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सिंगल शॉट

(सुनील - 57)
Surender Mohan Pathak
First Edition : 1975

Copyright: Surender Mohan Pathak

Author Website:  www.smpathak.com

Author e-mail: smpmysterywriter@gmail.com


Contents
Chapter 1
Chapter
2
Chapter
3
Chapter 1
साहनी से पैरामाउण्ट कै मिकल्स के आफिस में कदम रखा ।
आफिस खाली पड़ा था । उसने दीवार पर लगी घड़ी पर निगाह डाली । साढे पांच
बच चुके थे । वह आफिस के हॉल की एक दीवार के साथ बने लम्बे गलियारे में आगे बढा ।
उस गलियारे के कोने पर एक धुंधले शीशे का दरवाजा था जिस पर लिखा था -
रीता नागपाल
मैनेजिंग डायरेक्टर
साहनी के होंठों पर एक कु टिल मुस्कराहट आई और फिर वह दरवाजा ठे लकर भीतर
दाखिल हो गया ।
बाहरी दफ्तर में रीता की पर्सनल सैक्रे ट्री कमला बैठी थी । वह सिर झुकाये एक
फाइल पढ रही थी ।
पैरामाउण्ट कै मिकल्स एक अंग्रेजी दवाइयां बनाने वाली प्रसिद्ध कम्पनी थी । साहनी
खुद भी उसी धन्धे में था । उसकी अपनी कम्पनी पैरामाउण्ट कै मिकल्स से बहुत बड़ी थी
और वह इस धन्धे में रीता नागपाल से कहीं ज्यादा कामयाब था ।
कमला को सिर न उठाता देखकर वह धीरे से खांसा ।
कमला ने तुरन्त सिर उठाया ।
“हल्लो, माई डियर ।” - साहनी के वल सुन्दर महिलाओं के लिए सुरक्षित एक सिल्वर
जुबली मुस्कराहट अपने चेहरे पर लाता हुआ बोला ।
“गुड ईवनिंग, मिस्टर साहनी” - उस पर निगाह पड़ते ही कमला का चेहरा खिल उठा
। साहनी का व्यक्तित्व था ही ऐसा ।
“मैडम हैं ?”
“जी हां । हैं ।”
“बिजी ?”
“विशेष नहीं ।”
“मैं भीतर जा सकता हूं ?”
“बाई आल मीन्स ।”
“थैंक्यू ।”
साहनी ने अपने कोट की जेब में हाथ डाला । जब हाथ बाहर निकला तो उसमें एक
चाकलेट का पैके ट था ।
“हेयर ।” - वह चाकलेट कमला की ओर बढाता हुआ बोला ।
“ओह, थैंक्यू सो मंच, मिस्टर साहनी ।” - कमला ने प्रसन्न भाव से पैके ट थाम लिया ।
“नाट ऐट आल । नाट ऐट आल ।”
“आप मेरे लिये चाकलेट लाना कभी नहीं भूलते ।”
“क्योंकि मैं जानता हूं तुम्हें चाकलेट बहुत पसन्द है ।”
“यू आर वैरी काइंड एण्ड कनसिडरेट, मिस्टर साहनी ।”
साहनी मुस्कराया और भीतरी दरवाजे की ओर बढ गया । वह दरवाजा खोलकर
भीतर दाखिल हो गया ।
भीतरी कमरे में आबनूस की एक विशाल मेज के पीछे लगभग तीस साल की एक
बेहद खूबसूरत और गरिमापूर्ण युवती बैठी थी । आहट सुनकर उसने सिर उठाया ।
“मे आई कम इन, मैडम !” - साहनी दरवाजे से ही तनिक सिर नवाकर बोला ।
“आइये, आइये, साहनी साहब ।” - वह अपने होंठों पर जबरन एक स्वागतपूर्ण
मुस्कराहट लाती हुई बोली ।
“थैंक्यू ।” - साहनी बोला ।
वह आगे बढा । उसके पीछे दरवाजा अपने आप बन्द हो गया । यह मेज के समीप
पहुंचकर एक कु र्सी पर ढेर हो गया ।
साहनी एक लगभग पैंतीस साल का आकर्षक व्यक्तित्व वाला आदमी था । वह रीता
को तब से जानता था जब उसका बाप जिन्दा था और रीता के स्थान पर पैरामाउण्ट
कै मिकल्स का मैनेजिंग डायरेक्टर था । उन दिनों रीता को अपने बाप के काम-धन्धे में
कतई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन बाप की मौत के बाद जब हर प्रकार की जिम्मेदारी उस पर
आ पड़ी थी तो उसने जल्दी ही बड़ी कु शलता से सब कु छ स्वयं सम्भालना आरम्भ कर
दिया था । बाप की मौत के बाद से ही वह मैनेजिंग डायरेक्टर की कु र्सी पर थी और हर
काम को ऐसे सहज और स्वाभाविक ढंग से अंजाम दे रही थी जैसे वह हमेशा से इन्हीं
कामों की आदी थी ।
पैरामाउण्ट कै मिकल्स एक लिमिटेड कम्पनी थी जिसके साठ प्रतिशत शेयर नागपाल
साहब के पास थे । उनकी मौत के बाद बाकी जायदाद के बटवारे के साथ-साथ उनके
कम्पनी में शेयर भी रीता में और उसकी छोटी बहन सरिता में आधे-आधे बंट गए थे । उन
दो लड़कियों के अलावा नागपाल साहब का इस दीन-दुनिया में कोई सगा-सम्बन्धी नहीं था

साहनी रीता पर बुरी तरह फिदा था और उसको हासिल करने के लिए कु छ भी करने
के लिए तैयार था । नागपाल साह‍ब की मौत के बाद से वह रीता पर कितनी ही बार अपनी
हार्दिक इच्छा प्रकट कर चुका था । लेकिन रीता ने कभी उसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई थी ।
एक बार साहनी के बहुत पीछे पड़ने पर उसने उसे साफ-साफ कर दिया था कि अपने बाप
के मित्र और एक हमपेशा व्यक्ति होने के नाते वह साहनी की इज्जत करती थी । इसके
अलावा उसकी साहनी में न कोई दिलचस्पी थी और न भविष्य में होनी सम्भव थी । लेकिन
साहनी इतने स्पष्ट शब्दों में हुई भर्त्सना से हतप्रभ नहीं हुआ था । वह पूर्ववत् येन-के न-
प्रकारेण रीता को अपना बनाने की उधेड़बुन में लगा हुआ था ।
“कै से आये ?” - रीता ने पूछा ।
“यूं ही” - साहनी सहज स्वर से बोला - “इधर से गुजर रहा था । सोचा मिलता चलूं
।”
“बहुत मेहरबानी की ।”
“आजकल बहुत व्यस्त रहती हो ?”
“हां... क्या पीजियेगा ? ठण्डा या गर्म ?”
“कु छ नहीं । इस वक्त कु छ पीने की कतई इच्छा नहीं है ।”
रीता ने दोबारा जिद नहीं की ।
वातावरण में एक असुविधापूर्ण चुप्पी छा गई । उसने कु र्सी में पहलू बदला ।
“सरिता कै सी है ?” - साहनी ने पूछा ।
“ठीक है” - रीता बोली - “पहले से बहुत अच्छी है ।”
सरिता के वल छब्बीस साल की थी लेकिन फिर भी एक ऐसी नामुराद बीमारी की
शिकार थी जिसका साधारणतया नौजवान लोगों से रिश्ता नहीं जोड़ा जा सकता । कोई
तीन साल पहले उसे दिल का दौरा पड़ गया था । छोटी होने के कारण उसकी बाप से
विशेष मुहब्बत थी और डॉक्टर का कहना था कि बाप की मौत का सदमा न बर्दाश्त कर
पाने के कारण ही उसे दिल का दौरा पड़ा था । जब वह स्वस्थ हुई थी तो रीता ने लगभग
आनन-फानन ही उसका विवाह कर दिया था । उसका ख्याल था कि अपना मनपसन्द
जीवन साथी मिल जाने के बाद उसका दिल बहल जायेगा और बाप की मौत का गम वह
धीरे-धीरे भूल जाएगी । वैसे भी रोहित सरिता की पसन्द का लड़का था और दोनों को एक-
दूसरे से बेहद मुहब्बत थी । रीता को रोहित नापसन्द तो नहीं था लेकिन अगर सरिता रोहित
पर बुरी तरह फिदा न होती और सरिता का दिल रखने का सवाल न होता तो शायद वह
सरिता को रोहित से शादी करने की इजाजत न देती । रोहित एक मामूली घर का लड़का
था और उसमें ऊं चे घरानों के खानदानी नौजवानों में सहज ही उपलब्ध सलीके और
शालीनता का सर्वदा अभाव था ।
शादी के बाद सरिता के जीवन में वांछित ठहराव आ गया था । वह रोहित के साथ
सुख से रहने लगी थी । बिजनेस की किसी जिम्मेदारी में रीता ने उसे पहले दिन से ही नहीं
डाला था । सरिता हर लिहाज से सुख से रह रही थी लेकिन फिर भी आठ महीने पहले उसे
फिर, पहले से ज्यादा भयंकर, हार्ट अटैक हो गया । उस हार्ट अटैक ने उसकी जान तो नहीं
ली लेकिन उस दिन के बाद से वह एकदम ही बिस्तर के हवाले होकर रह गई । डॉक्टर का
कथन था कि किसी भी प्रकार की शारीरिक हलचल और मानसिक तनाव उसके लिए
घातक सिद्ध हो सकता था । पूरे आठ महीने बाद पिछले सप्ताह से ही उसे घर में चलने
फिरने की इजाजत मिली थी ।
वातावरण में फिर ब्लेड की धार जैसी पैनी चुप्पी छा गई ।
“रीता” - एकाएक साहनी तनिक असुविधापूर्ण स्वर से बोला - “मैं तुम्हारे परिवार का
मित्र हूं और तुम्हारा हितचिन्तक हूं । मुझे संयोगवश ही कु छ ऐसी बातें मालूम हुई हैं जो
वास्तव में तुम्हें मालूम होनी चाहिये । उन बातों को तुम्हारी जानकारी में लाना मैंने अपना
फर्ज समझा और सच पूछो तो इसीलिए मैं यहां आया हूं ।”
“कै सी बातें ?” - रीता सशंक स्वर में बोली ।
“रोहित से सम्बन्धित बातें ।”
“हां, हां लेकिन कौन-सी ?”
“रीता, तुम तो जानती ही हो कि रोहित कोई खानदानी आदमी नहीं और अगर तुम
बुरा न मानो तो मैं यहां तक कहूंगा कि उसने दौलत के लालच में पड़कर सरिता को अपने
मोहजाल में फं साया था और उससे शादी की थी । रोहित जैसा आदमी...”
“साहनी साहब” - रीता बेसब्रेपन से बोली - “रोहित कै सा आदमी है, मैं आपसे
बेहतर जानती हूं । इसीलिए आप मतलब की बात पर आइये । प्लीज, कम टू दि प्वायन्ट
।”
“एकदम साफ-साफ शब्दों में सुनना चाहती हो ?”
“यही बेहतर होगा ।”
“तो सुनो । तुम्हारी जानकारी के लिए पिछले छः महीनों में रोहित लाखों रुपये जुए
में, शराबखोरी में और बाजारू औरतों के चक्कर में बरबाद कर चुका है । वह नियमित रूप
से फाइव स्टार नाइट क्लब में जाता है । वहां गुप्त रूप से तगड़ा जुआ होता है जिसमें वह
बड़ी-बड़ी रकमें हारकर आता है और फाइव स्टार नाइट क्लब के मालिक टोनी पारनेल के
माध्यम से रेस के घोड़ों पर लम्बे-लम्बे दांव लगाता है ।”
“असम्भव” - रीता अविश्वासपूर्ण स्वर से बोली - “ऐसा हो ही नहीं सकता । रोहित के
पास इतना रुपया है ही नहीं । और हो भी नहीं सकता ।”
“पहली बात सही है लेकिन दूसरी गलत है । यह ठीक है कि जुआ खेलने के लिए
रुपया उसके पास नहीं है लेकिन हो सकता है वह हासिल कर सकता है । उसने हासिल
किया है ।”
“कहां से ?”
“टोनी पारनेल से ।”
“मैं ऐसे आदमी को परले सिरे का बेवकू फ कहूंगी जो किसी को जुआ खेलने के लिए
लाखों रुपया उधार दे दे ।”
“टोनी बहुत घाघ आदमी है । बेवकू फ तो वह हरगिज भी नहीं है ।”
“तो फिर ?”
साहनी एक क्षण चुप रहा और फिर यूं कठिन स्वर से बोला जैसे वह बात जुबान पर
लाना उसे बहुत अरुचिकर कार्य लग रहा हो - “रोहित ने तुम्हारी बहन की तुम्हारी कम्पनी
में तीस प्रतिशत शेयरों का सर्टिफिके ट उसके हवाले करके वह रुपया हासिल किया है ।
उसने यह शेयर सर्टिफिके ट टोनी के पास गिरवी रखा है । ...ठहरो-ठहरो, पहले पूरी बात
सुन लो । टोनी ने शेयर सर्टिफिके ट गिरवी रखकर रोहित को रुपया देने के साथ-साथ उससे
यह भी लिखवा लिया है कि अगर व‍ह निश्च‍ित समय के अन्दर-अन्दर उसकी रकम वापिस
करके अपना सर्टिफिके ट उससे नहीं छु ड़ायेगा तो टोनी को बिना रोहित से दोबारा पूछे, या
किसी प्रकार की कानूनी अनुमति लिये शेयर सर्टिफिके ट किसी भी कीमत पर किसी को
भी बेच देने का पूर्ण अधिकार होगा । उन शेयरों को बेचकर अगर उसे रोहित को कर्जे में दी
हुई रकम से ज्यादा रकम हासिल होगी तो वह बाकी रकम रोहित को लौटा देगा । अगर
रकम कर्जे की रकम से कम हासिल होगी - जो कि सम्भव नहीं - तो वह नुकसान टोनी
स्वयं उठायेगा, रोहित उसकी भरपाई का जिम्मेदार नहीं होगा । तुम्हारी जानकारी के लिए
रोहित तब तक टोनी से लाखों रुपया उधार ले चुका था । उस रुपये को लौटाने की उसके
पास यही उम्मीद थी कि उसके पास और रुपया हो जिससे वह फिर जुआ खेले, जुए, में
जीते और फिर कर्जा चुकाये । और रुपया हासिल करने के लिए उसे मजबूरन टोनी के
पास शेयर सर्टिफिके ट गिरवी रखना पड़ा ।”
“नानसैंस” - रीता मुंह बिगाड़कर बोली - “रोहित वह शेयर सर्टिफिके ट भला किसी
के पास कै से गिरवी रख सकता है ? जो चीज उसकी है ही नहीं, उसे वह कै से कहीं गिरवी
रखकर रुपया हासिल कर सकता है ? वे शेयर सरिता के हैं और सरिता के सिवाय उन्हें
कोई दूसरा आदमी किसी भी रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकता । अगर टोनी नाम के किसी
आदमी ने उन्हें अपने पास गिरवी रखकर उसके बदले में रोहित को रुपया दिया है तो उसके
लिए उस शेयर सर्टिफिके ट की एक रद्दी कागज जितनी भी कीमत नहीं है । हम वे शेयर
कम्पनी के खाते में उसके नाम कभी ट्रांसफर नहीं करेंगे । अगर टोनी और रोहित में उन
शेयरों का ऐसा कोई सौदा हुआ है तो रोहित ने उसे ठगा है और टोनी ने अपनी रकम कु एं में
डाली है ।”
“माई डियर रीता नागपाल” - साहनी व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला - “टोनी पारनेल को
ठगने के लिए सौ रोहित भी काफी नहीं हैं । उसने एकदम खरा धन्धा किया है ।”
“नानसेंस ।”
“इसका मतलब यह है कि तुम्हारे अपने घर में क्या हो रहा है, तुम्हें मालूम नहीं । मुझे
चिराग तले अन्धेरा वाली मसल याद आ रही है ।”
“क्या मतलब ?”
“तुम्हारी बहन को पिछली बार हुए हार्ट अटैक के बाद से तुम्हारे माननीय जीजा जी
ने तुम्हारी बहन से अपने हक में पावर ऑफ अटार्नी लिखवा ली है जिसके अन्तर्गत उसे
तुम्हारी बहन की चल और अचल सम्पत्ति को स्वतन्त्र रूप से किसी भी ढंग से इस्तेमाल
करने का पूरा, कानूनी, अधिकार है । अब बताओ क्या इस कानूनी अधिकार के अन्तर्गत
रोहित सरिता के शेयर टोनी के पास गिरवी नहीं रख सकता या चाहे तो बेच नहीं सकता ?”
रीता को जैसे सांप सूंघ गया । कितनी ही देर वह हक्की-बक्की साहनी का मुंह
देखती रही ।
“सच कह रहे हो ?” - अन्त में वह बोली ।
“मैं भला तुमसे झूठ क्यों बोलूंगा ?” - साहनी बोला ।
“रोहित ने कितना रुपया लिया है उस आदमी से ?”
“बीस लाख रुपया ।”
“बीस लाख रुपया !” - हैरानी से रीता के नेत्र फट पड़े ।
“शायद इससे भी ज्यादा ।”
“और इतना रुपया उसने जुए में हारा है ?”
“जुए में । शराबखोरी में । औरतखोरी में और कई ऐयाशियों में लेकिन अधिकतर
जुए में ।”
“इतना रुपया कोई जुए में कै से हार सकता है ? जरूर उसे ठगा गया है । धोखा दिया
गया है ।”
“मुमकिन है । सरासर मुमकिन है । लेकिन शेयर उसने नकद रुपये के बदले में गिरवी
रखे हैं । इसलिए जुए में ठगी की दुहाई देकर वे बिना रकम के भुगतान के वापिस हासिल
नहीं किये जा सकते ।”
“साहनी साहब, मुझे आपकी बात का विश्वास नहीं । रोहित ओछा और गैर-जिम्मेदार
आदमी तो है लेकिन वह इतनी भयंकर गड़बड़ नहीं कर सकता ।”
“हाथ कं गन को आरसी क्या ? तुम घर जाकर रोहित से पूछ क्यों नहीं लेतीं ?”
“मैं जरूर पूछूंगी ।” - रीता दृढ स्वर से बोली ।
कु छ क्षण के लिए फिर चुप्पी छा गई ।
साहनी यूं चुपचाप बैठा रीता को देख रहा था जैसे वह उसकी असुविधा का भरपूर
आनन्द ले रहा हो ।
“साहनी साहब” - एकाएक रीता बोली - “आप मुझे सिर्फ यही बताने आये थे या
कोई और भी वजह है आपके यहां आने की ?”
“और भी वजह है ।” - साहनी सन्तुलित स्वर से बोला ।
“मेरा भी यही ख्याल था । वह भी कह चुकिये ।”
“तुम्हारी जानकारी के लिए पैरामाउण्ट कै मिकल्स के जो बाकी चालीस प्रतिशत
शेयर तुम्हारे परिवार से बाहर अन्य छोटे-मोटे सैकड़ों शेयर होल्डरों में बिखरे पड़े हैं, उनमें से
कोई पच्चीस प्रतिशत शेयर मैं खरीद चुका हूं ।”
“ओह, तो यह आप हैं । मुझे खबर तो लगी थी कि कोई पैरामाउण्ट कै मिकल्स के
शेयरों में भारी दिलचस्पी दिखा रहा है और उन्हें मुंह मांगे दामों पर आनन-फानन खरीदता
चला जा रहा है लेकिन मुझे यह मालूम नहीं था कि आप ही शेयर खरीद रहे थे ।”
“चलो, अब मालूम हो गया । अब यह भी सुन लो कि मैं आगे क्या करने वाला हूं ।
सरिता के जो तीस प्रतिशत शेयर अब टोनी पारनेल के पास पहुंच चुके हैं, उन्हें भी मैं टोनी
से खरीद लेने वाला हूं । रोहित में तो इतनी क्षमता है ही नहीं कि वह वे शेयर टोनी से
वापिस हासिल कर सके । टोनी ने रोहित को एक निश्चित समय दिया हुआ है । उतने समय
में अगर रोहित ने शेयर न छु ड़वाये तो वह शेयर किसी को भी बेच देने के लिए स्वतन्त्र होगा
।”
“वह निश्च‍ित समय कब तक का है ?”
“शायद तुम रोहित का कर्जा खुद चुकाने के बारे में सोच रही हो लेकिन अब यह भी
मुमकिन नहीं होगा । तुम्हारी जानकारी के लिए वह निश्चित समय आज रात के बारह बजे
तक है । आधी रात के बाद तारीख बदलते ही तुम या रोहित कर्जे की रकम वापिस करके
भी शेयर वापिस नहीं कर सकोगे । मुझे पूरा विश्वास है कि आज आधी रात तक बीस लाख
रुपये का इंतजाम कर पाना तुम्हारे लिए भी सम्भव नहीं होगा । मेरी टोनी से पहले ही बात
हो चुकी है । कल टोनी वे शेयर मुझे सिर्फ मुझे ही बेचेगा । फिर मेरे पास तुम्हारी कम्पनी के
पचपन प्रतिशत शेयर हो जायेंगे । फिर क्या तुम इस कम्पनी की मैनेजिंग डायरेक्टर बनी
रह पाओगी ?”
“ओह, तो आप मुझे यह बताने आये हैं कि आप मुझे इस पद से हटाकर खुद कम्पनी
का मैनेजिंग डायरेक्टर बनना चाहते हैं ।”
“नहीं । यह बताने नहीं आया । मैं तुम्हारी जगह नहीं लेना चाहता । मैं हरगिज नहीं
चाहता कि तुम इस कु र्सी से हटने का अपमान सहो ।”
“तो फिर ?”
“मैं तो चाहता हूं कि कोई ऐसा सिलसिला बन जाये कि तुम्हारे और मेरे स्टाक में कोई
फर्क ही न रहे ।”
“जो कहना चाहते हैं, साफ-साफ कहिये, मिस्टर साहनी ।”
“मैं अपनी पुरानी प्रार्थना फिर दोहराना चाहता हूं । मैं तुम्हारे सामने फिर शादी का
प्रस्ताव रखना चाहता हूं ।”
“ओहो, तो यह बात है । यानी कि आप परिवार का हित‍चिन्तक होने का तो स्वांग रच
रहे थे । वास्तव में तो आप मुझ पर दबाव डालकर मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखने के
लिए आए थे । आप मुझे इस कु र्सी से हटा देने की धमकी देकर मुझे अपने से शादी के लिए
तैयार करना चाहते हैं ?”
“मुझे गलत मत समझो, रीता” - साहनी याचनापूर्ण स्वर में बोला - “मैं तुमसे मुहब्बत
करता हूं, मैं तुम्हारी पूजा करता हूं । मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर अपना बनाना चाहता हूं
।”
“और इस काम के लिए आप कोई भी उ‍चित-अनुचित कदम उठाने से नहीं हिचकना
चाहते ।”
“ऐवरीथिंग इज फे यर इन लव एण्ड वार ।”
“अच्छा ! तो फिर कहीं आप ही ने रोहित को बरबादी की राह पर चलने के लिए तो
नहीं उकसाया ? कहीं आप ही ने तो रोहित को तबाह करने वाले हालात पैदा करके उसे
तबाही की चौखट पर नहीं ला खड़ा किया ?”
“मैंने ऐसा कु छ नहीं किया । मैंने तो उलटा बिगड़ी हुई स्थिति को अपने काबू में लेकर
तुम्हें और तुम्हारे परिवार को भारी आर्थिक हानि, बदनामी और रुसवाई से बचाने की
कोशिश की है । जरा सोचो, जो लाखों रुपया रोहित ने बरबाद किया है उसकी भरपाई क्या
मैं अपने पल्ले से नहीं कर रहा ? क्या टोनी पारनेल से शेयर सर्टिफिके ट वापिस हासिल
करने के लिए मुझे लाखों रुपये नहीं खर्च करने पड़ेंगे ? यह सब क्या मैं तुम्हारी कम्पनी का
कन्ट्रोल हासिल करने के लिए कर रहा हूं ?”
“नहीं । यह सब आप मेरा कन्ट्रोल हासिल करने के लिए कर रहे हैं । आप पहले मेरे
लिए एक खड्डा खोदेंगे, फिर मुझे उसके किनारे पर लाकर खड़ा करेंगे, फिर मुझे उसमें
गिरने से बचाने की कोशिश करेंगे और फिर इनाम के तौर पर मुझे हासिल करने की
कोशिश करेंगे ।”
“रीता, मेरी समझ में नहीं आता, तुम्हें मुझसे इतनी नफरत क्यों है ? आखिर मुझमें
खराबी क्या है ?”
“एक खराबी हो तो बताऊं ।”
“फिर भी । मैं भी तो सुनूं ।”
“जरूर सुनना चाहते हैं ?”
“हां ।”
“तो सुनिये । पहली खराबी यह है कि आप मुझे पसन्द नहीं । दूसरी खराबी यह है
कि आप मुझे पसन्द नहीं । तीसरी खराबी यह है आप मुझे पसन्द नहीं । चौथी, चालीसवीं,
सौवीं, हजारवीं खराबी यह है कि आप मुझे पसन्द नहीं ।”
एकाएक साहनी के चेहरे के सारे मीठे और मधुर भाव गायब हो गये । उसके होंठ
भिंच गये और चेहरा कानों तक लाल हो गया । अब उसके चेहरे पर आकर्षण नहीं, क्रू रता
और कु टिलता झलक रही थी ।
“तुम मेरा अपमान कर रही हो ।” - वह क्रोधित स्वर से बोला ।
“अपमान करने की कोशिश कर रही हूं ।” - रीता शांति से बोली - “लेकिन सफल
नहीं हो पा रही हूं । अगर मैं सफल हो पाई होती तो क्या आप अभी तक यहीं बैठे होते ।”
साहनी उछलकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया ।
“रीता” - वह कहर-भरे स्वर से बोला - “तुमने मेरी मुहब्बत का मजाक उड़ाया है,
मुझे जलील किया है । इसका मैं तुमसे वो बदला लूंगा कि तुम उम्र-भर याद रखोगी ।”
“क्या कीजियेगा ?”
“मैं तुम्हें तबाह करके रख दूंगा ।”
“अच्छा ! मुझे इस कु र्सी से हटाकर ? मैं सिर्फ इससे ही तबाह हो जाऊं गी ?”
“तुम देखती जाओ, मैं क्या करता हूं । मैं तुम्हारा जीना हराम कर दूंगा ।”
“अच्छा ! कै से ?”
साहनी ने कु छ कहने के लिए मुंह खोला और फिर जोर से होंठ भींच लिए । वह कु छ
क्षण खा जाने वाली निगाहों से रीता को घूरता रहा, फिर घूमा और पांव पटकता हुआ कमरे
से बाहर निकल गया ।
कितनी ही देर तक रीता बिना हिले-डुले चुपचाप कु र्सी पर बैठी रही । उसकी निगाह
शून्य में कहीं टिकी रही । अन्त में उसके शरीर में हरकत हुई । फिर उसने हाथ बढाकर
रिसीवर उठा लिया और बजर का बटन दबाया । दूसरी ओर से अपनी सैक्रे टरी की आवाज
आते ही वह बोली - “कमला, भविष्य में कभी साहनी साहब तशरीफ लायें तो उनको भीतर
आने से पहले मुझे खबर करना ।”
“यस मैडम ।” - सैक्रे टरी सकपकाये स्वर से बोली । रीता के स्वर की कठोरता उससे
छु पी नहीं रही थी ।
“और फाइव स्टार नाइट क्लब में फोन करके मेरी उसके मालिक टोनी पारनेल से
बात करवाओ ।”
“यस, मैडम ।”
रीता ने रिसीवर रख दिया ।
थोड़ी देर बाद धीरे से बजर बजा ।
रीता ने रिसीवर उठाकर कान से लगाया ।
“मैडम” - सैक्रे टरी खेदपूर्ण स्वर से बोली - “मिस्टर टोनी पारनेल इस समय क्लब में
नहीं हैं ।”
“कहां गये हैं ?”
“यह तो नहीं मालमू हो सका ।”
“लौटने के बारे में कोई खबर ?”
“नो मैडम । वे तीन-चार दिन से क्लब में नहीं आ रहे हैं । अभी कु छ क्षण पहले थोड़ी
देर के लिए आये थे और चले गये थे । फिर कब लौटेंगे, मालूम नहीं ।”
“उनके घर का पता मालूम करो ।”
“मैंने पूछा था, मैडम । मालूम हुआ है कि वे क्लब में ही रहते हैं ।”
“ओके । नैवर माइन्ड । ड्राइवर को कहो, गाड़ी निकाले ।”
“यस, मैडम ।”
रीता ने रिसीवर रख दिया ।
***
रीता शंकर रोड पर स्थित अपनी कोठी में पहुंची ।
वह एक विशाल कोठी थी । उसके दो विंग थे । बायें विंग में सरिता अपने पति के
साथ रहती थी और दायें विंग में रीता । अपने वाली साइड में रीता का एक विशाल बेडरूम
था, एक ड्राइंगरूम था और एक आफिसनुमा कमरा था । दोनों भागों के बीच में एक बड़ा
सिटिंग हॉल, डाईनिंगरूम और लाइब्रेरी थी । कोठी इतनी बड़ी थी कि रीता जब तक स्वयं
सरिता वाले भाग में न जाये या नौकर भेजकर न पुछवाये, उसे मालूम नहीं होता था कि
रोहित घर में था या नहीं या उस भाग में कौन मौजूद था ।
उस समय रोहित घर पर नहीं था ।
वह सरिता के बेडरूम में पहुंची ।
सरिता रीता से किसी भी सूरत में कम खूबसूरत नहीं थी लेकिन निरन्तर बिस्तर पर
पड़ी रहने के कारण चेहरे से यौवन की चमक और नौजवान उमंगों से उत्पन्न होने वाली
रौनक गायब हो गई थी । आंखों में अंजाम का भय समाया मालूम होता था । उस समय वह
बिस्तर पर तकिये के सहारे लेटी हुई एक उपन्यास पढ रह थी ।
“हल्लो, सरिता” - रीता उसके समीप पहुंची - “कै सी तबीयत है ?”
“बहुत अच्छी है, दीदी ।” - सरिता बोली ।
बड़ी बहन पर निगाह पड़ते ही उसके नेत्र चमक उठे थे और होंठों पर मुस्कराहट आ
गई थी ।
रीता उसकी बगल में पलंग पर बैठ गई ।
“दीदी” - सरिता उत्साहपूर्ण स्वर में बोली - “जानती हो आज डॉक्टर ने क्या कहा था
?”
“क्या कहा था ?” - रीता गहरी दिलचस्पी भरे स्वर से बोली ।
“डॉक्टर ने कहा था कि अब मैं घर से बाहर भी निकल सकती हूं । मैं ड्राइविंग के
लिए जा सकती हूं ।”
“अच्छा !”
“हां ।”
“दैट्स ए गुड न्यूज । आज गई थीं कहीं ?”
“आज तो नहीं गई । आज रोहित को एक जरूरी काम था । कल जाऊं गी ।”
“चलो, मैं घुमा लाऊं ?”
“नहीं, दीदी । तुम तो थक गई होगी । इतना तो काम करती हो ।”
“अरे नहीं, मैं ठीक हूं । चलो ।”
“उहूं । दरअसल, दीदी, आज मेरा मन नहीं है ।”
“साफ क्यों नहीं कहती हो कि रोहित के ही साथ जाना चाहती हो ।”
“ओह, दीदी !” - सरिता शरमाई ।
“ओके । ओके । रोहित है कहां ?”
“खबर नहीं ।”
रीता ने सोचा कि यह शेयरों के बारे में सरिता से ही कु छ सवाल करे लेकिन फौरन ही
उसने वह ख्याल अपने दिमाग से झटक दिया । वह नहीं चाहती थी कि रोहित की करतूत
की खबर सरिता को लगे । सरिता के बारे में डॉक्टर ने हर किसी को विशेष हिदायत दी हुई
थी कि सरिता से ऐसी कोई बात न की जाये जिससे उसके दिल को ठे स लगे, चोट पहुंचे या
मानसिक सन्ताप या उलझन हो । सरिता के लिए मामूली-सा मानसिक तनाव या दिल की
ठे स घातक सिद्ध हो सकती थी ।
“रोहित वापस आये तो कहना मुझसे मिले । मुझे एक बहुत जरूरी काम है उससे ।”
- वह बोली - “मैं अगर घर पर मौजूद न होऊं तो कहना मेरा इन्तजार करे ।”
“अच्छा ।”
“मैं चलती हूं ।” - रीता उठ खड़ी हुई ।
“बात क्या है, दीदी ?” - सरिता ने उत्सुक स्वर से पूछा ।
“कु छ नहीं ।”
“फिर भी ?”
“अरे, कहा न कु छ नहीं । यूं ही मिलना चाहती हूं । काफी दिनों से दिखाई जो नहीं
दिया वह ।”
सरिता ने कु छ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन फिर होंठ भींच लिए ।
“मैं चलती हूं ।”
सरिता ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
रीता उसके बेडरूम से बाहर निकल आई ।
वह अपने कमरे में पहुंची । उसने रेडियोग्राम पर अपने मन पसन्द रिकार्ड चढाये और
उसका स्विच ऑन कर दिया । लेकिन रिकार्ड सुनने में उसका मन नहीं लगा । रह-रहकर
साहनी की कही बातें उसके कानों में गूंज रही थीं ।
क्या साहनी सच कह रहा था ?
मन-ही-मन वह भगवान् से प्रार्थना कर रही थी कि पूछे जाने पर रोहित कह दे कि वह
सब झूठ था ।
जब तक रोहित से दो टूक बात न हो जाती तब तक यह सस्पैंस बना रहने वाला था ।
एकाएक उसने रेडियोग्राम का स्विच ऑफ कर दिया ।
उसे रोहित को तलाश करना चाहिए ।
उसने नई साड़ी पहनी, चेहरे के मेकअप की मरम्मत की और कोठी से बाहर निकल
आई । उसने गैरेज से अपनी चमकदार लाल रंग की खूबसूरत थन्डरबर्ड निकाली । अपनी
वह खूबसूरत विदेशी कार रीता तभी निकालती थी जब उसे ड्राइवर की सेवाओं की जरूरत
न हो ।
अगले एक घण्टे में उसने पांच-छः ऐसे स्थानों के चक्कर लगाये जहां रोहित के होने
की संभावना थी । लेकिन रोहित कहीं नहीं मिला ।
अन्त में वह यूथ क्लब पहुंची ।
रोहित वहां बहुत कम आता था लेकिन फिर भी शायद वह वहां आया हो ।
रोहित वहां नहीं आया था ।
वहां से अपने कोठी में भी फोन किया लेकिन रोहित वहां नहीं पहुंचा था ।
वह क्लब के मेनहॉल में पहुंची और कोने में बैठ गई । क्लब का दक्ष वेटर उसकी
जरूरत समझता था । वह बिना उसके आदेश के ही जिन और टानिक एक गिलास में ले
आया ।
रीता ने कृ तज्ञतापूर्ण नेत्रों से वेटर की ओर देखा और गिलास होंठों से लगा लिया ।
उसे कु छ राहत मिली ।
थोड़ी देर बाद उसके संके त पर वेटर उसे दूसरा गिलास दे गया ।
“हैलो, रीता !”
रीता ने सिर उठाया ।
सामने एक घुंघराले बालों वाला, लम्बा ऊं चा, खूबसूरत युवक खड़ा था । वह एक
टैरीसिल्क की स्याह काले रंग की लम्बे-लम्बे कालरों वाली कमीज पहने हुए था । कमीज
के सामने के चार बटन खुले थे और उनमें से उसकी घने बालों से आच्छादित उभरी छाती
दिखाई दे रही थी । उसकी काली कमीज के साथ एकदम सफे द रंग की टाइट बैल बाटम
पैण्ट उसे खूब जंच रही थी । उसके एक हाथ में विस्की का गिलास था और दूसरे में लक्की
स्ट्राइक का ताजा सुलगाया सिगरेट ।
“हैलो सुनील” - रीता मधुर स्वर से बोली - “हाऊ आर यू ।”
“फाइन” - सुनील उसके सामने एक कु र्सी पर बैठ गया - “तुम आज इस वक्त क्लब
में कै से आ गईं ? तुम अव्वल तो आती ही नहीं हो और आती हो तो दस-ग्यारह बजे के बाद
।”
“तुम भी यहां इतनी जल्दी कहां आते हो ?”
“अपना क्या है । हम तो रमते जोगी हैं । जहां बैठ गये, बैठ गये ।”
रीता मुस्कराई ।
“सिगरेट ?”
“यही दिखाओ ।”
रीता ने सुनील के हाथ से सिगरेट ले लिया । उसने उसके दो-तीन छोटे-छोटे कश
लगाये और सिगरेट वापिस सुनील को थमा दिया ।
“थैंक्स ।” - वह मुस्कराती हुई बोली ।
“एक बात कहूं ।” - सुनील बोला ।
“कहो ।”
“आज तुम्हारी मुस्कराहट में वो गर्मी और चमक नहीं जो मैंने हमेशा देखी है ।”
“ऐसी बात तो नहीं है ।”
“ऐसी ही बात है । आज तुम बहुत बुझी-बुझी-सी लग रही हो । ऐसी सूरत बनाकर
रखा करोगी तो वक्त से दस साल पहले बूढी लगने लगोगी । लगने क्या लगोगी, हो ही
जाओगी ।”
“सुनील” - रीता तनिक संकोचपूर्ण स्वर से बोली - “आज मन जरा परेशान है ।”
“क्या पी रही हो ?”
“जिन एण्ड टानिक ।”
“शुड आई आर्डर समथिंग स्ट्रोंग फार यू ?”
“ओह नो । नाट दैट इट इज टू अर्ली ।”
“क्या मैं परेशानी की वजह जान सकता हूं ?”
“कोई खास बात नहीं है, सुनील । यूं ही घरेलू बखेड़े हैं ।”
“घरेलू बखेड़े ? मैं समझ गया ।”
“तुम समझ गए ?” - रीता हैरानी से बोली ।
“बिल्कु ल समझ गया । मैं शरलाक होम्ज से कम नहीं हूं, मैडम ।”
“क्या समझ गये हो ?”
“मैं यह समझ गया हूं कि तुम जिस घरेलू बखेड़े का जिक्र कर रही हो, उसका नाम
रोहित है ।”
रीता बुरी तरह चौंकी । वह हैरानी से सुनील का मुंह देखने लगी ।
“मैंने ठीक कहा न, मैडम ?”
“एकदम गलत कहा ।”
“ओह !” - सुनील मायूस स्वर से बोला - “मेरी तो सारी जासूसी की टांग तोड़ दी
तुमने ।”
“मेरा मतलब है एकदम ठीक कहा तुमने ।”
“यह हुई न बात ।” - सुनील हर्षित स्वर से बोला ।
“लेकिन तुमने जाना कै से ?”
“ऐलीमैण्ट्री, माई डियर वाटसन” - सुनील शरलाक होम्ज के ही अन्दाज से बोला -
“तुम्हारे घर में दो तो लोग हैं । उनमें से रीता बेचारी कोई बखेड़ा खड़ा करने की स्थिति में है
कहां । बाकी रह गया रोहित । मैंने सोचा कोई घरेलू बखेड़ा है तो उसी की वजह से होगा ।”
रीता चुप रही ।
“और फिर” - इस बार सुनील अपेक्षाकृ त गम्भीर स्वर से बोला - “आजकल रोहित
जो हरकतें कर रहा है उनकी वजह से बखेड़ा ही खड़ा हो सकता है और क्या ?”
“तुम्हारा इशारा उसकी किन हरकतों की ओर है ?” - रीता ने धड़कते दिल से पूछा ।
“देखो, रीता । आज तो रोहित का अपने आप ही जिक्र आ गया है, वर्ना इस सन्दर्भ
में मैं खुद भी तुमसे बात करने वाला था । नागपाल साहब से मेरी तुमसे पुरानी वाकफियत
थी । मैं उनकी बहुत इज्जत करता था । वे भी मुझे अपनी औलाद की तरह मानते थे ।
इसीलिए कोई ऐसी बात जो आगे चलकर नागपाल साहब के परिवार के लिए जिल्लत और
रुसवाई का बायस बन सकती हो, वह मैं छु पा कर नहीं रख सकता ।”
“सुनील, तुम जो कहना चाहते हो, बेहिचक कहो और साफ-साफ कहो ।”
“तो सुनो । तुम्हारे जीजा के लच्छन अच्छे नहीं हैं । मैंने कितनी बार उसे बड़ी बाजारू
किस्म की औरतों के साथ घूमते देखा है । आजकल वह हर क्षण फाइव स्टार नाइट क्लब
की कै बरे डांसर नीलोफर के साथ दिखाई देता है । मुझे विश्वस्त सूत्रों से पता लगा है कि
फाइव स्टार नाइट क्लब में गुप्त रूप से बहुत ऊं चे पैमाने पर जुआ होता है और नीलोफर
का काम ही यही है कि वह पैसे वाले लोगों को जुए में ज्यादा-से-ज्यादा दिलचस्पी लेने के
लिए प्रेरित करे । रीता, मेरी बात लिख लो, वह छोकरी और फाइव स्टार नाइट क्लब रोहित
को तबाह कर देगी ।”
कर क्या देगी - रीता ने मन-ही-मन सोचा - कर ही चुकी थी ।
“आजकल यहां भी रोहित के बहुत चर्चे हैं” - सुनील फिर बोला - “वह लड़का बहुत
गलत रास्ते पर चल रहा है । इससे तुम्हारी तो बदनामी होगी ही, सरिता को मालूम होगा तो
उसके दिल को भी भरी ठे स पहुंचेगी । रोहित की ऐसी हरकतों की जानकारी सरिता को
लगना उसके लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है । तुम्हारी बहन तो उस लड़के की
दीवानी है । वह देवता की तरह उसकी पूजा करती है । जब उसे अपने देवता की इन
हरकतों की खबर लगेगी तो उसका कलेजा चाक-चाक हो जायेगा । वह इतना भारी सदमा
बर्दाश्त नहीं कर सके गी । नतीजा क्या होगा, तुम जानती हो ।”
“नहीं-नहीं ।” - रीता कम्प‍ित स्वर से बोली ।
“रीता, उसे समझाओ । ऐसा कब तक चलेगा । उसे यह रास्ता छोड़ना ही पड़ेगा ।”
“मैं उससे बात करूं गी ।”
“और मेरी किसी बात का बुरा मत मानना ।”
“नहीं, नहीं, बुरा मानने की क्या बात है । तुमने तो रोहित की इन हरकतों की ओर
मेरा ध्यान आकर्षित करवा कर मुझ पर अहसान किया है ।”
“वैसे तुम्हें इस बारे में पहले से कु छ खबर थी ?”
“नीलोफर नाम की कै बरे डांसर के साथ रोहित के सम्बन्ध के बारे में ?”
“हां ।”
“नहीं । कतई नहीं ।”
“तो तुम रोहित की किसी और हरकत की वजह से परेशान हो ?”
“हां ।”
“क्या बात है ?”
पहले तो रीता का जी चाहा कि वह सारी दास्तान सुनील को कह सुनाये और फिर
उसी से राय मांगे कि उसे क्या करना चाहिए लेकिन फिर उसने इरादा बदल दिया । जब
तक उसकी स्वयं रोहित से दो टूक बात न हो जाये उसका इस विषय में चुप ही रहना
श्रेयस्कर था ।
“कोई खास बात नहीं ।” - वह बोली ।
“बताना नहीं चाहतीं” - सुनील सहज स्वर से बोला - “नैवर माइण्ड ।”
सुनील ने अपना विस्की का गिलास खाली किया, एक नया सिगरेट सुलगाया ।
तभी उसे मुख्य द्वार से भीतर दाखिल होता रमाकांत दिखाई दिया ।
“मैं चला” - सुनील एकाएक उठ खड़ा हुआ - “मुझे जरा रमाकांत से काम है ।”
रीता ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया और फिर एकाएक बोली - “सुनो, यह
फाइव स्टार नाइट क्लब है कहां ?”
“महात्मा गांधी रोड पर ।”
“कै सी है ?”
“बहुत तड़क-भड़कदार । ब‍हुत फिल्मी । क्यों ?”
“कु छ नहीं । यूं ही पूछा था ।”
“ओके ।”
सुनील वहां से चला गया ।
रीता ने भी अपना गिलास खाली किया और उठ खड़ी हुई । उसने बिल मंगाकर
उसपर अपने दस्तखत घसीटे और वहां से बाहर निकल गई ।
वह इमारत से बाहर निकलकर अपनी थन्डरबर्ड में आ सवार हुई ।
उसने अपनी कलाई पर बंधी नन्ही-सी घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
आठ बज चुके थे ।
उसने कार महात्मा गांधी रोड की ओर दौड़ा दी ।
***
सुनील ने फाइव स्टार नाइट क्लब को एकदम सही बयान किया था । उसकी तड़क-
भड़क और शानोशौकत एकदम फिल्मी थी । क्लब एक दो मंजिली इमारत में थी । नीचे
की लगभग सारी ही मंजिल एक बहुत बड़ा हॉल थी जिसकी एक दीवार के साथ हॉल की
पूरी लम्बाई में फै ला हुआ बार था । बार की विपरीत दिशा की दीवार के साथ डांस फ्लोर
था और बैण्ड स्टैण्ड था । बाकी सारे हॉल में मेजें बिछी हुई थीं जो उस समय आधी खाली
थीं । डांस फ्लोर भी उस समय खाली पड़ा था ।
रीता झिझकती हुई एक मेज पर जा बैठी । उसे भय था कि वहां उसे कोई पहचान न
ले । एक इज्जतदार कम्पनी की इज्जतदार मैनेजिंग डायरेक्टर के अके ले आने लायक वह
जगह नहीं थी ।
एक वेटर तुरन्त उसके पास पहुंचा ।
“कोका कोला ।” - रीता बोली ।
“एक ?” - वेटर इस आशा में बोला जैसे रीता कहेगी नहीं एक से ज्यादा, उसका
साथी या उसके साथी भी आने वाले थे ।
“हां ।”
वेटर चला गया ।
थोड़ी देर बाद वह एक विस्की गिलास में कोका कोला लेकर लौटा ।
“सुनो !” - वह जाने लगा तो रीता बोली ।
वेटर ठिठका ।
“यस, मैडम !” - वह आदरपूर्ण स्वर से बोला ।
“इस वक्त नीलोफर क्लब में है ?”
“जी हां । हैं ।”
“मैं उससे मिलना चाहती हूं ।”
“मैं आपका सन्देश नीलोफर मेम साहब तक पहुंचा देता हूं ।”
“थैंक्यू ।”
“नाम क्या बताऊं , मैडम ?”
“रीता ।”
वेटर चला गया ।
रीता ने कोका कोला के गिलास की ओर हाथ भी नहीं बढाया ।
थोड़ी देर बाद एक जगमग-जगमग करती हुई लम्बी ऊं ची कद्दावर औरत वहां पहुंची
। वह एक जरी के काम वाला काली शनील का टखनों तक लम्बा गाउन पहने थी जिसके
एक ओर इतनी लम्बी झिरी थी कि कू ल्हे तक उसकी टांग दिखाई दे रही थी । उसके बाल
कटे हुए थे और खूबसूरत चेहरे पर इतना भारी मेकअप था कि उम्र का अन्दाज लगा पाना
असम्भव था । अपने दायें हाथ में वह एक हैंड बैग झुला रही थी और उसके जबड़े यूं चल
रहे थे जैसे वह निरन्तर कु छ चबा रही थी ।
“हल्लो !” - वह बड़े व्यावसायिक ढंग से मुस्कराती हुई बोली - “आई एम नीलोफर
।”
रीता ने उठकर उसका स्वागत किया और उससे बैठने की प्रार्थना की ।
नीलोफर बैठ गई ।
रीता ने अनुभव किया कि उसकी सांसों से विस्की और चाकलेट की मिली-जुली बू
आ रही थी ।
“आप मुझसे मिलना चाहती थीं ?”
“जी हां । अगर आप...”
“कमाल है । इस क्लब में आने वाले मर्द तो हमेशा ही ये बात कहते हैं लेकिन यह
पहला मौका है कि किसी औरत ने यहां मुझसे मिलने की इच्छा व्यक्त की है । डार्लिंग, यू
आर नाट ए लेस्बियन, आई होप ।”
“वाज इज दैट ?”
“ओह नैवर माइन्ड” - नीलोफर जोर से हंसती हुई बोली - “वन हू आस्कस वाट इज
दैट कै न नॉट बी ए लैस्ब‍ियन ।”
“दरअसल...”
“मर्द मुझसे इसलिए मिलना चाहते हैं” - नीलोफर उसकी बात काटकर बोली -
“क्योंकि उनको मुझसे कु छ हासिल होता है लेकिन मुझसे कु छ हासिल करने के लिए पहले
मुझे कु छ हासिल होना जरूरी होता है ।”
“अगर आपका इशारा आपके वक्त की किसी माली कीमत की ओर है तो मैं उसे
खुशी से अदा करने के लिए तैयार हूं ।”
“ओह नो” - वह बोली - “तुमसे नहीं लूंगी । क्योंकि शायद तुम मेरी हमपेशा ही होवो
।”
रीता खून का घूंट पीकर रह गई । पता नहीं वह औरत नशे में थी या ऐसी बकवास
करने की उसकी आदत थी ।
“और फिर तुम्हें बदले में मुझसे कु छ हासिल भी तो नहीं होगा ।”
“शायद हो ।”
“नहीं । फिर भी तुमसे नहीं लूंगी ।”
“वैसे अक्सर आप क्या लेती हैं ?”
“किसी मेहमान की टेबल पर जाकर उससे बात भी करने के लिए कम-से-कम एक
सौ का पत्ता । इससे आगे मेहमान की जरूरत पर निर्भर करता है ।”
रीता ने अपनी जेब से एक सौ का नोट निकालकर उसकी ओर बढाया ।
“ओह, नो !” - नीलोफर बोली ।
“इट्स आल राइट । टेक इट ।”
“नो । तुमसे नहीं ।”
रीता ने जबरदस्ती सौ का नोट उसकी मुट्ठी में ठूं स दिया ।
नीलोफर ने ऐतराज नहीं किया । कु छ क्षण वह नोट को उलटती-पलटती रही । फिर
उसने उसकी गोली-सी बनाकर उसे अपने उरोजों के बीच में खोंस लिया ।
“आप क्या पियेंगी ?”
“मैं मंगाती हूं ।”
नीलोफर ने चुटकी बजाई ।
एक वेटर तुरन्त उसकी कोहनी के पास प्रकट हुआ ।
“स्वीट हार्ट” - वह वेटर से बोली - “वही ।”
वेटर सिर नवाकर चला गया ।
“हरामजादे” - नीलोफर नफरत भरे स्वर से बोली - “पीछे आकर इसलिए खड़े होते
हैं ताकि ये औरतों के उभारों का नजारा कर सकें ।”
रीता चुप रही ।
“तुम क्यों मिलना चाहती थीं मुझसे ?”
“दरअसल मैं आपसे कु छ जानकारी हासिल करना चाहती हूं ।”
“जानकारी ! कै सी जानकारी ?”
“इस क्लब के मालिक टोनी पारनेल के बारे में ।”
तभी वेटर उसे एक लम्बे पतले गिलासे में कु छ सर्व कर गया । रीता ने देखा गिलास
में मौजूद तरल पदार्थ की रंगत से यह जानना कठिन था कि वह क्या था लेकिन रीता
नैतिक रूप से आश्वस्त थी कि वह थी कोई नशे की ही चीज ।
नीलोफर ने गिलास में से एक बड़ा-सा घूंट भरा, बड़े तृप्तिपूर्ण ढंग से होंठ चटखाये
और फिर बोली - “क्या जानना चाहती हो तुम टोनी के बारे में ?”
“जैसे” - रीता बोली - “कै सा आदमी है वह ? कै सा...”
“सख्त हरामजादा आदमी है” - नीलोफर नागिन की तरह फुं फकारी - “एक नम्बर
का कु त्ते का पिल्ला है । पक्का दगाबाज । बेईमान । हरजाई । रंडी का जना ।”
रीता उसके मुंह से एक ही सांस में इतनी सख्त गालियां सुनकर सन्नाटे में आ गई !
“अच्छा !” - वह इतना ही कह पाई ।
“साला अपने सगे बाप को धोखा देने से बाज नहीं आने वाला” - नीलोफर नफरत
भरे स्वर से बोली - “अपनी सगी मां की आंखों से सुरमा चुराकर बेच आये ।”
“अच्छा !”
“मेरी ओर देखो । क्या मैं बूढी होने लगी हूं ? क्या मेरे जिस्म का कसाव ढीला पड़ने
लगा है ? क्या मेरे चेहरे पर झुर्रियां पड़ने लगी हैं ?”
“नहीं तो । ऐसी तो कोई बात नहीं ।”
“और वह कमीना कहता है कि मैं खतम हो चुकी हूं । कहता है अब मेरी आंखों में
वह चमक नहीं रही जो मर्द का कलेजा छलनी करके रख देती है, अब मेरे होंठों की
मुस्कराहट में वह जादू नहीं रहा जो मर्द को दीवाना बना देता है । अब मेरे जिस्म में वह
तड़प नहीं रही जिसे मर्द एक बाद देखता है तो हजार बार देखना चाहता है । अब मैं मर्द
की चेतना पर शराब के नशे की तरह तारी नहीं हो सकती । बेईमान । झूठा ।”
उसने अपना गिलास उठाया और एक ही सांस में खाली कर दिया ।
“छ: साल से” - वह फिर बोली - “इस क्लब की स्टेज पर मैं अपने नंगे जिस्म की
नुमायश कर रही हूं और अपनी अदाओं से लोगों को यहां बार-बार आने के लिए मजबूर
कर रही हूं । छ: साल से मैं यहां गैरकानूनी तौर पर चलने वाले जुआघर में आने वाले बकरों
को अपने मोहजाल में फं साकर हलाल होने के लिए प्रेरित कर रही हूं । छ: साल से मैं टोनी
को जेबों को नोटों से भरने में सबसे बड़ी वजह साबित हो रही हूं और अब वह हरामजादा,
यह बहाना बनाकर, कि मेरी जवानी ढलती जा रही है, मुझे दूध में से मक्खी की तरह
निकाल फें कना चाहता है । तुम ही बताओ क्या यह इन्साफ है ?”
“बिल्कु ल भी नहीं ।”
“यही नहीं, अभी मेरे से खुलकर बात भी नहीं हुई और उस कमीने आदमी ने मेरी
जगह लेने के लिए पहले ही एक छोकरी छांट ली है ।”
“अच्छा !”
“वह उस छोकरी के साथ नेपियन हिल के अपने बंगले में पड़ा है और शायद वहां
उसका उदघाटन समारोह कर रहा है ।”
“आपको कै से मालूम ?”
“यह कि वह नेपियन हिल वाले बंगले में है ?”
“हां ।”
“वह जब भी कोई नई चिड़िया फासंता है उसे नेपियन हिल वाले बंगले में ही लेकर
जाता है । इन कामों के लिए वह उसकी पहले से ही तयशुदा जगह है । शुरू में मुझे भी
वहीं लेकर गया था ।”
“नेपियन हिल पर कहां है उसका बंगला ?”
“एकदम ऊपर पानी की टंकी के पास । नौ नम्बर ।”
रीता ने एक कोरे कागज पर वह पता लिखा और कागज सावधानी से अपने बैग में
रख लिया ।
“यही नहीं कि वह मुझे यहां से निकाल फें कना चाहता है बल्कि वह रुपये-पैसे के
मामले में भी मुझसे बेईमानी करना चाहता है ।” - नीलोफर कह रही थी ।
“अच्छा !”
“हां । यहां आने वाले लोगों की जेबें ढीली करवाने में मेरा बहुत बड़ा हाथ होता है । मैं
उन्हें इस बात के लिए प्रेरित करती हूं कि वे दस रुपये की जगह पचास रुपये खर्च करें ।
इस प्रकार से उस फालतू कमाई पर एक हद के बाद क्लब से मेरा कमीशन बंधा हुआ है ।
जब तक छोटी-मोटी रकमों का सवाल रहा, टोनी मुझे कमीशन देता रहा लेकिन जब मैंने
एक हद से ज्यादा बड़ा बकरा हलाल किया तो इसके मन में बेईमानी आ गई । मेरी वजह
से एक छोकरे ने यहां पर जुए में लाखों रुपये हारे । अगर टोनी मुझे कम-से-कम भी
कमीशन दे तो भी मुझे दस-पन्द्रह हजार रुपये मिलने चाहिए लेकिन वह मुझे एक धेला
नहीं देना चाहता ।”
“यह बड़ा बकरा कौना था ?” - रीता ने सतर्क स्वर से पूछा ।
“था रोहित नाम का एक छोकरा । बेचारे ने कोई शेयर सर्टिफिके ट गिरवी रखकर
टोनी से रुपया हासिल किया था, सब हार गया । आज वह शेयर सर्टिफिके ट वापिस
हासिल करने का आखिरी दिन है । लेकिन वह उसे वापिस मिलेगी थोड़े ही । बीस लाख
रुपया बेचारा कहां से लाएगा ?”
“फिर तो टोनी नेपियन हिल से यहां वापिस आने वाला होगा ?”
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह कि मान लो रोहित किसी प्रकार बीस लाख रुपये का इन्तजाम कर ले
तो...”
“मैं समझ गई तुम्हारी बात । आज शाम को टोनी थोड़ी देर के लिए यहां आया था
और तब शायद रोहित वाला शेयर सर्टिफिके ट ही लेने आया था । वह फौरन ही यहां से
चला गया था । अगर रोहित रुपये का जुगाड़ कर लेगा तो उसे टोनी के पास नेपियन हिल
वाले बंगले में ही जाना पड़ेगा । टोनी वहां अपनी नई छोकरी के साथ रंगरलियां मनाने के
लिए गया हुआ है । वह उस छोकरी के पहलू से दूर आधी रात तक यहां क्लब में बैठकर
भला रोहित का इन्तजार क्यों करेगा ?”
“एक बात और बताओ । क्या तुम किसी के कहने पर रोहित को जुआ खेलने के
लिए उकसा रही थीं ?”
“मैं तो हर किसी को जुआ खेलने के लिए उकसाती हूं । इस में किसी के कहने की
क्या बात है ?”
“मैं रोहित के बारे में पूछ रही हूं । विशेष रूप से । क्या रोहित को जुए में फं साने के
लिए किसी ने तुम्हें विशेष रूप से कहा था ?”
नीलोफर हिचकिचाई ।
“देखो” - रीता व्यग्र स्वर से बोली - “मैं ये सवाल खामखाह नहीं पूछा रही तुमसे ।
शायद इन बातों से तुम्हें भी कोई फायदा पहुंचे ।”
“मुझे ?”
“हां ।”
“क्या फायदा ?”
“रुपये-पैसे का ।”
नीलोफर की आंखों में चमक आ गई ।
“जवाब दो ।” - रीना ने पूछा ।
“हां” - नीलोफर बोली - “रोहित के बारे में किसी ने मुझे विशेष रूप से निर्देश दिया
था और मुझे इस काम को अंजाम देने के लिए बाकायदा रिश्वत दी थी ।”
“टोनी के अलावा किसी आदमी ने ?”
“हां ।”
“किसने ?”
“मैं नाम नहीं लूंगी ।”
“क्या हर्ज है ?”
“नहीं । मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहती ।”
“अच्छा, नाम मैं लेती हूं । तुम सिर्फ हां या न में जवाब दे देना कि मैंने उसी आदमी
का नाम लिया है या नहीं ।”
नीलोफर ने हामी भर दी ।
“के वल कृ ष्ण साहनी ?”
नीलोफर चौंकी । उसने तुरन्त कु छ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन फिर होंठ भींच
लिये ।
“नहीं” - वह दबे स्वर से बोली - “मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहती ।”
“देखो” - रीता उसे समझाने के अन्दाज से बोली - “साहनी का नाम सुनकर तुम्हारा
चौंकना ही साफ जाहिर कर रहा है कि वही वह आदमी है जिसने तुम्हें रोहित को जुआ
खेलने को उकसाने के लिए रिश्वत दी थी । मेरे सामने यह बात कबूल कर लेने से तुम्हें कोई
फर्क नहीं पड़ता । इस क्लब में और भी बहुत आदमी होंगे जो इस हकीकत से वाकिफ
होंगे । साहनी क्या हर किसी का मुंह बन्द कर सकता है ? देखो, तुम मेरी मदद करो ।
इससे तुम्हें बहुत फायदा पहुंचेगा ?”
“क्या फायदा पहुंचेगा ?”
“रुपये का । मैंने पहले ही कहा है ।”
“कितने रुपये का ?”
रीता कु छ क्षण चुप रही और फिर धीमे किन्तु स्पष्ट स्वर से बोली - “दस हजार रुपये
का ।”
नीलोफर के नेत्र फै ल गए ।
“दस हजार रुपये का !” - उसके मुंह से निकला ।
“हां । तुम कह रही थी न कि टोनी ने कमीशन के मामले में तुम्हें दस-पन्द्रह हजार
रुपये का धोखा दिया है । इस प्रकार तुम्हारी वह भरपाई मेरे द्वारा हो जायेगी ।”
“तुम मजाक तो नहीं कर रही हो ?”
“मैं एकदम गम्भीर हूं ।”
“किसी को यूं दस हजार रुपया दे देने की तुम्हारी हैसियत है ?”
“है ।”
“इतना रुपया तुम मुझे सिर्फ उस आदमी का नाम ले देने के लिए दोगी जिससे मुझे
रिश्वत देकर रोहित को जुए के लिए उकसाने को कहा था ।”
“नहीं, तुम्हें इससे ज्यादा कु छ करना होगा ।”
“ओह ! क्या करना होगा ?”
“पहले तो यह कबूल करो कि वह शख्स साहनी ही था ।”
“ओके । कर लिया कबूल ।”
“यानी कि वह शख्स साहनी ही था ।”
“अब क्या लिखकर दूं ?”
“हां । लिखकर ही देना होगा । तुम्हें यह बात लिखकर देनी होगी कि साहनी ने तुम्हें
रिश्वत देकर रोहित को जुआ खेलने को उकसाने के लिए कहा था ।”
“और ?”
“तुम्हारा रोहित से कै सा रिश्ता है ?”
“क्या मतलब ?”
“तुम्हें उससे मुहब्बत है ?”
“मुझे उससे या उसे मुझसे ?”
“एक ही बात है ।”
“नादान हो । एक ही बात नहीं है । मुझे तो हर पैसे वाले आदमी से मुहब्बत होती है ।
पैसा खतम, मुहब्बत खतम । हां, वह मुझ पर मरता है ।”
“तुम्हें उससे कोई लगाव नहीं ?”
“नहीं ।”
“तुम्हें मालूम है रोहित विवाहित है ?”
“नहीं तो । वह है ?”
“हां ।”
“तुम्हें कै से मालूम ?”
“बस है मालूम । तुम मतलब की बात सुनो ।”
“अच्छा ।”
“मैं यह चाहती हूं कि तुम्हारे और रोहित के रिश्ते से यह जाहिर हो कि तुम दोनों ही
एक दूसरे पर बुरी तरह फिदा हो, तुम रोहित के बच्चे की मां बनने वाली हो और तुम बहुत
जल्दी एक दूसरे से शादी करने वाले हो ।”
“यह बात मुझे लिखकर देनी होगी ?”
“हां ।”
“यह तो झूठ होगा, गलतबयानी होगी ।”
“क्यों गलतबयानी होगी ? तुमने खुद ही तो कहा है कि रोहित तुमसे मुहब्बत करता है
।”
“लेकिन वह बच्चे वाली बात...”
“चलो, उसे छोड़ दो । तुम बाकी कु छ लिखकर दे सकती हो ?”
“लेकिन बात जंचेगी थोड़े ही । जब वह पहले से ही विवाहित है तो वह मुझसे शादी
कै से कर सकता है ?”
“उसकी बीवी बेहद बीमार है । किसी भी क्षण भगवान् को प्यारी हो सकती है ।
इसलिए वह तुम्हारी और उसकी शादी में रुकावट नहीं बन सकती ।”
“ओह !”
“तो फिर जवाब दो । क्या तुम साहनी के तुम्हें उकसाने वाली बात और रोहित से
अपने अवैध सम्बन्धों वाली बात मुझे लिखकर देने को तैयार हो ?”
नीलोफर हिचकिचाई ।
“सोच लो ।” - रीता बोली - “बदले में जो दस हजार रुपये मैं तुम्हें देने वाली हूं, वे
तुम्हारी आने वाली जिन्दगी में बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं । तुम अभी भी लाख
खूबसूरत सही लेकिन अगर टोनी ने तुम्हें अधेड़ावस्था की ओर अग्रसर होती हुई औरत
कहकर यहां से निकाल दिया तो इस धन्धे से सम्बन्धित और लोग भी तुम्हारे बारे में कोई
इससे बेहतर राय नहीं बनाने वाले । तुम अपना कै बरे डांसर का धन्धा तो एक तरह से
खतम ही समझो ।”
“लेकिन जो टोनी कहता है वह झूठ है । तुम खुद देखो, क्या मैं...”
“मैं कब कहती हूं कि जो टोनी कहता है, वह सच है । मैं तो तुम्हें यह बता रही हूं जो
टोनी को कही बातों के सन्दर्भ में तुम्हारे धन्धे के लोग तुम्हारे बारे में सोचेंगे । क्या इस धन्धे
के दूसरे लोग, जो तुम्हें रख सकते हैं, इस बात को नजरअन्दाज कर देंगे कि टोनी ने तुम्हें
अपनी क्लब से क्यों निकाला ?”
नीलोफर बेहद चुप हो गई । उसके चेहरे से चिन्ता के भाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित
होने लगे थे ।
रीता बड़ी धैर्यपूर्ण मुद्रा बनाये चुपचाप उसके सामने बैठी रही ।
“मैं अभी कोई जवाब नहीं दे सकती” - अन्त में नीलोफर कठिन स्वर में बोली - “मुझे
सोचने के लिए थोड़ा वक्त दो ।”
“कितना वक्त ?”
“मैं तुम्हें कल अपना जवाब दूंगी ।”
“ओके ।” - रीता ने अपने बैग से अपना एक विजिटिंग कार्ड निकालकर उसके
सामने रख दिया - “यह मेरा कार्ड रख लो । इस पर मेरा घर और आफिस दोनों जगहों का
फोन नम्बर लिखा हुआ है । अगर जवाब हां में हो तो मुझे फोन कर देना । मैं रुपया लेकर
आ जाऊं गी । अगर जवाब न में हो तो फोन करने की तकलीफ मत करना ।”
नीलोफर ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया । उसने कार्ड उठा लिया और उसे
पढने लगी ।
“मैनेजिंग डायरेक्टर” - एकाएक वह हैरानी-भरे स्वर से बोली - “पैरामाउण्ट
कै मिकल्स । दैट यू ।”
“हां ।” - रीता सहज स्वर से बोली ।
“आई एम सॉरी । मैंने आपकी शान में गुस्ताखी की । मुझे नहीं मालूम था कि...”
“नैवर माइण्ड ।”
रीता ने वेटर को बिल लाने का संके त किया ।
नीलोफर ने अपना हैंड बैग खोलकर चाकलेट का एक पैके ट निकाला । पैके ट में
चाकलेट का के वल एक ही टुकड़ा बाकी था जो उसने अपने मुंह में रख लिया । उसने
खाली पैके ट मेज के नीचे फें क दिया ।
“तुम चाकलेट बहुत खाती हो ।” - रीता सहज स्वर में बोली ।
“हां” - नीलोफर बोली - “आदत हो गई है । इस धन्धे में आने से पहले मैं एक
चाकलेट बनाने वाली फै क्ट्री में काम करती थी । वहां चाकलेट मुफ्त में मिलती थी इसलिए
बेतहाशा खाती थी । अब आदत पड़ गई है ।”
“ओह !”
वेटर बिल लाया ।
रीता ने बिल चुका दिया ।
“मैं चलती हूं” - वह बोली - “तुम्हारा प्रोग्राम तो रात भर चलता होगा ?”
“हां ! हमेशा चलता है । आज नहीं चलेगा ।”
“क्यों ?”
“जैसा प्रोग्राम यहां मुझे करना होता है उसके काबिल आज मेरा मूड नहीं रहा । आज
तो मैं यहां से सीधी अपने फ्लैट पर जा रही हूं ।”
“कहीं रहती हो तुम ?”
“अपना पता मैं किसी को नहीं बताती ।”
“क्यों ?”
“क्लब में आने वाले लोग मेरे फ्लैट पर मुझे तंग करने पहुंच जाते हैं ।”
“लेकिन मैं तो तुम्हें तंग करने नहीं पहुंचने वाली ।”
“पते का आपने क्या करना है । मैं कल आपसे फोन पर बात करूं गी ।”
“ओके ।”
रीता वहां से विदा हो गई ।
***
रीता अपनी कोठी पर पहुंची ।
रोहित ड्राइंग रूम में बैठा सिगरेट के कश लगा रहा था । रीता को देखकर उसने
सिगरेट ऐश ट्रे में झोंक दिया और उठकर खड़ा हो गया ।
“बैठो ।” - रीता बोली ।
रोहित बैठ गया ।
रीता उसके सामने बैठ गई ।
“सरिता कहां है ?”
“बेडरूम में है । हमेशा ही वहीं होती है ।”
“मैंने इसलिए पूछा था क्योंकि उसने मुझे बताया था कि डॉक्टर ने उसे चलने-फिरने
की इजाजत दे दी है ।”
“वह बेडरूम में ही है । आपने मुझे याद फरमाया था ?”
“हां ।” - रीता असुविधापूर्ण स्वर में बोली । रोहित उसके साथ जरूरत से ज्यादा नम्र
स्वर में बोलता था और जरूरत से ज्यादा अदब से पेश आता था । उसकी यह आदत उसे
सरासर बनावटी और असुविधाजनक लगती थी ।
कु छ क्षण चुप्पी रही । वह फै सला नहीं कर पा रही थी कि बात दो टूक करना
मुनासिब होगा या उसे रोहित के साथ थोड़ी चतुराई बरतनी चाहिए ।
“रोहित” - अन्त में वह बड़ी सावधानी से शब्द चयन करती हुई बोली - “कै सा चल
रहा है ?”
“सब ठीक चल रहा है, जी । पहले सरिता के बारे में चिंता लगी रहती थी, अब तो
भगवान् की कृ पा से उसकी हालत में भी सुधार हो रहा है ।”
“तुम सरिता से बहुत मुहब्बत करते हो ?”
“यह भी कोई पूछने की बात है, दीदी ।”
“रुपये-पैसे के मामले में कोई दिक्कत तो नहीं ?”
“जी नहीं” - रोहित संकोचपूर्ण स्वर से बोला - “ठीक चल रहा है, जी ।”
“कोई और बात, जो तुम मुझे बताना चाहते होवो ?”
“जी नहीं” - रोहित अनिश्च‍ित स्वर से बोला - “ऐसी तो कोई बात नहीं ।”
“देखो, मैं सरिता की सिर्फ बड़ी बहन नहीं हूं । उसकी मां, बाप, सब-कु छ, मैं ही हूं ।
वह बेचारी जितनी तकलीफ भुगत रही है, तुम जानते ही हो । तकदीर पर तो किसी का बस
नहीं लेकिन उसको किसी तरह की कोई दिक्कत न हो, कोई मानसिक संताप न हो, कोई
ऐसी बात न हो जिससे उसके दिल को ठे स लगे, इन बातों का ख्याल रखता तो हमारा फर्ज
है । है न ?”
“जी हां, जी हां ।”
“उस बेचारी की जिन्दगी तो एक बड़े ही नाजुक धागे से लटक रही है । उसके दिल
को किसी भी प्रकार की ठे स पहुंची तो वह धागा टूट जाएगा । तुम मेरी बात समझ रहे हो न
?”
“बात तो समझ रहा हूं लेकिन यह नहीं समझ पा रहा हूं कि आप यह सब क्यों कह
रही हैं ।”
“एक बात बताओ । अगर सरिता मर जाये तो तुम्हें अफसोस होगा ?”
“अफसोस होगा ! मेरी तो दुनिया लुट जाएगी ।”
“फिर तो जाहिर है कि उसकी मौत की वजह कम-से-कम तुम खुद नहीं बनना
चाहोगे ?”
“दीदी” - रोहित झुंझलाकर बोला - “आप कै सी बातें कर रही हैं । मैं तो...”
“सरिता तुमसे बेपनाह मुहब्बत करती है । तुम पर भरोसा करती है । तुम्हें अपना
भगवान् समझती है । जब उसे तुम्हारे और नीलोफर के अवैध सम्बन्धों की खबर होगी तो
क्या वह जीवित रह पायेगी ?”
रोहित को जैसे सांप सूंघ गया ।
“नीलोफर !” - उसके मुंह से इतना ही निकला ।
“हां । फाइव स्टार नाटक क्लब की कै बरे डांसर । आजकल तुम्हारी बड़ी गाढी छनती
है न उससे ?”
“लेकिन... लेकिन यह झूठ है ।”
“क्या झूठ है ? तुम नीलोफर को नहीं जानते हो ?”
“जानता हूं लेकिन उससे मेरा कोई अवैध सम्बन्ध नहीं ।”
“शहर का बच्चा-बच्चा तुम्हारे और नीलोफर के सम्बन्धों के बारे में जानता है ।”
“लोग बकते हैं । उनकी तो दूसरों पर कीचड़ उछालने की आदत होती है ।”
“तुम्हारी जानकारी के लिए अभी मैं सीधे फाइव स्टार नाइट क्लब से आ रही हूं और
नीलोफर नाम की उस कै बरे डांसर से मिलकर आ रही हूं ।”
रोहित फिर चुप हो गया । उसने अपने सूखे होंठों पर जुबान फे री ।
“शायद तुम सोच रहे हो कि जल्दी ही सरिता इस संसार से किनारा कर जायेगी, फिर
उसका पति होने के नाते तुम उसकी जायदाद के मालिक बन जाओगे और फिर नीलोफर
के साथ शादी करके ऐश की जिंदगी गुजारोगे ।”
“यह झूठ है” - रोहित उत्तेजित स्वर से चिल्लाया - “यह झूठ है ।”
“धीरे बोलो” - रीता डपट कर बोली - “क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारी करतूतों की
खबर अभी सरिता को हो जाये ?”
“लेकिन, दीदी” - रोहित रुआंसे स्वर से बोला - “आप मुझ पर एक गलत इलजाम
लगा रही हैं । मेरी नीलोफर से वाकफियत जरूर है लेकिन उस हद तक नहीं जिस तक
आप समझ रही हैं ।”
“तुम झूठ बोल रहे हो ।”
“मैं...”
“नीलोफर मुझे यह लिखकर देने के लिए तैयार है कि तुम्हारा उससे अवैध सम्बन्ध है,
तुमने उससे शादी का वादा किया हुआ है और वह तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली है । मैं
आज उससे बात करके आई हूं । कल वह मुझे अपना लिखित बयान दे देगी । क्या तुम
फिर भी यह कह पाओगे कि तुम्हारा उससे अवैध संबंध नहीं ?”
“अगर वह ऐसा कु छ कहेगी तो झूठ कहेगी, किसी दबाव में आकर कहेगी, किसी
लालच में आकर कहेगी ।”
“उस पर दबाव डालने का भला किसी को क्या फायदा ?”
“आपको फायदा है ?”
“मुझे !”
“हां, आपको । दीदी, यह हकीकत है, आपने मुझे कभी पसन्द नहीं किया । आपने
हमेशा मुझे अपने रुतबे से नीचा, हल्का आदमी समझा । आपने हमेशा मुझे इस निगाह से
देखा है जैसे आपके घर में कोई चोर घुस आया हो । मुझे लगता है कि मुझे सरिता की
नजरों से गिराने के लिए, मुझे जलील करने के लिए ही आपने मेरी नीलोफर से मामूली
वाकफियत की आड़ ले कर उसे यह करने के लिए तैयार कर लिया है कि मेरा उससे अवैध
सम्बन्ध है और वह मेरे बच्चे की मां बनने वाली है । दीदी, अगर नीलोफर ने आपको कोई
ऐसा बयान लिखकर दिया तो इसका मतलब होगा कि आपने उसे अपनी दौलत से खरीद
लिया है ।”
“भाषण अच्छा दे लेते हो लेकिन इस भाषणबाजी से तुम हकीकत को नहीं झुठला
सकते ।”
“मैं किसी हकीकत को नहीं झुठला रहा लेकिन आप, जो बात गलत है, उसे
जबरदस्ती हकीकत बनाने पर तुली हुई हैं ।”
रीता चुप हो गई ।
“एक बात और कहने की इजाजत दीजिए मुझे” - रोहित बोला - “अगर आपने इस
बारे में सरिता को कु छ कहा तो उस की मौत की जिम्मेदार आप होंगी । सरिता इतना बड़ा
सदमा कभी बर्दाश्त नहीं कर सके गी ।”
रीता चुप रही । यहां तो बाजी ही पलट गई थी । कहां तो वह सोच रही थी कि
नीलोफर के हल्फिया बयान की बात सुनकर रोहित के होश उड़ जाएंगे और कहां वह अब
खुद खलनायिका की सी स्थिति में पहुंच गई थी । उसका ख्याल था कि अपने और
नीलोफर से अवैध सम्बन्धों का पर्दाफाश होने से बचाने के लिए वह रीता के सामने रोयेगा,
गिड़गिड़ायेगा, उनके पांव पकड़ेगा कि वह यह बात सरिता को न बताये । जबकि अब
स्थिति ऐसी हो गई थी कि उसे भय था कि कहीं रोहित जाकर सरिता को न कह दे कि रीता
उस पर ऐसा घिनौना इलजाम लगा रही थी ।
“तुम सरिता से इस बारे में कोई बात मत करना ।” - रीता तनिक दबे स्वर से बोली ।
“मैं जरूर करूं गा” - रोहित आवेशपूर्ण स्वर में बोला - “आप तो मेरे पीछे इस हद
तक पड़ी हुई हैं कि नीलोफर से हल्फिया बयान के नाम पर जो आपके जी में आए
लिखवाने के लिए फाइव स्टार नाइट क्लब तक पहुंच गई और मैं स्वयं को निर्दोष साबित
करने के लिए अपनी पत्नी के आगे हकीकत भी बयान न करूं ?”
“तुम कसम खाकर कह सकते हो कि नीलोफर से तुम्हारा कोई अवैध सम्बन्ध नहीं है
?”
“मैं कसम खाकर कहता हूं कि मामूली जानकारी के इलावा नीलोफर से मेरा कोई
संबंध नहीं ।”
“तुम फाइव स्टार नाइट क्लब में जाकर तगड़ा जुआ नहीं खेलते हो और बड़ी-बड़ी
रकमें नहीं हारते हो ?”
रोहित तनिक सकपकाया और फिर बोला - “मैं इस बात से इंकार नहीं करता कि मैंने
कभी-कभार दिलजोई के लिजए वहां जुआ खेला है लेकिन न वह तगड़ा था और न ही मैंने
कोई बड़ी-बड़ी रकमें हारी हैं । आप ही सोचिए बड़ी-बड़ी रकमें मेरे पास आती कहां से ?”
“टोनी पारनेल के पास से । तुम उससे कर्जा नहीं लेते रहे हो ?”
“नहीं । मैंने उससे या किसी और से आज तक एक पैसे का कर्जा नहीं लिया ।”
“सच कह रहे हो ?”
“आई स्वियर टु गॉड ।”
“अच्छा, एक बात बताओ । क्या यह सच है कि सरिता ने दूसरा दिल का दौरा पड़ने
के बाद तुम्हें पावर ऑफ अटार्नी लिख कर दे दी थी जिसके अन्तर्गत तुम सरिता से बिना
पूछे उसकी सारी चल और अचल सम्पत्ति को किसी भी ढंग से इस्तेमाल कर सकते हो ?”
“सच है ।” - रोहित के मुंह से निकला ।
“यह बात तुमने मुझे क्यों नहीं बताई ?”
“मैंने सोचा सरिता ने बताई होगी ।”
“आजकल सरिता के तमाम कागजात वगैरह तुम्हारे पास हैं ?”
“हां ।”
“सरिता के पैरामाउंट कै मिकल्स के तीस प्रतिशत शेयरों का सर्टिफिके ट कहां है ?”
“मेरे पास है ।”
“वह सर्टिफिके ट मुझे दो ।”
“क्यों ?”
“उसकी कम्पनी के हिसाब खाते के काम में जरूरत है ।”
“दे दूंगा ।”
“वह मुझे अभी चाहिए ।”
“अभी तो वह मेरे पास नहीं है ।”
“क्या मतलब ?”
“सर्टिफिके ट बैंक के लाकर में रखा है । कल में बैंक जाकर वह सर्टिफिके ट वहां से
निकाल लाऊं गा ।”
“तुम्हें पूरा भरोसा है न कि सर्टिफिके ट बैंक के लॉकर में हैं, और कहीं नहीं ?”
“वहीं है और कहां होगा ?”
“आल राइट । कल दोपहर तक वह कि सर्टिफिके ट मुझ तक पहुंच जाये ।”
“पहुंच जाएगा ।” - रोहित निश्चिन्त स्वर से बोला ।
रीता हैरान थी । क्या उसने रोहित के बारे में साहनी से, सुनील से, नीलोफर से जो
कु छ सुना था, सभी गलत था ? क्या वह वाकई रोहित पर शक करके उसके साथ ज्यादती
कर रही थी । नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता । साहनी कच्ची बात करने वाला आदमी नहीं
था । जरूर रोहित ने टोनी के पास शेयर सर्टिफिके ट गिरवी रखकर ही कर्जा लिया था ।
खैर, अगर रोहित झूठ बोल रहा था तो उसका झूठ कब तक चल सकता था । एक दिन
और सही ।
रीता उठ खड़ी हुई । वह कु छ क्षण रोहित को घूरती रही और फिर सन्तुलित स्वर से
बोली - “रोहित, अभी थोड़ी देर पहले बड़ी बढिया एक्टिंग करके और बड़े शानदार
डायलाग बोल कर तुमने मुझे जिच कर लिया था लेकिन हकीकत यह है कि मुझे तुम्हारी
कही एक भी बात पर विश्वास नहीं हुआ है । मुझे विश्वस्त सूत्रों से पता लगा है कि तुम
सरिता का शेयर सर्टिफिके ट गिरवी रखकर टोनी से बीस लाख रुपया कर्जा लेकर जुए में
हार चुके हो । आज उस शेयर सर्टिफिके ट को टोनी से हासिल करने का आखिरी दिन है ।
वह नेपियन हिल के बंगला नम्बर नौ में शेयर सर्टिफिके ट के साथ मौजूद है और आज रात
के बारह बजे तक वह तुम्हारी प्रतीक्षा करेगा । अगर तारीख बदलने से पहले तुम बीस
लाख रुपया लेकर उसके पास न पहुंचे तो वह शेयरों को किसी को भी बेच देने का हकदार
होगा । अगर शेयर सर्टिफिके ट टोनी के पास है तो कल दोपहर के बाद तो तुम्हें इस बात को
स्वीकार करना ही पड़ेगा क्योंकि आज बारह बजे से पहले तुम हरगिज भी बीस लाख रुपये
का इन्तजाम नहीं कर सकते हो ।”
“शेयर सर्टिफिके ट बैंक लॉकर में मौजूद है । मेरा बस चले तो मैं अभी बैंक का ताला
तोड़कर वह सर्टिफिके ट आपके लिये ले का आऊं ।”
“नैवर माइण्ड । अब दूसरी बात सुनो । मैंने क्लब में बड़ी गम्भीरता से नीलोफर से
बात की थी । मुझे पूरा विश्वास है कि वह झूठ नहीं बोल रही थी । कल वह तुम्हारे और
उसके अवैध सम्बन्धों को सिद्ध करने के लिए न के वल हल्फिया बयान देगी बल्कि वह
अपनी हर बात का सबूत भी पेश करेगी । तब शायद तुम आसानी से मुकर न सको । और
यह भी जान लो कि उसे तुमसे कोई मुहब्बत नहीं है । उसे तो सिर्फ उन लोगों से मुहब्बत है
जिन की जेबें भारी हों । इसलिये तुम सिर्फ अपनी मुहब्बत का वास्ता देकर उसकी जुबान
बन्द नहीं करवा पाओगे । पहले का मतलब यह है कि जितनी दीदादिलेरी तुम इस समय
दिखा रहे हो, उतनी शायद कल न दिखा पाओ ।”
रोहित चुप रहा ।
“कल मैं तुमसे फिर मिलूंगी । कहीं गायब मत हो जाना ।”
और रीता लम्बे डग भरती हुई वहां से चली गई ।
वह अपने बेडरूम में पहुंची और पलंग पर लेट गई ।
उसकी आंखों के सामने साहनी का कु टिलताभरा चेहरा घूम गया । साहनी की जुबान
से निकला एक-एक शब्द हथौड़े की तरह उसकी चेतना से टकराने लगा ।
एकाएक वह जोर से बोली -
“मैं सरिता के शेयर ह‍रगिज उसके हाथों में नहीं पड़ने दूंगी ।”
Chapter 2
सुनील अपने बेडरूम में मौजूद राइटिंग टेबल के पीछे बैठा था और बड़ी रफ्तार से
टाइप राइटर कू ट रहा था ।
तभी टेलीफोन की घण्टी बज उठी ।
अनायास ही उसकी निगाह कलाई पर बंधी घड़ी की ओर उठ गई ।
ठीक ग्यारह बजे थे ।
उसने हाथ बढाकर टेलीफोन से रिसीवर उठा लिया ।
“हल्लो” - वह माउथ पीस में बोला - “चक्रवर्ती, स्पेशल कारस्पान्डेण्ट ब्लास्ट ।”
“हल्लो” - दूसरी ओर से एक क्षीण-सा सत्री का स्वर सुनाई दिया - ‘पु... पुलिस...
पुलिस हैडक्वार्टर !”
“रांग नम्बर ।” - सुनील बोला ।
यह रिसीवर पटकने ही वाला था कि दूसरी ओर से आती व्यग्रतापूर्ण आवाज उसके
कान में पड़ी - “मुझे... मुझे किसी ने... जहर... जहर दे दिया है ।”
सुनील चौकन्ना हो गया । गलती से उसके पास आई काल में बड़ी ही हंगामाखेज
जानकारी हासिल होने की सम्भावना दिखाई दे रही थी । उसका पत्रकार मस्तिष्क सजग
हो उठा ।
“आप कौन हैं ?” - वह तीव्र स्वर से बोला - “कहां से बोल रही हैं ? किसने जहर
दिया है आपको ?”
“नीलो... नीलोफर” - दूसरी ओर से हांफती हुई आवाज आई - “कै बरे डान्सर
नीलोफर । अपने फ्लैट से... पता नहीं... पता नहीं... किसने जहर दिया । ...चाकलेट ।
...चाकलेट ...खाते ही हालात खराब... मैं मर रही हूं । जल्दी... जल्दी आइये । ...मुझे...
मुझे बचा लीजिये...”
आवाज डूबने लगी ।
“हल्लो ! हल्लो ! अपना पता तो बताओ । अपने फ्लैट का पता बोलो ।”
दूसरी ओर से उत्तर नहीं मिला । के वल गहरी सांसों की आवाज सुनील के कानों में
पड़ती रही ।
“हल्लो ! हल्लो !”
फिर सांसों की आवाज भी आनी बन्द हो गई । फिर एक जोर की खट्ट की आवाज
हुई - जैसे रिसीवर बोलने वाले के हाथ से निकल गया हो और किसी चीज में आकर
टकराया हो ।
“हल्लो ! हल्लो ! हल्लो !”
शान्ति ।
सुनील ने रिसीवर क्रे डिल पर पटक दिया ।
सुनील ने डायरेक्ट्री निकाल कर पुलिस हैडक्वार्टर का नम्बर देखा ।
नम्बर था 312079 ।
उसने वह नम्बर डायल किया ।
दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही वह बोला - “इस वक्त पुलिस सुपरिंटेण्डेन्ड रामसिंह
कहां होंगे ?”
“वे यहीं हैं ।” - उत्तर मिला - “फरमाइये ।”
संयोग की बात थी कि इतनी रात गये भी रामसिंह हैडक्वार्टर पर था ।
“जरा उने बात करवाइये” - वह बोला - “जल्दी ।”
“आप कौन बोल रहे हैं ?”
“सुनील । सुनील कु मार चक्रवर्ती ।”
“होल्ड कीजिए ।”
कु छ क्षण शान्ति रही । फिर रामसिंह की भारी आवाज उसके कान में पड़ी -
“रामसिंह ।”
“रामसिंह” - सुनील बोला - “मैं सुनील बोल रहा हूं । एक बड़ी सनसनीखेज खबर है
। किसी की जिन्दगी-मौत का सवाल है ।”
“क्या बात है ?”
“अभी-अभी मेरे पास किसी नीलोफर नाम की लड़की का फोन आया था । वह कह
रही थी कि वह मर रही है । किसी ने उसे चाकलेट में जहर दे दिया था ।”
“किसी ने तुम्हारे से मजाक किया होगा ।”
“मुमकिन नहीं । रामसिंह उसने तो पुलिस हैडक्वार्टर पर फोन किया था और अपनी
ओर से यह बात पुलिस को बताई थी ।”
“तो फिर काल तुम्हारे पास कै से पहुंच गई ?”
“गलत नम्बर लग गया । मेरे और पुलिस हैड क्वार्टर के फोन नम्बर में, मुझे अभी
मालूम हुआ है, पहले एक अंक का ही फर्क है । पुलिस हैड क्वार्टर का नम्बर 312079 है
और मेरा 212079 है । ऐसा गलत नम्बर लग जाना कोई हैरानी की बात नहीं ।”
“लड़की ने और क्या कहा था ?”
“बस इतना ही कि मैं अपने फ्लैट में पड़ी मर रही हूं । किसी ने मुझे चाकलेट में जहर
दे दिया है । चाकलेट खाते ही हालत खराब । जल्दी आइये मुझे बचा लीजिए । फिर एक
खट्ट की आवाज आई थी । लगता था उसमें रिसीवर थामे रहने की भी शक्ति नहीं रही थी
और रिसीवर हाथ से निकलकर गिर गया था ।”
“लड़की ने अपना नाम नीलोफर बताया था ?”
“हां ।”
“उसके फ्लैट का पता बोलो ।”
“वह तो उसने बताया नहीं । और मेरे पूछने की नौबत ही नहीं आई । उससे पहले ही
रिसीवर उसके हाथ से निकल गया ।”
“उसने यह बताया हो कि वह कौन है ? क्या करती है ?”
“हां । मुझे ठीक से सुनाई नहीं दिया था लेकिन फिर भी मुझे विश्वास है कि उसने
स्वयं को कै बरे डांसर नीलोफर बताया था ।”
“और ?”
“बस ।”
“इतने बड़े शहर में हम नीलोफर नाम की इस कै बरे डान्सर को कै से तलाश करें जो
अपने फ्लैट में पड़ी मर रही है । पुलिस के पास क्या कोई जादू का डंडा है जो...”
“रामसिंह, इस नाम की एक कै बरे डांसर फाइव स्टार नाइट क्लब में है । क्या पता
यह वही हो ।”
“फाइव स्टार नाइट क्लब ! यह कहां है ?”
“महात्मा गांधी रोड पर है ।”
“ओके । मैं वहां से पता करवाता हूं ।”
“जो करना है, जल्दी करो । कहीं ऐसा न ही पुलिस के पहुंचने से पहले ही लड़की
चल बसे ।”
“मैं खुद जाता हूं ।”
“वैरी गुड, मैं तुम्हें बैंक स्ट्रीट के मोड़ पर फु टपाथ पर खड़ा मिल जाऊं गा ।”
“तुम मिल जाओगे ? क्या मतलब ?”
“भाई, महात्मा गांधी रोड जाने के लिए तुम्हें इधर से ही गुजरना पड़ेगा । तुम्हें मुझे
पिक करने में आसानी होगी ।”
“लेकिन...
“रामसिंह, रामसिंह । ऐसे मतलबी मत बनो । कु छ अपने दोस्त का भी ख्याल करो ।
क्या तुम नहीं चाहते कि इतनी सैन्सेशनल न्यूज मेरे हाथ लगे । आखिर मैंने तुम्हें ही फोन
क्यों किया ? पुलिस हैडक्वार्टर पर किसी भी दूसरे आदमी को फोन करके यह सूचना क्यों
नहीं दी ?”
“तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें अपने साथ लेकर चलूं ?”
“प्लीज । आखिर तुम मेरे दोस्त हो । तुम से...”
“ओके । ओके । बैंक स्ट्रीट के मोड़ पर मिलो ।”
“थैंक्यू ।”
सुनील ने रिसीवर पटक दिया ।
उसने जल्दी से कोट और जूते पहने और फ्लैट से बाहर की ओर लपका ।
अजीब इत्तफाक था - वह सोच रहा था - आज ही यूथ क्लब में रीता से बातें करते
हुए नीलोफर का जिक्र आया था और आज ही उसे जहर दे दिया गया था ।
लेकिन शायद वह वही नीलोफर न हो । शायद नीलोफर नाम की कोई और कै बरे
डान्सर भी राजनगर में हो ।
बैंक स्ट्रीट के मोड़ पर पहुंचने के कु छ ही क्षण बाद रामसिंह की जीप उसके समीप
आकर रुकी ।
सुनील तुरन्त जीप में सवार हो गया । वह रामसिंह की बगल में बैठा ।
सुनील ने देखा, जीप के पृष्ठ भाग में एक इन्स्पेक्टर, एक ए एस आई और दो सिपाही
भी मौजूद थे ।
रामसिंह सादे कपड़ों में था और बड़े गम्भीरतापूर्ण ढंग से सिगार के कश लगा रहा था
। वह बात करने के मूड में नहीं मालूम होता था ।
सुनील चुपचाप बैठ गया । उसने लक्की स्ट्राइक का एक सिगरेट सुलगा लिया ।
जीप फाइव स्टार नाइट क्लब के सामने जाकर रुकी ।
“तनवीर” - रामसिंह इन्स्पेक्टर से बोला - “सिर्फ तुम मेरे साथ आओ ।”
इन्स्पेक्टर लपक कर जीप से बाहर निकल आया ।
सुनील, रामसिंह और इन्स्पेक्टर क्लब में दाखिल हुए ।
डांस फ्लोर पर कै बरे चल रहा था । एक अर्धनग्न नर्तकी बैंड की ताल पर थिरक रही
थी ।
इन्स्पेक्टर पर निगाह पड़ते ही एक भारी-भरकम आदमी दौड़ा-दौड़ा उसके समीप
पहुंचा ।
“हजूर” - वह आदमी चिकने चुपड़े स्वर से बोला - “मुझे बुला भेजा होता ।”
“तुम कौन हो ?” - इन्स्पेक्टर ने अधिकारपूर्ण स्वर से पूछा ।
“मेरा नाम द्वारकानाथ है, साहब । मैं क्लब का मैनेजर हूं ।”
“सुनो” - रामसिंह बोला - “हम तुम्हारे ग्राहकों को डिस्टर्ब नहीं करना चाहते । किसी
ऐसे स्थान पर चलो जहां तुमसे दो बातें हो सकें ।”
“तशरीफ लाइये ।”
वे द्वारकानाथ के पीछे-पीछे चल दिये ।
पुलिस पर निगाह पड़ते ही कु छ क्षण के लिए हॉल में मौजूद लोगों का ध्यान अर्द्धनग्न
कै बरे डान्सर की ओर से हट गया था । लोग सन्देह और उत्कं ठापूर्ण निगाहों से उन्हें देख रहे
थे ।
द्वारकानाथ उन्हें एक आफिसनुमा कमरे में ले गया ।
“मिस्टर ।” - रामसिंह वार्तालाप का सूत्र अपने हाथ में लेता हुआ बोला - “हमारे पास
ज्यादा वक्त नहीं । जो पूछा जाये उसका पहली ही बार में और सच्चा जवाब दो ।”
“फरमाइये हुजूर ।” - द्वारकानाथ बोला ।
“तुम्हारे यहां नीलोफर नाम की कोई कै बरे डांसर है ?”
“जी हां, है ।”
“इस वक्त कहां है वह ?”
“अपने घर चली गई है, साहब । कह रही थी तबीयत खराब है ।”
“यानी कि आज वह यहां थी ?”
“जी हां । साढे नौ बजे तक थी ।”
“उसकी तबीयत में क्या खराबी हो गई थी ?” - सुनील ने पूछा ।
द्वारकानाथ ने विचित्र नेत्रों से सुनील की ओर देखा और फिर बोला - “सिर दर्द की
शिकायत कर रही थी ।”
“उसके घर का पता बताओ ।” - रामसिंह बोला ।
“जी, वह तो मुझे मालूम नहीं ।” - द्वारकानाथ खेदपूर्ण स्वर से बोला ।
“अच्छे मैनेजर हो तुम । अपनी कै बरे डांसर के घर का पता नहीं जानते हो ।”
“जी, नीलोफर अपना पता किसी को बताती ही नहीं ।”
“क्यों ?”
“कहती है क्लब में आने वाले लोग उसके घर तक पहुंच जाते हैं और फिर उसे तंग
करते हैं ।”
“अपना पता किसी को बताने में और जिसके पास वह नौकरी करती हो, उसे बताने
में फर्क होता है । तुम यह कहना चाहते हो कि तुमने नीलोफर का पता जाने बिना ही उसके
साथ क्लब में कै बरे करने का एग्रीमेन्ट कर लिया ?”
“यह तो मैंने नहीं कहा, साहब ।”
“तो फिर ?”
“साहब, कै बरे डांसर का एग्रीमेन्ट क्लब के मालिक के साथ है । मालिक को
नीलोफर का पता जरूर होगा ।”
“कौन है मालिक ?”
“टोनी पारनेल ।”
“वह कहां है ?”
“वह इस वक्त क्लब में नहीं है ।”
“तो फिर कहां है ?”
“मालूम नहीं ।”
रामसिंह ने उसे घूरकर देखा ।
“मैं सच कह रहा हूं, हुजूर” - द्वारकानाथ हड़बड़ाकर बोला - “मुझे नहीं मालूम, टोनी
पारनेल कहां है । आज कल वह नीलोफर के स्थान पर एक नई कै बरे डांसर रखने की
फिराक में है । वह उसी नई छोकरी के साथ तफरीह के लिए कहीं गया है । ऐसे कामों के
लिए उसका कौन सा ठिकाना है, यह मुझे नहीं मालूम ।”
“उसका घर कहां है ?”
“वह क्लब में ही रहता है ।”
“अपने कागज-पत्र ऐग्रीमेण्ट वगैरह कहां रखता है वह ?”
“यहीं । इस अलमारी में ।” - द्वारकानाथ ने कोने में पड़ी एक अलमारी की ओर
संके त किया ।
“इसे खोलो । इसमें से नीलोफर का कान्ट्रैक्ट निकालो । कान्ट्रैक्ट पर उसका पता
जरूर होगा ।”
“मैं नहीं खोल सकता, साहब । इसकी चाबी टोनी अपने पास रखता है ।”
रामसिंह ने असहाय भाव से सुनील की ओर देखा ।
“वह मर्दों को अपने घर का पता नहीं बताती होगी” - सुनील बोला - “लेकिन औरतों
से शायद वह ऐसा परहेज न करती हो । बाहर जो कै बरे डांसर नाच रही है, उससे पूछो कि
क्या वह नीलोफर के घर का पता जानती है । अगर वह न जानती हो तो क्लब के और
कर्मचारियों से पूछो । हमें नीलोफर का पता मालूम होना ही चाहिए । यह उसकी जिन्दगी
और मौत का सवाल है ।”
“मैं अभी हाजिर हुआ ।”
“अगर नीलोफर का पता न मालूम हो” - रामसिंह बोला - “तो टोनी पारनेल का ही
पता मालूम करने की कोशिश करो । कोई तो जानता होगा कि उसका प्रेम घरौंदा कहां है
।”
द्वारकानाथ ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया और कमरे से बाहर निकल गया ।
थोड़ी देर बाद जब द्वारकानाथ वापिस लौटा तो कोई आशाजनक समाचार नहीं लाया
। उसने आकर बताया कि क्लब में न किसी को नीलोफर के घर का पता मालूम था और न
ही कोई यह जानता था कि टोनी नई छोकरी के साथ कहां गया हुआ था ।
“अलमारी का ताला तुड़वाओ ।” - रामसिंह निर्णयात्मक स्वर से बोला ।
“जी ?” - द्वारकानाथ चौंका ।
“सुना नहीं ।”
“लेकिन जनाब...”
“यह नीलोफर की जिन्दगी-मौत का सवाल है । जो मैं कह रहा हूं, करो । टोनी अगर
कोई फसाद करेगा तो मैं भुगत लूंगा । तुम पर कोई आंच नहीं आयेगी ।”
“लेकिन, बन्दापरवर कम-से-कम इतना तो बताइये कि नीलोफर को हुआ क्या है ?”
“किसी ने उसे जहर दे दिया है । वह अपने फ्लैट में पड़ी मर रही है । उसने फोन पर
इतना कु छ तो बताया लेकिन घबराहट में अपना पता नहीं बता पाई ।”
द्वारकानाथ के नेत्र फै ल गये । उसने और सवाल नहीं किया । वह तुरन्त बाहर की
ओर लपका ।
थोड़ी देर बाद जब वह वापिस लौटा तो उसके साथ एक आदमी था जिसके पास कई
चाबियों के गुच्छे थे और एक बड़ा-सा हथौड़ा था ।
कोई पांच मिनट में उस आदमी ने बिना हथौड़ा इस्तेमाल किये ही अलमारी खोल दी

द्वारकानाथ ने तलाश करके उसमें से नीलोफर का कान्ट्रैक्ट निकाला । उसमें
नीलोफर के घर का पता लिखा था ।
वह अमर कालेनी की सत्ताइस नम्बर इमारत के पांच नम्बर फ्लैट में रहती थी ।
“ओके !” - रामसिंह उठ खड़ा हुआ - “टोनी पारनेल की तलाश जारी रखो । ज्यों ही
वह तुम्हें मिले उसे कहना कि वह फौरन पुलिस हैडक्वार्टर को फोन करे और
सुपरिण्टेण्डेण्ट रामसिंह से या इन्स्पेक्टर तनवीर से या इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल से सम्पर्क
स्थापित करे । समझ गये ?”
“जी हां ।”
“गुड ।”
तीनों वहां से रवाना हो गये ।
गोली की रफ्तार से वे अमर कालोनी पहुंचे ।
वहां सत्ताइस नम्बर इमारत तलाश करने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई ।
पांच नम्बर फ्लैट दूसरी मंजिल पर था ।
इन्स्पेक्टर तनवीर ने दरवाजे को धक्का दिया । दरवाजा के वल भिड़का हुआ था,
भीतर से बन्द नहीं था । वह फौरन खुल गया ।
जिस कमरे में उन्होंने कदम रखा, वह ड्राइंग रूम था और ट्यूब लाइट की रोशनी से
प्रकाशित था । सोफे के समीप फर्श पर एक सुन्दर युवती लुढकी पड़ी थी । उसकी आंखें
बन्द थीं, मुंह खुला हुआ था और सांस बड़ी कठिनाई से चल रही थी । उस समय वह एक
सिल्क की साड़ी पहने हुए थी जो अस्त-व्यस्त दशा में थी । उसके बाल बिखरे हुए थे ।
सुनील उसे देखते ही पहचान गया ।
वह फाइव स्टार नाइट क्लब की कै बरे डांसर नीलोफर थी ।
मेज पर एक दर्जन पैके टों वाला चाकलेट का डिब्बा खुला पड़ा था । डिब्बा, जिस
खाकी कागज में पैक किया गया था, वह भी वहीं डिब्बे के नीचे दबा पड़ा था और उसको
बांधने के लिए इस्तेमाल की गई सुतली भी कागज के नीचे से झांक रही थी । लगता था
डिब्बे की पैकिंग जिस स्थिति में खोली गई थी, उसी स्थिति में रहने दी गई थी । डिब्बे में
तीन-चार पैके ट कम मालूम होते थे । डिब्बे के नीचे दबा एक विजिटिंग कार्ड जैसा छोटा-सा
आयताकार सफे द कार्ड बाहर झांक रहा था ।
उसी मेज पर टेलीफोन पड़ा था ।
रामसिंह ने लपककर नीलोफर की नब्ज देखी । लगभग फौरन वह सीधा हुआ और
तीव्र स्वर से बोला - “इसे उठाकर नीचे जीप पर लादो । एम्बूलैंस बुलाने का समय नहीं ।
इसके फ्लैट की तलाश में पहले ही बहुत देर हो चुकी है । हालात नाजुक है । इसे फौरन
विक्टोरिया हस्पताल पहुंचाओ ।”
इन्स्पेक्टर तनवीर ने फौरन नीलोफर को उठाकर अपने कन्धे पर लाद दिया ।
रामसिंह उसे सहारा दे रहा था ।
सुनील सरककर मेज के पास पहुंचा । उसने झुककर डिब्बे के नीचे से कार्ड थोड़ा
बाहर सरकाया ।
इन्स्पेक्टर का या रामसिंह का ध्यान उस ओर नहीं था ।
कार्ड रीता का था । उसपर छपा हुआ था -
रीता नागपाल
मैनेजिंग डायरेक्टर,
पैरामाउण्ट कै मिकल्स प्राइवेट लिमिटेड
कार्ड पर रीता के नाम के ऊपर टाइप किया हुआ था ।
टू नीलोफर,
विद कम्पलीमैन्ट्स फ्रॉम
सुनील ने रामसिंह और इन्स्पेक्टर की आंख बचाकर वह कार्ड वहां से उठाया और
उसको सोफे के नीचे फें क दिया । कार्ड एक क्षण सोफे के नीचे फड़फड़ाया और फिर दृष्टि
से ओझल हो गया ।
इन्स्पेक्टर तनवीर नीलोफर को उठाये कमरे से बाहर निकल गया ।
“मैं कहीं और से फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट को फोन करने जा रहा हूं” - रामसिंह बोला -
“तुम किसी चीज को हाथ मत लगाना ।”
“नहीं लगाऊं गा ।” - सुनील बोला ।
रामसिंह एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “या ऐसा करो । तुम भी मेरे साथ
चलो ।”
“रामसिंह” - सुनील शिकायत भरे स्वर से बोला - “अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं
तो मैं इस कमरे से तो क्या इस इलाके से ही चला जाता हूं ।”
“नहीं, नहीं । मेरा यह मतलब नहीं ।”
“नैवर माइण्ड । मेरा काम हो गया है । न्यूज मुझे मिल गई है । बाकी सब-कु छ तो
लड़की के होश में आने पर ही मालूम होगा और वह जल्दी होश में आने वाली नहीं मालूम
होती मुझे ।”
“पहले तो उसके जिन्दा बचने की ही कोई गारण्टी नहीं ।”
“तुम ठीक कह रहे हो । मैं चला ।”
“तुम्हें जल्दी क्या है ?”
“जल्दी नहीं है लेकिन जाना तो मुझे है ही । और फिर, दरअसल, मुझे नींद आ रही है
।”
“तुम्हारा व्यवाहर मुझे बड़ा रहस्यपूर्ण लग रहा है ।” - रामसिंह संदिग्ध स्वर में बोला ।
“ओफ्फोह ! अब तो तुम भी प्रभूदयाल जैसी बातें करने लगे हो ।”
“लेकिन... ओके । नैवर माइण्ड ।”
“गुड नाइट ।”
“गुड नाइट ।”
“मैं तुमसे फिर मिलूंगा ।”
“जरूर ।”
सुनील रामसिंह से भी पहले कमरे से बाहर निकल आया ।
***
सुनील टैक्सी द्वारा शंकर रोड पहुंचा ।
उसने रीता नागपाल की कोठी की घण्टी बजाई और प्रतीक्षा करने लगा ।
उसने घड़ी देखी । पौने बारह बजने को थे ।
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और चौखट पर एक आंखें मलता हुआ नौकर प्रकट
हुआ ।
“रीता जी है ?” - सुनील ने पूछा ।
“जी वो तो घर पर नहीं हैं ।” - नौकर आदरपूर्ण स्वर से बोला ।
“अच्छा !” - सुनील दोबारा घड़ी पर दृष्टिपात करता हुआ बोला - “कु छ मालूम है
कहां गई हैं ?”
“जी नहीं ।”
“ठीक है । मेरा नाम सुनील है । उन्हें बता देना । वे जिस वक्त भी लौटें, उन्हें कहना,
मेरे फ्लैट पर मुझे टेलीफोन करें ।”
“कह दूंगा, साहब । आपका नम्बर...”
“उन्हें मालूम है ।”
सुनील वापिस जाने के लिए घूमा ।
तभी एक कार फाटक लांघकर कोठी के कम्पाउण्ड में दाखिल हुई । कार की हैड
लाइट्स का प्रकाश सीधे सुनील के चेहरे पर पड़ा । उसकी आंखें चौंधिया गईं लेकिन फिर
भी उसने रीता की थन्डरबर्ड फौरन पहचान ली । कार पोर्टिको में आकर खड़ी हुई और
उसमें से हाथ में अपना हैण्ड-बैग लिए रीता बाहर निकली ।
“हल्लो !” - सुनील उसके सामने आ खड़ा हुआ ।
“त... तुम !” - रीता बौखला कर बोली ।
सुनील ने नोट किया वह काफी घबराई हुई मालूम होती थी ।
“हां, मैं” - सुनील सहज स्वर से बोला - “तुमसे मिलने आया था । तुम्हें घर न पाकर
लौट रहा था कि तुम आ गई ।”
“इस वक्त !”
“हां । कोई हर्ज है क्या ?”
“नहीं, नहीं । मेरा मतलब है... कै से आए ?”
“यहीं बताऊं ?”
“ओह सॉरी । सुनील, प्लीज फारगिव मी । एक्चुअली आई एम... आई एम ए बिट...
आओ ।”
दोनों कोठी के भीतर दाखिल हुए ।
रीता उसे ड्राइंगरूम में ले आई ।
“मैं अभी आई ।” - वह बोली ।
सुनील के कु छ कह पाने से पहले ही रीता लम्बे डग भरती हुई कोठी के बायें विंग की
ओर बढ गई । एक दरवाजे में से गुजर कर वह दृष्टि से ओझल हो गई ।
सुनील कु र्सी पर पहलू बदलता बैठा रहा और उसकी प्रतीक्षा करता रहा ।
थोड़ा देर बात रीता वापिस लौटी ।
“सॉरी ।” - वह बोली ।
“नैवर माइण्ड ।” - सुनील बोला ।
रीता उसके सामने बैठ गई । उसने अपने हाथ में थमा हैण्डबैग सोफे के हत्थे पर रख
लिया ।
“कु छ पियोगे ?” - उसने पूछा ।
“नहीं” - सुनील बोला - “मैं ज्यादा देर नहीं रुकूं गा ।”
रीता ने अब तक दरवाजे के पास ठिठके खड़े नौकर को वहां से चले जाने का संके त
किया । नौकर के जाते ही उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
“आज तुम फाइव स्टार नाइट क्लब गई थीं ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां । क्यों ?”
“नीलोफर से मिलने ?”
रीता हिचकिचाई ।
“रीता मैं तुम्हें पहेलियां नहीं बुझाना चाहता लेकिन हकीकत यह है कि अभी थोड़ी देर
पहले नीलोफर को किसी ने जहर दे दिया है और वह मरणासन्न अवस्था में पुलिस द्वारा
अपने फ्लैट से उठवाई गई है । किसी ने उसे चाकलेट में जहर मिलाकर दिया है और
घटनास्थल पर पड़े तुम्हारे विजिटिंग कार्ड की मौजूदगी से ऐसा जाहिर होता है कि चाकलेट
का डिब्बा नीलोफर को तुमने भेंट स्वरूप भेजा था ।”
“मैंने ?” - रीता हैरानी से बोली । वह मुंह बाये सुनील का मुंह देखने लगी ।
“वहां चाकलेट के खुले डिब्बे के पास तुम्हारा एक विजिटिंग कार्ड पड़ा था । जिस पर
तुम्हारे नाम के ऊपर टाइप किया हुआ था - विद कम्पलीमैंट्स फ्राम । वह कार्ड देर-सवेर
पुलिस के हाथ लगेगा ही । फिर पुलिस तुमसे पूछताछ करने यहां जरूर पहुंचेगी ।
संयोगवश वह कार्ड मुझे पुलिस से पहले दिखाई दे गया था । मैं चाहता तो उसे घटनास्थल
से गायब भी कर सकता था लेकिन मैंने ऐसा मुनासिब नहीं समझा । मुझे विश्वास था कि
किसी को जहर देने जैसा काम तुम नहीं कर सकतीं । शायद किसी ने तुम्हारे कार्ड का
नाजायज इस्तेमाल किया था और वह वास्तविक अपराधी की तलाश में तगड़े सूत्र का काम
कर सकता था । मैं तो पुलिस के आगमन से पहले तुम्हें सावधान करने चला आया था ।”
“लेकिन, सुनील, मैंने उसे कोई चाकलेट का डिब्बा नहीं भेजा । मैं तो यह भी नहीं
जानती, वह रहती कहां है । मैं तो खुद उसे भी ठीक से नहीं जानती । आज शाम से पहले
तो मैंने कभी उसकी सूरत भी नहीं देखी थी ।”
“मुझे तुम्हारी बात का पूरा विश्वास है लेकिन तुम्हारा विजिटिंग कार्ड वहां कै से पहुंच
गया ?”
“किसी के हाथ में मेरा विजिटिंग कार्ड पड़ जाना कौन-सी बड़ी बात है । विजिटिंग
कार्ड होते ही लोगों को देने के लिये हैं । लोग ऐसे कार्ड मतलब हल हो जाने के बाद अक्सर
फें क देते हैं । खुद नीलोफर को ही मैंने अपना एक कार्ड दिया था । शायद वह कार्ड उसने
मेरे, पीठ फे रते ही फें क दिया हो और वह उस शख्स के हाथ पड़ गया हो जिसने उसे जहर
देकर मारना चाहा था । उसने मुझे फं साने के लिये कार्ड पर मेरे नाम के ऊपर - ‘विद
कॉम्प्लीमेंट्स फ्राम’ टाइप कर दिया होगा ताकि बाद में ऐसा लगे जैसे नीलोफर को जहर
भरी चाकलेट का डिब्बा मैंने भेजा था ।”
“ऐसा कौन कर सकता है ?”
रोहित का नाम रीता की जुबान पर आता-आता रह गया । फिर उसकी आंखों के
सामने साहनी का धूर्ततापूर्ण चेहरा भी घूम गया ।
“मुझे क्या मालूम !” - अन्त में वह बोली ।
“बहुत सोच-समझकर जवाब दिया ।”
रीता चुप रही ।
“नीलोफर से तुम किस सिलसिले में मिली थीं ?”
रीता हिचकिचाई ।
“क्या यह बात छु पी रह सकती है ?” - सुनील बोला ।
“मैं... मैं रोहित और उसके सम्बन्धों के बारे में ही कु छ जानकारी हासिल करने गई थी
।”
“क्या मालूम हुआ ?”
“वही सब-कु छ जो तुमने बताया था ।”
“तुमने यूथ क्लब में अपनी परेशानी की वास्तविकता वजह मुझे नहीं बताई थी । अब
बताना चाहती हो ?”
“सुनील, कोई खास बात नहीं है । यूं ही कु छ घरेलू पेचीदगियां होती हैं जो मेरी स्थिति
के किसी भी शख्स को परेशान कर सकती हैं ।”
“कोई गम्भीर बात तो नहीं ?”
“न... नहीं ।”
“अभी तुम फाइव स्टार नाइट क्लब से ही आई हो ?”
“नहीं । मन परेशान था इसलिए समुद्र किनारे घूमने चली गई थी । मैं काफी देर तक
मैरिना बीच पर एकान्त में बैठी रही थी ।”
“अच्छा” - सुनील उठता हुआ बोला - “मैं चलता हूं ।”
रीता भी उठी । उठते समय उसका साड़ी का पल्लू सोफे के हत्थे पर रखे उसके
हैंडबैग से टकराया । हैंडबैग नीचे आ गिरा और खुल गया । उसमें से कु छ सिक्के , एक
लिपस्टिक, एक कं घी, कु छ कागज उछलकर बाहर आ गिरे ।
लेकिन हैंडबैग से बाहर गिरी जिस चीज को देखकर सुनील चौंका वह एक रिवाल्वर
थी ।
सुनील रिवाल्वर उठाने के लिए नीचे झुका लेकिन रीता ने पहले ही झपटकर पहले
रिवाल्वर और फिर बैग उठा लिया । उसने रिवाल्वर जल्दी से बैग में डाल ली ।
लेकिन सुनील के नथुनों से वह हल्की-सी गन्ध छु पी न रह सकी जो रिवाल्वर से
ताजी-ताजी गोली चलाई जाने के बाद नाल में से निकलती है ।
वह नीचे झुका और बैग से निकलकर फर्श पर गिरे सामान को बीनने लगा ।
“नैवर माइण्ड ।” - रीता बेसब्रेपन से बोली ।
एक कागज सुनील के हाथ में आया । उस पर लिखा था :
टोनी पारनेल
बंगला नम्बर 9, नेपियन हिल
पानी की टंकी के पास ।
“यह पता” - वह कागज हाथ में लिए उठ खड़ा हुआ - “फाइव स्टार नाइट क्लब में
किसी को मालूम नहीं था । क्लब के मैनेजर द्वारकानाथ को भी नहीं । तुम्हें कै से मालूम
हुआ ?”
“मुझे” - रीता कठिन स्वर से बोली - “नीलोफर ने बताया था ।”
“और उसे कै से मालूम था ?”
“वह कहती थी कि यह वह स्थान है जहां टोनी तफरीह के लिए लड़कियां लेकर
जाता था । आरम्भ में टोनी उसे भी वहीं लेकर गया था ।”
“ओह ! टोनी से तुम्हारी मुलाकात हुई इस पते पर ?”
“नहीं । ...मेरा मतलब है, मैं गई ही नहीं ।”
“तुम्हारी टोनी में क्या दिलचस्पी है ?”
“सुनील, यू आस्क टू मैनी क्वेश्चन्स (तुम बहुत ज्यादा सवाल पूछते हो) ।”
“ओके । ओके ।”
सुनील ने कागज उसे थमा दिया ।
“गुड नाइट ।” - वह बोला ।
“गुड नाइट ।” - रीता भावहीन स्वर से बोली ।
“पुलिस यहां जरूर पहुंचेगी । इस रिवाल्वर के सन्दर्भ में इस बात का ख्याल जरूर
रखना ।”
रीता चुप रही ।
सुनील वहां से बाहर निकल गया ।
शंकर रोड पर ही एक चौबीस घण्टे चलने वाला टैक्सी स्टैंड था । वहां से सुनील ने
एक टैक्सी पकड़ी और नेपियन हिल पहुंचा ।
नेपियन हिल पर पानी की टंकी कहां थी, सुनील को मालूम था । उसने टैक्सी वहीं
खड़ी करवाई और फिर आसपास दृष्टि दौड़ाई ।
नौ नम्बर दूसरी ओर से नीचे उतरती सड़क पर पहला ही बंगला था ।
सुनील पैदल चलता हुआ बंगले के समीप पहुंचा ।
बंगला रोशनियों से जगमगा रहा था । उसकी भीतर-बाहर की सभी बत्तियां जल रही
थीं । बाहर सड़क पर एक पुलिस की और एक फ्लाईंग स्क्वायड की वैन खड़ी थी । भीतर
कम्पाउण्ड में कु छ लोग मौजूद थे जिनमें से अधिकतर वर्दीधारी पुलिस वाले थे ।
सुनील ने बंगले के समीप जाने की कोशिश नहीं की । उसने देखा, वह वही जीप थी
जिसमें वह रामसिंह के साथ पहले महात्मा गांधी रोड और फिर अमर कालोनी गया था ।
तभी उसे कम्पाउंड में मौजूद लोगों के बीच में वह ए एस आई भी दिखाई दिया जिसे
उसने रामसिंह के साथ देखा था ।
रामसिंह कहीं दिखाई नहीं दे रहा था । पता नहीं वह इमारत के भीतर था या वहां
आया ही नहीं था ।
फिर सुनील ने ए एस आई को इमारत के भीतर जाते देखा ।
कम्पाउंड में मौजूद लोग अड़ोसी-पड़ोसी ही मालूम होते थे ।
सुनील हिम्मत करके भीतर घुस गया । वह उन लोगों के समीप पहुंचा । एक आदमी
भीड़ से अपेक्षाकृ त अलग-थलग खड़ा सिगरेट पी रहा था । सुनील ने अपनी जेब से लक्की
स्ट्राइक का पैके ट निकाला । उसने एक सिगरेट होंठों से लगाया और उस आदमी के समीप
पहुंचकर बोला - “जरा...”
उस आदमी ने तुरन्त अपना सुलगा हुआ सिगरेट उसकी ओर बढा दिया ।
सुनील ने अपना सिगरेट सुलगाकर उसका सिगरेट उस आदमी को वापिस कर दिया
और बोला - “थैंक्यू ।”
वह आदमी शिष्टाचारवश मुस्कराया ।
“क्या हो गया है, साहब ?” - सुनील सहज स्वर में बोला ।
“आपको नहीं मालूम ?” - वह आदमी बोला । शायद उसने सुनील को भी कोई
अड़ोसी-पड़ोसी समझा था ।
“नहीं तो ।”
“एक आदमी का कत्ल हो गया है ।”
“अच्छा ! किसका ?”
“कोई टोनी पारनेल नाम का आदमी था । किसी ने उसे शूट कर दिया है । पीछे से ।
32 कै लिबर की रिवाल्वर से ।”
“अरे, किसने किया ऐसा ?”
“मालूम नहीं लेकिन कोई छोकरी का चक्कर जरूर है । भीतर कितनी ही ऐसी
जनानी चीजें मिली हैं जिससे साफ जाहिर होता है कि वहां टोनी के साथ कोई छोकरी
जरूर मौजूद थी जो अब कहीं खिसक गई है । यह टोनी कोई अच्छे चरित्र का आदमी नहीं
था । क्या पता उसने किसी लड़की की इज्जत पर हाथ डाला हो और उसने अपनी इज्जत
बचाने के लिए टोनी को शूट कर दिया हो ।”
“यह टोनी पारनेल वही आदमी है न जो महात्मा गांधी रोड पर स्थित फाइव स्टार
नाइट क्लब का मालिक है ।”
“बिल्कु ल वही । यहां वह तभी आता है जब कोई नई छोकरी फांसता है वर्ना यह
बंगला तो हमेशा बन्द ही रहता है । इस बार छोकरीबाजी बड़ी महंगी पड़ी मालूम होती है
।”
तभी सुनील ने रामसिंह और ए एस आई को बंगले से बाहर निकलते देखा । उसने
तुरन्त उस ओर से मुंह फे र लिया और फिर बड़े स्वाभाविक ढंग से बाहर की ओर बढा ।
लेकिन रामसिंह की निगाह उस पर पड़ चुकी थी ।
“ए, तुम” - वह उच्च स्वर से बोला - “ठहरो ।”
सुनील ठिठका ।
रामसिंह लम्बे ढग भरता हुआ उसके पास पहुंचा । उसने सुनील का कन्धा पकड़कर
उसे अपनी ओर घुमा दिया ।
सुनील के होंठों पर एक खिसियानी-सी मुस्कराहट आ गई ।
“तुम यहां कै से पहुंच गये ?” - रामसिंह हैरानी से बोला ।
“इत्तफाक से ।” - सुनील का दिमाग तेजी से कोई विश्वसनीय कहानी सोचने की
कोशिश कर रहा था ।
“इत्तफाक से !” - रामसिंह के नेत्र सिकु ड़ गये - “यानी कि तुम्हें यह मालूम नहीं था
कि यह टोनी का प्रेम घरौंदा है और उसका यहां कत्ल हो गया है ?”
“नहीं ।”
“तो फिर तुम यहां पहुंचे कै से ? अभी तो इस कत्ल की खबर इस इलाके से बाहर भी
नहीं गई है ।”
“बड़े भाई साहब, कहा न मैं महज इत्तफाक से यहां पहुंच गया हूं ।”
“जरा मैं भी तो सुनूं कौन-सा इत्तफाक तुम्हें यहां ले आया है ।”
“बात जरा स्तर से नीची है । तुम्हारे सुनने लायक नहीं है ।”
“अब कह भी चुको ।”
“रामसिंह” - सुनील उसे आंख मारता हुआ बोला - “दरअसल एक लड़की थी ।”
“अच्छा !”
“बड़ी मुश्किल से पटी थी । लेकिन कहीं तनहाई हासिल नहीं हो रही थी । इसलिए मैं
उसे यहां ले आया था ।”
“यहां ? नौ नम्बर बंगले में ? टोनी के घर में ? ऐन उसी स्थान पर जहां का पता किसी
को भी नहीं मालूम था ? जहां थोड़ी देर पहले कत्ल होकर हटा था !”
“अरे नहीं, यहां तो मैं यूं ही उत्सुकतावश चला आया था । पुलिस की गाड़ियां देखकर
।”
“वह लड़की कहां है ?”
“वह तो घबराकर भाग गई ।”
“किस बात से घबराकर भाग गई ?”
“पुलिस की गाड़ियों से ।”
“तुम उसके साथ क्यों नहीं भागे ?”
“मौका ही नहीं मिला । उसने तो पुलिस की गाड़ियां देखीं और फिर वह यह जा वह
जा ।”
“इतने बड़े राजनगर में तनहाई के लिए तुम्हें नेपियन हिल पर टोनी के बंगले के बगल
की जगह ही सूझी ?”
“इत्तफाक की बात है ।”
“उसे अपने फ्लैट पर क्यों नहीं ले गए ? वहां कौन-सी तुम्हारी अम्मा बैठी थी ?”
“वह कहती थी कि मैं खुली हवा में, सितारों के नीचे, चांद की मद्धम रोशनी में...”
सुनील होंठ भींचकर हंसा ।
रामसिंह ने एक गहरी सांस ली ।
“सुनील” - वह असहाय भाव से गरदन हिलाता हुआ बोला - “आज मेरी समझ में
आया है कि क्यों घटनास्थल पर तुम्हारी मौजूदगी भर से ही इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल की हालत
पागलखाने जाने जैसी हो जाती है । क्यों तुम्हारे आधी दर्जन जवाब सुनकर उसके ब्लड
प्रैशर का ग्राफ दो सौ डिग्री से भी ऊपर शूट कर जाता है । मैं हमेशा इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल
को दोष दिया करता था कि वह अपने अक्खड़ स्वभाव और लट्ठमार तरीकों की वजह से
खामखाह लोगों से अदावत मोल लेता रहता है, उलझता रहता है । लेकिन आज मुझे
महसूस हो रहा है कि जिस के स में तुम्हारी टांग अड़ी होगी, उसकी तफ्तीश जो भी पुलिस
अधिकारी करेगा वही तुम्हारे अनोखे इत्तफाकों की दस्तान तथा तुम्हारे करामाती जवाब
सुन-सुनकर दीवार में सिर मारने की इच्छा करने लगेगा ।”
“रामसिंह, मैं सच कह रहा हूं...”
“क्यों नहीं, क्यों नहीं ! झूठ तो तुमने कभी बोला ही नहीं । ग्यारह पैंतीस तक तुम मेरे
साथ थे । अब सवा बारह बजे हैं । चालीस मिनट में तुमने एक सहेली भी तलाश कर ली,
उसे तफरीह के लिए भी तैयार कर लिया, यह भी जान लिया कि वह किस माहौल में
तफरीह करना पसन्द करती है और फिर हजार दूसरी जगह छोड़कर उसे नाक की सीध में
वहां ले आये जहां उस आदमी का कत्ल हुआ पड़ा था जिसका पता हमें ढूंढे मालूम नहीं हो
रहा था ।”
“इसीलिए तो कहते हैं कि हकीकत कहानी से ज्यादा विचित्र होती है ।”
“मुझे शक है कि या तो तुम्हें टोनी का पता पहले ही मालूम था और या फिर तुम ऐसा
कोई ठिकाना जानते थे जहां से तुम्हें टोनी का पता मालूम हो सकता था । इसीलिए तुमने
नीलोफर के कमरे से खिसकने में इतनी जल्दी दिखाई थी ।”
“रामसिंह, तुम खामखाह...”
“खैर, छोड़ो । तुम्हारी सहेली तो पुलिस के डर से भाग ही गई है । अब तुम्हारा क्या
इरादा है ?”
“मैं इस वक्त एक पत्रकार की हैसियत से यहां मौजूद हूं इसलिए बताओ क्या किस्सा
है ?”
“अगर मेरी जगह इस के स की तफ्तीश प्रभूदयाल कर रहा होता तो क्या वह तुम्हें
कु छ बताता ?”
“हरगिज नहीं बताता । कहीं कहे से भी कु म्हारी गधे पर चढती है ? वह तो आखिरी
दम तक सांप की तरह हासिल हुई जानकारी पर कुं डली मारकर बैठा रहता ।”
“और मैं भला ऐसा क्यों नहीं करूं गा ?”
“क्योंकि तुम पुलिस के एक प्रभूदयाल से कहीं ज्यादा जिम्मेदार उच्चाधिकारी हो
और खूब समझते हो कि अपनी तफ्तीश की जानकारी प्रेस को देना तुम्हारा फर्ज है ।”
“बस इतना ही !”
“नहीं और भी । इसके अलावा तुम मेरे दोस्त भी हो ।”
रामसिंह चुप रहा । उसने अपनी जेब से एक नया सिगार निकाला, उसका सैलोफे न
का रैपर उतारकर फें का और दांतों से उसका कोना कु तरने लगा ।
“तुम्हें टोनी की हत्या की खबर कै से लगी ?” - सुनील ने पूछा ।
“किसी औरत ने पुलिस हैडक्वार्टर फोन करके कहा था कि हम फौरन नेपियन हिल
के बंगला नम्बर नौ में पहुंचें । क्योंकि वहां किसी ने टोनी पारनेल को शूट कर दिया था ।
टोनी पारनेल का नाम सुनते ही मैं किसी को यहां भेजने के स्थान पर खुद ही चला आया ।
यहां हमने टोनी को मरा पाया । किसी ने 32 कै लिबर की रिवाल्वर से उसे पीछे से शूट कर
दिया है ।”
“फोन करने वाली ने अपना नाम नहीं बताया ?”
“नहीं ।”
“वह जरूर टोनी की वही सहेली होगी जिसके साथ तफरीह करने के लिए वह यहां
आया हुआ था । तुम्हें उसका पता लगाना चाहिए । शायद कत्ल उसके सामने हुआ हो ।
शायद उसने हत्यारे को देखा हो ।”
“नहीं । कत्ल उसके फोन करने से पहले, काफी पहले हो चुका था । उसका फोन
ग्यारह पचपन पर गया था । कत्ल ग्यारह बजे हुआ था । अगर तुम्हारे वाली बात सही होती
तो फोन ग्यारह के आसपास आया होता ।”
“फिर भी तुम्हें उस लड़की का पता लगाना चाहिए ।”
“कोशिश जारी है ।”
“यह पक्की बात है कि कत्ल ग्यारह बजे हुआ था ?”
“हमारा डॉक्टर और दूसरे विशेषज्ञ पांच दस मिनट की कसम तो नहीं खाते लेकिन
उनका दावा है कि कत्ल ग्यारह बजे के करीब हुआ है ।”
“नीलोफर का क्या हाल है ?”
“बच जायेगी । तफ्तीश से मालूम हुआ है कि डिब्बे में मौजूद चाकलेट के सभी पैके टों
में जहर था । लड़की हर वक्त चाकलेट चबाने की आदी मालूम होती है । अगर वह सारे
पैके ट खा गई होती तो हरगिज न बचती । अब उसके पेट से पम्प करके सारा जहर
निकाला जा चुका है लेकिन अभी भी वह जल्दी होश में नहीं आने वाली ।”
“होश में आने पर शायद वह किसी का नाम ले जो कि उसे जहर दे सकता हो ।”
“शायद ।”
“उसके फ्लैट से कोई और सूत्र मिला ?” - सुनील ने सावधानी से पूछा ।
“मालूम नहीं” - रामसिंह बोला - “मैं तो इस हादसे की खबर सुनते ही यहां भागा
चला आया था । नीलोफर के फ्लैट पर मैं इन्स्पेक्टर तनवीर को छोड़ आया हूं । वह रिपोर्ट
करेगा तो मालूम होगा कि वहां कोई सूत्र मिला या नहीं ।”
तो अभी रामसिंह को नीलोफर के फ्लैट में रीता के विजिटिंग कार्ड की मौजूदगी की
खबर नहीं लगी थी - सुनील ने मन ही मन सोचा ।
“तुम अभी यहां ठहरोगे ?” - थोड़ी देर बाद सुनील ने पूछा ।
“हां” - रामसिंह बोला - “फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट की इन्तजार कर रहा हूं । लाश
पोस्टमार्टम के लिए जा चुकने के बाद ही कहीं जाऊं गा ।”
“मैं चलूं ?”
“शौक से ।”
“जानकारी देने के लिए शुक्रिया ।”
“नैवर माइण्ड ।”
“प्रभूदयाल की मौजूदगी में तो इतनी बातें मुझे कल सुबह तक न मालूम होती ।”
रामसिंह चुप रहा । वह ताजे सुलगाये सिगार के गहरे-गहरे कश लगाने लगा ।
सुनील कम्पाउण्ड से बाहर निकल आया ।
उसकी टैक्सी अभी भी पानी की टंकी के पास खड़ी थी और चिड़चिड़ाया हुआ टैक्सी
ड्राइवर उसका इन्तजार कर रहा था ।
सुनील टैक्सी पर सवार हो गया ।
वह फिर शंकर रोड पहुंचा ।
उसने रीता की कोठी की कालबैल बजाई ।
इस बार खुद रीता ने दरवाजा खोला । प्रत्यक्ष था वह बिस्तर के हवाले नहीं हुई थी ।
उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
सुनील बिना कु छ बोले उसकी बगल से होता हुआ भीतर दाखिल हो गया । वह एक
सोफे पर जा बैठा ।
“आओ, बैठो ।” - वह रीता को आमन्त्रित सा करता हुआ बोला ।
रीता ने विचित्र नेत्रों से उसकी ओर देखा, फिर दरवाजा बन्द किया और फिर उसके
सामने आकर खड़ी हो गई । उसके चेहरे पर अनिश्चय के भाव थे ।
“बैठो ।” - सुनील फिर बोला ।
रीता बैठ गई ।
“शायद तुम यह फै सला नहीं कर पा रही हो कि मेरे बेवक्त यूं बार-बार यहां आने पर
तुम्हें खफा होना चाहिए या तुम्हें सारी बात सुन चुकने तक सब्र करना चाहिए और फिर
मुझे यह जताना चाहिए कि मुझे यूं बेवक्त बार-बार यहां नहीं आना चाहिए है, न ?”
“ऐसी तो कोई बात नहीं ।” - रीता हड़बड़ाकर बोली ।
“अगर है भी तो मुझे कोई एतराज नहीं । मैं तुम्हें सिर्फ यह बताने आया था कि अब
टोनी पारनेल से तुम्हारी मुलाकात मुमकिन नहीं होगी ।”
“टोनी पारनेल ?”
“भूल गई ? फाइव स्टार नाइट क्लब का मालिक जिसका पता - वह पता जो किसी
को मालूम नहीं - तुमने एक कागज पर लिखकर अपने बैग में रखा हुआ है ।”
“मेरा टोनी पारनेल से मिलने का कोई इरादा नहीं ।”
“है भी तो अब वह इरादा पूरा नहीं हो पायेगा ।”
“वजह ?”
“उसकी हत्या हो गई है । किसी ने उसे बत्तीस कै लीबर की रिवाल्वर से शूट कर दिया
है ।”
“ओह !”
रीता के मुंह से के वल इतना ही निकला । सुनील को लगा जैसे उसे टोनी की मौत की
खबर सुनकर कोई हैरानी न हुई हो ।
“जब मैं पहली बार आया था तो” - सुनील धीमे किन्तु स्पष्ट स्वर से बोला - “जो
रिवाल्वर तुम्हारे बैग में से निकल कर बाहर गिरी थी वह भी 32 कै लिबर की थी ।”
“हां थी” - रीता तनिक कठोर स्वर से बोली - “32 कै लिबर की रिवाल्वर कोई
असाधारण चीज तो नहीं । वह राजनगर में हजारों आदमियों के पास हो सकती है ।”
“और उसकी नाल में से बारूद जैसी गन्ध आ रही थी, जैसे उसमें से ताजी-ताजी
गोली चलाई गई थी ।”
“तुम्हें वहम हुआ है । मेरी जानकारी में वह रिवाल्वर कभी इस्तेमाल नहीं की गई ।”
“वह रिवाल्वर तुम्हारी है ?”
“हां ।”
“तुम्हारे पास इसका लाइसेंस है ?”
“हां ।”
“कब से ?”
“जब से पापा की मौत हुई है ।”
“उसे हर वक्त अपने पास रखती हो ?”
“नहीं ।”
“तो कहां रखती हो ?”
“अपने आफिस में । राइटिंग टेबल के दराज में ।”
“आज यह तुम्हारे बैग में कै से थी ?”
“यूं ही रख ली थी । कभी-कभी जब मैं परेशान होती हूं तो मैरीना बीच कर अके ली
घूमने चली जाती हूं । ऐसे किसी मौके पर मैं रिवाल्वर साथ ले जाती हूं ।”
“आज ऐसा ही मौका था ?”
“हां ।”
“तुमने आज उस रिवाल्वर से कोई गोली चलाई थी ?”
“आज क्या कभी भी नहीं चलाई । मुझे तो यह भी विश्वास नहीं कि चलाने का मौका
आने पर मैं उसे चला भी पाऊं गी या नहीं ।”
“रिवाल्वर जरा दिखाओ तो ?”
“क्यों ?”
“तुम्हें रिवाल्वर दिखाने से कोई एतराज है ?”
“एतराज तो नहीं है लेकिन... अच्छा, लाती हूं ।”
रीता रिवाल्वर ले आई । उसने झिझकते हुए रिवाल्वर सुनील को थमा दी ।
सुनील ने सबसे पहले रिवाल्वर की नाल को सूंघा । रिवाल्वर में से जले हुए बारूद
की गन्ध नहीं आ रही थी लेकिन साफ मालूम हो रहा था कि रिवाल्वर की नाल ताजी-ताजी
साफ की गई थी और उसमें तेल दिया गया था । सुनील ने रिवाल्वर का चैम्बर खोलकर
भीतर झांका । चैम्बर पूरा भरा हुआ था । उसमें कोई गोली कम नहीं थी ।
“अगर तुम्हारा ख्याल है कि इस रिवाल्वर से टोनी की हत्या हुई है तो यह ख्याल
अपने दिमाग से निकला दो ।” - रीता बोली ।
“नहीं ।” - सुनील स्थिर स्वर से बोला ।
“क्यों ?”
“तुम रिवाल्वर को साफ करके उसमें नये सिरे से तेल देकर उसकी नाल में से बारूद
की गंध उड़ा सकती हो । तुम इसमें से चली गोली के स्थान पर नई गोली भर सकती हो
लेकिन पुलिस फिर भी बड़ी आसानी से यह जान सकती है कि इस रिवाल्वर से निकली
गोली से हत्या हुई थी या नहीं ।”
“कै से ?” - रीता के मुंह से निकला ।
“रिवाल्वर की नाल का भीतर भाग कितनी ही होशियारी से क्यों न बनाया जाए वह
कभी एकदम हमवार नहीं होता । उसमें कहीं-न-कहीं कोई-न-कोई उभरा हुआ, नोकीला
स्थल रह जाता है । जब उस नाल में से गोली निकलती है तो इस नोकीले स्थल के कारण
गोली पर एक विशेष प्रकार की लकीरें पड़ जाती हैं । वे लकीरें हमारे हाथ की उंगलियों के
निशानों की तरह किन्हीं दो रिवाल्वरों से निकली गोलियों पर एक प्रकार की नहीं हो सकतीं
। अब सुनो पुलिस क्या करती है । पुलिस पहले लाश में से गोली बरामद करती है । फिर
वह उस रिवाल्वर को हथियाती है जिसमें से खूनी गोली चली होने का उन्हें सन्देह होता है ।
पुलिस रिवाल्वर में से एक और गोली चलाती है और फिर कम्पैरिजन माइक्रोस्कोप द्वारा
उन गोली पर पड़ी लकीरों का मिलान लाश में से बरामद गोली पर पड़ी लकीरों से करती है
। अगर वे लकीरें एक हुई तो यह निर्विवाद रूप से मान लिया जाता है कि हत्या उस
रिवाल्वर से हुई है अगर हत्या तुम्हारी इस रिवाल्वर से हुई है तो इस तरीके से पुलिस के
लिए इस तथ्य को जान लेना बच्चों का खेल होगा ।”
रीता गैस निकले गुब्बारे की तरह पिचक गई ।
“तो मैं इस रिवाल्वर को गायब कर दूं ?” - उसके मुंह से निकला ।
“तुमने हत्या की है ?” - सुनील ने सीधा सवाल किया ।
“नहीं ।”
“सच कह रही हो ?”
“हां ।”
“तो फिर तुम रिवाल्वर गायब करके क्यों पुलिस का शक अपनी ओर मोड़ना चाहती
हो ? यह रिवाल्वर तुम्हारी है, पुलिस अगर यह सिद्ध कर भी ले कि इसी रिवाल्वर से खूनी
गोली चली है तो भी पुलिस बिना किसी ठोस आधार के यह दावा नहीं कर सकती कि
गोली तुमने चलाई है । लेकिन अगर तुमने रिवाल्वर गायब की और यह बात पुलिस को
मालूम हो गई तो फिर बहुत बुरा होगा - तुम्हारे हक में ।”
रीता चुप हो गई ।
“तुम यह सिद्ध कर सकती हो कि हत्या तुमने नहीं की ?”
“कै से ?”
“मसलन हत्या के समय तुम कहां थी ?”
“हत्या के समय ? कब हुई थी हत्या ?”
“लगभग ग्यारह बजे । उस समय तुम कहां थीं ?”
“मैरिना बीच पर । अके ली बैठी थी । या टहल रही थी । अपने अशांत मन को शांत
करने की कोशिश कर रही थी ।”
“यह बात सिद्ध कर सकती हो ?”
“कै से सिद्ध कर सकती हूं । बीच तो उजाड़ पड़ा था । किसी ने मुझे देखा तक नहीं
होगा ।”
“फिर भी हर हत्या के पीछे कोई उद्देश्य होता है । तुम्हारे पास टोनी की हत्या का क्या
उद्देश्य हो सकता है । तुम्हारे अपने कथनानुसार तुम तो उसे जानती तक नहीं ।”
“उद्देश्य है ।” - रीता धीरे से बोली ।
“क्या ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“सुनील, तुम कई बार मेरी परेशानी की वजह पूछ चुके हो । तुम परिवार के मित्र हो ।
हमारे हितचिन्तक हो । इसलिए सोच रही हूं कि तुम्हें सब-कु छ बता दूं । शायद तुम मुझे मेरे
सारे बखेड़े से निकलने के लिए कोई मुनासिब राय दे सको ।”
“बड़ा समझदारी भरा फै सला किया है तुमने ।”
रीता ने उसे धीरे-धीरे सारी दास्तान सुना दी । पहले उसने उसे साहनी के अपने
आफिस में आगमन के बारे में बताया । फिर उसने फाइव स्टार नाइट क्लब में नीलोफर के
साथ हुए अपने सारे वार्तालाप को दोहराया । अन्त में उसने रोहित से हुई गर्मागर्मी का
जिक्र किया ।
“मुझे पूरा विश्वास है” - अन्त में वह बोली - “कि रोहित के पास शेयर सर्टिफिके ट
नहीं है साहनी ने जो कहा था ठीक कहा था । सरिता का शेयर सर्टिफिके ट निश्चय ही टोनी
के पास था । मैंने रोहित को वह सर्टिफिके ट मुझे वापिस सौंपने के लिए कल दोपहर तक
का समय दिया था । सर्टिफिके ट वापिस हासिल करने का उसके पास एक ही तरीका था ।
या तो वह टोनी से उधार लिया रुपया उसे बारह बजे से पहले वापिस करके सर्टिफिके ट
हासिल करे और या फिर वह सर्टिफिके ट टोनी से जबरदस्ती छीन ले ।”
“तुम यह कहना चाहती हो कि उस सर्टिफिके ट को बिना टोनी का कर्जा चुकाए
वापिस हासिल करने के लिए रोहित ने टोनी की हत्या की है ?”
“मैं कु छ नहीं कहना चाहती । कहना तो दूर मुझे तो ऐसी कोई बात सोचने से भी डर
लगता है ।”
“लेकिन...”
“सुनो । यहां मेरी और रोहित की जो तकरार हुई थी, मुझे शक है, कि वह सब सरिता
ने सुन ली थी । हम साधारणतया सरिता के बिस्तर से हिलने की भी अपेक्षा नहीं करते
लेकिन डॉक्टर ने आज ही उसे थोड़ा बहुत चलने-फिरने की और ड्राइविंग पर जाने की
इजाजत दी थी । मुझे लगता है सरिता ने रोहित के ऊं चा बोलने की आवाजें सुनी थी । वह
अपने बेडरूम से बाहर निकल आई थी । उसने चुपचाप सारा वार्तालाप सुन लिया था ।”
“इससे क्या होता है ?”
“तुम सुनो तो । मेरा ख्याल है कि मेरे से हुई तकरार के बाद रोहित टोनी की हत्या
करने के इरादे से यहां से रवाना हो गया था । वह मेरे आफिस की मेज के दराज से मेरी
रिवाल्वर निकाल कर ले गया । सरिता को शायद उसके किसी गलत इरादे की भनक लग
गई । उसने उसका पीछा किया । अब शायद रोहित ने टोनी की हत्या कर दी है और सरिता
को भी इसके बारे में मालूम है ।”
“तुम उनसे बात करो इस बारे में ।”
“किन से ?”
“रोहित और सरिता से ।”
“वे दोनों कोठी पर नहीं हैं ।”
“ओह !”
“लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि हत्या के बाद किसी समय सरिता वापिस कोठी में
आई थी और फिर फौरन दोबारा कहीं चली गई थी, शायद रोहित को तलाश करने ।”
“तुम्हें कै से मालूम ?”
“जब तुम पहली बार यहां आये थे तो मैं तुम्हें यहां छोड़कर सीधी कोठी के बायें विंग
में गई थी । वहां सरिता का बैडरूम है । सरिता वहां नहीं थी । लेकिन वहां उसके पलंग पर
तकिए के नीचे मुझे यह रिवाल्वर पड़ी मिली थी । प्रत्यक्ष था कि रिवाल्वर हाल ही में चलाई
गई थी । मैंने वह रिवाल्वर वहां से उठाकर अपने हैंडबैग में रख ली थी ।”
“हूं ।”
“बाद में मैंने गैरेज का भी चक्कर लगाया था । वहां न रोहित की कार मौजूद थी और
न सरिता की । रोहित की कार वहां न होना तो कोई हैरानी की बात नहीं थी क्योंकि वह तो
कई बार रात के दो-दो बजे लौटता था लेकिन सरिता की कार तो महीनों से गैरेज में खड़ी
थी । उसके पास एक सफे द रंग की फियेट है जिसे उसके सिवाय कोई नहीं चलाता ।”
“तुम्हारे ख्याल से क्या हुआ होगा ?”
“मेरे ख्याल से रोहित ने मेरी रिवाल्वर अपने अधिकार में की होगी और फिर किसी
भी अन्जाम के लिए तैयार होकर टोनी से मिलने गया होगा । वहां उसने टोनी का खून
करके शेयर-सर्टिफिके ट अपने अधिकार में कर लिया होगा । बाद में घटनास्थल पर सरिता
पहुंची होगी । उसने वहां मेरी रिवाल्वर पड़ी देखी होगी जो शायद रोहित घबराहट में वहीं
फें क आया होगा । वह रिवाल्वर उठाकर यहां ले आई होगी । रिवाल्वर को अपने बेडरूम में
तकिए के नीचे छोड़कर वह वापिस रोहित की तलाश में कहीं चली गई होगी ।”
“यानी कि तुम्हारा ख्याल है कि कत्ल रोहित ने किया है ?”
“और कौन कर सकता है ?”
“सरिता कर सकती है । वह रोहित की देवता समान पूजा करती है । शायद उसने
रोहित की बला अपने गले लेने के इरादे से खून टोनी का खून कर दिया होगा ।”
“नहीं, नहीं । ऐसा नहीं हो सकता । सरिता ऐसा नहीं कर सकती ।”
“सम्भव है कत्ल तुमने किया हो । अगर वह शेयर सर्टिफिके ट रोहित टोनी से वापिस
न हासिल करता तो वह सीधा जाकर साहनी के हाथ में पहुंचता और फिर वह अपनी वह
धमकी पूरी कर देता जो उसने तुम्हें दी थी । साहनी का नापाक इरादा पूरा न हो पाये,
शायद इसीलिए शेयर सर्टिफिके ट हासिल करने के लिए तुमने टोनी का खून कर दिया हो
।”
“इस प्रकार तो हत्या का सन्देह साहनी पर भी किया जा सकता है ।”
“कै से ?”
“शायद टोनी ने साहनी को सरिता वाला शेयर सर्टिफिके ट बेचने से इन्कार कर दिया
हो । ऐसी हालत में न के वल साहनी का मुझे हासिल करने का सपना चकनाचूर हो जाता
बल्कि उसके वे लाखों रुपये भी बेकार जाते जो उसने पैरामाउण्ट कै मिकल्स के अन्य
पच्चीस प्रतिशत शेयर खरीदने के लिए खर्च किये थे । सुनील, साहनी बहुत कमीना आदमी
है । वह अपनी जिद पूरी करने के लिए कु छ भी कर गुजरने में समर्थ है ।”
“आल राइट । साहनी का हत्या का उद्देश्य तो तुमने बड़ा अच्छा बयान कर दिया
लेकिन तुम यह क्यों भूल रही हो कि हत्या तुम्हारी रिवाल्वर से हुई मालूम होती है । साहनी
के हाथ भला तुम्हारी रिवाल्वर कै से आ सकती थी ।”
“रिवाल्वर मेरे दफ्तर की मेज की दराज में मुद्दत से पड़ी थी । मैंने कभी दराज
खोलकर भी नहीं देखा था कि रिवाल्वर वहां थी या नहीं । शायद साहनी ने कभी वह
रिवाल्वर चुरा ली हो ।”
“साहनी कभी तुम्हारी कोठी पर तुमसे मिलना आया था ?”
“नहीं । कभी नहीं ।”
“देयर यू आर ।”
“लेकिन शायद उसने कोठी के किसी नौकर-चाकर को फं सा कर ऐसा किया हो ।”
“मुझे इसकी संभावना नहीं दिखाई देती । अगर उसने कत्ल करना होता तो वह
रिवाल्वर का कोई और इन्तजाम करता । वह भला तुम्हारी रिवाल्वर से कत्ल करके , तुम्हें
फं साने की कोशिश क्यों करता । इससे तो उसका मिशन ही फे ल हो जाता । अगर टोनी की
हत्या के इलजाम में तुम सजा पा जाती तो फिर वह पैरामाउण्ट कै मिकल्स के उन शेयरों
को क्या शहद लगाकर चाटता जो उसने खरीदे ही तुम्हें हासिल करने के लिए थे ?”
“शायद साहनी को रिवाल्वर घटनास्थल पर पड़ी मिली हो और उसे मालूम ही न हो
कि वह रिवाल्वर मेरी है । शायद उसने रिवाल्वर उठाकर टोनी का खून किया हो और
रिवाल्वर वहीं फें क दी हो ।”
“यह मुमकिन है” - सुनील ने स्वीकार किया - “लेकिन फिर तुम्हें घटनास्थल पर
लावारिसों की तरह तुम्हारी रिवाल्वर की मौजूदगी की कोई विश्वसनीय कहानी सोचनी
पड़ेगी । इतने बखेड़े जासूसी उपन्यासों में ही होते हैं हकीकत में नहीं ।”
रीता चुप रही ।
“तुम्हारे ख्याल से रोहित अब कहां होगा ?”
“कत्ल करके कहीं खिसक गया होगा । वह है ही कायर ।”
“तुम तो रोहित के पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई मालूम होती हो ।”
“मुझे यह लड़का पसन्द नहीं लेकिन मुझे अपनी छोटी बहिन के हिताहित की बहुत
चिन्ता है ।”
“यानी कि अगर तुम्हारी बहन बच जाए और रोहित फं स जाए तो तुम्हें कोई एतराज
नहीं होगा ?”
रीता ने होंठ काटे ।
“सरिता वापिस आकर फिर कहां चली गई ?”
“रोहित को ही कहीं तलाश करने गई होगी । यहां लौटी भी वह यही देखने होगी कि
रोहित कोठी पर लौट आया या नहीं । उसी चक्कर में उसने रिवाल्वर अपने बैडरूम में रख
जाना उचित समझा होगा ।”
“हूं” - सुनील कु छ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “रोहित के बारे में तुमने जो बातें
बताई हैं, उनसे तो इस बात की भी सम्भावना लगती है कि शायद जहर भरी चाकलेटों का
डिब्बा उसी ने नीलोफर को भिजवाया हो । वह नीलोफर का प्रेमी था इसलिए उसे नीलोफर
के फ्लैट का पता मालूम होना कोई बड़ी बात नहीं थी । तुम्हारा विजिटिंग कार्ड तो वह बड़ी
आसानी से हासिल कर सकता था । आखिर नीलोफर कल सुबह तक तुम्हें रोहित के
खिलाफ लिखित बयान देने वाली थी । रोहित के लिए उसका भी मुंह बन्द रहना जरूरी था
।”
“लेकिन उसने यह जाहिर करने की कोशिश क्यों की जैसे जहरीली चाकलेट
नीलोफर को मैंने भेजी हो ।”
“तुम्हें तंग करने के लिए । रीता, तुम्हें रोहित नापसंद है तो वह कौन सा तुम पर मरा
जा रहा होगा ।”
“तुम ठीक कह रहे हो । लेकिन सुनील, वह साहनी के खिलाफ भी तो बयान देने
वाली थी । सम्भव है साहनी ने...”
तभी बाहर से ब्रेकों की चरचराहट की आवाज आई । लगता था जैसे किसी तेज
रफ्तार से आती गाड़ी को एक दम से ब्रेक लगी हो ।
कोई उच्च स्वर से बोला ।
“पुलिस” - सुनील तीव्र स्वर से बोला - “यह पुलिस सुपरिटेण्डेण्ट रामसिंह की
आवाज थी ।”
कालबेल बजी ।
रिवाल्वर अभी भी सुनील के हाथ में थी ।
रीता झपट कर उठी ।
“रिवाल्वर मुझे दो ।” - वह बोली । उसने रिवाल्वर सुनील के हाथ से छीन ली ।
बड़े बेसब्रेपन से घंटी फिर बजी ।
रीता ने जल्दी से रिवाल्वर एक सोफे के डनलप पिलो के गद्दे के नीचे रख दी और
दरवाजा खोलने आगे बढ गई ।
फिर रामसिंह और उसके ए एस आई० ने ड्राइंग रूम में कदम रखा ।
सुनील उठकर खड़ा हो गया ।
“तुम यहां भी आ गए !” - रामसिंह सुनील को देखते ही हैरानी भरे स्वर में बोले ।
“रीता से मेरा पुराना परिचय है” - सुनील लापरवाही से बोला - “मिलने आया था ।”
“आधी रात को ?”
“क्या हर्ज है ?”
“रीता से मिलने आए थे या पुलिस के आगमन के बारे में इसे सावधान करने आए थे
?”
“नानसैंस” - सुनील मुंह बिगाड़ कर बोला - “मुझे तो मालूम भी नहीं था कि तुम यहां
आने वाले हो ।”
“मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं ।”
“यह मेरा दुर्भाग्य है ।”
रामसिंह बड़े दुविधापूर्ण भाव से सुनील को घूरता रहा ।
“तशरीफ रखिए ।” - रीता एक सोफे की ओर संके त करती हुई रामसिंह से बोली ।
“आप बैठिए” - रामसिंह बोला - “मैं यहां बैठता हूं । शरलाक होम्स के पास ।”
और रामसिंह उस सोफे पर बैठ गया जिसकी गद्दी के नीचे रीता ने रिवाल्वर रखी थी

रीता ने होंठ काटे और फिर अनमनी-सी उस सोफे पर बैठ गई जिस पर बैठने के
लिए वह रामसिंह को आमन्त्रित कर रही थी ।
ए एस आई आदरपूर्ण मुद्रा बनाए उन लोगों से बहुत परे दरवाजे के पास खड़ा रहा ।
“यहां कै से आ गए, सुपर साहब ?” - सुनील बोला - “क्या जहरीली चाकलेट का
रीता नागपाल से कोई सम्बन्ध निकल आया है ?”
“नहीं । मैं यहां टोनी पारनेल के कत्ल के सिलसिले में आया हूं ।” - रामसिंह ने रीता
को घूरते हुए उत्तर दिया ।
रीता रामसिंह से निगाह न मिला पाई ।
सुनील भी हैरान था । रामसिंह इतनी जल्दी कै से जान गया कि रीता का टोनी की
हत्या से कोई सम्बन्ध था । वह तो उसके वहां आगमन का यही अर्थ समझा था कि उसे
नीलोफर के फ्लैट में मौजूद रीता के विजिटिंग कार्ड की खबर लग गई थी ।
“रीता का उसके कत्ल से क्या सम्बन्ध ?” - सुनील बोला ।
“यह तो रीता जी ही बतायेंगी ?” रामसिंह बोला ।
रीता ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“मैडम” - रामसिंह रीता की ओर घूमा और यूं बोला जैसे उसे कोई भूली बात याद आ
गई हो - “पहले मुझे अपना परिचय देने की इजाजत दीजिए । मैं पुलिस सुपरिंटेण्डेण्ट
रामसिंह हूं । एक कत्ल की वारदात की तफ्तीश के सिलसिले में मुझे बेवक्त यहां हाजिर
होना पड़ा है लेकिन मुझे विश्वास है, पुलिस वालों की मजबूरी को समझते हुए आप इसका
बुरा नहीं मानेंगी और हमें पूरा सहयोग देंगी ।”
“जरूर ।” - रीता खोखले स्वर से बोली ।
“मैं आपसे कु छ सीधे और सरल सवाल पूछने जा रहा हूं । आप पढी-लिखी
समझदार महिला हैं इसलिए मैं आप से उम्मीद करता हूं कि आप मेरे सवालों के सीधे और
सच्चे जवाब देंगी ।”
“आप क्या पूछना चाहते हैं ?”
“आप टोनी पारनेल को जानती हैं ?”
“नाम सुना है, कभी मिलने का इत्तफाक नहीं हुआ ।”
“आपने उसका कत्ल किया ?”
“नहीं । हरगिज नहीं ।”
“आज रात ग्यारह बजे के करीब आप नेपियन हिल पर बंगला नम्बर नौ में या उसके
आस-पास कहीं गई थीं ?”
रीता हिचकिचाई ।
“मैं आपको अंधेरे में नहीं रखना चाहता । वास्तव में ग्यारह बजे के करीब नेपियन
हिल के बंगला नम्बर नौ में टोनी का कत्ल हो गया है ।”
रीता चुप रही ।
“मेरे सवाल का जवाब दीजिए ।”
“नहीं” - रीता बोली - “मैं वहां नहीं गई ।”
“आप झूठ बोल रही हैं ।” - रामसिंह कठोर स्पर से बोला ।”
“लेकिन, साहब, मैं...”
“आपके पास थंडरबर्ड नाम की एक लाल रंग की विदेशी कार है ?”
“है ।”
“पिछले कु छ घंटों में आपने वह कार किसी को उधार दी थी ? या आपकी जानकारी
के बिना उसे कोई और ले गया था ?”
“नहीं ।”
“हम यह निर्विवाद रूप से सिद्ध कर सकते हैं कि हत्या के समय के आस-पास
आपकी थंडरबर्ड नेपियन हिल के बंगला नम्बर नौ के पास थी ।”
“आप यह कै से कह सकते हैं कि वह मेरी कार थी ? क्या लाल रंग की थन्डरबर्ड
राजनगर में सिर्फ मेरे ही पास है ?”
“नहीं ऐसा नहीं है । हमारे मोटर व्हीकल्स के रजिस्ट्रेशन के रिकार्ड के अनुसार
राजनगर में तीन और शख्स हैं जिनके पास लाल रंग की थन्डरबर्ड है । हम पहले ही चैक
कर चुके हैं कि उन तीन सज्जनों की कार ग्यारह बजे के करीब नेपियन हिल से बहुत दूर
कहीं और मौजूद थी ।”
“इतने कम समय में ?” - सुनील के मुंह से निकला ।
“जी हां” - रामसिंह अधिकारपूर्ण स्वर से बोला - “इतने कम समय में । अब
हिन्दुस्तान में भी एक सदी पुरानी ठे ला छाप पुलिस नहीं है । हमारे पास भी अब क्राइम
डिटैक्शन के आधुनिक तरीकों की जानकारी और क्विक कम्यूनिके शन के बड़े साधन हैं ।”
सुनील चुप हो गया । अब उसकी समझ में आ गया कि रामसिंह टोनी के कत्ल के
सम्बन्ध में इतनी जल्दी वहां कै से पहुंच गया था । रीता की थन्डरबर्ड की जानकारी ही उसे
रीता तक लाई थी ।
“मैडम” - रामसिंह बोला - “हम घटनास्थल पर आपकी कार की मौजूदगी के बारे में
जानते हैं, आपकी मौजूदगी के बारे में नहीं । या तो आप यह कहिये कि ग्यारह बजे के
करीब आपकी कार आपके अधिकार में नहीं थी और या फिर कबूल कीजिए कि उस समय
आप अपनी कार के साथ घटनास्थल पर मौजूद थी ।”
रीता ने व्याकु ल भाव से सुनील की ओर देखा ।
तभी टेलीफोन की घंटी बज उठी ।
रीता अपने स्थान से उठी ।
“शायद फोन मेरा हो” - रामसिंह बोला - “मैंने एक अन्य के स की तफ्तीश में लगे
अपने आदमियों को कहा था कि अगर उन्हें कोई महत्त्वपूर्ण बात मालूम हो तो वे मुझे यहां
फोन कर दें ।”
रीता ने उठकर फोन सुना और फिर रिसीवर रामसिंह की ओर बढा दिया ।
“कोई इन्स्पेक्टर तनवीर है ।” - वह बोली ।
रामसिंह ने उठकर फोन ले लिया । उठते वक्त उसने यूं सूरत बनाई जैसे उसे कोई
चीज चुभ रही हो । उसने सोफे की सीट पर निगाह डाली लेकिन वहां कु छ न पाकर वह
टेलीफोन की ओर आकर्षित हो गया ।
“हल्लो, तनवीर” - वह रिसीवर में बोला - “अच्छा... अच्छा... अच्छा !” - उसकी
निगाह अपने आप ही रीता की ओर उठ गई - “कार्ड पर रीता नागपाल, मैनेजिंग
डायरेक्टर, पैरामाउण्ट कै मिकल्स लिखा है और नाम के ऊपर ‘विद कम्पलीमैंट्स फ्राम’
टाइप किया हुआ है ? ...अच्छा ...कार्ड चाकलेट के डिब्बे के साथ आया मालूम होता है ?
...सोफे के नीचे से मिला ? ...कमाल है ! कार्ड वहां कै से पहुंच गया उसे तो मेज पर पड़े
डिब्बे के नीचे या उसके आसपास कहीं होना चाहिए था ...खासतौर पर जबकि डिब्बे की
पैकिंग और सुतली तक डिब्बे के नीचे मौजूद थी... खैर, तुम पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचो ।
...ओके ।”
रामसिंह ने रिसीवर रख दिया ।
“मैडम” - रामसिंह रीता की ओर मुड़ा - “अब मैं आपसे एक नया सवाल पूछता हूं ।
आप नीलोफर को जानती हैं ?”
“हां” - रीता झिझकती हुई बोली - “मैं आज शाम को ही पहली बार उससे मिली थी
।”
“आपने अपने कार्ड के साथ और उस पर लिखे शुभकामनाओं के संदेश के साथ उसे
कोई चाकलेट का डिब्बा भेजा था ?”
“नहीं ।”
रामसिंह ने एक गहरी सांस ली । वह असहाय भाव से कन्धे झटकाता हुआ धम्म से
पहले वाले सोफे पर ढेर हो गया । लेकिन सोफे पर उसके भारी-भरकम शरीर का पूरा
दबाव पड़ते ही वह तुरन्त उठ खड़ा हुआ । उसने उलझनपूर्ण नेत्रों से सोफे की सीट की
ओर देखा । फिर उसने हाथ बढाकर गद्दी उठा ली ।
नीचे रिवाल्वर पड़ी थी ।
सुनील के मुंह से निकली सर्द सांस सारे कमरे में सुनाई दी ।
रामसिंह ने रिवाल्वर उठाने का उपक्रम नहीं किया ।
“बत्तीस कै लिबर ।” - वह होंठों में बुदबुदाया ।
“यह रिवाल्वर आपकी है ?” - उसने रीता से पूछा ।
रीता के मुंह से बोल नहीं फू टा । वह के वल सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला पाई ।
“रिपोर्टर साहब” - रामसिंह सुनील से बोला - “आप तशरीफ ले जाइए ।”
“लेकिन, रामसिंह...”
“शायद तुम यह कहना चाहोगे कि यह रीता का घर है और मुझे तुम्हें यहां से चले
जाने को कहने का कोई अधिकार नहीं । लेकिन अगर तुमने ऐसा कहा तो मुझे रीता को
क्वेश्चनिंग के लिए पुलिस हैडक्वार्टर ले जाना पड़ेगा । क्या तुम यह पसन्द करोगे ?”
“नहीं” - सुनील उठता हुआ बोला - “मैं जाता हूं ।”
“दैट्स ए गुड ब्वाय ।”
“रीता” - सुनील रीता की ओर मुड़ा - “जाने से पहले मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूं,
रामसिंह बहुत काबिल और सहृदय पुलिस अधिकारी है । इसके सामने झूठ बोलने से तुम्हें
कोई फायदा नहीं होगा । और फिर झूठ बोलकर दूसरे को बचाने की कोशिश में खुद
फं सना भी कोई समझदारी का काम नहीं ।”
रीता चुप रही ।
“गुड नाइट ऐवरीबाडी ।” - सुनील बोला और लम्बे डग भरता हुआ वहां से निकल
गया ।
कोठी के बाहर कम्पाउण्ड में पुलिस की जीप खड़ी थी, जिसमें ड्राइवर के अलावा दो
सिपाही मौजूद थे । सुनील उस ओर ध्यान दिए बिना कम्पाउण्ड से बाहर निकला और
सड़क पर आ गया । वह टैक्सी स्टैंड की ओर बढा ।
तभी सामने सड़क पर एक कार की हैड लाइट चमकी ।
सुनील की आंखें चौंधिया गई ।
कार समीप आई तो पहले उसे लगा कि वह फियेट थी । फिर उसे उसकी सफे द रंगत
का भी आभास मिला ।
एकाएक सुनील सड़क के बीच में आ कू दा और जोर-जोर से हाथ हिलाकर कार को
रुकने का संके त देने लगा ।
आधी रात के सन्नाटे में ब्रेकों की चरचराहट से वातावरण गूंज गया । कार उससे
मुश्किल से दो फीट दूर आकर खड़ी हुई ।
सुनील का अनुमान ठीक था । वह सरिता की ही कार थी । ड्राइविंग सीट पर सरिता
मौजूद थी ।
सुनील लपककर कार की बगल में पहुंचा और दरवाजा खोलकर कार में दाखिल हो
गया ।
“सु... नील !” - सरिता हैरानी से बोली ।
सुनील ने देखा स्टियरिंग पर उसकी उंगलियां कांप रही थीं और चेहरा फक पड़ा हुआ
था ।
“तुम यहां क्या कर रहे हो ?” - उसने पूछा ।
“सब-कु छ बताऊं गा” - सुनील जल्द से बोला - “पहले कार आगे बढाओ । फौरन ।”
“क्या ? यानी कि घर न जाऊं ?”
“अभी नहीं ।”
“क्यों ?”
“तुम कार तो आगे बढाओ ।”
“लेकिन...”
“वहां पुलिस आई हुई है । जो रिवाल्वर तुम अपने बैडरूम में तकिये के नीचे छोड़कर
आई थीं, वह पुलिस के हाथ पड़ चुकी है ।”
सरिता के होंठ फड़फड़ाने लगे । सुनील को भय लगने लगा कि कहीं वह वहीं मर कर
स्टियरिंग पर न जा गिरे ।
“अपने आपको सम्भालो ।”
सरिता चुप रही ।
“हटो । गाड़ी मुझे चलाने दो ।”
दोनों ने स्थान बदल लिए । सुनील ने कार आगे बढा दी ।
“सुनील...”
“अभी चुप रहो । अपने आपको शान्त करने की कोशिश करो । जो हरकतें तुम कर
रही हो, वह तुम्हारे लिये आत्महत्या के समान हैं । तुम्हारी सूरत देखकर मुझे लग रहा है कि
तुम्हें किसी भी क्षण फिर हार्ट अटैक हो सकता है ।”
“लेकिन...”
“एकदम चुप रहो और सब-कु छ भूल जाओ । मैं तुम्हें इम्पीरियल होटल में ले जा रहा
हूं । वहां नींद की गोली खाकर बिस्तर के हवाले हो जाना । सुबह तुम्हारी हालत सुधरी हुई
तो मैं तुमसे बात करूं गा । समझ गई ?”
सरिता ने कार की सीट के साथ सिर टिका लिया और आंखें बन्द कर लीं ।
सुनील ने कार को उस सड़क पर मोड़ दिया जो इम्पीरियल होटल की ओर जाती थी

***
सुनील ने टेलीफोन डायरेक्टरी में साहनी के घर का पता देखा और फिर सरिता की
कार पर ही वह उसके घर पहुंचा ।
साहनी की खूबसूरत एकमंजिली कोठी लिटन रोड पर थी । ड्राइव-वे में एक
एम्बैसेडर कार खड़ी थी । सुनील ने उसके हुड को हाथ लगाया ।
हुड गर्म था । जाहिर था कि इंजन हाल में ही बन्द किया गया था । अगर वह कार
साहनी ड्राइव कर रहा था तो वह कु छ ही देर पहले कोठी में लौटा था ।
उसने कालबैल बजाई ।
एक नौकर ने दरवाजा खोला ।
“मेरा नाम सुनील है” - सुनील बोला - “मुझे साहनी साहब से मिलना है । वे घर पर हैं
?”
“आप एक मिनट यहीं ठहरिये ।” - नौकर तनिक उपेक्षापूर्ण स्वर से बोला ।
सुनील वहीं खड़ा रहा । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
थोड़ी देर बाद नौकर वापिस लौटा ।
“साहब कहते हैं” - नौकर बोला - “उनकी तबीयत खराब है, वे इस वक्त आपसे नहीं
मिल सकते ।”
सुनील ने अपनी जेब से एक विजिटिंग कार्ड निकाला और उसपर लिखा - “टोनी मर
गया है । नीलोफर हस्पताल में है । मेरे से बात करके शायद आपको अपने बचाव की कोई
दिशा निर्धारित करने में सहूलियत हो ।”
“इसे साहब के पास ले जाओ ।” - सुनील ने कार्ड उसे थमा लिया ।
नौकर कार्ड ले गया ।
थोड़ी देर बाद वह फिर वापिस लौटा ।
“साहब कहते हैं, आप कल आइए ।”
सुनील ने एक आह भरी ।
नौकर दरवाजा बन्द करने के बाद घूमा ।
“सुनो ।” - सुनील बोला ।
नौकर ठिठका ।
“साहब क्या शाम से ही घर पर हैं ?”
“नहीं-नहीं । अभी थोड़ी देर पहले लौटे हैं । इसीलिए तो आराम करना चाहते हैं ।”
“ओह !”
सुनील वापिस फियेट में आ बैठा ।
वह कार को एक सुनसान सड़क पर ले गया । वहां उसने रूमाल निकाल कर बड़ी
सावधानी से हर वह स्थान साफ किया जहां उंगलियों के निशान रह सकते थे । फिर उसने
कार को ताला लगाया और उसे वहीं खड़ी छोड़कर आगे बढ गया ।
उसने कार की चाबियां एक गन्दे नाले में फें क दीं ।
थोड़ी दूर से उसे टैक्सी मिल गयी । वह उसमें सवार होकर ब्लास्ट के दफ्तर की ओर
रवाना हो गया ।
Chapter 3
अगली सुबह सुनील ने सबसे पहले रीता को फोन किया ।
यह देखकर उसे बड़ी राहत महसूस हुई कि पिछली रात रामसिंह ने रीता को
गिरफ्तार नहीं किया था । रीता के कई झूठ पकड़े गए थे लेकिन एक बात थी जो रामसिंह
की कत्ल की थ्योरी में फिट नहीं बैठती थी । उसकी धारणा थी कि जिसके पास सरिता
वाला शेयर सर्टिफिके ट होगा उसी ने टोनी की हत्या की होगी । उसने बड़ी बारीकी से कोठी
की तलाशी ली थी लेकिन शेयर सर्टिफिके ट तलाशी में बरामद नहीं हुआ था । रामसिंह रीता
को बिना पुलिस को सूचना दिए कहीं खिसक न जाने की राय देकर वहां से चला गया था ।
“उसे शेयर सर्टिफिके ट के अस्तित्व की और उसकी टोनी के पास मौजूदगी की खबर
कै से हुई ?” - सुनील ने पूछा ।
“वह क्या मुश्किल है” - रीता ने जवाब दिया - “टोनी की क्लब का बच्चा-बच्चा
उसके बारे में जानता है । रामसिंह को द्वारकानाथ ने बड़ी डिटेल से रोहित के जुए की
खातिर लिये कर्जे और फिर टोनी के पास शेयर सर्टिफिके ट गिरवी रखने की कहानी सुनाई
थी । रामसिंह को यह भी खबर लग गयी है कि रोहित के लिये शेयर सर्टिफिके ट वापिस
हासिल करने के लिये आधी रात की डैडलाइन थी ।”
“रामसिंह दोबारा फाइव स्टार नाईट क्लब में गया था ?”
“नहीं । उसने द्वारकानाथ को ही यहां बुला भेजा था । सारा वार्तालाप मेरे सामने हुआ
था ।”
“अब तो रामसिंह को रोहित पर भी हत्या का कड़ा संदेह होगा ?”
“नहीं मालूम होता । वह तो मेरे ही पीछे पड़ा हुआ है । या फिर वह सरिता को तलाश
कर रहा है । रोहित की तरफ तो उसका ध्यान ही मालूम नहीं होता ।”
“अजीब बात है ।”
“सुनील, अब मैं क्या करूं ?”
“रीता, एक बार फिर पूछ रहा हूं । तुमने तो कत्ल नहीं किया न ?”
“नहीं । आई स्वियर टु गॉड ।”
“फिर तुम चिन्ता मत करो । तुमने बात-बात पर झूठ बोलकर और रिवाल्वर के बारे
में तथ्य छु पाने की कोशिश करके अपने आपको कठिन स्थिति में डाल लिया है इसीलिए
एक सिद्धान्त के तौर पर रामसिंह तुम्हारे पीछे पड़ा हुआ है ।”
रीता की चिंता भरी गहरी सांस सुनाई दी ।
“रोहित की कोई खबर नहीं ?”
“नहीं । कम-से-कम वह कोठी पर तो नहीं लौटा । लेकिन सुनील, सरिता का भी तो
कु छ पता नहीं । मुझे उसकी बड़ी चिन्ता हो रही है । कितने ही महीनों बाद वह कल पहली
बार घर से निकली थी । क्या पता वह कहीं एक्सीडेंट कर बैठी हो । या उसे फिर दिल का
दौरा पड़ गया हो और वह कहीं पड़ी मर रही हो या, भगवान् न करे, मर चुकी हो ।”
“तुम सरिता की चिंता मत करो । वह जहां भी होगी, सुरक्षित होगी ।”
सुनील ने जल्दी से रिसीवर रख दिया ।
फिर उसने पुलिस हैडक्वार्टर फोन किया ।
रामसिंह वहां नहीं था ।
उसने रामसिंह की कोठी पर फोन किया ।
मालूम हुआ कि रामसिंह सुबह चार बजे वापिस लौटा था और उस वक्त सो रहा था ।
सुनील ने उसे जगाना उचित नहीं समझा ।
उसने विक्टोरिया हस्पताल फोन किया ।
मालूम हुआ नीलोफर को अभी भी होश नहीं आया था लेकिन वह खतरे से एकदम
बाहर थी ।
उसने इम्पीरियल होटल फोन किया ।
मालूम हुआ कि सरिता अभी भी सो रही थी ।
एक घण्टे बाद सुनील तैयार होकर अपने फ्लैट से निकला । अपनी साढे सात हार्स
पावर की मोटर साइकल पर सवार हुआ और ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर की ओर रवाना हो गया ।
‘ब्लास्ट’ के अपने के बिन में पहुंचकर उसने फिर से ‘ब्लास्ट’ का ताजा अंक खोला ।
उसमें टोनी की हत्या की और नीलोफर की हत्या के उपक्रम की दोनों खबरें छपी थीं
। लेकिन उनमें पुलिस की तफ्तीश की डिटेल नहीं थी । शायद वह अखबार छपने तक
दफ्तर में पहुंच नहीं पाई थी ।
तभी फोन की घंटी बजी ।
सुनील ने रिसीवर उठाकर कान से लगाया और बोला - “हैलो ।”
“सोनू” - स्विच बोर्ड से रेणु की आवाज आई - “कोई साहनी साहब तुमसे मिलने
आए हैं ।”
“यहां भेज दो ।”
थोड़ी देर बाद साहनी उसके छोटे से के बिन में दाखिल हुआ ।
सुनील ने उठकर उससे हाथ मिलाया । फिर दोनों बैठ गए ।
“कल आप मेरी कोठी पर तशरीफ लाए थे” - साहनी बोला - “कल मेरी तबियत
बहुत खराब थी । मुझे सख्त अफसोस है मैं आपसे मिल नहीं पाया ।”
“नैवर माइण्ड” - सुनील बोला - “जो वक्त मैंने आपसे मिलने के लिए चुना था वह
किसी शरीफ आदमी के घर जाने का नहीं था ।”
“मैं इधर से गुजर रहा था । सोचा, आपसे मिलता चलूं ।”
“बड़ी मेहरबानी की ।”
“कै से तशरीफ लाए थे कल रात आप ?”
“सच बताऊं ?”
“हां, हां ।”
“मैं आपको टोनी की हत्या और नीलोफर की हत्या के प्रयत्न की खबर सुनाकर
आपके चेहरे पर उसकी प्रतिक्रिया देखना चाहता था । कल आपने ऐसा कोई मौका मुझे
दिया नहीं । अब उस बात का कोई फायदा नहीं क्योंकि अब दोनों खबरें आप अखबार में
भी पढ चुके होंगे ।”
“मुझ पर इतनी मेहरबानी क्यों ? मेरा उन दोनों घटनाओं से क्या वास्ता ?”
“साहनी साहब, रीता से मेरा बड़ा पुराना परिचय है । उसने मुझे सारी कहानी सुनी दी
हुई है ।”
“इससे क्या होता है ?”
“मेरी धारणा है कि सरिता का शेयर सर्टिफिके ट हासिल करने के लिए आपने टोनी
का खून किया है ।”
“नानसेंस । जो काम आसानी से रुपया देकर हो सकता हो, उसे मैं कत्ल जैसे
मुश्किल तरीके से क्यों करना चाहूंगा ?”
“शायद आपका काम आसानी से रुपया देकर हो पाने की समभावना खतम हो गई
थी ।”
“मतलब ?”
“शायद टोनी उस शेयर सर्टिफिके ट के लिए आपकी बेताबी को देखते हुए आपसे
दुगनी-तिगुनी कीमत वसूल करना चाहता था । शायद वह आपको शेयर सर्टिफिके ट
मुनासिब दामों पर बेचने के अपने पुराने वादे से मुकर गया था । इसी बात पर आप की
उससे गर्मा-गर्मी हो गई और आपने उसका कत्ल कर दिया ।”
“अच्छा !” - साहनी धैर्यपूर्ण स्वर में बोला - “मैं कत्ल करने के लिए रिवाल्वर कहां से
लाया ?”
यही बात इस थ्योरी की टांग तोड़ दे रही थी ।
“रिवाल्वर आपको घटना-स्थल पर पड़ी मिली होगी” - प्रत्यक्ष सुनील बोला - “या
शायद उस वक्त रोहित भी वहीं हो और आपने उससे रिवाल्वर मांगी हो या उसकी
जानकारी के बिना हथिया ली हो ।”
“अगर मैंने टोनी की हत्या की है, फिर तो शेयर सर्टिफिके ट मेरे पास होगा ?”
“जाहिर है ।”
“लेकिन वह तो नहीं है मेरे पास ।”
“यह तो आप कहते हैं न ।”
“वह मेरे पास वाके ई नहीं है ।”
सुनील बड़े अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कराया ।
“वैसे कहानी अच्छाई सुनाई है आपने । अपने रविवारीय संस्करण के कथा विभाग में
छाप दीजिएगा, आपके अखबार के पाठकों का अच्छा मनोरंजन करेगी ।”
“नीलोफर वाली कहानी इससे भी दिलचस्प है ।”
“अच्छा !”
“क्या आप इस बात से इनकार करते हैं कि आपने नीलोफर को बाकायदा रिश्वत
देकर इस बात के लिए उकसाया था कि वह रोहित को ज्यादा-से-ज्यादा जुआ खेलने के
लिए प्रेरित करे । वह ढेर सारा रुपया हारकर आर्थिक संकट में पड़ जाए और फिर उसे
सरिता का शेयर सर्टिफिके ट गिरवी रखकर और रुपया हासिल करना पड़े और बाद में जब
वह उस सर्टिफिके ट को टोनी से वापस न छु ड़वा सके तो आप खुद वह शेयर सर्टिफिके ट
टोनी से खरीद लें ।”
“मैं भला क्यों इनकार करूं गा । ऐवरीथिंग इस कनासिडर्ड फे यर इन लव एण्ड वार ।”
“फिर जब आपको यह पता लगा कि नीलोफर आपकी यह करतूत रीता को लिखकर
देने वाली है तो आपने उसका मुंह बन्द करने के लिए उसकी हत्या कर देनी चाही । आपने
उसे जहरीली चाकलेट का एक डिब्बा भिजवा दिया जिसे खाकर मरने से वह बाल-बाल
बची ।”
“यह भी गलत । मैंने ऐसा कु छ नहीं किया ।”
“ठीक है, साहब” - सुनील हारकर बोला - “आपने कु छ नहीं किया । लेकिन शायद
आप इतनी आसानी से साबित न कर सकें कि आपने कु छ नहीं किया ।”
“मुझे साबित करने की जरूरत ही नहीं । मुझ पर इलजाम लगाने वालों को यह
साबित करना चाहिए कि मैंने कु छ किया है ।”
“कल रात ग्यारह बजे आप कहां थे ?”
“एक बार में बैठा विस्की पी रहा था ।”
“अके ले ?”
“हां ।”
“आपको टोनी पारनेल के नेपियन हिल वाले बंगले की खबर थी ?”
साहनी एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “हां, थी । लेकिन इसका मतलब यह
नहीं है कि मैंने जाकर उसका कत्ल कर दिया ।”
सुनील चुप रहा ।
“अब एक बात मैं पूछूं ?” - साहनी बोला ।
“पूछिये ।”
“तुम्हारी इस के स में क्या दिलचस्पी है ? मेरा मतलब तुम इसमें अखबार की रिपोर्टर
होने के नाते ही दिलचस्पी ले रहे हो या कोई जाती वजह है ?”
सुनील ने उत्तर नहीं दिया ।
“मुझे तुम रीता के लिए फिक्रमन्द मालूम होते हो ।”
“यही समझ लीजिए ।”
“समझ लिया । इसी सिलसिले में तुम्हें चेतावनी के तौर पर एक बात कहना चाहता हूं
।”
“क्या ?”
“मैं यह बात निर्विवाद रूप से सिद्ध कर सकता हूं कि कल रात रीता नेपियन हिल के
नौ नम्बर बंगले में टोनी से मिलने गई थी । उसने बंगले का दरवाजा खुला पाया था । वह
भीतर दाखिल हो गई थी । वहां उसने टोनी की लाश पाई थी । वहीं सरिता वाला शेयर
सर्टिफिके ट पड़ा था । उसने सर्टिफिके ट उठाया और चुपचाप वहां से चली आई ।”
“यानी कि आपको विश्वास है कि हत्या रीता ने नहीं की ।”
“हां, लेकिन साथ ही मुझे यह भी विश्वास है कि वह किसी और को बचाने की खातिर
मुसीबत अपने सर पर लेने की कोशिश कर रही है । मिस्टर सुनील, अगर शेयर सर्टिफिके ट
रीता के पास बरामद हुआ तो वह बहुत बुरी फं सेगी । क्योंकि खुद आप कह चुके हैं कि
जिसने हत्या की होगी शेयर सर्टिफिके ट भी उसी के पास निकलेगा ।”
“लेकिन आप जब पुलिस को कहेंगे कि रीता ने बंगले में टोनी की लाश पड़ी पाई थी
तो...”
“यह मैं आपको कह रहा हूं । पुलिस को मैं यही कहूंगा कि रीता वहां गई और शेयर
सर्टिफिके ट वापिस लेकर लौटी । मैं इस बारे में कु छ नहीं कहूंगा कि उसने टोनी को वहां
मरा पाया या जाकर मारा ।”
“आप यह कै से कह सकते हैं कि शेयर सर्टिफिके ट वहां से रीता लाई है ?”
“क्योंकि मुझे पक्का पता है कि पिछली रात को वह वहां गई थी, शेयर सर्टिफिके ट
वहां टोनी के पास था, लेकिन बाद में पुलिस की तलाश में वह वहां से बरामद नहीं हुआ था
। रीता के अलावा उस शेयर सर्टिफिके ट को वहां से कोई नहीं ला सकता ।”
“आप तो कहते हैं आप रीता से मुहब्बत करते हैं । फिर भी आप उसको फं साने की
कोशिश करेंगे ?”
“अगर आप मुझे फं साने की कोशिश करेंगे तो अपनी गरदन बचाने के लिए मैं जो
मुनासिब समझूंगा, करूं गा । इसलिए अगर आप अपने आपको रीता का हितचिन्तक
समझते हैं तो आप मेरे खिलाफ जो भी कदम उठायें सोच-समझकर उठाइएगा ।”
“मैं आपकी चेतावनी याद रखूंगा ।”
“थैंक्यू ।”
साहनी उठ खड़ा हुआ ।
“मुझे इजाजत दीजिए ।” - वह बोला ।
“जरूर !”
सुनील ने उठकर उससे हाथ मिलाया ।
साहनी घूमा, आगे बढा, दरवाजे पर पहुंचकर वह ठिठका, सुनील की ओर वापिस
घूमा ।
“एक बात और बताइये, मिस्टर सुनील ।” - वह बोला ।
“फरमाइए ।”
“आपने कभी जासूसी उपन्यास लिखने की कोशिश की है ?”
“नहीं तो ।”
“कोशिश करके देखिए । बहुत नाम कमायेंगे आप । आप में प्रतिभा है ।”
साहनी एक बार फिर मुस्कराया और के बिन से बाहर निकल गया ।
“बास्टर्ड !” - सुनील होंठों में बुदबुदाया ।
उसने टेलीफोन अपनी ओर खींच लिया, रेणु से डायरेक्ट लाइन मांगी और फिर
रामसिंह की कोठी का नम्बर डायल किया ।
मालूम हुआ कि रामसिंह पुलिस हैडक्वार्टर चला गया था ।
वह अपनी मोटर साइकल पर सवार होकर पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
रामसिंह अपने दफ्तर में मौजूद था और होंठों में सिगार दबाये एक कागज पढ रहा
था । उसने सुनील को बैठने का संके त किया । सुनील उसके सामने एक कु र्सी पर बैठ गया

रामसिंह कु छ क्षण कागज पढता रहा । फिर उसने कागज को एक पेपर वेट के नीचे
दबाकर मेज पर रख दिया ।
“कै से आए ?” - वह बोला ।
“तुम जानते ही हो” - सुनील बोला - “कल तो तुमने रीता की कोठी से मुझे भगा
दिया था लेकिन आज तो बताओ कि क्या खिचड़ी पका रहे हो ?”
“यह” - रामसिंह पेपरवेट के नीचे दबे कागज की ओर संके त करता हुआ बोला -
“हमारे बैलेस्टिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट है । इस रिपोर्ट के अनुसार हत्या निर्विवाद रूप से उस
रिवाल्वर से हुई है जो हमने रीता की कोठी से बरामद की है - सोफे के कु शन के नीचे से ।
और रीता ने कबूल किया है कि वह रिवाल्वर उसकी है ।”
“इसका यह मतलब हुआ कि हत्या उसने की है ?”
“हां । सरसरी तौर से देखा जाए तो यही मालूम होता है । जिस रिवाल्वर से हत्या हुई
है, वह उसके पास बरामद हुई है । वह यह भी स्वीकार कर चुकी है कि वह हत्या के समय
घटनास्थल पर मौजूद थी । उसके पास हत्या का तगड़ा उद्देश्य भी है । मुझे उस शेयर
सर्टिफिके ट की भी खबर लग चुकी है जो साहनी नाम के आदमी के हत्थे चढकर रीता को
अपनी कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर की कु र्सी से हटा सकता था । यह कहा जा सकता है
कि शायद रीता ने उस शेयर सर्टिफिके ट को हासिल करने के लिए टोनी की हत्या की ।
लेकिन सुनील, इन तमाम सबूतों के बावजूद भी मुझे विश्वास नहीं कि हत्या रीता ने की है
।”
“अच्छा !”
“यह के वल सरकमस्टान्शल एवीडेन्स हैं । कोई ठीक सबूत उसके खिलाफ नहीं ।
मुझे तो यह लगता है कि वह किसी और को बचाने के लिए जानबूझ कर स्वयं को
संदेहास्पद स्थिति में डाल रही है ।”
“और किसको ?”
“जरूर अपनी बहन सरिता को । घर में दो ही तो प्राणी हैं । सरिता या रोहित । रीता
शायद जानती है कि कत्ल सरिता ने किया है । वह सरिता को बचाने के लिए ही सारा
बखेड़ा अपने सिर लेने की कोशिश कर रही है ।”
“सरिता को क्यों ? रोहित को क्यों नहीं ?”
“रोहित से उसे कोई खास मुहब्बत नहीं मालूम होती । मुझे नौकरों-चाकरों के बयान
से मालूम हुआ है कि रोहित उसे साफ-साफ नापसंद है । वह तो रोहित को ऐसे आदमी की
निगाह से देखती थी जो उसकी भोली-भाली बहन की दौलत के लालच में पड़कर उसे
अपने प्रेमजाल में फं साकर घुसपैठियों की तरह उसके घर में घुस आया था । ऐसा आदमी
अगर किसी के कत्ल के इलजाम में फांसी पर लटक जाए जो उसे क्या परवाह होगी ?”
“चलो मान लिया रीता उसे कवर करने की कोशिश नहीं करेगी लेकिन हत्यारा तो वह
हो ही सकता है ।”
“मेरे ख्याल से नहीं हो सकता ।”
“क्यों ?”
“बताता हूं । सुनो । रोहित ने उस शेयर सर्टिफिके ट को टोनी के पास गिरवी रखकर
लाखों रुपये हासिल किये और सब हार गया । वह रुपया मूल रूप से किसका था ?”
“उसकी पत्नी का । सरिता का ।”
“करैक्ट । फिर रीता को उससे कोई जवाबतलबी करने का क्या मतलब ? तुम यही
कहोगे कि रीता रोहित की उस करतूत के बारे में सरिता को बताकर रोहित को सरिता की
नजरों से गिरा सकती थी, उसे जलील करवा सकती थी । शायद बात इस हद तक बढ
जाती कि तलाक की नौबत आ जाती । इसलिये रोहित ने वह शेयर सर्टिफिके ट वापिस
हासिल करने के लिए टोनी का खून कर दिया । है न ?”
“हां ।”
“टोनी का क्यों ? उसने सरिता का खून क्यों नहीं किया ? वह शेयर सर्टिफिके ट तो
सरिता की जायदाद का के वल एक छोटा सा हिस्सा था । अगर वह सरिता का खून करता
तो उसे सरिता की बाकी जायदाद भी विरासत में मिल जाती । सरिता एक दिल की मरीज,
लाचार औरत है । टोनी का खून करने के मुकाबले में रोहित के लिए सरिता का खून करना
कहीं ज्यादा आसान था । दो बार दिल का दौरा पड़ चुकने के बाद यदि सरिता चल बसती
है तो कौन शक करता कि उसकी हत्या की गई थी ।”
सुनील चुप रहा ।
“मैंने उस डॉक्टर से भी बात की है जो सरिता का इलाज कर रहा है । उसके
कथनानुसार सरिता की जिन्दगी एक ऐसे नाजुक धागे के साथ लटकी हुई है जो कभी भी
टूट सकता है । उसके दिल को एक मामूली-सी ठे स, मामूली-सा झटका, मामूली सा सदमा
उसकी जिन्दगी को खतम कर सकता है । डॉक्टर कहता है कि सरिता का दिल इतनी
शोचनीय स्थिति में है कि अगर कोई चुपचाप उसके पीछे जाकर चिल्लाकर ‘बू’ भी कह दे
तो उसके दिल की धड़कन रुक जाने की सम्भावना थी । अब तुम ही बताओ अगर रोहित
की जगह तुम होते तो तुम टोनी का कत्ल करने का मुश्किल तरीका अख्तियार करते या
सरिता का कत्ल करने का निहायत आसान तरीका ?”
सुनील चुप रहा । रामसिंह की दलील में दम था ।
“यानी कि तुम्हें यह बात कतई संदेह में नहीं डाल रही कि रोहित हत्या के समय से ही
गायब है ?” - वह बोला ।
“यह कोई विशेष महत्त्वपूर्ण बात नहीं । सम्भव है वह इसलिए कहीं छु पा हुआ हो
क्योंकि उसे छु पे रहने में सरिता की भलाई दिखाई दे रही हो । शायद वह कु छ ऐसी बातें
जानता हो जो सरिता को टोनी के कत्ल के के स में बड़ा गहरा फं सा सकती हो । शायद
उसने सरिता को टोनी का कत्ल ही करते देखा हो ।”
“सरिता के खिलाफ कोई ठोस प्रमाण है तुम्हारे पास ? जैसे कोई चश्मदीद गवाह
या...”
“एक ऐसा गवाह पुलिस की जानकारी में आया है जिसका बयान कम-से-कम इतना
सिद्ध कर सकता है कि कल रात सरिता टोनी के बंगले पर गई थी ।”
“अच्छा !”
“कल रात ग्यारह बजे से थोड़ी देर पहले एक नम्बर बंगले के एक अग्रवाल साहब
अपने कु त्ते के साथ टहलकर वापिस लौट रहे थे कि एक सफे द फियेट कार उनकी बगल में
आकर रुकी थी । कार फक्क चेहरा, कांपते होंठ, कांपती उंगलियों वाली एक युवती चला
रही थी । कार की डोम लाइट जल रही थी इसलिए अग्रवाल साहब ने बड़ी अच्छी तरह
उसकी सूरत देखी थी । वह निश्चय ही सरिता थी । उसने अग्रवाल साहब से नौ नम्बर बंगले
का रास्ता पूछा था । पता मालूम करके वह बड़ी तेज रफ्तार से उस ओर बढ गई थी ।”
“इसका यह मतलब हो गया कि उसने टोनी का खून किया था ।”
“सम्भावना तो है ही । यह बात, जमा रीता की उसको कवर करने की कोशिश जमा
रोहित से उसकी बेपनाह मुहब्बत, ये सारी बातें इकट्ठी होकर सरिता को अच्छा-खासा
सस्पैक्ट बना देती हैं ।”
“यह आखिरी बात मेरी समझ में नहीं आई ।”
“बात साफ है । क्या सरिता रोहित पर इस बुरी तरह से फिदा नहीं है कि वह उसकी
खातिर कु छ भी कर गुजरने को तैयार हो जाये ।”
“कत्ल भी ?”
“कत्ल भी ।”
“तुम रोहित को सन्देह से एकदम बरी करके गलती कर रहे हो । वह लड़का...”
“अभी तो मुझे सरिता सस्पैक्ट नम्बर वन लग रही है । तुम मुझे कोई ऐसी बात
सुझाओ जो सरिता को निर्दोष सिद्ध कर सकती हो, फिर मैं रोहित की खबर लूंगा ।”
“यह तो कोई अच्छी बात नहीं । तुम्हें तो के स से सम्बन्धित हर आदमी को संदिग्ध
समझना चाहिए ।”
“ऐसा ही करते हैं, साहब । लेकिन कोई आदमी ज्यादा संदिग्ध होता है, कोई कम
संदिग्ध होता है । किसी के खिलाफ हमारे पास प्रमाण होते हैं, किसी के खिलाफ सिर्फ
थ्योरी होती है और किसी के खिलाफ थ्योरी भी नहीं होती । अदालत में मुजरिम के
खिलाफ ठोस सबूत पेश करने पड़ते हैं, साहब ।”
“तुम सरिता को तलाश करवा रहे हो ?”
“बहुत बुरी तरह । नगर का कोना-कोना छनवा रहा हूं ।”
सुनील चुप हो गया ।
“कॉफी पियोगे ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“नही” - सुनील जल्दी से बोला - “मैं अब चलूंगा ।”
“सूट युअरसैल्फ ।”
“नीलोफर का क्या हाल है ?”
“अभी भी बेहोश है । बेचार बाल-बाल बची है । लेकिन सुनील, उसको भेजे गए
चाकलेट के डिब्बे के बारे में एक ऐसी बात मालूम हुई है जो यह जाहिर करती है कि
नीलोफर को जहरीली चाकलेट फाइव स्टार नाइट क्लब से सम्बन्धित किसी आदमी ने
भेजी थी ।”
“अच्छा !”
“हां । वह डिब्बा जिस खाकी कागज में लिपटा हुआ था, वह फाइव स्टार नाइट क्लब
में इस्तेमाल होता है, जिस सुतली से डिब्बा ऊपर से बांधा गया था, वह भी एक विशेष
प्रकार की सुतली है जो वहीं इस्तेमाल होती है । रीता के विजिटिंग कार्ड के ऊपर ‘विद
कम्पलीमैन्ट्स फ्राम’ टाइप किया हुआ था । हमने उस टाइप का टोनी के आफिस में पड़े
एक टाइपराइटर के नमूने से मिलान किया है । उससे यह सिद्ध होता है कि रीता के कार्ड
पर वे तीन शब्द टोनी के आफिस में पड़े टाइप राइटर द्वारा ही टाइप किए गए थे । और
पैकिंग पेपर पर पड़े सुतली के निशानों से मालूम होता है कि वह पैके ट कम-से-कम तीन-
चार दिन पहले बनाया गया था ।”
“तीन-चार दिन पहले ?” - सुनील हैरानी से बोला ।
“हां । इसका मतलब समझे ? इसका मतलब यह हुआ कि कोई काफी पहले से ही
नीलोफर को जहर देने की फिराक में था । इसीलिए किसी ने पहले ही जहरीली चाकलेट
का डिब्बा पैक करके नीलोफर को भेजने के लिए तैयार रखा हुआ था । कल रात रीता
नीलोफर से मिलने के लिए गई । उसने नीलोफर को अपना विजिटिंग कार्ड दिया जिसे
नीलोफर ने अपने पास रखना गैरजरूरी समझकर बाद में वहीं फें क दिया । जिसने
नीलोफर को जहरीली चाकलेट भेजी थीं, वह कार्ड उसके हाथ पड़ गया । उसने टोनी के
दफ्तर में पड़े टाइप राइटर द्वारा उस पर रीता के नाम के ऊपर ‘विद कम्पलीमेण्ट्स फ्राम’
टाइप किया, ताकि शक रीता पर जाये और डिब्बा नीलोफर को भेज दिया ।”
“कहां ? उसके फ्लैट पर ?”
“वहीं भेजा होगा ।”
“लेकिन क्लब में तो किसी को भी उसके फ्लैट का पता नहीं मालूम था ।”
“शायद किसी को मालूम हो । शायद कोई झूठ बोल रहा हो और फिर वास्तव में
नीलोफर तक डिब्बा कै से पहुंचा, यह बात तो होश में आने पर नीलोफर ही बतायेगी ।”
“डिब्बे पर किसी की उंगलियों के निशान मिले ?”
“सिर्फ नीलोफर की । डिब्बा भेजने वाला शायद इस मामले में सावधान था । वह
जरूर दस्ताने पहने रहा होगा ।”
“लेकिन फाइव स्टार नाइट क्लब में से कौन नीलोफर को जहरीली चाकलेट भेज
सकता है ?”
“अभी कु छ नहीं कहा जा सका । तफ्तीश जारी है । जल्दी ही कोई नतीजा सामने
आएगा ।”
“खुद टोनी के बारे में क्या ख्याल है ?”
“कहा न अभी कु छ नहीं कहा जा सकता ।”
“मुझ पर एक मेहरबानी करोगे ?”
“क्या ?”
“मुझे नीलोफर के होश में आने के बाद उससे बात करने का मौका दोगे ?”
“पुलिस द्वारा बयान लिया जा चुकने के बाद पहले नहीं ।”
“हां, हां बाद में ही ।”
“ठीक है । मैं हस्पताल में मौजूद हवलदार को तुम्हारे बारे में निर्देश दे दूंगा ।”
“थैंक्यू ।”
सुनील ने रामसिंह से हाथ मिलाया और वहां से विदा हो गया ।
***
सुनील इम्पीरियल होटल पहुंचा ।
सरिता जाग चुकी थी । अब उसके चेहरे की रंगत लौट आई मालूम होती थी । अब
वह कल की तरह आतंकित नहीं मालूम होती थी । एक लम्बी नींद के बाद उसने स्वयं को
काफी हद तक अपने काबू में कर लिया था ।
“कै सी तबीयत है ?” - सुनील ने उसके सामने एक कु र्सी पर बैठते हुए पूछा ।
“ठीक है ।” - सरिता के होंठों पर फीकी मुस्कराहट उभरी ।
“नींद ठीक से आई न ?”
“हां ।”
“कल तो तुम्हारे होश उड़े हुए थे । ऐसा लगता था कि जैसे तुम...”
“कल मुझे बहुत भारी सदमा पहुंचा था । जो कु छ हुआ उसने मेरी जान ही नहीं ले
ली, यही हैरानी है ।”
“मैं कल की घटनाओं के बारे में ही बात करने आया हूं ।”
सरिता चुप रही ।
“मैं जो पूछूं, उसका सीधा, सच्चा जवाब देना । उत्तेजित होने की कोशिश मत करना
।”
“अच्छा ।”
“कल तुमने अपनी कोठी पर रीता और रोहित को एक-दूसरे से झगड़ते सुना था ?”
“हां ।”
“तुमने रीता को रोहित पर यह इल्जाम लगाते सुना था कि वह लाखों रुपये टोनी की
क्लब में जुए में हार चुका है । उस ने तुम्हारा शेयर सर्टिफिके ट टोनी के पास गिरवी रखा
हुआ है, उसकी रात बारह बजे से पहले टोनी से छु ड़ा लेना जरूरी था और यह कि टोनी
नेपियन हिल के नौ नम्बर बंगले में मौजूद था और...”
“गलत ।”
“गलत ! क्या गलत है !”
“मेरा शेयर सर्टिफिके ट किसी टोनी-वोनी के पास नहीं था ।”
“तो फिर किसके पास है वह ?”
“मेरे अपने पास ।”
“कब से ?”
“हमेशा से ।”
“अब कहां है वह ?”
“मेरे पास । दिखाती हूं ।”
सरिता से अपने पर्स से शेयर सर्टिफिके ट निकालकर सुनील को दिखाया ।
“अगर यह सर्टिफिके ट हमेशा ही तुम्हारे पास था तो रोहित ने रीता को ऐसा कहा क्यों
नहीं ?”
“पता नहीं, क्यों नहीं कहा ?”
“वह तो कहता था कि सर्टिफिके ट बैंक में रखा है और वह उसे बैंक से लेकर रीता को
दिखाएगा ।”
“उसे गलती लगी होगी ।”
“यह सर्टिफिके ट इस वक्त तुम्हारे पर्स में कै से मौजूद है ?”
“इत्तफाक से ।”
“तुम यह सर्टिफिके ट टोनी के पास से नहीं लाई ?”
“नहीं । यह हमेशा ही मेरे पास था । मैं पहले ही कह चुकी हूं ।”
“लेकिन रोहित ने इसी सर्टिफिके ट के खिलाफ तो टोनी से लाखों रुपया कर्जा लिया
था । रोहित ने निश्चय ही वह सर्टिफिके ट टोनी को सौंपा था । इस बात की कई लोगों को
खबर है । कई लोगों ने यह सर्टिफिके ट टोनी के पास देखा भी होगा ।”
“उन्हें गलतफहमी हुई होगी । यह सर्टिफिके ट टोनी के पास हो ही नहीं सकता था ।
यह हमेशा मेरे पास था ।”
“सबको गलतफहमी हुई होगी ?”
“हां ।”
“पुलिस की थ्योरी है कि इस सर्टिफिके ट की खातिर ही टोनी की हत्या हुई है ।”
“पुलिस की थ्योरी गलत है ।”
“सरिता, तुम झूठ बोल रही हो । सर्टिफिके ट के बारे में तुम सरासर झूठ बोल रही हो
। यह सर्टिफिके ट कल टोनी के पास था । तुम इसे वहीं से लाई हो ।”
सरिता चुप रही ।
“मैं तुम्हारा हितचिन्तक हूं, तुम्हारा दुश्मन नहीं । सच-सच बोलो, कल क्या हुआ था ।
इसी में तुम्हारी भलाई है ।”
सरिता ने कु छ बोलने के लिए मुंह खोला और फिर बन्द कर लिया ।
“कम ऑन । कम क्लीन ।”
“सुनील, कल मैंने रोहित का पीछा किया था । वह कल बहुत परेशान था । मुझे डर
था वह कोई गलत हरकत न कर बैठे ।”
“तुम रोहित के नेपियन हिल पहुंचने तक हर क्षण उसके पीछे रही थीं ?”
“नहीं । आरम्भ में मुझे कार निकालने में थोड़ा समय लग गया था । तब कु छ क्षणों के
लिए रोहित की कार मेरी दृष्टि से ओझल हो गई थी लेकिन क्योंकि मेरा अनुमान था कि वह
नेपियल हिल ही जाएगा इसलिए मैं नेपियन हिल के रास्ते पर अपनी कार भगाती रही थी ।
तीसरे ही चौराहे पर मुझे रोहित की कार फिर दिखाई दे गई थी ।”
“फिर ?”
“वह वाकई नेपियन हिल जा रहा था । लेकिन नेपियन हिल के समीप पहुंच कर वह
अन्धेरे में पता नहीं किधर मोड़ काट गया कि उसकी कार फिर मेरी दृष्टि से ओझल हो गई ।
मैं कु छ क्षण इधर-उधर सड़कों पर भटकती हुई उसकी कार तलाश करने की कोशिश
करती रही लेकिन उसकी कार मुझे दोबारा दिखाई नहीं दी । फिर मैंने नौ नम्बर बंगले पर
जाने का फै सला किया लेकिन मुझे उसका रास्ता नहीं मालूम था । तभी मुझे अपना कु त्ता
टहलाते हुए एक साहब दिखाई दिये । मैंने उनसे नौ नम्बर बंगले का रास्ता पूछा और सीधे
वहां पहुंच गई । मैंने बंगले का दरवाजा खटखटाया । भीतर से मुझे कोई जवाब नहीं मिला
। मैंने दरवाजे को धक्का दिया तो मालूम हुआ कि दरवाजा खुला था । मैं भीतर दाखिल हो
गई । भीतर एक आदमी की लाश पड़ी थी । वह आदमी टोनी ही होगा । है न ?”
“वह टोनी ही था । आगे ।”
“वह मरा पड़ा था । उसकी लाश खून से लथपथ मेज के पास पड़ी थी । उस वीभत्स
दृश्य को देखकर मेरा तो हार्ट फे ल होता-होता बचा । मैंने यही समझा कि जितना समय मैं
पहले रोहित की कार की तलाश में और फिर नौ नम्बर बंगले की तलाश में इधर-उधर
भटकती रही थी, उतनी देर में रोहित वहां पहुंचा था, उसका टोनी से झगड़ा हुआ था और
फिर उसने टोनी को गोली मार दी थी ।”
“ऐसा कै से सोच लिया तुमने ?”
“वहां फर्श पर रीता की रिवाल्वर पड़ी थी । रीता की रिवाल्वर और कै से वहां पहुंच
सकती थी ? मैं लगभग सारा रास्ता रोहित का पीछा करती हुई वहां पहुंची थी । लाश से
साफ जाहिर हो रहा था कि हत्या हाल ही में हुई थी । ऐसी हालत में मैं रोहित को हत्यारा न
समझती तो किसे समझती ?”
“फिर तुमने क्या किया ?”
“मैंने रिवाल्वर अपने अधिकार में ले ली ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वह कत्ल के के स में सबूत थी । मेरे ख्याल से हत्या रोहित ने की थी । वह
मेरा पति है, मैं उससे मुहब्बत करती हूं । उसका बचाव करना मेरा धर्म है ।”
“अपनी जान खतरे में डाल कर भी ?”
“जी हां ।”
“आगे ।”
“फिर मुझे मेज पर कु छ कागज उड़ते दिखाई दिए । मैंने उनमें अपना शेयर
सर्टिफिके ट भी देखा । मैंने फौरन सर्टिफिके ट उठाकर अपने पर्स में रख लिया ।”
“फिर ?”
“फिर मैं वहां से चली आई ।”
“घटना-स्थल पर हर जगह अपनी उंगलियों के निशान छोड़कर ?”
सरिता चुप रही ।
“आगे बढो ।”
“मैं वापिस शंकर रोड लौटी । रोहित अभी कोठी पर वापिस नहीं लौटा था । मैंने
रिवाल्वर अपने बैडरूम में तकिए के नीचे रखी और फिर दोबारा रोहित की तलाश में
निकल पड़ी । मैं रोहित के मुंह से सुनना चाहती थी कि वास्तव में क्या हुआ था । मैंने हर
मुमकिन जगह पर रोहित की तलाश की लेकिन वह मुझे कहीं नहीं मिला । हार कर मैं
वापिस कोठी की ओर लौट पड़ी । फिर कोठी के पास मुझे तुम मिल गये । आगे तुम जानते
ही हो ।”
“तुम्हारे ख्याल से राहित कहां होगा ?”
“मेरे ख्याल से तो वह अपने अंजाम से डर कर भाग गया है । शायद वह यह शहर ही
छोड़ गया हो ।”
“उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था ।”
“हां, उसे ऐसी कायरता नहीं दिखानी चाहिए थी ।”
सुनील कई क्षण चुप रहा ।
“सरिता” - अन्त में वह बोला - “जो पुलिस अधिकारी इस के स की तफ्तीश कर रहा
है, उससे मेरी बात हुई है । वह हत्या का शत-प्रतिशत सन्देह तुम्हारे पर कर रहा है । जो
कहानी अभी तुमने मुझे सुनाई है, अगर यह उसने सुन ली तो उसे शत-प्रतिशत विश्वास हो
जाएगा कि हत्या तुमने की है ।”
“क्या हर्ज है ?” - सरिता धीरे से बोली - “अच्छा है पुलिस रोहित की जगह मुझे
हत्यारी समझे । सुनील भाई साहब, मैं तो वैसे ही चलती-फिरता लाश हूं । मेरी तो अगली
सांस की गारण्टी नहीं । लेकिन रोहित के आगे अभी सारी जिन्दगी पड़ी है । मुझे तो खुशी
होगी कि रोहित बच जाए और उसकी जगह मैं सजा पा जाऊं ।”
सुनील हैरानी से उसका मुंह देखने लगा ।
“लेकिन मुझे पूरा विश्वास है रोहित मुझे ऐसा भी नहीं करने देगा । ज्यों ही उसे मालूम
होगा कि मैं टोनी की हत्या का इलजाम अपने सर पर ले रही हूं, वह अवश्य पुलिस से
सम्पर्क स्थापित करेगा... उन्हें चिट्ठी लिख देगा या टेलीफोन पर बात करेगा - और कहेगा
कि हत्या उसने की है, सरिता ने नहीं । और फिर वह फरार हो जाएगा ।”
“तुम्हें उससे ऐसी उम्मीद है ?”
“हां ।”
“तुम्हें उससे बहुत मुहब्बत है ?”
“हां ।”
सुनील ने एक गहरी सांस ली ।
“सरिता” - वह उठता हुआ बोला - “फिलहाल तुम्हारा यहीं रहना ठीक है । तुम नींद
की गोली खाओ और फिर सो रहो । तुम न इस कमरे से बाहर निकलो, न किसी से बात
करो और न किसी को अपने बारे में कु छ बताओ । थोड़ी देर पुलिस का रुख देखते हैं और
फिर कोई अगला कदम निर्धारित करेंगे । ओके ?”
“जैसा तुम मुनासिब समझो ।”
“और एक बात का और ख्याल रखना । अगर तुम्हारी यहां मौजूदगी की बात खुल
भी जाए तो किसी को यह मत कहना कि इस होटल में तुम्हें मैं लाया था । कहना कि तुम
अपनी मर्जी से यहां आई थीं । अगर पुलिस को यह मालूम हो गया कि मैंने तुम्हें यहां छु पा
रखा है तो वह मेरी खाल खींच लेंगे ।”
“मैं ध्यान रखूंगी ।”
“मैं चलता हूं । मैं तुमसे फिर मिलूंगा ।”
सरिता ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया ।
***
शाम को सुनील ने विक्टोरिया हस्पताल फोन किया । वहां उसे मालूम हुआ कि
नीलोफर होश में आ चुकी थी और पुलिस उसका बयान लेकर जा चुकी थी ।
सुनील हस्पताल पहुंचा ।
नीलोफर दूसरी मंजिल के एक प्राइवेट कमरे में थी । कमरे के बाहर स्टूल पर एक
सिपाही बैठा था ।
“मेरा नाम सुनील है” - सुनील उससे बोला - “मैं नीलोफर से मिलने आया हूं । पुलिस
सुपरिण्टेण्डेण्ट रामसिंह ने तुम्हें मेरे बारे में बताया होगा ।”
सिपाही ने एक बार संदिग्ध भाव से सुनील की ओर देखा और फिर सहमतिसूचक
ढंग से सिर हिलाते हुए उसे भीतर जाने का संके त कर दिया ।
सुनील कमरे के भीतर दाखिल हुआ ।
भीतर तकियों के सहारे नीलोफर अधलेटी-सी बैठी एक पत्रिका पढ रही थी । उस
समय उसके चेहरे की रंगत पीली थी । होंठ बासी मालूम हो रहे थे और उसके व्यक्तित्व में
वह चमक-दमक नहीं दिखाई दे रही थी जोकि टोनी के क्लब के डांस फ्लोर पर उतरते
समय उसमें दिखाई देती थी ।
“हल्लो, गुड आफ्टरनून” - सुनील मुस्कराता हुआ बोला - “मेरा नाम सुनील है ।”
“मैंने आपको पहचाना नहीं ।” - वह बोली ।
“कै से पहचानेंगी आप ? आपने मुझे कभी देखा ही नहीं ।”
“तो...”
“कल आपने पुलिस हैडक्वार्टर रिंग करने की कोशिश की थी । गलती से नम्बर मेरा
मिल गया था । फिर आपकी हालत के बारे में मैंने पुलिस को फोन किया था ।”
“ओह ! तशरीफ रखिये ।”
सुनील उसके सामने एक कु र्सी पर बैठ गया ।
“इसका मतलब तो यह हुआ कि अगर आप पुलिस को सूचित करने की कोशिश न
करते तो मैं अपने फ्लैट में पुलिस के आगमन के इन्तजार में पड़ी-पड़ी ही मर जाती ।
क्योंकि दोबारा फोन करने की तो मुझमें हिम्मत नहीं थी ।”
“ऐसा ही समझ लीजिए ।”
“मेरी जान बचाने के लिए शुक्रिया ।”
“लेकिन आपने भी हद कर दी । कम-से-कम अपना पता तो बतातीं ।”
“पता मैंने नहीं बताया था ?”
“कहां बताया था । वह तो मैं आपके नाम से परिचित था । मैंने ही पुलिस को फाइव
स्टार नाइट क्लब से आपके फ्लैट का पता मालूम करने की राय दी थी । वहां से भी बड़ी
मुश्किल से आपका पता हासिल हो सका था । आपका पता मालूम होने में अगर देर हो
जाती या पता मालूम हो ही न पाता तो आप जानती ही हैं कि आपका क्या अन्जाम होता
।”
“आई एम सॉरी । दरअसल मुझ पर बेहोशी तारी होती जा रही थी । उस माहौल में
मुझे पुलिस को फोन करना ही सूझ गया यही गनीमत थी । मुझमें तो टेलीफोन उठाकर
कान के साथ लगाए रखने की भी हिम्मत नहीं थी ।”
“हां” - सुनील ने अनुमोदन किया - “वार्तालाप के दौरान में ही रिसीवर आपके हाथ
से निकलकर गिर गया था ।”
“वैसे मेरा ख्याल है कि मैंने अपने फ्लैट का पता बताया था ।”
“नहीं बताया था । आपने यह कहा था कि आप अपने फ्लैट से बोल रही हैं लेकिन
पता नहीं बताया था ।”
“खैर जान बचाने के लिए एक बार फिर से मेहरबानी ।”
“इट्स आल राइट । मैडम मैं आपसे आपकी हत्या के प्रयत्न के बारे में कु छ सवाल
पूछना चाहता हूं ।”
“उस बारे में मुझसे कु छ सवाल आप पूछना चाहते हैं ?”
“जी हां ।”
“आप भी पुलिस से सम्बन्धित हैं ?”
“नहीं । मैं प्रेस रिपोर्टर हूं । मैं पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट रामसिंह की इजाजत लेकर ही
आपके पास आया हूं ।”
“ओह !”
“आपके ख्याल से आपको जहरीली चाकलेट किसने भेजी थी ?”
“उस समय तो यही लग रहा था कि चाकलेट का डिब्बा मुझे रीता नागपाल ने भेजा
था क्योंकि उसके साथ उसका कार्ड था । लेकिन पुलिस का कथन है डिब्बा उसने भेजा हो
यह सम्भव नहीं ।”
“आपको किसी पर सन्देह है ?”
“मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहती ।”
“पुलिस की तफ्तीश से जाहिर होता है कि जिसने भी आप को वह डिब्बा भेजा था,
वह टोनी की क्लब से सम्बन्धित था ।”
“मैंने कहा न मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहती ।”
“मैडम, कोई आपकी हत्या करने के प्रयत्न में असफल रहा है । आप यह मत भूलिए
कि वह शख्स आपकी हत्या का दोबारा प्रयत्न कर सकता है ।”
नीलोफर के चेहरे पर चिन्ता के लक्षण उभरे ।
“अच्छा एक और बात बताइए ।”
नीलोफर ने सिर उठाकर उसकी ओर देखा ।
“साहनी क्लब में अक्सर आता है ?”
“कभी कभार आता है लेकिन मनोरंजन के लिए नहीं । टोनी से मिलने । या मुझसे
बात करने । उसका यह आना-जाना भी पिछले कु छ ही महीनों से आरम्भ हुआ था ।”
“टोनी से साहनी के कै से सम्बन्ध थे ?”
“कोई जिगरी दोस्त तो नहीं थे वे । और फिर कल रात को तो...”
“हां, हां कहिए ।”
“मैं जो कु छ आपको कह रही हूं, यह सब आप अखबार में तो नहीं छाप देंगे ?”
“नहीं, आपकी इजाजत के बिना हम कु छ नहीं छापेंगे ?”
“जो बात मैं आपको बताने जा रही हूं, इसे आप मत छापना ।”
“अच्छा ।”
“कल शाम को क्लब में टोनी के आफिस में टोनी और साहनी का बड़ी जोर का
झगड़ा हुआ था ।”
“किस बात पर ?”
“रोहित वाले शेयर सर्टिफिके ट पर ही । टोनी साहनी से शेयर सर्टिफिके ट की दुगनी
तिगनी कीमत मांग रहा था और साहनी उस पर कमीना और धोखेबाज होने का इलजाम
लगा रहा था । इसी बात पर तकरार इतनी बढ गई थी कि दोनों एक दूसरे को कत्ल की
धमकियां देने लगे थे ।”
“यानी कि कल शाम को आपने वह भयंकर वार्तालाप सुना और रात को ही किसी ने
आपका कत्ल करने की कोशिश की ?”
“हां ।” - नीलोफर धीरे से बोली ।
“आपका सन्देह किस पर अधिक जाता है ? टोनी पर या साहनी पर ।”
“अगर पुलिस को पूरा विश्वास है कि मेरी हत्या का प्रयत्न करने वाला क्लब से जरूर
सम्बन्धित था तो... तो...”
“आप टोनी का नाम लेने जा रही थीं...”
नीलोफर ने उत्तर नहीं दिया । वह परेशान दिखाई देने लगी थी । साफ जाहिर था वह
खामखाह किसी का नाम नहीं लेना चाहती थी ।
“टोनी” - अन्त में वह बोली - “मुझसे पीछा छु ड़ाने की कोशिश कर रहा था । वह मेरे
स्थान पर एक नई लड़की को रखना चाहता था...”
“उसी को जिसके साथ वह नेपियन हिल तफरीह के लिए गया हुआ था ?”
“हां । मेरा इस बात पर उससे बहुत झगड़ा हुआ था । उसने मुझे धमकी दी थी कि
अगर इस मामले में मैंने कोई बखेड़ा करने की कोशिश की तो वह मुझे जान से मार डालेगा
। लेकिन मुझे उसकी इस धमकी का कतई विश्वास नहीं हुआ था । मुझे विश्वास नहीं था कि
वह इतना भयंकर कदम भी उठा सकता था ।”
“कोई और बात ?”
“बातें तो कई हैं । मेरी टोनी से अनबन तो चल ही रही थी लेकिन कोई भी बात इतनी
गम्भीर तो नहीं थी कि कोई कत्ल की सोचने लगे ।”
“कोई ऐसी बात बताइए, चाहे वह मामूली ही हो ।”
“टोनी ने मुझे कमीशन के दस-पन्द्रह हजार रुपए देने थे जिसके बारे में वह बेईमान
हो गया था ।”
“कै सी कमीशन ?”
“रोहित को जुआ खेलने के लिए प्रेरित मैं करती थी । वह जितना रुपया वहां हारता
था, उस पर मेरी कमीशन बंधी हुई थी ।”
“आई सी ।”
कु छ क्षण के लिए वार्तालाप में फिर अवरोध पैदा हो गया ।
“चाकलेट का डिब्बा आप तक पहुंचा कै से था ?” - सुनील ने पूछा ।
“एक छोटा सा लड़का मेरे फ्लैट पर लाया था । उसने कहा, किसी ने आपके लिए
भेजा है, डिब्बा मेरे हाथ में थमाया और भाग गया । मैंने उसके साथ रीता का कार्ड देखा तो
समझा कि डिब्बा उसी ने भेजा होगा ।”
“लेकिन रीता को तो आपके फ्लैट का पता नहीं मालूम था ।”
“हां उस वक्त मैं भी हैरान हुई थी कि रीता को मेरा पता कै से मालूम हो गया ?”
“क्या साहनी को मालूम था ?”
“नहीं ।”
“फिर तो बात घूम-फिर कर टोनी पर आ जाती है । उसे आपके फ्लैट का पता भी
मालूम था । वही क्लब के पैकिंग के सामान को इस्तेमाल करके चाकलेट का पैके ट भी
बना सकता था । रीता का आपको दिया कार्ड भी उसके हाथ पड़ सकता था । वही अपने
टाइपराइटर द्वारा उस पर ‘विद कम्पलीमेंट्स फ्राम’ लिख सकता था । और उसी को यह
बात भी मालूम थी कि आप चाकलेट की शौकीन हैं, सामने देखकर खाए बिना नहीं रह
सकती ।”
“यह बात तो सारी दुनिया को मालूम थी । यह बात तो जो शख्स मेरे से अभी मिला
हो वह भी जान जाता था । मैं तो हर वक्त चाकलेट खाती रहती हूं ।”
“इस वक्त तो नहीं खा रहीं आप ।”
“डॉक्टर ने मना किया है ।”
“आई सी... फिर आपने चाकलेट का डिब्बा खोला और चाकलेट खानी आरम्भ कर
दी ?”
“हां । मैंने डिब्बा मेज पर रखकर खोल लिया । मैं सोफे पर लेटकर एक उपन्यास
पढने लगी । मैं उपन्यास पढती जा रही थी और साथ-साथ डिब्बे में से निकालकर चाकलेट
भी खाती जा रही थी । एकाएक मेरा सिर भारी होने लगा । मुझे ऊं घ-सी आने लगी । फिर
मुझे एकाएक यूं लगा जैसे मुझ पर बेहोशी-सी तारी होने लगी हो । मैं आंखें खोलने की
कोशिश करती तो वे मुंदती जाती । मैं घबराकर उठ बैठी । मैंने डिब्बे से निकालकर
चाकलेट का एक और टुकड़ा चबाया । मुझे स्वाद कु छ कसैला सा लगा । तब मुझे चाकलेट
पर शक हुआ । घबराहट में मुझे यह तक नहीं सूझा कि मैं क्या करूं । फिर मैंने पुलिस को
फोन करने का फै सला किया । बड़ी मुश्किल से डायरेक्ट्री में पुलिस हैडक्वार्टर का नम्बर
ढूंढ पाई । मैंने उस नम्बर पर फोन किया । अब या तो मैंने नम्बर देखा ही गलत था और या
फिर मुझसे मिलाते वक्त गलती हो गई ।”
“या शायद एक्सचेंज से ही गलत नम्बर लगा हो ।”
“बहरहाल उसके बाद जो हुआ आपको मालूम ही है । वार्तालाप के दौरान पता नहीं
कब मेरे हाथ से रिसीवर निकल गया और पता नहीं कब मैं सोफे से लुढककर फर्श पर आ
गिरी । मेरी आंख खुलीं तो मैंने अपने आपको हस्पताल में पाया । मालूम हुआ कि मैं बाल-
बाल बची हूं । मुझे वाकई चाकलेट में जहर दिया गया था ।”
“पुलिस के सामने आपने किसी पर शक जाहिर किया है ?”
“नहीं । मैंने किसी का नाम नहीं लिया है । लेकिन वह सुपरिन्टेण्डेण्ट कह रहा था कि
अभी मेरी हालत पूरी तरह सुधरी नहीं है । बाद में वह फिर आएगा और मेरा फिर बयान
लिया जाएगा ।”
“रीता का ख्याल तो आप अपने मन से निकाल ही दीजिए । मैं आपको विश्वास
दिलाता हूं, कम-से-कम उसने आपको जहर देने की कोशिश नहीं की ।”
“अच्छा आप कहते हैं तो ऐसा ही सही ।”
“मैं चलता हूं । सहयोग के लिए शुक्रिया ।”
नीलोफर मुस्कराई ।
सुनील वहां से विदा हो गया ।
वहां से वह बैंक स्ट्रीट पहुंचा ।
वहां तीन नम्बर इमारत के सामने एक सिपाही टहल रहा था । सुनील को देखते ही
वह उसके समीप आया और बोला - “आपका नाम मिस्टर सुनील है ?”
“हां ।” - सुनील सशंक स्वर में बोला ।
“आपको पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट रामसिंह साहब ने पुलिस हैडक्वार्टर तलब किया है
।”
“क्यों ?”
“यह तो मुझे मालूम नहीं ।”
सुनील ने सिपाही को भी मोटर साइकल के पीछे बिठाया और पुलिस हैडक्वार्टर की
ओर रवाना हो गया ।
***
“अच्छे दोस्त हो तुम !” - रामसिंह सुनील पर निगाह पड़ते ही बिफर पड़ा ।
“क्या हो गया ?” - सुनील बौखलाकर बोला ।
“सरिता कहां है ?”
“सरिता ! मुझे क्या मालूम कहां है वह ?”
“बकवास मत करो । मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम मेरे साथ ऐसी कोई हरकत करोगे
जैसी तुम इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल के साथ अक्सर करते हो ।”
“लेकिन...”
“लेकिन वेकिन कु छ नहीं । बाकी तमाम बातें बाद में होंगी । पहले एक सैके ण्ड में
बोलो, सरिता को कहां छु पाकर रखा हुआ है तुमने ?”
“मैंने उसे छु पाकर रखा हुआ है ?”
“फिर बकवास । जानते हो हमें एक कत्ल के के स के सिलसिले में उसकी तलाश है ।
जानबूझ कर एक मुजरिम को पनाह देने के इलजाम में मैं तुम्हें अभी अन्दर कर सकता हूं
।”
“लेकिन उस वक्त मुझे यह थोड़े ही मालूम था कि वह मुजरिम है ।”
“बाद में मुझसे बात करने पर तो मालूम हो गया था । तब तो तुम्हें यह भी मालूम हो
गया था कि हम उसकी तलाश कर रहे हैं । तुमने तब क्यों नहीं बताया ?”
“मैं भूल गया ।” - सुनील भोलेपन से बोला ।
“अब कु छ बकोगे या नहीं ।” - रामसिंह कहर-भरे स्वर से चिल्लाया ।
“वह इम्पीरियल होटल में 426 नम्बर कमरे है ।” - सुनील दबे स्वर में बोला ।
“अगर वह वहां न हुई तो तुम्हारी खैर नहीं ।”
“होगी कै से नहीं ? मैं अभी दोपहर में तो उससे मिलकर आया हूं और उसे नींद की
गोली खाकर सो जाने की सलाह दे कर आया हूं ।”
“चलो ।”
“मैं भी ?”
“हां तुम भी । मैं नहीं चाहता कि मुझे सरिता का एक फर्जी पता देकर तुम फिर कहीं
गायब हो जाओ और दूसरी बार मुझे ढूंढे न मिलो ।”
“रामसिंह, बाई गॉड, वह वहीं है ।”
“उठकर मेरे साथ चलो ।” - रामसिंह कर्क श स्वर से बोला ।
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
वह रामसिंह के साथ हैडक्वार्टर के कम्पाउण्ड में पहुंचा । वहां वे जीप में सवार हुए
और इम्पीरियल की ओर रवाना हो गए । रामसिंह ने सुनील की यह प्रार्थना भी स्वीकार
नहीं की कि वह अपनी मोटर साइकल पर रामसिंह की जीप के पीछे-पीछे आ जाता है ।
उसकी मोटर साइकल वहीं खड़ी रही ।
“अब कम-से-कम इतना तो बता दो” - रास्ते में सुनील बोला - “कि तुम्हें यह बात
मालूम कै से हुई है कि मैंने सरिता को कहीं रखा हुआ है ।”
“शट अप” - रामसिंह मुंह से सिगार निकाले बिना बोला - “तुम्हारी यह हरकत मुझे
कतई पसन्द नहीं आई । प्रभूदयाल तुम्हारी सही शिकायत करता है । तुम पुलिस के कामों
में अपनी टांग अड़ाने से बाज नहीं आ सकते । कानून से खिलवाड़ करने की तुम्हें आदत हो
गई है ।”
“आई एम सॉरी, आलरेडी ।”
रामसिंह चुप रहा ।
सुनील ने उसे नहीं टोका ।
अन्त में वह अपने आप बोला - “हमने सरिता की सफे द फियेट के माध्यम से सरिता
को तलाश करने का अभियान शुरू किया था । सफे द फियेट का जिक्र आया तो जो
हवलदार कल रात मेरे साथ जीप पर मौजूद थे उसमें से एक बोला कि उसने एक सफे द
कार को रीता की कोठी की ओर बढते देखा था । वह रीता की कोठी के कम्पाउण्ड में जीप
में बैठा हुआ था और कम्पाउण्ड की दीवार के पास पेशाब करने के इरादे से आया था ।
उसके कथनानुसार तुमने कोठी को ओर बढती एक सफे द‍ फियेट कार को, जिसे कोई
महिला चला रही थी, हाथ हिला हिलाकर रोका था और फिर उसी पर सवार होकर कहीं
चले गए थे । मैं फौरन समझ गया कि तुमने अपनी कोई करामात दिखा दी थी ।”
“ओह !”
“वह तो अच्छा हुआ कि किसी तरह सरिता की सफे द फियेट का जिक्र उस हवलदार
के सामने आ गया और उसने इन्स्पेक्टर तनवीर के सामने उस प्रत्यक्षत: महत्त्वहीन-सी
लगने वाली घटना का जिक्र कर दिया, वर्ना हमें तो कभी सपने में भी ख्याल नहीं आता कि
सरिता को तुमने कहीं गायब कर दिया था ।”
सुनील चुप रहा ।
“सुनील, तुम अपनी हरकतों से बाज आ जाओ । किसी दिन ऐसे फं सोगे कि तुम्हारे
लिए अपनी गरदन बचानी मुश्किल हो जाएगी ।”
“मैंने सरिता को इस प्रकार होटल में किसी निजी स्वार्थ की वजह से नहीं पहुंचाया था
। लड़की की हालत बहुत खराब थी । वह इतनी उत्तेजित थी, इतनी आतंकित थी कि उसे
किसी भी क्षण हार्ट अटैक हो सकता था । वह सीधी कोठी पर पहुंच जाती तो तुमने उसकी
हालत की परवाह किए बिना, उस पर किसी प्रकार का तरस खाए बिना, उस पर ताबड़-
तोड़ बड़े कठोर सवालों की बौछार करनी आरम्भ कर देनी थी । नतीजा यह भी हो सकता
था कि वह शायद तुम्हारी आंखों के सामने ही दम तोड़ देती ।”
“मैं इतना हृदयहीन नहीं ।”
“फिर भी तुम उससे जवाबतलबी तो करते ही ।”
“वह तो मेरी ड्यूटी है । मुझे तनखाह काहे की मिलती है ?”
“देयर यू आर ।”
“तुम उसे होटल में क्यों लेकर गए ? अगर उसकी हालत इतनी नाजुक थी तो उसे
किसी हस्पताल में लेकर जाते, किसी नर्सिंग होम में लेकर जाते ।”
“मुझे सूझा नहीं ।”
“मुझे सूझा नहीं” - रामसिंह उसके स्वर की नकल उतारता हुआ बोला - “ब्लडी शिट
।”
जीप इम्पीरियल के सामने जाकर रुकी ।
सुनील और रामसिंह और इन्स्पेक्टर तनवीर होटल में दाखिल हुए ।
“मैंने उसे नींद की गोली लेकर सो जाने को कहा था ।” - सुनील बोला - “पहले
रिसैप्शन से उसके कमरे में फोन करके पता कर लो । वह सो रही है या जाग रही है ।”
रामसिंह ने हामी भरी । वह रिसैप्शन पर पहुंचा ।
“426 नम्बर कमरे में टेलीफोन मिलाओ ।” - रामसिंह अधिकारपूर्ण स्वर में
रिसैप्शनिस्ट से बोला ।
“वह कमरा तो खाली है, साहब ।” - रिसैप्शनिस्ट आदर के स्वर में बोला ।
“क्या ?” - रामसिंह के मुंह से निकला । फिर उसने घूम कर सुनील की ओर देखा ।
“तुम्हें गलती लगी है, मिस्टर” - सुनील रिसैप्शनिस्ट से बोला - “उस कमरे में मिसेज
सरिता नागपाल हैं । मैं खुद...”
“मिसेज सरिता नागपाल उस कमरे में थी, साहब” - रिसैप्शनिस्ट बोला - “अब नहीं
है ।”
“मतलब !”
“वे होटल छोड़कर चली गई हैं । शी हैज चैक्ड आउट ।”
“कब ?”
“थोड़ी देर पहले । मुश्किल से एक घण्टा हुआ होगा ।”
सुनील ने असहाय भाव से रामसिंह की ओर देखा ।
“एक साहब उससे मिलने आए थे” - रिसैप्शनिस्ट कह रहा था - “वे उनके साथ ही
चली गई थीं ।”
“कहां ?”
“अब यह हमें क्या मालूम ?”
“वे साहब कौन थे ?”
“मैं तो जानता नहीं, साहब, उन्हें ।”
“उनका हुलिया बयान करो ।” - रामसिंह बोला ।
“वे नौजवान थे, खूबसूरत थे...”
रिसैप्शनिस्ट ने हुलिया बयान करना आरम्भ कर दिया ।
जब वह चुप हुआ तो सुनील के मुंह से अपने आप निकल गया - “रोहित ।”
“श्योर ?” - रामसिंह बोला ।
“श्योर । सरिता और किसी के साथ यहां से क्यों जाएगी भला ।”
“सुनो” - रामसिंह ने रिसैप्शनिस्ट से पूछा - “यहां से कै से गए थे वे ?”
“टैक्सी पर ।”
“श्योर ?”
“जी हां ।”
“रोहित के पास तो अपनी कार है न ?” - रामसिंह सुनील से बोला - “जो रोहित के
साथ गायब है ?”
“वह कार को यहां इसलिए नहीं लाया होगा” - सुनील बोला - “कि कहीं वह कार की
वजह से ही पहचान न लिया जाए ।”
“तनवीर” - रामसिंह इन्स्पेक्टर से बोला - “टैक्सी स्टैण्ड पर पूछताछ करो ।”
इन्स्पेक्टर तनवीर बाहर चला गया ।
रामसिंह और सुनील लाबी में पड़ी कु र्सियों में से दो को चुनकर उन पर बैठ गए ।
कोई पांच मिनट बाद इन्स्पेक्टर तनवीर वापिस लौटा ।
“आइए ।” - उसने रामसिंह से के वल इतना ही कहा ।
“कु छ पता लगा ?” - रामसिंह उठता हुआ बोला ।
“जी हां ।”
रामसिंह सुनील से बिना कु छ कहे इन्स्पेक्टर तनवीर के साथ हो लिया ।
सुनील वही बैठा रहा ।
पांच मिनट तक जब रामसिंह वापिस न लौटा तो वह अपने स्थान से उठा और होटल
के बाहर पहुंचा ।
वहां से रामसिंह की जीप नदारद थी ।
सुनील टैक्सी स्टैण्ड पर पहुंचा ।
संयोगवश वहां सुनील का एक जाना-पहचाना टैक्सी ड्राइवर प्रीतमसिंह मौजूद था ।
“आओ बाऊजी” - वह सुनील को देखते ही बोला - “अज ऐद्दर किद्दर ।”
“सरदार जी, जरा इधर आओ ।”
सुनील उसे अन्य ड्राइवरों से परे एक स्थान पर ले आया ।
“अभी कोई पांच मिनट पहले एक इन्स्पेक्टर टैक्सी स्टैण्ड पर आया था । वह यहां से
कोई एक घण्टा पहले रवाना हुए खूबसूरत नौजवान और एक सूरत से ही बीमार लगने
वाली लड़की के बारे में कु छ पूछ रहा था ।”
“आहो” - प्रीतमसिंह बोला - “ऐसे दोनों बन्दे कोई एक घण्टा पहले कालू की टैक्सी
पर बैठकर गए थे ।”
“कहां ?”
“मैनू की पता ?”
“और कालू कहां है ?”
“ओनूं पुलिस अपने नाल लै गई ।”
“ओह !”
“लेकिन बाउ जी, कालू लौटकर यहीं आएगा । उसकी टैक्सी यहीं खड़ी है ।”
“तब तक तो बहुत देर हो चुकी होगी । खैर ।”
सुनील टैक्सी स्टैण्ड के तख्तपोश पर सरदार प्रीतमसिंह के साथ बैठ गया ।
“बाउ जी, चा मंगावा ?” - प्रीतमसिंह ने पूछा ।
“नहीं” - सुनील बोला - “मेहरबानी ।”
“कोका ?”
“नहीं ।”
“कु छ तो पियो जी ।”
“नहीं सरदार जी । जरूरत नहीं । आपकी मेहरबानी ।”
“मर्जी तुम्हारी ।”
कोई आधे घण्टे बाद कालू नामक टैक्सी ड्राइवर अड्डे पर वापिस लौटा ।
सुनील के पूछने पर मालूम हुआ कि वह पुलिस को हर्नबी रोड की 75 नम्बर इमारत
के सामने छोड़कर आया था ।
सुनील उसी की टैक्सी पर हर्नबी रोड पहुंचा ।
पुलिस की जीप को इमारत के सामने खड़ा देखकर उसने टैक्सी थोड़ी दूर ही रुकवा
दी ।
उस समय इन्स्पेक्टर तनवीर रोहित और सरिता को जीप में बैठा रहा था । सरिता का
चेहरा राख की तरह सफे द था । रोहित भयभीत तो नहीं लेकिन बेहद चिन्तित लग रहा था

रामसिंह पहले ही ड्राइवर की बगल की सीट पर बैठा था ।
सुनील के देखते-देखते ही जीप वहां से रवाना हो गई ।
सुनील उसी टैक्सी पर जीप के पीछे लग गया ।
जीप पुलिस हैडक्वार्टर पहुंची ।
सुनील ने पुलिस हैडक्वार्टर के कम्पाउण्ड के बाहर ही टैक्सी छोड़ दी ।
वह हैडक्वार्टर में दाखिल हुआ ।
उसने रामसिंह से मिलने की कोशिश को लेकिन किसी ने उसे रामसिंह के कमरे के
करीब भी नहीं फटकने दिया । उसे बताया गया कि रामसिंह का कड़ा निर्देश था कि वह
किसी से नहीं मिलना चाहता था - विशेष रूप से किसी प्रेस रिपोर्टर से ।
सुनील अपना-सा मुंह लेकर वापिस लौट आया ।
फिर उसने पार्किंग से अपनी मोटर साइकल उठाई और रीता को स्थिति की सूचना
देने के इरादे से शंकर रोड की तरफ उड़ चला ।
***
अगले दिन सुबह सवेरे सुनील दोबारा शंकर रोड पहुंचा ।
थकी-सी रीता अपनी कोठी पर मौजूद थी । उसकी सूरत से लगता था कि वह सारी
रात नहीं सोई थी ।
“क्या खबर है ?” - सुनील ने उत्कं ठापूर्ण स्वर से पूछा ।
“पुलिस ने सरिता को टोनी के कत्ल के इल्जाम में बुक कर दिया है” - रीता गमगीन
स्वर से बोली - “इसलिए उसकी जमानत नहीं हो सकी । वह पुलिस कस्टडी में है ।”
“और रोहित ?”
“उसे तो पुलिस ने छोड़ दिया ।”
“कहां है वह ?”
“अपने बेडरूम में सो रहा है । उसकी बीवी कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार है, वह सो
रहा है ।”
“उसने सरिता के बचाव में कु छ नहीं किया, कु छ नहीं कहा ?”
“पहले तो वह पुलिस पर बहुत गर्जा, बरसा । उसने बहुत चीख चिल्लाकर कहा कि
पुलिस उसकी बोटी-बोटी क्यों न उड़ा दे वह सरिता के खिलाफ कु छ नहीं कहेगा । लेकिन
दस मिनट बाद ही वह नया राग अलापने लगा था और सारी तोहमत सरिता पर लगाने की
कोशिश करने लगा था ।”
“कल रात के बारे में क्या कहता है वह ?”
“वह तो कहता है कि वह नेपियन हिल गया ही नहीं ।”
“यह कै से हो सकता है ? सरिता कहती है, उसने खुद नेपियन हिल तक उसका पीछा
किया था ।”
“उसकी कार का । उसका नहीं ।”
“मतलब ?”
“वह कहता है कि कोठी से निकलते ही शंकर रोड के मोड़ पर उसे अपना एक दोस्त
मिल गया था जो कोठी पर उसी से मिलने आ रहा था । उसे रोहित की कार की जरूरत थी
और रोहित ने अपनी कार उसे दे दी थी । रोहित कहता है वह तो कार में था ही नहीं । अगर
सरिता नेपियन हिल गई थी तो वह उसकी कार का पीछा करती हुई वहां पहुंची थी ।
वास्तव में वह अपनी कार में था ही नहीं ।”
“उसका यह झूठ चल भी सकता है” - सुनील धीरे-से बोला - “सरिता ने खुद मुझे
बताया था कि क्योंकि उसे गैरेज से अपनी कार निकालने में थोड़ा समय लग गया था
इसलिए कु छ क्षणों के लिए रोहित की कार उसकी दृष्टि से ओझल हो गई थी । उसको
बातों-बातों में सरिता से यह बात मालूम हो गई होगी इसलिए उसने यह कहानी घड़ ली
होगी कि कोठी से निकलते ही उसके दोस्त ने उससे कार मांग ली थी और वास्तव में सरिता
उस दोस्त के पीछे ही नेपियन हिल पहुंची थी, उसके पीछे नहीं ।”
“यही बात है ।”
“सरिता को उसकी इस बात का विश्वास हो गया ?”
“उसे तो विश्वास होना ही था । वह तो है ही रोहित की दीवानी । लेकिन ट्रेजेडी यह है
कि पुलिस को भी रोहित की इस कहानी पर विश्वास हो गया मालूम होता है । इसलिए तो
उन्होंने उसे छोड़ दिया ।”
“हूं ।”
“वह कमीना आदमी अपने आपको बचाने के लिए साफ-साफ सरिता को फं साने की
कोशिश कर रहा है । सुनील, उसकी इस हरकत में भी उसकी चाल है । अगर सरिता टोनी
के कत्ल के इलजाम में मौत की सजा पा गई तो रोहित टोनी वाले बखेड़े से तो बचेगा ही,
वह सरिता का पति होने के नाते उसकी लाखों की जायदाद का वारिस भी बन जाएगा ।
उसके तो दोनों हाथों में लड्डू हैं ।”
सुनील चुप रहा ।
“सुनील !” - रीटा रुआंसे स्वर में बोली - “सरिता पर मुकद्दमा चलने की तो नौबत ही
नहीं आएगी । वह तो पहले ही, बहुत पहले जेल में ही जिन्दगी से किनारा कर लेगी ।”
“रीता” - सुनील सान्त्वनापूर्ण स्वर से बोला - “तुम घबराओ नहीं । तुम बिल्कु ल मत
घबराओ ! अगर सरिता ने कत्ल नहीं किया है तो उसका बाल भी बांका नहीं होगा ।”
“लेकिन...”
“मैं यहां से सीधा पुलिस सुपरिंटेण्डेण्ट रामसिंह के घर जा रहा हूं । वहां मैं एक ऐसी
खिचड़ी पकाने वाला हूं कि सरिता आज ही घर होगी ।”
“कै से ?”
“तुम देखती जाओ क्या होता है ।”
सुनील वहां से विदा हो गया ।
वह सीधा रामसिंह के घर पहुंचा ।
वहां एक नौकर ने बताया कि सुपरिंटेण्डेण्ट साहब सो रहे थे ।
“उनकी मिसेज को बुलाओ ।” - सुनील अधिकारपूर्ण स्वर से बोला - “बोलो, सुनील
आया है ।”
नौकर चला गया ।
दो मिनट बाद रामसिंह की बीवी बरामदे में पहुंची ।
“अरे, भाई साहब आप ।” - वह बोली - “बाहर कै से खड़े हैं । भीतर आइए ना ।”
“नमस्ते भाभी जी ।”
सुनील भीतर दाखिल हो गया ।
“कै से आए ?”
“भाई साहब से मिलने आया हूं ।”
“वे सो रहे हैं ।”
“मुझे मालूम हुआ है लेकिन आप मेरी खातिर उन्हें जगाने की कोशिश मत कीजिए ।
मैं उनके जागने का इन्तजार कर लूंगा । आज तो यहीं धूनी रमाकर बैठना है, चाहे शाम हो
जाए ।”
वह हंसी ।
“मैं आपके लिए चाय भिजवाती हूं ।”
“थैंक्यू । जरा तीन-चार कप भिजवाना ।”
वह चली गई ।
लेकिन सुनील को शाम तक धूनी नहीं रमानी पड़ी । जब तक चाय आई तब तक
रामसिंह भी वहां पहुंच गया ।
“कै से आए ?” - वह रुक्ष स्वर से बोला ।
“रामसिंह-रामसिंह ।” - सुनील शिकायत भरे स्वर से बोला - “बातचीत का यह
लहजा पुलिस हैडक्वार्टर के लिए सुरक्षित रखा करो । यह तुम्हारा घर है और मैं तुम्हारा
दोस्त हूं । रिमैम्बर ?”
“कै से आए ?” - रामसिंह इस बार नम्र स्वर से बोला ।
“टोनी के कत्ल की वारदात के सिलसिले में हो आया हूं ।”
“यह कहने तो नहीं आए हो कि सरिता बेकसूर है ?”
“यही कहने आया हूं ।”
“तुम्हारी जानकारी के लिए हम शेयर सर्टिफिके ट उसके पास से बरामद कर चुके हैं ।
वह यह भी स्वीकार कर चुकी है कि वह नेपियन हिल के नौ नम्बर बंगले में गई थी । जिस
रिवाल्वर से टोनी का कत्ल हुआ है, हमें उस पर उसकी उंगलियों के निशान भी मिल चुके हैं
।”
“लेकिन...”
“और तो और खुद रीता का ख्याल है कि उसकी बहन ने कत्ल किया है, इसीलिए तो
वह उसकी बला अपने सर लेने की कोशिश में झूठ पर झूठ बोल रही थी ।”
“लेकिन सरिता भला टोनी का कत्ल क्यों करेगी ?”
“उस शेयर सर्टिफिके ट की खातिर ।”
“नानसेंस । रोहित तो उस सर्टिफिके ट की खातिर टोनी का कत्ल कर सकता था
लेकिन सरिता नहीं । वह एक बेहद रईस औरत है । कु छ लाख रुपये के शेयर सर्टिफिके ट
की उसके लिए क्या अहमियत है । वह तो टोनी को रोहित के कर्जे की रकम अदा करके
भी सर्टिफिके ट हासिल करने की क्षमता रखती थी । लेकिन रोहित ऐसा नहीं कर सकता था
। और फिर सरिता को दौलत का क्या लालच था ? उसके तो अगले पल का भरोसा नहीं
और वह इस हकीकत को न के वल जानती है बल्कि अपने अंजाम से पूरी तरह वाकिफ है
। इसके विपरीत रोहित के सामने सारी जिन्दगी पड़ी है, उसे दौलत का लालच हो सकता है
। वह शेयर सर्टिफिके ट के लिए टोनी की हत्या कर सकता है और अपनी बीवी की जायदाद
का वारिस बनने के लिए उसको टोनी के कत्ल के इलजाम में फांसी पर चढवाने की
कोशिश कर भी सकता है । सरिता को टोनी के कत्ल का क्या फायदा ? वह भला कीमत
अदा करके शेयर सर्टिफिके ट हासिल करने के आसान तरीके को छोड़कर उसका कत्ल
करने का खतरनाक तरीका क्यों अख्तियार करती ? वह तो सर्टिफिके ट की कीमत टोनी
को अदा करके उससे सर्टिफिके ट वापिस हासिल करती, फिर घर आकर रोहित को डांटती,
फटकारती, रोहित अपनी गलती पर शर्मिन्दा होता, पछतावे के आंसू बहाता, सरिता उसे
पुचकारती, लाड़-प्यार करती, भविष्य में शराफत से रहने का, कोई गलत हरकत न करने
का, उससे वादा करवाती और फिर कहानी खत्म । इसमें कत्ल की जरूरत कहां से आ
घुसी ?”
रामसिंह सोच में पड़ गया ।
“यह छोकरा रोहित तो मुझे भी पसन्द नहीं आया” - रामसिंह धीरे से बोला - “अपने
आपको अपनी बीवी के अंजाम के प्रति फिक्रमन्द जाहिर करने के लिए वह औरतों की
तरह टसुवे बहा रहा था । मुझे तो वह साफ-साफ ड्रामा करता मालूम हो रहा था । मुझे तो
वह एकदम झूठा, मक्कार और बेईमान आदमी लगा लेकिन मैं क्या करूं ? के स की एक-
एक बात सरिता के मुजरिम होने की ओर इशारा कर रही है ।”
“रामसिंह, एक काम करो ।”
“क्या ?”
“मेरे साथ चलो ।”
“कहां ?”
“जहां भी मैं ले चलूं ।”
“लेकिन...”
“मेरा इतना भरोसा नहीं कर सकते ?”
“ओके । मैं अभी तैयार होकर आता हूं ।”
“थैंक्यू ।”
रामसिंह उठकर चला गया ।
सुनील चाय की चुस्कियां लेते हुए उसकी प्रतीक्षा करता रहा ।
***
“इतना तो बता दो हम कहां चल रहे हैं ।” - कोठी से निकलने के बाद रामसिंह ने
पूछा ।
“विक्टोरिया हस्पताल ।” - सुनील बोला ।
“क्यों ?”
“नीलोफर से कु छ और बातें करने ।”
“लेकिन उसकी तो हस्पताल से छु ट्टी हो गई है ।”
“तो फिर हम अमर कालोनी उसके फ्लैट पर चलते हैं ।”
“तुम पूछना क्या चाहते हो उससे ?”
“मैं पूछूंगा । तुम सुनना । मुझे उम्मीद है मैं आज ही तुम्हारे दोनों के सों का हल प्रस्तुत
कर दूंगा । मैं तुम्हें यह भी बता दूंगा कि नीलोफर की हत्या का प्रयत्न किसने किया और
टोनी की हत्या किसने की ?”
“सिर्फ नीलोफर से कु छ बातें करके ?”
“हां ।”
“तुम मेरा वक्त बरबाद कर रहे हो ।”
“एक दोस्त के लिए अपना थोड़ा-बहुत वक्त बरबाद भी कर दिया तो क्या आफत आ
गई ।”
रामसिंह ने प्रतिवाद में कु छ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन फिर उसने अपना इरादा
बदल दिया ।
वे अमर कालोनी पहुंचे ।
नीलोफर अपने फ्लैट पर मौजूद थी ।
“हल्लो, नीलोफर !” - सुनील मधुर स्वर से बोला ।
“हल्लो ।” - वह होंठों पर एक के वल नौजवानों को लुभाने के लिए प्रयुक्त होने वाली
मुस्कराहट लाती हुई बोली ।
“ये पुलिस सुपरिंटेण्डेण्ट रामसिंह हैं । इनसे तुम मिल चुकी हो ।”
“हां, हस्पताल में ये मेरा बयान लेने आए थे । हल्लो देयर ।”
“हल्लो !” - रामसिंह बोला ।
“वोंट यू कम इन, प्लीज ।”
वे फ्लैट में दाखिल हुए ।
“तशरीफ रखिये ।”
वे बैठ गए ।
“कु छ चाय, कॉफी...”
“नो, थैंक्स । हम ब्रेकफास्ट करके आए हैं ।”
नीलोफर चुप हो गई ।
“मैडम, हम आपसे कु छ और सवाल पूछने आए हैं ।”
“पूछिये ।” - नीलोफर सहज स्वर में बोली ।
“मैडम, पुलिस की यह धारणा है ।” - सुनील ने एक गुप्त निगाह रामसिंह पर डाली
और उसे चुप रहने का संके त किया - “कि जिस शख्स ने तुम्हारी हत्या करने की कोशिश
की है उसी ने टोनी की भी हत्या की है ।”
“अच्छा !” - नीलोफर सशंक स्वर में बोली ।
“हां । और वह शख्स निश्चय ही फाइव स्टार नाइट क्लब से सम्बन्धित है । मैंने
आपको हस्पताल में भी यह बात बताई थी । पुलिस की तफतीश से साफ जाहिर होता है
कि चाकलेट का पैके ट क्लब में इस्तेमाल होने वाले खाकी पैकिंग पेपर से बनाया गया था ।
उस पर क्लब में इस्तेमाल होने वाली ही सुतली बांधी गई थी । क्लब में ही इस्तेमाल होने
वाले टाइपराइटर द्वारा रीता नागपाल के विजिटिंग कार्ड पर ‘विद कम्पलीमैन्ट्स फ्रॉम’
टाइप किया गया था । और वह पैके ट आपको भेजा जाने से कम-से-कम तीन-चार दिन
पहले बांधकर तैयार किया गया था ।”
“इतनी बातें पुलिस के वल पैके ट का परीक्षण करके मालूम कर सकती है ?” - वह
हैरानी से बोली ।
“हां ।”
“मुझे मालूम नहीं था ।”
“हमारी पुलिस ने भी फोरेन्सिक साइंस में बहुत तरक्की कर ली है, मैडम ।” -
रामसिंह बोला ।
नीलोफर चुप रही ।
“एक बात और गौर करने वाली है ।” - सुनील बोला - “चाकलेट में इस ढंग से जहर
मिलाना कि देखने वाले को इस बात का जरा सन्देह न हो कि उससे छेड़खानी की गई है
कोई मामूली काम नहीं । तुम तो चाकलेट बनाने वाली फै क्टरी में काम कर चुकी हो । तुम
तो इस बात को बेहतर जानती हो ।”
“तुम ठीक कह रहे हो । यह किसी ऐरे-गैरे आदमी का काम नहीं ।”
“अब आगे बढें । डिब्बे के साथ आया कार्ड यह जाहिर करता है कि तुम्हें जहरीली
चॉकलेट रीता नागपाल ने भेजी थी । यह असम्भव है ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वह जहरीली चाकलेट का पैके ट तो तीन-चार दिन पहले से तैयार था और
रीता नागपाल को परसों से पहले तुम्हारे अस्तित्व का भी ज्ञान नहीं था । परसों से पहले
उसने फाइव स्टार नाइट क्लब में कभी कदम नहीं रखा था ।”
“ओके । आई एग्री विद यू । मैं मान लेती हूं, रीता ने मेरी हत्या की कोशिश नहीं की
।”
“चाकलेट भेजने वाले के बारे में दो बातें गौर करने वाली हैं । वह यह कि उसे तुम्हारे
फ्लैट का पता मालूम था । जबकि तुम्हारे अपने कथनानुसार तुम अपना पता किसी को
नहीं बतातीं, चाहे कोई हो ।”
“और दूसरी बात ?”
“दूसरी बात यह कि उसे रीता नागपाल का विजिटिंग कार्ड उपलब्ध था । अगर हम
पहले ही यह मानकर चलें कि रीता नागपाल ने तुम्हें जहरीली चाकलेट नहीं भेजी तो वह
कार्ड निश्चय ही वही था जो रीता ने तुम से विदा होते समय तुम्हें क्लब में दिया था ।”
“हो सकता है, वह वही कार्ड हो । मैंने तो उसे रीता के आते ही वहीं मेज के नीचे फें क
दिया था ।”
“राइट । अब हालात यह जाहिर करते हैं, मैडम कि आपको चाकलेट ऐसे व्यक्ति ने
भेजी जिसकी टोनी के आफिस की हर चीज तक, जैसे टाइपराइटर, पैकिंग पेपर, सुतली
तक पहुंच थी, जो आपके फ्लैट का पता जानता था और जिसे हाथ-के -हाथ ही रीता
नागपाल का विजिटिंग कार्ड उपलब्ध था, जिसे चाकलेट में जहर मिलाकर उसे उसका
पहले जैसा रूप देने का पूरा अभ्यास था जिसे चाकलेट की मूल पैकिंग की पूरी समझ थी
और जिसने जहरीली चाकलेट के एक पूरे डिब्बे का पैके ट पहले ही तैयार करके रखा गया
था । आपकी निगाह में ऐसा कोई व्यक्ति है जो इन तमाम शर्तों को पूरा कर सकता हो ?”
“नहीं ।”
“मेरी निगाह में है एक ऐसा व्यक्ति ।”
“कौन ?”
“तुम ।”
रामसिंह चौंका । उसने कु छ कहना चाहा लेकिन फिर चुप रहना ही मुनासिब समझा
। वह आगे को झुक गया । उसकी खोजपूर्ण निगाहें नीलोफर पर टिक गई ।
“मैं !” - नीलोफर चिहुंककर बोली - “तुम पागल तो नहीं हो गए हो ?”
“मैडम” - सुनील शुष्क स्वर से बोला - “तुम्हारे सिवाय कोई यह हरकत कर ही नहीं
सकता था । तुमने खुद अपने आपको जहरीली चाकलेट भेजी थी ।”
“अच्छा !” - नीलोफर व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोली - “और मैं अपनी जिन्दगी से इतनी
बेजार हूं कि मैंने हजार बखेड़े करके बनाये हुए चाकलेट के डिब्बे में से जहरीली चाकलेट
खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की ? अगर मैं मरना ही चाहती थी तो मैं सीधे-सीधे
जहर नहीं खा सकती थी ?”
“तुमने यही किया था । तुमने जहरीली चाकलेट नहीं खाई थी । तुमने जहर की ही
इतनी मात्रा खाई थी जो तुम्हें खस्ता हालत में हस्पताल तो पहुंचा दे लेकिन तुम्हारी जान
पर कोई हर्फ न आए ।”
रामसिंह ने कु छ कहने के लिए मुंह खोला ।
“शटअप, रामसिंह !” - सुनील तीव्र स्वर से बोला ।
रामसिंह ने फौरन होंठ भींच लिए ।
“देखो” - नीलोफर बेसब्रेपन से बोली - “तुमने मेरी जान बचाई है, इसके लिए मैं
तुम्हारी शुक्रगुजार हूं लेकिन तुम मेरे ही घर में मुझे अपने सामने बिठाकर अपनी यह
बकवास सुनने के लिए मजबूर नहीं कर सकते ।”
“यह बकवास नहीं है, हकीकत है । मैं इसे साबित कर सकता हूं ।”
“करके दिखाओ ।” - वह चैलेंज भरे स्वर से बोली ।
“सुनो । चाकलेट का डिब्बा बारह पैके ट वाला था । डिब्बे में से तीन-चार पैकट कम
थे ।”
“चार ।” - रामसिंह ने संशोधन किया ।
“तुम्हारे अपने कथनानुसार तुम सोफे पर लेटी हुई उपन्यास पढ रही थीं और साथ-
साथ डिब्बे में से निकालकर चाकलेट भी खाती जा रही थीं । चार पैके ट खा चुकने के बाद
तुम्हारी हालत खराब हुई, तुमने पुलिस को - लेकिन वास्तव में मुझे - फोन किया । बात
करते-करते ही रिसीवर तुम्हारे हाथ से गिर गया था और तुम खुद सोफे से नीचे फर्श पर
लुढक गई थीं । ठीक है ?”
“हां । ठीक है ।”
“जब मैं पुलिस के साथ तुम्हारे फ्लैट पर पहुंचा था तो टेलीफोन का रिसीवर उसके
क्रे डिल पर रखा हुआ था । क्यों रामसिंह ?”
“करैक्ट ।” - रामसिंह ने अनुमोदन किया । अब वह सारे वार्तालाप में बड़ी गहरी
दिलचस्पी ले रहा था ।
“रिसीवर वापिस टेलीफोन पर कै से पहुंच गया ? वह तो तुम्हारे हाथ से निकलकर
गिर गया था ?” - सुनील नीलोफर से बोला ।
“मुझे क्या पता कै से पहुंच गया ?” - वह झल्लाकर बोली - “अगर मैं इतनी बातों का
ध्यान रख पाने की स्थिति में होती तो उठकर किसी डॉक्टर के पास न चली जाती ।”
“अगर तुम ऐसी स्थिति में होती भी तो भी तुम ऐसा नहीं करती । इससे तुम्हारा
मतलब हल नहीं होता ।”
“पता नहीं क्या बक रहे हो ?” - वह होंठ सिकोड़ कर बोली ।
“और क्या चाकलेट तुम उसके आसपास लिपटे उन कागजों समेत खा गई थीं जिस
पर चाकलेट का ब्रांड और उसे बनाने वाली कम्पनी का नाम लिखा होता है ?”
“क्या मतलब ?”
“चाकलेट का एक भी रैपर फ्लैट में नहीं मिला था जबकि तुम्हारे कथनानुसार तुम
किताब पढती हुई चाकलेट खा रही थी । उन चार चाकलेटों के रैपर, जो कि तुमने खाई थीं,
फ्लैट में ही होने चाहिए थे लेकिन ऐसा एक भी रैपर हमें यहां दिखाई नहीं दिया था ।”
“लेकिन मिस्टर, इन तमाम बातों से तुम साबित क्या करना चाहते हो ? अपने
आपको जहर देकर मेरा क्या मतलब हल हो सकता था ?”
“टोनी की हत्या के मामले में यही तो तुम्हारा बचाव था ।”
“क्या ?” - नीलोफर चिल्लाई - “तुम कहना चाहते हो कि टोनी की हत्या मैंने की है
?”
“हां ।”
“सुपरिण्टेण्डेण्ट साहब” - नीलोफर असहाय भाव से रामसिंह से सम्बोधित हुई -
“आप इस आदमी को ऐसी ऊलजलूल बातें बकने से रोक नहीं सकते ?”
“जो यह कहता है सुनती जाओ ।” - रामसिंह दयाहीन स्वर में बोला ।
“लेकिन...”
“क्या शानदार स्कीम तैयार की थी तुमने ।” - सुनील बोला - “जिस समय टोनी की
हत्या हुई हो, अगर यह समझा जाए कि ठीक उसी समय तुम नेपियन हिल से पन्द्रह मील
दूर अपने फ्लैट पर जहरीली चाकलेट खाकर पड़ी मर रही ही तो कोई सपने में भी नहीं
सोच सके गा कि तुमने टोनी की हत्या की थी । चाकलेट बनाने वाली फै क्ट्री में काम करने
के दौरान हासिल किये हुये अपने चाकलेट के ज्ञान को इस्तेमाल करते हुए तुमने खुद अपने
लिए एक जहरीली चाकलेट का डिब्बा तैयार किया, उसमें उतने ही जहरीली चाकलेट के
पैके ट रखे जितने कि तुम्हारे फ्लैट से बरामद हुए थे, परसों शाम को रीता से हासिल हुए
कार्ड पर टोनी के दफ्तर में पड़े टाइपराइटर द्वारा ‘विद कम्पलीमैन्ट्स फ्राम’ लिखकर उसे
डिब्बे पर लगाया और उसे अपने फ्लैट में पैकिंग खोलकर मेज पर इस प्रकार रख दिया कि
देखने वाले को लगे कि तुम उसमें से चाकलेट निकाल-निकालकर खाती रही हो । उसके
बाद तुम नेपियन हिल पहुंची, वहां तुमने टोनी का खून किया और फिर वहीं से पुलिस को
टेलीफोन किया जो कि गलती से मेरे फ्लैट पर मिल गया । तुमने मुझे अपना नाम बताया,
यह भी बताया कि तुम कै बरे डांसर हो, कहा कि तुम अपने फ्लैट से बोल रही हो, किसी ने
तुम्हें जहर दे दिया है और तुम मर रही हो । जिस रिसीवर के तुम्हारे हाथ से गिरने की
आवाज मैंने सुनी थी वह अवश्य वहां के टेलीफोन का था जहां से तुमने फोन किया था ।
फोन पर तुमने जान-बूझकर अपना पता नहीं बताया और जाहिर यह किया जैसे तुममें और
बोलने की हिम्मत नहीं ।”
“पता क्यों नहीं बताया मैंने ?”
“क्योंकि अभी तुमने पन्द्रह मील दूर अपने फ्लैट पर पहुंचना था । अगर तुम्हें अपने
फ्लैट पर पहुंच पाने से पहले ही पुलिस वहां पहुंच जाती तो तुम्हारी पोल न खुल जाती ?
अगर तुम यहां आकर फोन करती तो तुम्हारा मिशन फे ल हो जाता क्योंकि तुम्हें अपने
फ्लैट पर पहुंचते-पहुंचते कम से कम साढे ग्यारह बज जाते जबकि कत्ल ग्यारह बजे हो
चुका था । तुम तो यह जाहिर करना चाहती थी कि कत्ल ग्यारह बजे हुआ और ठीक ग्यारह
बजे तुम नेपियन हिल से पन्द्रह मील परे अपने फ्लैट पर पड़ी मर रही थीं । लेकिन तुमने
फोन पर यह विशेष जोर देकर बताया कि तुम कै बरे डान्सर नीलोफर हो । तुम जानती थीं
पुलिस बड़ी जल्दी जान जायेगी कि नीलोफर नाम की कै बरे डान्सर फाइव स्टार नाइट
क्लब से सम्बन्धित है । पुलिस को फाइव स्टार नाइट क्लब में पहुंचने में और किसी ऐसे
आदमी को तलाश करने में जो कि तुम्हारे फ्लैट का पता जानता हो, इतना समय जरूर
लगेगा जितने से पहले कि तुम अपने फ्लैट पर पहुंच सको । फोन करने के बाद तुम अपने
फ्लैट पर पहुंचीं, तुमने एक निश्चित मात्रा में वही जहर खाया जो मेज पर खुले पड़े ढिब्बे में
रखी चाकलेटों में तुम पहले ही भर चुकी थीं और फिर फर्श पर लेट कर पुलिस के आगमन
का इन्तजार करने लगीं । पुलिस वहां पहुंची । तुम्हें वहां मरती पाकर कोई सोच भी नहीं
सकता था कि अभी थोड़ी देर पहले तुम किसी की हत्या करके आई थीं ।”
“कहानी अच्छी सुनाई तुमने” - नीलोफर जम्हाई लेती हुई बोला - “लेकिन कौन
विश्वास करेगा इस पर ?”
“पुलिस ?”
नीलोफर ने रामसिंह की ओर देखा ।
रामसिंह सोच में पड़ा हुआ था ।
कु छ क्षण कमरे में मरघट का सा सन्नाटा छाया रहा ।
अन्त में रामसिंह अपने स्थान से उठा ।
“इधर आओ ।” - वह सुनील से बोला और कमरे के कोने में स्थित एक खिड़की की
ओर बढा ।
सुनील भी उठकर खिड़की के पास रामसिंह की बगल में पहुंचा ।
“एक दो बातें बताओ” - रामसिंह धीमे स्वर में बोला - “इसका इत्तफाक से गलत
नम्बर लग गया । अगर तुम आगे पुलिस को सूचना न देते तो इसका मतलब यह होता कि
वह अपने फ्लैट पर पड़ी डॉक्टरी सहायता न मिलने की वजह से मर जाती ?”
“लड़की बेवकू फ नहीं है” - सुनील बोला - “अपने नाम के साथ-साथ मैंने उसे यह भी
बताया था कि मैं ब्लास्ट का विशेष प्रतिनिधि हूं । वह मुझ से ऐसी गैरजिम्मेदारी की उम्मीद
नहीं कर सकती थी कि मैं ऐसी भयंकर खबर को यूं नजरअन्दाज कर जाता ।”
“लेकिन टेलीफोन करते समय वह सचमुच तो बेहोश होती जा नहीं रही थी । जब
उसे मालूम हो ही गया था कि पुलिस स्टेशन के स्थान पर कोई और नम्बर लग गया था तो
वह दोबारा भी तो टेलीफोन कर सकती थी ?”
“नहीं कर सकती थी । वह तो यह जाहिर करना चाहती थी कि उसमें उमनी ही
हिम्मत थी जितनी वह उस इकलौती टेलीफोन काल में खर्च कर चुकी थी । मान लो वह
पुलिस को भी फोन करती और फिर मैं भी पुलिस को फोन करके उसके साथ हुआ सारा
वार्तालाप दोहरा देता तो उसकी तो सारी योजना ही चौपट हो जाती ।”
“लेकिन फिर भी मान लो तुमने पुलिस हैडक्वार्टर फोन करके सारी बात दोहराने की
जिम्मेदारी न दिखाई होती तो इसका मतलब यह होता कि वह फ्लैट में पड़ी-पड़ी मर जाती
। क्योंकि यह बात तो निश्चित रूप से सच है कि जहर उसने खाया था । जहर तो पम्प
करके उसके पेट से निकाला गया था ।”
“इस लिहाज से तो तुम यह भी कह सकते हो कि अगर पुलिस उसके फ्लैट का पता
मालूम कर पाने में असफल रहती तो उसका क्या अंजाम होता ।”
“हां यह बात भी है ।”
“रामसिंह, मरती वह फिर भी नहीं । हम बात को ड्रामेटिक टच देने के लिए कह देते
हैं कि बेचारी बाल-बाल बची । अगर ऐन मौके पर उसे डॉक्टरी सहायता न मिली होती तो
वह मर गई होती । हकीकत में उसने बड़ा सोच-समझ कर, बड़ा नाप तोल कर जहर खाया
होगा । उसे मालूम होगा कि जितना जहर उसने खाया है उससे उसकी हालत खराब हो
सकती थी, वह मर नहीं सकती थी । अगर मैं उसकी फोन काल की सूचना पुलिस को न
देता, अगर पुलिस उसके फ्लैट का पता तलाश करने में कामयाब न होती तो क्या होता ?
वह रात भर अपने फ्लैट में बेहोश पड़ी रहती । सुबह नौकरानी या दूध वाला आकर शोर
मचा देता । वह फिर हस्पताल ले जाई जाती । तब टोनी की हत्या के समय अपनी मौजूदगी
अपने फ्लैट में सिद्ध कर पाने वाली बात थोड़ी गड़बड़ा जाती लेकिन उसकी अपनी दशा
को देखते हुए पुलिस को उस पर हत्यारी होने का संदेह तो फिर भी हरगिज नहीं होता ।”
“हूं ।”
“और तुमने परसों देखा नहीं, रात के साढे ग्यारह बजे भी इसने अपने फ्लैट का
दरवाजा भीतर से बन्द नहीं किया था । यह नहीं चाहती थी कि पुलिस को या किसी और
को फ्लैट में घुसने में कोई दिक्कत हो ।”
“टोनी की हत्या रीता की रिवाल्वर से हुई है” - रामसिंह ने नई शंका प्रकट की - “वह
रिवाल्वर नीलोफर के अधिकार में कै से आई ? इसके जवाब में तुम यह नहीं कह सकते कि
रिवाल्वर उसे घटनास्थल पर पड़ी मिली होगी क्योंकि तुम्हारी अपनी थ्योरी के अनुसार वह
तो पहले से ही टोनी के कत्ल का इरादा किये बैठी थी । इसलिए जरूर परसों रात रिवाल्वर
यह अपने साथ ही लेकर गई होगी ।”
“यह सवाल जरा पेचीदा है । इसका एकदम फिट जवाब मेरे पास नहीं है । लेकिन
संभव यही दिखाई देता है कि रिवाल्वर उसे रोहित के पास से हासिल हुई होगी । रीता के
संक्षिप्त परिवार का वही इकलौता सदस्य है जो नीलोफर के सम्पर्क में था । जरूर रीता की
रिवाल्वर उसके पास होगी । या तो उसने वह रिवाल्वर खुद नीलोफर को दी होगी या फिर
नीलोफर ने रिवाल्वर उसके पास से चुराई होगी ।”
“हूं । देखो दोस्त । तुम्हारी जहरीली चाकलेट वाली कहानी तो मुझे जंच रही है लेकिन
नीलोफर द्वारा टोनी के कत्ल वाली बात जरा आसानी से गले नीचे नहीं उतर रही है ।”
“क्यों ?”
“उद्देश्य । नीलोफर के पास हत्या का उद्देश्य क्या है ?”
“हसद की भावना । नीलोफर ने मुझे खुद बताया था कि टोनी क्लब से उसका पत्ता
काटने वाला था । वह उसके स्थान पर कोई नई छोकरी रखने वाला था और उसी के साथ
वह परसों रात नेपियन हिल वाले बंगले में था । दूसरा तौहीन । वह कहता था नीलोफर की
जवानी अब ढल चुकी है, वह अब नाइट क्लब के धंधे के काबिल नहीं रही । टोनी जिन्दगी
भर उसे इस्तेमाल करता रहा था और अब बड़ी बेरहमी से उसे धक्का दे रहा था । नीलोफर
से इतना अपमान बरदाश्त नहीं हुआ और उसने टोनी का कत्ल कर डालने का फै सला कर
लिया । तीसरे टोनी की बेईमानी की नीयत । उसने नीलोफर की कमीशन के दस-पन्द्रह
हजार रुपये उसे देने थे जो कि वह साफ-साफ डकार जाना चाहता था । लेकिन वास्तव में
शायद कोई इससे भी तगड़ा उद्देश्य हो । तुम नीलोफर से ही पूछो ।”
“लेकिन फिर भी...”
“रामसिंह, तुम एक दक्ष पुलिस अधिकारी की तजुर्बेकार निगाह रखते हो । जरा
नीलोफर के चेहरे पर एक निगाह डालो । क्या तुम्हें वहां हवाइयां उड़ती नहीं दिखाई दे रहीं
?”
रामसिंह ने नीलोफर की दिशा में देखा ।
“ओके ” - वह निर्णात्मक स्वर में बोला - “आई एम सोल्ड ।”
रामसिंह फिर नीलोफर के सामने पहुंचा ।
“सुनो ।” - वह बोला ।
नीलोफर ने सिर उठाया ।
“इधर मेरी ओर देखो ।”
एक क्षण के लिए दोनों की निगाह मिलीं, फिर नीलोफर की निगाह भटक गई ।
“अगर तुमने टोनी की हत्या की है तो यह बात कबूल कर लेने का यह ज्यादा
मुनासिब मौका है ।”
“मैंने उसकी हत्या नहीं की ।” - वह बोली लेकिन उसकी आवाज में कम्पन छु पाये
नहीं छु प रहा था ।
“देखो, साफ-साफ इरादा करके खून करने में और इत्तफाक से खून होने में बड़ा फर्क
होता है । गोली टोनी की पीठ की ओर लगी है इसलिए सम्भव है कि गोली किसी और
वजह से चली हो और इत्तफाक से टोनी के जा लगी हो । अगर ऐसा कु छ हुआ है तो यह
बात अभी कबूल करो क्योंकि बाद में जब तुम अदालत में यही बात कहोगी तो इसमें कोई
दम-खम नहीं दिखाई देगा ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि तब ऐसा लगेगा कि तुम्हारे वकील ने तुम्हारी जान बचाने की खातिर तुम्हें
सिखा-पढा कर ऐसा कहने के लिए तैयार किया है ।”
नीलोफर चुप रही । उसकी बेचैन निगाहें फ्लैट में चारों ओर घूम गईं ।
“क्या इरादा है ?” - रामसिंह पूर्ववत् नम्र स्वर से बोला - “तुम यहां इज्जतदार तरीके
से अपना अपराध कबूल करती हो या मैं तुम्हें पुलिस हैडक्वार्टर लेकर चलूं और तुम्हें किसी
ऐसे इंस्पेक्टर के हवाले कर दूं जो अपराधियों के हलक में हाथ डाल कर भी सच्चाई
निकाल लेने की क्षमता रखता हो ?”
वह चुप रही ।
“तुमने पुलिस थर्ड डिग्री का थोड़ा बहुत जिक्र जरूर सुना होगा । हमारे जूनियर
अफसर अपराधी से उसका अपराध मनवाने के लिए हर मुनासिब गैर-मुनासिब तरीका
इस्तेमाल करते हैं । एक बार कोर्ट से रिमांड मिल जाने के बाद वे तुम्हारी क्या गत बनायेंगे,
उसकी तो कल्पना करके भी मेरे शरीर में झुरझुरी दौड़ जाती है ।” - और रामसिंह के भारी
भरकम शरीर में सच ही सिहरन दौड़ गई ।
“अगर... अगर मैं” - नीलोफर होंठों पर जुबान फे रती हुई बोली - “मैं सब कु छ सच
बता दूं तो आप मुझे पुलिस के दुर्व्यवहार से बचा लेंगे ?”
“बिल्कु ल बचा लूंगा” - रामसिंह अश्वासनपूर्ण स्वर से बोला - “मैं वादा करता हूं ।”
“टोनी पारनेल एक बेहद कमीना आदमी था” - नीलोफर धीमे स्वर से बोली -
“दगाबाजी और मक्कारी उसकी रग-रग में बसी हुई थी । छ: साल वह मेरी जवानी के साथ
जोंक की तरह चिपका रहा । छ: साल वह मेरा खून चूसता रहा, मुझे अपने हर भले-बुरे
काम के लिए इस्तेमाल करता रहा । मेरी मदद से उसने जुए के शौकीन रईस लोगों से
लाखों रुपये झाड़े और फिर एक दिन उसने मुझे ऐसी बात कह दी कि मेरे पैरों के नीचे से
जमीन निकल गई । सुरक्षा की जितनी भावना आज तक टोनी से सम्बन्धों की वजह से मेरे
मन में थी, वह सब एक क्षण में हवा हो गई । वह हरामजादा कहने लगा कि मैं बूढी होने
लगी हूं, मेरे जिस्म का कसाव ढीला पड़ने लगा है, मेरे चेहरे पर झुर्रियां पड़ने लगी हैं, मेरी
आंखों की चमक पुंछ गई है, मेरे होंठों की मुस्कराहट बासी पड़ गई है । वह कमीना आदमी
मुझे एकाएक दूध में से मक्खी की तरह निकाल फें कना चाहता था । यही नहीं उसने पहले
ही मेरी जगह लेने के लिए एक नई, ताजी-ताजी जवान हुई छोकरी तलाश कर ली हुई थी ।
उसकी कमीनगी का ज्यादा अन्दाजा आप इस बात से लगा सकते है कि ये तमाम बातें
उसने मुझे क्लब के नौकरों और वेटरों के सामने कहीं ?”
“यह कब की बात है ?”
“उसकी हत्या से चार दिन पहले की ।”
“फिर ?”
“उसके बाद मैंने उससे अपनी कमीशन के रुपये मांगे तो वह उन्हें भी देने से मुकर
गया । मेरा खून खौल उठा । मैंने फै सला कर लिया कि मैं उस हरामजादे को जान से मार
दूंगी लेकिन मेरे और उसके भयंकर झगड़े की बात क्लब में हर किसी को मालूम थी । मैं
जानती कि अगर वह मर गया तो सबसे पहले उसकी हत्या का संदेह मुझे पर ही किया
जायेगा । अपने बचाव के लिए मुझे एकदम पक्की शहादत की जरूरत थी । यही शहादत
हासिल करने के लिए मैंने जहरीली चाकलेट वाली तरकीब सोची । मैंने सोचा कि जिस
समय टोनी की हत्या हो, ठीक उसी समय अगर मैं अपने फ्लैट में मरती पड़ी पाई जाऊं तो
सपने में भी टोनी की हत्या का संदेह मुझे पर नहीं किया जायेगा । चाकलेट के बारे में
सुनील ने जो कु छ कहा था एकदम सच कहा था । वह डिब्बा मैंने उसी दिन तैयार किया था
जिस दिन मेरी टोनी से भयंकर तकरार हुई थी । लेकिन मुझे मालूम नहीं था कि के वल
डिब्बे की पैकिंग की जांच से पुलिस इतनी बातें जान जायेगी ।”
“रीता के कार्ड पर तुम्हीं ने टोनी के टाइपराइटर की सहायता से ‘विद कम्पलीमेण्ट्स
फ्राम’ टाइप किया था ?”
“हां । उस दिन रीता ने मुझे कार्ड दिया तो हाथ-ही-हाथ मुझे यह ख्याल आया क्यों न
मैं ऐसा जाहिर करूं कि जहरीली चाकलेट मुझे रीता ने भेजी थी ।”
“रिवाल्वर” - सुनील बोला - “रीता की रिवाल्वर तुम्हारे हाथ कै से लगी ?”
“मुझे नहीं मालूम था, वह रिवाल्वर रीता की थी । वह रिवाल्वर मैंने रोहित की कार
की डैश बोर्ड में बने बक्से में पड़ी देखी थी । टोनी से झगड़े के तीन दिन बाद अर्थात् रीता से
मुलाकात होने से एक दिन पहले मैंने वह रिवाल्वर चुपचाप वहां से निकाल ली थी और उसे
खबर ही नहीं हुई थी । उसे तो यह भी याद नहीं रहा होगा कि वह रिवाल्वर कभी उसने
अपनी कार में रखी भी थी । ऐसा ही आदमी है रोहित ।”
“फिर ?” - रामसिंह बोला ।
“कत्ल की नौबत आ जाने की सूरत में मैं अपने बचाव का इन्तजाम तो करके गई थी
लेकिन वास्तव में मैं रिवाल्वर से टोनी को डरा-धमकाकर उससे सरिता के शेयर सर्टिफिके ट
हासिल करना चाहती थी जो वह नेपियन हिल अपने साथ ले गया हुआ था । बाद में मैं उस
सर्टिफिके ट की वापिसी के बदले में टोनी से एक मोटी रकम ऐंठने में कामयाब हो सकती
थी । यह प्रोग्राम मुझे हर हाल में सुरक्षित लगा । वैसे भी तीन-चार दिन का वक्त बीच में आ
जाने की वजह से मेरा गुस्सा ठण्डा हो चुका था । अब मैं टोनी के खून की उतनी प्यासी
नहीं रही थी जितनी मैं तब थी जब उससे मेरी झड़प हुई थी । बहरहाल रात ग्यारह बजे के
करीब मैं रिवाल्वर लेकर टोनी के बंगले पर पहुंची । टोनी वहां अके ला था । मुझे रिवाल्वर
के साथ देखकर उसके होश उड़ गए । मैंने उसे शेयर सर्टिफिके ट निकालने के लिए कहा ।
शेयर सर्टिफिके ट उसी मेज के दराज में था जिसके समीप वह खड़ा था । उसने दराज का
ताला खोलकर उसमें से शेयर सर्टिफिके ट निकाला और मेरे आदेश पर उसे मेज पर रख
दिया । तभी किसी ने मेरे पीछे से मुझ पर छलांग लगा दी ।”
“किसने ?”
“उसी नई छोकरी ने जो पिछले चार दिनों से टोनी के साथ वहां रह रही थी । वह मेरे
आगमन से पहले थोड़ी देर के लिए कहीं बाहर चली गई थी और ऐन मौके पर वापिस लौट
आई थी । मेरी उसके साथ छीना-झपटी होने लगी । टोनी मेज से सर्टिफिके ट उठाकर उसे
वापिस मेज के दराज में रखने का इरादा कर रहा था । छीना-झपटी के दौरान मेरी उंगली
रिवाल्वर के ट्रीगर वाले छेद में फं सी हुई थी । वह लड़की एक पगलाई बिल्ली की तरह मुझे
झिंझोड़ रही थी । तभी पता नहीं कै से मेरी उंगली ट्रीगर पर दब गई और गोली चल गई ।
गोली की आवाज से वह लड़की भी भयभीत हो गई । वह मुझसे अलग हट गई । मेरे हाथ
से भी रिवाल्वर निकलकर नीचे जा गिरी । गोली सीधी जाकर टोनी की खोपड़ी के पृष्ठ
भाग में घुस गई थी और वह मरकर मेज के पास ही गिर कर ढेर हो गया था । मैंने उसे उस
दशा में देखा तो मेरी चीख निकल गई । मैंने रिवाल्वर वहीं फें की और वहां से भाग निकली
। मुझे मेज पर पड़े सर्टिफिके ट को भी उठाने की सुध नहीं रही । मेरे वहां से भागते ही
शायद वह लड़की भी वहां से भाग गई ।”
“ग्यारह पचपन पर पुलिस हैडक्वार्टर फोन करके पुलिस को टोनी के कत्ल की
सूचना उसी लड़की ने दी होगी ।” - सुनील बोला ।
“उस लड़की ने सारी वारदात की सूचना फौरन पुलिस को क्यों नहीं दी ?” - रामसिंह
बोला ।
“वह भी मेरी तरह बेहद डर गई थी और शायद किसी बखेड़े में नहीं पड़ना चाहती थी
। और फिर गोली चलने में उस का भी कु छ तो यागदान था ही ।”
“शायद वह इस बात की भी पब्लिसिटी न चाहती हो” - सुनील बोला - “कि वह बड़े
नाजायज तरीके से उस बंगले में टोनी के साथ रह रही थी । अगर वह सामने आती तो यह
बात खुले बिना न रहती । लेकिन बाद में शायद उसने यह सोचकर पुलिस हैडक्वार्टर एक
गुमनाम टेलीफोन कर दी थी कि शायद टोनी अभी मरा न हो । शायद अभी भी डाक्टरी
सहायता हासिल हो जाने पर वह बच सकता हो । इसी वजह से ग्यारह बजे हुए टोनी के
कत्ल की सूचना पुलिस को ग्यारह पचपन पर मिली ।”
“फिर तुमने क्या किया ?” - रामसिंह नीलोफर से बोला ।
“अब मेरे लिये अपना बचाव जरूरी था” - नीलोफर बोली - “पहले से ही तैयार की
हुई अपनी योजना के अनुसार मैंने एक पब्लिक टेलीफोन बूथ से पुलिस हैडक्वार्टर फोन
किया लेकिन नम्बर सुनील का लग गया । मैंने उसे कहा कि मुझे जहर दे दिया गया है और
रिसीवर हाथ से गिर जाने दिया । फिर मैं तेज रफ्तार से अपने फ्लैट की ओर रवाना हुई ।
रास्ते में मैंने तेज रफ्तार से अपने फ्लैट की ओर रवाना हुई । रास्ते में मैंने जहर की एक
नपी-तुली मात्रा पी ली और सादी चाकलेट के वे चार पैके ट भी खा लिए जो मैंने डिब्बे में से
पहले ही निकाले हुए थे । मेरा दावा था कि मुझे चाकलेट में जहर दिया गया था इसीलिए
बाद में मेरे पेट में से चाकलेट के अवशेष निकलने जरूरी थी । अपने फ्लैट पर पहुंचने पर
मुझ पर बेहोशी छाने लगी थी । मैं फ्लैट पर पहुंची और चाकलेट के खुले डिब्बे के पास
फर्श पर ढेर हो गई । मुझे यह सूझा ही नहीं कि मेरे टेलीफोन का रिसीवर नीचे गिरा मिलना
चाहिए और फ्लैट में चाकलेट रैपर भी मिलने चाहिए ।”
“उसके बाद ?”
“उसके बाद जो कु छ हुआ, आप लोग जानते ही हैं ।”
“हूं ।” - रामसिंह बोला । वह कु छ क्षण सोचता रहा । फिर वह अपने स्थान से उठा
और टेलीफोन के पास पहुंचा । उसने पुलिस हैडक्वार्टर का नम्बर डायल किया ।
“मैं रामसिंह बोल रहा हूं” - दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही वह अधिकारपूर्ण स्वर में
बोला - “सरिता नागपाल को रिहा कर दो । फौरन ।”
सुनील ने शांति की गहरी सांस ली ।
***
एक लम्बी भाग-दौड़ के बाद पुलिस उस लड़की को तलाश करने में कामयाब हो गई
जो हत्या की रात को टोनी के बंगले पर उसके साथ थी । उसने नीलोफर के बयान की पुष्टि
की । उसके कथनानुसार सब-कु छ वैसे ही हुआ था जैसे नीलोफर ने बयान किया था ।
सरिता की रिहाई के फौरन बाद उसे नर्सिंग होम भर्ती करवा देना पड़ा । डॉक्टर के
कथनानुसार वह मरने से बाल-बाल बची थी और अब उसे एक बेहद लम्बे विश्राम की
जरूरत थी ।
रीता ने नीलोफर के मुकद्दमे के दौरान उसकी बहुत मदद की । उसने नीलोफर के
बचाव के लिए अपने खर्चे से जो वकील नियुक्त किया वह सुप्रीम कोर्ट का जज रह चुका
था । बड़ी अनथक मेहनत के बाद ही वह नीलोफर को कत्ल के इलजाम से बरी करवा
पाया ।
नीलोफर को बरी कराने में रामसिंह के सहयोग का भी बड़ा हाथ था । नीलोफर पर
चार्ज लगाकर उसे बुक करते समय उसने यह नहीं लिखा था कि उसने सुनील की अकाट्य
दलीलों से जिच होकर अपना अपराध स्वीकार किया था । उसने लिखा कि विक्टोरिया
हस्पताल से छु ट्टी मिलते ही उसने खुद फोन करके रामसिंह को अपने फ्लैट पर बुलाया था
और अपना बयान दिया था ।
यह बात नीलोफर के हक में काफी कारआमद साबित हुई थी ।
नीलोफर के बयान से यह भी सिद्ध हुआ कि रोहित को जुआ खेलने के लिए
बरगलाया-फु सलाया गया था । उसने जितना रुपया टोनी से कर्जे में लिया था, वह सब
उसने जुए में हार दिया था । माननीय जज ने इसे धोखाधड़ी और करप्ट प्रैक्टिस बताया ।
इस प्रकार शेयर सर्टिफिके ट बिना कर्ज की अदायगी के उसके मूल स्वामी को लौटा दिया
गया ।
रोहित ने यह कभी नहीं बताया कि उसने रीता की रिवाल्वर उसकी मेज के दराज में
से चुराकर कार में क्यों रखी हुई थी । आम धारणा यह थी कि शायद वह टोनी का खून
करने का इरादा रखता था लेकिन दरियादिल सरिता का फिर भी यही कहना था कि वह
रोहित ने हालात की पेचीदगियों से तंग आकर आत्महत्या कर लेने के लिए अपने पास रखी
हुई थी ।
रीता का ख्याल था कि रोहित की सारी करतूतों को ध्यान में रखते हुए सरिता नर्सिंग
होम से आते ही उसे तलाक दे देगी । लेकिन सरिता ने न के वल अपने ‘पति परमेश्वर’ को
तलाक नहीं दिया बल्कि उसे माफ भी कर दिया । उसने इतना जरूर किया कि उसने
रोहित को दी पावर आफ अटार्नी कैं सिल करवा दी और अपनी सारी चल-अचल सम्पत्ति
का हिसाब-किताब अपने हाथ में ले लिया ।
साहनी ने दोबारा कभी रीता को सूरत नहीं दिखाई ।
बरी होने के बाद नीलोफर ने अपनी कै बरे डांसर की जिन्दगी से सदा के लिए किनारा
कर लिया । रीता ने उसे अपने दफ्तर में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी दे दी । जो उसने अपार
कृ तज्ञता का प्रदर्शन करते हुए स्वीकार कर ली । उसने अपना अमर कालोनी का महंगा
फ्लैट भी छोड़ दिया और वर्किंग गर्ल्स होस्टल के एक कमरे में रहने चली गई ।
धीरे-धीरे रोहित में भी स्पष्ट सुधार आता दिखाई देने लगा । एक दिन वह रीता के
पास उसके दफ्तर में पहुंचा और पश्चाताप के सच्चे आंसू बहाते हुए उसने रीता को कहा कि
अब वह भविष्य में परजीवी बनकर नहीं रहना चाहता था । इसलिए यदि सम्भव हो तो रीता
उसे फै क्ट्री में - आफिस में नहीं, वह नीलोफर के संसर्ग से परे रहना चाहता था - कोई काम
दे दे ।
रीता ने उसे फै क्ट्री में फोरमैन नियुक्त कर दिया । वह उसे उससे बढिया पद पर भी
आसीन कर सकती थी लेकिन रोहित ने इनकार कर दिया । वह बोला - “वह पहले स्वयं
को फोरमैन के पद के योग्य तो सिद्ध कर ले ।”
फाइव स्टार नाइट क्लब में सदा के लिए ताला पड़ गया ।
समाप्त

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