बार “बहुत होने” ( कसरत ) क सनक न जागी तो कहाँ
जाएगा उसका याय ? या होगा उसके वा म व के गुण का ? सब धरे के धरे रह जाएँगे या नह ं ? अब बताइये
आव यकता क दब ु लता कस म त य म है ।

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◼ ेम तथा सिृ ट - रचना ◼

इ क सव तक का उ र —
मौलाना का २१वाँ तक यह है क “जीव ई वर क जब रचना नह ं , तो या कारण है क जीव अपने म ई वर
का ेम पाता है ?” कसी ने कह दया हजरत , ेम तो संसार म सौ दय से होता ह है , आ ख़र लैला , स सी ,
सोहनी आ द ने मजनू , पु नू , मह ंवाल को उ प न तो न कया था ( पर तु ेम था ) । आप फ़रमाते ह क “ वे (
सु दर ) ि ट से ि टगत होते थे , पर तु खद ु ा तो ि ट म आता नह ं ?” ( प ृ ठ २१९ )
कसी क व ने बहुत उपयु त कहा है - हो दे खना तो द दाए - दल वा करे कोई ( जो ई वर को दे खना चाहे ,
तो दय के ने खोले ) । समा ध क अव था म ि थत कसी योगी से पू छये , या आन द मलता है ? वयं
आपने ब ह त क चचा म यह वा य लखा है “ फर उस यापक स ा के आन ददायक दशन” ( प ृ ठ ११० ) ; तब तो
उसके दशन भी स भव हुए ? हाँ , वह दशन भौ तक नह ं , आि मक है जो आ मा को वयं म होता है । मो म यह
आन द क अव था सदा बनी रहती है । यहाँ समा ध - अव था म उस आन द को ा त कया जाता है । हमारा
म त य है क येक जीव कई बार ज म - मरण के बंधन म आता है , कई बार मु त होता है , इस लए मो के
आन द क धंध ु ल - सी म ृ त उसे रहती है ।
इस ेम का कारण मौलाना ने और भी लखा है “ये जो कई बार सु दर दे वय के ेमी होते ह , ये व तत ु :
ई वर के सौ दय के ेमी होते ह । ई वर अपने सौ दय क थोड़ी - सी झलक कसी को दान कर दे ता है , इस लए
जीव उस थोड़ी - सी झलक को पाकर द वाने हो जाते ह ( प ृ ठ २२० ) ।” यह या उपहासा पद बात है , पहले तो
कहा क खद ु ा का शर र ह नह ं , फर फ़रमाया , वह थोड़ी - सी झलक डालता है ? अकाय क भी झलक होती है ?
और या यह सु दर ि य के बाजार म जो इ क के सौदे होते ह , यह अ लाह तआला का इ क़ है ? वाह साहब
वाह ! य द खद ु ा का जलवा उसके सु दर शर रवाले हसीन म है तो यह या कहना क वह दखाई नह ं दे ता ? इस
इ क ( ेम ) का कारण यह समझ ल िजये । जैसे यहाँ कसी से ेम करने के लए उसका रच यता होना आव यक
नह ं , वैसे ह जीव का ई वर से ेम भी उसके जीव क रचना के कारण नह ं है । आ ख़र यह या तक है क हम
ेमी ह इस लए न वर नह ं ? ( इ लाम जीव को उ प न तो खद ु ा से मानता है , पर तु उसको वग म अन त काल
तक मानता है )
[ बाईसवीं दल ल फर एक माण है िजसे हम आगे लगे ] ।

◼ भाव का मल
ू ोत अभाव ◼

तेईसव तक का उ र -
तेईसवीं दल ल म कहा है “अि त व , सब उ चताओं का के तथा आधार है और अभाव सब दोष -
हा नय का के ! जीव तथा कृ त सब दोष से मु त ह , अत : उनका अि त व अपना नह ं ( प ृ ठ २२३ ) ।”
हम यह तक जीव तथा कृ त के अना द व म दे ते ह । मौलाना वचार कर क या दोष का , पाप का ,
संसार म अि त व है या नह ं ? अगर व व म पाप है ह नह ं तो झगड़ा समा त , हम और आप सभी नद ष तथा
पणू ठहरे । य द पाप का अभाव नह ं , अि त व है , तो इनका मल
ू के कौन - सा है ? अि त व का मल ू अभाव
तो नह ं होता ? य द ऐसा मान ल तो फर उ चताओं का के भी अभाव ह मानना पड़ेगा , इससे तो अ लाह
तआला का भी अभाव से आगमन मानना पड़ेगा , य क वह तो सव े ठ ह ! अभाव ह मल ू के हो गया , शेष से
छुटकारा पाया । जनाब ! पाप , दब
ु लताओं का अि त व है , पर तु ये गुण ह , इ ह गुणी चा हए और वे जौहर (
त व ) ह जीव तथा कृ त ! आपके या कहने , आप तो सब पाप , दोष , दब ु लताओं का मल ू अ लाह को ठहरायगे
, या कम - से - कम इस मता क ाि त उसी से मानगे और साथ ह कहगे क अ लाह पण ू है , का मल है ,

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अथात ् पण
ू पापी , पण
ू दब
ु ल अथवा यह नह ं तो पण
ू पाप का , दब
ु लताओं का , दोष क मता दे ने का टा तो
खद
ु ाव द कर म है — यह भी या म त य है ?

◼ भि त तथा अना द व ◼

चौबीसव तक का उ र -
चौबीसवाँ तक , इ क सव तक क पन ु राव ृ मा है , फ़रमाते ह “य द जीव को ई वर ने रचा नह ं तो उसे
ई वर क भि त तथा उसका सेवक बनवा ( जीव को ) भार ह तो लगेगा ? ” (२२४)
हाँ , कइय को यह भार लगता है । या पापी भि त करते ह ? अ भमानी वयं को ई वर का ब दा समझते
ह ? अथवा असंतु ट यि त उसके वा म व को स नता से वीकार करते ह ? स नता से तो भि त वे करते ह
जो उसके द वाने ह , और जो मो अथवा समा ध क म ृ त को त दन अपने शभ ु कम से चमका दे ते ह । पर तु
भि त का ‘ रचना ' होने से या स ब ध ? मान लो जीव ई वर क रचना है तो या यह मानने से जीव वयमेव
ई वर के भ त हो गए ? जो मनु य अ भमानी ह , पापी ह , तो या वे उसक रचना नह ं है ? अथवा ई वर ने उ ह
वयं अ भमानी बना दया ? अथवा पाप क च वयं ई वर ने द ? आ ख़र पाप का मल ू के कौन है ? या
पाप का वह गुण ई वर ने वयं बनाया है ? तब तो दाश नक ि ट से पाप का मल ू के ह अ लाह मयाँ ठहरगे ।
मयाँ ! मान लो , जीव अना द है और उसका अ भमान या भि त के सं कार भी सनातन ह । परमा मा को सबका
टा मानकर सब पाप का उसे के न बनाओ !

प चीसवाँ तक फर एक माण है , िजसक या या आगे होगी ।

◼ जीव तथा कृ त क आव यकता ◼

छ बीसव तक का उ र -
छ बीसवाँ तक भी यारहव तथा तेईसव तक क आव ृ है , पछ ू ते ह - “जीव तथा कृ त , वतः स ध
स ा ह , अना द ह , तो सन ु ो क वत : स ध स ा का खद ु ा होना आव यक है ……. िजसका अि त व अ य त
आव यक है , उसके लए अ नवाय है क वह सब े ठताओं का के हो । ……. दे खो जो दब
ु ल है उसका अि त व
न हो तो या घट जायेगा ? ” ( प ृ ठ २२७ )
हमारा तो कुछ नह ं घट जाएगा । क ठनाई यह है क दब ु ल का अि त व है , आप उसे अनाव यक मान ,
अधरू ा मान , तो भी उसका अि त व है , और य द आप अपने मि त क से उसे अनाव यक मानने पर तल ु ेह ह ,
तो सब उ चताओं के के के न होने पर भी या कमी रह जाएगी ? आ खर कमी का नणय तो आपने और हमने
ह करना है । हम ह न हुए तो खद ु ा भी हमार बला से न हो , उसक आव यकता कसे होगी ? जनाब ! यह
आव यकता दशन को है , दशन म उस स ा क आव यकता रहती है िजसके अभाव म संसार क सम या का
समाधान नह ं हो पाता । यथा , संसार म जो जीवनशि त मलती है उसका ‘जौहर’ - गुणी चा हए , वह जीव है ।
संसार म जड़ता भी ि टगोचर होती है , उसका गण ु ी भी चा हए , वह कृ त है । संसार म दब ु लताएँ , ववशताएँ
तथा पाप भी द खते ह , इन गण ु के गण ु ी ह जीव तथा कृ त । संसार म यव था भी पाते ह , े ठता भी द खती है
। संसार पर ि ट डाल तो सारा व व एक ह यव था म चलता ि टगोचर होता है । यह संसार का च केवल
कुछ रं ग का मेल नह ं , कसी च कार क च कार का कमाल है । संसार का येक काय नयम तथा यव था से
बंधा हुआ द खता है । नै तकता के नयम ह , जीवशा के नयम ह ये नयम कसी यो य नयामक , पण ू
यव थापक तथा शि तमान ् वामी क ओर संकेत करते ह और वह परमा मा है । ‘आव यकता' के यह अथ ह ,

55
और य द दशन से मंह
ु फेर लो , जैसे मौलाना होते ह , तो न दब
ु ल क आव यकता है और न पण
ू क , और इस
ववाद क भी या आव यकता जो मयाँजी ने यथ छे ड़ रखा है ?

स ाईसव तक से इकतीसव तक तक फर आय क प व पु तक के माण दये गए ह , िजनपर हम आगे चलकर


काश डालगे ।

◼ गण
ु ी का वनाश नह ं ◼

ब ीसव तक का उ र -
जीव के न वर होने म मौलाना ने ब ीसवाँ तक यह दया है क “गुण के वनाश के साथ वयं गुणी का भी
नाश हो जाता है । जीव को कुछ पाप के द ड - व प वन प त म , यथा वटव ृ म , ज म दया जाता है । अब
जो जीव वट व ृ म एक सह वष तक रहता है , उस समय तक जीव के सारे गुण , तम ु वयं मानते हो क न ट हो
जाते ह ( २३४ ) ।”
इस साधारण चचा के प चात ् मौलाना ने जीव के इ छा - वेष आ द ६ गुण का वणन कया है , और कहा
है क वन प त जगत ् म ये गुण नह ं रहते । मौलाना का यह तक भी नया नह ं ; छठे तक के अ तगत आ जाता है ।
पर तु मौलाना को तक क सं या अ धक दखाने क सनक है , सो ठ क है । हम तो पहले भी नवेदन कर चक ु े ह
क गुण दो कार के होते ह , थायी तथा अ थायी ; आ मा का थायी गुण है उसक चेतनता । इस चेतना के
वारा एक ओर जीव क बौ धक या चलती है , और दस ू र ओर जीव क जीवन - शि तयाँ पु ट होती ह ।
व नाव था म जीव के स मख ु व न के अ त र त कुछ नह ं होता , पर तु कौन कहता है क उसम चेतनता नह ं
रहती ? जब तक जीवन है , तब तक चेतनता है । वन प त - जगत ् म जीवन - त व का जड़ से खचकर , ऊपर क
ओर चढ़ना , इ ह ं पु ट पु ठ के वारा होता है जो पौध तथा व ृ क छाल के भीतर होते ह और उनका वन प त -
जगत ् म वह थान है , जो शेष जीव - जगत ् म पु ठ का है । दोन अव थाओं म पु ठ पर बा य वातावरण
बजल का - सा भाव डालता है , िजससे ये पु ठे फैलते तथा सकुड़ते ह , और वन प त - जगत ् म भी जीवन -
त व तथा शेष जीव म र त का वाह चलने लगता है । ये पु ठे चेतनता का भौ तक साधन ह , इस लए वट व ृ
जो सह वष तक जी वत रहता है , उसम जीवन - त व रहता है , और वह इ ह ं पु ठ के वारा जो वट म रहनेवाले
जीव क चेतनता का भौ तक साधन ह । अत : वट व ृ चेतन है , य य प उसक चेतनता का बौ धक े इस
काल के लए ब द है ।
अत : जब जीव . का मल ू गण
ु चेतनता रहती है , तो उसके गणु का नाश नह ं होता , इस लए गणु ी अथात ्
जीव के नाश का भी न नह ं उठता ।
य द येक गुण के केवल रहने से नह ं , काय म आने से ह गुणी का होना अभी ट है तो सिृ ट - उ प से
पवू जब अ लाह के गुण का उपयोग नह ं होता , वह मा लक नह ं होता , टा भी नह ं होता , ि थर रखनेवाला भी
नह ं , वह रहता है या नह ं ? आपके ह कसी भाई का कथन है “अ लाह के प ले म वहदत के सवा या है ?” हाँ ,
तब अ लाह के स ब ध म आपका जो वचार हो , बना ल । वह आपके मन को जँच सके , आप वयं मा लक ह !

◼ वचारर हत तक ◼

तेतीसव तक का उ र-
“जीव के न वर होने क तेतीसवीं दल ल ‘कचवे’ नाम के ाणी से स ब ध है , पर तु इस तक पर मने वयं अभी
वचार नह ं कया ।”

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ये मौलवी साहब के श द ह । य द वचार नह ं कया था , तो लखने क ज द या थी ? यह न क तक - सं या
ब ीस से तेतीस हो जाए ? ग़लत दल ल से ग़लती बढ़े गी , शु ध तक एक भी पया त होता है । खैर , यह आप जान
, आप पहले वचार कर ल , तो हम भी उ र म कुछ नवेदन कर दगे ।

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57
◼ दस
ू रा अ याय ◼
‘हदस
ू े हो मा दः' के पहले व तीसरे अ याय पर
आय के आ ेप
एवं उनके उ र और आलोचना

मौलाना ने अपनी पु तक के थम अ याय म आय क ओर से जीव तथा कृ त के अना द व के प म


चार तक नकूल कये अथवा क पना से लखकर उनका उ र दे ने क कृपा क है । इ लाम के तक का उ र दे ने के
प चात ् इ लाम ने आय के तक का जो उ र दया है , उसक आलोचना उपयु त रहे गी । ार भ करते ह पहले
अ याय से ।

◼ मा लक बेमु क ◼

थम तक -
आय क ओर से पहला तक जनाब ने यह दया है - “जैसे ई वर अना द है उसी कार उसके गुण भी
अना द ह । अ य गुण के अ त र त , एक गुण उसका यह भी है क वह जगत ् का वामी है , यह गुण भी अना द है
। मा लक ( वामी ) होने का गुण माँग करता है क कोई ‘ ममलक ू ' , वा म व क व तु , हो । य द यह माना जाए
क खद ु ा तो अना द है , और जीव तथा कृ त सा द , तो मानना पड़ेगा क ई वर के मा लक होने का गुण भी न वर
है ! मौलाना ने इस तक क आलोचना म चार उ र दए ह

◼ सिृ ट वाह से अना द ◼

( १ ) क़ा दयानी उ र -
“वतमान जीव तथा कृ त न स दे ह न वर ह , पर तु खद
ु ा सदा से पैदा करनेवाला तथा उनका मा लक
होनेवाला है । इन वतमान जीव से पव
ू और जीव थे , उससे पव
ू और , और यह सल सला ऐसा है िजसका आर भ
नह ं ( प ृ ठ ५ ) ।”

यह उसी पहल बात को दस ू रे श द म कहा गया है क जीव वाह से अना द है , पर तु व प से सा द और न वर


। इससे साफ़ कट हुआ क अहमद म का काम भी ई वरे तर स ा को अना द माने बना चलता नह ं । इस बात
म तो अ तर रख लया क जीव तथा कृ त वाह से अना द ह । हम ऊपर लख चक ु े ह क वाह म भी अना द
काल से कुछ जीव तो ह गे ह । य द परमा मा अना द काल से टा का गण ु रखता है तो अना द काल से उसे जीव
तथा कृ त क सिृ ट करनी चा हए , और वे जीव अना द ह ह गे ।

◼ अना द टा , केवल शि त के ‘कारण' ◼

( २ ) अहम दय से भ न इ लाम का उ र -
दसू रा उ र मौलाना ने उन लोग क ओर से उ धत कया है , जो टा क शि त तो ई वर म सनातन
काल से मानते ह , पर तु सिृ ट के बनाने का आर भ मानते ह । इस उ र पर अहमद मौलाना ने यह लखने का

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द ु साहस भी कया है क व तत ु : यह इ लाम का म त य नह ं है । जनाब ! य द यह इ लाम का म त य नह ं है ,
तो इ लाम से इतर म त य के भी आप उ रदायी ह ? स य यह है क यह म त य इ लाम का है , पर तु हाँ ,
अहमद सं था से भ न इ लाम का । सो यह नणय तो अहमद तथा उनसे भ न वचार के मस ु लमान कर क
इ लाम का म त य कौन - सा है । हम तो मौलाना के लखने पर केवल यह आप है क वह जो उ र इ लाम का
नह ं मानते , यथ म उसे य ततु करते ह ? या सं या - व ृ ध के वचार से ? अथवा अपने ान का अ धक
दशन अभी ट है ? मौलाना का यह उ र ‘इलजामी' है ( िजस अपने म त य को वरोधी के म त य से स ध
कया जाये , वह उ र ‘इलजामी’ जवाब कहलाता है - अन० ु ) मौलाना लखते ह “आय समाज मानता है क येक
सिृ ट के आर भ म चार ऋ षय को वेद का ई वर य ान दया जाता है । पर तु इसके प चात ् चार अरब ब ीस
करोड़ वष तक ई वर के ान दे ने क शि त नि य रहती है । पर तु या कोई आय कह सकता है क ई वर गंग ू ा
है ?” ( प ृ ठ ६ )
श द गंग ू ा का योग मौलाना य द न करते , तो कोई अ तर न पड़ता भाव भी प ट हो सकता था । खैर ,
आपने इस म त य को प ट कया है क ई वर इसी कार से अना द काल से सिृ ट रचने क शि त तो रखता है ,
पर तु या म केवल इसी सिृ ट के रचनाकाल म वह शि त अ भ य त हुई । आपने उदाहरण दया क ान भी
तो ई वर सिृ ट के आर भ म ह दे ता है ? केवल एक बार । पर तु हमारे म त य तथा इस इ लामी म त य म
आकाश - पाताल का अ तर है । हम ान का दान - काल हर सिृ ट के आर भ म मानते ह और सिृ ट - रचना
अना द काल से हो रह है , इस लए हमारे म त य म ान के दान करने क शि त ह नह ं , अ पतु या भी
अना द काल से चल रह है , पर तु िजन मस ु लमान के म त य के आप प धर ह , वहाँ आपके श द म ई वर के
रच यता होने क शि त , या प म , केवल इसी सिृ ट क रचना म वे मानते ह , इससे पव ू अना द काल से इस
सिृ ट के ार भ तक ई वर का टा - शि त का कभी योग नह ं हुआ । वचारणीय है क कसी शि त के होने
का माण तभी होता है , जब वह शि त या प म आए । वतमान सिृ ट से पव ू तो खद
ु ा से या - प म आपके
म त यानस ु ार कभी टा होने का माण दया नह ं , अपनी शि त का पर ण भी नह ं कया , इस शि त का
अ यास भी नह ं कया , तो वह वामी कसका था ? न तो वैसे का वैसा बना रहा ? यह तो समझ म आता है क
येक शि त का योग हर समय और हर थान पर बराबर नह ं कया जाता ; यथा कसी को य द यह वचार हो
क ई वर एक ह व तु पर , एक ह ण म अपनी जीवन तथा म ृ यु दे ने क शि त का इक ठा योग करे , तो ऐसा
सोचनेवाले क भल ू है । पर तु यह आव यक है क ई वर क जीवनदा ी शि त का योग भी अना द काल से हो ,
और म ृ यद ु ा ी शि त का भी । योग का अवसर तथा थान बदलता रहता है । इससे कोई शि त मटती नह ं ।
पर तु य द अना द काल से एक शि त का योग ह न हुआ हो , तो समझना चा हए क अना द काल से वह शि त
थी ह नह ं , अथवा कसी दबाव से वह समा त ाय हो गई थी । इस अव था म अब भी कैसे व वास कया जाए क
यह शि त रहे गी अथवा कोई और शि त जाग उठे गी जो ई वर क पहले क शि तय से सवथा भ न , बि क
व ध हो ? जैसे ई वर ने अना द काल से टा न रहकर , अपनी परु ानी पर परा के व ध टा होना अब
पस द कर लया , ऐसे ह फर भी कभी ऐसा स भव है । अत : आ ेप वैसे का वैसा है , इ लाम पर भी और गैर
इ लाम ( ? ) पर भी !

◼ सापे गण
ु ◼

( ३ ) गैर - अहमद उ र -
तीसरा उ र भी अहमद सं था से भ न मस
ु लमान का दया उ र है , िजसे आप मस ु लमान मानते ह ं नह ं
। हम आ चय है क जब आप उ ह इ लाम म मानते ह नह ं , तो उनके वक ल य बनते ह ? या इस वकालत
का पा र मक मलेगा ? उ र इस कार है “अ लाह के गुण दो कार के ह — एक वा त वक , दस ू रे स बि धत ।
वा त वक गुण वे ह िजनक पू त अ लाह से इतर अि त व क अपे ा नह ं रखती , यथा - वह अना द है , प व है

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, अन त है आ द । दस ू रे गण
ु स बि धत गण ु ह , जो ई वर से इतर स ा क अपे ा रखते ह , यथा - टा ,
वा म व , पोषक इ या द । वा त वक गण ु सनातन ह पर तु स बि धत गण ु तभी कट होते ह जब ई वर से
इतर स ा का अि त व ार भ हो ( प ृ ठ ७ ) ।”
यह तो समझ म आया क कुछ स बि धत गुण हर समय तथा हर थान पर य त नह ं होते , जैसे हम
जीवन तथा म ृ यु के स ब ध म पहले कह आए ह , पर तु अना द काल से इन गुण क अ भ यि त हो ह नह ं ,
और फर एकदम हो जाए , यह इन गुण के अना द काल से अभाव का योतक है । इस गैर - इ लामी उ र क
आलोचना हम अपने श द म य कर ? मजा गुलाम अहमद क़ा दयानी लखते ह - “ई वर के गुण टा , पोषक
आ द सभी अना द ह , पर ई वर के इन गुण के अना द होने के कारण सिृ ट का अि त व भी वाह से अना द
मानना पड़ता है । ( च माए मआरफ़त १६० )”
हम कई बार इससे पव ू भी लख चक ु े ह क सिृ ट का वाह - प यि तय के बना स भव नह ं । आ खर
यह कैसे हो सकता है क अना द टा यि त तो एक भी उ प न न करे , और सिृ ट का कार बन जाए ? अत :
जो कार अथवा वाह को अना द मानते ह , उ ह यि तय को भी अना द मानना पड़ेगा ( यान रहे क
क़ा दयानी, सिृ ट का बनना - बगड़ना अना द काल से मानते ह ता क ई वर का टा गुण अना द रह पाये ,
पर तु यह भी मानते ह क हर सिृ ट म खद ु ा नये जीव उ प न करता है । पं० चमपू त का कहना है क अना द काल
क सिृ ट म कोई जीव तो अना द होगा ह , य क जीव के बना सिृ ट स भव नह ं । - अन० ु ) मौलाना का अपने
म त य से हटकर भी उ र दे ना कट करता है क उ ह आयसमाज से वाभा वक चढ़ है । मयाँ ! जीव - कृ त
को आप अना द न मान , आपक इ छा , पर तु य क आयसमाज ऐसा मानता है , उसके लए अपने म त य से
हटकर दस ू र के वक ल आप य बनते ह ? आपने वाह से जीव तथा कृ त को सनातन माना है और सनातन
सि ट के कुछ जीव का सनातन ( अना द ) होना आव यक है । दस ू रे श द म , आप मान सक प म जीव - कृ त
के अना द व को वीकार कर चक ु े ह , और य द यह इ लाम है तो आपम और हमम भेद कैसा ? अब आप इसे
आयसमाजी म त य न कहकर इ लाम का नाम द तो कोई अ तर नह ं पड़ता ।

चौथे तक क पन
ु राव ृ
चौथा उ र मौलाना यह दे ते ह क “जब ई वर , जीव तथा कृ त को उ प न करनेवाला है , न उनका
वनाश कर सकता है तो उसका या अ धकार है क उनपर अ धकार रखे ?” ( प ृ ठ ८ ) यह उ र या है जीव के
सा द तथा न वर होने के स ब ध म द गई मौलाना क चौथी दल ल क पनु राव ृ है । इसक आलोचना चौथे तक
के उ र म हो चक
ु है , वहाँ दे खने का क ट कर ।

◼ िजसका कारण भौ तक न हो वह अना द है ◼

आय क ओर से दया दस
ू रा तक -
आय क ओर से जीव तथा कृ त के अना द व म यह तक तत ु कया है - “संसार म जो व तु बनती है ,
उसका कोई - न - कोई भौ तक कारण होता है । चंू क मस
ु लमान भी नह ं मानते और वा त वकता भी यह है क
जीव तथा कृ त का कोई भौ तक कारण नह ं है , इस लए दोन अना द ह ।” ( प ृ ठ ९ ) उ र म मौलाना ने दो तक
ततु कये ह ।

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◼ १ . या साधारण कारण आव यक है ? ◼

जैसे कसी व तु के बनने के लए भौ तक कारण क आव यकता है , उसी तरह बनाने के साधन क भी


आव यकता होती है , पर तु इस नयम के होते हुए भी तम ु ई वर को इसका अपवाद मानते हो । तु हारा व वास है
क परमे वर साधन के बना भी व तए ु ँ बना सकता है । इस कार तम ु भौ तक कारण वाले स धा त म भी ई वर
को अपवाद - प म य नह ं मान लेते ? ( प ृ ठ ९ ) कसी व तु के नमाण म साधन क शत पण ू पेण सब पर
नह ं लगती । साधन क आव यकता उस कता को होती है जो यापक न हो , यथा मनु य । जैसे मनु य कोई व तु
बनायेगा तो अपने से अलग कसी अि त व म प रवतन लाएगा । उस अि त व तक उसक पहुँच साधन के बना
स भव नह ं ; इन साधन म उसका अपना शर र भी एक साधन है । ई वर सव यापक है , उसे अपने से बाहर नह ं
जाना है , इस लए उसे साधन क आव यकता नह ं । मौलाना ने अपनी पु तक के ११व प ृ ठ पर स याथ काश का
माण दया है िजसम सिृ ट के तीन कारण — न म ( य द यह यापक हो तो बना साधन के काय कर सकता
है , य द एकदे शी हो तो साधन का उपयोग भी कर सकता है ) , उपादान कारण तथा साधारण कारण , जैसे आकाश
, काल आ द जो येक व तु के नमाण म आव यक ह । इसके अ त र त साधन को हमारे आयदशन म कह ं
कारण - प से नह ं माना गया । मौलाना को अनव ु ाद से म हुआ है । साधारण कारण का अथ कसी भी कोश म
यं अथवा साधन का नह ं है । अत : यह साधन का कारण न तो आयदशन म माना गया है और न हमने ई वर
को इस वषय म अपवाद प माना है । य द कृ त क अना द न होने क बात ई वर के साधन के बना सिृ ट के
उ प न करने के म पर आधा रत थी , तो वह वचार मयु त होने के कारण म या स ध हुआ । य द कृ त के
अपवाद का आपका आवेदन , साधन के कारण के अपवाद के म से था तो आपका यह आवेदन , कारण के म या
होने के मा णत होने पर वयमेव समा त हो गया ।

◼२. त ा को ह तक बना दया ◼

दस
ू रे उ र म लखा है , “ य क आपके वचार म जीव तथा कृ त नरवयव ह , अत : य द वे उ प न ह
तो उनको कोई भौ तक कारण न होगा , य क भौ तक कारण सावयव व तओ ु ं के लए होता है ( १३ )” यह तो हम
भी कहते ह क कृ त नरवयव है , जीव भी नरवयव है , उनका उ प न होने का तथा भौ तक कारण का न ह
नह ं उठता । वे अना द ह । आ ख़र वे कस लए उ प न ह गे ? आपने लख दया , ‘य द वे उ प न ह ’ , या
नरवयव भी उ प न होते ह ? पैदा होने का अथ है अवयव का यवि थत होना । नरवयव य द यवि थत ह तो
सावयव हो जाएँगे , नरवयव न रहगे । आपका तथा हमारा ववादा पद वषय है क या नरवयव भी अभाव से
भाव म लाये जाते ह ? आपने उ र म लख दया - “अभाव से भाव म लाना अथात ् नरवयव को अभाव से अि त व
म लाना अ लाह के जादई ु हाथ का क र मा है ( १३ ) ।” ीमान ् जी , यह तो आपक त ामा है । इसम तक
दया होता तो कुछ बात थी , या केवल त ामा के कथन से ह त ा हो गई ?

(१) य माण वारा -


आय के वारा जीव तथा कृ त के अना द व म तीसरा तक दया गया है क संसार म कोई व तु अभाव से
भाव म आते नह ं दे खी जाती तो कैसे मान लया जाए क अभाव से भाव होता है ? ( अथात ् संसार का जीव तथा
कृ त वारा बनना , उनके अना द व का माण है ) मौलाना ने इसके दो उ र लखे ह । थम तो आय के
म त य वारा स ध कया है क “ऋ ष दयान द माता - पता के बना स तानो प को अस भव मानते ह ,
पर तु सिृ ट के आर भ म अमैथन ु ी सिृ ट म माता - पता के बना मनु य क उ प मानते ह ।” इसपर मौलाना
का आ ह है क जब एक अस भव को सिृ ट के आर भ म स भव मान लया , तो दस ू रे अस भव अथात ् अभाव से
भावो प को भी स भव वीकार कर लो । जनाब ! ऋ ष क लखी अस भव बात म कुछ और का भी वणन है ,

61
यथा मनु य के सींग , आकाश - पु प , बना वषा तथा धरती के अ न क उ प आ द ; इनको भी तो स भव
वीकार करना था ? माता - पता के बना पु ो प क बात सिृ ट के आर भ के प चात ् अस भव है । इसे आप
भी वीकार करते ह और हम भी । सिृ ट के आर भ म अमैथन ु ी सिृ ट के अ त र त कोई उपाय बताइये ? ऐसे
अस भव को स भव माना , वशेष अव था म दशन क अ नवायता है , पर तु य क एक अस भव को स भव
मान लया है , अत : येक अस भव को स भव वीकार करो , यह और बात है । यह तो जैसे दशन के साथ
उपहास है । आप भी तो हजरत आदम को कसी क स तान नह ं मानते ? बि क इस वचार से क कह ं , आदम
क स तान को आपस म भाई - ब हन का ववाद न माना जाये , ार भ म एक आदम नह ं , कई आदम उ प न
हुए , ऐसा मानते ह । धीरे - धीरे आप आयसमाजी हो रहे ह । अत : इस म त य म तो आप और हम समान
ि टकोण के ह क सिृ ट के आर भ म अमैथन ु ी सिृ ट हुई , अब इससे यह कैसे स ध हो गया क भौ तक संसार
का कोई भौ तक कारण भी नह ं था ? हजरत आदम का जीव अना द , उसके शर र और कृ त का कारण अना द ,
आदम का अि त व भी तो अभाव से भाव म नह ं आया ? फर आप सब जीव को , कृ त को , बना कारण के
उ प न होना , ऐसा मानने को कैसे कहते ह ? अमैथन ु ी सिृ ट क उपादान कारण कृ त थी । उनके माता - पता न
थे । आपसे भी कोई जीव तथा कृ त के माता - पता का न करे तो कह दे ना क नह ं है । अब तो न है उपादान
कारण के अि त व का ।

(२) य नह ं तो अनम
ु ान - माण से दे ख -
दस
ू रा उ र नो र के प म दया है िजसका सार यह है क न दे खने को तो लयाव था को भी कसी ने
नह ं दे खा , Matter क सू माव था कसी भी इि य का वषय नह ं है । ार भ का ई वर य ान भी कसी ने होते
नह ं दे खा , फर भी इस अव था पर और घटनाओं पर व वास कया जाता है , तो उपादान कारण के अभाव पर भी
व वास कर लेना चा हए ।”
ीमान जी ! लय क अव था का अनम ु ान तो वन प तशा ( फ़िज स ) के अ ययन से होता है ।
खगोल व या के जानकार बताते ह क कसी समय Matter सू म अव था म था िजसे व वान ् Chaos कहते ह ।
इन व वान का कहना है क यह Matter फर उसी अव था म चला जाएगा , यह लय क अव था है । इसी को
Matter क सू माव था कहते ह । ान के ार भ क पहे ल भी बना ई वर य ान के प ट नह ं होती । वेद ने
इन सबक पण ू या या क है , पर तु आप य क वेद का माण वीकार न करगे , इस लए हम उसका आ ह
नह ं करते और आपसे ाथना करते ह क केवल कुआन के माण पर कोई दाश नक भवन तैयार न कर । कोई तक
द । लय तथा ई वर य ान का कारण हमने बता दया । आप अभाव से भावो प म कोई तक दगे तो उसपर
वचार कया जायेगा । दशन म कोई टा त और वह भी अनप ु यु त टा त कभी तक का काम नह ं करता । हम
आपको व वास दलाते ह क आपक तत
ु क गई कुआन क आयत आपका साथ नह ं दे ती । इसपर वचार हम
आगे चलके करगे , अभी इसे ब द करके रख द िजये ।

◼ अभाव से भाव ◼

चौथा तक -
आय का चौथा तक आपने इस कार लखा है - “अतएव अभाव कभी भी भाव का उपादान कारण नह ं बन
सकता ।” ( १९ )

‘ से ' के अथ -
उ र म आय का उपहास करते हुए मौलाना ने लखा है क जब हम अभाव से भावो प क बात कहते ह ,
तो वहाँ अभाव को भाव का उपादान कारण नह ं मानते , जब हम कहते ह , अमक
ु यि त द र से धनी हो गया

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अथवा रोग से व थ हो गया , तो यहाँ 'से' से अ भ ाय प रि थ त के प रवतन से है , उपादान कारण से नह ं ।
अ भ ाय यह है क अभाव , भाव क वरोधी अव था है , अभाव एक अव था है , भाव दस ू र । दोन अव थाएँ
संसार क ह । पहले एक अव था थी , अथात यह जगत ् अभाव म था , फर इसके व ध दस ू र अव था हो गई ,
और जगत ् ‘भाव' क अव था म आ गया । पाठक को हमारा ार भ म कहा वा य यान म होगा क दाश नक
ि टकोण से 'अव था' एक वशेषण है , जो अपने वशे य के बना रह नह ं सकती । अव था अपना वशे य चाहती
है , अत : पछ
ू ना इतना है क भाव तथा अभाव जो पर पर वरोधी अव थाएँ ह और जो एक के प चात ् दस ू र आती
रहती ह , ये कसका गुण ह ? दस ू रे श द म भाव तथा अभाव , इन दोन गुण का गुणी कौन है ? य क गुण ,
गुणी पर आधा रत होता है । अभाव कसके आधार पर ि थत था जो इसके प चात ् भाव म य त हो गया ?
मौलाना वचार से दे खगे तो आय के तक म स य को पायगे । केवल अभाव से भाव क अ भ यि त अस भव है ।
हाँ , जब काय , कारण के प म होता है , तो काय का अि त व तब नह ं होता , पर तु उसका सवथा अभाव नह ं
होता , प से अभाव होता है । काय के प म प रणत होने पर , उसके प का अभाव , भाव के प म अि त व म
बदल जाता है । इस कार तो कोई भी बु धमान ् अभाव से भाव का होना मान सकता है , पर तु सवथा अभाव से
संसार के अि त व को मानना बु ध से बाहर है , अस भव है ।

‘कुन’ का स बोधन -
कुआन म आया है ‘कुन' अथात ् 'हो जा' और उससे सारा व व अि त व म आ गया । इसपर आय पछ ू ता है
क 'कुन' का आदे श कसे दया गया ? य द कसी का अि त व भी नह ं था , तो अ लाह का आदे श यथ हुआ ।
मौलाना इस न पर बहुत ु ध हुए लखते ह - “गधा भी जानता है क ‘कुन’ का स बोधन व तु से था , न क
उसके कारण से ।” मौलाना ! गधा जानता होगा , पर तु आप मनु य से बात कर रहे ह । ‘बरु ाक' ( वह पशु है जो
महु मद साहब को धरती से उठाकर सातव आकाश पर खद ु ा के पास ले गया - अन०
ु ) होने का मह व सबको ा त
नह ं होता । साधारण मनु य तो फर पछ ू े गा क जब कोई व तु थी ह नह ं , तो उसे स बो धत य कया ?
मौलाना ने इस आयत के दो अथ कए ह - “इस ‘कून' के योग से अ लाह का अरब के लोग को यह बताना अभी ट
था क हम एक अ व यमान व तु के अि त व क इतनी तम ना रखते ह , अथवा उसके उपि थत होने का भरोसा
( व वास ) कर लेते ह क उस अपनी इ छा क ती ता को बताने के लए , हम वयं उस व तु को स बोधन करते
ह ।” ( प ृ ठ २८ ) इसपर हजरत मह ु मद के जीवन क एक घटना का उदाहरण भी दया है क माग क ओर मख ु
करके फ़रमाते थे 'कुन अबु खशेमा' अथात ् तू अबखु शेमा बन जा । ( प ृ ठ २४ )
इ छा क ती ता म मनु य का मि त क कुछ व वल हो जाता है । मनु य ऐसा कहता है , पर तु
परमा मा के साथ इस व वलता का जोड़ना बु धम ा नह ं । शेष रहा व वास , उसका उदाहरण आपने दया नह ं
। चलो , आपका कहना मान लेते ह क अ लाह तआला जब अकेले थे , तो एक दन अचानक ‘कुन’ का शोर बल ु द
कया । पर तु जनाब ! यह शोर अभाव के स मख ु बल
ु द कया ? इसका भी कोई माण दया होता ! आय लोग
य द यहाँ यह अनम ु ान लगाते ह क अ लाह ने इसे कृ त से कहा तो केवल इस लए क वे कुआन के वा य को
बु धसंगत दे खने के इ छुक ह , नह ं तो य द आपका आ ह है क ‘कुन' का स बो धत कोई नह ं था , तो आय को
इसम या गला ?

दो मौलानाओं म मतभेद -
ात होता है क मौलाना वयं अपने दये उ र से स तु ट नह ं । इस आयत के दस ू रे अथ मौ० नू द न
क या या से नकाले ह । लखते ह - “‘कुन' कसी व तु के Matter से नह ं कहा गया , य क Matter मलू वा य
म नह ं लखा । कसी व तु का बा य प भी स बो धत नह ं था , य क उसने अभी बना है । बि क उस बनने
वाल व तु के बौ धक ान से कहा गया , जो अ लाह तआला के ान म सदा से है ।” ( प ृ ठ २८ ) ।
मौ० नू द न क स म त म ‘ कुन ' का स बोधन व तु के बा य प से नह ं हो सकता , य क उसने
अभी बनना है , पर तु मौ० मह
ु मद इसहाक़ गधे से भी यह आशा करते ह क वह इसे समझ जाये क कुन का

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स बोधन व तु से है , और कसी अि त वह न व तु को , िजसने अभी बनना है , उसके व वास से स बो धत
कया जा सकता है । दो मौलानाओं म मतभेद है , हम साधारण यि त इसम दख़ल नह ं दे सकते । बौ धक
अि त व का अथ है ान । व व का यह बौ धक अि त व है । पर तु वचारणीय है क या बौ धक क पना
अथवा ान , बा य व प को धारण कर सकता है ? अ लाह तआला ने बौ धक ान अथात ् बौ धक क पना
को आदे श दया क ‘हो जा' , या हो जा ? बा य अि त व । दस ू रे श द म बौ धक ान , बा य व प धारण
करनेवाल व तु का उपादान कारण हुआ । उपादान कारण इस लए क उसने बौ धक क पना का प यागा , और
बा य प धारण कया । तब भी स बोधन , कारण से हुआ , काय से नह ं ! मौ० नू द न क या या का सार ,
मौ० महु मद इसहाक़ के श द म इतना है क संसार क उ प ई वर क क पना से हुई । और िजसका कारण
क पना हो , वह काय भी का प नक होगा । जैसे Matter से चेतना क उ प नह ं होती अ पतु चेतनता का गण ु ी
चेतन जीवा मा है , ऐसे ह चेतनता से Matter क उ प भी नह ं हो सकती । य द मौ० नू द न अपनी या या
के दाश नक प रणाम पर वचार कर , तो उ ह अपना म त य अ ततोग वा ‘सव खि वदं ' के अनक ु रण पर बनाना
होगा क सारा संसार केवल व नमा है , परमा मा व न दे खता है और संसार दे खा जाता है । दस ू रे श द म ,
केवल इतना नह ं क जीव तथा कृ त का अि त व अना द नह ं , अ पतु इस समय भी उनक वा त वकता नह ं ,
केवल अ लाह क क पना है । सारे पाप , सभी दब ु लताएँ जो संसार म ि ट गोचर होती ह , वे जैसे अ लाह मयाँ
क बौ धक क पना के चम कार ह । यह म त य ई वर न करे क मस ु लमान का हो , हम तो व वास नह ं ।
कुआन क आयत क या या आप जो चाह , कर , वह आपक स प है , पर तु अभाव से भाव क
उ प का कोई तक दो । इतना लखकर भी तक फर भी न दे सके ।
अब आइये तीसरे अ याय पर मौलाना ने तीसरे अ याय म उन आ ेप का सं ह कया है जो वरोधी , जीव
तथा कृ त के सा द एवं न वर होने के म त य पर दे ते ह , साथ ह इन आ ेप का क़ा दयानी जो उ र दे ते ह , वह
भी लखा है । थम अ याय म तो आय के न ह लखे थे । य द सब न को एक थान पर लखकर उ र
लख दे ते , तो या अ तर पड़ता ? वषय म यव था आ जाती , और मौलाना पन ु ि त - दोष से भी बच जाते ,
पु तक कुछ कलेवर म कम हो जाती , और मौलाना के नो र भी कम हो जाते , और यह पु तक कसी व वान ्
क व व ा का उपहासमा न बनती । स य मा नये तो मौलाना के दये उ र द लगीमा ह ह । मौलाना ने
ल बी पु तक लखने क यहाँ थकान उतार है । हम उ र दे ने को ववश न होते , तो इस भाग को छोड़ दे ते । पाठक
भी अपनी थकान कम करने के लए इसे पढ़ जाएँ , मनोरं जन तो होगा ह !

◼ अभाव तथा भाव का सि मलन ◼

पहला आ ेप -
पहला न डॉ० डाड साहब का है क “य द अभाव से भाव क उ प मानी जाए , तो उ प मक नह ं हो
सकती , य क अि त व का म नह ं होता । अि त व या भाव जब होगा तो एकदम होगा और पण ू होगा , यह न
होगा क अि त व पहले कम था , फर अ धक हो गया । इस अभाव तथा भाव म समय का अ तर बहुत थोड़ा होगा
। दसू रे श द म , कुछ समय सह , चाहे वह कतना थोड़ा मान , वह भी होगा जब अभाव तथा भाव दोन ह गे , और
यह अस भव है !” मौलाना को इस आ ेप का उ र तो या आता , अाय पर कृपा ि ट कर द है ; लखते ह क
तमु भी तो नि यता के प चात ् सिृ ट उ प म परमाणओ ु ं म या मानते हो , तो या यह नि यता तथा
या कभी इक ठे नह ं होते ह गे ? अथवा , कृ त एक समय नरवयव तथा सावयव नह ं होती होगी ? मौलाना !
आ ेप डाड साहब ने कया है , पहले उ ह उ र दो , फर आय को भी उपदे श कर लेना । मान लो क य द आय का
म त य भी ग़लत स ध हो जाए , तो या दो म त य क अस यता , एक म त य का अनम ु ोदन बन सकेगा ?
अपनी दाश नक पराजय म आय को सि म लत करने के लए आपको बहुत - कुछ सोचना पड़ेगा । डाड साहब का
आ ेप है — भावो प म म के अभाव के कारण अभाव तथा भाव का कुछ समय इक ठा होने का अनम ु ान कया

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जा सकता है , पर तु ग त तथा यव था पर यह न लागू नह ं होता । उनपर यह न तब लागू होता य द उनम
म न होता ; ग त म भी कमी तथा अ धकता आती है , और यव था म भी ठहराव का म आता है । अत : ग त
तथा यव था म , म से प रवतन धीरे - धीरे होगा और डाड साहब का आ ेप इस स धा त पर न हो सकेगा ।
आ ेप तो अभाव से भावो प पर है , य क अभाव से भाव जब होगा , एकदम होगा , पण
ू होगा , पहले कम तथा
कुछ काल प चात ् अ धक भावो प न होगी । ( इस अव था म कसी समय चाहे वह कतना थोड़ा हो , अभाव
तथा भाव इक ठे ह गे और यह अस भव है - अन०
ु )

◼ तकोना व ृ तथा दो पवत म घाट का अभाव ◼

दस
ू रा तथा तीसरा आ ेप -
दसू रा आ ेप ह सले का है क ई वर तकोना व ृ नह ं बना सकता । यह आ ेप उन लोग पर है जो
परमे वर के सवशि तमान ् होने का यह अथ लेते ह क ई वर येक घ ृ णत काय भी , चाहे वह उसके गण ु के
वपर त हो , कर सकता है । इस वषय म अहमद जमाअत ने अपने म त य को सध ु ार लया है , अत : यह आ ेप
आप पर नह ं होता । अभाव से भाव क उ प भी ऐसा ह अधरू ा म त य है । दस
ू रा आ ेप ट सा हब का है क
खदु ा दो पवत को साथ - साथ इस कार नह ं रख सकता क उनके म य म घाट न रहे । जैसे इस अव था का
होना हम अस भव मानते ह , वैसे ह अभाव से भावो प भी अस भव है । नकताओं के न करने का ल य
यह है क अभाव से भावो प न कर सकने म परमे वर क सवशि तम ा म कोई अ तर नह ं आता ।

◼ एक कनारे क नद ◼

चौथा आ ेप -
चौथा आ ेप आय क ओर से है क एक कनारे क नद कभी नह ं होती है । ऐसे ह जो स ा अन त है उसे
अना द भी मानना पड़ेगा । उ र म मौलाना ने लखा है क य द एक कनारे क नद नह ं होती , तो ऐसी नद भी
नह ं होती िजसका कोई कनारा ह न हो । ीमान जी , वह होती है जैसे परमा मा । अ लाह मयाँ अन त भी है
और अना द भी , दखाइये इस नद का कनारा ? आप कोई और व तु बना द िजये िजसक एक सीमा तो हो ,
दसू र न हो । आय का कहना केवल इतना है क िजन स ाओं को आप अन त मानते ह , उ ह अना द भी मानना
पड़ेगा । ( यान रहे क इ लाम जीव क उ प तो मानता है , पर तु वग अथवा नरक म उनका अि त व
अन त काल तक मानता है अन० ु ) य क िजसका ार भ है उसका अ त भी होगा । आप कसी ऐसी व यमान
स ा का उदाहरण द िजसका आर भ तो हो , पर तु अ त न हो ।
मौलाना ने इस सवमा य स धा त के अपवाद म सं या का उदाहरण दया है क िजसका आर भ तो एक
से होता है पर तु अ त नह ं होता । पर तु हमारा मत है क िजस गनती का आर भ एक से नह ं होता , उसका
आर भ है ह नह ं । एक से कम है आधा , आधे से तहाई , फर चौथाई । आप ऊपर सं या बढ़ाते जाएँ , हम उसी
हसाब से ‘ कसर ' बढ़ाएँगे । आप पाँच कह तो हम १ / ५ कहगे । आप लाख क हये तो हम १ / २ लाख कहगे । जैसे -
जैसे आप गनती को बढ़ाने म सीमा नह ं बनाएँगे , हम उसके आर भ क सीमा कम मा णत करते जाएँगे ।
व तत ु : एक भी एक गनती का अंग है , उसम एक है , और गनती का न आर भ है और न अ त ।

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◼ अ लाह मयाँ थ गत ( मअ
ु ल)⬛

पाँचवाँ आ ेप -
‘य द सिृ ट के वाह का आर भ माना जावे , तो न चय है , सिृ ट वाह के आर भ होने तक का जो
अन त काल रहा होगा उसम ई वर बेकार रहा होगा , और उसके सभी गण ु भी थ गत हो चक ु े ह गे ! ( प ृ ठ २२४ )
आय के इस आ ेप को मौलाना ने जोरदार आ ेप माना है , और इ लाम के उन शा ाथकताओं को , जो सिृ ट के
वाह का आर भ मानते ह , मौलाना ने उ ह अधकचरा शा ाथ करनेवाला कहा है । खैर , यह तो मौलाना क और
उनके स दायवाले मु लाओं क तकरार है । इ लाम के थान पर अहम दयत लख दे ते , तो उपयु त था । इसम
स दे ह नह ं क अहम दय ने जो म त य , आय के न से थककर तराशा है , हमारे म त य के अ धक समीप है
, अ पतु यह आय समाज क वजय का माण है । य द अपने नये तराशे म त य के ता कक प रणाम पर अहमद
म यान दगे , तो उ ह आयसमाज के म त य को ह वीकार करना पड़ेगा । मौलाना लखते ह , “िजस कार
आय हर सिृ ट को न वर पर तु सिृ ट के वाह को अन वर मानते ह , इसी कार कुआन मजीद ( अहम दय
वारा अनू दत कुरआन ) सिृ ट के येक यि त को न वर , पर तु सिृ ट - रचना के वाह को सनातन वीकार
करता है ।” ( प ृ ठ २४५ ) या इस लेख के श द लखने का कार और आयम त य का उदाहरण दे ना , इस स य
का प ट माण नह ं क सिृ ट को वाह से अना द मानने का स धा त आय के तक को स य वीकार करके
बनाया गया है ? चलो , याय अहमद म पर । अहम दयत से पव ू इ लाम क पु तक म सिृ ट को वाह से
अना द के स धांत को कह ं दखा द ? अब सिृ ट का वाह तो अना द मान लया ; फर लखा है “िजस कार खद ु ा
सनातन है , इसी कार उसका सिृ ट क रचना करते रहना भी सनातन है ( २४७ ) ।” “खद ु ा तो सनातन है , पर तु
सिृ ट का कोई जीव सनातन नह ं , य क येक जीव उ प न हुआ है और जो उ प न हुआ है , वह उ प कता के
प चात ् होता है ( २४८ ) ।”
न यह है क या वतमान जीव म कोई जीव सनातन नह ं ? अथवा , आज से पव ू भी कोई जीव सनातन
न था ? जब उ प कता सनातन है और वह सनातन काल से उ प कर रहा है तो कोई उ प न जीव सनातन कैसे
न हुआ ? आ खर रच यता का गुण रचना के बना कैसे अ भ य त होगा ? सिृ ट भी तो जीव के बना नह ं हो
सकती । सिृ ट के वाह को आपने वयं सनातन मान लया , तो या वह वाह बना कसी जीव के सनातन हुए
यवि थत हो गया ? स भव है आप कह क जीव सनातन काल से बनते आये ह और वन ट होते आये ह , तब
आपक स म त म वतमान जीव तो सनातन न ह गे , पर तु पछले जीव म कुछ तो सनातन काल के ह गे ?
आपने ह लखा है “एक यग ु ऐसा आ चकु ा है क न ये जीव थे , न संसार क कृ त थी , बि क अ लाह था और
केवल अ लाह था ( २४९ ) ”

एक व-( लय)-काल -
आप इस यग ु का नाम वहदत ( एक व ) का यग ु रखते ह और मानते ह क यह वहदत का दौर पन ु ः - पन
ु ः
आता है । इस वहदत के दौर ( यगु ) से पव
ू और प चात ् कसरत ( बाहु य ) का यग
ु मानते ह । अत : बाहु य के यग ु
म जो जीव तथा कृ त उ प न हुए , वे खद ु ा क वहदत ( एक व ) के यगु म समा त हो गए । पनु : दौर बदला तो
नये जीव तथा कृ त ( नई ) उ प न कये गए । य द आप इसपर स तोष करते तो हम यह मानकर चप ु हो जाते
क अ लाह के रचना के गुण से सनातन काल म जीव उ प न तो हुए थे , य क इसके बना उसके रच यता का
गुण स दे हा पद हो जाता , पर तु अब वे जीव रहे नह ं , अ लाह क वहदत का शकार हो गए । पर तु आप भी तो
मयाँ , जादग
ू र ठहरे ! फर लखते ह “अन तता के वषय म भी यह रचना तथा पन ु : लय ( दौरे - वहदत ) और
पन
ू : रचना । न कोई अि तम रचना , न अि तम लय ( २४९ ) ।” यह भाषा लखी ह थी क मौलाना को वचार
आया - य द कोई पछ ू े क या जब भ व य म दौरे - वहदत आयेगा तो जनअत रहे गी या समा त हो जाएगी ? तो
मौलाना उ र दे ते ह क “जनअत सदा रहे गी” अथात ् या लय का वार वग पर नह ं होगा ? वह ि थर रहे गा ?
और या पहले क भी जनअत शेष है या समा त हो चक ु ? मौलाना का कहना है क जनअत समा त नह ं होती ।

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“िजस कार हम लोग दन - भर काम करते ह और रा को सो जाते ह — सारा काय - यवहार समा त दक ु ान
ब द , चार ओर मौन क त धता , पर तु यह नह ं कहा जाता क संसार मट गया , इस कार लयाव था म (
वहदत के दौर म ) सब कुछ मट जाएगा , पर तु यह काल सदा का नह ं , इसके प चात ् जो मट गया है वह स ा म
आयेगा“ और इस कार जनअत तथा जनअत म रहनेवाला सब - कुछ व यमान रहे गा ( २४९ ) ।”

व नाव था -
मौलाना स य के समीप आ चक ु े ह । या सचममच ु लयाव था , व नाव था के समान है ? या केवल
काय - यवहार समा त हो गया ? य द ऐसा है तो ‘ लयकाल म सब - कुछ मट जाना' मत क हये , ‘काय यवहार
से हट जाना' क हए । जो उदाहरण आपने दया है वह आय क लयाव था के सवथा अनक ु ू ल है , पर तु आपक ‘
वहदत ' ( एक व ) [ अथात ् खदु ा के सवा कुछ शेष नह ं रहता ] के लए तकूल है । व नाव था म पड़ा जीव
काय यवहार नह ं करता , पर तु व यमान रहता है । इसी कार लयकाल म भी जीव काय नह ं करते , पर तु
रहते ह । आपक वहदत के म त य म तो सब मट जाते ह , इस अव था का व नाव था से या मेल ?

वग और लय -
इस अभाव क चचा के प चात ् आपका लेख फर पहे ल बनके रह जाता है । आपने फ़रमाया है क
लयाव था अन तकाल तक न रहे गी कारण क फर सिृ ट होगी , इसके प चात ् फर वह लयकाल , पर तु
इसपर भी आप उसे अन तकाल तक होनेवाल नह ं मानते । जनअत क अव था भी यह है - लयकाल म समा त
- सी हो जाती है , फर आपके कथनानस ु ार दोबारा व यमान होती है । य द लयाव था थोड़े - से अ तर के प चात ्
दोबारा होने पर आप अनंतकाल क नह ं मानते तो जनअत इस अ तर के भी अनंत कैसे ह गई ? हाँ , होने पर
लयाव था और जनअत म व प का भेद है । थम नकारा मक होने से भेदर हत है । लयाव था पहले भी
नकारा मक थी , भ व य म भी नकारा मक होगी ; और दो नकारा मक एक - से हो सकते ह , उ ह एक कहा जा
सकता है । जनअत सकारा मक है । सकारा मक होने पर व प - भेद वाभा वक है । यि त का , काल का ,
अंतर पड़ सकता है परं तु जनअत म वह जीव दोबारा य ह गे ? नए ब ह त का तो मसाला नया होना चा हए । वह
अनंत य कर हो गया ? आपने लखने को तो लख दया “िजसका अभाव होगा , वह भाव प म होगा और जो
नकारा मक होगा , वह सकारा मक हो जाएगा ( मनफ़ मसबत होगा ) प ृ ठ २५० ।” परं तु इसके अथ या ह ? यह
न क अभाव तथा भाव दो अव थाएँ ह जो एक ह स ा क होती ह । नह ं तो सवथा अभाव के प चात ् भाव क
अव था कैसी ? और य द ऐसा ह है क अभाव तथा भाव दो अव थाएँ ह , तब आपका और हमारा ववाद कस बात
पर है ? अव थाएँ बदलती रहती ह , परं तु मल ू स ा ि थर है अथात ् अना द तथा अनंतकाल रहनेवाल । वषय कुछ
ग भीर है , बु धपव ू क वचार क िजए । सिृ टकाल म उ प न हुए जीव लयकाल म समा त हो गए , उनका
अि त व ह न रहा । यह अव था जनअत के जीव क भी है । फर सिृ टकाल हुआ । अब उ प न हुए जीव वह
पहले वाले ह गे या नये ? य द परु ाने जीव ह गे तो लयकाल म उनके अि त व का स ब ध नये और परु ाने का रह
जाना चा हए , जैसे जाग ृ त म जीव तथा व नाव था का जीव स ब ध म एक रहते ह । व नाव था म पण ू
अभाव नह ं होता । य द पण ू अभाव हो जाए तो जागने पर जागनेवाला अपने परु ाने सोनेवाले से भ न होगा । ऐसे
ह परु ाने जनअत के वासी जीव जो सिृ टकाल म फर जी वत ह तो बीच के काल म उनका पण ू अभाव नह ं मानना
होगा । य द पण ू अभाव मान ल तो नए व ह ती परु ाने रहे ह नह ं , और आप मानते ह ब ह ती वह रहगे । अनम ु ान
से यह कहा जा सकता है क लयकाल म जनअत , जनअत न रहकर अ त सू म अव था म प रव तत हो जाता है
, जैसे आपके कथनानस ु ार लय म सभी रहते ह , केवल काय यवहार समा त हो जाता है , अि त व का नाश नह ं
होता । इस अव था के मानने पर आपका व न का टांत ठ क लागू हो सकता है । य द अि त व का पण ू अभाव
मान तो फर जनअत के वा सय को सिृ टकाल - वा सय म परु ाना जनअत का वासी न मा नये , परु ाना ब ह त तो
समा त हो चक ु ा और जो समा त हो जाए , वह अनंत कैसा ?

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आपने लखा है - “जो मानव का जीव एक बार उ प न हो जाये फर उसे खद ु ा मटाता नह ं ” ( प ृ ठ २५० ) । या
लयकाल म भी नह ं मटाता ? य द एक बार मटा दे , तो सिृ टकाल म वह जीव फर उ प न नह ं हो सकता ?
व तत ु : वह जीव तथा वह Matter उस समय रहगे , ता क उनके अि त व म स ब ध रहे ; स ब ध न रह तो ‘
वह ' श द का उसके साथ जोड़ना भी केवल छलावा है । पण ू लय का अथ अ थायी लय नह ं , थायी लय होता
है । य द आपका म त य है क लयकाल ( दौरे - वहदत ) म कसी जीव का नाश नह ं होता , केवल काय -
यवहार समा त हो जाता है , तब तो लयकाल भी सिृ टकाल का दस ू रा प हो जायेगा । ई वर से अ त र त
स ाएँ भी व यमान ह गी , पर तु कुछ काल के लए काय करने से र हत ह गी ; यह लयाव था है । तब तो
आपका और हमारा म त य एक हो गया । लयकाल तथा सिृ टकाल का वाह अना द काल से चला आता है ।
ई वर से भ न अ त र त स ाएँ दोन अव थाओं म व यमान रहती ह , लयकाल म काय ब द हो जाता है (
रा के समान - अन० ु ) पर तु अि त व रहता है , पण ू अभाव कसी अव था म नह ं होता । इस कार ( कसरत
तथा वहदत ) सिृ टकाल तथा लयाव था ई वरे तर स ाओं क दो अव थाओं का नाम है , और चंू क ये अव थाएँ
अना द काल से ह , अत : ई वरे तर स ाएँ ( जीव , कृ त ) अना द ह , यह हमारा म त य है ।

छठा आ ेप -
आय के दये तीसरे तक क पन ु राव ृ मा है , मौलाना ने इसका उ र वह दया है , जो हमारे तीसरे तक
का दया है , और उस उ र पर हमार आलोचना भी वह है , िजसे हम दे चक
ु े ह।

◼ ई वरे तर स ा का अना द व तथा बहदे ववाद ◼

सातवाँ आ ेप -
“जीव तथा कृ त को केवल अना द मानने से हम ( आय लोग ) बहुदेववाद नह ं होते ” ( २५२ ) । भला यह
भी कोई आय का न है , िजसे मौलाना ने अपनी नावल म जोड़ा है ? यह तो आय क ओर से अहम दय को
दया गया उ र है । मौलाना आय को बहुदेववाद ( मश ु रक ) ठहराने पर तल ु े हुए ह , केवल इस लए क आय लोग
ई वर से भ न जीव तथा कृ त को भी अना द मानते ह । मौलाना को या कहा जाये ! सिृ ट को वाह से तो वे
भी अना द मानते ह , तो या मौलाना भी बहुदेववाद ह ? अन त काल तक रहनेवाला तो आप मनु य के जीव को
वीकार करते ह । जैसे अना द व ई वर का गुण है । वैसे अन तता भी उसी का गुण है । य द अन तता म ई वर
तथा ई वरे तर को समान मानने से बहुदेववाद का दोष नह ं आता तो अना द व के गुण म ई वरे तर को साथ मानने
से बहुदेववाद ( शक ) कैसे आ गया ? यह उ र इससे पव ू भी हम दे चकु े ह , पर तु मौलाना को न क सं या
बढ़ाने का शौक है , अत : प टपेषण से कोई लाभ नह ं ।

◼ सात हजार वष का खद
ु ा◼

आठवाँ आ ेप -
आय का न है “इ लाम खद ु ा को केवल छ: - सात सह न वष से रच यता मानता है , इससे पव
ू खद ु ा को
बेकार और नि य वीकार करता है ” ( प ृ ठ २५४ ) । भला इस न म तथा पाँचव न म भ नता कौन - सी है ,
िजसने मौलाना को अलग थान दे ने पर ववश कया ? नि यता के न पर जो कुछ आपने उ र दे ना था , दे
चकु े । अब छ:-सात हजार वष से सिृ ट - उ प म खद ु ा को स य मानो अथवा सिृ ट - उ प क कोई और त थ
नकालो , उससे पव ू तो अना द काल से रहता खद ु ा बेकार ह रहा होगा ? ( इ लाम इसी सिृ ट को पहल तथा

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आ ख़र सिृ ट मानता है ) अब आपने इस बात को बदल दया , हमारे लए इससे बढ़कर स नता या होगी ? (
यान रहे क आय के न से ववश होकर अहमद हज़रत यह मानते ह क सिृ ट वाह से अना द है और
वतमान सिृ ट से पवू भी खदु ा अना द काल से सिृ ट क रचना करता आया है और लय लाता आया है , अ तर
इतना है क हर सिृ ट म खद
ु ा नये जीव तथा कृ त को उ प न करता है । - अन०
ु ) आज आपने सिृ ट को वाह से
अना द माना है , कल को आवागमन भी वीकार कर ल िजएगा , और फर क हयेगा क आवागमन से इ कार का
झूठा आरोप आय ने इ लाम पर लगा रखा है । हम भी कहगे - हाँ , सचमच ु यह आरोप अस य है ! इ लाम अथात ्
अहम दयत से पव ू क कसी परु ानी पु तक से दखाइये क खद ु ा अना द काल से सिृ ट - रचना करता आया है ।
तब क हये क यह इ लाम का व त य है , नह ं तो इसे आयसमाज क कृपा जा नये क वह जो आपके म त य म
दयालु पता , अपने पु पर कृपा म , कभी नि य नह ं होता ।

◼ एक ह आयु का मनु य और पशु ◼

नवाँ आ ेप -
आय क ओर से कहा गया - “एक कु ा तथा एक मनु य एक ह आयु के हो सकते ह , पर दोन समान नह ं
हो सकते । इसी कार ई वर के साथ जीव तथा कृ त भी अना द ह , पर तु ई वर के समान नह ं , अत : इससे
बहुदेववाद का आ ेप नह ं बनता ।” मौलाना ! या यह आय का न है या इ लाम के न का उ र ? मौलाना
तक के भी धनी ह और पु तक क यव था के भी मा लक , जो चाह , सो ठ क है ।
आपने उपयु त कथन के तीन उ र दे ने क कृपा क है । पहला यह क य द मनु य थोड़ी आयु भी रखता हो
, तो भी कु े से बड़ा ह होगा । चलो , इसी कार खद ु ा को जीव - कृ त क अपे ा छोट आयव ु ाला मान लो , तो भी
वह जीव तथा कृ त से बड़ा ह रहे गा , और हम तो उसे आयु म छोटा भी नह ं मानते , बराबर क आयव ु ाला मानते
ह , तब तो ई वर क मह ा वयं स ध है , फर अना द मानने पर आय बहुदेववाद ( मश ु रक ) कैसे हो गये ? दस ू रे
उ र म फ़रमाते ह क अना द होना एक मह ा है , और इस मह ा म ई वरे तर को सि म लत करना बहुदेववाद का
मानना है । मौलाना ! य द अना द व मह ा है , तो अन ता भी तो मह ा है , उसम आप अ लाह के अ त र त
ब ह त के जीव को साथ य मला रहे ह ? आ ख़र वे भी ई वर के अ त र त ह ह ? य द उनके अन त काल तक
खदु ा के समान रहने से शक नह ं होता तो अना द मानने से य होगा ? या अन ता ु ट है , और अना द व
मह ा ? य द अन ता ु ट है , तो भगवान ् आपको सम ु त दे , आपका खद ु ा भी अन त होने के कारण ु टपण ू हो
जायेगा । तीसरे उ र म कहा है - “ य द कु ा कसी एक गण ु म मनु य से बढ़ भी जाये , तो भी मनु य का थान
ऊंचा रहे गा । अ भ ाय यह है क केवल इतना ह नह ं क कसी एक गुण म समान होकर भी ऊंचा यि त व ऊँचा
ह रहता है , अ पतु य द कसी एक गुण म तु छ यि त ववाला बढ़ भी जाये , तो भी उ च यि त व क उ चता
म अ तर नह ं पड़ता ।” तब तो आय का म त य सवमा य ठहरे गा । आय तो केवल अना द व म जीव - कृ त को
ई वर के साथ मानते ह । मौलाना के कथनानस ु ार य द जीव के कसी गुण को बढ़ा भी द , तो भी खद ु ा का थान
ऊंचा रहे गा । यह इ लामी तक है । आय के जीव - कृ त को अना द मानने म तो यह बात भी नह ं ( गुण म भी
ई वर पण ू है ) , फर आय पर शक का जम ु कैसे लगा दया ? वा त वकता यह है क मौलाना के मन म 'शैतान'
का म घर कये हुए है । लगता है क शैतान कई बात म खद ु ा से आगे नकल जाता है , वह अ लाह मयाँ के
जीव को अ लाह से व ोह बना दे ता है , वह वयं भी व ोह है । जीव अ लाह मयाँ क नह ं सन ु ते , शैतान क
बात मानते ह , अत : मौलाना को इसे प ट करना अभी ट था , और कहा क “दे खो , कु ा मनु य से दौड़ने म तेज
हो , पर तु फर भी मनु य , मनु य है और नै तक संघष म चाहे जीत शैतान क हो , पर तु फर भी रहमान (
दयालु ई वर ) रहमान ह है ।” मौलाना ! टा त तो खब ू दया ! समझ लया मौलाना ? रहमान से शैतान एक ह
बाजी म मैदान मार जाता है , सो ले जाये ; शक नह ं हुआ ऊँहूँ ! ( कह ं मसीह मौऊद ( गुलाम अहमद का दयानी )

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के ई वर य आदे श क ओर तो संकेत नह ं — “ हम तझ ु े एक श ट पु क उ प क शभ ु सच ू ना दे ते ह जो स य
तथा मह ा का तीक होगा , जैसे खद ु ा आकाश म उतरा क जनाब मजा , केवल खद ु ा के बाप ह बने ह । शेष काय
म तो खद ु ा महान ् है ! ” ( अंजाम आथम , प ृ ठ ६२ ))
य द मौलाना ग भीरता से यह म त य अपनाते क अ लाह मयाँ जीव के प चात ् उ प न हुए , अथवा
कसी एक गुण म जीव परमे वर से े ठ है , तब हम उ र भी दे ते क इस म त य म या दब ु लता है । पाठक इस
म त य क अ श टता को अनभ ु व कर सकते ह । या उ प न हुआ खद ु ा अथवा दब ु ल खद ु ा , वयं खद ु ा रह भी
सकता है ? उसम मह ा चा हये , ये उसम दब ु लता लाते ह । जीव का अन त होना इ ह वीकार है , ये उसक मह ा
मानते ह , पर तु य द कोई और मह ा ( अना द व क ) आ जाये तो इ ह बहुदेववाद का भय लगता है , और उस
कमी को दरू इस कार करते ह क ई वर को इससे भ न रख , इसक मह ा को मटा द , ई वर चाहे दब ु ल माना
जाये , कम - से कम जीव तथा कृ त से पहचाना तो अलग जायेगा । इस सझ ू का िजतना मातम कर , कम है !

◼ अना द व म बहुदेववाद का दोष ◼

दसवाँ आ ेप -
‘एके वरवाद ( तौह द ) का अथ एक मानना नह ं , एक खदु ा मानना है , और यह हम वीकार है ( प ृ ठ २५७
) ।' वह परु ानी बात है , जो श द के प रवतन के साथ नया न बन जाती है । मौलाना प बदलने को नया
आ व कार मानते ह । परु ानी कसरत ( सिृ टरचना ) वहदत के प चात ् फर चमक उठ । उ ह ने कहा , नया संसार
है , जीव - कृ त नये ह । परु ाने आ ेप क भाषा बदल गई , जनाब ने एक नया न घड़ लया और स नता क
म ती म भल ू गए क यह न है अथवा न का उ र ? मौलाना आय के वकि पत कथन क शु ध करते हुए
फ़रमाते ह क “एके वरवाद केवल एक ई वर को मानने का नाम नह ं , बि क खद ु ा को मानकर कसी अ य स ा
को खद ु ा के गुण , काय तथा पज ू ा म सि म लत न करना , एके वरवाद है । और वेद म ई वर का एक गुण
‘अना द' भी है , इस लए जो यि त जीव तथा कृ त को भी अना द मानता है , वह एके वरवाद को छोड़ता है (
प ृ ठ २५९ ) ।” और जो कसी ने कह दया क मौलाना ! वेद म तो ई वर का एक गुण अन त भी आया है , इसम
जीव तथा कृ त को सि म लत य करते हो ? तो कहा “हम ई वरे तर स ा का अन त होना , उसका गुण नह ं
मानते , अ लाह क दे न मानते ह , वह िजसे चाहे अन त काल तक रखे ।” ब ल हार जाएँ आपके इस तक के ! तो
मौलाना , आप जीव को अना द मा नये , यह मा नये क अ लाह ने उ ह अना द काल से रखा हुआ है । आ ख़र
अ लाह , ि थर रखनेवाला भी तो अना द काल से है । अ लाह म कोई नये गण ु का तो ज म नह ं हो गया क वह
जीव को नये सरे से रचने लगा हो । कर या ! मौलाना ने पन ु राव ृ का नाम तक रख दया है । आ ख़र यह
बहुदेववाद ( शक ) का आरोप कतनी बार आप लगाएँगे ? लगाइये , शौक से लगाइये , और मन न भरे , तो फर
लगाइये ।

◼ अ लाह मयाँ से भार प थर ◼

यारहवाँ आ ेप -
“ या खद
ु ा कोई ऐसा प थर बना सकता है िजसे वह वयं न उठा सके ?” मौलाना , यह न इस लए कया
गया है क आप सव शि तमान ् के स याथ को समझ सक । जीव तथा कृ त को उ प न न करने के म त य पर
आप कहते ह क या खद ु ा सवशि तमान ् नह ं है ? आय इसके उ र म कई ऐसे तक तत ु करता है जो ई वर के
गण
ु के व ध ह । आयसमाज क इस तक - शैल का यह प रणाम है क मौलाना ने अपनी सार पु तक म यह
न भल ू कर भी नह ं लखा क जीव तथा कृ त के अना द होने से ई वर सवशि तमान ् नह ं रहे गा । हमारे इस

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तक पर आप उपहास उड़ाइये , पर तु आपको या पता क हमारे इसी तक ने तो आपको सोचना सखाया है ।
श य जब दाश नक न को कुछ समझने लगता है तो गु वारा कये आि मक न पर आ चय करता है क
या ये भी कोई न थे जो गु जी ने कये थे ? उसे पता नह ं क अब तो वह कुछ सझ ू - बझ
ू म उ न त कर चक ु ा
है , आर भ म इ ह ं सीधे - सादे न से उसका भोलापन दरू हुआ था । मौलाना फ़रमाते ह अपना बनाया प थर न
उठा सकना तो एक दब ु लता है । खद
ु ा अगर ऐसा प थर बनाये तो वयं अपने म दब
ु लता लाये । ठ क है हजरू , इसी
कार य द खद ु ा सदै व नये जीव तथा नई कृ त बनाता रहे , और उनम नये पाप तथा दब ु लताओं को ( नउज
ब ला ) संजोता रहे , तो भगवान ् मा करे , वह सभी पाप का ज मदाता वयं बन जायेगा और पाप वह प थर है
िजसे खद ु ा नह ं उठा सकता ।

◼ अन तता के साथ अना द व अ नवाय ◼

बारहवाँ आ ेप -
“मसु लमान जीव को अना द नह ं मानते पर तु अन त मानते ह , जब क जो स ा अना द नह ं वह अन त
भी नह ं हो सकती ( ३६१ ) ।” या आय के वारा इस न का उ र “एक कनारे क नद ” वाले न म दे नह ं
दया गया ? पर तु मौलाना को सनक है क आ ेप क सं या म व ृ ध हो जाये । ग तशील मौलाना ने इस न
के आठ उ र दये ह ।
पहला - “इसका कोई माण नह ं क जो अना द न हो वह अन त भी नह ं हो सकता ।” जनाब , कोई
उदाहरण द िजये क कोई व तु अना द तो न हो , पर तु अन त हो ! हमार ि ट म सा द स ा काय ह होती है
और येक काय अ तवाला होता है । जो बना है , वह बगड़ता है , येक काय इस त य का उदाहरण है । इससे
यह अनम ु ान हुआ क जो अना द नह ं , वह सा त होता है । कसी काय - स ा पर इसे आजमाइये ।
दस
ू रा - “जैसे खदु ा वयं ि थर है , ऐसे ह वह दसू र को ि थर रखने वाला भी है ( २६२ ) ।” ीमान जी , अब
से ि थर रखनेवाला है अथवा अना द काल से ? य द खद ु ा अना द काल से ि थर रखनेवाला है , तो सब अना द काल
से ि थर ह ।
तीसरा - “खद ु ा जीव को केवल बनानेवाला ह नह ं , उसके अि त व को रखने का कारण भी है ।” खद ु ा
अि त व को रखने का कारण अब से है या अना द काल से ? अना द काल से है तो सब जीव अना द काल से
अि त व रखते ह ।
चौथा — “मनु य के शर र का आर भ तो है पर तु अ त समान नह ं । कसी शर र का अ त १२ घ टे म तो
कसी का चार सौ वष म अ त । तम ु कहोगे और कहना पड़ेगा , य द न वीकार करोगे तो हम तम ु को मख
ू कहगे ।
न संदेह मल ू , गाजर , आम , वट व ृ और सय ू , सबका आर भ तो एक , पर तु अ त म अ तर । जो खद ु सयू
को रचकर चार अरब ब ीस करोड़ वष तक रख सकता है और फर अपनी इ छा से मटा सकता है , वह खद ु ा जीव
को बनाकर - सदा के लए रख भी सकता है ।”

मौलाना य द ग णत को जानते होते तो उ ह ात होता क अना द व के स मख ु जो बारह घंटे का समय है


वह चार अरब ब ीस करोड़ वष का है । अना द व के स मख ु चाहे कतना अ धक समय हो , तु छ है । ग णत का
नयम है एक वष / अना द व = करोड़ वष / अना द व अत : बारह घंटे से चार अरब वष का सापे समय भी
अना द व के समय के अनम ु ान म यथ है । आपने िजन व तओु ं के उदाहरण दये ह , वे भौ तक व तए ु ँ ह , उनम
ाय : जीवनकाल का कम अथवा अ धक होना , भौ तक त व के मलाप म कमी अथवा अ धकता के कारण होता
है । जी वत व तओु ं का जीवन उनक जीवन - शि त वारा अनक ु ू ल त व के हण तथा तकूल त व के हटाने
क मता पर नभर करता है । य द जीवन - शि त अ धक हुई , तो शर र अ धक काल तक काय करे गा ; शि त
कम हुई तो शर र अ धक दे र तक न रह सकेगा , पर तु जीव क इन शर र के रहने से या तल ु ना ? या जीव को

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भी आप इन शर र के समान सावयव मानते ह ? जनाब ! जीव नरवयव है , आप वयं इसे वीकार कर चक ु े ह
और नरवयव का आर भ नह ं होता , य क उसम त व का मेल नह ं । आर भ , Combination हुए पदाथ का
होता है । य द आपको यह म त य वीकार नह ं तो कसी नरवयव स ा का उदाहरण द िजये !
पाँच - “चार अरब ब ीस करोड़ वष के प चात ् सय ू को ….. य द वह ( खद ु ा ) न तोड़े तो या हो ? इसका जो
उ र हो सकता है , वह हमारा उ र जीव के अन त होने के स ब ध म समझ लेना ( प०ृ २६५ ) ।” यह न
इ लामी खद ु ा से कया जा सकता होगा , वेद के परमा मा से नह ं । वेद का परमा मा अपने नयम को वयं नह ं
तोड़ता । मौलाना इस अस भव क पना पर जीव को अन त मानते ह । भाव यह है क खद ु ा जीव का नाश नह ं
करता , इस लए वह नाशवान ् नह ं । जैसे खद ु ा य द सय ू का वनाश न करे , तो वह अन त हो जाएगा । तो या हम
समझ ल क जीव के वनाश क सीमा तो है , पर तु खद ु ा उसे वन ट नह ं होने दे गा ? यह व च तक है !
छ: - “जैसे आ द य मचार का शर र चार सौ वष तक जी वत रहता है , उस कार ब हि तय के शर र
अन तकाल तक जीवनशि त से ि थर रह सकते ह ( प०ृ २६६ ) ।” जनाब ! ववाद तो है जीव - तथा कृ त के
अना द व पर , और आप ले बैठे शर र क चचा ! पहले जीव कृ त को तो अन त स ध क िजये , फर शर र क
चचा भी कर लेना । आपने फरमाया जनअत म रहनेवाल के शर र भी घल ु गे ( तहल ल ह गे ) । शर र के घल ु ने से
जो ग दगी उ प न होती है , उसके हटाने का भी वग म ब ध कया है या नह ं ? या वहाँ भी कृ ष इ या द होगी
या नह ं , ता क उसम मनु य से नकल व ठा आ द खाद का काय दे पाये ? पर तु आप तो जनअत म प र म
करना मानते ह नह ं शर र के घल ु ने से उसका बदल न घल ु नेवाले त व से होगा तो या जनअत म भौ तक त व भी
ह गे ? य द ह गे तो वे भी अन त हो गए ! मौलाना ! चार सौ वष का समय भी अना द काल के स मख ु वैसे ह
तु छ है जैसे एक ण क तु छता । आ द य मचार का शर र तीन सौ वष तक जी वत रहता है , पर तु यह
शर र अना द नह ं , इस लए अन त भी नह ं । आपने इससे यह कैसे स ध कया क जो अना द नह ं , वह अनंत
होता है ? सा द व तओ ु ं के उदाहरण से या सा द अनंत हो जायेगा ? आपक म तक के ब लहार !
सात - “जनअत म रहनेवाल का अन त काल तक रहना उनके शार रक त व क वशेषता से न होगा ,
अ पतु ईशकृपा से उनका जीवन अन तकाल तक रहे गा ( प०ृ २६७ ) ।”
य जीवन म तो यह मलता है क ईशकृपा , भौ तक त व के बनने तथा बगडने से होती है । यह नई
ईशकृपा है क जनअत म भौ तक त व ( मा द: ) बगड़गे ह नह ं । इसके लए कसी नये य ीकरण क
आव यकता है । आपने खब ू लखा है क “उस ( खद ु ा ) क इ छा यह होगी क जनअत म रहनेवाल का कभी अंत
न हो ( प०ृ २६७ ) ।” आ खर खद ु ा क इस इ छा का कोई नयम भी है ? इस संसार म तो उसक इ छा का यह
नयम है क जो व तु बने , वह मट भी जाये ; या जनअत म उस ( खद ु ा ) क इ छा बदल जायेगी अथवा कृ त
के गुण बदल जाएंगे ? पर तु आपको कृ त के गुण से तो लेना दे ना नह ं , जैसे कृ त का तो वभाव है क बने
और बगड़े , पर तु खद ु ा उसे बगड़ने नह ं दे गा । कृ त के त व न हुए , शैतान हुए , पर तु ऐसे शैतान जो रहमान
क इ छा के आधीन रहे ।
आठ - आठवाँ उ र आपने स याथ काश के माण से दया है “तीन कारण ( न म , उपादान , साधारण
कारण ) के बना कोई . व तु नह ं बन सकती और न बगड़ सकती है ।” [ स याथ काश प ृ ठ २४४ ] ( प ृ ठ २६८ )
इससे यह प रणाम नकला क य द न म कारण अथात ् खद ु ा न हो तो कोई व तु बगड़ भी नह ं सकती । हाँ ,
हमारा यह म त य है । आप इसपर लखते ह “नह ं टूट सकती , य द न म कारण अथात ् खद ु ा न तोड़े ( प०ृ २६८
) ।” पर तु य न तोड़े ? भौ तक त व का वभाव है बनना तथा बगड़ना , परमा मा का वभाव है उसे जोड़े और
तोड़े , जनअत म न जाने य उसे तोड़ना ब द कर दे गा ?
स भव है वहाँ के भौ तक त व नई कार के ह , पर तु य द ऐसे ह अनम ु ान करना है जो य के सवथा
व ध हो , तब यह अनम ु ान य न कर क जनअत म पु ष ब चे जना करगे , अ सराएँ पता ह गी , वाइज (
उपदे श दे नेवाल ) के पेट पर थैला बंधा होगा , िजसम कंगा के समान ब चे उठाया करगे । हूर क डा ढ़याँ ह ,
पर तु इतनी कोमल क प डल के मांस से भी कोमल । जनाब ! अनम ु ान का भी कोई आधार चा हए । दाश नक
ववाद है , जामा मसिजद का वऽज़ नह ं क जो चाहा कह गए और वह खद ु ा क मज बन गई !

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◼ परमा मा दे श नकाला नह ं दे सकता ◼

तेरहवाँ आ ेप -
“महाराजा प टयाला कसी अपराधी को रयासत से बाहर नकाल सकते ह , पर तु परमा मा नह ं कर
सकते ।” मौलाना का उ र है क रयासत से नकालना एक कमी रखता है , य क इससे रयासत सी मत हो
जाती है , परमा मा क रयासत असीम है । दस ू रा उ र दया है क अपनी रयासत से बाहर नकालना यह अथ
रखता है क “महाराजा अपने अपराधी के सधु ार से नराश हो गए ह , परमा मा नराश नह ं होता ।”
ठ क तो है ीमन ् ! जीव तथा कृ त को हर सिृ ट म नया - नया बनाने से परमा मा म अना द तथा अनंत
र क , पालक न होने क कमी आती है । अना द और अनंत वामी को अना द तथा अनंत वा म व म रहनेवाल
व तु चा हये , और वह जीव तथा कृ त ह । परमा मा का अना द वा म व , अना द पदाथ पर है , वे पदाथ
अना द न ह तो वा म व अना द न रहे गा । परमा मा अपने अना द जीव से नराश नह ं होता क उ ह मटा डाले
और नई सिृ ट म नये जीव उ प न करे ।

◼ पाप का दा य व ◼

चौदहवाँ आ ेप
“िजसने इन जीव को उ प न कया है , वह संसार म पाप के अि त व का भी उ रदायी है ।” ( प ृ ठ २७१)

मौलाना ने इस न के उ र म आय के म त य पर आ ेप कया है क य द ई वर जीव को शर र न दे ता ,


तो वह पाप न करता । िजसने जीव को शर र दया है , वह पाप का भी उ रदायी है , अथात ् ई वर । आगे चलकर
वयं फ़रमाते ह क “ई वर जीव को यंू ह शर र नह ं दे ता , अ पतु उनके कमानस ु ार दे ता है , य क वह यायकार
है ।”
अब पाप का दा य व कसपर हुआ ? प ट है क जीव पर , य क शर र उसके कम का फल है । मौलाना
फर वयं न करते ह “ याय य करता है ?” और उ र दे ते ह “ य क यह ई वर का गुण है ।”
जनाब ! फर वयं ह न करो - गुण को काय म य लाता है ? आ ख़र जब न ह करने ह , तो सोचना
कैसा ? मौलाना लखते ह “उ प न व तु अथात ् जीव तथा कृ त को उ प न करना ई वर का गुण है , यह गुण
अव य काय म प रणत होगा ।” ( प ृ ठ २७२ )
इसे कहते ह ‘तेल रे तेल , तेरे सर पर को हू' । याय के गुण पर तो आप और हम सहमत ह , इस लए
उसपर आपने कोई न नह ं कया । अभाव से भावो प तो ववादा पद वषय है , इसको माण प म कैसे
ततु कर दया ? सच तो यह है क इ लाम के यह वक ल रहे तो इ लाम क वजय हो गई ! हम पछ ू ते ह क
अभाव से भाव क उ प का कोई माण दो , माण दया क ऐसा करना ई वर का गुण है । एक मौलाना वयं को
एम० ए० कहते थे । हमने पछ ू ा - कस व व व यालय से पर ा म उ ीण हुए ? बोले - “मेरा नाम मु ताक अहमद
है , इस लए एस० ए० कहलाता हूँ ।” कोई व तु अभाव से न बने तो भी ई वर टा रहे गा । इसक च ता न कर ,
और य द धींगामु ती से उसे अभाव से भाव का आ व कारक मानना ह है , तो वयं खद ु ा का आ व कारक कोई और
बना ल िजये । य द जीव को ई वर ने अभाव से उ प न कया है , तो फर पाप का भी आ व कारक Indirectly
खद ु ा ह होगा । दस
ू रे उ र म इस कार तक दया है - “खद ु ा ( पाप का ) तब उ रदायी हो सकता है , जब जीव कम
करने म वत न होता ( प ृ ठ २७२ ) ।” सं ेप म यह क ई वर ने जीव को अि त व तो दया , कम क
वत ता भी साथ दे द । मौलाना को या पता क वत ता , खैरात म द नह ं जाती । खैरात दे कर वापस भी

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ल जा सकती है । य द कम क वत ता वापस ल जा सके , जैसा क मौलाना वीकार करगे क इ लाम के
म त य म ऐसा हो सकता है , तो फर वह वत ता न रह । वत ता , वाभा वक होती है , बाहर से नह ं आती
। ' चलो मान लया क वत ता दान कर द , पर तु कस काय म ? पाप और पु य कम करने म । पर तु पाप
करने का साम य कसने दया ? अ लाह के बना और तो कोई कारण नह ं ? अब पाप का ेरक तथा आ व कारक
कौन है ? नउज ब ला ( मा कर ) , खद ु ा ह तो होगा ? ल िजये , पाप के उ रदायी न सह , पाप का आ व कार
करनेवाले तो अ ला मयाँ ह ठहरे ! तीसरे न के उ र म इस कार फ़रमाया है “मनु य को उ प न करके
ई वर य ान , पैग़ बर , अवतार , वल , प व आ दोलन , प व वभाव , यह सब भी तो भगवान ् ने उ प न
कये , या तमु अब भी केवल उ प न करने के कारण सब पाप का दोषी खद ु ा को मानोगे ?” ( प ृ ठ २७३ )
ये सारे माण तो आपने इस लए दए , क प व ता तथा पु य का ेरक तथा कारण भगवान ् है । पु य क
पहे ल तो हल कर ह ल , पर तु संसार म पाप का अि त व भी तो है ? और वह कतना अ धक हो , उसक पहे ल
का समाधान या होगा ? उसे कसने बनाया , आप कहगे पाप का कारण शैतान है , तो फर शैतान का अि त व
कौन लाया ? मान लो क शैतान का कोई कारण नह ं , तो फर वह अना द होगा । य द शैतान का भी कोई उ प न
करनेवाला तथा ेरक है , तो पाप का अि तम उ रदा य व तो उसी पर ह होगा ! पु य का कारण खद ु ा है टा होने
के कारण , तो पाप का भी आ व कारक तथा ेरक , वह होगा , टा होने के कारण खद ु ा ह होगा !

◼ या परमा मा उपादान कारण है ◼

प हवाँ आ ेप -
“य द जीव तथा कृ त का अि त व है , तो या खदा ने उ ह अपने म से उ प न कया है ।” ( प ृ ठ २७४ )
ु ध होकर मौलाना कहते ह “ बना कसी उपादान कारण के बनाया है ।” ( २७५ ) मयाँ साहब ने दशन पढ़े नह ं ,
नह ं तो समझ जाते क िजसका उपादान कारण न हो , उसे अना द कहते ह , जैसे परमा मा । ऐसे ह आ मा तथा
कृ त भी । अना द ह । अभाव से उ प न करने क बात दशनशा के व ध ह अत : या तो जीव तथा कृ त को
अना द मा नए , नह ं तो परमा मा इनका उपादान कारण हो जाएगा , य क य द जीव - कृ त को उ प न हुआ
मानना है , तो उ प से पव ू उपादान कारण का मानना आव यक है । मौलाना से उ र नह ं बन पाया , तो ‘ ोधात ्
भव त संमोहः संमोहात ् म ृ त व मः' के अनसु ार बेतक
ु कहने लगे क , “वेद के पैग़ बर ऋ ष अं गररादे व के बाप
का नाम या गंगादास था ….. नह ं नह ं , यह नाम तो नह ं हो सकता , य क अं गरा जी आर भ म ठहरे , और
इस नाम म बहुदेववाद क ग ध है ॰॰॰ गंगादास नह ं तो कृ णदास होगा ।” मौलाना मानते ह क आय क ि ट म
ी अ गररादे व का कम - से - कम वह थान तो ह ह जो इ लाम म हजरत मह ु मद का है । इस वचार से क
मौलाना अपनी इस घ टया द लगी का अनम ु ान वयं लगा सक , हम उनसे ाथना करगे क जहाँ आपने ी
अं गरा जी का नाम लखा है वहाँ हजरत मह ु मद सलअम नाम लखकर अपने लखे वा य को दो बार , तीन बार
पढ़ जाय । काश ! आप समझ पाते क महापु ष सबके सांझे होते ह , उनका स मान करो और य द कोई च र क
दब
ु लता दे खो तो बताओ । यथ म उनके परु ख क कथाएँ जोडकर उनका उपहास न करो । मौलाना ! यह दशन का
े है द लगी नह ं । वैसे तो आपका लखा यह सारा अ याय ह द लगी मा था , पर तु द लगी म भी कुछ
श टाचार , कुछ स यता , कुछ ग भीरता अपे त है । आ ेप का उ र द िजए , य द उ र नह ं सझ ू ते तो मौन
र हए । आ ख़र गाँल दे ना भी कोई उ र होता है ?
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◼ तीसरा अ याय ◼
आय के प व थ वारा दये माण क या या

ी मौलाना ने अपनी पु तक के दस
ू रे अ याय म जहाँ जीव - कृ त के सा द होने म तक दये , वहाँ उसके
साथ हमारे प व शा के भी कुछ उ धरण तत
ु कए ह , और उनसे जीव तथा कृ त क उ प स ध क है
। मज़ा यह क इन उ धरण को भी कसी यव था से लखने का क ट नह ं कया , बि क एक माण हमारे थ
का , तो दस
ू रा मौलाना के मि त क का चम कार , फर हमारा माण इ या द । हम यहाँ आय थ के दये
उ धरण क या या करगे , िजससे मौलाना का म दरू हो सके । तक का उ र इससे पव ू दया जा चकु ा है ।

◼ कृ त तथा साम य ◼

प हवाँ तक
पहला उ धरण १५व तक के प म दया है । यहाँ उस उ धरण का एक भाग दया है , दस ू रा उ धरण
स हव तक का प धारण कर गया है । हम आ चय म ह क थम तो कसी उ धरण को तक - प दे ने क या
आव यकता थी , और य द तक का ह प दे ना अभी ट था , तो एक ह उ धरण को दो अलग - अलग भाग म
लखने क या तक ु थी ? उ धरण इस कार है , “िजस समय यह परमाणओ ु ं से मलकर बना हआ व व उ प न
नह ं हुआ था , उस समय अथात ् सिृ ट - उ प से पव ू असत ् अथात ् शू य आकाश भी नह ं था , य क उस समय
उसका काय यवहार न था । उस समय सत ् अथात ् सिृ ट के कायाव था म प रणत कारण , िजसको सत ् कहते ह ,
वह भी न था और न परमाणु थे । वराट म जो आकाश दस ू रे न बर पर आता है , वह भी न था , बि क उस समय
केवल पर म क साम य जो अ य त सू म और इस सार सिृ ट से महान ् है , अकारण है , व यमान थी ।”
यह सारा भाग महाशय नहाल संह , अनव ु ादक ‘ ऋ वेदा दभा य भू मका ' के अनव ु ाद ' तमह द तफ़सीरे
वेद ' से लया गया है । य य प मौलाना ने इसका पता ऋ वेद अ टक ८ , अ याय ७ , वग १७ , म १ दया है ।
वेद म तो म है , यह लेख कहाँ ? पर तु माण का पता तो ठ क दे ना चा हए ! म का भाव तो यह है , पर तु
या याकार क या या को कोई व वान ् मल ू म से नह ं जोड़ सकता । इस म म थम तो संसार को
परमाणओ ु ं से मलकर बना हुआ लखा है , और उस समय का वणन है जब यह व व मलकर बना नह ं था । तब
या था ? प ट है क परमाणु थे ! नह ं तो कहा जाता क जब परमाणु भी नह ं थे , य क सिृ ट से पहले
परमाणओ ु ं का अि त व ऋ ष दयान द हर थान पर वीकार करते ह । य द ऋ ष का अभी ट कसी ऐसी अव था
क ओर संकेत करने का होता , जब परमाणओ ु ं का सवथा अभाव था , तो यह न कहते क परमाणओ ु ं से मलकर
बना संसार नह ं था , बि क लखते क परमाणु ह न थे । परमाणओ ु ं के अभाव का वणन ऋ ष को वीकार नह ं ।
आगे फ़रमाते ह , “शु य आकाश भी नह ं था ।” शू य आकाश को आय - दशन म सनातन माना गया है । ऋ ष
दयान द उसका अभाव नह ं कह सकते । पर तु प ट श द म लखा है , “कोई पछ ू े , कैसे न था ? फ़रमाते ह
उसका काय - यवहार न था । अभाव दो कार का होता है - एक , सवथा पण ू प से अभाव दस ू रा , गौण प से
अभाव अथात ् काय - यवहार म न आने से अभाव । िजस व तु से काय न लया जाय , उसका भी एक कार से
अभाव ह कहा जाता है । आकाश का काम दशन ने कहा है , “ न मणं वेशनं इ याकाश य ल गम ् ” ( वे० द०
२।१।२० ) अथात ् आकाश का गुण है क उसम आएँ - जाएं । लयाव था म गमनागमन ब द हो जाता है , अत :
आकाश का यवहार नह ं रहता । इस ि ट से काय म उसका अभाव होता है , वा त वक प से नह ं । मौलाना इस
अभाव के कारण को जो ऋ ष ने लखा , दे ख लेते , तो म का शकार न होते । यह प रि थ त सत ् तथा
परमाणओ ु ं के अभाव क है । कृ त का काय यह है क उससे संसार क सिृ ट हो , और यह परमाणओ ु ं का यवहार
है । मौलाना को तथा ‘ ऋ वेदा दभा यभू मका ' के दस ू रे अ येताओं को एक और म ‘ साम य ' के श द से हुआ है

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। ी नहाल संह ने इसका अनव ु ाद ‘ कुदरत ' कया है जो अशु ध है । ‘साम य’ के अथ या ह ? ऋ ष
भा य-भू मका म फ़रमाते ह , “पादै : कृ त परमा वा द भ: वसाम यपाशै ” पाद अथात ् कृ त और परमाणु
अथात ् अपनी साम य के भाग से ( ऋ वेदा दभा यभू मका , पाँचवाँ सं करण , प ृ ठ ३१३ ) । यहाँ कृ त तथा
परमाणु ह परमा मा क साम य कहे गए ह । उसके भाग स व , रज तथा तम , अथवा पाँच भत ू के अलग - अलग
परमाणओ ु ं के कारण होते ह , न क व लेषण के कारण । ‘साम य' के कोशगत अथ ह , जो साथ रहे । कृ त
परमा मा के साथ रहती है , इस लए यह उसक साम य है । कृ त अ य त सू म है , कारण - र हत है , अत :
भगवान ् क साम य है । वह व तत ु : व यमान थी , पर तु यावहा रक प से शू य । यह जैसे उसका अभाव था
। जैसे कोई वीर पु ष हो , पर तु वीरता का काय न करे , तो कहते ह क वीर हुआ - न - हुआ समान है । पड़ी हई
तलवार को तलवार कौन कहता है ? तलवार वह जो वार करे । ऋ ष ने साम य का अि त व परमे वर से भ न
वीकार कया है । इसका एक और माण ‘ऋ वेदा दभा यभू मका' के ह द भाग म मलता है , जो ऋ ष के जीवन
म ह सं कृत - भाग के साथ छपा था और आज तक ‘ऋ वेदा दभा यभू मका' म सि म लत है । इसी म क
या या के आर भ म फ़रमाया है , “जब यह कायजगत ् उ प न नह ं हुआ था तब एक सवशि तमान ् ई वर , और
दसू रा जगत ् का कारण अथात ् सिृ ट - उ प का सामान व यमान था ।” ( ऋ० भा० भ० ू प ृ ठ ११७ ) इससे अ धक
प ट श द म या लखा जा सकता है ! परमे वर के अ त र त सिृ ट के बनाने का सामान व यमान था । या
अनव ु ाद म लखा श द ' कुदरत ' इस अथ को दे ता है ? और या ‘कुदरत ई वर से भ न थी ?'

◼ कृ त तथा साम य ◼

सोलहवाँ तक -
सोलहव तक का आधार भी वह उ धरण है , “उस पु ष ने प ृ थवी अथात ् भू म के बनाने के लए पानी से रस
लेकर म ट को बनाया है , और इसी कार अि न के रस से जल को पैदा कया , और अि न को वायु से , और वायु
को आकाश से , और आकाश को कृ त से , और कृ त को अपनी कुदरत से उ प न कया ( यज० ु ३१ - १७ ) ।”
यह माण भी ‘ऋ वेदा दभा यभू मका' के अनव ु ाद क भू मका से लया गया है , िजसे ी नहाल संह ने कया है ,
पर तु इसका पता , वेद का दया गया है । मौलाना ने इसपर अपने वचार इस कार य त कये ह क “यहाँ
कृ त तथा कुदरत दो श द अलग - अलग आए ह , अत : ये पयायवाची नह ं ह ।” ऋ ष का श द यहाँ भी साम य
है अथात ् साथ रहनेवाल । कृ त का यहाँ अथ है ‘परमाणओु ं का यावहा रक प' िजसे दाश नक भाषा म वकृ त
कहा जाता है और साम य के अथ ह ‘मल ू कारण' । हम ऋ ष के ‘साम य ' श द का अथ प ट प से लख चक ु े ह
और यह भी दखा चक ु े ह क उसका अि त व ई वर से अलग है , ‘कुदरत' तो क़ा दर से अलग नह ं होती , अत :
साम य के अनव ु ाद म कुदरत श द लगाना अनु चत है ।

◼ एक परमा मा ◼

अठारहवाँ तक -
अठारहव तक के लए मौलाना ने कई माण दये ह । न जाने मौलाना ने हर माण का अपने
वभावानसु ार अलग - अलग तक य नह ं घड़ लया । न क सं या अ धक दे खकर दया आ गई या ?
(१) थम माण ऐतरे य उप नष का है , “इस सिृ ट से पव ू केवल एक आ मा ( खद ु ा ) ह था ; कोई दस
ू र
व तु न थी ।” उप नष म व णत माण का यह अनव ु ाद अशु ध है । आपने इसे भी भाई नहाल संह क ‘तमह द
तफ़सीरे वेद' से लया है , पर तु वह जो क
ै े ट म 'दस
ू र ' के के प चात ् ‘पहचान के यो य' ( क़ा बले - तमीज ) लखा
था , उसे पी गए । शायद यह दखाने के लए क यह अनव ु ाद मौलाना का अपना कया हुआ है । य द भाई

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नहाल संह से सहमत न थे , तो उप नष के मल ू श द को लख दे ते , और नहाल संह जी का ेप बता दे ते !
उप नष म ये श द ह , “आ मा वा इदमेक एवा आसीत ् , ना यत ् क चन मषत ् ।” ( ऐतरे योप नष १।१ )
अथात ् “इस सिृ ट से पव ू , एक आ मा ह था , और कोई अि त व काययु त न था ”
म के अ त म या है ‘न मषत ्' िजसका अथ है ‘कायरत था' ; इसे हटाया नह ं जा सकता । मौलाना ने
अ त म “कान अ लाह......' यह हद स लखी है और फ़रमाया है क “य द इस हद स तथा इस म म कोई यि त
थोड़ा - सा भी अ तर दखा दे तो उसे म एक सौ पया दे ने को तैयार हूँ ।” आपका पया तो जनाब दे ने से सदा
सरु त रहा है और रहे गा । हमारे ऊपर के लखे अनव ु ाद को पढ़कर जरा वीकार क िजए क आपक हद स भी यह
कुछ कहती है , जो म म है , अथात ् व तु का अथ है ‘काय पदाथ' और काय - पदाथ वा तव म लयकाल म कोई
न था । बस यह भट है जो आय को द जाती है ।
(२) इसी बीच म दस ू रा माण शतपथ का न न कार है , “इससे पव ू यह संसार कुछ भी न था” ( शतपथ
१४ - १ - १ - १ ) । उप नष के श द ह , “इदं वा अ े नैव कं चदासीत ्” अथात ् “इस सिृ ट से पव ू यह - कुछ (
वतमान जगत ् ) न था ।” इसका संकेत समीप से है अथात ् 'इदं ’ - ‘काय जगत ्' - यह सचमच ु लयकाल म न था ,
मौलाना ने या मा णत कया ?
( ३ ) तीसरा माण छा दो य उप नष का है , “ऐ व स ! वह परमे वर इस संसार से पव ू व यमान था
तथा अपने - आपम वह अ वतीय था ।” इसपर मौलाना लखते ह क , “य द कोई कुतक करनेवाला आय शा ाथ
- महारथी यह कहे क ‘अपने - आपम अ वतीय' का अथ इतना है क वह एक था , तो उ र यह है क “खद ु ा एक
तो अब भी है और अ वतीय है ।” शा ाथ करनेवाला आयसमाजी कुतक करे गा , यह भी आपने एक ह कह !
आय तो कुतक कर ह नह ं सकता ; हाँ , तक तो करे गा ह ! पर तु आप तो तक भी करना नह ं जानते , ववाद ह
करते ह ! उप नष के श द ह , “सदे व सो येदम े आसीदे कमेवा वतीयम ्” ( छां० ६ - २ - १ ) । “ऐ व स , यह
संसार ( उ प से पव ू ) केवल व यमान था , बना दस ू र के ।” यहाँ Matter क उ प का वणन है क लय
काल म इसम वकृ त ( रं गारं गी ) नह ं होती । वह केवल व यमान होती है । त प चात ् परमा मा के आदे श से जो
गौण प से व ृ क इ छा कह जाती है , उसम या व प बाहु य और व च ता आती है । जैसे कोई तलवार
को घम ु ाकर कहे क आज यह डायन कसी का सर काटना चाहती है , व तत ु : यह ‘चाहना' तलवार क नह ं ,
तलवार चलानेवाले क है ।
( ४ ) चौथा माण शतपथ का है , “इससे पव ू यापक परमे वर ह था” ( शतपथ ११ - १ ) । ा मण - थ
के श द ह , “आपो ह वा इदम े स ललमेवास” ( शतपथ ११ - १ - ६ - १ ) । अथ है , “ लयाव था म सू म कृ त ह
थी ।” स लल के अथ ‘परमा मा’ कसी भी कोष म नह ं ; इसके अथ ह , ‘अ य त सू म’ और ‘आपः' का अथ है
‘ कृ त’ । अनव ु ादक को अि तम श द से कुछ म हुआ है , इस श द के अथ यापक भी ह और ‘ ाि त यो य' भी
। मौलाना को ‘ ाि त - यो य' मानने म सु वधा रहे गी । कृ त यापक है या नह ं , यह बात हम आगे चलकर प ट
करगे ।
मौलाना ‘ह ' श द के योग पर बल दे ते ह , य क करण तथा उपयोग पर यान दे ने क आपक च ह
नह ं । जनाब ! य द कोई यि त आपको आकर कहे क आपके घर म आपका सप ु ु ह व यमान था , तो या
इसके यह अथ ह क वहाँ खद ु ा था न खद
ु ा क खद
ु ाई और न कोई सिृ ट क व तु ? आपको शायद घर के सामान क
च ता पड़ जाएगी ; घर न जाकर कोतवाल को दौड़गे क चोर हो गई । मयाँ साहब ! यहाँ काय - जगत ् क चचा है
, उसके वै च य क चचा है । लय काल म संसार के पदाथ का बाहु य न था , अ पतु केवल कृ त थी , वह
अ य त थी , इससे परमा मा क स ा से इ कार नह ं कया जा रहा । श द ‘ह ’ से व यमान स ा के दस ू रे प का
अभाव तो हम मानते ह पर तु व भ न स ाओं का अभाव यहाँ अभी ट नह ं । परमा मा अथवा जीव , कृ त का
प नह ं और िजस वशेषण का सबम सा य है , उसका यहाँ वणन नह ं ।

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◼ ग तशील तथा ि थर ◼

उ नीसवाँ तक -
उ नीसव तक म जनाब ने पाँच उ धरण दए ह । उनम पाँचवाँ उ धरण तक क जान है , इस लए हम
सव थम उसी को लेते ह , “जो ग तशील तथा ि थर संसार को अि त व म लानेवाला है ” ( स याथ काश प ृ ठ १९
)।
ीमान ् जी ! यहाँ संसार से अ भ ाय सावयव तथा नरवयव दोन से है । संसार सावयव है । मल
ू मश द
लखा है ‘जगत ्’ , यह नरवयव के लए यु त नह ं होता । और सावयव संसार को अि त व म अथात ् कायाव था
म लानेवाला परमा मा ह है ।

मौलाना ने चार माण और दये ह -


१ . परमा मा , ग तशील तथा ि थर संसार म सव यापक है । ( प ृ ठ २९ )
२ . ग तशील तथा ि थर जगत ् को वश म रखनेवाला है । ( प ृ ठ २१ )
३ . ग तशील तथा ि थर जगत ् को जी वत रखता है और वन ट करता है । ( प ृ ठ १४ )
४ . जो ग तशील तथा ि थर जगत ् को दे ख रहा है । ( प ृ ठ २६ )

इन माण के आधार पर मौलाना का कहना है क य द संसार अथवा जगत ् इसी सावयव संसार का नाम है
, तो परमा मा नरवयव स ाओं म व यमान न होगा , न उ ह वश म कर सकेगा , न जी वत अथवा वन ट कर
सकेगा और न उ ह दे ख रहा होगा ।
मौलाना ! आप आय को ( कज बहस ) कुतक करनेवाला कहते ह जो क आप वयं ( कज बहस ) ह ।
सं कृत भाषा म चराचर जगत ् का अथ है सावयव संसार । अब य द कसी ने कहा क परमे वर अ खल सावयव
जगत ् म यापक है , तो आपको स दे ह हुआ क वह नरवयव म तो न होगा । जनाब ! सावयव जगत ् नरवयव
त व से ह बना है । सावयव व तत ु ः नरवयव त व का एक प है । व तत ु : तो सावयव जगत ् नरवयव त व से
अलग नह ं । जो सावयव म है वह नरवयव त व म तो होगा ह । चलो , मौलाना क ह मान ल क यहाँ नरवयव
को वश म रखना - दे खना लखा नह ं है तो इसका या अ भ ाय नकला क नरवयव पर परमा मा का वश नह ं है
? आपको कसी ने कह दया क आप मझ ु े दे ख रहे ह , तो इसके यह अथ ह क कसी अ य व तु को दे ख ह नह ं
रहे ? कोई कहे क अं ेज ने लंका को वश म कर र खा है तो या कहनेवाले का भाव है क ह दो तान अं ेज के
वश म नह ं है ? अथवा कहे क लंका ाउन कालोनी है , तो वह ह दो तान को भी ाउन कालोनी कह रहा है ?
ह दो तान का नाम न लेने से कहनेवाले का यह भाव है क ह दो तान उसके वशीभत ू नह ं , न यह क वह ाउन
कालोनी है । पहले वा य म ह दो तान का नाम नह ं लया , दस ू रे वा य म उसको अलग नह ं कया गया । इसी
कार सावयव म व यमान कहने से नरवयव म व यमानता से इ कार नह ं । जहाँ कसी व तु को मलाना
उ चत हो मला द िजए , जहाँ अलग रखना अभी ट हो , अलग रख द िजए , जैसे ह दो तान को ाउन कालोनी से
अलग रख दया । इस कार नरवयव के ि थर रखने , उसम यापक होने , दे खने म ई वर को सि म लत कर ल
,पर तु नरवयव को अि त व म लाने म अलग कर ल ।

◼ सनातन कारण ◼

बाईसवाँ तक -
मौलाना के बाईसव तक का आधार ऋ वेद १-४८-१ का न न अनव ु ाद है जो स याथ काश के सातव
समु लास से उ धत कया गया है । यह अनव
ु ाद सातव एडीशन के प ृ ठ १८८ पर अं कत है । मौलाना को इस त य
का या पता क अनव ु ाद का पता लखना आव यक होता है ! मल ू पर ववाद करना और बात है , पर या या

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ववाद और बात । मजा यह क आपने स याथ काश के वा त वक श द भी नह ं लखे , अ पतु उसके उद ू अनव ु ाद
से न न वा य नक़ल कए ह , “परमा मा सबको हदायत ( श ा ) फ़रमाते ह क ऐ इ सानो ( मनु यो ) , म
ई वर सबसे पहले मौजद ू ( व यमान ) और सार द ु नया का मा लक ( वामी ) हूँ । म जगत ् क पैदाइश ( उ प
) का कद म ( सनातन ) बाएस ( कारण ) हूँ ।” मौलाना के ववाद का आधार “सबसे पहले मौजद ू ” श द ह । मौलाना
कहते ह श द 'सब' म जीव तथा कृ त भी सि म लत ह । जरा मयाँ जी से पू छए क कौन - से 'सब' म ? पहले
लखा है - “सब को श ा दे ते ह ।” यह श ा नि चत प से मनु य को ह है , जो शर र के ब धन म ह अथवा
मु त ह । अत : दस ू रा 'सब' श द भी उ ह ं क ओर संकेत करता है । परमा मा आ मा के ब धन ( शर र का ब धन
) म आने से पव ू भी व यमान है और मो से पव ू भी । हम पहले नवेदन कर चक ु े ह क अि त व का अथ यहाँ
या मक प म आने से है । वत : स ध तो ई वर , जीव तथा कृ त तीन क स ा है , तीन अना द ह । हाँ ,
या मक अव था म परमे वर सदा रहता है , पर तु लयकाल म जीव तथा कृ त का प अ य त हो जाता है ।
इस अ य त प के ि टकोण से परमा मा ने सिृ ट - रचना के साथ वेद वाणी वारा कहा क म सबसे पव ू
व यमान हूँ ।
मौलाना ‘सब से पव ू व यमान' के प चात ् ' मा लक ' ( वामी ) का श द पाकर बहुत स न हुए ह क
उ प न करने के कारण वामी है । मौलाना , यह कुरआन नह ं क जैसा चाहो तोड़ - मरोड़ लो । यहाँ तो अपने
या मक व प ( अि त व ) तथा दस ू र के या मक अभाव क ओर संकेत है , चाहे इसे आप वा म व का
कारण बना ल । ‘उ प का सनातन कारण’ श द पढ़ते ह मौलाना स नता म झम ू उठे ! फ़रमाया , “दे खो , है
अकेला कारण क नह ं ?” जनाब ! सनातन कारण तो हम भी मानते ह , पर तु न म कारण । उसे अकेला कारण
नह ं मानते और यहाँ अकेला कारण कहा भी नह ं । रह बात यह क दस ू रे कारण का वणन नह ं , इससे न तो उन
कारण क वीकृ त कह जा सकती है और न इ कार । कसी मौलाना के तीन पु थे - महमद ू , अहमद और हमीद
। कोई य द मयाँ जी को ‘महमद ू का पता' कहके पक ु ारे , तो या अहमद और हमीद को उनका पु नह ं माना
जाएगा ? और स प से अलग कर दया जाएगा ? बड़े पु के नाम से पता स ध होता है । न म कारण बड़ा
है , इस लए उसका अकेला वणन भी हो सकता है , पर तु इससे यह स ध नह ं होता क दस ू रा कारण है ह नह ं ।

◼ एक म◼

प चीसवाँ तक -
प चीसव तक म गोपथ ा मण का माण न न प से दया है , “ न स दे ह यह म ( ई वर ) ह
सव थम अकेला था , वह वयं एक था । उसने दे खा क य य प म महान ् तथा पज ू ा के यो य हूँ , तब भी एक ह हूँ
, अत : अपने म से अपने समान दस ू रा दे व बनाऊंगा ।” मौलाना ने इसी माण के आशय क .एक हद स भी तत ु
क है , “खलक अ लाह आदम अल सरू त” । लयकाल म परमा मा तो एक था ह , उसके समान कुछ गुण म
उससे मलता - जल ु ता जीव ह तो है ! लयकाल म जीव का या मक प से अभाव होने के कारण ई वर अकेला
था । उसे उसने या मक प दया । उसको आदम कहो , इ सान कहो पर तु इससे यह कैसे स ध हआ क जीव
का पहले अभाव था ? हद स के ‘अल सरू त' पर जनाब को बहुदेववाद क ग ध नह ं आई । सार पु तक म आ ह
रहा क एक भी ई वर य गुण , जीव म सि म लत हुआ , तो बहुदेववाद ( शक ) नि चत हो जाएगा , पर तु यहां
तो ‘सरू त' श द कई गणु पर लागू होगा , स भवत : अ ला तआला क ‘सरू त' भी नि चत करनी पड़ेगी !

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◼ आ मा “ ह ” ◼

दस
ू रा माण बह ृ दार यक उप नष अ याय १ , ा मण ४ , मं १ से दया है । जो अनव ु ाद आपने दया है
वह मल ू से स बि धत अनव ु ाद नह ं ; कुछ भाग नकाल भी दया है और लखा है - “आर भ म केवल आ मा ह था
, वह बेलाग - सा था । उसने चार ओर दे खा और अपने अ त र त कुछ न पाया । उसने 'म’ हूं पहले यह कहा , अत :
उसका नाम ‘म’ हुआ ।” मौलाना ने यहाँ 'म' के आगे ेकेट म ( खद ु ा ) लख दया है । यह अशु ध है । इस वा य के
आगे लखा है - “इस लए अब भी 'म' कहकर फर दस ू रा नाम कहता है ।” इस वा य से प ट है क यहाँ परमा मा
से अ भ ाय नह ं , आ मा से है । सारे ा मण को पढ़ने के प चात ् यह प ट होता है क यहाँ बेलाग आ मा के ी
- पु ष के शर र को धारण करने का वणन है । आ मा को ‘पु ष- वध' कहा है और आगे आपने अनव ु ाद कया है ,
‘जो पहले पाप को जलाए , वह पु ष है । हमने अनव ु ाद कया है ‘बेलाग - सा’ । यहाँ ‘आ मा ह ' पढ़कर मौलाना म
म पड़ गए । उनके वचार म यहाँ आ मा के अ त र त हर अि त व से इ कार लखा है , पर तु यह बात नह ं । यहाँ
लेखक का अ भ ाय नर मादा ( ी - पु ष ) के भेद का अभाव कहने से है । उस समय ी - पु ष न थे , केवल
आ मा ह था । उसने धीरे - धीरे ‘ ी - पु ष' के शर र हण कए ।

◼ अ य त साम य ◼

सताईसवाँ तक -
सताईसव तक म मौलाना ने न न माण दया है - “उस परमे वर क अ य त साम य ह इस संसार के
बनाने क साम ी है िजससे यह संसार बनता है ( यज० ु ३१ - ४ ) ।” यह उ धरण भी भाई नहाल संह क ‘तमह द
तफ़सीरे वेद' से लया गया है । हम आ चय है क मौलाना उ धरण का प ट पता य नह ं लखते ? या यह
दखाने को क उ ह ने वेद पढ़े ह ? यहाँ फर वह श द ‘कुदरत' लखा है । मलू म श द है ‘साम य' िजसका अथ है
साथ रहनेवाला साधन ( मसाला ) , सो यह कृ त है । मौलाना का आ ेप है क य द यहाँ कृ त लखना अभी ट
हो तो उसे परमा मा का ‘साम य' ( कुदरत ) य कहा जाए ? ‘परमा मा का मा दः' ( Matter ) यह वा य ठ क
नह ं है । ीमान ् जी ! ‘कुदरत' के थान पर आप ल खए , ‘साथ रहनेवाल साम ी ( साधन )' और फर दे खए क
परमा मा के साथ रहनेवाला ‘मसाला या मा द :’ श द ठ क बना है या नह ं ? आप पछ ू ते ह क साम य के साथ
अ य त य कहा ? मल ू म श द है , अ य त अथात ् असीम । य द आपने धरती के मापने क व या पढ़ हो
आपको ात होगा क व तु क सीमा ( मकान क हद ) सदा दशाओं क होती है , अथात ् ल बाई , चौड़ाई और
ऊँचाई । पर तु ब द ु क कोई सीमा नह ं , य क ब द ु न ल बी होती है , न चौड़ी और न ऊँची । ऐसे ह परमाणु
अथवा कृ त असीम है , उनक ल बाई - चौड़ाई अथवा ऊँचाई नह ं होती , अत : उ ह ‘अ य त' अथात ् ‘असीम'
कहते ह । समय क सीमा अना द त व पर नह ं होती । इस ि ट से यहाँ ‘अ य त साम य' अथात ् असीम साथ
रहनेवाला मसाला कहा है ?

◼ काल का काल ◼

उ तीसवाँ तक -
इस तक म आपने स याथ काश का माण दया है - “इस कार सिृ ट - उ प से पव ू परमे वर , जीव
तथा कृ त , जो अना द ह , इनसे संसार क उ प होती है । य द इनम से एक भी न हो , तो संसार भी न हो” (
स याथ काश , प ृ ठ २४८ ) । त प चात ् आपने स याथ काश के प ृ ठ १२ के न न वा य लखे ह - “ लयकाल

80
सबका नाश करने वाला बि क काल का भी वनाश करनेवाला ( ई वर ) है ।” ये वा य उद ू - अनव ु ाद के ह । थोड़ी
दे र के लए मान लो क अनव ु ाद ठ क है , जो व तत
ु : ठ क नह ं , तो या इससे ऋ ष के श द से पर पर - वरोध
क ग ध आती है ? य द मान भी ल तो इससे यह कैसे स ध हो गया क जीव तथा कृ त सा द ह ? पाँच त व को
अना द कहा - ( प ृ थवी , अप ्, तेज आ द ) , उनम से एक को ( काल को फर सा द ) कह दया , इससे शेष भी सा द
हो गए , यह मौलाना का नया तक है । मल ू म यह श द लखे ह - “ लय म सबका काल अथात ् काल का भी काल है
।” पहले श द काल का अथ है ' वनाश करनेवाला' , दस ू रे काल का अथ है 'जमाना' , और तीसरे काल का अथ है
' गननेवाला' ( शम ु ार करनेवाला ) । परमा मा जमाने का शमार ( गणना ) करनेवाला है । काल के दो प ह - एक
वयं स ध अथात ् शा वत , यह अना द और अन त है , काल का दस ू रा प ‘ वभ त' - प है जैसे एक घंटा , दो
घंटे , तीन घंटे । काल का यह अि त व ‘गणना' म आता है और यह वभाजन समा त भी होता रहता है । परमे वर
इस वभाजन का आर भ तथा अ त कया करता है - लय म अ त , तथा सिृ ट म पन ु ः आर भ ! हाँ , अ वभा य
काल का जो अना द तथा अन त है , उसका न आर भ है और न अ त । ऐसे ह कायजगत ् का वह आर भ भी
करता है , और अ त भी ; पर तु कारण अथात ् जीव तथा कृ त दोन शा वत रहते ह , इनका आर भ तथा अ त
नह ं होता ।

◼ ससीम तथा असीम ◼

तीसवाँ तक -
मौलाना का तीसवाँ तक , वामी दशनान द क पु तक ‘अक़ाइदे इ लाम पर अ ल नजर' के न न
उ धरण पर आधा रत है - “अ वतीय ( लाशर क ) खद ु ा को तम
ु ससीम मानते हो अथवा असीम ? य द ससीम
मानो तो उसे सशर र मानने से सावयव मानना पड़ेगा और जो व तु मलकर बनी है , उसका वनाश अ नवाय है ।”
मौलाना उपयु त उ धारण से तक दे ते ह क चंू क जीव तथा कृ त ससीम है ( वभु नह ं ) अतः सावयव तथा
न वर है । हम नवेदन कर चक ु े ह क सीमा के तीन कार होते ह — एक अ य त सू म , यथा परमाणु ; दस ू रा
म यम , और तीसरा वभु । परमाणु का प ब द ु का है , वभु परमे वर है और म यम कार म वह संसार है ।
इनम म यम अथात ् जगत ् क हर व तु ससीम है , य क उसम ल बाई , चौड़ाई तथा ऊंचाई है , पर तु सू म
ब द ु भी ससीम नह ं , और वभु परमे वर भी ससीम नह ं । यान रहे क सीमा दशाओं से बनती है , िजसक
दशाएँ ह न ह , उसक सीमा कैसी ? यह अव था जीव तथा परमाणओ ु ं क है । अत : ी वामी दशनान द का
इ लामी खद ु ा पर तो आ ेप उपयु त है , पर तु मौलाना का इसे वै दक म त य जीव - कृ त पर लगाना ठ क नह ं
!

81
◼ असीम कृ त ◼

इकतीसवाँ तक -
मौलाना का यह तक सां य दशन के न न सू पर आधा रत है “अथात ् ससीम उपादान कारण नह ं होता
।” हमने यह स ध कया है क न तो परमाणु ससीम है न परमा मा । अतः सां य का सू , हमारे म त य का
ख डन नह ं करता ।
मौलाना ने कृ त को ससीम स ध करने के लए ऋ ष दयान द के थे वचन उद व कए ह — “यह
संसार ...... असीम परमे वर क तल
ु ना म ससीम है ।” ( स याथ काश , प ृ ठ २३६ )
ऋ ष के श द ह ‘यह संसार' अथात ् ‘सावयव व व' । हम भी सावयव व व को म यम प रमाण का मानते
हुए ससीम मानते ह । यह व व परमाणु के समान न तो ब द ु है िजसक ल बाई - चौड़ाई और ऊँचाई न हो , और
न वभु परमा मा है क िजसपर दशाओं का ब धन न हो । मौलाना को यान रखना चा हए क सीमा , एक काल
क होती है , एक थान क तथा एक शि त क । सावयव संसार हर ि ट से ससीम है । सू म परमाणु तथा जीव
थान तथा काल से तो ससीम नह ं , शि त से ससीम ह । अत : परमे वर क तल ु ना म य द अना द स ा को
ससीम कहा जाए , तो शि त म ससीम जा नएगा । पर तु वह स ा समय अथवा थान म भी ससीम हो , ऐसा
आव यक नह ं !

——————————————————————

82
◼ चौथा अ याय ◼
कुरआन क गवाह

अब तक हमने मौ० मह ु मद इसहाक़ के उन तक का उ र दया है , जो उ ह ने जीव - कृ त के न वर होने


तथा सा द होने के प म द ं , अथवा इन दोन स ाओं के अना द होने के वरोध म न तत
ु कए , उनक
आलोचना क है । यह दाश नक च तन का वषय था , इसम तक क आव यकता रहती है , पर तु स दाय म
तक के साथ साथ धा मक थ के माण को भी अपने प क पिु ट म तत ु कया जाता है ।
मौलाना कुरआन को ई वर य ान वीकार करते ह । आओ दे ख कुरआन इस वषय म या कहता है ?
मौलाना ने अपने प के अनम ु ोदन म , कह ं - कह ं कुरआन क आयत तत
ु तो क ह , पर तु कुरआन का कोई
ऐसा प ट माण , िजसम अभाव से भाव का अि त व म लाना लखा हो अथवा जीव तथा कृ त को उ प न हुआ
माना हो , ततु नह ं कया । हमने भू मका म मौ० आजाद सब ु हानी क स म त लखी थी क “स दाय को
दशन के नयम से कुछ वा ता नह ं सारे कुरआन तथा हद स को छान मारो , कह ं कृ त तथा जीव का वणन नह ं
पाओगे । जीव के स ब ध म न कया गया , पर तु य द उसका उ र दे दया जाता तो यहाँ से ह इ लाम क
यथता का ार भ हो जाता । इ लाम वशेष प से न जीव तथा कृ त क उ प के प म है और न इनके
अना द होने का प धर ।”

कुरआन क आयत — जब दो मौलानाओं क स म त म अ तर हो तो हम - जैसे गैर - मौलाना उसम माण


नह ं बन सकते । हां , दोन मौलानाओं का परू ा स मान करते हुए वयं कुरआन पर ग भीर ि ट से वचार कर
सकते ह । य द कुरआन वयं अपना ि टकोण कह डाले , तो सभी ववाद से छुटकारा पाने क आशा क जा
सकती है । मौलाना क ि ट म अगर अपने वषय के प म कुरआन क कोई प ट आयत होती , िजसम अभाव
से भाव म लाने का खलु ा वणन होता तो वह उस आयत को पाठक के स मख ु तत
ु करने म दे र न करते , अ पतु
मौलाना के तक का शीषक व प भी वह आयत होती । ऐसा नह ं क तक दे ने के प चात ् जैसा मौलाना ने कया है ,
धीरे - धीरे कुरआन क आयत का भी माण लखते । अत : अब हम कुरआन क उन आयत के श दाथ पर वचार
करगे िज ह मौलाना ने अपने प के अनम ु ोदन म लखा है और साथ ह कुरआन क कुछ वे आयत भी लखगे
िजनम प ट प से जीव और कृ त के अना द व का वणन है । न प मस ु लमान दो त य द स चे दय से
कुरआन म व णत ि टकोण का अ ययन कर , तो न चय ह वे कुरआन म वै दक म त य का अनम ु ोदन पायगे ।
आ ख़र कहा ह तो है “वार सलना मन कबलक” अथात ् हमने भेजे ह रसल ू तझु से पव
ू । और इन प व पु तक म
अ तर या है ? “ मन िज फ़हदस” अथात ् केवल नयी वणन - शैल अथवा श द के प रवतन का । आइये अब
कुरआन क आयत म इस वषय पर स म त दे ख

( १ ) “कु ल लाहु ख़ा लकुकुि ल शैिअ व हुवल ् - वा हदल


ु ् क़ हा ” ( सरू तरु ऽ द आयत १६ ) ।
अथ — कह , अ लाह टा है कुल व तओ ु ं का और वा हद ( अकेला ) क़हार है ( क़हर ढानेवाला है ) ।

( २ ) “अना ख़लक् ना लहम ् ममा अमलत इद ना इनआमन ् ।” ( यस , आयत ५ ) ।


अथ — न चय ह उ प न कये तु हारे लए उससे जो हमारे हाथ से मअमल ू है जानवर ।

( ३ ) “ख़लक़ कु ल शैिअन ् फ़क़द दरह तकद रन ् ” ( सरू तल


ु फुरक़ा न आयत २ ) ।
अथ — उ प न क कुल व तु और रखा है उसके कदर पर ।

( ४ ) “ व लक़ ख़लकूनल ् - िअ सान मन ् सल
ु ाल तम ् - म तीनीन ् सु म जअलनाहु नु फ़तन ् फ़ क़रा रम ्

83
मक नन ्” ( सरू तु मअ
ु मनन
ू ् आयत १२ , १३ ) ।
अथ - और उ प न कया इनसान को म ट के नचोड़ से फर बनाया नत
ु फ़ा ( जीवनशि त ) ।

( ५ ) ‘ ख़लक़कुम ् मन ् जऽु फ़न ् सु म जअल म बऽ द जआ ु फन ् कु वतन ् सु म जअल म बऽ द जु फ़न ्


कु वतन ् ।” ( सरू त म अायत ५४ - ६ ) ।
अथ - उ प न कया तम ु को जोऽफ़ ( दब
ु लता ) से , फर बनाई वाद जोऽफ़ के कु वत ( शि त ) , फर कु वत के
प चात ् जोऽफ़ ( दब ु लता ) और वेत बाल ।

उपादान कारण का वणन -


इन सभी आयत म परमा मा को उ प न करनेवाला तो कहा है , पर तु वचारणीय है क उ प न कससे
कया ? या अभाव से ? अभाव के लए इन आयत म कोई श द नह ं । हां , सरू ा यस म जानवर के स ब ध म
लखा है जो परमा मा के हाथ क मअमल ू थी ' ममा अमलत एद ना ' अथात ् परमा मा के हाथ का उसपर अमल
हुआ था । ऐसी व तु का िजसपर परमा मा के हाथ का अमल हुआ हो , अभाव तो नह ं कहा जा सकता ? सरू तल ु
मअु मनन ू आयत १२ म कहा भी है । वलक़ ख़लकनल ् - इ सान मन सल ु ाल तम ् - मन ् ती नन ् — क इ सान
को म ट के नचोड़ से उ प न कया । १२ ।
इस आशय क आयत कुरआन म थान - थान पर व णत ह क मनु य को म ट से बनाया , जैसे सरू ा
नसा आयत १९ , सरू ा रहमान आयत १४ इ या द उदाहरण व प तत ु क जा सकती ह । यहां पर बनाने के लए
धातु “ख़लक” का प ट योग हुआ है , िजसके लए न म कारण परमा मा को कहा , वहाँ उपादान कारण
' म ट ' का प ट वणन है , अत : जहाँ परमा मा को “ख़ा लक” ( टा ) कहा है वहाँ उपादान कारण से इनकार
अभी ट नह ं , अ पतु प ट वीकृ त है , और ई वर को न म कारण कहा गया है । सरू ा म आयत ५४ म जहाँ
जोऽफ़ ( दब ु लता ) से कु वत ( शि त ) तथा शि त से दब
ु लता के सज
ृ न क चचा है और इसके लए श द “ख़लक”
आया है , यह इस बात का प ट माण है क ‘ख़ क' का अथ प रि थ त का प रवतन है , य क जोऽफ़ ( दब ु लता
) तथा शि त दो अव थाएँ ह । मौ० मह ु मद अल भी अपनी “तफ़सरे कुरआन” म यह अथ लेते ह ।

कुन फ़ यकून । इस स ब ध म एक सम या कुन फ़ यकून क है । सरू ा यस - आयत ५ म आया है -

“ अ मा अम अज़ा ओ शैमान यकूल कुन फ़ यकून ” न चय ह आदे श उसका , जब वह कसी व तु का


इरादा करता है , यह वचन होता है क “हो जा” ( कुन ) और वह हो जाती है ।

वचारणीय यह है क या यह आदे श केवल अभाव क अव था म दया जाता है ? और उसे कायाव था म


प रणत होने का आदे श होता है ? यह “कुन फ़ यकून” का आदे श सरू ा आल उमरान आयत ५९ म आया है “ख़लक़ह
मन ् तरु ा बन ् सु म क़ाल लह कुन ् फ़ यकून”ु ख़लक़ कया उसे म ट से और फर कहा उसे हो जा ( कुन ् ) और “वह
हो गया ।”
यहाँ ‘ख़लक' या के लए म ट ’ कारण व यमान है और वह उपादान कारण है , फर मजा यह क 'कुन ्
का आदे श' काय म प रणत होने के भी प चात ् दया जाता है । इससे प ट होता है क आदे श व यमान को दया
जाता है , न क अ व यमान ( अभाव ) को ! स भव है कुछ भाई सोच क आदे श अ व यमान ( अभाव ) को भी
दया जाता है , तो इसके लए कुरआन का कोई माण चा हए । सरू ा 'यस' आयत ५ के आधार पर मौलाना ने बहुत
वावेला कया है । कह ं - कह ं तो वे श टाचार क सीमा को भी फाँद गए ह , पर तु उसम इतना ह कहा है - अ लाह
जब कोई व तु चाहता है तो उसे कहता है “हो जा” जैसे सरू ा आल इमरान म उसने मनु य को चाहा तो कहा हो जा ।
तो या मनु य पहले व यमान नह ं था ? कुआंन कहता है क उसे म ट से उ प न कया , फर कहा ‘कुन' , तो
पहले वह कस अव था म था ? मौ० मह ु मद अल फ़रमाते ह क यहाँ ‘कुन' से अ भ ाय मनु य का पण
ू होना है ।
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हमारा वचार है क म ट का नचोड़ ( सलासत मन तैन ) बनाया जा चक ु ा था , उससे मनु य ने बनना था । कुछ
भी हो , मनु य कसी - न - कसी अव था म पहले ह व यमान था , कुन का आदे श केवल प रि थ त को बदलने
के लए दया गया , न क अभाव से भाव को कट करने के लए । इसी कार ‘शै’ ( व तु ) भी कसी अव था म
व यमान होती है , उसे अव था बदलने के लए आदे श दया जाता है ‘कुन' !

जीवा मा — यह अव था तो हुई मनु य क ! अब इसके शर र तथा आ मा को अलग - अलग करके दे खना चा हए


। कुरआन कहता है “िअ नी ख़ा लकुम ् - बशरि मन ् स सा लम ् - मन ् हमिअम ् - म नू नन" ( सरू तल ु हज़ र
आयत २८ ) - ‘ न चय ह म बनाता हूँ मनु य को म ट काल के नचोड़ से — और जब बना चक ु ता हूँ परू ा , और
फंू क उसम ह ( जीव ) मेर ।' यहाँ अहमद व वान ् ह का अथ ई वर य ान करते ह । उ ह भय है क कह ं मेर
ह का अथ अ लाह क ह हुआ । तो मनु य क ह को अ लाह क ह ( आ मा ) मानना पड़ेगा । व तत ु :
कुरआन का यह वचन तौरे त के न न ल खत वचन का अनव ु ाद है - “ और परमा मा ने इ सान को म ट से
बनाया और उसके नथन ु म िज दगी क साँस फंू क , और मनु य जी वत हुआ । ” ( पैदाइश बाब २ , आयत नं० ७ )
स भव है कोई मनचला ‘ िज दगी क साँस ' का अथ ई वर य ान कर दे , पर तु आगे कहा है क उसके
कारण मनु य जी वत हुआ । मौलाना एक हद स का माण दे कर लख चक ु े ह क मनु य क परमा मा ने
‘अल सरू ता' अथात ् अपने व प ( सरू त ) पर पैदा कया । इस हद स को कुरआन क उपयु त आयत से मलाएँ ,
स भव है कोई अथ प ट हो जाए !
मौलाना ने कुरआन का यह वचन भी उ धत कया है “यसन ू क मन अल ह कुल अल ह मन अमरे र बी ,
अवनतम मन अल अलम इल कल सा ।”
“ न करते ह तझ ु से जीव के स ब ध म - कह , जीव ( ह ) ई वर के ( अमर ) आदे श से है , और नह ं दये
गए तम ु को ान से पर तु थोड़ा ।”
कुरआन क यह आयत प ट प से कह रह है क कुरआन का लेखक जीव के ववाद म जानबझ ू कर नह ं
पड़ा ; कह दया क यह परमा मा से आती है , मनु य इसके जानने म असमथ है । इसपर मौ० आजाद सब ु हानी ने
लखा क आयत न के उ र दे ने म मौन है । पर तु अहमद व वान ् मौ० ग़जाल का अनक ु रण करते हुए 'अमर'
( आदे श ) का अथ करते ह ‘ नरवयव जीव का अभाव से अि त व म लाना' । उनका मंत य है क यहाँ जीव को
अभाव से उ प न करने का वणन है , पर तु आगे यह वा य कैसे साथक होगा क “हमने तम ु को थोड़ा ान दया
है ” ? मौलाना ने अपना सारा जोर इस बात के स ध करने म लगाया है क ‘थोड़ा ान' से अ भ ाय है एक ज म
का ान । यह प ट खींचातानी है , जो यह त य कट करती है क मौलाना अपनी या या से वयं संतु ट नह ं ह
, नह ं तो कुरआन क आयत के अथ म फेरबदल करने का पाप य करते ?
ऐ तहा सक ि टकोण से दे खा जाय तो कुरआन के ाय : वषय इंजील से नक़ल कये गए ह । इंजील इस
वषय म वयं गवाह दे ती है क ह का अथ मनु य क ह ( आ मा ) है , ई वर य ान नह ं , और अं तम आयत
म इस वषय म जीव का व प बताने म अ ता कह गई है । उसके ( जीव के ) अभाव से भाव म लाने क बात
नह ं है !

कुरआन म अभाव का वणन - कुछ थान ऐसे भी ह जहाँ कुरआन म ‘ने ती' ( अभाव ) का वणन हुआ है ।
पर तु वह अभाव कैसा है ?
“हल अ त अल अल इ सान .............” ( सरू ा इ सान आयत १ - २ )
अथ - “ न चय ह मनु य पर बीता है वह काल जमाने म , जब कोई वणनीय व तु न थी ; न चय ह
हमने उ प न कया मनु य को मलनेवाले ‘नत ु फ़ा' ( बल - वीय ) से । हम इसक पर ा चाहते ह , अत : इसे दे खने
तथा सनु नेवाला बनाया है ।” नत
ु फ़ा से पव
ू क अव था को यहाँ “लम मकुन शैमन मजकूरन” कहा है अथात ् कसी
ऐसे अि त व का अभाव िजसका वणन नह ं हो सकता ; सवथा अभाव नह ं । इसी अभाव का वणन हम यवहार म
अभाव अथवा या मक गौण अभाव के नाम से कर चक ु े ह । यहाँ वेद तथा कुरआन दोन सहमत ह । ऋ ष

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दयान द ने अभाव क पहे ल ( सम या ) का समाधान कया क तब ( लय - काल म ) जीव तथा कृ त
या मक प से नह ं थे । यह बात कुरआन ने कह है ; श द जद ु ा - जद
ु ा ह , अथ प ट प से वह है ।
कसरत ( बाहु य ) और वहदत ( एक व ) - मौ० मह ु मद इसहाक़ क पु तक म पन ु ः - पन
ु : कुरआन का
यह आदे श वणन कया गया है - “कल मोमहूँ फ़ शान” - वह परमा मा सदै व अपनी शान म है । इसी बचन पर
मौलाना ने तक दया है क जब परमा मा सदै व अपनी शान ( वैभव ) के साथ व यमान है तो परमा मा के गुण ,
टा आ द भी समा त नह ं हो सकते । अत : मौलाना ने ई वर को केवल शि त के आधार पर ह नह ं , या मक
प म भी सदै व सनातन टा माना है और यह आय का म त य है । आय लोग सिृ ट तथा लय का काल
मानते ह , मौलाना ने उ ह कसरत तथा वहदत का काल कह दया । अ तर इतना है - आय वहदत के काल म (
लय - काल म ) भी ई वर से अ त र त स ा का सवथा अभाव नह ं मानते , गौण या प म अभाव मानते ह ।
मौलाना इस काल म सवथा अभाव को वीकार करते ह । पर तु इस अव था म हर सिृ ट म ( य द ) नये जीव
बनाए जाएँगे , तो जनअत के जीव अन त काल तक कैसे रहगे ? इसपर लखा है “जो अभाव त होगा , वह भाव
म भी आ जाएगा ।” दस ू रे श द म , जो जनअत के जीव वहदत के काल म सवथा अभाव क अव था म चले जाएंगे
, उ ह पन
ु : कसरत के काल म जी वत कया जाएगा । मौलाना को यान म नह ं रहा क वह जीव फर जी वत
कए जाएँगे तो अभाव म भी उनका सू कोई - न - कोई रहे गा , नह ं तो वह जीव कैसे ह गे ? नई सि ट के जनअती
जीव नि चत पेण वह यि त व नह ह गे , जो इससे पव ू क सिृ ट म व यमान थे ; सिृ ट के पदाथ का कार
तो समि ट प म पहले जैसा कहला सकता है , समि ट प म पर तु यि ट प म तो वे परु ाने नह ं हो सकते !
सवथा अभाव से अि त व म लाया जानेवाला जीव यि ट प से नया होता है ; परु ाना अि त ववाला जीव , सवथा
अभाव से अि त व म नह ं आता । अ पतु वह अि त व , कसी प म , पन ु : अि त व म लाया जाता है । इसी
त य को सरू ा इनसान म कहा गया है क “वहदत के काल म ( लय - काल म ) कोई व तु वणन के यो य न थी ।
व तु थी , पर तु ऐसी िजसका वणन नह ं हो सकता ।” इसी स य को वेद म इन श द म कहा है “तम आसीत ्
तमसा गू हम ेऽ केतं स ललं सवमा इदम ् ( ऋग० १० - १२९ - ३ ) उस समय परमाण प कृ त अंधेरे से ढक थी
, उसक पहचान नह ं थी , यह सब अ त सू म था !

आवागमन — य द मौलाना इस त य क गहराई को समझ जाएँ तो जीव तथा कृ त के अना द व के वषय पर


आयसमाज तथा इ लाम एकमत हो जाएँ । कुरआन कहता है “क तम ु ् अगवातन ् फ़ा हया ........ तरजाऊन” - “ तम ु
थे मरे हुए , उसने तु ह जी वत कया , फर तु ह मार दे गा , फर जी वत करे गा ।” वतमान जीवन से पव ू इस
आयत म जीव का सवथा अभाव नह ं कहा गया , अ पतु म ृ यु क अव था कह है । म ृ यु क अव था म इ लाम म
भी तो मनु य का सवथा वनाश नह ं माना जाता । जब ‘यमेतक ु ु म' म सवथा वनाश न होगा , तो ‘अमवातक ु ु म ्’ म
सवथा अभाव य माना जाए ? जीव , मनु य के शर र धारण करने से पव ू व यमान होता है और म ृ यु क
अव था से जीवन क अव था आती है , यह आवागमन है । लयाव था म जीव क अव था जीवन क नह ं होती ,
अ पतु केवल या मक अभाव क होती है । वेद म फरमाया है “न म ृ यरु ासीत ् अमत ृ ं न त ह” ( ऋ० १०-१२९-२ ) -
उस समय म ृ यु न थी , न मिु त थी ।

परमा मा — इस लयकाल म तथा सिृ ट के काल म , िजसे आय समाज तथा अहमद मौलाना दोन अपने
म त य म अना द तथा अन त मानते ह , ई वर का काय या है ? मौलाना लखते ह “ख़लक कुल शै फ़कदरत
तकद रा” — उ प न क येक व तु और नि चत कया उसका भा य । ‘ख़लक' का अथ हम कुरआन से अव था
का प रवतन स ध कर चक ु े ह , अथात ् कसी व यमान त व का केवल प - प रवतन । त प चात ् उसको उसके
थान पर नि चत करना और य द वह त व जीव हो तो उसके कमानस ु ार उसका भा य बनाना , यह परमा मा का
काय है ह !
“इ न लाह अला कुि ल शैिअन ् क़द न ्” ( सरू ा बक़र आ० १०९ ) - “ न चय ह अ लाह सब व तओ ु ं पर
अ धकार रखता है ।” मौलाना ने परू उदारता से आयसमाज के इस म त य को वीकार कर लया है । क

86
परमा मा चाहता और करता वह है जो उस ( परमे वर ) के गण ु तथा काय के अनस
ु ार हो । दे खना यह है क उसका
काय या है ? मौलाना आयसमाज वारा दए उदाहरण पर ु ध हुए ह क ई वर न म कारण है जैसे घड़ा बनाने
म कु हार । आपने फ़रमाया “नह ं , इस संसार का कता कु हार नह ं । नादानी है क संसार के रच यता के काय को
पेशाब के ब द ु के क ड़े के काम से उपमा द जाती है !” ( प ृ ठ ७ )

कुरआन म कु हार का उदाहरण - य द हम कह क मौलाना कुरआन से अप र चत ह , तो यह हमार ध ृ टता


होगी , पर तु य द उनके यान म कुरआन क यह आयत लाई जाए तो बरु ा भी नह ं - “ख़लकुलइनसान मन
सलसाल काफ़जार” “बनाया इनसान को म ट के बरतन के समान ।” मौलाना ! म ट से म ट के बरतन कौन
बनाता है ? कु हार ह तो ? हम ाथना करगे क आपने जो न ऊपर के वचन पर आय से कया है , वह कुरआन
के लेखक से करके दे ख ! उदाहरण इस लए दया जाता है क अ स ध को स ध के उदाहरण से प ट कया
जाए । यह अ दाज कुरआन का है और यह आयसमािजय का । मौलाना को भी एक उदाहरण सझ ू ा है ; लखते ह -
“कोई यि त जैद ( नाम ) के घर खाना पका हुआ दे खकर कहे क यह खाना तो पचास वष का पका हुआ है .....
य क जैद पचास वष से है और खाना खाता आया है ...... अब ....... सब समाज चीख उठे गी क जैद तो हर रोज़
नया खाना तैयार करता है ! इसी कार न स दे ह ई वर अना द है ...... नए जीव तथा नई कृ त का सज ृ न करता
है ( प ृ ठ ४ ) ।” इन मजाई मयाँ से कोई पछ ू े क जनाब ! कु हार के उदाहरण म तो आपको मख ू ता लगी , और यह
भी न सोचा क वयं यह टा त कुरआन म है , और आपको टा त भी कैसा सझ ू ा ? एक पाचक का ? वह भी
या ..... का क ड़ा है या नह ं ? मौलाना ! लोग ान - व ान के जानकार होते ह , अत : जब बात करते ह तो फूल
झड़ते ह । मयाँ ! आ ेप करना था तो अ प मनु य ह कह दया होता , ब द ु और क ड़े का यहाँ या काम ?
कुछ हो , यह तो कहने क शैल पर नभर करता है , कोई बात को ग भीरता से वणन करता है , और कसी के
कहने म केवल छछलापन होता है ! यात य इतना है क वयं कुरआन ने , रच यता परमे वर का , रच यता के
प म वह म त य वीकार कया है जो आयसमाज का म त य है । यह और बात है क शर र का Matter काल
म ट अथवा म ट का नचोड़ कहा है और जीव को ( ह को ) ह , अथात ् अपनी ( अ लाह मयाँ क ) ह कहा
है । ये सा हि यक ु टयाँ ह , िजनपर दाश नक व वान ् हँसगे , पर तु अ भ ाय ‘कलाम' का वह है , जो हमने
ऊपर कट कया है ।

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87
◼ पाँचवाँ अ याय ◼
वेद का स धा त

संसार क यह सम या क कतने त व अना द ह , सदै व दशन के च तन का वषय रह है । मौ० आजाद


सब ु हानी का यह कथन क दशन का मजहब से कोई स ब ध नह ं , दाश नक ान से अन भ ता का योतक है ।
मौलाना ने तो इन सम याओं पर वचार भी यथ समझा , पर तु वतमान यग ु के व वान ् धीरे - धीरे कुरआन क
इस दब ु लता से प र चत होते जा रहे ह , और वे यथाशि त कुरआन क इस कमी को परू ा करने का यास भी कर रहे
ह । ये शभ ु ल ण ह । पछले अ याय म हमने इ लाम के व वान के लए यह माग खोला है । य द पढ़े - लखे
मस ु लमान हमारे ि टकोण से लाभ उठा सक तो हमारा प र म सफल होगा । यहाँ हम सं ेप म वेद के कुछ म
दे ना चाहते ह , िजनसे वेद के स धा त का प रचय ा त हो सके ।

तीन अना द पदाथ


संसार म तीन कार क स ाएँ ह । वेद इस सं या को गुण - स हत वणन करता है

य: के शन ऋतथ ु ा व च ते संव सरे वपत एक एषाम ् ।


व वमेको अ भ च टे शची भ ािजरे क य द शे न पम ् ।
( ऋ० १ - १६४ - ४४ )

तीन त व समयानस ु ार जद
ु ा - जद
ु ा काय करते ह । एक , व व का बीज वपन करता है ( यह आ मा है ) ।
एक , सारे व व का अपनी शि तम ा के कारण नमाण तथा दे खभाल करता है ( यह परमा मा है ) । एक का
ग तशील प द खता है , पर तु रह यमय व प नह ं ( यह कृ त है ) ।

असीम और ससीम
बालादे कमणीय कमत ु क
ै ं नैव यते ,
तत : प र वजीयसी दे वता सा मम या ।
( अथव० १० - ८ - २५ )

एक सू म - से - सू म है ( यह आ मा है । ; एक सू म है पर तु उसके प का अनभ ु व नह ं होता ( यह


कृ त है ) ; इससे परे एक यापक दे वता है वह मझ
ु े ( अथात ् भ त को ) य है ( परमा मा ) । यहां दो को ससीम
तथा एक को यापक कहा है । यह ससीम तथा यापक , अना द ह य क नरवयव ह । आर भ सदा सावयव का
होता है और अ य त सू म तथा यापक , नरवयव होने के कारण अवयव के मेल से नह ं बनते ! यह जीव तथा
कृ त के अना द होने का वै ा नक माण है ।

अनभ
ु ू त , अनभ
ु वकता तथा टा
वा सप
ु णा सयजु ा सखायः समानं व ृ प रष वजाते ।
तयोर य: प पलं वा व यन न न यो अ भचाकशी त ।
( ऋ० १ - १६४ - २० )

88
एक वभा य अि त व ( कृ त ) पर दो अ छे शि तस प न म मले हुए व यमान ह । इनम से एक
तो अनभ ु व हुए फल का आन द लेता है और दस
ू रा इस अनभु ू त से ऊपर रहकर टा है ।
अनभु तू फल के आन द लेनेवाला तथा जीव को भ न - भ न कार से अनभ ु ू त का करानेवाला बताकर
, इस भ नता को उनके कम का फल बताया । य द जीव अना द तथा वयं स ध स ा न हो , तो जीव के सख ु -
द:ु ख का कारण परमे वर बन जायेगा और परमे वर दःु ख का कारण न बन जाय , यह तीन के अना द व के लए
नै तक तक है । अि तम म म इन तीन अना द त व का स ब ध भी सं ेप म बता दया । आ मा के स ब ध
म कहा

अपा ाङे त वधया गाभीतोऽम य म यना सयो न: ।


ता शा व ता वषच ू ीना वय ता य यं च यन
ु न च यरु यम ् ।।
( ऋ० १ - १६४ - ३८ )

‘अपनी इ छा से नीचे - ऊपर जाता है , पकड़ा हुआ , न मरनेवाला ( आ मा ) , मरनेवाले ( शर र ) के साथ


मला हुआ है । ये दोन सनातन ( आ मा - कृ त ) अलग - अलग गुण वाले , जद ु ा - जद
ु ा च रखते ह । एक को
जानते ह , दस
ू रे को नह ं ।' यहाँ कतने सु दर प म को शर र मरनेवाला , और वत : स ध कृ त क अव था म
सनातन कहा है ! वणन - शैल इतनी मोहक है क ब लहार जाइये ! जीव क उ न त तथा अवन त , उसक अपनी
इ छा तथा शि त पर नभर करती है ।पाप क सम या का सह समाधान हो , इसका दा य व जीव पर है । य द
परमा मा ने जीव को अभाव से भाव म लाया होता , तो पाप करने क मता दे नेवाला भी परमा मा होगा । इस पाप
क मता का उ प न करनेवाला तथा कारण वयं परमे वर हो जाएगा , िजसे बु ध वीकार नह ं करती ।

कृ त — कृ त के स ब ध म वेद फ़रमाता है -
एषा सन नी सनमेव जातैषा परु ाणी प र सव बभव
ू ।
मह दे यष
ु सो वभाती सैकेनैकेन मषता व च टे ॥( अथव० १० - ८ - ३० )

यह ( कृ त ) सनातन है , यह सनातन व तत ृ व व पर फैल है , यह अ त सौ दययु त चमकती हुई


तथा ( जो सिृ ट के आर भ ) म एक एक सजीव के साथ मलकर नाना कार के सु दर प दखाती है ।
एक और थान पर लखा है - ‘अजारे पशं गला' ( यज० ु २३ - ५ ) अरे ! सब प को नगलनेवाल कृ त
सनातन है ।
प को नगलनेवाल ! कृ त के लए या सु दर नाम है - ‘ प ' को नगलनेवाल ! एक ह श द म व व
क सम या का समाधान कर दया । लय - काल म कृ त होती है , य क वह सनातन तथा सदै व रहनेवाल है ,
पर तु ये प नह ं होते । वे खो जाते ह अथवा वेद के का यमय श द म नगल लये जाते ह , कृ त के उदर म चले
जाते ह । इसी अव था को वेद रा - काल कहता है । सिृ ट - उ प के साथ कृ त का सौ दय पन ु : जगमगाने
लगता है ।
वेद म इस आशय के कई म ह , और वे म इस कला के साथ अपने वषय को सजाते ह क वह
का यमय वणन पढ़कर पाठक आन द वभोर हो उठता है और च तन करता है । वेद ान का के है , स य का
आधार है , संसार क पहे ल के समाधान क सबसे परु ानी पु तक है । यह ान अना द तथा अन त है । यह अना द
- अन त परमे वर का अना द - अन त जीव से अना द काल का स ब ध है । इसके अना द व के साथ ह
परमे वर तथा उसके भ त के अना द व क क पना जड़ ु ी है । ई वर सबके दय को अपने स य ान के काश से
का शत करे ।

89
◼ एक न ◼
अ लाह मयाँ का बाप

मौलाना रोजे ब शवाने नकले थे और नमाज गले पड़ गई ।


चौबे जी गए थे छ बे जी बनने और रह गये दब
ु े जी )

सबसे बड़ा पाप तथा नाि तकता यह है क ई वर को जीव के पाप का कारण माना जाए । जब केवल ई वर
ह अना द है , तो संसार म या त पाप क दब ु लता का , ु टय का ( मल ू ) वशेष गुणी कौन है ? जब तक जीव
तथा कृ त को अना द न माना जावे , इन सभी पाप का दब ु लताओं का कारण परमे वर ह होगा ; यह ह नह ं , वह
पाप का आ व कारक भी होगा ।
खैर , यह सब तो दाश नक च तन से ात होता है । जनसाधारण को चा हए क वे एक ऐसा माण
अहम दय को द जो उनके शक ( बहुदेववाद ) क प ट दल ल है । मौलाना इसपर यान द , और फर ‘फतवा'
लगाएँ ।
“इतनी फ़ अनाम ...... समवात उल अरज” ( आईनाए कमालात, मजा गुलाम अहमद , वतक का दयानी
मत ) ।
अथ — दे खा मने एक व न क म हू-ब-हू खद ु ा हूँ , और न चय कया मने क म हू-ब-हू खद ु ा हूँ , अत :
मने धरती - आकाश को उ प न कया ।
पाठक दे ख , यहाँ तो केवल अ लाह मयाँ बने मजा साहब ! आगे चलकर अ लाह मयाँ के भी बाप ( पता
) बने ह, फ़रमाते ह - “अना ब नमशरक ब गल ु ाम ........ म न उल समा”
अथ — हम तझ ु े एक वन पु क शभ ु सच ू ना दे ते ह , जो स य तथा उ चता का तीक होगा , जैसे खद ु ा
आसमान से उतरा ।
( जमीमा अंजाम आथम , प ृ ठ ६२ )

अपने - आपको अ लाह कहनेवाला तो मश


ु रक ( का फ़र ) है , अ लाह के बाप बननेवाले को या
क हएगा?

ओ३म ् शाि त शाि त शाि त !


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