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नौवीं कक्षा – टीह िंग नोट्स

1. दुुःख का अधधकार
मौधखक
धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर एक-दो पिंधियों में दीधिए-
1. ककसी व्यधि की पोशाक को देखकर में क्या पता िता ै?
ि. ककसी व्यधि की पोशाक को देखकर में समाि में उसका दिाा और अधधकार का पता िता ै तथा
उसकी | अमीरी-गरीबी की श्रेणी का भी पता िता ।ै

2. खरबूिे बे नेवािी स्त्री से कोई खरबूिे क्यों न ीं खरीद र ा था?


ि. खरबूिे बे नेवािी स्त्री से कोई खरबूिे इसधिए न ीं खरीद र ा था क्योंकक व घुटनों में धसर गडाए
फफक-फफककर | रो र ी थी। इसके बेटे की मृत्यु के कारण िगे सूतक के कारण िोग इससे खरबूिे न ीं िे
र े थे।

3. उस स्त्री को देखकर िेखक को कै सा िगा?


ि. उस स्त्री को देखकर िेखक को उसके प्रधत स ानुभूधत की भावना उत्पन्न हुई थी। उसे देखकर िेखक का
मन व्यधथत ो उठा। व नी े झुककर उसकी अनुभूधत को समझना ा ता था तब उसकी पोशाक इसमें
अड न बन गई।
4. उस स्त्री के िडके की मृत्यु का कारण क्या था?
ि.उस स्त्री का िडका तेईस बरस का था। िडका श र के पास डेढ़ बीघा िमीन पर खेती करके पररवार का
गुिारा करता था। एक कदन व सुब मुुँ -अिंधरे े खेत में बेिों से पके खरबूिे ुन र ा था कक गीिी मेड की
तरावट में आराम करते साुँप पर उसका पैर पड गया और साुँप ने उस िडके को डस धिया। ओझा के झाड-
फें क आकद का उस पर कोई प्रभाव न पडा और उसकी मृत्यु ो गई।
5. बुकढ़या को कोई भी क्यों उधार न ीं देता?
ि.उस बुकढ़या का बेटा मर ुका था। िोगों को पता था कक बुकढ़या को कदए उधार के िौटाने की कोई
सिंभावना न ीं ।ै इसधिए अब बुकढ़या को कोई भी उधार देने को तैयार न ीं था।
धिधखत
(क) धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) धिधखए-
1. मनुष्य के िीवन में पोशाक का क्या म त्त्व ?

ि. मनुष्य की प ान उसकी पोशाक से ोती ।ै य पोशाक ी मनुष्य को समाि में अधधकार कदिाती ।ै
उसका दिाा धनधित करता ।ै िीवन के बिंद दरवािे खोि देता ।ै यकद म समाि की धन िी श्रेधणयों की
अनुभूधत को समझना ा ते ैं तो ऐसी धथथधत में मारी पोशाक मारे धिए बिंधन और अड न बन िाती
।ै धिस प्रकार वायु की ि रें कटी हुई पतिंग को स सा भूधम पर न ीं धगर िाने देतीं उसी तर खास
पररधथथधतयों में मारी पोशाक में झुक सकने में रोके रखती ।ै

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
2. पोशाक मारे धिए कब बिंधन और अड् न बन िाती ै?
ि. िब भी ऐसी पररधथथधत आती ै कक ककसी दु:खी व्यधि को देखकर व्यथा और दुुःख का भाव उत्पन्न
ोता ।ै में उसके दु:ख का कारण िानने के धिए उसके समीप बैठने में मारी पोशाक बिंधन और अड न
बन िाती ।ै उत्तम पोशाक में नी े झुकने न ीं देती। य में अमीरी का बोध कराती ।ै मानव-मानव के
बी दूररयाुँ बढ़ाने का काम पोशाक करती ।ै ये पोशाक ी धनयमों का उल्ििंघन करती ।ै यकद म
धन िी श्रेधणयों के दुुःख को कम करके उन् ें कदिासा देना ा ते ैं तो ये पोशाक उसके धिए अड न बन
िाती ।ै
3. िेखक उस स्त्री के रोने का कारण क्यों न ीं िान पाया?
ि. िेखक उस स्त्री के रोने का कारण इसधिए न ीं िान पाया क्योंकक उसकी पोशाक रुकावट बन गई। िब
उसने उस खरबूिे बे नेवािी स्त्री को घुटनों पर धसर रखकर रोते देखा और बािार में खडे िोगों का उस
स्त्री के सिंबध
िं में बातें करते देखा तो िेखक का मन दुुःखी ो उठा। कारण िानना ा ते हुए भी व ऐसा
न ीं कर पाया। यद्यधप व्यधि का मन दूसरों के दुुःख में दुुःखी ोता ,ै परिं तु पोशाक पररधथथधतवश उसे
झुकने न ीं देती।
4. भगवाना अपने पररवार का धनवाा कै से करता था?
ि. भगवाना श र के पास डेढ़ बीघा िमीन पर खेती करके पररवार का धनवाा करता था। खरबूिों की
डधिया बाजार में बे ने के धिए कभी-कभी व िा िाया करता था। व घर का एकमात्र स ारा था।
उसके घर में खानेवािे अधधक और कमानेवािा एक ी था। उनके घर की आर्थाक धथथधत गडबडा गई थी।
घर के बेटे पर सभी की आशाएुँ रटकी ोती ।ैं भगवाना ी था धिस पर घर के सभी सदथयों की आशाएुँ
रटकी हुई थीं। पररवार का धनवाा
करने के धिए व छोटे-बडे काम करके घर के सदथयों का ध्यान रखता था।
5. िडके की मृत्यु के दूसरे ी कदन बुकिया खरबूिे बे ने क्यों ि पडी?
ि. िडके की मृत्यु के दूसरे कदन, बुकिया खरबूिे बे ने इसधिए िी गई क्योंकक उसके पास िो कु छ था
भगवाना की मृत्यु के बाद दान-दधक्षणा में खत्म ो ुका था। बच्चे भूख के मारे धबिधबिा र े थे। बहू बीमार
थी। मिबूरी के कारण बुकढ़या को खरबूिे बे ने के धिए िडके की मृत्यु के दूसरे ी कदन िाना पडा था।
भूख अच्छे-अच्छे िोगों को भी ध िाकर रख देती ।ै मृत्यु का दु:ख ो, या खुशी का आभास ो िेककन पेट
की आग घर से बा र धनकिने के धिए धववश कर देती ।ै
6. बुकढ़या के दु:ख को देखकर िेखक को अपने पडोस की सिंभ्ािंत मध िा की याद क्यों आई?
ि. अमीर और गरीब में िन्मिात अिंतर ोता ।ै अमीर को दुुःख मनाने का अधधकार ै गरीब को न ीं। बुकढ़या के दु:ख को
देखकर िेखक को अपने पडोस की सिंभ्ािंत मध िा की याद इसधिए आई क्योंकक व मध िा अपने िवान बेटे की मृत्यु के
कारण अढ़ाई-मास तक पििंग से उठ न सकी। पिंद्र -पिंद्र धमनट बाद मूर्छात ो िाती थी। श र भर के िोगों के हृदय उसके
पुत्र शोक को देखकर द्रधवत ो उठे थे। दूसरी ओर िोग बुकढ़या पर ताने कस र े थे। वे उसकी मिबूरी से कोसों दूर थे। उसके
दु:ख को वे समझ न ीं पा र े थे। क्योंकक व उस सिंभ्ािंत मध िा की भाुँधत बीमार न पडकर अपना दुुःख भुिाकर बाजार में
खरबूिे बे कर अपने पररवार के धिए भोिन का प्रबिंध करने आई थी िो कक िोगों के मन में खटक र ा था। दु:ख का
अधधकार अमीर-गरीब में भेदभाव उत्पन्न करता ।ै थोडा-सा दु:ख ि ाुँ अमीरी को ध िा देता ै व ाुँ बडे-से-बडा दुुःख भी
गरीब को स ि बने र ने पर मिबूर कर देता ।ै बुकढ़या के दुुःख और सिंभ्ािंत मध िा के दु:ख में य ी अिंतर था।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
(ख)धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) धिधखए-
1. बाजार के िोग खरबूिे बे नेवािी स्त्री के बारे में क्या-क्या क र े थे? अपने शब्दों में धिधखए।
ि. बाजार के िोग खरबूिे बे नेवािी स्त्री के बारे में तर -तर की बातें कर र े थे। एक आदमी घृणा से
थूकते हुए क र ा था कक बेटे की मृत्यु को अभी पूरे कदन न ीं हुए और य दुकान िगाकर बैठी ।ै पेट की
रोटी ी इनके धिए सब कु छ ।ै िैसी नीयत ोती ;ै वैसी ी बरकत भगवान देता ।ै िवान िडके की
मौत हुई ,ै बे या दुकान िगाकर बैठी ।ै सभी अपने व्यिंग्य वाणों से उस स्त्री पर ताने कसे िा र े थे। व
बेबसी से धसर झुकाए बैठी थी।
2. पास-पडोस की दुकानों से पूछने पर िेखक को क्या पता िा?
ि. पास-पडोसवािों से िेखक को पता िा कक बुकढ़या का 23 बरस का िवान िडका था। घर में उसकी
बहू और पोता-पोती ।ैं िडका श र के बा र डेढ़ बीघा िमीन में खेती कर अपने पररवार को धनवाा
करता था। कभी-कभी व खरबूिे भी बे ता था। मुुँ अिंधेरे बेिों में से पके खरबूिे ुनते हुए गीिी मेडे की
तरावट पर आराम कर र े साुँप पर उसका पैर पड गया। साुँप के डसने से उसकी मृत्यु ो गई।
3. िडके को ब ाने के धिए बुकिया माुँ ने क्या-क्या उपाय ककए?
ि. िडके को ब ाने के धिए बुकढ़या माुँ ने ओझा को बुिाकर झाड-फें क करवाया। नाग देव की पूिा हुई।
पूिा के धिए दान-दधक्षणा दी गई। घर में िो कु छ आटा या अनाि था, दान-दधक्षणा में उठ गया। माुँ, बहू
और बच्चे, भगवाना से धिपट-धिपटकर रोए, पर सपा के धवष से उसका सारा बदन कािा पड गया था और
िडका मर गया।
4. िेखक ने बुकढ़या के दुुःख का अिंदािा कै से िगाया?
ि. िेखक को िब आस-पडोसवािों ने वाथतधवकता बताई तो वे बुकढ़या की धववशता को समझ गए। घर में
िब कमाने वािा कोई न र े तो मौत की परवा न करके घर से बा र धनकिना ी पडता ।ै परिंतु दूसरे
िोग ककसी भी पररधथथधत में ैन न ीं िेने देते। वैसे भी उन् ें गरीबों के दुुःख का अिंदािा न ीं ोता। िेखक
इसी सो में डू बे हुए बुकढ़या के दुुःख का अिंदािा िगा र े थे कक अमीर िोग अपने दुुःख को बढ़ा- ढ़ाकर
वणान करते ।ैं व बे ोश ोने का नाटक करते ।ैं और कई कदनों तक धबथतर पर पडे र ते ।ैं परिं तु िेखक
िानता था कक बुकढ़या अपने मन में दुुःख को दबाए हुए अपनी बेबसी के अनुसार अपना दुुःख दशाा र ी ।ै

5. इस पाठ का शीषाक ‘दु:ख का अधधकार’ क ाुँ तक साथाक ?


ै थपष्ट कीधिए।
ि. ‘दुुःख का अधधकार’ शीषाक अत्यिंत सटीक ।ै सिंपूणा कथावथतु दो वगों का प्रधतधनधधत्व करती ै प िा
शोधषत वगा ै धिसके शोषण का समाि को ‘अ सास न ीं ै और दूसरा शोषक वगा, धिसका दुुःख िोगों के
हृदय तक पहुुँ ता ै और आुँखों से आुँसू ब ने िगते ।ैं गरीब के दु:ख से िोग सवाथा विंध त र ते ।ैं उसके
िीवन की करठनाइयों को समझना न ीं ा ते। शोक या गमा के धिए उसे सहूधियत न ीं देना ा ते।
दु:खी ोने को भी एक अधधकार मानते ।ैं दु:ख मनाने का अधधकार भी के वि सिंपन्न वगा को ।ै दु:ख तो
सभी को ोता ,ै पर सिंपन्न वगा इस दु:ख का कदखावा करता ,ै गरीब को कमाने-खाने की ह िंता दम न ीं
िेने देती। अतुः दु:ख को अधधकार शीषाक पूणातया उपयुि ।ै

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
(ग) धनम्नधिधखत के आशय थपष्ट कीधिए-
1. िैसे वायु की ि रें कटी हुई पतिंग को स सा भूधम पर न ीं धगर िाने देतीं उसी तर खास पररधथथधतयों
में मारी पोशाक में झुक सकने से रोके र ती ।ै
ि. आशय-प्रथतुत क ानी देश में फै िे अिंधधवश्वासों और ऊुँ -नी के भेदभाव का पदााफाश करती ।ै इसमें
थपष्ट ककया गया ै कक दु:ख की अनुभूधत सभी को समान रूप से ोती ।ै क ानी धनी िोगों की
अमानवीयता और गरीबों की धववशता को उिागर करती ।ै िेखक पोशाक के धवषय में वणान करते हुए
क ता ै कक धिस प्रकार पतिंग को डोर के अनुसार धनयिंधत्रत ककया िाता ै तथा िब डोर पतिंग से अिग ो
िाती ,ै तब,पतिंग वा के साथ ब ती हुई उडती ।ै और वा के कारण अ ानक ी धरती पर न ीं आ
धगरती। ककसी न ककसी वथतु में अटककर र िाती ।ै वैसी ी धथथधत मारी पोशाक के कारण उत्पन्न
ोती ।ै खास पोशाक के कारण व्यधि आसमानी बातें करने िगता ।ै उसकी पोशाक उसे अपनी अमीरी
का आभास कराती ।ै व गरीबों को अपने बराबर थथान न ीं देना ा ता। उसकी धथथधत धत्रशिंकु िैसी ो
िाती ।ै व ा ते हुए भी ककसी के दुुःख-ददा में शाधमि न ीं ो सकता। इसी तर िेखक भी नी े
झुककर उस गरीब स्त्री का दुुःख बाुँटना ा ता था, ककिं तु उसकी पोशाक उसमें बाधा उत्पन्न करती ।ै
2. इनके धिए बेटा-बेटी, खसम-िुगाई, धमा-ईमान सबे रोटी का टुकडा ।ै
ि. आशय-आशय य ै कक समाि में र ते हुए प्रत्येक व्यधि को धनयमों, कानूनों व परिं पराओं का पािन
करना पडता ै तभी व सामाधिक प्राणी क िाता ै क्योंकक समाि में अपनी दैधनक आवश्यकताओं से
अधधक म त्व िीवन मूल्यों को कदया िाता ।ै इस क ानी में बुकिया को घर की मजबूरी फु टपाथ पर
खरबूिे बे ने के धिए धववशकर देती ।ै व कदि पर पत्थर रखकर िोगों के ताने स न करती ।ै िोग
ताना देते हुए क ते ैं कक इनके धिए बेटा-बेटी, पधत-पत्नी और धमा-ईमान सभी कु छ रोटी ी ोती ।ै
िोग ककसी की धववशता पर स
ुँ तो सकते ,ै परिंतु उसका स ारा न ीं बन सकते। पेट की आग उन् ें दर-दर
भटकने के धिए मिबूर कर देती ।ै दूसरों से स ानुभूधत के थथान पर ताने सुनने पडे तो मन फू ट-फू टकर
रोने को ा ता ।ै ऐसा ी क ानी में उस बुकढ़या के साथ हुआ था।

3. शोक करने, गम मनाने के धिए भी सहूधियत ाध ए और… दु:खी ोने का भी एक अधधकार ोता ।ै
ि. आशय-इस पिंधि का आशय य ै कक आि के इस समाि में दु:ख मनाने का अधधकार भी के वि धनी
वगा को ोता ।ै य सत्य ै कक दुुःख सभी को तोडकर रख देता ।ै दु:ख में मातम सभी मनाना ा ते ैं
ा े व अमीर ो या गरीब। दुुःख का सामना ोने पर सभी धववश ो िाते ।ैं गरीब व्यधि के पास न तो
दु:ख मनाने की सुधवधा ै न समय ै व तो रोिी-रोटी के क्कर में ी उिझा र ता ।ै सिंपन्न वगा शोक का
कदखावा अवश्य करता ।ै परिं तु वे अभागे िोग धिन् ें न दुुःख मनाने का अधधकार ै और न अवकाश। िो
पररधथथधतयों के सामने घुटने टेक देते ,ैं उन् ें पेट की ज्वािा को शािंत करने के धिए दु:खी ोते हुए भी
काम करना पडता ।ै इस प्रकार धन िी श्रेणी के िोगों को रोटी की ह िंता दु:ख मनाने के अधधकार से
विंध त कर देती ।ै

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
भाषा-अध्ययन
1.धनम्नािंककत शब्द-समू ों को पढ़ो और समझो-
(क) कङ्घा , पतङ्ग, ञ्चि, ठण्डा, सम्बन्ध।
(ख) किं घा, पतिंग, िं ि, ठिं डा, सिंबध
िं ।
(ग) अक्षुण्ण, सधम्मधित, दुअन्नी, वन्नी, अन्न।
(घ) सिंशय, सिंसद, सिंर ना, सिंवाद, सिं ार।
(ङ) अिंधरे ा, बाुँट, मुुँ , ईंट, मध िाएुँ, में, मैं।
Note:
ध्यान दो कक ङ, ऊ, ए, न और म् ये पाुँ ों पिं माक्षर क िाते ।ैं इनके धिखने की धवधधयाुँ तुमने ऊपर
देखीं-इसी रूप में या अनुथवार के रूप में। इन् ें दोनों में से ककसी भी तरीके से धिखा िा सकता ै और दोनों
ी शुद्ध ।ैं ाुँ, एक पिं माक्षर िब दो बार आए तो अनुथवार का प्रयोग न ीं ोगा; िैसे-अम्मा, अन्न आकद।
इसी प्रकार इनके बाद यकद अिंतथथ य, र, ि, व और ऊष्म श, ष, स, आकद ों तो अनुथवार का प्रयोग
ोगा, परिं तु उसका उच्चारण पिं म वगों में से ककसी भी एक वणा की भाुँधत ो सकता ;ै िैसे-सिंशय, सिंर ना
में ‘न्’, सिंवाद में ‘म्’ और सिं ार में ‘ङ’।। (‘) य ध ह्न ै अनुथवार का और (*) य ध ह्न ै अनुनाधसक
का। इन् ें क्रमशुः हबिंदु और द्र
िं -हबिंदु भी क ते ।ैं दोनों के प्रयोग और उच्चारण में अिंतर ।ै अनुथवार का
प्रयोग व्यिंिन के साथ ोता ै अनुनाधसक का थवर के साथ।
2. धनम्नधिधखत शब्दों के पयााय धिधखए-

3. धनम्नधिधखत उदा रण के अनुसार पाठ में आए शब्द-युग्मों को छाुँटकर धिधखए-


उदा रण-बेटा-बेटी ।
ि.पाठ में कदए गए शब्द-युग्मुः बेटा-बेटी, खसम-िुगाई, पोता-पोती, झाडना-फें कना, छन्नी-ककना, दुअन्नी-
वन्नी। अन्य शब्द-युग्म इस प्रकार -ैं आते-िाते, धमा-ईमान, दान-दधक्षणा।
4. पाठ के सिंदभा के अनुसार धनम्नधिधखत वाक्यािंशों की व्याख्या कीधिए
1.बिंद दरवािे खोि देना-इसका अथा ै कक ि ाुँ प िे सुनवाई न ीं ोती थी, व ाुँ अब बात सुनी िाती ।ै
ि ाुँ प िे अपमान ोता था, व ाुँ अब मान-सम्मान ोता ।ै
यकद आदमी की पोशाक अच्छी ोती ै तो िोग उसका आदर-सत्कार करते ।ैं उसे क ीं भी आने-िाने से
रोका न ीं िाता/उसके धिए सभी राथते खुिे ोते ।ैं

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
2.धनवाा करना-पेट भरना/घर का ख ा िाना/कमाकर पररवार का पािन-पोषण करना। भगवाना
सब्जी-तरकारी बोकर पररवार का धनवाा करता था।

3.भूख से धबिधबिाना-भूख के कारण तडपना, भूख से रोना। खाने-पीने की सामग्री न ोने के कारण
बुकढ़या के पोते-पोधतयाुँ भूख से व्याकु ि ो र े थे। घर का आर्थाक धथथधत डगमगाने िगती ै तो बच्चे भूख
से धबिधबिाने िगते ।ैं
4.कोई ारा न ोना-कोई उपाय न ोना।
भगवाना की माुँ के पास अपने पोता-पोती को पेट भरने के धिए तथा बहू की दवा-दारू करने के धिए पैसे
न ीं थे। कोई उधार भी न ीं देता था। घर में िब कमाई का कोई उपाय न ीं र ता तो दुुःख भरे क्षणों में
भी कमाई के धिए घर से बा र धनकिना पडता ।ै बुकिया के पास इसके अधतररि कोई साधन न ीं था कक
व बाजार में खरबूिे बे ने िाती।

5.शोक से द्रधवत ो िाना-दुुःख से हृदय धपघि िाना। िेखक खरबूिे बे नेवािी बुकढ़या के रोने से दु:खी
था। ककसी के दु:ख को देखकर थवयिं भी दुुःखी ोने का भाव प्रकट ोता ।ै प्रधतधित िोगों के दुुःख को
देखकर िोगों के हृदय धपघिने िगते ।ैं उन िोगों के दुुःख को प्रकट करने का तरीका अत्यिंत मार्माक ोता
।ै

5.धनम्नधिधखत शब्द-युग्मों और शब्द-समू ों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीधिए-


(क)
1. छन्नी-ककना-बुकिया माुँ ने अपने पुत्र को ब ाने के धिए छन्नी-ककना तक बे कदए।
2. अढ़ाई-मास-आि से ठीक अिाई मास बाद मारी वार्षाक पररक्षाएुँ शुरू ो िाएुँगी।
3. पास-पडोस-मेरे पास-पडोस में सभी िोग धमि-िुिकर र ते ।ैं
4. दुअन्नी- वन्नी-मध िा को गरीब िानकर ककसी ने उसे दुअन्नी- वन्नी भी उधार न दी।
5. मुुँ -अुँधरे े -मेरे दादा िी को मुुँ -अुँधेरे उठकर सैर करने की आदत ।ै
6. झाडना-फें कना-मो न डॉक्टर के इिाि करने की बिाए ओझा से झाडना-फें कना करवाने में अधधक
धवश्वास रखता ।ै
(ख)
1. फफक-फफककर-अपने पुत्र की मृत्यु का समा ार सुनते ी बुकढ़या फफक-फफकर रोने िगी।
2. धबिख-धबिखकर-अध्याधपका की डाुँट पडते ी छात्रा धबिख-धबिखकर रोने िगी।
3. तडप-तडपकर-साुँप से काटे िाने पर भगवाना ने तडप-तडपकर प्राण दे कदए।
4. धिपट-धिपटकर-घायि ोने के कारण पुत्र धपता से धिपट-धिपटकर रोने िगा।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
6.धनम्नधिधखत वाक्य सिंर नाओं को ध्यान से पकढ़ए और इस प्रकार के कु छ और वाक्य बनाइए-
(क)
1. िडके सुब उठते ी भूख से धबिधबिाने िगे। -
2. उसके धिए तो बिाि की दुकान से कपडा िाना ी ोगा।
3. ा े उसके धिए माुँ के ाथों के छन्नी-ककना ी क्यों न धबक िाएुँ।
ि
1. रमेश धबथतर से उठते ी पेट ददा से धबिधबिाने िगा।
2. बच्चे को ुप कराने के धिए बािार से धखिौना िाना ी ोगा।

3. गरीबी के कारण मो न को छोटी उम्र में नौकरी ी क्यों न करना पडे।


(ख)
1. अरे िैसी नीयत ोती ै, अल्िा भी वैसी ी बरकत देता ।ै
2. भगवाना िो एक दफे ुप हुआ तो कफर न बोिा।
ि
1. अरे िो िैसे बोता ,ै वैसा ी काटता ।ै

2. कधवता िो एक बार य ाुँ आई तो कफर न ीं गई।


योग्यता धवथतार
1. व्यधि की प ान उसकी पोशाक से ोती ।ै इस धवषय पर कक्षा में परर ाा कीधिए।
2. यकद आपने भगवाना की माुँ िैसी ककसी दुधखया को देखा ै तो उसकी क ानी धिधखए।
3. पता कीधिए कक कौन-से साुँप धवषैिे ोते ?
ैं उनके ध त्र एकत्र कीधिए और धभधत्त पधत्रका में
िगाइए।
ि : धवद्याथी थवयिं करें ।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
2. एवरे थट : मेरी धशखर यात्रा
मौधखक
1. अधग्रम दि का नेतृत्व कौन कर र ा था?
ि. अधग्रम दि का नेतृत्व उपनेता प्रेम िंद कर र े थे।
2. िेधखका को सागरमाथा नाम क्यों अच्छा िगा?
ि.सागरमाथा शब्द से तात्पया ै ‘सागर के माथे के समान’ तथा एवरे थट को सागरमाथा के नाम से िाना
िाता ।ै य एक थथानीय नाम था इसधिए िेधखका को य नाम पसिंद आया। एवरे थट को नेपािी भाषा
में सागरमाथा नाम से िाना िाता ।ै
3. िेधखका को ध्वि िैसा क्या िगा?
ि.एवरे थट की तरफ गौर से देखते हुए िेधखका को एक भारी बफा का फू ि कदखा िो पवात धशखर पर
ि राता एक ध्वि-सा िग र ा था।
4. ध मथखिन से ककतने िोगों की मृत्यु हुई और ककतने घायि हुए?
ि.ध मथखिन से एक की मृत्यु हुई और ार घायि ो गए।
5. मृत्यु के अवसाद को देखकर कनाि खुल्िर ने क्या क ा?
ि.एक शेरपा कु िी की मृत्यु तथा ार के घायि ोने के कारण अधभयान दि के सदथयों के े रे पर छाए
अवसाद को देखकरकनाि खुल्िर ने क ा कक एवरेथट िैसे म ान अधभयान में खतरों को और कभी-कभी तो
मृत्यु को भी स ि भाव से थवीकार करना ाध ए।
6. रसोई स ायक की मृत्यु कै से हुई?
ि.एवरे थट धशखर पर ढ़ाई के दौरान ििवायु अनुकूि न ीं थी। ध मपात में अधनयधमत और अधनधित
बदिावों के कारण रसोई स ायक मृत्यु ो गई।
7. कैं प- ार क ाुँ और कब िगाया गया?
ि.कैं प ार साउथ कोि में 29 अप्रैि को सात िार नौ सौ मीटर की ऊुँ ाई पर िगाया गया था।
8. िेधखका ने शेरपा कु िी को अपना परर य ककस तर कदया?
ि.िेधखका ने िब साउथ कोि के बेस कैं प में शेरपा कु िी को देखा तो उन् ोंने उसे अपना परर य य
क कर कदया कक मैं धबिकु ि ी नौधसधखया हूुँ और य मेरा प िा अधभयान ।ै
9. िेधखका की सफिता पर कनाि खुल्िर ने उसे ककन शब्दों में बधाई दी?
ि.िेधखका की सफिता पर कनाि खुल्िर ने बधाई देते हुए क ा, “मैं तुम् ारी इस अनूठी उपिधब्ध के धिए
तुम् ारे माता-धपता को बधाई देना ाहूुँगा। देश को तुम पर गवा ै और अब तुम ऐसे सिंसार में वापस
िाओगी िो तुम् ारे अपने पीछे छोडे हुए सिंसार से एकदम धभन्न ोगा।”

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
धिधखत
(क) धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में ) धिधखए-
1. नजदीक से एवरे थट को देखकर िेधखका को कै सा िगा?
ि. निदीक से एवरे थट को देखकर िेधखका को इतना अच्छा िगा कक व भौ क्की ोकर देखती र ी। उसने
बेस-कैं प पहुुँ ने पर दूसरे कदन एवरे थट और उसकी अन्य श्रेधणयों को देखा। व इसके सौंदया को देखकर
प्रभाधवत हुई। ल् ोत्से और नुत्से की ऊुँ ाइयों से धघरी बफीिी टेढ़ी-मेढ़ी नदी को धन ारती र ी।
2. डॉ. मीनू मे ता ने क्या िानकाररयाुँ दीं?
ि. डॉ. मीनू मे ता ने उन् ें धनम्न िानकाररयाुँ दीं
• अल्यूधमधनयम की सीकढ़यों से अथथायी पुिों का बनाना।
• िट्ठों और रधथसयों को उपयोग करना।

• बफा की आडी-धतरछी दीवारों पर रधथसयों को बाुँधना।

• अधग्रम दि के अधभयािंधत्रकी कायों के बारे में धवथतृत िानकारी दी। ककसी भी अनिान पथ पर िाते हुए
य िानकारी म त्वपूणा थी। पवातीय यात्रा से पूवा तैयारी करनी पडती ।ै यकद धवथतृत िानकारी न
ो तो। रोमािं क यात्रा खतरनाक मोड िे िेती ।ै
3. तेनहििंग ने िेधखका की तारीफ में क्या क ा?
ि. तेनहििंग ने िेधखका की तारीफ में क ा कक व एक पक्की पवातीय िडकी ।ै उसे तो धशखर पर प िे ी
प्रयास में पहुुँ िाना ाध ए। करठन रोमािं क काया करना उनका शौक था। ऐसा िगता था कक िैसे
पवातीय थथानों की िानकारी उन् ें प िे से ी ो। यद्यधप एवरे थट का उनका प िा अधभयान था। तेनहििंग
का उनके किं धे पर ाथ रखकर प्रोत्सा न
देना उन् ें अच्छा िगा।
4. िेधखका को ककनके साथ ढ़ाई करनी थी?
ि. िेधखका को िोपसािंग, तशाररिं ग, एन.डी. शेरपा और आठ अन्य शरीर से मिबूत और ऊुँ ाइयों में
र नेवािे शेरपाओं के साथ ढ़ाई करनी थी। िय और मीनू उससे बहुत पीछे र गए थे िबकक व साउथ
कोि कैं प पहुुँ गई थी। बाद में वे भी आ गए थे। अगिे कदन सुब 6.20 पर व अिंगदोरिी के साथ ढ़ाई
के धिए धनकि पडी िबकक अन्य कोई भी व्यधि उस समय उसके साथ िने के धिए तैयार न ीं था। अन्य
पवातारोध यों के साथ ढ़ते हुए खतरों से िूझना उनकी आदत ो गई थी।
5. िोपसािंग ने तिंबू का राथता कै से साफ़ ककया? ि.
िब िेधखको ग री नींद में सो र ी थी तभी धसर के धपछिे ध थसे से कोई ीज टकराई और उसकी नींद खुि गई। कैं प के ठीक
ऊपर ल् ोत्से ग्िेधशयर से बफा का हपिंड धगरा था धिसने कैं प को त स-न स कर कदया था। िोपसािंग ने अपनी धथवस छु री से
तिंबू का राथता साफ ककया और िेधखका के पास से बडे-बडे ध मखिंडों को टाया और ारों तरफ फै िी हुई कठोर बफा की
खुदाई की। तब िाकर बा र धनकिने का राथता साफ ो सका। यकद थोडी-सी भी देर ो िाती तो उसका सीधा अथा था-
मृत्यु।
6. साउथ कोि कैं प पहुुँ कर िेधखका ने अगिे कदन की म त्त्वपूणा ढ़ाई की तैयारी कै से शुरू की?
ि. साउथ कोि कैं प पहुुँ कर िेधखका ने अगिे कदन की म त्त्वपूणा ढ़ाई की तैयारी के धिए खाना, कु ककिं ग गैस तथा कु छ

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िं ी राज्य सिंसाधक
ऑक्सीिन धसधिण्डर इकट्ठे ककए। इसके बाद िेधखका अपने दि के दूसरे साधथयों की स ायता के धिए एक थरमस में िूस
और दूसरे में ाय भरने के धिए नी े उतर गई।
(ख) धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) धिधखए
1. उपनेता प्रेम िंद ने ककन धथथधतयों से अवगत कराया?
ि. उपनेता प्रेम िंद ने अधग्रम दि का नेतृत्व करते हुए प िी बडी बाधा खिंभु ध मपात की धथथधत से
पवातारोध यों को अवगत कराया। उन् ोंने क ा कक उनके दि ने कैं प-एक िो ध मपात के ठीक ऊपर ,ै व ाुँ
तक का राथता साफ कर कदया ।ै उन् ोंने य बताया कक पुि बनाकर, रधथसयाुँ बाुँधकर तथा इिं धडयों से
राथता ध धनत कर सभी बडी करठनाइयों का िायिा िे धिया गया ।ै उन् ोंने इस पर भी ध्यान कदिाया
कक ग्िेधशयर बफा की नदी ै और बफा का धगरना अभी िारी ।ै ध मपात में अधनयधमत और अधनधित
बदिाव के कारण अभी तक के ककए गए सभी बदिाव व्यथा ो सकते ैं और में राथता खोिने का काम
दोबारा करना पड सकता ।ै
2. ध मपात ककस तर ोता ै और उससे क्या-क्या पररवतान आते ?
ैं
ि. बफा के खिंडों का अव्यवधथथत ििंग से धगरना ी ध मपात बनाता ।ै ध मपात अधनयधमत और अधनधित
ोता ।ै इससे अनेक प्रकार के पररवतान आते र ते ।ैं ग्िेधशयर के ि ने से अकसर बफा में ि ि ो िाती
।ै इससे बडी-बडी बफा की ट्टानें तुरिंत धगर िाती ैं और खतरनाक धथथधत उत्पन्न ो िाती ।ै धराति
पर दरारें पड िाती ।ैं ये दरारें अकसर ग री-ग री ौडी दरारों का रूप धारण कर िेती ।ैं इस प्रकार
पवातारोध यों की करठनाइयाुँ बहुत अधधक बढ़ िाती ।ैं
3. िेधखका के तिंबू में धगरे बफा हपिंड का वणान ककस तर ककया गया ै?
ि. िेधखका ग री नींद में सोई थी कक रात में 12.30 बिे के िगभग धसर के धपछिे ध थसे से ककसी सख्त
ीि के टकराने से नींद खुि गई। साथ ी एक िोरदार धमाका भी हुआ। साुँसें िेने में करठनाई ोने िगी।
एक ििंबा बफा का हपिंड कैं प के ठीक ऊपर ल् ोत्से ग्िेधशयर से टूटकर नी े आ धगरा था। उसका धवशाि
ध मपुिंि बन गया था। ध मखिंडों, बफा के टुकडों तथा िमी हुई बफा के इस धवशािकाय पुिंि ने, एक एक्सप्रेस
रे िगाडी की तेि गधत और भीषण गिाना को भी पीछे छोड कदया। कै प नष्ट ो गया था। वाथतव में र
व्यधि को ोट िगी। य एक आिया था कक ककसी की मृत्यु न ीं हुई थी।
4. िेधखका को देखकर ‘की’ क्का-बक्का क्यों र गया?
ि. िय िेधखका का पवातारो ी साथी था। उसको भी िेधखका के साथ पवात धशखर पर िाना था। धशखर
कैं प पर पहुुँ ने में उसे देरी ो गई थी। व सामान िोने के कारण पीछे र गया था। इसधिए ब द्र
ें ी उसके
धिए ाय-िूस आकद िेकर उसे राथते में धिवाने पहुुँ ी। बफीिी वाएुँ ि र ीं थीं और नी े िाना
खतरनाक था। िेधखका को िय िेनेवा थपर की ोटी के ठीक नी े धमिा। उसने कृ तज्ञतापूवाक ाय वगैर
पी और िेधखका को आगे िाने से रोका। िेधखका को ‘की’ से धमिना था। थोडा सा आगे नी े उतरने पर
िेधखका ने ‘की’ को देखा। व िेधखका को देखकर क्का-बक्का र गया।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
5. एवरे थट पर ढ़ने के धिए कु ि ककतने कैं प बनाए गए? उनका वणान कीधिए।
ि. एवरे थट पर ढ़ने के धिए कु ि सात कैं प िगाए गए थे
• बेसकैं प : य कैं प काठमािंडू के शेरपािैंड में िगाया गया। पवातीय दि के नेता कनाि खुल्िर य ीं र कर
एक-एक गधतधवधध का सिं ािन कर र े थे। उपनेता प्रेम िंद ने भी ध मपात सिंबिंधी सभी करठनाइयों का
परर य य ीं कदया।
• कैं प एक : य ध मपात से 6000 मीटर की ऊुँ ाई पर था। य ाुँ ध मपात से सामान उठाकर कैं प तक
िाए िाने | का अभ्यास ककया गया।
• कैं प दोुः 16 मई प्रातुः सभी िोग इस कैं प पर पहुुँ े। धिस शेरपा की टाुँग टूट गई उसे थरे र पर
धिटाया गया।
• कैं प तीनुः य ल् ोत्से प ाधडयों के आिंगन में धथथत था। य ाुँ नाइिॉन के बने तिंबू में िेधखका और उसके
सभी साथी सोए हुए थे। इसमें 10 व्यधि थे रात 12.50 बिे एक ध मखिंड उन पर आ धगरा।
• कैं प ारुः य समुद्र के 7900 मीटर ऊपर था। य ीं से साउथ कैं प और धशखर कैं प के धिए ढ़ाई की
गई। य 29 अप्रैि 1984 को अिंगदोरिी, िोपसािंग और गगन धबथसा ने िगाया था।
• साउथ कोि कैं पुः य ीं से अिंधतम कदन की ढ़ाई शुरू हुई।
• धशखर कैं प: य पवात की सवोत्तम ोटी से ठीक नी े धथथत ।ै इस कैं प में िेधखका और अिंगदोरिी
के वि दो घिंटे में पहुिं गए।
6. ढ़ाई के समय एवरे थट की ोटी की धथथधत कै सी थी?
ि. ढ़ाई के समय ऐवरेथट पर िमी बफा सीधी और ििाऊ थी। ट्टानें इतनी भुरभुरी थीं मानो शीशे की
ादरें धबछी ों। बफ़ा काटने के धिए फावडे का प्रयोग करना पडा। दधक्षण धशखर के ऊपर वा की गधत बढ़
गई थी। उस ऊुँ ाई पर तेि वा के झोंके झुरझुरी बफा के कणों को ारों ओर उडा र े थे। बफ़ा इतनी
अधधक थी कक सामने कु छ कदखाई न ीं दे र ा था। पवात की शिंकु ोटी इतनी तिंग थी कक दो आदमी व ाुँ
खडे न ीं ो सकते थे। ििान सुरक्षा की दृधष्ट से खतरनाक थी। व ाुँ अपने-आप को धथथर खडा करना बहुत
करठन ै इसधिए उन् ोंने फावडे से बफ़ा को तोडकर अपने रटकने योग्य थथान बनाया।
7. सधम्मधित अधभयान में स योग एविं स ायता की भावना का परर य ब ेंद्री के ककस काया से धमिता ै?
ि. िेधखका के व्यव ार से स योग और स ायता का परर य तब धमिता ै िब उसने अपने दि के दूसरे
सदथयों की मदद करने का धनिय ककया। इसके धिए उसने एक थरमस को िूस से तथा दूसरे को गरम ाय
से भरकर बफीिी वा में तिंबू से बा र धनकिी और नी े उतरने िगी। िय ने उसके इस प्रयास को
खतरनाक बताया तो ब ेंद्री ने िवाब कदया “मैं भी औरों की तर पवातारो ी हूुँ, इसधिए इस दि में आई
हूुँ। शारीररक रूप से ठीक हूुँ। इसधिए मुझे अपने दि के सदथयों की मदद क्यों न ीं करनी ाध ए?” य
भावना उसकी स योगी प्रवृधत्त को दशााती ।ै

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
(ग) धनम्नधिधखत के आशय थपष्ट कीधिए
1. एवरे थट िैसे म ान अधभयान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को स ि भाव से
थवीकार करनी ाध ए।
ि. आशय-ये शब्द कनाि खुल्िर ने अधभयान दि के सदथयों को क े थे। धिनका आशय था कक एवरेथट पर
पहुुँ ना एक म ान अधभयान ै धिसमें खतरे तो र ते ी ।ैं कभी-कभी ककसी सदथय की मृत्यु ो िाती ।ै
इसमें कदम-कदम पर िान िाने का खतरा ोता ।ै यकद ऐसा करठन काया करते हुए मृत्यु भी ो िाए तो
उसे थवाभाधवक घटना के रूप में िेना ाध ए। बहुत ाय-तौबा न ीं म ानी ाध ए क्योंकक ऐसे म ान
अधभयानों में य भी सिंभव ।ै
2. सीधे धराति पर दरार पडने का धव ार और इस दरार का ग रे - ौडे ध म-धवदर में बदि िाने का
मात्र ख्याि ी बहुत डरावना था। इससे भी ज्यादा भयानक इस बात की िानकारी थी कक मारे सिंपूणा
प्रयास के दौरान ध मपात िगभग एक दिान आरोध यों और कु धियों को प्रधतकदन छू ता र ग
े ा।
ि. आशय-ध मपात का अव्यवधथथत ििंग से धगरना थवयिं में डरावना था। धराति में दरार पडने का धव ार
और ध मपात तथा ग्िेधशयर के ब ने से बडी-बडी बफा की ट्टानों के धगरने की बात सुनकर िेधखका का
भयभीत ोना थवाभाधवक था। बडी-बडी बफा की ट्टानों के धगरने से कई बार धराति पर ये दरारें बहुत
ग री और ौडी बफा से िकी हुई गुफाओं में बदि िाती थीं, धिनमें धिंसकर मनुष्य का िीधवत र ना सिंभव
न ीं था। इससे भी ज्यादा भयानक इस बात की िानकारी थी कक इनके सारे अधभयान में य ध मपात
िगभग एक दिान पवातारोध यों और कु धियों का प्रधतकदन प्रभाधवत करता र ग
े ा। उन् ें इसका सामना
करना पडेगा।

3. धबना उठे ी मैंने अपने थैिे से दुगाा माुँ का ध त्र और नुमान ािीसा धनकािा। मैंने इनको अपने साथ
िाए िाि कपडे में िपेटा, छोटी-सी पूिा-अ ाना की और इनको बफा में दबा कदया। आनिंद के इस क्षण में
मुझे अपने माता-धपता का ध्यान आया।
ि. आशय-िेधखका एवरेथट शिंकुनुमा ोटी पर पहुुँ नेवािी प्रथम मध िा थी। व अपने सा स और
ध म्मत से अपनी धनधााररत मिंधिि तक पहुुँ गई थी। व ाुँ दो व्यधियों का इकट्ठे खडे ोना असिंभव था।
बफ़ा के फावडे से खुदाई करके उन् ोंने अपने आपको सुरधक्षत कर धिया और घुटनों के बि बैठकर
सागरमाथा के ताि को ूम धिया। पूिा-अ ाना करते हुए िेधखका ने िाि कपडे में दुगाा माुँ का ध त्र और
नुमान ािीसा िपेटी। बफा में उसे दबाया व माता-धपता का थमरण करने िगी। य िेधखका के धिए
अत्यिंत गौरव का क्षण था। उन् ें आि भी एवरे थट पर ढ़नेवािी प्रथम भारतीय मध िा के रूप में प ाना
िाता ।ै

भाषा-अध्ययन
इस पाठ में प्रयुि धनम्नधिधखत शब्दों की व्याख्या पाठ का सिंदभा देकर कीधिए-
1. धन ारा -ै प्रसन्नतापूवाक देखा ।ै
िेधखका ने नम े बाजार में पहुुँ कर सबसे प िे एवरे थट को देखा था व उसे देखते ी उसके सौंदया पर
मुग्ध ो गई। इसधिए िेधखका इसे मात्र देखा न क कर धन ारा’ क ती ।ै
2. धसकना-नी े को फुँ सना।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
िब धरती का कु छ ध थसा नी े की ओर दब िाता ै उसे धसकना क ते ।ैं
3. धखसकना-अपनी िग से टकर परे िे िाना।
ध मपात से बफा की बडी-बडी ट्टानें धखसक िाती ।ैं
4. सागरमाथा-सिंसार का सबसे ऊुँ ा थथान।
धिस थथान ने ब ेंद्री पाि ने ध मािय की ढ़ाई आरिं भ की, व थथान समुद्र ति का सवोच्च थथान ै
इसधिए उसे सागरमाथा ठीक ी क ा गया ।ै
5. िायिा करना – धववरण देना
उपनेता प्रेम िंद एवरे थट धशखर यात्रा करते समय आनेवािी सभी करठनाइयों का खुिासा धवथतार रूप से
ककया इसधिए िेधखका ने इस धवथतार धववरण को िायिा करना क ा |
5. नौधसधखया-अनिान।
तेनहििंग के सामने ब ेंद्री पाि ने थवयिं को नौधसधखया पवातारो ी क ा।
2. धनम्नधिधखत पिंधियों में उध त धवराम-ध ह्नों का प्रयोग कीधिए-
(क) उन् ोंने क ा तुम एक पक्की पवातीय िडकी िगती ो तुम् ें तो धशखर पर प िे ी प्रयास में पहुुँ
िाना ाध ए।
ि. उन् ोंने क ा, “तुम एक पक्की पवातीय िडकी िगती ो। तुम् ें तो धशखर पर प िे ी प्रयास में पहुुँ
िाना ाध ए।”

(ख) क्या तुम भयभीत थीं।


ि. “क्या तुम भयभीत ो”?

(ग) तुमने इतनी बडी िोधखम क्यों िी ब ेंद्री।


ि. “तुमने इतनी बडी िोधखम क्यों िी? ब ेंद्री”।

3. नी े कदए उदा रण के अनुसार धनम्नधिधखत शब्द-युग्मों का वाक्य में प्रयोग कीधिए-


उदा रण- मारे पास एक वॉकी-टॉकी था।
टेढ़ी-मेढ़ी-प ाडों पर सडकें टेढ़ी-मेढ़ी ोती ।ैं
ग रे - ौडे-बफा के बडे ग्िेधशयर धगरने से ग रे - ौडे गड्ढे पड गए थे।
आस-पास- मारे धवद्यािय के आस-पास बहुत ररयािी ।ै ।
क्का-बक्का-अपने माता-धपता को पाटी में आया देखकर रमेश क्का-बक्का र गया।
इधर-उधर- ोरी पकडे िाने पर रमेश स ायता के धिए इधर-उधर देखने िगा।
ििंब-े ौडे-नेता िोग वादे तो ििंब-े ौडे करते ैं परिं तु उनमें से एक भी पूरा न ीं करते।

4. उदा रण के अनुसार धविोम शब्द बनाइए-

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
5. धनम्नधिधखत शब्दों में उपयुि उपसगा िगाइए-
िैसे- पुत्र-सुपत्र
ु ।

6. धनम्नधिधखत कक्रयाधवशेषणों का उध त प्रयोग करते हुए ररि थथानों की पूर्ता कीधिए-


अगिे कदन, कम समय में, कु छ देर बाद, सुब तक
(क) मैं सुब तक य काया कर िूिंगा।।
(ख) बादि धघरने के कु छ देर बाद ी वषाा ो गई।
(ग) उसने बहुत कम समय में इतनी तरक्की कर िी।
(घ) नाङके सा को अगिे कदन गाुँव िाना था।

योग्यता-धवथतार

1.इस पाठ में आए दस अिंग्रेजी शब्दों का यन कर उनका अथा धिधखए।-


ि

2. पवातारो ण से सिंबिंधधत दस ीिों के नाम धिधखए।-


ि

3. तेनहििंग शेरपा की प िी ढ़ाई के बारे में िानकारी प्राप्त कीधिए।


4. इस पवात का नाम ‘एवरे थट’ क्यों पडा? िानकारी प्राप्त कीधिए।
ि : धवद्याथी थवयिं करें।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
3. तुम कब िाओगे, अधतधथ
मौधखक धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर एक-दो पिंधियों में दीधिए-
1. अधतधथ ककतने कदनों से िेखक के घर पर र र ा ?

ि.अधतधथ िेखक के घर पर धपछिे ार कदनों से र र ा था और अभी तक िाने का नाम न ीं िे र ा था।

2. कै िेंडर की तारीखें ककस तर फडफडा र ी ?


ैं
ि.कै िेंडर की तारीखें अपनी सीमा में नम्रता से पिंछी के पिंखों की तर फडफडा र ी ।ैं

3. पधत-पत्नी ने मे मान का थवागत कै से ककया?


ि.पधत ने स्ने से भीगी मुथकरा ट से मे मान को गिे िगाकर उसका थवागत ककया। रात के भोिन में दो
प्रकार की सधब्जयों और रायते के अिावा मीठी ीिों का भी प्रबिंध ककया गया था। उनके आने पर पत्नी ने
उनका थवागत सादर प्रणाम करके ककया था।

4. दोप र के भोिन को कौन-सी गररमा प्रदान की गई?


ि.दोप र के भोिन को ििं की गररमा प्रदान की गई अथाात दोप र के भोिन को ििं िैसा शानदार
बनाया गया।

5. तीसरे कदन सुब अधतधथ ने क्या क ा?


ि.तीसरे कदन सुब अधतधथ ने िॉण्री में कपडे देने को क ा क्योंकक व उससे कपडे धुिवाना ा ता था।
6. सत्कार की ऊष्मा समाप्त ोने पर क्या हुआ?
ि.सत्कार की ऊष्मा समाप्त ोने पर धडनर के थथान पर धख डी बनने िगी। खाने में सादगी आ गई और
अब भी | व न ीं िाता तो उपवास तक रखना पड सकता था।

धिधखत
(क) धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) धिधखए-
1. िेखक अधतधथ को कै सी धवदाई देना ा ता था?
ि. िेखक अधतधथ को भावपूणा धवदाई देना ा ता था। व अधतधथ का भरपूर थवागत कर ुका था। उसके
सत्कार का आधखरी छोर आ ुका था। प्रा ीनकाि में क ा िाता था-‘अधतधथ देवो भव’। अधतधथ िब
धववशता का पयााय बन िाए तो उसे भाव-धवभोर ोकर धवदा न ीं ककया िा सकता। िेखक ा ता था कक
िब अधतधथ धवदा ो तब व और उसकी पत्नी उसे थटेशन तक छोडने िाएुँ। व उसे सम्मानिनक धवदाई
देना ा ता था परिं तु उसकी य मनोकामना पूणा न ीं ो पाई।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
2. पाठ में आए धनम्नधिधखत कथनों की व्याख्या कीधिए
(क)अिंदर- ी-अिंदर क ीं मेरा बटुआ काुँप गया।
ि. िेखक के घर में िब मे मान आया तो उसे िगा कक उसका बटुआ ल्का ो िाएगा। उसके हृदय में
बे ैनी ोने िगी कक इस अधतधथ का सत्कार कै से ककया िाएगा। ऐसे मे मान िो धबना सू ना के आते ।ैं
उन् ें देखकर अ ानक मेिबान का ाथ अपने बटुए पर िा िाता ।ै मन काुँपने िगता ।ै ख े बढ़ने की
आशिंका बढ़ िाती ।ै
(ख)अधतधथ सदैव देवता न ीं ोता, व मानव और थोडे अिंशों में राक्षस भी ो सकता ।ै
ि. अधतधथ िब बहुत कदनों तक ककसी के घर ठ र िाता ै तो ‘अधतधथ देवो भव’ का मूल्य नगण्य ो
िाता ।ै उन् ें देवता न ीं माना िाता। अधतधथ िबरदथती दूसरों के घर में ठ रकर राक्षसत्व का थवरूप पा
िेता ।ै यकद अधतधथ ििंबे समय तक ठ र िाता ै तो व अपना म त्त्व खो बैठता ।ै अधधक कदनों तक
अधतधथ का ठ रना व्याकु िता उत्पन्न कर देता ।ै उसकी धवदाई की प्रतीक्षा में मन डू बने िगता ।ै अधतधथ
के मुख पर सुिभ व स ि मुथकान ोती ै और व मुथकान िेखक की स नशीिता को ठे स पहुुँ ाती ।ै

(ग)िोग दूसरे के ोम की थवीटनेस को काटने न दौडे।


ि. िोग अपने घर को तो थवीट ोम ी रखना ा ते ैं परिं तु दूसरे के घर की धमठास में ि र घोिते
निर आते ।ैं अधतधथ िब दूसरों के घर िाते ैं तो उनके घर की शािंधत नष्ट कर देते ैं, िोगों का आ रण
दूसरों के िीवन को उथि-पुथि कर देता ।ै अधतधथयों की मे माननवाजी करने में बोररयत ोती ।ै
आर्थाक धथथरता को बनाकर घर में िोग सुख- ैन की साुँस िे र े ोते ।ैं खान-पान, र न-स न सब ठाट-
बाट का ोता ।ै अ ानक अधतधथ का आगमन देवत्व का बोध न ीं करा पाता। घर की थवीटनेस को काट
डािता ।ै ऐसे िोगों को भाव भीनी धवदाई देने का मन करता ै िो दूसरों के घरों की सरसता कम करने
का कारण बन िाते ।ैं

(घ) मेरी स नशीिता की व अिंधतम सुब ोगी।


ि. अधतधथ यकद एक-दो कदन के धिए ठ रे तो उसका आदर-सत्कार ोता ै परिं तु िब अधधक कदन ठ रे तो
मेिबान की स नशीिता की सीमा टूट िाती ।ै उससे अधधक उस अधतधथ को झेिने की क्षमता उसमें
समाप्त ो िाती ।ै उसे ‘गेट आउट’ क ने का मन करता ।ै आधतथ्य-सत्कार में भी अिंतर आ िाता ै।
अधतधथ अपने देवत्व को खोकर राक्षसत्व का बोध कराता ।ै

(ङ)एक देवता और एक मनुष्य अधधक देर साथ न ीं र ते।


ि. अधतधथ को देवता माना िाता ै परिं तु यकद व अधधक समय तक ठ रे तो उसका देवत्व समाप्त ो
िाता ै क्योंकक देवता तो थोडी देर के धिए दशान देकर िे िाते ।ैं वे अधधक समय तक न ीं ठ रते।
उनमें ईष्याा-द्वेष के भाव न ीं ोते। घरे िू पररधथथधतयों की िरटिताओं का सामना उन् ें न ीं करना पडता।
मनुष्य को उसकी पररधथथधतयाुँ प्रभाधवत करती ।ैं घर की शािंधत को व भिंग न ीं करना ा ता। इस
प्रकार धवपरीत थवभाव का एक ी म्यान में ठ रना नामुमककन ।ै

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
(ख) धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) धिधखए-
1. कौन-सा आघात अप्रत्याधशत था और उसका िेखक पर क्या प्रभाव पडा?
ि. िेखक सो र ा था कक तीसरे कदन अधतधथ की भावभीनी धवदाई का व क्षण आ िाना ाध ए। ककिं तु
अधतधथ ने ऐसा न ीं ककया। सुब उठते ी उसने िब िेखक से अपने कपडे धोबी को देने की बात क ी तब
िेखक को इस बात को सुनकर िो आघात िगा व अप्रत्याधशत था। इसका प्रभाविेखक पर ऐसा पडा कक
व सो ने पर मिबूर ो गया कक अधतधथ सदैव देवता न ीं ोता, व मानव और थोडे अिंशों में राक्षस भी
ो सकता ।ै
2. ‘सिंबिंधों को सिंक्रमण के दौर से गुिरना’-इस पिंधि से आप क्या समझते ?
ैं धवथतार से धिधखए।
ि. सिंक्रमण का अथा -ै एक अवथथा से दूसरी अवथथा में िाने का समय। अथाात् एक धथथधत से दूसरी धथथधत
में प्रवेश करने की प्रकक्रया। इस अवथथा को सिंधधाकाि भी क ते ।ैं इस थथान पर आकर एक ीि अपना
थवरूप खो देती ै तो दूसरा अपना थवरूप िे िेती ।ै िेखक के साथ भी अधतधथ के आने पर कु छ ऐसा ी
हुआ। मधुर सिंबिंध कटुता में पररवर्तात ो गए। सत्कार की ऊष्मा समाप्त ो गई। धडनर से धख डी तक
पहुुँ कर अधतधथ के िाने का रम क्षण समीप आ गया था। घर के िोगों की शािंधत भिंग ोने िगी। अधतधथ
का मन भिे ी घर िौटने का न ो परिं तु उसे अपने घर की ओर ि देना ाध ए। इस प्रकार मधुर
धथथधतयों की कटुता को उिागर ककया गया ।ै
3. िब अधतधथ ार कदन तक न ीं गया तो िेखक के व्यव ार में क्या-क्या पररवतान आए?
ि. िब अधतधथ ार कदन तक न ीं गया तो िेखक के आधतथ्य में कमी आ गई। ििं और धडनर की
धवधवधता कम ो गई। व उसके िाने की प्रतीक्षा करने िगे। कभी कै िेंडर कदखाकर तो कभी नम्रता की
आुँखें कदखाकर। स्ने -भीगी मुथकु रा ट गायब ो गई। घर की शािंधत गडबडाने िगी। समीपता दूरी में बदिने
िगी। वे उसे थटेशन तक छोडने िाना ा ते ,ैं परिं तु अधतधथ ै कक िाने का नाम न ीं िेता। य देखकर
िेखक के व्यव ार में धनम्न पररवतान आए -
1. खाने का थतर धडनर से धगरकर धख डी तक आ पहुुँ ा।
2. व गेट आउट क ने को भी तैयार ो िाता ।ै
3. िेखक को अधतधथ राक्षस के समान िगने िगता ।ै
4. अब अधतधथ के प्रधत सत्कार की कोई भावना न ीं ब ी।
5. भावनाएुँ गाधियों का थवरूप ग्र ण करने िगती ।ैं
भाषा-अध्ययन
1. धनम्नधिधखत शब्दों के दो-दो पयााय धिधखए-
ाुँद, धिक्र, आघात, ऊष्मा, अिंतरिं ग। ि: छात्र स्वयं करें
2. धनम्नधिधखत वाक्यों को धनदेशानुसार पररवर्तात कीधिए
(क) म तुम् ें थटेशन तक छोडने िाएुँगे। (नकारात्मक वाक्य)
(ि) हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने नहीं जाएँगे।
(ख) ककसी िॉण्डी पर दे देते ,ैं िल्दी धुि िाएुँगे। ( वा क वाक्य)
(ि) क्या ककसी िॉण्री पर दे देने से िल्दी धुि िाएुँगे?
(ग) सत्कार की उष्मा समाप्त ो र ी थी। (भधवष्यत् काि)
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
(ि )सत्कार की ऊष्मा समाप्त ो िाएगी।
(घ) इनके कपडे देने ।ैं (थथानसू क वा ी)।
(ि) इनके कपडे क ाुँ देने ?
ैं
(ङ) कब तक रटकें गे ये? (नकारात्मक)
(ि) ये बहुत देर तक न ीं रटकें गे।
3. पाठ में आए इन वाक्यों में ‘ ुकना’ कक्रया के धवधभन्न प्रयोगों को ध्यान से देधखए और वाक्य सिंर ना को समधझए-
1. तुम अपने भारी रण-कमिों की छाप मेरी जमीन पर अिंककत कर ुके।
2. तुम मेरी काफी धमट्टी खोद ुके।
3. आदर-सत्कार के धिस उच्च हबिंदु पर म तुम् ें िे िा ुके थे।
4. शब्दों का िेन-देन धमट गया और ाा के धवषय ुक गए।
5. तुम् ारे भारी-भरकम शरीर से सिवटें पडी ादर बदिी िा ुकी और तुम य ीं ो।
4. धनम्नधिधखत वाक्य सिंर नाओं में ‘तुम’ के प्रयोग पर ध्यान दीधिए|
1. िॉण्री पर कदए कपडे धुिकर आ गए और तुम य ीं ो।
2. तुम् ें देखकर फू ट पडनेवािी मुथकु रा ट धीरे -धीरे फीकी पडकर अब िुप्त ो गई ।ै
3. तुम् ें भारी-भरकम शरीर से सिवटें पडी ादर बदिी िा ुकी।।
4. कि से मैं उपन्यास पढ़ र ा हूुँ और तुम कफ़ल्मी पधत्रका के पन्ने पिट र े ो।
5. भावनाएुँ गाधियों का थवरूप ग्र ण कर र ी ,ैं पर तुम िा न ीं र ।े
योग्यता-धवथतार
1. ‘अधतधथ देवो भव’ उधि की व्याख्या करें तथा आधुधनक युग के सिंदभा में इसका आकिन करें ।
इस उधि का अथा ै कक अधतधथ देवता के समान ोता ।ै य उधि प िे समय में कभी ठीक र ी ोगी। |
आधुधनक युग में य उधि उध त प्रतीत न ीं ोती। आि िोगों के पास अपने धिए समय न ीं ।ै वे
अधतधथयों के थवागत-सत्कार के धिए समय कै से धनकािे? आि के िोग कमाने, व्यापार बढ़ाने, कै ररयर
बनाने, पढ़ने-पढ़ाने में अधधक ध्यान देने िगे ।ैं इसधिए आिकि अधतधथ के आने पर उनकी खुशी बढ़ने की
अपेक्षा कम ोती ।ै
2. धवद्याथी अपने घर आए अधतधथयों के सत्कार का अनुभव कक्षा में सुनाएुँ-
ि : धवद्याथी थवयिं करें।
3. अधतधथ के अपेक्षा से अधधक रुक िाने पर िेखक की क्या-क्या प्रधतकक्रयाएुँ हुईं, उन् ें क्रम से छाुँटकर
धिधखए-
• दूसरे कदन मन में आया कक बस इस अधतधथ को अब और अधधक न ीं झेिा िा सकता।
• तीसरे कदन उसका देवत्व समाप्त ो गया व राक्षस कदखाई देने िगा।
• ौथे कदन मुथकान फीकी पड गई। बात ीत रुक गई। धडनर का थथान धख डी ने िे धिया। मन में आया
कक उसे ‘गेट आउट’ क कदया िाए।
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
4. वैज्ञाधनक ेतना के वा क : न्द्र शेखर वेंकट रामन
मौधखक
धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर एक-दो पिंधियों में दीधिए-
1. रामन् भावुक प्रकृ धत प्रेमी के अिावा और क्या थे? ।
ि. रामन् भावुक प्रकृ धत प्रेमी के अिावा एक धिज्ञासु वैज्ञाधनक भी थे। उनके अिंदर सशि वैज्ञाधनक धिज्ञासा
थी। फिथवरूप वे धवश्वधवख्यात वैज्ञाधनक बने।।

2. समुद्र को देखकर रामन् के मन में कौन-सी दो धिज्ञासाएुँ उठीं?


ि. समुद्र को देखकर रामन् के मन में समुद्र के नीिा ोने का कारण िानने की धिज्ञासा उठी। उन् ोंने
सो ा कक समुद्र का रिं ग नीिा ोने के अिावा और कु छ क्यों न ीं ोता।

3. रामन् के धपता ने उनमें ककन धवषयों की सशि नींव डािी?


ि. रामन् के धपता गधणत और भौधतकी के धशक्षक थे। उन् ोंने मेशा रामन् को इन दोनों धवषयों के प्रधत
आकर्षात ककया। इस कारण आगे िकर रामन् ने िगत प्रधसद्ध पाई।

4. वाद्ययिंत्रों की ध्वधनयों के अध्ययन के द्वारा रामन् क्या करना ा ते थे?


ि. वाद्ययिंत्रों की ध्वधनयों के अध्ययन के द्वारा रामन् इनके पीछे धछपे वैज्ञाधनक र थयों की परतें खोिना
ा ते थे। इस दौरान उन् ोंने अनेक देशी और धवदेशी वाद्ययिंत्रों का अध्ययन ककया।

5. सरकारी नौकरी छोडने के पीछे रामन् की क्या भावना थी?


ि. सरकारी नौकरी छोडने के पीछे रामन् की भावना वैज्ञाधनक अध्ययन और शोधकाया करने की थी।

6. ‘रामन् प्रभाव’ की खोि के पीछे कौन-सा सवाि ध िोरें िे र ा था?


ि. ‘रामन-प्रभाव’ की खोि के पीछे समुद्र के नीिे रिं ग की वि का सवाि ध िोरें िे र ा था। उन् ोंने आगे
उसी | कदशा में प्रयोग ककए। धिसकी पररणधत रामन्-प्रभाव’ की म त्त्वपूणा खोि के रूप में हुई।

7. प्रकाश तरिं गों के बारे में आइिं थटाइन ने क्या बताया?


ि. प्रकाश की तरिं गों के बारे में आइिं थटाइन ने बताया कक प्रकाश अधत सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान
।ै उन् ोंने | सूक्ष्म कणों की तुिना बुिेट से की और उसे ‘फोटॉन’ नाम कदया।

8. रामन् की खोि ने ककन अध्ययनों को स ि बनाया?


ि. रामन् की खोि ने पदाथों के अणुओं और परमाणुओं की आिंतररक सिंर ना का अध्ययन स ि बनाया।
प िे उस नाम के धिए ‘इिं फ्रा रे ड थपेक्रोथकोपी’ का स ारा धिया िाता था।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
धिधखत
(क) धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) धिधखए-
1. कॉिेि के कदनों में रामन् की कदिी इच्छा क्या थी?
ि. कॉिेि के कदनों में रामन् की कदिी इच्छा थी कक वे अपनी सारा िीवन शोधकायों को पूरा करने में
िगाए, परिं तु | इसे कै ररयर के रूप में अपनाने की उनके पास कोई खास व्यवथथा न ीं थी।
2. वाद्ययिंत्रों पर की गई खोिों से रामन् ने कौन-सी भ्ािंधत तोडने की कोधशश की?
ि. वाद्ययिंत्रों पर की गई खोिों से रामन् ने य भ्ािंधत तोडने की कोधशश की कक भारतीय वाद्ययिंत्र धवदेशी
वाद्ययिंत्रों की तुिना में घरटया ।ै

3. रामन् के धिए नौकरी सिंबिंधी कौन-सा धनणाय करठन था?


ि. रामन् के धिए नौकरी सिंबिंधी य धनणाय करठन था, िब किकत्ता धवश्वधवद्यािय में प्रोफे सर का पद
खािी था और आशुतोष मुखिी ने उनसे इस पद को थवीकार करने का आग्र ककया। प्रोफे सर की नौकरी
की अपेक्षा उनकी सरकारी नौकरी ज्यादा वेतन तथा सुधवधा से भरी थी, कफर भी उन् ोंने प्रोफे सर की
नौकरी को थवीकार ककया, क्योंकक उनके धिए सरकारी सुख-सुधवधाओं से क ीं अधधक सरथवती की साधना
थी इसधिए य धनणाय करना स मु ध म्मत का काम था।

4. सर िंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर ककन-ककन पुरथकारों से सम्माधनत ककया गया?


ि. सर िंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर अनेक पुरथकारों से सम्माधनत ककया गया–
➢ सन् 1924 में रॉयि सोसाइटी की सदथयता से उन् ें सम्माधनत ककया गया।
➢ सन् 1929 में ‘सर’ की उपाधध दी गई।
➢ सन् 1930 में नोबेि पुरथकार से सम्माधनत ककया गया।
➢ सन् 1954 में ‘भारत-रत्न’ से सम्माधनत ककए गए। |
➢ रोम का मेत्यूसी पदक धमिा।
➢ रायि सोसाइटी का यूि पदक धमिा।
➢ कफिोडेधल्फया इिं थटीट्यूट का फ्रेंकधिन पदक धमिा।
➢ सोधवयत रूस का अिंतरााष्ट्रीय िेधनन पुरथकार धमिा आकद।
5. रामन् को धमिने वािे पुरथकारों ने भारतीय- त
े ना को िाग्रत ककया। ऐसा क्यों क ा गया ?

ि. रामन् को धमिनेवािे पुरथकारों ने भारतवषा को एक नया सम्मान और आत्मधवश्वास कदया। रामन्
नवयुवकों के प्रेरणास्रोत बन गए। उन् ोंने एक नयी भारतीय ेतना को िन्म कदया। उनके अिंदर एक राष्ट्रीय
ेतना थी और वे देश में वैज्ञाधनक दृधष्ट और ह िंतन के प्रधत समर्पात थे। उन् ें भारतीय सिंथकृ धत से ग रा
िगाव था। अिंतरााष्ट्रीय प्रधसद्ध के बाद भी उन् ोंने सैकडों छात्रों का मागादशान ककया और देश के भावी
नागररकों को भी एक सफि वैज्ञाधनक बनने की प्रेरणा दी।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
(ख) धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर ( 50-60 शब्दों में) धिधखए
1. रामन् के प्रारिं धभक शोधकाया को आधुधनक ठयोग क्यों क ा गया ै?
ि. रामन् के प्रारिं धभक शोधकाया को आधुधनक ठयोग इसधिए क ा गया ,ै क्योंकक उनकी पररधथथधतयाुँ
धबिकु ि धवपरीत थीं। वे बहुत म त्त्वपूणा तथा व्यथत नौकरी पर थे। उन् ें र प्रकार की सुख-सुधवधा प्राप्त
ो गई थी। समय की कमी थी। थवतिंत्र शोध के धिए पयााप्त सुधवधाएुँ न ीं थीं। िे-देकर किकत्ता में एक
छोटी-सी प्रयोगशािा ी थी धिसमें बहुत कम उपकरण थे। ऐसी धवपरीत पररधथथधतयों में शोध काया दृढ़
इच्छा शधि से ी सिंभव था। य रामन् के मन का दृढ़ ठ था, धिसके कारण वे शोध िारी रख सके ।
इसधिए उनके प्रारिं धभक शोधकाया को आधुधनक ठयोग क ा गया ।ै य ठयोग धवज्ञान से सिंबिंधधत था,
इसधिए आधुधनक क ना उध त था।

2. रामन् की खोि ‘रामन् प्रभाव’ क्या ?


ै थपष्ट कीधिए।
ि. रामन् की खोि को ‘राम-प्रभाव’ के नाम को िाना िाता ।ै रामन् ने अनेक ठोस और तरि पदाथों पर
प्रकाश की ककरणों का अध्ययन ककया। उन् ोंने पाया कक िब एकवणीय प्रकाश की ककरण ककसी तरि या
रवेदार पदाथा से गुिरती ै तो गुिरने के बाद उसके वणा में पररवतान आ िाता ।ै ऐसा इसधिए ोता ,ै
क्योंकक िब एकवणीय प्रकाश की ककरण के फोटॉन तरि या रवेदार पदाथा से गुिरते हुए उनके अणुओं से
टकराते ैं तो इस टकराव के पररणाम से या तो ये ऊिाा का कु छ अिंश पा िाते ैं या कु छ खो देते ।ैं दोनों
ी धथथधतयाुँ प्रकाश के वणा में बदिाव िाती ।ैं एकवषीय प्रकाश तरि या ठोस रवों से गुरिते हुए धिस
पररणाम में ऊिाा खोता या पाता ै उसी के अनुसार उसका वगा पररवर्तात ो िाता ।ै

3. ‘रामन् प्रभाव’ की खोि से धवज्ञान के क्षेत्र में कौन-कौन से काया सिंभव ो सके ?
ि. रामन् की खोि की वि से पदाथों के अणुओं और परमाणुओं की आिंतररक सिंर ना का अध्ययन स ि
ो गया। प िे इस काम के इिं फ्रारे ड थपेक्रोथकोपी’ का स ारा धिया िाता था। य मुधश्कि तकनीक ै और
ग़िधतयों की सिंभावना बहुत अधधक र ती ।ै रामन् की खोि के बाद पदाथों की आणधवक और
परमाणधवक सिंर ना के अध्ययन के धिए रामन् ‘थपेक्रोथकोपी’ का स ारा धिया िाने िगा। य तकनीक
एकवणीय प्रकाश के वणा में पररवतान के आधार पर पदाथों के अणुओं और परमाणुओं की सिंर ना की
सटीक िानकारी देती ।ै इस िानकारी के कारण पदाथों का सिंश्लष
े ण करना तथा अनेक उपयोगी पदाथों
का कृ धत्रम रूप से धनमााण सिंभव ो सका।

4. देश के वैज्ञाधनक दृधष्ट और ह िंतन प्रदान करने में सर िंद्रशेखर वेंकट रामन् के म त्त्वपूणा योगदान पर
प्रकाश डाधिए।
ि. रामन् के अिंदर एक राष्ट्रीय ेतना थी तथा वे देश में वैज्ञाधनक दृधष्टकोण और ह तिं न के धवकास के प्रधत समर्पात थे। उन् ें
अपने शुरुआती कदन मेशा ी याद र े िब उन् ें सिंघषा करना पडा। इसधिए उन् ोंने एक अत्यिंत उन्नत प्रयोगशािा और शोध
सिंथथान की थथापना की िो बिंगिौर में धथथत ै और उन् ीं के नाम पर अथाात् ‘रामन् ररस ा इिंथटीट्यूट’ के नाम से िानी
िाती ।ै भौधतकी में अनुसिंधान को बढ़ावा देने के धिए उन् ोंने ‘इिंधडयन िनरि ऑफ कफधिक्स’ नामक शोध-पधत्रका आरिंभ

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
की। धवज्ञान के प्र ार-प्रसार के धिए वे करिंट साइिंस’ नामक पधत्रका का सिंपादन करते थे। रामन् के वि प्रकाश की ककरणों तक
ी न ीं धसमटे थे। उन् ोंने अपने व्यधित्व कें प्रकाश से पूरे देश को आिोककत और प्रकाधशत ककया।

5. सर वेंकट रामन् के िीवन से प्राप्त ोनेवािे सिंदेशों को अपने शब्दों में धिधखए।
ि. सर िंद्रशेखर वेंकट रामन् ने क ीं भाषण के द्वारा अपना सिंदेश प्रसाररत न ीं ककया। उन् ोंने अपना
िीवन धिस प्रकार से धिया व भाषण से भी प्रभावी सिंदेश देने का माध्यम था। उनका कमाशीि िीवन
मुखर सिंदेश से भी प्रखर था। उन् ोंने वैज्ञाधनक शोध में अपना िीवन समर्पात कर कदया। वे सरकारी नौकरी
में र ते हुए भी किकत्ता की प्रयोगशािा में प्रयोग करते र ।े िब उन् ें भौधतकी धवभाग के प्रोफे सर की
नौकरी धमिी तो कम वेतन और कम सुख-सुधवधाओं के बाविूद भी उन् ोंने व नौकरी थवीकार कर िी।
इससे में य सिंदेश धमिता ै कक में धन और सुख-सुधवधा का मो त्यागकर शोध या ककसी अन्य
कल्याणकारी काया के धिए अपना िीवन अर्पात करना ाध ए। उन् ोंने धिस प्रकार अनेक नवयुवकों को
शोध के धिए प्रेररत ककया व भी अनुकरणीय ।ै उन् ोंने राष्ट्रीयता एविं भारतीय सिंथकारों को न ीं त्यागा।
उन् ोंने अपना दधक्षण भारतीय प नावा भी न ीं छोडा।
(ग) धनम्नधिधखत के आशय थपष्ट कीधिए
1. उनके धिए सरथवती की साधना सरकारी सुख-सुधवधाओं से क ीं अधधक म त्त्वपूणा थी।
ि. आशय-वेंकट रामन् सच्चे सरथवती साधक थे। वे धिज्ञासु प्रकृ धत के वैज्ञाधनक तथा अन्वेषक थे। उन् ोंने
सरकारी सुख-सुधवधाओं की अपेक्षा वैज्ञाधनक खोिों को अधधक म त्त्व कदया। इसके धिए धवत्त-धवभाग की
ऊुँ ी नौकरी छोड दी। किकत्ता धवश्वधवद्यािय की कम सुधवधावािी नौकरी थवीकार कर िी। इस प्रकार वे
धशक्षण पाने व देने के काम को अधधक म त्त्वपूणा मानते थे और उन् ोंने य ी ककया।
2. मारे पास ऐसी न िाने ककतनी ी ीिें धबखरी पडी ,ैं िो अपने पात्र की तिाश में ।ैं
ि. आशय- मारे आसपास के वातावरण में अनेक प्रकार की वथतुएुँ धबखरी ोती ।ैं उनके बारे में
िानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता ।ै उन धबखरी ीिों को स ी ििंग से सुँवारने वािे व्यधि की
आवश्यकता ोती ,ै िो उन् ें नया रूप दे सकते ।ैं इन घटनाओं को अनुसिंधान करनेवािे खोधियों की
तिाश र ती ।ै
3. य अपने-आप में एक आधुधनक ठयोग का उदा रण था।
ि. आशय- ठयोग का अथा -ै धिद करनेवािा। व य न ीं देखता कक पररधथथधतयाुँ उसके अनुकूि ैं या
न ीं। प्रधतकू ि पररधथथधतयों में भी व अपनी इच्छा शधि को दबने न ीं देता। अपने काया को पूरा करके ी
र ता ।ै रामन् किकत्ता में सरकारी नौकरी करने के दौरान भी बहू बािार में धथथधत इिं धडयन
एसोधसएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइिं स की काम िाऊ प्रयोगशािा के काम िाऊ उपकरणों से
प्रयोग करते थे। य अपने-आप में आधुधनक ठयोग का उदा रण ।ै
(घ) उपयुि शब्द का यन करते हुए ररि थथानों की पूर्ता कीधिए।
इिं फ्रा रे ड थपेक्रोथकोपी, इिं धडयन एसोधसएशन फॉर द कधल्टवेशन ऑफ़ साइिं स, कफिॉसॉकफकि मैंगजीन,
भौधतकी, रामन् ररस ा इिंथटीट्यूट।
1. रामन् का प िा शोध पत्र कफिॉसॉकफकि मैगिीन में प्रकाधशत हुआ था।
2. रामन् की खोि भौधतकी के क्षेत्र में एक क्रािंधत के समान थी।
3. कोिकाता की मामूिी-सी प्रयोगशािा का नाम इिंधडयन एसोधसएशन फॉर द कधल्टवेशन ऑफ़ सािंइस था।

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िं ी राज्य सिंसाधक
4. रामन् द्वारा थथाधपत शोध सिंथथान ‘रामन् ररस ा इिं थटीट्यूट’ नाम से िाना िाता ।ै

5. प िे पदाथों के अणुओं और परमाणुओं की आिंतररक सिंर ना का अध्ययन करने के धिए इिं फ्रारे ड
थपेक्रोथकोपी का स ारा धिया िाता था।
भाषा-अध्ययन

1.नी े कु छ समानदशी शब्द कदए िा र े ,ैं धिनका अपने वाक्य में इस प्रकार प्रयोग करें कक उनके अथा
का अिंतर थपष्ट ो सके । .
(क) प्रमाण-प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता न ीं ोती।
(ख) प्रणाम- में प्रात:काि उठकर माता-धपता को प्रणाम करना ाध ए।
(ग) धारणा-मेरी धारणा ै कक सारे ोर बुरे इिंसान न ीं ोते।
(घ) धारण-मेरे धपता िी ने मौन व्रत धारण ककया ।ै
(ङ) पूवव
ा ती-भारत के पूवावती इिाकों में धबििी की कमी ो र ी ।ै
( ) परवती-सम्राट अशोक के परवती शासकों ने मौया साम्राज्य को कमजोर कर कदया।
(छ) पररवतान-पररवतान प्रकृ धत का धनयम ।ै
(ि) प्रवतान-गौतम बुद्ध ने बौद्ध मत का प्रवतान ककया।

2.रे खािंककत शब्द के धविोम शब्द का प्रयोग करते हुए ररि थथान की पूर्ता कीधिए-
(क) मो न के धपता मन से सशि ोते हुए भी तन से अशि ।ैं
(ख) अथपताि के अथथायी कमा ाररयों को थथायी रूप से नौकरी दे दी गई ।ै
(ग) रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरि पदाथों पर प्रकाश की ककरण के प्रभाव का अध्ययन ककया।
(घ) आि बािार में देशी और धवदेशी दोनों प्रकार के धखिौने उपिब्ध ।ैं
(ङ) सागर की ि रों को आकषाण उसके धवनाशकारी रूप को देखने के बाद धवकषाण में पररवर्तात ो
िाता ।ै
3. नी े कदए उदा रण में रे खािंककत अिंश में शब्द-युग्म का प्रयोग हुआ ै
उदा रण— ाऊतान को गाने-बिाने में आनिंद आता ।ै उदा रण के अनुसार धनम्नधिधखत शब्द-युग्मों का
वाक्यों में प्रयोग कीधिए
(क) सुख-सुधवधा : माधिक अपने कमा ाररयों की सुख-सुधवधा का ध्यान रखता ।ै
(ख) अच्छा-खासा : रामन् का धवश्व-भर में अच्छा-खासा प्रभाव था।
(ग) प्र ार-प्रसार :ह द
िं ी के प्र ार-प्रसार के धिए सरकार धनरिं तर प्रयास कर र ी ।ै
(घ) आस-पास : में अपने आस-पास के वातावरण को थवच्छ बनाए रखने के धिए धनरिं तर
प्रयत्नशीि र ना ध ए।
4. प्रथतुत पाठ में आए अनुथवार और अनुनाधसक शब्दों को धनम्न ताधिका में धिधखए-

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िं ी राज्य सिंसाधक
5. पाठ में
धनम्नधिधखत धवधशष्ट भाषा प्रयोग में आए ।ैं सामान्य शब्दों में इनका आशय थपष्ट कीधिए।

घिंटों खोए र ते-बहुत देर तक ध्यान में िीन र ते।।


थवाभाधवक रुझान बनाए रखना-स ि रूप से रुध बनाए रखना।
अच्छा-खासा काम ककया-अच्छी मात्रा में िेर सारा काम ककया।
ध म्मत का काम था-करठन काम था।
सटीक िानकारी-धबिकु ि स ी और प्रमाधणक िानकारी।
काफी ऊुँ े अिंक ाधसि ककए-बहुत अच्छे अिंक पाए।
कडी मे नत के बाद खडा ककया था-बहुत मे नत के बाद शीघ्र सिंथथान की थथापना की थी।
मोटी तनख्वा -बहुत अधधक आय या वेतन।

6. पाठ के आधार पर धमिान कीधिए-

7. पाठ में आए रिं गों की सू ी बनाइए। इनके अधतररि दस रिं गों के नाम और धिधखए।
पाठ में आए रिं ग-बैंिनी, नीिा, आसमानी, रा, पीिा, नारिं गी, िाि।।
अन्य रिं ग-कािा, सफे द, गुिाबी, मैरुन, मुिंधगया, तोधतया, कफरोजी, भूरा, सिेटी।

8. नी े कदए गए उदा रण के अनुसार ‘ ी’ का प्रयोग करते हुए पाुँ वाक्य बनाइए।


उदा रणुः उनके ज्ञान की सशि नींव उनके धपता ने ी तैयार की थी।
1. मुझे धवद्यािय तो िाना ी था।
2. उसे काया तो करना ी पडेगा।
3. आप कब तक ऐसे ी बैठे र ग
ें े।
4. रमेश ने ी मुझे बुिाया था।
5. तुम मेशा ी प्रथम आते ो।
योग्यता-धवथतार

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िं ी राज्य सिंसाधक
1. ‘धवज्ञान का मानव धवकास में योगदान’ धवषय पर कक्षा में ाा कीधिए।
2. भारत में ककन-ककन वैज्ञाधनकों को नोबि पुरथकार धमिा ?
ै पता िगाइए और धिधखए।
3. न्यूटन के आधवष्कार के धवषय में िानकारी प्राप्त कीधिए।
ि : धवद्याथी थवयिं करें ।

5.शुक्र तारे के समान


मौखिक:

खनम्नखिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंखियों में दीखजए-


1. महादेव भाई अपना पररचय ककस रूप में देते थे?
ि. महादेव भाई अपना पररचय गाँधी जी के ‘पीर-बावची-खभश्ती-िर’ के रूप में देते थे।
2. ‘यंग इं खिया’ साप्ताखहक में िेिों की कमी क्यों रहने िगी थी?
ि. अंग्रेजी संपादक हानीमैन ‘यंग इं खिया’ के खिए खििते थे, खजन्हें देश खनकािे की सजा देकर इं ग्िैंि भेज
कदया था। इस कारण ‘यंग इं खिया’ साप्ताखहक में िेिों की कमी रहने िगी।
3. गांधी जी ने ‘यंग इं खिया’ प्रकाखशत करने के खवषय में क्या खनश्चय ककया?
ि. गाँधी जी ने ‘यंग इं खिया’ को सप्ताह में दो बार प्रकाखशत करने का खनश्चय ककया।
4. गांधी जी से खमिने से पहिे महादेव भाई कहाँ नौकरी करते थे?
ि. गांधी जी से खमिने से पहिे महादेव भाई भारत सरकार के अनुवाद खवभाग में नौकरी करते थे।
5. महादेव भाई के झोिों में क्या भरा रहता था?
ि. महादेव भाई के झोिों में ताजी राजनीखतक घटनाओं, जानकाररयों, चचााओं से संबंखधत पुस्तकें ,
समाचार पत्र, माखसक पत्र आकद भरे रहते थे।
6. महादेव भाई ने गांधी जी की कौन-सी प्रखसद्ध पुस्तक का अनुवाद ककया था?
ि. महादेव भाई ने गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रेजी अनुवाद ककया।
7. अहमदाबाद से कौन-से दो साप्ताखहक खनकिते थे?
ि. अहमदाबाद से खनकिने वािे साप्ताखहक पत्र थे-‘यंग इं खिया’ तथा ‘नव जीवन’।
8. महादेव भाई कदन में ककतनी देर काम करते थे?
ि. महादेव भाई िगातार चिने वािी यात्राओं, मुिाकातों, चचााओं और बातीचत में अपना समय खबताते
थे। इस प्रकार वे 18-20 घंटे तक काम करते थे।
9. महादेव भाई से गांधी जी की खनकटता ककस वाक्य से खसद्ध होती है?

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िं ी राज्य सिंसाधक
ि. महादेव भाई से गाँधी जी की खनकटता इस बात से खसद्ध होती है कक वे बाद के सािों में प्यारेिाि को
बुिाते हुए ‘महादेव’ पुकार बैठते थे।

खिखित
(क) खनम्नखिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) खिखिए-
1. गांधी जी ने महादेव को अपना वाररस कब कहा था?
ि. महादेव भाई 1917 में गांधी के पास पहुँचे। गांधी जी ने उनको पहचानकर उन्हें उत्तराखधकारी का पद
सौंपा था। 1919 में जखियाँबाग कांि के समय जब गांधी जी पंजाब जा रहे थे तब उन्हें खगरफ्तार कर
खिया। उन्होंने उसी समय महादेव भाई को अपना वाररस कहा था।
2. गांधी जी से खमिने आनेवािों के खिए महादेव भाई क्या करते थे?
ि. महादेव भाई पहिे उनकी समस्याओं को सुनते थे। उनकी संखिप्त रटप्पणी तैयार करके गाँधी जी के
सामने पेश । करते थे तथा उनसे िोगों की मुिाकात करवाते थे।
3. महादेव भाई की साखहखत्यक देन क्या है?
ि. महादेव भाई ने गांधी जी की गखतखवखधयों पर टीका-रटप्पणी के अिावा ‘सत्य के प्रयोग’ का अंग्रज
े ी
अनुवाद ककया। इसके अिावा ‘खचत्रांगदा’, ‘खवदाई का अखभशाप’, ‘शरद बाबू की कहाखनयाँ’ आकद का
अनुवाद उनकी साखहखत्यक देन है।
4. महादेव, भाई की अकाि मृत्यु को कारण क्या था?
ि. महादेव भाई की अकाि मृत्यु को कारण उनकी व्यस्तता तथा खववशता थी। सुबह से शाम तक काम
करना और गरमी की ऋतु में ग्यारह मीि पैदि चिना ही उनकी मौत का कारण बने।
5. महादेव भाई के खििे नोट के खवषय में गांधी जी क्या कहते थे?
ि. महादेव भाई के द्वारा खिखित नोट बहुत ही सुद
ं र और इतने शुद्ध होते थे कक उनमें कॉमी और मात्रा की
भूि और छोटी गिती भी नहीं होती थी। गांधी जी दूसरों से कहते कक अपने नोट महादेव भाई के खििे
नोट से ज़रूर खमिा िेना।
(ि) खनम्नखिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) खिखिए-
1. पंजाब में फौजी शासन ने क्या कहर बरसाया?
ि. पंजाब में फौजी शासन ने काफी आतंक मचाया। पंजाब के अखधकतर नेताओं को खगरफ्तार ककया गया।
उन्हें उम्र कै द की सज़ा देकर कािा पानी भेज कदया गया। 1919 में जखियाँवािा बाग में सैकड़ों खनदोष
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िं ी राज्य सिंसाधक
िोगों को गोखियों से भून कदया गया। ‘रिब्यून’ के संपादक श्री कािीनाथ राय को 10 साि की जेि की
सज़ा दी गई।

2. महादेव जी के ककन गुणों ने उन्हें सबका िाििा बना कदया था?


ि. महादेव भाई गांधी जी के खिए पुत्र के समान थे। वे गांधी का हर काम करने में रुखच िेते थे। गांधी जी
के साथ देश भ्रमण तथा खवखभन्न गखतखवखधयों में खहस्सा िेते थे। वे गांधी जी की गखतखवखधयों पर रटप्पणी
करते थे। महादेव जी की खििावट बहुत सुंदर, स्पष्ट थी। वे इतना शुद्ध खििते थे कक उसमें मात्रा और कॉमा
की भी अशुखध नहीं होती थी। वे पत्रों का जवाब खजतनी खशष्टता से देते थे, उतनी ही खवनम्रता से िोगों से
खमिते थे। वे खवरोखधयों के साथ भी उदार व्यवहार करते थे। उनके इन्हीं गुणों ने उन्हें सभी का िाििा
बना कदया।
3. महादेव जी की खििावट की क्या खवशेषताएँ थीं?
ि. पूणात: शुद्ध और सुंदर िेि खििने में महादेव भाई का भारत भर में कोई सानी नहीं था। वे तेज़ गखत से
िंबी खििाई कर सकते थे। उनकी खििावट में कोई भी गिती नहीं होती थी। िोग टाइप करके िाई
‘रचनाओं को महादेव की रचनाओं से खमिाकर देिते थे। उनके खििे िेि, रटप्पखणयाँ, पत्र और गाँधीजी के
व्याख्यान सबके सब ज्यों-के -ज्यों प्रकाखशत होते थे।
(ग) खनम्नखिखित का आशय स्पष्ट कीखजए-
1.‘अपना पररचय उनके ‘पीर-बावची-खभश्ती-िर’ के रूप में देने में वे गौरवाखन्वत महसूस करते थे।’
ि. आशय-महादेव भाई गांधी जी के खनजी सखचव और खनकटतम सहयोगी थे। इसके बाद भी उन्हें
अखभमान छू तक न गया था। वे गांधी जी के प्रत्येक काम को करने के खिए तैयार रहते थे। वे गांधी जी की
प्रत्येक गखतखवखध, उनके भोजन और दैखनक कायों में सदैव साथ देते थे। वे स्वयं को गांधी का सिाहकार,
उनका रसोइया, मसक से पानी ढोने वािा तथा खबना खवरोध के गधे के समान काम करने वािा मानते थे।
2. इस पेशे में आमतौर पर स्याह को सफे द और सफद को स्याह करना होता था।
ि- महादेव ने गाँधी जी के साखन्नध्य में आने से पहिे वकाित का काम ककया था। इस काम में वकीिों को
अपना के स जीतने के खिए सच को झूठ और झूठे को सच बताना पड़ता है। इसखिए कहा गया है कक इस
पेशे में स्याह को सफे द और सफे द को स्याह करना होता था।
3. देश और दुखनया को मुग्ध करके शुक्रतारे की तरह ही अचानक अस्त हो गए।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
ि. आशय- नित्र मंिि में करोड़ों तारों के मध्य शुक्रतारा अपनी आभा-प्रभा से सभी का ध्यान अपनी ओर
िींच िेता है, भिे ही उसका चमक अल्पकाि के खिए हो। यही हाि महादेव भाई देसाई का था। उन्होंने
अपने खमिनसार स्वभाव, मृदभ
ु ाखषता, अहंकार रखहत खवनम्र स्वभाव, शुद्ध एवं सुंदर खििावट तथा िेिक
की मनोहारी शैिी से सभी का कदि जीत खिया था। अपनी असमय मृत्यु के कारण वे काया-व्यवहार से
अपनी चमक खबिेर कर अस्त हो गए।

4. उन पत्रों को देि-देिकर कदल्िी और खशमिा में बैठे वाइसराय िंबी साँस-उसाँस िेते रहते थे।
ि. महादेव इतनी शुद्ध और सुंदर भाषा में पत्र खििते थे कक देिने वािों के मुह
ँ से वाह खनकि जाती थी।
गाँधी जी के पत्रों का िेिन महादेव करते थे। वे पत्र जब कदल्िी व खशमिा में बैठे वाइसराय के पास जाते
थे तो वे उनकी सुंदर खििावट देिकर दंग रह जाते थे।
भाषा-अध्ययन
1.‘इक’ प्रत्यय िगाकर शब्दों का खनमााण कीखजए-
सप्ताह – साप्ताखहक
अथा – आर्थाक
साखहत्य – साखहखत्यक
धमा – धार्माक
व्यखि – वैयखिक
मास – माखसक
राजनीखत – राजनैखतक
वषा – वार्षाक
2. नीचे कदए गए उपसगों का उपयुि प्रयोग करते हुए शब्द बनाइए-
अ, खन, अन, दुर, खव, कु , पर, सु, अखध
आया – अन + आया = अनाया आगत – सु + आगत = स्वागत
िर – खन + िर = खनिर आकषाक – अन + आकषाक = अनाकषाक
क्रय – खव + क्रय = खवक्रय मागा – कु + मागा = कु मागा
उपखस्थत – अन + उपखस्थत = अनुपखस्थत िोक – पर + िोक = परिोक
नायक – खव + नायक = खवनायक भाग्य – दुर + भाग्य = दुभााग्य
3. खनम्नखिखित मुहावरों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीखजए-

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
आड़े हाथों िेना, दाँतों तिे अंगि
ु ी दबाना, िोहे के चने चबाना, अस्त हो जाना, मंत्रमुग्ध करना।
मुहावरे – वाक्य प्रयोग
1. आड़े हाथों िेना – देर से घर आने पर खपता ने पुत्र को आड़े हाथों खिया।
2. दाँतों तिे अँगि
ु ी दबाना – ििमीबाई का रण कौशि देि अंग्रेज़ों ने दाँतों तिे अँगि
ु ी दबा िी।
3. िोहे के चने चबाना – इस रे खगस्तान को हरा-भरा बनाना िोहे के चने चबाने जैसा है।
4. अस्त हो जाना – अपनी प्रखतभा की चमक कदिाकर महादेव भाई असमय अस्त हो गए।
5. मंत्रमुग्ध करना – सुमन के बुने स्वेटर की बुनाई मुझे मंत्रमुग्ध कर रही है।

4. खनम्नखिखित शब्दों के पयााय खिखिए-


वाररस – उत्तराखधकारी खजगरी – घखनष्ठ, पक्का कहर – घोर मुसीबत
मुकाम – िक्ष्य, मंखजि रूबरू – आमने-सामने फका – अंतर
तािीम – खशिा खगरफ्तार – कै द, बंदी
5. उदाहरण के अनुसार वाक्य बदखिए-
उदाहरण : गांधी जी ने महादेव भाई को अपना वाररस कहा था।
गांधी जी महादेव भाई को अपना वाररस कहा करते थे।
1.महादेव भाई अपना पररचय ‘पीर-बावची-खभश्ती-िर’ के रूप में देते थे।
ि.महादेव भाई अपना पररचय पीर-बावची-खभश्ती-िर’ के रूप में कदया करते थे।
2.पीखड़तों के दि-के -दि गामदेवी के मखणभवन पर उमड़ते रहते थे।
ि.पीखड़तों के दि-के -दि गामदेवी के भवन पर उमड़ा करते थे।
3.दोनों साप्ताखहक अहमदाबाद से खनकिते थे।
ि.दोनों साप्ताखहक अहमदाबाद से खनकिा करते थे।
4.देश-खवदेश के समाचार-पत्र गांधी जी की गखतखवखधयों पर टीका-रटप्पणी करते थे।
ि.देश-खवदेश के समाचार-पत्र गांधी जी की गखतखवखधयों पर टीका-रटप्पणी ककया करते थे।
5.गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव की खििावट में जाते थे।
ि. गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव की खििावट में जाया करते थे।
योग्यता-खवस्तार
1. गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ को पुस्तकािय से िेकर पक़िए।
ि- खवद्याथी स्वयं करें ।
2. जखियाँवािा बाग में कौन-सी घटना हुई थी? जानकारी एकखत्रत कीखजए।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
ि- देश को स्वतंत्रता कदिाने के प्रयास में जखियाँवािा बाग में एक आम सभा आयोखजत की गई थी। इसमें
हजारों िोग शाखमि हुए। इस सभा में बच्चे, बू़ि,े नवयुवक, स्त्री-पुरुष ने उत्साहपूवाक भाग खिया। िोग
शांखतपूवाक सभा कर रहे थे, तभी जनरि िायर ने उपखस्थत जनसमूह पर गोिी चिाने का खनदेश दे कदया।
इस नरसंहार में हजारों िोग मारे गए। इस कदन को भारतीय स्वतंत्रता के इखतहास में कािे कदन के रूप में
जाना जाता है। इससे देश में अंग्रेजों के प्रखत घृणा तथा स्वतंत्रता प्राखप्त की ििक और प्रगा़ि हो उठी।
3. अहमदाबाद में बापू के आश्रम के खवषय में खचत्रात्मक जानकारी एकत्र कीखजए।
ि- छात्र स्वयं करें।

4. सूयोदय के 2-3 घंटे पहिे पूवा कदशा में या सूयाास्त के 2-3 घंटे बाद पखश्चम कदशा में एक िूब चमकाता
हुआ ग्रह कदिाई देता है, वह शुक्र ग्रह है। छोटी दूरबीन से इसकी बदिती हुई किाएँ देिी जा सकती हैं,
जैसे चंद्रमा की किाएँ।
ि- छात्र शुक्र ग्रह को देिकर इसकी किाएँ स्वयं देिें।
5. वीराने में जहाँ बखत्तयाँ न हों वहाँ अँधरे ी रात में जब आकाश में चाँद भी कदिाई न दे रहा हो तब शुक्र
ग्रह (खजसे हम शुक्र तारा भी कहते हैं) के प्रकाश से अपने साए को चिते हुए देिा जा सकता है। कभी
अवसर खमिे तो इसे स्वयं अनुभव करके देखिए।
ि- छात्र स्वयं ऐसा अनूठा अनुभव करें ।
पररयोजना काया
1. सूयामंिि में नौ ग्रह हैं। शुक्र सूया से क्रमशः दूरी के अनुसार दूसरा ग्रह है और पृथ्वी तीसरा। खचत्र सखहत
पररयोजना पुखस्तका में अन्य ग्रहों के क्रम खिखिए।
ि- छात्र स्वयं करें।
2. ‘स्वतंत्रता आंदोिन में गांधी जी का योगदान’ खवषय पर किा में पररचचाा आयोखजत कीखजए।
ि- छात्र उि खवषय पर स्वयं पररचचाा का आयोजन करें ।
3. भारत के मानखचत्र पर खनम्न स्थानों को दशााएँ-
अहमदाबाद, जखियाँवािा बाग (अमृतसर), कािापानी (अंिमान), कदल्िी, खशमिा, खबहार, ि प्रदेश।
ि- छात्र थवयिं करें।
अन्य पाठे तर हि
िघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. महादेव भाई अपना पररचय ‘पीर-बावची-खभश्ती-िर’ के रूप में देते थे।
ि- महादेव भाई अपना पररचय ‘पीर-बावची-खभश्ती-िर’ के रूप में कदया करते थे।
2. पीखड़तों के दि-के -दि गामदेवी के मखणभवन पर उमड़ते रहते थे।
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
ि - पीखड़तों के दि-के -दि गामदेवी की भवन पर उमड़ा करते थे।
3. दोनों साप्ताखहक अहमदाबाद से खनकिते थे।
ि - दोनों साप्ताखहक अहमदाबाद से खनकिा करते थे।
4. देश-खवदेश के समाचार-पत्र गांधी जी की गखतखवखधयों पर टीका-रटप्पणी करते थे।
ि - देश-खवदेश के समाचार-पत्र गांधी जी की गखतखवखधयों पर टीका-रटप्पणी ककया करते थे।
5. गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव की खििावट में जाते थे।
ि - गांधी जी के पत्र हमेशा महादेव की खििावट में जाया करते थे।

6. मखणभवन पर िोग क्यों आया करते थे?


ि - अंग्रेजों के जुल्म और अत्याचार के बारे में बताने वािे पीखड़त िोग गामदेवी के मखणभवन पर आते थे
और महादेव जी के माध्यम से गांधी जी को अपनी व्यथा बताते थे।
7. हानीमैन कौन थे? उन्हें क्या सज़ा खमिी?
ि - हानीमैन ‘क्राखनकि’ नामक साप्ताखहक समाचार पत्र के खनिर अंग्रेज़ संपादक थे। अंग्रेज़ सरकार ने उनके
िेिन से रुष्ट होकर देश खनकािे की सज़ा देकर इं ग्िैंि भेज कदया।
8. समय का अभाव होने पर भी महादेव भाई ने ककस प्रकार साखहखत्यक योगदान कदया?
ि - महादेवभाई के भाई के पास समय का खनतांत अभाव रहता था कफर भी उन्होंने ‘खचत्रांगदा’, कच
देवयानी की कथा पर टैगोर द्वारा रखचत ‘खवदाई का अखभशाप’ शीषाक नारटका, ‘शरदबाबू की कहाखनयाँ’
आकद का अनुवाद करके अपना साखहखत्यक योगदान कदया।
9. नरहररभाई कौन थे?
ि - नरहररभाई महादेव जी के खजगरी दोस्त थे। दोनों ने एक साथ वकाित की प़िाई की और साथ-साथ
अहमदाबाद में वकाित भी शुरू की।
10. महादेव जी की अकाि मृत्यु का प्रमुि कारण क्या था?
ि - महादेव जी की अकाि मृत्यु का कारण था-मगनवाड़ी से वधाा की असह्य गरमी में पैदि चिकर
सेवाग्राम पहुँचना और वहाँ काम करना। आते-जाते उन्हें ग्यारह मीि की दूरी तय करनी होती थी। उन्हें
िंबे समय तक वहाँ आना-जाना पड़ा था।
11. महादेव भाई स्वयं को गांधी जी का ‘पीर-बावची-खभश्ती-िर’ क्यों कहते थे?
ि - महादेव भाई गांधी जी के खनजी सखचव थे। वे गांधी जी के साथ रहकर उनके भोजन का ध्यान रिते थे
तथा गांधी जी के काम को करते हुए उनकी राजनैखतक गखतखवखधयों का खववरण समाचार-पत्रों को भेजते
थे। इसखिए वे स्वयं को ‘पीर बावची-खभश्ती-िर’ कहते थे।
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
12. गांधी जी ने महादेव भाई को अपने उत्तराखधकारी का पद कब सौंपा?
ि - महादेव भाई जब 1917 में गांधी जी के पास आए तभी गांधी जी ने उनकी अद्भुत प्रखतभा को पहचान
खिया और उन्हें अपने उत्तराखधकारी का पद सौंप कदया।
13. गांधी जी से पहिे ‘यंग इं खिया’ का संपादन कौन करते थे?
ि - ‘यंग इं खिया’ का संपादन जब गांधी जी के हाथ आया, उससे पहिे मुंबई (बंबई) में तीन नेता थे-शंकर
िाि बैंकर, उम्मर सोबानी और जमनादास द्वारकादास, ये तीनों िोग ‘यंग इं खिया’ का संपादन करते थे।

14. गांधी जी के पास ककनके -ककनके पत्र आते थे?


ि - गांधी जी के पास सभी प्रांतों के उग्र और उदार देश भिों, क्रांखतकाररयों, देश-खवदेश के सुप्रखसद्ध जाने-
माने िोगों, संवाददाताओं आकद के पत्र आते थे, खजनकी चचाा गांधी जी ‘यंग इं खिया’ के कािमों में करते थे।
15. महादेव की खििावट के बारे में खसखवखियन और गवनार की क्या राय थी?
ि - महादेव भाई की सुंदर और त्रुरटहीन खििावट देि बड़े-बड़े खसखवखियन और गवनार की राय यह थी
कक सारी खिरटश सर्वासों में महादेव के समान अिर खििने वािा िोजने पर भी नहीं खमिता।
दीघा उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. िेिक ने महादेव के स्वभाव की तुिना ककससे की है और क्यों?
ि - िेिक ने महादेव के स्वभाव की तुिना ि प्रदेश और खबहार में हजारों मीि तक दूर-दूर गंगा-यमुना के
समति मैदानों से की है क्योंकक खजस प्रकार इन मैदानों में चिने से ठे स नहीं िगती, उसी प्रकार महादेव से
खमिने वािे को प्रेम और अपनत्व की अनुभूखत होती थी। महादेव के साथ हुई मुिाकात में िोगों को
सहृदयता, खवनम्रता होती थी। जैसे गंगा के मैदानी भागों में ‘कं करी’ तक नहीं खमिती थी। उसी प्रकार
महादेव के स्वभाव से ककसी को ठे स नहीं पहुँचती थी।
2. गांधी जी यंग इं खिया के संपादक ककस प्रकार बने?
ि - शंकर िाि बैंकर, उम्मर सोबानी और जमनादास द्वारकादास-ये तीनों नेता खमिकर ‘यंग इं खिया’
नामक साप्ताखहक पत्र खनकािते थे। इस अंग्रेजी साप्ताखहक में िेिन का मुख्य काया हानीमैन करते थे, खजन्हें
कािे पानी की सजा देकर इं ग्िैंि भेजा जा चुका था। साप्ताखहक के खिए िेि की कमी होने पर ये नेता गांधी
जी के पास आए और उनसे ‘यंग इं खिया’ का संपादक बनने का अनुरोध ककया। गांधी जी उनका अनुरोध कर
‘यंग इं खिया’ के संपादक बन गए।
3. काम में रात और कदन के बीच महादेव के खिए शायद ही कोई फका रहा हो-कथन के आिोक में उनकी
व्यस्त जीवन शैिी पर प्रकाश िाखिए।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
ि - महादेव भाई समाचार-पत्र, माखसक-पत्र और पुस्तकें प़िते तथा ‘यंग इं खिया’ और ‘नवजीवन’ के खिए
िेि खििते। वे गांधी जी के साथ िगातार चिने वािी यात्राएँ करते। वे हर स्टेशन पर उपखस्थत जनता का
खवशाि समुदाय, जगह-जगह आयोखजत सभाएँ, िोगों से मुिाकातें, बैठकें और बातचीत करते। इनके बीच
वे अपने खिए भी मुखश्कि से समय खनकाि पाते। इस प्रकार काम में उनके खिए कदन-रात बराबर था।
4. महादेव भाई के चररत्र से आप कौन-कौन से मूल्य अपनाना चाहेंगे?
ि - महादेव भाई के चररत्र में एक नहीं बहुत से मानवीय मूल्यों का संगम था जो उन्हें दूसरों से अिग तथा
जन-जन के बीच िोकखप्रय बनाए हुए था। उनके चररत्र से समय का खनयोजन कर हर काम समय पर करने
का गुण, अपने स्वभाव में नम्रता-खवनम्रता, सहनशीिता, उदारता जैसे मानवीय मूल्यों को अपनाना
चाहँगा। इसके अिावा देश-प्रेम की भावना तथा सेवा भावना जैसे मूल्य भी अपनाना चाहँगा।

6 रै दास पद
1. धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर दीधिए
(क) प िे पद में भगवान और भि की धिन-धिन ीिों से तुिना की गई ,ै उनका उल्िेख कीधिए।
ि. प िे पद में भगवान और भि की िंदन-पानी, घन-वन-मौर, िंद्र- कोर, दीपक-बाती, मोती-धागा,
सोना-सु ागा आकद से तुिना की गई ।ै कधव ने अपनी भधि के माध्यम से प्रभु के नाम की िगन में रम
िाने की इच्छा व्यि की ।ै

(ख) प िे पद की प्रत्येक पिंधि के अिंत में तुकािंत शब्दों के प्रयोग से नाद-सौंदया आ गया ;ै िैसे-पानी,
समानी आकद। इस पद में से अन्य तुकािंत शब्द छाुँटकर धिधखए।
ि. प िे पद में भगवान और भि की िंदन-पानी, घन-वन-मौर, िंद्र- कोर, दीपक-बाती, मोती-धागा,
सोना-सु ागा आकद से तुिना की गई ।ै कधव ने अपनी भधि के माध्यम से प्रभु के नाम की िगन में रम
िाने की इच्छा व्यि की ।ै मोरा – चकोरा बाती – राती धागा – सुहागा दासा – रै दासा

(ग) प िे पद में कु छ शब्द अथा की दृधष्ट से परथपर सिंबध


िं ।ैं ऐसे शब्दों को छाुँटकर धिधखए
उदा रणुः दीपक बाती …….. ………. ……. ……… ……… …….
ि.चंदन – बास घन बन – मोर चंद – चकोर
मोती – धागा सोना – सुहागा स्वामी – दास
(घ) दूसरे पद में कधव ने ‘गरीब धनवािु’ ककसे क ा ?
ै थपष्ट कीधिए।
ि. दूसरे पद में ‘गरीब धनवािु’ ईश्वर को क ा गया ।ै धिस व्यधि पर ईश्वर की कृ पा ोती ै व मोक्ष
प्राप्त कर िेता ।ै नी से नी व्यधि का भी उद्धार ो िाता ।ै ऐसे िोग िो थपशा दोष के कारण ाथ
िगने पर अपने-आपको अपधवत्र मानते ।ैं ऐसे दोनों पर दया करनेवािे प्रभु ी ैं िो दुधखयों के ददा से
द्रधवत ो िाते ।ैं

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
(ङ) दूसरे पद की ‘िाकी छोधत िगत कउ िागै ता पर तु ीं िरै ’ इस पिंधि का आशय थपष्ट कीधिए।
ि. इस पिंधि का आशय ै कक सािंसाररक िोग नी िाधत में उत्पन्न ोनेवािों के प्रधत थपशा दोष मानते हुए
उन् ें अछू त मानते ,ैं पर ईश्वर उन िोगों पर भी कृ पा करते ।ैं उनका उद्धार कर देते ,ैं क्योंकक उनकी
दृधष्ट में भि की भधि ी श्रेि ।ै उसका प्रेम ी सवोपरर ।ै इसधिए प्रभु को पधतत पावन, भि-वत्सि,
दीनानाथ क ा िाता ।ै

( ) “रै दास’ ने अपने थवामी को ककन-ककन नामों से पुकारा ?



ि. रै दास ने अपने थवामी को गरीब धनवािु, िाि, गोहबिंद, गुसाई, रर, िाि आकद नामों से पुकारा ,ै
नाम भिे ी अनेक ो, परिं तु दीनदयाि गरीबों का उद्धार करने वािे ।ैं वे सभी पर अपना प्रेम िुटाते
बाती – बत्ती छत्रु – छत्र गुसईया – गोसाईं िोधत – ज्योधत धरै – धारण

(छ) धनम्नधिधखत शब्दों के प्र धित रूप धिधखए मोरा, िंद, बाती, िोधत, बरै , राती, छत्रु, धरै , छोधत,
तु ीं, गुसईआ।

2. नी े धिखी पिंधियों का भाव थपष्ट कीधिए


(क) िाकी अुँग-अुँग बास समानी
ि. इस पिंधि का भाव य ै कक भि थवयिं गुणों से रध त ।ै व पानी के समान रिं ग-गिंध रध त ,ै िेककन
ईश्वर रूपी िंदन की समीपता पाकर धन्य ो िाता ।ै व गुणों की प्राधप्त कर िेता ।ै िैसे पानी में
धघसकर िंदन का रिं ग धनखरता ै उसी प्रकार भिों की भधि से प्रभु का म त्त्व बढ़ िाता ।ै भि और
भगवान इतने समीप आ िाते ैं कक भि के अिंग-अिंग में ईश्वर की सुगिंध समा िाती ।ै भि का रोम-रोम
ईश्वर भधि से प्रसन्न ो िाता ।ै

(ख) िैसे ध तवत िंद कोरा


ि. भि मेशा भवसागर से पार करानेवािे परमात्मा के प्रधत थवयिं को अर्पात कर देना ा ता ।ै र क्षण
उसी के रूप-दशान करने की इच्छा करता ।ै धिस प्रकार कोर कदन-रात ाुँद को धन ारना ा ता ।ै
उसी प्रकार रै दास भी प्रभु रूपी ाुँद को एकटक धन ारना ा ते ैं इसधिए एक क्षण के धिए भी उनका
ध्यान प्रभु भधि से न ीं टता।।

(ग) िाकी िोधत बरै कदन राती


ि. धिसकी ज्योधत कदन-रात ििती र ती ।ै अथाात् कधव थवयिं को बत्ती और प्रभु को ऐसा दीपक मानते
,ैं धिसकी ज्योधत कदन-रात ििती र ती ,ै यानी रै दास िी कदन-रात प्रभु की भधि से आिोककत र ना
ा ते ।ैं

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िं ी राज्य सिंसाधक
(घ) ऐसी िाि तुझ धबनु कउनु करै
ि. े प्रभु! आपके अधतररि भिों को इतना मान-सम्मान देनेवािा कोई और न ीं ।ै अथाात् समाि में
नी ी िाधत में उत्पन्न ोने के कारण आदर-सम्मान धमिना करठन ोता ै परिं तु ईश्वर के य ाुँ िाधतगत
भेद-भाव न ीं ोता। वे सबके सम्मान की िाि रखते ।ैं प्रभु ी सबका कल्याण करते ।ैं उनके अधतररि
कोई ऐसा न ीं ै िो गरीबों और दोनों की खोि-खबर रखता ।ै ईश्वर ी अछू तों को ऊुँ े पद पर आसीन
करते ।ैं

(ङ) नी हु ऊ करै मेरा गोहबिंदु काहू ते न डरै


ि. कधव ने ईश्वर को पधतत पावन, भि वत्सि, दीनानाथ व उद्धारक क ा ।ै धनम्न श्रेणी के िोगों को भी
प्रभु ऊुँ ा कर देता ।ै व अपने भिों पर दया करता ै तथा उनका उद्धार कर देता ।ै उनका गोहबिंद
ककसी से न ीं डरता। कधव ने प्रभु को नाम देकर भी उसके धनराकार रूप की ी ाा की ।ै गरीबों के
दु:ख-ददा को समझनेवािा व ी ईश्वर ।ै व ीं उन् ें पीडाओ से मुधि कदिाने वािा भी ।ै

3. रै दास के इन पदों का कें द्रीय भाव अपने शब्दों में धिधखए।


ि. रै दास ने प िे पद में धवधवध उदा रणों द्वारा अपनी धनराकार भधि प्रकट की ।ै वे अपने प्रभु के अनन्य
भि ।ैं उनका प्रभु घट-घटवासी ।ै वे अपने भगवान में इस प्रकार धमि गए ैं कक उनको अिग करके
देखा न ीं िा सकता। कधव ने दूसरे पद में अपने आराध्य के दीनदयाि व सवागुण सिंपन्न रूप का गुणगान
ककया ै िो ऊुँ -नी का भेद-भाव न ीं िानता तथा ककसी भी कु ि–गोत्र में उत्पन्न अपने भि को स ि
भाव से अपना कर उसे दुधनया में सम्मान कदिाता ै या उसे सािंसाररक बिंधनों से मुि कर अपने रणों में
थथान देता ।ै नामदेव, कबीर, सधना आकद धनम्न िाधत में उत्पन्न भिों को समाि में उच्च थथान कदिाने
तथा उनका उद्धार करने का उदा रण देकर कधव ने अपने कथन को प्रमाधणत ककया ।ै

योग्यता-धवथतार

1. भि कधव कबीर, गुरु नानक, नामदेव और मीराबाई की र नाओं का सिंकिन कीधिए।


ि : थवयिं करें ।

2. पाठ में आए दोनों पदों को याद कीधिए और कक्षा में गाकर सुनाइए।
ि : छात्र थमरण कर कक्षा में सुनाएुँ।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
7.दो े
1. धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर दीधिए
(क) प्रेम का धागा टूटने पर प िे की भाुँधत क्यों न ीं ो पाता?
ि. प्रेम आपसी िगाव और धवश्वास के कारण ोता ।ै यकद एक बार य िगाव या धवश्वास टूट िाए तो
कफर उसमें प िे िैसा भाव न ीं र ता। मन में दरार आ िाती ।ै धिस प्रकार सामान्य धागा टूटने पर उसे
िब िोडते ैं तो उसमें गाुँठ पड िाती ।ै इसी प्रकार प्रेम का धागा भी टूटने पर प िे के समान न ीं ो
पाता।
(ख) में अपना दु:ख दूसरों पर क्यों न ीं प्रकट करना ाध ए? अपने मन की व्यथा दूसरों से क ने पर
उनका व्यव ार कै सा ो िाता ?

ि. में अपना दु:ख दूसरों के सामने न ीं करना प्रकट ाध ए, क्योंकक दूसरा उसका मिाक उडाता ।ै में
अपना दु:ख अपने मन में ी रखना ाध ए। अपने मन की व्यथा दूसरों से क ने पर उनका व्यव ार
परर ास पूणा ो िाता ।ै
(ग) र ीम ने सागर की अपेक्षा पिंक िि को धन्य क्यों क ा ै?
ि. र ीम ने सागर की अपेक्षा पिंक िि को धन्य इसधिए क ा ै क्योंकक सागर का िि खारा ोता ,ै व
ककसी की प्यास न ीं बुझा सकता िबकक पिंक िि धन्य ै धिसे पीकर छोटे-छोटे िीवों की प्यास तृप्त ो
िाती ै इसधिए कधव ने ऐसा क ा ।ै
(घ) एक को साधने से सब कै से सध िाता ?

ि. एक पर अटूट धवश्वास करके उसकी सेवा करने से सब काया सफि ो िाते ैं तथा इधर-उधर भटकना
न ीं पडता। एक को साधने से सब काया उसी प्रकार धसद्ध ो िाते ैं धिस प्रकार िड को सीं ने से फि,
फू ि आकद धमिते ।ैं उसी प्रकार परमात्मा को साधने से अन्य सब काया कु शितापूवाक सिंपन्न ो िाते ।ैं

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
(ङ) िि ीन कमि की रक्षा सूया भी क्यों न ीं कर पाता?
ि. िि ीन कमि की रक्षा सूया इसधिए न ीं कर पाता क्योंकक िि से ी कमि की प्यास बुझती ,ै व
धखिता ै और िीवन पाता ।ै कमि की सिंपधत्त िि ।ै अपनी सिंपधत्त नष्ट ोने पर दूसरा व्यधि साथ |
न ीं दे सकता।
( ) अवध नरे श को ध त्र कू ट क्यों िाना पडा?
ि. अवध नरे श श्री राम िंद्र अपने माता-धपता की आज्ञा का पािन करने के धिए िब ौद वषा वनवास र
थे तब वे ध त्रकू ट िैसे रमणीय वन में रुके थे। कधव धवपदा पडने पर ईश्वर की शरण में िाने की बात क
र े ैं क्योंकक मुसीबत में वन भी रािभवन कदखाई देता ।ै
(छ) ‘नट’ ककस किा में धसद्ध ोने के कारण ऊपर ढ़ िाता ै?
ि. नट कुिं डिी को समेटकर झट से ऊपर ढ़े िाने की किा में धसद्ध थत ोता ।ै

(ि) ‘मोती, मानुष, ून’ के सिंदभा में पानी के म त्व को थपष्ट कीधिए।
ि. धिस प्रकार मोती का पानी उतर िाता ।ै अथाात् उसकी मक समाप्त ो िाती ै तो पका कोई म त्त्व
न ीं र िाता। मनुष्य का पानी उतरने से आशय मनुष्य का मान-सम्मान समाप्त ो िाता ।ै ून’ पानी से
ी गुुँथा िाता ।ै सूखा आटा पानी के धबना ककसी का पेट भरने में स ायक न ीं। इस प्रकार मोती, मनुष्य
और ून के धिए पानी का अपना धवशेष म त्त्व ।ै
2. धनम्नधिधखत का भाव थपष्ट कीधिए
(क) टूटे से कफर ना धमिे, धमिे गाुँठ परर िाय।
ि. प्रेम ऐसे धागे के समान ,ै िो टूटने पर कफर न ीं धमिता। यकद व धमि भी िाए तो उसमें गाुँठ अवश्य
पड िाती ।ै आशय य ै कक प्रेम भाव नष्ट ो िाए तो कफर प्रयास करने पर भी सिंबध
िं मधुर न ीं ो
पाते।
(ख) सुधन अरठिै ैं िोग सब, बाुँरट न िै ैं कोय।
ि. िोग दूसरों के कष्ट सुनकर प्रसन्न ी ोते ।ैं वे कष्टों को बाुँटने को तैयार न ीं ोते।
(ग) रध मन मूिह िं सींध बो, फू िै फिै अघाय।
ि. र ीम क ते ैं कक यकद िड को ी सीं ा िाए तो फि-फू ि अपने आप धखि उठते ।ैं उसी भाुँधत यकद
मनुष्य परमात्मा का ध्यान कर िें तो सािंसाररक सुख अपने-आप प्राप्त ो िाते ।ैं
(घ) दीरघ दो ा अरथ के , आखर थोरे आह ।िं
ि. दो ा ऐसा छिंद ै धिसमें अक्षर तो बहुत कम ोते ैं ककिं तु उनका अथा बहुत ग रा और व्यापक ोता ।ै
(ङ) नाद रीधझ तन देत मृग, नर धन त
े समेत।
ि. रीझने पर ध रण अपने प्राण तक दे देता ै और मनुष्य प्रेम सध त धन का दान कर देता ।ै आशय य ै
कक प्रसन्न मनोदशा में मनुष्य उदार ो िाता ।ै

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
( ) ि ाुँ काम आवे सुई, क ा करे तरवारर।
ि. र वथतु का थथान और म त्त्व अपनी िग ।ै बडी वथतु अपनी िग काम आती ै और छोटी वथतु
अपनी िग । ि ाुँ सुई काम आती ,ै व ाुँ तिवार कु छ न ीं कर सकती। आशय य ै कक छोटी वथतुओं
का थथान भी बडी वथतुओं से कम न ीं ।ै इसी प्रकार छोटे िोगों का थथान बडे िोगों से ककसी प्रकार भी
कम न ीं ।ै
(छ) पानी गए न ऊबरै , मोती, मानुष, ून।।
ि. पानी के धबना आटा काम न ीं आ सकता। मक के धबना मोती बेकार ै और आत्मसम्मान के धबना
मनुष्य का िीवन व्यथा ।ै आशय य ै कक िीवन में आत्मगौरव का बहुत म त्त्व ।ै
3. धनम्नधिधखत भाव को पाठ में ककन पिंधियों द्वारा अधभव्यि ककया गया ?

(क) धिस पर धबपदा पडती ै व ी इस देश में आता ।ै
ि. िा पर धबपदा पडत ,ै सो आवत य देस।
(ख) कोई िाख कोधशश करे पर धबगडी बात कफर बन न ीं सकती।
ि. धबगरी बात बनै न ीं, िाख करौ ककन कोय।
(ग) पानी के धबना सब सूना ै अतुः पानी अवश्य रखना ाध ए।
ि. रध मन पानी राधखए, धबनु पानी सब सून।
4. उदा रण के आधार पर पाठ में आए धनम्नधिधखत शब्दों के प्र धित रूप धिधखए-
उदा रणुः कोय – कोई, िे – िो ज्यों

योग्यता-धवथतार

1. ‘सुई की िग तिवार काम न ीं आती’ तथा ‘धबन पानी सब सून’ इन धवषयों पर कक्षा में परर ाा
आयोधित कीधिए।
2. ‘ध त्रकू ट’ ककस राज्य में धथथत ,ै िानकारी प्राप्त कीधिए।
ि : धवद्याथी थवयिं करें।

पररयोिना काया

• नीधत सिंबिंधी अन्य कधवयों के दो /े कधवता एकत्र कीधिए और उन दो ों/कधवताओं को ाटा पर धिखकर
धभधत्त पधत्रका पर िगाइए।
ि : धवद्याथी थवयिं करें।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
8 गीत – अगीत
1. धनम्नधिधखत प्रश्नों के उत्तर दीधिए
(क) नदी का ककनारों से कु छ क ते हुए ब िाने पर गुिाब क्या सो र ा ै? इससे सिंबिंधधत पिंधियों को
धिधखए।
ि. नदी अपना धवर गीत ककनारों को सुनाती हुई तेिी से भागी िा र ी ।ै ऐसा िगता ै कक व सागर
से धमिने को उताविी ।ै उसके इस काया-व्यव ार को देख नदी के ककनारे खडा गुिाब सो ता ै कक यकद
भगवान उसे भी बोिने की शधि देते तो व भी पतझड के सपनों का गीत सिंसार का सुनाता। इससे
सिंबिंधधत पिंधियाुँ इस प्रकार -ैं
तट पर एक गुिाब सो ता,
“देते थवर यकद मुझे धवधाता,
अपने पतझर के सपनों का ।
मैं भी िग को गीत सुनाता।”
(ख) िब शुक गाता ,ै तो शुकी के हृदय पर क्या प्रभाव पडता ?

ि. शुक अपना स्ने प्रकट करने के धिए मधुर गीत गाता ै तब उसका गीत पूरे वन में गूिंि िाता ,ै शुकी के
हृद्य पर य प्रभाव पडता ै कक उस गीत की ि रें उसके हृदय को छू िाती ैं और व स्ने में ओत-प्रोत
ोकर मौन र िाती ।ै उसे अपने स्ने को व्यि करने के धिए थवर न ीं धमि पाता। शुक का गीत सुनकर
शुकी के पिंख खुशी से फू ि िाते ।ैं व अत्यधधक प्रसन्न ो िाती ।ै

(ग) प्रेमी िब गीत गाता ,ै तब प्रेधमका की क्या इच्छा ोती ?



ि. िब प्रेमी प्रेम के गीत गाता ै तब उसकी प्रेधमका घर छोडकर उसके पास िी आती ।ै व नीम की

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
छाया में धछपकर उसका मधुर गीत सुनती ।ै तब उसकी य इच्छा ोती ै कक व भी उसके गीत की
पिंधि बन | िाए। व उस पिंधि में डू बकर खो िाती ै और उसको गुनगुनाना शुरू कर देती ।ै

(घ) प्रथम छिंद में वर्णात प्रकृ धत-ध त्रण को धिधखए।


ि. प्रकृ धत का ध त्रण करते हुए कधव क ता ै कक वन के सुनसान वातावरण में नदी तीव्र गधत से ब ती
िी िा र ी ।ै ऐसा िगता ै कक व अपनी व्यथा अपने ककनारों से क र ी ै और अपना कदि ल्का
कर र ी ।ै तट पर एक गुिाब का पौधा ै िो ककसी सो -धव ार में मग्न ।ै

(ङ) प्रकृ धत के साथ पशु-पधक्षयों के सिंबिंध की व्याख्या कीधिए।


ि. प्रकृ धत की सुिंदरता पशु-पधक्षयों को भी गुनगुनाने तथा ाने के धिए आकु ि कर देती ।ै दोनों
अथाात् नर और मादा में प्रेम उमडने िगता ।ै उनके कक्रया-किाप प्रकृ धत के सौंदया के प्रेम में धविीन ो
िाते ।ैं

( ) मनुष्य को प्रकृ धत ककस रूप में आिंदोधित करती ै? अपने शब्दों में धिधखए।
ि. मनुष्य को प्रकृ धत अनेक रूपों में आिंदोधित करती ।ै उसका थवच्छ वातावरण उसे प्रभाधवत करता ।ै
प्रकृ धत | में सवात्र सिंगीत प्राप्त ोता ।ै इसे सुनकर और अनुभव करके मनुष्य का मन आिंदोधित+ ो उठता
।ै सिंध्या के समये थवाभाधवक रूप से प्रेमी का मन आल् ा गाने के धिए िि ा उठता ।ै य सिंध्या समय
की ी मधुरता ै धिसके कारण प्रेमी के हृदय में प्रेम उमडने िगता ।ै

(छ) सभी कु छ गीत ,ै अगीत कु छ न ीं ोता। कु छ अगीत भी ोता ै क्या? थपष्ट कीधिए। ि. गीत और
अगीत में थोडा-सा अिंतर ोता ।ै मन के भावों को प्रकट करने से गीत बनता ै और उन् ें मन ी मन में
गुनगुनाना अगीत ।ै यद्यधप अगीत का प्रकट में कोई अधथतत्व न ीं ककिं तु य आवश्यक ।ै गीत-अगीत का
सिंबिंध मन में उठने वािे भावों से ोता ।ै िब हृदय के भाव को थवर धमि िाते ैं तो व गीत बन िाता ैं
और उन भावों को िब थवर न ीं धमि पाता तो वे अगीत बन िाते ।ैं अगीत को अधभव्यधि का अवसर
न ीं धमिता पर इसके अधथतत्व से इनकार न ीं ककया िा सकता।

(ि) ‘गीत-अगीत’ के कें द्रीय भाव को धिधखए।


ि. “गीत-अगीत’ कधवता का कें द्रीय भाव य ै कक धिस भाव या धव ार को थवर के माध्यम से
अधभव्यधि का अवसर धमि िाता ै व गीत ।ै परिं तु इसके साथ अगीत के म त्त्व को भुिाया न ीं िाना
ाध ए क्योंकक मन- ी-मन में भावों को अनुभव करना कम सुिंदर न ीं ोता। अगीत मन में उमड-घुमड कर
र िाता ।ै इसकी गूिंि सुनी तो न ीं िा सकती पर अनुभव की िा सकती ।ै

2. सिंदभा-सध त व्याख्या कीधिए-


(क) अपने पतझर के सपनों का
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
मैं भी िग को गीत सुनाता
ि. प्रसिंगुः प्रथतुत काव्य पिंधियाुँ पाठ्यपुथतक थपशा भाग-1 में सिंकधित कधवता ‘गीत-अगीत’ से िी गई ।ैं
इसके कधव रामधारी हसिं ‘कदनकर’ िी ।ैं
व्याख्याुः नदी के तट पर अके िा खडा गुिाब सो ता ै कक उसके अिंदर भी कोमि भावनाएुँ ।ैं यकद ईश्वर
उसे वाणी देता तो व सिंसार को अपने गीत के माध्यम से अपनी कथा सुना पाता। इस प्रकार उसका अगीत
गीत बन िाता।

(ख) गाता शुक िब ककरण वसिंती


छू ती अिंग पणा से छनकर
ि. प्रसिंगुः प्रथतुत काव्य पिंधियाुँ पाठ्यपुथतक थपशा भाग-1 में सिंकधित कधवता ‘गीत-अगीत’ से िी गई ।ैं
इसके कधव रामधारी हसिं ‘कदनकर’ िी ।ैं
व्याख्याुः कधव इसमें शुक पर प्रकृ धत के प्रभाव को दशााते हुए क ता ै मनुष्य ी न ीं पशु-पक्षी भी
प्राकृ धतक सौंदया से ाने िगते ।ैं िब सूया की प्रातुः कािीन ककरण शक के अिंगों को छू ती ै तो व
मधुर थवर से गाने िगता ,ै ककिं तु शुकी का थवर स्ने में ी भीगकर र िाता ै व अपने भावों को गीत के
माध्यम से व्यि न ीं कर पाती।

(ग) हुई न क्यों मैं कडी गीत की


धबधना यों मन में गुनती ।ै
ि. प्रसिंगुः प्रथतुत काव्य पिंधियाुँ पाठ्यपुथतक थपशा भाग-1 में सिंकधित कधवता ‘गीत-अगीत’ से िी गई ।ैं
इसके कधव रामधारी हसिं ‘कदनकर’ िी ।ैं
व्याख्याुः मानवीय प्रेम की अधभव्यधि प्राकृ धतक सौंदया का ी ध थसा ।ै प्रेमी का गाया हुआ गीत प्रेधमका के
हृदय तक पहुुँ िाता ।ै तभी व सो ती ै कक े ईश्वर! व प्रेमी के गीत की कडी क्यों न ीं बनी। इस
प्रकार व मन- ी-मन सो ने िगती ।ै उसके शब्द गीत की ध्वधन को सुनकर व हखिं ी िी आती ;ै पर
व गा न ीं पाती।

3. धनम्नधिधखत उदा रण में ‘वाक्य-धव िन’ को समझने का प्रयास कीधिए। इसी आधार पर प्र धित
वाक्य-धवन्यास धिधखए-
उदा रणुः तट पर एक गुिाब सो ता
एक गुिाब तट पर सो ता ।ै
(क) यकद धवधाता मुझे थवर देते।
(ख) शुक उस घनी डाि पर बैठा।
(ग) शुक का थवर वन में गूिंि र ा।
(घ) मैं गीत की कडी क्यों न हुई?
(ङ) शुकी बैठकर अिंडे सेती ।ै

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
9. अखि पथ - हररवंश राय बच्चन
1. खनम्नखिखित प्रश्नों के उत्तर दीखजए-
(क) कखव ने ‘अखि पथ’ ककसके प्रतीक स्वरूप प्रयोग ककया है?
ि- कखव ने ‘अखि पथ’ जीवन के करठनाई भरे रास्ते के खिए प्रयुि ककया है। कखव का मानना है कक जीवन
में पग-पग पर संकट हैं, चुनौखतयाँ हैं और कष्ट हैं। इस प्रकार यह जीवन संघषापूणा है।
(ि) ‘माँग मत’, ‘कर शपथ’, ‘िथपथ’ इन शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कखव क्या कहना चाहता है?
ि- “माँग मत’, ‘कर शपथ’ तथा ‘िथपथ’ शब्दों का बार-बार प्रयोग करके कखव मनुष्य को कष्ट सहने के
खिए तैयार करना चाहता है। वह चाहता है कक मनुष्य आँस,ू पसीने और िून से िथपथ’ होने पर भी राहत
और सुखवधा न माँगे। वह कष्टों को रौंदता हुआ आगे ब़िता जाए और संघषा करने की शपथ िे।
(ग) “एक पत्र-छाँह भी माँग मत’ इस पंखि का आशय स्पष्ट कीखजए।
ि- इस पंखि का आशय है-मनुष्य जीवन के कष्ट भरे रास्तों पर चिते हुए थोड़ा-सा भी आराम या सुखवधा
न माँगे। वह खनरं तर कष्टों से जूझता रहे।
2. खनम्नखिखित का भाव स्पष्ट कीखजए-
(क) तू न थमेगा कभी तू ने मुड़ेगा कभी

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
ि- इन पंखियों का भाव यह है कक हे मनुष्य! जीवन में ककतनी भी करठनाइयाँ आएँ, पर तू उनसे हार
मानकर कभी रुके गा नहीं और संघषा से मुह
ँ मोड़कर तू कभी वापस नहीं िौटेगा बस आगे ही ब़िता
जाएगा।
(ि) चि रहा मनुष्य है। अश्रु-स्वेद-रि से िथपथ, िथपथ, पथपथ
ि- कखव देिता है कक जीवन पथ में बहुत-सी करठनाइयाँ होने के बाद भी मनुष्य उनसे हार माने खबना आगे
ब़िता जा रहा है। करठनाइयों से संघषा करते हुए वह आँस,ू पसीने और िून से िथपथ है। मनुष्य खनराश
हुए खबना ब़िता जा रहा है।
3. इस कखवता को मूिभाव क्या है? स्पष्ट कीखजए।
ि- इस कखवता का मूिभाव है-खनरं तर संघषा करते हुए खजयो। कखव जीवन को आग-भरा पथ मानता है।
इसमें पग-पग पर चुनौखतयाँ और कष्ट हैं। मनुष्य को चाखहए कक वह इन चुनौखतयों से न घबराए। न ही
इनसे मुह
ँ मोड़े। बखल्क वह आँसू पीकर, पसीना बहाकर तथा िून से िथपथ होकर भी खनरं तर संघषा करता
रहे।

योग्यता-खवस्तार
1. ‘जीवन संघषा का ही नाम है’ इस खवषय पर किा में पररचचाा का आयोजन कीखजए।
ि- छात्र स्वयं करें।
पररयोजना काया
1. ‘जीवन संघषामय है, इससे घबराकर थमना नहीं चाखहए’ इससे संबंखधत अन्य कखवयों की कखवताओं को
एकत्र कर एक एिबम बनाइए।
ि- छात्र स्वयं करें।
अन्य पाठे तर हि (िघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर)
1. कखव ‘एक पत्र छाँह’ भी माँगने से मना करता है, ऐसा क्यों?
ि- कखव एक पत्र छाँह भी माँगने से इखसिए मना करता है, क्योंकक संघषारत व्यखि को जब एक बार रास्ते
में सुि खमिता है, तब उसका ध्यान संघषा के मागा से हट जाता है। ऐसा व्यखि संघषा से खवमुि होकर सुिों
का आदी बनकर रह जाता है।
2. कखव ककस दृश्य को महान बता रहा है, और क्यों?

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
ि- जीवन पथ पर बहुत-सी परे शाखनयाँ और करठनाइयाँ हैं, जो मनुष्य को आगे ब़िने से रोकती हैं। मनुष्य
इन करठनाइयों से संघषा कर आगे ब़िते जा रहे हैं। कखव को यह दृश्य महान िग रहा है। इसका कारण है कक
संघषा करते िोग आँसू, पसीने और रि से तर हैं, कफर भी वे हार माने खबना आगे ब़िते जा रहे हैं।
3. कखव मनुष्य से ककस बात की शपथ िेने को कह रहा है?
ि- कखव जानता है कक जीवनपथ दुि और करठनाइयों से भरा है। व्यखि इन करठनाइयों से जूझते हुए थक
जाता है। वह खनराश होकर संघषा करना बंद कर देता है। अखधक खनराश होने पर वह आगे ब़िने का खवचार
त्यागकर वापस िौटना चाहता है। कखव संघषा करते िोगों से कभी न थकने, कभी न रुकने और कभी वापस
न िौटने की शपथ को कह रहा है।
4. ‘अखि पथ’ कखवता को आप अपने जीवन के खिए ककतनी उपयोगी मानते हैं?
ि- मैं ‘अखि पथ’ कखवता को जीवन के खिए बहुत जरूरी एवं उपयोगी मानता हँ। इस कखवता के माध्यम से
हमें करठनाइयों से घबराए खबना उनसे संघषा करने की प्रेरणा खमिती है। जीवन पथ पर खनरं तर चिते हुए
कभी न थकने, थककर खनराश होकर न रुकने तथा खनरं तर आगे ब़िने की सीि खमिती है, जो सफिता के
खिए बहुत ही आवश्यक है।
5. कखव मनुष्य से क्या अपेिा करता है? ‘अखि पथ’ कखवता के आधार पर खिखिए।
ि- कखव मनुष्य से यह अपेिा करता है कक वह अपना िक्ष्य पाने के खिए सतत प्रयास करे और िक्ष्य पाए
खबना रुकने का नाम न िे। िक्ष्य के पथ पर चिते हुए वह न थके और न रुके । इस पथ पर वह छाया या
अन्य आरामदायी वस्तुओं की उपेिा करे तथा खवघ्न-बाधाओं को देिकर साहस न िोए।

6. ‘अखि पथ’ का प्रतीकाथा स्पष्ट कीखजए।


ि- मानव को जीवन पथ पर चिते हुए अनेक खवघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। मनुष्य की राह में
अनेक अवरोध उसका रास्ता रोकते हैं खजनसे संघषा करते हुए, अदम्य साहस बनाए रिते हुए मनुष्य को
अपनी मंखजि की ओर ब़िना पड़ता है। संघषा भरे इसी जीवन को अखि पथ कहा गया है।
7. ‘अखि पथ’ कखवता में खनखहत संदेश अपने शब्दों में स्पष्ट कीखजए।
ि- अखि पथ कखवता में खनखहत संदेश यह है कक मनुष्य को जीवन पथ पर खनरं तर ब़िते रहना चाखहए। इस
जीवन पथ पर जहाँ भी खवघ्न-बाधाएँ आती हैं, मनुष्य को उनसे हार नहीं माननी चाखहए। उसे थककर हार
नहीं माननी चाखहए और िक्ष्य पाए खबना न रुकने की शपथ िेनी चाखहए।
8. जीवन पथ पर चिते मनुष्य के कदम यकद रुक जाते है तो उसे क्या हाखन हाखन उठानी पड़ती है?
ि- जीवन पथ पर चिता मनुष्य यकद राह की करठनाइयों के सामने समपाण कर देता है या थोड़ी-सी छाया
देिकर आराम करने िगता है और िक्ष्य के प्रखत उदासीन हो जाता है तो मनुष्य सफिता से वंखचत हो
जाता है। ऐसे व्यखि की जीवन यात्रा अधूरी रह जाती है।
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
दीघा उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. अखि पथ’ कखवता थके -हारे खनराश मन को उत्साह एवं प्रेरणा से भर देती है। स्पष्ट कीखजए।
ि- मनुष्य का जीवन संघषों से भरा है। उसके जीवन पथ को करठनाइयाँ एवं खवघ्न-बाधाएँ और भी करठन
बना देते हैं। मनुष्य इनसे संघषा करते-करते थककर खनराश हो जाता है। ऐसे थके -हारे और खनराश मन को
प्रेरणा और नई ऊजाा की आवश्यकता होती है। यह कखवता मनुष्य को संघषा करने की प्रेरणा ही नहीं देती
है, वरन् जीवन पथ में खमिने वािी छाया देिकर न रुकने, सुि की कामना न करने तथा करठनाइयों से
हार न मानने का संदेश देती है। इसके अिावा इस कखवता से हमें पसीने से िथपथ होने पर भी ब़िते जाने
के खिए प्रेरणा खमिती है। इससे स्पष्ट है कक अखि पथ कखवता थके -हारे मन को उत्साह एवं प्रेरणा से भर
देती है।
2. एक पत्र छाँह भी माँग मत’ कखव ने ऐसा क्यों कहा है?
ि- ‘एक पत्र छाँह’ अथाात् एक पत्ते की छाया जीवन पथ पर संघषापूवाक ब़ि रहे व्यखि के पथ में आने वािे
कु छ सुिमय पि है। इनका सहारा पाकर मनुष्य कु छ देर और आराम करने का मन बना िेता है। इससे वह
गखतहीन हो जाता है। यह गखतहीनता उसकी सफिता प्राखप्त के खिए बाधक खसद्ध हो जाती है। इस गखतहीन
अवस्था से उठकर पसीने से िथपथ होकर संघषा करना, करठनाइयों से जूझना करठन हो जाता है। इससे
व्यखि सफिता से दूर होता जाता है। इसखिए कखव एक पत्र छाँह भी माँगने से मना करता है।

10. नए इिाके में … / िुशबू रचते हैं हाथ

नए इिाके में :-

1. खनम्नखिखित प्रश्नों के उत्तर दीखजए-


(क) नए बसते इिाके में कखव रास्ता क्यों भूि जाता है?
(ज) कखव नए बसते इिाकों में रास्ता इसखिए भूि जाता है क्योंकक यहाँ खनत नया खनमााण होता रहता है।
खनत नई घटनाएँ घटती रहती हैं। अपने रठकाने पर जाने के खिए जो खनशाखनयाँ बनाई गई होती हैं, वे जल्दी
ही खमट जाती हैं। पीपि का पेड़ हो या ढहा हुआ मकान या िािी प्िाट, सबमें शीघ्र ही पररवतान हो जाता
है। इसखिए वह प्रायः रास्ता भूि जाता है।
(ि) कखवता में कौन-कौन से पुराने खनशानों का उल्िेि ककया गया है?

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
(ज) कखवता में खनम्नखिखित पुराने खनशानों का उल्िेि ककया गया है ... 1.पीपि का पेड़, 2.ढहा हुआ घर,
3.जमीन का िािी टुकड़ा और 4.खबना रं ग वािे िोहे के फाटक वािा इकमंखजिा मकान।
(ग) कखव एक घर पीछे या दो घर आगे क्यों चि देता है?
(ज) कखव अपने खनधााररत घर से एक घर पीछे यो आगे इसखिए चि देता है क्योंकक उसे घर तृक पहुँचाने
वािी खनशाखनयाँ खमट चुकी हैं। उसने एक इकमंखजिे मकान की खनशानी बना रिी थी खजस पर खबना रं ग
वािा िोहे का फाटक था। परं तु अब न वह फाटक रहा न वह मकान इकमंखजिा रहा। इसखिए वह अपने
खनखश्चत िक्ष्य को ढू ँढता-ढू ंढता आगे या पीछे चिा गया।
(घ) ‘वसंत का गया पतझड़’ और ‘बैसाि का गया भादों को िौटा’ से क्या अखभप्राय है?
(ज) “वसंत का गया पतझड़ को िौटा’ का अखभप्राय है-एकाएक पररवतान हो जाना। आने और जाने के समय
में ही पररवतान हो जाना।
‘बैसाि का गया भादों को िौटा’ का अखभप्राय है-कु छ ही समय में एकाएक पररवतान हो जाना। जाने के समय
और िौटने के समय में ही अद्भुत पररवतान हो जाना।
(ङ) कखव ने इस कखवता में ‘समय की कमी की ओर क्यों इशारा ककया है?
(ि) इस कखवता में कखव ने समय की कमी की ओर इशारा ककया है। िोग हरदम कु छ-न-कु छ करने, बनाने
और रचने की जुगाड़ में िगे रहते हैं। इस अंधी प्रगखत में उनकी पहचान िो गई है। वे स्वयं को भूि गए हैं।
इसके कारण उनके भीतर एक िर समा गया है कक कहीं वे अके िे तो नहीं रह गए हैं। क्या कोई उन्हें पहचानने
वािा खमि जाएगा या नहीं। िोगों के पास इतनी फु रसत नहीं है कक वे इस अंधे खनमााण से समय खनकािकर
एक-दूसरे के साथ आत्मीयता जोड़ सकें ।

(च) इस कखवता में कखव ने शहरों की ककस खविंबना की ओर संकेत ककया है?
(ज) इस कखवता में कखव ने शहरों की खनरं तर गखतशीिता, कमाखप्रयता और खनमााण की अंधी दौड़ के कारण
िोती आत्मीयता का खचत्रण ककया है। शहरों में नई-नई बखस्तयाँ, नए-नए खनमााण तो रोज हो रहे हैं ककं तु
उनकी पहचान और आत्मीयता नष्ट हो रही है।
2. व्याख्या कीखजए-
(क) यहाँ स्मृखत का भरोसा नहीं
एक ही कदन में पुरानी पड़ जाती है दुखनया
व्याख्या- आज दुखनया में इतनी तीव्र गखत से बदिाव हो रहा है कक साि भर का बदिाव एक कदन में हो
जाता है। इस बदिाव को देिकर अपनी जानी-पहचानी वस्तुएँ भूिने का भ्रम होने िगता है। यहाँ तक कक
सुबह का गया शाम को िौटने पर वह अपना मकान न ढू ं़ि पाने पर िगता है कक एक ही कदन में पुरानी पड़
गई है, क्योंकक कि तक तो कु छ न कु छ कफर नया बन जाएगा।
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
(ि) समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चिा पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार िे कोई पहचाना ऊपर से देिकर
व्याख्या- कखव कहता है कक तेजी से बदिती दुखनया और उसके साथ तािमेि खबठाने के क्रम में िोगों के पास
समय बहुत कम बचा है। कखव देिता है कक आकाश में कािे बादि छाये चिे आ रहे हैं। वषाा की पूरी संभावना
है। ऐसे में िोग छतों पर आएँगे। अब उनमें से कोई कखव को पहचानकर पुकार िेगा कक आ जाओ, तुम्हारा
घर यहीं है, खजसे तुम िोज नहीं पा रहे हो।
योग्यता-खवस्तार
1. पाठ में हहंदी महीनों के कु छ नाम आए हैं। आप सभी हहंदी महीनों के नाम क्रम से खिखिए-
ि- चैत्र,बैसाि,ज्येष्ठ,आषा़ि,श्रावण,भाद्रपद,आखिन,कार्ताक,मागाशीषा,पौष,माघ,फाल्गुन।

िुशबू रचते हैं हाथ

1. खनम्नखिखित प्रश्नों के उत्तर दीखजए-


(क) ‘िुशबू रचने वािे हाथ’ कै सी पररखस्थखतयों में तथा कहाँ-कहाँ रहते हैं?
ि- ‘िुशबू रचने वािे हाथ’ घोर गरीबी, अभावग्रस्त और अमानवीय पररखस्थखतयों में गंदे नािे के ककनारे
कू ड़े-करकट के ढेर के पास छोटी-छोटी बखस्तयों की तंग और गंदी गखियों में रहते हैं। वहाँ की बदबू से िगता
है कक नाक फट जाएगी।
(ि) कखवता में ककतने तरह के हाथों की चचाा हुई है?
ि- कखवता में कई प्रकार के हाथों की चचाा की गई है.....-
उभरी नसों वािे हाथ अथाात् वृद्ध मजदूरों के हाथ।
खघसे नािूनों वािे हाथ अथाात् मजदूर वगा के हाथ।
पीपि के नए पत्ते जैसे हाथ अथाात् कम उम्र के बच्चों के हाथ।
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
जूही की िाि जैसे हाथ अथाात् नवयुवखतयों के सुद
ं र हाथ।
कटे-खपटे और जख्मी हाथ अथाात् माखिक द्वारा शोखषत एवं सताए मजदूरों के हाथ।
(ग) कखव ने यह क्यों कहा है कक ‘िुशबू रचते हैं हाथ’?
ि- ‘िुशबू रचते हैं हाथ’ ऐसा कखव ने इसखिए कहा है खजन हाथों द्वारा दुखनया भर में िुशबू फै िाई जाती है,
वे हाथ गंदे हैं, गंदी जगहों पर रहते हैं और अभावग्रस्त जीवन जीने को खववश हैं।
(घ) जहाँ अगरबखत्तयाँ बनती हैं, वहाँ का माहौि कै सा होता है?
ि- जहाँ अगरबखत्तयाँ बनती है वहाँ का वातावरण अत्यंत गंदा होता है। गंदे नािे से उठती बदबू, चारों ओर
कू ड़े के ढेर से उठती बदबू से दुगंध फै िी होती है। इस बदबू से ऐसा िगता है जैसे नाक फट जाएगी।
(ङ) इस कखवता को खििने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
ि- इस कखवता को खििने है का उद्देश्य है-समाज के मजदूर वगा और अन्य िोगों के बीच घोर खवषमता का
खचत्रण तथा दुखनया भर में अपनी बनाई अगरबखत्तयों के माध्यम से सुगंध फै िाने वािे मजदूर वगा का घोर
गरीबी में गंदगी के बीच जीवन खबताना तथा समाज द्वारा उनकी उपेिा की ओर िोगों का ध्यान आकर्षात
कराना।
2. व्याख्या कीखजए-
(क) (i) पीपि के पत्ते-से नए-नए हाथ
जूही की िाि-से िुशबूदार हाथ
ि- कखव अगरबखत्तयाँ बनाने वािे मजदूरों के बारे में बताता है कक इस उद्योग में पीपि के नए पत्ते जैसे
सुकोमि हाथ वािे िड़कों तथा जूही की िाि जैसे नव युवखतयों के सुंदर हाथों को भी काम करना पड़ रहा
है। अथाात् बाि श्रखमक भी कायारत हैं।
(ii) दुखनया की सारी गंदगी के बीच
दुखनया की सारी िुशबू
रचते रहते हैं हाथ
ि- कखव ने इन पंखियों में िुशबू बनाने वािे मजदूरों के बारे में बताया है कक ये मजदूरों को दुखनया की सारी
गंदगी के बीच रहने को खववश हैं। ऐसे गंदे स्थानों पर रहकर वे सारी दुखनया में सुगध
ं खबिेरते हैं। ये मज़दूर
गंदी जगहों पर रहकर गंदे हाथों से काम करके दुखनया को िुशी और सुगंध बाँट रहे हैं।
(ि) कखव ने इस कखवता में ‘बहुवचन’ का प्रयोग अखधक ककया है? इसका क्या कारण है?
ि- इस कखवता में कखव ने बहुवचन का प्रयोग इसखिए ककया है, क्योंकक ऐसे उद्योगों में काम करना ककसी
एक जगह की नहीं बखल्क अनेक देशों की समस्या है और इनमें बहुत-से मज़दूर काम करने को खववश हैं।
(ग) कखव ने हाथों के खिए कौन-कौन से खवशेषणों का प्रयोग ककया है?
ि- कखव ने हाथों के खिए कई खवशेषणों का प्रयोग ककया है; जैसे-
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
उभरी नसों वािे...खघसे नािूनों वािे...पीपि के पत्ते से नए-नए...जूही की िाि जैसे िुशबूदार...गंदे कटे-
खपटे...ज़ख्म से फटे हुए l
योग्यता-खवस्तार
1. अगरबत्ती बनाना, माखचस बनाना, मोमबत्ती बनाना, खिफाफे बनाना, पापड़ बनाना, मसािे कू टना आकद
िघु उद्योगों के खवषय में जानकारी एकखत्रत कीखजए।
ि- छात्र स्वयं करें।

अन्य पाठे तर हि (नए इिाके में..)


िघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. कखव को पुराने खनशान धोिा क्यों दे जाते हैं?
ि- कखव को पुराने खनशान इसखिए धोिा दे जाते हैं, क्योंकक कखव जहाँ रहता है वहाँ तेज़ गखत से बदिाव
हो रहा है। खनत नए मकान बनते जा रहे हैं। िािी ज़मीन, खगरे मकान, खजन्हें वह सवेरे आते हुए देिते हैं,
शाम तक वहाँ कु छ नया बन जाने से वे खनशान नहीं खमि पाते हैं।
2. कखव अपने घर तक पहुँचने के खिए क्या-क्या सोचता है?
ि- कखव अपने घर तक पहुँचने के खिए सोचता है कक पीपि का पेड़ और खगरा घर खमि जाने के बाद जमीन
के िािी टुकड़े से बाएँ मुड़ने पर जब वह दो मकान बाद जाएगा तो उसे अपना खबना रं ग वािा िोहे के
फाटक का एक मंखजिा मकान खमि जाएगा।
3.कखव ठकमकाता हुआ क्यों चिता है?
ि- कखव ठकमकाता हुआ इसखिए चिता है क्योंकक खजस इिाके में रहता है, वहाँ िूब सारे नए मकान बनते
जा रहे हैं, इस कारण वह अपना घर नहीं ढू ंढ पा रहा है। अपना मकान पहचानने के खिए ही वह ठकमकाता
हुआ चि रहा है।
4. अंत में कखव को अपना घर ढू ँ़िने का क्या उपाय नज़र आता है?
ि- अंत में कखव को अपना मकान ढू ँ़िने का यह उपाय नज़र आता है कक वह हर घर के दरवाजे को िटिटाकर
पूछे कक क्या यह वही मकान है जहाँ से मैं सवेरे खनकि कर गया था।
5. ‘ढहा आ रहा अकास’ का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कक इससे कखव को क्या िाभ हो सकता है?
ि- ‘ढहा आ रहा अकास’ का आशय है-आसमान में कािे-कािे बादि खघरते आ रहे हैं। इससे भीषण तेज़ वषाा
हो सकती है। वषाा का अनुमान कर िोग अपनी छतों पर आएँगे। वे कखव को देिेंगे और कहेंगे कक आ जाओ।
तुम्हारा घर यहीं तो है। इससे कखव अपने घर पहुँच जाएगा।
6. ‘नए इिाके में’ कखव के आधार पर उस इिाके की खवशेषताएँ बताइए, जहाँ कखव रहता है।

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
ि- खजस इिाके में कखव रहता है वहाँ खनत नए खनमााण ककए जा रहे हैं। इससे वहाँ के आस-पास अत्यंत तेज़ी
से बदिाव आता जा रहा है। इससे एक-दो कदन बाद ही सब कु छ बदिा-बदिा-सा नज़र आने िगता है।
7. ‘नए इिाके में कखवता का उद्देश्य क्या है?
ि- ‘नए इिाके में कखवता का उद्देश्य है-दुखनया में तेजी से आते बदिाव की ओर संकेत करना, खजसके कारण
एक-दो कदन में चारों ओर इतना बदिाव आ जाता है कक पहचान पाना करठन हो जाता है।
दीघा उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. ‘नए इिाके में’ कखवता में कखव को ककस समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है और क्यों?
ि- ‘नए इिाके में कखव को अपना ही घर ढू ँ़िने की समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। इसका कारण यह है
कक कखव जहाँ रहता है, वहाँ सब कु छ इतनी तेज़ी से बदि रहा है कक पुराने खचह्न िुप्त होते जा रहे हैं। ऐसा
िगता है कक स्मृखतयाँ साथ नहीं दे रही हैं। इससे कखव अपना मकान ही नहीं ढू ंढ पा रहा है।
2. ‘नए इिाके में’ कखवता का प्रखतपाद्य अपने शब्दों में खिखिए।
ि- ‘नए इिाके में कखवता में उस दुखनया का उल्िेि हुआ है जहाँ इतनी तेजी से बदिाव हो रहा है कक एक
कदन में सब कु छ पुराना पड़ता जा रहा है। उस बदिाव के माध्यम से इस ओर भी संकेत ककया गया है कक इस
जीवन में कु छ भी स्थायी नहीं है। यहाँ स्मृखतयों के भरोसे जीना करठन है। इसखिए पुरानी रीखतयों रूक़ियों
को छोड़कर नए पररवतान अपनाने को तैयार रहना चाखहए। ऐसा न करने वािा जीवन में खपछड़ जाएगा।
(िुशबू रचते हैं हाथ)
िघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. ‘कू ड़े-करकट के ढेरों के बाद’ शब्दों से िुशबू रचने वािों के पररवेश के बारे में क्या पता चिता है?
ि- ‘कू ड़े-करकट के ढेरों के बाद’ शब्दों से िुशबू रचने वािों के पररवेश के बारे में यह पता चिता है कक वे
बहुत ही गंदे स्थानों पर रहते हैं।
2. ‘जख्म से फटे हाथ’ मजदूरों की ककस दशा की ओर संकेत करते हैं?
ि- ‘जख्म से फटे हाथ’ मजदूरों की गरीबी और अभावग्रस्तता की ओर संकेत करते हैं। ये मज़दूर इतने गरीब
हैं कक इन ज़ख्मो के इिाज के खिए उनके पास पैसे नहीं हैं, और वे मजदूरी न खमिने के िर से इिाज करवाने
नहीं जा रहे हैं।
3. िुशबू की रचना करने वािे िोग ककस उम्र के है? इसके बारे में तुम्हें कै से पता चिता है?
ि- िुशबू की रचना करने वािों में बच्चे-बूढे अथाात् हर उम्र के स्त्री-पुरुष और िड़के -िड़ककयाँ शाखमि हैं।
इसका पता हमें उभरी नसों वािे, पीपि के पत्ते से नए-नए और जूही की िाि से िुशबूदार हाथों को देिकर
िगता है।
4. ‘िुशबू रचते हैं हाथ’ में कौन-सी समस्या समाज के खिए घातक है?

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
ि- ककसी भी समाज, देश के बच्चे ही उसका भखवष्य होते हैं। इन बच्चों के बाि मजदूर के रूप में काम करने
से वे प़ि खिि नहीं सकें गे। उनके िेिने-कू दने के कदन मजदूरी करने में बीत रहे हैं। ऐसे में ये बच्चे आजीवन
मजदूर बनकर रह जाएँगे। बाि मजदूरी की यह समस्या समाज और राष्ट्र के खिए घातक है।
5. िुशबू रचने वािे हाथों के प्रखत समाज के धनी वगा का क्या कताव्य है?
ि- िुशबू रचने वािे हाथ प्रायः बाि मजदूर होते हैं, जो शहर की गंदी बखस्तयों एवं बदबूदार स्थानों पर
रहते हैं। इन बाि मजदूरों के प्रखत के प्रखत समाज के धनी वगा का कताव्य यह है कक वे इन बाि मजदूरों के
प्रखत संवेदनशीि बनकर उनकी खशिा और उत्थान के खिए आगे आएँ।
6. ‘िुशबू रचते हैं हाथ’ कखवता में ककस समस्या की ओर ध्यानाकर्षात ककया गया है?
ि- ‘िुशबू रचते हैं हाथ’ कखवता में बाि श्रम और श्रखमक जीवन की समस्या को उभारते हुए समाज में व्याप्त
आर्थाक खवषमता की ओर ध्यान आकर्षात ककया गया है। अगरबखत्तयों और धूप (िुशबूदार पदाथा) से मंकदरों
और घरों को महकाने वािे िोग बदबूदार जगहों पर रहने के खिए खववश हैं। इन बाि श्रखमकों के जीवन को
उन्नत बनाने की आशा में इस समस्या की ओर ध्यान िींचा गया है।

दीघा उत्तरीय प्रश्नोत्तर


1. अगरबखत्तयाँ बनाने वािे बाि मज़दूरों के जीवन में सुधार िाने हेतु कु छ सुझाव दीखजए।
ि- िुशबूदार अगरबखत्तयाँ बनाने वािे बाि मजदूरों के जीवन में सुधार िाने का सबसे अच्छा उपाय है,
उनके हाथों में पुस्तकें पकड़ाना और उन्हें खवद्यािय की ओर िे जाना। इससे ये बाि मजदूर प़ि-खििकर काया
कु शि बन जाएँगे। इनके खिए प़िाई के साथ-साथ खवखभन्न कामों के प्रखशिण की भी व्यवस्था होनी चाखहए,
ताकक ये बाि श्रखमक कु शि कारीगर बनकर स्वरोजगार कर सकें और मज़दूर बनकर जीवन खबताने के खिए
खववश न हों। इससे इस वगा के बच्चों का जीवन स्तर ऊँचा उठ जाएगा।
2. ‘िुशबू रचते हैं हाथ’ कखवता देश में व्याप्त ककस खवषमता की ओर संकेत करती है? इसका सामाखजक
खवकास पर क्या असर पड़ता है?
ि- ‘िुशबू रचते हैं हाथ’ कखवता देश में व्याप्त में आर्थाक खवषमता की ओर संकेत करती है। इसके अिावा यह
कखवता समाज के वगा भेद पर भी चोट करती है। हमारे समाज में अमीर वगा द्वारा गरीबों एवं बच्चों का इस
तरह शोषण ककया जाता है कक गरीब वगा आजीवन इससे उबर नहीं पाता है। इससे गरीब एवं उसके बच्चों
को काम करने पर भी रोटी, कपड़ी जैसी मूिभूत सुखवधाएँ उपिब्ध नहीं हो पाती हैं। इससे सामाखजक खवकास

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
का िक्ष्य कहीं बहुत पीछे छू ट जाता है। इससे अमीर और गरीब के मध्य की िाई और भी गहरी होती चिी
जाती है।

सिं यन
1. धगल्िू
1. सोनिु ी में िगी पीिी किी को देख िेधखका के मन में कौन से धव ार उमडने िगे?
ि- सोनिु ी में िगी पीिी किी को देखकर िेधखका के मन में य धव ार आया कक धगल्िू सोनिु ी के
पास ी धमट्टी में दबाया गया था। इसधिए अब व धमट्टी में धविीन ो गया ोगा और उसे ौंकाने के धिए
सोनिु ी के पीिे फू ि के रूप में फू ट आया ोगा।
2.पाठ के आधार पर कौए को एक साथ समादररत और अनादररत प्राणी क्यों क ा गया ै?
ि- ह द
िं ू सिंथकृ धत में ऐसी मान्यता ै कक धपतृपक्ष में मारे पूवाि मसे कु छ पाने के धिए कौए के रूप में
मारे सामने आते ।ैं इसके अिावा कौए मारे दूरथथ ररश्तेदारों के आगमन की सू ना भी देते ,ैं धिससे
उसे आदर धमिता ।ै दूसरी ओर कौए की कका श भरी काुँव-काुँव को म अवमानना के रूप में प्रयुि करते
।ैं इससे व धतरथकार का पात्र बनता ।ै इस प्रकार एक साथ आदर और अनादर पाने के कारण कौए को
समादररत और अनादररत क ा गया ।ै
3.धगि री के घायि बच्चे का उप ार ककस प्रकार ककया गया?
ि- म ादेवी वमाा ने धगि री के घायि बच्चे का उप ार बडे ध्यान से ममतापूवाक ककया। प िे उसे कमरे में

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
िाया गया। उसका खून पोंछकर घावों पर पेंधसधिन िगाई गई। उसे रुई की बत्ती से दूध धपिाने की
कोधशश की गई। परिं तु दूध की बूिंदें मुुँ के बा र ी िुढ़क गईं। कु छ समय बाद मुुँ में पानी टपकाया गया।
इस प्रकार उसका बहुत कोमितापूवाक उप ार ककया गया।
4. िेधखका का ध्यान आकर्षात करने के धिए धगल्िू क्या करता था?
ि- िेधखका का ध्यान आकर्षात करने के धिए धगल्िू-
• उसके पैर तक आकर सरा से परदे पर ढ़ िाता और उसी तेजी से उतरता था। व ऐसा तब
तक करता था, िब तक िेधखका उसे पकडने के धिए न उठ िाती।
• भूख िगने पर व ध क-ध क की आवाज करके िेधखका का ध्यान खीं ता था।
5. धगल्िू को मुि करने की आवश्यकता क्यों समझी गई और उसके धिए िेधखका ने क्या उपाय ककया?
ि- म ादेवी ने देखा कक धगल्िू अपने ध साब से िवान ो गया था। उसका प िा वसिंत आ ुका था।
धखडकी के बा र कु छ धगि ररयाुँ भी आकर ध कध क करने िगी थीं। धगल्िू उनकी तरफ प्यार से देखता
र ता था। इसधिए म ादेवी ने समझ धिया कक अब उसे धगि ररयों के बी थवच्छिंद धव ार के धिए छोड
देना ाध ए।
िेधखका ने धगल्िू की िािी की एक कीि इस तर उखाड दी कक उसके आने-िाने का राथता बन गया। अब
व िािी के बा र अपनी इच्छा से आ-िा सकता था।
6. धगल्िू ककन अथों में परर ाररका की भूधमका धनभा र ा था?
ि- िेधखका एक मोटर दुघाटना में आ त ो गई थी। अथवथथता की दशा में उसे कु छ समय धबथतर पर
र ना पडा था। िेधखका की ऐसी ाित देख धगल्िू परर ाररका की तर उसके धसर ाने तककए पर बैठा
र ता और अपने नन् -ें नन् ें पिंिों से उसके (िेधखका के ) धसर और बािों को इस तर स िाता मानो व
कोई परर ाररका ो।
7. धगल्िू की ककन ेष्टाओं से य आभास धमिने िगा था कक अब उसका अिंत समय समीप ै?
ि- धगल्िू की धनम्नधिधखत ेष्टाओं से म ादेवी को िगा कक अब उसका अिंत समीप ै-
• उसने कदनभर कु छ भी न ीं खाया।
• व रात को अपना झूिा छोडकर म ादेवी के धबथतर पर आ गया और उनकी उुँ गिी
पकडकर ाथ से ध पक गया।
8. ‘प्रभात की प्रथम ककरण के थपशा के साथ ी व ककसी और िीवन में िागने के धिए सो गया’का आशय
थपष्ट कीधिए।
ि- आशय य ै धगल्िू का अिंत समय धनकट आ गया था। उसके पिंिे ठिं डे ो गए थे। उसने िेधखका की
अुँगुिी पकड रखा था। उसने उष्णता देने के धिए ीटर ििाया। रात तो िैसे-तैसे बीती परिं तु सवेरा ोते
ी धगल्िू के िीवन का अिंत ो गया।
9. सोनिु ी की िता के नी े बनी धगल्िू की समाधध से िेधखको के मन में ककस धवश्वास का िन्म ोता ै?
ि- सोनिु ी की िता के नी े धगल्िू की समाधध बनी थी। इससे िेधखका के मन में य धवश्वास िम गया
कक एक-न-एक कदन य धगल्िू इसी सोनिु ी की बेि पर पीिे टक फू ि के रूप में िन्म िे िेगा।
अन्य पाठे तर ि
िघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
1. िेधखका को अकथमात ककस छोटे िीव का थमरण ो आया और कै से?
ि- िेधखका ने देखा कक सोनिु ी में पीिी किी आ गई ।ै य देखकर उसे अकथमात छोटे िीव धगल्िू का
थमरण ो आया। सोनिु ी की इसी सघन ररयािी में धगल्िू धछपकर बैठता था िो अ ानक िेधखका के
किं धे पर कू दकर उसे ौंका देता था। िेधखका को िगा कक पीिी किी के रूप में धगल्िू ी प्रकट ो गया ।ै
2. कौए की काुँव-काुँव के बाद भी मनुष्य उसे कब आदर देता ै और क्यों?
ि- कौए की काुँव-काुँव के बाद भी मनुष्य उसे धपतृपक्ष में आदर देता ै, क्योंकक मारे समाि में ऐसी
मान्यता ै कक मारे पुरखे मसे कु छ पाने के धिए धपतृपक्ष में कौओं के रूप में आते ।ैं इसके अिावा कौआ
मारे ककसी दूरथथ के आने का सिंदेश भी िेकर आता ।ै
3. कौए अपना सुिभ आ ार क ाुँ खोि र े थे और कै से?
ि- िेधखका ने देखा कक गमिे और दीवार की सिंधध में धगि री का छोटा-सा बच्चा ै िो सिंभवत: घोंसिे से
धगर पडा ोगा। कौए उसे उठाने के प्रयास में ों मार र े थे। इसी छोटे बच्चे में कौए अपना सुिभ आ ार
खोि र े थे।
4. िेधखका की अनुपधथथधत में धगल्िू प्रकृ धत के साधन्नध्य में अपना िीवन ककस प्रकार धबताता था?
ि - िेधखका की अनुपधथथधत में धगल्िू धखडकी में बनी िािी को उठाने से बने राथते द्वारा बा र िा
िाता था। व दूसरी धगि ररयों के झुिंड में शाधमि ोकर उनका नेता बन िाता और र डाि पर उछि-
कू द करता र ता था। व िेधखका के िौटने के समय कमरे में वापस आ िाता था।
5. धगल्िू का धप्रय खाद्य क्या था? इसे न पाने पर व क्या करता था?
ि- धगल्िू का धप्रय खाद्य कािू था। इसे व अपने दाुँतों से पकडकर कु तर-कु तरकर खाता र ता था। धगल्िू
को िब कािू न ीं धमिता था तो व खाने की अन्य ीिें िेना बिंद कर देता था या उन् ें झूिे से नी े फें क
देता था।

6. िेधखका ने कै से िाना कक धगल्िू उसकी अनुपधथथधत में दुखी था?


ि- िेधखका एक मोटर दुघाटना में घायि ो गई। इससे उसे कु छ समय अथपताि में र ना पडा। उन कदनों
िब िेधखका के कमरे का दरवािा खोिा िाता तो धगल्िू झूिे से नी े आता परिं तु ककसी और को देखकर
तेिी से भागकर झुिे में िा िाता। सब उसे व ीं कािू दे आते, परिं तु िब िेधखका ने अथपताि से आकर
झूिे की सफ़ाई की तो उसे झूिे में कािू धमिे धिन् ें धगल्िू ने न ीं खाया था। इससे िेधखका ने िान धिया
कक उसकी अनुपधथथधत में धगल्िू दुखी थी।
7. भोिन के सिंबिंध में िेधखका को अन्य पाितू िानवरों और धगल्िू में क्या अिंतर नजर आया?
ि- िेधखका ने अनेक पशु-पक्षी पाि रखे थे, धिनसे व बहुत िगाव रखती थी परिं तु भोिन के सिंबध
िं में
िेधखका को अन्य पाितू िानवरों और धगल्िू में य अिंतर नजर आया कक उनमें से धअकसी िानवर ने
िेधखका के साथ उसकी थािी में खाने की ध म्मत न ीं कक िबकक धगल्िू खाने के समय मेज पर आ िाता
और िेधखका की थािी में बैठकर खाने का प्रयास करता।
दीघा उत्तरीय प्रश्नोत्तर
1. िेधखका ने िघु िीव की िान ककस तर ब ाई? उसके इस काया से आपको क्या प्रेरणा धमिती ै?
ि- िेधखका ने देखा कक गमिे और दीवार की सिंधध के बी एक छोटा-सा धगि री का बच्चा पडा ।ै शायद

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
य घोंसिे से धगर गया ोगा। इसे कौए अपना भोिन बनाने के धिए तत्पर थे कक िेधखका की दृधष्ट उस पर
पड गई। उसने उस बच्चे को उठाकर उसके घावों पर पेंधसिीन िगाई और पानी धपिाया। इससे व दो-तीन
कदन में थवथथ ो गया। िेधखका के इस काया में में-
• िीव ििंतुओं के प्रधत सिंवद
े नशीि बनने की प्रेरणा धमिती ।ै
• िीव-ििंतुओं की रक्षा करने की सीख धमिती ।ै
• िीव-ििंतुओं को न सताने तथा उन् ें प्रताधडत न करने की प्रेरणा धमिती ।ै
2. िेधखका को िीव-ििंतुओं की सिंवेदनाओं की सूक्ष्म समझ थी। इसे थपष्ट करते हुए बताइए कक आपको
इनसे ककन ककन मूल्यों को अपनाने की सीख धमिती ै?
ि- िेधखका अत्यिंत सदय, सिंवेदनशीि तथा परदुखकोतर थी। उससे मनुष्य ी न ीं पशु-पधक्षयों का दुख भी
न ीं देखा िाता था। इसके अिावा उसे िीव-ििंतुओं की भावनाओं की सूक्ष्म समझ थी। िेधखका ने देखा कक
वसिंत ऋतु में धगल्िू अन्य धगि ररयों की ध क-ध क सुनकर उन् ें अपनेपन के भाव से धखडकी में से
धन ारता र ता ।ै िेधखका ने तुरिंत कीिें टवाकर धखडकी की िािी से राथता बनवा कदया, धिसके
माध्यम से व बा र िाकर अन्य धगि ररयों के साथ उछि-कू द करने िगा। इससे में िीव-ििंतुओं की
भावनाएुँ समझने, उनके प्रधत दयािुता कदखाने तथा िीवों को उनके प्राकृ धतक आवास में पहुुँ ाने की प्रेरणा
धमिती ।ै

2. थमृधत
1. भाई के बुिाने पर घर िौटते समय िेखक के मन में ककस बात का डर था?
ि: भाई के बुिाने पर घर िौटते समय िेखक के मन में धपटाई की आशिंका थी। व धपटाई और उसके
सिंभाधवत कारणों के बारे में सो र ा था कक क ीं इस कडी सरदी में झरबेरी के बेर खाने िे आने के
कारण बडे भाई उसे धपटाई करने के धिए तो न ीं बुिा र े ।ैं
2. मक्खनपुर पढ़ने िाने वािी बच्चों की टोिी राथते में पडने वािे कु एुँ में िेिा क्यों फें कती थी?
ि: मक्खनपुर पढ़ने िानेवािे बच्चों की टोिी पूरी वानर टोिी थी। उन बच्चों को पता था कक कु एुँ में साुँप ।ै
वे िेिा फें ककर कु एुँ में से आनेवािी उसकी क्रोधपूणा फु फकार सुनने में मिा िेते थे। कु एुँ में िेिा फें ककर
उसकी आवाज सुनने के बाद अपनी बोिी की प्रधतध्वधन सुनने की िािसा उनके मन में र ती थी।
3. ‘साुँप ने फु सकार मारी या न ीं, िेिा उसे िगा या न ीं, य बात अब तक थमरण न ीं’-य कथन िेखक
की ककस मनोदशा को थपष्ट करता ?

ि. साुँप की फु फकार ोने या उसे िेिा िगने या न िगने की बात िेखक को अब तक याद न ीं, क्योंकक
कु एुँ में िेिा मारते समय उसकी टोपी में रखी ध रट्ठयाुँ क्कर काटती हुई कु एुँ में धगर र ी थीं। ध रठयों को यूुँ
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
धगरते देखकर िेखक अपनी भावी धपटाई को सो कर भयभीत ो गया। उि कथन िेखक की भयाक्रािंत,
धनराश और घबरा ट भरी मनोदशा को थपष्ट करता ।ै
4. ककन कारणों से िेखक ने ध रट्ठयों को कु एुँ से धनकािने का धनणाय धिया?
ि: िेखक को ध रठयाुँ बडे भाई ने दी थीं। यकद वे डाकखाने में न ीं डािी िातीं तो घर पर मार पडती।
स बोिकर धपटने का भय और झूठ बोिकर ध रट्ठयों के न पहुुँ ने की धिम्मेदारी के बोझ से दबा व बैठा
धससक र ा था। व झूठ भी न ीं बोि सकता था। ध रट्ठयाुँ कु एुँ में धगरी पडी थीं। उसका मन क ीं भाग
िाने को करता था, कफर धपटने का भय और धिम्मेदारी की दुधारी तिवार किेिे पर कफर र ी थी। उसे
ध रट्ठयाुँ बा र धनकािकर िानी थीं। अिंत में उसने कु एुँ से ध रट्ठयाुँ धनकािने का धनणाय कर ी धिया।
5. साुँप का ध्यान बुँटाने के धिए िेखक ने क्या-क्या युधियाुँ अपनाई?
ि: साुँप का ध्यान बुँटाने के धिए िेखक ने कु एुँ की दीवार पर अपना पैर िगाकर कु छ धमट्टी धगराई। इससे साुँप का
ध्यान बुँट गया और उसने धमट्टी पर िोर से मुुँ मारा। िेखक ने डिंडे से ध रट्ठयों को सरकाया, इससे उसका ध्यान
डिंडे की ओर िा गया और उसने डिंडे पर भरपूर वार ककया। इस तर उसने साुँप का ध्यान बुँटाकर ध रट्ठयाुँ उठाने
में सफि ो गया।
6. कु एुँ में उतरकर ध रट्ठयों को धनकािने सिंबिंधी सा धसक वणान को अपने शब्दों में धिधखए। अथवा
ध रट्ठयों को कु एुँ से धनकािना मौत का सामना करना था। कै से? थपष्ट कीधिए।
ि: िेखक की ध रट्ठयाुँ कु एुँ में धगरी पडी थीं। कु एुँ में उतरकर ध रट्ठयों को धनकाि िाना सा स का काया था। िेखक
ने इस ुनौती को थवीकार ककया और उसने छ धोधतयों को िोडकर डिंडा बाुँधा और एक धसरे को कु एुँ में डािकर
उसके दूसरे धसरे को कु एुँ के ारों ओर घुमाने के बाद उसमें गाुँठ िगाकर छोटे भाई को पकडा कदया। धोती के स ारे
िब व कु एुँ के धराति से ार-पाुँ गि ऊपर था, उसने साुँप को फन फै िाए देखा। व कु छ ाथ ऊपर िटक र ा
था। साुँप के पास पैर िटकते थे। व आक्रमण करने की तैयारी में था।
साुँप को धोती में िटककर न ीं मारा िा सकता था। डिंडा िाने के धिए काफी िग ाध ए थी इसधिए उसने
डिंडा िाने का इरादा छोड कदया। उसने डिंडे से ध रट्ठयों को धखसकाने का प्रयास ककया कक साुँप डिंडे से ध पक
गया। साुँप का धपछिा भाग िेखक के ाथों को छू गया। िेखक ने डिंडे को एक ओर पटक कदया। देवी कृ पा से साुँप के
आसन बदि गए और व ध रट्ठयों को उठाने में कामयाब ो गया।
7. इस पाठ को पढ़ने के बाद ककन-ककन बाि-सुिभ शरारतों के धवषय में पता िता ?
ै अथवा
बच्चे ककस प्रकार की शरारतों में आनिंद िेते ?
ैं
ि: इस पाठ को पढ़ने के बाद अनेक बाि सुिभ शरारतों का पता िता ;ै िैसे-
• बच्चे सरदी आकद की परवा ककए धबना पेड से फि आकद तोडकर खाते र ते ।ैं

• उन् ें धपटाई से डर िगता ।ै

• वे काम को धिम्मेदारी से करते हुए भी शरारतों में शाधमि ो िाते ।ैं

• िीव-ििंतुओं को सताने में उन् ें मजा आता ।ै

• वे नासमझी में साुँप िैसे ि रीिे िीव से भी छेडछाड करते ।ैं


8. ‘मनुष्य का अनुमान और भावी योिनाएुँ कभी-कभी ककतनी धमथ्या और उिटी धनकिती ’ैं -का आशय
थपष्ट कीधिए।
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
ि: मनुष्य र धथथधत से धनबटने के धिए अपना अनुमान िगाता ।ै व अपने अनुसार भधवष्य के धिए
योिनाएुँ बनाता ,ै पर ये योिनाएुँ र बार सफि न ीं ो पातीं। ये कई बार झूठी धसद्ध ोती ।ैं कई बार
तो धथथधत धबिकु ि उल्टी ोती ।ै धिस प्रकार िेखक के साथ ब पन में घरटत हुआ। मक्खनपुर िाते समय
िब िेखक की ध रट्ठयाुँ धगर गईं। उस समय की धथथधत का िेखक ने अनुमान न ीं िगाया था। कु एुँ में
उतरकर ध रट्ठयों को िाना सा स का काम था। िेखक धोती के स ारे कु एुँ में उतरा था। सामने साुँप फन
फै िाए बैठा था। धोती पर िटककर साुँप को मारना धबिकु ि असिंभव था।
व ाुँ डिंडा िाने की भी िग न ीं थी। िेखक ने डिंडे से ध रट्ठयों को धखसकाने का प्रयास ककया तो साुँप ने
डिंडे से ध पककर आसन बदि धिया और िेखक ध रट्ठयाुँ उठाने में सफि हुआ। िेखक इन सब बातों के धिए
प िे से तैयार न ीं था, िेककन धथथधत के साथ व अपनी योिना में पररवतान करता गया।
इस प्रकार मनुष्य की कल्पना और वाथतधवकता में बहुत अिंतर ोता ।ै य बात इस घटना से धसद्ध ो
िाती ।ै
9. ‘फि तो ककसी दूसरी शधि पर धनभार ’ै -पाठ के सिंदभा में इस पिंधि का आशय थपष्ट कीधिए। [CBSE]
ि: िेखक ने अपने बडे भाई की धपटाई से ब ने एविं ध रट्ठयाुँ डाकखाने में पहुुँ ाने की धिम्मेदारी के कारण
उसने कु एुँ में उतरने का धनणाय ककया। व कु एुँ में पडे धवषैिे साुँप से ोने वािे भावी खतरों को भी िानता
था। इस िोधखमपूणा काया में उसकी मृत्यु भी ो सकती थी। उसने पररणाम पर कम ध्यान देकर ध रट्ठयाुँ
उठाने में अपना पूरा ध्यान िगाया। उसने अपने उद्देश्य को सामने रखकर काया ककया, क्योंकक फि तो
ककसी दूसरी शधि पर धनभार करता ।ै

3 कल्िू कु म् ार की उनाकोटी
1. ‘उनाकोटी’ का अथा थपष्ट करते हुए बतिाएुँ कक य थथान इस नाम से क्यों प्रधसद्ध ?
ै [CBSE]
ि: उन’ का अथा -ै एक कम और कोरट का अथा -ै करोड। इस प्रकार उनाकोटी का शाधब्दक अथा -ै एक
करोड से एक कम। इस नाम के सिंबिंध में एक पौराधणक कथा य ै कक प िे य ाुँ कल्िू नामक कु म् ार
र ता था। व पावाती का भि था। एक बार िब धशव और पावाती आए तो कल्िू भी उनके धनवास कै िाश
पवात पर िाना ा ता था। पावाती के क ने पर धशव उसे िे िाने को तैयार ो गए परिं तु एक रात में एक
िाख मूर्तायाुँ बनाने की शता रख दी। कल्िू ने रात भर पररश्रम से मूर्तायाुँ बनाई परिं तु वे एक करोड से एक
कम धनकिी। इसी बात से धशव कल्िू को व ीं छोडकर िे गए। तब से इसका नाम उनाकोटी पड गया।
2. पाठ के सिंदभा में उनाकोटी में धथथत गिंगावतरण की कथा को अपने शब्दों में धिधखए।
ि: प ाडों को अिंदर से काटकर य ाुँ धवशाि आधार मूर्तायाुँ बनी ।ैं एक धवशाि ट्टान ऋधष भागीरथ की
प्राथाना पर थवगा से पृथ्वी पर गिंगा अवतरण की पौराधणकता को ध धत्रत करती ।ै गिंगा अवतरण के धक्के से
क ीं पृथ्वी धिंसकर पाताि िोक में न िी िाए। धशव को इसके धिए तैयार ककया गया कक वे गिंगा को
अपनी िटाओं में उिझा िें और इसके बाद उसे धीरे -धीरे पृथ्वी पर ब ने दें। धशव का े रा एक ट्टान पर
बना हुआ ै और उनकी िटाएुँ तो प ाडों की ोरटयों पर फै िी ।ैं भारत में य धशव की सबसे बडी

वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
आधार मूर्ता ।ै पूरे साि ब नेवािा एक िि प्रपात प ाडों से उतरता ै धिसे गिंगा धितना ी पधवत्र माना
िाता ।ै
3. कल्िू कु म् ार का नाम उनाकोटी से ककस प्रकार िुड गया?
ि: उनाकोटी में पावाती भि कल्िू नामक कु म् ार र ता था। एक बार धशव पावाती सध त व ाुँ पधारे ।
कल्िू ने धशव के साथ उनके आवास थथान कै िाश पवात पर िाने की धिद की। तब पावाती ने धशव से क ा
कक उसे साथ िे िें। इस पर धशव तैयार ो गए परिं तु एक शता रख दी कक व रात भर में उनकी एक कोरट
मूर्ता तैयार करे । कल्िू ने रातभर मूर्तायाुँ तैयार की परिं तु वे सिंख्या में एक कम धनकिी। धशव को उसे साथ न
िे िाने का ब ाना धमि गया। वे कल्िू और मूर्तायों को छोडकर िे गए। इस प्रकार कल्िू कु म् ार का नाम
उनाकोटी के साथ िुड गया।
4. ‘मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी-सी दौड गई’-िेखक के इस कथन के पीछे कौन-सी घटना िुडी ?

ि: धत्रपुरा के ह स
िं ाग्रथत मुख्य भाग में प्रवेश करने से प िे अिंधतम पडाव टीधियामुरा ी ।ै राष्ट्रीय
रािमागा-44 पर अगिे 83 ककिोमीटर यानी मनु तक की यात्रा के दौरान रैकफक सी०आर०पी०एफ० की
सुरक्षा में काकफिे की शक्ि में िता ।ै मुख्य सध व और आईिी० सी०आर०पी०एफ० से मैंने धनवेदन
ककया था कक वे में घेरेबद
िं ी में िेकर िनेवािे काकफिे के आगे-आगे िें। काकफिा कदन में 11 बिे के
आसपास िना शुरू हुआ। सभी काम में मथत थे उस समय तक डर की कोई गुिंिाइश ी न ीं थी।
प ाधडयों पर इरादतन रखे दो पत्थरों की तरफ मेरा ध्यान आकृ ष्ट न ीं हुआ। दो कदन प िे मारा एक
िवान य ीं धवद्रोध यों द्वारा मारा गया था’ मेरी रीढ़ में एक झुरझुरी सी दौड गई। मनु तक की अपनी शेष
यात्रा में, मैं य ख्याि अपने कदि से धनकाि न ीं पाया कक में घेरे हुए सी०आर०पी०एफ० के िवान ैं
अन्यथा शािंधतपूणा प्रतीत ोनेवािे ििंगिों में ककसी िग बिंदक
ू ें धिए धवद्रो ी भी धछपे ो सकते ।ैं

5. धत्रपुरा ‘बहुधार्माक समाि’ का उदा रण कै से बना?


ि: धत्रपुरा तीन ओर बाुँग्िादेश से तथा एक ओर भारत से धघरा ।ै य ाुँ बाुँग्िादेश से पधिम बिंगाि से
िोग घुसपैठ करके आए और य ाुँ बस गए। ये िोग धवधभन्न धमों को मानने वािे थे। धत्रपुरा में धवश्व के ार
बडे धमों का प्रधतधनधधत्व मौिूद ।ै इस तर धत्रपुरा बहुधमी समाि का उदा रण बनता गया।
6. टीधियामुरा कथबे में िेखक का परर य ककन दो प्रमुख धथतयों से हुआ? समाि-कल्याण के कायों में
उनका क्या योगदान था?
ि: टीधियामुरा कु छ ज्यादा बडा गाुँव ।ै य ाुँ िेखक की मुिाकात म
े िंत कु मार िमाधतया से हुई, िो य ाुँ
के एक प्रधसद्ध िोक गायक ैं और िो 1996 में सिंगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरथकृ त भी ो ुके ।ैं म
े िंत
कोकबारोक बोिी में गाते ।ैं टीधियामुरा श र के वाडा निं 3 में िेखक की मुिाकात एक और गायक मिंिु
ऋधषदास से हुई। ऋधषदास मोध यों के एक समुदाय का नाम ।ै िेककन िूते बनाने के अिावा इस समुदाय
के कु छ िोगों की । धवशेषता थाप वािे वाद्यों िैसे तबिा और िोि के धनमााण और उनकी मरम्मत के काम
में भी ।ै
मिंिु ऋधषदास आकषाण मध िा थीं और रे धडयो किाकार ोने के अिावा नगर पिं ायत में अपने वाडा का
प्रधतधनधधत्व भी करती थीं। वे धनरक्षर थीं िेककन अपने वाडा की सबसे बडी आवश्यकता यानी पेयिि के
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
बारे में उन् ें पूरी िानकारी थी। नगर पिं ायत को वे अपने वाडा में नि का पानी पहुुँ ाने और इसकी मुख्य
गधियों में ईंटें धबछाने के धिए रािी कर ुकी थीं।
7. कै िासश र के धििाधधकारी ने आिू की खेती के धवषय में िेखक को क्या िानकारी दी? [CBSE]
ि: कै िाश नगर के धििाधधकारी के रि से आए तेज-तराार िवान थे। उन् ोंने ाय के दौरान िेखक को
टी.पी.एस. (तरू पोटैटो सीड) की खेती की सफिता के बारे में बताया। उन् ोंने बताया कक आिू की
परिं परागत खेती में ि ाुँ दो मीररक टन बीि कल्िू कु म् ार की उनाकोटी की प्रधत क्
े टेयर िरूरत पडती ,ै
व ीं टी.पी.एस. की मत्र 100 ग्राम बीि की जरूरत ोती ।ै धत्रपुरा से टी.पी.एस. का धनयाात असम,
धमिोरम, नागािैंड और अरुणा ि प्रदेश के अिावा धवयतनाम, बािंग्िादेश और मिेधशया को भी ककया िा
र ा ।ै

4 मेरा छोटा-सा धनिी पुथतकािय


1. िेखक का ऑपरे शन करने से सिान क्यों ध क र े थे?
ि: िेखक को तीन-तीन ाटा अटैक आए थे। कु छ डॉक्टरों ने उसे मृत घोधषत कर कदया था। डॉ. बोिेस द्वारा
कदए गए 900 वोल्ट्स के शॉक्स के कारण उसका हृदय 60% तक िि गया था। 40% ब े हृदय का
आपरे शन करने के बाद यकद ररवाइव न ीं हुआ तो ……………। इसधिए सिान आपरे शन से ध कर े
थे।
2. ‘ककताबों वािे कमरे में र ने के पीछे िेखक के मन में क्या भावना थी?
ि: ‘ककताबों वािे कमरे में र ने के पीछे िेखक के मन में पुथतकों का व सिंकिन था िो उसके ब पन से
िेकर आि तक सिंकधित था। िब उन् ें अथपताि से घर िाया गया तो उन् ोंने धजद की थी कक वे अपने
आपको उनके साथ िुडा हुआ अनुभव कर सकें । उनके प्राण इन जारों ककताबों में बसे हुए थे। िो धपछिे
ािीस-प ास बरस में धीरे -धीरे िमा ोती गई थीं।
3. िेखक के घर कौन-कौन-सी पधत्रकाएुँ आती थीं?
ि: िेखक के घर में धनयधमत रूप से आया धमत्र ‘साप्ताध क’, ‘वेदोदम’, ‘सरथवती’ ‘गृध णी’ तथा दो बाि
पधत्रकाएुँ खास उसके धिए-‘बािसखा’ और ‘ म म’ आती थीं।
वी.वी.सुधाकर बाबू – ह द
िं ी राज्य सिंसाधक
4. िेखक को ककताबें पढ़ने और स ि
े ने का शौक कै से िगा?
ि: िेखक को ककताबें पढ़ने और स ि े ने का शौक ब पन से था। उसके घर में कई पुथतकें थीं। व घर में
सत्याथा-प्रकाश और दयानिंद सरथवती की िीवनी बडी रुध से पढ़ता था। उनकी रोमािं क घटनाएुँ उसे
बडा प्रभाधवत करती थीं। व बाि-सखा और म म की कथाएुँ पढ़ता था। उसी से उसे ककताबें पढ़ने का
शौक िगा। पाुँ वीं कक्षा में प्रथम आने पर अिंग्रेजी की दो ककताबें इनाम में धमिी थीं। इन दो ककताबों ने
उसके धिए नई दुधनया का द्वार खोि कदया था। धपता िी की प्रेरणा से उसने ककताबों को इकट्ठा करना शुरू
कर कदया था। इससे उसके धनिी पुथतकािय की शुरुआत ो गई।
5. माुँ िेखक की थकू िी पढ़ाई को िेकर क्यों ह धिं तत र ती थी?
ि: िेखक पाठ्यक्रम की पुथतकों से अधधक ‘सत्याथा प्रकाश’ पढ़ता था। इससे ऊबने पर व बार-बार
‘बािसखा’ और ‘ म म’ पढ़ता था। ऐसे में माुँ को िगा कक य िडका पास कै से ोगा। ऐसे में व िेखक
की थकू िी पढ़ाई के बारे में ह िंधतत र ती थी।
6. थकू ि से इनाम में धमिी अिंग्रेिी की दोनों पुथतकों ने ककस प्रकार िेखक के धिए नई दुधनया के द्वार
खोि कदए?
ि: थकू ि से इनाम में धमिी अिंग्रेजी की दोनों पुथतकों ने िेखक के धिए नई दुधनया के द्वार खोि कदए। एक
पुथतक में पधक्षयों के बारे में काफी िानकारी थी। धवधभन्न पधक्षयों की िाधतयों, उनकी बोधियों, उनकी
आदतों की िानकारी उसमें दी गई थी। दूसरी ककताब थी ‘टुथटी द रग’ धिसमें पानी के ि ािों की कथाएुँ
थीं। ि ाि ककतने प्रकार के ोते ैं कौन-कौन सा माि िादकर िाते ,ैं क ाुँ से िाते ,ैं क ाुँ िाते ैं आकद
की िानकारी से भरी पडी थी। इन दो ककताबों से िेखक पधक्षयों से भरे आकाश और र थयों से भरे समुद्र के
बारे में िानकारी प्राप्त ककया। धपता ने अिमारी के एक खाने से अपनी ीिें टाकर िग बनाई और मेरी
दोनों ककताबें उस खाने में रखकर िेखक से क ा-“आि से य खाना तुम् ारी अपनी ककताबों का। य
तुम् ारी अपनी िाइब्रेरी ।ै ” इस प्रकार िेखक का नया मागा प्रशथत ो गया।
7. ‘आि से य खाना तुम् ारी अपनी ककताबों को य तुम् ारी अपनी िाइब्रेरी -ै धपता के इस कथन से
िेखक को क्या प्रेरणा धमिी?
ि: “आि से य खाना तुम् ारी अपनी ककताबों का। य तुम् ारी अपनी िाइब्रेरी ।ै ” धपता के इस कथन से
िेखक में पुथतकों का सिंकिन एविं स ि
े कर रखने के प्रधत रुध पैदा कर दी। कफर तो बीतते समय के साथ-
साथ ककताबें पढ़ने के अिावा ककताबें इकट्ठी करने की सनक पैदा हुई, धिससे उसका अपना धनिी
पुथतकािय बन सका।
8. िेखक द्वारा प िी पुथतक खरीदने की घटना का वणान अपने शब्दों में कीधिए। अथवा
भारती िी ने देवदास कै से और ककन ािातों में खरीदा?
ि: िेखक के धपता के दे ावसान के बाद तो आर्थाक सिंकट इतना बढ़ गया कक फीस िुटाना तक मुधश्कि था।
अपने शौक की ककताबें खरीदना तो सिंभव ी न ीं था। एक रथट से अस ाय छात्रों को पाठ्यपुथतकें खरीदने
के धिए कु छ रुपये सत्र के आरिं भ में धमिते थे। उनसे िेखक प्रमुख पाठ्यपुथतकें सेकेंड- ड
ैं ’ खरीदता था।
बाकी अपने स पारठयों से िेकर पढ़ता और नोट्स बना िेता।
एक बार िाने कै से पाठ्यपुथतकें खरीदकर भी दो रुपये ब गए थे। उसने देवदास कफ़ल्म देखने का धनणाय
ककया। तभी पुथतक की दुकान पर शरत िंद्र ट्टोपाध्याय की पुथतक ‘देवदास’ को देखा। उसने व पुथतक

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िं ी राज्य सिंसाधक
खरीद िी और बाकी के ब े पैसे ख ा करने की बिाए माुँ को िौटा कदए। इस प्रकार िेखक ने अपनी प िी
पुथतक खरीदी।
9. ‘इन कृ धतयों के बी अपने को ककतना भरा-भरा म सूस करता हूुँ’-का आशय थपष्ट कीधिए।
ि: आशय-िेखक के पास अपने पुथतकािय में ख
े व, मोपाुँसा, टािथटाय िैसे धवदेशी िेखकों के साथ
कबीर, सूर, तुिसी, र ीम िैसे म ापुरुषों की र नाएुँ थीं। िेखक को िगता था कक इन कृ धतयों के रूप में
उसे ये म ापुरुष उसके आसपास ी खडे ।ैं इनके बी व थवयिं को अके िा न ीं म सूस करता था।

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