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पंचांग क्या हैं ?

पंचांग का अर्थ हुआ पाँच अंग .

ज्योतिष के अनु सार दिवस के पांच आवश्यक अं ग हैं :

1. तिथि
2. नक्षत्र
3. योग
4. करण
5. वार
इनके बारे में आगे विस्तार से बताया जाये गा, ले किन उसके पहले इन्हें हम एक व्यावहारिक उदाहरण से समझें गे

आज 12 नवम्बर , 2019 है  , सो आज का पं चां ग होगा

(स्क् रीन शॉट : साभार - Hindu Calendar Android App )

 पहला अंग - तिथि


आज पूर्णिमा अर्थात 15 वीं तारिख है और शु क्ल पक्ष है . हिन्द ू कैलें डर में चन्द्रीय महीने होते हैं जो 29.5 दिन के
होते हैं . इस सबं ध में विस्तृ त जानकारी आप यहाँ दे ख सकते हैं

अनिमे ष कुमार सिन्हा (Animesh Kumar Sinha) का जवाब - भारत में हिन्द ू पं चां ग का प्रयोग क्यों नही होता?

तिथि प्राचीन भारतीय खगोलीय विधि ( ज्योतिषीय नहीं ; Astronomically - not astrologically ) द्वारा भी
निकाल सकते हैं , निम्नवत

चं दर् मा के दे शांतर या longitude से सूर्य के दे शांतर को घटाने से जो सं ख्या प्राप्त होती है , वो 12 -12 डिग्री के
हिसाब से तिथि को इं गित करते हैं ( क्योंकि 12 X 30 = 360 ) . इसे उदाहरण द्वारा समझें गे .

12 नवं बर को :

सूरज का दे शान्तर : 205:9:28 , चंद ्रमा का दे शान्तर : 18:37:9 ,[1] चूँकि चं दर् मा का दे शान्तर सूर्य से कम है सो
इसमें 360 जोड़ें गे
तो 360 + 18:37:9 =

378:37:9

-205:9:28

= 173:27:41 इसे 12 से भाग दे ने पर आता है 14.6 यानी 15 वाँ दिन = पूर्णिमा

चंद ्रमा और सूर्य के दे शांतर के अंतर से तिथि निकालने के लिए एक सारिणी होती है , जिससे बिना गणित के ही
तिथि निकाल सकते हैं .

ऊपर जो स्क् रीन शॉट है उसमें तिथि - पूर्णिमा के बाद लिखा हुआ है - 19:04:14

यह , तिथि की समाप्ति का समय बतलाता है

इसे निम्नवत निकालते हैं

चूँकि पूर्णिमा महीने के बीचोबीच होता है अर्थात 360 डिग्री के मध्य में यानी 180

और 12 नवम्बर की तिथि आई 173:27:41 जिसे  180 से  घटाने पर मिलता है 6:32:19 .

चूँकि 12 डिग्री २४ घं टे होते हैं

सो 6:32:19 डिग्री = 6:32:19 /12 गु णे 24 = 13 घं टा 4 मिनट 48 से कंड

इसे सूर्योदय के समय से जोड़ने पर मिलता है , तिथि की समाप्ति का समय

(स्क् रीन शॉट : साभार - Hindu Calendar Android App )

सो तिथि समाप्ति का समय = 5:57:42 + 13:04:48 = 19:02:30 , जो कि पं चां ग में लिखे 19:04:14 से पौने दो
मिनट कम है क्योंकि पं चां ग IST मिर्ज़ापुर के हिसाब से है और ऊपर सूर्योदय का समय मेरे शहर का है जो मिर्ज़ापु र
नहीं है .

 दूसरा अंग - नक्षत्र


नक्षत्र 27 होते हैं - अश्विनीं से शु रू हो कर रे वती तक - और ये 13 डिग्री 20 मिनट के अंतराल पे व्यवस्थित रहते
हैं , क्योंकि 13 डिग्री 20 मिनट गु णे 27 = 360 डिग्री

27 नक्षत्रों के नाम :- 1 अश्विनी 2 भरिणी 3. कृतिका 4 रोहिणी 5 मृ गशिर 6 आर्द्रा 7 पु नर्वसु 8 पु ष्य 9 आश्ले षा 10
मघा 11 पूर्वाफल्गु नी 12 उत्तरफाल्गु नी 13 हस्त 14 चित्रा 15 स्वाती 16 विशाखा 17 अनु राधा 18 ज्ये ष्ठा 19 मूला
20 पूर्वाषाढ़ा 21 उत्तराषाढा 22 श्रवण 23 धनिष्ठा 24 शतभिषा 25 पूर्वाभाद्रपद 26 उत्तरभाद्रपद 27 रे वती [2]
ू रा नक्षत्र भरिणी है - जो दस
आज दस ू रा अं ग हुआ
 तीसरा अंग - योग
तीसरा अं ग है योग - जो व्यतिपात दिखाया जा रहा है

योग भी 27 होते हैं , जिन्हें निम्नवत निकाला जाता है

सूर्य और चं दर् मा के दे शांतर या longitude को जोड़ने से जो सं ख्या प्राप्त होती है , वो भी नक्षत्र के जै से 13


डिग्री 20 मिनट के अं तराल पर व्यवस्थित रहते हैं . इसे उदाहरण द्वारा समझें गे .

सूरज का दे शान्तर : 205:9:28

चं दर् मा का दे शान्तर : 18:37:9

योग = 223:46:37

जो कि , 223:46:37 / 13:20 = 16 .73 यानी 17 वाँ योग हुआ जो कि नीचे की सूची के अनु सार व्यतिपात होता है

१. विष्कम्भ २. प्रीति ३. आयु ष्मान ४. सौभाग्य ५. शोभन

६. अतिगं ड ७. सु कर्मा ८. धृ ति ९. शूल १०. गं ड

् १२. ध्रुव १३. व्याघात १४. हर्षण १५. वज्र


११. वृ दधि

१६. सिद्धि १७. व्यतिपात १८. वरीयन १९. परिघ २०. शिव

२१. सिद्ध २२. साध्य २३. शु भ २४. शु क्ल २५. ब्रह्म

२६. एन्द्र २७. वै धृति [3]


इसमें  अमृ त योग आदि भी होता है , इस पर आगे चर्चा होगी

 चौथा अंग - करण


चौथा अं ग है करण जो विष्टि दिखाया जा रहा है

करण " तिथि का आधा होता है सो यह 6 - 6 डिग्री के अं तराल पर होता है और एक तिथि में दो करण होंगे एक
पूर्वार्ध में एक उत्तरार्ध में .

करण दो तरह के होते हैं ,

स्थिर करण : कुल 4 - शकुनि, नाग, चतु ष्पद व किं स्तु घ्न

चर करण : कुल 7 बव, बालव, कौलव, तै तिल, गर, वणिज, विष्टि या भद्रा

स्थिर करण वे होते हैं जो महीने में एक ही बार किसी नियत दिन आते हैं , जबकि चर करण , एक महीने में बारम्बार
आते हैं .

स्थिर करण हे तु सूतर् है

कृष्णपक्षीयचतु र्दश्याः परावं शकुनिः, पर्वणि प्रथमे (अमवास्या पूर्वार्धे) चतु ष्पदं करणम् । तिथ्यर्थेऽन्ते
(अमावास्योत्तरार्धे ) नागं , प्रक्षिपदावर्ये (शु क्लपक्षीय प्रतिपत्पूर्वार्धे) किंस्तु घ्नं करणं भवतीति ॥
स्रोत : पृ ष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः

अर्थात

कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वा र्ध में चतु ष्पद करण, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग
और शु क्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वा र्ध में किस्तु घ्न करण होता है ।[4]
करण का मु ख्य उपयोग मु हर्त
ू और व्यक्ति के स्वभाव जाने हे तु किया जाता है  [5]

 पांचवाँ अंग - वार


आज , 12 नवम्बर को - वार - मंगलवार है

कुल वार , 7 होते हैं जो सप्ताह के सातों दिनों में से हर दिन के लिए एक - एक नियत है .

वार - का नामकरण - प्राचीन काल में नं गे आँ ख दिखाई पड़ने वाले 7 ग्रहों के ऊपर है

पहला - रविवार - सूर्य के ऊपर

दूसरा - सोमवार - चंद ्रमा के ऊपर

बाकी पांच दिन - बाकी पांच ग्रहों के ऊपर

हालाँ कि , वारों का क् रम , ग्रहों की गति के अनु सार व्यवस्थित है

सबसे ते ज़ ग्रह या सबसे धीमे ग्रह - किसी भी अनु सार व्यवस्थित करें - तो रविवार से शनिवार का यही क् रम
आएगा .

वार और अमृ त योग

हर वार का एक नक्षत्र होता है . यदि वार के दिन ही वही नक्षत्र हो तो उसे अमृ त योग कहते हैं , जो निम्नवत है

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार निम्न संयोगों से अमृ त सिद्धि योग बनता है -[6]

1. हस्त नक्षत्र - रविवार 


2. मृ गशिरा नक्षत्र - सोमवार 
3. अश्विनी नक्षत्र - मंगलवार 
4. अनुराधा नक्षत्र - बु धवार 
5. पु ष्य नक्षत्र - गु रुवार 
6. रे वती नक्षत्र - शु क्रवार 
7. रोहिणी नक्षत्र - शनिवार
ऐसा सयोंग कुछ ही घं टों के लिए बनता है

तो यह रही , पं चां ग की जानकारी , उसमें समाहित - गणित के साथ . प्राचीन काल की छोडें , अभी भी अधिकां श
लोगों को पता नहीं है कि , पं चां ग कैसे बनता है , उसमें क्या क्या है और इसी का फायदा उठा कर इस से जु ड़े तमाम
लोग इसे लाभदायक व्यवसाय बना कर लोगों की आस्था से खेलकर जम कर पैसा बना रहे हैं . कुकुरमु त्ते की तरह
ज्योतिष हर गली में और ऑनलाइन उग आये हैं , जो पंचांग की बे सिक गणना नहीं कर सकते हैं  - पर आपका भूत
भविष्य बताने का दावा तो करते ही हैं , साथ ही आपका भविष्य बदल दे ने का भी दं भ भरते हैं और आपकी गाढ़ी
कमाई दोनों हाथों से दह ू ते हैं .

जिन्हें भी , कंप्यूटर प्रोग्रामिं ग आती है , वे NASA के JPL ( Jet Propulsion Laboratory ) द्वारा जारी मु फ्त के
पत्रा ( Ephemeris ) से पं चां ग और ग्रहों की पूरी गति विभिन्न घरों में आसानी से निकाल सकते हैं .

कॉपीराइट : लेखक

वास्तविक पं चां ग के स्क् रीन शॉट ( श्री राघवीय पं चां ग से साभार )


सम्पूर्ण एक पन्ना - पर्व त्योहारों की तिथियों के साथ

ग्रहों की स्थिति - विभिन्न राशियों में

एक पन्ने का केवल पं चां ग वाला भाग


यह वर्ष २०१२ का है मार्च – अप्रैल

पंचांग क्या है ? इसे कैसे दे खा जाता है ?

समय या काल गणना के लिए ज्योतिष शास्त्र के अनु सार पांच अवयवो से निर्धारण किया जाता है जिसे पं चाग
कहते है अर्थात पांच अं ग वाला जिसमे तिथि , वार, नक्षत्र, योग, करण अं ग के रूप मे होते है जिसका मु हर्त
ू निर्धारण
एवं जीवन के हर पल विशे ष महत्व रहता है ।

● तिथि -

सूर्य एवं चन्द्रमा के मध्य रहने वाली विभिन्न कोणीय दरू ी का नाम ही तिथि है यह तिथियाँ चन्द्र मास को
मिलाकर 30 होती है जिसमे 15 तिथियां शु क्ल पक्ष मे होती है एवं 15 तिथियां कृष्ण पक्ष की होती है जिस समय सूर्य
एवं चन्द्र का भोगां श एक समान हो वह बिन्दु अमावस्या का अं तिम बिन्दु होता है जै से ही चन्द्र का भोगां श सूर्य
से अधिक होता है तो शु क्ल पक्ष प्रति पदा का आरं भ हो जाता है ।

सूर्य की औसत दै निक गति 1° लगभग होती है एवं चन्द्रमा की औसत दै निक गति लगभग 13° होती है अतः दोनो
के बीच एक दिन मे लगभग 12° का अं तर रहता है एवं कुल चन्द्रमा पृ थ्वी का घूर्णन करते हुए 360° के भचक् र मे
30 तिथियो का निर्माण होता है अतः 360° ÷12 = 30 तिथि

अतः एक तिथि का मान 12° होता है ।

या तिथि = चन्द्रमा का भोगांश - सूर्य का भोगांश / 12°

सूर्य तथा चन्द्र के भोगां श मे अं तर द्वारा तिथि निर्माण -


● वार -

सूर्योदय से दसू रे दिन के सूर्य उदय तक के समय को वार कहते है सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय को दिनमान और
सूर्यास्त से सूर्योदय तक का समय को रात्रिमान कहते है सूर्य नवग्रह मे सबसे शक्तिमान व प्रभावशाली ग्रह
होने के कारण ग्रहाधिपति माना जाता है इसी कारण दिन का आरं भ सूर्योदय से मान्य किया गया है ,

ू रा दिन मध्यान्ह रात्रि


अं गर् े जी पद्धति के अनु सार दस
12 बजे के पश्चात आरं भ होता है और दस ू रा दिन उसी
समय रात्रि को समाप्त होता है ।

वार क् रमश रविवार, सोमवार, मंगलवार, बु धवार,


बृ हस्पतिवार, शु क्रवार, शनिवार होते है ।

● नक्षत्र -

ज्योतिष शास्त्र मे सभी विद्वानो ने भचक् र की सूक्ष्म


इकाई तक समझने का प्रयास किया है इस क् रम मे
उन्होंने भचक् र को पहले 12 भागो मे राशियो के रूप मे
परिर्वतित किया पु नः इसे 27 भागो मे बांटा जिसे नक्षत्र का नाम दिया गया है इस प्रकार विभिन्न 12 राशियो मे
27 नक्षत्रो का वर्गीकरण एवं विभाजन किया गया है तत्पश्चात इस नक्षत्र की सूक्ष्म इकाई तक पहुंचने के लिए
पु नः प्रत्ये क नक्षत्र को चार- चार भागो मे बाँटा जिसे नक्षत्र पद का नाम दिया गया है ।

भचक् र का मान = 360°

नक्षत्र की सं ख्या = 27

एक नक्षत्र का मान = 360° ÷ 27 = 13° 20'

एक नक्षत्र का पद का मान = 3° 20' × 4 = 13° 20' एक नक्षत्र


● योग -

योग का निर्माण सूर्य एवं


चन्द्रमा का एक दस ू रे से
स्थिति के अनु सार होता है
यह 27 प्रकार के होते है ।

योग = चन्द्र का भोगांश +


सूर्य का भोगांश/ 13°20'

इसमे विष्कुम्भ, अतिगण्ड,


शूल, व्याघात, वज्र,
व्यतिपात, परिधि, वै धृति
योग अशु भ माने जाते हैं ।

● करण -

तिथि के आधे भाग को करण कहा जाता है इस प्रकार प्रत्ये क तिथि मे दो करण होते है एवं प्रत्ये क चन्द्र मास मे
60 करण होते हैं । वास्तव मे करण 11 होते है इनके अन्तर्गत 4 स्थिर करण एवं 7 चर करण होते हैं -

चर करण-1- वव ,2-बालव,3- कौलव, 4-तै तिल,5- गर ,6-वणिज ,7- वृ ष्टि


स्थिर करण- 1- शकुनि 2 - चतु ष्पद 3 - नाग 4 - किं स्तु ध्न

करण = चन्द्र का भोगांश- सूर्य का भोगांश/ 6°


उपरोक्त पं चाग के पाँचो अं गो का निर्धारण वै दिक ज्योतिषीय गणित के माध्यम से किया जाता है जिसका मु हर्त

निर्धारण मे विशे ष महत्व होता है ।

● पंचाग दे खने की विधि -

किसी भी प्रचलित पं चाग ले और वर्तमान दिनांक दे खे निम्नवत प्रकार का चार्ट बना हुआ मिले गा उदाहरण के लिए
मे ने विश्व विजय पं चाग का उपयोग किया है ।

लाल रं ग से अं कित कालम को दे खे प्रथम कालम मे वारो का उल्ले ख किया गया है से अगले कालम मे तिथि लिखा
है , के आगे तिथि घं मि तक रहे गी साथ ही घटी पल तक रहे गी बताया है ।

इससे आगे नक्षत्र का कालम है के आगे घं मि एवं घटी पल तक स्थिति रहे गी लिखा है ।

से आगे योग कालम है घं मिनट तक स्थिति रहे गी बताया गया है , के आगे करण का उल्ले ख है के आगे घं मिनट
तक स्थिति लिखी है

से आगे सूर्योदय, सूर्यास्त दिनमान के बाद अं गर् जी तारीख , दिनांक का उल्ले ख किया गया है जिससे आसानी से
पं चाग के पाँचो अं ग तिथि ,वार, नक्षत्र, योग, करण के बारे मे जान सकते हैं ।
आशा है आपकी जिज्ञासा के अनु रूप जानकारी हासिल हुई होगी ज्योतिषीय जिज्ञासा का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न
करने के लिए आपका ह्दय से आभार आपका उत्साह वर्धन नवीन प्रेरणा प्रदान करने वाला मनोबल को बढाने
वाला रहे गा जी ।

मूल स्रोत- ज्योतिष के मूल सिद्धांत ले खिका श्रीमती प्रियं म्बदा अग्रवाल ( वरिष्ठ प्राध्यापक भारतीय विद्या
भवन नई दिल्ली )

आर्शीवाद- श्री गु रुदे व के एन राव जी

ब्रजे न्द्र श्रीवास्तव

, विश्वविद्यालयमें कॉस्मोलॉजीएस्ट् रोनॉमीज्योतिषअध्यात्म पढ़ाया


जवाब दिया गया: 1 साल पहले  · ले खक ने  752 जवाब दिए हैं और उनके जवाबों को 15.9 लाख बार दे खा गया है

भारत में हिन्दू पंचांग का प्रयोग क्यों नही होता?

भारत में हिन्द ू पञ्चां ग का प्रयोग क्यों नहीं होता?

यह प्रश्न पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है ।यदि प्रश्न कर्ता का आशय यह है कि जिस तरह पश्चिमी दे शों में सभी कार्यों
में ग्रेगरी पोप के चलाए ईसाई कले ण्डर का उपयोग होता है और कई दे शों में इस्लामिक कले ण्डर का उपयोग होता
है वै सा भारत में क्यों नहीं होता।

1-तो इसका उत्तर यह है कि कले ण्डर रिफॉर्म कमे टी के प्रतिवे दन के बाद ऐसा पञ्चां ग भारत सरकार ने बनाया था
जिसमें 21 ,22 मार्च से वर्ष अरम्भकरते हुए तिथि गणना सौर दिन से की गई थी जिससे इस पञ्चां ग का तालमे ल 365
दिन 5 घण्टे 48 मिनिट के ऋतु निष्ठ वर्ष tropical year से बै ठाई गई थी।इसमें चांदर् तिथि जै सी अनिश्चितता नहीं
थी। इसे शक सम्वत के आधार पर बनाया गया को भारत के अधिकां श भागों में प्रचलित विक् रम सं वत्सर से 57
साल कम है । जबकि विक् रम सं वत्सर अधिकनप्राचीन व चलन में है ।

2-पर भारत के पञ्चां ग कारों व धर्माचार्यो ने इसे एकदम नकार दिया। यद्यपि इस सरकारी पञ्चां ग का प्रकाशन
अभी भी होता है पर यह समय से कभी भी प्रकाशित नहीं हुआ। इसके अनु सार शक सं वत और सौर तिथि का
उपयोग सरकारी गजट अर्थात राजपत्र में होता है दरू दर्शन व आकाशवाणी भी आरं भिक उद्घोषणा में इसके
अनु सार मास तिथि आदि बताते हैं ।केंद्र सरकार की कुछ चिट्ठियों में क्रिश्चियन दिनांक के साथ पहले इसका
उपयोग होता रहा है ।

3-चांदर् तिथि आधारित पं चां गों की गणना में तिथि के न्यूनतम और अधिकतम कालमान कितना हो सकता है इस
पर अभी भी मतभे द है ।

् रस क्षय' के
4- चन्द्रमा आधारित तिथि की अवधि पर पञ्चांग-मतभे द:तिथिमान के पु राने सिद्धान्त 'बाण वृ दधि
् और रस अर्थात 6 घटी तक ह्रास मान्य है ।
अनु सार 60 घटी की औसत तिथि में से बाण अर्थात 5 घटी तक वृ दधि
अर्थात तिथि की अधिकतम अवधि 65 घटी और न्यूनतम अवधि 54 घटी तक हो सकती है ।

् दस क्षय है मान्य किया गया है जिसका अर्थ तिथि कीअधिकतम अवधि


जबकि नई सूक्ष्म गणना में इसे सप्त वृ दधि
67 घटी और न्यूनतम अवधि 50 घटी तक की हो सकती है ।

5-ऐसी स्थिति में राजकाज व्यापार व्यवहार में चांदर् तिथि अपनाने में कठिनाई आना स्वाभाविक है ।इस कारण इन
क्षे तर् ों में व अं तरराष्ट् रीय व्यवहार में मानक आँ ग्लसौर तिथि ही व्यावहारिक होगई है ।

6-और अब सं विधान की प्रस्तावना में इं दिरा जी जमाने में से कुलर शब्द जोड़े जाने के बाद किसी भी तरह से रिफॉर्म
किए जाने के पश्चातऔर सौर तिथि अपनाने के बाद भी नए हिन्द ू कले ण्डर के सम्पूर्णराजकाज में उपयोग की तो
कल्पना ही नहीं की जा सकती।दरू दर्शन का ध्ये य वाक्य सत्यमे व जयते लोकसभा में इसी से क्यूलर की अजब गजब
व्याख्या के आधार पर घोषणा करके हटाया गया था।
 7-वै से हिन्द ू या सनातन कले ण्डर के अनु सार कलि सं वत्सर यदि इसी राष्ट् रीय कले ण्डर में शक सं वत्सर
के साथ किसी न किसी रूप में अपनाया जाता तो हमें अपने गौरवमय अतीत के अस्तित्व का बोध तो
होता-
सन 2020 में कुछ सं वत्सरों की स्थिति

इस प्रकार है —

कलि संवत्सर 5121

विक् रम सं वत 2077

बु द्ध निर्वाण 2564

महावीर निर्वाण 2547

शक 1942,

हिजरी सन 1442

यहद
ू ी jews5781

चीनी4657

जापानी 2680

अवध राम पाण्डे य

, सं स्कृत के बारे में जानते हैं


जवाब दिया गया: 6 महीने पहले  · ले खक ने  1.7 हज़ार जवाब दिए हैं और उनके जवाबों को 12.2 लाख बार दे खा
गया है

पंचांग क्या होता है ?

पांच अं गों को एक शब्द में पं चां ग कहा जाता है जो भिन्न भिन्न अर्थ में प्रयोग किया जाता है ।

जै से आयु र्वे द में किसी औषधीय पौधों के जड़, तना, पु ष्प, पत्ते व फल को

ज्योतिष शास्त्र में तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण को

कर्मकाण्ड में गणे श व अम्बिका, वरुण, स्वस्तिवाचन, मातृ कापूजन एवं नान्दीश्राद्ध को

तं तर् शास्त्र में मं तर् , यं तर् , कवच, सहस्रनाम एवं स्तोत्र पाठ को पं चाग कहा जाता है ।
त जवाब

एथे ना शर्मा

हिं दी पं चां ग के बारे में विस्तार से समझा सकते हैं ?

वै से पं चां ग को केवल शब्दों में समझाना थोड़ा मु श्किल है मे रे लिए, यह गणित है , और कोई सामने हो तो थोड़ी सी
ही गणनाओं द्वारा उसे समझाया जा सकता है । कठिन नहीं है , ले किन जब इं सान सामने हो और हाथ में पं चां ग हो तो
कुछ बातें आसानी से समझ आ जाती है । फिर भी कोशिश करता हँ ू
पं चां ग का अर्थ है पांच अं ग। अब यह पांच अं ग किसके? मु हर्त ू के। तो पं चां ग मु हर्त
ू शास्त्र का मूलभूत आधार है ।
इसके पांच अं गों द्वारा ही मु हर्त
ू आदि निकाले जाते है ।
अब यह पांच अं ग है क्या। यह है
तिथि, वार, नक्षत्र, योग, और करण
वार तो आपको पता ही है , सोमवार, मं गलवार आदि
तिथि क्या है ? सूर्य और चं दर् दोनों का अं तरिक्ष में पृ थ्वी की कक्षा से दे खने पर एक longitude या स्फुट होता है ।
जिसे हम degrees, minutes, और से कण्ड्स में लिखते है । क्योंकि पृ थ्वी के घूमने से हमे पूरा भ्रमाण्ड घूमता
हुआ लगता है , इसलिए सभी गृ ह पृ थ्वी के आस पास एक 360 डिग्री में घु मते नज़र आते है । सूर्य और चं दर् मा के
स्फुट के बीच का अं तर जब 12 degree के फासले से बढ़ता है तो एक तिथि होती है । अर्थात 0–12, प्रथमा, 12–
24 द्वितीय आदि। तो किसी भी दिन का सूर्य और चं दर् का स्फुट ले कर उसके अं तर को दे खे, और उसे 12 से भाग
दे , आपको तिथि पता चल जाये गी।
उस दिन सूर्योदय पर चं दर् मा जिस नक्षत्र में हो वहः नक्षत्र माना जाता है ।
योग भी सूर्य और चं दर् के स्फुट से निकाला जाता है । दोनों के स्फुट को जोड कर यानी योग करके, एक नक्षत्र के
मान यानी 13 डिग्री 20 मिनट से भाग दे ने से योग आता है । 27 योग है , जिनके नाम आपको पं चां ग में मिल
जायें गे ।
एक तिथि में 2 करन होते है । यह 11 प्रकार के होते है , जिनमे 4 स्थिर और 7 चर करण होते है । इनकी भी आवृ त्ति
होती रहती है ।
इन्ही पञ्च अं गों से सभी मु हर्तू आदि निकाले जाते है ।

गया है

हिंद ू पंचांग की क्या आवश्यकता है ?

प्राचीन काल से ही लोगों को यह समझ में आ गया था कि आसमान के ग्रह नक्षत्रों की चाल एक समान है ,
इसलिए ‘समय’ की जानकारी के लिए इसे सटीक आधार के रूप में मान्‍यता दी गयी। आसमान में सूर्य की स्थिति के
आधार पर ग्रामीण दिन के प्रहर के और नक्षत्रों और तारों की स्थिति के आधार पर रात के प्रहर का आकलन
करते थे । इसी प्रकार चं दर् मा के आकार को दे खकर महीने के दिनों की गिनती करते थे । इस विषय पर पिछले दिन
मै ने पोस्‍ट लिखा था और अधिकमास की गणनाका कारण बतलाया था , तो कुछ पाठकों को ऐसा महसूस हुआ कि
अं गर् े जी कैले ण‍ड
् र अधिक वै ज्ञानिक हैं और इसी कारण हमें अपने पं चां ग को उसके अनु रूप बनाने के लिए 13 महीने
का एक कैले ण‍ड ् र बनाना पडता है । bhartiya 

भारतीय पंचांग किस पद्धति पर आधारित है ?

सूर्य-सिद्धांत पर। यह शक संवत पर आधारित है और ग्रेगोरियन कैलें डर के साथ २२ मार्च १९५७ से राजकीय स्तर
पर लागू किया गया है ।

भारतीय राष्ट्रीय पंचांग कब अपनाया गया था?

भारतीय राष्ट्रीय पंचांग भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या 'भारत का राष्ट्रीय कैलें डर' भारत में उपयोग में आने वाला
सरकारी सिविल कैलें डर है । यह शक सं वत पर आधारित है और ग्रेगोरियन कैलें डर के साथ-साथ 22 मार्च 1957
से  अपनाया गया।
जाने क् ‍या होता है पंचाग और कौन से हैं इसके
प्रमुख अंग
Author: Molly SethPublish Date: Tue, 23 Jan 2018 01:52 PM (IST)Updated Date: Wed, 24 Jan 2018 10:47 AM (IST)

पं चां ग या पं चागम् हिन्द ू कैलें डर होता है जो भारतीय वै दिक ज्योतिष के अनु सार बनाया जाता है । हिन्द ू धर्म में पं चां ग के परामर्श के बिना
शु भ कार्य नहीं किए जाते ।

पंचाग का अर्थ 

हिन्द ू पं चां ग हिन्द ू समाज द्वारा माने जाने वाला कैलें डर है । इसके भिन्न-भिन्न रूप में यह लगभग पूरे भारत में माना

जाता है । पं चां ग या शाब्‍दिक अर्थ है पं च + अं ग = पांच अं ग यानि पं चां ग। यही हिन्द ू काल-गणना की रीति से निर्मित

पारम्परिक कैले ण्डर या कालदर्शक को कहते हैं । पं चां ग नाम इसके पांच प्रमु ख भागों से बने होने के कारण है , जो इस

प्रकार हैं , तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। इसकी गणना के आधार पर हिं द ू पं चां ग की तीन धारायें हैं , पहली चं दर्

ू री नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलें डर पद्धति।


आधारित, दस

ऐसे चलते हैं साल, महीने , सप्‍ताह और दिन

हिं द ू कलैं डर यानि पं चाग में भी 12 महीने होते हैं । प्रत्ये क महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं , शु क्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।

प्रत्ये क साल में दो अयन होते हैं । इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं । 12 मास का एक वर्ष

और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक् रम सं वत से शु रू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चं दर् मा की गति पर

रखा जाता है । यह 12 राशियां बारह सौर मास हैं । जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवे श करता है उसी दिन की सं क्रां ति

होती है । पूर्णिमा के दिन चं दर् मा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है । चं दर् वर्ष, सौर

वर्ष से 11 दिन 3 घड़ी 48 पल छोटा है । इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास,

मल मास या पु रुषोत्‍तम महीना कहते हैं । प्रत्ये क महीने में तीस दिन होते हैं । महीने को चं दर् मा की कलाओं के घटने

और बढ़ने के आधार पर शु क्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष विभाजित होते हैं । एक दिन को तिथि कहा जाता है जो पं चां ग के

आधार पर उन्नीस घं टे से ले कर चौबीस घं टे तक होती है । दिन को चौबीस घं टों के साथ-साथ आठ पहरों में भी बांटा गया

है । एक प्रहर करीब तीन घं टे का होता है । एक घं टे में लगभग दो घड़ी होती हैं , एक पल लगभग आधा मिनट के बराबर

होता है और एक पल में चौबीस क्षण होते हैं । पहर के अनु सार दे खा जाए तो चार पहर का दिन और चार पहर की रात

होती है ।

पंचांग के पांच अंग


जै सा कि हमने बताया पं चां ग पांच अं गों तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण के आधार पर बनता है । आइये जाने इसके

इन अं गों की सं क्षिप्‍त जानकारी। 

तिथि: चन्द्रमा की एक कला को तिथि कहते हैं । चन्द्र और सूर्य के अन्तरां शों के मान 12 अं शों का होने से एक तिथि

होती है । जब अन्तर 180 अं शों का होता है उस समय को पूर्णिमा कहते हैं और जब यह अन्तर 0 या 360 अं शों का होता

है उस समय को अमावस कहते हैं । एक मास में लगभग 30 तिथि होती हैं । 15 कृष्ण पक्ष की और 15 तिथि शु क्ल पक्ष की।

इनके नाम इस प्रकार होते हैं 1 प्रतिपदा, 2 द्वितीया, 3 तृ तीया, 4 चतु र्थी, 5 पं चमी, 6 षष्ठी, 7 सप्तमी, 8 अष्टमी, 9

नवमी, 10 दशमी, 11 एकादशी, 12 द्वादशी, 13 त्रयोदशी, 14 चतु र्दशी और 15 पूर्णिमा, यह शु क्ल पक्ष कहलाता है ।

कृष्ण पक्ष में यही 14 तिथि होती हैं बस अन्तिम तिथि पूर्णिमा के स्थान पर अमावस्या नाम से जाना जाती है । 

ू रे दिन के सूर्योदय तक की कलावधि को वार कहते हैं । वार सात होते हैं । 1. रविवार, 2. सोमवार,
वार:  एक सूर्योदय से दस

3. मं गलवार, 4. बु द्धवार, 5. गु रुवार, 6. शु क्रवार और 7. शनिवार।

नक्षत्र: ताराओं के समूह को नक्षत्र कहते हैं । नक्षत्र 27 होते हैं । प्रत्ये क नक्षत्र के चार चरण होते हैं और 9 चरणों के

मिलने से एक राशि बनती है । 27 नक्षत्रों के नाम इस प्रकार हैं , 1. अश्विनी 2. भरणी 3. कृत्तिका 4. रोहिणी 5. मृ गशिरा

6. आद्र्रा 7. पु नर्वसु 8. पु ष्य 9. अश्ले षा 10. मघा 11. पूर्वाफाल्गु नी 12. उत्तराफाल्गु नी 13. हस्त 14. चित्रा 15. स्वाती

16. विशाखा 17. अनु राधा 18. ज्ये ष्ठा 19. मूल 20. पूर्वाषाढ 21. उतराषाढ 22. श्रवण 23. घनिष्‍ठा 24. शतभिषा 25.

पूर्वाभद्रपद 26. उत्तराभाद्रपद 27. रे वती।

योग: सूर्य चन्द्रमा के सं योग से योग बनता है ये भी 27 होते हैं । इनके नाम इस प्रकार हैं - 1. विष्कुम्भ, 2. प्रीति, 3.

् , 12. ध्रव, 13. व्याघात,


आयु ष्मान, 4. सौभाग्य, 5. शोभन, 6. अतिगण्ड, 7. सु कर्मा, 8.घृ ति, 9.शूल, 10. गण्ड, 11. वृ दधि

14. हर्षल, 15. वङ्का, 16. सिद्धि, 17. व्यतीपात, 18.वरीयान, 19.परिधि, 20. शिव, 21. सिद्ध, 22. साध्य, 23. शु भ, 24.

शु क्ल, 25. ब्रह्म, 26. ऐन्द्र, 27. वै घृति।

करण: तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं यानि एक तिथि में दो करण होते हैं । करणों के नाम इस प्रकार हैं 1. बव,

2.बालव, 3.कौलव, 4.तै तिल, 5.गर, 6.वणिज्य, 7.विष्टी (भद्रा), 8.शकुनि, 9.चतु ष्पाद, 10.नाग, 11.किंस्तु घन।
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जानिए हिं द ू पं चाग क्यों दुनिया का सबसे साइं टिफिक कैलें डर है


ले फ़्ट में राहु की प्रतिमा (थाईलैं ड)

जिससे बात करो, वो 2020 को भु ला दे ना चाहता है और 2021 का दिल से स्वागत करना चाहता है . हालां कि नए वर्ष
का स्वागत कोई नई बात नहीं है , ले किन अबकी ये इं तज़ार कुछ ज़्यादा ही दिख रहा है . कारण हम सभी जानते हैं .

डर ये भी है कि जिस कारण के चलते 2020 को ज़ल्द से ज़ल्द बिता दे ना चाहते हैं , न जाने वो नए वर्ष में बदले न
बदले . वै से नए वर्ष में कुछ बदले न बदले , एक चीज़ ज़रूर बदले गी. और वो है ‘कैलें डर’. और आज हम इसी कैलें डर
की बात ले कर आपके सामने आए हैं . ले किन हम बात करें गे हिं द ू कैलें डर की, ग्रेगोरियन कैलें डर की नहीं.
ग्रेगोरियन कैलें डर माने जनवरी, फरवरी वाला कैलें डर. जिसे हम सब यूज़ करते हैं .

कारण ये कि ग्रेगोरियन कैलें डर के बारे में तो हम सब जानते हैं , ले किन हिं द ू कैलें डर से बहुत कम लोग ही पूरी तरह
परिचित हैं . हालां कि इसके लिए न तो दोष कैलें डर का है न हम लोगों का. क्यूं?

इसे ऐसे समझिए, सें सर बोर्ड द्वारा U, A, U/A वग़ै रह के अलावा एक और तरीक़े का सर्टिफिकेट भी दिया जाता है ,
’S सर्टिफिकेट’. ये सर्टिफिकेट ऐसी फ़िल्मों को दिया जाता है , जो सिर्फ़ किसी स्पे सिफ़िक कैटे गरी या प्रफ़ेशन के
लोगों को दिखाने के लिए बनाई जाती हैं . जै से डॉक्टर्स के रे फ़रें स के लिए किसी क्रिटिकल ऑपरे शन का वीडियो.
अब इसे कुछ और लोग दे ख लें , और थोड़ी बहुत समझ भी जाएं तो किसी को क्या ही दिक्कत है . ठीक ऐसे ही हिं द ू
कैलें डर भी है . मतलब, सभी कैलें डर्स के बीच S सर्टिफिकेट प्राप्त.

तो ये कहना कि हिं द ू कैलें डर सिर्फ़ पं डितों, हिं द ू त्योहारों और भविष्यवक्ताओं तक सीमित रह गया है , अनु चित
होगा. हां , ऐसा ज़रूर कहा जा सकता है कि ग्रेगोरियन कैलें डर की तरह आसान न होने के चलते , इसके सारे
डायमें शन हर एक के समझ में नहीं आते . ले किन इसमें न ही इस कैलें डर का और न ही इसे न समझने वाले का दोष
है .
और जै सा S सर्टिफिकेट प्राप्त फ़िल्मों के साथ है कि वो ख़ूब रिसर्च के बाद और ज़्यादातर वै ज्ञानिक आधार पर
बनाई गई होती हैं . रोज़मर्रा की चीज़ों को आसान करने के लिए या एं टरटे नमें ट के लिए नहीं, गूढ़ चीज़ों को समझने -
समझाने के लिए बनाई जाती हैं . वै सा ही कुछ हिसाब-किताब हिं द ू कैलं डर का भी है .

तो सवाल ये कि, क्या इसे दुनिया का सबसे साइं टिफिक ‘टाइम कीपिं ग’ यं तर् कहा जा सकता है . इस मामले में
सबकी राय अलग-अलग हो सकती है , ले किन जितनी रिसर्च मैं ने की है , मे री निजी राय में इसका उत्तर ‘हां ’ है .

तो चलिए जानते हैं हिं द ू कैलें डर के बारे में सब कुछ, ले किन U सर्टिफिकेट के साथ. बोले तो आसान भाषा में .

पंचांग
अभी तक जिस ‘टाइम कीपिं ग’ यं तर् को हम ‘हिं द ू कैलें डर’ कह रहे थे , उसका नाम बताने का ‘मु हर्त
ू ’, ‘नक्षत्र’, या
‘घड़ी’ आ गई है . और इसे कहते हैं , पं चां ग. पं चां ग क्यूं? क्यूंकि इसके पांच अं ग हैं . इनके बारे में बताएं गे पर पहले
पं चां ग के कुछ बिल्डिं ग ब्लॉक्स जान ले ते हैं .

# 1) साल के 365 दिन, और चांद की 16 कलाएं


पृ थ्वी सूरज के चारों ओर अपना चक्कर 365 दिन (टू बी प्रिसाईस, 365 दिन 6 घं टे और 9 मिनट) में पूरा करती है .
इतने दिनों में हिं द ू पं चां ग में एक साल पूरा हो जाता है . ये बिलकुल ग्रेगोरियन कैलं डर की तरह ही है .

ले किन दिक्कत और असली कैल्कुले शन इसके बाद शु रू होती है . क्या दिक्कतें ? वही जो दो वै रिएबल वाले
इक्वे शन्स को सॉल्व करने में होती है . क्यूंकि जहां ये ग्रेगोरियन कैलं डर मु ख्यतः सूर्य की गति पर आधारित होता है ,
हिज़्री कैलं डर मु ख्यतः चांद की गति पर आधारित होता है , वहीं पं चां ग में चांद और सूरज दोनों को ही बराबर
वरीयता दी जाती है . यानी ये  चान्द्रसौर पद्धति पर चलते हैं .

चं दा मामा दरू के. (तस्वीर: इं डिया टु डे )

अब दे खिए चांद की अपनी गतियां हैं , सूरज की अपनी, पृ थ्वी की अपनी. इन सब को एक निश्चित समय (एक दिन,
दो दिन, डे ढ़ साल) के लिए तो एक साथ स्टडी और ट् रैक किया जा सकता है , ले किन पं चां ग एक ऐसी व्यवस्था है
जिसमें  स्टडी रिअकरिं ग यानी रिपीट मोड में होती है . इस आर्टिकल में हम ये समझने की कोशिश करें गे ते कि पं चां ग
ये कैसे करता है . ये जान लीजिए कि ऋग्वे द में  लिखा है कि महीने चं दर् गति पर निर्भर होंगे और साल सूर्य की गति
पर. हालां कि यहां पर ‘सूर्य की गति’ सापे क्षिक है . मतलब सूर्य तो पृ थ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता नहीं, पृ थ्वी सूर्य
के चारों ओर चक्कर लगाती है . तो जब भी सूर्य की गति की बात हो तो अर्थ है कि सूर्य की पृ थ्वी के सापे क्ष गति या
फिर पृ थ्वी की गति.

# 2) चांद की 27 पत्नियां
चांद पृ थ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है . और उसे पृ थ्वी का एक चक्कर पूरा करने में 27 (स्पे सिफ़िकली 27.32) दिन
लगते हैं . यूं पृ थ्वी से दे खने पर चांद इन 27 दिनों में अलग-अलग तारों या तारों के समूहों के साथ दिखे गा, ले किन 28
वें दिन फिर से उसी तारे के पास दिखे गा जिस तारे के पास पहले दिन था. इन 27 तारों (या तारों के समूह) को ही
नक्षत्र कहा जाता है . इसे ही आसान भाषा में समझाने के लिए उस वक़्त किसी विद्वान ने न्यूमोनिक्स का सहारा
ले कर इन्हें चांद की 27 पत्नियां कह दिया होगा. और अपने स्टू डेंट् स को बताया होगा कि चांद हर 27 दिन के
अं तराल में अपनी पहली पत्नी के पास वापस आ जाता है .

हालां कि कुछ विद्वानों ने चांद के 28 नक्षत्र माने हैं , शायद .32 वाले फ़िगर के चलते . पर चलिए हम चीज़ों को
जितना हो सके उतना आसान बनाते हुए चलते हैं .

सन् 1871-72 का पं चां ग.

# 3) महीने में साढ़े उनतीस दिन-


पं चां ग में महीने की गणना, चांद की पृ थ्वी के चारों ओर की कक्षीय गति के आधार पर की जाती है . ले किन फिर भी
एक महीना होता है औसतन, लगभग साढ़े  29 (स्पे सिफ़िकली 29.53 या 29 दिन 12 घं टे 44 मिनट और 3 से केंड) दिन
का.
अब लॉजिकल सवाल ये कि, ‘महीना तो फिर 27.32 दिन का होना चाहिए था 29.53 दिन का नहीं?’ इसका उत्तर ये
है कि इस पं चां ग को बनाने वाले प्रिसिशन के क़ायल थे . ऐसे ही थोड़े न इसे ‘सबसे ज़्यादा वै ज्ञानिक’ टाइम कीपिं ग
कह रहे हम.

तो होता क्या है कि बे शक चांद 27.32 दिनों में धरती का एक चक्कर काट ले ता है ले किन फिर भी दो पूर्णमासी या दो
अमावस्या या दो तृ तीयाओं…. के बीच औसतन 29.53 दिनों का अं तर रहता है . वो इसलिए क्यूंकि पृ थ्वी भी तो
सूरज के चक्कर लगा रही है न, और वो अपनी कक्षा की एक दिन में एक डिग्री के क़रीब की यात्रा कर ले ती है .
(360/365 = .98 या क़रीब 1 डिग्री) यूं पृ थ्वी का एक चक्कर 27.32 दिन में ही पूरे कर ले ने के बावज़ूद चांद को सूरज
और पृ थ्वी के साथ सिं क होने में ढाई दिन और लगते हैं .

दे खिए, चांद आज किस नक्षत्र के क़रीब है , ये तो सिर्फ़ चांद की गति पर निर्भर करे गा. ले किन उससे आनी वाली
रोशनी, उसपर बनने वाला प्रतिबिं ब वग़ै रह तो सूरज, पृ थ्वी और चांद तीनों पर निर्भर करें गे न.

तो यूं, हर सत्ताईस दिन में चांद पृ थ्वी का एक चक्कर लगा ले ता है , इसे ‘नक्षत्र मास’ कह सकते हैं . ले किन दो
पूर्णमासी के बीच फिर भी साढ़े उनतीस दिन का अं तर होता है , इसे ‘चं दर् मास’ कह लीजिए. यूं हिं द ू पं चां ग में
महीना ‘चांद का पृ थ्वी के चारों ओर एक चक्कर’ लगा ले ने यानी ‘नक्षत्र मास’ पर नहीं बल्कि ‘चांद को फिर से
अपनी उसी कला में वापस आने में लगे दिन’, यानी ‘चं दर् मास’ के आधार पर तय होता है .

अब चूंकि चांद की कलाएं , उसकी कक्षीय गति से सिं क नहीं करतीं तो, हर महीने चांद की पूर्णमासी, तृ तीया,
अमावस्या वाले दिन का नक्षत्र पिछले या अगले महीने इन्हीं दिनों के नक्षत्र से अलग होता है .

# 4) पक्ष-
एक महीने में दो पखवाड़े (फ़ोर्टनाइट) होते हैं , इन्हें पक्ष कहते हैं . यूं दो पक्ष हुए, कृष्ण पक्ष और शु क्ल पक्ष. हर पक्ष
15-15 दिन का होता है . कृष्ण, काले का पर्यायवाची है और शु क्ल सफ़ेद का. इनके नाम ऐसे इसलिए हैं क्यूंकि, कृष्ण
पक्ष के दौरान चांद धीरे -धीरे घटना शु रू होता है और कृष्ण पक्ष के अं तिम दिन अमावस्या होती है , जबकि शु क्ल पक्ष
के दौरान चांद धीरे -धीरे बढ़ना शु रू होता है और इसके अं तिम यानी पं दर् हवें दिन पूर्णमासी होती है . यूं पं चां ग में
दिनों की काउं टिंग 28,29,30 या 31 दिन तक नहीं सिर्फ़ पं दर् ह दिनों की/तक होती है .

# 5) ’तिथि’ और ‘दिवस’ में भी अंतर है -


पं चां ग में तिथियां भी लूनर (चं दर् आधारित) होती हैं और हर तिथि 24 घं टे की नहीं, 20 घं टे से ले कर 27 घं टे तक
कुछ भी हो सकती है . (औसतन, 23 घं टे 36 मिनट). वै दिक खगोलशास्त्रियों को पता था कि पृ थ्वी के चारों ओर
चं दर् मा की कक्षा अण्डाकार (इलिप्टिकल) है . यूं एक तिथि (लूनर-डे ) औसतन बे शक 23 घं टे 36 मिनट में बदले ,
ले किन पं चां ग बनाने वालों ने औसत ले ने का शॉर्ट-कट न अपनाते हुए व्यवस्था रखी कि तिथि की लं बाई 20 घं टे से
ले कर 27 घं टे कितनी भी हो सकती है , डिपें ड करता है कि चांद पृ थ्वी के चारों ओर का कितना चक्कर लगा चु का है .
एक चक्कर 360 डिग्री का होता है , और एक चं दर् माह में 30 तिथियां होते हैं . यूं एक चं दर् दिवस मतलब, चांद
पृ थ्वी के सापे क्ष 12 डिग्री (360/12) की गति कर चु का है . यूं पश्चिमी टाइम-कीपिं ग के उलट पं चां ग में तिथि कभी
भी बदल सकती है , ज़रूरी नहीं कि वो रात 12 बजे या फिर रोज़ एक ही वक्त पर बदले .

2018 का प्रथम सूर्योदय. (तस्वीर: PTI/भयं दर चौपटी, मुं बई)

ू री ओर तिथि के अलावा पं चां ग में दिवस का भी कॉन्से प्ट है . दिवस मतलब एक सूर्योदय से ले कर दस
दस ू रे सूर्योदय
तक का समय. मतलब 24 घं टे. अब इस तरह आपके समझ आ गया होगा कि चांद पृ थ्वी के चारों ओर का एक चक्कर
30 ‘तिथियों’ और 29.53 ‘दिवसों’ में पूरा करती है .

् तिथि, क्षय तिथि-


# 6) वृ दधि
पं चां ग में दिवस 8 प्रहरों में बांटा गया है , ले किन तिथि बदलने में उसका कोई योगदान नहीं. हां वार बदलने में हैं .
मतलब तिथियां चं दर् गतियों के हिसाब से बदलें गी और प्रहर और वार सूर्य (के इर्द गिर्द पृ थ्वी की) गति के आधार
पर. सूर्य के हिसाब से आठ प्रहर हैं : पूर्वान्ह, मध्यान्ह, अपरान्ह, सायं काल, निशिथ, त्रियामा, उषा. और सात वार
हैं : सोम, मं गल, बु ध, बृ हस्पति, शु क्र, शनि, रवि.

वै दिक शास्त्रों के अनु सार हिं द ू कैलें डर प्रणाली में ‘सप्ताह’ की कोई अवधारणा नहीं थी. ये सात दिनों की या
सप्ताह की अवधारणा को तीसरी शताब्दी के आसपास यूनानियों से कॉपी किया गया था. इसलिए ही सप्ताह के हिं द ू
नाम अन्य इं डो-यूरोपीय कैलें डर वाले नामों से मिलते जु लते हैं . उदाहरण के लिए सोमवार के लिए लै टिन नाम लूने
है , जिसका अर्थ चं दर् है और सं स्कृत में भी चांद को सोम कहते हैं .

हालां कि औसतन हर चं दर् -दिवस 23 घं टे 36 मिनट का होता है ले किन जै सा कि आपको पता है , पं चां ग में उसकी
लं बाई वास्तविक रखी जाती है . मतलब तिथि की लं बाई 20 घं टे से ले कर 27 घं टे तक कुछ भी हो सकती है . और
् तिथि का कॉन्से प्ट है .
तिथि (लूनर डे ज़) और दिवस (सोलर डे ज़) को सिं क में रखने के लिए क्षय तिथि और वृ दधि
् तिथि- हमने आपको बताया था कि तिथि दिन में कभी भी बदल सकती है , ले किन उसे पंचांग में कैसे लिखा
# वृ दधि
जाए, इसके लिए ये नियम है कि सूर्योदय के समय क्या तिथि थी. अब अगर आज के सूर्योदय के समय द्वितीया थी
और वो 24 घंटे से कुछ ज़्यादा लंबी होने के चलते कल के सूर्योदय के समय भी रही थी तो पंचांग में दोनों दिन
् तिथि कहलाएगी.
द्वितीया लिखा हुआ होगा. यूं दो दिन द्वितीया तिथि होने के चलते द्वितीया एक वृ दधि
# क्षय तिथि- इसे उदाहरण से समझिए. अगर आज सूर्योदय के वक्त चतु र्थी है , और आधे घंटे बाद पंचमी हो जाती
है तो भी आज के दिन चतु र्थी ही कहलाएगी. अब मान लीजिए कि पंचमी सिर्फ़ 23 घंटे की है तो कल सूर्योदय से
पहले ही षष्ठी हो जाएगी. यूं कल सूर्योदय के वक्त षष्ठी होने के चलते कल को षष्ठी होगी. इस तरह आपको
पंचांग में पंचमी लिखा नहीं दिखे गा और कहा जाएगा कि पंचमी का क्षय हो गया.
# 7) 75 साल का कैलें डर-
अब इतनी बातें जान ले ने के बाद सोचिए, अगर हर महीना 29.34 ‘दिवस’ का होगा फिर तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी,
क्यूंकि 12 महीनों में सिर्फ़ एवरे ज 354.2672 दिन में ही समा पाएं गे. बचे क़रीब 11 दिवसों का क्या?

चांद के 27-28 नक्षत्र हैं तो सूर्य की 12 राशियां . (तस्वीर: medium.com)

और इन्हीं बचे हुए दिनों के चलते तो हिज़्री कैलें डर ग्रेगोरियन कैलें डर से हर वर्ष कुछ-कुछ दिन पीछे खिसकता
जाता है . क्यूंकि हिज़्री कैलें डर, मु ख्य रूप से चांद की गति पर बे स्ड है और ग्रेगोरियन कैलें डर मु ख्य रूप से चांद
सूर्य (के इर्द गिर्द पृ थ्वी) की गति पर. इस तरह मार्च में आई ईद कुछ सालों बाद जनवरी में आ जाती है .

तो पं चां ग में इसका क्या इलाज है . पं चां ग बनाने वाले मानो कहते हों, ज़रूरी नहीं है पृ थ्वी, सूर्य, चांद की सभी
गतियों को रोज़-रोज़ सिं क किया जाए. जब ज़रूरत होगी तब करें गे . ले किन करें गे वै ज्ञानिक आधार पर ही. वै से ही
जै से तिथि और दिवस को सिं क किया गया था.
और इसलिए ही हिं द ू त्योहार भी ग्रेगोरियन कैलें डर की नज़र से दे खने पर हर साल अलग-अलग दिन में आते हैं .
ले किन जहां हिज़्री कैलें डर के त्योहार ग्रेगोरियन कैलें डर में पीछे की ओर जाते चले जाते हैं , वहीं पं चां ग के या हिं द ू
कैलें डर के त्योहार सिर्फ़ दोलन सा करते हैं . मतलब दिवाली कभी अक्टू बर में हो रही तो कभी नवं बर में . ले किन फिर
भी हर साल अक्टू बर-नवं बर में में दीवाली आ ही जाती है . तो सिं क रखने के लिए की गई व्यवस्था भी बड़ी
इं ट्रेस्टिंग है .

दे खिए हिं द ू पं चां ग के हिसाब से 12 चं दर् -माह में सिर्फ़ 355 दिन कवर हो पा रहे थे . इसलिए हर 28 वें से 36 वें महीने
के दौरान (औसतन हर 32.5 महीने में ) एक एक्स्ट् रा महीना (29.53 दिन) जोड़ दिया जाता है . इसे ही मल-मास या
अधिमास या पु रुषोत्तम मास कहते हैं . ले किन इससे त्योहार अधिक प्रभावित न हो, इसके लिए जिस महीने में इसे
जोड़ा जाना है उसमें मल-मास  का आधा भाग उससे पहले और आधा भाग उसके बाद जोड़ दिया जाता है . मल-मास
या पु रुषोत्तम मास वाली बात ऋग्वे द के श्लोक में भी मिलती है -

वे द मासो धृ तव्रतो द्वादश प्रजावतः, वे दा य उपजायते . (I/25:8)


मने : नियम धारक वरुणदे व प्रजा के उपयोगी बारह महीनों को जानते हैं , और तेरहवें मास (पु रुषोत्तम मास) को भी
जानते हैं .

हस्तलिखित ऋग्वे द, उन्नीसवीं सदी से .

आप दे ख रहे होंगे कि हमने 28 वें से 36 वें महीने के दौरान कहा, स्पे सिफ़िक कौन सा महीना, ये नहीं बताया. क्यूंकि
हर बार दो मलमास के बीच गै प बदलता रहता है . अब आप कहें गे कि ग्रेगोरियन कैलें डर की तरह ही औसत निकाल
कर एक साल में या चार साल में कुछ दिन क्यूं नहीं जोड़ ले ते?

क्यूंकि जहां ग्रेगोरियन कैलें डर ‘रूल ऑफ़ थं ब’ के आधार पर चलता है , वहीं पं चां ग ग्रहों की गति के आधार पर.
मतलब ग्रेगोरियन कैलें डर का सिं पल फ़ंडा है कि अगर 4 साल बीतने पर हम एक दिन पीछे हो जा रहे हैं तो हर चार
साल में 1 दिन जोड़ दो. साल को 12 महीनों में बांट दो. सिं पल. और इसलिए ही तो ‘रूल ऑफ़ थं ब’ के हिसाब से
तारीख़ 12:00 मिडनाइट पर बदल जाती है , ले किन तिथियां नहीं. वो आज 11 बजे रात को बदल रही है तो कल
11:30 और परसों बदल ही नहीं रही, नरसों ऐसी ते ज़ी से बदल रही कि एक तिथि को स्किप की कर दे रही. ये सब
पं चां ग में सं भव है , जै सा हम ऊपर समझ ही चु के हैं .

ऐसा ही महीनों का भी हिसाब किताब है . मतलब, हो सकता है कि किसी ग्रेगोरियन महीने में दो अमावस्या या दो
पूर्णमासी आ जाएं , ये भी हो सकता है कि किसी साल की फ़रवरी में एक भी अमावस्या या एक भी पूर्णमासी न हो.
क्यूंकि ग्रेगोरियन कैलें डर में महीने रें डम आधार पर कुछ गणितीय समीकरणों को सं तुष्ट करते  हुए बना दिए गए हैं .
ले किन पं चां ग में बिना एक पूर्णमासी के, बिना एक अमावस्या के और बिना दो पक्षों के महीना सं भव नहीं. साथ ही
जै से चांद के 27 नक्षत्र हैं वै से ही सूर्य के 12 नक्षत्र हैं और इसी से पं चां ग का एक सौरमास काउं ट होता है . सूर्य की
ू री सं क्रां ति का समय सौरमास कहलाता है . यह मास भी 28 से ले कर 31 दिन का होता है .
एक सं क्रां ति से दस
हालां कि इसे सौरमास या सोलर-मं थ नहीं आमतौर पर ‘राशि’ कहते हैं . यूं राशियां , ग्रेगोरियन कैलें डर से
‘लगभग’ 100% सिं क में रहती है . क्यूंकि पं चां ग की राशियों और ग्रेगोरियन कैलें डर के महीने दोनों सूर्य के इर्द गिर्द
पृ थ्वी की गति पर निर्भर करते हैं .

©  Nepal Panchanga (ने पाल का पं चां ग,जो विक् रम सं वत पर आधारित है )

इसलिए ही तो, दिवाली, होली जै से त्योहार जो विशे ष रूप से चांद की गति पर निर्भर हैं इनकी डे ट्स इधर-उधर
होती रहती हैं , ले किन उत्तरायनी जै से हिं द ू त्योहार, जो पूरी तरह से सूर्य (के इर्द गिर्द पृ थ्वी) की गति पर निर्भर हैं ,
वो हमे शा ग्रेगोरियन कैलें डर से सिं क में रहते हैं . और अगर किसी साल सिं क नहीं हो रहे तो जानिए कि शु द्ध ‘सोलर
कैलें डर’ होने के बावज़ूद दिक्कत ग्रेगोरियन कैलें डर में है , न कि पं चां ग में . क्यूंकि रूल ऑफ़ थं ब वाले हिसाब-
किताब के चलते उसमें सिर्फ़ गु णा भाग करके चीज़ें परफ़ेक्ट बनाई गई हैं , ले किन पं चां ग में सूर्य-वर्ष काउं ट करने के
लिए भी उसका 12 ग्रहों या 12 तारों के समूहों से विशे ष समय में गु ज़रना ज़रूरी है . मतलब ये कि अगर पं चां ग
सिर्फ़ सूर्य की गति पर ही निर्भर रहता, तो भी ज़रूरी नहीं कि हर साल हिं द ू नव वर्ष 1 जनवरी को ही आता, या उसी
दिन आता जिस दिन पिछले वर्ष आया था.
पं चां ग 2021 (पूरा PDF दे खने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें .)

बहरहाल इस तरह औसतन हर 32 महीने बाद एक एक्स्ट् रा महीना (लूनर मं थ) जु ड़ जाता है . और हर महीना ऐसा,
जिसमें चांद की सारी कलाएं होंगी.

अब इस एक महीने को जोड़ दे ने से साल में 366 दिन हो जा रहे थे . इसलिए हर 30 साल में एक महीना घटा दिए
जाने की व्यवस्था हुई. ले किन इससे भी 90 सालों में 5 दिन का अं तर आ रहा था. इसे रे क्टीफ़ाई करने के लिए, हर 90
साल बाद ऐसे पांच वर्ष मनाने की व्यवस्था की गई, जिनमें एक दिन अधिक होगा. यूं 95 सालों का एक से ट तै यार
हुआ. और इस तरह अगर ये कहें कि एक हिं द ू पं चां ग 95 सालों में अपना सर्कि ल पूरा करता है तो ग़लत नहीं होगा.

शतपथ ब्राह्मण (यजु र्वे द, 1000-1400 ई.पू.) के छठवें काण्ड में इस 95 वर्षों की गणना को ‘अग्निचयन विधि’ कहा
गया है .

पंचांग का इतिहास
तिथि और नक्षत्र जै से कॉन्से प्ट वै दिक खगोल विज्ञान का हिस्सा थे . इन दिनों जो पं चां ग चलन में हैं उसे 5 वीं
शताब्दी के आर्यभट् ट जै से कई खगोलविदों द्वारा परिष्कृत करके बनाया गया है . ले किन इसका आधार भी शतपथ
ब्राह्मण की ‘अग्निचयन विधि’ ही है . हालां कि वर्तमान पं चां ग सूर्य और चं दर् मा की वास्तविक स्थितियों की गणना
करते हैं .

तो वै दिक इतिहास को छोड़ दिया जाए तो, ऊपर के नियमों के आधार पर ही विक् रम सम्वत् बना. ले किन जै सा बाद
में राजाओं के नाम पर सिक्के चला करते थे , वै से ही उस दौर में राजा अपने नाम पर कैलें डर चलाते थे . इसलिए बाद
में शक वं श के शालिवाहन के राजा ने जब विक् रमादित्य को यु द्ध में हराया तो शक सम्वत् अस्तित्व में आया. हो
सकता है कि इस कैलें डर में कई चीज़ें समय के साथ जोड़ घटा दी गई हों. ले किन मूल में वही गणित और ग्रहों की
दशाएं और दिशाएं हैं .

भारत सरकार भी शक सम्वत् के आधु निक वर्जन को ‘ऑफ़िशियल’ मानती है . 22 मार्च, 1957 से . इसका उपयोग
भारत सरकार द्वारा ग्रेगोरियन कैलें डर के साथ सरकारी गै जेट में भी किया जाता है . इसका नव-वर्ष 22 मार्च, और
अगर ग्रेगोरियन कैलें डर में लीप इयर हुआ तो 21 मार्च, से शु रू होता है .

हिं द ू शक कैलें डर का प्रारं भ 78 ईसवीं में हुआ. यह पं चां ग ज्यादातर हिं दुओं द्वारा अनदे खा किया जाता है क्योंकि वे
पारं परिक पं चां गों का पालन करते हैं . जै से उत्तर भारत में पारं परिक हिं द ू नव वर्ष, चै तर् शु क्ल प्रतिपदा (प्रथमा) से
शु रू होता है . और विक् रम सं वत के हिसाब से चला जाता है . यह विक् रम सं वत के अनु सार वर्ष 2078 है . मज़े की
बात ये कि भारत सरकार भी शक कैलें डर कैलें डर का पालन नहीं करती. इसे सिर्फ़ प्रकाशित भर कर दिया जाता है ,
अन्यथा सभी आधिकारिक कार्यों के लिए भारत सरकार ग्रेगोरियन कैलें डर का ही अनु सरण करती है .

ग्रेगोरियन कैलें डर का इतिहास


ग्रेगोरियन कैलें डर की शु रुआत रोम से हुई मानी जा सकती है . ‘कैलें डर’ शब्द भी दरअसल रोमन कैलें डर के पहले
महीने , ’कलें डिया’, का ही परिवर्तित रूप है .

ग्रेगोरियन कैलें डर 2021 (बड़ा करके दे खने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें .)
इस रोमन कैलें डर में जूलियस सीज़र ने 46BC में काफ़ी सु धार किए और जो कैलें डर बना, वो जूलियन कैलें डर
कहलाया. पहली बार एक सौर वर्ष की लं बाई 365.25 दिन इसी कैलें डर से मान्य हुई.

ले किन जूलियस सीज़र ने माना कि पिछली भूल सु धार के लिए पहले वर्ष में 80 दिन एक्स्ट् रा रखें जाएं गे. इसी के
चलते 46 BC को, ‘द इयर ऑफ कन्फ्यूजन’ कहा जाने लगा था. ले किन गु णा भाग थे कि सही होने का नाम ही नहीं
ले रहे थे . और जूलियन कैलें डर 8 AD के आते -आते ही परफ़ेक्ट हो पाया.

उसके बाद 730 AD में हुई एक और मिसकैल्क्यूलेशन के चलते जूलियन कैलें डर में 14 दिनों को आगे बढ़ा दिया
गया.

बहरहाल, 1582 में कैलें डर को फ़ाइन ट्यून कर लिया गया. ले किन ऐसा करने के लिए 10 दिन घटा दिए गए. जिससे
4 अक्टू बर, 1582 के अगले दिन 15 अक्टू बर, 1582 हो गया.

इन सभी कारणों के चलते गै र-कैथलिक दे श नए ग्रेगोरियन कैलें डर को अपनाने के पक्ष में नहीं थे . इं ग्लैं ड ने इसे
1752 में और रूस और ग्रीस ने इसे बीसवीं सदी आते -आते अपनाया.

अब नए साल को 25 मार्च की बजाय 1 जनवरी को स्थानांतरित किया जाना था. ले किन ईसाइयों को भी इस कैलें डर
से दिक्कत थी, क्यूंकि ईस्टर रविवार को ही मनाया जाना था. यूं बाद में यह फैसला किया गया कि स्प्रिं ग-
इक्वे नॉक्स के बाद आने वाली पूर्णिमा के बाद वाले रविवार को ईस्टर सं डे मनाया जाएगा. अपने वर्तमान स्वरूप में
भी ग्रेगोरियन कैलें डर दोषमु क्त नहीं है . क्यूंकि इसका पहला दिन ईसा मसीह के जन्मदिवस के दिन होना था ले किन
बाइबल और अन्य स्रोतों से पता चलता है कि उनका जन्म 8-4 ईसा पूर्व के बीच हुआ था.
ग्रेगोरियन कैलें डर के कुछ बहुत पु राने प्रिं टेड एडिशन में से एक. (1582 में प्रकाशित)

पंचांग के पांच अंग


‘…महीनों में मैं ही मार्गशीर्ष हं ’ू गीता में श्रीकृष्ण के इस कथन से ले कर हिं दुस्तानी पॉपु लर कल्चर की कोई भी
स्ट् रीम हो उसमें हिं द ू कैलें डर, ख़ास तौर पर उसके महीनों का ज़िक् र आ ही जाता है -

‘पूस की रात’, ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘जे ठ की दुपहरी में पां व जले है ’, ‘मे रे नै ना सावन-भादो’, ‘फागु न’.

और कई बार इसके बाक़ी एलिमें ट् स, जै से ‘घड़ी’, ‘नक्षत्र’, ‘वार’ वग़ै रह का भी.

ले किन इन सब में से पांच चीज़ें अति आवश्यक हैं जो पं चां ग के पांच अं ग कहे जाते हैं : वार, तिथि, नक्षत्र, योग,
करण. इनमें से हम वार, तिथि और नक्षत्र को तो पहले ही समझ चु के हैं . आइए अब योग और करण भी समझ ले ते
हैं .

# योग: जब सूर्य और चन्द्रमा की गति में 13.33 डिग्री का अन्तर पड़ता है तो एक योग बनता है . यूं कुल योगों की
संख्या हुई 360/13.33 = 27.
# करण: एक तिथि में दो करण होते हैं - एक पूर्वा र्ध में तथा एक उत्तरार्ध में . कुल 11 करण होते हैं - बव, बालव, कौलव,
तै तिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतु ष्पाद, नाग और किस्तु घ्न.
चलिए इसके अलावा बोनस में हिं द ू टाइम-कीपिं ग के कुछ और एलिमें ट् स भी फटाफट जान लिए जाएं .
हिन्द ू समय चक् र ‘सूर्य सिद्धांत’ के पहले अध्याय में आते हैं . जिनके अनु सार: छः श्वास से एक विनाड़ी बनती है .
साठ श्वासों से एक नाड़ी बनती है . साठ नाड़ियों से एक दिवस बनता है . इसे थोड़ी आसान से फ़ॉर्मूला में लिख ले ते
हैं -

24 घं टे (पश्चिम वाले ) = 1 दिवस (तिथि नहीं, वो छोटी होती है )


1 दिवस = 60 घड़ी = 60 नाड़ियां
1 घड़ी = 60 पल = 60 श्वास
1 पल = 60 विपल
1 विपल = 30 क्षण
1 क्षण = 2 लव
यूं 1 दिवस = 60 घड़ी = 3,600 पल = 2,16,000 विपल = 64,80,000 क्षण = 1,29,60,000 लव
1000 वर्ष = 1 सहस्राब्दी
432 सहस्राब्दी = 1 यु ग
10,000 यु ग = 1 कल्प
यूं, 1 कल्प = 10,000 यु ग = 43,20,000 सहस्राब्दी = 4,32,00,00,000 वर्ष = 4.32 अरब वर्ष
वै ज्ञानिकता पर ‘स्यूडो साइंस’ का ‘ग्रहण’
कोई भी चीज़ अपने जन्म के वक़्त सबसे ज़्यादा प्योर होती है . फिर वो कोई जीव हो, कोई कॉन्से प्ट, कोई विचार या
कोई राजनीतिक पार्टी. जै से हिं द ू धर्म में वे द एक प्योर ज्ञान है , ले किन इसके बाद आए पु राण, दरअसल वे दों, ऋचाओं
को समझाने के लिए बनाए गए ‘मे ड ईज़ी’ सरीखे थे . जिसमें क्लिष्टता के साथ-साथ सत्यता और ज्ञान भी डायल्यूट
होता चला गया.

पु राणों के अनु सार विष्णु ने समु दर् मं थन के बाद, अमृ त बांटने के दौरान राहु-केतु का सिर, धड़ से अलग कर दिया
था.

ऐसे ही कुछ पं चां ग के साथ भी हुआ. जब इसमें से ज्योतिषी का निर्माण हुआ तो चीज़ें कुछ आसान ले किन ज्ञान कुछ
डायल्यूट होता चला गया. हो सकता है कि ज्योतिषी का शु रुआती वर्जन फिर भी शु द्ध रहा हो ले किन अब जो इसका
ू त हुआ लगता है . और जब नदी का पानी प्रदषि
वर्जन दिखाई दे ता है , वो बहुत सारे स्यूडो-साइं स से प्रदषि ू त दिखा
ू त होगा.
तो लोगों को लगा स्रोत भी प्रदषि

जै से अगर राहु और केतू को ले कर आप पं चां ग को ‘भ्रामक’ मानते हैं तो जानिए कि, वै दिक खगोलशास्त्र ख़ु द
कहता है कि राहु और केतू ठोस ग्रह नहीं हैं . चं दर् मा, पृ थ्वी के इर्द गिर्द और पृ थ्वी, सूर्य के इर्द गिर्द अण्डाकार
ू रे से 5 डिग्री झुकी होती हैं . न झुकीं होतीं तो
(इलिप्टिकल) कक्षा में गति करता है . साथ ही इनकी कक्षाएं एक दस
हर अमावस्या को सूर्य ग्रहण और हर पूर्णमासी को चं दर् ग्रहण होता.
ू रे को दो बार काटती हैं . और चन्द्रमा की कक्षा के आरोही (एसें डिं ग) और अवरोही
तो ये अण्डाकार कक्षाएं एक दस
(डिसें डिं ग) केंद्र का निर्माण करती हैं . ये केंद्र ही राहु और केतु के रूप में जाने जाते हैं . चाइना में इसे ड्रैगन का सिर
और पूं छ कहते हैं . मतलब जै से चांद की 27 या 28 पत्नियां सिर्फ़ समझने भर के लिए थीं, वै से ही राहु, केतु का भी
हिसाब-किताब है . इन बिं दुओं का प्रभाव ग्रहों के प्रभाव सरीखा होने के कारण इन्हें भी ग्रह मान लिया है . कैसा
प्रभाव? सूर्य ग्रहण और चं दर् ग्रहण होने में इनका बहुत बड़ा रोल होता है .

इस फोटो को दे खकर आपको कन्फ्यूज़न हो सकता है कि सूर्य कैसे धरती के चक्कर लगा रहा. ले किन पं चां ग को
समझने के लिए  हम पृ थ्वी को स्टै टिक मानते हैं और सूर्य के सापे क्ष उसकी गति को सूर्य की गति मानकर स्टडी करते
हैं . इसलिए ये ऐसा है .

वै दिक काल में राहु और केतु को ‘छद्म ग्रहों’ के रूप में माना जाता था. जो भारतीय ज्योतिष और खगोल-विज्ञान
के नवग्रहों का हिस्सा थे . इनमें  सात दृश्य ग्रह (सूर्य, चं दर् मा, मं गल, बु ध, बृ हस्पति, शु क्र और शनि) और दो
अदृश्य ग्रह (राहु और केतु ) शामिल थे .

कहने का अर्थ ये कि यक़ीनन आज जिस ज्योतिषी को आपके सामने परोसा जाता है उसमें सब नहीं भी तो अधिकतर
चीज़ें स्यूडो-साइं स की कैटे गरी में आती हैं . ले किन इसका स्रोत हिं द ू कैलें डर या पं चां ग विशु द्ध वै ज्ञानिक कॉन्से प्ट
था, है . साथ ही अगर कोई नीम हकीम S सर्टिफिकेट वाली वीडियो दे खकर ग़लत ऑपरे शन करने लगे तो दोष
वीडियो का नहीं, ऑपरे शन करने वाले का है . इसलिए पं चां ग के कथित ‘टॉर्च बियरर’ की अयोग्यता से , पं चां ग को
मत नकारिए. शायद अतीत में यही करने के कारण हम-आप इसके वै ज्ञानिक पहलू को न जान पाए थे .

तो, सबसे शु द्ध स्रोत को ढूंढिए. साथ ही, ये बताना भी ज़रूरी है कि चीज़ों के बारे में मे री राय ग़लत या अलग लग
सकती है आपको. ले किन फ़ैक्ट् स आपके सामने हैं . राय का क्या है , वो वे द थोड़ी न है , पु राण है जिसमें राक्षस के 20
सिर और दे वता के पिचहत्तर हाथ हैं और राहु-केतु समु दर् मं थन का कोलै टरल डै मेज.

आइये जाने की क्या हैं पं चां ग और कैसे करें पं चां ग अध्ययन-


Posted on January 7, 2015 by vastushastri08

आइये जाने की क्या हैं पं चां ग और कैसे करें पं चां ग अध्ययन—-

ज्योतिष अर्थात ज्योति-विज्ञानं छह शास्त्रों में से एक है , इसे वे दों का ने तर् कहा गया है … ऐसी मान्यता है की
वे दों का सही ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्योतिष में पारं गत होना आवश्यक है … महाप्रतापी त्रिलोकपति रावण
जिसे चारो वे द कंठस्थ थे , ज्योतिष का सिद्ध ज्ञाता था.. उसने रावण सं हिता जै सा ग्रंथ रचा था जिसके बल पर उसने
शनी और यमराज तक को अपना दास बना लिया था… ज्योतिष ज्ञान से ही नारद त्रिकालज्ञ हुए.. भगवान कृष्ण,
भीष्म पितामह, कर्ण आदि महान योद्धा भी ज्योतिष के अच्छे जानकर थे ..

ब्रह्मा के मानस पु तर् भृ गु ने भृ गु-सं हिता का प्रणयन किया. छठी शताब्दी में वरामिहिर ने वृ हज्जातक,
वृ हत्सन्हिता और पं चसिद्धां तिका लिखी. सातवी सदी में आर्यभट ने ‘आर्यभटीय’ की रचना की जो खगोल और
गणित की जानकारियाँ है … ऋषि पराशर रचित होरा शास्त्र ज्योतिष का सिद्ध ग्रन्थ है … नील कंठी वर्षफल
दे खने का एक अच्छा ग्रन्थ है … मु हर्त
ू दे खने के लिए मु हर्त
ू चिं तामणि एक अच्छा ग्रन्थ है …भाव प्रकाश,
मानसागरी, फलदीपिका, लघु जातकम, प्रश्नमार्ग भी बहुप्रचलित ग्रन्थ है … बाल बोध ज्योतिष, लाल किताब,
सु नहरी किताब, काली किताब और अर्थ मार्तं ड अच्छी पु स्तकें है … कीरो व बे न्ह्म जै से अं गर् े ज ज्योतिषियों ने भी
हस्तरे खा ज्योतिष पर भी किताबें लिखी… नस्त्रेदाम्स की भविष्यवाणी विश्व प्रसिद्ध है …

पं चां ग का ज्ञान——-

पं चां ग दिन को नामं कित करने की एक प्रणाली है । पं चां ग के चक् र को खगोलीय तत्वों से जोड़ा जाता है । बारह
मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक् रम सं वत से शु रू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व
चं दर् मा की गति पर रखा जाता है । गणना के आधार पर हिन्द ू पं चां ग की तीन धाराएँ हैं - पहली चं दर् आधारित,
ू री नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलें डर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता
दस
है । एक साल में 12 महीने होते हैं । प्रत्ये क महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं - शु क्ल और कृष्ण। प्रत्ये क साल में
दो अयन होते हैं । इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं ।

पं चां ग भारतवर्ष की ज्योतिष विधा का प्रमु ख दर्पण है । जिससे समय की विभिन्न इकाईयों ज्ञान प्राप्त किया जाता
है :- सं वत्,महीना,पक्ष,तिथि,दिन आदि का विधाओ को जानने पं चां ग एक मात्र साधन है । धार्मिक व सभी प्रकार
शादी, मु ण्डन,भवन निर्माण आदि तिथियों के समय पर अनु ष्ठान का ज्ञान पं चां ग द्वारा लगाया सकता है । काल रूपी
ईश्वर के विशे ष अगं भत
ू पं चां ग है :- तिथि,नक्षत्र,योग,दिन के ज्ञान को सादर प्रणाम किया जाता है । आज इतना
दै निक में विशे ष प्रचलित राशि फल ,ग्रह परिवर्तन, त्यौहार व व्रत आदि इसी पं चां ग से दे खा जाता है । प्राचीन
काल में पं चां ग के विशे ष पांच अग है :- वार, तिथि, नक्षत्र, योग, करण थे । दिन-रात, सूर्य का अस्त-उदय, धडी पल
और भारतीय समय का ज्ञान ,मौसम परिवर्तन भी इसीसे दे खा जाता है
===================================================================
पं चां ग के मु ख्यत: तीन सिद्धान्त प्रयोग में लाये जाते हैं —-

सूर्य सिद्धान्त – अपनी विशु द्धता के कारण सारे भारत में प्रयोग में लाया जाता है ।
आर्य सिद्धान्त – त्रावणकोर, मलावार, कर्नाटक में माध्वों द्वारा, मद्रास के तमिल जनपदों में प्रयोग किया जाता है ,
एवं ब्राह्मसिद्धान्त – गु जरात एवं राजस्थान में प्रयोग किया जाता है ।

—विशे ष—-
—-ब्राह्मसिद्धान्त सिद्धान्त अब सूर्य सिद्धान्त सिद्धान्त के पक्ष में समाप्त होता जा रहा है । सिद्धान्तों में महायु ग से
गणनाएँ की जाती हैं , जो इतनी क्लिष्ट हैं कि उनके आधार पर सीधे ढं ग से पं चां ग बनाना कठिन है । अतः सिद्धान्तों
पर आधारित ‘करण’ नामक ग्रन्थों के आधार पर पं चां ग निर्मित किए जाते हैं , जै से – बं गाल में मकरन्द, गणे श का
ग्रहलाघव। ग्रहलाघव की तालिकाएँ दक्षिण, मध्य भारत तथा भारत के कुछ भागों में ही प्रयोग में लायी जाती
हैं ।

सिद्धान्तों में अन्तर के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं —–

वर्ष विस्तार के विषय में । वर्षमान का अन्तर केवल कुछ विपलों का है , और कल्प या महायु ग या यु ग में चन्द्र एवं
ग्रहों की चक् र-गतियों की सं ख्या के विषय में । यह केवल भारत में ही पाया गया है । आजकल का यूरोपीय पं चां ग
भी असन्तोषजनक है ।
===================================================================
— ज्योतिष शास्त्र के महत्वपूर्ण भाग—-

१. पं चां ग अध्ययन
२. कुंडली अध्ययन
३. वर्षफल अध्ययन
४. फलित ज्योतिष
५. प्रश्न ज्योतिष
६. हस्त रे खा ज्ञान
७. टै रो कार्ड ज्ञान
८. सामु द्रिक शास्त्र ज्ञान
९. अं क ज्योतिष
१०. फेंगशु ई
११. तन्त्र मन्त्र यं तर् ज्योतिष आदि
पं चां ग–
ज्योतिष सिखने के लिए पं चां ग का ज्ञान होना परम आवश्यक है —- पं चां ग अर्थात जिसके पाँच अं ग है – तिथि,
नक्षत्र, करण, योग, वार, इन पाँच अं गो के माध्यम से गृ हों की चाल की गणित दर्शायी जाती है …
————————————————————————————–
सौर मण्डल : —-
सौर मण्डल वह मं डल जिसमे हमारे सभी ग्रह सूर्य के एक निश्चित मार्ग पर पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर सूर्य के
गिर्द परिक् रमा करते रहते है ज्योतिस शास्त्र के अनु सार सौर परिवार बु ध, शु क्र, पृ थ्वी,चन्द्र ,मगं ल, बृ हस्पति
,शनियूरेनस, ने प्चून,प्लूटो |

बु ध सबसे छोटा ग्रह और सूर्य के सबसे ज्यादा नजदीक है । सभी ग्रह स्वं य प्रकशित नही होते व सूर्य से प्रकाश
ले कर अपनी कक्षा में सूर्य के गिर्द च्रक लगाते है । सूर्य से हमे प्रकाश,शक्ति, गर्मी,और जीवन मिलता है इस
प्रकाश को पृ थ्वी पर पहुँचने में साढ़े आठ मिनट लगभग है ।

पृ थ्वी को सूर्य के गिर्द घूमते लगभग सवा 365 दिन लगते है तब एक चक्कर पूरा होता है । बु ध को 88 दिन में
चककर लगाता है । शु क्र 225 दिनों में , मं गल 687 दिनों में , बृ हस्पति लगभग पौने बारह वर्षो में , शनि साढ़े 29 वर्षो
में , यूरेनस 84 वर्षो में , ने पचून 165 वर्षो में , प्लूटो 248 वर्षो एवं 5 मासो में सूर्य के गिर्द परिक् रमा पूरा करता है ।
सभी ग्रह अपने पथ पर क् रान्तिवृ त से 7-8 दक्षिणोत्तर होकर सूर्य की परिक् रमा कर रहे है |

उपग्रह हमे शा अपने ग्रहो के गिर्द घूमते है । पृ थ्वी हमे शा सूर्य के गिर्द घूमती है । इस लिए आकाश गतिशील
स्थिति में रहता है । यह गति लगभग 30 किलोमीटर प्रति से केन्ड है ।
—————————————————————————————
काल विभाजन—–

सूर्य के किसी स्थिर बिं दु (नक्षत्र) के सापे क्ष पृ थ्वी की परिक् रमा के काल को सौर वर्ष कहते हैं । यह स्थिर बिं दु
मे षादि है । ईसा के पाँचवे शतक के आसन्न तक यह बिं दु कां तिवृ त्त तथा विषु वत्‌के सं पात में था। अब यह उस स्थान
से लगभग 23 पश्चिम हट गया है , जिसे अयनां श कहते हैं । अयनगति विभिन्न ग्रंथों में एक सी नहीं है । यह
लगभग प्रति वर्ष 1 कला मानी गई है । वर्तमान सूक्ष्म अयनगति 50.2 विकला है । सिद्धांतग्रथों का वर्षमान 365
दिo 15 घ o 31 प o 31 विo 24 प्रति विo है । यह वास्तव मान से 8। 34। 37 पलादि अधिक है । इतने समय में सूर्य
की गति 8.27″ होती है । इस प्रकार हमारे वर्षमान के कारण ही अयनगति की अधिक कल्पना है । वर्षों की गणना के
लिये सौर वर्ष का प्रयोग किया जाता है । मासगणना के लिये चांदर् मासों का। सूर्य और चं दर् मा जब राश्यादि में
समान होते हैं तब वह अमांतकाल तथा जब 6 राशि के अं तर पर होते हैं तब वह पूर्णिमांतकाल कहलाता है । एक
ू रे अमांत तक एक चांदर् मास होता है , किंतु शर्त यह है कि उस समय में सूर्य एक राशि से दस
अमांत से दस ू री राशि
में अवश्य आ जाय। जिस चांदर् मास में सूर्य की सं क्रां ति नहीं पड़ती वह अधिमास कहलाता है । ऐसे वर्ष में 12 के
स्थान पर 13 मास हो जाते हैं । इसी प्रकार यदि किसी चांदर् मास में दो सं क्रां तियाँ पड़ जायँ तो एक मास का क्षय
हो जाएगा। इस प्रकार मापों के चांदर् रहने पर भी यह प्रणाली सौर प्रणाली से सं बद्ध है । चांदर् दिन की इकाई
को तिथि कहते हैं । यह सूर्य और चं दर् के अं तर के 12 वें भाग के बराबर होती है । हमारे धार्मिक दिन तिथियों से
सं बद्ध है 1 चं दर् मा जिस नक्षत्र में रहता है उसे चांदर् नक्षत्र कहते हैं । अति प्राचीन काल में वार के स्थान पर चांदर्
नक्षत्रों का प्रयोग होता था। काल के बड़े मानों को व्यक्त करने के लिये यु ग प्रणाली अपनाई जाती है । वह इस
प्रकार है :

कृतयु ग (सत्ययु ग) 17,28,000 वर्ष


द्वापर 12,96,000 वर्ष
त्रेता 8, 64,000 वर्ष
कलि 4,32,000 वर्ष
योग महायु ग 43,20,000 वर्ष
कल्प 1000 महायु ग 4,32,00,00,000 वर्ष
सूर्यसिद्धांत में बताए आँ कड़ों के अनु सार कलियु ग का आरं भ 17 फ़रवरी 3102 ई o पूo को हुआ था। यु ग से अहर्गण
(दिनसमूहों) की गणना प्रणाली, जूलियन डे नं बर के दिनों के समान, भूत और भविष्य की सभी तिथियों की गणना
में सहायक हो सकती है ।

समय की निशिचत आधार होता है । सयम का आधार सूर्य ही है । यह समय ही सूर्य के वश चक् रवत परिवतिर्त होता
है । मनु ष्य के सु ख-दुःख, और जीवन -मरण काल पर आधरित होता है और उसी में लीन हो जाता है । भच्रक में
भ्रमण करते हुए सूर्य के एक च्रक को एक वर्ष की सं ज्ञा दी जाती है । समय का विभाजन धण्टे ,मिनट और सें किड है
ज्योतिष विज्ञानं के रूप अहोरात्र,दिन,घड़ी,पल,विपल आदि है । हिन्दुओं में समय का बटवारा एक विशे ष प्रणाली
से होता है । यह ततपर से आरम्भ और कल्प पर समाप्त होता है । एक कल्प 4,32,0 000,000 सम्पात वर्षों के बराबर
होता है । हिन्दुओं में एक दिन सूर्य उदय से अगले सूर्य उदय पर समाप्त होता है ।
१ पलक छपकना – 1 निमे ष
३ निमे ष – १ क्षण
५ क्षण – १ काष्ठ
१५ काष्ठा – १ लधु
१५ लधु – १ घटी (24 मिनट )
२ -१/२ घटी – १ घं टा
६० घटी – २४ घण्टे
२ घटी = १ मु हर्त

३० मु हर्त
ू = 1 दिन-रात यानि अहोरात
१ याम = एक दिन का चौथा हिस्सा ( 1 प्रहर )
8 प्रहर = 1 दिन -रात
7 दिन -रात = 1 सप्ताह
4 सप्ताह = 1 महीना
12 मास = 1 वर्ष (365 -366 दिनो)
घण्टो- मिनटों को हिन्दुओ धर्मशास्त्र के अनु सार पलों में परिवर्तन करना और उन नियम अनु सार दे खना :-
1 मिनट – 2 -1/2 पल
4 मिनट – 10 पल
12 मिनट- 30 पळ
24 मिनट – 1 घटी
60 मिनट – 60 घटी यानि 1 घण्टा

ज्योतिष शास्त्र के अनु सार समय :-


60 विकला = 1 कला
60 कला = 1 अं श
30 अं श = 1 राशि
12 राशि = मगण

सूर्योदय से सूर्यास्त तक = एक दिन या दिनमान


सूर्यास्त अगले दिन सूर्योदय = रात्रिमान
उषाकाल = सूर्याद्य से 8 घटी पहले
प्रात:काल = सूर्यादय से 3 घटी तक
सं ध्याकाल =सूर्यास्त से 3 घटी तक

——————————————————————————————–
—–जानिए और समझिए भारतीय पं चोंगों के बारे में —

—भारतीय पं चोंगों में चन्द्र माह के नाम—-

01. चै तर्
02. वै शाख
03. ज्ये ष्ठ
04. आषाढ़
05. श्रावण
06. भाद्रपद
07. आश्विन
08. कार्तिक
09. मार्गशीर्ष
10. पौष
11. माघ
12. फाल्गु न

—नक्षत्र के नाम—–

01. अश्विनी
02. भरणी
. कृत्तिका
04. रोहिणी
05. मॄगशिरा
06. आर्द्रा
07. पु नर्वसु
08. पु ष्य
09. अश्ले शा
10. मघा
11. पूर्वाफाल्गु नी
12. उत्तराफाल्गु नी
13. हस्त
14. चित्रा
15. स्वाती
16. विशाखा
17. अनु राधा
18. ज्ये ष्ठा
19. मूल
20. पूर्वाषाढा
21. उत्तराषाढा
22. श्रवण
23. धनिष्ठा
24. शतभिषा
25. पूर्व भाद्रपद
26. उत्तर भाद्रपद
27. रे वती 28.

—-योग के नाम—-
01. विष्कम्भ
02. प्रीति
03. आयु ष्मान्
04. सौभाग्य
05. शोभन
06. अतिगण्ड
07. सु कर्मा
08. धृ ति
09. शूल
10. गण्ड

11. वृ दधि
12. ध्रुव
13. व्याघात
14. हर्षण
15. वज्र
16. सिद्धि
17. व्यतीपात
18. वरीयान्
19. परिघ
20. शिव
21. सिद्ध
22. साध्य
23. शु भ
24. शु क्ल
25. ब्रह्म
26. इन्द्र
27. वै धृति
28.

—-करण के नाम—
01. किंस्तु घ्न
02. बव
03. बालव
04. कौलव
05. तै तिल
06. गर
07. वणिज
08. विष्टि
09. शकुनि
10. चतु ष्पाद
11. नाग
12.

—तिथि के नाम—
01. प्रतिपदा
02. द्वितीया
03. तृ तीया
04. चतु र्थी
05. पञ्चमी
06. षष्ठी
07. सप्तमी
08. अष्टमी
09. नवमी
10. दशमी
11. एकादशी
12. द्वादशी
13. त्रयोदशी
14. चतु र्दशी
15. पूर्णिमा
16. अमावस्या

—-राशि के नाम—
01. मे ष
02. वृ षभ
03. मिथु न
04. कर्क
05. सिं ह
06. कन्या
07. तु ला
08. वृ श्चिक
09. धनु
10. मकर
11. कुम्भ
12. मीन

—आनन्दादि योगके नाम—-


01. आनन्द (सिद्धि) 02. कालदण्ड (मृ त्यु ) 03. धु मर् (असु ख) 04. धाता (सौभाग्य)
05. सौम्य (बहुसु ख) 06. ध्वां क्ष (धनक्षय) 07. केतु (सौभाग्य) 08. श्रीवत्स (सौख्यसम्पत्ति)
् र (लक्ष्मीक्षय) 11. छत्र (राजसं मान) 12. मित्र (पु ष्टि)
09. वज्र (क्षय) 10. मु दग
13. मानस (सौभाग्य) 14. पद्म (धनागम) 15. लु म्ब (धनक्षय) 16. उत्पात (प्राणनाश)
17. मृ त्यु (मृ त्यु ) 18. काण (क्ले श) 19. सिद्धि (कार्यसिद्धि) 20. शु भ (कल्याण)
21. अमृ त (राजसं मान) 22. मु सल (धनक्षय) 23. गद (भय) 24. मातङ्ग (कुलवृ दधि
् )
25. रक्ष (महाकष्ट) 26. चर (कार्यसिद्धि) 27. सु स्थिर (गृ हारम्भ) 28. प्रवर्द्धमान (विवाह)

—-सम्वत्सर के नाम—–
01. प्रभव 02. विभव 03. शु क्ल 04. प्रमोद
05. प्रजापति 06. अङ्गिरा 07. श्रीमु ख 08. भाव
09. यु वा 10. धाता 11. ईश्वर 12. बहुधान्य
13. प्रमाथी 14. विक् रम 15. वृ ष 16. चित्रभानु
17. सु भानु 18. तारण 19. पार्थिव 20. व्यय
21. सर्वजित् 22. सर्वधारी 23. विरोधी 24. विकृति
25. खर 26. नन्दन 27. विजय 28. जय
29. मन्मथ 30. दुर्मुख 31. हे मलम्बी 32. विलम्बी
33. विकारी 34. शर्वरी 35. प्लव 36. शु भकृत्
37. शोभन 38. क् रोधी 39. विश्वावसु 40. पराभव
41. प्लवङ्ग 42. कीलक 43. सौम्य 44. साधारण
45. विरोधकृत् 46. परिधावी 47. प्रमाथी 48. आनन्द
49. राक्षस 50. नल 51. पिङ्गल 52. काल
53. सिद्धार्थ 54. रौद्र 55. दुर्मति 56. दुन्दुभी
57. रुधिरोद्गारी 58. रक्ताक्षी 59. क् रोधन 60. क्षय
======================================================================
पं चक अध्ययन—–
—पं चक में भी हो सकते है शु भ कार्य—–

—पं चक अर्थात ऐसा समय जो प्रत्ये क माह में अपना एक अलग महत्व रखता है … कुछ लोग अज्ञान के कारण
पं चको को पूर्ण अशु भ समय मान बै ठते है परन्तु ऐसा नही है … पं चको में शु भ कार्य भी किये जा सकते है … ज्योतिष
शास्त्र के अनु सार पं चक तब लगते है जब ब्रह्मांड में चन्द्र ग्रह धनिष्ठा नक्षत्र के तृ तीय चरण में प्रवे श करते
है ..इस तरह चन्द्र ग्रह का कुम्भ और मीन राशी में भ्रमण पं चकों को जन्म दे ता है … कई बार एक अं गर् े जी महीने
में पं चक दो बार आ जाते है …

ज्योतिष शास्त्र के अनु सार चन्द्र ग्रह का धनिष्ठा नक्षत्र के तृ तीय चरण और शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद,
उत्तराभाद्रपद तथा रे वती नक्षत्र के चारों चरणों में भ्रमण काल पं चक काल कहलाता है .. पं चको के बारे में एक
पोराणिक कथा है , कहते है की एक बार मं गल ग्रह ने रे वती नक्षत्र के साथ दुष्कर्म कर दिया था, जिसके कारण
रे वती अशु द्ध हो गयी थी और परिजनों ने उसके हाथ से जल ग्रहण कर लिया था तब दे वताओं के गु रु कहे जाने
ब्रहस्पति ने एक सभा बु लाई और जल ग्रहण करने वाले सभी परिजनों का बहिष्कार कर दिया… तब श्रवण
नक्षत्र ने यह अपील की कि में तो पिता के कहने पर जल ले ने चला गया था… मे रा क्या कसूर है ? तब श्रवण
नक्षत्र की अपील पर उसे छोड़ दिया गया और श्रवण के पिता धनिष्ठा नक्षत्र, बड़ी बहन पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र,
छोटी बहन उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, माता शतभिषा नक्षत्र और पत्नी रे वती नक्षत्र को पं चक होना करार दे दिया
गया….कहते है कि तभी से इस दुष्कर्म के कारण क् रूर और पापी ग्रह माना जाने लगा..

अगर आधु निक खगोल विज्ञान की दृष्टि से दे खें तो ३६० अं शो वाले भचक् र में पृ थ्वी जब ३०० अं श से ३६० अं श के
बिच भ्रमण कर बीच रही होती है तो उस अवधि में धरती पर चन्द्रमा का प्रभाव अत्यधिक होता है …उसी अवधि
को पं चक काल कहते है … शास्त्रों में पांच निम्नलिखित पाँच कार्य ऐसे बताये गये है जिन्हें पं चक काल के दोरान
नही किया जाना चाहिए:-

—लकड़ी एकत्र करना या खरीदना..


–मकान पर छत डलवाना…
—शव जलाना…
—पलं ग या चारपाई बनवाना..
—दक्षिण दिशा की तरफ यात्रा करना…

—ये पांचो ऐसे कार्य है जिन्हें पं चक के दौरान न करने की सलाह प्राचीन ग्रन्थों में दी गयी है परन्तु आज का समय
प्राचीन समय से बहुत अधिक भिन्न है वर्तमान समय में समाज की गति बहुत ते ज है इसलिए आधु निक यु ग में
उपरोक्त कार्यो को पूर्ण रूप से रोक दे ना कई बार असम्भव हो जाता है … परन्तु शास्त्रकारों ने शोध करके ही
उपरोक्त कार्यो को पं चक काल में न करने की सलाह दी है .. ऐसी भी मान्यता है की अगर उपरोक्त वर्जित कार्य पं चक
काल में करने की अनिवार्यता उपस्थित हो जाये तो निम्नलिखित उपाय करके उन्हें किया जा सकता है -
—-लकड़ी का समान खरीदना जरूरी हो तो खरीद ले किन्तु पं चक काल समाप्त होने पर गायत्री माता के नाम पर
हवन कराए. इससे पं चक दोष दरू हो जाता है …
—-मकान पर छत डलवाना अगर जरूरी हो तो मजदरू ों को मिठाई खिलने के पश्चात ही छत डलवाने का कार्य
करे …
—-अगर पं चक काल में शव को धन करना अनिवार्य हो तो शव दाह करते समय पाँच अलग पु तले बनाकर उन्हें भी
आवश्य जलाएं ….
—पं चक काल में अगर पलं ग या चारपाई ले ना जरूरी हो तो पं चक काल की समाप्ति के पश्चात ही इस पलं ग या
चारपाई का प्रयोग करे ..
—पं चक काल में अगर दक्षिण दिशा की यात्रा करना अनिवार्य हो तो हनु मान मं दिर में फल चदा कर यात्रा
प्रारम्भ करे . ऐसा करने से पं चक दोष दरू हो जाता है ..
====================================================================
हिन्द ू पद्ति के अनु सार पाँच वर्षमान भारतवर्ष का प्रचलित है :—
1 सौरवर्ष
2 चांदर् वर्ष
3 नाक्षत्रवर्ष
4 सावनवर्ष
5 बाहसर्पत्य

ू री में
—सौरवर्ष :-जितने समय में सूर्य बारह राशियों का भम्रण करता है उसे सौरवर्ष कहते है । सूर्य एक राशि से दस
प्रवे श करने में ३०अश लगता है यानि एक मास यह चक् र सं क्रान्ति से सं क्रान्ति तक होता है ।
सौरवर्ष का पूर्ण समय 365 दिन 6 घं टे 9 मिनट 11 सै किण्ड होते है ।

—-हिन्द ू कैले ण्डर—


हिन्द ू कैले ण्डर में दिन स्थानीय सूर्योदय के साथ शु रू होता है और अगले दिन स्थानीय सूर्योदय के साथ समाप्त होता
है । क्योंकि सूर्योदय का समय सभी शहरों के लिए अलग है , इसीलिए हिन्द ू कैले ण्डर जो एक शहर के लिए बना है
वो किसी अन्य शहर के लिए मान्य नहीं है । इसलिए स्थान आधारित हिन्द ू कैले ण्डर, जै से की द्रिकपञ्चाङ्ग डोट
कॉम, का उपयोग महत्वपूर्ण है । इसके अलावा, प्रत्ये क हिन्द ू दिन में पांच तत्व या अं ग होते हैं । इन पांच अँ गों का
नाम निम्नलिखित है ——

1. तिथि
2. नक्षत्र
3. योग
4. करण
5. वार (सप्ताह के सात दिनों के नाम)
वै दिक पञ्चाङ्ग—-
हिन्द ू कैले ण्डर के सभी पांच तत्वों को साथ में पञ्चाङ्ग कहते हैं । (सं स्कृत में : पञ्चाङ्ग = पं च (पांच) + अं ग
(हिस्सा)). इसलिए जो हिन्द ू कैले ण्डर सभी पांच अँ गों को दर्शाता है उसे पञ्चाङ्ग कहते हैं । दक्षिण भारत में
पञ्चाङ्ग को पञ्चाङ्गम कहते हैं ।

भारतीय कैले ण्डर—


जब हिन्द ू कैले ण्डर में मु स्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जै न त्योहार और राष्ट् रीय छुट्टियों शामिल हों तो वह भारतीय
कैले ण्डर के रूप में जाना जाता है ।

भारत का राष्ट् रीय पं चां ग (कैले ण्डर) क्या है ?

*.ग्रैगे रियन कैले ण्डर के साथ विक् रम सं वत


*.ग्रैगे रियन कैले ण्डर के साथ शक सं वत
*.शक सं वत
*.विक् रम सं वत

====श्रीकृष्ण सं वत् अन्य -8 सं वत्


श्रीकृष्ण सं वत् =5234 2. कलि सं वत् =5100 बु द सं वत् =2542 महावीर सं वत् 2025 शाका सं वत् =1921 हिजरी
सं वत् =1420 फसली सं वत् =1407 सन ई= 1999 नानकशाही =531

===शक सं वतभारत का प्राचीन सं वत है जो ७८ ई. से आरम्भ होता है ।शक सं वतभारतका राष्ट् रीय कैलें डर है ।शक
सं वत्‌के विषय में बु दुआका मत है कि इसे उज्जयिनी के क्षत्रप चे ष्टन ने प्रचलित किया। शक राज्यों को चं दर् गु प्त
विक् रमादित्य ने समाप्त कर दिया पर उनका स्मारक शक सं वत्‌अभी तक भारतवर्ष में चल रहा है ।
शक सं वत् :-विक् रम सं वत् के 135 वर्ष के बाद राजा शालिवाहन ने इस का आरम्भ किया है और भारत सरकार ने भी
इसी सं वत् को मान्यता दी इसका आरम्भ 22 मार्च यानि हिन्द ू मास चै तर् से होता है ।

====विक् रमी सं म्वत् :—हिन्द ू पं चां गमें समय गणना की प्रणाली का नाम है । यह सं वत ५७ ईपू आरम्भ होती है ।
इसका प्रणे ता सम्राटविक् रमादित्यको माना जाता है ।कालिदासइस महाराजा के एक रत्न माने जाते हैं ।बारह महीने
का एक वर्ष और सात दिनका एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक् रम सं वत से ही शु रू हुआ | इसका काल का
शु भारम्भ ईसा से 57 वर्ष पूर्व चै तर् शु क्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से माना जाता है । पं चां ग में इसी प्रणाली का
प्रयोग किया जाता है और यह चन्द्र मास पर आधारित है तथा इस में सौरमासो का भी समावे श रहता है । चन्द्र
वर्ष का आरम्भ चै तर् शु क्ल पक्ष प्रतिप्रदा तिथि से किया जाता है
=======================================================
पं चां ग का परिचय एवं इतिहास—-
भारत का प्राचीनतम उपलब्ध साहित्य वै दिक साहित्य है । वै दिक कालीन भारतीय यज्ञ किया करते थे । यज्ञों के
विशिष्ट फल प्राप्त करने के लिये उन्हें निर्धारित समय पर करना आवश्यक था इसलिये वै दिककाल से ही भारतीयों
ने वे धों द्वारा सूर्य और चं दर् मा की स्थितियों से काल का ज्ञान प्राप्त करना शु रू किया। पं चां ग सु धारसमिति की
रिपोर्ट में दिए गए विवरण (पृ ष्ठ 218) के अनु सार ऋग्वे द काल के आर्यों ने चांदर् सौर वर्षगणना पद्धति का ज्ञान
प्राप्त कर लिया था। वे 12 चांदर् मास तथा चांदर् मासों को सौर वर्ष से सं बद्ध करने वाले अधिमास को भी जानते
थे । दिन को चं दर् मा के नक्षत्र से व्यक्त करते थे । उन्हें चं दर् गतियों के ज्ञानोपयोगी चांदर् राशिचक् र का ज्ञान था।
वर्ष के दिनों की सं ख्या 366 थी, जिनमें से चांदर् वर्ष के लिये 12 दिन घटा दे ते थे । रिपोर्ट के अनु सार ऋग्वे द कालीन
आर्यों का समय कम से कम 1,200 वर्ष ईसा पूर्व अवश्य होना चाहिए। लोकमान्य बाल गं गाधर तिलक की ओरायन
के अनु सार यह समय शक सं वत्‌से लगभग 4000 वर्ष पहले ठहरता है ।

यजु र्वे द काल में भारतीयों ने मासों के 12 नाम मधु , माधव, शु क्र, शु चि, नमस्‌, नमस्य, इष, ऊर्ज, सहस्र, तपस्‌तथा
तपस्य रखे थे । बाद में यही पूर्णिमा में चं दर् मा के नक्षत्र के आधार पर चै तर् , वै शाख, ज्ये ष्ठ, आषाढ़, भाद्रपद,
आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गु न हो गए। यजु र्वे द में नक्षत्रों की पूरी सं ख्या तथा उनकी
अधिष्टात्री दे वताओं के नाम भी मिलते हैं । यजु र्वेद में तिथि तथा पक्षों, उत्तर तथा दक्षिण अयन और विषु व दिन
की भी कल्पना है । विषु व दिन वह है जिस दिन सूर्य विषु वत्‌तथा क् रां तिवृ त्त के सं पात में रहता है । श्री शं कर
बालकृष्ण दीक्षित के अनु सार यजु र्वे द कालिक आर्यों को गु रु, शु क्र तथा राहु केतु का ज्ञान था। यजु र्वे द के रचनाकाल
के विषय में विद्वानों में मतभे द है । यदि हम पाश्चात्य पक्षपाती, कीथ का मत भी लें तो यजु र्वे द की रचना 600 वर्ष
ईसा पूर्व हो चु की थी। इसके पश्चात्‌वे दां ग ज्योतिष का काल आता है , जो ई o पूo 1,400 वर्षों से ले कर ई o पूo 400
वर्ष तक है । वे दां ग ज्योतिष के अनु सार पाँच वर्षों का यु ग माना गया है , जिसमें 1830 माध्य सावन दिन, 62 चांदर्
मास, 1860 तिथियाँ तथा 67 नाक्षत्र मास होते हैं । यु ग के पाँच वर्षों के नाम हैं : सं वत्सर, परिवत्सर, इदावत्सर,
अनु वत्सर तथा इद्ववत्सर 1 इसके अनु सार तिथि तथा चांदर् नक्षत्र की गणना होती थी। इसके अनु सार मासों के
माध्य सावन दिनों की गणना भी की गई है । वे दां ग ज्यातिष में जो हमें महत्वपूर्ण बात मिलती है वह यु ग की
कल्पना, जिसमें सूर्य और चं दर् मा के प्रत्यक्ष वे धों के आधार पर मध्यम गति ज्ञात करके इष्ट तिथि आदि निकाली
गई है । आगे आने वाले सिद्धांत ज्योतिष के ग्रंथों में इसी प्रणाली को अपनाकर मध्यम ग्रह निकाले गए हैं ।

वे दां ग ज्योतिष और सिद्धांत ज्योतिष काल के भीतर कोई ज्योतिष गणना का ग्रंथ उपलब्ध नहीं होता। किंतु इस
् अवश्य होती रही है ,
बीच के साहित्य में ऐसे प्रमाण मिलते हैं जिनसे यह स्पष्ट है कि ज्योतिष के ज्ञान में वृ दधि
उदाहरण के लिये , महाभारत में कई स्थानों पर ग्रहों की स्थिति, ग्रहयु ति, ग्रहयु द्ध आदि का वर्णन है । इससे इतना
स्पष्ट है कि महाभारत के समय में भारतवासी ग्रहों के वे ध तथा उनकी स्थिति से परिचित थे ।

सिद्धांत ज्योतिष प्रणाली से लिखा हुआ प्रथम पौरुष ग्रंथ आर्यभट प्रथम की आर्यभटीयम्‌(शक सं o 421) है ।
तत्पश्चात्‌बराहमिहिर (शक सं o 427) द्वारा सं पादित सिद्धांतपं चिका है , जिसमें पे तामह, वासिष्ठ, रोमक, पु लिश
तथा सूर्यसिद्धांतों का सं गर् ह है । इससे यह तो पता चलता है कि बराहमिहिर से पूर्व ये सिद्धांतग्रंथ प्रचलित थे ,
किंतु इनके निर्माणकाल का कोई निर्दे श नहीं है । सामान्यत: भारतीय ज्योतिष ग्रंथकारों ने इन्हें अपौरुषे य माना है ।
आधु निक विद्वानों ने अनु मानों से इनके कालों को निकाला है और ये परस्पर भिन्न हैं । इतना निश्चित है कि ये वे दां ग
ज्योतिष तथा बराहमिहिर के समय के भीतर प्रचलित हो चु के थे । इसके बाद लिखे गए सिद्धांतग्रंथों में मु ख्य हैं :
् द, श्रीपति (शक सं o 961) का
ब्रह्मगु प्त (शक सं o 520) का ब्रह्मसिद्धांत, लल्ल (शक सं o 560) का शिष्यधीवृ दधि
सिद्धांतशे खर, भास्कराचार्य (शक सं o 1036) का सिद्धांत शिरोमणि, गणे श (1420 शक सं o) का ग्रहलाघव तथा
कमलाकर भट् ट (शक सं o 1530) का सिद्धांत-तत्व-विवे क।

गणित ज्योतिष के ग्रंथों के दो वर्गीकरण हैं : सिद्धांतग्रंथ तथा करणग्रंथ। सिद्धांतग्रंथ यु गादि अथवा कल्पादि
पद्धति से तथा करणग्रंथ किसी शक के आरं भ की गणनापद्धति से लिखे गए हैं । गणित ज्योतिष ग्रंथों के मु ख्य
प्रतिपाद्य विषय है : मध्यम ग्रहों की गणना, स्पष्ट ग्रहों की गणना, दिक् ‌, दे श तथा काल, सूर्य और चं दर् गहण,
ग्रहयु ति, ग्रहच्छाया, सूर्य सां निध्य से ग्रहों का उदयास्त, चं दर् मा की शृं गोन्नति, पातविवे चन तथा वे धयं तर् ों का
विवे चन।
==============================================================
गणना प्रणाली—–

पूरे वृ त्त की परिधि 360 मान ली जाती है । इसका 360 वाँ भाग एक अं श, का 60 वाँ भाग एक कला, कला का 60 वाँ
भाग एक विकला, एक विकला का 60 वाँ भाग एक प्रतिविकला होता है । 30 अं श की एक राशि होती है । ग्रहों की
गणना के लिये क् रां तिवृ त्त के, जिसमें सूर्य भ्रमण करता दिखलाई दे ता है , 12 भाग माने जाते हैं । इन भागों को मे ष,
वृ ष आदि राशियों के नाम से पु कारा जाता है । ग्रह की स्थिति बतलाने के लिये मे षादि से ले कर ग्रह के राशि, अं ग,
कला, तथा विकला बता दिए जाते हैं । यह ग्रह का भोगां श होता है । सिद्धांत ग्रंथों में प्राय: एक वृ त्तचतु र्थां श (90
चाप) के 24 भाग करके उसकी ज्याएँ तथा कोटिज्याएँ निकाली रहती है । इनका मान कलात्मक रहता है । 90 के चाप
की ज्या वृ हद्वत्त
ृ का अर्धव्यास होती है , जिसे त्रिज्या कहते हैं । इसको निम्नलिखित सूतर् से निकालते हैं :

परिधि = (३९२७ / १२५०) x व्यास


इस प्रकार त्रिज्या का मान 3438 कला है , जो वास्तविक मान के आसन्न है । चाप की ज्या आधु निक प्रणाली की
तरह अर्धज्या है । वस्तु त: वर्तमान त्रिकोणामितिक निष्पत्तियों का विकास भारतीय प्रणाली के आधार पर हुआ है
और आर्यभट को इसका आविष्कर्ता माना जाता है । यदि किन्हीं दो भिन्न आकार के वृ त्तों के त्रिकोणमितीय मानों
की तु लना करना अपे क्षित होता है , तो वृ हद् वृ त्त की त्रिज्या तथा अभीष्ट वृ त्त की निष्पत्ति के आधार पर अभीष्ट
वृ त्त की परिधि अं शों में निकाली जाती है । इस प्रकार मं द और शीघ्र परिधियों में यद्यपि नवीन क् रम से अं शों की
सं ख्या 360 ही है , तथापि सिद्धांतग्रंथों में लिखी हुई न्यून सं ख्याएँ केवल तु लनात्मक गणना के लिये हैं ।
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कैसे करें पं चां ग गणना——

तिथिर्वारश्च नक्षत्र योगः करण मे व च। एते षां यत्र विज्ञानं पं चां ग तन्निगद्यते ।।
तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण की जानकारी जिसमें मिलती हो, उसी का नाम पं चां ग है । पं चां ग अपने प्रमु ख
पांच अं गों के अतिरिक्त हमारा और भी अने क बातों से परिचय कराता है । जै से ग्रहों का उदयास्त, उनकी गोचर
स्थिति, उनका वक् री और मार्गी होना आदि। पं चां ग दे श में होने वाले व्रतोत्सवों, मे लों, दशहरा आदि का ज्ञान
कराता है । इसलिए पं चां ग का निर्माण सार्वभौम दृष्टिकोण के आधार पर किया जाता है ।

काल के शु भाशु भत्व का यथार्थ ज्ञान भी पं चां ग से ही होता है । साथ ही इसमें मौसम के साथ-साथ बाजार में ते जी
तथा मं दी की स्थिति का उल्ले ख भी रहता है । ज्योतिषगणित के आधार पर निर्मित प्रतिष्ठित पं चां गों में सं भावित
ग्रहणों तथा विभिन्न योगों का विवरण रहता है । एक अच्छे पं चां ग में विवाह मु हर्त
ू , यज्ञोपवीत, कर्णवे ध, गृ हारं भ,
दे वप्रतिष्ठा, व्यापार, वाहन क् रय, ले ने-दे न तथा अन्यान्य मु हर्त
ू और समय शु द्धि, आकाशीय परिषद में ग्रहों के
चु नाव आदि का उल्ले ख भी होता है ।

पं चां ग का सर्वप्रथम निर्माण कब और कहां हुआ यह कहना कठिन है । ले किन कहा जाता है कि इसका निर्माण
सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा ने किया—-
सिद्धांत सहिता होरारूप स्कन्धत्रयात्मकम्।
वे दस्य निर्मल चक्षु योतिश्शास्त्रमकल्मषम।।
विनै तदाखिलं श्रौतं स्मार्तं कर्म न सिद्धयति।
तस्माज्जगद्विताये दं ब्रह्मणा निर्मितं पु रा।।

सतयु ग के अं त में सूर्य सिद्धांत की रचना भगवान सूर्य के आदे शानु सार हुई थी, जिसमें कालगणना का बहुत ही सुं दर
और सटीक वर्णन मिलता है । काल की व्याख्या करते हुए सूर्यांशपु रुष ने कहा है —

लोकानामं तकृत्काल कालोऽन्य कलनात्मकः।


स द्विधा स्थूलसूक्ष्मत्वान्मूत्र्तश्चामूर्त उच्यते ।।

ू रा काल कलनात्मक ज्ञान (गणना) करने योग्य है । खं ड काल


एक काल लोकों का अं तकारी अर्थात् अनादि है और दस
भी स्थूल और सूक्ष्म के भे द से मूर्त और अमूर्त रूप में दो प्रकार का होता है । त्रुट्यादि की अमूर्त सं ज्ञा गणना में
नहीं आती।

प्राणादि मूर्तकाल को सभी गणना में ले ते हैं । 6 प्राण का एक पल, 60 पलों की एक घटी और 60 घटियों का एक
अहोरात्र होता है । एक दिन को प्राकृतिक इकाई माना गया। ग्रह गणनार्थ प्राकृतिक इकाई को अहर्गण के नाम से
जाना जाता है । सूर्य सिद्धांत, परासर सिद्धांत, आर्य सिद्धांत, ब्रह्म सिद्धांत, ब्रह्मगु प्त सिद्धांत, सौर पक्ष सिद्धांत,
ग्रह लाघव, मकरं दगणित आदि के रचनाकारों के अपने -अपने अहर्गण हैं ।

शाके 1800 में केतकरजी ने भारतीय तथा विदे शी ग्रह गणना का तु लनात्मक अध्ययन कर एक नए सिद्धांत का
प्रतिपादन किया, जिसे सूक्ष्म दृश्य गणित के नाम से जाना जाता है । सभी सिद्धांत ग्रंथों में अपने -अपने ढं ग से
ग्रह गणना करने की विधियां लिखी हैं । किंतु इनमें परस्पर मतभे द है ।
शास्त्रसम्मत शु द्ध पं चां ग गणना का मु ख्य आधार ग्रह गणना ही है । वर्तमान समय में अधिकां श पं चां ग सूक्ष्म
दृश्य गणित के आधार पर बनाए जाते हैं । तिथि स्पष्ट करने की विधि—-

अर्कोन चं दर् लिप्ताभ्यास्तये या भोग भाजिताः।


गतागम्याश्च षष्टिघ्रा नाडियौ भु क्तयं तरोद्धताः।।

जिस दिन तिथि स्पष्ट करनी हो, उस दिन स्पष्टार्कोदय स्पष्ट चं दर् में से स्पष्ट सूर्य को घटा दें । शे ष को राश्यादि के
कला बनाकर 720 से भाग दें , शे ष बची सं ख्या के अनु सार गत तिथि होगी। शे ष को गत माना है , जिसे 720 में से
घटाने पर गम्य होता है । गम्य को 60 से गु णा करें । गु णनफल को सूर्य और चं दर् की गतियों के अं तर से भाग दे ने पर
वर्तमान तिथि का घटी-पल सु निश्चित हो जाता है ।

घटी-पल को घं टा-मिनट में परिवर्तित करने के लिए सं स्कार करने पड़ते हैं । नक्षत्र स्पष्ट करने की विधि
भगोगोऽष्टशती लिप्ताः खाश्विशै लास्तथा तिथौः। ग्रहलिप्ता भभोगाप्ता भानि भु कत्या दिनादिकम्।। नक्षत्र
भोग 800 कला मान्य है । जिस दिन नक्षत्र स्पष्ट करना हो, उस दिन स्पष्ट चं दर् की सर्वकालाओं में 800 का भाग
दें , भागफल गत नक्षत्र होगा। शे ष गत कहा जाता है । उस गत को 800 में से घटाने पर गम्य कहलाता है । गम्य को
60 से गु णाकर चं दर् की गति से भाग करने पर घटी-पल सु निश्चित हो जाते हैं ।
योग स्पष्ट करने की विधि—
रविन्दु योगलिप्ताभ्यो योगा भगोग भाजिताः।
गता गम्याश्च षष्टघ्रा भु क्तियोगाप्त नाडिकाः।।

जिस दिन योग जानना हो, उस दिन स्पष्ट सूर्य और चं दर् की कुल कलाओं में 800 का भाग दें , लब्धांक गत योग
होगा। शे ष गत कहा जाता है , जिसे 800 में से घटाने पर गम्य हो जाता है । गम्य को 60 से गु णाकर सूर्य और चं दर्
गति योग से भाग करने पर घटी-पल निश्चित हो जाते हैं ।

करण स्पष्ट करने की विधि —-

तिथि के आधे मान को करण कहते हैं । करण ग्यारह होते हैं - बव, बालव, कौलव, तै तिल, गर, वणिज और विष्टि,
शकुनि, चतु ष्पद, नाग और किंस्तु घ्न। विष्टि करण का ही नाम भद्रा होता है । चं दर् और सौर मास चांदर् मास 30
तिथियों का होता है , जिसकी गणना अमांत काल से की जाती है । सौर मास मे षादि सं क्रां तियों में सूर्य भ्रमण के
अनु रूप सु निश्चित किए जाते हैं ।

नवधा काल—
मान ब्राह्नं दै वं मनोर्मान पै तर् यं सौरं च सावनम्।
नाक्षत्रंच तथा चाद्रं जै वं मानानि वै नव।।

ब्राह्न, दे व, मानव, पै त्र्य, सौर, सावन, नक्षत्र, चं दर् और बार्हस्पत्य ये 9 प्रकार के मान होते हैं ।
लोक व्यवहारार्थ मान पं चभिव्र्यवहारः स्यात् सौरचान्द्राक्र्ष सावनै ः। बार्हस्पत्ये न मत्र्यानां नान्य माने न सर्वदा।।

लोक व्यवहार में केवल सौर, चं दर् , नाक्षत्र, सावन और बार्हस्पत्य ये पांच मान ही मान्य हैं ।

प्रभवाद्यब्द माने तु बार्हस्पत्यं प्रकीर्तितम्। एतच्छुर्द्धि विलौक्यै व बु धः कर्म समारभे त।् ।

यज्ञ और विवाहादि में सौर मान, सूतकादि में अहोरात्र, गणनार्थ सावन, घटी-पल आदि काल ज्ञानार्थ नक्षत्र,
पितृ कर्म में चं दर् (तिथि और प्रभावादि सं वत्सर गणनार्थ बार्हस्पत्य मान प्रयोग में लाया जाता है ।

उत्कृष्ट पं चां गों में ऊपर वर्णित सभी विषयों का शोधोपरांत समावे श किया जाता है ।
अतः शु भ फलों की प्राप्ति और अशु भ फलों से बचाव के लिए ऐसे ही पं चां गों का उपयोग करना चाहिए।

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