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Dhukh Kaa Adhikaar Notes
Dhukh Kaa Adhikaar Notes
लेखक –यशपाल
निम्िललखखत प्रश्िों के उत्तर एक दो पंक्ततयों में दीक्िए:
उत्तर: ककसी व्यक्तत की पोशाक दे खकर हमें उस व्यक्तत की है लसयत और िीवि शैली का
पता चलता है ।
Question 2: खरबूिे बेचिेवाली स्त्री से कोई खरबूिे तयों िहीं खरीद रहा था?
उत्तर: खरबूिे बेचिेवाली स्त्री के सूतक लगा हआ था। लोग िमम भ्रष्ट होिे के डर से उससे
खरबूिे िहीं खरीद रहे थे।
उत्तर: बढ़िया के घर का इकलौता कमाऊ सदस्त्य अब इस दनिया में िहीं था, इसललए उसे कोई
भी उिार िहीं दे रहा था।
उत्तर: हमारी पोशाक हमें समाि में एक निक्श्चत दिाम ढ़दलवाती है । पोशाक हमारे ललए कई
दरवािे खोलती है । कभी कभी वही पोशाक हमारे ललए अड़चि भी बि िाती है ।
उत्तर: लेखक एक संभ्रांत वगम से आता है । उसिे अपिी संपन्िता के ढ़हसाब से कपड़े पहिे हए
थे। इसललए वह झककर या उस बढ़िया के पास बैठकर उससे बातें करिे में असमथम था।
इसललए वह उस स्त्री के रोिे का कारण िहीं िाि पाया।
उत्तर: भगवािा पास में ही एक िमीि पर कनछयारी करके अपिा निवामह करता था। वह उस
िमीि में खरबि
ू े उगाता था। वहााँ से वह खरबि
ू े तोड़कर लाता था और बेचता था। कभी-
कभी वह स्त्वयं दकािदारी करता था तो कभी दकाि पर उसकी मााँ बैठती थी।
उत्तर: लड़के के इलाि में बढ़िया की सारी िमा पाँूिी खतम हो गई थी। िो कछ बचा था वह
लड़के के अंनतम संस्त्कार में खचम हो गया। अब लड़के के बच्चों की भूख लमटािे के ललए यह
िरूरी था कक बढ़िया कछ कमाकर लाए। उसकी बहू भी बीमार थी। इसललए लड़के की मत्ृ य
के दस
ू रे ही ढ़दि बढ़िया को खरबूिे बेचिे के ललए निकलिा पड़ा।
उत्तर: बढ़िया के दख को दे खकर लेखक को अपिे पड़ोस की संभ्रांत मढ़हला की याद इसललए
आई कक उस संभ्रांत मढ़हला के पर की मत्ृ य पपछले साल ही हई थी। पर के शोक में वह
मढ़हला िाई महीिे बबस्त्तर से उठ िहीं पाई थी। उसकी तीमारदारी में डॉतटर और िौकर लगे
रहते थे। शहर भर के लोगों में उस मढ़हला के शोक मिािे की चचाम थी।
Question 1: बािर के लोग खरबूिे बेचिेवाली स्त्री के बारे में तया-तया कह रहे थे? अपिे
शब्दों में ललखखए।
उत्तर: बािार के लोग खरबूिे बेचिेवाली स्त्री के बारे में तरह तरह की बातें कर रहे थे। कोई
कह रहा था कक बेटे की मत्ृ य के तरं त बाद बढ़िया को बाहर निकलिा ही िहीं चाढ़हए था।
कोई कह रहा था कक सूतक की क्स्त्थनत में वह दस
ू रे का िमम भ्रष्ट कर सकती थी इसललए
उसे िहीं निकलिा चाढ़हए था। ककसी िे कहा, कक ऐसे लोगों के ललए ररश्तों िातों की कोई
अहलमयत िहीं होती। वे तो केवल रोटी को अहलमयत दे ते हैं। अधिकांश लोग उस स्त्री को
नतरस्त्कार की ििर से दे ख रहे थे।
उत्तर: लड़के को बचािे के ललए बढ़िया िे िो उधचत समझ में आया ककया। उसिे झटपट
ओझा को बलाया। ओझा िे झाड़फाँू क शरु ककया। ओझा को दाि दक्षिणा दे िे के ललए बढ़िया
िे घर में िो कछ था दे ढ़दया। घर में िागदे व की पूिा भी करवाई।
उत्तर: इस पाठ में मख्य पार एक बढ़िया है िो पर शोक से पीड़ड़त है । उस बढ़िया की तलिा
एक अन्य स्त्री से की गई है क्िसिे ऐसा ही ददम झेला था। दस
ू री स्त्री एक संपन्ि घर की
थी। इसललए उस स्त्री िे िाई महीिे तक पर की मत्ृ य का शोक मिाया था। उसके शोक
मिािे की चचाम कई लोग करते थे। लेककि बढ़िया की गरीबी िे उसे पर का शोक मिािे का
भी मौका िहीं ढ़दया। बढ़िया को मिबूरी में दस
ू रे ही ढ़दि खरबूिे बेचिे के ललए घर से बाहर
निकलिा पड़ा। ऐसे में लोग उसे ढ़हकारत की ििर से ही दे ख रहे थे। एक स्त्री की संपन्िता
के कारण शोक मिािे का पूरा अधिकार लमला वहीं दस
ू री स्त्री इस अधिकार से वंधचत रह
गई। इसललए इस पाठ का शीर्मक बबलकल साथमक है ।
Question 1: िैसे वाय की लहरें कटी हूई पतंग को सहसा भूलम पर िहीं धगर िािे दे तीं उसी
तरह खास पररक्स्त्थनतयों में हमारी पोशाक हमें झक सकिे से रोके रहती है ।
उत्तर: कोई भी पतंग कटिे के तरं त बाद िमीि पर िड़ाम से िहीं धगरती। हवा की लहरें उस
पतंग को बहत दे र तक हवा में बिाए रखती हैं। पतंग िीरे -िीरे बल खाते हए िमीि की
ओर धगरती है । हमारी पोशाक भी हवा की लहरों की तरह काम करती है । कई ऐसे मौके आते
हैं कक हम अपिी पोशाक की विह से झककर िमीि की सच्चाई िाििे से वंधचत रह िाते
हैं। इस पाठ में लेखक अपिी पोशाक की विह से बढ़िया के पास बैठकर उससे बात िहीं कर
पाता है ।
Question 3: शोक करिे, गम मिािे के ललए भी सहूललयत चाढ़हए और ... दखी होिे का भी
एक अधिकार होता है ।
उत्तर: शोक मिािे की सहूललयत भगवाि हर ककसी को िहीं दे ता है । कई बार िीवि में कछ
ऐसी मिबरू रयााँ या क्िम्मेदाररयााँ आ िाती हैं कक मिष्य को शोक मिािे का मौका भी िहीं
लमलता। यह बात खासकर से ककसी गरीब पर अधिक लागू होती है । गरीब को तो शोक
मिािे का अधिकार ही िहीं होता है । बढ़िया की गरीबी िे उसे पर का शोक मिािे का भी
मौका िहीं ढ़दया। बढ़िया को मिबरू ी में दस
ू रे ही ढ़दि खरबि
ू े बेचिे के ललए घर से बाहर
निकलिा पड़ा। एक सम्भ्रांत स्त्री को शोक मिािे का पूरा अधिकार लमला | अढाई मास तक
वह पलंग पर ही रही , पूरा शहर उसके दुःख में दुःखी था | वहीं दस
ू री स्त्री इस अधिकार से
वंधचत रह गई।
Video Link-https://www.youtube.com/watch?v=V6um9kklF0M