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Date:25-10-2019.
श्री गणेशाय नमः।

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॥ श्री भवानी कवचम , त्रैलोक्य-मोहन-कवचं ॥
(Easy To Learn)

and
|| shrI bhavAnI-kavacham ||
॥ श्री भवानीकवचम , त्रैलोक्यमोहनकवचं ॥
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Bhavani-Trailokya-Mohan-v.1
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॥ श्री भवानी कवचम , त्रैलोक्य-मोहन-कवचं ॥ ( Easy To Learn )

ॐ श्री गणेशाय नमः।



श्री पाववत्यवाच = पाववत्य-उवाच ।
भगवन सववमाख्यातं* मन्‍तत्रं यन्‍तत्रं शभु प्रदम । *सववम-आख्यातं
भवान्ाः कवचं ब्रूहह यद्यहं* वल्लभा तव ॥१॥ *यद-यहं
ईश्वर उवाच ।
ु गह्यतरं
गह्याद् ु * गोप्यं भवान्ाः सववकामदम । ु -गह्यतरं
*गह्याद ु

कवचं मोहनं देहव गरु-भक्‍त त्या प्रकाहशतम ॥२॥
राज्यं देय ं च सववस्व ं कवचं न प्रकाशयेत ।
गरुु भक्‍तताय दातव्यमन्था* हसहिदं नहह ॥३॥ *दातव्यम-अन्था
॥ हवहनयोगः॥
ॐ अस्य श्री-भवानी कवचस्य सदाहशव ऋह ः-अनष्टु ुप छन्दः,
मम सवव-कामना हसियथे, श्री-भवानी त्रैलोक्य-मोहन-कवच पाठे हवहनयोगः॥
॥ मूल कवच पाठ ॥
पद्म-बीजाहशरः पात ु ललाटे पञ्चमीपरा ।
नेत्र े काम प्रदा पात ु मख
ु ं भवन
ु सन्दरी
ु ॥४॥
ु ी तथा ।
नाहसकां नारससही च हजह्ां ज्वालामख
श्रोत्रे च जगतां धात्री करौ सा हवन्ध्यवाहसनी ॥५॥
स्तनौ च कामकामा च पात ु देवी सदा-शहु चः।
उदरं मोह-दमनी कण्डली नाभ-मण्डलम ॥६॥
पाश्वं पृष्ठकटी ु
गह्य-स्थान-हनवाहसनी ।
ऊरू मे हहङ्गल ु कमठा तथा ॥७॥
ु ा च ैव जाननी
पादौ हवघ्न-हवनाशा च अङ्गल ु ीः पृहथवी तथा ।
रक्ष-रक्ष महामाये पद्मे पद्मालये हशवे ॥८॥
वाहितं पूरहयत्वा त ु भवानी पात ु सववदा ।

Bhavani-Trailokya-Mohan-v.1
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॥ फलश्रतु ी ॥
य इदं कवचं देव्या जानाहत सच मन्‍तत्रहवत ॥९॥
राजद्वारे श्मशाने च भूतप्रेतोपचाहरके * । *भूत-प्रेत-उपचाहरके
ु मागमे* ॥१०॥
बन्धने च महादःखे पठे च्छत्रस * पठे त-शत्र-ु समागमे
स्मरणात-कवचस्य-अस्य हनभवयो जायते नरः ।
प्रयोगमपु चारस्य* भवान्ाः कतहवु मच्छहत ॥११॥
वु -इच्छहत ॥११॥
* प्रयोगम-उपचार-अस्य भवान्ाः कतम
ु ।
कवचं प्रपठे दादौ* ततः हसहिम-व-आप्नयात *प्रपठे द-आदौ
भूजपव त्रे हलहखत्वा त ु कवचं यस्त-ु धारयेत ॥१२॥
देहे च यत्र कुत्राहप सवव हसहि-भववने -नरः।
शस्त्रास्त्रस्य* भयं न ैव भूताहद* भयनाशनम ॥१३॥ *शस्त्र-अस्त्रस्य , *भूत-आहद
गरुु भहक्‍ततं समासाद्य भवान्ा-स्तवनं कुरु ।
सहस्र नाम पठने कवचं प्रथमं गरुु ॥१४॥
नहन्दने कहथतं देहव तवाग्रे* च प्रकाहशतम । *तव-अग्रे
सागन्ता जायते देहव नान्था हगहर-नहन्दहन ॥१५॥
इदं कवचमज्ञात्वा* भवानीं स्तौहतयो नरः । *कवचम-अज्ञात्वा
कल्प कोहट शतेनाहप नभवेहिहिदाहयनी* ॥१६॥ *न-भवेत-हसहि-दाहयनी

व ॥
॥ इहत श्री भवानी त्रैलोक्य-मोहन-कवचं सम्पूणम

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|| shrI bhavAnI-kavacham ||
॥ श्री भवानीकवचम , त्रैलोक्यमोहनकवचं ॥
श्रीगणेशाय नमः।

श्री पाववत्यवाच ।
भगवन सववमाख्यातं मन्‍तत्रं यन्‍तत्रं शभु प्रदम ।
भवान्ाः कवचं ब्रूहह यद्यहं वल्लभा तव ॥१॥
ईश्वर उवाच ।
ु गह्यतरं
गह्याद् ु गोप्यं भवान्ाः सववकामदम ।
ु त्या प्रकाहशतम ॥२॥
कवचं मोहनं देहव गरुभक्‍त
राज्यं देय ं च सववस्व ं कवचं न प्रकाशयेत ।
गरुु भक्‍तताय दातव्यमन्था हसहिदं नहह ॥३॥
॥ हवहनयोगः॥
ॐ अस्य श्रीभवानी कवचस्य सदाहशव ऋह रनष्टु पु छन्दः,
मम सववकामना हसियथे श्रीभवानी त्रैलोक्यमोहनकवच
पाठे हवहनयोगः|
॥ कवच मूल पाठ ॥
पद्मबीजाहशरः पात ु ललाटे पञ्चमीपरा ।
नेत्र े काम प्रदा पात ु मख
ु ं भवन
ु सन्दरी
ु ॥४॥
ु ी तथा ।
नाहसकां नारससही च हजह्ां ज्वालामख
श्रोत्रे च जगतां धात्री करौ सा हवन्ध्यवाहसनी ॥५॥
स्तनौ च कामकामा च पात ु देवी सदाशहु चः ।
उदरं मोहदमनी कण्डली नाभमण्डलम ॥६॥

पाश्वं पृष्ठकटी गह्यस्थानहनवाहसनी ।
ऊरू मे हहङ्गल ु कमठा तथा ॥७॥
ु ा च ैव जाननी
पादौ हवघ्नहवनाशा च अङ्गल
ु ीः पृहथवी तथा ।
रक्ष-रक्ष महामाये पद्मे पद्मालये हशवे ॥८॥
वाहितं पूरहयत्वा त ु भवानी पात ु सववदा ।

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॥ फलश्रतु ी ॥
य इदं कवचं देव्या जानाहत सच मन्‍तत्रहवत ॥९॥
राजद्वारे श्मशाने च भूतप्रेतोपचाहरके ।
ु मागमे ॥१०॥
बन्धने च महादःखे पठे च्छत्रस
स्मरणात्कवचस्यास्य हनभवयो जायते नरः ।
प्रयोगमपु चारस्य भवान्ाः कतहवु मच्छहत ॥११॥
ु ।
कवचं प्रपठे दादौ ततः हसहिमवाप्नयात
भूजपव त्रे हलहखत्वा त ु कवचं यस्तधु ारयेत ॥१२॥
देहे च यत्र कुत्राहप सवव हसहिभववन्न
े रः ।
शस्त्रास्त्रस्य भयं न ैव भूताहद भयनाशनम ॥१३॥
गरुु भहक्‍ततं समासाद्य भवान्ास्तवनं कुरु ।
सहस्र नाम पठने कवचं प्रथमं गरुु ॥१४॥
नहन्दने कहथतं देहव तवाग्रे च प्रकाहशतम ।
सागन्ता जायते देहव नान्था हगहरनहन्दहन ॥१५॥
इदं कवचमज्ञात्वा* भवानीं स्तौहतयो नरः । *कवचम-अज्ञात्वा
कल्प कोहट शतेनाहप नभवेहिहिदाहयनी ॥१६॥

व ॥
॥ इहत श्रीभवानी त्रैलोक्यमोहनकवचं सम्पूणम ॥ॐ॥

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|| General Information ||

विशेष –
To repeat kavach 3/11/21/51/101 - repeat only Main Part .

श्री श्री भवानी "माता" का एक बहुत ही सौम्य और उग्र दोनो रूप हैं,

अतःभी उनके वकसी भी पजू ा, पाठ मन्त्र-जप इत्यावद में,


कोई भी एक किच पाठ अिश्य करना चावहये ।
किच का पाठ हमेशा ज्यादा सरु वित होता है,
तथा किच से भी साधक के सारे - कायय वसद्ध होते है ।
पर इनसे संबवन्त्धत प्रयोग, बहुत सोच-विचार के करना चावहये ।

विशेष -तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र, जानने-देखने-सनु ने-और पढ़ने में कोई हजय नहीं ।


पर ठीक से जाने-समझे वबना दसू रे पे कभी प्रयोग ना करें ।

नोट-
कुछ कवठन शब्द * को वचवन्त्हत करके , उसे "-" से सरल वकया है,
और मल ू शब्द के साथ नजदीक ही रखा गया है,
साधक लोग दोनो शब्दों को एक ही जगह पर देख कर तल ु नात्मक पाठ कर सकें ।
कुछ ही शब्दों का सही तरह से संवध-विच्छे द, करने का का प्रयास वकया गया है ।
अगर कुछ गलती/रवु ट हो तो, िमा प्राथी हूँ ।
(धन्त्यिाद) < Share if you like >

Bhavani-Trailokya-Mohan-v.1

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