शरण जािे सद् गुरुसी || भोगू आत्मनंदासी | सिवकाळ ||१|| सद् गुरुराया तुम्हासी नमन | िारं िार असो जाण || दशवन द्यािे झडकरी येऊन | हीच विनंती चरणां सी ||२|| अनंत अपराध घाली पोटी | अज्ञान उडिी झटपटी || कृपादृष्टी व्हािी उठाउठी | हीच विनंती चरणां सी ||३|| तूच आमुची कुलदे िता | आराधना तुझीच आता || पाठीराखा तूची असता | शरण जाऊ किणासी ||४|| तूची कताव तूची भताव | तूची अससी अन्नदाता || कुटू ं ब रविसी तत्वता | दशवन द्यािे झडकरी ||५|| मती झालेसी भ्ां त | काही सुचेना बैसलो वनिां त || मागव द्यािा आता त्वरीत | शरण शरण सिवकाळ ||६|| प्रपंच हाची सुचेना | परमार्व हाची घडे ना || मन गोंधळले जाणा | किण्या िाटे जाऊ पहा ||७|| कमवमागव बंद पडला | वचत्ताचा सिव भास उडाला || कोणत्या जाईल र्राला | हे वच काही कळे ना ||८|| उपिास तेही घडे ना | वनद्रापण वह हटे ना || नामवचंतन मुखी येईना | आळस भरला असे ||९|| विचार पण ते काही नाही | मवत माझी गुंगीत राही || काय ? करािे आता पाही | सद् गुरू राया उमजेना ||१०|| आपण सिव मागव दाखविता | तो न येई माझे हाता काय ? आहे वह \न्युनयता | सद् गुरु राया कृपा करी ||११|| आपण जे जे सां गीतले | आतापयंत करून घेतले || लि आता का कमी केले | बालकािरचे पहा ||१२|| सकाम तेही कळे ना | वनष्काम तेही िळे ना || गोंधळ झालासे मना | दू र करी सद् गुरु राया ||१३|| विविधतापातुनी मुक्त करािे | अध्यात्ममागी ररझिािे || सदै ि येउवन दशवन द्यािे | विनंती वह आपुले पायासी ||१४|| आता पूणव करािी कृपा | नेउवन बैसािे वनविवकल्पा || समाधी सुखाची अिस्र्ा | सिवकाळ असािी ||१५|| जी जी विया सां गाल | ती ती करोनी घ्यािी बहुमोल ||
आम्ही पामर आहोत फोल |
अज्ञानी जैसे बालक ||१६|| अज्ञान बालका वहरा दे ता | फेकुनी दे ई तो तत्वता || त्याच्चे ज्ञान तयासी नसता | वकंमत त्याची तया नसे ||१७|| तैसे झाले आम्हा अज्ञाना | कृपा करािी झडकरी जाणा || आत्मज्ञानाच्या द्याव्या खुणा | हीच विनंती सद् गुरु पायी ||१८|| कमव हीन झालो आता | पुनीत करािे तत्वता || मागव द्यािा शीघ्रता | हीच विनंती तुमचे पायी ||१९|| आपुली पूणव कृपा आहे | म्हवननी सिव चालत आहे || कुटुं ब रविले आपणाची पाहे | सिव प्रकारे करोवनया ||२०|| आपुली कैसी करािी स्तुती | मज अज्ञाना नाही मवत || विशेषण काय द्यािे पुढती | नमन सिवकाळ ||२१|| मागणे एकची आता | ति कृपा असािी अखंडीता || अज्ञानी बालक शरण तत्वता | सद् गुरुरायासी ||२२|| आता साष्टांग कररतो नमन | चरणां सी बैसती होऊनी लीन || कृपा प्रसाद ग्घेतो मागून | अत्यादरे करोवनया ||२३|| द्यािा आता प्रसाद | हाची धररला मनी हट्ट || सद् गुरुराये होऊनी प्रगट | मस्तकी हस्त ठे िी पहा ||२४|| समजाउनी बोल सां गती | ऐकािे तुम्ही शीघ्रगती || िागािे तैस्याच रीती | अवतप्रेमे करोवनया ||२५|| सां वगतल्या वनयमे िागािे | अखंड आईचे ध्यान धरािे || जगदं ब जगदं ब ऐसे म्हणािे सिवकाळ ||२६|| संग सिां चा सोडािा | स्नेह रवहत दे ह असािा || द्वे ष कोणाचा न करािा | ऐसे सां गाती श्रीगुरू ||२७|| भय रवहत होिोनी आता | एकाग्र ते करी वचत्ता || स्वस्वरूपा वमळू नी जाता | खरा आनंद येईल पहा ||२८|| भृंगीित उच्चार न करी | नामवचंतने स्वर धरी || रं गुनी जाई नाम लहरी | सिवकाळ ||२९|| तेणे साधेल भाि समाधी | सुटतील सिव उपाधी || मुक्ती वमळे ल सिाव आधी | गुरुकृपे करोवनया ||३०|| ऐसे सां गता गुरुराया | नमन केले लिलाह्या || सद् गुरु गुप्त होिोवनया | आशीिाव दा दे ते जाहले ||३१|| पती पत्नीने ऐसे िागािे | दे हाचे सार्वक करूनी घ्यािे || जगदं बेसी प्रत्यि पहािे | ह्याची डोळा ||३२|| आईची ती कृपा होता | नां देल सिव समृद्धता || इहपर सुखाची िाताव | येणेच सिव साधेल ||३३|| तळमळीने सिव सां गून | गुप्त होती तेवच िण || सद् गुरुरायासी करून नमन | प्रार्वना हीच संपिली ||३४|| ऐशा स्तोिाचा पाठ | जो वनत्य करील दे ख || अंती पािेल मोिपदास | इहपर सौख्य साधुवनया ||३५||
जगदं ब जगदं ब || इवत श्री सद् गुरु वसद्धनार् महाराज स्तोि श्री कृष्णतनय हरी विरवचत श्री जगदं बापवणमस्तु ||