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BCA 1 Semester घायल बसंत

व्यंग निबंधकार हररशंकर परसाई जी को की लिखी यह कहािी घायि बसंत है । िेखक बसंत के आिे की
सूचिा दे रहा है ।प्रिय फिर आया मादक बसंत। िेखक िे सोचा जजस बसंत के आिे की सूचिा दे िा पडे इससे
अच्छा तो शत्रु है । कप्रि मग्ि होकर गा रहा है । प्रिय फिर आया बसंत ।बसंत पहिी पंजतत सि
ु कर ऐसा िगता
है फक इस कप्रिता का अंत तो हा हं त से ही होगा। तुक की गुिामी कब तक करोगे? आरं भ चाहे बसंत से कर
िो मगर अंत तो हा हं त से ही होगा। कप्रि ही िहीं सयािे िोग भी ऐसा करते हैं। तक
ू े बार-बार फिट बैठती है
।पर जीिि का आिेग निकि भागता है ।दे श के अर्थ मंत्री िे दबा सोिा निकििािे के लिए तुकबंदी बिाई
।सोिा दबािे िािा दे श के लिए स्िेच्छा से सोिा दे दो ।तक
ु तो उत्तर िकार की र्ी ,परं तु सोिा चार हार् पीछे
चिा गया ।आखखर कब तक हम तुक को नतिंजलि दे दें गे? कब हम बेतुके चििे की हहम्मत करें गे ?कप्रि िे
कप्रिता िाहि हा, हं त कर दी ।िेखक िे कहा सात तुक में ही टैं बोि गया। िौ तक तो चक्र पर बांधी है । मुझे
तो पता है फक बसंत आ गया है । सिेरे- सिेरे दरिाजा खटखटाया मैंिे पूछा- कौि ?जिाब में- मैं बसंत। मैं डर
गया। जहां से उधारी सामाि िाता र्ा उसके िौकर का िाम भी बसंत र्ा। िह अगर िसूिी करिे आया होगा
तो फिर पकड कर र्ािेदार से गगरफ्तार कर दे गा। तो अमत
ृ पाि मुझे िांसी पर िटका दे गा। बसंत भी सोचता
होगा ऐसे के घर तया जािा, जजसके दरिाजे पर सुबह-सुबह उधारी िािे खडे हो गया। फिर आिाज आई मैंिे
पूछा कौि-? आिाज में बसंत ।बसंत िाराज होकर बोिा मैं फकसी बनिए का िौकर िहीं ।मैं तो ऋतुराज हूं
।आज तुम्हारे द्िार पर आया हूं बाहर निकिो दे खो र्ोडे पेड़ों िे भी िे लिए हैं।

िेखक िे कहा माि करिा भाई मैं तुम्हें िहीं पहचािता। सुिा है तुम उबड खाबड चेहरे को ठीक कर दे ते हो।
जाते -जाते मेरी सीढी ठीक कर दे िा। जरा उखड गई है । उसे बरु ा िगा ,तो िह संद
ु ररय़ों के चेहरे ठीक करता
र्ा। िह चिा गया ।िेखक उठाया और सामिे की हिेिी पर दे खा। सोचा बसंत में जो कोयि होती है पर
सामिे कौिा कांि-कांि कर रहा र्ा। इससे मेरी सद
ंु री भाििा को ठे स िगी। फिर िेखक के मि में ख्याि आता
है फक कौिा भी तो प्रियतम के आगमि का संदेश दे िे िािा मािा जाता है । शाम के गाडी से िायक िापस आ
रहा होगा। कि िानयका बाजार से सामाि मंगिा आएगी। जजसमें 2 तोिा सोिा होगा ।िायक पूछेगा फक तुम
सोिे का तया करोगी? िानयका िजा कर बोिेगी कोयिे की सोच मंढिािी है । अगर कौए िे 14 कैरे ट के सोिा
से चोच मडिािा स्िीकार िहीं फकया, तो उन्हें प्रिय के आगमि की सूचिा कौि दे गा ?कौिे िे कहा मैं इसे घण
ृ ा
करता हूं ।तब से जब इंद्र का आिारा बेटा जयंत आिारागदी करते हुए कौिे बिकर सीता के पांि में चोच मारी
र्ी। ऐसे िोग हमेशा दस
ू ऱों का िेम बबगडते हैं ।कोयि तो बसंत की में होती है ।मुझे तो कोयि के पक्ष में
उदास पुराति िेलमय़ों की आहे सुिाई दे ती है । अब तो शहऱों में कारखािे बस गए हैं। अमराईयां कहां है ? िह तो
िडाई पर भी कब्जा कर िेते हैं। कोयि को अभी आिा चाहहए। अभी मैंिे लमट्टी को दी पािी और खाद डािा
है । उसे गािा चाहहए।

यह कैसा बसंत है ?जो सीत से डर के कांप रहा है । लशमिा के उस बिीिी हिा िे हमारे बसंत का गिा दबा
हदया है ।हहमािय के पास बहुत सारी बिथ

बिाई जा रही है । जजसमें मिुष्य जानत को मछिी की तरह रखा जाएगा ।यह साजजश है बिथ की साजजश।
शैिी िे कहा शीत आ गई है ।तो बसंत भी उसके पीछे होगा ।अगर पीछे िू भी चि सकती है । हमारा बसंत
दोि़ों के बीच िंसा हुआ है ।मौसम का इंतजार करें गे तो एक के बाद एक मौसम आता रहे गा। बसंत अपिे आप
िहीं आता। िािा पडता है ,दो पाट़ों के बीच में िंस है बसंत। अगर इसे बचािा है तो जोर िगाकर पीछे
धकेििा होगा। तब बीच में से निकिेगा हमारा घायि बसंत।

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