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रूमा
रूमा
राहुल उपाध्याय
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पात्र काल्पनिक हैं।
कहानी सच्ची है ।
विचार मेरे हैं।
जबसे मैं अमेरिका आई हूँ बहुत खश ु हूँ। सबसे पहले तो इस बात से
खशु थी कि दस वर्ष की उम्र में ही पासपोर्ट बन गया। बताओ ऐसे
कितने हैं जिनका इतनी कम उम्र में कुछ भी बना हो। अपने सारे
परिवार में , अपने सारे दोस्तों में , अपने आस-पड़ोस में दरू -दरू तक
कोई नहीं था जिसका पासपोर्ट बना हो। यहाँ तक कि व्हाट्सएप पर भी
जितने हैं सब के बच्चों के पास भी नहीं है ।
पापा है दराबाद में आय-टी फ़ील्ड में काम करते थे। उनकी कम्पनी का
एक प्रोजेक्ट अमेरिका में भी था। चँ कि
ू वे अपना काम परू ी मेहनत और
ईमानदारी से करते थे, उनके बॉस ने उनसे पछ ू ा कि क्या वो इस
प्रोजेक्ट पर काम करना चाहें गे?
प्लेन में घस
ु ते ही ऐसा लगा जैसे स्वर्ग में आ गए। सब फ़्री। जितना
पेप्सी पीना हो पियो। जितना चॉकलेट खाना हो खाओ। आईसक्रीम
भी। खाना भी। ढे र सारी फ़िल्में । कार्टून। टीवी शो। सब फ़्री। कहीं एक
पैसे का खर्चा नहीं।
ऐसा लगा कि है तो अंग्रेज़ी पर कोई नहीं भाषा सीख रही हूँ। शरू
ु में
स्कूल में न बच्चों की न टीचर की, कोई बात समझ नहीं आती थी।
बोलने का लहजा इतना अलग कि सब सर के ऊपर से ही निकल जाता
था।
यहाँ आटोरिक्शा नहीं चलता। उबर से टै क्सी कर सकते हैं। तीस डॉलर
तक खर्च हो जाता है कहीं भी जाना हो। भारत में तीस रूपये कुछ नहीं
होते। यहाँ तीस डॉलर बहुत होते हैं। एक डॉलर में पाँच केले आ जाते
हैं। एक ब्रेड का बड़ा पैकेट आ जाता है । सो हम कहीं नहीं जाते हैं जब
तक पापा दफ़्तर से नहीं आ जाते। जब तक वे आते हैं शाम हो जाती
है । दे र हो जाती है । थक जाते हैं। इसलिए कहीं नहीं जाते। हाँ, यह
अच्छी बात है कि शनिवार-रविवार दोनों ही दिन छुट्टी होती है । तब
बहुत मज़ा आता है । हम तीनों मिलकर ग्रोसरी ख़रीदने जाते हैं। आते
वक़्त चॉटहाऊस से डोसा-इडली-पाव-भाजी जैसा चटपटा खा कर आते
हैं।
अमेरिकन खाना क्या होता है , हमें नहीं पता। हम अभी भी अपना उत्तर
भारतीय खाना ही खा रहे हैं। पिज़्ज़ा। बर्गर। पास्ता। ये सब तो हम
है दराबाद में भी खाते थे। लेकिन ये सब फ़ास्ट फ़ूड है । असली
अमेरिकी खाना नहीं है । स्कूल के कैफ़ेटे रिया में मिलता है अमेरिकन
खाना। ज़्यादातर में मीट होता है । या फीका। या बिलकुल बर्फ सा
ठं डा। सप
ू गर्म होता है । लेकिन मीट वाला। पिज़्ज़ा गर्म होता है ।
लेकिन मीट वाला।
टीवी पर बहुत बढ़िया प्रोग्राम आते हैं। घर में हाई स्पीड इंटरनेट है ।
वाईफ़ाई हमेशा चलता रहता है । जब जो मन चाहे शो दे खो। गाने
सनु ो। यट्
ू यब
ू दे खो। मौज ही मौज है ।
फल और मिठाईयों की कोई कमी नहीं। फ्रिज और डब्बे तरह-तरह के
व्यंजनों से भरे हुए हैं। ख़त्म हुए नहीं कि और आ जाते हैं। किसी बात
की कोई कमी नहीं।
पापा ने कहा तम ु बच्ची हो। कुछ नहीं समझती हो। बस कह दिया नहीं
जाएँगे तो नहीं जाएँगे।
मैं बहुत रोई। कभी कहते हैं इतनी बड़ी हो गई हो, अपना काम खद
ु
किया करो। कल को तम् ु हारा ब्याह हो जाएगा तो कैसे घर चलाओगी।
कॉलेज की पढ़ाई कैसे करोगी। वग़ैरह। वग़ैरह।
मैंने मम्मी से पछ ू ा। मम्मी ने कहा बेटा हम परदे स में हैं। कई सारे ऐसे
क़ानन ू होते हैं जो हम समझ कर भी नहीं समझ पाते हैं।
बस ये समझ ले कि हम चक्रव्यह ू में फँस गए हैं। पता है न अभिमन्यु
की कहानी? उसे चक्रव्यह
ू में घस
ु ने की कला आती थी। निकलने की
नहीं।
बआ
ु की शादी हमारे बिना हुई। हमारे बिना हो गई।
ु हूँ।
मैं आज भी ख़श
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27 जनवरी 2022
सिएटल