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श्रीः

श्रीमते रामानुजाय नमः


श्रीमते नगमा महादे शकाय नमः
श्रीसीताल णभरतशत्रु हनुम मेत श्रीरामच परब्र णे नमः

श्रीमद्रामायणे वा ीक ये आ दका े सु रका े

Á Á स च ािरं शः सगर्ः Á Á
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श्री र रामानुज महादे शकन्


His Holiness śrīmad āṇḍavan śrīraṅgam
श्रीः

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श्रीमते रामानुजाय नमः

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श्रीमते नगमा महादे शकाय नमः

Á Á स च ािरं शः सगर्ः Á Á
रावणेरक्षस्य पराक्रमो वधश्च


सेनापतीन् प स तु प्रमा पतान्
हनूमता सानुचरान् सवाहनान् Á

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नश राजा समरो तो ुखं

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कुमारमक्षं प्रसमैक्षताग्रतः Á Á 5.47.1 ÁÁ
सत दृ पर्णस चो दतः
प्रतापवान् का न चत्रकामुर्कः Á
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समु पाताथ सद ुदीिरतो


जा तमु ैहर् वषेव पावकः Á Á 5.47.2 ÁÁ
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ततो महान् बाल दवाकरप्रभं
प्रत जा ूनदजालस तम् Á
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रथं समा ाय ययौ स वीयर्वान्


महाहिरं तं प्र त नैऋतषर्भः Á Á 5.47.3 ÁÁ
तत पःस हस या जर्तं
प्रत जा ूनदजाल च त्रतम् Á
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पता कनं र वभू षत जं


मनोजवा ा वरै ः सुयो जतम् Á Á 5.47.4 ÁÁ
सुरासुराधृ मस चािरणं
त ड भं ोमचरं समा हतम् Á
सु रका म् स च ािरं शः सगर्ः

सतूणम ा स नब ब ुरं

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यथाक्रमावे शतश तोमरम् Á Á 5.47.5 ÁÁ

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वराजमानं प्र तपूणर्व ुना
सहेमदा ा श शसूयर्वचर्सा Á
दवाकराभं रथमा त तः
स नजर्गामामरतु वक्रमः Á Á 5.47.6 ÁÁ


स पूरयन् खं च महीं च साचलां

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तुर मात महारथ नैः Á

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बलै ः समेतैः सह तोरण तं
समथर्मासीनमुपागमत् क पम् Á Á 5.47.7 ÁÁ
स तं समासा हिरं हर क्षणो
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युगा काला मव प्रजाक्षये Á


अव तं व तजातस मं
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समैक्षताक्षो बहुमानचक्षुषा Á Á 5.47.8 ÁÁ
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सत वेगं च कपेमर्हा नः
पराक्रमं चािरषु रावणा जः Á
वचारयन् ं च बलं महाबलो
युगक्षये सूयर् इवा भवधर्त Á Á 5.47.9 ÁÁ
स जातम ुः प्रसमी वक्रमं
nd

तः रः संय त दु नर्वारणम् Á
समा हता ा हनुम माहवे
प्रचोदयामास शतैः शरै भः Á Á 5.47.10 ÁÁ

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सु रका म् स च ािरं शः सगर्ः

ततः क पं तं प्रसमी ग वर्तं

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जतश्रमं शत्रुपराजयो चतम् Á

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अवैक्षताक्षः समुदीणर्मानसं
सबाणपा णः प्रगृहीतकामुर्कः Á Á 5.47.11 ÁÁ
स हेम न ा दचारुकु लः


समाससादाशुपराक्रमः क पम् Á
तयोबर्भूवाप्र तमः समागमः

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सुरासुराणाम प स मप्रदः Á Á 5.47.12 ÁÁ

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ररास भू मनर् तताप भानुमान्
ववौ न वायुः प्रचचाल चाचलः Á
कपेः कुमार च वीयर्संयुगं
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ननाद च ौरुद ध चुक्षुभे Á Á 5.47.13 ÁÁ


सत वीरः सुमुखान् पत त्रणः
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सुवणर्पु ान् स वषा नवोरगान् Á
समा धसंयोग वमोक्षत व -
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रानथ त्रीन् क पमू र्ताडयत् Á Á 5.47.14 ÁÁ


स तैः शरै मूर् र् समं नपा ततैः
क्षर सृ ववृ लोचनः Á
नवो दता द नभः शरांशुमान्
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राजता द इवांशुमा लकः Á Á 5.47.15 ÁÁ


ततः प्लव ा धपम स मः
समी तं राजवरा जं रणे Á
उदग्र चत्रायुध चत्रकामुर्कं
जहषर् चापूयर्त चाहवो ुखः Á Á 5.47.16 ÁÁ
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सु रका म् स च ािरं शः सगर्ः

स म राग्र इवांशुमा लको

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ववृ कोपो बलवीयर्संवृतः Á

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कुमारमक्षं सबलं सवाहनं
ददाह नेत्रा मर च भ दा Á Á 5.47.17 ÁÁ
ततः स बाणासनशक्रकामुर्कः


शरप्रवष यु ध राक्षसा ुदः Á
शरान् मुमोचाशु हर राचले

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वलाहको वृ मवाचलो मे Á Á 5.47.18 ÁÁ

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क प त ं रणच वक्रमं
प्रवृ तेजोबलवीयर्सायकम् Á
कुमारमक्षं प्रसमी संयुगे
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ननाद हष द् घनतु नः नः Á Á 5.47.19 ÁÁ


स बालभावाद् यु ध वीयर्द पर्तः
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प्रवृ म ुः क्षतजोपमेक्षणः Á
समाससादाप्र तमं रणे क पं
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गजो महाकूप मवावृतं तृणैः Á Á 5.47.20 ÁÁ


स तेन बाणैः प्रसभं नपा ततै -
कार नादं घननाद नः नः Á
समु हेनाशु नभः समारुजन्
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भुजोरु वक्षेपणघोरदशर्नः Á Á 5.47.21 ÁÁ


तमु त ं सम भद्रवद् बल
स राक्षसानां प्रवरः प्रतापवान् Á
रथी रथश्रे तरः कर रै ः
पयोधरः शैल मवा वृ भः Á Á 5.47.22 ÁÁ
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सु रका म् स च ािरं शः सगर्ः

स ता रां हिर वर्मोक्षयं -

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चार वीरः प थ वायुसे वते Á

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शरा रे मारुतवद् व न तन्
मनोजवः संय त भीम वक्रमः Á Á 5.47.23 ÁÁ
तमा बाणासनमाहवो ुखं


खमा ृण ं व वधैः शरो मैः Á
अवैक्षताक्षं बहुमानचक्षुषा

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जगाम च ां स च मारुता जः Á Á 5.47.24 ÁÁ

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ततः शरै भर् भुजा रः क पः
कुमारवयण महा ना नदन् Á
महाभुजः कमर् वशेषत वद्
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व च यामास रणे पराक्रमम् Á Á 5.47.25 ÁÁ


अबालवद् बाल दवाकरप्रभः
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करो यं कमर् मह हाबलः Á
न चा सव हवकमर्शा लनः
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प्रमापणे मे म तरत्र जायते Á Á 5.47.26 ÁÁ


अयं महा ा च महां वीयर्तः
समा हत ा तसह संयुगे Á
असंशयं कमर्गुणोदयादयं
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सनागयक्षैमुर् न भ पू जतः Á Á 5.47.27 ÁÁ


पराक्रमो ाह ववृ मानसः
समीक्षते मां प्रमुखोऽग्रतः तः Á
पराक्रमो मनां स क येत्
सुरासुराणाम प शीघ्रकािरणः Á Á 5.47.28 ÁÁ
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सु रका म् स च ािरं शः सगर्ः

न ख यं ना भभवेदुपे क्षतः

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पराक्रमो रणे ववधर्ते Á

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प्रमापणं ममा रोचते
न वधर्मानोऽ रुपे क्षतुं क्षमः Á Á 5.47.29 ÁÁ
इ त प्रवेगं तु पर तकयन्


कमर्योगं च वधाय वीयर्वान् Á
चकार वेगं तु महाबल दा

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म तं च चक्रेऽ वधे महाक पः Á Á 5.47.30 ÁÁ

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सत तान वरान् महाहयान्
समा हतान् भारसहान् ववतर्ने Á
जघान वीरः प थ वायुसे वते
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तलप्रहारै ः पवना जः क पः Á Á 5.47.31 ÁÁ


तत ले ना भहतो महारथः
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सत प ा धपम न जर्तः Á
स भ नीडः पिरवृ कूबरः
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पपात भूमौ हतवा जर रात् Á Á 5.47.32 ÁÁ


स तं पिर महारथो रथं
सकामुर्कः ख धरः खमु तन् Á
ततोऽ भयोगादृ षरुग्रवीयर्वान्
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वहाय देहं मरुता मवालयम् Á Á 5.47.33 ÁÁ


क प त ं वचर म रे
पत राजा नल स से वते Á
समे तं मारुतवेग वक्रमः
क्रमेण जग्राह स पादयोदृर्ढम् Á Á 5.47.34 ÁÁ
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सु रका म् स च ािरं शः सगर्ः

स तं समा व सहस्रशः क प -

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मर्होरगं गृ इवा जे रः Á

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मुमोच वेगात् पतृतु वक्रमो
महीतले संय त वानरो मः Á Á 5.47.35 ÁÁ
स भ बाहूरुकटीपयोधरः


क्षर सृ मर् थता लोचनः Á
स स ः प्र वक णर्ब नो

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हतः क्षतौ वायुसुतेन राक्षसः Á Á 5.47.36 ÁÁ

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महाक पभूर् मतले नपी तं
चकार रक्षोऽ धपतेमर्ह यम् Á
मह षर् भ क्रचरै ः समागतैः
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समे भूतै सयक्षप गैः Á


सुरै से भ ै ृर्शजात व यै -
हर्ते कुमारे स क प नर्र क्षतः Á Á 5.47.37 ÁÁ
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नह तं व ज्रसुतोपमं रणे
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कुमारमक्षं क्षतजोपमेक्षणम् Á
तदेव वीरोऽ भजगाम तोरणं
कृतक्षणः काल इव प्रजाक्षये Á Á 5.47.38 ÁÁ
ÁÁ इ ाष श्रीमद्रामायणे वा ीक ये आ दका े सु रका े स च ािरं शः सगर्ः ÁÁ
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