मख का आभा मण्डल िमके दवकीररत पूणा प्रकाश, पीर नजूमी सा सुिान ह कर सम्पूणा प्रयास, सहज सफलता सनि िनेिी रख अटू ट दवश्वास, जीवन की हर सिह सनहरी ना ह कही ों कहासा । दिव्य भान ह ों उदित भाग्य के ये मेरी अदभलाषा। ज्य दत पोंज का ह प्रकाश पलक ों पर दिखरे आशा।। 5 िन सों िदित मट्ठी की शक्तक्त क ल पहचान, रहे तजानी या अनादिका सि हैं एक समान, छ टा िड़ा क ई ना जि में सिका कर सम्मान, सकल धरा ह एक कटों ि, ह एक प्रेम की भाषा । दिव्य भान ह ों उदित भाग्य के ये मेरी अदभलाषा। ज्य दत पोंज का ह प्रकाश पलक ों पर दिखरे आशा।।
(इरम=जन्नत का ििीचा, समान=व्रत रखने वाला, तदनशा=इच्छाओों की िे वी)