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भ म नमाण तथा धारण व ध करणम्

(च ानागम)

बृह त वाच
अ मेय भावा जगद श नमोऽ तु ते ।
ु वा सादभूमानं कृ तकृ योऽ म सा तम् ॥१॥
ष य भ मन ा प य माहा यमनु मम् ।
तद यावे कृ पया ध यं संपादया माम् ॥२॥
अन त उवाच
ावेद य या म भ मसंपादनं तथा
धारणं वैभवं चा प सावधानमनाः शृणु ॥३॥

भ मा यं ष मावरणम्
व ाश ः सम तानां श र य भधीयते ।
गुण या या व ा सा व ा च तदा या ॥४॥

गो-गोमय गोमू व प न पणम्


गुण य मदं धेनु व ाऽभूगोमयं शुभम् ।
मू ं चोप नषत् ो ं कु या म ततः परम् ॥५

भ मस ादन व ध:
प चा रेण म ण
े धेनुं त ा भम येत् ।
अ ो रशतेनाथ ाशये ु जलं तृणम् ॥६॥
उपो य च चतुद यां शु ले कृ णेऽथवा ती ।
परेधुः ात ाय शु चभू वा समा हतः ॥७॥
कृ त ानो धौतव ः पयोऽथ वसृजे गाम् ।
उ ा य गां य नेन गाय या मू माहरेत् ॥८॥
सौवण राजते ताने धारये मृ मये घटे ।
पौ करेऽथ पलाशे वा पा े गोशृ एव वा ॥९॥
आदद त ह गोमू ं मूलम ण
े गोमयम् ।
अभू मपातं गृ यात् पा े पूव दते गृहे ॥१०॥
गोमयं शोधयेद ् व ान् मूलम ा के न च ।
दशज तेन म ण
े गोमू ं शोधयेत् तथा ॥११॥
भवाय नमम ण
े गोमू ं गोमये पेत् ।
शवाय नम इ येवं प डानां च चतुदश ॥१२॥
कु यात् संशो य करणैः स तमूलेन चाहरेत् ।
वद यादथ पूव पा े गोमय प डकान् ॥१३॥

आ त वधानम्
शैवागमो व धना त ा या नमचयेत् ।
प डां न पेत् त चा त णवेन तु ॥१४॥
षड र य म य ावृ य तथाऽ रैः ।
वाहा तैजु यात् त वणग मय प डकान् ॥१५॥
मूलेनवै ा यभागौ च पेदेव संयतः ।
ततो नधनपतये यो वशं जुहो त च ॥
होत ाः प च ा या नमो दे वाय श वे ॥१६॥
इ त सवा तीतु वा चतु य तै म कै ः ।
भवः शव मृडो ो हरः श ुमहे रः ॥१७॥
एतै जु याद् व ान् मूलम ा कं तथा ।
शवाय यहोम व कृ मूलम तः ॥१८॥
इ ं शेषं तु नव य पूणपा ोदकं तथा ।
अ ो रशतेनाथ तपये ु मानसः ॥१९॥

पुलकाहरणम्
प च ेण म ण
े त लं शर स पेत् ।
दशवारं तु ज तेन द ु तोयं व न पेत् ॥
शैवानां द णां द वा शा यै पुलकमाहरेत् ॥२०॥
शैवानामाह र या म सवषां कमगु तये ।
जातवेदसमेनं वां पुलकै छादया यहम् ॥२१॥
म ण
े ानेन तं व पुलकै छादयेत् ततः ।
दनं वलन यै छादनं पुलकं मृतम् ॥
ा णान् भोजयेद ् भ या वयं भु ीत वा यतः ॥२२॥
दन येण य द वा थमे दवसेऽथवा ।
तीये वा तृतीये वा ातः ना वा सता बरः ॥२३॥
शु लभा व सू ः शु भ मानुलेपनः ।
मूलम ं समु ाय पुलकं भ म स यजेत् ॥२४॥
तत ावाहनमुखानुपचारां तु षोडश
कृ वाऽऽ य तथा शैवं ततोऽ नमुपसंहरेत् ॥२५॥
स ा दम ण
े भ मशु करणम्
स ा दके न म ण
े गृ याद् भ म चो मम् ।
तदन तरम ण
े मृ य च ततः परम् ॥
संयो य ग स ललैः क पलामू के ण वा ॥२६॥
च कु ङ् कु मक तूरीमुशीरं च दनं तथा
अग तयं चैव चूण य वा तु सू मतः ॥२७॥
णवेनाहरेद ् व ान् बृहतो वटकानथ ।
अघोरम त ाथ दशज तेन मूलतः ॥२८॥
भ मस ादन य वधाना तरम्
वधा तरं व या म भ मसंपादनं लघु ।
स ने गोशकृ द् ा ं वामेन व भम येत् ॥२९॥
अघोरेण दहेत् प डं ा ं त पु षेण तु ।
न यमीशानम ण
े वा े धाय य नतः ॥३०॥

भ म ै व यम्
शा तकं पौ कं भ म कामदं च धा भवेत् ।
गोमयं यो नस ब ं य तेनवै गृ ते ॥
म ै संद धं त ा तक महो यते ॥३१॥
सावधानेन गोयो न न सृतं गोमयं तु यत् ।
अ त र े गृही वा तं षड े न दहेत् ततः ॥
पौ कं तु समा यातं कामदं तु ततः शृणु ॥३२॥
सुशु े भूतले दै वात् प ततं गोमयं तु यत् ।
सादे न दहेदेवमेतत् कामदमु यते ॥३३॥

भ मधारणम्
शवा नज नतं भ म श तं या वयो गनाम् ।
वरजानलजं चैव धाय भ म महामुनेः ॥३४॥
औपासनसमु प ं गृह ानां व श यते ।
स मद नसमु प ं श तं वै चा रणाम् ॥३५॥
ैव णकानां सवषाम नहो समु वम् ।
शू ाणां ो यागारपचना नसमु वम् ॥
अ येषाम प सवषां धाय दावानलो वम् ॥३६॥

भ म नानो धूलन व धः

भ म नान व ध व या यशेषाघौघनाशनम् ।
भ ममु समादाय सं हताम म तम् ॥
म तकात् पादपय तं भ म नानं समाचरेत् ॥३७॥
ईशेन प चधा भ म व करे मू न य नतः ।
मुखे चतु त पु षेणाघोरेणा धा द ॥३८॥
वामेन गु दे शे तु दशधा ततः पुनः ।
अ धा स म ण
े पादमु धू य य नतः ॥
सवा ोठू लनं कु यात् प च भ भः पुनः ॥३९॥

वधं भ मधारणम्
उ धूलनं तत ैवमवगु ठनमेव च।
पु ं चे त व यातं वधं भ मधारणम् ॥४०॥
प चभ भवाऽ प मूलम ण
े वा पुनः ।
स म य नजलं भ म तेन ल ेत् सुसंयतः ॥
सवा मापाद शखमु लन मदं मृतम् ॥४१॥
भ मना म तेनवै सजलेनानुलेपनम् ।
अवगु ठनमा यातं पु मथ क यते ॥४२॥
पु धारण ा श ाना न
पु ं कारये मान् व णु शवा मकम् ।
म या गु ल भरादाय सृ भमूलम तम् ॥४३॥
ा श ानके वाथ षोडश ानके ऽथवा ।
अ ाने तथा चैवं प च ाने च योजयेत् ॥४४॥
उ मा े ललाटे च कणयोन यो योः ।
नासाव गले वेवमंस यम् अन तरम् ॥४५॥
कू परे म णब े च दये पा यो योः ।
नाभौ गु ये चैव ऊव ः ब बजानुषु ॥
वा ये पादयो ा शत् ानमु मम् ॥४६॥
अ मू य व ेश द पालवसवोऽ धपाः
एतेषां नाममा ेण पु ं धारयेद ् बुधः ॥४७॥

बृह त करते ह-
हे अप र मत भाव से स जगत् के वामी अन त ! म आपको णाम करता ँ। अभी म साद क म हमा को सुन कर
कृ तकृ य हो गया ॥ँ १॥अब छठे भ म नामक आवरण क े म हमा को सुनाकर आप आज मुझे ध य बना द।।२।।
अन त उ र दे ते ह- हे बृह त ! भ म कै से बनाई जाती है तथा कै से धारण क जाती है, इसक म हमा या है? ये सब बात
म सुनाता ।ँ तुम सावधान होकर सुनो॥३॥ व ाश सम त पदाथ क श मानी जाती है। यह व ा तीन गुण का
आधार है और इन तीन गुण पर व ा आ त है।।४।। ये तीन गुण ही धेनु का और व ा क याण द गोमय का प धारण
करते ह। उप नषद् गोमू है। इन तीन से ही े भ म तैयार क जाती है।।५।। पंचा र म से धेनु को अ भम त करके
१०८ बार पंचा र म से ही अ भम त जल और तृण उसे पान और भोजन के लये दे ॥६॥ शु ल प अथवा कृ ण प क
चतुदशी को उपवास रख कर ती साधक सरे दन ात:काल उठकर प व और एका च होकर|७|| नान कर के उपासक
धुले ए प व व धारण कर ध हने के लये गाय को उ त करे। पहले गाय को उठाकर य नपूवक गाय ी म से गोमू
का हण करे।।८॥ सुवण के , चांद के , ता के अथवा म के पा म अथवा कमलदल, पलाशप आ द से बनाये गये पा म,
अथवा गोशृंग म गोमू को मूल पंचा री म का उ ारण करते ए हण करे। इसी कार अपने घर म ही पूव पा म से
कसी एक म जमीन पर गरने से पहले ही गोमय का भी सं ह करे॥९-१०॥ व ान् साधक मूल पंचा री म का आठ बार
उ ारण कर गोमय को तथा इसी तरह से दस बार म का जप करते ए गोमू को सुसं कृ त करे॥११॥ 'भवाय नमः' म से
गोमू को गोमय म मलाना चा हये। इसी तरह से 'शवाय नमः' म से गोमय के चौदह प ड बनावे॥१२॥ फर सूय क
करण से उनको सुखा कर सात बार पंचा र म का उ ारण करते ए गोमय के पड को उठा कर पहले बताये गये सोने,
चांद आ द के पा म रखना चा हये।॥१३॥
तब शैवागम म बताई गई व ध से अ न क ापना कर उसका पूजन करना चा हये। इसके बाद मूल पंचा र म के आ द
और अ त म णव का उ ारण करते ए उन गोमय प ड को अ न म रखना चा हये।।१४।। षड र म के वण का। म
से और वपरीत म से उ ारण करते ए अ त म वाहा पद को जोड़ कर इन गोमय पड को अ न म रखना चा हये।।१५।।
इसके अन तर संयते य साधक को षड र म से आ य भाग क आ त दे नी चा हये। तब नधनपतये' ५म से २३वी
आ त दे कर 'पंच ' म से तथा 'नमो दे वाय श वे' म से।घृत क आ तयां दे नी चा हये।।१६।। इस तरह से ऊपर
बताई गई आ तय को दे ने के बाद भव, शव, मृड़, , हर, श ,ु महे र और शव-इन आठ नाम के साथ चतुथ वभ
जोड़कर और येक चतु य त म के साथ पंचा र म का उ ारण करते ए आ तयां दे नी चा हये। तब पंचा र म से
शव के लये व कृ द् होम क तीन आ तयां दे ॥१७-१८।। इसी तरह से अ य सारी या को पूरा करके शु मन वाला
साधक १०८ बार मूल म का उ ारण कर जल से तपण करे॥१९॥ तब पंच म से उस जल को अपने सर पर छडके
। दस बार अ भम त जल को मश: दश दशा म छड़के । तब शैवाचाय को द णा दे कर शा त के लये पुलक का
आहरण करे।।२०॥ सभी शैव भ के ारा स ा दत कम क र ा के लये म पुलक का आहरण करता ।ँ हे अ नदे व! अब
म तुमको इन पुलक से ढं क रहा ँ॥२१॥ इस म का उ ारण करते ए पुलक से व को ढं क दे । तीन दन तक अ न
जलती रहे, इसके लये साधनभूत व ध को ही पुलक कहा जाता है। इसके बाद भ भावपूवक ा ण को भोजन करावे
और मौन धारण कर वयं भी भोजन करे।।२२।। तीन दन बाद अथवा पहले दन, सरे दन या तीसरे दन ातः नान कर
शु ल व धारण करे।।२३।। उ वल शु ल य ोपवीत धारण कर और शु भ म का अनुलेपन कर साधक पंचा र म का
उ ारण करते ए पुलक क भ म को हटावे।।२४॥ तब आवाहन आ द सोलह उपचार से अ न का पूजन कर वहां से
हटाकर उस १०शैव अ न का वसजन कर दे ।।२५।। अब ११स ोजात म से उस उ म भ म को लेकर बाद के वामदे व म
से उसका चूण बना कर इसके बाद उसम सुग त जल या क पला गौ का मू मलावे।।२६।। कपूर, कुं कु म, क तूरी, उशीर,
च दन और दोन तरह क अगु का सू म चूण बना कर उसम मलाना चा हये।।२७। इसके बाद व ान् साधक ॐकार का
उ ारण करते ए अघोर म का और पंचा र म का दस बार उ ारण करते ए भ म के बड़े गोले बनावे॥२८॥ 'भ म
बनाने क एक सरी सं त व ध भी म तुमको बताता ँ। इसके अनुसार स ोजात म से गोमय का हण तथा वामदे व
म से उसको अ भम तनकरतेन ए उसे सुखावे।।२९।। अघोर म से गोमय पड का दहन करे और त पु ष म से
उसका हण कर ईशान म से य नपूवक अपने शरीर पर उसे धारण।करे॥३०॥
यह भ म शा तक, पौ क और कामद के भेद से तीन कार क होती है। गोयो न से नकलते समय ही गोमय को हाथ म
लेकर उसे पंच म से संद ध कर जो भ म बनाई जाती है, वह शा तक भ म कहलाती है।।३१।। गोयो न से नःसृत
गोमय को पृ वी पर गरने से पहले ही सावधानी से बीच म ही लेकर षडंग म से उसे संद ध कर जो भ म बनाई जाती है, वह
पौ क भ म कहलाती है।३२।। अनायास प व भू म पर गरे गोमय को लेकर साद म से उसे संद ध कर बनाई गई भ म
कामद कहलाती है।।३३।। शवयो गय के लये शवा न से तैयार क गई भ म श त है। मु नय के लये वरजानल से तैयार
क गई भ म धारणीय मानी गई है।॥३४॥ १२औपासन अ न से उ प भ म गृह के लये और स मधा से उ प भ म
चा रय के लये श त है॥३५॥ सभी ैव णक के लये अ नहो से उ प भ म और शू के लये ो य के रसोई घर
क अ न से उ प भ म े है। इसी तरह से ऊपर न द चार वष से भ सभी य के लये दावानल से उ प भ म
धारणीय मानी गई है।॥३६॥

अब म सम त पापसमूह का नाश कर दे ने वाली भ म नान क व ध बताऊँगा। सं हता म बताये म से अ भम त भ म को


मु म लेकर उससे म तक से पाद पय त नान करना चा हये॥३७॥ ईशान म से म तक पर पांच बार य नपूवक भ म।डाले,
त पु ष म से मुख पर चार बार और अघोर म से दय पर आठ बार भ म डाले।।३८।। वामदे व म से तेरह बार गु दे श
पर भ म डाले और तब स ोजात म से आठ बार पैर पर भ म का य नपूवक उ ल ू न१३ करके त प ात् पुन: पंच म
से एक साथ सारे शरीर पर भ म को डालकर भ म नान क व ध को स करे।।३९॥ उ धूलन, अवगु ठन और पु के
भेद से भ म धारण क तीन व धयां व यात है।।४०॥ पंच म से अथवा पंचा र म से अ भम त कर बना जल क
भ म को पैर से लेकर सर तक सारे शरीर पर लगाना ही उ लन कहलाता है।।४१।। अ भम त भ म का जल के साथ
अनुलेपन करना अवगु ठन कहलाता है।

इसके बाद पु का व प कहा जा रहा है।।४२॥ पु क तीन रेखाएं ा, व णु और शवमय ह। म य क तीन


अंगु लय से पंचा र म से अ भम त भ म लगानी चा हये।।४३।। ३२ ान पर,१६ ान पर, आठ ान पर अथवा
पांच ान पर पु धारण करना चा हये।॥४४॥ उ मांग ( सर) पर, ललाट पर, दोन कान और ने पर, दोन ना सका,
मुख और गले पर तथा बाद म दोन क पर, कोह नय पर, कलाईय पर, दय और दोन पस लय पर, ना भ पर, गुदा पर
और लग पर, दोन नत ब पर, दोन जांघ पर, दोन घुटन पर, पड लय पर और चरण पर इन ३२ ान पर पु धारण
करना उ म प है।।४५-४६।।

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