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GRADE-VIII इतने ऊँचे उठो (द्वारिका प्रसाद माहे श्विी )

प्रस्तावना- प्रस्तुत कववता में द्वारिका प्रसाद माहे श्विी जी संदेश ददया है कक हम संसाि को जातत ,धमम,
िं ग-भेद की अग्नन से बचाकि मौलिक ववचािों द्वािा वतममान को सवािें ,अतीत में उिझे ना
िहकि परिवतमन के लिए स्वयं को तैयाि किें ग्जससे धिती को स्वगम से सुंदि बनाने के लिए
हमािा प्रयास अधूिा ना िहे |
इतने ऊँचे उठो------------------------- मिय पवन है ||

कवव युवा पीढी को संबोधधत किते हुए कह िहे हैं कक तुम अपने कायों द्वािा इतने ऊँचे उठो जाओ
ग्जतना ऊँचा गगन है | तुम सािी धिती को एक ही नजि से दे खो | इस धिती को समानता के भाव की
वर्ाम से लभगो दो | इस समय यह संसाि जातत-पातत , धमम ,िं ग-भेद के आधाि पि होने वािे भेदभाव की
अग्नन में जि िहा है | ग्जस तिह मिय पवन सभी को शीतिता प्रदान किता है उसी तिह तुम्हें भी
संसाि को मिय पवन के समान रूदढवादी ववचािों की तपन से बचाना होगा औि समाज को शांतत प्रदान
किनी है |
नई हाथ से ---------------------------स्वयं सज
ृ न है||

कवव कहते हैं कक युवा पीढी को अपने कायों द्वािा वतममान को एक नया औि सुंदि रूप प्रदान किना
है | उसे नए िं गों से सजाना है | नए िाग को नया स्वि दे ना है | भार्ा को नए-नए अक्षि दे ने हैं| नए
युग की मूततम िचना में स्वयं को इतना मौलिक बनाना है कक ग्जतना स्वयं सज
ृ न है |

िो अतीत---------------------------------- परिवतमन है ||

कवव कहते हैं जो बीत गया है तुम उसमें उिझे ना िहो | अपने अतीत से उतना ही िो ग्जतनी आज के
युग की आवश्यकता है | पुिानी पिं पिा में उिझे िहने से प्रगतत के मागम पि आगे बढना मुग्श्कि हो
जाएगा औि गतत का रुकना मत्ृ यु के ही समान है | जीवन का सत्य तो गततमान होना ही है इसीलिए
पुिानी पिं पिाओं के बंधन से बाहि तनकिो औि परिवतमन की इस धािा में ककतनी गतत से बहो ग्जतनी
गतत स्वयं परिवतमन में है|
चाह िहे हम------------------------------- आकर्मण है ||

कवव कहते हैं कक हम इस धिती को स्वगम के समान संद


ु ि बनाना चाहते हैं | अगि कहीं औि भी स्वगम
है तो वह हमािी धिती पि आ जाए ऐसी हमािी इच्छा है | नए समाज के तनमामण में अथामत धिती को
स्वगम जैसी संद
ु ि बनाने में सूिज, चाँद ,चाँदनी ,तािे अथामत सािी प्रकृतत हमािे साथ है | धिती की
कुरूपता को समाप्त कि उसे इतना संद
ु ि बना दो ग्जतना संद
ु ि स्वयं आकर्मण है |
ददए गए पद्यांश को पढकि तनम्नलिखखत प्रश्नों के उत्ति अपने वाक्यों में लिखखए

(1) इतने ऊँचे-------------------------------------------- मिय पवन है |

1) कवव हमें ककतना ऊँचा उठने के लिए कह िहा है ? क्यों ?

कवव हमें आसमान के समान ऊँचा उठने के लिए कह िहा है | कवव का मानना है कक ग्जस तिह

आसमान ने सभी को संिक्षण प्रदान कि िखा है उसी तिह हम मनष्ु यों को भी इस पीड़ित संसाि को

संिक्षण प्रदान कि उनके दख


ु ों को दिू किना है औि उनके जीवन को खुशहाि बनाना है | इसलिए

कवव हमें आसमान के समान ऊँचा बनने के लिए कहता है |

2) कवव धिा को कैसे सींचने के लिए कह िहा है ?

कवव कहते हैं कक हमें इस धिती को एक ही दृग्ष्ि से दे खना है | समानता के भाव की बारिश से

धिती को लसंधचत किना है ग्जससे सभी खुशहाि जीवन व्यतीत कि सकें| औि सािे भेदभाव लमि

जाएँ |

3) संसाि ककन ज्वािाओं से जि िहा है?

यह संसाि जातत-भेद ,धमम-वेश औि िं ग - द्वेर् की ईष्याम की ज्वािाओं से जि िहा है ग्जसके कािण

समस्त मानव जातत अत्यंत दख


ु ी है|

4) ज्वािाओं से जिते जग में मिय पवन की तिह बहने का क्या तात्पयम है ?

कवव कहते हैं कक ग्जस तिह मिय पवमत की मंद -मंद बहने वािी शीति हवा तपन को शांत किती

है उसी प्रकाि हम नए प्रगततशीि ववचािों के शीति झोंकों से जातत-भेद, धमम -वेश, िं ग- द्वेर् जैसी

रूदढवादी पिं पिाओं की तपन से झुिसे समाज को शीतिता प्रदान किें औि उसे खुशहाि बनाएँ |

(2) चाह िहे ----------------------------- आकर्मण है |

1) इन पंग्क्तयों में ‘हम’ इसके लिए आया है औि औि ककस चाह की बात की जा िही है ?

इन पंग्क्तयों में 'हम' भाित के यव


ु ा पीढी के लिए आया है | अगि कहीं स्वगम है तो वह स्वगम हमािी

धिती पि आ जाए क्योंकक हम इस धिती को स्वगम बनाना चाहते हैं |


2) सूिज, चाँद, चाँदनी, तािे के साथ होने का क्या अथम है ?

कवव कहते हैं यदद मनुष्य धिती को स्वगम बनाने का प्रयास किता है औि नए समाज के तनमामण के

लिए कायम किता है तो सूिज,चाँद,चाँदनी, तािे यानी समस्त प्रकृतत उसका साथ दे ती है |

3) दो कुरूप को रूप सिोना - ऐसा क्यों कहा गया है?

कवव कहते हैं कक यह समाज रूदढवादी पिं पिाओं से जकिा हुआ है| नई सोच वािे प्रगततशीि

यव
ु ाओं को अपने प्रयासों से संसाि को इन रूदढवादी पिं पिाओं को मक्
ु त किाना होगा | समाज में

नई ववचािधािा से परिवतमन आएगा| इस परिवतमन से यह धिती स्वगम जैसी सुंदि हो जाएगी|

इसीलिए कवव कहते हैं कक हमें समाज में फैिी कुरूपता को सिोना रूप दे ना है|

4) समाज में परिवतमन कैसे आएगा?

समाज में परिवतमन नई ववचािधािा से आएगा | नई सोच वािे प्रगततशीि युवाओं के प्रयासों से संसाि

रूदढवादी पिं पिाओं की जकिन से मुक्त होगा | संसाि में परिवतमन की ऐसी धािा बहे गी कक यह धिती

स्वगम के समान सुंदि हो जाएगी|

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