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Juni Khyat ISSN: 2278-4632

(UGC Care Group I Listed Journal) Vol-10 Issue-5 No. 2 January–December 2020

‘जिन्दगी 50-50’ में किन्नर िा समाि में स्थान


और
उनिी संघर्षशीलता
ओनम साहू*
*
जिद्याथी, एम. ए . जिन्दी साजित्य, बस्तर जिश्वजिद्यालय, िगदलपुर
(छत्तीसगढ़)

‘ईश्वर ने बनाया िम सबिो साथ


ना भेदभाि मनुष्य पशु पक्षी सब
िै आत्मा सब शरीर जनिास
तब उसी पर सिाल क्यों?
िि किन्नर िै क्यों?
भगिंत अनमोल िा ‘जिन्दगी 50-50’ उपन्यास किन्नर िीिन िा यथाथष
जित्रण िरता िै । स्त्री, दजलत, आकदिासी जिमशों िे दौरान यि भाग उपेजक्षत
रिा । लेकिन इक्कीसिीं शताब्दी में समाि िे इस जिर्य िो साजिजत्यि जिमशों
में स्थान जमलने लगा िै । उनिा यि उपन्यास इसी जिमशष िो लेिर साजित्य
िगत में आता िै। इसमें किन्नर िीिन िे प्रजत सामाजिि धारणा, लोगों िे
व्यििार, उनिे प्रजत बदलती मानजसिता, पाररिाररि परिररश आकद अनेि
पक्षों िो सफलतापूिषि प्रस्तुत किया गया िै । उनिे उपन्यास िी रिनाशीलता
िे जिर्य में डॉ. िजिश्री िायसिाल जलखती िैं कि- “जिंन्दगी 50-50 में लेखि
िी रिनात्मि िला में लेखन िी सिि गजत समाई िै । जिसमें शाजमल िै जिंतन,
मनन, प्यार और प्रायजित। भगिंत अनमोल अपनी भाि-भार्ा से अपने जििारों
िे प्रारूप िो रिने में समथष िैं। अपनी जनष्ठािान सोि िे अंिुरजत शब्द सुमन में
किन्नर िीिन िे संघर्षमय िीिन िो रे खांकित िरते हुए िे िमसे रू-ब-रू िोते
िैं।”1 देखा िाए तो, आि भी अजधिांश मनुष्य किन्नरों िे िीिन से अनजभज्ञ िैं,
या ििें तो अनजभज्ञ रिना िािते िैं । आये कदन उन्िें बसों और ट्रेनो में भीख
मांगते देखा िा सिता िै । मन सोिने में मिबूर िो िाता िै कि इतने िट्टे-िट्टे

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Juni Khyat ISSN: 2278-4632
(UGC Care Group I Listed Journal) Vol-10 Issue-5 No. 2 January–December 2020

इं सान िु छ पैसों िे जलए जबना िायष किए लोगों िो तंग िरते रिते िैं। िि िौन-
सी मिबूरी िै कि उन्िें जस्त्रयों िी तरि सि सँिरिर गली-गली भीख मांगने िे
जलए मिबूर िोना पड़ता िै? अतीत से ितषमान ति दुजनया इन्िें िेय दृजि से
देखती िली आ रिी िै । समाि में अतीत पर आधाररत मान्यताएँ, अजधि िैं ये
मान्यताएँ आि भी इं सान िे मन में, एि इं सान िे जलए िी गलत धारणा बनाए
रखी िैं! समाि िी ऐसी दोिरी मानजसिता और व्यििार िे िारण िी किन्नरों
िो नरिीय िीिन िीने िे जलए जििश िोना पड़ रिा िै । इसी िे िलते किन्नर
िगष आि भी समाि में सम्मान िे जलए संघर्षरत िै ।
समाि स्त्री और पुरुर् दो रूपों में बंटा हुआ िै । इसिे अजतररक्त समाि में
तीसरा िगष भी िै । िो न स्त्री िै और न पुरुर् िो समाि िे उपेजक्षत व्यििार िा
जशिार िै । जिनिे िननांग पूरी तरि जििजसत न िो पाये, तो समाि उन्िें
किन्नर नाम से सम्बोजधत िरता िै । शरीर पुरुर् िा िोिर स्िभाि स़्त्त्री िा िो
अथाषत् उनिी भािनाएं िरूरतें सब स्त्री िी। एि बहुत िििनि जस्थजत जिससे
उन्िें अपने िीिन में सामना िरना पड़ता िै । अपनी पििान िी बातें तो दूर
एि सामान्य मनुष्य िी तरि िीिन िीने और समाि में उजित स्थान पाने िे
जलए िीिनपयषन्त संघर्षरत िैं। घृणा और उपेक्षा िा दंश झेलते हुए भी अपने
िेिरे पर झूठी मुस्िान जबखेरना किन्नर िीिन िी जििशता बन िाती िै । िि
जिन्दा तो िै, पर जनरं तर समाि िी उपेक्षा और जतरस्िार सििर धीरे -धीरे
अन्दर से उनिी आत्मा बहुत दुखी िै । 15 अप्रैल 2014 िा कदन खुशी िा कदन
था, भारत िे सिोच्च न्यायालय ने जििड़ों िो तीसरे जलंग िे रूप में िानूनी
मान्यता प्रदान िी । िानून लागू िरने िे साथ-साथ उन्िें उनिे मूल अजधिारों से
उनिा पररिय िराया। िानून िा बन िाना मित्त्िपूणष तो िै, पर उतना िी
मित्त्िपूणष िै समाि िी सोि और मानजसिता में पररितषन िा। िरूरत िै,
समाि िी िड़ता और संिीणषता में सुधार िी जिससे किन्नर िगष िे अजभशप्त
िीिन में सुधार िो सिे । जिस समाि िे जलए किन्नर िगष िमेशा से उपेजक्षत और
उपिास िा जिर्य रिा िो, उनिी मानजसिता में िल्द पररितषन िै से िो सिता
िै? पर ऐसा भी क्यों कि उसे सामान्य इं सान िा अजधिार समाि िो स्िीिार
निीं। बिपन से उसे माँ िी ममता और जपता िा प्यार, मागषदशषन, पररिार,

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जशक्षा आकद से दूर ऐसे पाररजस्थजतयों में बेसिारा छोड़ कदया िाता िै । ििां
उन्िें िई मानजसि, शारीररि, सामाजिि दुभाषिनां और जिल्लतों िा सामना
िरना पड़ता िै । जिन्दगी यि स्िीिार िरने में गुिर िाती िै कि िे किन्नर िैं
और इं सानी भािनां से युक्त समानता िी उम्मीद िरते िैं । अधष-पुरुर् और
अधष-स्त्री िोने िी िश्मम्िश में िीिन भर गाली बनिर समाि द्वारा उपेजक्षत किये
िाते रिते िैं।
पररिार में किन्नर बच्चों िा िन्म अजभशाप बन िाता िै । सदस्य अपने ऐसे
बच्चों िो समाि से जछपाते िैं। क्योंकि पििान प्रिट िोने पर जपता िे पुरुर्त्ि
पर संदि
े िोने लगता िै । पररिार, समाि में सम्मान खोने लगता िै और अपनी
इज्जत िे जलए िे अपने िी किन्नर बच्चों िो त्याग देते िैं। इस तरि उन्िें समाि िी
दुव्यि
ष िार से बिने िे जलए अलग समुदाय में रिने िे जलए बाध्य िोना पड़ता िै ।
अगर पररिार बच्चे िी परिररश िरना िािे तो, िे बच्चे िे स्नेि और परिररश
िरने िे जलए स्ियं समाि से अलग िो िाते िैं । यि इसजलए िी संिीणष
मानजसिता िाली सामाजिि व्यिस्था इन्िें सम्मानिनि िीिन िीने िा
अजधिार निीं देती िै । इसजलए अपने असंिेदनशील व्यििार से इन्िें बजिष्िृ त
िर अलग गांि और अलग समुदाय में रिने िा ददष कदया िाता िै । िबकि
प्रजतजष्ठत िीिन िा ििदार िर प्राणी िै- पशु-पक्षी, स्त्री-पुरुर्, उभयजलंगी-प्राणी
आकद।
भगिंत अनमोल िी जिन्दगी 50-50 उपन्यास किन्नरों िी यथाथषता िो
पाठिों िे सामने रखिर समाि िी सच्चाइयों से पररजित िराता िै । युिा
साजित्यिार अपनी िास्तजिि ििानी िे द्वारा किन्नरों िे दुख ददष िो पाठिों ति
पहुिाने िा प्रयास िरते िैं। लेखि समाि िे उनिे प्रजत व्यििारों से भलीभांजत
पररजित िैं, क्योकि उनिा छोटा भाई किन्नर िै और उनिा पुत्र सूयष भी किन्नर िै
। िब अनमोल जपता बनता िै और सूिना जमलती िै कि- ‘‘आपिे बेटे िा जशशन
अपररपक्व िै और उसिे दोनो टेजस्टिल्स भी निीं िै ।”2 अनमोल इस बात से
पररजित िोने पर कि उसिा बच्चा सामान्य निीं िै । बजल्ि किन्नर िै । उसिे
कदलो कदमाग में भूिाल आ िाता िै । आंखो िे सामने अंधेरा छा िाता िै । सूयाष

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िे िन्म िोने पर डॉक्टर िब उसिो धीमी आिाि में ििता िै । आपिा बेटा
िभी बाप निीं बन पायेगा। िि बहुत व्यजथत िो िाता िै । सुनते िी िि
मूिदशषन बन िाता िै । उसिे दीमाग में कफिूल िी बातें घूमने लगती िैं और
डॉक्टर िो टिटिी जनगािों से देखने लगता िै । सोिता िै कि ईश्वर ने उसिे
साथ भद्दा मिाि क्यों किया? अब िि समाि से िै से लड़ेगा क्या िि सेक्स
ििष र बन िायेगा? ऐसे अनेि प्रश्न उसिे सामने खड़े िोने लगते िैं। अनमोल
अपने पररिार िे व्यििार िी जिंता िरने लगता िै कि पररिार से क्या ििेगा?
पररिार िे साथ-साथ समाि भी उसिे साथ बुरा बताषि िरे गा । िि इनिा
सामना किस तरि िरे गा? अनमोल िो अन्दर िी अन्दर ये बातें खाई िा रिी
थीं। यि पीड़ा पिले भी उसिे िीिन में आ िुिी थीं। क्योंकि िि अपने किन्नर
भाई िर्ाष िी दयनीय पाररजस्थजतयों से पररजित था। िन्म से अनमाले अपने
भाई िो रोते जससिते घर, पररिार और समाि में प्रताजड़त और अपमाजनत देख
‘अनमोल यि दृढ़ जनिय िरता िै कि िि अपने बेटे िो अधूरी जिन्दगी निीं,
बजल्ि भरपूर जिन्दगी िीने िे जलए िर तरि से सक्षम बनायेगा।’ अनमोल िी
यि मनोगत दशा बहुत मार्मषि िै । यि िैिाररि द्वन्द्व उसिे स्ियं िे पररिार से
उतना निीं िै, जितना समाि िे अपमानों िा भय सता रिा िै । पररिार से
ज्यादा समाि िी व्यजक्त िे िीिन िो प्रभाजित िरता िै । समाि िी स्त्री, पुरुर्
और तीसरे िेंडर िे साथ भेद-भाि पूणष व्यििार तय िरता िै ।
माँ और बच्चे िा ररश्मता अनोखा िोता िै । िर माँ अपने बच्चे िो स्नेि और
प्यार िरती िै । उसिे सामने उसिी सन्तान िी सबसे खूबसूरत िोती िै । लेकिन
सन्तानों िे व्यजक्तत्ि पर मात्र माता-जपता िा िी प्रभाि निीं िोता िै बजल्ि
बािरी िारिों िा गिन प्रभाि पड़ता िै । ऐसे िी एि माँ िी ममता और बािरी
िातािरण िे प्रभाि िा द्वन्द्व कदखाई पड़ता िै । इस उपन्यास में िर्ाष िी माँ ऐसे
िी जिर्म पाररजस्थजतयों से गुिर रिी िै । अपने पुत्र िे िन्म पर िन्मोत्सि
मनाना िािती िै किं तु, िर्ाष िे जपतािी िो यि जबल्िु ल पसंद निीं िै । क्योंकि,
उनिो डर िै कि अगर यि सब समाि िो पता िल गया कि उनिा पुत्र जििड़ा
िै, तो समाि उसिा मिाि बनायेगा- ‘‘आि िे बाद न्यौता िा नाम न ले
जलयो। तुम किसिे खाजतर न्यौता देना िािती िो? िो िु छ सालों बाद िमारी

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िर िगि नाि िटायेगा, बेइज्जती िरिायेगा? िर िोई इसे जििड़ा जििड़ा


पुिारे गा और मुझे जििड़े िा बाप ।”3 देखा िाए तो बािरी पररिेश बच्चे िे
िीिन में बड़ा योगदान देता िै । उसिा बहुमुखी जििास तभी िो सिता िै, िब
िि जिजभन्न उत्सिों, ििों, समस्यां आकद से सामना िरता िै । लेकिन किन्नर
बच्चे िे जलए इसिे जिपरीत जस्थजतयाँ िै । िि समाि में स्ितंत्र और जबना
अिरोध िे जििरण निीं िर सिता िै । यिी िारण िै कि ऐसे बच्चों िे िन्म िो
उत्सि िे रूप में निीं मानाया िाता िै । माँ िे साथ-साथ जपतािी िी मन िी
दशा व्यािु ल प्रतीत िेाती िै । क्योंकि उनिा दूसरा बच्चा भी किन्नर पैदा िोता िै
। िो इस समाि िा जिस्सा निीं बन सिता िै । ऐसे िी शोि ग्रजसत जपता िे घर
किन्नर समाि िी िस्तूरी अपने साजथयों िे साथ आती िै- ‘‘आपिे यिां िमारे
जबरादरी िे भाई ने िन्म जलया िै, उसे िमें दे दो, ििी िमारा नेग िै ।”4 िन्म िे
अिसर िो उत्सि िे रूप में मानाया िाता िै । लेकिन ऐसे बच्चे िे िन्म िो दुख
िा क्षण माना िाता िै । किन्नर समाि, िन्मे ऐसे बच्चों िो अपने समाि में
शाजमल िरते िैं। यथासंभि जशक्षा, परिररश, संस्िार आकद िी व्यिस्था िरने
िा प्रयास िरते िैं। बाद में, ये बच्चे भी ट्रेनों, बस, मुख्यधारा िे माने िाने िाले
समाि िे बीि िािर जभक्षा माँगिर अपना िीिनयापन िरते िैं। ऐसी जस्थजत
इस उपन्यास में बनती कदखाई पड़ रिी िै । िब किन्नर समाि िर्ाष िो अपने
समाि िा जिस्सा मानते िैं। और उसे उसिे जपता से माँगते िैं, तो िर्ाष िे
जपतािी उसे फटिार लगाते िैं- ‘‘मैं अपने बेटे िो मार दूग
ं ा पर तुम्िारे यिां पर
िभी देने निीं आऊंगा।”5 परन्तु जपतािी िस्तूरी िी बातों से अत्यंत जििजलत िो
िाते िैं। और उन्िे समाि से झूठी प्रजतष्ठा िा भय सताने लगती िै, उनिे मन में,
िो उपाय सूझता िै । िि बड़ा हृदयजिदारि िोता िै- ‘‘अब तो बस एि िी
रास्ता कदखत िै, बस ससुरा िा आि िाम तमाम िर देब न रिी बांस न बािी
बांसुरी। िि तुरंत आधी बीड़ी फें ििर तेि िदमों से िल कदए, मूर् मार दिाईं
लेने ।”6 मुख्य समाि िे लोगों िी यि सोि बहुत िी गलत िै । प्रािृ जति रूप से
असामान्य बच्चों िो इस दुजनया िा निीं माना िाता िै । अथाषत् उसिो िीने िा
अजधिार निीं िै । मात्र प्रजतष्ठा िी खाजतर उनिी ित्या िा जििार पररिार िे

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द्वारा किया िाता िै । यिाँ भी ऐसा सोिने िे जलए अनमोल िो सामाजिि


प्रजतष्ठा उिसा रिी िै ।
िम अपनी सोि िो समयानुसार पररिर्तषत िर सिते िैं। पर समाि िी
सोि बहुत गिराई से िमी हुई िै, जिसमें समय िा प्रभाि भी न िे बराबर िोता
िै । खुद िो बदलना संभि भी िै । लेकिन समाि में अिानि पररितषन लाना
संभि निीं िै । अनमोल अपने बेटे सूयाष िे िन्म कदिस पर बड़े खुशी िे साथ 5
स्टार िोटल में पाटी देता िै, पाटी िे बीि िई तरि िी बातें िोती िैं- ‘‘बहुत बड़े
कदलदार व्यजक्त िो आप अनमोल भाई, ऐसे लड़िे िे जलए िोई फाइि स्टार क्या
घर में भी निीं बुलाता।”7 यि सुनिर अनमोल िो बहुत बुरा लगता िै, कफर भी
पाटी खराब न िो ऐसी बात िो निरअंदाि िर देता िै । लेकिन समाि िी ऐसी
मानजसिता से आसानी से मुजक्त असंभि िै । िु छ बातें सुनिर व्यजक्त िी
नैजतिता िा धैयष टू ट िाता िै । िब उसी पाटी िे बीि आिि सुनाई पड़ती िै-
‘‘िाँ अभी अनमोल भाई पाटी दे रिे िैं, िु छ सालों िे बाद उनिा बेटा जििड़ों
िी टोली में शाजमल िोिर ‘िाय-िाय‘ िरता भीख मांगता निर आएगा।”8 इस
तरि िे उलािनों से साधारण व्यजक्त िा भी संतुलन जबगड़ िाता िै । और अपनी
िी सन्तानों में जिभेद िरने िो मिबूर िो िाता िै ।
साजित्य िो समाि िा दपषण ििा िाता िै । क्योंकि साजित्य में सामाजिि
मुद्दों िो शाजमल किया िाता िै । ‘जिन्दगी 50-50’ उपन्यास किन्नर िीिन िी
यथाथष समस्यां िो पाठि िे सामने रखता िै । साथ िी पीकढ़यों िे अन्तराल में
नई और पुरानी पीकढ़यों िे बदलाि िो भी दशाषता िै । उपन्यास में दो पीकढ़याँ
एि साथ िलती िैं। दोनो पीढीयों िी जस्थजत में अंतर स्पि रूप से देखा िा
सिता िै । अतीत में जिस माँ ने किन्नर पुत्र (िर्ाष) िो िन्म कदया था, अनमोल
उसिा बड़ा भाई िै । ितषमान में उसी मां िा पौत्र (सूयाष) िन्म लेता िै । पर
पिली पीढ़ी िे समय से जबल्िु ल जिपरीत अनमोल अपने पुत्र िे िन्म पर खुश िै,
ििां अतीत में जपतािी समाि से भयभीत िोिर अपने बच्चे िो मार डालने िो
तत्पर िो िाते िैं। ििीं अनमोल अपने बेटे िी अच्छी जशक्षा और उन्नजत िे जलए
शुभिामनाएं देता िै ।

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किन्नर िीिन से सम्बजन्धत जिजिध घटनां िे माध्यम से अनमोल ने


उपन्यास िो मित्त्िपूणष बनाया िै । जििड़ों िी िेशभूर्ा, रिन-सिन,
मित्त्ििांक्षा, िरूरतें और उनिी मनोदशा िो लेखि ने अपने उपन्यास में स्थान
कदया िै । किन्नर बच्चों िी िरूरतों से सम्बजन्धत एि िणषन इस प्रिार िै- ‘‘िम,
अम्मा िा िपड़े पिनत िै, िब मन िरत िै । िब पजिनते िो? िब बाबूिी िारा
िाटने िले िात िैं, अम्मा गोबर पाथने और तुम दोस्तन िे संग कििे ट खेलने।”9
यि पिली पीढ़ी िी बात थी। ििां िर्ाष अपने भाई अनमोल िो अपनी
स्िभाजिि िृजत्तयों िो बताता िै । दूसरी पीढ़ी में अनमोल िा पुत्र सूयाष, िर्ाष िे
सामने अपनी मां िा िपड़ा पिनिर जलपजस्टि लगािर खुद िो आईने में जनिार
रिा िै । उसिा यि व्यििार अनमोल जछपिर देखता िै और अपनी पजि िे
गुस्सा िो शांत िरने िा प्रयास िरता िै । और िि सोिने लगता िै कि जिस
गलती िो जपतािी ने िर्ाष िे साथ मारपीट और दुव्यि
ष िार से किया िै । उस
गलती िो िि निीं दोिरायेगा।
िस्तूरी और िर्ाष िा जमलना इस उपन्यास में कदखाई पड़ता िै । िर्ाष
िस्तूरी से ििती िै- “िौनो तिलीफ निीं। बस जमलये िा मन रिे।’’ िौनो बात
निीं। तौिार बाप बकढ़या िै िम से िम तुझे पढ़ा जलखा रिा िै । िनाष िमारा
बाप िनम लेते िी जनिाल कदया था िमें घर से।”10 इस संिाद से पता िलता िै
कि समाि में अनमोल िैसे व्यजक्त किन्नर िी परम्परागत अिधारणा िे जिपरीत
िािर बच्चों िे उज्ज्िल भजिष्य िे जलए प्रयास िरते िैं। किन्नर समाि दो िक्त िी
रोटी िे जलए समूि में जनिास िरता िै और भीख मांगिर अपनी आिीजििा िी
व्यिस्था िरता िै । इसिे बाििूद अपने समुदाय में शाजमल बच्चों िे जितों िा
ध्यान देते िैं। िि उनिे प्रजत समाि से उजित व्यििार िी उम्मीद रखते िैं। साथ
िी जशक्षा और रोिगार प्राप्त िर समाि में अपनी पििान िो सुदढ़ृ िरने में
उनिा सियोग िरते िैं। ताकि उनिी जस्थजतयों में सुधार िो सिे । किन्नर समाि
िी यि सोि निीं िै कि िि ऐसे बच्चों िो लािर उनसे भीख मंगिाए। बजल्ि िि
िािता िै कि उनिी तरि नििात जशशु या बच्चे समाि में उपेक्षा िा जशिार न
िों। िब किन्नर समुदाय देखता िै कि ऐसे बच्चे अपने घर में सुरजक्षत और खुश िैं,
तो िे उनिे अच्छे भजिष्य िी िामना िरते िैं। यि िस्तूरी िी इस भािना से

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प्रिट िोता - “िोनो बात नािी, तुम ििी रिो। बकढ़या पढ़ो जलखो नौिरी िरो।
यिां िी जिन्दगी बहुत अच्छी निीं िै ।”11 यि उपन्यास िीिनभर संघर्षरत उन
इं सानों िा दस्तािेि िै, जिनिे प्रजत समाि िी दोिरी मानजसिता कदखाई पड़ती
िै । ििां एि तरफ मुख्यधारा िा समाि पुत्र िन्म पर इन किन्नरों िी दुआएँ
और बलाएँ लेता िै । ििीं दूसरी तरफ यिी समाि उन्िें अपमाजनत, उपेजक्षत
और सामाजिि गजतजिजधयों से बजिष्िृ त मानता िै ।
लेखि िर्ाष िे माध्यम से किन्नर िगष िी समस्यां और िरटलतां िो
उनिी िंसी में जछपे ददष िो बड़ी संिेदना िे साथ पाठि िे सामने रखने िा
प्रयास िरता िै । उनिी ऐसी पीड़ां िो, िो िीिनपयषन्त िलते रिती िैं, ठीि
िर्ाष िे िीिन िी तरि िै । जिसे लेखि अपने उपन्यास िे िररए मुख्य समाि िे
सामने लाने िा प्रयास िरता िै । उपन्यास िा मार्मषि पक्ष िै, िब िर्र्षता िी
डायरी जमलती िै, जिसमें िर एि शब्द में िर्ाष िी जििशता, बेिैनी तथा उसिी
भािनां िा उतार िढ़ाि जलखा जमलता िै । ऐसे बच्चों िे िन्म लेते िी यि बात
परे शान िरती िै कि िि स्त्रीजलंग या पुजल्लंग िा प्रयोग िरें । अतीत िो झांििर
देख,ें तो समाि किन्नर िगष िे प्रजत असंिेदनशील िै । यि ििानी मानिीय
संिेदनां और मूल्यों पर प्रश्न उठाती िै । िर्ाष िो बिपन से जपता िे संबल िे
स्थान पर दुव्यि
ष िार जमलता िै । उसे अिसास कदलाया िाता िै कि िि सबसे
अलग िै । िि इस अिे लेपन और उपेजक्षत व्यििार से त्रस्त िोिर पररिार छोड़
देता िै और जििड़ा समुदाय में शाजमल िो िाता िै । समुदाय में शाजमल िोने पर
भी जिन्दगी िे उतार िढ़ाि में डू बते उतरते अंत में स्ियं िी इिलीला समाप्त िर
लेती िै ।
किन्नर िगष सकदयों से अपने पििान िे जलए संघर्षरत िै । आि उनिे प्रजत
लोगों िी धारणा में पररितषन िो रिे िैं। इस उपन्यास में किन्नर समाि िे प्रजत
संिेदनशील िगष िी बदलती मानजसिता िा पररिय भी जमलता िै । यि सूयाष
और िर्ाष िे िीिन िी तुलना से देखा िा सिता िै । सूयाष औ िर्ाष दोनों िी
किन्नर िैं, सूयाष जशक्षा प्राप्त िर समाि में अपनी खुद िी पििान बनाने िी
िोजशश िरता िै । इस िोजशश में जपतािी िा पूणष मागषदशषन ि सबल सियोग

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प्राप्त िै, जिससे िि िामयाब िोता िै । परं तु िर्ाष िी जस्थजत ठीि जिपरीत िै ।
िि बिपन से अिे लेपन और िीनभािना से ग्रस्त िै । िि पररिार से जिस्थाजपत
िोने िो मिबूर िो िाता िै । िि किन्नर समाि में शाजमल िोने िे जलए जििश
िो िाता िै । ििाँ उसे िर समय पररिार िी आिश्मयिता मिसूस िोती िै ।
बहुत कदनों बाद भी प्रजतजष्ठत समाि उसिो समझने िी िोजशश भी निीं िरता
िै । िि बार-बार जिजन्तत िो िाता िै कि उसिी गलती क्या िै? यिी कि एि
अंग अजििजसत िै । बस इतनी सी! शायद इस तथािजथत समाि में सारा फसाद
जसफष इसी अंग िो लेिर िोते िै । लड़ाई-झगड़ा, प्रेम, मारपीट, मान-अपमान,
बलात्िार आकद सब इसी ििि से िैं। दोनों पात्रों िे माध्यम से लेखि ने अपनी
िथा िो मार्मषि बनाया िै । उनिी इस िु शलता िे जिर्य में समीक्षि जलखते िैं
कि- “िर्ाष िे िीिन िे िु रूपतां िे समान्तर एि िथा अनमोल, उसिी पिी
आजशिा उसिी प्रेजमिा अनाया और पुत्र किन्नर सूयाष िी िलती रिती िै । बड़े
िरीने से, लेखि ने मानजसि िु रूपता बनाम शारीररि िु रूपता िी
समानान्तरता गढ़ा िै ।”12
िर्ाष िे सामने भजिष्य िा अंधिार मडराता िै । स्िू ल से लेिर घर-बािर
िर िोई मिाि उड़ाता िै । गािे-बगािे लोग उसे जििड़ा ििने से निीं िूिते िैं।
खेलने िू दने में पढ़ते िक्त और यिां ति कि स्िू ल िा फामष भरते िक्त एि अलग
िी िॉलम िोता िै । पुरुर् मजिला या अन्य। िर िक्त यि एिसास कदलाया िाता
िै कि ये समाि से अलग िैं। समाि से जतरस्िृ त और बजिष्िृ त िैं। इसिा
उदािरण िर्ाष िै । िो िीिन िी त्रासदी से िूझते हुए किन्नर समाि में शाजमल
िोिर जिन्दगी िीने िी िददोििद िरती िै- ‘‘और िि िर्ाष से िर्र्षता बन
िाती िै।” शायद ये उसिी पििान बनाने िी पिली सीढ़ी थी।
‘‘िर्ाष से िर्र्षता बनना मेरे जलए मिबूरी और िरूरतें दोनों थीं। िर्ाष िी िाया
में छटपटािट िोती थी मगर िोई निीं था िो उसे समझ सिता। पररिार िाले
भी निीं। अम्मा िाििर भी िु छ निीं िर सिती थी। िु छ भी निीं। आजखर इस
उिापोि से जनिलिर अन्ततः िर्र्षता िे अजस्तत्ि में मैं आ िी गई।”13

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िर्र्षता अपने अपूणष िीिन में पररिार िो तलाशती िै । ररश्मतों िी


धड़िनों िो मिसूस िरती िै । अपने जपतािी िे इज्जत िी परिाि िर उन्िें
मसीबतों से छु टिारा कदलाने िी ठान लेती िै, और रुपयों िा इं तिाम िरती िै ।
िबकि दूसरी तरफ अनमोल अच्छी िमाई िरने िे बाद भी जपता िी भािनां
िो समझ निीं पाता, जिस बच्चे िे िन्म लेते िी जपता द्वारा ित्या िरने िा प्रयास
किया िाता िै । उन्िें तृतीय जलंग सम्बोजधत िर समाि िे िाजशये पर खड़ा
किया िाता िै । समाि में िन्म लेिर सामाजिि संबंधो से अलग िोने िा ददष
कदया िाता िै । ििी िर्र्षता अपने जपतािी िे स्िाजभमान िे जलए स्ियं िो उस
अंधेरे रास्ते में ले िाती िै । ििां जिन्दगी िलंि, बनिर डस लेती िै । अपना
िीिन िो दांि में लगािर िर्र्षता जपतािी िे खेत िो छु ड़िाती िै । और अंत में
दुभाषग्य िा पीड़ा लेिर मौत िो गले लगािर इस संसार से छु टिारा पा लेती िै ।
ििा िा सिता िै । भगिंत अनमोल िा उपन्यास ‘जिन्दगी 50-50’
किन्नरों िी त्रासदपूणष िीिन िी अजभव्यजक्त िै । लेखि िे स्ियं िे िीिन पर
आधाररत यि ििानी समाि में किन्नर िगों िी दुभाषग्यपूणष िीिन िो मार्मषिता
िे साथ उिागर िरती िै । उपन्यास िा उद्देश्मय यि भी िै कि किन्नर समुदाय िो
यि आिादी दी िाए कि िे अपने इच्छानुसार िायष िुन सिें । जिससे उनिी
पििान िो और समाि में भी प्रगजत आए । साथ िी समाि िी मुख्यधारा में
इन्िें सजम्मजलत किया िाए। उपन्यास िा यि िथानि किन्नर िगष िे प्रजत िमारी
सिानुभूजत और िमारी जिम्मेदारी िो िागृत िरने िी दृजि से अजत मित्त्िपूणष
साजबत िोता िै । यकद समाि किन्नर िगष िे प्रजत सिारात्मि और संिेदनशील
िो तो िल्द िी यि समुदाय एि अंग िे न िोने िी पीड़ा से आिाद िो िाएगा ।
जनष्िर्ष रूप से देखें तो इस उपन्यास में किन्नरों िे सन्दभष में संस्िार,
पररिार और समाि में उपेजक्षत स्थान, आय िे संसाधनों िा अजनजितता आकद
से सम्बजन्धत अनेि प्रश्न उठाए गए िैं। इसमें समाि से यि अपेक्षा भी िी िाती
िै कि उन्िें समाि में यथोजित स्थान जमले, जिससे उनिा उद्धार िो सिे । इस
तरि भगिंत अनमोल िा उपन्यास ‘जिन्दगी 50-50’ किन्नर िगष िे सामान्य
िीिनयापन तथा इं सान समझे िाने िी गुिाररश िरता िै । यि िृ जत पाठिों िे

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जलए आधा अधूरा निीं बजल्ि पूरी तरि से सफल िै । यि उपन्यास ‘िम बदलेगें,
िग बदलेगा’ िी यथाथषता िो प्रिट िरने में पूणषता सफल िै ।

सन्दभष ग्रन्थ सूिी -


1. िायसिाल, िजिश्री (डॉ.), ज़िन्दगी 50-50: एि मूल्यांिन, संपादि-
एम. फीरो़ि खान (डॉ), थडष िेण्डर और ज़िन्दगी 50-50, जििास
प्रिाशन, िानपुर, प्रथम संस्िरण, 2018, पृष्ठ संख्या-55
2. भगिंत, अनमोल, जिंदगी 50-50,रािपाल एण्ड संस, प्रथम संस्िरण,
2017, पृष्ठ संख्या- 28
3. ििी, पृष्ठ संख्या-53
4. ििी, पृष्ठ संख्या-34
5. ििी, पृष्ठ संख्या-35
6. ििी, पृष्ठ संख्या-37
7. ििी, पृष्ठ संख्या-56
8. ििी, पृष्ठ संख्या-58
9. ििी, पृष्ठ संख्या-77
10. ििी, पृष्ठ संख्या-138
11. ििी, पृष्ठ संख्या-139
12. जसंि, राधेश्मयाम (डॉ.), टीस पर मिरम- जिन्दगी 50-50, संपादि-
एम. फीरो़ि खान (डॉ), थडष िेण्डर और ज़िन्दगी 50-50, जििास
प्रिाशन, िानपुर, प्रथम संस्िरण, 2018, पृष्ठ संख्या- 62
13. भगिंत, अनमोल, जिंदगी 50-50, उपरोक्त, पृष्ठ संख्या- 163

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