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ास
बोकारो ट ल सट , झारखंड म ज मे स य ास को घरवाल ने बताया क पढ़ाई- लखाई
अ छ चीज़ है। बात इतनी गहरे उतरी क आट् स, साइंस, कॉमस, मैनेजमट, लॉ आ द सब
पढ़ाई कर ली। लॉ कूल ( ) के एलुमनाई स य ास एक नवर न कंपनी म लॉ ज ट स
ोफ़ेशनल ह और ‘बनारस टॉक ज़’ के बाद एक प र थ तज य न सल क कहानी लख रहे
ह।
फ़लहाल स य ास, प नी यंका और बेटे सा न य के साथ कोलकता म रहते ह।
वैधा नक नी त:
स य ास
: 978-93-81394-99-1
काशक:
ह द-यु म
201 बी, पॉकेट ए, मयूर वहार फ़ेस – 2, द ली – 110091
मो. – 9873734046, 9968755908
कला- नदशन: वज एस वज
स य ास
201 , , 2, – 110091
: 9873734046, 9968755908
: .
: . .
: 2015
: 2015
: 2016
अगर तुम न होते…
( )
हर घटना के पीछे कोई कारण होता है। संभव है क यह घ टत होते व आपको न दखे;
ले कन अंततः जब यह सामने आएगा, आप स रह जाएँग।े
( ज़ग ज़ लर)
वषय – सूची
हम ह कमाल के
आग़ाज़
यार कोई खेल नह
ओये लक लक ओये
मंडी
मेरा नाम जोकर
लगान
कोहराम
सा जश
एक दन अचानक
हम ह कमाल के
ये भगवानदास है बाउ साहब। ‘भगवानदास हो टल’। समय क मार और अं ेजी के भार से,
जब काशी ह व व ालय समट कर . . . आ; ठ क उसी समय ‘भगवानदास हो टल’
समटकर . . हो टल हो गया। समय क मार ने इसके नेम म कटौती भले ही क हो; इसके
फेम म कटौती नह कर पाई। इसके 120 कमरे म 240 ‘बी.डी.जीवी’ आज भी सोए ह।
“ या!! बी.डी.जीवी कौन-सा श द है?”
“इसी लए कहते ह बाउ साहब क जरा इधर-उधर भी दे खा क जए! हो टल म घुसने से
पहले जो बरगद है ना; उस पर का प ढ़ए। जसपर लखा है-
“कृपया बु जीवी कहकर अपमान न कर। यहाँ बी.डी.जीवी रहते ह।”
“अब आप पूछगे क ये बी.डी.जीवी या बला है? म नंबर-73 म जाइए और जाकर
पू छए क भगवानदास कौन थे? जवाब मलेगा-‘घंटा!’ ये ह ‘जयवधन जी’। ले चर, घंटा।
ले चरर, घंटा। भगवान, घंटा। भगवानदास, घंटा। सबकुछ घंटे पर रखने के बावजूद, इतने नंबर
तो ले ही आते ह क पढ़ाकु और ोफेसर क आँख क कर करी बने रहते ह। गलत कहते ह
कहनेवाले क नया कसी शूल पर टक है। यह दरअसल, जयवधन शमा के ‘घंटे’ पर टक
है; और वो खुद अपनी कहावत पर टके ह। हर बहस क शु आत और अंत एक कहावत के
साथ कर सकते ह।
“आगे ब ढ़ए तो म नंबर-79 से धुआँ नकलता दखाई दे गा। अरे भाई, ड रए मत! आग
नह लगा है। भगवानदास के एकमा वदे शी छा ‘अनुराग डे’ फूँक रहे ह गे। अब ये ‘ वदे शी’
ऐसे ह क इनके पुरखे बाँ लादे शी थे; ले कन अब दो पु त से मुगलसराय म पेशेवर ह। अरे!
पेशेवर मतलब पेशेवर वक ल बाउ साहब! आप भी उ टा दमाग दौड़ाने लगते ह! खैर, एक बात
और जान ली जए क ये बंगाली होने के कारण पूरे भगवानदास के ‘दादा’ ह। कुछ जू नयस के
तो ‘दादा भइया’ भी ह। ससुर टोला भर का सब बात केटे म करते ह और केट के या
कहा जाता है… ह-
“अगर फलाना ोफेसर स चन के लो म पढ़ाता, तब बात बनती।”
“अरे! साला का ले चर है क गानर का बाउंसर है?”
“लड़क दे खी नह बे! साला लांस े मार लेती।”
पच- ह टग और हाड- ह टग के अंतर पर घंटा भर ले चर दे सकते ह। माक ेटबैच को
‘फादर ऑफ पच ह टग’ का खताब इ ह का दया आ है। डकवथ-लुईस मेथड का ‘द वची
कोड’ दे श भर म सफ अनुराग डे समझते ह। सन् 1987 व ड कप के सेमीफाइनल म जब
फ लप डे ट् स के सरे ही ओवर म सुनील गाव कर बो ड हो गए तो 6 साल के अनुराग डे
च लाने लगे- है! है! उनके पताजी को लगा क बेटा च ला रहा है- है, है।
काश! पताजी उस दन समझ गए होते! पताजी क नासमझी से मैच फ संग जैसा अपराध
फैल गया।
“अ छा, अ छा… आपको केट म इंटरे ट नह है! म तो है ना? तो म
नंबर-79 म ही अनुराग डे के म पाटनर ‘सूरज’ से म लए। हालाँ क, इनके या, इनके बाप के
नाम से भी पता नह चलता क वो ा ण ह; ले कन जानकार क कमी, कम-से-कम
भगवानदास म तो नह ही है। फौरन उनक सात पी ढ़य का पता चल गया और वो हो टल के
‘बाबा’ हो गए। फैक ट म ‘सूरज’ और दो त म ‘बाबा’। लड़ कय म वशेष च है बाबा क ।
. . के क पूरी खबर रखते ह। हर खुली खड़क पर द तक दे त े ह।
खड़ कय से झड़ कयाँ मलने पर उदास नह होते; गने जोश से अगली लीड क तलाश म
लग जाते ह। शरीफ लगने और दखने क को शश करते ह। और हाँ! नया का सबसे
साह सक काय करते ह… क वताएँ लखते ह।
“ल बाउ साहब….! आपको या लग रहा है क भगवानदास म पढ़ाई- लखाई साढ़े -बाईस
है? इसी लए तो कह रहे ह क पूरी बात सु नए।”
“ कस तरह से पढ़ना चाहते ह? रात भर म पढ़ के कल टरी करना है?
तो बे जी को खो जए। ‘राम ताप नारायण बे’। जतना लंबा इनका नाम, उतना ही लंबा
इनका चैनल। हर सेमे टर से पहले, पेपर आउट होने क प क वाली अफवाह फैलाते ह और
हर ए जाम के बाद अपने को दम पेल ग रयाते ह। म नंबर-85। हाँ! तो
रात भर म कल टरी करना है तो बे जी को धर ली जए। यादा खचा नह होगा; केवल रात
भर जागने के लए चाय पलाइए; मन हो तो दलीप क कान का ेड-पकोड़ा खला द जए।
बे जी ऐसा बूट दगे क बस जा के कॉपी पर उगल द जएगा; बस पास। गारंट ।”
“ या! कैसा बूट ?”
“अरे! वो उनका पेटट है। कहते ह क अगर दे श उनसे खरीद ले तो दे श का एजुकेशन
स टम सुधर जाय। फॉमुला वन नाम है उसका। फॉमुला वन मतलब – एक चै टर पढ़ो और
पाँच सवाल म वही लखो। और लॉ जक यह क सवाल तो कुछ भी पूछा जा सकता है; ले कन
इंसान लखेगा वही, जो उसने पढ़ा है। सो, बे जी एक सवाल तैयार करते ह और परी ा म
पाँच सवाल कर आते ह।
“ओहो! या? आपको खाली पास नह होना है; नॉलेज बटोरनी है? अरे! तो पहले बोलते!
झुट् ठो म एक कहानी सुन लए।”
जाइए, जाकर वाइन क जए ‘राजीव पांडे’ क लास। म नंबर-86 म चलती है उनक
लास। पढ़ा तो ऐसा दगे क ले चरर लोग उँगली चूसने लगगे। यूपीएससी के सब
ख म हो जाने पर इ ह ‘कैव य’ क ा त ई और पांडे जी लॉ करने आ गए। खूब पढ़ते ह और
उतना ही लखते ह। परी ा म अ सर इसी लए छू ट जाता है क उनको पता ही नह
लग पाता क कतना लख? इसी लए गलती से भी से उनका नंबर मत पू छएगा! ख सया
जाएँग।े परी ा हाल म इस ससुर को खैनी नह मलता है तो ल खए नह पाते ह।”
और अब, जब पूछ ही लए ह, तो सु नए ‘पढ़ाई’ के बारे म बी.डी. जी वय के वचार-
अनुराग उफ दादा-क नीया-हॉलड मैच (व क बबाद )
राजीव पांडे –
, ,
, , ; ,
. बाप रे बाप!!
जयवधन-घंटा!’
सूरज ‘बाबा’-‘ – .’
बे जी- स टम के लए नौकर पैदा करने वाली मशीनरी।
ान तो बखरा पड़ा है भगवानदास हो टल म। बस दे खने वाली आँख चा हए। आँख से
याद आया-
“ फ म दे खते ह बाउ साहेब?”
“ या? या कहे? आपके जैसा फ म का ान कम ही लोग को है?”
“अ छा तो बताइए क डॉली ठाकुर कस फ म म पहली बार आई थी?”
“ या? द तूर?”
“अरे, बाउ साहेब…! इसी लए ना कहते ह क डॉली ठाकुर और डॉली म हास म अंतर
सम झए और भगवानदास आया-जाया क जए।”
“कमरा नंबर-88 म नव जी से भट क जए। भंस लया का फ लम, हमारा यही भाई ए डट
कया था। जब ससुरा, इनका नाम नह दया तो भाई आ गए ‘लॉ’ पढ़ने क वक ल बन के केस
क ँ गा। दे श के हर जला म इनके एक मौसा जी रहते ह। डॉ टर मौसा। ॉ टर मौसा।
इले शयन मौसा। पॉ ल ट शयन मौसा। घोड़ा मौसा। गदहा मौसा। खैर, मौसा महा मय छोड़
द तो भी नव जी का मह व कम नह हो जाता। फ म का ान तो इतना है क पाक जा पर
कताब लख द। शोले पर तो नव जी डा टरेट ह ही। अ मताभ के ज स का नाप, ध का
बाप, बुलेट पर कंपनी का छाप और बसंती के घाघरा का माप तक; सब उनको मालूम है।
ग बरवा, सरईसा खैनी खाता था, वही पहली बार बताए थे। अ मताभ ब चन को याद नह होगा
क कतना फ म म उनका नाम ‘ वजय’ है। अ मताभ बोलगे 17, तो नव बोलगे, ‘नह सर,
18। आप ‘ नःश द’ को तो भूल ही गए। ‘गदर’ के एक सीन म सनी दे ओल के नाक पर म खी
बैठ तो नव जी घोषणा कर दए क फ म ऑ कर के लए जाएगी; य क आदमी को तो
कोई भी डायरे ट कर सकता है; ले कन म खी को डायरे ट करना…बाप रे बाप! या
डायरे शन है! ऐसे ानी ह नव जी।
“अ छा, तो कहानी म आ रहा है? पूरी कहानी सुननी है? तो बै ठए; थोड़ा टाइम
लगेगा। पे सी और च स मँगवा ली जए।”
अब आपसे या छु पाना बाऊ साहब, जब कहानी सुनानी ही है तो कहानी शु करने से
पहले बता ँ क इस कहानी का सू धार म ँ। म यानी सूरज। अरे वही!
. कसी से क हएगा मत! कसम से, अपना समझ के बता रहे ह आपको।
कहानी उन दन शु होती है जब तेरह टाँग वाली सरकार जा चुक थी। सुनामी ने कहर
दखा दया था और दे श क आ थक राजधानी मुंबई बम व फोट के बीच जीना सीख रही थी।
ले कन यह कहानी तो दे श के सां कृ तक राजधानी क है। बनारस। और बनारस क भी
या है साहब! यह तो भगवानदास हो टल क कहानी है; जो बनारस के दय बी एच यू का
छ ीसवाँ हो टल है। वक ल का हो टल।
हाँ! तो भगवानदास हो टल जाने के लए आपको बनारस चलना होगा। अरे, वह है ना सव
व ा राजधानी। बनारस ह यु नव सट ; जसे आप बी.एच.यू. भी कहते ह। आइए चल-
आग़ाज़
***
***
ले चर, ह ते म 6 दन, सुबह दस बजे से शु होकर शाम के 5 बजे तक चलते थे। ट चस,
टु डट् स से यादा समय के पाबंद थे। पाँच महीने म ही सलेबस ख म करने का दबाव हम पर
कम, ोफेसर पर यादा था। इस लए कोई भी लास खाली नह जाती थी।
“ … ,
, .”
पारस द वान क कताब पलटते ए ोफेसर अभय कुमार बोले।
(पारस द वान और अभय कुमार का था। बना पारस द वान क
कताब के अभय कुमार कह पाए नह जाते थे और अभय कुमार से पहले पारस द वान को
कोई जानता नह था। अभय कुमार का संबंध ‘ ’ से भी था। बना ‘ ’ के वो कोई
लाइन पूरी नह करते थे।)
“ … ‘ ’.
, ? अभय कुमार ने पूरी लास
के सामने सवाल रखा और नजर से जवाब ढूँ ढ़ने लगे।”
“उनक आँख म दे खते रहो; हमसे नह पूछगे।” मने धीरे से दादा से कहा।
“अबे, आँख म दे खगे तो ज र पूछ दगे।” दादा ने भी धीरे से कहा। “आँख चुराओगे तब
पकड़ लगे। .” मने फुसफुसाते ए कहा।
“ यूँ भई? , ?”
अभय कुमार ने शकार ढूँ ढ़ लया था।
मने पहले अपनी शट दे खी, फर दादा क और राहत क साँस ली। हमदोन क शट नीली
नह थी।
“हम नह जानई छ ।” पीछे से आवाज आई।
सब पीछे मुड़कर दे खने लगे। हँसने क ह मत अभय कुमार के लास म तो कम-से-कम
कसी क नह थी।
“ ?” अभय कुमार च लाए।
“सब हमी बतैब, त अहाँ क करब?” फर जवाब उसी ठस से आया।
अबक बार हँसी को बाँध पाना अभय कुमार के बूत े के बाहर था। पूरा लास हँस रहा था
और अभय कुमार भी।
“ यूँ भई… ?” उ ह ने पूछा।
“रोशन चौधरी।” नाम बताते व , नाम पर दबाव ऐसा था मानो नाम के आगे कसी
रजवाड़े का टै ग हो।
अभय कुमार उसे दे खने के अलावा कुछ नह कर पाए। रोशन को लास म से बाहर जाने
को कह आगे पढ़ाना शु कर दया।
***
***
सोमवार क पहली लास का छू टना एक नयम जैसा था। र ववार को दे र रात तक लंका पे
हर ह ते का नयम था। लंका यानी बी.एच.यू. का कनॉट लेस। बी.एच.यू. के
श दकोश म इसे ‘लंके टग’ भी कहते ह। रात भर लंके टग के बाद अ सर कसी-न- कसी क
10 बजे वाली लास छू ट ही जाती थी; ले कन अ छ बात ये थी क हम तीन म से कोई-न-
कोई लास म मौजूद रहता; जससे क मारी जा सके। आज का दन भी सोमवार था
और आज सोने क बारी दादा क थी। दे र से आने वाले सीधे कट न चले जाते और हम लास
के बाद उससे वह मलते। सो, आज कट न म दादा बैठा था।
“ या आ भाई? एम. पी. सह कोई जोक सुना दए या? पेट पकड़ के हँसते ए आ रहे
हो।” दादा ने कट न के बच पर पैर रखते ए पूछा।
“नह गु ! सीन उसके पहले ही हो गया है।” जयवधन ने खाँसते ए कहा।
“ आ या? और तेरा मुँह य लटका है बे?” दादा ने मुझसे पूछा।
“हमसे पूछो ना! हम बताते ह। आ ये क साहब आज ना ता नह कर पाए थे। म-रोल
खाते ए फैक ट म घुस रहे थे। लास करने का ज द था और एम. पी. सह लास म घुस
गए थे। सफाईवाला प छा लगाया था। ज दबाजी म ऐसा फसले क म-रोल मुँह म और पैर
‘ ’ म।” जयवधन ने हँसते और खाँसते ए कहा।
“ओह! चोट तो नह लगा? दो लेट समोसा और तीन चाय।” दादा ने ऑडर दे ते ए पूछा।
“सुनो बेटा! अभी सीन खतम नह आ है!” जयवधन ने कहा- “अभी साहब गरे ही थे क
से एक लड़क हँस द । साहब को गरने का इतना ख नह है जतना लड़क के
हँसने का।” जयवधन एक साथ खाँस और हँस रहा था।
“कौन थी बे?” दादा ने पूछा।
“नाम-गाँव कौन जाने? ले कन गंगा हो टल म म नंबर-7 म रहती है।” मने धीरे से कहा।
“इसी पर तो हँसी आ रहा है। नाम का ठे कान नह ,
नकलवाया है। वो भी कससे? तो बे से। आ हर गु ब हर चेला, माँगे गुड़ तो दे दे ढे ला!”
जयवधन क हँसी नह क रही थी।
“कोई बात नह राजा! चोट तो नह लगा ना? समोसा खाओ।” दादा ने समोसा खाते ए
कहा।
“हमको गरने का ख नह है; ले कन जब गरे तो मरोल पूरा मुँह म चला गया।
बेइ जती हो गया बे!” मने समोसा उठाते ए कहा।
“पूर े का पूरा! मतलब-पांच इंच! म त सीन होगा भाई! साला… हम मस कर दए।” दादा
अब हँसी नह रोक पाया।
“इसी लए कहते ह, कभी-कभी लास कर लया करो।” जयवधन ने उठते ए कहा। अभी
हम दोन भी उठने को ही थे क कसी को कट न म घुसते दे खकर म च क गया-
“लो बेटा! यही तो थी!” मने कट न गेट क तरफ दे खते ए कहा।
“पूरा तो घुस गया कट न म। इसम से कौन है?” दादा ने पूछा।
“अरे, वो जो नव जी से बात कर रही है ना! वही। नव जी से या बात कर रही है बे?”
मने धीरे से कहा।
“वीर-जारा का टोरी सुन रही है नव जी से! चुप नह रह सकता है दो मनट?” दादा ने
गु से से कहा।
“दे खो! दे खो! फर हँस के चली गई। साला इ जत चला गया यार!” मने जयवधन से कहा।
“चल तो जरा नव जी से बात कया जाए।” दादा ने कुस से उठते ए कहा।
“नव जी, या हालचाल?” जयवधन ने र से ही च लाकर कहा।
“ठ क-ठाक है। थोड़ा ज द म ह, बाद म बात करते ह।” नव जी खसकना चाह रहे थे।
“अरे, कए! हमलोग को दे खके ज द म हो गए और बा लका से तो बड़ा फुसत म ब तया
रहे थे।” दादा ने रोका।
“कौन बा लका?” नव जी हड़बड़ा गए।
“वही, जससे बात कर रहे थे अभी।” जयवधन का अंदाज त ख था।
“अरे, वो… शखा। हाँ…. वो पांडे सर के नोट् स के लए कह रही थी। पांडे सर
म नह पढ़ाते ह ना, इस लए।” नव सफाई दे न े के मूड म थे।
“आप ही बड़के पढ़ाक ए ह! हमलोग नह पढ़ते ह या?” दादा सफाई लेन े के मूड म नह
था।
“ले कन हम लास तो करते ह। आपलोग भी लास क जए। आज ही पांडे सर पूछ रहे थे
क अनुराग डे क तबीयत खराब है या? पूरे महीने म बस चार दन ही आया है।” नव जी ने
कट न से नकलते ए कहा।
“साले बबवा, पूर े महीने म मेरा बस चार ॉ सी मारे हो? और भोसड़ी के… हम तु हारे
भरोसे हो टल म सोते रहे!” दादा ने गयर चज कर लया था।
“और वो भी चार ये नह मारा है; उसम से दो तो हम मारे ह।” जयवधन ने आग म घी
डाला।
“अरे, पांडे सर क लास म मु कल है भाई। चौकस रहते ह। आज ॉ सी मारने ही वाले
थे क दन खराब हो गया, लड़क हँस द ।” मने कहा।
“भाँड़ म गई लड़क ! साले अबक अटे डस के लए मे डकल स ट फकेट लगाना पड़
जाएगा हमको। और उसका जुगाड़ तुम ही करेगा… समझे?” दादा ने मुझसे कहा।
“कर दगे भाई, और फ मत करो अभी समय है। ॉ सी मैनेज कर दगे। चलो, लंका
चलो। मगो शेक पलाओ। आज का दन ही ठ क नह है। पहले गर गए, फर लड़क हँस द
और अब नव जी भी ताना मार के चले गए। एक काम ले कन ठ क आ। उसका नाम तो पता
चला, शखा।” मने बाइक क पछली सीट पर बैठते ए कहा।
***
***
मॉडन पेन कंपनी। बी.एच.यू. गेट से बाहर नकलने पर हे रटे ज क ओर पहले लोर पर थी-
मॉडन पेन कंपनी। बी.एच.यू. के टू डट् स के मतलब क सारी टे शनरी इस एक कान म मल
जाती थी। इसी कारण इस कान पर अ सर टू डट् स क भीड़ लगी रहती थी; मगर आज
कान म कोई नह था।
“का व पन, आजकल बाजार धीमा हौ का?” दादा ने कान म काम करने वाले लड़के से
पूछा।
“ पहर म कान पर के आई भइया?” व पन ने कहा।
“ऐसा करो… ीन कलर का दो हाईलाइटर, दो केल और 30 ला टक फो डर…”
मने अभी बात पूरी भी नह क थी क एक गुनगुनाती आवाज ने मेरी बात बीच म ही काट
द-
“भइया, ीन कलर का हाईलाइटर होगा या?” उसने कहा जो अपनी दो त के साथ अभी-
अभी इस कान म आई थी।
“अबे, ये तो वही है! शखा! वाली।” मने धीरे से दादा के कान म कहा।
“हाँ, दे ख रहे ह! आँख दया है भोलेनाथ हमको भी!” दादा पैस े जोड़ रहा था।
कानवाले को भी बनारसी अंदाज से यादा, मीठ गुनगुनाती आवाज से लगाव था; सो
उसने एक हाईलाइटर उधर भी बढ़ा दया। दादा ने जब यह दे खा तो भड़क गया-
“एक हाईलाइटर काहे दया बे? दो माँगे थे ना?”
“भइया, ए ठो है; इस लए एक आपको दे दए, एक उनको।” व पन म मयाने लगा।
“काहे, उधर काहे दे दए। हम पैसा नह दे रहे थे या?” दादा उलझ रहा था।
“जाने दो ना भाई।” मने दादा को समझाया।
“जाने द। यूँ जाने द। या जाने द? हम आए। ऑडर दए। पैसा दे रहे ह और अब बोल
रहा है क मैच टाई कर दगे!” दादा लड़ने के मूड म था।
“हम लोग एक से ही काम चला लगे। .” मने एक हाईलाइटर शखा क
ओर बढ़ाते ए कहा।
“एक हाईलाइटर के लए इतना हंगामा करने क कोई ज रत नह है। दोन इनको ही दे
द जए।” शखा ने मुझ े अनदे खा करते ए कानदार से कहा।
“हंगामा, कौन कर रहा है हंगामा? और अभी हँगामा दे खी कहाँ हो तुम?” दादा बाँह चढ़ा
रहा था।
“ भाई। ?” मने दादा से कहा।
“ .” चढ़ ई एक आवाज आई और शखा अपनी दो त के साथ सी ढ़य से नीचे
उतर गई।
“ओए.. कसको बोला?” दादा च लाया।
“हमको बोली दादा। हमको बोली . .यही तो बोली है। तुम
शांत हो जाओ।” मने दादा को हँसाने और उसका मूड ठ क करने क को शश क ।
“अ छा। ले कन वो तो बोली?” दादा को हँसी आ गई।
“हाँ वही तो… . .” मने दादा के हाथ पर ताली
दे त े ए कहा।
“और बुजरौ के, लड़क दे खते ही अं ेजी बोलने लगते हो? … आँय?”
दादा ने नीचे उतरते ही सगरेट सुलगा ली।
***
***
‘द तर।’ ताप होटल और बनारस बगर सटर के ठ क बीच म, या य कह क गोपाल मगो शेक
के सामने क जगह। बरला हो टल के नेता का ठकाना। परी ा हो या फ म समी ा, बे टग
हो या से टग। केट हो या कब ी। यहाँ बहस हमेशा शाम 4 बजे से शु होकर भोर 4 बजे
तक जारी रहती है। राजनी त तो बहरहाल सदाबहार मुद द् ा है ही। बड़े-से-बड़ा झगड़ा हो या
छोटे -से-छोटा लफड़ा। हर मसला यहाँ या तो मगो शेक क लास से ही सुलझा लया जाता है या
फर कट् टे क लास से।
“नेता जी, या मजमा लगा है द तर म?” मने द तर पँ चते ही वनीत से पूछा।
“वही पुराना; टु डट् स यू नयन का गाना।” आज टु डट् स यू नयन का डमांड लेके वाइस
चांसलर से मले थे। वी. सी. साहब बोले तो ह क डमांड श ा मं ालय को भेजगे। दे खो,
लगता है कुछ अ छा होगा अबक बार।” वनीत ने मगो शेक पीते ए कहा।
“अरे, काहे मुद म जान डालने का को शश कर रहे ह?
. आप लोग बेमतलब लाश लए घूम रहे ह दरवाजे-दरवाजे।” दादा ने कहा।
“ . . . यार, साथ नह
दे सकते हो तो मत दो; पर ताना तो मत दो! फ मत करो; हम इसे कोमा से बाहर लाएँगे। तब
दे खना क छा -श का या मह व है! तब तक हम लड़गे साथी!” वनीत ने ‘पाश’ क
क वता हराते ए कहा।
“च लए, आप अपना काम जारी र खए और ये बताइए क हमारा काम आ क नह ?”
मने मोबाइल नंबर के बारे म पूछा।
“अरे, वो भी कोई काम था! लो.. नंबर नोट करो।” ये कहते ए वनीत ने अपने हाथ पर
लखा नंबर लखवाना शु कया।
“बड़ी आसानी से मल गया गु ! कौन जुगाड़ लगाए?” दादा ने पूछा।
“उधर यामाहा पर बैठे उस लड़के को दे ख रहे हो? अरे, ीन ट शट म!” वनीत ने कहा।
“हाँ हाँ…! वो तो का लड़का है! अं कत नाम है। उसक गल ड भी क है। दन भर
बाइक पे घूमता रहता है साला।” मने कहा।
“ब त सही! खबर तो तुम भी रखते हो गु ! हाँ। अं कत नाम है उसका। एक दन रैली के
लए सबसे बाइक जुगाड़ा जा रहा था। हो टल म गए तो यही एक लड़का था जो बाइक नह
दया। कहा क शाम म फ म दे खने जाना है मु ा भाई . बस फर या था; अगला दन
द तर म हा जरी लगा। पूछे क म पढ़ते हो तो काहे दे ख रहे हो? तो लगा रोने।
कहता है क गलती हो गया। अब से जब गाड़ी चा हए होगा, बस बोल द जएगा। पे ोल भरवा
के दगे।” वनीत ने उँगली क अँगठू घुमाते ए कहा।
“सही है! ले कन नंबर कैसे मला?” मने पूछा।
“अरे, ये जतना सीधा है ना, इसक गल ड उतनी शा तर है। गंगा हो टल म ही रहती है।
पहले भी दो-तीन नंबर नकलवाए ह। अब जैसे सोनाली का नंबर चा हए था, तो वो सोनाली के
म म गई। थोड़ा-ब त इधर-उधर क बात क । जान-पहचान बढ़ाई और जानबूझ के अपना
मोबाइल उसके म म छोड़ के बाहर नकल गई। फर थोड़ी दे र बात परेशान-परेशान आई और
कही क सोनाली मेरा मोबाइल कह छू ट गया है। जरा अपने नंबर से एक बार कॉल करो ना!
दे खो, रग जा रहा है या। जैसे ही रग गया तो बोली क दे खो तो! हम भी कतने बेवकूफ ह।
फोन यह छोड़ के नया भर म खोज रहे ह। इस तरह सोनाली का मोबाइल नंबर भी उसके
फोन म आ गया और उसको शक भी नह आ।” वनीत ने लगभग एक साँस म कहा।
“बाप रे! ां तकारी म हला है ये तो! जसके घर जाएगी, वग बना दे गी। सही म शा तर है
भाई!” दादा ने कहा।
“ले कन भाई! तुम नंबर हाथ पर य लखे थे? मोबाइल म भी तो लख सकते थे?” मने
कहा।
“नह मा लक! लड़क का नंबर है। मोबाइल म रह गया तो द कत हो जाएगा। तुम तो
जानते हो, हमारा मोबाइल तो बूथ है। जसका मन करता है, वही लगा दे ता है। जयवधन बाजी
लगा लया था और भगवानदास हो टल के इ जत क बात थी, बस इसी लए नंबर नकलवाए।
अब तुम जानो और तु हारा काम। बस ये याद रखना क सबके घर म बहन है।” वनीत ने
समझाते ए कहा।
“अरे नह नेताजी! बस जयवधन को नंबर दगे और 1000 पया लगे।” दादा ने कहा।
“चलो भाई, अब नकलते ह; गाकुंड पर जुलूस है। दे र हो जाएगा।” वनीत ने बुलेट टाट
क और नकल गया।
“ यो बेटा! एक हजार का चेक।” मने दादा से कहा।
“पहले चेक भी कर लो क नंबर सही है क नेता गेम खेल गया?” दादा ने कहा।
“हाँ, चल फोन लगाते ह।” मने मोबाइल से नंबर लगाते ए कहा।
“अबे पगलोल है या। मोबाइल से लगाएगा। साला, नंबर आ जाएगा उसके मोबाइल म
और ॉ टर को दे द तो?” दादा ने डरते ए कहा।
“हाँ भाई! ठ क बोला, चल टे लीफोन बूथ से लगाते ह।” मने कहा। मोबाइल पॉकेट म
रखकर हम पास ही टे लीफोन बूथ प ँच।े प ँचकर मने उस नंबर पर फोन कया।
“लगा?” दादा ने कान लगाते ए पूछा।
“ रग जा रहा है! रग जा रहा है!” मने कहा।
“अबे, रख य दया?” दादा ने कहा।
“लड़क उठाई थी बे!” मने लगभग काँपते ए कहा।
“मतलब नेता ठ क नंबर दया है।” दादा ने कहा।
“चल बेटा। जयवधन से 1000 पया लया जाय।” मने कहा।
***
***
दरअसल, दादा का सोचना सही था। म काफ दन से शखा से बात करना चाह रहा था। एक
तो उसका से शन भी सरा था। सरे मुझे कोई माकूल मौका नह मल रहा था। या तो वो,
अपनी दो त से घरी होती या फर म अपने दो त म मशगूल होता। और फर मॉडन पेन कंपनी
वाली घटना ने मेरे हौसले पर भी असर कया था। ब त मुम कन था क वो उस घटना के बाद
मुझसे बात करना न चाहे; इस लए मने उससे अकेले म ही बात करना मुना सब समझा। यह
मौका मुझ े परी ा के दौरान मल ही गया। शखा ने अपनी थोड़ा पहले ही
जमा कर दया था और म भी शीट जमाकर बाहर ही टहल रहा था, जब मने शखा को दे खा।
“ शखा!” मने फैक ट गेट के बाहर आकर कहा।
“ ?” वही गुनगुनाती आवाज आई।
“ . .” मने अपने बारे म बताना शु कया।
“ , . .” उसने
क- क के कहा।
“ ?” बात शु करने का इससे अ छा बहाना नह हो सकता था।
“ ?” उसने पूछा।
“ . काब लक मोक बॉल वाले केस ने काफ टाइम ले लया; इस लए एक
छू ट गया।”
“अ छा? ले कन से तो कुछ पूछा ही नह था?” शखा कुछ
सोचते ए बोली।
“नह , नह । मने उसे म लखा था।” मने हड़बड़ाते ए
जवाब दया। अब म उसे कैसे बताता क बे के फॉमुला वन के हसाब से, सवाल कुछ भी
आए, जवाब वही लखते ह जो आपको याद हो।
“ म। .” उसने कुछ सोचते ए कहा।
“अ छा, यार एक बात और थी!” मने हचकते ए कहा।
“हाँ, बोलो।” शखा अपना बैग ठ क करते ए बोली।
“तु हारी लासमेट है ना सोनाली! उसे लगता है क म उसे करता ।ँ ”
“हाँ, उसे आते तो ह।” शखा ने मेरी तरफ अजीब तरह से दे खा।
“मगर वो म नह करता।” मने ज दबाजी म कहा।
“एक मनट। अगर तुम कॉल नह करते तो तु ह कैसे पता क सोनाली को कॉ स आते ह।”
शखा ने अचानक ही कहा। म अपनी ही बात म फँस गया था।
“ से पता चला।” मने जैसे-तैसे बात संभाली।
“उसने तो कसी को नह बताया। म बस इस लए जानती ँ य क वो मेरी ममेट ह।
इसका मतलब कॉ स या तो तुम करते हो या फर हो टल के तु हारे
.” शखा ने मुझे फर अपने ही बात म घेरा।
“यार, बात-बात म हो टल को घसीटना गलत है। हो टल का कोई नह है। हाँ, फोन करने
वाले को म जानता ज र ँ; ले कन वो हो टल का नह है। म बस ये चाहता ँ क कसी को
कोई गलतफहमी न हो।” मने हो टल क शाख बचाने क को शश क ।
“ ’ . . इस लए गलतफहमी नह होगी; बाक म
तु हारी बात सोनाली तक प चा ँ गी।” शखा ने कहा।
“ .” मने कहा।
“एक बात बताओ, तुम ये बात सोनाली से भी तो कह सकते थे। फर मुझसे यू?
ँ ” शखा
ने फर अचानक ही पूछ दया।
“इस लए क गलतफहमी न हो।” मने कहा।
“गलतफहमी! कसे?” शखा क आवाज क परेशानी साफ थी।
“तु ह।” मने कहा।
“मुझे! मुझे गलतफहमी यू ँ होगी?” वह अब सचमुच परेशान हो रही थी।
“ .” मने बना लाग-लपेट कहा।
“ ?” वह इसके लए तैयार नह थी।
“ .” म तैयार था।
“ ! ?” उसने ‘ ’ को थोड़ा ख चते ए कहा।
“अभी तो थोड़ी दे र पहले कहा क तुम मुझ े जानती हो! अभी दे खो, बदल मत जाना।” मने
कहा।
“शाद करोगे?” उसने कहा।
“ ?” म इसके लए तैयार नह था।
“तुम जैस े लफंग को म अ छ तरह जानती ँ। एक तरफ रात भर करते हो।
सरी तरफ शराफत का लोक पहन लेते हो। चलते नजर आओ, नह तो, डीन का चबर यह
दा हनी तरफ है।” वह इसके लए तैयार थी।
***
***
शाम गहराने लगी थी। बजली भी चली गई थी। अब नीचे चलने म ही भलाई थी। गाली-गलौच
का सारण कसी भी समय शु हो सकता था। बजली जाने के बाद अ सर आमने-सामने के
हो टल म यह र म दशक से नभाई जा रही थी। लड़क के पास सरा काम न होने के कारण
मन बहलाव का यह तरीका, यहाँ सामा य था। हम अब नीचे उतरने ही वाले थे क एक आवाज
आ ही गई-
“भगवानदास के बु ो! कब तक पढ़ोगे?”
यह आवाज गुटू हो टल क तरफ से आई थी। गा लय का दौर शु होने वाला था।
“बाप से हो शयारी करते हो बेटा? म मी ने यही सखाया है?” जयवधन ने च लाकर
जवाब दया।
“हाँ प पा! म मी पूछ रही ह क कब तक पढ़गे? अब कुछ काम-धंधा भी क जए।”
आवाज फर गुटू से आई।
“बेटा अ मत, काम-धंधा का ही तो नतीजा है क तुम आ गए। चलो, अब कह रहे हो तो
आते ह। फर से दगे तु हारी म मी को।” जयवधन ने कहा और हम दोन नीचे उतरने
लगे।
“ये अ मत कौन है भाई? जानते हो या?” मने नीचे उतरते व पूछा।
“कौन जाने! इतना है। कसी-न- कसी का तो होगा। भीड़ म प थर
चलाकर मार दो कसी-न- कसी अ मत या संतोष या रा ल को लग ही जाएगा। अभी दे खना
सब चुप हो जाएगा।” जयवधन ने कहा
“तेरा टोटका तो काम कर गया बे! सचमुच सब चुप हो गए। ले कन यार, ये रोशन को या
ॉ लम है?” मने खुद से ही सवाल कया।
***
ोजे ट और ेजटे शन के बहाने ही सही, ले कन अब मेरी बात शखा से होने लगी थी। अब
कम-से -कम के लए हम कसी क जी जूरी नह करनी थी। शखा जो
ोजे ट से शन म जमा करती, वही ोजे ट हम तीन से शन के लए जमा कर दे त।े इस
तरह शखा का आना हम तीन के लए मनमाँगी मुराद के पूरा होने जैसा था। अ सर कट न म
म अपने दो त को छोड़कर शखा के पास जा बैठता और मेर े दोन दो त भी इसका बुरा नह
मानते। आ खर ोजे ट और का सवाल जो था। हाँ, एक बात ज र थी क
शखा मॉडन पेन कंपनी वाले झगड़े के बाद दादा से बात नह करती थी और इसी कारण उसने
जयवधन से भी कभी बात नह क । ले कन कभी मुझे उनसे दो ती के लए मना भी नह कया।
वो अ सर मॉडन पेन कंपनी वाली बात से नाराज हो जाती; इस लए म भी उस बात को छे ड़ता
नह था।
आज क बाइंड लास थी और बद क मती से आज लास म हम तीन म से कोई भी नह
था। हम तीन लास के बाहर खड़े थे।
“ लास ख म हो गया है। ीवा तव सर लेन े वाले ह। जैस े ही रोल नंबर 10
पर प ँचगे, चुपचाप पैर दबाकर घुसना है।” मने लास म के बाहर से दरवाजे के कोने से
झाँकते ए कहा।
“सुन ना, केवल तुम घुस जाओ और तीन का मार दे ना।” दादा ने आइ डया दया।
“हाँ भोसड़ी के! पछली लास म अपना नाम अनुराग बताए थे। उनको शक हो गया है।”
मने कहा।
“दे खो, शु हो गया है। है, शखा भी है राजा! ब त
टु डट् स ह; शक नह होगा। ज द घुसो।” यह कहते ए दादा ने मुझ े भीतर धकेल दया। मने
जैसे-तैसे सबसे पछले बच पर बैठते ए पर यान दे ना शु कया।
“रोल नंबर – 27.”
“यस सर।” मने कहा।
“रोल नंबर – 29.”
“ ेजट सर।” मने थोड़ी हड़बड़ाहट म कहा।
“आपका नाम?” ीवा तव सर ने सर उठाते ए कहा।
“जयवधन शमा।” मने कहा।
“ ’ ?” ीवा तव सर को शक हो गया था।
“जी?” मने कहा।
“ ’ तो जानते होगे? या सोचा कभी ज रत नह पड़ेगी?” सर ने मु कुराते
ए कहा। पूरा लास हँस दया और म बस खड़ा था।
“ ?” सर ने पूछा।
“सूरज।” मने सर झुकाए ए ही जवाब दया।
“कल तो आपने अनुराग बताया था! लास के बाद आप, जयवधन और अनुराग मुझसे मेरे
चबर म आकर मल।” सर ने कहा।
“ओके सर। पर आज तो कर द जए।” मने र वे ट क ।
“रोल नंबर 30.” ीवा तव सर जवाब दए बना आगे बढ़ गए।
लास ख म हो गई थी। बेइ जती भी कुछ यादा ही हो गई थी। वो भी
म। पूरी लास जब बाहर नकल गई तब भी शखा अपनी जगह बैठ रही। मुझ े एहसास
हो गया था क मामला अब सफाई दे ने का नह रह गया; इस लए धीरे से म उसक तरफ बढ़ा।
मेर े आने क आहट सुनकर वो अपनी सीट से उठने लगी।
“सुनो। .” मने सीधे ह थयार डालते ए कहा।
“तु ह लास नह करनी है तो मत करो, मगर पूरी लास क का
य लेत े हो?” शखा ने बफरते ए कहा।
“अरे, वो लोग भी तो मेरा बना दे त े ह।” मने कहा।
“ ’ . मतलब एहसान चुकाया जा रहा है। ब ढ़या है। एक एहसान हम पर भी
कर दो। कम-से-कम म मत करो।” शखा आज भड़क ई थी।
“ . . चाय पयोगी?” मने उसे शांत करने क को शश क ।
“ . , .” उसने कहा और अकेली कट न क ओर
चली गई। म लास म अकेला रह गया। अभी म कुछ सोच पाता, तब तक पछले दरवाजे से
दादा और जयवधन दा खल ए।
“साले, बनाने भी नह आता है। फँसा दए ना?” दादा ने कहा।
“ दमाग का बला कार मत करो। अभी वैस े ही मूड खराब है।” मने दादा से कहा।
“साले, पछले तीन लास म हम तेरा मारे तब तो कुछ नह आ। जगर होना
चा हए।” जयवधन ने आते ही कहा।
“तो, तु ह लोग के काम से गए थे। पूरा दन बे के साथ नकल गया। शु मनाओ बे
का! एक डॉ टर को जानता है। मे डकल स ट फकेट बनवा दया। अब ए जाम दे पाओगे।”
मने एक साँस म कहा।
“भोलेनाथ! तुम तो राजा ह तानी हो दो त।” दादा जोर से च लाया।
“ व नाथ मं दर चलो। इसी बात पे शेक पलाते ह।” जयवधन ने कहा।
“नह , तुम लोग जाओ; हम जरा लंका जाएँगे। उसका मूड खराब हो गया है। थोड़ा टाइम
दे ना पड़ेगा।” मने शखा क बात करते ए कहा।
“हाँ.. हाँ… जाओ बाबा। मूड ठ क करो। नह तो, अभी पाँच ोजे ट बाक है। बाक का
पाँच तो उसी का छापे ह। तुम जाओ बाबा और हमारा भी कह दे ना और ीवा तव सर
क चता मत करना। वो भी लाला, हम भी लाला। गोट सेट कर दगे।” दादा ने हँसते ए कहा
और जयवधन के साथ बाइक पर बैठकर नकल गया।
***
***
ओये लक लक ओये
***
***
“ या आ बे? ह ला कस बात का हो रहा था?” दादा ने हो टल प ँचकर जयवधन से
पूछा।
“अरे साला! बाबा फोन कया और बोला क वजय दर को मारो। तो हम मार दए। फर
बोल रहा है क ग रयाओ और मारो। जब ल तयाने लगे तो सब लोग मुरली सर को बुला लया।
अब मुरली सर पूछ रहे ह क य मारने ह? हम या जवाब दे ? हम सोचे क फोन करके पूछ
लेत े ह क य मारने ह, तो बाबा का फोन बजी हो गया था। हम मुरली सर को या बताएँ?”
जयवधन ने एक साँस म कहा।
“बाबा कुछ बड़ा सोचा है। चलो म म चलते ह।” दादा ने हँसते ए कहा।
“घंटा बड़ा सोचा है? अचानके बोलता है क वजय दर को मार दो। बेचारा हाथ झुलाते
ए, दे वानंद बने आ रहा था। छतरा गया। फर बोलता है और मारो! गरा आ आदमी को कैसे
मारे? फर भी मारे। पूछने ही वाले थे क अब या कर तो फोने काट दया!” जयवधन, वजय
दर के लए खी था।
“तुमसे यह करवा के बबवा, मुरली सर को इधर बुलवा लया ता क हम फाइल कॉपी कर
सक।” दादा ने अपनी अ ल लगाई।
“अ छा! कुछ मला या?” जयवधन अब वजय दर का ख भूल चुका था।
“कॉपी तो कए ह; अब उसके फोन का इंतजार करते ह।” दादा ने कहा।
“तो चलो, खाना तो खा लया जाए। आज मेस म छोला-भटू रा बना है।” जयवधन ने उठते
ए कहा।
“यहाँ पे वक ल नह , घोड़ा बनाने का ै टस कराते ह। इतना चना तो बस घोड़ा खाता है।”
दादा ने कहा। और दोन मेस म जाने के लए उठ गए।
“अ छा, मेस म वजय दर मल गए तो या करोगे?” दादा ने चुटक ली।
“माफ माँग लगे भाई।” जयवधन ने दादा के कंधे पे गदन रखते ए कहा।
इधर, म भी इंटर ू दे कर अपने होटल म आ गया था। शाम को थकान क वजह से न द आ
गई। रात को जब न द खुली, तो दे खा क रात के दस बज रहे ह। शखा ने मुझसे कहा था क
इंटर ू के फौरन बाद फोन करना। पर इंटर ू के ेशर म म यह बात भूल गया था। म ज द से
उसका नंबर मलाने लगा; ले कन इससे पहले क म शखा का नंबर मला पाता, दादा का फोन
आ गया।
“इंटर ू कैसा आ भाई?” दादा ने जवाब जानते ए भी पूछा।
“ठ क ठाक। सरदार जी का बोड था; असरदार नह रहा।” मने हँसते ए कहा।
“कोई बात नह ; हो जाएगा। तुम आ कब रहा है?” दादा ने पूछा।
“कल आ जाएँगे।” मने बैग ठ क करते ए कहा।
“पेन ाइव का या कर?” दादा उतावला हो रहा था।
“कल आते ह ना, फर खोलगे।” मने कहा।
“कल तक स कससे होगा? सबेर े से स कए- कए पेट फूल गया है।” और मुरली सर
बोले ह क रोशनवा का पेन ाइव लौटाना भी है। जयवधन बोला।
“तुम लोग साले, फोन पीकर पर कए हो? ज द पीकर बंद करो! हमारा म तो वैसे ही
कोठा है। कोई भी गजरा खरीद के घुस जाता है।” मने कहा।
“लो! पीकर बंद कर दए। अब बताओ।” जयवधन बेस हो रहा था।
“पेन ाइव को लैपटॉप के पोट म डालो।” मने कहा।
“आँय! कसको, कहाँ डालो?” जयवधन अचं भत था।
“तुम साले, फोन ददवा को दो!” मने झुँझलाते ए कहा।
“हाँ हाँ, लो दादा! तुम समझो रॉकेट साइंस। खग ही जाने खग क भाषा।” जयवधन ने
फोन दादा को दे दया।
“पेन ाइव को पोट म डाल के पेन ाइव खोलो।” मने फर से हराया।
“खुला। अब?” दादा ने पूछा।
“सबसे पहले या ालु वाला फाइल पे ही डबल लक करो।” मने बताया।
“ कया।” दादा ने कहा।
“ या आ?” अब बेस होने क बारी मेरी थी।
“नह खुला।” दादा ने धीरे से कहा।
“अबे, डबल लक करो।” मने कहा।
“सुनो, फाइल खोलना तो कम-से-कम मत सखाओ! जान गए ह क ब त ानी हो।” दादा
ने गु साते ए कहा।
“माफ मा लक! मगर खुल य नह रहा है? कुछ लखके आ रहा है या?” मने फर
पूछा।
“हाँ। लखके आ रहा है क .” दादा ने कहा।
“ यार!” मेरे मुँह से और कुछ नह नकला।
“ या आ बाबा? फकफकाने काहे लगा? कोई बड़ा परेशानी है या?” दादा ने पूछा।
“मुरली सर हमारी सोच से यादा कं यूटर अवेयर ह। फाइल म पासवड लगा दए ह।” मने
कहा।
“अब या होगा?” दादा ने पूछा।
“एक बात तय है क तो इसी फाइल म ह।” मने कहा।
“ फर? कुछ तो करना होगा। इतने नजद क आकर हार तो नह सकते!” दादा क आवाज
म हताशा थी।
“खचा करना होगा।” मने कहा।
“खचा? कतना? “दादा ने पूछा।
“88 डॉलर। पासवड ै कर खरीदना होगा।” मने कहा।
“88 डॉलर माने?” दादा ने फर पूछा।
“88 डॉलर माने तु हारा 4000 पया।” मने कहा।
“जयवधन कह रहा है क डॉलर म पया होता तो तु ह बचा था दो त बनाने के लए? कुछ
स ता, सु ब ता और टकाऊ उपाय बताओ।” दादा ने कहा।
“ फर कुछ नह हो सकता।” मने कहा।
“अ छा, डॉलर वाला आ खरी ऑ शन रखते ह; पर कुछ और सोचो।” दादा हार मानने
वाल म से नह था।
***
मंडी
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***
पूर े पाँच घंटे लास करने के बाद ज म और जेहन दोन साथ दे ना बंद कर दे ते ह। तब तो यह
और भी मु कल हो जाता है जब आपको, दो त के बगैर, अकेले लास करनी पड़े और उनक
भी मारनी पड़े। मेरा मन तो वैस े भी पढ़ाई से यादा मडु आडीह म था; इस लए मुझ े कुछ
यादा ही बो रयत हो रही थी। लास ख म होते ही शखा से फोन पर बात करने को कहकर म
ज द से हो टल आ गया। कमरे म घुसने पर नजारा माकूल नह लगा। जयवधन मेरे बेड पर
चादर ओढ़े सोया आ था। एवो मन क दो ट कया उसके सरहाने रखी ई थी। सरे ब तर
पर दादा अपना सर पकड़े बैठा आ था।
“कैसी रही तुम लोग क जाँच-पड़ताल?” मने कमरे म घुसते ही पूछा।
“ताना मार रहे हो?” दादा ने बना सर उठाए कहा।
“ताना नह , मार रहे ह। छोड़ो ई सब मुँहपेलई और बताओ या आ आज?” मने
चादर ख चते ए कहा।
“वहाँ का हाल दे ख,े तब से मूड खराब है।” दादा ने कहा।
“और वो लड़क दखी थी?” मने पूछा।
“हाँ। लाइन म खड़ी थी, जैस े जानवर को हाँक कर खड़ा कया गया हो और जानता है
उनको कहते या ह? बकरी।”
“पता है, बंगाली औरत को म माँ कहने का चलन है। गा माँ, काली माँ, मासी माँ, द द माँ।
और वही इंसान, उसी औरत को या कहता है, बकरी! छ ः! घ आती है कभी-कभी अपने
आप से भी। साला, इंसान भी कतना गर जाता है।” दादा ने धीमी आवाज म कहा।
“अबे, उस कागज पर उसके घर का नंबर तो था? उसके घर फोन कर दो, घरवाले आकर
अपना काम करगे।” मुझ े अचानक ही याद आया।
“ कए थे। उधर से जवाब आया क उनक कोई बेट नह है और फोन पटक दया।” दादा
ने कहा।
“मतलब घरवाल ने र ता तोड़ लया लगता है।” मने कहा।
“ह म। ऐसा ही लगता है।”
“भाई, जब घर वाल को ही फ नह है तो हम लोग य फटे म टाँग घुसाएँ? वैसे भी
पढ़ाई करने आए ह और वो तो हो नह रही है।” मने कहा।
“पढ़ाई नह हो रहा है तो ये ही हो जाए।” जयवधन ने उठते ए कहा।
“दे ख भाई, हम लोग यूँ बेकार के झंझट म फँसे।” मने कहा।
“अगर ये बेकार है, तो बेकार ही सही। यार कसी क लड़क है और वैस े भी, हम अगर दे खे
नह होते तो शायद छोड़ भी दे त।े पर अब नह , अब नह छोड़ सकते ह उसको वहाँ पर।”
जयवधन ने कहा।
“तो गए य थे। हम तो मना कए थे?” मने कहा।
“अरे, म त मारा गया था! दमाग खराब हो गया था! और कुछ सुनना चाहता है?” जयवधन
ने च लाते ए कहा।
जयवधन क आवाज इतनी तेज हो गई थी क बाहर के लोग को लगा क लड़ाई हो गई है।
ऊँची आवाज सुनकर नव जी और उनके साथ-साथ रोशन भी कमरे म आ गए।
“ या हो गया भाई? आवाज बाहर तक जा रही है।” नव जी ने कमरे म घुसते ए कहा।
“दे खए ना नव जी, मडु आडीह म कोई लड़क फँसी है और भाई लोग उसको छु ड़ाने क
बात कर रहे ह। बताइए, ये हम लोग का काम है?” मने नव जी से कहा।
“ली जए! हम तो यही बताने आए थे। रोशन भाई के म म भी यही टॉ पक गम था।
बरला हो टल का कोई लड़का गया था वहाँ पर। वो रोशन भाई का दो त है। दे खकर आया है
लड़क को। नाम उसका र पा बता रहा था। लड़क क हालत ठ क नह है। ज द ही उसको
वहाँ से नकालना होगा। हम और दादा अभी एक से बात करके ही आ रहे ह।” नव जी
ने बताया।
“ ! से या बात करना है?” रोशन ने च ँकते ए कहा; जैसे उसे यह बात
पसंद न आई हो।
“दे खए, अकेले उस लड़क को वहाँ से नकाल पाना तो नामुम कन है…” नव जी ने अभी
बात पूरी भी नह क थी क मने बीच म ही कहा-
“यही तो हम कह रहे ह। साल से वहाँ धंधा चल रहा है। कोई फ म नह है क वहाँ से एक
लड़क को नकाल लया जाएगा।” मने अपनी बात रखी।
“नह -नह ! फ म म भी वहाँ से नकल पाना असंभव है। महानद फ म म कमल हसन
क बेट को..”
नव जी अभी मुद द् ा भटका ही रहे थे क जयवधन ने बीच म टोका-
“नव जी, गाड़ी पटरी से उतर के खेत म जा रहा है।”
“आँ? हाँ हाँ।” नव जी संभल गए और फर कहा- “मतलब अकेली लड़क को तो वहाँ से
नकाला नह जा सकता है। ‘ ब टया’ नाम का एक है जो उस ए रया म से स वकस के
ब च को पढ़ाने का काम करता है। उस और पु लस क सहायता से वहाँ रेड क जा
सकती है। वहाँ के लोग समझगे क पु लस क रेड है। जतनी भी लड़ कयाँ बचाई जा सक,
सबको क बस म लाकर बठाना है। वाले वहाँ पर बोल-बम का बैनर लगी ई दो
बस खड़ी रखगे। सारी लड़ कय को बना मौका गँवाए इस बस म भरना है और उनके कुछ
समझने से पहले ही नकल चलना है। इसी तरीके से उस लड़क को भी नकाला जा सकता
है।” नव जी ने कहा।
“तो क मदद से य ? आप इतने लोग ह; खुद भी तो कर सकते ह।” रोशन ने
खीझते ए कहा।
“रोशन भाई, वाले वहाँ आते-जाते रहते ह। उनके ब च को पढ़ाते है; इस लए घुसना
आसान हो जाएगा।” नव जी ने कहा।
“नह । मुझे यह बात ठ क नह लगी। सारी मेहनत कसी और क और नाम हो एक
का!” रोशन ने चढ़ते ए कहा।
“भाई, हम नाम-वाम नह कमाना। यह को ही मुबारक। हमारा मकसद उस लड़क
को बचाना है। बस।” दादा ने ढ़ता से कहा।
“मेरे भाई, वो उनलोग का ए रया है। या ज रत है इस पचड़े म पड़ने क ?” मने कहा।
“उनलोग का मतलब?” रोशन ने अजीब लहजे म पूछा।
“उनलोग का मतलब मन स का।” दादा ने बात संभालते ए कहा- “ मनल ए रया
है, इसी लए तो पु लस को भी शा मल कर रहे ह। ये पूरा मामला इस का रहेगा और
हमलोग बस रहगे। और इस तरह उस लड़क को बचा भी सकते ह।”
“दे खए, म फर कहता ।ँ इसे आपलोग को खुद ही करना चा हए। अपनी मेहनत का फल
कसी को य खाने द?” रोशन ने नव जी क ओर दे खते ए कहा।
“आपलोग! आपलोग का या मतलब। या आप साथ नह ह?” जयवधन ने पूछा।
“नह । मुझ े तो आज ही कानपुर नकलना है।” रोशन ने कहा।
“ओ! खाए के माड़ ना, नहाए के तड़के! जब आप साथ ही नह ह तो ान या बाँट रहे ह?
हमलोग जैस े कर रहे ह, करने द जए। हम आपके ान क नह , साथ क ज रत है।”
जयवधन ने कहा।
रोशन क इ छा तो पहले ही नह थी और जयवधन के ताने ने उसे और भी कारण दे दया।
वह तमतमाकर उठा और कमरे से बाहर नकल गया। नव जी उसे रोकने के लए आगे बढ़े ;
मगर दादा ने उ ह हाथ ख चकर बैठा लया। थोड़ी दे र के चु पी के बाद नव जी ने ही कहा-
“इसको या हो गया? अभी तक तो ठ क था। कह रहा था क दादा और उसके दो त बड़ा
अ छा काम कर रहे ह। अचानक का नाम सुन के उखड़ गया।” “कौनो वाला
उसका खेत कोड़ दया होगा।” जयवधन ने अपने वभाव के मुता बक अथ बात क । बात
का अथ समझ कर सब हँस ही रहे थे क मने अपनी शंका जा हर क -
“पु लस के पचड़े म य पड़ना भाई? या हम पु लस के बना…” मैने अभी बात पूरी भी
नह क थी क दादा बीच म बोल पड़ा-
“अरे लॉ सेकड इयर म आ गया, इतना छोटा-सा बात नह समझ पा रहा है क इस काम म
लड़ कय को जबरद ती भी बस म डालना पड़ सकता है; जो क गलत होगा और कल को हम
पर ही वमेन ै फ कग का चाज लग जाएगा। इस लए पु लस को साथ लेना ज री है। अब
पु लस हमारी मदद तभी करेगी जब ये वाले हमारे साथ ह गे।”
“ले कन?” मने कहा।
“बात बगाड़े तीन; अगर मगर ले कन। इसको समझाने क ज रत भी नह है दादा। हम
समझ गए ह क हो टल के सारे लड़क क टोली वहाँ जाकर रेड करेगी। पु लस और
वाले वहाँ मौजूद रहगे। हम लोग रेड करगे और उनको लगेगा क पु लस ने रेड कया है तो
का चांस भी कम रहेगा। अ छा लान है।” अब तक चुप बैठे जयवधन ने कहा।
“एक बात और। उस लड़क मतलब र पा को सफ दादा, जयवधन और बरलावाला
लड़का पहचानता है। जयवधन को वहाँ के माहौल से द कत है तो वो जा नह सकता।
बरलावाले लड़के ने कल जा के उससे बातचीत क है। उसका नाम भी पूछा है तो उस पर भी
शक जा सकता है; इस लए जब रेड होगी तो बाक लोग अपने-अपने प
ु के साथ रहगे; पर
दादा आप अकेले रहगे और अकेले ही उस लड़क को जैसे भी हो, बस तक लाएँगे। ठ क है?”
नव जी ने दादा से सवाल कया।
“हाँ, ठ क है।” दादा ने कहा।
“अबे र क है। ब त र क है।” मने कहा।
“तभी तो तुमको नह ले जा रहे ह। तुम बैठ के अ तरीबाई फैजाबाद का ठु मरी सुनो।”
दादा ने ताना मारते ए कहा।
“और दादा अकेला नह जाएगा; हम भी रहगे वह ।” जयवधन ने कहा।
“तो हम बैठ के हो टल म या कटहल छ लगे? हम भी मरगे साथ म।” मने कहा।
***
***
***
मेरा नाम जोकर
***
चौथे सेमे टर के ए जाम शु होने वाले थे। अमूमन जब सभी लोग पढ़ाई म त होते ह, तब
कुछ लोग को अटडस का खयाल आता है। आपके नंबर 75% ह -न-ह , अटडस 75% ज र
होना चा हए। इस लए शु आती दौर क सारी तैया रयाँ कर ली गई थ । मे डकल स ट फकेट
बनवा लए गए थे। अटडस लक से भी बात हो गई थी; मगर फर भी, अटडेस कम ही हो रही
थी। सबसे कम अटडस अभय कुमार के लास म थी। सो, उनके चबर के आगे माता का दरबार
लगा।
“पता नह अटडस दगे क नह ?” दादा का अ थमा बढ़ रहा था।
“इतना ही डर लगता है तो लास कया करो!” जयवधन ने चढ़ते ए कहा।
“तुम अब चबर के बाहर ान मत दो।” दादा ने अ था लन का फ ख चते ए कहा।
“अटडस दे दगे भाई। मे डकल स ट फकेट अबक बार एकदम ओ र जनल है। चता मत
करो।” मने कहा।
“अरे, बे जी! आप भी लाइन म ह या?” जयवधन ने बे जी को आते दे खकर कहा।
“हाँ भाई। थोड़ा-सा कम रह गया है, इसी लए सोचे क मल लेते ह।” बेजी ने छाता बंद
करते ए कहा।
“ले कन अभय सर तो आपसे खासे नाराज रहते ह। आपका अटडस बनाएँगे?” मने शक
जा हर कया।
“मेरा ही बनाएँग।े आपलोग अपना सो चए।” बे ने हम लाजवाब कर दया। अभी हम लोग
आपस म यह बात कर ही रहे थे क और कतने ोफेसर से मलना पड़ेगा, तभी अभय सर क
आवाज आई-
“ यूँ भाई? ?”
“ .” चबर म घुसते ही हमने एक साथ कहा।
“हाँ बो लए। आपलोग का ेजटे शन बाक है ना?” अभय सर ने पूछा।
“नो सर। ेजटे शन तो हम दे चुके ह।” जयवधन ने कहा।
“ फर?” अभय सर ने पूछा।
“सर अटडेस…” मने अभी इतना ही कहा था।
“दे खए, ’ . इससे पहले क म कुछ गलत क ,ँ
आप लोग लीज चले जाएँ।” अभय सर ने दरवाजे क तरफ इशारा करते ए कहा।
“ , .” मने कहा।
“ या नाम है आपका?” अभय सर ने प सल का इशारा मेरी तरफ करते ए पूछा।
“सर… सूरज।” मने कहा।
“सूरज। पछली बार भी आपको जौ डस ही आ था।” उ ह ने अपना र ज टर दे खते ए
कहा।
“जी सर।”
“और फ ट सेमे टर म भी आपने यही बहाना कया था। जहाँ तक मेरी समझ है, इंसान को
दो दफे से यादा तो जौ डस हो ही नह सकता?” अभय सर ने प सल से हवा म ‘दो’ लखते
ए कहा।
“सर, अबक बार हपेटाई टस-बी क शकायत थी। यह एड मट भी थे। आप चाहे तो
मे डकल स ट फकेट दे ख सकते ह।” मने एक साँस म कहा।
“नह -नह , उसक कोई ज रत नह । मुझ े आपक को शश पर पूरा भरोसा है। वैस े भी,
आप तो हपेटाई टस के मरीज ह; आपको तो आ क भी ज रत है। म आपका व ास
नह तोडू ँगा। लीज जाइए और ए जाम क तैयारी क जए।” अभय सर ने तंज म कहा।
“थ स सर।” मुझ े उनके तान क परवाह नह थी। मेरा काम हो गया था।
“आपको कौन-सा रोग आ था बे जी?” अभय सर बे जी क ओर मुड़े।
“सर, हम ब त गरीब ह और अपा हज भी ह। आपका लास हमेशा लंच के बाद होता है।
हम पैदल ही लंच करने हो टल जाते ह और पैदल ही वापस आते ह। हम गरीब ह; इस लए
र शा नह कर सकते और पैर म लकवा है; इस लए तेज नह चल सकते ह। जब तक हम
फैक ट प ँचते ह, तब तक आपका लास शु हो जाता है, और आप ही कहते ह क जब म
पढ़ाता र ँ तो कोई लास म न घुस।े इसी लए आपक बात रखते ए हम लास म नह घुसते
ह। इसी वजह से अटडस कम हो गया।” बे जी ने अभय सर को मौका दए बना, अपनी बात
रोते ए पूरी क ।
अभय सर कुछ दे र तक बे को दे खते रह गए। कुछ कह नह पाए। जब कहा तो बस यह
क-
“ठ क है। अबक बार आपको ेजट कर दे ता ;ँ पर अगली बार क
मेरा लास लंच के ठ क बाद न हो।”
“सर, माई नेम इज जयवधन शमा..” जयवधन के इतना कहते ही अभय सर भड़क गए-
“तुम दोनो! दफा हो जाओ यहाँ से। दन भर बाइक लेके और
करते रहते हो। या करते हो? सवारी ढूँ ढ़ते हो? बेशम , अगर सवारी भी ढूँ ढ़ते तो
दो पैस े के आदमी होते। दफा हो जाओ!” अभय सर फाइल बंद करते ए बोले।
“चलो बे। ई तो गरम हो गया।” जयवधन ने धीरे से कान म कहा और हम सब बाहर नकल
गए। बाहर नकलते ही मने चुटक लेत े ए कहा-
“दे खा! इसको कहते ह इ ेशन।”
“हाँ राजा! हन वही, जो पया मन भाए।” जयवधन ने धीरे से कहा।
“डाल लो अपना इ ेशन। अभी ीवा तव सर के पास चल रहे ह ना? दे खते ह कसका
इ ेशन काम करता है?” दादा ने खीझते ए कहा।
दरअसल, ीवा तव सर क दादा ने ब त मदद क थी। एक बार उनक माँ क त बयत
खराब होने पर दादा उ ह अपने बाइक पर बैठाकर हॉ पटल ले गया था और रात भर उनके
साथ का भी था। इस वजह से ीवा तव सर उसपर व ास करते थे।
“गुड मॉ नग सर।” हमने ीवा तव सर के चबर म घुसते ही एक साथ कहा। बे जी ने एक
कदम आगे बढ़ते ए उनके पैर छू लए।
“अरे, अनुराग! कहाँ थे तुम? पछले एक महीने से लास म नह दखे?” ीवा तव सर ने
अचरज से पूछा।
“सर, त बयत थोड़ी खराब हो गई थी।” दादा ने सर नीचे करते ए कहा।
“ओह! अभी तो ठ क है। बताओ कैसे आए हो?”
“सर, अटडस थोड़ा कम हो रहा है।” दादा ने धीरे से कहा।
“ओके. म दे ख लेता ँ। तुम एक मे डकल स ट फकेट दे दे ना। और बताओ?”
“सर, मेरा भी यही केस है। या म भी मे डकल स ट फकेट दे ँ ?” जयवधन अबक मौका
चूकना नह चाहता था।
“यस।” ीवा तव सर ने जयवधन क ओर दे खते ए मुझ े दे खा।
“आपक या सम या है?” ीवा तव सर ने मुझसे कहा।
“ , .” मने फर वही अं ेजी दोहराई।
“तो?” ीवा तव सर ने छोटा-सा सवाल कया।
“सर, इसी लए अटडस कम हो गया।” म अब अं ेजी भूल गया था।
“कम हो गया? आपका अटडस कम हो गया? आप तो सारे लास का अटडस बनाते ह।
आपका अटडस कैसे कम हो गया?” ीवा तव सर ने ताना कसा।
“सर, मुझ े हपेटाई टस-बी हो गया था। आप मे डकल स ट फकेट दे ख सकते ह।” मने धीरे
से कहा।
“आप एक दन म तीन-तीन पहचान बदल सकते ह तो मे डकल स ट फकेट कौन-सी बड़ी
बात है। म आपका नह कर सकता।” ीवा तव सर ने कहा। अब म
लाजवाब-सा खड़ा था। दादा और जयवधन बस मु कुरा रहे थे।
“अरे, बे जी! आप भी लाइन म ह या? काफ दन से आप भी लास म दखे नह ।”
ीवा तव सर अब बे जी से मुखा तब ए।
“नह सर! हम तो बस आशीवाद लेने और साद दे न े चले आए।” बे ने बड़े व ास कहा।
“कैसा साद बे जी?” सर ने पूछा।
“ पछले महीने अपनी माँ को लेकर कालीघाट का दशन कराने गए थे। दरअसल, काली माँ
उनके सपने म आई थ और दशन करने के लए कही थ । अब हम तो एक पैर के आदमी। जो
काम दो दन म होना चा हए, उसम दस दन लग जाता है। बस, सीधे वह से आ रहे ह। आपके
लए साद भी लाए ह। ली जए सर।” बे जी ने दा हने हाथ से साद, ीवा तव सर को दे ते
ए कहा।
“अ छा अ छा! इसी कारण, इधर लास म नह दख रहे थे। कोई बात नह । काली माँ क
कृपा से सब अ छा होगा। जाइए, जाकर ए जाम क तैयारी क जए।” ीवा तव सर ने साद
माथे से लगाते ए उसे एक पु ड़या म रख दया। बे जी के साथ-साथ हम लोग भी बाहर
नकल आए।
“लो बेटा! हो गया हसाब बराबर। उधर हमारा नह बना, इधर तु हारा नह बना। दादा ने
कहा।
“हाँ। चलो एक जगह भी हो गया तो ए जाम तो दे पाएँगे; ले कन बे कैसे दोन जगह
बनवा लया?” मने पूछा।
“ बे, या गेम खेल रहे थे बे साद का?” जयवधन ने बे को धमकाते ए पूछा।
“कुछ नह , गेम या था?” ीवा तव सर के चबर म घुसते ही दे खे क उनके से फ म
काली जी का एक फोटो रखा आ है तो समझ गए क ीवा तव सर काली जी के भ ह। बस
कहानी बना दए।” बे जी ने फैक ट से बाहर नकलते ए कहा।
“और साद? साद कहाँ से आया बे? झूठ बोलता है!” दादा ने कहा।
“कौन-सा साद? कैसा साद? गाँव से चूड़ा खाते-खाते आए थे। जेब म पड़ा था, वही
नकाल के दे दए।” बे जी हम सकते म छोड़ आराम से र शा पकड़कर नकल गए।
***
***
लगान
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दादा ने अपनी जदगी म अगर कसी चीज को गंभीरता से लया था तो वो थी केट। यह बात
उसके साथ इतने दन से रहते ए मुझ े समझ आ गई थी। उसने कभी कॉमन म म केट
नह दे खा। कारण यह था क वह केट दे खते समय कसी भी तरह का मजाक तक पसंद नह
करता था। केट को लेकर वो बेहद भावुक और सम पत था; इस लए इस मैच क टशन भी
उसे ही सबसे यादा थी। जयवधन से भी यादा। वह पछली रात भी ठ क से सोया नह था
और आज भी जब मने उसे कमरे म बेतरतीब टहलते दे खा तो म उसे लेकर अ सी घाट चला
आया। अ सी घाट। बेवजह परेशान ह का घाट।
“भइया, दो चाय।” दादा ने अ सी घाट प ँचते ही कहा।
“भूँजा भी बोल दो।” मने दादा को चढ़ाया। अ सर म यह बात तब कहता था जब मुझे
माहौल ह का करना होता। आज भी मने यही सोच कर कहा। मगर दादा ने कोई त या नह
द।
“अ पायर कौन बनेगा बे?” दादा ने मुझे अनसुना करते ए पूछा।
“मुरली सर और कोई एक हो टल टाफ”। मने कहा।
“तभी कल से सी नयस, मुरली सर के आगे-पीछे कए ह।” दादा ने चाय का कु हड़ लेते
ए कहा।
“तो या आ?” मने दादा से चाय ली।
“अबे! हार गए ना, तो सी नयर सब जीना हराम कर दे गा। कल से ताना मार रहा है क पूरी
इं डया से ट म चुनी गई है। ऊपर से कोई गेम- लान भी नह है।” दादा ने सर पर हाथ रखते ए
कहा।
“तो गेम- लान या बनाना है? जाएँग े और खेलगे।” मने चाय क घूँट लेत े ए कहा।
“हाँ। और हार के आ जाएँग!े साला 11 का 11 लेयर नमूना है। एक को
बोलता है। तुमको और म अंतर नह पता है। क जुमवा कौन जाने म णपुरी
म बोलता है क नेपाली म? सब साला खेप-खेला का लेयर है। आउट होने के बाद कह मार-
पीट मत कर ले। ऊपर से, क तान हमको बना दए हो।” दादा ब त यादा च तत था।
“टशन मत करो, हम लोग ही जीत…अबे! शखा।” मने नीचे दे खते ए कहा।
“अब शखा से केट भी खेलवाओगे? केट म शखा कहाँ से आ गई?” दादा ने खीझते
ए कहा।
“नीचे दे ख। भोकाल चाट वाले के यहाँ चाट खा रही है।” मने कहा।
“जाओ राजा! हमारे करम म अकेले ही लान बनाना लखा है।” दादा ने हँसते ए कहा।
“नह यार, वो लंका पर झगड़ेवाली घटना के बाद से, फैक ट के बाहर बात करना नह
चाहती; और हम भी करते ह। मने कहा।
“वैसे भी, हो नह पाता ेमालाप। उधर दे खो, जयवधन बाबा भी आ रहे ह।” दादा ने कहा।
जयवधन अ सी घाट के साइ कल टड म साइ कल लगा रहा था। साइ कल कसी से माँगी ई
थी। जयवधन कसी से माँग कर अगर इतनी ज द अ सी घाट आया है तो इसका सीधा मतलब
है क सबकुछ ठ क नह है। अगर सबकुछ ठ क होता तो जयवधन हमारे हो टल लौटने का
इंतजार करता; मगर ऐसा नह था। वह भी अ सी घाट आ गया था।
“तुम इधर कहाँ बे?” दादा ने आते ही जयवधन से पूछा।
“साला, उधर टशन हो गया है और तुमलोग यहाँ पया पया खेल रहे हो? चत मोरा चंचल
जया उदास, मन अटका है यार जी के पास! दे खो तो उधर चाट खाया जा रहा है और इधर लार
टपकाया जा रहा है।” जयवधन ने एक साँस म कहा।
“मुँहपेलई न करो और बताओ या टशन आ है?” मने कहा।
“दादा, पहले चाट खलाओ ना!” जयवधन ने कहा।
“आज तो हम खला दगे; चल।” मने कहा।
“भोकाल भाई, तीन लेट चाट।” दादा ने प ँचते ही चाटवाले से कहा।
“और पैसा, पाँच लेट का का टएगा।” जयवधन ने शखा और उसक ड को भी जोड़
लया था।
“अबे, तुम बताए नह या टशन आ है?” दादा ने पूछा।
“आशीष राय खेलने से मना कर दया है।” जयवधन ने कहा।
“ य ?” मने शखा को दे खते ए पूछा।
“बोलता है-ए जाम नजद क आ गया है। हम अपने पापा से वादा करके आए ह क गो ड
मेडल लए बना घर नह आएँग।े इस लए उसको पढ़ना है।” जयवधन ने चाट खाते ए कहा।
“हम भी तो अपनी म मी से वादा कर के आए ह क तु हारे लए ब लए बना मुँह नह
दखाएँगे।” मने शखा से नजर हटाए बगैर कहा।
“तो यह फेरा लगवा लो। पं डत भी है, बाराती भी है।” जयवधन ने चुहल क ।
“ हन राजी नह है भाई।” मने शखा क ओर इशारा करते ए कहा। जो अब जा रही
थी।
“बकैती बंद करो और सोचो क अब या करगे?” दादा ने कहा।
“यहाँ डकैती हो गया दल पे और तुमको बकैती लग रहा है? मने चाट ख म करते ए
कहा।
“तुम लोग हँसोगे नह , तो एक है।” जयवधन ने कहा।
“बोलो राजा!” मने र तक जाती शखा को दे खते ए कहा; जसके पलटकर दे खने क
उ मीद मुझ े अब भी थी।
“मूस! अपना . उसको ले लेत े ह।” जयवधन ने कहा।
“मूस! अबे…. मूस या खेलेगा?” दादा ने आ य से कहा।
“और नव या खेलेगा? हमलोग को 11 का आँकड़ा पूरा करना है और वैस े भी जब हम
10 कुछ नह उखाड़ पाएँगे तो यारहव से उ मीद बेमानी होगी।” जयवधन ने कहा।
“ या बोलता है सूरज?” दादा ने मुझसे पूछा।
“ कसी को रख लो यार! मेरा तो गृह थी उजड़ गया। लड़क चाट का पैसा दे के चली गई।”
मने उदास होकर कहा।
“मर जाओ साले लड़क के च कर म! एक वो लड़क है क एक बार दे खी तक नह और
एक ये दे वानंद ह, ऐसे ाटक लगाए ताक रहे थे क आज ही समा ध ले लगे!” जयवधन ने
गु साते ए कहा।
“अरे! हम सब सुन रहे थे भाई। ठ क है; मूस ही खेलेगा।” मने मुहर लगा द ।
***
र ववार से पहले द सय पेपर लान बनाए गए। फ ड से टग क गई। पेपर फाड़े गए। ओपे नग
करने के लए झगड़े ए। नपटाए गए। और आ खरकार र ववार भी आ गया। मुरली सर, जो
अ पायर और मैच रेफरी क दोहरी भू मका म थे, ने नयम समझाना शु कया –
“दोन ट म यान से सुनने ह गे। मैच म कोई भी ले जग नह होने ह। जू नयस को सी नयस
क रे पे ट करने ह गे। मैच 20-20 ओवर के होने ह। एक लेयर, चार ओवर करने ह। रज ट
के बाद सी नयस, जू नयस को ेकफा ट ऑफर करने ह। कोई सवाल है, तो अभी पूछने ह गे।”
“ . ?” दादा ने कहा।
“हाँ, दोन कै टन आगे आने ह गे।” मुरली सर ने आगे बढ़ते ए कहा।
“दादा, ये स का ले जाओ। मेरा लक है। हमेशा टे ल आता है, टे ल ही बोलना।” जयवधन
ने कहा।
“ला इधर दे ।” दादा ने स का लया और के लए चल दया।
“दादा को स का दे दए ह। भोले बाबा ज र जतवाएँग।े ” जयवधन ने कहा।
“उधर से कौन कै टन है बे?” मने पूछा।
“ माट नशांत।” जयवधन ने कहा।
“ माट नशांत! उसका नाम यही है या?” जयवधन ने पूछा।
“पता नह ? उसके बैचमेट्स यही पुकारते ह।” मने कहा।
“नाम जानना ज री है। उसके बना मजा नह आएगा।” वनीत ने कहा।
“ले कन ले जग मना है।” मने वनीत का मतलब समझते ए कहा।
“अरे, मना तो और भी ब त कुछ है! मना क वजह से मजा पे फक नह पड़ना चा हए।”
वनीत ने आँख दबाते ए कहा।
“दादा आ रहा है; लगता है हो गया। या आ राजा?” मने पूछा।
“ जीत गए। फ डंग लए ह।” दादा ने बॉल उछालते ए कहा।
“जा! अरे… काबुल का गदहा! जीत के कोई फ डंग लेता है या?” जयवधन ने
गु से से कहा।
“ पच पे है। पहले बॉ लग का फायदा मलेगा।” दादा ने कारण बताया।
“मेरा घंटा मलेगा? ई साला बड़ला हो टल का मैदान है, कोई मोहाली टे डयम थोड़े है?”
जयवधन सचमुच हताश हो गया था।
“ऐसी ही एक गलती ‘अ वल नंबर’ फ म म आ द य पंचोली ने क थी, जसके
कारण…।” नव जी कह ही रहे थे क जयवधन बीच म बोल पड़ा-
“हाँ, नव जी, पता है आपका ह ी ब त पुराना है। आप ए.के. हंगल का बचपन भी दे खे
ह। च लए… गरई पकड़ा जाए। फ डंग कया जाए।” जयवधन ने उठते ए कहा।
फ ड से टग दादा ने अपने पेपर लान के हसाब से ही क थी, जसम मुझे थड-मैन पर रखा
गया था। बाक लोग भी दादा क फ ड-से टग के हसाब से ही खड़े थे। मैच शु होने से पहले
मने दादा से पूछा-
“पहला ओवर कौन जा रहा है?”
“ नभय।” दादा ने कहा।
“ नभय! नभय को काहे बॉ लग दे रहा है? वीरदर राय उतरा है; लथार दे गा।” मने कहा।
“उसका लथ ठ क है। वीरदर और नशांत भइया दोन को मु कल होगी।” दादा ने बॉल,
नभय क तरफ उछालते ए कहा। म भी थड-मैन पर वापस चला गया। खेल बस शु ही होने
वाला था। सभी फ डर अपनी पोजीशन पर तैयार थे।
नभय बॉल लेकर रनअप पर तैयार था; तभी मुरली सर ने मैच शु करने का स नल दे
दया। नभय ने जतनी तेजी से पहली बॉल डाली, नशांत सर ने उतनी ही तेजी से बॉल को
बाउं ी के बाहर भेज दया।
“ले लो! साला, पहला बॉल पे माट नशांत चौका पेल दया। चलो, कोई बात नह , एक-दो
बार कम-ऑन कम-ऑन करते ह; सब लाइन पर आ जाएगा।” जयवधन ने कहा।
“कोई बात नह नभय। अनठे कानी शॉट था। पकड़ के रख।” दादा च लाया।
“ जदगी का पहला चौका था; अगला नह लगेगा।” जयवधन भी च लाया।
“सूरज को थडमैन से यहाँ बुलाओ; मजा नह आ रहा है।” जयवधन ने ओवर के बीच म
कहा।
“तो वो तुमको मैदान म या मजा दे गा? चुपचाप फ डंग करो।” दादा ने डाँटा।
“अबे! ई माट नशांत च मा काहे पहना है बे?” जयवधन ने कहा।
“उसको लगता है पता नह कब उसक गल ड मैच दे खने चली आए; इसी लए हमेशा
तैयार रहता है।” दादा ने कहा।
“ माट नशांत क भी गल ड है या? साला हम ही लोग अभागा ह!” जयवधन बॉल
नभय क ओर फकते ए बोला।
सरा ओवर मुझ े दया गया। मने उसम कुल 7 रन दए। वीरदर राय ने मड-ऑन पर एक
चौका भी मारा। फर मने अपना ओवर संभाल लया। फर भी, कोर हमारी सोच से यादा हो
रहा था; इस लए भी य क हो टल के भीतर होने वाले छोटे ाउंड म सी नयस कुछ अ छा नह
खेलते थे। हमारी यही सोच, हमारी भूल होती दख रही थी। तीन ओवर ख म होते-होते उ ह ने
27 रन बना दए थे।
“अबे! माट नशांत तो ठोके जा रहा है! तीन ओवर म 27 रन बना दया। या कया
जाए?” दादा ने मुझसे पूछा।
“एक काम करो। मूस का आवाज लड़क जैसा है। इसको बोलो क अपने हॉ टल फोन करे
और बोले क शवानी बोल रहे है। म नंबर-18 से नशांत को बुला द जए।” मने बॉल रगड़ते
ए कहा।
“उससे या होगा?” दादा ने बॉल मुझसे लेकर हाथ से साफ करते ए पूछा।
“ शवानी, माट नशांत क गल ड का नाम है और वो शवानी का कोई फोन मस नह
करता है। हो टल के चपरासी को 100 पया खचा दे ता है और बोल के रखा है क मेरा कोई भी
फोन मस नह होना चा हए। इस लए जब शवानी का फोन आएगा तो हॉ टल से चपरासी आ
के माट नशांत को ज र बताएगा; और फर दे खना माट नशांत, वकेट फक के जाएगा।”
मने बॉल नभय को दे त े ए कहा।
उधर दादा ने फौरन ही मूस को समझा कर अपना फोन उसे पकड़ा दया। मूस ने रटाई ई
बात कह द । दस मनट के भीतर ही भगवान दास का चपरासी लालजी दौड़ता आ आया-
“ नशांत भइया, तोहार फोन आईल रहे। ओईजे से! बड़ा अज ट काम बा।” लालजी ने
हाँफते ए कहा।
(कहने क ज रत नह क माट नशांत आउट होकर अगले दस मनट म ग स हो टल के
गेट पे खड़े थे।)
मगर माट नशांत का अधूरा काम पूरा करने का ज मा, वीरदर राय ने ले लया था। 7
ओवर म 56 रन बन जाने पर सारी पच रपोट और ू फै टर फेल होता दखा। वीरदर राय
पर अफरीद सवार था। रवस पुल, रवस क जैसे सारे नॉन- के टग शॉट् स हमने उसी दन
दे ख।े मेरे एक ओवर म 20 रन जाने पर मुझ े बारा बॉ लग दे न े का जो खम नह लया गया।
वीरदर राय कसी को ब शने के मूड म नह थे। तभी एक चम कार आ-
“भसा शॉट!” वकेट के पीछे से वनीत क आवाज आई।
दरअसल, वनीत और वीरदर राय कूल के दन म लासमेट्स थे और तब से वनीत उ ह
इसी नाम से चढ़ाता था; ले कन अब यहाँ वीरदर राय सी नयर थे और उ ह यह बेइ जती लग
रही थी। भसा शॉट सुनकर वीरदर गु साए तो ब त; पर अपना आपा बनाए रखा और अगली
बॉल, वकेटक पर के लए छोड़ द ।
“बफैलो ले ट।” फर से आवाज आई।
बफैलो ले ट सुनकर वीरदर बैफ ड हो गए और उ ह ने तय कया क अगली गद वह
वकेटक पर को ही मारगे; इस लए वह वकेट से काफ सटकर खड़े हो गए; ले कन अगली गद
बैट से मारने को जैसे ही उठाया, बैट वकेट से जा लगा और वीरदर राय हट- वकेट हो गए।
आउट ए और वकेटक पर वनीत को बैट दखाते ए चले गए। हमारा काम हो गया था और
वीरदर राय का भी। आउट होने तक कोर 12 ओवर म 96 रन हो चुका था। मुरली सर ने क-
ेक कर दया।
“बेटा, सी नयर लोग हो टल प ँच के हमलोग का रै गग पाट-2 शु करेगा; उसके लए
तैयार रहो।” जयवधन ने पानी सर पर डालते ए कहा।
“अबे! उसका छोड़ो। ये सोचो क अभी या कर? कोई बॉलर नह चल रहा है।” दादा ने
उससे पानी क बोतल लेत े ए कहा।
“मेरा लेग पन भी ाइ क जए। एकदम अ ल का दर जैसा फकते है।” क- ेक म
नव जी ने कहा।
“अ छा! मतलब बॉल से यादा खुद नाचते ह।” जयवधन तपाक से बोला।
“सब तो पटा ही रहा है। जाइए नव जी, आप ही बॉल डा लए।” दादा ने बॉल उनक
तरफ उछालते ए कहा।
“हाँ, दे दो। बीमार ब छया बाभन को दान! ले कन दे खएगा, यादा उछ लए-कू दएगा मत!
नह तो ह ी सरक जाएगा और इस उमर का ह ी…. आप जानते ही ह।” जयवधन ने चुहल
क।
जयवधन कहता था क अ सर जस स के को हम खोटा समझते ह, वो अपने दन क
अश फयाँ होती ह। आज नव जी का दन था और वाकई वो अपने दन म अशफ ही थे। मैच
के बाद नव जी का बॉ लग फगर कुछ यू ँ था-
3 ओवर – 1 मेडेन – 4 रन – 4 वकेट.
नव जी क गुगली, उ ट , सीधी, सरा, तीसरा, लपर, लपर, म बॉल, ह बॉल,
बैक ऑफ द हड बॉल- कसी का कोई भी जवाब सी नयस के पास नह था। पूरी ट म 20 ओवर
म 123 रन ही बना पाई। मुरली सर ने 15 मनट का इंटरवल कया। सबलोग, यहाँ तक क
सी नयस भी, नव जी क बॉ लग क तारीफ कर रहे थे। नव जी खुद भी अपने इस दशन से
ब त खुश थे।
“दे खे मेरा लेग पन! राइट पे गर के, एकदम ले ट म भाग रहा था।” नव जी ने बैठते ए
कहा।
“हाँ नव जी। ब कुल वैस े ही जैसे आपका र शा ले ट क तरफ भागा था और आप
हमलोग को बैठा के नाली म गर गए थे।” मने राज खोला।
“अरे नह ! उस दन पहला च का, केला के छलका पे पड़ गया था।” नव जी ने लाज
बचाई।
“नव जी, आप र शा भी चला लेत े है?” वनीत ने पूछा।
“ले! तुमको ये ही नह पता है? नव जी या नह कर सकते है! दो बार मर भी चुके ह।”
जयवधन कोई भी मौका खोना नह चाहता था।
“अबे! छोड़ो ई सब मुँहपेलई। ये बताओ ओपे नग कौन करेगा? 6 के एवरेज से रन बनाना
है।” दादा ने ज री बात बताई।
“हम। य क हमलोग को फा ट टाट चा हए।” मने कहा।
“हम। वकेट नह गरने दगे।” गुंजन ने दावेदारी पेश क ।
“बोलना या है? हम ओपे नग करगे। तुम लोग, घंटा हमको बॉ लग भी नह दए हो।”
जयवधन बै टग ै टस करते ए बोला।
“भइया, हम उतर जा ?” मूस भी कसी से कम नह था।
“बॉ लग म तो कुछ खास नह कर पाए; बै टग म ज र करगे।” नभय ने कहा।
“वैसे भी, मेरे आउट होने से बै टग पे कोई असर नह पड़ेगा; इसी लए हम उतर जाते ह।”
नव जी का बयान था।
“हम बम पलाट शॉट मारते ह।” अ मत ने कहा।
“झा पो तेलम क जय।” क जुम ताशो को एक ही लाइन हद आती थी।
“कोई नह जाएगा! हम जाएँग े और साथ म वनीत जाएगा।” दादा ने अं तम फैसला लया।
“साला, कै टन बन गया है तो सी रयसली ले लया है।” अगले मैच म हम जब कै टन बनगे
ना, तो 20 ओवर बॉ लग भी करगे और 20 ओवर बै टग भी हम ही करगे मूस के साथ।”
जयवधन ने बैट छोड़ते ए कहा।
ओपे नग के लए उतरना, वाकई म एक मु कल काम था। यारह-के- यारह लेयस ही
पहले बै टग करना चाह रहे थे और कसी को मना कर पाना ब त मु कल था। आ खर सारे
दो त ही थे। कस को उतरना चा हए अभी यह बहस चल ही रही थी क बे जी आ गए और
आते ही, उ ह ने हमारी सम या हल कर द ।
“ नशांत सर आ गए ह और ग स हो टल म बात प ँच गया है क सी नयस मार-मार के
जू नयस का धुरमुस छु ड़ा दए ह। मीना ी मैम जा के हमारी बैचमेट्स को बोली ह क सारे
जू नयस न कारे ह।” बे जी ने आते ही े कग यूज द ।
“साला! इ जत का बात हो गया है अब तो!” दादा और वनीत ही जाओ बै टग करने के
लए और बे को थूरो! साला, कभी अ छा खबर ले के नह आता है।” मने वनीत को बैट दे ते
ए कहा।
“लो, मेरा मोबाइल और वेटर पकड़ो। आते ह जीत के।” दादा ने व ास से कहा और
मैदान क ओर बढ़ गया। कुछ ही दे र म दादा और वनीत दोन ज पर थे और सँभल कर खेल
रहे थे।
“दे खो तो! माट नशांत च मा पहन के बॉ लग कर रहा है।” मने कहा।
“तुम उसके च मा के पीछे काहे पड़े हो बे?” जयवधन ने पूछा।
“ यान से दे खो। ले डज गॉग स है या तो इसको पता नह है या फर टाइल मारने के लए
गल ड से माँगा है।” मने कहा।
“ जयो मेरे ऑ सीजन! इतना यान पढ़ाई पर दे दे त े तो जेठमलानी बन जाते।” जयवधन ने
कहा।
“ फलहाल तो रन बन रहा है। दादा और वनीत ठ क बै टग कर रहे ह। अबे! माट नशांत
क गल ड दे खने म कैसी है?” मने कहा।
“हमको नह मालूम है और ड टब मत करो! दे ख नह रहे हो, हम कोर लख रहे है। नव
जी से पूछ लो; वो सब जानते है।” जयवधन ने कहा।
“नव जी, नशांत सर क गल ड दे खने म कैसी ह?” मने अब नव जी से पूछा।
“वो हमारी सी नयर ह। उनके बारे म ऐसी बात नह करनी चा हए।” नव जी संत आदमी
थे।
“ली जए! तो हम कौन-सा उनका बॉडी फगर पूछ दए? अगर फैक ट म दख जाएँ कभी
तो पहचानगे तभी न रे पे ट दगे!” मने वा जब कारण बताया।
“ठ क तो बोल रहा है। अंजाने म कुछ हरकत हो गया तो गलत है ना…”
-मार दया चौका वनीतवा…!
- जयो बाबू साहब…!
-मारो घंटा चला के…!
-घायल कर दो। जयवधन लगभग उछल गया था। उधर वनीत ने चौका मारा था और इधर
नव जी स दय बोध पर छ का मार रहे थे।
“अब रंग तो उनका ऐसा है क बस म खन म एक चुटक स र मला दया गया हो।” नव
जी ने बताना शु कया।
“रीमा भारती का उप यास खूब पढ़ते है नव जी। वह से ये लाइन उड़ाए ह।” मने हँसते
ए कहा।
“रीमा भारती से याद आया। अरे, ए जाम नजद क आ गया है! रीमा भारती का उप यास
जमा करो। रात भर जगने के लए ज री है। साला पछला उप यास म जो ताला-चाभी खोजी
थी ना क सात दन तक खुमार म थे!” जयवधन ने रन लखते ए कहा।
“ए साला! तुमलोग बात कहाँ-से-कहाँ घुमा दे ता है। हाँ नव जी, तो वो खूब गोरी ह; ले कन
फैक ट म तो 4 दजन गोरी लड़क ह गी? पहचानगे कैसे?” मने कहा।
“साला लड़क न हो गई, केला हो गई। दजन म गन रहा है। उधर दे खो, माट नशांत, दादा
को बाउंसर मार रहा है और अ पायर नो-बॉल भी नह दया?” जयवधन परेशान हो रहा था।
“हाँ, नव जी। तो शवानी जी के बारे म और कुछ डटे ल दे रहे थे आप?” मने कहानी फर
से शु क ।
“अरे, ई साला को बता ही द जए, नह तो यह गाज फक के मर जाएगा।” जयवधन ने
गु साते ए कहा।
“ शवानी मैम, कॉनवट से पढ़ ह और नशांत सर बता रहे थे क यहाँ से करने के बाद
वो लंडन से करगी।” नव जी ने चचा जारी रखी।
“हाँ, लंडन से ही तो करगी… ले! अब राजेश भइया या बोल रहे ह दादा को?” जयवधन
मैदान के बाहर और मैदान के भीतर, समान प से यान दए ए था।
“ ले जग चल रहा है। दादा हडल कर लेगा। रन कतना आ?” मने पूछा।
“6 ओवर म 41 रन आ है। अभी भी 84 गद पर 83 रन बनाना है। जीतने के लए इसी
रेट से खेलना होगा।” जयवधन ने कहा।
“अरे…. या….र! वनीत आउट हो गया। आउट हो गया वनीतवा।” जयवधन व ास नह
कर पा रहा था। वनीत, कृ नन सर क लाइट दे खकर ललचा गया और आगे नकल कर मारने
के च कर म टं प हो गया था।
“जयवधन तुम जाओ और दादा से पूछ लेना, अगर थक गया हो तो रे ट कर लेगा; हम
मुरली सर से बात कर लगे।” मने जयवधन को बैट दे त े ए कहा। जयवधन ने बना समय लए
पैड बाँधा और मैदान म उतर गया। तब तक वनीत भी आ चुका था।
“दादा दौड़ नह पा रहा है।” वनीत ने ल स उतारते ए कहा।
“बैठो बाबू साहब। ब ढ़या खेले। आउट नह होते तो आज 20वाँ ओवर खेल कर ही
लौटते।” मने कहा।
“20वाँ? अरे, 16व ओवर म गेम खतम कर दे त।े ” वनीत ने पैड खोलते ए कहा।
“जयवधन भी ब ढ़या खेलता है। दे खो, कैसा करता है आज।” मने रन लखते ए कहा।
“दादा दौड़ नह पा रहा है। रन रेट कम हो जाएगा; सगल लेत े रहना होगा।” अब तक चुप
बैठे बे जी ने कहा। बे जी क आवाज सुनते ही म टशन भूल गया। अब मुझ े कुछ मसाला
यूज क तलब लगी।
“छो ड़ए ना बे जी। दादा संभाल लेगा। आप कुछ नया समाचार द जए।” मने बे जी के
पास बैठते ए कहा।
“ग स हो टल से सीडी ज त आ है।” बे जी तुरंत ही मसालेदार खबर द ।
“भोसड़ी के! बोलोगे झूठ? ॉ टर वाला तवारी आज ही मला था। वो तो कुछ नह बोला
ऐसा।” वनीत ने बे को हड़काया।
“अरे, पूरा बात तो सुनो। सीडी मला है गा-चालीसा, साई-चालीसा और स य नारायण त
कथा का।” बे जी ने तुरंत सुर बदल लया। इधर खेल भी बदल रहा था।
“ले बेटा! जयवधन रन-आउट हो गया और मुरली सर से उलझ भी रहा है। कमलेश को
भेजो।” मने बे क बात से यान हटाते ए कहा। कमलेश जो पैड- ल स पहन के तैयार ही
बैठा था, मैदान म उतर गया। जयवधन बैट पटकता आ रहा था।
“ या हो गया गु ? मुरली सर से या बहस कर रहे थे?” वनीत ने आते ए जयवधन से
पूछा।
“अरे यार! हम आउट नह थे। प ँच गए थे; ले कन सी नयस के ेशर म आउट दे दए।”
जयवधन ने गु साते ए कहा।
“यहाँ से दे खने पर तुम आउट थे।” वनीत ने कहा।
“नह भाई! प का प ँच गए थे। हम उनका ेजटे शन नह दए ह; इस लए आउट कर
दए।” जयवधन ने बैठते ए कहा।
“भक साला! कभी कहता है सी नयस के ेशर म, कभी कहता है ेजटे शन के च कर म।
तुम आउट था।” मने कहा। इधर जयवधन दलील दे ता रहा और उधर खेल चलता रहा।
अब तक दादा और कमलेश क अ छ पाटनर शप क बदौलत 9 ओवर म 63 रन बन चुके
थे। अभी 66 बॉल पर 60 रन बनाने थे। दादा और कमलेश सावधानी से खेल रहे थे और
यादातर रन एक और दो क श ल म ही आ रहे थे। चौका-छ का न लगने से खेल थोड़ा
बो झल हो रहा था। ऐसे माहौल म मुझ े बे जी क याद फर से आई। मने उ ह कुछ और
समाचार सुनाने के लए कहा। कहते ही, उनका अपना ‘अल- बेरा’ चैनल चालू हो गया। जो
कुछ मु य समाचार उ ह ने सुनाए, वो ये थे-
– अब क बार का पेपर आउट होगा।
– हो टल से खं चया भर के कंडोम नकला है।
– फलाना सर को आज तक कोई नहाते नह दे खा है।
– रोशन चौधरी रात म गैरेज म काम करता है।
– अ मताभ ब चन का बाल उड़ गया है। वग लगाते ह।
बे जी अभी और समाचार सुनाते, इससे पहले मैच काफ रोमांचक मोड़ पर आ गया था
और उनके समाचार म अब कसी क च नह रह गई थी। दादा को दौड़ने म परेशानी हो रही
थी; इस लए अगले 8 ओवर म केवल 32 रन ही आए थे। अब हम जीतने के लए 3 ओवर म
28 रन चा हए थे।
“रंजन भइया का ला ट ओवर है। इसम चांस लेना चा हए।” मने कहा।
“हाँ, अब मारना पड़ेगा। आए आम, चाहे जाए लबेदा।” जयवधन ने कहा।
“कमलेश ठ क काम कर रहा है। सगल ले के दादा को ाईक दे रहा है।” नव जी ने
कहा।
“जीत जाएँग े भाई।” मने कहा।
“मारा है घुमा के दादा…! लहो… लहो… लहो… लहो… चौका!” जयवधन का अपना ही
अंदाज था।
“या राजा क …! फर दया बम पलाट शॉट.. चौका…!” म भी च लाया।
“ कोर कतना आ?” नव जी ने पूछा।
“अब 15 बॉल म 19 रन चा हए।” वनीत ने कहा।
“छ का…! अरे… यार कैच हो गया। यार! दादा आउट हो गया। इस समय दादा को
आउट नह होना चा हए था।” मने सर पकड़ते ए कहा।
“हाँ, अब तो खेल ख म करना था।” वनीत ने कहा।
“नव जी को भेजो।” जयवधन ने कहा।
“अब कमलेश को सब संभालना पड़ेगा।” दादा ने आते ही कहा। मगर न दादा के आने म
दे र ई और न नव जी के आने म।
“जा साला! नव जी तो पहली बॉल पर छतरा गए। दोन पैर के बीच से बॉल नकल गया।
बो ड हो गए। इनको कौन भेजा था बे? बुड़बक सयार, खरबूजा के मा लक! बेकार म ेशर
कर दए।” जयवधन ने कहा।
“हम जाते ह।” मने कहा।
“हाँ जाओ और दे खना, है क मत होने दे ना। नह तो रंजन भइया जीने नह दगे।” दादा ने
मुझसे कहा।
“आइए नव जी, बै ठए। आप तो नाहक क कए। यह से ह थयार डाल दे त।े ” जयवधन
ने लौटकर आते नव जी से कहा।
इधर म ज पर प ँच चुका था। मने ऑफ टं प का गाड लया और रंजन भइया क बॉल
का इंतजार करने लगा। मुझ े उ मीद थी क रंजन भइया यॉकर ही डालगे। मगर मेरी उ मीद के
उलट, उ ह ने बॉल, शॉट पच फक और मेरी क मत के उलट, बॉल गर कर उठ ही नह ।
जमीन से लगती ई, मेरे म डल टं प को जा लगी। म कुछ दे र पच को दे खता रह गया। मुरली
सर ने अपनी तजनी उठा द थी।
“अरे यार! सूरज भी बो ड! भोसड़ी के। करने या गया था?” दादा ने कहा।
“रंजन भइया को दे खो! लग रहा है बारात म डांस कर रहे ह।” वनीत ने कहा।
“करगे ही; है क लए ह।” दादा ने कहा।
“तुम साले खाली रन लखने लायक हो। एक बॉल नह खेल सके। अब घंटा जीतगे?”
जयवधन ने मुझसे आते ही कहा।
“ कोर या है?” मने पूछा।
“जो तुम छोड़ के गए थे, वही है कोर। खतम हो गया खेल।”
“ कोर या पूछ रहे हो? 2 ओवर म 19 रन चा हए। कमलेश पर इतना ेशर दे दए।” दादा
ने कहा। खेल अचानक ही हमारे हाथे से नकल गया था। जो जीत दादा और कमलेश के रहते
इतनी आसान दख रही थी, वो केवल पछली तीन गद म हमसे र जाती दखाई दे ने लगी।
पछली तीन गद ने हम हताश कर दया था।
“एक काम कर। दो-चार लड़क को बाहर से बुलाते ह; आकर खेल भाँड़ दे गा। इ जत रह
जाएगा।” वनीत ने मश वरा दया।
“नह यार! अब जो होगा सो मैदान म ही होगा।” मने कहा।
“अभी उतरा कौन है?” जयवधन ने पूछा।
“ नभय गया है। दे खो, या करता है?” दादा ने जवाब दया
“19वाँ ओवर संजीव भइया करगे और ला ट ज र माट नशांत करेगा।” मने कहा।
मैच सचमुच एक रोमांचक मोड़ पर प ँच गया था। ऐसे मोड़ पर जहाँ सी नयर होना या
जू नयर होना बेमानी हो गया था। जहाँ हमारे ोफेसर क उप थ त बेमानी हो गई थी। मायने
रखते थे तो बस, आने वाले दो ओवर और उनपर बनने या न बन सकने वाले 19 रन। जीत का
पलड़ा कसी तरफ भी झुक सकता था। इसी झुकाव, तनाव और दबाव के बीच संजीव सर ने
अपना पहली बॉल नभय को डाली –
“छ का..! र र र… पहले बॉल पर ठोक दया…. र र र र।”
“ जओ नभय! एक और एक और चा हए।” वनीत च लाया।
“एक रन लया। ठ क है।” अब कमलेश खेलेगा।
“ फर दया उठा के… गया… गया… गया… गया…. बाहर। बैट उठा के मारा ट कर ये लो
श कर!” जयवधन क कहावत समझ के परे थ ।
“अब 9 बॉल पर 6 रन चा हए। बन जाएगा आराम से।” मने कहा।
“अरे!… दया है घुमा के….! फर छ का…. मार दया कमलेश।”
र र र र।
खेल खतम।
र र र ंर।
खेल ख म हो गया था। जस 19 रन ने हम सब क धड़कन रोक रखी थ , वह सफ चार
बॉल म बन गए थे। जयवधन वकेट उखाड़ने को भागा। दादा मुरली सर से मलने दौड़ा और म
शखा को फोन लगाकर जीत क खबर दे ने लगा। बाक लोग सी नयस से मल रहे थे, चाय पी
रहे थे और मुरली सर के अ पाय रग क तारीफ कर रहे थे। मुरली सर, हमेशा क तरह सी नयस
को क रयर क दशा बता रहे थे और हम पढ़ने क सलाह दे रहे थे। उ ह से बात करने और
ेकफा ट करने के बाद हमारी और सी नयस क ट म हो टल लौट आई।
“अब जा के लग रहा है क इंसान ह।” दादा ने ब तर पर गरते ए कहा।
“हाँ बे, जीतना अपने-आप म एक नशा है। नह या?” मने कहा।
“हाँ भाई, ले कन तुम तो हराने का पूरा इंतजाम कर दया था। साला अंडा पर आउट हो
गया। उस ओवर म तीन वकेट। वह से सारा मामला गड़बड़ा गया था।” दादा ने आँख पर चादर
डालते ए कहा।
“अबे, बॉल समझ म ही नह आया था; ले कन हम ही मामला ठ क भी कए थे। मूस से
फोन नह करवाए रहते ना, तो कोर कुछ और ही होता।” मने कहा।
“फोन? अबे मेरा मोबाइल कहाँ है?” दादा ने हड़बड़ा कर चादर फकते ए पूछा।
“अरे यार!” म भी घबरा गया। जीत क खुशी म, मुझ े मोबाइल का होश ही नह रहा। दादा
ने बै टग करने जाते व मुझे अपना वेटर और मोबाइल, दोन रखने को दया था।
“लाया था क नह ?” दादा ने पूछा।
“हाँ भाई! मैदान से तो लाए थे। हो टल म घुसे फर वेटर और मोबाइल रख के पानी पीने
लगे। उसके बाद यान नह है।” मने पट क पॉकेट टटोलते ए कहा।
“ज द से फोन कर।” दादा ने मुझसे कहा; ले कन मेरा मोबाइल छ नकर खुद ही डायल
करने लगा।
“ या कह रहा है?” मने परेशान होकर पूछा।
“ .” दादा ने फोन काटते
ए कहा।
“ले बेटा। लगता है कोई उड़ा दया।” मने धीमी आवाज म कहा।
“ह म।” दादा ने कहा।
“या हो सकता है बैटरी भी ख म हो गया हो?” मने कुछ सोचते ए कहा।
“हो सकता है; ले कन एक बात तो तय है क अब फोन मलने से रहा। चल, पु लस टे शन
म रपोट कर दे त े ह।” दादा ने म म घुसते ए कहा।
“अबे छोड़ो ना। कहाँ पु लस के च कर म जाओगे? फोन मलना है नह ।” मने कहा।
“कुछ मस यूज हो सकता है भाई।” दादा ने शंका जताई।
“घंटा मस यूज होगा? मेरा गुम आ; कुछ आ? छोड़ो।” मने दादा से कहा।
“छोड़ दे त े भाई, अगर मोबाइल मेर े नाम से होता; ले कन मोबाइल माँ के नाम से था।
इसी लए रपोट लखवा ही दे त े ह।” दादा ने बाइक टाट क और नकल गया।
***
कोहराम
व -08.35 सुबह
“नव जी कहाँ है? काफ दन से दखे नह !” मने श करते ए दादा से पूछा।
“आज सबेरे ही तो दखे थे; आज पटना जा रहे ह। बता रहे थे उनके पटना वाले मौसा जी
क त बयत ठ क नह है।” दादा ने हँसते ए जवाब दया।
“वो और उनके मौसा जी! कोई एक ऐसा ड ट बताओ जहाँ उनके मौसा जी नह ह ।”
मने भी हँसते ए कहा।
“चलो, जरा मल लया जाय। कुछ ान लया जाय।” मने उठते ए कहा।
***
व -08.55 सुबह
नव जी के कमरे म जाने पर पता चला क वो मेस म ह। हम दोन जब मेस क ओर बढ़े
तो रा ते म जयवधन भी मल गया। मेस म घुसते ही नव जी खाने क टे बल पर बैठे नजर
आए। जयवधन उ ह दे खकर मेस महाराज क ओर बढ़ गया और खाने का मुआयना कर आया।
“आज खाना म या है महाराज?” मने पूछा।
“रोट , दाल और कटहल का को ता।” मेस महराज ने बड़े आदर से कहा।
“तो ले आइए। आज भूख ब त तेज है। फर लास करने भी जाना है।” मने कहा।
“हम कटहल नह खाते ह।” जयवधन ने स जी दे खते ही कहा।
“जो है, सो खा लो। लास करने भी चलना है।” मने कहा।
“नव जी, आपका अभी तक का नंबर मला के फ ट ड वजन बन रहा है क नह ?” मने
पूछा।
“हाँ 67 पसट।” नव ने खाते ए ही कहा।
“इनका य नह बनेगा? ोजे ट, ेजटे शन सब टाइम पर। ले चरर को यस सर, नो सर
सब टाइम पर। ले चरर का सर-स जी, बर-बाजार सब टाइम पर। धार गाय के लात सहाय!”
जयवधन ने को ता हटाते ए कहा।
“अरे! तो ोजे ट और ेजटे शन टाइम पर दे ना पाप है या? बड़ क इ जत करना भी
गुनाह है या? और नंबर आपके मेहनत को ही दखाता है। नंबर लाना भी पाप है या? ज द -
ज द खाना ख म क जए। अभय कुमार के ले चर का समय हो गया है।” नव जी ने हाथ
धोते ए कहा।
व -5:30 – शाम
लास म घुसने के बाद, अब साँस लेन े का समय मलना भी मु कल हो गया था। सारे
ले चरस अपना सलेबस ख म करने क ज द म थे; इस लए कोई लास खाली नह जाती
थी। ला ट सेमे टर क लास अचानक यादा ही उबाऊ लगने लगी थी। कारण यह था क अब
सबको यूचर क चता सताने लगी थी। ज ह ै टस करनी थी, वह अ छे सी नयर एडवोकेट
क तलाश म लग गए थे। ज ह एडवांस टडी करनी थी, वे लास म ही बैठकर . . . क
तैयारी करते थे। इ ह कारण से ला ट सेमे टर के लास बोर करने लगे थे।
“लगातार तीन लास कर के थक गए ह गु ! चलो कट न, थोड़ा चाय पया जाए।” लास
से नकलते ए दादा ने कहा।
“नह , हो टल चलो। वह चाय पएँग।े ” मने कहा।
“तुमलोग जाओ। हम आज जरा संकटमोचन मं दर जाएँग।े माँ कह रही थी तुमसे बड़ा पापी
कौन होगा? लोग, नया भर से मं दर दशन करने आते ह और तुम हो क वह पर रहते ए
आज तक नह गए।” जयवधन ने जाते ए कहा।
“हमलोग के लए भी साद ले आना। और हाँ! बंदर से छ नकर मत लाना” दादा ने
च लाकर कहा और बाइक म चाभी लगाने लगा।
“आज पहली बार जयवधन चाय के लए मना कया। हमको कुछ ठ क नह लग रहा है।”
मने दादा क बाइक क पछली सीट पर बैठते ए कहा।
“ दे ख े हो या कल रात म? कम-से-कम चाय पर तो कुंड लनी मत
जगाओ! जबतक हमलोग हो टल प ँच के चाय पएँगे, तब तक जयवधन भी आ जाएगा।”
दादा ने बाइक टाट करते ए कहा।
व -6:00 – शाम
हो टल प ँचते ही मने दे खा क नव जी बैग लटकाए नकल रहे ह। बाहर एक र शावाला
उनका इंतजार कर रहा है। अब जब आख मल ग तो मने यूँ ही पूछ लया –
“नव जी, कब तक लौटगे?”
“जैसे ही मौसा जी का त बयत ठ क हो जाएगा, हम चले आएँग।े ” नव जी ने र शा पर
बैठते ए कहा।
“अ छा फर! !” मने हाथ हलाते ए कहा।
अपने कमरे म प ँचकर दादा ने ब कट का एक पैकेट खोल लया। कपड़े बदल कर मने
भी एक ब कट उठा ली। आज मेरा मन लैपटॉप पर फ म दे खने का भी नह हो रहा था। म
उधेड़बुन म ही था क दादा ने पूछा-
“ केट खेलेगा?”
“नह , चल आज वॉलीबॉल खेलते ह।” मने कहा।
“ जओ राजा! बाप क ख टया टू ट , बेटा पए ू ट । चलो।” दादा ने ताना मारा।
“स वस हम करगे।” मने वॉलीबॉल क एक ट म म एं लेत े ए कहा।
“चलो करो स वस। हम आज तु हारा खेल ही दे खगे। दादा ठ क मेरे पीछे आकर खड़ा हो
गया।
“ये दे खो, मेरा स वस!” मने कहा।
व -06:20 – शाम
अनहोनी अपने होने से पहले आशंका भेजती है। मन सशं कत हो जाता है। अनायास ही
दल क धड़कन बेस हो जाती ह। आप कुछ असामा य करने लगते ह; जैस े आज म अपने मन
को बरगलाने के लए वॉलीबॉल खेलने लगा था। जब क आज से पहले मने वॉलीबॉल क गद
का वजन भी नह जाना था। मेरा मन जयवधन के संकटमोचन मं दर जाते व ही सशं कत हो
गया था। यह बात म दादा को नह बता सकता था। मुझ े फर भी कसी अनहोनी क क लगी
ई थी।
“बचो बे!” दादा ने मुझ े एकदम बाँह से ख चते ए कहा।
सुपारी के पेड़ क एक सूखी टहनी सीधे मेरे सर पर गर रहा था। हो टल के भीतर चार
ओर सुपारी के पेड़ लगे ए थे। जसक टह नय का सूखकर गरना सामा य बात थी; ले कन
यह कंपन कुछ असामा य था और असामा य थी वह आवाज, जससे यह कंपन पैदा आ।
“ये आवाज कैसी थी भाई?” मने दादा से पूछा।
“कह बम फटा होगा?” दादा ने मजाक कया।
“ले कन ये सूखी टहनी उसी आवाज से गरी है।” मने कहा।
“यही नह ! बाक पेड़ क सूखी टह नयाँ भी इसी आवाज से गरी ह।” दादा ने सरी ओर
दे खते ए कहा।
“कोई एयर- ै श तो नह आ कह ?” मने कहा।
“एयरपोट शहर के बाहर है और कोई ए वएशन बेस यहाँ नह है; इस लए यादा दमाग मत
लगाओ और वॉलीबॉल खेलो।” दादा ने कहा।
“ को एक मनट! शखा का फोन है, हम बात करते ह। मेरी जगह तुम खेलो। मने दादा से
कहा।
“हैलो। हाँ बोलो। हाँ, मने भी सुनी आवाज। नह , ऐसा कुछ नह । हाँ भाई, हो टल म ही ।ँ
नह बाहर नह ँ। चलो बाय।”
व -06:40 शाम
जयवधन के आने म दे र हो रही थी और वॉलीबॉल भी ख म हो चुका था। दादा और म हाथ-
मुँह धोकर अभी चाय पीने नकले ही थे क नव जी र शे से उतरते दखाई दए। नव जी को
लौटकर आता दे ख मुझ े ब त आ य आ। म अभी उनके लौटने का कारण पूछने ही वाला था
क दादा ने पूछ दया-
“अरे नव जी? आप लौट आए? मौसा जी नकल लए या?”
“यार, कसी के लए तो शुभ बोला करो! उधर संकटमोचन और कट टे शन पर ला ट आ
है। र वदास गेट से आगे कसी को जाने नह दे रहे है। सुन रहे है क सात आदमी मारे गए ह।
अपने हो टल का तो कोई नह गया है ना?”
“जयवधन!” अचानक ही हमदोन के दमाग म एक साथ क धा।
“दादा..! गाड़ी नकाल ज द !” मने च ला कर दादा से कहा।
व -06:55 शाम
इस व तक संकटमोचन छावनी म त द ल हो चुका था। मं दर प रसर को बंद कर दया
गया था। लोग को भीतर घुसने से रोका जा रहा था। घायल को मं दर से नकालकर बाहर
लटाया जा रहा था और फर उ ह पास के सर सुंदरलाल अ पताल प ँचाया जा रहा था।
व फोट क खबर शहर भर म आग क तरह फैल गई थी। पूरा शहर सदमे म था। यादातर
लोग व फोट के बाद ई भगदड़ म घायल ए थे। घायल म औरत और वृ अ धक थे।
भगदड़ म बचने क को शश म ही यादा घटनाएँ ई थ । म अपने घर पर यह बताना चाहता
था क म ठ क ँ। यूँ क यह समाचार सुनकर घरवाले भी परेशान ह गे। घर वाल को फोन
करने क को शश क ; ले कन फोन नह लगा। इधर जयवधन भी कह दख नह रहा था।
“बैरीकेड के आगे तो कसी को जाने नह दे रहे ह और जयवधन के पास फोन भी नह
था?” मने कहा।
“चार तरफ तो घायल पड़े ह, कधर ढूँ ढ़?” दादा ने कहा।
“चलो, चल के घायल म दे ख लेते ह।” मने कहा।
“घायल म य ? घायल म य दे ख? वो एकदम ठ क होगा। उसको कुछ नह हो सकता
है।” दादा थ त दे खकर जड़ हो गया था।
“आज जयवधन शट कैसा पहना था?” मने फर पूछा।
“था? था का या मतलब? पूछो क कैसा शट पहना है। उसको कुछ नह आ है; समझे?”
दादा का गला ँ ध रहा था।
“दो त! हम समझ रहे ह तु हारी हालत। मेरी भी वैसी ही है; ले कन एक बात सोचो; अगर
वो घायल हो और उसे मदद क ज रत हो और हम यह रहकर समय पर नह प ँच पाए तो
या जदगी भर इस पछतावे से बाहर नकल पाओगे? इसी लए कह रहे ह, बताओ कैसा शट
पहना था?” मने दादा को समझाने क को शश क ।
“सफेद।” दादा ने अँगठ
ू े से अपने आँख के कोन के प छते ए कहा।
“अ छा, तुम यह को। हम दे ख के आते ह।” मने कहा।
बम- ला ट वाली जगह क घेरेबंद कर द गई थी। चार ओर हमेशा नजर आने वाले बंदर
नदारद थे। ांगण क छोट -छोट न का शयाँ, घायल के खून प छे जाने से स री नह रह गई
थ । खून के ध ब म सने जूत के नशान अभी ताजे थे। सायरन का शोर उकता दे ने वाला था।
प लक और ेस को नयं त करने म पु लस को खासी मश कत करनी पड़ रही थी।
दादा भीतर घुसने के लए सपा हय से बेतरह उलझ रहा था। मेरी आँख बस सफेद शट
तलाश रही थ ; ले कन वहाँ कोई भी शट अब सफेद नह रह गई थी। कह खून के ध ब ने शट
के कॉलर और पॉकेट रंग दए थे; तो कह पूरी शट ही सन गई थी। मने एक आदमी को
जयवधन समझ कर उठाने क को शश क तो उसका हाथ कट कर मेरे हाथ म आ गया। म
ब त डर गया। वह आदमी मर चुका था। म चीखना चाहता था; पर चीख भीतर ही घुट गई।
घायल लोग क चीख-पुकार और कराह मेरा हौसला हला रही थी; फर भी मने बाहर पड़े
लगभग सभी घायल को दे खा। जयवधन उनम नह था। एकबारगी मुझे याल आया क ऐसी
थ त म जयवधन का जदा बचना भी मु कल है; ले कन उसका मलना भी तो ज री था;
चाहे जस हाल म मले। मेरे दमाग म एक बार अ पताल जाकर मरनेवाल म भी दे खने का
याल आया। ले कन जबतक म कसी नतीजे पर प ँचता, तबतक दादा दौड़ता आ मेरे पास
आया और पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा। मने पीछे मुड़ कर दे खा तो उसक आँख म आँसू थे।
उसने मुझे उँग लय के इशारे से कुछ दखाते ए कहा-
“उधर दे खो। जयवधन कसी को कंधे पर उठा कर ला रहा है। वो जयवधन ही है ना?”
“हाँ, वही है भाई! जयवधन। जयवधन।” मने जोर से आवाज द और जयवधन क ओर
दौड़ पड़े।
“अबे, तुमलोग कब आए? जानते नह हो, यहाँ बम- ला ट हो गया है।” जयवधन ने कंधे से
उस घायल को े चर पर डालते ए कहा।
“नह भाई, हमलोग को कहाँ से मालूम चलेगा? हमलोग तो यहाँ क तन करने आए थे क
तुम दख गया।” दादा ने कहा।
“चलो-चलो, मुँहपेलई बाद म करना; अभी बहा र को उठाओ, हॉ पटल प ँचाना है। पैर
और पेट म चोट लगी है इसको।” जयवधन ने घायल को उठाते ए कहा।
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सा जश
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एक दन अचानक