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|| श्री सिद्धनाथ िद् गुरू स्तोत्र ||

नमन करू विघ्नेश्वरासी |


शरण जािे सद् गुरुसी ||
भोगू आत्मनंदासी |
सिवकाळ ||१||
सद् गुरुराया तुम्हासी नमन |
िारं िार असो जाण ||
दशवन द्यािे झडकरी येऊन |
हीच विनंती चरणां सी ||२||
अनंत अपराध घाली पोटी |
अज्ञान उडिी झटपटी ||
कृपादृष्टी व्हािी उठाउठी |
हीच विनंती चरणां सी ||३||
तूच आमुची कुलदे िता |
आराधना तुझीच आता ||
पाठीराखा तूची असता |
शरण जाऊ किणासी ||४||
तूची कताव तूची भताव |
तूची अससी अन्नदाता ||
कुटू ं ब रविसी तत्वता |
दशवन द्यािे झडकरी ||५||
मती झालेसी भ्ां त |
काही सुचेना बैसलो वनिां त ||
मागव द्यािा आता त्वरीत |
शरण शरण सिवकाळ ||६||
प्रपंच हाची सुचेना |
परमार्व हाची घडे ना ||
मन गोंधळले जाणा |
किण्या िाटे जाऊ पहा ||७||
कमवमागव बंद पडला |
वचत्ताचा सिव भास उडाला ||
कोणत्या जाईल र्राला |
हे वच काही कळे ना ||८||
उपिास तेही घडे ना |
वनद्रापण वह हटे ना ||
नामवचंतन मुखी येईना |
आळस भरला असे ||९||
विचार पण ते काही नाही |
मवत माझी गुंगीत राही ||
काय ? करािे आता पाही |
सद् गुरू राया उमजेना ||१०||
आपण सिव मागव दाखविता |
तो न येई माझे हाता
काय ? आहे वह \न्युनयता |
सद् गुरु राया कृपा करी ||११||
आपण जे जे सां गीतले |
आतापयंत करून घेतले ||
लि आता का कमी केले |
बालकािरचे पहा ||१२||
सकाम तेही कळे ना |
वनष्काम तेही िळे ना ||
गोंधळ झालासे मना |
दू र करी सद् गुरु राया ||१३||
विविधतापातुनी मुक्त करािे |
अध्यात्ममागी ररझिािे ||
सदै ि येउवन दशवन द्यािे |
विनंती वह आपुले पायासी ||१४||
आता पूणव करािी कृपा |
नेउवन बैसािे वनविवकल्पा ||
समाधी सुखाची अिस्र्ा |
सिवकाळ असािी ||१५||
जी जी विया सां गाल |
ती ती करोनी घ्यािी बहुमोल ||

आम्ही पामर आहोत फोल |


अज्ञानी जैसे बालक ||१६||
अज्ञान बालका वहरा दे ता |
फेकुनी दे ई तो तत्वता ||
त्याच्चे ज्ञान तयासी नसता |
वकंमत त्याची तया नसे ||१७||
तैसे झाले आम्हा अज्ञाना |
कृपा करािी झडकरी जाणा ||
आत्मज्ञानाच्या द्याव्या खुणा |
हीच विनंती सद् गुरु पायी ||१८||
कमव हीन झालो आता |
पुनीत करािे तत्वता ||
मागव द्यािा शीघ्रता |
हीच विनंती तुमचे पायी ||१९||
आपुली पूणव कृपा आहे |
म्हवननी सिव चालत आहे ||
कुटुं ब रविले आपणाची पाहे |
सिव प्रकारे करोवनया ||२०||
आपुली कैसी करािी स्तुती |
मज अज्ञाना नाही मवत ||
विशेषण काय द्यािे पुढती |
नमन सिवकाळ ||२१||
मागणे एकची आता |
ति कृपा असािी अखंडीता ||
अज्ञानी बालक शरण तत्वता |
सद् गुरुरायासी ||२२||
आता साष्टांग कररतो नमन |
चरणां सी बैसती होऊनी लीन ||
कृपा प्रसाद ग्घेतो मागून |
अत्यादरे करोवनया ||२३||
द्यािा आता प्रसाद |
हाची धररला मनी हट्ट ||
सद् गुरुराये होऊनी प्रगट |
मस्तकी हस्त ठे िी पहा ||२४||
समजाउनी बोल सां गती |
ऐकािे तुम्ही शीघ्रगती ||
िागािे तैस्याच रीती |
अवतप्रेमे करोवनया ||२५||
सां वगतल्या वनयमे िागािे |
अखंड आईचे ध्यान धरािे ||
जगदं ब जगदं ब ऐसे म्हणािे सिवकाळ ||२६||
संग सिां चा सोडािा |
स्नेह रवहत दे ह असािा ||
द्वे ष कोणाचा न करािा |
ऐसे सां गाती श्रीगुरू ||२७||
भय रवहत होिोनी आता |
एकाग्र ते करी वचत्ता ||
स्वस्वरूपा वमळू नी जाता |
खरा आनंद येईल पहा ||२८||
भृंगीित उच्चार न करी |
नामवचंतने स्वर धरी ||
रं गुनी जाई नाम लहरी |
सिवकाळ ||२९||
तेणे साधेल भाि समाधी |
सुटतील सिव उपाधी ||
मुक्ती वमळे ल सिाव आधी |
गुरुकृपे करोवनया ||३०||
ऐसे सां गता गुरुराया |
नमन केले लिलाह्या ||
सद् गुरु गुप्त होिोवनया |
आशीिाव दा दे ते जाहले ||३१||
पती पत्नीने ऐसे िागािे |
दे हाचे सार्वक करूनी घ्यािे ||
जगदं बेसी प्रत्यि पहािे |
ह्याची डोळा ||३२||
आईची ती कृपा होता |
नां देल सिव समृद्धता ||
इहपर सुखाची िाताव |
येणेच सिव साधेल ||३३||
तळमळीने सिव सां गून |
गुप्त होती तेवच िण ||
सद् गुरुरायासी करून नमन |
प्रार्वना हीच संपिली ||३४||
ऐशा स्तोिाचा पाठ |
जो वनत्य करील दे ख ||
अंती पािेल मोिपदास |
इहपर सौख्य साधुवनया ||३५||

जगदं ब जगदं ब
|| इवत श्री सद् गुरु वसद्धनार् महाराज स्तोि श्री
कृष्णतनय हरी विरवचत श्री
जगदं बापवणमस्तु ||

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