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Swadha Stotram Hindi 874
Swadha Stotram Hindi 874
Lyrics in Hindi
ब्रह्मोवाच
स्वधोच्चारणमात्रेण तीर्थस्नायी भवेन्नर:।
मुच्यते सवथपापेभ्यो वाजपेयफलं लभेत्।।1।।
अर्थ – ब्रह्मा जी बोले – ‘स्वधा’ शब्द के उच्चारण से मानव तीर्थ स्नायी हो
जाता है। वह सम्पूणथ पापों से मुक्त होकर वाजपेय यज्ञ के फल का
अधधकारी हो जाता है।
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स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं यदि वारत्रयं स्मरेत।्
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श्राद्धस्य फलमाप्नोदत कालस्य तपथणस्य च।।2।।
अर्थ – स्वधा, स्वधा, स्वधा – इस प्रकार यदि तीन बार स्मरण दकया जाए
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तो श्राद्ध, काल और तपथण के फल पुरुष को प्राप्त हो जाते हैं।
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सम्प्रीतये दिजातीनां गृदहणां वृदद्धहेतवे।।6।।
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अर्थ – तुम दपतरों की तुदि, दिजादतयों की प्रीदत तर्ा गृहस्ों की अधभवृदद्ध
के धलए मुझ ब्रह्मा के मन से दनकलकर बाहर जाओ।
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दनत्या त्वं दनत्यस्वरूपाधस गुणरूपाधस सुव्रते।
आदवभाथवस्तस्तरोभाव: सृिौ च प्रलये तव।।7।।
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अर्थ – सुव्रते! तुम दनत्य हो, तुम्हारा दवग्रह दनत्य और गुणमय है। तुम सृदि
के समय प्रकट होती हो और प्रलयकाल में तुम्हारा दतरोभाव हो जाता है।
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अर्थ – तुम ऊँ, नम:, स्वस्तस्त, स्वाहा, स्वधा एवं िधिणा हो। चारों वेिों
िारा तुम्हारे इन छ: स्वरूपों का दनरूपण दकया गया है, कमथकाण्डी लोगों में
इन छहों की मान्यता है।
पुरासीस्त्वं स्वधागोपी गोलोके राधधकासखी।
धृतोरधस स्वधात्मानं कृ तं तेन स्वधा स्मृता।।9।।
अर्थ – हे िे दव! तुम पहले गोलोक में ‘स्वधा’ नाम की गोपी र्ी और
राधधका की सखी र्ी, भगवान कृ ष्ण ने अपने वि: स्ल पर तुम्हें धारण
दकया इसी कारण तुम ‘स्वधा’ नाम से जानी गई।
इत्येवमुक्त्वा स ब्रह्मा ब्रह्मलोके च सं सदि।
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तस्ौ च सहसा सद्य: स्वधा सादवबथभूव ह।।10।।
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अर्थ – इस प्रकार िे वी स्वधा की मदहमा गाकर ब्रह्मा जी अपनी सभा में
दवराजमान हो गए। इतने में सहसा भगवती स्वधा उनके सामने प्रकट हो
pd
गई।
तिा दपतृभ्य: प्रििौ तामेव कमलाननाम्।
तां सम्प्राप्य ययुस्ते च दपतरश्च प्रहदषथता:।।11।।
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