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Harihar Kaka
Harihar Kaka
लेखक – मिमिलेश्वि
लेखक परिचय
मिमिलेश्वि का जन्म 31 मिसम्बि 1950 को मिहाि के भोजपुि मजले के
िैसाडीह नािक गााँ व िें हुआ।
इन्होने महिं िी िें एि.ए.औि पी.एच.डी. किने के उपिािं त व्यवसाय के रूप
िें अध्यापन कायय को चुना।
मिमिलेश्वि िुख्यतः किाकाि हैं । कहानी के साि-साि उपन्यास मवधा को
भी उन्होिंने गिंभीिता से अपनाया है तिा इन िोनोिं मवधाओिं िें अनेक कृमतयााँ
िी हैं ।
मिमिलेश्वि ने िाल-सामहत्य तिा नवसाक्षिोपयोगी अनेक कृमतयोिं के साि-
साि मनििंध मवधा िें भी िचना की है तिा सिंपािन के क्षेत्र िें भी हाि डाला
है । उनकी आत्मकिात्मक िचना के तीन खण्ड भी प्रकामित हो चुके हैं ।
कृमतयााँ - िू सिा िहाभाित, िेघना का मनर्यय, गााँ व के लोग, मवग्रह िािू
शिक्षण अशिगम श िंदु
उत्ति- यमि हिािे आसपास हरिहि काका जैसी हालत िें कोई हो तो हि उसकी सहायता मनम्न
प्रकाि से किें गे -
सिसे पहले हि उसके घिवालोिं को सिझाएिं गे मक वे अपने पुनीत कतयव्य के प्रमत सचेत िहें ।
असहाय व्यद्धि की खान-पान, िहन-सहन वस्त्र आमि की व्यवथिा सियानुसाि किें ।
उसके परिवाि के सिस्ोिं को सिझाएाँ गे मक असहाय व्यद्धि मक यमि तुि सहायता किोगे , तो
उसका फल तुम्हें अवश्य मिलेगा। अिाय त् उनकी जिीन, सिंपमत्त स्वतः ही तुम्हें मिल जाएगी।
धू तय िहिं त, पुजािी, साधु आमि की रिपोटय पुमलस िें
किें गे औि पुमलस को िताएाँ गे मक इनकी आाँ खोिं पि
लालच का चश्मा लगा हुआ है । ये असहाय व्यद्धि की
जिीन पि िलपूवयक कब्जा किना चाहते हैं ।
भाइयोिं, िहिं त, साधु व पु जारियोिं की खिि िीमडया को
िें गे तामक उनका िु ष्प्रचाि हो सके। साि ही सिकािी
हस्तक्षेप से उन्हें अपने मकए की सजा मिल सके। साि
ही हरिहि काका जैसे व्यद्धि को न्याय मिल सके।