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श्रीः

श्रीमते रामानुजाय नमः


श्रीमते नगमा महादे शकाय नमः

श्रीरामदे शकाचायर् वर चता

Á Á तरु ावैप ानां सं ृ त ोकाः Á Á


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श्री र रामानुज महादे शकन्


His Holiness śrīmad āṇḍavan śrīraṅgam
श्रीः

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श्रीमते रामानुजाय नमः

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श्रीमते नगमा महादे शकाय नमः

Á Á तरु ावैप ानां सं ृ त ोकाः Á Á


अवतािरका


वैकु े रमया साकं कदा चज्जगतीप तः Á

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संसारसागरे म ान् जनान् ृ ा च यत् Á Á 1 ÁÁ

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अहो मोहवशादेते सागरा नर्मिज्जताः Á
यया कयाऽ प वधया ु िर ा म तान् ध्रुवम् Á Á 2 ÁÁ
एवं स भगवान् वै वाग्रेसरान् बहून् Á
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ससजर् नौसमानां ान् आ ार् -श ा भधान् गुरून् Á Á 3 ÁÁ


एते तमः स शीला ै मलङ्कृतः Á
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व ु च ा भधो व ुकुलदीप इवो तः Á Á 4 ÁÁ
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आसी गवतो ध पुरेश पदा ुजे Á


कुवर्न् ह तुलसीपत्रम य ःै समचर्नाम् Á Á 5 ÁÁ
तुलसीभू मखननवेळायां पे टकागता Á
एकदा बा लका ल ा व ुभ शखामणेः Á Á 6 ÁÁ
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दने दने पक्षकले व श शनः शुभा Á


ववृधे यौवनं चा प त ाः प्रादुरभू यः Á Á 7 ÁÁ
सवर्दा भगव ं तं र नाथा यं प्रभुम् Á
भत रमा च त ग्रा समभू दा Á Á 8 ÁÁ
तरु ावैप ानां सं ृ त ोकाः

अनावृ रभूद् वृ ावने कृ ापचारतः Á

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पूवर्मेतत् समालो कतु का ायनीव्रतम् Á Á 9 ÁÁ

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ऐह ह ता गो ः सा ं त्रंश नैः शुभम् Á
प्राथर्य े तं कृ ं व्रतोपकरणं प्र त Á Á 10 Á Á

अ कृ तदीयां तां प्राथर्नां सफलां धात् Á


कृ ः कमलपत्राक्षो भ ानामभयप्रदः Á Á 11 Á Á

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तत ाः स ताः ासु नयमं पयर्क यन् Á

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या पूव प्रातरु ेत् प्रबोधयतु सापराः Á Á 12 ÁÁ
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इ ं वधाय नयमं तथैव प्रातरु ताः Á
यमुनायां सुखं ा ा च क्ररे व्रतमु मम् Á Á 13 ÁÁ
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पू णर्मायां मागर्शीषर्मा स पु दने शुभे Á


आ ा यका ममां कृ ां र ी मनसा सती Á Á 14 ÁÁ
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गो पका भः कृतं सव कायर्जातं म त Á
ेनैव क्रयमाणं सा गोदा सव सु र Á Á 15 ÁÁ
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म ा तथैव सा गोदा प्रोवाचेमां कथां ृ ाम्


त Á
त्रंशता रसपूण भः द ैद्रर् मडसू भः Á Á 16 ÁÁ

तरु ावै - ोकाः


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या यं भ नाथ सीतेव म थले शतुः Á


ल ाऽ भव धर्ता चैव तां गोदां र हे मनः ÁÁ
मासोऽयं मागर्शीष दनम प सु दनं च स ूिरत ात्
त ादु ाय गो ः शुभतरवपुषः ातुकामाः प्रयात Á

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तरु ावैप ानां सं ृ त ोकाः

यः सव न् शत्रुवग न् तृण मव मनुते त गोप पुत्रः

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कृ ः प ायताक्षो दश त च करणा द थर्ता न Á Á 1 ÁÁ

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हे भूलोकमवा नः शृणुत स ो ो लस ो भृशं
वा ं म लदायकं व्रतपरं तत्रोपयु ान् वधीन् Á
ना ा भ वर्मुखी भर थर् नवहे भा ं प्रसूना ने


धाय नैव कुपु का दपठनं ा ं कृ ं तथा Á Á 2 ÁÁ

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पादाक्रा सम लोक वभवं ु ा प्रभुं श्रीधरं

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ानं चेत् क्रयते व्रताय सकलो लोको वबाधो भृशम् Á
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गावोऽभी पयः प्रदाः कल मही स ैः समृ ा भवेत्
देवो वषर् त मा स मा स च जनाः न श्रयं प्रा ुयुः Á Á 3 Á Á

हे पजर् समुद्रमे स ललं पी ा समृ ं ततो


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भू ा नीलतनुयर्था दपुरुषः श्रीचक्रपाणेः करे Á


श ानसमानगजर्नयुत ं वषर् वारां चयं
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ा ा तत्र समा सुव्रत मदं तु ा भवामो वयम् Á Á 4 ÁÁ
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यं माया वनमामन वबुधाः यं माथुरं जानते


यं प्राहुयर्मुना वहारकुशलं दामोदरं केशवम् Á
तं देवं मनसा रे म वचसा स तर्यामो य द
ौ तूल मवा खलं कृतमघं न े व नः Á Á 5 ÁÁ
बाले ं न शृणो ष कं खगरुता ा ानश नः
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नैव श्रोत्रपथं गतोऽ गरुडाधीशालयाज्जागृ ह Á


ानाव तत तेन मनसा स तर्य हर्िरं
श ानु िरतान् महाजनगणैः श्रु ा प नोद्बु से Á Á 6 ÁÁ

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तरु ावैप ानां सं ृ त ोकाः

भ्रा े ! ख नस जात ननदान् ं क चुक ची मून्

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गो ः सु रकेशपाशभिरता मा मालावृताः Á

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य दधीह तेन ज नतान् श ां य े शवं
ब्रूम वती न कं नशमय ु बाले शुभे Á Á 7 ÁÁ
दृ ा प्रा ां प्रकाशं तदनु यदुवरै मुर् माना म ह ः


धाव ेकत्र तु ाः तृणचरण धया नैव वत महेऽत्र Á
इ ेवं ब कोपाः लदनलसमाः ाप य ैव गोपीः

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प्रा ाः ां ह नेतुं बकमुखशमनं कृ मु ैः ुव ः ÁÁ 8 ÁÁ

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पयर् े बहुर दीपभिरते धूपै था ापृते
नद्रा स बले कवाटयुगलं ं क्षप्रमुद्घाटय Á
मूका कं ब धरालसा तव सुता ापा भचारं गता
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कं वा क तर्य मा यनं हिर ममं क्षप्रं मु ापय Á Á 9 ÁÁ


अ ाकं पटहप्रदेन तुलसीयु ौ लना शा र् णा
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ो रावणसोदरः स व जतो नद्रापर क्षा वधौ Á
च ं ीयपराजय महतीं नद्रामदात् कं नु ते
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येन ं पषीदृशं बहु वधं स ो माना मुहुः Á Á 10 ÁÁ


स च शत्रुनाशन वधौ दीक्षाजुषः पु त्रके
व ीकाग्रफणाधरप्र वलस े मयूर नभे Á
स े समुपागता जलधर ायं भज ो हिरं
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नो प मूकभावस हता कं म से नद्रया Á Á 11 ÁÁ


ब ै र् परायणैः सुम हषीवृ ःै पयः क्षारणा -

दा स ा ण भू मस ह ृ पतेः गोपे र सः Á
गेह ारसमागतैः हमजला स शीषः सखी -
वृ ःै सं ुतरावणािर वभवं श्रु ा प नोद्बु से Á Á 12 ÁÁ
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तरु ावैप ानां सं ृ त ोकाः

व ंु घोरबका दारकममुं रक्षः शर े दनं

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गाय ः प्र तपे दरे व्रतभुवं सव गोपा नाः Á

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शुक्रः प्रादुरभूद् बृह तरगाद ं जा ो ताः
बाले ीदृशकाल एव श यता ानं कृ ा शुभे Á Á 13 ÁÁ
गेहारामगवा पकाजलगतं र ो लं पु तं


भ्रा े स ु चताऽभव ु मु दनी ाय श ं जनाः Á
ः प्रातः प्रथमो ता ननु सखीरु ोध य ेऽह म -

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ु ः कं तव नैव लज्जय त त ो ाय कृ ं भज Á Á 14 ÁÁ

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अ ाप पषीह बालशु कस प्रबु ा हं
जानेऽहं तव वा कौशलमहं यूयं तथा द्र थ Á
कं सव ः समुपागमन् ननु तथा सङ् ाय जानी ह तत्
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ं तं मा यनमुग्रशत्रुशमनं कृ ं सखायं र Á Á 15 Á Á

श्रीम ोपजने शतुगृर्हपिरत्रात थो ज-


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प्राल ोज् लतोरणप्रगु णत ार दौवािरक Á
कृ ः प्रागवदद् व्रतोपकरणं दा ा म यु म-
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ा ाः से वतुमेव तं म णमयं त ा वाटं नुद Á Á 16 ÁÁ


ा मन् दानपरायण प्रभुवर प्रो न प्रभो
ा म ु मवंशजे शुभगुणे नद्रां यशोदे ज Á
ा ोम पदत्रयेण तु जग ातः प्रबु हे
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व ो ं बलभद्र कृ स हत ो कृ प्रय Á Á 17 ÁÁ
नीले वा सतचारुकेश नचये हे न गोप ुषे
कूज त्र च कु ु टा अ प कुहूक ा लताम पे Á
अ तर्तकृ नाम वभवं भ ा यं शृ ती
भूषा श तमञ्जुपा णकमले नोद्घाटय ागर्लम् Á Á 18 ÁÁ
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तरु ावैप ानां सं ृ त ोकाः

पयर् े बहुदीपरा जल सते का ाकुचाग्र ल -

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व ा भुजा राल भगवन् वाचं न द े ह नः Á

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दे व ं न कले स शयना ा ं कदा ु तं
ं चे क्षण वप्रयोगसहना त ं न त ो दया Á Á 19 Á Á

त्रंश ो ट दवौकसाम प पुरो ग ा तदा तर् दा -


कािर ा श्रतव लािरशमनो यं नमर्ल Á
नीले वद्रम ु र वणर्वदने कु न ं ह नः

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कृ ं चा दपे क्षतं च करणं द ा व्रतं कारय Á Á 20 ÁÁ

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आपूयर् प्रसृतान् घटान् बहुपयोधारा ब हमुर् तः
ामी धेनुगण योऽ तमहतो गोप त ा जÁ
दीना पराक्रमािरसदृशाः ादप ा कं
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प्रा ाः ः श्रतपालनो त जग ीप प्रबु भोः Á Á 21 ÁÁ


न ाहङ्कृ तशत्रुस व दहाग तानामुप -
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यर् ाकं न पतेयुर रुचयः कं ते कटाक्षाः शनैः Á
अ क्ष ामु दताकच सदृश ां मना े वा -
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न ान् प त न पाप नचयाः ाम प्रहृ ा वयम् Á Á 22 ÁÁ


क्षोणीभृ रक रोदरशयः संहः प्रबु ो यथा
दृ ोग्रं पिरधूय केसरचयं चा े भीरां ग तम् Á
आग व ै म ध तः सु व हतं संहासनं य ृ ते
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प्रा ाः कायर् मदं व च करुणाम ासु स शर्य Á Á 23 ÁÁ


ल ाधीशदशानना दशमन क्रमो वधर्तां
व ा ािर वना शन व जग ातुः प्रथेतां पदे Á
तं गोवधर्नपवर्तं कृतवत त्रं गुणा े जय -
ेतं ां शरणं गता वयमहो ल ुं व्रत ो चतम् Á Á 24 ÁÁ
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तरु ावैप ानां सं ृ त ोकाः

क ा ज्जठरा व श तदैवासीः पर ाः सुतः

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त ैवं परना शनो रचयत् कंसोऽ प्रयं ते बहु Á

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त व य न ल मगमत् त न् भव थर्तां
प्रा ाः ः पटहा दकं बहु वधं द ा व्रतं कारय Á Á 25 ÁÁ
श ान् शु तमान् ननादभिरतान् दीपान् बहून् सु रान्


क ा ु नादवा दपटहान् वेदप्रव ॄ न् जनान् Á

अ ु जमा वतानम खलं चा रे श्रीपते

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दे ह ं वटपत्रत जलद ाम प्रभो सादरम् Á Á 26 Á Á

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हे शत्रु य गोपते प्रय वभो ु ा वयं ां मुहुः
प्रा ेमान् पटहान् बहून् बहुम तं ल ामहे चो माम् Á
व ा दकणर्पत्रकटकान् धृ ा ततः स ताः
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ा ं घृतदु पूरभिरतं भो ामहे च या Á Á 27 Á Á

गोवृ ैव ह जीवतामहरहः गोपालकानां कुले


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येन प्रादुरभू मेतदु चतं पु ं समृ ं ह नः Á
अ ा भः प्रय कृ गोपतनये ाहूयमानोऽसकृत्
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म ुं मा कुरु चा द म खलं स ः प्रय प्रभो Á Á 28 ÁÁ


कृ प्रातिरहागतै व जनैरावे मानं शृणु
प्रा ैिरह वा चामरमुखैनर् ाम तु ाः प्रभो Á
क ान् सहजानपो वषयान् सांसािरकान् सवर्दा
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कै य करवाम तेऽ कमले कुय दयां न था Á Á 29 Á Á

गो समानचारुवदनाः सं ु दामोदरं
प्रा ा य टहा दकं कृ त ममां गोदा दे ा कृताम् Á
त्रंशद् द्रा वडप गु नमयीं ये वा पठ ादरात्
प ाका दयामवा भु व ते न ं सुखं प्रा ुयुः Á Á 30 ÁÁ
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तरु ावैप ानां सं ृ त ोकाः

स दाय वदामत्र व ं बहु श ते Á

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व श भाव व ज्ञानहेतुिरयं कृ तः Á Á

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श्रीवीरराघवाय णां उ मूचर्क्रव तर्नाम् Á
सवर्शा प्रवीणानाम ेवासी यं जनः ÁÁ
वरदायर्गुरोः सूनुः वा ः श्रीरामदे शकः Á


तानीत् ोकरूपेण गोदादे ाः कृ तं शुभाम् ÁÁ

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श्री तरु ावैप ानां सं ृ त ोकाः समा ाः
su att ki
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pr sun
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