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िे भगवन, आपके ऊपर छत्र लगाकर चंवर और पंखा झल रिा िूँ। शनमू ल िपू र्ण, शजसमें आपका स्वरूप सुंिरतम व भव्य शिखाई िे रिा िन, भी
प्रस्तुत िन। वीर्णा, भेरी, मृिंग, िुन्िुशभ आशि की मधुर ध्वशनयां आपको प्रसन्नता के शलए की जा रिी िैं। स्तुशत का गायन, आपके शप्रय नृतय को
करके मैं आपको साष्ांग प्रर्णाम करते िु ए संकपप रूप से आपको समशपू त कर रिा िं। प्रभो! मे री यि नाना शवशध स्तुशत की पूजा को कृपया
ग्रिर्ण करें ।
िे िंकरजी, मे री आतमा आप िैं। मे री बुशि आपकी िशि पावू तीजी िैं। मे रे प्रार्ण आपके गर्ण िैं। मे रा यि पंच भौशतक िरीर आपका मंशिर िन। संपर्ण
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शविय भोग की रचना आपकी पूजा िी िन। मैं जो सोता िं, वि आपकी ध्यान समाशध िन। मे रा चलना-शफरना आपकी पररक्रमा िन। मे री वार्णी से
शनकला प्रतयेक उच्चारर्ण आपके स्तोत्र व मंत्र िैं। इस प्रकार मैं आपका भि शजन-शजन कमों को करता िं, वि आपकी आराधना िी िन।
िे परमे श्वर! मैंने िाथ, पनर, वार्णी, िरीर, कमू , कर्णू , नेत्र अथवा मन से अभी तक जो भी अपराध शकए िैं। वे शवशित िों अथवा अशवशित, उन सब पर
आपकी िमापूर्णू दृशष् प्रिान कीशजए। िे करुर्णा के सागर भोले भंडारी श्री मिािेवजी, आपकी जय िो। जय िो।
ऐसी सुंिर भावनातमक स्तुशत द्वारा िम मानशसक िांशत के साथ-साथ ईश्वर की कृपा शबना शकसी साधन संपन्न कर सकते िैं। मानशसक पूजा
का िास्त्रों में श्रेष्ठतम पूजा के रूप में वशर्णू त िन। इस शिव मानस पूजा कृपा का शिव्य सािात्प्रसाि मनुष्य को शनरं तर ग्रिर्ण करते रिने की
आवश्यकता िन।